Hamkhurma

  • November 2019
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  • Words: 38,810
  • Pages: 105
ूेमचंद हमख़ुमा व हमसवाब

उप यास बम •

हमख़ुमा व हमसवाब: 3

2

3

हमखुमा व हमसवाब पहला बाब शाम का व

स ची क़ुबानी

है । गु ब होनेवाले आफताब क सुनहर

करने रं गीन

शीशीं क आड़ से एक अमेजी वज़ा पर सजे हए ु कमरे म झांक रह ह जससे तमाम कमरा बूकलूमूँ हो रहा है । अमेजी वजा क खूबसूरत तसवीरे

जो द वार से लटक रह है , इस व

रं गीन िलबास पहनकर और खूबसूरत

मालूम होती है । ऐन वःते कमरा म एक खूबसूरत मेज है जसके इधर-उधर नम मखमली ग

क रं गीन कुस यॉ बछ हई ु है । इनम से एक पर एक

नौजवान श स सर नीचा कये हए ु बैठा कुछ सोच रहा है । िनहायत वजीह-

ओ शक ल आदमी है जस पर अंमेजी तराश के कपड़ ने गज़ब का फबन

पैदा कर दया है । उसके सामने मेज पर एक कागज है जस पर वो बार-बार िनगाह डालता ह। उसके बुशरे से जा हर हो रहा है

क इस व

उसके

यालाता उसे बेचैन कर रहे है । एकाएक वो उठा और कमरे से बाहर िनकलकर बरामदे म टहलने लगा

जसम खूबसूरत फूल और प य के

ु गमले सजाकर धरे हए ु थे। बरामदे से फर कमरे म आया कागज का टकड़ा उठा िलया और एक बदहवासी के आलम म बँगले के अहाते म टहलने

लगा। शाम का व

था। माली फूल क

या रय म पानी दे रह था। एक

तरफ साईस घोड़े को टहला रहा था। ठं ड -ठं ड और सुहानी हवा चल रह थी।

आसमान पर शफक फूली हई ु थी मगर वो अपने खयालात म ऐसा गक था

क उसको इन दल ःपय क मुतलक़ ख़बर न थी। हॉ, उसक गदन खुद-ब-

खुद हलाती थी और हाथ कुछ इशारे कर रहे थे। गोया वो कसी से बात कर रहा है । इसी असान म एक बाइिस कल फाटक के अ दर दा खल हई ु

और एक नौजवान कोट-पतलून पहने, चँमा लगाये, िसगार पीता, जूता चरमर करता उतर पड़ा और बोला—गुड ईविनग िमःटर अमृतराय! अमृतराय ने च ककर सर उठाया और बोले—ओह, आप है िमःटर दाननाथ आइए तशर फ लाइए। आप आज जलसे म नजर न आये? दाननाथ—कैसा जलसा मुझे तो इसक खबर भी नह ं। 4

अमृतराय-(है रत म) ऐ आपको खबर ह नह ं? आज आगरे के लाला धनुखधार लाल साहब ने बड़े माक क तक़र र क । मुख़िलफ़ न के दॉत ख टे कर दये। दाननाथ—बखुदा मुझे जरा भी खबर न थी वना म ज़ र जलस म शर क होता। म तो लाल साहब क तर र के सुनने के सुनने का मुँताक हँू ।

मेर बद कःमती थी क ऐसा ना दर मौक़ा हाथ से िनकल गया। मज़मून या था?

अमृतराय—मजमून िसवाय इसलाहे मुआशरत के और

या होता।

लाला साहब ने अपनी ज दगी इसी काम पर व फ़ कर द ह। आज ऐसा पुरजोश ख़ दमे कौम और बाअसर श

इस सूबे म नह ं। ये और बात है

क लोग को उनके उसूल से इ तलाफ हो मगर उनक तक़र र म ऐसा जाद ू होता है क लोग खुद-ब-खुद खंचते चले आते ह। मुझे लाला साहब क

तकर र के सुनने का बारह फैख हािसल हआ है मगर आज क ःपीच म ु कुछ और ह बात थी। इस श स क ज़बान म जाद ू है , जाद ू अलफ़ाज वह

होते ह जनको हम रोजमरा क गु तगू म इःतेमाल करते है , खयालाता

वह होते है जन पर हम लोग यक जा बैठकर अ सर बहस कया करते है । मगर तज म कुछ इस ग़ज़ब का असर है , क दन का लुभा लेता है । दाननाथ को ऐसी ना दर तकर र के न सुनने का स त अफसोस हआ। ु

बोल—यार, म बड़ा बद कःमत हँू । अफ़सोस, अब ऐसा मौक़ा हाथ न आयेगा।

या अब कोई ःपीच न होगी?

अमृतराय—उ मीद तो नह ं

तशर फ़ ले जा रहे ह।

य क लाला साहब आज ह

लखनऊ

दाननाथ—कमाल अफ़सोस हआ। अगर आपने उसे तक़र र का कोई ु

खुलासा कया हो तो मुझे दे द जए, जरा दे खकर तःक न कर लूँ। अमृतराय ने वह

ु काग़ज़ का टकड़ा

जसको बार-बार पढ़ रहे थे,

दाननाथ के हाथ म दे दया और बोले—असनाये तक़र र म जो हःसे मुझे िनहायत अ छे मालूम हए ु उनको नक़ल कर िलया। ऐसी रवानी म िलखा है

क शायद बजुज मेरे और कोई पढ़ भी न सके। दे खए हमारे रऊसा व

मु

दाया ने क़ौम क ग़फ़लत व बेपरवाई को हजरत ! सब खरा बय

क जड़ हमार

या बयान कया है — लापरवाई है । हमार

हालत

बलकुल नीमजान मर ज क -सी है जो दवा हाथ म लेकर दे खता है मगर 5

मुँह तक नह ं ले जाता। हॉ साहब , हम ऑ ंख रखते ह मगर अ धे है , हम कान रखते ह मगर बहरे ह, हम ज़बान रखते ह मगर गूग ँ े ह। अब वो जमाना नह ं ह क हमको अपनी मुआशरत के नक़ाइस नज़र न आते ह । हम तमाम अ छ

बात

को जानते ह और मानते ह मगर

जस तरह

मसाइले इखलाक पर ईमान रखकर भी हम गुमराह होते ह, खुदा के बजूद के कायल होकर भी मु कर बनते ह, उसी तरह इसलाहे तम न ु के मसाइल से इ फाक रखते ह मगर उन पर अमल नह ं करते।

अमृतराय ने बड़े पुरजोश म इबारत पढ़ । जब वो ख़ामोश हए ु तो

दाननाथ ने कहा—बेशक खूब फ़रमाया है , बलकुल हमारे हःबे हाल।

अमृतराय—जनाबमन, मुझको स त अफसोस है क मन सार तक़र र य न नक़ल कर ली। उद ू जबान पर ऐसे ह व

गुःसा आता है । काश

अमेजी तक़र र होती तो सुबह होते ह तमाम रोज़ाना अख़बार म शाया हो जाती। नह ं तो शायद कह ं खुलासा

रपोट छपे तो छपे। (एक लमहे क

खामोशी के बाद) कैसे गम अलफाज म तहर क क है क जब से जलसे से आया हँू , वह सदाऍं बराबर कान म गूज ँ रह ह। माई डयर दाननाथ, आप

मेरे

य़ालात से वा क़फ़ ह। आज क ःपीच ने उन ख़यालात को अमली

सूरत अ तयार करने क जुरअत क है । म अपने को क़ौम पर कुबानी कर दँ ग ू ा। अब तक मेरे ख़यालात मुझ ह तक थे, अब वह जा हर ह गे। अब तक

मेरे हाथ सुःत थे मगर मने उनसे काम लेने उनसे काम लेने क़सदे मुस म कया है । म बहत ु बाअ तयार श स नह ं हँू , मेर जायदाद भी नह ं, मगर

म अपने को और अपनी सार जथा को कौम पर कुबान कर दँ ग ू ा। (आप ह

आप) हॉ, म तो ज़ र िनसार कर दँ ग ू ा (जोश से) ऐ थककर बैठ हई ु क़ौम

ले तेर हालत पर रोने वाल म एक और इज़ाफ़ा हआ। आया इससे तुझे ु कुछ फायदा होगा या नह ं, इसका फ़ैसला व ा करे गा।

यह कहकर अमृतराय ज़मीन क तरफ दे खने लगे। दाननाथ, जो उनके बचपन के साथी थे, उनके िमजाज से खूब वा कफ थे क जब उनको कसी बात क धुन सवार हो जाती है , तो उसको बला पूरा कये नह ं छोड़ते। चुनाचे उ ह न ने ऊँच-नीच सुझाना शु

कया—मेहरबाने मन, यह

याल तो

क जए क आप कैसा खतरनाक काम अपने ज मे ले रहे है । आपको अभी नह ं मालूम क जो राःता साफ़ नजर आ रहा है वह कॉटो से भरा हआ है । ु 6

अमृतराय---अब तो हर चे बाद। म ख़ूब जानता हँू क मुझे बड़ -बड़

द कत का सामना करना होगा। मगर नह ं मालूम कुछ अस से मेरे दल म कहॉ से कूवत आ गयी है । मुझे ऐसा मालूम होता है क म बड़े से बड़ा काम कर सकता हँू । और उसके अंजाम तक पहँु चाकर सुख ई हािसल कर

सकता हँू ।

दाननाथ—जी हॉ, फौर

का हमेशा यह

हाल होता है । अब जरा

ख़यालात से हटकर वाक़यात पर आइए। आप जानते ह क ये शहर बतालत

और उसत वॉपरःती का मरकज़ ह। नये ख़यालात यहॉ हरिगज़ न ानुमा

नह ं पा सकते। अलावा बर आप बलकुल तनहा ह। जो जवाबदे हयॉ आप अपने सर लेते ह, उनसे जहॉ तक मेरा

य़ाल है , आपके दँमन ु

जाऍंगे और शायद अहबबा भी कनाराकशी कर। आप अकेले

य़ादा हो

या बना लगे।

अमृतराय ने दोःत क बात को सुनकर सर उठाया और बड़ संजीदगी से बोले-दाननाथ, ये तुमको

या हो गया है ? मद ख़ुदा, तुम कहते हो अकेले

या बना लोग अकेले आदिमय ने स तनत फ़तह क बुिनयाद डाली ह। अकेले आदिमय ने तार ख़ के सफहे पलट दये ह। गौतम बु

या था।

महज़ एक बा दयागद फ़क़ र जसका सारे ज़माने म कोई यारो-मददगार न था। मगर उसक

ज दगी ह म आधा ह दोःतान उसका मुर द हो चुका

था। आपको कतना िमसाले दँ ।ू क़ौम के नाम तनहा आदिमय से रौशन ह।

आप जानते है क अफ़लातून एक बड़ा आदमी था मगर आपम कतने ऐसे है जो जानते ह

क वह कस मु क का बािश दा है ?

दाननाथ ज़ीफ़हम आदमी थे, समझ गये क इस व

नशेब-ओ-फ़राज सुझाना

जोश ताजा है ,

फ़जूल है । पस उ ह ने फ़हमाइश का नया ढं ग

अ तयार कया बोले—अ छा मने मान िलया क अकेले लोग ने बड़े -बड़े काम कये ह और आप भी कौम क भलाई कुछ न कुछ कर लेगे, मगर इसका तो ख़याल क जए

क आप उन लोग

को

कतना बड़ा सदमा

पहँू चायेग जनको आपसे कोई ता लुक ह। ूेमा से बहत ु ज द आपक शाद

होनेवाली है आप जानते है क उसके वा दै न परले िसरे के क टर ह द ू ह। जब उनको आपके अमेजी वज़ा-ओ-कता पर एतराज है तो फरमाइए जब

आप कौमी इसलाह पर बॉधेगे तो उनका ूेमा से हाथ धोना पड़े गा। 7

या हाल होगा। ग़िलबन आपको

यह तीर कार लगा। दो-तीन िमनट तक अमृतराय जमीन क तरफ ताकते रहे । बाद इसके उ ह ने सर उठाया—ऑख ं सुख थी, ऑ ंसू नमूदार थे, मगर क़ौमी फलाह ने नफसर पर काबू पा िलया था। बोले---हजरत, क़ौम क भलाई करना आसान नह ं। गो मने इन द कत का ख़याल पहले नह ं कया था ताहम मेरा दल इस व

ऐसा मज़बूत है क क़ौम के िलए हर

एक मुसीबत सहने को तैयार हँू । ूेमा से बेशक मुझको गायबाना मुह बत थी, उसका शैदाई था और अगर काई वो ज़मानत आत क मुझको उसका

शौहर बनने का फख हािसल होता तो म सा बत करता क मुह बत इसको कहते है । मगर अब ूेमा क सूरत मेर िनगाह से ग़ायब होती जाती है । यह दे खए वह फोटो है इससे भी

जसक म अब तक पर ःतश कया करता था। आज

कनाराकश होता हँू । यह कहते-कहते उ ह ने तसवीर जेब से

िनकाल ली और उसके पुज-पुज कर डाले, ‘ूेमा को जब मालूम होगा क अमृतराय अब क़ौम का आिशक हो गया और ख़ क का फ़दाई, उसके दल म अब

कसी ना जनीन क जगह बाक नह ं रह तो मेर इस हरकत

मुआफ़ कर दे गी ? दाननाथा—अमृतराय,

मुझको

स त

नाज़नीन क तसवीर क यह गत क तु हार

अफ़सोस

है



तुमने

जसको तुम, खूब जानते हो

उस क

दलदाद ह। ूेमा ने अहद कर िलया है क बजुज़ तु हारे कसी और

से शाद न करे गी। और अगर तु हारा हा फज़ा काम दे ता हो तो सोचा तुमने भी इस बःम कोई वादा कया था या नह ं।

या तुमको नह ं मालूम क

अब शाद का जमाना बहत ु क़र ब आ गया है ? इस व

उस मासूम लड़क क इन बात

या हालत कर दे गी

तु हार ये हरकत

को सुनकर अमृतराय वाकई कुछ पज़मुदा हो गये। हॉ,

बराबर यह कहते रहे क ूेमा इस ख़ता को ज़ र मुआफ़ कर दे गी। इ ह ं बात म आफ़ताब गु ब हो गया। दाननाथ ने अपनी बाइिस कल स हाली और चलते व

बोले—िमःटर राय, खूब सोच लो, अभी से बेहतर है इन

परागंदा ख़यालात को छोड़ो। आओ आज तुमको द रया क सैर करा लाय। मने एक बजरा ले रखा है । चॉदनी रात म बहत ु लु फ़ आयेगा। अमृतराय—इस व

िमलूँगा। इस गु

आप मुझे मुआफ़ क जए। कल म आपसे फर

गू के बाद तो अपने मकान क

तरफ़ राह

अमृतराय उसी अँधेरे म बे हस-ओ हरकत खड़े रहे । वो नह ं मालूम 8

हए ु और

या सोच

रहे थे। जब अंधेरा

यादा हआतो दफ़अतन वह ज़मीन पर बैठ गये ओर ु

उसतसवीर के पर शान पुज इक ठा कर िलये, उनको अपने सीने से लगा िलया और कुछ सोचते हए ु अपने कमरे म चले गये।

बाबू अमृतराय शहर के मुआ ज़ज रऊसा म समझे जाते थे। आबाई

पेशा वकालत था। खुद भी वकालम पास कर चुके थे और गो अभी वकालत जोरो पर न थी मगर खानदानी इ

दार ऐसा जमा था क शहर के बड़े से

बड़े रऊसा भी उनके सामने सरे िनयाज़ ख़म करते थे। बचपन ह से अमज़ी

कािलज

म तालीम पायी और अमजी तहजीब और तज़ मुआशरत के

दलदाद थे। जब तक विलद बुजग ु वार ज दा थे, पासे अदब से अम ज़यत से मुहता रज़ रहते थे। मगर उनके इ तक़ाल के बाद खुल खेले। सफ कसीर से ऐन द रया के कनारे पर एक नफ़ स बँगला तामीर कराया था और उसम रहते थे। इमारत के सब सामान मौजूद थे। कसी चीज़ क कमी न थी। बचपने इसे इ म के दलदादा थे और िमज़ाज भी कुछ इस क़ःम का वाक़े हआ था क जस चीज़ क धुन सवार हो जाती बस उसी के हो रहते थे। ु

जस जमाने म बँगले क धुन सवार थी, आबाई मकानता कौ ड़य के मोल

फ़रो त कर दये थे। इलाक़े पर भी हाथ साफ़ करने का इरादा था, मगर क़ःमत अ छ थी, बाप का जामा कया हआ कुछ ु

पया बक मे िनकल

आया।

िमःटर अमृतराय को कताब से उ फ़त थी। मुम कन न था क कोई नयी तसनीफ शाया हो और उनके कुतुबखाने म न पायी जाये। अलावा इसके फुनूने लतीफा से भी बेबहरा न थे। गाने से तबीयत को खास रगबत

थी। वह वकालत पास कर चुके थे मगर अब तक शाद नह ं हई ु थी। उ ह ने ठान िलया था क ताव े

क वकालत ज़ोर पर न हो जाए, शाद न करगे।

इसी शहर के रईसे आज़म लाला बदर ूसाद साहब उनको कई बरस से अपनी इकलौती लड़क

ूेमा के वाःते चुने बैठे थे। इसी खयाल से



अमृतराय को इस शाद के करने म कोई एतराज न हो ूेमा क तालीमा पर बहत ं साहब क मज के ु िलहाजा रखा गया था। मुशी

खलाफ़ ूेमा क

तसवीर भी अमृतराय के पास िभजवा द गयी थी और व दोन म ख़तो- कताब भी हआ करती थी ु

न ्-फव



य क ूेमा अंमेजी तालीमा पाने

से जरा आज़ाद-िमज़ाज हो गयी थी। बाबू दाननाथ बचपन ह से अमृतराय के साथ पढ़ा करते थे, और दोन म स ची मुह बत हो गयी थी। कोई ऐसी 9

बात न थी, जो एक-दसरे के िलए उठा रखे। दाननाथ अस से ूेमा के दल ू

म पर ःतश करते थे। मगर चूं क उसको मालूम था क बातचीत अमृतराय से हो गयी है और दान एक-दसर को ू

यार करते है । इसिलए खुद कभी

अपने ख़यालात को जा हर नह ं कया था। उस माशुक के फराक म जसके िमलने क मरकर भी उ मीद न हो उसने अपने इ मीनान क घ ड़याँ त ख कर रखी थीं। सैकड़ ह बार-उसक न

ािनयत ने उभारा था क तू कोई

चाल चलकर मुंशी बदर ूसाद को अमृतराय से बदज़न कर दे मगर हर बार

उसने इस न सािनयत को दबाने म कामयाबी हािसल क थी। वह आला दज का बाइख़लाक आदमी था। वह मर जाना पस द करता बजाय इसके क अमृतराय क िनःबत कोई ग़लतबयानी करके अपना मतलब िनकाले। यह भी न था

क वह अमृतराय से स ची हमदद व दमसाज़ी का बताव न

करता हो। नह ं बरबवस इसके वो हर मौके पर अमृतराय का तश फ व दलासा दया करता था। अवसर उसी क माफ़त दोन शैदाइय म तोहफा भेजे गये थे। खतो- कताबो उसक माफ़त हआ करती है । यह मौके ऐसे थे ु

क अगर दाननाथ चाहता तो बहत ु ज द चाहनेवाल मे िनफ़ाक पैदा कर

दे ता। मगर ये उसक

फतरत से बईद था।

आज भी जब अमृतराय ने अपने इरादे ज़ा हर कये तो दाननाथ ने बला कम-ओ-काःत द कते बयान कर द । उका दल कैसा उछलता था जब वो ये ख़याल करता क अब अमृतराय मेरे िलए जगह खाली कर रहा है । मगर ये उसक शराफत थी क उसने अमृतराय का उनके इरादे से बाजु रखना चाहा था। उसने कहा था क अगर तुम रफ़ामरो के जुमरे मे शािमल होगे तो ूेमा रो-राकर जान दे दे गी मगर अमृतराय ने एक न सुनी। उनका

इरादा मुःत क़ल था जसको कोई तरग़ीब डगा नह ं सकती थी। दाननाथ उनके िमज़ाज और धुन से खूब वा कफ़ थे। समझ गये क अब ये उड़ते है और उड़कर रहे गे। चुना चे अब उनको कोई वजह न मालूम हई ु

असल वाकया बयान करके

य न

क म

यार ूेमा का शौहर बनने क कोिशश

क ँ । यहॉ से रवाना होते ह वा अपने घर पर आये और कोट-पतलून उतार सीधा-सादे कपड़े पहना, लाला बदर ूसाद साहब के दौलतखाने क रवाना हए। इस व ु

तरफ़

उनके दल का जो कै फयत हो रह थी उसका बयान

करना मुश कल है । कभी तो खयाल आता

क कह ं मेर

यह हरकत

गलतफ़हमी का बाइस न हो जाए लोग मुझको हािसद व बद वाह समझेने 10

लगे। फर

याल आता कह ं अमृतराय अपना इरादार पलट द और

या

ता जुब है क ऐसा हो जाये तो फर मेरे िलए डब ू मरने क जा होगी। मगर

इन खयालात के मुका बले म जब ूेमा क

यार - यार सुरत नज़रो के

सामने आ गयी तो ये तमाम औहाम रफ़ा हो गये और दम-के-दम म वह लाल बदर ूसाद के मकान पर बैठे बात करते दखायी दये।

11

दसरा बाब ू

हसद बुर बला है

लाल बदर ूसाद साहब अमृतराय के वािलद मरहम ू के दोःत म थे

और खा द



दार, तम वुल और एजाज के िलहाज से अगर उन पर

फ़ौ कयत न रखते थे तो हे ठ भी न थे। उ ह ने अपने दोःत मरहम ू क

ज दगी ह म अमृतराय को अपनी बेट के िलए मु तख़ब कर िलया था

अगर वो दो बरस भी

ज दा रहते तो बेटे का सेहरा दे ख लेते। मगर

ज दगी ने वफा न क , चल बसे। हॉ, दमे मग उनक आ खर नसीहत ये थी

क बेटा, मने तु हारे वाःते बीवी तजवीज़ क है , उससे ज़ र शाद

करना। अमृतराय ने भी इसका प का वादा कया था मगर इस वाकये को आज पॉच बरस बीत चुके थे। इस बीच म उ ह ने वकालत भी पास कर ली थी और अ छे खासे अंमेज बन बैठे थे। इसी तबद ले तज मुआशरत ने प लक क नज़र म उनका वकार कम कर दया था। बर अ स इसके लाला बदर ूसाद प के ह द ू थे, साल भर बारह मास उनके यहॉ भागवत

क कथा हआ करती थी, कोई दन ऐसा न जाता क भंडारे मे सौ-पचास ु

साधुओं का जेवनार न बनता हो। इन फ़ या जय ने उनको सारे शहर म

हर दल-अज़ीज बना दया था। हर रोज अलःसबाह वो पैदल गंगा जी के

ःनाना को जाया करते और राःते म जतने आदमी उनक बुजग ु ाना सूरत दे खते, सरे िनयाज़ ख़म करते और आपस म कानाफुःक करते व करते क यह गर ब का दःतगीर यूँ ह सरस ज़ रहे ।

दआ ु

गो मुंशी बदर ूसाद अमृतराय क अंमे जयत को ज लत व हकारत क िनगाह से दे खते थे और बार उनको समझाकर हार भी चुके थे मगर चूँ क उनक अपनी जान से अज़ीज बेट ूेमा के िलए मु तख़ब कर चुके थे इसिलए मजबूर थे,

य क उनको उस शहर म ऐसा होनहार, खुश , बाख़बर

और अहले-सवत दामाद नह ं िमल सकता था और दसरे शहर म वो अपनी ू

लड़क क शाद

कया नह ं चाहते थे। इसी ख़याल से क लड़क अमृतराय

क मज के मुआ फ़क हो उसको अँमज़ी व फ़ारसी और ह द क थोड़ -थोड़ तालीम द गयी थी और उन इ साबी कमालात पर फ़रती अितयात सोने म सुहागा थे। सारे शहर क जहॉद दा और नु ारस मु फ़कुल बयान थी क ऐसी हसीन व खुश

लड़क आज तक दे खने म नह आयी। और जब कभी 12

वो िसगांर करके कसी तक़र ब म जाती थी तो हसीन औरत बावजूद हसद के उके पैर तले ऑख ं बछाती थी। द ू हा-द ू हन दोन एक-दसरे के आिशके ू

जार थे। इधर एक साल से दोन मे खतो- कताब भी होने लगी थी। गो मुंशी

बदर ूसाद साहब इस िच ठयाव क स त बर खलाफ थे मगर अपने बड़े बेटे क िसफा रश से मजबूर रहते जो नौजवान होने के बाइस इन चाहनेवाल के ख़यालात का कुछ अंदाज कर सकता था। इस शाद का चचा अस से सारे म था। जब च द भलोमानस इक ठा

बैठते तो बातचीत होने लगती क उस ईसाई से करे गे?

या लाला साहब अपनी बेट क शाद

या दसरा घर नह ं है । मगर जब उनके बराबरवालो ू

घरान को िगनते तो मायूस हो जाते। अब शाद के दन बहत ु करब आ गये

थे। लाल साहब ने अमृतराय को मजबूर कया था अब म कुछ दम का और मेहमान हँू , मेरे जीते-जी तुम इस जवाहर को अपने क ज म कर लो।

अमृतराय ने भी मुःतैद जा हर क थी, गो ये वादा करा िलया था। क म बेमानी र ःमयात म से एक भी न अदा क ँ ग। लाला साहब ने तूअन व करहन इस बात को भी मुजरू कर िलया था। तैया रयॉ हो रह थीं। दफ़अतन आज लाला साहब को मोनबर खबर िमली क अमृतराय ईसाई हो गया है और कसी मेम से शाद ियका चाहता ह। जैसा

कसी हरे -भरे दर त पर

बजली िगर पड़ , यह

हाल लाला

साहब का हआ। पीरानासाली क वजह से आज़ा मुज़म हल हो रहे थे ये ु

ख़बर िमली तो उनके दल पर ऐसी चोट लगी। क सदमे को बदाँत न कर सके और पछाड़ा खाकर िगर पड़े । उनका बेहोश होना था क सारा भीतर-

बाहर एक हो गया। तमाम नौकर-चाकर, खेश-ओ-अक रब इधर-उधर से आकर इक ठे हो गये।

या हआ। ु

या हआ ु ? अब हर श स कहता फरता

है क अमृतराय ईसाई हो है , उसी सदमे से लाला साहब क ये हालत हो गयी है । बाहर से दम के दम म अ दर ख़बर हो गयी। लाला बदर ूसाद क बीवी बेचार अरसे से बीमार थीं और उ ह ं का

इसरार था क बेट क शाद

जहॉ तक ज द हा जाए अ छा है । गो पुराने ख़यालात क औरत थीं और शाद - याह के तमाम मरािसम और बेट क हया व शम के पुराने ख़यालात उनके दल म भरे हए ु थे, मगर जब से उ ह ने अमृतराय को एक बार सहन म दे ख िलया था उसी व

से उनक ये धुन सवार थी क मेर बेट क

शाद हो तो उ ह ं से हो। बेचार बैठ हई ु अपना यार बेट से बात कर रह 13

थी क दफ़अतन बाहर से यह खबर पहँु ची। सुनते ह तो मॉ के तो होश उड़

गये। वो बेचार अमृतराय को अपना दमाद समझने लगी थी। और कुछ तो

न हो सका

अपनी बेट को गले लगाकर ज़ार-ज़ार रोने लगी और ूेमा भी

बावजूद हज़ार के ज द न कर सक । हाय, उसके बरस के अरमान इकबारगी ख़ाक म िमल गये उसको रोने क ताब न थी। एक हौल दल-सा हो गया। अपनी मुँह से िसफ इतना िनकाला-नारायण, कैसे जऊँगी यह कहते—कहते उसके भी होश जाते रहे । तमाम घर क ल डयॉ इक ठ हो गयीं। पंखा झला

जाने लगा। अमृतराय क फ़ज

हमाक़त पर भीतर—बाहर अफ़सोस कया

जा राह था। ूेमा के भाई साहब को इस बात का इकबारगी यक़ न न हआ ु ,

मगर चूँ क ये बात बाबू दाननाथ क ज़बानी सुनी थी और दाननाथ क बात

को हमेशा से सच मानते आये थे, शक का कोई मौका न रह गया। हॉ इतना अलब ा हआ क जरा से वाकये ने हज़ार ज़बान पर जार होकर ु

और ह सूरत अ तयार कर ली थी। दाननाथ ने िसफ इतना कहा था क बाबू अमृतराय क िनयत कुछ डॉवाडोल मालूम होती है । वो रफाम क तरफ झुके हए ु ह। इसक

एक साद -सी बात को लाला बदर ूसाद ने ईसाइत

समझ िलया था और घर-भर म इसी पर कोहराम मचा हआ था। ु

जब इस हादसे क खबर मुह ले म पहँु ची तो हमदद के िलहाज़से

बहत ु सी औरत इक ठ हो गयीं मगर कसी से कोई इलाज न बन पड़ा। दफ़अतन एक नौजवान औरत आती हई दखायी द । उसको दे खते ह सार ु

औरत ने गुल मचाया—लो, पूणा आ गयी। अब ब ची बहत ु ज द होश मे आयी जाती है ।

पूणा एक ॄ णी थी। बरस बीस एक का िसन था। उसक

बंतकुमार से हई ु थी जो कसी अंमेजी द तर म

शाद

लक थे। दोन िमयॉ-बीवी

पड़ोसी ह म रहते थे और दस बजे दन को जब पं डत जी द तर चले जाते तो पूणा तनहाई से घरबराकर ूेमा के पास चली आती और दोन म राज़ िनयाज़ क बात शाम तक हआ करतीं। चुनांचे दोन स खय म हद दज क ु

मुह बत हो गयी थी। पूणा गो एक ग़र ब घराने क लड़क थी और शाद भी एक मामूली जगह म हई ु थी मगर फ़तरतन िनहायत सलीक़ाम द, जूद-

संजीदा-िमज़ाज और हर दल अज़ीज औरत थी। उसने आते ह तमाम औरत

से कहा—हट जाओ, अभी दम के दम म उनको होश आया जाता है । मजमा हटाकर उसने फ़ौरन ूेमा को अत रयात सुँघाय, केवड़े और गुलाब का छ ंटा 14

मुँह पर दलाया, आ हःता-आ हःता उसके तलवे सहलाये। सार

खड़ कयॉ

खुलवा द ं। जब दमाग पर सद पहँु ची तो ूेमा ने ऑ ंख खोल द ं और इशारे

से कहा—तुम लोग हट जाओ.म अचछ हँू ।

औरत के जानम जान आयी। सब अमृतराज कोकोसती और ूेमा के

सोहाग बढने क दआ करती अपने-अपने घरकोिसधार ं। िसफ पूणा रह गयी। ु दोन सहे िलय म बात होने लगी ।

पूणा – यार ूेमा, ऑ ंखखोल ये

ूेमानेिनहायत िगर

या गत बना र खी है ?

हई ु आबाज म जवाब दया-हाय सखी.मेर तो सब

अरमान खाक म िमल गये ।

पूणा – यार .ऐसी बातन कर .तुम जरा उठ तो बैठो। ये अब बताओं तुमको ये खबर कैसी िमली । ूेमा- कछ न पूछो सखी .म बड़ बद कःमत हँू (रोकर) हाय, दल

भरआता है , म कैसे

जऊँगीं ?

पूणा – यार ,जरा दलको ढाढ़स दो । म अभी सब पता लगाये दे ती हँू ।

बाबु अमृतरय के िनःबत सजो कुछ कहा गया है वोसब झूठ है , कसी अनदे ख ने यह पाख ड़ फैलाया है ।

ूेमा-सखी तु हार मुँह म घी श कर ? तु हार बात सब सच ह ,मगर हाय,कोई मुझ उस जािलम से एक दम के िलये िमला दे । हॉ सखी ,एक दम

के िलए उस कठकलेजे को पा जाऊँ त मेर

ज दगी सुफल हो जाए

फर मुझे मरने का अफसोस न रहे । पूणा- यार , ये या बहक –बहक बात करती हो। बाबू अ तराय

हरिगज ऐसा न कया होगा। मुम कन नह ं क वो तु हार

ने

मुह बत न कर।

म उनको खूब जानती हँू । मैने अपने घरके लोग को बार-2कहते हए ु सुनाहै क अॆतराय को अगर दिनया म कसी से मुह बत है तो ूेमा से । ु ूेमा-

यार , अब इनबात पर व ास नह ं आता । म कैसे जानूँ क

सउनको मुझसे मुह बत है । आज चार एक दन काटना दभर ू

बरस हो गये , हाय मुझे तो एक

हो जाता है और वहॉ खबर ह नह ं होती । अगरम

खुद मु यतार होती तो अब तक हमारा ...रच गया होता । बना उनको दे खो क साल से टालते चले आते ह ।

यार पूणा, मुझे बाज ब

टालमटोल पर ऐसा गुःसा आता है क तुमसे क ब त बेहया है । 15

उनके इस

या कहँ मगर अफसोस, दल

यहॉ अभी यह बात हो रह थीं क बाबू कमलाूसाद (ूेमा के भाई) कमरे म दा खल हए। उनको दे खते ह पूणा ने भी घूँघट िनकाल ली और ु

ूेमा ने भी झट ऑख ं से ऑस ं ू

प छ िलये। कमलाूसाद ने आते ह –ूेमा

तुमेभी कैसी नादान हो सय। ऐसी बात पर तुमको यकायक यक न

य कर

आ गया? इतना सुनना था क ूेमा का चेहरा बँशाश हो गया। फत खुशी से ऑ ंखे चमकने लगीं और पूणा ने भी अ हःता से उसक एक ऊँगली दबायी। अब दोन मु त जर हो गयीं क ताजी खबर

या िमलेगी।

कमलाूसाद –बात िसफ इतनी थी क अभी कोई दो घ टे हए ु ,बाबू

दाननाथ तशर फ लाये थे। मुझसे और उनसे बात हो रह तकर र

म शाद

थी। असनाए

याह का जब िछड़गया तो उ होने कहा क मुझे तो बाबू

अॆतराय इरादे इस साल भी मुःत कल नह ं मालूम होते ह। वो शायद रफाम पाश

म दा खल होनेबाले ह। बस इतनी सी बात का लोग

ने

सबतगड़ बना दया। लाला जी उधर बेहोश होगर िगर पड़े ।अब तक उनके स हालूँ क ससारे घर म ईसाई हो गये ,ईसाई हो गये कागुल मच गया। ईसाईहोना

या कोई द लगी है ?

और फर

उनको ज रत ह

या है ईसाई

होने क ? पूजा-पाठ वो करतेह नह ं, शराबव कवाब से उनको कतई नफरत है नह ं हौ तो कुछ यूँह सी रगबत है । बँगले म रहते ह ह, बावच का

ू – वचार मानते ह नह ं तो अब उनको कु े ने काटा पकाया खाते ह है , छत

है

क खामखाई ईसाई होकर न कूक बन। ऐसी बेिसर –पैर क बात पर

यक न नह ं करना चा हये। लो, अब रं ज-कुलफत को धो डाल । हँ सी-खुशी

बात चीत करो। मुझे त हार इसरोने –धोने से स त अफसोस हआ। येकहकर ु

बाबू कमला ूसाद बाहर चले गये और पूणा ने हँ स कर कहा –सुना कुछ?कहती थी

क ये सब लोग ने पाखंड फैलाया है ,लो अब मुँह मीठा

कराओ। ूेमा ने फत –मसरत से पूणा को सीने से लगाकर खूब दबाया, उसके

खसार के बोसे िलये और बोली –मुँह मीठा हआ या और लोगीं ? ु

पूणा – इन िमठाईय से बाबू अॆतराय का मुँह मीठा होगा। मगर सखी, इस मनहस ू खबर ने तू हारे थोड़ दे र तक परे शान कया तो

या,

तु हार कलई खुल गयी। सारे मुह ले म तु हारे बेहोश हो जाने क खबर

उड रह ं ह और नह ं मालूम सउस म

या 16

या काट-छॉट क गयी है ।

यूँ

अब तो न लोगीं दन ू क । अब आज ह म अॆतराय को सब बात िलख

भेजती हँू । दे खो केसा मजा आता है ।

ूेमा- (शमाकर) अ छा रहने द िलए ये सब द लगी। ई र जाने अगर

तुमने आज क कोई बात कह तो फर तुमसेकभी न बोलूँगी । पूणा –बला से न बोलोगी, कुछ म तु हार आिशक तो नह बस इतना ह िलख दँ ग ू ी क ूेमा.....

ूेमा-(बात काटकर) अ छा िल खयेगा तो दे खग ूँ ी । प डकत जी से

कहकर वह दगत कराऊँगी ु

क सार शराशरत भूल जाओ। प डत जी ने

तुमको शोख बनार र खा है बना तुम मेर बीहन होतीं तो खूब ठ क बनाती। अभी दोन स खयॉ जी भरकर खुश न होने पायी थीं क आसमान ने फर बेवफाई क । बाबू कमलाूसाद क बीवी अपनी ननद से खुदा बाःते को

जला करती है । अपने सास ससुर का ह ा क शोहर से भी नाराज रहतीं क ूेमा म कौन से चॉद लगे ह क सारा कुनबा उन पर फदा होनेको तैयार है । मु म और उनम

फक ह

या है ? यह ं न क वह वहत ु गोर है और म

उतनी गोर नह ं हँू । श ल –ओ सूरत मेर उनसे खराब नह ं। हॉ म पढ – िलखी नह ं हँू

या मुझे नौकर -चाकर करना है । और न मुझम क ःबय के

से कपड़ पहनने क आदत है , ऐसी बेगरै त लड़क , अभी शाद नह ं हई ु मगर आपस म िचटठ –प र होता है , तःवीर जाती ह

तोहफे आते ह, हरजाइय

म भी ऐसी बेशम न होगीं और ऐसी ह कुलव ती को सारा कुनबा करता है , सब अंधे हो

यार

गये ह ।

इ ह ं असबाब से वो गर ब ूेम से जला करती थीं। बोलती थीं तो

रं जन ।मगर ूेमा अपनी खुशिमजाजी से उनक बात का थी । ह ल ु वसा उनको खुश र ने क कोिशश सुना

यान म नह ं लाती

करती थी। आज जब उसने

क अमृतराय ईसाई हो गये ह तो जामे म फूली न समयी। बाबू

कमलाूसाद

यूँ ह घर म आये उसने उनसे स ची

हमदद जा हर क ।

बाबू साहब बेचारे बीवी पर शैदा थे। रोज ताने सुनते थे, मगर सब बदाँत करते थे। बीवी क जबान से हमददाना बातचीत सुनी तो खुल गये। तमाम वकाया जो कुछ दाननाथ से सुना था, बेकम – ओ काःत बयान कर दया। उस बेचारे को मालूम न था, क म इस व

बड़ गलती कर रहा हँू । चुनांचे

वह अपनी बहन क तसफक करके बाहर आये तो सबसेपहला काम

जो

उ ह ने कया वो ये था कबाबू अमृतराय से मुलाकात करके उनका इं दया 17

ल। वो तो उधर रवाना हऐ ु इधर उनक

बीवी साहबा खरामा –खरामा

मुःकराती हई ु ूेमा के कमरे म आयीं और मुःकराकर बोलीं – य ूेमा, आज तो बात फूट गयी।

ूेमा ने यह सुनकर शमाकर सर झुका िलया, मगर पूणा बोली-सारा भांडा फूट गया । ऐसी भी क

या कोई लड़क , मद पर फसले

ूेमा ने लजाते हए ु जबाब दया-जाओ तुम लोग क बला से ?मेझसे मत

उलझो।

भावज –(जरा संजीदगी से) नह ं –नह ं

द लगी क

बात नह ं है ।

मदए ु हमेशासे कठकलेजे होते ह ,उनके दल म मुह बत होती ह नह ।खनका

जरासा सर धमके तो हम बेचा रयॉ खाना-पीना मर ह

याग दे ती ह । मगर हम

यूँ न जाय उनक जरा भी परवाह नह ं होती । सच है मद का

कलेजा काठ का? पूणा ने जवाब दया – भाभी

तुम बहत ु ठ क कहती हो। मद सचमुच

कठकलेजे होते ह। मेरे ह यहॉ दे खो,मह ने म कम दस –बारह दन उसमुए साहब के साथ दौरे पर रहते ह। म तो अकेले सुनसान घरम पड़े -2 कुढ़ा करती हँू वहॉ कुछ खबर ह नह ं होती । पूँछती हँू तो कहते ह रोना-गाना

औरत का काम ह ह हम रोय – गाय तो दिनया का काम कैसे चले। ु भाभी – और

या। गोया दिनया अकेले मद ह के थामे तो थमी है , ु

मेरा बस चले तो इन मद क तरफ ऑख ं उठाकर भी न दे खूँ । अब आज ह दे खो, बाबू अमृतराय क िनःबत जरा सी बात फैल गयी तो रानी ने अपनी

या गत बना डाली। (मुःकराकर)इनक मुह बत कातो ये हाल है

और वहाँ चार वरस से शाद के िलए ह ला-हवाला करते चले जाते ह।

रानी

खफा न होना ,तु हारे खत जातेह , मगर सुनती हँू वहॉ से शायद ह

कसी

खत का जबाव आता है ।ऐसे आदमी से कोई उनसे जी जलता है ।

या मुह बतस करे । मेरा तो

या कसी को अपनी लडक भार पड़ है क कुऍं म

फक द । बला से कोई बड़ा मालदार है बड़ा खुबसूरत है ,बड़ा इ मवाला है जब हमसे मुह बत ह न करे ,तो

या हम उसके धन दौलत को लकर चाट।

दिनयाम एक सेस एक लाल पड़े ह और ूेमा जैसी द ु हन के वाःते द ू ह ु

का काल ूेम को भाभी क यह बात िनहायत सनागवार गुजर ं। मगर पासे अदब से कुछ न वोल सक । हॉ पूणा ने जवाब दया– नह ं भाभी, तुम बाबू 18

अमृतराय पर बडा जु म

कर रह हो। मुझे खूब मालूम है क उनको ूेम से

स ची मुह बत है । उनम और दसरे मद म बड़ा फब है । ू

भाभी –पूणा, अब मुँह न खुलवाओ ? मुह बत नह ं सब करते है : माना

क बड़े अंमेजीदॉ है , कमिसनी म शाद , करनी पसंद नह ं करते । मगर अब तो दोन मसे कोई कमिसन नह ं ह। अब

या बूढ़े होकर

याह करगे ।

असल बात ये है क शाद करने क िनयत ह नह ं है । टालमटोल से काम िनकालना चाहते है । । यह

याह के ल छन ह क ूेम ने जो तःवीर भेजी

थी वो कल पुज करके पैर तले कुचल डाली म तो ऐसे आदमी का मुँह न

दे खूँ । ूेमा ने अपनी भावज के मुःकराकर बात करते ह समझ िलया था क खै रयत नह ं है । जब यह मुःकराती है तो ज र कोई न कोई आग लगाती ह। वोउनक गु तगू का अंदाज दे खकर सहमी जाती थी क नारायण खैर क जो । भाभी क बात तीर क तरह

सीने म चुभ गयी। ह का–ब का

होकर उसक तरफ ताकने लगी। मगर पूणा को बलकुल यक न न आया, बोली-ये

या कहती हो भाभी भाइया अभी आये थे, उ हौने इसका कुछ भी

जब-मजबूर नह ं कया। पहली बात क तरह ये भी झूठ होगी ।मुझे तो यक न नह ं आता क उ ह ने अपनी ूेमा क तःवीर के साथ ऐसा सलुक कया होगा। भाभी– तु ह यक न ह न आये तो इसका तु हारे भइया खुद मुझसे

या इलाज सय।ये बात

कह रहे थे। और भी शक रफा करने के िलए वो

बाबू अमृतराय के यहॉ गये हए ु ह। अगर तूमको अब सभी यक न न आये तो अपनी तःवीर मॉंग भेजो, दे ख

या जवाब दे ते ह। अगर ये खबर झूठ

होगी तो वो ज र तसवीर भेज दगे, या कम-अज-कम इतना तो कहगे क ये बात झूठ है । पूणा खामोश हो गयी और ूेमा के मुँह से आ हःता से एक आह िनकली और उसक ऑ ंख से ऑ ंसुओं क झ ड़या बहने लगीं। भाभी साहबा के चेहरे पर ननद क यह हालत दे खकर शगु तगी नमूदार हई। वो वहॉ से ु

उठ और पूणा से कहकर’जरा तुम यह ं रहना, म अभी आयी ‘अपने कमरे

म चली आयीं। आइन म अपना चेहरा दे खा—‘लोग कहते ह ूेमा खूबसूरत है । दे खूँ एक ह ते म वो खूबसूरती कहॉ जाती है . जब यह ज म भरे कोई दसरा तीर तेज र खूँ। ू 19

तीसरा बाब बाबू अमृतराय रात-भर करवट बदलते रहे । और नये होसल पर गौर करते

नाकामी

यूँ-2 वह अपने इराद

यू-ँ 2 उनका दल और मजबूत होता जाता।

रौशन पहलुओं पर गौर करने के बाद जब उ ह ने तर क पहलूओं को सोचना ू जाने का अंदेशा कया तो तबीयत जरा हचक ूेमा से ता लुक टट

शु

हआ मगर जब उ ह ने सोचा क म अपनी कौम के िलये अपने अरमान का ु

खून ँ नह ं कर सकता तो ये अंदेशा भी रफा हो गया । रात तो कसी तरह

काट , सुबह होते ह हाजर खा, कपड़े पहन और बाइिस कलपरसवार हो अपने

दोःत



तरफ



कया।

पहले

पहल

िमःटर

हजार लाल

बी.ए.एल.एल.बी.के यहॉ दा खल हए। वक ल साहब िनहायत आला ु

केआदमी थे और रफाम क को िशश से बड़ हमदद रखते थे।

यालात उ ह ने

जब अमृतराय के इरादे और उन पर कारब द होनेक तजवीज सुनीं त बड़े खुश हए ु और फरमाया-आप मेर जािनब से मुतमइन र हए और मुझे अपना स चा हमदद सम झये। मुझे िनहायत मसरत हई ु जैसे का बल श स ने इस बारे गरॉ को अपने

क हमारे शहरम आप

ज मे िलया। आप जो

खदमद मेरे सपुद कर। मुझे उसके बजा लाने म मुतलक पसोपेश न होगा ब क म उसको बाइसे फख समझूँगा। अमृतराय बक लसाहब क बात पर लटट हो गये, तहे दल से उनका शु बया अदा कया और खुश होकर कहा क अ छा शुगन ू हआ। इस शहर म एक इसलाह अंजम ु न कायम करने क ु

वा हश जा हर क ,वक ल साहब ने इसको पंसद कया और मुआ वनत का

स चा बादा फरमाया और अमृतराय खुश –खुश दाननाथ के दौलतखाने पर जा धमके। दाननाथ जैसा हम पहले कह चुके ह, अमृतराय स चे दोःत म थे। उनको दे खते ह बड़ गमजोशी से मुसाफा कया और पूछा- य जनाब या इराद ह ? अमृतराय ने संजीदगी से जवाब दया –इरादे म आप पर सब जा हर

ु कर चुका हँू । और आप जानते ह क म ढलमु लयक न आदमी नह ं हँू । इस व

म आपक

खदमतम ये पूछने आया हँू क इस कारे खैर म आप मेर

मदद कर सकते ह या नह ं।

20

दाननाथ क उ मीदबरा रय के िलए ज र था क वो इस तहर क म शर कन ह वना लाला बदर ूसाद फौरन उससे बदगुमान हो जायगे

य क

उसके पास न वो खानदानी अजमत थी न वो जाह –ओ- नम वुल जस अमृतराय को फक था । इसिलये उसने सोचकर जवाब दया –अमृतरय, तुम जानते हो क तु हारे हर काम से मुझाको हमदद है , मगर बात ये है क अभी मेरा शर क होना मेरे िलए स त मु जर होगा। म

पये और पैसे से

मदद करने के िलये तैयार हँू मगर पोशीदा तौर पर। अभी इस तहर क म

एलािनया शर क होकर नुकसान उठाना मुनिसब नह ं समझता, खूबसूरत इस वजह से क मेर िशरकत से इस अंजम ु न को जरा भी तक वयत पहँू चने क उ मींद नह ं है ।

बाबू अमृतराय ने उनक सलाह पस द क और उनसे इमदाद का बादा लेकर अपनी कामया बय

पर खुश होते हऐ िमःटर आर.बी.शमा के ु

दौलतखाने पर पहँु चे। सा हबे मौसूफ बरहमन थे और

के एकबार से शहर के मुअ तजीन म समझे इखलाक

तबए आलाओ अजमत

जाते थे। उनके मजहबी और

यालात से अभी तक अमृतराय को जरा भी वाक फयत न थी

मगर जब उ ह ने इस अंजम ु न क तजवीज पेश क तो पं डतजी उछल पड़े और फरमाया –िमःटर अमृतराय

मुझे तुमहारे खयालात से िनहायत मसरत

हई। म खुद इसी तरह क एक तजवीज बहत ु ु ज द पेश करने था। आपने

मुझे फुसत दे द और मुझे कािमल उ मीद है क आप इस कारे अंजीम को

मेर िनःबत म बेहतर तर के पर अंजाम दगे। मुझे इस अंजन ु का मे बर तस बुर क जय।

बाबू अमृतराय को पं डतजी के यहॉ ऐसी बारोनक कामयाबी क

उ मीद न थी। उ ह ने सोचा था क पं डत जी अगर उसूलन इ तलाफ न करगे तो द मुलफुसती बगैरह का ज र उ ज करगे

मगर पं डतजी क गम

हमदद व दलचःपी ने उनका हौसला और भी बढाया। अमृतराय यहॉ से िनकले तो वह अपनी ह नजर म दो इं च ऊँचे मालूम होते थे। यहॉ से सीधे कामयाबी के जोम म ऐंडते हए ु एन.बी. अगरवाला साहब क

खदमत म

हा जर हए। िमःटर अगरवाला अलावा अ छ ु

अँमेजी इःतेबाद रखने के

इ जत थी। उ ह ने भी

से स ची दलसोजी जा हर

जबाने संःकृ त के भी जैयद आलाम थे और खास –ओ-आम म उनक बड़ अमृमराय का नवावा

क । अजगरज नौ बजते बजते अमृतराय सारे शहर के सरबर आवुदा व नयी 21

रोशनीबाले असहाब से मुलाकात कर आये और कोई ऐसा न था

जसने

उनके अगराज से दलचःपी न जतायी हो या मदद दे ने का वादा न कया हो। तीन बजे के व

िमःटर अमृतराय के बँगले पर एक ऐसे जलसे के

इनएकाद क तैया रयॉ होने लगी जो अजुमंन को बाकायदा तौर पर मु ज बत करे ।उसके इ सराम केिलए दःतूर –उल-अलम तैयार करे औरउसके अगराज ओ मकािसद पबिलक के



पेश करे ।कामयाबी केजोश म खूब तैया रयॉ

हई ु फश –फु श लगाये गये, झाड़ –फानूस, मेज व कुिसयॉ सजाकर धर गयीं। हा जर न के खुद -ओ –नोश का भी इं तजाम

कया गया और इन

तरदददात से फुसत पाकर अमृतराय उनके मुंत जर हो बैठे । दो बज गये ु

मगर कोई सा हब के पास तसर फ न लाये। चार बजे मगर कसी क सवार

नह ं आयी हॉ इं जीिनयर साहब के पास एक नौकर यह संदेसा लेकर आया – इस ब लगा।

म हा जर से कािसर हँू । अब तो अममृतराय का इ तशार बढ़ने

यूँ – यूँ दे र होती थी उनका दल बैठा जाता था क कह ं कोई साहब

न आये तो मेर स त तजह क होगी और चार तरफ

ना दम होना पड़े गा ।

आ खर इं तजाम करते करते पॉच बज गये और अभी तक कोई साहब नजर नह ं आये । तब तो अमृतराय कोयह

कािमल यक नहो गया क हजरात ने

मुझे धोका दया । मुंशी गुलजार लाल से उनको बड़ उ मीद थी । चुनांचे अपना

आदमी उनके पास दौड़ाया । एक ल हे के बाद

नह ं ह पोलो खेलने सतशर फ ले गये। इससव

मालूम हआ क वह ु

तक छै बजे और जब

इसव कत तक भी कोई साहब नआयेतो अमृतराय िनहायत दलिशकःता हो गये । कुछ गुःसा ,कुछ नाकामी कुछ अपनी तौह न और कुछहमदद

क सदमेह ने उनको ऐसा पार शान कया क सरे –शाम चारपाई

पर लैट

रहे और लगे सोचने –कह ं मुझको ना दम तो न होना पड़े गा । अफसोस मुझे इन हजरात सेऐसी उ मीद न थी । अगर नआना था मुझसे साफ साफ कह स दया होता। अब कल तमाम शहर म ये बात समशहर ू हो जायेगी अमृतराय तमाम रईस

केघर दौड़ते



फरे मगर कोई उनके दरवाजे पर

बातपूछने को भी न गया । म जलसे क

तजवीज न करता,मु त क

नदामता तो न उठानी पड़ती । सबेचारे इ ह तफ कुरात म गोते खाते थै । अभी नौजवान आदमी थे और गो बात के धनी और धुन के पूरे थे मगर अभी तक प लक क सदमह और मुआ वनीन क नाहमदद का तजुवा न 22

हआ था और यह तजुव कार जो खुदा जाने कतने पूरजोश दल को सद ू

कर दे ती है उनके इराद को भी डे गमगाने लगी । मगर ये बुज दली के खयालात महज एक दम के िलए आ गये थे । जब जरा आज क नाकामी

का अफसोस कम हआ तो इराद ने और भी मुःत कल सूरत पकड़ । अपने ु

दल को समझाया –अमृतराय , तू इन जरा –जरा सी बात से मायूस या

दलिशकःता मत हो । जब तूने सलीब उठायी तो नह ं मालूम तुझको – या कुबािनया करनी पडे गीं । अगर तेर

या

ह मत यह रह तो कोमी काम

तुझसे हो चुके । दल को मजबूत कर और कमरे – ह मतको चुःत बॉध।

यह मुस मम इरादा करके अमृतराय अपने कमरे से िनकले , िसगार िलया और बाग क र वश म टहलने लगे । चॉदनी ठटक हई ु थी. हवाके धीरे धीरे झ के आ रहे थे, स जे क मलमली फश पर बैठ गये और अपने इरादो के पूरा होने क तरक ब सोचने लगे । मगर व

ऐसा सुहाना था और

मंजरू ऐसा तअँशुकखेज क बेअ तयार खयाल ूेमाक तरफ जा पहँु चा।

अपनी जेब ससे तसवीर के पूज िनकाल िलये और चॉदनी रात म उसे बड़

दे र तक गौर से दे खते रहे । हाय-हाय ओ नाकाम अमृतराय, तू य कर ज त करे गा। हॉ जसके फराक म तूले से चार बरस रो रोकर काट ह, उसी के फराक म सार

ज दगी

का हाल सुनेगी तो

य कर काटे गा। हाय –हाय वह गर बजबतेरे इराद

या कहे गी। उसको तुझसे मुह बत है । कं ब त वहतुझ ्

परजान दे ती है , दे खता नह ं क उसके उसके खुतूत जोश मुह बत से कैसे भरे होते ह । तब

या वह तुझे बेवफा जािलम म का न बनायेगी । तू

चाहता है क अमृतराय सब से भी भला बने अभी कुछ नह ं बगड़ा । इन

सब फजूल खयालात को छोड़ो ,अपने अरमान को खाक म न िमलाओ।

दिनया म तु हारे जैसे ु

बहत ु से पुरजोश नौजवान मौजूद ह और तु हाराहोना

नहोना दोन बराबर है । लाला बदर ूसाद मुँह खोले बैठे ह शाद करलो यार ूेमा के साथ ज दगी के मजे लूटो ।(बेकरारहोकर)म भी कैसा नादान हँू । इस तसवीर ने या बगडा था जो खामखाह इसको फाड़ ड़ाला। ई र करे

अभी ूेम यह बात न जानती हो । घबराकर पूछा – कसका खतसहै ? नौकर ने जवाब दया- लाला बदर ूसाद का आदमी लाया है । अमृतराय ने कॉपते हऐ ु

हाथ से खत िलया तो यह तहर र थी –

बमुला हजाए जनाब मुंशी अमृतराय साहब, जाद नवा जशोहू23

हमको मोतबार जरायेसेखबर

िमली है क अब आप सनातन धम से

मुनह रफ होकर उस ईसाई जमात म दा खल हो गये ह जसको गलती से इसलाहे तमददन ु ु से मंससूब करते ह । हमको हमेशा से यक न है क हमारा तज मुआशरत बेद मुकददस के अहकाम पर मबनी है और उसम रददोबदल

तगैयुर ओ तबददल ु करने वाले अहसाब हमसे कोई ता लुक पैदा नह ं कर सकते ।

बदर ूसाद इस मु तसर शु के को अमृतराय ने दो बार पढ़ा और उनके दले अब एक जंग शु

हो गयी । न सािनयत कहती थी क ऐसी नाजनीन को हाथ

से न जाने दो अभी कुछ नह ं बगड़ा है । और जोशे कौमी कहता था क जो इरादा कया है उस पर कायम रहो। जंदगी चंदरोज है । उसक दसर पर ू कर दे ने से बेहतर कोई तर का उसका गुजारने का नह ं है । कभी एक फर क

गािलबआता था कभी दसरा फर क। लड़ाई का फैसला भी दो हु फ िलखने ू

पर था । आ खर बहत ु रददो कद के बाद अमृतराय ने बा स से कागज िनकाला और उस पर जवाब य िलखा

था। कबला

हु बे कोमी ने स पर गलबा पािलया

ओ काबा , जनाब मुंशी बदर ूसाद साहब , दाम इगबालहू

इ तखारनामे ने सा दर होकर मु ताज कया । मुझको स त अफसोस है क आपने उस उ मीद को जो मुददत से बँधी हई ु थी यकायक मु कता कर

दया । मगर चूँ क मुझको यक नद है

क हमारा तज मुआशरत

अहकामे बेद से मुतना कस है और जसक गलती से सनातन धम कहते ह वो पुराने और बोसीदा खयाल के लोग क जमात है जो मजहब के पद मे जाती फलाह ढँू ढ़ते ह । इसिलय

हमको मजबूरन उससे कनाराकाश होना

पड़ा । अगर इस है िसयत म आप मु को फज द म कुबूल फरमाया तो खैर बना मुझे अपनी बद कःमती पर अफसोस भी न हो।

िनयाजम द अमृतराय कौमी ज बात के जोश म ये खत िलख डाला और मुला जम को दे कर रवाना कया। मगर लब चॉदनी म दे र तक बैठे और उसक 24

किशश ने दल

म ज बए मुह बत बढाया तो उस नुकसाने अजीम का अ दाजा हआ जो ु

उ ह ने अभी अभी उठाया था । हाय, मैने अपनी ज दगी,अपने सारे अरमान और दिनयाक सबसे यार चीज को खैरबाद कह दया। ू

25

चौथा बाब

जवानामग

व ने

हवा क तरह उड़ता चला जाता है । एक मह ना गुजर गया। जाड़े

खसती सलाम कया और गम का पेशखीमा होली सआ मौजूद हई ु ।

इस असना म अमृतराय नेदो-तीन जलसे कये औरगो हाजर न क तादाद कसी बार दो –तीन से क

यादा न थी मगर अब उ ह ने अहद कर िलया था

वाह कोई आये या न आये म ह तेवार जलसे व े मुअययना पर ज र

कया क ँ गा।

जलस के अलावा उ ह ने दे हात मजा-बा-जा सलीस ह द म तक़र र करना शु

क और अख़बार म भी इसलाहे -तम न ु पर मज़ामीन रवाना

कय। उनका तो यह मशगला था, बेचार ूेमा का हाल िनहायत अबतर था।

जस दन से उनक आ ख़र िच ठ उसके पास पहँु ची थी उसी दन से वह

कै दए

बःतर हो रह

िसरहाने बैठ

थी। हर-हर घड़

रोने से काम था। बेचार

पूणा

समझाया करती मगर ूेमा को मुतलक चैन न आता। व

अमृतराय क तःवीर को घंट ख़ामोश दे खा करती। कभी-कभी उसके जी म आता क अमृतराय ने जो गत मेर तसवीर क वह गत म उनक तसवीर क क ँ । मगर फर यह

याल

पलटा खा जाता। वह तसवीर को ऑ ंख से

लगा लेती, उसका बोसा लेती और उसे सीने से िचमटा लेती। उसके दमाग म अब कुछ ख़लल आ गया था। रात को घंट पड़ अकेली इँक़-ओ-मुह बत क बात कया करती। जतेन खूतूत अमृतराय ने पहले रवाना कये थे वह उसने अज़ सरे नौ रं गीन कागज पर जली हाफ मे न

कर िलये थे और

तबीयत बहत ु बेचैन होती तो पूणा से वह खुतूत पढ़वाकर सुनती और रोती।

हाय, उसने अपने दल पर ये जु म कये मग़र खु ार भी ऐसी िनबाह



जो का हःसा था। उसने इस आ ख़र ख़त के बाद अमृतराय को एक ख़त भी न िलखा। घर के लोग उसके इलाज म

पया ठ क रय क तरह उड़ा रहे

थे मगर कुछ फ़ायदा न होता था। उसक शाद क बातचीत भी कई जगह से हो रह थी। मुंशी बदर ूसाद साहब के जी म बार-बार ये बात आती क ूमा को अमृतराय के

याह द मगर शुमातते हमसाया के ख़याल से इरादा

पलट दे ते थे। ूेमा के साथ-साथ बेचार पूणा भी मर ज बनी हई ु थी।

26

आ ख़र होली का दन आया। शहर म चार तरफ़ कबीर और होली क आवज़ आने लगीं। चौतरफ़ा अबीर ओर गुलाल उड़ने लगे। आज का दन बेचार

ूेमा

के िलए

स त

आज़माइश

का था।

कराबतम द के यहॉ से ज़नानी सवा रसयॉ आना शु ओ करहन पुरतक लुफ कपड़े पहन कर मेहमान क

य क

सबेरेह

से

हई ु और उसके तूअन ज़याफ़त करना और

उनके साथ होली खेलनी पड़ । मगर हाय, उसके चेहरे से आज वो हसरत बरस रह थी जो इससे पहले कभी नज़र न आयी थी। रह-रहकर उसके

कलेजे म कसक पैदा होती, रह-रहकर फ़त इ तराब से दल म दद उठाता मगर बेचार

बला ज़बान से उफ़ कये सब कुछ सह रह थी। रोज़ अकेले म

रोया करती थीं। जससे कुछ तसक न हो जाया करती थी। आज मारे शम को रोवे

य कर। सबसे बड़

द कत ये थी क रोज़ ब रोज़ पूणा बैठकर

तश फ़ आमेज़ बात कर के उसका दल बहलाया करती। आज वो भी अपनी घर

योहार मना रह थी। पूणा का मकान पड़ोस म वाक़े था। उसके

शौहर बस तकुमार एक

िनहायत हलीम-उल-िमज़ाज मगर शौक़ न व मुह बत पज़ीर तबीयत के नौजवान थे। हर बात म उसी क बात पर अमल करते। उसको थोड़ा-सा पढ़ाया भी था। अभी शाद हए ु दो बरस भी न बीतने पाये थे और

यूँ- यूँ

दन गुज़रते थे दोन क मुह बत और ताज़ा होती जाती थी। पूणा भी अपनी

शौहर क आिशक़े ज़ार थी। अपनी भोली-भोली बात और अपनी दल बायाना अदाओं से उनका ग़म ग़लत कया करती। जब कभी वह दौरे पर चले जाते तो वो रात भर ज़मीन पर पड़ करवट बदलती और रोती। पं डतजी तीस पये से

यादा मुश हरे दार न थे मगर पूणा इस पर क़ाने थी और अपने को

िनहायत खुश कःमत और ख़याल करती थी। पं डतजी तहसीले ज़रा के िलए बेइ तहा कोिशश करते, िसफ इसिलए क पूणा को अ छा से अ छे कपड़े पहनाय और अ छे -अ छे गहन से आराःता कर। पूणा हर स न थी। जब पं डतजी उसको कोई तोहफ़ा दे ते तो जाम फूली न समाती मगर कभी उसने वा हश को पं डतजी से ज़ा हर नह ं कया था। हक़ तो ये है

क स ची मुह बत के मुका बले म पहनने-ओढ़ने का

शौक कुछ य ह सा रह गया था। होली का दन सा आ गया। आज के दन का

या पूछना। जसने साल भर चीथड़ ह पर बसर कया हो वो आज़-

कज़ दाम ढँू ढ़कर लाता है और खुिशयॉ मानाता है । आज लोग लँगोट म 27

फाग खेलते है । आज के दन रं ज करना गुनाह है । पं डत बस तकुमार क शाद के बाद यह दसर होली थी। पहली होली म बेचारे ितहरदःती क ू

वज़हसे बीवी क कुछ खाितर न कर सके थे। मगर इस होली के िलए उ ह ने अपनी है िसयत के मुआ फक बड़ -बड़ तैया रयाँ क है । सौ-डे ढ़ सौ पये जो तन वाह के अलावा पसीना बहा-बहाकर वसूल अपनी

यार

कये थे उनसे

पूणा के िलए एक खूबसूरत कंगन बनवाया था। िनहायत

नफ़ स और खुशरं ग सा ड़याँ मोल लाये थे। इसके अलावा च द दोःत क

दावत भी क थी और उनके वाःते कई कःम के मुर बे, अचार, लौ ज़यात

वग़ैरह मुहैया कये थे। पूणा आज मारे खुशी के जामे म फूली न समाती थी। उसक नज़र म आज अपने से

यादा खूबसूरत दिनया म कोई औरत ु

नह ं थी। वो बार-बार शौहर क तरफ

यार भर िनगाह से दे खती और

पं डतजी भी उसके िसंगार और फबन पर आज ऐसे शैदा हो रहे थे क बारबार घर म आते और उसको गले से लगाते। कोई दस बजे ह गे

क पं डतजी घर म आये पूणा को बुलाकर

मुःकराते हए ं मे बठा लूँ। ु बोले- यार , आज तो जी चाहता है तुमको ऑख

पूणा ने आ हःता से एक ठोका दे कर और यार क िनगाह से दे खकर

कहा—वह दे खो म तो पहले से ह बैठ हँू ।

इस अदा पर पं डतजी अज़खुरफ़ता हो गये, झट बीवी को गले से

लगाकर यार कया। ज़रा और दे र हई ु तो पूणा ने कहा-अब दस बजा चाहते

ह, जरा बैठ जाओ तो तुमको उबटन मल दँ ।ू दे र हो जायगी तो खाने म दे र-

सबेर होने से सरदद हा जायगा।

पं डतजी ने कहा—नह ं-नह ं रहने दो म उबटन न लगाऊँगा। लाओ

धोती दो, नहा आऊँ। पूणा—वाह, उबटन न मलवायगे आज क र त ह यह है । आकर बैठ जाओ। पं डतजी—नह ं, तुमको ख़ामका तकलीफ़ होगी और इस व

गम है ,

जी नह ं चाहता। पूणा न लपकर शौहर का हाथ पकड़ िलया और चारपाई पर बैठकर उबटन मलने लगी। पं डत—मगर भई, जरा ज द करना। आज म गंगाजी नहाने जाया चाहता हँू । 28

पूणा—अब दोपहर को गंगाजी कहॉ जाओं। महर पानी लायेगी, यह ं पर नहा लो। पं डत—नह ं यार अज गंगा म बड़ा लु फ़ आयेगा। पूणा—अ छा तो जरा ज द लौट आना, यह नह ं क इधर-उधर तैरने लगो। नहाते व

तुम बहत ु दरू तक तैर जाया करते हो।

थोड़ दे र म पं डतजी उबटन मलवा चुके और एक रे शमी धोती, साबुन तौिलया और कमंडल मे लेकर नहाने चले। वह बउमूम घाट से ज़रा अलग

नहाया करते थे। पहँु चते ह नहाने लगे मगर आज ऐसी धीमी-धीमी हवा चल रह थी, पानी ऐस साफ़ और श फाफ था, उसम हलकोरे ऐसे भले

मालूम होते थे और दल ऐसी उमंग पर था क बेअ तयार जी तैरने पर ललचाया। वह बहत ु अ छे तैराक थे, लगे तैरने। और खुशफ़ेिलयॉ करने।

दफ़अतन उनको बीच धारे म दो सुख चीज़ बहती नज़र आई। गौर से दे खा

तो कँवल के फूल थे। दरू से ऐसे खुशनुमा मालुम होता थे क बस तकुमार का जी उन पर लहराया। सोचा, अगर ये िमल जाये तो

यार पूणा के

कान के िलए झुमका बनाऊँ। लह म व शह म आदमी थे, हजार बार घंट मुतवाितर तैयार चुके थे। उनको किमल था क फूल ला सकता हँू । दरू से फूल सा कत मालूम होते थे, चुनांचे उनक तरफ़

ख कया मगर

यूँ- यूँ

वो तैरते थे फूल बहते जाते थे। बीच म कोई रे त ऐसा न था जस पर बैठकर दम लेते। फत जोश म उनको ये पहँु चते शलल हो गये तो लूँगा

याल गुजरा अगर आज़ा फूल तक

योकर। पूरे जोर से तैरना शु

कया। कभी

हाथ से कभी पैर से ज़ोर मारते-मारते बड़ मुश कल से धार तक पहँु चे मगर उस व

तक हाथ-पांव दोन थक गये थे, ह ा क फूल के लेने के

िलए जो हाथ लपकाना चाहा तो वो काबू म न थे। जब तक हाथ फैलाये क फूल एक-दो क़दम और बहे

फर उनके पीछे चले। आ खर उस व

फूल

हाथ लगे जब क हाथ म तैरने क ताकत मुतलक न बाक रह थी। हाय फूल दॉत से दबाये सोते से उ ह ने कनारे क तरफ दे खा तो एसा मालूम हआ गयो हज़ारो कोश क मं जल है । उनका हौसला परःत हो गया। हाथ ु

मे ज़रा भी ताकत न थी। मालूम होता था क वह जःम म है ह नह ं।

हाय, उस व

बस तकुमार के चेहरे पर जो हसरत व बेबसी छायी हई ु थी

उसको ख़याल करने ह से छाती फटती है । उनको मालूम हआ क म डबा ू ु जा रहा हँू । उस व

यार का ख़याल आया क वो मेरा इ तज़ार कर रह 29

होगी। उसक

यार - यार

मोहनी सूरत नज़र

के सामने खड़

हो गयी।

उ ह ने चाहा क िच लाऊँ मगर बावजूद कोिशश के ज़बान से आवाज़ न िनकली। ऑ ंख से ऑ ंसू जार हो गये और अफ़सोस एक िमनट म गंगामाता ने उनको हमेशा के िलए गोद मे ले िलया। उधर का हाल सुिनए। पं डत जी चले आने के बाद पूणा ने बड़े तक लुफ से थाल परसी। एक बतन म गुलाल घोली, उसम दो-चार क़तरे खुशबूयात के टपकाये। पं डत जी के िलए स दक ू से नये कुत िनकाले, टोपी बड़ खूबी से चुनी। आज पेशानी पर ज़ाफ़रान और च दन मलना मुबारक

समझा जाता है , चुनांचे उसेन अपने नाजुक-नाजुक हाथ से च दन रगड़ा, पान लगाये, मेवे सरौते से कतर-कतर तशतर म रखे। रात ह का ूेमा के घर से खुशबूदार किलयॉ लेती आयी थी, उनको तर कपड़े से ढॉकर रख दया था, इस व तैयार

खूब

खल गयी थीं। उनक तागे म गूथ ँ कर ख़ूबसूरत हार

कया। अपने शौहर का इ तजार करने लगी। उसके अंदाज के

मुता बक़ उस व

तक पं डत जी को नहाकर आ जा ना चा हए था। मगर

नह ं, अभी कुछ दे र नह ं हई ु , आते होगे, एक दस िमनट और राःता दे ख लूँ। अब इ तशार हआ। ु

या करने लगे। धूप स त हो रह है । लौटते व

नहाया-बेनहाया एक हो जायगा।

या जने यार दोःत से बात करने लग

गये ह । नह ं-नह ं, म उनको खूब जानती हँू , द रया नहाने जाते है तो तैरने

क सूझती है । आज भी तैर रहे ह गे। ये सोचकर उसने कािमल आधा घंटे तक शौहर का और इ तज़ार कया मगर जब से अब भी न आये तो उसको ज़रा बेचैनी मालूम होने लगी। महर ने कहा— ब ल , जरा दौड़ तो, जाओ, दे खो

या करने लगे।

महर बड़ नेकबखत बीवी थी। हर मह ने म

बला मॉगे तन वाह

पाती थी और शायद ह कोई ऐसा दन जाता था क पूणा उसके साथ कुछ सलूक न करती हो। पस वो उन दोन को बहत ु अज़ीज रखती थी, फ़ौरन लपक हई ु गंगाजी क तरफ़ चली। वहॉ जाकर

या दे खती है क कनारे पर

दो-तीन म लाह जमा है । पं डतजी, क धोती-तौिलया वग़ैरह कनारे धर है ।

ये दे खते ह उसके पैर मन-मन भर के हो गये। दल धड़-धड़ करने लगा। या नारायण, यह

या ग़जब हो गया। बदहवासी के आलम म नज़द क पहँु ची

तो एक म लाह ने कहा-काहे ब लो तु हारा पं डत नहाये आवा रहे न? 30

ब लो ने कुछ जवाब न दया। उसक ऑ ंख से ऑ ंसू बहने लगे। सर पीटने लगी। म लाह ने उसको समझाया क अब रोये

पटे का होत है ।

उनका चीज बःत लेव और घर का जावा। बेचारे बड़े भल मनई रहे न। बेचार चली।

ब लो ने पं डतजी क चीज़ली’ और रोती-पीटती घर क तरफ़

यूँ- यूँ वो मकान के कर ब आती थी

यूँ- यूँ उसके कदम पीछे को

हटे जाते थे। हाय नारायण, पूणा को कैसे ये ख़बर सुनाऊँ उसक होगी। बच रया सब तैयार

या गत

कये शौहर का इ तज़ार कर रह है , ये खबर

सुनकर बेचार क छाती फट जायगी।

इ ह ं ख़यालात म ग़क ब ल रोती घर म दा ख़ल हई। तमाम चीज’ ु

ज़मीन पर पटका द ’ और छाती पर दहु ड़ मार हाय-हाय करने लगी। ग़र ब पूणा आज ऐसी ख़ुश थी क उसका दल आज उमंग और अरमान से ऐसा

भरा हआ था क यकाय इस सदमए जॉकह क ख़बर ने पहँु चकर उसको ु

महमूब कर दया। वह न रायी न िच लायी न बेहोश होकर िगर , जहॉ खड़ थी वह

दो-तीन िमनट तक बे हस-ओ-हरकत खड़

रह । यकायक उसके

हवास हए ु और उसको अपनी हालत का अ दाज़ करने क क़ाबिलयत हई ु और तब उसने एक चीख़ मार और पछाड़ा खाकर िगरने ह को थी क

ब लो ने उसको चारपाई पर िलटाकर पंखा झलने लगी। दस-पंिह िमनट म पस-पड़ोस क सदहा औरत अ दर जमा हो गयीं। बाहर भी बहत ु से मद

इक ठा हो गये। तजवीज़ हई कजाल डलवाया जावे। बाबू कमलाूसाद भी ु

तशर फ़ लोये थे। फ़ौरन पुिलस को इ ला करके मदद मँगवयी। ूेमा का यूँ ह इस हादसए

ह-फ़सा क ख़बर िमली पैर तले से िम ट िनकल

गयी। फ़ौरन चादर ओढ़ ली और बदहवास ज़ीने से उतर और िगरती-पड़ती पूणा के मकान क तरफ़ चली। हर चंद मॉ ने रोका मगर उसने न माना। जस व

ूेमा पहँु ची है पूणा के हवास बजा हा गये थे और वो िनहायत

दल हला दे नावाली आवाज़ म रो रह थी। घर म सैकड़ औरत जमा थी’ मगर कोई ऐसी न थी जसक ऑ ंख से ऑ ंसू न बह रहे ह । हाय, गर ब पूणा क हालत वाकई का बले तरस थी। अभी एक घंटे पहले वो अपने को दिनया क ु

सबसे खुश कःमत औरत

म समझती थी मगर हाय, अब

उसका-सा बदनसीब कोई न होगा। बेचार समझाने से ज़रा ख़ामोश हो जाती मगर

यूँ ह कोई बात याद आ जाती

यूँह

फर दल फर उमर आता और

ऑसू क झड़ लग जाती। हाय, या एक-दो बात करने क थी। उसने दो 31

बरस तक अपने

यारे शैहर क मुह बत का मज़ा लूटा था। उसक एक-एक

बात उसको याद आती जाती थी। आज उसने चलते-चलाते कहा था— यार पूणा, जी चाहती है तुझको ऑख ं म बठा लूँ। अफ़सोस अबा कौन

यार

करे गा। उस रे ँमी धोती और तौिलया क तरफ़ उसक िनगाह गयी तो बड़ जोर से चीख़ उठ । यकायक ूेमा को दे खता तो झपटकर उठ और उसके िमलकर ऐसे दलख़राश लहे जे म रोयी क अ दर तो बाहर मुंशी बदर ूसाद साहब,

बाबू

कमलाूसाद

और

द गर

हज़रात

ऑ ंख

से

माल

दये

बेअ तयार रो रहे थे। ूेमा बेचार का मह नो रोते-रोते गलाबैठ गया था। हॉ, उसक ऑ ंखो से ऑ ंसू बह रहे थे। पहले वो समझती थी क म ह सारे

जमाने मे बद कःमत हँू मगर उस व

वो अपना दख ु भूल गयी और बड़

मु ँकल से ज त करके बोली— यार पूणा, ये

या ग़जब होगया।

बेचार पूणा क हालत वासकई ददनाक थी। उसक

जंदगी का बेड़ा पार

लगानेवाला कोई न था। उसके मैके म बजुज़ एक बूढ़े बाप के औरकोई न था और वो बेचारा भी आज-कल का मेहमान हो रहा था। ससुराल म िसफ शौहर से नाता था, न सास न ससुर, न खेश न अका रब, कोई चु लू भर पानी दे नेवाला न था। असासा भी घर म कुछ न था क जंदगी भर कोकाफ होता। बेचारा शौहर अभी कुलदो बरस से नौकर कर रहा था और आमदनी से खच कसीतरह कम न था।

पया कहॉ सेजमा होता। पूणा को अभी तक

ये सब बात नह ं सूझी थीं। अभी उसको सोचने का मौका ह न िमला था। हॉ, बाहर मदाने म लोग म इस उॆ पर बातचीत कर रहे थे। दो-ढाई घंटे तक तो उस मकान म औरत का खूब हजू ु म था। रोना-

पीटना मचा था मगर शाम होते-होते सब औरत अपने-अपने घरगयी। बेचार

ूेमा को गश पर गश आने लगे थे इसिलए लोग वहॉ सेपालक पर उठाकर ले गये और दया म ब ी पड़ते-पड़ते उसमकान म बजुज ब ल और पूणा केकोई व

न था। हाय, यह व

दरवाजे पर खड़

उनक

था क बसंतकुमार द तर से आते। पूणा उस राह दे खा करती थी और उनको दे खते ह

लपककर उनके हाथ से छतर ले लेती थी।रोज़ उनके िलए जले बयॉ लाकर घर दे ती थी। जब तक वो िमठाइयाँ खाते थे वो झटपट पान के बीडे लगाकर दे ती थी। वो आिशक जार दन भर का थका-मॉदा बीवी क इन खाितर से अपनी तमाम तकलीफ को भूलजाता। कहॉ वह मसरत अफजा खदमते और कहॉ आज ये स नाटा। तमाम घर भायँ-भायँ कर रहा था। द वारे काटने को 32

दौड़ती थी। मालूम होता था क दरो द वार पर हसरत छायी है । बेचार पूणा ऑ ंगन म खामोश बैठ थी। उसके कलेजे म अब रोने क कूवत नह ं। हॉ, ऑ ंखो से ऑ ंसू के तार जार है । उसको मालूम होता है ककोई दल सेखन ू चूस रहाहै । उसके महसूसात कोबयान करने ह हमार जबान म कूवत नह ं। हाय, इसव

पूणा पहचानी नह ंजाती। उसका चेहरा जदहोगया है । ह ठो पर

पपड़ छायी है । ऑखे सूज आयी है । सर के बाल खुलकर पेशानी पर आ िगरे है । रे शमी साड फटकर तार-तार हो गयी है । जःम पर जेवर एक भीनह ं है ।

चू डयॉ टू टकर चकनाचूर हो गयी है । वो हसरत,

हमानसीबी, मातम क

मुजःसम तसवीर होरह है । उसक ये हालत और भी नाकर बले बदाँत हो रह है

या क कोई उसको तसक न दे नेवाला नह ं है । ये सब कुछ होगया है

मगर पूणा अभी तक कु ली तौर पर मायूस नह ं हई ु है । उसके कान दरवाजे क तरफ लगे है क कह कोई उनके सह व सलामत िनकलने क खबर न

ू जाने पर लाता हो। अलमजदा दलो का यह हाल होता है । उनक आस टट

भी बँधी रहती है । शाम होते-होते इस पुरहसरत वाकये क खबर सारे शहर म गूज ँ उठ । तो सुनता था अफसोस करता था। बाबू अमृतराय कचहर से आ रहे थे कराःते म उनको ये खबर िमली। वो बसंत कुमार को बखूबी जानते थे। उ ह ं क िसफा रश से पं डतजी को द तर म वो जगह िमली थी। स त अफसोस हआ। मकान परआते ह कपड़े बाइिस कल पर सवार होपूणा के ु

मकान क तरफ पहचे है । दरोु जाकर दे खा तो चौतरफ स नाटा छाया हआ ु द वार से स नाटा बरस रहा है । पूणा ऐसी ह आवाज के सुनने क आद हो रह है ।रोज इसी व थी। चुनांचे इसव से दरवाजे क

वो उनके जूते क आवाज कान लगाकर सुना करती

यूह उसने जूते क आवाज सुनी वो है रत-अंमेज तेजी

तरफ दौड़ । नह ं मालूम उसको

उ मीद परदौड़ । मगर

या

याल हआ। ु

यूह दरवाजे परआयी और बजाये अपने

के बाबू अ तराय कोदे खा

यारे शौहर

यूह हवास बजा हो रहे । शम से सर झुकािलया

और रोती हई ऐसी मुसीबत के व ु उ टे कदम वापस हई। ु क सूरत िग रया ओ जार

कस

पर हमदद

के िलए गोया एक बहाना हो जाती है । बाबू

अमृतराय यहॉ बहत ु कम आया करते थे। इस व दल पर एक ताजा सदमा पहचाया। ु

उनके आने से पूणा के

दल फेर उमँड़ आया और बावजूद

हजार ज त के ऑ ंखो से ऑ ंसू बहने लगे और ऐसा फूट फूटकर रोयी कबाबू 33

अमृतराय जो फतरतन िनहायत रक क उल क ब आदमी थे अपने िग रया को ज त न कर सके। उस व

तक महर

बाहर आ गयी थी। उसने

अमृतराय को बैठने के िलए एक कुस द और सर नीचा करके रोने लगी। अमृतराय ने महर

को

दलासा

दया। उसको पूणा क

खबरगीर

ताक द क । दे हलीज मखड़े होकर पूणा को समझाया और उसको हर तरह मदद दे ने का वादा करके िचराग जलते-जलते अपने बँगले क तरफ रवाना हए। उसी व ु

ूेमा गश से बाज़या त पाकर महताबी पर हवा खाने िनकली

थी। उसक िनगाह पूणा के दरवाजे क तरफ लगी हई ु थी। उसके कसी को

उसकेघर से िनकलते दे खा। गौर सेदेखा तो पहचान गयी। हाय, यह तो अमृतराय है । करके िचराग जलते-जलते अपने बँगले क तरफ रवाना हए। ु उसी व

ूेमा गश से बाज़या त पाकर महताबी पर हवा खाने िनकली थी।

उसक िनगाह पूणा के दरवाजे क तरफ लगी हई ु थी। उसके

कसी को

उसकेघर से िनकलते दे खा। गौर सेदेखा तो पहचान गयी। हाय, यह तो अमृतराय है ।

34

पांचवाँ बाब

ऐं, ये गजरा

या हो गया?

पं डत बसंतकुमार का दिनयां से उठ जाना िसफ पूणा ह के िलए ु

जानलेवा न था। ूेमा क हालत उसक सी थी। पहले वह अपनी कसमत पर रोया करती थी, अब पूणा क हमददना बात व दमसाितयॉ आकर उसको

लाती थीं। पूणा कभी उसको गाकर सुनाती, कभी उसके सामने कोई दलचःप कताब पढ़ती, कभी उसको बाग़ क सैर कराती मगर जब से उस

बेचार पर बपत पड़ थी, ूेमा का गम गलत करने वाला कोई न था। अब

उसको िसवाय चारपाई परपड़े रहने के और काम न था, न वो कसीसे हँ सती बोलती थी न उसको खाने पीने से रगबत थी। शौके िसंगार उसको मुतलक न भाता था। सर के बाल दो दो ह ते न गूथ ँ े जाते, सुरमेदानी अलग पड़ रोया करती, कंघी अलग हाय-हाय करती। गहने बलकुल उतार फके थे।सुबह से शाम तक अपनेकमरे मपड़ खुदा मालूम

या- या कया करती। कभी

चारपाई पर लेटती, कभी जमीन पर करवट बदलती। कभी इधर उधर बौखलायी हई ु घूमती। अ सर बाबू अमृतराय क तसवीर को दे खा करती।

और जब उनके पुराने खुतूत याद आते तो रोती। उसे मालूम होता था क

अब मै चंद दन क और मेहमान हँू ।

पहले दो माह तक बेचार पूणा ॄा ण क

शौहर क

जयाफकत ओ तवाजो,

क रया व करम से सॉस लेने क मुतलक फुरसत निमली कयहॉ

आती। ूेमा दो तीन बार बावजूद मॉ क मुमिनयत के वहाँ गयी थी। मगर

वहॉ जाकर बजाय इसके कपूणा को तश फ दे वो खुद रोने लगती थी। इस वजह से अब उधर न जाती। हॉ, शाम के व

वो महताबी पर जाकर ज र

बैठती इसिलए नह ं क उसको समॉ सुहाना मालूम होता था या हवा खाने को जी चाहता था। नह , ब क िसफ इसिलए कवो कभी कभी अमृतराय को उधर से पूणा के घर जाते दे खती। हाय, जस व

वो उनको दे खती उसका

दन ब लय उछलने लगता। जी चाहता ककूद पर पडँू और उनके कदम

पर जान िनसार कर दँ ।ू जब तक वो नजर आते वो टकटक बॉधे उनको

ु जाते तब बेअ तयार उसक ऑ ंखो म दे खा करती। जब वो नजर से छप ऑ ंसू भरजाते और कलेजा मसोसने लगता। ऐसा मालूम होता क दल बैठा जा रहा है । इसी तरह कई मह ने बीत गये। 35

एक रोज वो हःबे-मामूल अपने कमरे म लेट हई ु करवट बदल रह

थी क पूणा अंदर आयी। हाय, उस व

ऐसा मालूम होता था क उसके

कसी मुहिलक आरजे से िशफा पायी है ।चेहरा तद था और उस पर गजब क पजमुदगी छायी हई ु थी।

खसारे

पचके हए ं ो ु थे और ऑख

जनम अब

चलत- फरत बाक न रह थी, अंदर घुसी हई ु थी। सर के बाल शान पर बेतरतीबी से इधर उधर बखरे हए ु थे। गहने जेवर का नाम न था। िसफ

एक नैनसुख क साड़ पहने हई ु थी। उसको दे खते ह ूेमा दौड़कर उसके गले से िचमट गयी और उसको लाकर अपनी चारपाइ पर बठाया।

कई िमनट तक दोन स खयॉ ,खमोश थीं। दोन के दलो म खयालात का द रया उमड़ा हआ था। मगर जबान म याराए गोयाई न था। आ खर ु पूणा ने कहां— यार ूेमा,

या आजकल तबीयत खराब है ? बलकुल घुलकर

कॉटा हो गयी हो। पूणा—(चँमे पुरआब होकर) मेर

खै रयत

या पूछती हो सखी,

खै रयत तो मेरे िलए सुपना हो गयी। तीन मह ने से

यादा हो गये मगर

अब तक मेर ऑख ं ो नह ं झपक । मालूम होता है नींद ऑ ंसू होकर बह गयी। ूेमा—सखी, ई र जानता है मेरा भी यह हाल है । अगर तुम वधवा हो तो कुँवार

याह

वधवा हँू । हमार तु हार एक ह गत है । हॉ सखी,

ू मैने ठान िलया है क अब इसी सोग म जंदगी कॉटगी। पूणा—कैसी बात करती हो सुख भोगना मेर घुलाये डालती हो।

यार , मै अभािगनी हँू , मेरा

या, जतना

कःमत म बदा था, भोग चुक । मगर तुम अपने को



यार , मै तुमसे सच कहती हँू , बाबू अमृतराय क हालत

भी तु हार ह सी है । वो मेरे यहॉ कईबार आये थे, िनहायत मुतफ कर मालूम होते है । मने एक रोज़ दे ख िलया था, वो तु हारे काढ़े हए ु माल िलये

हए ु थे।

ूेमा का चेहरा यकायक खल गया। फत मसरत से ऑ ंखे जगमगाने

लगी। उसने पूणा का हाथ अपने हाथ म ले िलया और उसक ऑ ंखो से ऑ ंखे िमलाकर बड़ संजीदगी से पूछा—मेर जान, सच बताओ कभी उनसे इधर क बात भीआती ह? पूणा—(मुसकराकर) आप अपनी शाद

य नह ं, कई बार बात चलीं। मैने उनसे कहा—

य नह ं करते। मगर उ ह ने इसका कुछ जवाब न दया। 36

हॉ, बुशरे से मालूम हआ कइस कःम क बात उनको नागवार गुजरती है । ु

इसी

याल से फर यह तज फरा छे ड़ते डरती हँू ।

ूेमा—तुम उनके सामने िनकलती हो?

पूणा— या क ँ , बला सामने आये काम तो नह ं चल सकता और सखी, अब उनसे

या पदा क ँ । उ ह ने मुझ पर जो जो एहसान

है उनसे म कभी उ रन नह ं हो सकती। पहले ह

कये

दन जब क मुझ परयह

बपत पड़ उसी रात को मेरे यहॉ चोर हो गयी। जो कुछ असबाब था,

जािलम ने मूस िलया। सच मानो उस व बडे फेर म पड थी क अब आता था।उसी

मेरे पास एक कौड़ भी न थी।

या क ँ । जधर नजर दौड़ाती, अँधेरा नजर

दन बाबू अमृतराय आये। ई र उनको जुग जुग सलामत

रखे, उ होन ब ली क तनखाह मुकरर कर द और मेरे साथ भी बहत ु कुछ

सुलूक कया। अगर उसी व मर गयी होती। सोचती हँू

आड़े न आते तो शायद अब तक बला दाना

क वो इतने बड़े आदमी होकर मुझ िभखा रनी

केदरवाजे पर आते है तो उनसे

या पदा क ँ । और दिनया ऐसी है ु



इतना भी नह ं दे ख सकती। वो जो पडोस मपंडाइन रहती है , कई बार मेरे मकान पर आयी और बोली क सर के बाल मूडा लो। वधवाओ को सर के बाल न रखने चा हए। मगर मने अब तक उनका कहना नह ं माना। इस पर सारे मुह ले म तरह तरह क बाते िनःबत क जाती है । कोई कुछ कहता है , कोई कुछ। जतने मुँह उतनी बात। ब लो आकर सब कहानी मुझसे कहती है । सब सुन लेती हँू और रो धो कर चुप हो रहती हँू । मेर कःमत म दख ु

भोगना, लोग क जली कट सुनना न िलखा होता तो ये आफत ह काहे को

आ पड़ती। मगर बाल ने

या कसूर कया है जो उनको मुड़ा लू ई र ने

सब कुछ तो हर ह िलया, अब ये कहकर पूणा ने शान

या इन बाल से भी हाथ धोऊँ। पर

बखरे हए ु लंबे-लंबे बाल

को बड़क

इ मीनान क िनगाह से दे खा। ूेमा ने उनको हाथ से स हालकर कहा—नह ं यार पूणा, तु ह हमार कसम बाल को मत मुड़ाना। पंडाइन को कहने दो। बाल मुड़ा लो। ई र जाने कैसे खूबसूरत बाल है औरगो तुमने कंघी नह ं क है । ताहम बहत ु खुबसूरत मालूम होते है । मुसीबत तो जो पड़ गयी उसे दल ह जानता है । बाल को मुड़ाने से

या फायदा। ये दे खो नीचे क तरफ जो

खम पड़ गया है कैसा खुशनुमा मालूम होता है । 37

ये कहकर ूेमा उठ , ब स मसे खुशबूदार तेल िनकाला और जबतक पूणा हॉय हॉय करे क उसने उसके सर क चादर खसकाकर तेल डाल दया औरउसका सर जानू पर रखकर आ हःता आ हःता मलने लगी। पूणा— बेचार इन नाजबरदा रय क मुतह मल न हो सक । उसक आख से आसू बहने लगे। बोली— यार ूेमा, ये

या गजब करती हो। अभी

बदनामी हो रह है ।जोबाल सँवारे िनकलूँगी नह ं मालूम सब तुमसे

या कम

या कहगे। अब

या दल क बात िछपाऊँ सखी, ई र जानता है मुझे ये बाल खुद

बोझ मालूम होते है । जब इस सूरत को दे खने वाला ह जहान से उठगया। तो ये बाल कस काम के। मगर म जो इनको रखकर पड़ोिसय के लहने सहती हँू तो िसफ इस

याल से

क सर के बाल मुड़ाकर मुझसे बाबू

अमृतराय के सामने न िनकला जायगा। हाय, सर मुड़ाकर म उनके सामने

कैसे जाऊगी और वो अपने

दल म

या समझेगे। ये कहकर पूणा

फर

चँमे पुरआब हो गयी और ूेमा ने आ हःता आ हःता उसके सर म तेल मला। उसके बाद कंघी क । बेचार

पूणा तो मु त से इन आराइशो व

बनावट को खैरबाद कह चुक थी। इन हमददना दमसा जय ने उसके दले ददमंद को मसोसनाशु

कया मगर ूेमा ने िनहायत मुह बत आमेज अंदाज

से उसके अंदाज से उसके बाल गूथे और तब आ हःता से एक आईना लाकर उसके सामने रख दया। हाय, पूणा ने तीन मह ने से आईना नह ं दे खा था। उसको मालूम होता था क मेर सूरत बलकुल उतर गयी होगी मगर आज जो दे खा तो िसवाय इसके क चेहरा जद हो गया था औरकोई तबद ली न मालूम हई। ब क सादगी, हसरत और मायूसी ने एक नई कै फयत पैदा कर ु द थी। ऑ ंखो मऑस ं ू भर कर बोली—ूेमा, ई र के िलए अब बस करो। मेर

कःमत म ये िसंगार बदा ह नह ं है । पड़ोसी दे खेगे तो उनक छाती फटे गी, नह ं मालूम

या लगाव।ये कहकर वो खामोश हो गयी। और वो यादगार

जनको भुलाने क वो कोिशश कर रह थी, ताजा हो आयीं। ूेमा उसक सूरत को टकटक बॉधकर दे ख रह थी। उसको पूणा कभी ऐसी हसीन न मालूम हई ु थी। उसने

यार से उसे गले लगा िलया औरबोली—पूणा,

हज है अगर तुम मेरे यहॉ उठ आओ। हम तुम दोन

या

वधवा साथ-साथ

रहगे। तु ह मेर कसम। इं कार मत कर । पूणा— यार , इससे बढ़कर मुझे

या खुशी हािसल हो सकती है क मै

तु हारे साथ साथ रहँू । मगर हाय, अब तो मुझको फूँक फूँककर पैरधरना 38

पड़ता है । नह ं मालूम जमाना

या कहे गा? अलावा इसके इस मामले म बाबू

अमृतराय क सलाह क भी ज रत है , बला उनक मज के कैसे आ सकती हँू । जमाना कैसा अंधा है । ऐसे रहम दल और गर बपरवर श स को लोग

कहते है क ईसाई हो गया है । कहनेवाल के मुँह से न मालूम कैसे ऐसी झूठ बात िनकलती है । मुझसेवो कहते थे क म बहत ु ज द एक ऐसा ःथान

बनवानेवाला हँू जसम लावा रस वधवाएँ आकर रहगी। वहॉ उनके आराम व

आसाइश का

याल रखा जायगा, और उनको पढ़ना िलखना और पूजा पाठ

करना िसखाया जायगा।

जस आदमी केखयालात ऐसे पाक हो उसको वो

लोग ईसाई और बेद न बताते है जो भूलकर िभखमंगे के सामने एक कोड़ भी नह ं फेकते। कैसा अंधेर है । ूेमा ने बड़

आवाजे ददनाक म जवाब

दया— या बतलाऊँ सखी,

अपनी कःमत पर इतनी मु त तक अफसोस कया क अब अफसोस भी नह ं कया जाता। हाय, काश मे उनक चेर होती। ऐसे फययाज दाता क चेर बनना भी एक फख़ है ।

य पूणा

या हो अब

याह न करगे? ये

कहकर शम से सर झुका िलया। पूणा— याह, अरे वो तो मुहँ खोले बैठे है , तु हारे लाला जी ह नह ं मंजरू करते। मै येजोर दे कर कह सकती हँू क अगर तुमसे उनक शाद न

हई ु तो वो कुँवारे रहगे।

ूेमा—यहॉ भी यह ठान लीहै कचेर बनूँगी तो उ ह ं क ..... कुछ दे र तकयह बात हआ क ं। जब सूरज डबने का व ू ु

आया तो

ूेमा ने कहा—चलो पूणा, तुमको बाग, क सैर करा लॉऊ। तीन मह ने हो गये। मै उधर भूलकर भी नह ं गयी।

पूणा—मेरे बाल खोल दो तो चलूँ। तु हार भावज दे खगी तो ताना दगी। ूेमा—ताना

या दगी, कोई खेल है । अगर इस घर म अब तुमको

कोई ितरछ िनगाह से भी दे खे तो अपना औरउसका खून एक कर दँ ।ू दोनो स खयॉ उटठ और हाथ म हाथ

मआयी। बाग

दये जीन से उतरकर बाग

या था, एक छोट सी फुलवार थी जसम जनाने से राःता

बना हआ था। ूेमा को फूल सेबहत ु ु मोितया, बेला वगैरह खूबसूरत

यादा शौक था। इसिलए यहॉगुलाब

या रय म बकसरत लगे हए ु थे। दो तीन

लौ ड़यॉ खास इस ख े के सैराब करने के िलए नौकर थी। 39

बाग के बीचो बीच मएकगोल चबूतरा बना हआ था। दोनो स खयॉ उस ु

चबूतरे परबैठ । शाम का सुहाना व

था। शफक क

सुख

आसमान

परनमूदार थी ठं ड ठं ड और अंबरबेज हवा चल रह थी। ूेमा को दे खते ह मािलन बहत ु सी किलयॉ एक साथ तर कपड़े म लपेटकर लायी।ूेमा नेउनको

लेकर पूणा को दना चाहा। मगर वो आबद द हो गयी और बोली—सखी, मुझे

मुआफ र खो। उनक बू बास तुमको मुबारक हो—सोहाग के साथ मने फूल भी

याग दये। हाय, जस दन वो नहाने गये। थे उस दन मने ऐसी ह

किलय का एक हार तैयार कया था। उस दन सेमने फूल को हाथ नह ं

लगाया। ये कहते कहते वो दफअतन च क पड़ और बोली— यार , अब म जाऊँगी। आज इतवार का दन है । बाबू अमृतराय उमूमन इतवार को इसी व

आया करते है । शायद आज भी आ जाय। ूेमा ने जहर खुद करके

कहा—नह ं सखी, अभी उनके आने म आध घंटे क दे र है ।मुझे तोउस व का ऐसा अंदाजा हो गया है । क अगर कमरे म भी बंद कर दो तो शायद गलती न क ं । हाय सखी, तुमसे सच कहती हंू , झरोखे पर बैठकर रोज घंट

तक उनक राह दे खा करती हंू । कंब त दल को बहत ु समझाती हंू , नह ं

मानता।

पूणा—जरा पहले से जाकर ब ल से कह दँ ।ू कमरे म झाडू दे दे ,

कल फर िमलूँगी।

ूेमा—कल ज र आना यार । न आओगी तो कहे दे ती हंू कुछ खाकर

सो रहंू गी।

ु दोनो स खयॉ गले िमलीं। पूणा शमाती हई ु घूँघट से चेहरे को छपाये

अपने घर क तरफ चली और ूेमा कसी के द दार के इ ँतयाक म महताबी पर जाकर टहलने लगी। पूणा को पहँु चे मु ँकल से पंिह िमनट गुजरे ह गे क बाबू अमृतराय

बाइिस कल पर फर फर करते आ मौजूद हए। उ ह ने कपड़ ु

के बजाय

बंगािलय क पोशाक जेबे बर क थी जो उन पर खूब सजती थी। गजब के

जामाजेब-ओ-वजीह आदमी थे। बाजारो म जा िनकलते तो लोग बेअ तयार उनक तरफ मह व हो जाते। और शहर म ऐसी कौन सी कुँआर लड़क होगी जो उनक बीवी बनने क आरजू न रखती हो। मालूम के खलाफ आज उनक दा हनी कलाईपर एक हार उनके गले म पड़ हई ु थी, हवा के नम 40

नम झ को से लहरा लहराकर एक कै फयत दखती थी। जूते क आवाज सुनते ह

ब ल ने बाबू साहब को कमरे म बठा दया।

अमृतराय— य

ब ल , खै रयत?

ब लो—हॉ सरकार, सब खै रयत। इसी असना म िनशःतगाह का अंद नी दरवाजा खुला औरपूणा िनकली। बाबू अमृतराय नेउसक तरफ दे खा तो है रत म आ गये औरिनगाह खुद-ब-खुद उसके चेहरे पर जम गयी। पूणा मारे शम के गड़ जाती थी क

आज

य मेर तरफ इस तरह ताक रहे है । उसको नह ं मालूम था क आज

मने बाल म तेल डाला है , कंघी क है , पेशानी पर सदरू क एक बंद भी

पड़ हई ु है । बाबू अमृतराय ने उसको इस बनाव चुनाव के साथ कभी नह ं

दे खा था और न उनको कभी

याल हआ था क वे ऐसी हसीन होगी। चंद ु

िमनट तक तोपूणा सर नीचा कये खड़ रह । यकायक उसको बपने गुथ ँ े हए ु

बाल का

याल आ गया और उसने फौरन शमा के गदन नीची कर ली।

ु घूँघट को बढ़ाकर चेहरा छपा िलया और यह

याल करके क शायद बाबू

साहब इस बनाव-िसंगार से नाराज ह उसने िनहायत भोलेपन के साथ यूँ माजरत क , ‘मै

या क ँ , आज ूेमा के घर गयी थी, उ होने जबदःती सर

म तेल डालकर बाल गूथ

दये। म कल सब बाल कटवा डालू। ये कहते

कहते ऑ ंखो मऑ ंसू भर आये। एक तो उसके बनाव िसंगार, दसरे उसके भोलेपन ने बाबू साहब को ू

लुभा िलया। बेअ तयार बोल उटठे ‘नह ं’, नह ं, तु ह मेरे सर क कसम, ऐसा हरिगज न करना। मै बहत ु खुश हँू क तु हार सखी ने तु हारे ऊपर यह मेहरबानी क । अगर इस व

वो यहॉ होती तो म उनका इस एहसान के

िलए शु बया अदा करता। पूणा पढ िलखी औरत थी,

ह द के मु ँकल

दोहर के माने िनकाल लेती। इस इशारे को समझ गयी औरझपकर गदन नीची करली। ूेमा का नाम सुनकर बाबू साहब को

वा हश पैदा हई ु क जरा उनक

िनःबत कुछ और हालात मालूम कर। बोले—तु हार सखी ूेमा है तो अ छ तरह? पूणा—अ छ तरह

या है , आज उनको दे खकर म अपनी मुसीबत

भूल गयी। वो बलकुल सूखकर कॉटा हो गयी है ।मह न से खाना पीना बराये नाम है । दन भर पलंग पर पड़े पड़े रोया करती है । घरवाले लाख समझाते 41

ह, नह ं मानतीं। आज मुझे दे खकर बहत ु खुश हई ु औरबड़ दे र तक अपने

दख ु दद क दाःतान सुनाती रह । आ खर म उ ह ने कहा—पूणा, अगर चेर

बनूँगी तो बाबू अमृतराय क वनाकुँआर रहँू गी।

इस खबर को सुनकर अमृतराय के चेहरे पर एक हसरत सी छा गयी।

बोले—सच? पूणा—जी हॉ, उनक हालत िनहायत नाजुक है । मुझसे बार बार पूछती थीं क तुमसे बाबू साहब से कभी इधर का जब आता है ? मने कह दया क वो तु हारे फ़राक म बहत ु बेचैन है । इस पर बहु त खुश हई। ु

अमृतराय—तुमको कैसे मालूम हआ क मै ूेमा के फ़राक म बेचैन ु

हँू । कोई ज़माना वो था जब म उनका फ़दाई था और उनसे शाद करने का

अरमान रखता था मगर अब वो बात गुजर गयीं। मुंशी बदर ूसाद ने मुझे इस एजाज के का बल नह ं समझा। मुझे यह सुनकर स त अफसोस हआ ु क ूेमा अभी तक मुझको याद करती है । पूणा—बाबू साहब, ल ड



गुःताखी मुआफ़। मुझेतो यक न नह ं

आता क ूेमा क मुह बत आपके दल मनह ं है । लोग कहते है , मुह बत एक हो ह नह ं सकती। ई र जाने आज जब मैने उनसे आपका ज़ब कया तो फूल क

तरह

खल गयीं। चेहरा रोशन हो गया, मुझे गले लगाकर

कहा—सखी, उनसे कह दे ना क अगर अब भी मुझ पर तरस न खायँगे तो म जहर खा लूँगी। अमृतराय—पूणा, हमको स त अफसोस है उनक हालत पर—इसम कोई शक नह ं

क पहले म उन पर शैदा था मगर मने कामयाबी क

कोईउ मीद न दे खकर रो-रोकर इस आग को बुझाया। अब इसके बजाय कोई

दसर ह तम ना पैदा हो गयी है और अगर ये भी पूर न हई ू ु तो यक न

जान

क मै बन

लगे। पूणा को

याहा ह रहँू गा। ये कहकर वो जमीन क तरफ ताकने

याल था क बाबू अमृतराय क शाद ूेमा से हो या न हो

वो उससे मुह बत ज र करते है । मगर जब उसको मालूम हआ क उनक ु

शाद कह ं और होनेवाली है तो उनक बात पर यक न आ गया। मुःकराहट शमाती हई ु बोली—ई र आपक यह मुराद पूर करे । शहर म कौन ऐसा रईस है जो आपसे नाता करना फ़ख न समझता हो। अगर इस काम म

मुझसे

कोई

खदमत अंजाम पा जायगी तो मै अपेन को िनहायत 42

खुश कःमत समझूंगी। जो काम मेरे का बल हो वो फ़रमा द जए, म बसरोचँम बजा लाऊंगी। अमृतराय—(मुःकराकर) तु हारे बला तो इस काम का अंजाम पाना ह मुहाल है । ब क तु हार रज़ामंद पर इस तम ना का दारोमदार है । पूणा बड़ खुश हई।फ ू ली न समायी क मै भीअब उनका कुछ काम ु

कर सकूँगी। उसक

समझ म इस तुमले के माने न आय, ‘तु हार



रज़ामंद पर इस तम ना का दारोमदार है ।‘ उसने समझा शायद मुझे नामा ओ पायाम का काम सुपुद होगा। उसने इन अलफ़ाज का मतलब छ: मह ने

के अंदर ह अंदर अ छ तरह समझ िलया था। बाबू अमृतराय कुछ दे र यहॉ और बैठे। उनक नजर आज बेअ तयार इधर उधर से घूमकर आतीऔरपूणा के चेहरे पर गढ़ जाती। जब तक वो बैठे रहे पूणा को मारे शम के सर उठाने क जुरअत नह ं हई ु अफ़सुरदा उटठे और चलते व

बोले—पूणा,म ये

गजरा आज तु हारे वाःते लाया हँू । उ मीद है क तुम इसको कबूल करोगी।

दे खो, कैसा खुशनुमा बना है । यह कहकर उ ह ने हाथसे गजरा उसक तरफ बढ़ाया। पूणा मुतहै यर हो गयी। आज गैरमामूली खाितर कैसी? एक िमनट तकउसके

दल म पसोपेश हआ ु

क लूँ या न लूँ। उन गजर का

याल

आयाजो उसने अपने शौहार के िलए होली के दन बनाये थे। फर ूेमा क किलय का

याल आ गया। उसने इरादा िलया क म न लूंगी। जबान ने

कहा, ‘मुझे मुआफ र खये’। मगर हाथ एक बेअ तयार तौर परबढ़ गया। बाबू साहब ने खुश खुश गजरा उसके हाथ पहनाया। उसको खूब नजर भरकर

दे खा। बाद अजॉ बाहर िनकल आये, बाइिस कल परसवार होकर रवाना हो गये। पूणा कई िमनट तक न शे तसवीर बनी खड़ रह । उसको खबर न थी क मेरे हाथ म गजरे कैसे आ गये। मने तो इनकार कया था, जी चाहा क फक दँ ू मगर फर

हाय, उस व

याल पलट गया। उसने गजरे कोहाथ मे पहन िलया।

भी उसक समझ म नआया क इस तुमले का

या मतलब है ।

‘तु हार ह रजामंद पर इस तम न का दारोमदारहै । उधर ूेमा महताबी पर टहल रह थी। उसने बाबू साहब को आते दे खा था। उनक वजा उसक नजर म खुब गयी थी। उसने कभी इसबनाव के साथ नह ं दे खा था। सबसे हाथो म गजरा

यादा ता जुब उसको इस बात का था क उनके

य है । वो उनक वापसी का इं तजार कर रह थी। उसका 43

जी झुझलाता था क वो आज इतनी दे र

य लगा रहे है ।

है । दफअतन बाइिस कल नजर आयी। उसने

फरबाबू साहब को दे खा।

चेहरािशगु ता था। हाथ पर नजर पड़ गयी। ऐं, ये गजरा

44

या बात हो रह या हो गया।

छठा बाब

मुए पर सौ दरु

पूणा ने गजरा पहन तो िलया मगर रात भर उसक ऑ ंखो म नींद नह ं आयी। उसक समझ म यह बात न आती थी क बाबू अमृतराय ने उसको गज़रा



दया। उसे मालूम होता था कपं डत बसंतकुमार उसक

तरफ िनहायत कहर आलूद िनगाह से दे ख रहे है । उसने चाहा क गजरा उतार कर फक दं ।ू मगर नह ं मालूम,

यो उसके हाथ कॉपने लगे। सार रात

उसने ऑ ंखो मकाट । सुबह हई ु , अभी सूरज भी न िनकला था। पंडाइन व चौबाइन औरबाबू कमलाूसाद क बूढ महारा जन मयसेठानी जी और कई

दसर औरत के पूणा के मकान म दा खल हई। उसने बड़े अदब से सबको ू ु ु बठाया। सबके कदम छए। बाद अजॉ, यह पंचायत होने लगी।

ु पंडाइन—(जो बुढ़ापे क वजह से सूखकर छहारे क तरह होगयी थीं)

यूँ द ु हन, पं डत जी को गंगा लाभ हए ु कतने दनबीते? पूणा—(डरते-डरते) तीन मह ने से कुछ

यादा होता है ।

पंडाइन—और अभी से तुम सबके घर आने जाने लगीं।

या नाम क

कल तुम सरकार के घर चली गयी थीं। उनक कुवार क या के पास दन भर बैठ रह ं। भला सोचो तो तुमने अ छा कया याबुरा कया? तु हारा औरउनका अब

या नाम,

या साथ?जब वह तु हार सखी थी तब थी। अब तो

तुम वधवा हो गयीं। तुमको कम से कम साल भर तक घर से पांव बाहर नह ंिनकलना चा हए था। यह नह ं क तुम दशन को नजाओ, ःनान को न जाओ: ःनान पूजा तो तु हारा धम है । हॉ, कसी सुहागन या कसी कुंवार

क या के ऊपर तुमको अपना साया नह ं डालना चा हए। पंडाइन खामोश हई ु तो मुशी बदर ूसाद क महरा जन फरमाने लगीं—

या बतलाऊँ, बड सरकार और द ु हन दोनो कल खून का घूँट पी के रह

गयी। बड़ सरकार तो ई र जाने

बलख

बलख रो रह थीं

क एक तो

बेचार लड़क के यूँ ह जान के लाले पड़े है दसरे अबरॉड बेवा के साथ उठना ू बैठना है , नह ं मालूम ई र

या करनेवाला है । छोट सरकार मारे गुःसे के

कापँ रह थी। बारे मने उनको समझाया क आज मुआफ क जए। अभी वह बेचार ब चा है । र त- यौहार

या जाने? सरकार का बेटा जये, जब बहत ु

समझाया तब जान मानीं। नह ं तो कहती थी क मै अभी जाकर खड़े खडे 45

िनकाल दे ती हंू । सो बेटा, अब तुम सोहािगन या क याओ के साथ बैठने

जोग नह ं रह । अरे ई र ने तो तुम पर बपत डाल द । अब तु हारा धम यह है कचुपचाप अपने घर म पड़ रहो। जो कुछ मयःसर हो खाओ पयो

और सरकार का बेटा जये,जहॉ तक हो सके धम केकाम करो। पूणा ने चाहा क अब क कुछ जवाब दँ ू कचौबाइन साहबाने पंद ओ

नसायेह का द तर खोला। ये एक मोट , भदे सलऔर अधेड़ औरत थी, बात बात पर आखे मीचा करती

थी और आवाज भी िनहायत कर त थी—भला

इनसे पूछो क अभी तु हारे द ू हे को उटठे मह ने भी नह ं बीते और तुमने अभी से आइना, कंघी, चोट , सब करना शु

कर दया।

अब वधवा हो गयी। तुमको अब आइना-कंघी से

या नाम क तुम

या सरोकार है ।

या नाम

क मने हजार औरत को दे खा जोपित के मरने के बाद गहना पाता नह ं पहनती। हं सना-बोलना तक छोड़ दे ती है । न क आज तो सोहाग उठा और कल िसंगार पटार होने लगा।

या नाम क मै ल लो प

क बात नह ं

जानती। कहंू गी सच चाहे कसी को तीता लगे यामीठा। बाबू अमृतराय का

रोज रोज यहां आना ठ क नह ंहै, कनह ं सेठानी जी?

उस पर सेठानी जी ने हांक लगायी—(ये एक िनहायत फ़रबा अदाम, मोटे -मोटे वजनी गहन से लद हई ु बूढ थी। गोँत के लोथड़े ह डडय से अलग होकर नीचे लटक रहे थे। इसक भी एक बहू बेवा होगयी थी जसक जंदगी इसने अजीरन कर रखी थी। इसक आदत थी क बात करते व

हाथ से मटकाया करती थी) हय-हय जो बात सच होगी सब कोई कहे गा, भला कसी ने कभी रॉड-बेवा को माथे पर बंद

दये दे खा है । जबसोहाग उठ

गया तो ट का कैसा। मेर भी एक बहू वधवा है मगर उसको आज तक

लाल साड़ नह ं पहनने दे ती। नह ं मालूम इन छोक रय का जी कैसा है क वधवा हो जाने पर िसंगार परललचाया करता है । अरे , उनको चा हए क बाबा अब हम रॉड हो गये, हमको िनगोड़े िसंगार से

या लेना है ।

महरा जन—सरकार का बेटा जये, तुम बहत ु ठ क कहती हो सेठानी

जी, कल छोट सरकार ने जो इनको मांग म ट का लगाये दे खा तो खड़ ठक रह गयी। सरकार का बेटा जये, दॉतो तले उँ गली दबायी। अभी तीन दन क

वधवा और ये िसंगार करे ।सोबेटा, अब तुमको समझ बूझकर काम करना

चा हए। तुम अब ब च नह ं हो। 46

पूणा बेचार बैठ

बसूर रह थी और यह सब बेरहम औरत उसक ले

दे कर रह थी। उसने चाहा क अब क बार कुछ अळ माजरत करे मगर कौन सुनता है । सेठानी जी

फर गरज उठ

औरहाथ चमका चमकाकर

फरमाने लगी—और या, जब कहने क बात होगी तो सब कोई कहे गा। चुप य होपंडाइन? इनके िलए अब कोई राह-बाट िनकाल दो। पंडाइन— या नाम

क सांच के आंच नह ं। द ु हन को चा हए

सबसे पहले ये लंबे लंबे केश कटवा डाल और आना जाना छोड़ दे ।



या नाम क दसर के घर ू

चौबाइन—और बाबू अमृतराय को यहॉ रोज-रोज आना

या ज र?

महरा जन—सरकार का बेटा जये, म भी यह बात कहने वाली थी। बाबू साहब के आने से बदनामी का डर है । चंद और िसखावन क बाते करके ये मःमूरात यहां से तशर फ ले गयी और महरा जन भी मुंशी बदर ूसाद साहब के यहॉ खाना पकाने गयीं। उनसे औरछोट

सरकार से बहत ु बनती थी।वो उनपर बहत ु एतबार रखती थी।

महरा जन ने जाते ह उनसे सार कथा खूब रं गो रौगन नमक िमचलगाकर बयान क और छोट सरकार ने इस वाकये को ूेमा के जलाने और सुलगाने के िलए मुनािसब समझकर उसके कमरे क तरफ

ख कया।

यूं तो ूेमा हर रोत रात जागा करती थी मगर कभी कभी घंटे आध घंटे के िलए नींद आ जाती थी। नींद

या आ जाती थी, एक गशी सी

आ रज हो जाती थी। मगर जब से उसने बाबू अमृतराय को बंगािलय क वजा म दे खा था औरपूणा के घर से वापस आते व उसको गजरा नजर नआया था उस व

उनक कलाई पर

से उसके पेट म खलबली पड़ हई ु

थी क कब पूणा आवे और कब सारा हाल मालूम हो। रात तो बड बेचन ै ी से उठ उठ घड़ पर नजर दौड़ाती, इस व

जो उसने पैर क चाप सुनीतो

समझी कपूणा आ रह है । फत इ ँतयाक से लपककर दरवाजे तक आयी मगर

य ह अपनी भावज को दे खा

ठठक गयी और बोली—कैसे चलीं

भाभी? द ु हन साहबा तो चाहती थी क छे ड-छाड़ के िलए कोई ज रया हाथ

आ जाय, यह सवाल सुनते ह तुनककर बोलीं— या बतलाऊँ कैसे चली? अब से जब तु हारे पास आया क ँ गी तो इस सवाल का जवाब सोचकर आया क ँ गा। तु हार तरह सबका खून थोड़ा ह सफेद हो गया है 47

क चाहे घी

काघड़ा ढलक जाये, घर म आग लगी है मगर अपने कमरे सेकदम बाहर न िनकाले। वो छोटा-सा जुमला ूेम के मुँह से यूँ ह

बला

कसी

याल के

िनकल आया था। उसके जो ये माने लगाये गये तो ूेमा को िनहायत नागवार गुजरा। बोली—भाभी तु हार तो नाक परगुःसा रहता है , जरा सी बात का बतंगड़ बना दे ती हो। भला मने कौन-सी बात बुरा मानने क कह थी।

भावज—कुछ नह ं, तुम तो जो कुछ कहती हो गोया मुंह से फूल

झाड़ती हो। तु हार जबान म शंकर घुली हई म जतने ह उनक ु ु है । दिनया नाक पर गुःसा रहता है और तुम बड़ सीता हो। ूेमा—(झ लाकर) भावज, इस व

तु हारा िमजाज बगड़ा हआ है । ु

ई र के िलए मुझे दक मत कर । मै तो यूँ ह अपनी जान को रो रह हँू । भावज—(मटककर) हॉ, रानी, मेरा तो िमजाज

बगड़ा हआ है , सर ु

ु िचटठ पऽ िलखा फरा हआ है । जरा सीधी हँू न, म भी यार को चोर छपे ु

करती, तसवीर भेजा करती अँगू ठय

का अदल बदल करती तो म भी

होिशयार कहलाती। मगर मान न मान मै तेरा मेहमान। तुम लाख िच टठयॉ िलखो, लाख जतन कर मगर वो सोने क िच ड़या हाथ आने वाली नह ं। ये जली-कट सुनकर ूेमासे ज त न होसका। बेचार कमजोर दल क औरत थी और मु तो से रं जो महन सहते सहते कलेजा और भी पक गया था, बे अ तयार रोने लगी। भावज ने उसको रोते दे खा तो आंखे जगमगा गयी। ह ेरे क , यू सर करते ह तीर को। बोली— बलखती

या हो,

या

अ मा को सुनाकर दे िसिनकाला करा दोगी? कुछ झुठ थोडा ह कहती हँू ।

वह अमृतराय

जनके पास चुपके चुपके िच टठयॉ िलखा करती थीं, अब

आज दनदहाड़े उस कहबा पूणा के घर आता है और घंट वह ं रहता है । सुनती हँू फूल के गजरे लाकर प हाता है । शायद दो-एक क मती जेवर भी दये है ।

ूेमा इससे

यादा न सह सक , िगड़िगड़ाकर बोली—भावज, म तु हारे

पैर पड़ती हँू ,मुझ परदया करो। मुझे जो चाहो कह लो। (रोकर) बड़ हो

मारपीट लो। मगर कसी का नाम लेकर और उस पर छु े रखकर मेरे गर ब दलको मत जलाओ। 48

ूेमा ने तो िनहायत लजाजत से ये अलफाज कहे मगर छोट सरकार

‘छु े रखकर’ पर बरअंगे ता हो गयी। चमककर बोली—हॉ रानी, जो कुछ म कहती हँू वो छु े रखती हँू । मुझे िनहायत सामने झूठ बोलने से िमठाई

िमलती है न? तु हारे सामने झूठ बोलूंगी तो तुम सोने के त त पर बठा

दोगी। मगर म एक झूठ हँू , सारा जमाना तो नह ं झूठा है । आज सारे

मुह ले म घर-घरयह चचा हो रहा है । बहत ु तो पढ़ -िलखी हो, भला तु ह ं सोचो एक तीस बरस के संडे मरदए ु का पूणा से

या काम है । माना क वो

उसक मदद करते है । मगर ये तो दिनया है । जब एक पर आ पड़ती है तो ु

दसरा उसके आड़े आता है मगर शर फ आदमी इस तरह दसर को बहकाया ू ू

नह ं करते। और उस छोकर को

या बहकायेगा कोई, वो तो आप ह सात

घाट का पानी पये है । मैने जस दन उसक तसवीर दे खी थी उसी दन ताड़ गयी थी क एक ह

बस क गाठ है । अभी तीन दन भी द ू हे को मरे

हए ु नह ं बीते क ताड़ गयी थी क एक ह

बस क गांठ है । अभी तीन दन

भी द ू हे को मरे हए ु नह ं बीते क सबको झमकड़ा दखाने लगी गोया द ू हा या मरा एक बला दरू हई। कलजब उसके क ज कदम यहां आये तो म ु

जरा बाल गूथा रह थी नह ं तो डयोढ के भीतर तो कदम धरने ह न दे ती, चुडैल नह ं तो। यहां आकर तु हार सहे ली बनती है , इसी ने अमुतराय को अपना जोबन दखा दखा कर अपना िलया है । कल कैसा लचक लचककर

ु ु ठमक ठमककर चलती थी। दे ख दे ख जी जलती है , हरजाई नह ं तो।

खबरदार जो अब कभी तुमने उस चुडैल को यहां बठाया। म उसक सूरत नह ं दे खना चाहती।

ज़बान वह बला है

क झूठ बात का भी यक न दला दे ती ह। बहू

साहबा ने तो जो कुछ फरमाया हफ बहफ सह था, भला उसका असर न होता। पहले तो ूेमा ने उनक बात को लगो व शरारत आमज कया मगर आ भर



याल

याल ने पलटा खाया। भावज क बात मराःती क

झलक पायी। यक ल आ गया। ताहम वो ऐसी ओछ नह ं थी क उसी व अमृतराय औरपूणा को कोसने लगती। हॉ, वो सीने पर हाथ धरे यहॉ से उठकर चली गयी और छोट

सरकार भी खरामा खरामा अपने कमरे म

तशर फ लायी। आइने म खे अनवर का मुला हजा कया और आप ह आप बोली—लोग कहते है । क मुझसे खूबसूरत है , अबवे खूबसूरती कहां गयीर? 49

ूेमा को तो पलंग पर लेटकर भावज क बात को वाकयात सेिमलाने द जए, हम मदाने म चले। यहां कुछ और ह गुल खला हआ है । िनहायत ु

आराःता ओ पीराःता औरवसी द वानखाना है । जमीन पर िमजापुर कके सा त क

खूबसूरत कालद न

बछ

हई ु ह। वो सामने क

तरफ मुंशी

गुलजार लाल है और उनक बगल म बाबू दाननाथ। दा हने जािनब बाबू कमलाूसाद, मुंशी झ मनलाल से कुछ काना-फूसी कर रहे है । बायीं जािनब दो असहाब और जलवा अफ़रोज है जनको हम नह पहचानते। कई िमनट

तक मुंशी बदर ूसाद साहब अखबार बढ़ते रहे । आ खर उ होने सर उठाया

और संजीदगी से बोले—बाबू अमृतराय क हरकत अब बदाँत से बाहर होती जाती। गुलजार लाल—बदाँत, जनाब, अब उनक

तहर र

और तकर र

से

यहॉ क सोसायट क स त तौह न हो रह है । हमारा फत कौमी है क अब हम उनके नशे को उतारने क फब कर। बाबू कमलाूसाद—बेशक बाप बहत ु द ु ःत फरमाते है । हमारा फज था

क इ तदा ह इसक

फब करते, ताहम अभी कुछ नह ं बगड़ा है ।

झ मनलाल—अगर बगड़ा है तो इ तदा है क ःकूल और कािलज के चंद ल डो ने उनक

पैरवी अ तयार क

है और मिास, बंबई के चंद

सरबरआवुदा अशखास ने उनक इयानत करने का बीड़ा उठाया है । अगर हम बहत ु ज द उनक खबर नलेगे तो फर आगे चलकर बड़ मु ँकल दरपेशा

होगी। दे खए, इस अखबार मपांच ह ते से बराबर उनके मजामीन फरते है । ये मखफ नह ं है क दे हकानी उमूमन कमफहम कमडमगज होते है । बाबू

अमृतराय म खाह कसी कःम क िलयाकत हो या नहो इससे इं कार नह ं

कया जा सकता क उनक वकालत अंधाधुधबढ़ रह है । मुव कल को तो वो

स शीशे म उतार लेता है । गुलजार लाल—सबसे पहले हमारा काम ये होना चा हए

क उनक

दरखाःत जो कमेट म पेश क गयी है उसे मंसूख करा दे । बाबू दाननाथ ने जो इन मुबा हसां मबराये नाम हःसा िलये हए ु थे,

पूछा—कैसी दरखाःत?

गुलजार लाल— या आपको मालूम नह ं, हजरत चाहते है द रया के

कनारे वाला सरस ज

क वो

ख ा हाथ आ जाय। शायद वहां एक

खैरातखाना तामीर करायेगे। सुनता हंू उसम बेवाएं रखी जायगी और उनक 50

खु रश पोिशश का इं तजाम कया जायगा। मगर ऐसी क मती और फायदे क जमीन हरिगज इसतरह जायानह क जा सकती। मुंशी बदर ूसाद—नह ं, नह ं, ऐसा हरिगज नह ं हो सकता। ब चा (कमलाूसाद) तुम आज उसी जमीन के िलए एक दरखाःत कमेट म पेश कर दो, हम वहां ठाकुर ारा और धमशाला बनवायेगे। गुलजार लाल—हमको ये कोिशश करनी चा हए क अगर ूेसीडट साहब बाबू अमृतराय क तरफदार कर तो उनके मुआ फ़क फैसला न हो। उ होन अंमेज से खूब इितबात पैदा कर र खी है ।

या राय क तादाद हमार

तरफ जयादा न होगी? कमलाूसाद—इसम कोई शक भी है , यह दे खए मे बर क फेह रःत कुल स ाईस हजरात है , उनम सात असहाय यह ं रौनक अफरोज है ।गािलबान दस बारह वोट और हािसल कर लेना कुछ मु ँकल न होगा। झ मनलाल—हमको इतने ह परसब नह ं करना चा हए। इन मजामीन का ददािशकन जवाब दे ना भी ज र है । मने मोतबर खबर सुनी है ।



लाला धनुखधार साहब फर तशर फ ला रहे है । हमको कोिशश करनी चा हए क प लक हॉल म तकर र करने का मौका उनको न िमले। यहां से हजरत बैठे हए ु ये चेमीगोइयां कर रहे थे क यकायक एक

आदमी ने अंदर आकर कहा—बाबू अमृतराय तशर फ लाये है ।

अमृतराय का नाम सुनते ह कर ब कर ब कु ल हजरत के चेहर

पर

हवाइयॉ उडने लगी। खुसूसन मुंशी गूलजार लाल और बाबू दाननाथ के चेहरे

ु का रं ग फक हो गया। बगले झाकने लगे, अगर कोई जगह छपने क होती ु जाते। दाननाथ समझे क हमको बेवफा तो वो दोनो ज र छप

वो अभी तक

याल करे गे।

दल से अमृतराय के हमदद और खैरखाह थे गो अपना

मतलब िनकालने के िलए मुश ं ी बदर ूसाद से र त ज त बढाना शु

कर

दया था। एक ल हे म बाबू अमृतराय कोट पतलून पहले,सोला है ट लगाये, जूता चरमराते हए उनको दे खते ह बजुज मुशी बदर ूसाद ु अंदर दा खल हए। ु

साहब के और सब हजरात ताजीमन उठ खड़े हए। अमृतराय ने जाते ह ु बला तअ मुल अलेक सलेक के बाद यू गु तगू करना शु

सहाब क



क म आप

खदमत म इसिलए हा जर हआ हंू क एक कौमी इ तजा पेश ु

क ं । आप लोग पररोशन है क इस शहर म अभी तक कोईऐसा पनाह का 51

मुकान नह ं है । जहां लावा रस औरत क परव रश व परदा त का इं तजाम हो सके। ऐसी औरत को सढ़क पर फटे हाल इधर उधर मारे मारे फरते दे खना वाकई, िनहायत इबरतनाक व शमनाक है । इससे हमार तहजीब पर िनहायत बदनुमा ध बा है । इस सूबे के बड़े -बड़े शहर म कौमी मुखैयर ने इस कौमी ज रत को पूरा कया है । उ ह ं क दे खा-दे खी मैने भी यह कोिशश करनी चाह । क अगर मुम कन होतो इस शहर पर से ध बा िमटा द।ू मगर ये

मोहत बँशान काम ऐसा नह ं ह क मुझसे हे चमीरज व हे चमंदा से अंजाम पर सके। ता वते क आप हजरत मेर मदद न फरमाय। इसी गरज से मैने एक चंदा खांलाहै । मुझे उ मीदे कािमल है

कऐसे मौके पर ज र आपक

फ याजी अपना जौहर दखायेगी। मै बहत ु ज द ूोमाम शया करनेवालाहंू जसम एक खैरातखाने के इं तजाम व इं सराम के मुता लक तजवीक पेश क

जायेगी और उन पर हा दयाने कौम क राये मदऊ क जायगी। ये कहते कहते बाबू अमृतराय ने झटपट जेब से फेह रःत िनकाली और

बना

कसी को आपस म नजरबा जयां या सरगोिशयां करने क

मोहलत दये हए ु उसको मुंशी गुलजार लाल साहब के सामने पेश कर दया।

अब मुंशी जी स त अजाब मुबितला है । एक ह बा दे ने क नीयत नह ं है । मगर यह खौफ है

क कह ं और हजरत कुछ फ याजी

दखाय तो म

खामखाह न कू बनूं। अलावा इसके बाप िमःटर अमृतराय के स चे हमदद म थे और उनके इसलाह के मशगलात से बड

दलचःपी जताते थे। उ होने

एक िमनट तकतअ मुल कया, चाहा क इधर उधर से कुछ इशारे कनाये पा जाय मगर अमृतराय पहले से होिशयार थे, वो उनके सामने िनगाह

रोककर खड़े हो गये और मुःकराकर बोले—सोिचए नह ं, मुझे आपसे बहत ु

कुछ उ मीद है ।

आ खर मुंशी गुलजार लाल ने कोई मफर न दे खकर झेपते हए ु अपने

नाम के मका बल पांच सौ

पये क रकम तहर र फरमायी। अमृतराय ने

उनका शु बया अदा कया और गौ और हजरात कुछ कानाफुसक करने लगे थे मगर इसका कुछ

याल न करके उ होने फेह रःत बाबू दाननाथ के

सामने रख द । हम पहले कह चुके है

क बाबू दाननाथ अमृतराय के मकािसद से

इ फाक रखते थे। मगर पहले जब उ होने चंदे क फेह रःत दे खी तो बड़े पसोपेशम थे क

या क ं , अगर कुछ दे ता हंू तो शायद मुंशी बदर ूसाद 52

बुरा मान जाय। नह ं दे ता, तो अमुतराय के नाराज हो जाने का खौफ है । इसी हं स बैस म थे क बाबू गुलजार लाल क मुबर दरत ने उनको तुरअत दलायी। फौरन अपने नाम के मका बल एक हजार क

रकम िलखी।

अमृतराय को उनसे इतनी उ मीद न थी। बड़े गमजोशी से उनका शु कया अदा कया। अब ये तशवीश हई ु क फेह रःत कसके सामने पेश क जाय।

अगर मुंशी बदर ूसाद क

खदमत मपेश क ं तो शायद वो कुछ न दे और

उनका बु ल दसरे असहाब को भी मुतािसर करे गा। अगर कसी दसरे साहब ू ू

को दखाता हंू तो शायद मुँशी साहब बुरा मान क मेर तौह न क । एक लमहा वह इसी सोच म रहे मगर बला के हा जरजवाब आदमी थे। दमाग ने फौरन फैसला कर िलया। उ ह ने फेह रःत ली, अदब से मुंशी बदर ूसाद क खदमत मपेश करके कहा—मुझे आपसे खास एआनत क ज रत है । न िसफ क आप मेरे बुजग ु वार है

ब क तजबीज है क ये इमारत नामे नामी

से तामीर करायी जावे। मने किम र साहब को बुिनयाद प थर रखने पर रजामंदकर िलया है । मुंशी बदर ूसाद जहॉद दा आदमी थे, मगर उस व दे खा क दो मामूली वक ल ने एक एक हजार

ग चा खा गये।

पये दये है और अलावा

इसके किम रसाहब भी जलसे म तशर फ लावेगे। इमारत मेरे ह नाम से तामीर होगी और उसको ता फ मे लाने अ तयार भी मुझको होगा। यह सोचते सोचते अपने नामे नामी के फरमायी।

फर



दो हजार क खासी रकम तहर र

ू या था, ितिलःम टट गया। कुल हा जर न ने अपनी

है िसयत के मुआ फक मददक । एक दस िमनट म कोई सोलह सऽह हजार

पये हाथ आ गये, िमःटर अमृतराय को अपनी हकमतेअमली से कामयाबी

क उ मीद तो ज र थी मगर इस हद तक नह ं। वो मारे खुशी के उछले जाते थे। इस गैर मुतव को कामयाबी से चेहरा कुंदन क तरह दमक रहा था चंदे क फह रःत जेब म दा खल करके बोले—आप असहाब ने मेरे ऊपर बडा एहसान कया और मेरे ऊपर

या शहर क बेकस द ु खया बेवाओं पर। मुझे

उ मीद है क जब आप लोग ने माली एआनत फरमायी तो कल कमेट म मेर

दरखाःत पेश होगी उस पर भी नजरे इनायत मजबूल के नह ं दे

सकती। मैने भी उनसे अज क क कल कमेट के



मेर दरखाःत पेश

होगी, जो फैसला कमेट करे गी उसके कबूल करने म मुझे कोई उळ न होगा। मै उनक क मत अदा करने कोतैयार हंू । मगर मुझे कािमल तव को है क 53

जब आपने मेर इमदाद द रया दली से क है तो इस जमीन को हािसल करने म भी कोिशश फरमावेगे। ये कहकर बाबू अमृतराय यहॉ सेतशर फ ले गये। मगर अफसोस उ ह या मालूम था क इस पद क आड़ से जो मुंशी बदर ूसाद क कुस के पीछे पडा हआ था औरजहां से बाल खाने पर जाने का राःता था, कोई बैठा ु हआ एक एक बात को सुन रहा है । बाबू साहब को आते ूेमा ने दे ख िलया ु

था।

54

सातवाँ बाब

आज से कभी मं दर न जाऊँगी

बेचार पूणा पंडाइन व चौबाइन बगैरहम ू के चले जाने के बाद रोने

लगी। वो सोचती थी

क हाय, अब मै ऐसी मनहस ू समझी जाती हँू



कसी के साथ बैठ नह ं सकती। अब लोग को मेर सूरत से नफरत है । अभी नह ं मालूम

या- या भोगना भाग म बदा है । या नारायण, तू ह मुझ

द ु खया का बेड़ा पार लगा। मेर शामत आयी थी क खामखाह सर म तले

डलवा िलया। यह बाल कमब त न होते तो काहे को आज इतना फजीता

होता। इ ह ं बातो का

याल करते करते जब यह जुमला याद आ गया क

‘बाबू अमृतराय का रोज रोज आना ठ क नह ं’ तो उसने सर पर हाथ मारकर कहा— वो आते है तो मै कैसे मना क ँ । म तो उनका दया खाती हँू । िसवाय

उनके अब मेर खबर लेनेवाला और कौन है । उनसे कैसे कह दँ ू क तुम मत

आओ। और

फर उनके आने मे हज ह

या है ।बेचारे सीधे-सादे शर फ

आदमी है । कुछ शोहदे नह ं, आवारा नह ं, फर उनके आने म

या हज है ।

नह ं-नह ं, मुझसे मना न कया जायेगा। अब तो मुझ पर मुसीबत आ ह पड़ है । अब जसके जी म जोआवे कहे । नह ं मालूम कल मुझे

या हो गया।

या भंग खा गयी थी क ूेमा के यहॉ जाकर आज इतनी फजीता करवायी। अब भूलकर भी उधर का बगैर

ख न क ँ गी। मगर हाय,

यार ूेमा के दे खे

य कर रहा जायगा। मै नजाउं गी तो वो अपने दल म

समझेगी

इन

या समझेगी।

या, उनक मॉ ने उनको पहले से ह मना कर दया होगा।

याल से फुरसत पाकर उसने हःबे मामूल गंगाजी का कःद

कया। तब से पं डतजी का इं तकाल हआ था क वो रोज बला नागा गंगा ु

नहाने जाया करती थी। मगर मुँह अँधेरे जाती औरसूरज िनकलते िनकलते

लौट आती। आज इन बन बुलाये मेहमानो क वजह सेदेर हो गयी। थोड़ दरू चली थी क राःते म सेठानी जी क बहू से मुलाकात हो गयी। उसका नाम

रामकली था। बेचार

दो बरस से रँ डापा भोग रह

थी। उसका िसन भी

मु ँकल से सोलह सऽह बरस होगा।चेहरा मोहरा भी बुरा न थ। खदो-खाल िनहायत दलफरे ब। अगर पूणा आम क तरह तुद थी तो उसका चेहरा जोशे जवानी से गुलाबी हो रहा था। बाल मतेल न था। न ऑ ंखो म काजल। न 55

मॉग मसदर। न दॉतो पर िमःसी। ताहम उसक ऑ ंखो म वो शोखी थी, ु

चाल म वो लचक और ह ठो परवो तबःसुम जनसे इन बनावट आराइश

क ज रत बाक न रह थी। वो मटकती, इधर-उधर ताकती, मुःकराती चलो जा रह थी क पूणा को दे खते ह

ठठक गयी और बड़े अंदाज से हँ सकर

बोली—आओ बहन, आओ। तुम ऐसा चलती हो जानूँ बताशे पर पैर धर रह हो। पूणा को ये जुमला नागवार मालूम हआ। मगर उसने बड़ नम से ु

जवाब दय— या क ँ बहन, मुझसे तो औरतेज नह ं चला जाता।

रामकली—सुनती हँू , कल हमार डायन कई चुडैल के साथ तुमको

जलाने गयी थी। मुझे सताने से अभी तक जी नह ं भरा।

या कहँू बहन। ये

सब ऐसा दख ु दे ती है क जी चाहता है जहर खा लूँ। और अगर यह हाल रहा तो एक न एक दनयह होना है । नह ं मालूम ई र का

या बगड़ा था

क एक दन भी जंदगी का सुख न भोगने पायी। भला तुम तो अपने पित के साथ दो बरस रह भी। मैने तो उसका मुँह भी नह ं दे खा। जब तमाम औरतो को बनाव-िसंगार कये हँ सी-खुशी चलते- फरते दे खती हँू तो छाती पर सापँ लोटने लगता है । वधवा

या हो गयी, घर भर क लौड़ बना द गयी।

जो काम कोई न करे वो मै क ँ , उस पर रोज उठते जूती बैठते लात। काजल मत लगाओ, िमःसी मत लगाओ, बाल मत गूँथाओ, रं गीन सा ड़याँ मत पहनो, पान मत खाओ। एक रोज एक गुलाबी साड़ पहन ली थी तो वह चुडैल मारने उठ थी। जी मे तो आया क सर के बाल नोच लूँ। मगर जहर का घूँट पी के रह गयी और वो तो वो उसक बे टयॉ और दसर बहऍ ू ु मेर

सूरत से नफरत रखती है । सुबह को कोई मेरा मुँह नह ं दे खता। अभी पड़ोस ह म एकशाद हई ु थी। सब क सब गहने म लद कर गाती बजाती गई।

एक मै ह अभािगन घर म पड़ रोती रह । भला बहन, अब कहाँ तक कोई ज त करे । आ खर हम भी तो आदमी है । हमार भी तो जवानी है । दसर क ू

खुशी चहलपहल दे ख खामखाह दल मे ह सले होते है । जब भूख लगती है और खाना नह ं िमलता तो चोर करनी पड़तीहै । ये कहकर रामकली ने पूणा का हाथ अपनेहाथ म ले िलया और मुःकराकर आ हःता-आ हःता एक गीत गुनगुनाने लगी। पूणा को ये बेत क लु फयां स त नागवार मालूम होती थीं मगर मजबूर थी।, 56

राःते म हजार ह आदमी िमले। सबक नजर इन दोन औरत क तरफ फरती थी। फ़के चुःत कये जाते थे। मगर पूणा सर को ऊपर उठाती ह न थी। हॉ रामकली अलब ा मुःकरा-मुःकराकर माशूकाना अंदाज से इधर उधर दे खती थी। एक आध बरजःता जवाब भी दे देती। पूणा जब सड़क पर मद को खड़े दे खती तो बचाके कतराकर िनकल जाती मगर रामकली को उनके बीच म घुसकर िनकलने क

जंद थी। नह ं मालूम

यूँ उसक चादर

सर से बार-बार ढलक जाती जसको वो एक अंदाज से ओढ़ती थी। इसी

तरह द रया कनारे पहँु ची। यहॉ हजार मदऔर औरत और ब चे नहा रहे थे। रामकली को दे खते ह एक पं डत ने कहा—इधर सेठानी जी, इधर।

पंडा—(घूरकर)यह कौन है ? रामकली—(ऑख ं े नचाकर)कोई ह गी।

या तुम काजी हो

या?

पंडा—जरा नाम सुन के कान खुस कर ल। रामकली—ये मेर सखी है । इनका नाम पूणा है । पंडा—(हँ सकर) अहा हा,

या अ छा नाम है । है भी तो पूरन चंिमा

क तरह। अ छा जोड़ा है । पूणा बेचार झपी। ये मजाक उसको िनहायत नागवार मालूम हआ। ु

मगर रामकली ने अपने सर क लट एक हाथ से पकड़ औरदसरे हाथ से ू िछटकाकर कहा—खबरदार, उनसे द लगी मत करना।ये बाबू अमृतराय से

पुजवाती है । पंडा—ओ हो हो, खूब घर ताका है । है भी तो चंिमा क तरह। बाबू अमृतराय भी बड़े रिसया है , कभूँ-कभूँ यहॉ चले आते है । वो दे खो जो नया

घाट बन रहाहै वो बाबू साहब बनवा रहे है । फर ऐसी मनोहर सूरत का

दशन हमको कैसे िमलेगा। पूणा दल म स त पशेमान थी क काहे को इसके साथ आयी, अब तक तो नहा-धो के घर पहँु ची होती। रामकली से बोली—बहन, नहाना हो तो

नहाओ। मुझको दे र होती है । अगर तुम अभी दे र म जाओ तो मै अकेली जाए। पंडा—नह ं-नह ं रानी, हम गर ब पर इतनी खपा(खफा) मत होओ।

जाओ सेठानी जी इनको नहला लाओ। सुनता हँू आज कचहर बंद है । बाबू साहब घर ह गे।

57

पूणा ने चादर उतारकर धर द और साड़ लेकर नहाने के िलए उतरना चाहती थी क यकायक सब पंडे उठ-उठकर खड़े होने लगे। और एक लमहे मे बाबू अमृतराय एक सादा कुरता पहने, साद

टोपी सर पररखे, चँमा

लगाये, हाथ म पैमाइश का फ ता िलये, चंद ठे केदार के साथ इधर आते दखायी दये। उनको दे खते ह पूणा ने एक लंबी घूँघट िनकाल ली। उसने चाहा क नीचे के जीने पर उतर जाऊँ। मगर शम -हया ने उसके पैर को वह ं बॉध

दया। बाबू साहब को इन जीन



चौड़ाई-लंबाई नापना थी,

चुनांचे वह पूणा से दो कदम के फासले पर खड़े होकर नपवाने लगे और कागज पेिसंल पर कुछ िलखने लगे। िलखते-िलखते आगेको कदम जो बढ़ाया तो पैर जीने के नीचे जा पड़ा और कर ब था क वो औ ंधे मुँह िगर और उसी व

इस क मती

जंदगी काखातमा हो जाय

क पूणा ने झपटकर उनको

स हाल िलया। बाबूसाहब ने च ककर दे खा तो दा हना हाथ एक नाज़नीन के हाथ म है । जब तक पूणा अपना घूघँट बढ़ाये वो उसको पहचान गये औरबोले—अ वाह, ‘तुम होपूणा। तुमने मेर जान बचा ली। पूणा ने उसका कुछ जवाब न दया, ब क सर नीचा कये हए ु जीने

से उतर गयी। जब तक बाबू साहब पैमाइश करवाते रहे वो गंगा क तरफ ख कये खड़ रह । जब वो चलो गये तो रामकली मुःकराती हई ु आयी

और बोली—बहन, आज तो तुमने बाबू साहब को िगरते-िगरते बचा िलया। आज से तो वो और भी तु हारे पैरो पर सर रखगे। पूणा—(कड़ िनगाह से दे खकर) रामकली, ऐसी बात न कर । मुझे ऐसी फ़जूल द लगी भली नह ं मालूम होती। आदमी आदमी के काम आता है । अगर मैन उनको बचा िलया तो इसम

या अनोखी बात हो गयी।

रामकली—ऐ लो, तुम तो जामे से बाहर हो गयी। बस इसी जरा-सी बात पर। पूणा—नह ं, म गुःसे मनह ं हँू । मगर ऐसी बात मुझको अ छ नह ं

लगती। ले, नहाकर चलोगी भी या आज सारा दन यह ं बताओगी?

रामकली—जब तक इधर-उधर जी बहले अ छा है । घर पर िसवाय जलते अंगारो के और

या र खा है ।

कुछ दे र म दोन स खयॉ यहॉ से रवाना हई ु तो रामकली नेकहा— यूँ

बहन, पूजा करने चलोगी?

58

पूणा—नह ं सखी, मुझे बहत ु दे र हो जायगी और न मै कभी मं दर म

पूजा करने गयी हँू ।

रामकली—आज तुमको चलना पड़े गा, जरा दे खो तो कैसी बहार क

जगह है अगर दो-चार दन जाओ तो फर बला गये तबीयत न माने। यह दो-तीन घंटे जो ःनान-पूजा म काटता है , मेर खुशी का व

है । बाक

दन-

रात िसवाय गाली सुनने के और कोई काम नह ं। पूणा—तुम जाओ। म न जाऊँगी। जी नह ं चाहता।

रामकली—चलो-चलो, नखरे न बघारो। दम क दम म तो लौटे आते

है । राःते म एक तमोली क दकान पड़ । काठ के जीनेनु मा त त पर ु

सफेद कपड़े पानी से िभगाकर बछाये हए ु थे। उस पर बँगला दे सी व मघई

पान बड सफाई से चुने हए ु थे। सामने दो बड़े -बड़े चौखटे दार आइने लगे हए ु

थे और एक छोट सी चौक पर खुशबूयात क शीिशयॉ और मसालो क

ड बयॉ खूबी से सजाकर धर हई ु थीं। तमोली एक सजीला जवान था। सर

पर दप ु ली टोपी चुनकर कज रखती थी, बदन म आबेरवॉ का चु नत पड़ा हआ कुता था। गले मसोने क ताबीज, आंखो म सुमा, पेशानी पर सुख ु

ट का, ह ठ पर पान क

लाली नमूदार। इन दोनो औरत

को दे खते ह

बोला—सेठानी जी, सेठानी जी, आओ, पान खाती जाओ। रामकली ने चट सर से चादर खसका द और फर उसको एक अंदाज से ओढकर और

दल बायाना अंदाज से हं सकर कहा—अभी ठाकुरजी का

परशाद नह ं पाया है ।

तमोली—आओ, यह भी तो परशाद से कम नह ं। संत के हाथ क

चीज परशाद से बढ़कर होती है । आजकल तो कई दन से तु हारे दशन ह नह ं हए ु , ये तु हारे साथ कौन सखी है ।

रामकली—(मटककर) ये हमार सखी है , बेढब ताक रहे हो।

या कुछ

जी ललचा रहा है । तमोली—वो तो हमार तरफ ताकती ह नह ं। हॉ भाई, बड़े घर क है । हम जैसे तो तलुओं से सर रगड़ते ह गे। यह कहकर तमोली ने बीड़े लगाये और एक प े मे लपेटकर रामकली क तरफ तक लुफ से हाथ बढ़ाया। जब उसने लेने के िलए अपना हाथ 59

फैलाया तो तमोली ने अपना हाथ खच िलया और हँ सकर बोला—तु हार सखी ल तो द। रामकली—लो सखी, पान खाओ। पूणा—म न खाऊँगी। रामकली—तु हार कौन-सी सास बैठ है जो कोसेगी, मेर तो सास मना करती है , उस पर भी हर रोज पान खाती हँू ।

पूणा—तु हार आदत होगी। म पान नह ं खाती।

रामकली—आज मेर खाितर से खाओ। तु ह हमारे सर क कसम लो। लाचार पूणा ने िगलौ रयॉ लीं और ँमाते हए ु खायी। अब जरा धूप

तकलीफदे ह मालूम होने लगी थी। उसने रामकली से कहा— कधर है तु हारा मं दर। वहॉ तक चलते-चलते तो शायद शाम हो जावेगी। रामकली— जतनी दे र यहॉ हो, होने दो। घर पर

या धरा है ।

पूणा खामोश हो गयी। उसको बाबू अमृतराय के पैर

फसलने का

याल आ गया। हाय, जो कह ं वे आज िगर पड़ते तो दँमन क जान ु

परबन जाती। बड़ खै रयत हो गयी। म बड़े मौके से आ गयी थी। आज दे र मे आना सफल हो गया। इ ह ं

याल म मह व थी क दफअतन रामकली

ने कहा—लो सखी, आ गया मं दर। पूणा ने च ककर दा हने जािनब दे खा तो एक िनहायत आलीशान संगीन इमारत है । दरवाजा सतह जमीन से बहत ु ऊँचा है और वहॉ तक जाने

के िलए दस बारह जीने बने हए ु है । रामकली को इस इमारत म ले गयी। अंदर जाकर

या दे खती है क एक पुँता वसीह सहन है जसमे सैकड़ो मद

और औरत जमा है । दा हने जािनब एक बारदार ह जो तमाम तक लुफ़ात

से आ राःता-ओ-पीराःता नज़र आती है । इस बारादर

म एक िनहायत

वजीह-ओ-शक ल श स जद रे शम क िमजई पहने सर पर खूबसूरत गुलाबी रं ग क पगड़ बांधे मसनद पर त कया लागाये बैठा है । पेचवाना लगा हआ ु है । उसके



सा ज़ दे बैठे सुर िमला रहे ह और एक महपार नाज़नीन

पेशवाज़ पहने बसद नाजो-अंदाजा जलवा अफ़रोज है । सैकड़ आदमी इधरउधर बैठे ह और सैकड़ खड़े ह। पूणा ने अ दाज़ क यह कै फयत दे खी तो च ककर बोली— यूँ, तो नाचघर मालूम होता है । कह ं भूल तो नह ं गयी?

60

रामकली—(मुःकराकर) चुप, ऐसा भी कोई कहता है ? यह दे वी का म दर है । वे महं त जी बैठे ह। दे खती हो कैसा सजीला जवान है । आज सोमवार ह। हर सोमवार को यहॉ कंचािनय का नाच है । इसी आसना म एक बुल द क़ामत श स आता दखायी दया। कोई छ: फ़ ट का कद था और िनहायत लह म-ओ शह म। बाल म कंधी क हई ु

थी, मुँह पान से भरे , माथे पर भभूत रमायेख ् गले म बड़े -बड़े दान क िा

माला पहने, शान पर एक रे शमी दोप टा र ख, बड़ , और सुख ऑ ंख

से इधर-उधर ताकत उन दोन

औरत

के क़र ब आकर खड़ा हो गया।

रामकली ने उसक तरफ़ एक अंदाज से दे खकर कहा— यूँ बाबा इ िद , कुछ परशाद-वरशाद नह ं बनाया? बाबा इ िद

ने फरमाया—तु हारे ख़ाितर सब हा ज़र है । पहले चलकर

नाच दे खो। ये कंचनी से बुलायी गयी है । महं त जी बेढब र झे है । एक हजार पया इनाम दे चुके है । रामकली ने यह सुनते ह पूणा का हाथ पकड़ा और बारादर क तरफ़ चली। बीचार पूणा जाना न चाहती थी मगर वहॉ सबके सामने इ कार करते भी न बन पड़ता था। जाकर एक कनारे खड़ हो गयी। बेशुमार औरत जमा थी। एक से एक हसीन, गहने से ग डनी क तरह लद हई ु थी। बेशुमार मद

था। एक से एक खुश , आता दज क पोशाक पहने हए ु , सब के सब एक ह

जगह िमले-जुले खड़े थे। आपस म नजर-बा ज़यॉ हो रह थी। नज़रबा ज़यॉ ह

नह ं, ब क दःतदरा ज़यॉ भी होती जाती थी, मुःकार-मुःकुरा राजो-

िनयाज़ क बात क जा रह थी। औरत मद म, मद म, औरत म ये

मेलजोल,

ख़लत-िमलत, पूणा को कुछ ता जुबख़ेज मालूम हआ। उसक ु

ह मत अ दर घुसने क न पड़ । एक कोने म बाहर ह दबक गयी। मगर रामकली अ दर घुस गयी और वहॉ कोई आधा घ टे तक उसने खूब गुलछर उड़ाये। जब वो िनकली है तो पसीने म ग़क थी। एक तमाम कपड़े मसल गये थे। पूणा ने उसे दे खते ह कहा— यूँ बहन, पूजा से ख़ाली हो गयी? अब भी घर चलोगी या नह ं। रामकली—(हँ सकर) अरे तुम बाहर चलकर दे खो,

ह खड़ थीं

या बहार है । ई र जाने, कंचनी गाती

लेती। अब आज उसक चॉद ह हज़ार 61

पये ले जायगी।

या? ज़रा अ दर या है दल मसोस

पूणा—दशन भी कया या गाना ह सुनती रह ? रामकली—दशन करने आती है मेर बला। यहॉ तो ज़रा दल बहलने से काम है । तु हारे साथ न होती तो कह ं घंट म घर जाती। बाबा इ िद राय ने ऐसा लज़ीज परशाद दया है क

या बताऊँ।

पूणा— या है ? चरनामृत है ? रामकली—(हँ सकर) चनामृत का बाबा है —भंग। पूणा—ऐ है , तुमने भंग पी ली?

रामकली-यह तो परशाद है दे वी जी का इसके पीने म

या हज है ?

सभी पीते है , दे वीजो को शराब भी चढ़ती है । कहो तुमको पलाऊँ? पूणा—नह ं बहन, मुझे मुआफ, र खो। इधर यह बात हो रह थीं क दस-प िह आदमी बारदर से आकर उन दोन औरत के इद-िगद खड़े हो गये। एक—(पूणा क तरफ़ घूरकर) अरे यारो, ये तो कोई नया सु प है । दसरा ू —ज़रा बचकर चलो, बचकर

इतने म

कसी ने पूणा के शाने को आ हःता से ध का

बचार स त अजाब म मुबतला ह।

दया वो

जधर दे खती है , आदमी ह आदमी

नज़र आते है । कोई इधर से क़हकहा लगाता है , कोई उधर से आवाज़े कसता है । रामकली हँ स रह ह। मज़ाको का बरजःता जवाब दे ती है । कभी चादर को खसकाती है , कभी दप ु टे को स हालती है ।

एक आदमी ने उससे पूछा—सेठानी जी, यह कौन है ?

रामकली—ये हमार सखी ह ज़रा दशन कराने िलवा लगी थी।

दसरा ू —नह ं, ज़ र लाया करो, ओ हो

या

प है

बारे ख़ुद-ख़ुद करके उन आदिमय से िनजात िमली। पूणा बेतहाश

भागी। रामकली भी उसके साथ हई। घर पर आकर पूणा ने अहद कया क ु अब कभी म दर न जाऊँगी।

62

आठवॉ बाब दे खो तो दलफ़रे बये अंदाज़े न

मौजे ख़ुराम यार भी

पा

या गुल कतर गयी।

बेचार पूणा ने कान पकड़े

क अब म दर कभी न जाऊँगी। ऐसे

म दर पर इ दर का बज़ भी िगरता। उस दन से वो सारे दन घर ह पर बैठ रहती। व

कटना पहाड़ हो जाता। न कसी के यहॉ आना न जाना।

कसी से र त-ज त, न कोई काम न धंधा। दन कटे तो

ज़ र, मगर पढ़े ज़माने क

पड़

या? दो-चार

कःसे-कहािनयॉ क

यूँ कर? पढ़े तो

कताब पं डत जी के

हई ु थीं मगर उनम अब जी नह ं जगता था। बाज़ार

जानेवाला कोई न था

जससे

कताब मंगवाती। ख़ुद जाते हए ु उसक



फ़ना होती थी। ब लो इस काम क न था। और सौदा-सुलफ़ तो वो बाज़ार से लाती मगर ग़र ब कताब का मोल

या जाने? दो-एक बार जी मे आया

क कोई कताब ूेमा के घर से मँगवाऊँ मगर फर कुछ समझकर खामोश हो रह । गुल-बूटे बनाने असके आते ह न थे। सीना जानती थी मगर िसये या?ये रोज़ बेशग़ली उसको बहत ु खलती थी और हरदम उसको मुतफ़ कर-

ओ-मग़मूम रखती थी।

ज़ दगी का चँमा ख़ामोशी के साथ बहता चला

जाता था। हॉ, कभी-पंडाइन व चौबाइन मय अपने चेले-चपाड़ के आकर कुछ िसखावन क बात सुनाती जाती थी। अब उनको पूणा से कोई िशकायत बाक़ न रह गयी थी, बजुज इसके क बाबू अमृतराय

यूँ आया करते ह।

पूणा ने भी खु लम-खु ला कहा दया था क म उनको ओन से रोक नह ं

सकती। और न कोई ऐसा बताव कर सकती हँू जससे उनको मालूम हो क मेरा इसको नागवार मालूम होता है । सच तो यह है क पूणा को अब इन मुलाक़ात म मज़ा आने लगा था। ह ते-भर कसी हमदद क सूरत नज़र न आती। कसी से हँ सकर बोलने को जी तरस जात। पस, जब इतवार आता

तो सुबह ह से अमृतराय के ख़ैर मक़दम क तैया रयॉ होने लगतीं। ब लो बड़ तं दह से सारा मकान साफ़ करती, दरवाज़े के मक़ बल का सेहन भी साफ़

कया जाता। कमरे कुिसयॉ, तसीवीर बहत ु क़र ने से आराःता क

जाता। ह ते भर का जमा हआ गद -गुबार दरू कया जाता। पूणा ख़ुद भी ु

मामूल से अ छे और साफ़ कपड़े पहनती। हॉ, सर म तेल डालते या 63

आइना—कंघी करती हए ु वो डरती थी। जब बाबू अमृतराय आ जाते तो नह ं मालूम

यूँ पूणा का म म चेहरा कु दन क तरह दमकने लगता। उसक

यार सूरत और ज़यादा यार मालूम होने लग़ती। जब तक बाबू साहब बैठे रहते, वो इसी कोिशश म रहती क

या बात क ं

जसमे ये यहॉ से खुश-

खुश जाव। वो उनक ख़ाितर से हँ सती-बोलती। बाबू साहब ऐसे हँ समुख थे क क रोते को भी एक बार ज र हँ स दे ते। यहॉ वो खूब बुलबुल क तरह चहते। कोई ऐसी बात न करते

जससे पूणा के दल म रं ज मलाल का

शयेबा भी पैदा हो। जब उनके चललने का व

तो पूणा नह ं मालूम

यूँ

कुछ उदास हो जाती। बाबू साहब इसको इसको ताड़ जाते और पूणा के ख़ाितर से कुछ दे र और बैठते। इसी तरह कभी-कभी घंट बैठ जाते। जब िचराग़ म ब ी पड़ने का व

आ जाता, बाबू साहब चले जाते और पूणा

कुछ दे र तक इधर-उधर बौखलायी हई ु घूमती। जो-जो बात हई ु होती उनको फर से दोहराती। ये व

उसको एक दलख़ुशकुन ख़ाब-सा मालूम होता।

इसी तरह कई मह ने गुजर गये और आ ख़रश जो बात बाबू अमृतराय के दल म थी वो क़र ब-कर ब पूर हो गयी। यानी पूणा को अब मालूम होने लगा क मेरे दल म उनक मुह बत समाती जाती है । अब बचार पूणा पहले से भी

यादा उदास रहने लगी। हाय, ओ दल ख़ाना-ख़राब,

या एक

बार मुह बत करने से तेरा जी नह ं भरा जो तूने नपयी कुलफ़त मोल ली। वो बहत ु कोिशश करती क अमृतराय का ख़याल दल म ने आने पाये मगर कुछ बस न चलता।

अपने दल क हालत के अ दाज करने का उसको यूँ मौका िमल क

एक राज बाबू अमृतराय व

मुअ यना पर नह ं आये। थोड़ दे र तक तो

ज़ त कये उनक राह दे खती रह मगर जब वो अब भी न

ये तब उसका

दल कुछ मसोसने लगा। बड़ बेसॄी से दौड़ती हई ु दरवाज़े पर आयी और

किमल आधा घ ट तक कान लगाये खड़ रह । क ब पर कुछ वह कै फयत तार होने लगी जो पं डत जी के दौर पर जाने के व

हुआ करती। शुबहा

हआ क कह ं दँमन क तबीयत नासाज़ तो नह ं हो गयी। आंख म ऑ ंसू ु ु

भर आये। महर

से कहा— ब लो, ज़रा जाओ दे खा तो बाबू साहब क

तबीयत कैसी है ? नह ं मालूम

यूँ मेरा दल बैठा जाता है । ब लो को भी

बाबू साहब के ब ाव ने िगर ादा बना िलया था और पूणा को तो वो अपनी लड़क समझती थी। उसको मालूम होता जाता था क पूणा उनसे मुह बत 64

करने लगी है । मगर उसक समझ म नह ं आता था क इस मुह बत का नतीजा

या होगा। यह सोचते- वचारते के बाबू साहब के दौलतख़ाने पर

पहँु ची। मालूम हआ क वो आज दो-तीन ख़द मतगार के साथ लेकर बाज़ार ु

गये हए ु है । अभी तक नह ं आये। पुराने बूढ़ा कहार जो बावजूद बाबू साहब

के मुतवा र तकाज़ के आधी टॉग क धोती बॉधता था, बोला—बेटा, बड़ा

खतब जमाना आवा है । हजार का सौदा होय तो, दइु हजार का सौदा होय तो हम ह िलयावत रहे न। आज खुद आप गये है । भला इतने बड़े आदमी का अस चाहत रहा। बाक

फर अब अंमेजी जमाना आवा है । अंमजी-पढ़न-पढ़न

के जन हई ु जाय तौन अचरज नह ं है ।

ब लो यहॉ से खुश-खुश बूढ़े कहार के िसर हलाने पर हँ सती हई ु

घर को वापस हई। इधर जब से वो आयी थी पूणा क अजब कै फयत हो ु रह थी कसी पहल तैन ह नह ं आता था। उसे मालूम होता था क ब लो

क वापसी म भी दे र रह है । इसी असना म जूत क आवाज़ सुनायी द । वो दौड़कर दरवाज़े पर आयी और बाबूसाहब को टहलते हए ु पाया तो गोया उसको नेमत िमल गयी। झटपट अ दर से दरवाज़ा खोला दया, कुस कर ने

से रख द , और अ द नी दरवाज़े पर सर नीचा करके खड़ हो गयी। बाबू साहब लबाद पहने हए ु थे। एक कुस पर लबादा र खा और बोल- ब लो कह ं

गयी है

या?

पूणा—(लजाते हए ु ), जी हॉ, आप ह के यहॉ तो गयी है । अमृतराय-मेरे यहॉ कब गयी?

यूँ, कोई ज रत थी?

पूणा—आपके आने म बहुत दे र हई ु ु तो मने समझा शायद दँमन

क तबीयत कुछ नासाज़ हो गयी हो, उसको भेजा क जाकर दे ख आ।

अमृतराय—( यार क िनगाह से दे खकर) मुझे स त अफ़सोस हआ ु

क मेरे दे र करने से तुमको तकलीफ़ उठानी पड़ । फर अब ऐसी ख़ता न होगी। म जरा बाज़ार चला गया था। ये कहकर उ ह ने एक बार ज़ोर से पुकार—सुखई, अ दर आओ। और एक लमहे म दो-तीन आदमी कमरे म दा खल हए। एक के ु

हाथ म ख़ूबसूरत लोहे का स दक के हाथ म तह कये हए ू था और दसरे ू ु कपड़े थे। सब सामान त पूणा, मुझे उ मीद है

पर धर दया गया। बाबू साहब ने फ़रमाया—

क तुम ये सब चीज़े कबूल करोगी। च द रोज़ाना

ज रयात क चीज है (हँ सकर) ये दे र म आने का जुमाना है । 65

पूणा उन लोगो म न थी जो कसी चीज़ को लेना तो चाहते ह मगर वज़ा क पाब द के िलहाज से दो-चार बार ‘नह ं’ करना फ़ज समझते है । हॉ उसने इतना कहा—बाबू साहब, म आपका इस इनायत के िलए शु बया अदा करती हँू । मगर मेरे पास तो जो कुछ आपक फ याज़ी के बदौलत है वह

ज रत से

यादा है । म इतनी चीज़ लेकर

या क ँ गी’’

अमृतरारय—जो तु हारा जी चाहे करो। तुमने क़बूल कर िलया और मेर मेहनत ठकाने लगी। इसी असना म

ब लो पहँु ची। कमरे म बाबू साहब को दे खते ह

िनहाल हो गयी। जब त त पर िनगाह पहँु ची और उन चीज़ को दे खा तो

बोली— या इसके िलए आप बाज़ार गये थे?

या नौकर-चाकर नह ं थे? बूढ़ा

कहार रो रहा था क मेर दःतूर मार गयी। अमृतराय—(हँ सकर दबी ज़बान से) वो सब कहार मेरे नौकर ह। मेरे िलए बाज़ार से चीज़ लाते है । तु हार सरकार का म नौकर हँू ।

ब लो यह सुनकर मुःकराती हई ु अ दर चली गयी तो पूणा ने कहा—

आप बज़ा फ़रमाते है , म तो खुद आपक ल डय क ल ड हँू ।

इसके बाद च द और बात हई। माघ-पूस का ज़माना था। सद स त ु

पड़ रह थी। बाबू अमृतराय

यादा दे र तक बैठा न सके। आठ बजते-बजते

दौलखाने क तरफ़ रवाना हए। उनके जाते ह पूणा ने फ़त इ ँतयाक़ से ु

लोहे का स दक ू खोला तो दं ग रह गयी। उसम ज़नाने िसंगार क तमाम चीज मौजूद थीं, आला दज क —खुशनुमा आइना, कंघी, खुशबूदार तेल क

शीिशयॉ, मूबाफ़ हाथ के कंगन और गले का हार जड़ाऊँ, नगीनेदार चू ड़यॉ,

एक िनहायत नफ़ स पायदान,

हपरवर इत रयात से भर हई ु एक छोट -सी

स दक़ची , िलखने-पढ़ने के सामान, च द क़ःसा-कहानी क ू

कताब, अलावा

इनके च द ू और तक लुफ़ात क चीज़ क़र ने से सजाकर धर हई ु थीं। कपड़े खोले तो अ छ

से अ छ

सा ड़यॉ नज़र आयी। शबती, गुलनार , धानी,

गुलाबी, उन पर रे शमी गुलबूटे बने हए ु :चादरे , खुशनुमा, बार क, खुशवज़ा— ब लो इनको दे ख-दे ख जामे म फूली न समाती थी—वह ये सब चीज़ जब

तुम पहनोगी तो रानी हो जाओगी, रानी। पूणा—(िगर हई ु आवाज) कुछ भंग खा गयी हो

या ब लोख ् म ये

चीज़ पहनूँगी तो जीती बचूँगी चौबाइन व सेठाइन ताने दे -दे कर मार डालेगी। 66

ब लो-ताने

या दगी, कोई द लगी है , उनके

बाप का इसम

या

इजारा। कोई उनसे कुछ मॉगने जाता ह। पूणा ने

ब लो को है रत और इःतेजाब क िनगाह से दे खा। यह

ब लो है जो अभी दो घ टे पहले चौबाइन और पंडाइन क हमख़ायल थी, मुझको पहने-ओढ़ने से बार-बार मना

कया करती थी। यकायक ये

कायपलट हो गयी, बोली—मगर ज़माने के नेको-बद का भी

या

याल होता है ।

ब लो—म यह थोड़ कहती हँू क हरदम ये चीज़ पहना करो। ब क

जब बाबू साहब आवे।

पूणा-(शमाकर) यह िसंगार करके मुझसे उनके सामने

य कर आया

जायागा। तु ह याद है एक बार ूेमा ने मेरे बाल गूथ ँ दये थे जसको आज मह न बीत गये। उस दन वो मेर तरफ ऐसा ताकते थे क बेअ

यार

क़ाबू से दल बाहर हआ जाता था। मुझसे फर ऐसी भूल न होगी। ु ब लो—नह ं बहंू उनक मज यह है तो

या करोगी। इ ह ं चीज़ो के

िलए वो बाज़ार गये थे। सैकड़ नौकर-चाकर ह मगर इन चीज़ को खुद जाकर लाये। तुम उनकासे पहनोगी तो वो पूणा(चँमेपुरआब होकर)

या कहगे?

ब लो, बाबू अमृतराय नह ं मालूम

करानेवाला ह। कुछ तु ह ं बतलाओ म

या क ँ । वो मुझसे

ज़यादा मुह बत जताते है म अपने दल को

या

दन- दन

या कहँू । तुमसे कहते शम

आती है । वो भी कुछ बेबस हआ जाता है । मोह लेवाले अलग बदनाम कर ु

रहे है । नह ं मालूम ई र को

या करना मंजरू है ।

ब लो—बहू, बाबू साहब का िमज़ाज ह ऐसा है

लेता ह। इसम तु हारा

क दसर को लुभी ू

या कुसूर है । इस गु तगू के बाद पूणा तो सोने

चली गयी और ब लो ने तमाम चीज़ उठाकर कर ने से र खी। सुबह उठकर पूणा ने जो कताब पढ़ाना शु

क जो बाबू साहब लाये थे। और

पढ़ती उसको मालूम होता क कोई मेरा ह

यूँ- यूँ

कःसा कह रहा है । जब दो-एक

सफ़े पढ़ लेती तो एक मह बयत के आलम म घंट द वार क तरफ ताकती और रोती। उसको बहत ु -सी बात अपनी हालत से िमलती हई ु नजर आयी।

इन कःस म जो जी लगा तो इधर-उधर के तफ़ कुरख़ेज गये। और वो ह ता उसने पढ़ने म कटा। आया। सुबह होते ह

य़ालात दरू हो

फर आ खर इतवार का

दन

ब लो ने हँ सकर कहा---आज साहब के आने का दन

है । आज ज र से ज र तुमको गहन पहनने पड़गे। 67

पूणा—(दबी हई ु आवाज़ से) आज तो मेरे सर म दद होता है ।

ब लो—नौज, तु हारे बैर का सर दद न करे जो तुमको दे ख न सके।

ू गा। इस बानेसे पीछा न छटे

पूणा—और जो कसी ने मुझे तना दया तो जानना। ब लो—जाने भी दो बहू, कैसी बात मुह ँ से िनकालती हो। कौन है

कहनेवाला।

सुबह ह से ब लो ने पूणा का बयान-िसंगार शु

कया। मह न से

सर न मला गया था, आज खुशबूदार मसाले से मला गया। तेल डाला गया। कंघी क गयी। रे शमी मूबाफ़ लगाकर बाल गूथ ँ े गय। और जब सेह-पहर को

पूणा ने गुलाबी कुत पहनकर उसपर रे शमी काम क शबती साड़ , पहनी, हाथ म चू ड़यॉ कंगन सजाये तो वो बलकुल हर ू होने लगी। कभी उसने ऐसे

बेशक़ मत और पुरतक लुफ़ कपड़े न पहने थे और न वह कभी ऐसी सुघड़ मालूम हई ु थी। वो अपनी सूरत आप दे ख-दे ख कुछ खुश भी होती थी, कुछ

शमाती भी थी और कुछ अफ़सोस भी करती थी। जब शाम का व

आया

तो पूणा कुछ उदास मालूम होने लगी। ताहम उसक ऑ ंख दरवाज़े पर लगी हई ु थीं। पॉच बजते-बजते मामूल से सबेर बाबू अमृतराय तशर फ़ लाये। ब लो से ख़ैरोआ फ़यत पूछ और कुस पर बैठ के

कसी के द दार के

इ ँतयाक़ म अ द नी दरवाज़ के तरफ टकटक लगाकर दे खने लगे। मगर पूणा वहॉ न थी। कोई दस िमनट तक तो बाबू साहब ने खामोशी से इ तज़ार कया। बाद म अज़ॉ ब लो से पूछा – यूँ मह रन, आज तु हार सरकार कहॉ ह?

ब लो—(मुःकराकर) घर ह म तो है ।

अमृतराय—तो आयीं

यूँ नह ? आज कुछ नारज़ ह

या?

ब लो—(हँ सकर) उनका मन जाने। अमृतराय—ज़रा जाकर िलवा आओ। अगर नाराज ह

तो चलकर

मनाऊँ। ये सुनकर

ब लो हँ सती हई ु अ दर गयी और पूणा से बोली—बहू,

उठोगी या वो आप ह मनाने आते है ।

पूणा ने अब कोई चारा न दे खा तो उ ट और शम से सर झुकाये और घूँघट िनकाले बदन को चुराती, लजाती, बल-खाती, एक हाथ मे िगलौर दान िलये दरवाज़ पर आकर खड़ हो गयी। अमृतराय ने मुतहै यर होकर दे खा। 68

ऑ ंख चुँिधया गयीं। एक लमहे तक मह वयत का आलम तार रहा। बाद अज़ॉ मुःकराकर बोले—चँमे बद दर। ू

पूणा—(लजाती हई ु ) िमज़ाज तो आपका अ छा है ?

अमृतराय—(ितरछ

िनगाह

से दे खकर) अब तक अ छा था। मगर अब

ख़ै रयत नह ं नज़र आती। पूणा समझ गयी। अमृतराय के संजीदा मज़ाक का मज़ा लेते-लेते वो कुछ हा ज़रजवाब हो गयी। है । बोली—अपने कये का

या इलाज?

अमृतराय— या से कसी को ख़ामाख़ाह क दँमनी है । ु

पूणा ने शमा के मुँह फेरा िलया। बाबू अमृतराय हँ सने लगे और पूणा क तरफ़ यार क िनगाह से दे खा। उसक हा ज़रजवाबी उनको बहत ु भायी।

कुछ दे र तक और ऐसे ह लु फआमोज़ बात का मज़ा लेते रहे । पूणा को भी याल न था क मेर ये बेतक लुफ और बज़लासंजी मेरे िलए मौजूँ नह ं है । उसको इस व

न पंडाइन का ख़ौफ़ था। न पड़ोिसय का डर। बात ह

बात म उसने मुःकराहट अमृतराय से पूछा-आपके आजकल ूेमा क कुछ ख़बर िमली है ? अमृतराय—नह ं, पूणा, मुझे इधर उनक

कुछ ख़बर नह

थी। हॉ,

इतना अलब ा जानता हँू क बाबू दाननाथ से क़राबत क बातचीत हो रह है ।

पूणा—स त अफ़सोस है

क उनक

कःमत म आपक बीवी बनना

नह ं िलखा है । मगर उनका जोड़ है तो आप ह से। हॉ, आपसे भी कह ं बातचीत हो रह थी। फ़रामाइए वो कौन खुशनसीब है । वो दन ज द आता क म आपक माशूक से िमलती।

अमृतराय—(पुरहसरत लहजे म) दे ख कब कःमत यावर करती है । मने अपनी कोिशश म तो कुछ उठा नह ं र खा। पूणा—तो

या उधर ह से खंचाव है , ता जबु है

अमृतराय—नह पूणा, म जरा बद क़ःमत हँू , अभी तक कोई कोिशश

कारागर नह ं हई। मगर सब कुछ तु हारे ह हाथ म है । अगर तुम चाहो तो ु

मेरे सर कामयाबी का सेहरा बहत ु ज द बँध सकता है । मने पहले कहा था

और अब भी कहता हँू

क तु हार ह रज़ाम द पर मेर कामयाबी का

दारोमदार है ।

69

पूणा है रत से अमृतराय क तरफ दे खने लगी। उसने अब क बार भी उनका मतलब साफ़-साफ़ न समझा। बोली—मेर तरफ़ से आप ख़ाितर जमा र खये। मुझसे जहॉ तक हो सकेगा उठान रखूग ँ ी। अमृतराय—इन अलफ़ाज का याद रखना पूणा, ऐसा न हो क भूल जाओ। नह ं तो मुझ बेचारे के सब अरमान खाक म िमल म िमल जायगे। ये कहकर बाबू अमृतराय उ ठे और चलते व

पूणा क तरफ़ दे खा।

बेचार पूणा क ऑ ंख डबडबायी हई ु थी गोया इ तजा कर रह थी क जरा

दे र और बै ठये मगर अमृतराय को कोई ज़ र काम था। उ ह ने उसका हाथ अ हःता से िलया और डरते-डरते उसको चूमकर बोले— यार पूणा, अपनी बात को याद रखना। ये कहा और दम के दम म गायब हो गये। पूणा खड़ रहती रह गयी और एक दम म ऐसा मालूम हआ क कोई दलखुशकुन ु खुलते ह ग़ायब हो गया।

70

वाब था जो ऑ ंख

नवाँ बाब

तुम सचमुच जादगार हो ू

बाबू अमृतराय के चले जाने के बाद पूणा कुछ दे र तक बदहवासी के आलम म खड़ रह । बाद अज़ॉ इन

यालात के झुरमुट ने उसको बेकाबू कर

दया। आ खर वो मुझसे

या चाहते है । म तो उनसे कह चुके क मै आपक

कामयाबी क कोिशश म कोई बात उठा न रखूग ँ ी। फर यह मुझसे क़दर मुह बत जताते है

यूँ इस

यूँ ख़ामाख़ाह मुझको गुनाहागार करते है । म उनक

उस मोहनी सूरत को दे खकर बेबस हो जाती हँू । हाय-आज उ ह ने चलते



मुझको

वह मुझसे यह

यार पूणा कहा था और मेरे हाथ के बोस िलये थे, नारायन

या चाहते है ? अफ़सोस इस मुह बत का नतीजा

या होगा?

याल करते-करते उसने नतीजा जो सोचा तो मारे शम के चेहरा

ु छपा िलया। और खुद ब खुद बोल:

ना-ना, मुझसे ऐसा होगा। अगर उनका यह बताव मेरे साथ बढ़ता गया तो मेरे िलए िसवाय जान दे ने के और कोई इलाज नह ं है । म ज़ र ज़हर खा लूँगी। इ हं

यालात म गलतॉ थी

क नींद आ गयी। सबेरा हआ ु , अभी

नहाने जाने क तैयार कर ह रह थी आकर

क बाबू अमृतराय के आदमी ने

ब लो को बाहर से ज़ोर से पुकारा और उसको एक सरबमोहर

िलफ़फ़ा मय छोटे -से ब स के दकर अपनी राह लगा। ब लो ता जुब करती हई ु अ दर आयी और पूणा को वह ब स

दखाकर ख़त पढ़ने को

उसने कॉपते हए ु हाथ से ख़त को खोला तो यह िलखा था। यार पूणा,

जस

दन से मने तुमको पहले दे खा है उसी

दया।

दन से

तु हारा शैदाई हो रहा हँू और यह मुह बत अब इ तहा तक पहँु च गयी है ।

ु मन नह ं मालूम कैसे इस आग को अब तक छपाया है । पर अब यह

सुलगापा नह ं सहा जात। म तुमको स चे दल से

यार करता हँू और अब

मेर तुमसे यह इ तजा है क मुझको अपनी गुलामी म कुबूल करो। म कोई

नाजयज़ इरादा नह ं रखता। नारायन, हरिगज नह ं। तुमसे बाक़ायदा तौर पर शाद

कया चाहता हँू । ऐसी शाद बेशक अनोखी मालूम होगी। मगर मेर

बात यक न मानो क अब इस दे श म ऐसी शाद कह ं-कह ं होने लगी है । 71

इस ख़त के साथ म तु हारे िलए एक जड़ाऊ कंगन भेजता हँू । शाम को म

तु हारे दशन को आऊँगा। अगर कंगन तु हर कलाईय पर नज़र आया तो समझ जाऊँगा

क मेर दरख़ाःत कुबूल हो गयी, वना दसरे ू

दन शायद

अमृतराय फर तुमसे मुलाकात करने के िलए ज दा न रहे ।

तु हार शैदाई अमृतराय’’ पूणा ने इस ख़त को गौर से पढ़ा। उसको उससे ज़रा भी ता जुब नह ं हआ। ऐसा मालूम होता था क कसी क मु त ज़र थी। उसने ठान िलया था ु क

जस

दन बाबू साहब मुझसे खु लमखु ला तअँशुक जातायगे और

नाजायाज़ पेश करगे उसी दन मै उनसे

बलकुल क़ता कर लूँगी। उनक

तमाम चीज़े उनके हवाले कर दँ ग ू ी और फर जैसे बीतेगा बताऊँगी। मगर इस खत को पढ़कर उसको अपने इरादे म कमज़ोर य क उसको

वाब म भी

याल न था क बाबू साहब बाक़ायदा शाद

करे गे और न उसको वहम ह था

क बेवाओं क शा दयॉ होती है सबसे

बढ़कर यह बात थी बरहमन और छऽी म ता लुक छऽी, पस मेरा उनका

मालूम होने लगी।

या? म बरहमनी वो

या इलाका कुछ नह ं। उनक चालाक है । वो मुझे

घर रखा चाहते है । मगर यह

मुझसे न होगा। मेरे दल म मुह बत ज़ र

है । मुझे आज तक ऐसी मुह बत

कसी और क नह ं मालूम हई। मगर ु

मुझसे मुह बत क ख़ाितर इतना बड़ा पाप न उठाया जाएगा। मेर खुशी तो इसम है क उनको नज़र भर के दे खा क ँ और उनक सेहत क खुशखबर पाया क ँ । मगर हाय, इस खत के आ खर जुमले ग़ज़ब के है । कह ं मेरे इनकार से उनके दशमन का बाल भी बीका हआ तो म बेमौत मर जाऊँगी। ु ु या ई र म

या क ँ मेर तो कुछ अक़ल काम नह ं करती।

ब लो पूणा के चेहरे का चढ़ाव-उतार बड़े ग़ौर से दे ख रह थी। जब वो ख़त को पढ़ चुक तो उसने पूछा— यूँ बहू, या िलखा है ? पूणा---(संजीदा आवाज से)

या बताऊँ

या िलखा है ।

ब लो— यूँ ख़ै रयत तो है , काई बुर सुनावनी तो नह ं है ? पूणा—हॉ

ब लो, इससे

ज़याद बुर

अमृतराय कहते ह क मुझसे..

72

सुनावानी हो ह

नह ं सकती।

उससे और कुछ न कहा गया। ब लो समझ गयी मगर वह ं तक पहँु ची जहॉ

तक उसक अ ल ने मदद क । वो अमृतराय क बढ़ती हई ु

मुह बत को दे ख-दे ख दल म समझ गयी थी क वो एक न एक दन पूणा

को अपने घर ज र डालगे। पूणा उनसे मुह बत करती है । उन पर जान दे ती है । वो पहले बहत ु पसोपेश करे गी। मगर आ ख़र मान जाएगी। उसने सैकड़ रईस

को दे खा था

क नाइनो, कहा रय

को घर डाल िलया करते है ।

ग़ािलबन इस हालत म भी ऐसा होगा। इसम उसको कोई बात अनोखी नह ं

मालूम होती थी।

य क उसको यक न न था क बाबू साहब पूणा से स ची

मुह बत करते है । मगर बेचारे िसवाय इसके और कर ह

या सकते ह क

उसको घर म डाल ल। चुनांचे जब उसने पूणा को यूँ बात करते दे खा तो ताड़ गयी क आज़माईश का मौका है वो जानती थी क अगर पूणा राज़ी हई ु तो उसक ब कया ज दगी बड़े आराम से कटगी। बाबू साहब भी िनहाल हो जाऍंगे और म बूढ़ भी उनक बदौलत आराम क ँ गी। मगर कह ं उसने इनकार कया तो दोन क उसने पूणा से पूछा—तुम

ज दगी का त ख हो जाएगी। यह बात सोचकर या जवाब दोगी?

पूणा—जवाब, इसका जवाब िसवाय इनकार के और हो ह

या

सकता है ? भला वधवाओं क शाद कह ं हई ु और वो भी बरहमनी क छऽी

से। मने इस कःम के कःसे उन कताब म पढ़े थे जो बाबू अमृतराय मुझे दे गये ह। मगर वो कःसे ह, तुमने कभी ऐसा होते भी दे खा है । ब लो समझी थी क बाबू अमृतराय उसको घर डालने क कोिशश

म ह। शाद का तज करा सूना तो है रत म आ गयी। बोली—भला ऐसा कह ं

भया है ? बाल सफेद हो गयो मगर ऐसा याह नह ं दे खा।

पूणा— ब लो, ये शाद — याह सब बहानेबाजी ह। उनका मतलब म समझ गयी। मुझसे ऐसा न होगा। म जहर खा लूँगी। ब लो—बहू, ऐसी बात जबान से मत िनकालो। वो बेचारा भी तो

अपने दल से नाचार ह,

या करे ?

पूणा—हॉ ब लो, उनको नह ं मालूम

यूँ मुझसे मुह बत हो गयी है ।

और मेरे दल का हाल तो तुमसे िछपा नह ं मगर काश वो मेर जान मॉगते तो म अभी दे दे ती। ई र जानता है , म उनके जरा-से इशारे पर अपने को िनछावर कर सकती हँू । मगर वो जो चाहे चाहते ह, वो मुझसे नह ं होने का।

उसका ख़याल करते ह मेरा कलेजा कॉपने लगाता है । 73

ब लो—हॉ भलेमानुस म तो ऐसा नह ं होता। कमीन म डोला आता

ू है । मगर बहत ू सच तो यह है , अगर तुम इ कार करते हो उनका दल टट

जाएगा। मुझे तो डर है क कह ं वो जान पर न खेल जाऍं। और ये तो म कह सकती हँू

क उनसे

बछड़ने के बाद तुमसे एक दम बेरोये न रहा

जाएगा। चाहे तुमको बुरा लागे या भला। पूणा—यह बस तो तुम सच कहती हो पर आ खर म

मुझसे झूठ-सच शाद कर लेगे। शाद

मगर ज़माना मालूम

या क ँ । वो

या करगे, शाद का नाम करगे।

या कहे गा। लोग अभी से बदनातम कर रहे है , तब तो नह ं

या हो जायेगा। सबसे बेहतर यह है क जान दे दँ ।ू न रहे बॉस न

बजे बॉसुर । उनको दो-चार दन तक अफ़सोस होगा आ ख़र भूल जाऍंगे। मेर तो इ ज़त बच जाएगी। वो कहते है क ऐसी शा दयॉ कह ं-कह ं होती है । जाने कहॉ होती है , यहॉ तो होती नह ं। यहॉ क बात यहॉ है , ज़माने क बात जमाने म है । ब लो—ज़रा इस ब स को तो खोलो, दे खो इसम

या है ।

ु पूणा खत पढ़कर परे शान हो रह थी क अभी तक ब स को छआ भी न था। अब जो उसको खोला तो अ दर स ज मख़मल म िलपटा हआ एक ु क़ मती कंगन पाया।

ब लो—ओ हो, इस पर तो जड़ाऊ काम कया हआ है ु

पूणा—उ ह ने इस ख़त म िलखा है क म शाम को आऊँगा और अगर तुमको यह कंगन पहने दे खग ूँ ा तो समझ जाऊँगा क मेर मंजरू है नह ं तो दसरे दन दँमन ज दा न रहे गे। ू ु

ब लो— या आज ह शाम को आवेगे?

पूणा—हॉ, आज ह शाम को तो आयेगे। अब तु ह ं बतलाओ

क ँ । कससे जाकर इलाज पूछू ँ ।

या

यह कहकर पूणा ने दोन हाथ से अपनी परे शानी ठ क और ख़ामोश बैठकर सोचने लगी। नहाने कौन जाता है , खाने-पीने क

कसको सुध है ।

दोपहर तक बैठ सोचा क मगर दमाग ने कोई क़तराई फैसला न कया। हॉ यूँ- यूँ शाम का व

कर ब आता था

यू-ँ यूँ उसका दल धड़-धड़ करता

था क उसके सामने कैसे जाऊँगी। अगर वो कलाईय पर कंगन न दे खेगे तो या करगे। कह ं जान पर न खेल ज़ायँ। मगर तबीयत का कायदा है क जब कोई बात हद से ज़यादा महव करनेवाली होती है तो उस पर थोड़ा दे र 74

ग़ौर करने के बाद दमाग बलकुल बेकार हो जाता है । पूणा से अब सोचा भी न जाता था। वो पेशानी पर हाथ दये बैठ द वार क तरफ़ ताकती रह । ब लो भी खामोश मन मारे हई ु थी। तीन बजे होग

क यकायक बाबू

अमृतराय क मानूस आवाज़ दरवाज़े पर ‘ ब लो— ब लो’ कहते हए ु सुनायी

द । ब लो बाहर दौड़ और पूणा अपने कमरे म घुस गयी और दरवाज़े भेड़ िलया और उस व

उसका दल भर आया और ज़ारो क़तार रोने लगी।

इधर बाबू अमृतराय अज़हद बेचैन थे। ब लो को दे खते ह उनक मुँताक़

िनगाह बड़

तेजी से उसके चेहरे क

तरफ़ उठ ं मगर उस पर अपनी

कामयाबी क कोई बाउ मीद झलक न पाकर ज़मीन क तरफ़ गड़ गयीं दबी हई ु आवाज़ म बोले— ब लो, तु हार उदासी दे खकर मेरा दल बैठा जाता है । या कोई खुशख़बर न सुनाओगी?

ब लो ने हसरत से ऑख ं नीची कर लीं और अमृतराय ने आबद द होकर कहा—मुझे तो इसका ख़ौफ पहले ह था, कःमत को कोई

या करे

मगर ज़रा तुम उनसे मेर मुलाकत करा दे ती, मुझे उ मीद है क वो मुझ पर अपनी इनायत ज़ र करगी। म उनको आ ख़र बार दे ख लेता। यह कहते—कहते अमृतराय क

आवाज़ बेअ तयार कॉपने लगी।

ब लो ने उनको रोते दे खा तो घर म दौड़ गयी और बोली—बहू, बहू बेचार

खड़े रो रहे है । कहते है क मुझसे एक दम के िलए िमल जायँ।

पूणा—नह ं ब लो, म उनके सामने न जाऊँगी। हाय राम— या वो बहत ु रो रहे है ?

ब लो— या बताऊँ, बेचार क दोन ऑ ंख लाल ह।

है , कहा है क हमको आ खर बार अपनी सूरत दखा जाए। हाय, ये व

माल भीगा गया

बेचार कमज़ोर दलवाली पूणा के िलए िनहायत नाजुक

था। अगर कंगन पहनकर अमृतराय के सामने जाती है क ज दगी के सारे अरमान पूरे होते है , सार अ मेदे बर आती है । अगर

बला कंगन पहने

जाती है तो उनके अरमानो का खून करती है और अपनी तलख़। उस हालत म बदनामी है और

ज़ दगी को

सवाई, इस हालत म हसरत है और

नाकामी। उसका दल दबधे म है । आ खर बदनामी का ख़याल ग़ािलब आया। ु

वो घूँघट िनकालकर िनशःतगाह क तरफ़ चली। ब लो ने दे खा क उसक

हाथ पकड़कर खचा और चाहा क कंगन पहना दे मगर पूणा ने हाथ को

ु झटका दे कर छड़ा िलया और दम के दम म वो बाहरवाले कमरे के अ द नी 75

दरवाज़े पर आकर खड़ हो गयी। उसने अमृतराय क तरफ़ दे खा। ऑ ंख लाल थीं। उ ह ने उसक तरफ दे खा। चेहरे से हसरत बरस रह थीं। दोन िनगाह िमली। अमृतराय बेअ तयाराना जोश से उसक तरफ़ बढ़े और उसका हाथ लेकर कहा—पूणा, ई र के िलए मुझ पर रहम करो। उनके मुँह से कुछ न िलकाला। आवाज़ हलक़ म फँसकर रह गयी। पूणा क खु ार आज़ तक कभी ऐसी इ तहान म न पड़ थी। उसने रोते— रोते अपना सर अमृतराय के कंधे पर रख

दया कुछ कहना चाहा मगर

ू गया और वह तमाम जोश जो आवाज़ न िनकली। हाय खु ार का बॉध टट का हआ था उबल पड़ा। अमृतराय ग़ज़ब के न ज़शनास थे। समझ गये क ु

अब

ौका है । उ ह ने ऑ ंख के इशारे से ब लो से कंगन मँगवाया। पूणा को

आ हःता से कुस पर बठा दया। वो ज़रा भी न झझक । उसके हाथ म कंगन पहनाया। पूणा ने ज़रा भी हाथ न खींचा। तब अमृतराय ने जुरअत करके उसके हाथ को चूम िलया और उनक ऑख ं मारे खुशी के जगमगाने लगीं। रोती हई ु पूणा ने मुह बत िनगाह से उनक तरफ़ और बोली— यारे

अमृतराय, तुम सचमुच जादगर हो। ू

76

दसवाँ बाब

शाद हो गयी

तजुब क बात क बसा औकात बेबुिनयाद खबर दरू-दरू तक मशहर ू

हो जाया करती है , तो भला

जस बात क

कोई असिलयत हो उसको

ज़बानज़दे हर ख़ासोआम होने से कौन राक सकता है । चार तरफ मशहर ू हो रहा था क बाबू अमृतराय इसिलए बरहमनी के घर आया-जाया करते ह।

सारे शहर के लोग हलफ़ उठाने को तैयार रहते

क दोन

म नाज़ायज़

ता लुकात है । कुछ अस से चौबाइन व पंडाइन ने भी पूणा के शौको-िसंगारो पर हािशया चढ़ाना छाड

दया था। चूँ क वा अब उनक दािनँत म उन

कुयूद क पाब द न थी जनका हर एक बेवा को पाब द होना चा हए। जो लोग तालीमया रखते थे वे इन

ा थे और ह दःतान के द गर सूबेजात क भी कुछ खबर ु कःस

को सुन-सुनकर ख़याल करते थे। शायद इसका

नतीजा नकली शाद होगी हज़ारो बाअसर आशख़ास घात म थे क अगर यह हज़रत रात को पूणा के मकान क तरफ जाने लग तो ज दा वापस न जाए। अगर कोई अभी तक अमृतराय क नीयती क सफ़ाई पर एतबार करता था तो वो ूेमा थी। वा बेचार वफ़ादार लड़क ग़म पर ग़म और दख ु पर दख ु सहती थी। मगर अमृतराय क मुह बत उस पर सा दक़ थी। उसक

आस अभी तक बँधी हई कहता था क ु थी। उसके दल म कोई बैठा हआ ु

तु हार शाद ज़ र अमृतराय से होगी। इसी उ मीद पर वो जीती थी। और

जतनी ख़बर अमृतराय क िनःतबध मशहर ू होती थी उनपर वो कुछ यूँ ह -

सा यक़ न लाती थी। हॉ, अ सर उसको यह के घर बार-बार

याल पैदा होता था क पूणा

य आते है ? और शायद दे खते-दे खते, अपनी भावज और

सारे घर क बात सुनते-सुनते वह अमृतराय को बेवफ़-बदखु क समझने लगी है । मगर अभी तक उनक मुह बत उसके दल म ब ज सेह मौजूद थी। वो उन लोग मे थी जो एक बार दल का सौदा चुका लेते है तो फर अफ़सोस नह ं करते। आज बाबू अमृतराय मु ँकल से बँगले पर पहँु चे ह गे क उनक शाद

क ख़बर एक कान से दस ू रे कान फैलने लगी। और शाम होत-होते सारे

शहर म यह ख़बर गूज ँ रह थी। जो श स पहले सुनता तो एकबार न करता और जब उसको इस ख़बर क 77

सेहत का य़क न हो जाता है तो

अमृतराय को सलवाते सुनाता। रात तो कसी तरह कट । सुबह होते ह मुंशी बदर ूसाद साहब के दौलतख़ाने पर शहर के शुरफ़ा व उलमा उमरा व गुरबा मय कई हज़ार बरहन और शोहदो के जमा हए ु और तजवीज़ होने लगी क

ये शाद

यूँकर रोक जावे।

प डत भृगद ु — वधवा ववाह व जत है । कोई हमसे शा ाथ कर ले। कई आवार

ने िमलकर हॉक लगायी—हॉ, ज र शा ाथ हो। अब

इधर-उधर से सैकड़ पं डत व ाथ दबाये, सर घुटाये, और अँगोछा कॉधे पर

रखे मुँह म त बाकू को भरे एक जा-जमा हो गये और आपस म झकझक होने लगी क ज़ र शा ाथ हो। यह

ोक पूछा जावे और उसके जवाब का

य जवाब दया जावे। अगर जवाब म याकरण क एक ग़लती भी िनकलते तो फर फ़तह हमारे हाथ ह। बहत ु से कठमु ले गँवारे भी इसी जमाते म

शर क होकर शा ाथ िच ला रहे थे। बदर ूसाद साहब जहॉद दा आदमी थे। जब उन आदिमय

को शा ाथ पर आमादा दे खा तो फ़रमाया,

कससे

शा ाथ कया जाएगा। मान लो वह शा ाथ न कर तब? सेठ धूनीमल— बला शा थ कए याह कर लगे? (धोती स हालकर)— थान म रपट कर दँ ग ू ा।

ठाकुर ज़ोरावर िसंह (मूँछ

पर ताव दे कर)—कोई ठ ठा है

याह

करना। सर काट लूँगा। खून क न दयॉ बह जाएगी। राव साहब-बारात क बारात काट डाली जाएगी। उस व लगाना शु

सैकड़

आवारा शोहदे वहॉ आ डटे और आग म

धन

कया।

एक—ज र से ज र सर काट डालूँगा।

दसरा ू —घर म आग लगा दगे, बारात जल-भु न जाएगी। तीसरा—पहले उसे औरत का गला घ ट दगे।

शाद

इधर तो ये हड़ब ग मचा हआ था, खस िनशःतगाह म वोकला बैठ हए ु ु

के नाज़ायज़ होने पर क़ानूनी बहस रहे थे। बड़

गम

सी ज़खीम

ज द क वरक़िगरदानी हो रह थी। साल क पुरानी नज़ीर पढ़ जा रह थी ता क कोई क़ानूनी िगर

हाथ आ जाये। कई घ टे तक यह चह-पहल

रहा। आ खर खूब सर खपने के बाद यह राय हई क पहले ठाकुर ज़ोरावर ु

िसंह अमृतराय को धमका द। अगर वो इस पर भी न मान तो जस दन बारात िनकले सरे बाज़ार मारपीट हो और ये रे ज़ोलूशन पास करने के बाद 78

जलसा बखाःत हआ। बाबू अमृतराय शाद क तैया रय म मस फ़ थे क ु

ठाकुर ज़ोरावर िसंह का शु क़ा पहँु चा। िलखा था—

‘अमृतराय को ठाकुर ज़ोरावर िसंह क सलाम-बंदगी बहत ु -बहत ु तरह

से पहँु चे। आग हमन सुना है

क आप

कसी

वधवा

बरहमनी से

याह

करनेवाली है । हम आपस कहे दे ते है क भूलकर भी ऐसा न क जएगा बना आप जाने और आपका काम। ज़ोरावर िसंह अलावा एक मुतम वल और बाअसर आदमी होने के शहर के लठै त और शोहदो का सरदार था और बारहा बड़े -बड़ को नीचा दखा चुका था। उसक धमक ऐसी न थी जसका अमृतराय पर कुछ असर

न होता। इस

के को पढ़ते ह उनके चेहरे का रं ग उड़ गया। सोचने लगे

क उसको कसी हकमत से पेर लूँ क एक दसरा ू

गुमनाम था और मजमून भी पहले ह

का फर पहँु चा, ये

के से िमलता-जुलता था। उसके

बाद शाम होते-होते हज़ार ह गुमनाम पुरजे आये। कोई कहता था अगर फर

याह का नाम िलया तो घर म आग लया दे ग काई सर काटने को

धमकाता है , कोई पेट म लेगा भौकने के िलए तैयार बैठा था और कोई मूँछ के बाल उखाड़ने के िलए चुट कयॉ गम कर रहा था। अमृतराय ये तो जानते थे क शरावाले मुख़ािलफ़त ज र करे गे मगर इस कःसम क मुख़ािलफत का उनको वहमोगुमान भी न था। इन धम कय ने उ ह वाक़ई खौफ़जदा कर दया था और अपने से ज़यादा अ दे शा उनको पूणा के बारे म था क कह ं ज़ािलम उस बेचार को कोई अज़ीयत न पहँु चा द। चुनांचे वो व पहन बाइिस कल पर सवार हो चटपट म जःशे ट क और उससे तमामो-कमाला वाकया बयान

कपड़े

ख़दमत म हा जर हए ु

कया। अंमज म उनका अ छा

सूख़ था। न इसिलए क वो खुशामद थे इसिलए क वो रौनशख़याल और साफ़गो थे। म जःशे ट साहब उनके साथ बड़े अखलाक़ से पेश ओय। उनसे हमदद जतायी और उसी व

सुपर र टे डे ट पुिलस को तहर र कया क

आप बाबू अमृतराय क मुहा फज़त के िलए पुिलस का एक गारद रवाना कर दे और

ा कते

क शाद न हो जाय ख़बर लेते रह ता क मारपीट और

खून-ख़राब न हो जाये। शाम होते-होते तीस मुस ला िसपा हय क एक जमात उनक मदद के िलए आ गयी जनम से पॉच मजबूत और ज़सीम जवान को उ ह ने पूणा के मकान क

हफ़ज़त के िलए रवाना कर दया। 79

शहरवाल ने जब अमृतराय क पेशब दयॉ दे खी तो िनहायत—बरअफ़रो ता हए ु के म जःशे ट क ू और मुंशी बदर ूसाद ने मय कई बुजगा

ख़दमत म हा ज़र होकर फ़ रयाद मचायी क अगर सरकार दौलत मदार ने

इस शाद के रोकन को कोई ब दोबःत न कया तोबलवा हो जाने को अंदेशा है । मगर म जःशे टे से साफ़-साफ़ कह दया क सरकार को कसी श स के फेल म दःत दाज़ी करना मंजूर नह ं है ताव

े क अवाम को उसे फ़ेल से

कोई नुकसान न पहँु चे। यह टका-सा ज़वाब पाकर मुंशी जी स त महजूब

हए। वहॉ से जल-भुनकर मकान पर आये और अपने मुशार के साथ बैठकर ु

क़तई फ़ैसला कया क जस व

बारात चले उसी व

ू पचास आदमी टट

पड़। पुिलसवाल क भी खबर ल और अमृतराय क ह ड -पसली भी तोड़ के धर द। बाबू अमृमतराय के िलए वाक़ई यह नाजुक व का

था मगर वो क़ौम

दलदादा बड़े इ ःतक़लाल व जॉ फ़शानी से तैया रय म मस फ था।

शाद क तार ख़ आज से एक ह ते पर मुकरर क गयी चूँ क

जसादा

ताख़ीर करना ख़तरे से खाली न था और यह ह ता बाबू साहब ने ऐसी परे शानी म कटा जसका िसफ़ ख़याल कया जा सकता है । अलःसबाह दो कािन टः ल

के साथ

पःतौल



जोड़

लगाये रोज़ एक बार पूणा के

मकान पर आते। पूणा के मकान पर आते। पूणा बेचार मारे डर के के मर जाती थी। वो अपने को बार-बार कोसती

क मने

यूँ उनको उ मीद

दलाकर ज़हमत मोल ली। अगर ज़ािलम ने कह ं उनके दँमन को कोई ु

गज द पहँु चाया तो उसका क फ़ारा मेर ह गदन पर होगा। गो उसक

मुहा फ़ज़त के िलए कान ःट बल मामूर थे मगर वो रात-भर जागा करती। प ा भी खड़कता तो वह चौककर उठ बैठती। जब बाबू साहब को आकर उसके तसक न दे ते तब ज़रा उसके जान म

ान आती।

अमृतराय ने खुतूत इधर-उधर रवाना कर ह से चार दन पहले से शुरफा आने शु

दये थे, शाद क तार ख

हए। कोई ब बई से आता था, कोई ु

मिास, कोई पंजाब कोई बंगाल से। बनारस म रफाम से इ तहा दज का

इखितलाफ था और सारे ह दोःतान के रफ़ामर के जी से लगी हई ु थी क चाहे हो, बनारस म रफ़ाम को रोशनी फैलाने का ऐसा ना दर मौक़ा हाथ से

न दे ना चा हए। वो इतनी दरू क मं जले तय करके इसीिलए आये थे क

शाद का कामयाबी के साथ अंजाम तक पहँु चाये। वो जानते थे क अगर 80

इस शहर म ये शाद हो गयी तो फर इस सूबे के दसरे शहर के रफ़ामर ू

के िलए बड़

आसानी हो जाएगी। अमृतराय मेहमान

मशगूल थे और उनके पुरजोश पैरो

जनक



आवभगत म

तादाद किलज के दस-बारह

तुलबा पर महदद ू थी, साफ-सुथर पोशाक पहने ःटे शन पर जाकर मेहमानो क तक़द म करते और उनके तवाज़ो-तकर म म बड़ सरगम

दखाते थे।

शाद के दन तक यहॉ कोई डे ढ़ सौ शुरफा मुजतमा हो गये। अगर कोई श स ह दोःतान क रौशनी, हु दल ु वतनीव जोशे कौम को यकजा दे खपना

चाहता हो इस व

बाबू अमृत राय के माकन पर दे ख सकता था। बनारस

के पुराने खयालवाले अहसहाब इन तैया रय और मेहमान क कसरत को दल म है रानी होते थे। मुंशी बदर ूसाद साहब और उनके

दे ख-दे कर

हमख़याल आदिमय म कई बार मशवरे हए ु हए ु और हर बार कतई फ़ैसला हआ ु

क चाहे जो हो मगर मारपीट ज़ र



जाए। चुनांचे सारा शहर

आमादये जंगोकारज़ार था। शाद के क़ ल को बाबू अमृतराय अपने पुरजोश पैरव को लेकर पूणा

के मकान पर पहँु चे और वहॉ उनको बारितय क खाितर व तवाज़ो करने के

िलए मामूर

कया। बाद अज़ॉ पूणा के पास गये। वो उनको दे खते ह

आबद दा हो गयी। अमृतराय—(गले से लगाकर)

यार पूणा, डरो मत। ई र चाहे गा तो

दँमन हमारे बाल भी बीका न कर सकेगे। हम कोई गुनाह नह ं कर रहे है । ु कल जो बारात तु हारे दरवाज़े पर आएगी वैसी बारात आज तक शहर म कसी के दरवाज़े पर न आयी होगी। पूणा—मगर म

या क ँ ? मुझे तो ऐसा मालूम होता है क कल ज़ र

मार पट होगी। म चार तरफ़ यह ख़बर सुन रह हँू । इस व

भी मुंशी

बदर ूसाद के यहॉ लोग, जमा है ।

अमृतराय— यार , तुम इन बात का जरा भी अ दे शा न करो। मुंशी जी के यहॉ तो ऐसे मशवरे मह न से हो रहे है और हमेशा हआ करे गे। ु

इसका

या खौफ है ? तुम

दल को मज़बूत रखो। बस यह रात और

दरिमयान है । कल

यार पूणा मेरे ग़र बख़ाने पर होगी। हाय, वो मेरे िलए

कैसा खुशी का व

होगा।

पूणा यह सुनका वाक़ई अपने खौफ को भूल गयी। उसने अमृतराय को यार क िनग़ाह से दे खा और जब बाबू साहब चलने लगे तो उनके गले से 81

िलपट गयी और बोली— यार अमृतराय, तुमको मेर क़सम इन जािलम से बचते रहना। आफ़वह को सुन-सुन के मेर

ह फ़ना हई ु जाती है ।

अमृतराय ने उसे सीने से लश फ व दलासा दे कर अपने मकान को रवाने हए। शाम के व ु

पूणा के मकान पर कई पं डत जनक श ल से

शराफत बरस रह थी, रे ँमी िमजाइयॉ पहने, गले म फूल का हार डाले,

आये और वेद क र ित से रसूमात अदा करने लगे। पूणा दल ु हन क तरह सजायी गयी। भीतर-बाहर गैस क

रोशनी से मुन वर हो रहा था।

कािन ःट बल दरवाजे पर टहल रहे थे। वो नये खून और नयी रोशनी के तुलाब जनको अमृतराय यहॉ पर तैनात कर गये थे, तैया रय म मस फ थे। दरवाज़े का सेहन साफ़ कया जा रहा था। फ़श बछाया जा रहा था। कुिसयॉ आ रह थी। सार रात इ ह ं तैया रय म कट और अलःसबाह बारात अमृतराय के घर से रवाना हई। ु माशेअ ला,

या मह जब बारात था और कैसे मह जब बाराती, न

बाज़ो का धड़-धड़ पड़-पड़ , न

बगल



घो-प ,-पो न पाल कय

का

झुरमुट, न सजे हए ु घोड़ क िच लाप , न मःत हािथय का रे ल-पेल, न वद पोश असबरदार क कतार, न गुल न गुलदःते। ब क सफेदपोश क

एक जमात थी जो आ हःता-आ हःता चहलकदमी करती अपनी संजीदा र तार से अपनी मुःत कलिमज़ाजी का सुबूत दे ती हई ु चली जा रह थी।

हॉ, ई जाद यह थी क दो या जंगी पुिलस के आदमी व दयॉ डाले सीटे िलये

खड़े थे। सड़क के इधर-उधर जा-बजा झुंड के झुंड आदमी ला ठयॉ िलये जमा नज़र आते थे और बारात क तरफ दे ख-दे खकर दॉत पीसते।

मगर पुिलस का वो रोब था क कसी क़दम हलाने क जुरअत न

पड़ती। बाराितय हिथयार

के पचास क़दम के फ़सले पर

से लस घोड़े पर रनपटर

रज़व पुिलस के सवार

जमाये भाले चमकाते और घोड़

को

उछालते चले जाते थे। ताहम हा ल हा ये अ दे शा था क कह ं पुिलस के

ू न जाए। बारातीय खौफ का ये ितिलःम टट

के चेहरे से भी कािमल

इ मीनान नह ं जा हर होता था और बाबू अमृतराय जो इस व

िनहायत

खूबसूरत वज़ा क शेरावानी पहने हए ु थे, च क-च क कर इधर-उधर दे खते थे। ज़रा भी खटपट होती तो सबके कान खड़े होते। एक मतबा ज़ािलम ने

वाकई धावा बोल दया। फौरन चौतरफ़ा स नाटा छा गया मगर िमिलटर पुिलस ने

वक माच कया और दम के दम म च द शोरापुँत क मुँके 82

कस ली गयीं। फर कसी को अपनी मुफ़िसतापरदाज़ी को अमली सूरत म लाने का गुदा न हआ। बारे खुदा-खुदा करके कोई आधा घ टे मे बारात पूणा ु

के मकान पर पहँु ची। वहॉ पहले ह बाराती असहाब के खैर मक़दम का

सामान कया गया था। सेहन म फ़श लगा हआ था। कुिसय कर ने मस फ़ ु थे और कुंड के इद-िगद च द पं डतो बैठे हए ु वेद के

ोक बड़ खुशइलहानी

से गा रहे थे। हवन क खुशबू से सारा मुह ला मुअ र हा रहा था। बाराितय

के आते ह सब क परे शानी पर च दन और जफ़रान मला गया, सबके गल

म खूबसुरत हार पहनाये गये। बाद अज़ॉ द ू हा मय च द असहाब के मकान

के अ दर गया और वहॉ वेद र ित से शाद का रःम अदा कया गया। न गीत हआ न नाच न गाली-गलौज। बेचार पूणा को स हालनेवाली कोई न ु था, िसफ

ब ल मँशाता का काम भी करती थी और ज़लीस का भी।

अ दर तो शाद हो रह थी, बाहर हज़ार आदमी ला ठयॉ और सोटे िलए गुल मचा रहे थे। पुिलसवाले उनको रोके हए ु मकान के िगद एक हलका बॉध खड़े

थे। तमाम बाराती दम ब खुद थ। इसी व

म पुिलस का क ान भी आ

पहँु चा। उसने आते ह हु म दया क भीड़ हटा द जए और दम के दम म पुिलसवाल

ने सोटो से मार-मारकर उस तूफ़ाने बेतमीज़ी को हटना शु

कया। जंगी पुिलस ने डरने-के िलए ब दक क दो-चार बाढ़े हवा मे सर कर ू

द । अब

या था चौतरफ़ा भगदड़ मच गयी। मगर हमे उसी व

ज़ोरावर िसंह दोहर

ठाकुर

पःतौल बॉधे नजर पड़ा। उसक मूँछे खड़ थीं। ऑ ंख से

अंगारे उड़ रहे थे। उसको दे खते दे खते ह वो बेकायदा जो ित र- ब र हो रह थी फर जमा होने लगी, जस तरह सरदार को दे खकर भागती हई ु फौज

दम पकड़ ले। एक लमहे म कोई हज़ारहा आदमी इक ठा हो गये और दलावर ठाकुर ने

यूँ ह एक नारा मारा ‘जय दगा जी क ’ ु

जमात के दलो म गोया कोई ताजा

यूँ ह सार

ह आ गयी। जोश भड़कर उठा। खून

म हरकत पैदा हई ु और सब के सब द रयाक तरह उमड़ते हए ु आगे को बढ़े ।

िमिलटर पुिलसवाला भी संगीन खोले हए ु कतार के कतार हमले के मु त जर

खड़े थे। चौतरफ़ा एक खौफ़नाक स नाटा छाया हआ था क अब कोई दम म ु

खून क नद बहा चाहती है । पुिलस क ान बड़ पामद से अपने आदिमय

का उभार रहा था क दफ़अतन पःतौल क आवाज़ आयी और क ान क टोपी जमीन पर िगर पड़ , मगर ज म नह ं लगा। क ान ने दे ख िलया था क

पःतौल ज़ोरावर िसंह ने सर

कया है । उसने भी चट अपनी ब दक ू 83

स हाली और ब दक ू का शाने तक लाना था क ठाकुर ज़ोरावर िसंह चार

खाने िच

ज़मीन पर आ रहा। उसका िगरना था क दलावर िसपा हय ने

धावा कया और वो जमाता बदहवास होकर भागी। जसके जहॉ सींग समये, चल िनकला। कोई आधा घ टे म िच ड़या का पूत भी न

दखायी दया।

बाहर तो यह तूफान बपा था, अ दर द ू हा और द ु हन मारे डर के सूखे

जाते। पूणा थर-थर कॉप रह थी। उसको बार-बार रोना आता था क ये मुझ

अभािगनी के िलए इतना खून-ख़ चर हो रहा है । अमृतराय के ख़यालात कुछ और ह थे। वो सोचते थे क काश म पूणा के साथ कसी तरह बख़ै रयत

मकान तक पहँु च जाता तो दँमन के ह सले पःत हो जाते। पुिलस है तो ु

काफ़ । अरे ये ब दक ू े चलाने लगी ली जये,

बेचारा ज़ोरावर िसंह मर गया।

आधा घ टे के ह अ दर, जो अमृतराय को कई बरस के बाराबर होता था, िमयॉ-बीवी हमेशा के िलए एक-दसरे से िमला दये गये और तब यहॉ से ू बारात क

खसनी क ठहर ।

पूणा एक फ़िनस म बठायी गयी और जस तराह बारात आयी थी उसी तरह रवाना हई। अब क मुख़िलफौन को सर उठानेक जुरत न हई। ु ु

आदमी इधर-उधर ज र जमा थे और क़ रआलूद िनगाह से इन जमात का दे खते थे। इधर-उधर से प थर भी चलायये जा रहे थे तािलयॉ बजायी जा रह थी, मुह ँ िचढ़ाया जा रहा था मगर उन शरारत से ऐसे मुःत क़लिमजाज रफ़ामरोक संजीदगी म

या खलल आ सकता था। हॉ, अ दर फिनस म

बैठ हई ु पूणा रो रह थी। ग़िलबन इसिलए क द ु हन द ू हा के घर जाते व

ज र रोया करती है । बारे खुदा-खुदा करके बारात

ठकाने पहँु ची।

द ु हन उतार गई। बाराितय क जान म जान आयी। अमृतराय क खुशी का

या पूछना। दोड़-दौड़ सबसे हाथ िमलाते फरते थे। बॉछ खली जाती

थी।

य ह पूणा उस सजे हए ु कमरे म रौनक अफ़रोज हई ु , जो खुद भी

द ु हन क तरह सजा हआ था, अमृतराय ने उसे आकर कहा—‘ यार , लो ु

हम बख़ै रयत पहँु च गये। ऐ, तुम तो रो रह हो’ यह कहते हए ु उ ह ने माल से उसके ऑस ं ू प छे और उसको गले से लगाया।

पूणा को कुछ थोड़ -सी खूशी महसूस हई। उसक तबीयत खुद-ब-खुद ु

स हल गयी। उसने अमृतराय का हाथ पकड़ िलया और बोली—अब यह ं मेरे पास बै ठए आपको बाहर न जाने दँ ग ू ी। ओफ, जािलम

मयाचा।

84

ने कैसा ऊधम

इस मुबारक रःम के बाद बाराितय के चलने क तैया रयॉ होने लगी। मगर सबने इसरार

कया

क लाला धनुखधार लाल सबको अपनी

तकर र से एक बार फ़ै जयाब कर। चुनांचे दसरे दन अमृतराय के बँगले के ू

मुका बलवाले सेहन मे एक शािमयाना नसब कराया और बड़े धूमधाम का ू गये। जलसा हआ। वो धुँआधार तकर रे हई ु ु क सैकड़ आदिमय के कुृ टट

एक जलसे क कामयाबी ने ह मत बढ़ायी, दो जलसे और हए ू ु और दनी ू पड़ता था। पुिलस का बराबर इ तज़ाम कामयाबी के साथ। सारा शहर टट

रहा। वह लोग जो कल रफ़ाम के ख़लाफ ला ठयॉ िलय हए ु थे, आज इन

तक़र र को गौर से सुनते थे और चलते व

गो उन बात अमल करने के

िलए तैयार न ह मगर इतना ज र कहते थे क यार, यह सब बात तो ठ क कहते ह। इन जलस के बाद दो बेवाओं क और शा दयॉ हई। दोन द ू हे ु

अमृतराय के पुरजोश पैरव मे से थे और द ु हन म से एक पूणा के साथ गंगा नहाने वाली रामकली थी। चौथे दन तमाम हज़रात

खसत हए। पूणा ु

बहत ु क नी काटती फर । मगर ताहम बाराितय से िमज़ाजपुस करनी पड़

और लाला धनुखधार ने तो तीन फर आध-आध घंटे तक उसके अख़लाक तलक न क ।

शाद के चौथे दन बाद पूणा बैठ हई ु थी क एक औरत ने आकर

उसको एक सर-ब-मोहर िलफ़ाफा दया। पढ़ा तो ूेमा का खत था। उसने उसको मुबारकबाद द थी और बाबू अमृतराय क वह तसवीर, जो बरस से उसके गले का हार थी, पूणा के िलए भेज द थी। उस खत क आ खर संतरे ये थी—

‘’सखी, तुम बड़ भा यवान हो। ई र सदा तु हारा सुहाग कायम

र खे। मेर हजार उ मीद इस तसवीर से वाबःता थीं। तुम जानती हो क मने उसको जान से ज़यादा अज़ीज रभा मगर अब म इस का बल नह ं क इसक अपने सीने पर र खू।ँ अब ये तुमको मुबारक हो। यार , मुझे भूलना मत। अपने

यारे पित को मेर तरफ से मुबारकबाद दे ना। अगर जंदा रह

तो तुमसे ज़ र मुलाकात होगी। तु हार अभागी सखी ूेमा’’

85

पूणा ने इसको बार-बार पढ़ा। उसक ऑख ं म ऑस ं ू भर आये। इस तसवीर को गले म पहन िलया और िनहायत हमददाना लहजे म इस खत का जवाब िलखा। अफ़सोस, आज के प िहवे दन बेचार ूेमा बाबू दाननाथ के गले बॉध द गयी। बड़े धूमधाम से बारात िनकली। हज़ार

पया लूटा दया गया।

कई दन तक साराशहर मुंशी बदर ूसाद साहब के दरवाजे परनाच दे खतर रहा। लाख का वारा- यारा हो गया। शाद के तीसरे ह र हये मु के बक़ा हए। खुद उनको ु

ग फरत करे ।

86

दन बाद मुंशी जी

यारहवाँ बाब मेहमान क

दँमन चे कुनद चु मेहरबाँ बाशद दोःत ु खमती के बाद ये उ मीद क जाती थी क मुखािलफ न

अब सर न उठायेग। खूसूसन इस वजह से

क उनक

ताकत मुशी

बदर ूसाद और ठाकुर जोरावर िसंह के मर जाने से िनहायत कमजोर-सी हो रह थी। मगर इ फाक म बड़ कूवत है । एक ह ता भी न गुजरने पाया था, अ दे शा कुछ-कुछ कम ह चला था क एक रोज सुबह को बाबू अमृतराय के तमाम शािगदपेशे उनक

खदमत म हा जर हए ु और अज कया क हमारा

इःतीफा ले िलया जाए। बाबू सहाब अपने नौकर से बहत ु अ छा बताव

रखते थे। पस उनको इस व चाहते हो?

यूँ इःतीफा दे ते हो?

स त ता जुब हआ। बोले—तुम लोग ु

या

नौकर—अब हजू ु र हम लोग नौकर न करगे।

अमृतराय—आ खर इसक कोई वजह भी है । अगर तु हार तन वाह कम हो तो बढ़ायी जा सकती है । अगर कोई दसर िशकायत हो तो रफा क ू जा सकती है । ये इःतीफे क बातचीत कैसी और फर सब के सब एक साथ। नौकर—हजू ु र, तनख़ा क

हमको जरा भी िशकायत नह ं। हुजरू तो

हमका माई बाप क तरह मानत है । मुदा अब हमार कुछ बस नाह ं। जब हमारे बरादर जात से बाहर करत है , हु का-पानी बंद करत है , सब कहते है कउनके इहाँ नौकर मत कर ।

बाबू अमृतराय बात क तह तक पहँु च गये। मुख़ािलफ़ न ने अपना

और कोई बस चलता न तु हार

दे खकर सताने का ढ़ं ग िनकाला है । बोले—हम

तन वाह दनी कर दगे, अगर अपना इःतीफा फेर लोगे। वना ू

तु हारा इःतीफा नामजूर, ताव े

क हमको और कह ं खदमतगार न िमल

जाये। नौकर—(हाथ जोड़कर) सरकार, हमारे ऊपर मेहरबानी क

जाए।

बरादर हमको आज ह ख रज कर दे गी। अमृतराय—(डॉटकर) हम कुछ नह ं जानते, जब तक हमको नौकर न िमलगे, हम हरिगज इःतीफा मंजरू न करगे। तुम लोग अंधे हो,दे खते नह ं हो क बला नौकर के हमारा काम

यूँकर चलेगा?

87

ु नौकर ने दे खा क ये इस तरह हरिगज छटट न दगे चुनांचे उस व तो वहॉ से चले आये। दन-भर खूब दल लगाकर काम कया। आठ बजे रात के कर ब जब बाबू अमृतराय सैर करके आये तो कोई टमटम थामनेवाला न था। चार

तरफ घूम-घूमकर पुकारा। मगर सदाये ना

बरखाःत। समझ गये कःब त ने धोखा दया। खुद घोड़े को खोला, फेरने क कहॉ फुरसत। साज़ उतार अःतबल म बॉध दया। अंदर गये तो

या

दे खते है क पूणा बैठ खाना पका रह है और ब लो इधर-उधर दौड़ रह

है । नौकर पर दातँ पीसका रह गये। पूणा से कहा— यार , आज तुमको बड़ तकलीफ़ हो रह है । क ब त ने स तधोखा दया।

पूणा—(हँ सकर) आज आपको अपने हाथ क रसोई खलाऊँगी। कोई भार इनाम द जएगा। अमृतराय को उस व खाना भूल गये थे। कँमीर

द लगी कहॉ सूझती थी, बेचारे चावल-दाल बरहमन िनहायत नफ़ स खाने तैयार करता था।

उस शहर म ऐसा बाहनर बावच कह ं न था। कतने शुरफां उसको नौकर ु

रखने के िलए मुँह फैलाये हए ु थे। मगर कोई ऐसी द रया दली से तनखाह नह ं दे सकता था। उसके जाने काबाबू साहब को स त अफसोस हआ। ू

अमृतराय ने बीवी से पूछा—ये बदमाश तुमसे पूछने भी आये थे या यूँ

ह चले गये? पूणा—मुझसे तो कोई भी नह ं पूछने आया। महराज अलब ा आया और रोता था क मुझे लोग मरने को धमका रहे है । अमृतराय—(गुःसे से हाथ मलकर) नह ं मालूम ये जािलम

या

करनेवाले है । ये कहकर बाहर आये, कपड़े उतारे । कहॉ तो रोज खदमतगार आकर कपड़े उतारता था, जूते खोलता था, हाथ-मुहँ धुलवाता और महराज अ छे से अ छे खाने तैयार रखता और कहॉ यकायक आज स नाटा हो गया। बेचाने नाक-भौ िसकोड़े अंदर फर गये। पूणा साफ थािलय मे खाना परोसे बैठ हई ु थी और दल मखुश भी थी क आज मुझे उनक यह खदमत

करनेका मौका िमला। मगर जब उनका चेहरा दे खा तो सहम गयी। कुछ बोलने क जुरत न पड़ । हॉ, ब ला ने कहा—सरकार आप खामखा उदास होते है । नौकर-चाकर तो पैसे के यार है । यह सब दो एक रोज इधर उधर रहगे फर आप ह झख मारकर आयगे। 88

अमृतराय—(गुःसे को ज त करके) नह ं मालूम ब लो, ये उ ह ं लोगो क शरारत है , उ ह ं जिलम ने तमाम नौकर को उभारकर भगा दया है । और अभी नह ं मालूम

या करनेवाले है । मुझे तो खौफ़ है कसारे शहर म

कोई आदमी हमारे यहॉ नौकर करने न आयेगा। हॉ, इलाके पर से कहार आ सकते है मगर वो सब दे हाती गँवार होते है । बुजज़ ु बार बरदार के और कसी काम के नह ं होते। ये कहकर खाने बैठे। दो-चार िनवाले खाये तो खाना मजेदार मालूम हआ। पूणा िनहायत लज़ीज खाने बना सकती थी। इस ु

फन म उसको ख़ास मलका था, मगर ज द म बजुज मामूली चीज के और कुछ न बना सक

थी। ताहम बाबू साहब ने खाने क

औरआला तौर परउसका सबूत भी

बड़

तार फ क

दया। रात तो इस तरह काम चला,

अलःसबा वो बाइिस कल पर सवार होकर चंद अंमेजो से िमलने गये। और ब लो बाजार सौदा खर दने गयी। मगर उसे कतना ता जुब हआ जब क ु

बिनय ने उसको कोई चीज़ भी न द । जस दकान पर जाती वह ं टका-सा ु

जवाब पाती। सारा बाजार

ान डाला। मगर कह ं सौदा निमला। नाचार

मायूस होकर लौट और पूणा से सारा कःसा बयान कया। पूणा ने आज इरादा कया था क जरा अपने फन के जौहर दखलाऊँगी, चीज के न िमलने से दल म ऐंठकर रह गयी। नाचार सादे खाने पकाकर धर दये। इसी तरह दो-तीन दन गुजरे । चौथे दन बाबू साहब के इलाके परसे चंद मोटे -ताजे हटटे -कटटे कहार आये जनके भ े -भ े हाथ-पॉव और फूले ु हए न क ु कंधे इस काबील न थे जो एक तहजीबाया ता जटलमै

ख़दमत

कर सक। बाबू साहब उनकोदे खकर खूब हँ से और कुछ ज़ादे राह दे कर उ टे कदम वापस कया और उसी व

मुशी धनुखधार लाल के पास तार भेजा क

मुझको चंद खदमतगार क अशद ज़ रत है । मुंशी जी साहब पहले ह से सोचे हए ु थे कबनारस जैसे शहर म जस क़दर मुखािलफत हो थोड़ है । तार पाते ह उ ह ने अपने होटल से पॉच ख़दमतगार को रवाना कया जनम

एक कँमीर महराज भी था। दसरे ू

दन ये नये खा दम आ पहँु चे। सब

केसब पंजाबी थे जो न बरादर के गुलाम थे और न जनको बरादर से

ख़ा रज होने का खौफ़ था। उनको भी मुख़ािलफ न ने बरअंगे ता करना चाहा। मगर कुछ दॉव न चला। नौकर का इं तजाम तो इस तरह हआ। सौदे ु

का ये बंदोबःत कया गया क लखनऊ सेतमाम रोजाना ज रयात क चीज

इकटठ मँगा ली जो कई मह न के िलए काफ थी। मुख़ािलफ ने जब दे खा 89

क इन शरारत से बाबू साहब को कोई गजंद न पहंू चा तो और ह चाल

चले। उनके मुव कल को बहकाना शु वधवा

ववाह

कया है । सब जानवर

कया क वो तो ईसाई हो गये है । ू - वचार का गोँत खाते है । छत

ू नह ंमानते। उनको छना गुनाह है । गो दे हात म भी

रफ़ाम के ले चर दये

गये थे और अमृतराय के पुरजोश पैरो मुतवाितर दौरे कर रहे थे मगर इन ले चर म अभी तक वधवा ववाह का जब मसलहतन नह ं कया गया था। चुनांचे जब उनके मुव

लो ने, जनम ज़यादार राजपूत और भूिमहार

थे, ये हालात सुने तो कसम खाई क उनको अपना मुक मा न दगे। रामराम, वधवा से ववाह कर िलया। अनकर ब दो ह ते तक बाबू अमृतराय साहब के मुव कल म येबात फैली और मुख़ािलफ न ने उनके खुब कान भरे जसका नतीजा ये हआ क बाबू साहब क वकालत क सदबाज़ार शु ु

हो

गयीं। जहॉ मारे मुक म के सॉस लेने क फुसत न िमलती थी वहॉ अब दन भर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने क नौबत आ गयी। ह ा क तीसरे ह ते म एक मुक मा भी न िमला। उनक

बाज़ार ठं ड

हई ु तो मुशी

गुलज़ार लाल, बाबू दाननाथ साहब क चॉद हो गयी। जब तीन ह ते तक बाबू अमृतराय साहब को इलजाम पर जाने क नौबत न आयी तो जज साहब को ता जुब हआ। वो बाबू अमृतराय साहब क जेहानत व त बाई क ु बड़

कि करते थे और अ सर उनको अपने मकान पर बुलाकर पेचीदा

मुक़ मा म उनक राय िलया

करते थे और बारहा उनको संगीन मुक म

क तहक़ काती कमीशन का ूेसीडट बनाया था। उ ह ने स रँतेदार से उनके इस तरह मफकूद होने का सबब पूछा। स रँतेदार साहब कौम के मुसलमान

और िनहायत राःतबाज़ आदमी थे। उ ह ने िम नोइन सब हाल कह सुनाया। दसरे दन अमृतराय को इजलाम परखुद-ब-खुद बुलाया औरदे हाती ज़मींदार ू

के



उनसे दे र तक आ हःता-आ हःता गु तगू क । अमृतराय भी

बेतक लफ से मुःकरा-मुःकराकर उनक बात का जवाब दे ते थे। कई वक ल उस व

साहब व बहादरु के पास काग़जात मुला हजे के िलए लाये मगर

साहब बहादरु ने जरा भी तव ज न क । जब अमृतराय चले गये तो साहब

ने कुस से उठकर उनसे हाथ िमलाया औरजरा (ऊँची)आवाज म बोले— अ छा बाबू साहब, जैसा आप कहता है हम इस मुक म म उसी मा फ़क करे गा। 90

जज साहब ये चाल चलकर मु त जर थे क दे खे इसका होता है । चुनांचे जब कचहर

बखासत हई ु तो उन जमींदार

या असर म

जनके

मुक म आज पेश थे यूँ बात होने लगीं—

ठाकुर साहब—(पगड़ , बॉधे, मूछे ऐठे , िमजई पहने, गले म बड़े -बड़े दान

का माला डाले)आज जज साहब अमृतराय से खूब-खूब बात करत

रहे न। ज र से ज र उ ह ं क राय के मुता बक फैसला होये। िमौ जी—(सर घुटाये, ट का लगाये, बरहना तन, अँगौछा कंधे पर र खे हए ु )

हॉ जान तो ऐसे पड़त है । जब बाबू साहब चले लागल तो जज साहब बोलेन कआप जैसा कहगे वैसा कया जायगा। ठाकुर—काव कह ं अमृतराय समान वक ल परथीमॉ नाह ं बा, बाक फर ईसाई होय गवा, रॉड से बयाह कहे िस। िमौ जी—इतने तोपच पड़ा है । हमका तो जान पड़त है

क ज रत

मुक मा हार जाय। इतना वक ल हते बाक उनको बराबर कोऊ नाह ं ना। कइस बहस करत है , मान सरसुती ज या पर बैठ है । सो अगर उनका वक ल कये होइत तो ज र हमार जीत हई ु जात। इसी तरह क

बात दोनो म हई ु िचराग जलते-जलते द नो बाबू

अमृतराय के पास आये और मुक म क

एदाद बयान क

और अपने

ख़ताओं क मुआफ चाह । बाबू साहब ने पहले ह समझ िलया था मुक़ मे बहस क



क फर के सानी के वोकला खड़े मुँह ताका कये और शाम

होते-होते मैदान अमृतराय के हाथ जा। इस मुक मे का जीतना क हए और कचहर बखाःत होने के बादजज साहब का उनको मुबारकबाद दे ना क हए क घर जाते-जाते बाबू साहब के दरवाजे पर मुव कल क भीड़ लग गयी

और एक ह ते के अंदर-अंदर उनक वकालत दनी आबो-ताब से चमक । ू मुख़ािलफो को

फर नीचा दे खना पड़ा। सच है खुदा मेहरबान होतो कुल

मेहरबान। इसी असना म वो घाट जो बाबू साहब सरफे कसीर से बनवा रहे थे तैयार हो गया और मुख़ािलफ न को भी मजबूरन मोत रफ़ होना पड़ा क ऐसा खूबसूरत घाट इस सूबे म कह ं नह ं। चौतरफा संगीन चारद वार

खंची

हई ु थी। और द रया से नहर केराःसते पानी आता था। अनाथालय भी तैयार

हो गया। अ खा कैसी आलीशान पु ता इमारत थी। ऐन द रया के कनारे पर। उसके चार

तरफ अहाता घेरकर फूल लगा 91

दया था। फाटक पर

संगमरमर के दो त ते वःल कये हए ु थे। एक पर उन असहाब के असमाये िगरामी खुदे हए ू ु थे। जनक फ याजी से वो इमारत तामीर हई ु थीऔर दसरे

पर इमारत का नाम और उसके अग़राज जली हु फ़ म िलखे हए ु थे। गो

इमारत तामीर हो चुक थी मगर अभी तक दःतूर-उल-अमल क पूर पैरवी

न हो सक थी। द कत यह थी क सीना- परोना, गुल-बूटे काढ़ना, जुरब वगैरह बनाना िसखाने के

िलए

ह दःतािनयॉ न िमलती थीं, हॉ, लाला ु

धनुखधार लाल साहब पर उनके मुहैया करने का बार डाला गया था और बहत ु ज द कामयाबी क उ मीद थी। इस इमारत का इ तताह जलसा बड़े

धूमधाम से हआ। दलदारनगर के महाराजा साहब ने जो खुद भी िनहायत ु

फ़ याज और नेक मद थे इमारत कोदःते मुबारक से खोला औरगो खुद वधवा ववाह के मुखािलफ न म थे, मगर इस अनाथालय के साथ स ची हमदद जा हर क और बाबू अमृतराय के मसाइए जमीला क क़रार वाक़ई दाद द । शहर के तमाम शुरफ़ा बला इःतःना इस जलसे म शर क हए ु और

महाराजा साहब क बामौक़ा फ याजी ने दम क दम म कई हजार वसूल करा

दया। और आज अमृतराय को मालूम हआ ु

पया

क मने अपनी

ज़ंदगी म कुछ काम कया है ।

जब से शाद हई ु थी, पूणा नेबाबू साहब को कभी इतना खुश न पाया

था जतना शाद से पहले पाती थी। इस पूरे मह ने भर बेचारे तर दात म ु मुबतला थे। एक ह ता मेहमान



खमती म लगा। एक ह ते तक

नौकर ने तकलीफ द । बाद अजॉ दो-तीन ह ते तक वकालत क सदबाज़ार रह जो इस वजह से और भी तफ़ कुर का बाइस हो रह थी कघाट और अनाथलय के ठे केदार के बल अदा करने थे। जब जरा वकालत सुधर तो इस इ तताह

जलसे क

तैया रयॉ शु

हई। गरज़ इस डे ढ़ मह ने तक ु

उनको तफ़ कुरात से आजाद न िमली। आज जब वह आये तो अज़हद खुश

थे। चेहरा मुन वर हो रहा था। पूणा उनको मुतफ कर दे खती तो उसको िनहायत रं ज होता था और उनक

फ़ब दरू करने क बराबर कोिशश कया

करती थी। आज उनको खुश दे खा तो िनहाल हो गयी। बाबू साहब ने उसे गले से लगाकर कहा— यार पूणा, हमको आज मालूम होता है क जंदगी म कोई काम कया। पूणा—ई र आपके इराद म बरकत दे । अभी आप न मालूम या करगे? 92

या-

अमृतराय—तुमको इस अनाथालय क

िनगरानी करनी होगी।



अ छ होगा न? पूणा—(हँ सकर) तुम मुझे िसखा दे ना। अमृतराय—म

तुमको

लेकर

मिास

और

पूना

चलूँगा।

वहॉ

के

खैरातखान का इं तजाम दे खूँगा। और ज रत के मुआ फ़क तरमीम करके वह कवाइद यहॉ भी जार क ँ गा। गाना िसखाने आया करगी।

पूणा—(हँ सकर)तुम मुझे

यार , कल से तुमको िमस विलयम

या- या िसखलाओगे। मुझसे

याह करने म

नुमने धोखा खाया। अमृतराय—बेशक धोखा खाया। मुह बत क बला अपने सर ली। इसी तरह दे र तक बात होती रह ं। आज दोनां िमयॉ-बीवी बड़े चैन से बसर करने लगे।

यूँ- यूँ दोनो क

फ़तरती खू बयॉ एक-दसरे पर जा हर होती थीं, ू

उनक

मुह बत बढ़ती जाती थी। बीवी शौहर बीवी का

दलदादा, दोन

एकजान दो कािलब थे। जब बाबू अमृतराय कचहर जाते तो पूणा गाना सीखती। जब वह कचहर से आ जाते तो उनको गाना सुनाती। बाद अजॉ दोनो शाम को बाग़ म सैर करते। इसी तरह हँ सी-खुशी एक मह ना तय हो गया। खुशी के अ याम ज द कट जाते है ।

93

बारहवॉ बाब िशकवए ग़ैर का दमाग कसे

यार से भी मुझे िगला न रहा। ूेमा क शाद हए ु दो माह से

पर मसरत व इ मीनान क

यादा गुजर चुके है । मगर उसके चेहरे

अलामत नजर नह ं आतीं। वो हरदम

मुतफ़ कर-सी रहा करती है । उसका चेहरा जद है । ऑ ंखे बैठ हई ु सर के बाल

बखरे , पर शान, उसके

दल मअभी तक बाबू अमृतराय क मुह त

बाक है । वह हर चंद चाहती है क दल से उनक सूरत िनकाल डाले मगर उसका कुछ काबू नह ं चलता। गो बाबू दाननाथ उसके साथ स ची मुह बत ज़ा हर करते ह और अलावा वजीह-ओ-शक ल नौजवान होने के िनहायत हँ समुख, जर क़तबा व िमलनसार आदमीहै मगर ूेमा का दल उनसे नह ं िमलता। वो उनक खाितर करने म कोई दक का नह ं फ़रोगुज़ाँत करती। जब वे मौजूद होते है तो वो हँ सती भी है , बातचीत भी करती है , मुह बत भी जताती है मगर जब वो चले जाते है तो फर वो ग़मगीन होती है । अपने मौके म उसको रोने क आजाद थी। यहॉ रो भी नह ं सकती। या रोती है तो

ु छपकर। उसक बूढ़ सास उसको पान क तरह फेरा करती है न िसफ इस

वजह से क वो उसका पास-ओ-िलहाज़ करती है । ब क इस वजह से क वो अपने साथ िनहायत बेशक़ मत चीज लायी है । बेचार ूेमा क

जंदगी वाक़ई

नाका बले रँक है । उसक हँ सी जहरखंद होती है । वो कभी-कभी सास के तक़ाजे से िसंगार भी करती है मगर उसके चेहरे पर वो रौनक़ और चमकदमक नह ं पायी जाती जो दली इ मीनान का परतौ होती है । वो ज़यादातर अपने ह कमरे म बैठ रहती है । हॉ कभी-कभी गाकर

दल बहलाती है ।

मगर उसका गाना इसिलए नह ं होता क उसको खुशी हािसल हो। बरअ स इसके वो ददनाक नग़मे गाती है और अ सर रोती है । उसको मालूम होता है कमेरे दल पर कोई बोझ धरा हआ है । ु

बाबू दाननाथ इतना तो शाद करने के पहले ह जानते थे। क ूेमा

अमृतराय पर जान दे ती है । मगर उ होने समझा था मामूली मुह बत होगी। जब म उसको इख़लाम व

कउसक

मुह बत

याह कर लाऊँगा और उसके साथ

यार से पेश आऊँगा तो वो सब भूल जायगी और फर हमार

ज़ंदगी बड़े इ मीनान से बसर होगी। चुनांचे एक मह ने तक उ ह ने उसक 94

दलिगर तगी क बहत ु

यादा परवा न क । मगर उनको

क वो मुह बत का पौधा जो पॉच बरस तक खूने

या मालूम

था

दल से सींच-सींचकर

परवान चढ़ाया गया है मह ने-दो-मह ने म हरिगज नह ं मुरझा सकता। उ ह ने दसरे मह ने भर भी ज त कया मगर जब अब भी ूेमा के चेहरे पर ू

िशगु

गी व बशाँत न नजर आयी तब तो उनको सदमा होने लगा।

मुह बत और हसद का चोली-दामन का साथ है । दाननाथ स ची मुह बत करते थे मगर स ची मुह बत के एवज स ची मुह बत चाहते भी थे। एक रोज वो मामूल से सबेरे मकान पर वापस आये और ूेमा के कमरे मे गये

तो दे खा क वो सर झुकाये बैठ है । उनको दे खते ह उसने सर उठाया, हाय। मुह बत के लहजे म बोली—मुझे आज न मालूम

यूँ लाला जी क याद आ

गयी थी। बड़ दे र से रो रह हँू ।

दाननाथ ने उसको दे खते ह समझ िलया था क अमृतराय के फ़राक

म ये आँसू बहाये जा रहे है । उस ूेमा ने जो यूँ हवा बतलायी तो उनको िनहायत नागवार मालूम हआ। ु

खे लहजे म बोले—तु हार ऑ ंखे है , तु हारे

ऑ ंसू भी, जतना रोया जाय रो लो। चाहे ये रोना कसी ज़दा आदमी के

िलए हो या मुदा के िलये। ूेमा इस आ खर जुमले पर च क पड़ और बला जवाब दये शौहर क तरफ मुःतफ़िसराना िनगाह से दे खने लगी। दाननाथ ने फर कहा— या ताकती हो ूेमा, म ऐसा अहमक़ नह ं हँू ।मैने भी आदमी दे खे है और आदमी पहचानता हँू । गो तुमने मुझको बलकुल घ घा समझ रखा होगा। म तु हार

एक-एक हरकत को गौर से दे खता हँू , मगर जतना ह दे खता हँू उतना ह यादा सदमा दल को होता है

य क तु हारा बताव मेरे साथ फ का है । गौ

तुमको ये सुनना नागवार मालूम होगा मगर मजबूरन कहना पड़ता है



तुम मुझसे मुह बत नह ं करती। मने अब तक इस नाजुक मुआमले परज़बान खोलने क जुरत नह ं क । और ई र जानता है

क म तु हार

कस कदर मुह बत करता हँू । मगर मुह बत चाहे जो कुछ भी बदाँत करे ,

बेिनयाजी बदाँत नह ं कर सकती, और वे भी कैसी बेिनयाजी, जसका वजूद

कसी रक ब के फ़राक से हो। कोई आदमी खुशी से नह ं दे ख सकतर क उसक बीवी दसरे के फ़राक़ म ऑ ंसू बहाये। ू ह द ू औरत को शा

या तुम नह ं जानती हो क

के मुता बक अपने शौहर के अलावा कसी दसरे का ू

याल करना भी गुनाहगार बना दे ता है । ूेमा, तुम एक आला दज के शर फ़ 95

खानदान क बेट हो और जस खानदान क तुम बहू हो वो भी इस शहर म कसी से हे ठा नह ं।

या तु हारे िलए ये बाइसे नंग वशम नह ं है क तुम

उस आदमी के फ़राक म ऑस ं ू बहाओ जसने बावजूद तु हारे वािलद के मुतवाितर तक ज़

के एक आवारा रॉड बरहमनी को तुम परतरजीह द ।

अफ़सोस है

क तुम उस आदमी को

दल म जगह दे ती हो जो तु हारा

भूलकर भी

याल नह ं करता। इ ह ं ऑ ंखो ने अमृतराय को तु हार तःवीर

पुरजा-पुरजा करके पैर तले र दते दे खा है । इ ह ं कान ने उनको तु हार

शान म जा-ओ-बेजा बात कहते सुना है । तुमको ता जुब या मेर बात का यक न नह ं आया? काआला सुबूत नह ं दे

दया?

य होता है ूेमा,

या अमृतराय ने उन सदमे रय

या उ ह ने डं के क चोट नह ं सा बत कर

दया क वो खाक बराबर तु हार कि नह ं करते? माना क कोई जमाना वो था जब वो भी तुमसे शाद

करने का अरमान रखते थे मगर अब वो

अमृतराय नह ं रह गया। अब वो अमृतराय है ,

जसक

आवारगी और

बदचलनी क शहर का ब चा-ब चा कसम खा सकता है । मगर अफ़सोस तुम अभी तक उस नंगे खानदान के फ़राक म ऑ ंसू बहा-बहाकर अपने और मेरे ख़ानदान के माथे पर कलंक का ट का लगाती हो। दाननाथ गुःसे के जोश म थे। चेहरा तमतमाया हआ था और ऑख ं ो ु

से शोले न िनकलते हो मगर इ तहा दज क रोशनी ज र पायी जाती थी। ूेमा बेचार सर नीचा कये खड़ रो रह थी। शौहर क एक-एक बात उसके सीने के पार हई ु जाती थी। सुनते-सुनते कलेजा मुँह को आ गया आ खर ज त न हो सका, न रहागया। दाननाथ के पैर पर िगर पड़ और गम-गम

अँक के क़तर से उनको िभगो दया। दाननाथ ने फौरन पैर खसका िलया। ूेमा को चारपाई पर बठा दया और बोले—ूेमा, रोओ मत, तु हारे रोने से मेरे दल को सदमा होता है । म तुमको

लाना नह ं चाहता था मगर उन

बात को कहे बना रह भी नह ं सकता था तो अगर दल म रह गयीं तो नतीजा बुरा होगा। कान खोलकर सुन । म तुमको जान से जयादा अजीज़ रखता हँू । तु हार आसाइश के िलए मै अपनी जान िनछावर करने के िलए हा जर हँू । म तु हारे ज़रा से इशारे पर अपने को सदके कर सकता हँू , मगर

तुमको िसवाय अपने कसी और का ख़याल करते नह ं दे ख सकता। हॉ ूेमा,

मुझसे अब यह नह ं दे खा जा सकता। एक मह ने से मुझको यह

द कत हो

रह है । मगर अब दल पक गया है । अब वो जरा-सी ठे स भी बदाँत नह ं 96

कर सकता। अगर इस अगाह ं पर भी तुम अपने दल परकाबू न पा सको तो मेरा कुछ कुसुर नह ं। बस इतना कहे दे ता हँू क एक औरत के दो शौहर नह ं जंदा रह सकते।

यह कहते हए ु बाबू दाननाथ गुःसे म भर बाहर चले आये। बेचार ूेमा

ु को ऐसा मालूम हआ गोया कसी ने कलेजे म छर मार द । उसको आज ु

तक कसी ने भूलकर भी कोई कड़ बात नह ं सुनायी थी। उसक भावज कभी-कभी ताने दया करती थीं मगर वो ऐसे स त नह ं मालूम होते थे। वो घ ट रोती रह । बाद अज़ॉ उसने शौहार क सार बात को सोचना शु

कया और उसके कान म यह आ खर अलफाज़ गूज ँ ने लगे, ‘एक औरत के दो शौहर जंदा नह ं रह सकते।‘ इनका

या मतलब है ?

97

तेरहवाँ बाब हम पहले कह चुके है

चंद हसरतनाक सािनहे

क तमाम तर दात से आजाद पाने के बाद ु

एक माह तक पूणा ने बड़े चैन सेबसर क । रात- दन चले जाते थ। कसी क़ःम क

फ़ब क परछाई भी न दखायी दे ते थी। हॉ ये था क जब बाबू

अमृतराय कचहर चले जाते तो अकेले उसका जी घबराता। पस उसने एक रोज़ उनसे कहा— क अगर कोई हज न हो तो रामकली और लछमी को इसी

जगह बुला ली जए ता क उनक सोहबत म व

कट जाया करे । रामकली को

नाज़र न जानते है । लछमी भी एक कायःथ क लड़क थी और गौने के ह दन बेवा हो गयी थी। इन दोन औरत ने पूणा क शाद हो जाने के बाद अपनी रजामंद से दसर शा दयॉ क थीं और बाबू अमृतराय ने उनके िलए ू मकान

कराए पर िलया था और उनक

ख़ानादार

मुतह मल भी होते थे। बाबू साहब को पूणा क मालूम हई ह ू ु और दसरे

के एखराजात के

तजवीज़ बहत ु अ छ

दन रामकली और लछमी इसी बँगले के एक

हःसे म ठहरा द गयीं। पूणा ने इन दोन औरत को शाद होने के बाद

नदे खा था। अब रामकली को दे खा तो पहचानी न जाती थी और लछमी ने भी खूब रं ग- प िनकाले थे। दोनो औरत पूणा के साथ हँ सी-खुशी रहने लगी। बाबू साहब क तजबीज थी क इन औरत क तालीम अ छ हो जाय तो अनाथलय क िनगरानी उ ह ं के सुपुद

र दँ ।ू चुनांचे एक हनरमं द लेड़ ु

अपनी सास को कोसा करतीथी। एक रोज पूणा ने उससे मुःकराकर पूछा— यूँ रमन, आजकल मं दर पूजा करने नह ं जाती हो? रामकली ने झपकर जवाब

दया—सखी, तुम भी कहॉ का

जब ले

बैठ । अब तो मुझको मं दर के नाम से नफ़रत है । लछमी को रामकली के पहले हालात मालूम थे। वो अ सर उसको छे ड़ा करती। उस व ् भी न रहा गया। बोल उठ —हॉ बुआ, अब मं दर काहे

का जाओगे। अब तो हँ सने-बोलने का सामान घर ह पर मौजूद है ।,

रामकली—(तुनककर) तुमसे कौन बोलता है , जो लगीं ज़हर उगलने। बहन, इनको मना कर दो, ये हमार बात म न दखल दया कर नह ं तो मै कभी कुछ कह बैठू ँ गी तो रोती फरगी।

98

लछमी—(मुःकराकर) मने झूठ थ ड़े कहा था जो तुमको ऐसा कड़वा मालूम हआ। सो अगर सच बात कहने म ऐसी गम होती हो तो झूठ ह ु बोला क ँ गी। मगर एक बात बतला दो। महतजी ने मंतर दे ते व

कान म

तु हारे

या कहा था। हमार भती खाये जो झूठ बोले।

पूणा हँ सने लगी मगर रामकली

ऑ ंसी होकर बोली—सुनो लछमी,

हमसे शरारत करोगी तो ठ क न होगा। म जतना तरह दे ती हँू तुम उतना

ह सर चढ़ जाती हो। आपसे मतलब: महं त ने मेरे कान म कुछ ह कहा था। बड़ आयी वहॉ से सीता बन के।

पूणा—लछमी, तुम हमार सखी को नाहक सताती हो। जो पूछना हो ज़र मुलायमत से पूछना चा हए क यूँ। हॉ बुआ, तुम उनसे न बोलो, मुझको बतला दो उस तमोली ने तुमको पान खलाते व

या कहा था?

रामकली—( बगड़कर) अब तु ह भी छे ड़खानी क सूझी। म कुछ कह

बैठू गी तो बुरा मान जाओगी।

इसी तरह तीन स खय म हॅ सी-मजाक, बोली-ठोली हआ करती थी। ु

साथ पढ़तीं साथ हवा खाने जाया करतीं, कई मतबा-गंगा ःनान को गयीं। मगर उस जनाने घाट पर जो अमृतराय ने बनवाया था। मालूम होता था क तीन बहन है । इ ह ं खुिशय म एक मह ना गुजर गया। गोया व

भागा

जाता था। मगर फ़लके नाहजा से कसी क खुशी कब दे खी जाती है । एक रोज पूणा अपनी स खय के साथ बाग म टहल-टहल के गहने बनाने के िलए फूल चुन रह थी क एकऔरत ने आके उसके हाथ मे एक खत दया। पूणा ने हफ पहचाना। ूेमा का खत। ये िलखा हआ थाु

‘ यार पूणा, तुमसे मुलाकात करने का बहुत जी चाहता है । मगर यहॉ

घर से पॉव बाहर िनकालने क मुमािनयत है । इसिलए मजबूरन यह ख़त िलखती हँू । मुझे तुमसे एक बात कहनी है जो खत म नह ं िलख सकती। अगर तुम कसी मोतबर औरत को इस खत का जवाब दे कर भेजो तो उससे जबानी कह दँ ग ू ी। िनहायत ज र बात है । तु हार सखी, ूेमा ख़त पढ़ते ह

पूणा का चेहरा जद हो गया। उसको इस ख़त क

मु तसर इबारत नह ं मालूम

यूँ खटकने लगी। फौरन ब ल को बुलाया 99

और ूेमा के ख़त का जवाब दे कर उधर रवाना कया। और उसके वापस आने म आध घंटा जो लगा वो पूणा ने िनहायत बेचैनी से काटा। नौ बजतेबजते ब ल वापस आयी। चेहरा ज़द, रं ग फ़क, बदहवास, पूणा ने उसको दे खते ह पूछा— यूँ ब ल खै रयत तोहै । ब ल —(परे शानी ठ ककर) अभी

या होनेवाला है ।

पूणा—(घबराकर)

या कहँू बहू , कुछ नह ं बनता। न जाने

या कहा, कुछ ख़त-वत तो नह ं दया?

ब ल —ख़त कहॉ से दे तीं। हमको अंदर बुलाते डरती थी। दे खते ह रोने लगीं और कहा— ब लो, म लगता। म

या क ँ , मेरा जी यहॉ

बलकुल नह ं

अ सर पछली बात याद करके रोया करती हँू । एक दन उ ह ने

(बाबू दाननाथ) मुझे रोते दे ख िलया, बहत बगड़े , झ लाये और चलते व ु धमकाकर कहा क एक औरत के दो चाहने वाले नह ं जंदा रह सकते।

यह कहकर ब लो ख़ामोश हो गयी। पूणा क समझ मे पूर बात न आयी। उसने कहा—हॉ-हॉ, खामोश

यूँ हई। ज द कहो, मेरा दम ु

है ।

ब ल ने रोकर जवाब दया—बहू, अब और

का हआ ु

या कहँू । दाननाथ क

नीयत बुर है । वो समझते है कूेमा बाबू अमृतराय क मुह बत म रोती है ।

इतना सुनना था क पूणा पर सार बात रोशन हो गयीं। पैर तले से िमटट िनकल गयी। कुछ ग़शी-सी आ गयी। दोन स खयाँ दौड़ हई ु आयीं, उसको संभाला, पूछने लगीं

या हआ ु ,

या हआ। पूणा ने बहाना करके टाल ु

दया। मगर ये मनहस ू खबर उसके कलेजे म तीर क तरह चुभ गयी। ई र

से दआ मॉगने लगी क आज कसी तरह वो सह सलामत घर वापस आ ु जाते तो सब बात कहती। फर ख़याल आया क अभी उनसे कहना मुनािसब

नह ं, घबरा जायगे। इसी है स-बैस म पड़

थी। शाम के व

अमृतराय हःबे मामूल कचहर से आये तो दे खा खड़क से

क पूणा

जब बाबू

पःतौल िलये

कसी चीज पर िनशाना लगा रह है । उनको दे खते ह उसने

पःतौला अलग रख दया। अमृतराय ने हँ सकर कहा—िशकार के िलए नजर काफ है , पःतौल पर मँक करने क

या ज रत है ।

ु पूणा ने अपनी सरासीमगी को छपाया और बोली—मुझे

पःतौल

चलाना िसखा दो। मने दो-तीन बार चलाया मगर िनशाना ठ क नह ं पड़ता। 100

बाबू साहब को पूणा के इस शौक पर अच भा हआ। कहॉ तो रोज ु

उनको दे खते ह सब धंधा छोड़कर खदमत के िलए दौड़ती थी और कहॉ आज पःतौल चलाने क धुन सवार है । मगर हसीन के अंदाज कुछ िनराले होते है , ये सोचकर उ ह ने पःतौल को हाथ म िलया और दो-तीन मतबा

िनशाना लगाकर उसको चलाना िसखाया। और अब पूणा ने फायर कया तो िनशाना ठ क पड़ा। दसरा फायर कया वो भी ठ क, चेहरा खुशी से चमक ू

गया। पःतौल रख दया और शौहर क खाितर व मुदारात म मस फ हो गयी।

अमृतराय— यार , आज मने एक िनहायत होिशयार मुस वर बुलाया है जो तु हार पूरे क़द क तसवीर बनायेगा। पूणा—मेर तःवीर खंचाकर

या करोगे?

अमृतराय—कमरे म लगाऊँगा। पूणा—तुम भी मेरे साथ बैठो। अमृतराय—आज तुम अपनी तसवीर खंचवा लो, फर दसरे दन हम ू

दोन साथ बैठगे।

पूणा तसवींर खंचाने क तैया रयॉ करने लगी। उसक दोन स खयाँ उसका बनाव-सँवार करने लगे। मगर उसका दल आज बैठा जाता था। कसी नामालूम हादसे का खौफ़ उसके दल पर गािलब होता जाता था। चार बजे के कर ब मुस वर आया और डे ढ़ घ टे तक पूणा क तसवीर का ख़ाका खींचता रहा। उसके चले जाने के बाद ग बे आफ़ताब के व

बाबू अमृतराय

हःबे मामूल सैर के िलए जाने लगे तो पूणा ने पूछा—कहॉ जा रहे हो?

अमृतराय—जरा सैर करता आऊँ, दो-चार साहब से मुलाकात करना

है । पूणा—( यार से हाथ पकड़कर) आज मेरे साथ बाग म सैर कर । आज न जाने दँ ग ू ी।

अमृतराय— यार , म

अभी लौट आता हँू । दे र न होगी।

पूणा—नह ं, म आज न जाने दँ ग ू ी।

यह कहकर पूणा ने शौहार का हाथ पकड़कर खींच िलया। वो बीवी क

इस भोली ज़द पर बहत गले लगाकर कहा—अ छा लो, ु खुश हए। ु आज न जायगे।

101

यार ,

बड़ दे र तक पूणा अपने टहलती रह

और उनक

यार

यारे पित के हाथ म हाथ दये र वशो म बात

को सुन-सुन अपने कान

को खुश

करती रह । वह बार-बार चाहती क उनसे दाननाथ का सारा भेद खोल दँ ।ू मगर

फर सोचती

क उनको ख़ामखा तकलीफ होगी। जो कुछ सर पे

आयेगी। उनक खाितर से मै अकेले भुगत लूँगी। सैर करने के बाद थोड़ दे र तक स खय ने चंद नगम अलापे। बाद अजॉ कई साहब मुलाकात के िलए आ गये। उनसे बात होने लगी। इसी

असना म नौ बजने को आए।बाबू साहब ने खाना खाया और अखबार लेकर

लेटे। और पढ़ते-पढ़ते सो गये। मगर गर ब पूणा क ऑ ंखो मनींद कहॉ। दस बजे तकवो उनके िसरहान बैठ एक

कःसे क

कताब पढ़ती रह । जब

तमाम कुनबे के लोग सो गये और चार तरफ स नाटा छा गया तो उसे अकेले डर मालूम होने लगा। वो डरते-डरते उठ और चार तरफ के दरवाजे बंद कर िलये। अब जरा इ मीनान हआ तो पंखा लेकर शौहार को झलने ु

लगी। जवानी क नींद, हजार ज त करने पर भी एक झपक आ ह गयी। मगर ऐसा डरावना खाब दे खा क च क पड । हाथ-पॉव थर-थर कॉपने लगे। दल धड़कने लगा, बेअ तयार शौहर का हाथ पकड़ा क जगा दो मगर फर यह समझकर क उनक

यार नींद उचट जायगी तो उनको तकलीफ़ होगी,

उनका हाथ छोड़ दया, अब इस व

उसक हालत नागु ताबेह है । चेहरा ज़द

हो रहा है । डर हई ु िनगाह से इधर-उधर ताक रह है । प ा भी खड़कता है

तो च क पड़ती है । लै प म शायद तेल नह ं है , उसक धुँधली रोशनी म वो

स नाटा और भी खौफ़नाक हो रहा है । तसवीर जो द वार को जीनत दे रह है इस व

उसको घूरती हई ु मालूम होती है ।

यकायक घंटे क आवाज कान म आयी। घड़ क सुइय पर िनगाह पड़ । बारह बजे थे। वो उठ

क लै प गुल कर दे । दफअतन उसको कई

आदिमय के पॉव क आहट मालूम हई। उसका दल बॉसो उछलने लगा। ु

झट पःतौल हाथ मे िलया और जब तक वो बाबू अमृतराय को जगाये क वो मज़बूत दरवाजा आप ह खुल गया और कई आदमी धड़बडाते अंदर घुस आये। पूणा ने फौरन

पःतौल सर कया। तड़ाके क

आवाज़ आयी और

उसके साथ ह कुछ खटपट क आवाज भी सुनायी द ं। दो आवाज पःतौल

ु के छटने क

और हई। ु

फर धमाके क

अमृतराय िच लाये—दौड़ो दौड़ो। चोर, चोर। 102

आवाज़ आयी। इतने म बाबू

हम आ ाज के सुनते ह दो आदमी उनक तरफ लपके मगर इतने म दरवाजे पर लालटे न क रोशनी नजर आयी और कई िसपाह व दयॉ डाले कमरे म दा खल हो गये। चोर भागने लगे मगर दोनो पकड़े गये। िसपा हय ने लालटे न लेकर ज़मीन पर दे खा तो दो लाश नज़र आयीं, एक पूणा क लाश थी। उसको दे खते ह

बाबू िसपा हय

ने गौर से दे खा तो च ककर

बोले—अरे , यह तो बाबू दाननाथ है । सीने म गोली लग गयी।

103

ख़ा मा ठं ड ,

पूणा को दिनया से उठे एक बरस बीत गया है । शाम का व ु हपरवर हवा चल रह

है । सूरज क

खसती िनगाह

है ।

खड़क

के

दरवाज से बाबू अमृतराय के आराःता-ओ-पीराःता कमरे म जाती और पूणा क कदे आदम तसवीर के क़दम का चुपके से बोसा लेकर खसक जाती है । सारा कमरा जगमगा रहा है । रामकली और लछमी जनके चेहरे इस व खले जाते है , कमरे क आराइश म मस क है और रह-रहकर खड़क क ओट से ताकती ह, गोया कसी के आने का इं तजार कर रह है । दफ़अतन रामकली ने खुश होकर कहा—सखी, वो दे खो, वो आ रहे है । इस व

उनके

िलबास कैसे खुशनुमा होते है । एक लमहे म एक िनहायत खूबसूरत फटन फाटक के अंदर दा खल

हई ु और बरामदे म आकर

क । उसम से बाबू अमृतराय उतरे मगर तनहा

गो ज़द था मगर उस व

ह ठो पर एक ह का सा तबःसुम नुमायॉ था।

नह ं। उनका एक हाथ ूेमा के हाथ म था। बाबू अमृतराय का वजीह चेहरा

और गुलाबी रं ग क नौशेरवानी और धानी रं ग का बनारसी दोपटटा और नीले कनारे क रे शमी धोती उस व रह

उन पर कयामत का फबन पैदा कर

थी। पेशानी पर जाफ़रान का ट का और गले म खूबसूरत हार इस

जेबाइश के और भी पर लगा रहे थे। ूेमा हःन क तसवीर और जवानी क तसवीर हो रह थी। उसके ु

चेहरे पर वह जद और नकाहत, वह पजमुदगी और खामोशी न थी जो पहले

पायी जाती थी ब क उसका गुलाबी रं ग, उसका गदराया हआ बदन, उसका ु

अनोखा बनाव-चुनाव उसे नजर म खुबाये दे ते है । चेहरा कुदं न क तरह दमन रहा है । गुलाबी रं ग क स ज हािशये क साड़ और ऊदे रं ग क कलाइय पर चुनत क हई ु कुत इस व

ग़ज़ब ढा रह है । उस पर हाथ

म जड़ाऊ कड़े , सर पर आड़ र खी हई ु झूमर और पॉव म ज़रदोजी के काम

क खुशनुमा जूती और भी सोने म सुहागा हो रह है । इस वजा और इस बनाव से बाबू साहब को ख़ास उ फत है

यूँ क पूणा क तसवीर भी यह

िलबास पहले दखायी दे ती है और नजर अ वल म कोई मु ँकल से कह सकता है क इस व

ूेमा ह क सूरत मुनअ कस होकर आईने म यह

जोबन नह ं दखा रह है । 104

बाबू अमृतराय ने ूेमा को उस कुस पर बठा दया जो ख़ास इसीिलए बड़े तक लुफ़ से सजायी गयी थी और मुसमराकर बोले— यार ूेमा, आज मेर

जंदगी का सबसे मुबारक दन है । ूेमा ने पूणा क तसवीर क तरफ़ हसरत-आलूद िनगाह से दे खकर

कहा—हमार

जंदगी का

य नह ं कहते।

ूेमा ने यह जवाब दया ह था क उसक नज़र एक सुख चीज़ पर जा पड़ जो पूणा क तसवीर के नीचे एक खूबसूरत द वारगीर पर धर हई ु थी। उसने फ़त शौक़ से उसे हाथ म ले िलया, दे खा तो पःतौल था। बाबू अमृतराय ने िगर

हई ु आवाज़ म कहा—ये

यार

पूणा क

आ खर यादगार है । उस दे वी ने इसी से मेर जान बचायी थी। ये कहते-कहते आवाज़ कापँने लगी और ऑ ंखो म ऑ ंसू डबडबा आये। ये सुनकर ूेमा ने उस पःतौल का बोसा िलया और फर बड़े अदब के साथ उसको उसी मुकाम पर रख दया।

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