Durga Kavach

  • May 2020
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  • Words: 916
  • Pages: 5
द ु गाा कवच ऋिि के

मारकंडे

ने

पूछा

जो गुप मंत है संसार

जभी, दया

मे, है सब

करके बह जी

शििया िजसके

बोले

अििकार मे

तभी

हर इक का कर सकता जो उपकार है िजसे जपने से बेडा ही पार है पिवत

कवच

सुनो

मारकंडे

कवच

की

नवदग ु ाा उसपे

तीसरी

मे

जय

का जो हर काम पुरा करे सवाली का

समझाता

हूँ, मे

कवच

ये

सुंदर

िकसी

आये

पहले

मे

का

लाये

कहो

दग ु ाा बलशाली

जय

शैलपुती चनदघंटा

चोपाई

बना

दग ु ाा के

जो

है

पढ़े

पकार महारानी

नव

अतयंत

कहलावे,

शुभनाम,

जय

दस ु री

चौथी

गुप

जो

का की

नाम बतलाता हूँ दे ऊ

मन कभी

दग ु ाा

बता

अष

बहचािरणी कुषमांडा

िचत कष

भवानी

न की

मनभावे

सुखिाम

पांचवी

दे वी

सातवीं

कालराित

नोवी

बखाने महा

असकंि

महा

शिि

मे

िवपिि

कवच

चामुड ं ा

वन

बैल हं स

वयोहार

को

लकमी

मे, रोग मे,

सुने

चक

नाश

बार

कष कोिट काम

करने

बार

दया

आओ कहो

अििन

की जय

दिकण

मे

वायु

मे

उिर बहमाणी

के

रका जय

से

माता

दस

िसर

मोर

बहमी

हं स

भिन

मूसल

कर

रप

दे वता,

िदशाओ

मे,

माँ

हर

कमल

के

कीन

के

रखवारी फूला

महाकाली

िारण

को गाऊ माँ

मेरे कष

चढी

दग ु ाा अष भवानी की मे

पििम

ईशान वैषणवी कष

वीणा

है

गुण

िसंह

पूवा

दग ु ाा

करती

के

जय

नैऋतये

िलए

कीजो

सदा

जी,

पर,

गरड़

ले

पूणा दास

मग ृ वाहनी,

अशा

नरापाये

चढी

अनेक

संघारण

की,

कौमारी

मे

चढी

की

नाम

मे

राजदरबार

मनोकामना िसिि

की

को

मेरी,

तन

वैषणवी

दष ु

महारानी

िनज

जो

नाऊ, जगदमबे

माँ,

के

हाथ

बलशािलनी,

वाराही माँ

उपजे

पणाम

अििन

माँ

मे

कारण

माता

करो

गुलशन

ितशूला, हल

बलशाली

कोिट

जगजाया

पर

असवारी,

चरण

िनवारण

महागोरी

चाहे

सुनाये,

आसीना,

बैल

शिि

िवखयाता

महे शरी

कमल

सदा

कातयायनी नवदग ु ाा

कोई

मान

वाराही

दे वी

ईशरी

आठवी

पेत

सवारी

कौमारी

दै तये

रण

चढी

हिथयार

शंख

मे

मे

छटी

जगजाने

है

असवार

चामुड ं ा

महामाया,

िसििदाती

संकट

माता,

िदशा

खडग

मे

मे

मे

तुम

ऐनदी

िारणी

दे वी

वारणी

फशा

पर

शूलिारी इस

िमटाओ

मेरा

जी

हरो

संसार

मे

करो

सनमुख

मेरे

अिजता

खडी

अघोितनी माला

कोपोलो

संसार

मे

करो

ऊपर



जीभा कामाकी

कंठ

गीवा

की

दोनो दो

की

शूलेशरी,

हाथो

छाती

अंगो



रि

आंतो बल

सत

िार तेरी

आयु बहाणी

कंिो

नािभ

पूतना,

की

करे

पांव

की

मासं

और

बुिि

रज

यश

मे

अंहकार

तम

से

और

और

रका

और

के

रप

ही

करे

के

माँ

िनु

अंगो की रं ग

अपान

फंसी

गुलशन िन

जो

की

अिन

पाण

लकमी

जगतारणी

की

िवनघय

ही

िारणी

जगवािसनी

सब

शयामा

मे

की

बलशाली

करे

भरा

कीिता

घंटी

िवनािशनी

से

माँ

सिी

करे

वो िशव

गुणो

अमतकली

की

शोक

वोह

रका

वाणी

रका

जननी

रका

वात

इस

भाग

िरो

कौमारी

रका

हििडयो

अनेको

कपा

कटी

करे

और

िपि

के

के

जग

रका की

महादे वी

तुम

िचतघंटा

करे

शंकरी

चचक ा ा

की

मंगला

रका

मेरे

माँ

ही

नािसका

रका,

और

माँ

के

माँ

टखनो

की,

की

माता

सुगनिा

दांतो

चंिडका

ठोढी

और

जंघाओं

दोहा

सरसवती,

और

घुटनो

की

मेरे

यशसवनी

दोनो

मेरी

होठो

की

उदर

गुहमेशवरी

माँ

माँ,

सतनो

हदा य

की

माँ

कूलेशवी,

माँ

मूलो

अपना

सब

की

कणा,

भदकाली

भुजाओं

िसर

घंटा

माता

माता

माँ

भकुटी

िवजया

दाये

दे वी

यम

अंश

नीचे

की

उमा

रका

माता

अपरािजता

माँ

और

हो

तयनेता,

की

मे

रका,

पाछे

मेरे,

की,

की,

मधय

काली

नािसका

िशखा

मेरी जया,

बाएं

ललाट

के

इस

दे वी

माँ िारी

भकुटी

माता

रका

है

वािसनी दािसनी

बना

शरीर

और नीर

समान

ये

किरयो

का

समपित पावत ा ी

जान

आन

कलयाण

पिरवार

जगतार

िवदा

दे

माँ

दष ु ो

से

मान

राज

भैरवी याता कवच ऐ

जग

िलखा

रका

मेरी

मे

कोई

भायाा

तुमहारा

जननी

कर

कवच

पाए

तुमहारा

की

सुखो की

मूल

िलए

रका

ितशूल

करो

दे वे

कोई

हर

सब

हाथ

मे

दःुख

फल

कवच

करो

दरबार

तुमहारा

मनवांिछत

सरसवती

हमेश

सदा

नरे श

न मेरे िसर पर आये

जगह

मेरी

दया

इतना

करे

सहाए

दो वरदान

यह पढ़े जो िनिय मान

वह

मंगल

पढ़ते

ही

मोद

बरसाए

नविनिि

घर

आये

********** बह

जी

सुनाया रहा

बोले

आज

बताया सभी

सुनो

मारकंडे , ये

तक

शििया

जग

था की

गुप

दग ु ाा भेद

कवच

मेने

तुमको

सारा, गत की भलाई को मैने

करके एकितत, है िमटटी की दे ह इसे जो पहनाया

गुलशन िजसने शिा से इस को पढ़ा जो, सुना तो भी मुहं माँगा वरदान पाया जो

संसार

मे अपने मंगल को चाहे , तो हरदम यही कवच गाता चला जा

िबयावान

जंगल

िनडर

हो

िवचर

मंत,

यनत

तू

तेरा

यही

हटाये यही

बढाये

जल

मे

मान

भूत

िदशाओ

दशो मे, तू शिि की जय जय मनाता चला जा

थल मे, तू अििन पवन मे, कवच पहन कर मुसकराता चला जा िन

मन जहाँ तेरा चाहे , गुलशन कदम आगे बढाता चला जा

और

िाम

इस

यही पेत

से बढे गा, तू शिा से दग ु ाा कवच को जो गाये

तंत के

तेरा,

यही

तेरे

िसर

से

भय का नाशक, यही कवच शिा व भिि

इसे िनतय पित 'गुलशन' शिा से पढ़ कर, जो चाहे तो मुंह माँगा वरदान पाए

संकट

दोहा इस सतुित के पाठ से पहले कवच पढ़े , कृ पा से आिद भवानी की बल और बुिि बढे शिा से

जपता रहे

जगदमबे

का

नाम, सुख

सुखिाम

भोगे संसार मे, अंत मुिि

कृ पा करो मातेशवरी बालक गुलशन नादान, तेरे दर पर आ िगरा करो मैयया कलयाण ************

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