Do Haw Ali

  • Uploaded by: मोहन तिवारी आनन्द
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  • June 2020
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  • Words: 3,140
  • Pages: 14
दोहा-डॉ.मोहन ितवारी `आननद´ बंदहंु वीणा वािदनी, चरण कमल िचतलाय। माता बुिद िवदायनी, किरयो मोर सहाय।। गौरी-सुत गणराज को, बारमबार पणाम। िवघ हरन मंगल करन, सुख दाता सुख धाम।। ऐसे दीप जलाइये, तन-मन करे उजास। खुिशया फैले चतुिदश, हरे शोक-संतास।। तम नाशे उललास दे, फैलाएँ सदाव। भाई-चारा बढ़ाएँ , मेटे सकल दुराव।। खील-बताशा,नािरयल, नए वसत उपहार। खुिशया लेकर आ गया, दीवाली तयौहार।। जग मग जग मग हो रहे, आंगन औ´ चौबार। तम हर उिजयारा करे, यह पावन तयौहार।। राम लौट आए अवध, खुिशया लाए साथ । गले भेट जन-जन िमले, घर-घर जा रघुनाथ।। अहम् तयाग िनशछल िमले, मन का आपा छोड़। आज िदवाली िमलन की, लगी हुई है होड़।। बंदहंु वीणा वािदनी, चरण कमल िचतलाय। माता बुिद िवदायनी, किरयो मोर सहाय।। गौरी-सुत गणराज को, बारमबार पणाम। िवघ हरन मंगल करन, सुख दाता सुख धाम।। ऐसे दीप जलाइये, तन-मन करे उजास। खुिशया फैले चतुिदश, हरे शोक-संतास।। तम नाशे उललास दे, फैलाएँ सदाव। भाई-चारा बढ़ाएँ , मेटे सकल दुराव।। खील-बताशा,नािरयल, नए वसत उपहार। खुिशया लेकर आ गया, दीवाली तयौहार।। जग मग जग मग हो रहे, आंगन औ´ चौबार। तम हर उिजयारा करे, यह पावन तयौहार।। राम लौट आए अवध, खुिशया लाए साथ ।

गले भेट जन-जन िमले, घर-घर जा रघुनाथ।। अहम् तयाग िनशछल िमले, मन का आपा छोड़। आज िदवाली िमलन की, लगी हुई है होड़।। खेल रहे है देश की इजजत से शैतान। बुरे हाील ीील मे आज कल, पहुँचा िहनदुसतान। राजतंत गुणडा हुआ, नेता तानाशाह। पजातंत बेहाल है, जनता रही कराह। जनता के दारा चुनी, जनता की सरकार । जनता पर बरसा रही, िनत नए अतयाचार । िनधरन का शोषण बुरा, मत दे उनको तास। उनकी आहो मे िछपा, रहता है संतास। नैितकता रही नही, िजस मनुषय के पास। उससे करना छोिड़ये, कभी भले की आए। गुण िबन पशु की तरह नर, कही न पावै मान। गुण पूजा जाता सदा, जानत सकल जहान। िदशाहीन पीढ़ी हुई, भूल रहे सतकमर। देख िसनेमा सीिरयल, सब हो रए बेशमर। तुम मे उनमे भेद कया, एक खून का रंग। जाित धमर मे फकर कर, मत भड़काओ जंग। यिद चाहो तुमो िमले, लोगो का सदाव। तो िफर रखना छोड़ दो, लोगो से दुभाव। सुखा रही िदल की तपन, दुखयारो के नीर। िकससे जाकर के कहै, सबके सब बेपीर।। हार गया सो मर गया, सिदयो की यह सीख। मर जायेगे भूख से, तऊँ न मागे भीख।। वो अजमाने मे लगी, अपने बल का भार। हमने भी हँसकर सही, मंहगाई की मार।। करने वाला एक है खाने वाले पाच। िचत जलाकर हंस रही मँललल हगाई ं ं ल

की आंच।।

धीरज के बंध ढह गए, देख भूख के हाल।

बेकारी की मार से, हुए हाल बेहाल।। िहनदु मुिसलम मे कोई फकर नही है यार। एक चाहता मुहबबत, दूजा चाहे पयार।। बैर-बुराई छोड़कर, सबको गले लगाय। दुशमन छोड़े दुशमनी, बहुिर िमत बन जाय।। िमत वही जो साथ दे, बुरे वकत मे यार। ढोग िमतता का करे, यह ज़ािलम संसार।।

पावस ने दसतक दई, उछल उठा िचतचोर। कोयल कूकी आम पर, वन मे नाचा मोर।। तला पुखिरया भर गई, दादुर गाएँ गीत। िबरिहन मन पीड़ा जगी,कब लौटे मनमीत।। िरम िझम िरम िझम झर रहे, ये सावन के मेह। काल कोठरी से लगे, िबन साजन के गेह।। घन गरजे दािमण कर, िझल - िमल खेल। िबरिहन िजयरा जल रहा,जयो बाती िबन तेल।। बतलाओ िकससे कहँू, `मोहन´ िहय की पीर। मनिसज दसतक दे रहा, तन मन होत अधीर।। बदरा तुम जाओं वहा, िजनके घर सुख चैन। यहा तुमहारी वजह से, झड़ी लगाये नैन।। मार रहे बेकार मे, पीड़ाओं के वाण। तुम को कया िमल जायेगा, लेकर मेरे पाण।। बूँद-बूँद सुलगा रही, अंग अंग मे आग। कोई पूछने आए अस, कहा हमारे भाग।। राजतंत गुणड़ा हुआ, नेता तानाशाह । पजातंत बेहाल है, जनता रही कराह।। मत उिड़ये आकाश मे, नही वहा है ठौर। िमटी मे वो िमल गए, जो थे कल िसरमौर।। जो चाहो जीवन सफल,चलो समय को देख। काजल-कोठी से बचो, लग जायेगी रेख।।

अफसर शाही कर रही, भारी भषाचार। िनधरन पर धनवान का ,छाया अतयाचार।। जो िजसने बोया िमला, उसको वह पिरणाम। पहले कयो सोचा नही, था करने से काम।। हवा चले िजस ओर की, उसी ओर बह जाव। जीवन हो सुखमय सदा, रहे न कोई अभाव।। पते पर करवट करे, अवसरवादी लोग। नैितकता को ताक रख भोग रहे सुखभोग।। उनका चेहर देखकर, मत होना हैरान। पछतावा करता सवयं, उनहे बना भगवान।। कब कया कहदे कया करे, कौन सकेगा जान। उनके भीतर कौन सा, िछपा हुआ शैतान।। फले आम टहनी झुकी, देती सबको सीख। धन पाकर यिद मद िकया, तो मागोगे भीख।। कयो िचंितत हो इसिलए, निहं धन का भणडार। धन से कया ले पावगे, झूठा है संसार।। निदया पानी से कहे, बुरे िदनन के फेर। आँख िदखा मछली रही, मगर लगाता टेर।। तू दुिनया की भीड़ मे, मत खो देना नाम। पवरत पर लहरा उठे, परचम कर वो काम।। नारी के गुण की कदर, करता है संसार। पर नारी को आज कयो जला रहा भरतार।। कयो दहेज की मार से, पीिड़त हुआ समाज। अपनी बेटी के िलए, कया सोचोगे आप।। भाई- भाई मे िछड़ा, कयो भीषण संगाम। कहा-भरत लकमण गए, कहा खो गए राम।। िशका ने िबचिलत िकया मन बचचो का आज। िशका भटकी जान से, दूिषत हुआ समाज।। आम आदमी हो गया कहने को मजबूर। सामािजक सदाव से लोग हुए कयो दूर।।

कौन बचाने आयेगा, दुगितर से संसार। जब रखवाले ही करे चोरो सा वयवहार।। घरवालो ने ही िमटा, डाली घर की साख। अब पछताए कया िमले, छाने दर दर खाक।। ले उधार घी पीिजये, जब तक िमलता जाय। िचनता मत कर काल की, सब पर राम सहाय।। मत भूलो जो देवगे, पाओगे मय बयाज। लगे भोगने मे सभी, काल िकया सो आज।। बड़ो बड़ो का आजकल, नही बचा ईमान। बचा नही पाए सवयं, हम अपनी पहचान।। िदखलाऐंगे रासते, गिदZ श की दीवार। ितनके पार करायेगे, गहरी दिरया पार।। मत उदास हो बैिठये, देख िदनन के फेर। समय बहुत बलवान है, पलटत लगत न देर।। चुप बैठो जैसा कहे, मानो बैसी बात। देन लगे बेटा बहू, ये सुनदर सौगात ।। गमलो मे ही िदख रही, अब हरयाली आज। बागानो मे केकटस, का पसरा सामाजय। । बरगद िसर नीचा िकए, खड़ा हुआ है आज। छुईमुई सीना तान कर, लगा रही आवाज। । गंगा जल शरमा रहा, देख आपनो रंग। नाली इठलाकर कहे, आजा मेरे संग।। बैठा कौने मे छुपा, लोटा बहुत उदास। लगा ठहाका अब रहा, टेिबल सजा िगलास।। दु :शासन को सुना था, पर देखा है आज। गली-गली मे लूटता, मजबूरी की लाज।। बचे आदमी मे नही, अब िदखते सदाव। रकक ही भकक बने , कैसा िवकट पभाव।। राजनीित या धमर हो, या राजा या रंक। सबका िदल दहला रहा, यह भीषण आतंक।।

िजनसे कोसो दूर है, नीित धमर व जान। जोड़ तोड़ कर पा रहे, मान और सममान। । िकस पर अँगुली उठाएँ , िकस का करे बखान। िलए कटारी ताक मे, सब है एक समान।। अँिखयन से कह देत है, िहरदे मे की बात। समझजात है पारखी, िबना कहे सब बसत। लूट रहे धनवान है, िनधरन का ईमान। बुरा वकत है आजकल, मुिशकल मे इंसान। कहो िमत कैसे िजएँ , िनधरन व मजदूर। मेहगाई की मार से, सपने चकनाचूर। बात करे सदाव की डाके डाले लोग। वैरागी बाना बना, भोग रहे है भोग। बगुला मछली के िलए, एक टाग तैयार। मुिशकल है पहचानना, साधू बना िसयार। हालातो को देखकर, िदल होता हैरान। कैसे समझौता करे, संकट मे इंसान। िरसतो मे आई गलन,िपघल रहे अनुबनध। हुए बचाना है किठन, आपस के समबनध। अवसर को समझा नही,रोता वकत नसाय। दोषारोपण और पर, मूरख रहा लगाय। आज आदमी िगर रहा िनज नजरो आप। िसर धुनकर पछता रहा, िगन िगन अपने पाप। परिहत मे जीवन िजया, िकए सदा सतकमर। सचचाई िनषा लगन, सिहत िनभाया धमर। सतकमों के पुणय फल,सदा देत है साथ। ये जीवन सुखमय रहे, सुधर जात परमाथर। अँिखयन से कह देत है, िहरदे मे की बात। समझजात है पारखी, िबना कहे सब बसत। लूट रहे धनवान है, िनधरन का ईमान।

बुरा वकत है आजकल, मुिशकल मे इंसान। कहो िमत कैसे िजएँ , िनधरन व मजदूर। मेहगाई की मार से, सपने चकनाचूर। बात करे सदाव की डाके डाले लोग। वैरागी बाना बना, भोग रहे है भोग। बगुला मछली के िलए, एक टाग तैयार। मुिशकल है पहचानना, साधू बना िसयार। हालातो को देखकर, िदल होता हैरान। कैसे समझौता करे, संकट मे इंसान। िरसतो मे आई गलन,िपघल रहे अनुबनध। हुए बचाना है किठन, आपस के समबनध। अवसर को समझा नही,रोता वकत नसाय। दोषारोपण और पर, मूरख रहा लगाय। आज आदमी िगर रहा िनज नजरो आप। िसर धुनकर पछता रहा, िगन िगन अपने पाप। परिहत मे जीवन िजया, िकए सदा सतकमर। सचचाई िनषा लगन, सिहत िनभाया धमर। सतकमों के पुणय फल,सदा देत है साथ। ये जीवन सुखमय रहे, सुधर जात परमाथर। जान सको तो जान लो. नीित रीित अर कमर । राजनीित मे घसीटो, न तुम नाहक धमर । जनता के दारा चुनी, जनता की सरकार । जनता पर बरसा रही, िनत नए अतयाचार । जो गरीब को तासदे, उसका भला न होय । मार सहे िसर आपने , शीश धुने अर रोय । ये कैसी सरकार है, िजसकी नीित न धमर । नेता मंती कर रहे, रोज िघनोने कमर । चली हवाएँ पिशमी, बदल गए ढंग ढ़ौर। भाई भुलाई रािखया जोर ने गनगौर।

शीश झुका दृग मूँद कर, िनकले माई बाप। कौन िदशा मे संसकृित ले जायेगे आप।। िदशाहीन पीढ़ी हुई, भूल रहे सतकमर। देख िसनेमा सीिरयल,हो रए सब बेशमर। िकससे जा िकसकी कहूँ, सुनने वाला कौन। रकक ही भकक बने , शासक बैठे मौन।। आसतीन मे पालना छोड़ दीिजए साप। वो िनंह होते िकसी के, समझ लीिजए आप। उलझन मे उलझा हुआ मानवीय वयवहार। समय परे पर काम दे वोही सचचा यार।। अपनी गोटी साधकर कदम बढ़ाये जोय। उसके पास न बैिठये जो िहत चाहत होय। उनको रोता देखकर मत पसन हो यार। समय बड़ा बलवान है सब पर करता वार।। बाट सको तो बाट लो कुछ दुिखयो की पीर। उलट पुलट कर देत है दुिखयारो के नीर।। राखी के भीतर िछपा भाई बिहन का पयार। मोहन धागा पेम का, यह जीवन संसार।। राखी उसको बािधये, जो राखे सममान। िनभा सके िरसता सदा उसको भाई मान।। रंगी कटारी खून से िलये घूमते लोग। मानवता मे आज कल,लगा कौन सा रोग।। कबहुँ न बोले कटु बचन कबहुँ न दुख पहुँचाय । दूजो की सेवा करै, तीनो लोक बनाय । समय काल की चाल का, सदा रािखये धयान । एक भूल की सौ सजा, पा जाता इंसान ।। शतू को सनमागर पर, चलने को समझाय । बैर भुला अपना बना, जीवन सुखद बनाय। । नखी जीव सती पशु, नाग राज पिरवार । इनसे दूरी ही भली, नपा तुला वयवहार ।।

िहनदुसतानी जाित है, राषटपेम है धमर । मानव मोहन एक ह,मानव सेवा कमर ।। कोई बड़ा छोटा नही, सब है एक समान । अमर ितरंगा इष है, ईशर िहनदुसतान ।। भारत माता से बडा, जाित धमर कछु नािह । इसकी माटी से बना, अनत इसी मे जािहं ।। तन मन धन से जो करिह भारत मा से पयार । धनय धनय उनके कुटुमब धनय धनय पिरवार ।। अधम कमर पशु की तरह, नाहक जीवन जाय । दुषकमी इह जनम कया, अगला जनम नशाय ।। कल़म तेज तलवार से, बेहद पैनी धार। लेखक है योदा बड़ा, करत करारी मार।। सदा रहत है ताक मे कब मौका पा जाय। नेता हो गए भेिड़या जाने कब खा जाय।। आगन कर गीला मेरा चला गया मुँह मोड़। सावन तू बेपीर है, गया तड़पता छोड़।। लघु को तुचछ न मािनये, संयम का कर धयान । चीटी हाथी से बडी, समय होत बलवान ।। ``अहं´´ भाव है अित बुरा, पथ से देय िगराय । ``मै´´ से ``मै´´ टकरात तब, सवरस देत नसाय ।। `कलह´ `कलह´ मे जात जल, मानव का सब जान । `तेरी´ मेरी´ `और´ की, कह सुन कर हैरान ।। िहंसा दावानल बहै, जो जा खुद िगर जाय । उसको कोन बचा सके, सवयं न बचना चाय ।। पर पीडन मे मन लगा, मूढ-िचत रत देष । दूजो की पैशुनय कर, पर िसर मढिहं कलेष ।। चुगली, चोरी, ईषरया, अंहकार अजान । दमभी, कपटी, कुिटल नर, जीिवत मृतक समान ।। दान, पुणय फल दैव है, जन जन का कलयाण । मनसा रपी मेैल को, तयागिहं चतुर सुजान ।।

धमरशासत औ वेद का, धोखेहु कर अपमान । भोगे अकय नरक को, जनम जनम लौ जान ।। देवता बाहण साधु से, पालै नाहक बैर । दमभी, लोभी, मूढ की, यहॉ वहॉ न खैर ।। कमा शील, दानी, अभय, िनिवरकार मदहीन । उनको साधू जािनये िनत परिहत मे लीन ।। चनदन बन परिहत करे, मेहदी बन सुख दैय । धैयरवान मृदु बचन कह, साधु सुयश फल लैय ।। परिहत िचनतन रत रहे, शुभ सोचे मद तयाग । ऐसे जन िवरले जगत, बनदहंु पद अनुराग ।। जो िबन कारज, िबन बजह, दाये बाये हौय । पर शुभ देखे जल उठै, पर सुख देखे राये ।। कबहु न बोले, शुभ बचन, परिहत सोचे नाय । पर पीडन के काज िहत, आगे आगे जाय ।। जो पर दोषन सुख लहिहं, कपटी कुिटल कुकमर । इन सबको दुजरन कहो, कबहंु न कीजे शमर ।। परदारा-रत दुगुरणी, कोधी, कपटी होय । इनकी मदद न लीिजये, िकतनहंु संकट होय ।। काम, कोध, मद, लोभ रत, सदा कुिटल वयवहार । इनको दुजरन कहत सब, भय मानत संसार ।। अहंकार अजान है, दमभी मूखर महान । झूठमूठ मे सवयं की मिहमा करे बखान ।। मधुर वचन िपय लागिहं, मन का भेद िमटाया । दुशमन हं तज शतुता, बहुिर िमत बन जाय ।। सोच समझकर जो चलिहं, कबहंु चूक िजन होय । सदा सफलता िमलिहं ितनह, जीवन सुख मय होय ।ल ं ं । सतमारग पर जो चलिहं, सदाचार वृतनेम । ितनकी पग पग िमतता , जीवन भर सुख पेम ।। परिननदा, ईषरया, घृणा, लोभ, कोध, अिभमान । लोभी कोधी, आलसी, सदा दुखी इनसान ।।

िवधना ने दोनो रचे, सुखदुख एक समान । अपने अपने कमर फल, पाता चतुर सुजान ।। जो िजसको अचछा लगे, वही उसे सुख-रप। जो मन मे न भाय वह, भरा हुआ दुख कूप ।। सुख-दुख मे कछु भेद निहं, जो ले जैसा मान । जानी दुख को सुख कहिहं, तजिहं मोह अजान ।। सुख दुख का सचचा समन, थोडे मे संतोष । आतम शुिद, िचनता िवमुख, कबहंु न बयापै रोष ।। जो दुख मे न दीन हो, कमर करै िचतालय । सुख दुख सम िदन बीतते, फकर न जाना जाय ।। दान-पुणय, पूजन हवन, सदगुण मे तललीन । परिहत मे रत जो रहिहं, कबहंु न ते दुखदीन ।। कबहंु न मनमे भावना, दुख दूजे को देय । ते नर हरदम सुख लहिहं, कतहंु न कुछ संदेह ।। काम, कोध, मद, लोभ का, िजनिहं न वयापै रोग । कमरिनष सचचिरत सुिध, साधु जािनये लोग ।। सुख-दुख मे न हो भिमत, तजिहं मोह अिभमाना । काम, कोध ईषरया, घृणा, तयागिहं साधु सुजान।। धमर, जान पथ पर चलिहं, परिहत िजन मन मािहं । ितनको पंिडत मािनये, ये िवरले जग मािह ।। अित आदर से निहं सुखी, दुखी न अित अपमान । सुख दुख सम िजनके िलये, साधू सुनहु सुजान ।। ितनके से िचनता बडी, तन मन देय जलाय । िबना अिगन फंके सकल, सफल न कछू उपाय ।। िचनता जवाल शरीर की, सके न सहज बुझाय । वे नर कैसे िजये िनत, िचनता िजनिहं सताय ।। मानव मे तृषणा भरी, औ चाहत की चाह । िदन िदन दूनी बढत है, आसमान सी राह ।। मनसा, इचछा, वासना, जीवन के घुन जान । तृिपत नही इनकी कही, जानत सकल जहान ।। िबन कारण िचनता करत, भोगत तास महान ।

अपने अंदर झाक कर, पापत कीिजये जान ।। सुर नर मुिन कोऊ नाय, िजनिह न वयापी यह वयथा। ईशर िजनिहं सहाय, ते उवरिहं इस जवाल से ।। िचनता को मारै हसी, तन मन देय फुलाय । यौवन को ताजा करै, खुिशयो से भर जाय ।। परिननदा ईषा जलन, कोध मोह मद मान। मानव जीवन मे गढ़त सदा दुखद सोपान।। िमत-शतु कोई नही, जेिह जस लेविहं मान। समय परे पर कीिजये, िमत-शतु पहचान।। कोई बड़ा छोटा नही, सब जन एक समान। करनी से नृप रंक हो, िनधरन हो धनवान।। न कोउ दुबरल न बली, न कोउ बाज बटेर। समय होत बलवान अित, िबगड़त बनत न देर।। बोल चाल मे घोिलए, पेम और सदभाव। जो चाहो कलयाण सुख, शतुिह-िमत बनाव।। मोहन पीड़ा मे पला, यह जीवन संसार, डगर डगर पर झेलनी,पड़ी यातना मार।। तू जैसा चाहे नचा, आया तेरे दार,। कठपुतली का नाच यह, नाच रहा संसार।। देव अितिथ माता-िपता, का न करै सममान। सकल पदारथ भोग नर,जीिवत मृतक समान।। परिहत मे कछु न करै, नाहक वकत गमाय। धरती पर बोझा बना, जीव अखारत जाय।। ``आनंद´´सब आननद है,जो ले जैसा मान, पानी पानी मे फरक,समझत चतुर सुजान।। नजर नजर के फेर मे,राई िदखत पहार। दुशमन जब अपना लगे बदल जात वयवहार।। नदी नािर नािगन नजर,चलती अपनी चाल। इनको कबहंु न छेिड़ये,रओ चाहो खुशहाल।। बषाZ आतप ताप मे,रिखये सदा समहार।

शिकत शािनत सदभावना,िनमरल सवचछ िवचार।। बाहुबली सब जीत गए,हार गए कमजोर। नाहक पीटी तािलया, मचा मचाकर शोर।। नाग नाथ तो हट गए,साप नाथ गए आय। उनने मारा पेट से ,आगे राम सहाय।। आशा से अटका हुआ,जनता का आकाश। उनका ढ़ाया अंधेरा शायद िमले पकाश।। हमने तो तुम पर िकया, तन मन से िवशास। तुम पत सबकी रािखयो, पूरी किरयो आस।। जाित पात के भेद ने , दए समबनध िमटाय। सुख-दुख मे कोउ कबहंु, करवै नही सहाय।। तन मन धन से जीव की, सेवा िजनका कमर। ऐसे जन युग-युग अमर, समझ लीिजये ममर।। िचनता जवाल शरीर की, हाड़ मास खा जाय। मछिलया,तड़पतड़प मर जाय।। मानव मे तृषणा भरी, औ चाहत की चाह। िदन-िदन दूनी बढ़त है, आसमान सी राह।। मनसा इचछा कामना, जीवन के घुन जान। तृिपत नही इनकी कही, जानत सकल जहान।। जनम मरण के चक मे, सुख-दुख आये जाय। मूरख िसर पीटै धुने , रो-रो के िचललाय।। मनसा बाचा कमरणा, पर पीड़न न होय। धमर पेम सदावना, जीवन के मग दोय िचनता को मारै हंसी, तन मन देय फुलाय। यौवन को ताजा करै, खुिशयो से भर जाय।। हासय बढ़ावै शिकत को ,बल बधरक वरदान, सुख मय जीवन के िलए, िचनता तजै सुजान।। दुिनया कैसी वावरी, भूल गई पहचान। बाहर िदखता आदमी,िछपा हुआ सैतान।। दमदार दोहे बस मे भारी भीड़ लख मन ही मन मुसकाय।

जयो पानी िबन

खड़ी बगल मे सुनदरी, ध िदया लगाय। ( हाय कहकर मुसकाने , ) खीच जोर चाटा जड़ा, गाल पड़ गया लाल । िफर हँसकर बोली िमया किहए कैसे हाल । ( बुढ़ापे मे गराने ) एक हाथ मे झड़ गए मेरे बितस दात । मुझे बताओ िकस बजह, आप उठाया हाथ । ( होश आ गए िठकाने , बुढ़ापे मे गराने ) ऊमर के भीतर रहे ऊमर वाली बात, समझा दूँगी माजरा, घर लोटेगे रात । ( चले न एक बहाने ) घबराते घर मे सुसे, िसर पर टोप लगाय, धक धक धक िजयरा करे आगे राम सहाय। ( िमया बेहद घबराने ) लाज न आवत आपको, इस वय मे ये काम, बाहर आवारा िगरी, घर मे सीता राम । ( हमई को नई पहचाने ) चार और तुम मार लो, पर न बात बड़ाव, कान पकड़ता हूँ िपये, बचचो से न काव । ( लाज अब तुमई बचाने ) घर मे बनता महातमा, बाहर खोटी चाल, उठा लबुिदया िमया की बीबी खीची खाल । (बहुत रोये िचललाने बुढ़ापे मे गराने ) न मन मे िवशास है, निहं नैनन मे नेह। ऐसे जन नही आपने , मत पालो संदेह।।

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िबना कहे कहदेत ह, नैना मन की बात। समझदार िबन कहे ही,समझजात सब बात।।

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