Asaram Bapu - Yog Yatra-4

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  • Words: 19,099
  • Pages: 46
योगया ा -४

तावना वे ा महापु ष क उप तिथ मा अ या मक सहायता



होती है |

आसारामजी बापू क



अथवा अ

प र ला वत

दय के उदगार एवं प

से असं य जीव को

-अ

, सांसा रक-

ातः

मरणीय परम पू य सदगु दे व संत



ेरणा से जो लोग लाभा वत हए ु है, उनके

को िल पब



कया जाय तो एक-दो नह ,ं कई

तैयार हो सकते है | इस पु तका "योगया ा-४" म भ हए ु थोडे -से पु प ह | भारतवष के योग व ान और

ंथ

के अनुभव क बिगया से चुन वे ाओं क अलौ कक श

का

वणन केवल कपोलक पत बात नह ं है | ये हजार-दो हजार लोग का नह ं ब क बापूजी के लाख -लाख साधक का अनुभव है | इन अनुभव को पढने से हमारे

विभ न

कार के अलौ कक अ या मक

दय म अ या मकता का संचार होता है | भारतीय सं कृ ित

व भारत क साधना-प ित क स चाई और महानता क महक िमलती है | न र जगत के सुखाभास क पोल खुलती है | शा त सुख क और उ मुख होने का उ साह हमम उभरता है | इन आ या मक अनुभव को पढकर

ा के साथ अ या मक माग म जो

होती है उसे य द साधक जागृत रखे तो वह शी है | हजार

लोग

के बीच अपने

नेह -िम

ह साधना क ऊँचाइय के सम

वृ

क छू सकता

जो अनुभव कहे ह उनक

मा णतता म संदेह करना उिचत नह ं है | उनके अनुभव उ ह ं क भाषा म.... - ी अ खल भारतीय योग वेदा त सेवा सिमित, अमदावाद

तावना ......................................................................................................................... 2 पू य ी के स संग म धानमं ी ी अटल बहार वाजपेयी के उदगार...................................... 5 परम पू य संत ी आसारामजी बापू के कृ पा- साद से प र ला वत दय के उदगार.................. 6 रा उनका ॠणी है ............................................................................................................. 7 स संग- वण से मेरे दय क सफाई हो गयी... ..................................................................... 7 पू य बापू जीवन को सुखमय बनाने का माग बता रहे ह ......................................................... 7 धरती तो बापूजी जैसे संत के कारण टक है......................................................................... 8 हम सबको भ

बनने क ताकत िमले .................................................................................. 8

सह ऊजा बापूजी से िमलती है ............................................................................................. 9 म तो बापूजी का एक सामा य कायकता हंू............................................................................ 9 म कमनसीब हंू जो इतने समय तक गु वाणी से वंिचत रहा .................................................... 9 इतनी मधुर वाणी! इतना अदभुत

ान! ............................................................................. 10

ऐसे संत का तो जतना आदर कया जाय, कम है ................................................................ 10 आपक कृ पा से योग क अणुश

पैदा हो रह है .................................................................. 11

मुझे िन यसनी बना दया................................................................................................. 12 बापूजी के स संग से व

भर के लोग लाभा वत... ............................................................ 12

ान पी गंगाजी वयं बहकर यहाँ आ गयी... ..................................................................... 13 गु जी क त वीर ने ाण बचा िलये ................................................................................... 13 सदगु िश य का साथ कभी नह ं छोड़ते ............................................................................. 14 गु कृ पा से अंधापन दरू हआ ु ............................................................................................. 14 और डकैत घबराकर भाग गये ........................................................................................... 15 मं

ारा मृतदे ह म ाण-संचार.......................................................................................... 15

सदगु दे व क कृ पा से ने

योित वापस िमली..................................................................... 17

बड़दादा क िम ट व जल से जीवनदान ............................................................................. 17 पू य बापू ने फका कृ पा- साद........................................................................................... 18 एक छोट थैली बनी अ यपा .......................................................................................... 18 बेट ने मनौती मानी और गु कृ पा हई ु ................................................................................. 19 और गु दे व क कृ पा बरसी................................................................................................ 19 कैसेट- वण से भ

का सागर हलोरे लेने लगा.................................................................. 20

गु दे व ने भेजा अ यपा ................................................................................................. 21

व न म दये हए ु वरदान से पु

ाि ................................................................................. 21

' ी आसारामायण' के पाठ से जीवनदान............................................................................. 22 गु वाणी पर व ास से अवण य लाभ................................................................................ 22 और सोना िमल गया........................................................................................................ 23 ु सेवफल के दो टकड़ से दो संतान....................................................................................... 23 साइ कल से गु धाम जाने पर खराब टाँग ठ क हो गयी ........................................................ 24 अदभुत रह मौनमं दर क साधना !................................................................................... 25 असा य रोग से मु

....................................................................................................... 26

पू य बापू का दशन-स संग ह जीवन का स चा र है ......................................................... 26 कैसेट का चम कार.......................................................................................................... 27 मुझ पर बरसी संत क कृ पा............................................................................................... 27 गु दे व क कृ पा से संतान ाि ........................................................................................... 28 गु कृ पा से जीवनदान ...................................................................................................... 28 पू य बापू जैसे संत दिनया को वग म बदल सकते ह.......................................................... 29 ु बापूजी का सा न य गंगा के पावन वाह जैसा है ............................................................... 30 सार व य मं से हए ु अदभुत लाभ .................................................................................... 31 भौितक युग के अंधकार म

ान क

योित : पू य बापू ........................................................ 32

गु कृ पा ऐसी हई ु क अँधरे तो या दे र भी नह ं हई ु ............................................................... 33 मु लम म हला को ाणदान ............................................................................................ 33 ह रनाम क याली ने छुड़ायी शराब क बोतल..................................................................... 34 पूरे गाँव क कायापलट !................................................................................................... 34 ने बंद ु का चम कार ....................................................................................................... 35 पू य ी क त वीर से िमली रे णा..................................................................................... 36 मं से लाभ..................................................................................................................... 36 काम

ोध पर वजय पायी................................................................................................ 37

अ य अनुभव.................................................................................................................. 39 जला हआ ु कागज ............................................................................................................ 39 नद क धारा मुड़ गयी...................................................................................................... 40 सू म शर र से चोर का पीछा कया..................................................................................... 40 मंगली बाधा-िनवारण मं ................................................................................................. 40 सुखपूवक सवकारक मं ................................................................................................ 41 श

शाली व गोरे पु क

ाि के िलए............................................................................... 41

सदगु -म हमा................................................................................................................ 42 लेड मा टन के सुहाग क र ा करने अफगािन तान म कटे िशवजी .................................... 43 महामृ युज ं य मं ............................................................................................................ 45

पू य ी के स संग म

धानमं ी ी अटल बहार वाजपेयी के

उदगार... "पू य बापूजी के भ

रस म डू बे हए ु

ोता भाई-बहनो ! म यहाँ पर पू य बापूजी

का अिभनंदन करने आया हँू ... उनका आश वचन सुनने आया हँू ... भाषण दे ने या बकबक करने नह ं आया हँू | बकबक तो हम करते रहते ह | बापूजी का जैसा

वचन है ,

कथा-अमृत है , उस तक, पहँु चने के िलये बड़ा प र म करना पड़ता है | मने पहले उनके दशन पानीपत म कये थे | वह ं पर रात को पानीपत म पु य- वचन समा

होते ह

बापूजी कुट र म जा रहे थे, तब उ ह ने मुझे बुलाया | म भी उनके दशन और आशीवाद के िलये लालाियत था | संत-महा माओं के दशन तभी होते ह, उनका सा न य तभी िमलता है जब कोई पु य जागृत होता है | इस ज म म कोई पु य कया हो इसका मेरे पास कोई हसाब तो नह ं है क तु ज र यह पूवज म के पु य का ह फल है जो बापूजी के दशन हए ु | उस दन बापूजी ने जो कहा, वह अभी तक मेरे

दय-पटल पर अं कत है |

दे शभर क प र मा करते हए ु जन-जन के मन म अ छे सं कार जगाना, यह एक ऐसा परम, रा ीय कत य है , जसने हमारे दे श को आज तक जी वत रखा है और इसके बल पर हम उ जवल भ व य का सपना दे ख रहे ह... उस सपने को साकार करने क श एक

कर रहे ह | पू य बापूजी सारे दे श म

-भ

मण करके जागरण का शंख नाद कर रहे

ह, सवधम-समभाव क िश ा दे रहे ह, सं कार दे रहे ह तथा अ छे और बुरे म भेद करना िसखा रहे ह | हमार जो

ाचीन धरोहर थी और हम जसे लगभग भुलाने का पाप

कर बैठे थे, बापूजी हमार आँखो मे

ान का अंजन लगाकर उसको फर से हमारे सामने

रख रहे ह | बापूजी ने कहा क ई र क कृ पा से कण-कण म या

एक महान श

के

भाव से जो कुछ घ टत होता है , उसक छानबीन और उस पर अनुसध ं ान करना चा हए | शु

अ तःकरण से िनकली हई ु

ाथना को

होना चा हए | य द अ वीकार हो तो या हमारे अंतःकरण म उतनी शु नह ं कर सकती, अशु

भु अ वीकार नह ं करते, यह हमारा व ास

भु को दोष दे ने के बजाय यह सोचना चा हए क है जतनी होनी चा हए ? शु

का काम राजनीित

का काम भले कर सकती है | पू य बापूजी ने कहा क जीवन के

यापार म से थोड़ा समय िनकालकर स संग म आना चा हए | पू य बापूजी उ जैन म थे तब मेर जाने क बहत ु इ छा थी ले कन कहते है न, क दाने-दाने पर खाने वाले क मोहर होती है , वैसे ह संत-दशन के िलए भी कोई मुहूत होता है | आज यह मुहूत आ गया है | यह मेरा कु



है | पू य बापूजी ने चुनाव जीतने का तर का भी बता दया है |

आज दे श क दशा ठ क नह ं है | बापूजी का वचन सुनकर बड़ा बल िमला है | हाल म हए ु लोकसभा अिधवेशन के कारण थोड़ -बहत ु िनराशा पैदा हई ु थी क तु रात को लखनऊ म पु य- वचन सुनते ह वह िनराशा भी आज दरू हो गयी | बापूजी ने मानव-जीवन के चरम ल य मु भावना तथा थान नह ं है |

-श



ान, भ

ाि

के िलये पु षाथ चतु य, भ

के िलये स पूण क

और कम तीन का उ लेख कया है | भ

ान अिभमान पैदा करता है | भ

म अहं कार का कोई

म पूण समपण होता है | १३ दन के

शासनकाल के बाद मने कहा :'मेरा जो कुछ है, तेरा है |' यह तो बापूजी क कृ पा है क ोता को व ा बना दया और व ा को नीचे से ऊपर चढ़ा दया | जहाँ तक उपर चढ़ाया है वहाँ तक उपर बना रहँू इसक िच ता भी बापूजी को करनी पडेगी | राजनीित क राह बड रपट ली है | जब नेता िगरता है तो यह नह ं कहता क म िगर गया ब क कहता है :'हर हर गंगे |' बापूजी के

वचन सुनकर बड़ा आन द आया | म लोकसभा का सद य

होने के नाते अपनी ओर से एवं लखनऊ क जनता क ओर से बापूजी के चरण मे वन से

होकर नमन करना चाहता हँू | उनका आशीवाद हम िमलता रहे , उनके आशीवाद रे णा पाकर बल



कर, यह



करके हम कत य के पथ पर िनर तर चलते हए ु परम वैभव को

भु से ाथना है | - ी अटल बहार वाजपेयी, धानमं ी, भारत सरकार

परम पू य संत ी आसारामजी बापू के कृपा- साद से प र ला वत दय के उदगार पू. बापू: रा सुख के संवधक "पू य बापू दे श के कोने-कोने मे जतना अिधक म रा सुख का संवधन होगा, रा



ारा दया जानेवाला नैितकता का संदेश

सा रत होगा, जतना अिधक बढ़े गा, उतनी ह मा ा गित होगी | जीवन के हर



म इस कार के

संदेश क ज रत है |" - ी लालकृ ण आडवाणी, उप धानमं ी एवं के



हम

ी, भारत सरकार

रा

उनका ॠणी है भारत के भूतपूव

धानमं ी

ी च

शेखर, द ली के

वण जयंती पाक म २५

जुलाई १९९९ को बापूजी क अमृतवाणी का रसा वादन करने के प ात बोले: "आज पू य बापू क

द य वाणी का लाभ लेकर म ध य हो गया | संत क वाणी ने हर युग मे नया

संदेश दया है , नयी रे णा जगायी है | कलह, व ोह और

े ष से

म बापू जस तरह स य, क णा और संवद े नशीलता के संदेश का

त वतमान वातावरण सार कर रहे ह, इसके

िलये रा उनका ॠणी है |" - ी च भूतपूव

स संग- वण से मेरे

धानमं ी, भारत सरकार

दय क सफाई हो गयी...

पू य ी के दशन करने व आशीवाद लेने हे तु आये हए ु उ र रा यपाल के िलये

शेखर,

दे श के त कालीन

ी सुरजभान ने कहा: " मशानभूमी से आने के बाद हम लोग शर र क शु नान कर लेते ह | ऐसे ह वदे श म जाने के कारण मुझ पर द ू षत परमाणु लग

गये थे, परं तु वहां से लौटने के बाद यह मेरा परम सौभा य है क महाराज ी के दशन व पावन स संग करने से मेरे िच पू य बापू के

वचन को



क सफाई हो गयी | वदे श म रह रहे अनेक भारतवासी या परो

प से सुन रहे ह | मेरा यह सौभा य है क

मुझे यहां महाराज ी को सुनने का सुअवसर



हआ है |" ु - ी सुरजभान, त कालीन रा यपाल, उ र

दे श

पू य बापू जीवन को सुखमय बनाने का माग बता रहे ह गुजरात के त कालीन मु यमं ी

ी केशुभाई पटे ल ११ मई को पू य बापू के दशन

करने अमदावाद आ म पहँु चे | स संग सुनने के बाद उ ह ने भावपूण वाणी म कहा: "म तो पू य बापू के दशन करने के िलये आया था क तु बड़े सौभा य से दशन के साथ ह स संग का लाभ भी िमला | जीवन म अ या मकता के साथ सहजता कैसे लाय तथा मनु य सुखी एवं िनरोगी जीवन कस

कार बताये, इस गहन वषय को कतनी सरलता

से पू य बापू ने हम समझाया है ! ई र- द

इस मनु य-ज म को सुखमय बनने का माग

पू य बापू हम बता रहे ह | भारतीय सं कृ ित म िन हत स य क ओर चलने क हम दे रहे ह | एक वै

क काय, ई र य काय जसे

आज पू य बापूजी कर रहे ह | बापू को मेरे शत-शत

रे णा

वयं भगवान को करना है , वह काय णाम |" - ी केशुभाई पटे ल, त कालीन मु यमं ी, गुजरात रा य

धरती तो बापूजी जैसे संत के कारण टक है "मुझे स संग म आने का मौका पहली बार िमला है , और पू य बापूजी से एक अदभुत बात मुझे और आप सबको सुनने को िमली है , वह है जो मूल त व है , वह है

ेम | यह

ले कन संसार म कोई

ेम करना नह ं जानता, या तो भगवान

संत

ेम क बात | इस सृ

म े नाम का त व य द न हो तो सृ

वाथ जुडा होता है ले कन भगवान संत और गु

जसको हम सचमुच

हो जायेगी |

यार करना जानते ह या

यार करना जानते ह | जसको संसार लोग अपनी भाषा म

कह ं-न-कह ं



का

म े कहते ह, उसम तो का

म े ऐसा होता है

ेम क प रभाषा म बांध सकते ह | म यह कह सकती हँू क साधु-

संत को दे श क सीमाय नह ं बांधतीं | जैसे न दय क धाराएँ दे श और जाित और सं दाय क सीमाओं म नह ं बंधता | किलयुग म तप या का

दय क िन कपटता, िनः वाथ

म े , याग और

य होने लगा है , फर भी धरती टक है तो बापू ! इसिलए क आप जैसे

संत भारतभूिम पर वचरण करते ह | बापू क कथा म ह मने यह वशेषता दे खी है क गर ब और अमीर, दोन को अमृत के घूट ं एक जैसे पीने को िमलते ह | यहां कोई भेदभाव नह ं है |" -सु ी उमा भारती, मु यमं ी, म य

हम सबको भ

दे श

बनने क ताकत िमले

"म तो पू य बापूजी के ताकत नह ं होती और भ

ीचरण म

णाम करने आया हंू | भ

हर कोई बन सकता है | हम सबको भ

से बड़ कोई बनने क ताकत

िमले | म समझता हंू क संत के आशीवाद ह हम सबक पूंजी होती है |" -नरे

मोद ,

मु यमं ी, गुजरात रा य

सह ऊजा बापूजी से िमलती है "गुजरात सरकार ने मुझे ऊजामं ी का पद स पा है , पर सह आ मक ऊजा मुझे पू य बापूजी से िमलती है | " - ी कौिशकभाई पटे ल, त कालीन ऊजामं ी, वतमान म राज व व नाग रक आपूित मं ी, गुजरात रा य

म तो बापूजी का एक सामा य कायकता हंू द ली म आयो जत पू य ी के स संग-काय म के दौरान द ली के त कालीन मु यमं ी

ी सा हब िसंह वमा स संग- वण हे तु आम भ

वण के प ात उ ह ने पू य बापू को माथा टे ककर वागत करके उनका आशीवाद स संग- म े , उनका

म े पूण



के बीच आ बैठे | स संग-

णाम कया... मा यापण के साथ

कया | एक संत के

ित लोग



ा, तडप,

यवहार, अनुशासन व भारतीयता को दे खकर मु यमं ी ी

गदगद हो उठे | उ ह ने बार-बार द ली पधारने के िलये पू य बापू से

ाथना क और

कहा : "आज म पू य बापूजी के दशन व स संग- वण करके पावन हो गया हँू | म महसूस करता हँू क परम संत के जब दशन होते है और उनके पावन शर र से जो तरंगे िनकलती ह वे

जसको भी छू जाती है उसक बहत ु -सी किमयाँ दरू हो जाती ह | म

चाहता हंू क मेर सभी किमयाँ दरू हो जाय | म तो पू य बापूजी का एक सामा य सा कायकता हंू | पू य बापूजी क कृ पा हमेशा मुझ पर बनी रहे एसी मेर कामना है | मेरा परम सौभा य है क मुझे आपके दशन का, आपके आशीवाद |"



करने का अवसर िमला - ी सा हब िसंह वमा,

के

य, म मं ी, भारत सरकार

म कमनसीब हंू जो इतने समय तक गु वाणी से वंिचत रहा

"परम पू य गु दे व के

ीचरण म सादर

णाम ! मने अभी तक महाराज ी का

नाम भर सुना था | आज दशन करने का अवसर िमला है ले कन म अपने आप को कमनसीब मानता हंू

य क दे र से आने के कारण इतने समय तक गु दे व क वाणी

सुनने से वंिचत रहा | अब मेर कोिशश रहेगी क म महाराज ी क अमृत वाणी सुनने का हर अवसर यथासमय पा सकूं | म ई र से यह क हम गु

क वाणी सुनकर अपने आपको सुधार सक | गु जी के

सम पत होते हए ु म य इस म य

ाथना करता हंू क वे हम ऐसा मौका द

दे श क जनता क ओर से

ीचरण म सादर

ाथना करता हंू क गु दे व ! आप

दे श म बार-बार पधार और हम लोग को आशीवाद दे ते रह ता क परमाथ के

उस काय म, जो आपने पूरे दे श म ह नह ं, दे श के बाहर भी फैलाया है , म य दे श के लोग को भी जुड़ने का

यादा-से- यादा अवसर िमल |" - ी द वजय िसंह, त कालीन मु यमं ी, म य

दे श

"म अपनी ओर से तथा यहां उप थत सभी महानुभाव क ओर से परम

ेय

इतनी मधुर वाणी! इतना अदभुत

संतिशरोम ण बापूजी का हा दक

ान!

वागत करता हंू | मने कई बार ट . वी. पर आपको

दे खा-सुना है और द ली म एक बार आपका इतना अदभुत

ान ! अगर आप के

वचन भी सुना है | इतनी मधुर वाणी!

वचन पर गहराई से वचार करके अमल कया जाय

तो इंसान को ज़ंदगी म सह रा ता िमल सकता है | वे लोग धनभागी ह जो इस युग म ऐसे महापु ष के दशन व स संग से अपने जीवन-सुमन खलाते ह |" - ी भजनलाल, त कालीन मु य मं ी, ह रयाणा

ऐसे संत का तो जतना आदर कया जाय, कम है " कसी ने मुझ से कहा था: ' यान क कैसेट लगाकर सोयगे तो के दशन ह ग... मने उसी रात व

रा

यान क कैसेट लगायी और सुनते-सुनते सो गया | उस

के बारह-साढ़े बारह बज ह ग | व

ने मुझे उठा

व न म गु दे व

का पता नह ं चला | ऐसा लगा मानो, कसी

दया | म गहर नींद से उठा एवं गु जी क लप वाले फ़ोटो क तरफ़

टकटक लगाकर एक-दो िमनट तक दे खता रहा | इतने म आ य ! टे प अपने-आप चल

पड़ और केवल यह तीन वा य सुनने को िमले: 'आ मा चैत य है | शर र जड़ है | शर र पर अिभमान मत करो |' टे प वतः बंद हो गयी और पूरे कमरे म यह आवाज गूंज उठ | दसरे कमरे म मेर प ी क भी आंखे खुल गयी और उसने तो यहां तक महसूस कया, ू जैसे कोई चल रहा है ! वे गु जी के िसवाय और कोई हो ह नह ं सकते | मने कमरे क लाइट जलायी और दौड़ता हआ प ी के पास गया | मने पूछा:'सुना ?' वह बोली: 'हां |' उस ु समय सुबह के ठ क चार बजे थे | नान करके म रहा | इतना लंबा

यान तो मेरा कभी नह ं लगा | इस घटना के बाद तो ऐसा लगता है

क गु जी सा ात मेरा िम

यान म बैठा तो डेढ़ घ टे तक बैठा

व प ह | उनको जो जस

प म दे खता है वैसे ह

पा ा य वचारधारा वाला है | उसने गु जी का

दखते ह |

वचन सुना और बोला:

'मुझे तो ये एक बहुत अ छे 'ले चरर' लगते है |' मने कहा: 'आज ज र इस पर गु जी कुछ कहग |' यह सूरत आ म म मनायी जा रह ज मा मी के समय क बात है | हम कथा म बैठे | गु जी ने कथा के बीच म कहा:'कुछ लोग को म 'ले चरर' दखता हंू , कुछ को ' ोफ़ेसर' दखता हंू , कुछ को 'गु ' दखता हंू , कुछ को 'भगवान' दखता हंू ...जो मेरे पर जैसी

ा रखता है उसे म वैसा ह

दखता हंू और वैसा ह वह मुझे पाता है |' मेरे िम

का िसर शम से झुक गया | फर भी वह ना तक तो था ह | उसने हमारे िनवास पर मजाक म गु जी के िलए कुछ कहा, तब मने कहा | 'यह ठ क नह ं है | अब क बार मान जा, नह ं तो गु जी सजा दे ग तुझे |' १५ िमनट म ह उसके घर से फ़ोन आ गया क 'ब चे क त बयत बहत ु खराब है | उसे अ पताल म दा खल करना पड़ रहा है |" तब मेरे िम

क सूरत दे खने लायक थी | वह बोला:"गलती हो गयी | अब म गु जी के िलए कुछ

न कहंू गा, मुझे चाहे

व ास हो या न हो |" अखबार म गु जी क िनंदा िलखनेवाले

अ ानी लोग नह ं जानते क जो महापु ष भारतीय सं कृ ित को एक नया

प दे रह ह,

कई संत क वा णय को पुनज वत कर रहे ह, लोगो के शराब-कबाब छुड़वा रहे ह, जनसे समाज का क याण हो रहा है उनके ह बारे म हम ह क बात िलख रहे ह | यह हमारे दे श के िलए बहत ु ह शमनाक बात ह | ऐसे संत का तो जतना आदर कया जाय, वह कम है | गु जी के बारे म कुछ भी बखान करने के िलए मेरे पास श द नह ं ह |" -डा. सतवीर िसंह छाबड़ा, बी.बी.ई.एम., आकाशवाणी, इ दौर

आपक कृपा से योग क अणुश

पैदा हो रह है

"अनेक

कार क

वकृ ितयाँ मानव के मन पर, सामा जक जीवन पर, सं कार और सं कृ ित

पर आ मण कर रह ह | व तुतः इस समय सं कृ ित और वकृ ित के बीच एक महासंघष चल रहा है जो कसी सरहद के िलए नह ं ब क सं कार के िलए लड़ा जा रहा है | इस म सं कृ ित को जताने का बम है योगश द य अणुश

| हे गु दे व ! आपक कृ पा से इस योग क

लाख लोगो म पैदा हो रह है ...यह सं कृ ित के सैिनक बन रहे ह |

गु दे व ! म आपसे

ाथना करता हंू क शासन के अंदर भी धम और वैरा य के सं कार

उ प न ह | आप से आशीवाद



करने के िलए म आपके चरण म आया हंू | - ी अशोकभाई भ ट, कानूनमं ी, गुजरात रा य

मुझे िन यसनी बना दया... "म पछले कई वष से त बाकू का यसनी था और इस दगु ु ण को छोड़ने के िलए मने कतने ह



कये, पर म िन फल रहा | जनवर ९५ म पू य बापू जब

काशा

आ म (महा.) पधारे तो म भी उनके दशनाथ वहां पहंु चा और उनसे अनुरोध कया: 'बापू! वगत ३२ वष से त बाकू का सेवन कर रहा हँू | अनेक म मु



के बाद भी इस दगु ु ण से

ना हो सका | अब आप ह कुछ कृ पा क जए |' बापूजी ने कहा: 'लाओ त बाकू क

ड बी और तीन बार थूककर कहो क आज से म त बाकू नह ं खाऊंगा |' मने पू य बापू के िनदशानुसार यह

कया और महान आ य ! उसी

यसन छूट गया | पू य बापू क ऐसी कृ पा

दन से मेरा त बाकू खाने का

त हयी क वष पूरा होने पर भी मुझे कभी ु

त बाकू खाने क तलब तक नह ं लगी | म कन श द म पू य बापू का आभार



क ं ! मेरे पास श द ह नह ं ह | मुझे आनंद है क इन रा

होते

संत ने बरबाद व न

हए ु मेरे जीवन को बचा कर मुझे िन यसनी बना दया |" - ी लखन भटवाल, ज. धुिलया, महारा

बापूजी के स संग से व

भर के लोग लाभा वत...

भारतभूिम सदै व से ह ॠ ष-मुिनय तथा संत-महा माओं क भूिम रह है , ज ह ने व

को शांित एवं आ या म का संदेश

दया है | आज के युग म पू य संत



आसारामजी अपनी अमृत वाणी भारत वरन व

ारा द य आ या मक संदेश दे रहे ह, जससे न केवल

भर म लोग लाभा वत हो रह है | - ी सुरजीत िसंह बरनाला, रा यपाल, आ

ान पी गंगाजी

दे श

वयं बहकर यहाँ आ गयी...

उ रांचल रा य का सौभा य है क इस दे वभूमी म दे वता

व प पू य बापूजी का

आ म बन रहा है | आप ऐसा आ म बनाये जैसा कह ं भी न हो | यह हम लोग का सौभा य है क अब पू य बापूजी क गंगा जाकर दशन करने व

ान पी गंगाजी

वयं बहकर यहां आ गयी है | अब

नान करने क उतनी आव यकता नह ं है , जतनी संत



आसारामजी बापू के चरण म बैठकर उनके आशीवाद लेने क है | - ी िन यानंद

वामीजी,

त कालीन, मु यमं ी, उ रांचल

गु जी क त वीर ने

ाण बचा िलये

"कुछ ह दन पहले मेरा दसरा बेटा एम. ए. पास करके नौकर के िलये बहत ू ु जगह घूमा, बहत ु जगह आवेदन-प बापूजी से द

भेजा

क तु उसे नौकर नह ं िमली | फर उसने

ा ली | मने आ म का कुछ सामान कैसेट, सतसा ह य लाकर उसको दे ते

हए ु कहा: 'शहर म जहाँ मं दर है , जहाँ मेले लगते ह तथा जहाँ हनुमानजी का द

णमुखी मं दर है वहां टाल पर जलगांव के एक

टाल लगाओ |' बेटे ने िस

टाल लगाना शु

िस

कया | ऐसे ह एक

यापार अ वालजी आये, बापूजी क कुछ कैसेट खर द ं

और 'ई र क ओर' नामक पु तक भी साथ म ले गये, पु तक पढ़ और कैसेट सुनी | दसरे दन वे फर आये और कुछ सतसा ह य खर द कर ले गये, वे पान के थोक व ता ू ह | उनको पान खाने क आदत है | पु तक पढ़कर उ ह लगा: 'म पान छोड़ दँ ू |' उनक दकान पर एक आदमी आया | पांचसौ ु

पय का सामान खर दा और उनका फोन न बर

ले गया | एक घंटे के बाद उसने दकान पर फोन कया: 'सेठ अ वालजी ! मुझे आपका ु खून करने का काम स पा गया था | काफ पैसे (सुपार ) भी दये गये थे और म तैयार भी हो गया था, पर जब म आपक दकान पर पहंु चा तो परम पू य संत ु के िच

ी आसारामजी बापू

पर मेर नजर पड़ | मुझे ऐसा लगा मानो, सा ात बापू बैठे ह और मुझे नेक

इ सान बनने क

ेरणा दे रहे ह ! गु जी क त वीर ने (त वीर के

गु दे व ने आकर) आपके

प म सा ात

ाण बचा िलये |' अदभुत चम कार है ! मु बई क पाट ने

उसको पैसे भी दये थे और वह आया भी था खून करने के इरादे से, पर तु जाको राखे सांइयाँ.... िच

के

ार भी अपनी कृ पा बरसाने वाले ऐसे गु दे व के



दशन करने के

िलये वह यहाँ भी आया है |" -बालकृ ण अ वाल, जलगांव, महारा

सदगु

िश य का साथ कभी नह ं छोड़ते "एक रात म दकान से ु

काफ

पये रखे हए ु थे |

कूटर

ारा अपने घर जा रहा था | कूटर क

ड क म

य ह घर के पास पहंु चा तो गली म तीन बदमाश िमले |

उ ह ने मुझे घेर िलया और प तौल दखायी | कूटर

कवाकर मेरे िसर पर तमंचे का

बट मार दया और ध के मार कर मुझे एक तरफ िगरा दया | उ ह ने सोचा होगा क म अकेला हंू , पर िश य जब सदगु तब सदगु तो

से मं

लेता है ,

ा- व ास रखकर उसका जप करता है

उसका साथ नह ं छोड़ते | मने सोचा " ड क म बहत ु

कूटर ले जा रहे ह | मने गु दे व से

पये ह और ये बदमाश

ाथना क | इतने म वे तीन बदमाश

कूटर

छोड़कर थैला ले भागे | घर जाकर खोला होगा तो स जी और खाली ट फ़न दे खकर िसर कूटा, पता नह ं पर बड़ा मजा आया होगा | मेरे पैसे बच गये...उनका स जी का खच बच गया |" -गोकुलच

गोयल, आगरा

गु कृ पा से अंधापन दरू हआ ु "मुझे लुकोमा हो गया था | लगभग पतीस साल से यह तकलीफ़ थी | कर ब छः साल तक तो म अंधा रहा | कोलकाता, चे नई आ द सब जगह पर गया, शंकर ने ालय म भी गया क तु वहां भी िनराशा हाथ लगी | कोलकाता के सबसे बड़े ने - वशेष

के पास

गया | उसने भी मना कर दया और कहा | 'धरती पर ऐसा कोई इ सान नह ं जो तु ह ठ क कर सके |' ...ले कन सूरत आ म म मुझे गु दे व से मं ा- व ासपूवक जपा

य क स ात

िमला | वह मं

व प गु दे व से वह मं

मने खूब

िमला था | कर ब छः-

सात मह ने ह जप हआ था क मुझे थोड़ा-थोड़ा दखायी दे ने लगा | डॉ टर कहते थे क ु तुमको

ांित हो गयी है, पर मुझे तो अब भी अ छ तरह दखता है | एक बार एक अ य

भंयकर दघटना से भी गु दे व ने मुझे बचाया था | ऐसे गु दे व का ॠण हम ज म -ज म ु तक नह ं चुका सकते |" -शंकरलाल महे र , कोलकाता

और डकैत घबराकर भाग गये "१४ जुलाई '९९ को कर ब साढ़े तीन बजे मेरे मकान म छः डकैत घुस आये और उस समय दभा था | दो डकैत बाहर मा ित चालू ु य से बाहर का दरवाजा खुला हआ ु रखकर खड़े थे | एक डकैत ने ध का दे कर मेर माँ का मुह ँ बंद कर दया और अलमार क चाबी माँगने लगा | इस घटना के दौरान म दका ु न पर था | मेर प ी को भी डकै त धमकाने लगे और आवाज न करने को कहा | मेर प ी ने पू य बापूजी के िच सामने हाथ जोड़कर

ाथना क

के

'अब आप ह र ा करो ...' इतना ह कहा तो आ य !

आ य ! परम आ य !! वे सब डकैत घबराकर भागने लगे | उनक हड़बड़ाहट दे खकर ऐसा लग रहा था मान उ ह कुछ दखायी नह ं दे रहा था | वे भाग गये | मेरा प रवार गु दे व का ॠणी है | बापूजी के आशीवाद से सब सकुशल ह | हमने १५ नव बर '९८ को वाराणसी म मं द

ा ली थी |" -मनोहरलाल तलरे जा, ४, झुलेलाल नगर, िशवाजी नगर, वाराणसी

मं

ारा मृतदे ह म "म

ाण-संचार

ी योग वेदा त सेवा सिमित, आमेट से जीप

१९९४ को म या ह बारह बजे हमार जीप

ारा रवाना हआ था | ११ जुलाई ु

कसी तकनीक

ु ट के कारण िनयं ण से

बाहर होकर तीन प टयाँ खा गयी | मेरा पूरा शर र जीप के नीचे दब गया | कसी तरह मुझे बाहर िनकाला गया | एक तो दबला पतला शर र और ऊपर से पूर जीप का वजन ु ऊपर आ जाने के कारण मेरे शर र के

येक ह से म अस

दद होने लगा | मुझे पहले

तो केस रयाजी अ पताल म दा खल कराया गया | य - य उपचार कया गया, क

बढ़ता

ह गया

य क चोट बाहर नह ं, शर र के भीतर

ह स म लगी थी और भीतर तक

डॉ टर का कोई उपचार काम नह ं कर रहा था | जीप के नीचे दबने से मेरा सीना व पेट वशेष

ु भा वत हए घुस गये थे | दद के मारे मुझे साँस ु थे और हाथ-पैर म काँच के टकड़े

लेने म भी तकलीफ हो रह थी | ऑ सीजन दये जाने के बाद भी दम घुट रहा था और मृ यु क घ डयाँ नजद क दखायी पड़ने लगीं | म मरणास न मृ यु- माणप

बनाने क तैया रयाँ क जाने लगीं व मुझे घर ले जाने को कहा गया |

इसके पूव मेरा िम | ाणीमा

थित म पहँु च गया | मेरा

पू य बापू से फ़ोन पर मेर

थित के स ब ध म बात कर चुका था

के परम हतैषी, दयालु वभाव के संत पू य बापू ने उसे एक गु

करते हए ु कहा था क 'पानी म िनहारते हए ु इस मं

मं

दान

का एक सौ आठ बार (एक माला)

जप करके वह पानी मनोज को एवं दघटना म घायल अ य लोग को भी पला दे ना |' ु जैसे ह वह अिभमं त जल मेरे मुँह म डाला गया, मेरे शर र म हलचल होने के साथ ह वमन हआ | इस अदभुत चम कार से व मत होकर डॉ टर ने मुझे तुरंत ह ु मशीन के नीचे ले जाकर िलटाया | गहन िच क सक य पर चला

वशेष

ण के बाद डॉ टर को पता

क जीप के नीचे दबने से मेरा पूरा खून काला पड़ गया था तथा नाड़ -चालन

(प स), दयगित व र

वाह भी बंद हो चुके थे | मेरे शर र का स पूण र

बदल दया

गया तथा आपरे शन भी हआ | उसके ७२ घंटे बाद मुझे होश आया | बेहोशी म मुझे केवल ु इतना ह याद था क मेरे भीतर पू य बापू

ारा



गु मं

का जप चल रहा है | होश

म आने पर डॉ टर ने पूछा : 'तुम आपरे शन के समय 'बापू...बापू...' पुकार रहे थे | ये 'बापू' कौन ह ? मने बताया :'वे मेरे गु दे व बापू ह |' डॉ टर ने पुनः मुझसे कहा :'म अपने गु दे व

ातः

मरणीय परम पू य संत

कया : ' या तुम कोई

ारा िसखायी गयी विध से आसन व

ी असारामजी

यायाम करते हो ?' मने ाणायाम करता हँू |' वे बोले

: 'इसीिलये तु हारे इस दबले ु -पतले शर र ने यह सब सहन कर िलया और तुम मरकर भी पुनः ज दा हो उठे दसरा कोई होता तो तुरंत घटना थल पर ह उसक ह डयाँ बाहर ू िनकल जातीं और वह मर जाता |' मेरे शर र म आठ-आठ निलयाँ लगी हई ु थीं | कसीसे खून चढ़ रहा था तो कसी से कृ

म ऑ सीजन दया जा रहा था | य प मेरे शर र के

ु कुछ ह स म अभी-भी काँच के टकड़े मौजूद ह ले कन गु कृ पा से आज म पूण होकर अपना

व थ

यवसाय व गु सेवा दोन काय कर रह हँू | मेरा जीवन तो गु दे व का ह

दया हआ है | इन मं ु

ा मह ष ने उस दन मेरे िम

को मं

न दया होता तो मेरा

पुनज वन तो स भव नह ं था | पू य बापू मानव-दे ह म दखते हए ु भी अित असाधारण महापु ष ह | टे िलफ़ोन पर दये हए ु उनके एक मं

से ह मेरे मृत शर र म पुनः

संचार हो गया तो जन पर बापू क

पड़ती होगी वे लोग कतने भा यशाली

होते ह गे ! ऐसे दयालु जीवनदाता सदगु

य के

ीचरण म को ट-को ट दं डवत

ाण का

णाम..."

-मनोज कुमार सोनी, योित टे लस, ल मी बाजार, आमेट, राज थान

सदगु दे व क कृ पा से ने "मेर

योित वापस िमली

दा हनी आँख से कम दखायी दे ता था तथा उसम तकलीफ़ भी थी |

यानयोग िश वर, द ली म पू य गु दे व मेवा बाँट रहे थे, तब एक मेवा मेर दा हनी आँख पर आ लगा | आँख से पानी िनकलने लगा |... पर आ य ! दसरे ह ू

दन से आँख

क तकलीफ िमट गयी और अ छ तरह दखायी दे ने लगा |" -राजकली दे वी, असैनापुर, लालगंज अजारा, ज.

तापगढ़, उ र

दे श

बड़दादा क िम ट व जल से जीवनदान "अग त '९८ म मुझे मले रया हआ | उसके बाद पीिलया हो गया | मेरे बड़े भाई ने ु आ म से

कािशत 'आरो यिनिध' पु तक म से पीिलया का मं

दया परं तु कुछ ह (िन

य) हो ग

दन

पढ़कर पीिलया तो उतार

बाद अं ेजी दवाओं के ' रए न' से दोनो

कडिनयाँ 'फेल'

| मेरा 'हाट' ( दय) और 'लीवर' (यकृ त) भी 'फेल' होने लगे | डॉ टर ने

तो कह दया 'यह लड़का बच नह ं सकता |' फर मुझे ग दया से नागपुर हॉ पटल म ले जाया गया ले कन वहाँ भी डॉ टर ने जवाब दे दया क अब कुछ नह ं हो सकता | मेरे भाई मुझे वह ं छोड़कर सूरत आ म आये, वै जी से िमले और बड़दादा क प र मा करके ाथना क तथा वहाँ क िम ट और जल िलया | ८ तार ख को डॉ टर मेर

कडनी बदलने

वाले थे | जब मेरे भाई बड़दादा को ाथना कर रहे थे, तभी से मुझे आराम िमलना शु

हो

गया था | भाई ने ७ तार ख को आकर मुझे बड़दादा क िम ट लगाई और जल पलाया तो मेर दोन

कडनीयाँ

व थ हो गयी | मुझे जीवनदान िमल गया | अब म ब कुल

व थ हँू |" - वीण पटे ल, ग दया, महारा

पू य बापू ने फका कृ पा- साद "कुछ वष पूव पू य बापू राजकोट आ म म पधारे थे | मुझे उन दन िनकट से दशन करने का सौभा य िमला | उस समय मुझे छाती म ' ए जायना पे

टो रस' के

कारण दद रहता था | स संग पूरा होने के बाद कुछ लोग पू य बापू के पास एक-एक करके जा रहे थे | म कुछ फल-फूल नह ं लाया था इसिलए

ा के फूल िलये बैठा था |

पू य बापू कृ पा- साद फक रहे थे क इतने म एक चीकू मेर छाती पर आ लगा और छाती का वह दद हमेशा के िलए िमट गया |" -अर वंदभाई वसावड़ा, राजकोट

एक छोट थैली बनी अ यपा "सन १९९२ म रतलाम (म. .) के पास सैलाना के आ दवासी व तार म भंडारे का आयोजन था | भंडारे म सेवाएँ दे ने बहत ु -से साधक आये हए ु थे | आ मवासी भाई भी पहँु चे थे | एक दन का ह आयोजन था और स संग-काय म भी था | उस भंडारे म गर ब के िलए भोजन के अलावा बतन, कपड़े , अनाज और द

णा (पैसे) बाँटने क भी यव था क

गयी थी | मेरे ह से पैसे बाँटने क सेवा थी | मने पाँच

पय वाले सौ-सौ नोट के पचीस

बंडल िगनकर थैली म रखे थे | मुझे आदे श दया गया था : 'आठ सेवाधार िनयु लो | वे लोग पाँच

पये के नोट बाँटते जायगे |' मने आठ

कर

वयंसव े क को पहली बार आठ

बंडल दे दये | फर पं ह-बीस िमनट के बाद मने दसर बार आठ को एक-एक बंडल ू दया | फर तीसर बार आठ को एक-एक बंडल दया | कुल २४ बंडल गये | अब दसर ू पं

भोजन के िलए बठायी गयी | मने आठ

वयंसव े क को पहली क भाँित तीन बार

एक-एक बंडल बाँटने के िलए दया | कुल ४८ बंडल गये | भंडारा पूरा होने के बाद मने सोचा : चलो, अब हसाब कर ले | म िगनने बैठा | मेरे पास ६ बंडल बचे थे | यह कैसे ? म दं ग रह गया ! मने पैसे बाँटनेवाल से पूछा तो उ ह ने बताया क कुल ४८ बंडल बाँटे गये थे | म आ म आया तो यव थापक ने कहा : मने तो आपको २५ बंडल दये थे |' सबको आ य हो रहा था क बँटे ४८ बंडल और लेकर चले थे २५ बंडल | २५ म से ४८ बँटे और ६ बच गये ! गु दे व का आशीवाद दे खये क एक छोट -सी थैली अ य पा

बन

गयी !" -ई रभाई नायक,

अमदावाद आ म

बेट ने मनौती मानी और गु कृपा हई ु "मेर बेट को शाद

कये आठ साल हो गये थे | पहली बार जब वह गभवती हई ु

तब ब चा पेट म ह मर गया | दसर बार ब ची ज मी, पर छः मह ने म वह भी चल ू बसी | फर मेर प ी ने बेट से कहा : 'अगर तू संक प करे क जब तीसर बार

सूती

होगी तब तुम बालक क जीभ पर बापूजी के बताने के मुता बक ‘ॐ’ िलखोगी तो तेरा बालक जी वत रहेगा, ऐसा मुझे व ास है वराजमान ह |' मेर बेट ने इस

य क ॐकार मं

म परमानंद व प

भु

कार मनौती मानी और समय पाकर वह गभवती हई ु |

सोनो ाफ़ करवायी गयी तो डॉ टर ने बताया : 'गभ म ब ची है और उसके दमाग म पानी भरा हआ है | वह जंदा नह ं रह सकेगी | गभपात करवा दो | मेर बेट ने अपनी माँ ु से सलाह क | उसक माँ ने कहा : ' गभपात का महापाप नह ं करवाना है | जो होगा, दे खा जायेगा | गु दे व कृ पा करगे |' जब

सूती हई ु तो ब कुल

ाकृ ितक ढ़ं ग से हई ु और उस

ब ची क जीभ पर शहद एवं िम ी से ॐ िलखा गया | आज वह ब कुल ठ क है | जब उसक डॉ टर जाँच करवायी गयी तो डॉ टर आ य म पड़ गये ! सोनो ाफ़ म जो बीमा रयाँ दख रह थीं वे कहाँ चली गयीं ? दमाग का पानी कहाँ चला गया ? ह दजा ु हॉ पटलवाले यह क र मा दे खकर दं ग रह गये ! अब घर म जब कोई दसर कोई कैसेट ू चलती है तो वह ब ची इशारा करके कहती है : 'ॐवाली कैसेट चलाओ |' पछली पूनम को हम मुंबई से 'टाटा सुमो' म आ रहे थे | बाढ़ के पानी के कारण रा ता बंद था | हम ू गा | हमने गु दे व का सोच म पड़ गये क पूनम का िनयम टटे हमारे

ाइवर ने हमसे पूछा :'जाने दँ ू ?' हमने भी गु दे व का

मरण कया | इतने म

मरण करके कहा : 'जाने

दो और 'ह र ह र ॐ...' क तन क कैसेट लगा दो |' गाड़ आगे चली | इतना पानी क हम जहाँ बैठे थे वहाँ तक पानी आ गया | फर भी हम गु दे व के पास सकुशल पहँु च गये और उनके दशन कये|" -मुरार लाल अ वाल, सांता ू ज, मुंबई

और गु दे व क कृ पा बरसी

"जबसे सूरत आ म क

थापना हई ु तबसे म गु दे व के दशन करते आ रहा हँू ,

उनक अमृतवाणी सुनता आ रहा हँू | मुझे पू य ी से मं द

ा भी िमली है | ार धवश

एक दन मेरे साथ एक भयंकर दघटना घट | डॉ टर कहते थे: आपका एक हाथ अब ु काम नह ं करेगा |' म अपना मानिसक जप मनोबल से करता रहा | अब हाथ ब कुल ठ क है | उससे म ७० क. ा. वजन उठा सकता हँू | मेर सम या थी क शाद होने के बाद मुझे कोई संतान नह ं थी | डॉ टर कहते थे क संतान नह ं हो सकती | हम लोग ने गु कृ पा एवं गु मं

का सहारा िलया, यानयोग िश वर म आये और गु दे व क कृ पा

बरसी | अब हमार तीन संताने है : दो पु याँ और एक पु

| गु दे व ने ह बड़ बेट का

नाम गोपी और बेटे का नाम ह र कशन रखा है | जय हो सदगु दे व क ..." -हँ समुख कांितलाल मोद , ५७, 'अपना घर' सोसायट , संदेर रोड़, सूरत

कैसेट- वण से भ

का सागर हलोरे लेने लगा

"म हर साल गिमय म कभी ब नाथ तो कभी केदारनाथ तो कभी गंगो ी आ द तीथ म जाता रहता था |

षकेश म एक दकान के पास खड़े रहने पर मुझे पू य गु दे व ु

क अमृतवाणी क कैसेट 'मो

का माग', 'मौत क मौत', 'तीन बात' आ द दे खने-सुनने को

िमलीं तो मने ये कैसेट खर द लीं | घर पहँु चकर कैसेट सुनने के बाद

दय म भ

का

सागर हलोरे लेने लगा | मुझे ऐसा लगा मान , कोई मुझे बुला रहा हो | दकान जाते समय ु ऐसा आभास हआ क 'कोई पव आनेवाला है और मुझे अमदावाद जाना होगा;' उसी दन ु अमदावाद आ म से मेरे प

का जवाब आया क ' दनांक १२ को गु पूनम का पव है |

आप गु दे व के दशन कर सकते है | हम सप रवार आ म पहँु चे | दशन करके ध य हए ु | द

ा पाकर कृ ताथ हए ु | अब तो हर मह ने जब तक गु दे व के दशन नह ं करता, तब तक

मुझे ऐसा लगता है क मने कुछ खो दया ह | द भ

ा के बाद साधन-भजन बढ़ रहा है ...

बढ़ रह है | पहले संसार म सफलता- वफलता क जो चोट लगती थी, अब उनका

भाव कम हआ है | वषय- वकार का भाव कम हआ है | जाने जीव तब जागा ह र पद ु ु िच वषय वलास वरागा... मेरे जीवन म संत तुलसीदासजी के इन वचन का सूय दय हो रहा है |" -िशवकुमार तुल यान, गोरखपुर, उ र

दे श

गु दे व ने भेजा अ यपा "हम

चारया ा के दौरान गु कृ पा का जो अदभुत अनुभव हआ वह अवणनीय है | ु

या ा क शु आत से पहले दनांक : ८-११-९९ को हम पू य गु दे व के आशीवाद लेने गये | गु दे व ने काय म के वषय म पूछा और कहा "पंचड़ े आ म (रतलाम) म भंडारा था | उसम बहत ु सामान बच गया है | गाड़ भेजकर मँगवा लेना... गर ब म बाँटना | हम झाबुआ जले के आस-पास के गर ब आ दवासी इलाक म जानेवाले थे | वहाँ से रतलाम के िलए गाड़ भेजी | िगनकर सामान भरा गया | दो दन चले उतना सामान था | एक दन म दो भंडारे होते थे | अतः चार भंडारे का सामान था | सबने खु ले हाथ बतन, कपड़े , सा ड़याँ धोती, आ द सामान छः दन तक बाँटा फर भी सामान बचा रहा | सबको आ य हआ ! हम लोग सामान फर से िगनने लगे परं तु गु दे व क लीला के वषय म ु

या

कह ? केवल दो दन चले उतना सामान छः दन तक खु ले हाथ बाँटा, फर भी अंत म तीन बोरे बतन बच गये, मान गु दे व ने अ यपा

भेजा हो ! एक दन शाम को भंडारा

पूरा हआ तब दे खा क एक पतीला चावल बच गया है | कर ब १००-१२५ लोग खा सके ु उतने चावल थे | हमने सोचा : 'चावल गाँव म बांट दे ते है |'... परं तु गु दे व क लीला देखो ! एक गाँव के बदले पाँच गाँव म बाँटे फर भी चावल बचे रहे | आ खर रा बाद सेवाधा रय ने थककर गु दे व से

ाथना क

म ९ बजे के

क 'गु दे व ! अब जंगल का व तार

है ... हम पर कृ पा करो |'... और चावल ख म हए ु | फर सेवाधार िनवास पर पहँु चे |" -संत

ी आसारामजी भ मंडल, कतारगाम, सूरत

व न म दये हए ु वरदान से पु "मेरे

ाि

ह थ जीवन म एक-एक करके तीन क याएँ ज मी | पु

धमप ी ने गु दे व से आशीवाद



कया था | चौथी

ाि

के िलए मेर

सूित होने के पहले जब उसने

वलसाड़ म सोनो ाफ़ करवायी तो रपोट म लड़क बताया गया | यह सुनकर हम िनराश हो गये | एक रात प ी को

व न म गु दे व ने दशन दये और कहा : 'बेट िचंता मत

कर | घबराना मत धीरज रख | लड़का ह होगा |' हमने सूरत आ म म बड़दादा क प र मा करके मनौती मानी थी, वह भी फ़लीभूत हई ु और गु दे व का सा बत हआ ु , जब

वा य भी स य

सूित होने पर लड़का हआ | सभी गु दे व क जय-जयकार करने लगे |" ु -सुनील कुमार राधे याम चौरिसया,

द पकवाड़ , क ला पारड़ , ज. वलसाड़

' ी आसारामायण' के पाठ से जीवनदान "मेरा दस वष य पु

एक रात अचानक बीमार हो गया | साँस भी मु कल से ले

रहा था | जब उसे हॉ पटल म भत

कया तब डॉ टर बोले | 'ब चा गंभीर हालत म है |

ऑपरे शन करना पड़ेगा |' म ब चे को हॉ पटल म ह छोड़कर पैसे लेने के िलए घर गया और घर म सभी को कहा : “आप लोग ' ी आसारामायण' का पाठ शु

करो |” पाठ होने

लगा | थोड़ दे र बाद म हॉ पटल पहँु चा | वहाँ दे खा तो ब चा हँ स-खेल रहा था | यह दे ख मेर और घरवाल क खुशी का ठकाना न रहा ! यह सब बापूजी क असीम कृ पा, गु गो व द क कृ पा और

ी आसारामायण-पाठ का फल है |" -सुनील चांडक, अमरावती, महारा

गु वाणी पर व ास से अवण य लाभ "शाद होने पर एक पु ी के बाद सात साल तक कोई संतान नह ं हई ु | हमारे मन म पु पं

ाि

क इ छा थी | १९९९ के िश वर म हम संतान ाि

म बैठे | बापूजी आशीवाद दे ने के िलए साधक

नासमझी से कुछ ऐसे

का आशीवाद लेनव े ाल क

के बीच आये तो कुछ साधक

कर बैठे, जो उ ह नह ं करने चा हए थे | गु दे व नाराज होकर

यह कहकर चले गये क 'तुमको संतवाणी पर व ास नह ं है तो तुम लोग यहाँ

य आये

? तु ह डॉ टर के पास जाना चा हए था |' फर गु दे व हमारे पास नह ं आये | सभी

ाथना

करते रहे , पर गु दे व यासपीठ से बोले : 'दबारा तीन िश वर भरना |' म मन म सोच रहा ु था क कुछ साधक के कारण मुझे आशीवाद नह ं िमल पाया परं तु 'व ाद प कठोरा ण मृदिन कुसुमाद प...' बाहर से व ु

से भी कठोर दखने वाले सदगु

भीतर से फूल से भी

कोमल होते ह | तुरंत गु दे व वनोद करते हए ु बोले : 'दे खो ! ये लोग संतान ाि

का

आशीवाद लेने आये ह | कैसे ठनठनपाल-से बैठे ह ! अब जाओ... झूला-झुनझुना लेकर घर जाओ |' मने और मेर प ी ने आपस म वचार कया : 'दयालु गु दे व ने आ खर आशीवाद दे ह

दया | अब गु दे व ने कहा है क झूला-झुनझुना ले जाओ |' ... तो मने

गु वचन मानकर रेलवे टे शन से एक झुनझुना खर द िलया और वािलयर आकर गु दे व के िच

के पास रख दया | मुझे वहाँ से आने के १५ दन बाद डॉ टर

ारा मालूम हआ ु

क प ी गभवती है | मने गु दे व को मन-ह -मन सलाह द

णाम कया | इस बीच डॉ टर ने

क 'लड़का है या लड़क , इसक जाँच करा लो |' मने बड़े व ास से कहा क

'लड़का ह होगा | अगर लड़क भी हई ु तो मुझे कोई आप

नह ं है | मुझे गभपात का पाप

अपने िसर पर नह ं लेना है |' नौ माह तक मेर प ी भी

व थ रह | ह र ार िश वर म

भी हम लोग गये | समय आने पर गु दे व

ारा बताये गये इलाज के मुता बक गाय के

गोबर का रस प ी को दया और दनांक २७ अ ू बर १९९९ को एक

व थ बालक का

ज म हआ |" ु -राजे

कुमार वाजपेयी, अचना वाजपेयी,

बलवंत नगर, ढाढ पुर, मुरारा, वािलयर

और सोना िमल गया "हमारे संयु

प रवार म साठ तोला सोना चोर हो गया था | स संगी होने के

कारण हम दःख तो नह ं हआ फर भी थोड -बहत ु ु ु िच ता अव य हई ु | आ म के एक साधक ने हमसे कहा | 'आप लोग ' ी आसारामायण ' के १०८ पाठ करो और संक प करो क हमारा सोना हम ज र िमलेगा |' यमुनापार, द ली म गु दे व का आगमन हआ | हम ु शाम को गु दे व के दशन करने गये | हमने कुछ कहा नह ं उ ह ने हमको

य क गु दे व अंतयामी ह |

साद दया | उसी रात घर पर फोन आया क 'आपका सोना िमल गया है

| चोर लखनऊ म पकड़ा गया है |' हम आ य हआ ! ' ी आसारामायण' के १०८ पाठ पूरे ु भी नह ं हए ु थे और सोना िमल गया |' -लीना बुटानी, रानीबाग, द ली

सेवफल के दो टु कड़ से दो संतान "मने सन १९९१ म चेट चंड िश वर, अमदावाद म पू य बापूजी से मं द

ा ली थी |

मेर शाद के १० वष तक मुखे कोई संतान नह ं हई ु | बहत ु इलाज करवाये ले कन सभी डॉ टर ने बताया क बालक होने क कोई संभावना नह ं है | तब मने पू य बापूजी के पूनम दशन का सबको

त िलया और बाँसवाड़ा म पूनम दशन के िलए गया | पू य बापूजी

साद दे रहे थे | मने मन म सोचा | ' या म इतना पापी हँू क बापूजी मेर तरफ

दे खते तक नह ं ?' इतने म पू य बापूजी क

मुझ पर पड़ और उ ह ने मुझे दो

िमनट तक दे खा | फर उ ह ने एक सेवफल लेकर मुझ पर फका जो मेरे दाय कंधे पर लगकर दो टु कड़ म बँट गया | घर जाकर मने उस सेवफल के दोन भाग अपनी प ी को खला दये | पू य ी का कृ पापूण

साद खाने से मेर प ी गभवती हो गयी | िनर



कराने पर पता चला क उसको दो िसर वाला बालक उ प न होगा | डॉ टर ने बताया " 'उसका 'िसजे रयन' करना पड़ेगा अ यथा आपक प ी के बचने क स भावना नह ं है | 'िसजे रयन म लगभग बीस हजार

पय का खच आयेगा |' मने पू य बापूजी से

ाथना

क "है बापूजी ! आपने ह फल दया था | अब आप ह इस संकट का िनवारण क जये |' फर मने बड़ बादशाह के सामने भी क पु

ाथना क : 'जब म अ पताल पहँु चूँ तो मेर प ी

सूती सकु शल हो जाय... |' उसके बाद जब म अ पताल पहँू चा तो मेर प ी एक और एक पु ी को ज म दे चुक थी | पू य ी के

जगह दो संतान क

ाि

ारा दये गये फल से मुझे एक क

हई ु |" -मुकेशभाई सोलंक , शारदा मं दर

कूल के पीछे ,

बावन चाल, वड़ोदरा

साइ कल से गु धाम जाने पर खराब टाँग ठ क हो गयी "मेर इ

बाँयी टाँग घुटने से उपर पतली हो गयी थी | 'ऑल इ णडया मे डकल

ट यूट, द ली' म म छः दन तक रहा | वहाँ जाँच के बाद बतलाया गया क 'तु हार

र ढ़ क ह ड के पास कुछ नस मर गयी ह जससे यह टाँग पतली हो गयी है | यह ठ क तो हो ह नह ं सकती | हम तु ह वटािमन 'ई' के कै सूल दे रहे ह | तुम इ ह खाते रहना | इससे टांग और

यादा पतली नह ं होगी |' मने एक साल तक कै सूल खाये | उसके बाद

२२ जून, १९९७ को मुज फ़रनगर म मने गु जी से मं द

ा ली और दवाई खाना बंद कर

द | जब एक साधक भाई राहल ु गु ा ने कहा क सहारनपुर से साइ कल

ारा उ रायण

िश वर, अमदावाद जाने का काय म बन रहा है , तब मने टाँग के बारे म सोचे बना साइ कल या ा म भाग लेने के िलए अपनी सहमित दे द | जब मेरे घर पर पता चला क मने साइ कल से गु धाम, अमदावाद जाने का वचार बनाया है , अतः तुम ११५० क.मी. तक साइ कल नह ं चला पाओगे |' ... ले कन मने कहा : 'म साइ कल से ह गु धाम जाऊँगा, चाहे कतनी भी दरू

य न हो ?' ... और हम आठ साधक भाई सहारनपूर से २६

दस बर '९७ को साइ कल से रवाना हए ु | माग म चढ़ाई पर मुझे जब भी कोइ द कत होती तो ऐसा लगता जैसे मेर साइ कल को कोई पीछे से धकेल रहा है | म मुड़कर पीछे

दे खता तो कोई दखायी नह ं पड़ता | ९ जनवर को जब हम अमदावाद गु आ म म पहँू चे और मने सुबह अपनी टाँग दे खी तो म दं ग रह गये ! जो टाँग पतली हो गयी थी और डॉ टर ने उसे ठ क होने से मना कर दया था वह टाँग ब कुल ठ क हो गयी थी | इस कृ पा को दे खकर म च कत रह गया ! मेरे साथी भी दं ग रह गये ! यह सब गु कृ पा के साद का चम कार था | मेरे आठ इ

ट यूट, द ली

ारा जाँच के

साथी, मेर

माणप

प ी तथा ऑल इ णडया मे डकल

इस बात के सा ी ह |" -िनरं कार अ वाल, व णुपरु ,

अदभुत रह मौनमं दर क साधना ! "परम पू य सदगु दे व क

कृ पा से मुझे

दनांक १८ से २४ मई १९९९ तक

अमदावाद आ म के मौनमं दर म साधना करने का सुअवसर िमला | मौनमं दर म साधना के पाँचव दन यानी २२ मई क रा लगा | लेटे रहने क

को लगभग २ बजे नींद म ह मुझे एक झटका

थित म ह मुझे महसूस हआ क कोई अ ु

य श

मुझे ऊपर...

बहत ु ऊपर उड़ये ले जा रह है | ऊपर उड़ते हए ु जब मने नीचे झाँककर दे खा तो अपने शर र को उसी मौनमं दर म िच लेटा हआ पाया | ऊपर जहाँ मुझे ले ु , बेखबर सोता हआ ु जाया गया वहाँ अलग ह छटा थी... अजीब और अवण य ! आकाश को भी भेदकर मुझे ऐसे

थान पर पहँु चाया गया था जहाँ चार तरफ कोहरा-ह -कोहरा था, जैस,े शीशे क छत

पर ओस फैली हो ! इतने म दे खता हँू

क एक सभा लगी है , बना शर र क , केवल

आकृ ितय क | जैसे रेखाओं से मनु य पी आकृ ितयाँ बनी ह | यह सब था... समझ से परे था | कुछ पल के बाद वे आकृ ितयाँ प

या चल रहा

होने लगी | दे वी-दे वताओं के

पुज ं के म य शीष म एक उ च आसन पर सा ात बापूजी शंकर भगवान बने हए ु कैलास पवत पर वराजमान थे और दे वी-दे वता कतार म हाथ बाँधे खड़े थे | म मूक-सा होकर अपलक ने

से उ ह देखता ह रहा, फर मं मु ध हो उनके चरण म िगर पड़ा | ातः के

४ बजे थे | अहा ! मन और शर र ह का-फ़ु का लग रहा था ! यह म यरा

थित २४ मई क

म भी दोहरायी गयी | दसरे दन सुबह पता चला क आज तो बाहर िनकलने ू

का दन है यानी र ववार २५ मई क सुबह | बाहर िनकलने पर भावभरा

दय, गदगद कंठ

और आख म आँसू ! य लग रहा था क जैसे िनजधाम से बेघर कया जा रहा हँू | ध य है वह भूिम, मौनमं दर म साधना क वह यव था, जहां से परम आनंद के सागर म डू बने

क कुंजी िमलती है ! जी करता है , भगवान ऐसा अवसर फर से लाय जससे क उसी मौनमं दर म पुनः आंत रक आनंद का रसपान कर पाऊँ |" -इ

नारायण शाह,

१०३, रतनद प-२, िनराला नगर, कानपुर

असा य रोग से मु "सन १९९४ म मेर पु ी हरल को शरद पू णमा के दन बुखार आया | डॉ टर को दखाया तो कसीने मले रया कहकर दवाइयाँ द तो कसीने टायफायड कहकर इलाज शु कया तो कसीने टायफायड और मले रया दोन कहा | दवाई क एक खुराक लेने से शर र नीला पड़ गया और सूज गया | शर र म खून क कमी से उसे छः बोतल खून चढ़ाया गया | इं जे न दे ने से पूरे शर र को लकवा मार गया | पीठ के पीछे शैया ण जैसा हो गया | पीठ और पैर का ए स-रे िलया गया | पैर पर वजन बाँधकर रखा गया | डॉ टर ने उसे वायु का बुखार तथा र

का कसर बताया और कहा क उसके

दय तो वा व चौड़ा

हो गया है | अब हम ह मत हार गये | अब पू य ी के िसवाय और कोई सहारा नह ं था | उस समय हरल ने कहा :'म मी ! मुझे पू य बापू के पास ले चलो | वहाँ ठ क हो जाऊगी |' पाँच दन तक हरल पू य ी क रट लगाती रह | हम उसे अमदावाद आ म म बापू के पास ले गये | बापू ने कहा: 'इसे कुछ नह ं हआ है |' उ ह ने मुझे और हरल को ु मं

दया एवं बड़दादा क



णा करने को कहा | हमने



णा क और हरल प



दन म चलने- फ़रने लगी | हम बापू क इस क णा-कृ पा का ॠण कैसे चुकाय ! अभी तो हम आ म म पू य ी के

ीचरण म सप रवार रहकर ध य हो रहे ह |" - फु ल यास, भावनगर वतमान म अमदावाद आ म म सप रवार सम पत

पू य बापू का दशन-स संग ह जीवन का स चा र "मुझे चार साल से पु ज र पूर होगी | अमदावाद म

क कामना थी और मेरे मन म हआ क मेर यह कामना ु यानयोग िश वर के दौरान ऐसा वचार आया क बापू मुझे

अपने चरण म बुलायगे | मन म मुझ पर डाली, संतरे का

है



ा थी | इतने लोग के बीच म से बापू ने तेजपूण

साद दया और मेरा भा य खुल गया | ब चे के ज म से

पहले डॉ टर ने ऑपरे शन को कहा था ले कन बापू के बताने के मुता बक मेरे घरवाल ने मुझे गाय के गोबर का रस पलाया और शी भ स ची

हो तो ा-भ

ह बालक का ज म हो गया | स ची

ा-

या असंभव है ? पू य बापू का दशन-स संग ह जीवन का स चा र

है |

से ऐसा र

पानेवाले हम सभी धनभागी ह |" -रे खा परमार, मीरा रोड़, मुंबई

कैसेट का चम कार " यापार उधार म चले जाने से म हताश हो गया था एवं अपनी जंदगी से तंग आकर आ मह या करने क बात सोचने लगा था | मुझे साधु-महा माओं व समाज के लोग से घृणा-सी हो गयी थी : धम व समाज से मेरा व ास उठ चुका था | एक दन मेर साली बापूजी के स संग क दो कैसेट ' विध का वधान' एवं 'आ खर कब तक ?' ले आयी और उसने मुझे सुनने के िलए कहा | उसके कई यास के बाद भी मने वे कैसेट नह ं सुनीं एवं मन-ह -मन उ ह 'ढ़ ग' कहकर कैसेट के ड बे म दाल दया | मन इतना परे शान था क रात को नींद आना बंद हो गया था | एक रात फ़ मी गाना सुनने का मन हआ | अँधरे ा होने क वजह से कैसेटे पहचान न सका और गलती से बापूजी के स संग ु क कैसेट हाथ म आ गयी | मने उसीको सुनना शु

कया | फर

या था ? मेर आशा

बँधने लगी | मन शाँत होने लगा | धीरे -धीरे सार पीड़ाएँ दरू होती चली गयीं | मेरे जीवन म रोशनी-ह -रोशनी हो गयी | फर तो मने पू य बापूजी के स संग क कई कैसेट सुनीं और सबको सुनायीं | तदनंतर मने गा जयाबाद म बापूजी से द

ा भी

हण क | यापार

क उधार भी चुकता हो गयी | बापूजी क कृ पा से अब मुझे कोई दःख नह ं है | हे गु दे व ु ! बस, एक आप ह मेरे होकर रह और म आपका ह होकर रहँू |" -ओम काश बजाज, द ली रोड़, सहारनपुर, उ र

दे श

मुझ पर बरसी संत क कृपा "सन १९९५ के जून माह म म अपने लड़के और भतीजे के साथ ह र ार यानयोग िश वर म भाग लेने गया | एक दन जब म 'हर क पौड़ ' पर

नान करने गया

तो पानी के तेज बहाव के कारण पैर फसलने से मेरा लड़का और भतीजा दोन अपना

संतुलन खो बैठे और गंगा म बह गये | ऐसी संकट क घड़ म म अपना होश खो बैठा | या क ँ ? म फूट-फूटकर रोने लगा और बापूजी से

ाथना करने लगा क ' हे नाथ ! हे

गु दे व ! र ा क जये... मेरे ब च को बचा ली जये | अब आपका ह सहारा है | पू य ी ने मेरे स चे

दय से िनकली पुकार सुन ली और उसी समय मेरा लड़का मुझे दखायी

दया | मने झपटकर उसको बाहर खींच िलया ले कन मेरा भतीजा तो पता नह ं कहाँ बह गया ! म िनरं तर रो रहा था और मन म बार-बार वचार उठ रहा था क 'बापूजी ! मेरा लड़का बह जाता तो कोई बात नह ं थी ले कन अपने भाई क अमानत के बना म घर या मुह ँ लेकर जाऊँगा ? बापूजी ! आपह इस भ

क लाज बचाओ |' तभी गंगाजी क

एक तेज लहर उस ब चे को भी बाहर छोड़ गयी | मने लपककर उसे पकड़ िलया | आज भी उस हादसे को से िनरं तर सदगु दे व के

मरण करता हँू तो अपने-आपको सँभाल नह ं पाता हँू और मेर आँख

म े क अ ध ु ारा बहने लगती ह | ध य हआ म ऐसे गु दे व को पाकर ! ऐसे ु ीचरण म मेरे बार-बार शत-शत

णाम !" -सुमालखाँ, पानीपत, ह रयाणा

गु दे व क कृ पा से संतान ाि "मेर शाद को पाँच साल हो गये थे फर भी कोई संतान नह ं हई ु | लोग हम बहत ु ताने मारते थे | तभी मन-ह -मन िनणय ले िलया क पू य बापू के आ म म जाना है | जनवर १९९९ म थम बार उ रायण िश वर भरा और मं द कृ पा से मुझे एक सुद ं र बालक



ा ली | अब गु दे व क

हआ है | पू य बापूजी क इतनी कृ पा-क णा दे खकर ु

दय भर आता है | म पू य बापूजी से

ाथना करती हँू क यह बालक उ ह सम पत कर

सकूं और यह उनके यो य बनसके, ऐसी सदबु

हम द | -िनमला के. तड़वी, कांितभाई ह राभाई तडवी, रामजी मं दर के पास, कारेली बाग, वड़ोदरा

गु कृ पा से जीवनदान " दनांक १५-१-९६ क घटना है | मने धातु के तार पर सूखने के िलए कपड़े फैला रखे थे | बा रश होने के कारण उस तार म करंट आ गया था | मेरा छोटा पु

वशाल, जो

क ११ वीं क ा म पढ़ता है , आकर उस तार से छू गया और बजली का करंट लगते ह वह बेहोश हो गया, शव के समान हो गया | हमने उसे तुरंत बड़े अ पताल म दा खल करवाया | डॉ टर ने ब चे क हालत गंभीर बतायी | ऐसी प र थित दे खकर मेर आँख से अ ध ु ाराएँ बह िनकली | म िनजानंद क म ती म म त रहने वाले पू य सदगु दे व को मन-ह -मन याद कया और ह हाथ म है | हे मेरे

ाथना क :'हे गु दे व ! अब तो इस ब चे का जीवन आपके

भु ! आप जो चाहे सो कर सकते है |' और आ खर मेर

सफल हई एवं धीरे -धीरे ब चे के ु | ब चे म एक नवीन चेतना का संचार हआ ु सुधार होने लगा | कुछ ह

दन म वह पूणतः

कया ले कन जो जीवनदान उस

यारे

िन

संत-महापु ष के

य म

व थ हो गया | डॉ टर ने तो उपचार

भु क कृ पा से, सदगु दे व क कृ पा से िमला,

उसका वणन करने के िलए मेरे पास श द नह ं है | बस, ई र से म यह क ऐसे

वा

ाथना

ित हमार

ा म वृ

ाथना करता हँू

होती रहे |" – डॉ. वाय. पी. कालरा,

शामलदास कॉलेज, भावनगर, गुजरात

पू य बापू जैसे संत दिनया को ु

वग म बदल सकते ह

मई १९९८ के अंितम दन म पू य ी के इंदौर वास के दौरान ईरान के व यात फ़ जिशयन

ी बबाक अ ानी भारत म अ या मक अनुभव क

ाि

आये हए ु थे |

पू य ी के दशन पाकर जब उ ह ने अ या मक अनुभव को फलीभूत होते दे खा तो वे पंचेड़ आ म म आयो जत

यानयोग िश वर म भी पहँु च गये |

ककर वापस लौटने वाले थे, वे पूरे वधाथ िश वर म सार व य मं

क द

यारह दन तक पंचड़ े आ म म ा ली एवं विश

१० जून १९९८) का भी लाभ िलया | िश वर के दौरान भी ले ली | पू य ी के सा न य मे सं ा 'चेतना' को द हई ु भटवाता म हो जाय तो यह दिनया ु

ी अ ानी जो दो दन के रहे | उ ह ने

यानयोग साधना िश वर (४ ी अ ानी ने पू य ी से मं द

अनुभिू तय के बारे म



े य समाचार प

ी अ ानी कहते है : "य द पू य बापू जैसे संत हर दे श म

वग बन सकती है | ऐसे शांित से बैठ पाना हमारे िलए क ठन

है , ले कन जब पू य बापूजी जैसे महापु ष के

ीचरण म बैठकर स संग सुनते है तो

ऐसा आनंद आता है क समय का कुछ पता ह नह ं चलता | सचमुच, पू य बापू कोई साधारण संत नह ं है |" - ी बबाक अ ानी, व

व यात फ़ जिशयन, ईरान

बापूजी का सा न य गंगा के पावन

वाह जैसा है

"कल-कल करती इस भागीरथी क धवल धारा के कनारे पर पू य बापूजी के सा न य म बैठकर म बड़ा ह आ हा दत और

मु दत हँू ... आनं दत हँू ... रोमांिचत हंू |

गंगा भारत क सुषु ना नाड़ है | गंगा भारत क संजीवनी है | िनकलकर

ाजी के कमंड़लु और जटाधर के माथे पर शोभायमान गंगा

है | व णुजी के चरण से िनकली गंगा भ म तक पर

ी व णुजी के चरण से

थत गंगा

योग क

योगिस कारक

तीित कराती है और िशवजी के

ान योग क उ चतर भूिमका पर आ ढ़ होने क खबर दे ती है |

मुझे ऐसा लग रहा है क आज बापूजी के वचन को सुनकर म गंगा म गोता लगा रहा हँू

य क उनका

वचन, उनका स न य गंगा के पावन

वाह जैसा है | वे अलम त

फ़क र ह | वे बड़े सरल और सहज ह | वे जतने ह ऊपर से सरल है , उतने ह अंतर म गूढ़ ह | उनम हमालय जैसी उ चता, प व ता, वे रा

े ता है और सागरतल जैसी गंभीरता है |

क अमू य धरोहर ह | उ ह दे खकर ॠ ष-पर परा को बोध होता है | गौतम,

कणाद, जैिमनी, क पल, दाद,ू मीरा, कबीर, रै दास आ द सब कभी-कभी उनम दखते है | रे भाई ! कोई सतगु

संत कहावे,

जो नैनन अलख लखावे... धरती उखाड़े , आकाश उखाड़े , अधर मड़ैया धावे | शू य िशखर के पार िशला पर, आसन अचल जमावे | रे भाई ! कोई स गु

संत कहावे...

एक ऐसे पावन सा न य म हम बैठे ह जो बड़ा दलभ और सहज योग व प है | ु ऐसे महापु ष के िलए पं

याँ याद आ रह ह : तुम चलो तो चले धरती, चले अंबर, चले

दिनया ... ऐसे महापु ष चलते है तो उनके िलए सूय, चं , तारे , ु अनुकूल हो जाते ह | ऐसे इ परे क ह ं महापु ष के

ह, न

आ द सब

यातीत, गुणातीत, भावातीत, श दातीत और सब अव थाओं से

ीचरण म जब बैठते ह तो... भागवत कहता है : साधुनां दशनं लोके सविस करं परम |

साधु के दशन मा िस

याँ और आ मानंद क

से वचार, वभूित, व ता, श ाि

, सहजता, िन वषयता, स नता,

होती है | दे श के महान संत यहाँ सहज ह आते है ,

भारत के सभी शंकराचाय भी िश वर म आते ह | अतः मेरे मन म भी वचार आया क जहाँ सब जाते ह, वहाँ जाना चा हए

य क यह वह ठोर- ठकाना है , जहाँ मन का

अिभमान िमटाया जा सकता है | ऐसे महापु ष के दशन से केवल आनंद और म ती ह नह ं िमलती ब क वह सब कुछ िमल जाता है जो अिभला षत है , आकां | यहाँ म क णा के, कमठता के, ववेक-वैरा य के, भ

त है , ल

त है

ान के दशन कर रहा हँू | वैरा य और

के र ण, पोषण और संवधन के िलए यह स ॠ षय का उ म

ान माना जाता है

| आज गंगा फर से साकार दख रह है तो वे बापूजी के वचार और वाणी म दख रह है | अलम तता, सहजता, उ चता,

े ता, प व तता, तीथ-सी शुिचता, िशशु-सी सरलता, त ण -

सा जोश, वृ -सा गांभीय और ॠ षय जैसा

ानाबोध मुझे जहाँ हो रहा है , वह यह पंडाल

है | इसे आनंदनगर कहँू या म े नगर ? क णा का सागर कहँू या वचार का सम दर ? ... ले कन इतना ज र कहँू गा क मेरे मन का कोन-कोना आ हा दत हो रहा है | आप लोग बड़भागी है जो ऐसे महापु ष के

ीचरण म बैठे ह, जहाँ भा य का, द य

िनमाण होता है | जीवन क कृ तकृ यता जहाँ





त व का

हो सकती है वह यह दर है |

िमले तुम िमली मं जल िमला मकसद और मु ा भी | न िमले तुम तो रह गया मु ा, मकसद और मं जल भी || आपका यह भावरा य और अनुभव भी कर रहा हँू | आपके

म े रा य दे खकर म च कत भी हँू और आनंद का

ू िन ा बढ़े इस हे तु मेरा नमन ित मेरा व ास और अटट

वीकार कर | मुझे ऐसा लगता है क बापूजी सूय ह और नारायण

वामी एक ऐसे द प ह

जो न बुझ सकते ह, न जलाये जाते ह |" - वामी अवधेशानंदजी, ह र ार

सार व य मं

से हए ु अदभुत लाभ

मने १९९८ म ' वधाथ उ थान िश वर, सोनीपत' म पू य गु दे व से सार व य मं क द

ा ली | द

ा के बाद िनयिमत मं जप करने से म इतना कुशा

वावलंबी हो गया क मने एक मह न म ह टयूशन छोड़ द और लगा | म मं

कूल भी पैदल आने-जाने लगा, जससे मने

जाप के

१२ वीं क पर

भाव से मुझे ९ वीं, १० वीं, ११ वीं क पर ा के समय मेरा

वा

बु वाला एवं

वयं खूब मेहनत करने

कूल बस का कराया बचा िलया | ाओं म

थम

थान



हआ | ु

य खराब होने के कारण म जप ठ क से नह ं कर

सका, फर भी ७९

ितशत अंक से पास हआ ु | उसके बाद इं जिनय रंग क प र ा म भी

उ ीण रहा | -कुलद प कुमार, ड -२३४, वे ट वनोद नगर, द ली म दस बर १९९९ म छ ीसगढ़ के भाटापारा म पू य गु दे व से सार व य मं द

ा ली | त प ात म िनयिमत

प से जप- यान-

ाणायाम करता था, जससे मुझे

बहत ु लाभ हुआ | पू य बपूजी क कृ पा और सार व य मं क बोड़ क प र ा म ८४.६



जाप के

भाव से मुझे १२ वीं

ितशत अंक िमले | - वरे

कुमार कौिशक,

ड गरगाँव, ज. राजनांदगाँव (छ.ग.)

भौितक युग के अंधकार म मादक िनयं ण

ान क

योित : पू य बापू

यूरो भारत सरकार के महािनदे शक

ी एच.पी. कुमार ९ मई को

अमदावाद आ म म स संग-काय म के दौरान पू य बापू से आशीवाद लेने पहँु चे | बड़ वन ता एवं

ा के साथ उ ह ने पू य बापू के

ित अपने उदगार म कहा : " जस



के पास ववेक नह ं है वह अपने ल य तक नह ं पहँु च सकता है और ववेक को



करने का साधन पू य आसारामजी बापू जैसे महान संत का स संग है | पू य बापू

से मेरा 'ॠ ष

थम प रचय ट .वी. के मा यम से हुआ | त प ात मुझे आ म साद' मािसक



ार

कािशत

हआ | उस समय मुझे लगा क एक ओर जहाँ इस भौितक युग ु

के अंधकार म मानव भटक रहा है वह ं दसर ओर शांित क मंद-मंद सुगंिधत वायु भी ू चल रह है | यह पू य बापू के स संग का ह सौभा य मुझे



भाव है | पू य ी के दशन करने का जो

हआ है इससे म अपने को कृ तकृ य मानता हँू | पू य बापू के ु

से जो अमृत वषा होती है तथा इनके स संग से करोड़ इसी

दय म जो

ीमुख

योित जगती है , व

कार से जगती रहे और आने वाले लंबे समय तक पू य ी हम सब का मागदशन

करते रहे यह मेर कामना है | पू य बापू के

ीचरण म मेरे

णाम..." - ी एच.पी. कुमार,

महािनदे शक, मादक िनयं ण यूरो, भारत सरकार

गु कृ पा ऐसी हई ु क अँधरे तो परम कृ पालु बापूजी के

या दे र भी नह ं हई ु

ीचरण म मेरे को ट-को ट वंदन... म एक इ माइली

वाजा हँू तथा अपने धम म अ डग हँू | चार वष पूव कुछ लोग

ारा एक सुिनयो जत

योजना बनाकर मुझे जबरद ती 'मडर केस' का आरोपी बना दया गया था | इससे मुझे कह ं शांित नह ं िमल रह थी | २८ फरवर १९९७ को मुझे नागपुर म आयो जत बापूजी के स संग म जाने क

रे णा िमली और ४ माच १९९७ को मने बापूजी से मं द

उनसे मन-ह -मन वनती क

ा ली | म

क ' हे गु दे व ! मुझे बचा लो |' गु कृ पा ऐसी हई ु क ७

जनवर १९९८ को मुझे अदालत ने पाक-साफ बर कर दया ! बाक छः आरो पय को सजा हई ु | ध य है ऐसे मेरे सदगु

! उनके

ीचरण म मेरे को ट-को ट व दन... -रहमान खान िनशान छाबड़ ( बछुआ), ज. िछ दवाड़ा (म. .)

मु लम म हला को

ाणदान

२७ िसत बर २००० को जयपुर म मेरे िनवास पर पू य बापू का 'आ म-सा ा कार दवस' मनाया गया, जसम मेरे पड़ोस क मु लम म हला नाथी बहन के पित,

ी माँगू

खाँ, ने भी पू य बापू क आरती क और चरणामृत िलया | ३-४ दन बाद ह वे मु लम दं पित

ू वाजा सा हब के उस म अजमेर चले गये | दनांक ४ अ टबर २००० को अजमेर

के उस म असामा जक त व ने

साद म जहर बाँट दया, जससे उस मेले म आये कई

दशनाथ अ व थ हो गये और कई मर भी गये | मेरे पड़ोस क नाथी बहन ने भी वह साद खाया और थोड़ दे र म ह वह बेहोश हो गयी | अजमेर म उसका उपचार कया गया कंतु उसे होश न आया | दसरे दन ह उसका पित उसे अपने घर ले आया | कॉलोनी ू के सभी िनवासी उसक हालत दे खकर कह रहे थे क अब इसका बचना मु कल है | म भी उसे दे खने गया | वह बेहोश पड़ थी | म जोर-जोर से ह र ॐ... ह र ॐ... का उ चारण कया तो वह थोड़ा हलने लगी | मुझे बापू से

रे णा हई ु और म पुनः घर गया | पू य

ाथना क | ३-४ घंटे बाद ह वह म हला ऐसे उठकर खड़ हो गयी मान , सोकर

उठ हो | उस म हला ने बताया क मेरे चाचा ससुर पीर ह और उ ह ने मेरे पित के मुह ँ से बोलकर बताया क तुमने २७ िसत बर २००० को जनके स संग म पानी पया था, उ ह ं सफेद दाढ़ वाले बाबा ने तु ह बचाया है ! कैसी क णा है गु दे व क !

-जे.एल. पुरो हत, ८७, सु तान नगर, जयपुर (राज.) उस म हला का पता है : - ीमती नाथी प ी ी माँगू खाँ, १००, सु तान नगर, गुजर क धड़ , यू सांगानेर रोड़, जयपूर (राज.)

ह रनाम क

याली ने छुड़ायी शराब क बोतल

सौभा यवश, गत २६

दस बर १९९८ को पू य ी के १६ िश य क एक टोली

द ली से हमारे गाँव म ह रनाम का

चार- सार करने पहँू ची | म बचपन से ह

म दरापान, धू पान व िशकार करने का शौक न था | पू य बापू के िश य

ारा हमारे गाँव

म जगह-जगह पर तीन दन तक लगातार ह रनाम का क तन करने से मुझे भी ह रनाम का रंग लगता जा रहा था | उनके जाने के एक दन के प ात शाम के समय रोज क भांित मने शराब क बोतल िनकाली | जैसे ह बोतल खोलने के िलए ढ कन घुमाया तो उस ढ कन के घुमने से मुझे 'ह र ॐ... ह र ॐ' क

विन सुनायी द | इस

दो-तीन बार ढ कन घुमाया और हर बार मुझे 'ह र ॐ' क

कार मने

विन सुनायी द | कुछ दे र

बाद म उठा तथा पू य ी के एक िश य के घर गया | उ ह ने थोड़ दे र मुझे पू य ी क अमृतवाणी सुनायी | अमृतवाणी सुनने के बाद मेरा को

दय पुकारने लगा क इन द ु यसन

याग दँ ू | मने तुरंत बोतल उठायी तथा जोर-से दरू खेत म फक द | ऐसे समथ व

परम कृ पालु सदगु दे व को म

दय से

णाम करता हँू , जनक कृ पा से यह अनोखी

घटना मेरे जीवन म घट , जससे मेरा जीवन प रवितत हआ | ु -मोहन िसंह ब , िभ यासैन, अ मोड़ा (उ. .)

पूरे गाँव क कायापलट ! पू य ी से दनांक २७.६.९१ को द

ा लेने के बाद मने यवसनमु

के

चार-

सार का ल य बना िलया | म एक बार कौशलपुर ( ज. शाजापुर) पहँु चा | वहाँ के लोग

के यवसनी और लड़ाई-झगड़े यु

जीवन को दे खकर मने कहा: "आप लोग मनु य-जीवन

सह अथ ह नह ं समझते ह | एक बार आप लोग पू य बापूजी के दशन कर ल तो आपको सह जीवन जीने क कुंजी िमल जायेगी |" गाँव वाल ने मेर बात मान ली और दस



मेरे गाँव ताजपुर आये | मने एक साधक को उनके साथ ज मा मी महो सव

म सूरत भेजा | पू य बापूजी क उन पर कृ पा बरसी और सबको गु द

ा िमल गयी |

जब वे लोग अपने गाँव पहँु चे तो सभी गाँववािसय को बड़ा कौतूहल था क पू य बापूजी कैसे ह ? बापूजी क लीलाएँ सुनकर गाँव के अ य लोग म भी पू य बापूजी के जगी | उन द

त हो चुके ह |

गु वार का

ा दलवा द | गाँव के सभी



अपने पूरे प रवार स हत

येक गु वार को पूरे गाँव म एक समय भोजन बनता है | सभी लोग

त रखते है | कौशलपुर गाँव के भाव से आस-पास के गाँववाले एवं उनके

र तेदार स हत १००० य

य शराब छोड़कर द

ा ले ली है | गाँव के इितहास म तीन-

तीन पीढ़ से कोई मं दर नह ं था | गाँववाल ने ५ लाख ह | पूरा गाँव यवसनमु और



त साधक ने सभी गाँववाल को सु वधानुसार पू य बापूजी के अलग-

अलग आ म मे भेजकर द द

ित

एवं भगवतभ

पये लगाकर दो मं दर बनवाय

बन गया है , यह पू य बापूजी क कृ पा नह ं तो

या ह ? सबके तारणहार पू य बापूजी के - याम

ीचरण म को ट-को ट

णाम...

जापित (सुपरवाइजर, ितलहन संघ) ताजपुर, उ जैन (म. .)

ने बंद ु का चम कार मेरा सौभा य है क मुझे 'संतकृ पा ने बंद'ु (आई िमला | एक संत बाबा िशवरामदास उ

ॉ स) का चम कार दे खने को

८० वष, गीता कु टर, तपोवन झाड़ , स सरोवर,

ह र ार म रहते ह | उनक दा हनी आँख के सफेद मोितये का ऑपरे शन शाँितकुंज ह र ार आयो जत कै प म हआ | केस बगड़ गया और काल मोितया बन गया | दद रहने लगा ु और रोशनी घटने लगी | दोबारा भूमान द ने

िच क सालय म ऑपरे शन हआ | ए स यूट ु

लूकोमा बताते हए ु कहा क ऑपरे शन से िसरदद ठ क हो जायेगा पर रोशनी जाती रहेगी | परं तु अब वे बाबा संत

ी आसारामजी आ म

डाल रहे ह | मने उनके ने

का पर

ार िनिमत 'संतकृ पा ने बंद'ु सुबह-शाम

ण कया | उनक दा हनी आँख म उँ गली िगनने

लायक रोशनी वापस आ गयी है | काले मोितये का नह ं है | वे काफ संतु

ेशर नॉमल है | कोिनया म सूजन

ह | वे बताते ह : 'आँख पहले लाल रहती थी परं तु अब नह ं है |

आ म के 'ने बंद'ु से क पनातीत लाभ हआ |' बायीं आँख म भी उ ह सफेद मोितया ु

बताया गया था और संशय था क शायद काला मोितया भी है | पर आज बायीं आँख भी ठ क है और दोन आँख का

ेशर भी नॉमल है | सफेद मोितया नह ं है और रोशनी काफ

अ छ है | यह 'संतकृ पा ने बंद'ु का वल ण

भाव दे खकर म भी अपने मर ज को इसका

उपयोग करने क सलाह दँ ग ू ा | -डॉ. अन त कुमार अ वाल (ने रोग वशेष ) एम.बी.बी.एस., एम.एस. (ने ), ड .ओ.एम.एस. (आई), सीतापुर, सहारनपुर (उ. .)

पू य ी क त वीर से िमली सवसमथ परम पू य

रे णा

ी बापूजी के चरणकमल म मेरा को ट-को ट नमन... १९८४

के भूकंप से स पूण उ र बहार म काफ नुकसान हआ था, जसक चपेट म हमारा घर ु भी था | प र थितवश मुझे न वी क ा म पढ़ायी छोड़ दे नी पड़ | कसी िम

क सलाह से

म नौकर ढँू ढ़ने के िलए द ली गया ले कन वहाँ भी िनराशा ह हाथ लगी | म दो दन से भूखा तो था ह , ऊपर से नौकर क िचंता | अतः आ मह या का

वचार करके रेलवे

टे शन क ओर चल पड़ा | रानीबाग बाजार म एक दकान पर पू य ी का स सा ह य, ु कैसेट आ द रखा हआ था एवं पू य ी क बड़े आकार क त वीर भी टँ गी थी | पू य ी ु क हँसमुख एवं आशीवाद क मु ावाली उस त वीर पर मेर नजर पड़ तो १० िमनट तक म वह ं सड़क पर से ह खड़े -खड़े उसे दे खता रहा | उस व

न जाने मुझे

या िमल गया

! म काम भले मजदरू का ह करता हँू ले कन तबसे लेकर आज तक मेरे िच स नता बनी हई ु है | न जाने मेर ज दगी क

म बड़

या दशा होती अगर पू य बापूजी क

'युवाधन सुर ा', 'ई र क ओर', 'िन

त जीवन' पु तक और 'ॠ ष

साद' प का हाथ न

लगती ! पू य ी क त वीर से िमली

रे णा एवं उनके स सा ह य ने मेर डू बती नैया को

मानो, मझदार से बचा िलया | धनभागी है सा ह य क सेवा करने वाले ! ज ह ने मुझे आ मह या के पाप से बचाया | -महे श शाह, नारायणपुर, दमरा ु , ज. सीतामढ़ ( बहार)

मं

से लाभ

मेर माँ क हालत अचानक पागल जैसी हो गयी थी मान , कोई भूत- त े -डा कनी या आसुर त व उनम घुस गया | म बहत ु िचंितत हो गया एवं एक सािधका बहन को फोन कया | उ ह ने भूत- त े भगाने का मं

बताया, जसका वणन आ म से

'आरो यिनिध' पु तक म भी है | वह मं

कार है :

ॐ नमो भगवते इस मं

इस

भैरवाय भूत ेत

य कु कु

हंू फट

कािशत

वाहा |

का पानी म िनहारकर १०८ बार जप कया और वह पानी माँ को पला

दया | तुरंत ह माँ शांित से सो गयीं | दसरे दन भी इस मं ू

क पाँच माला करके माँ

को वह जल पलाया तो माँ ब कुल ठ क हो गयीं | हे मेरे साधक भाई-बहनो ! भूत- त े भगाने के िलए 'अला बाँधूँ... बला बाँध.ँू .. ' ऐसा करके झाड़-फ़ूँक करनेवाल के च कर म पड़ने क ज रत नह ं ह | इसके िलए तो पू य बापूजी का मं बापूजी के

ीचरण म को ट-को ट

ह तारणहार है | पू य

णाम ! -चंपकभाई एन. पटे ल (अमे रका)

काम

ोध पर वजय पायी एक दन 'मुंबई मेल' म टकट चे कंग करते हए ु म वातानुकूिलत बोगी म पहँु चा |

दे खा तो मखमल क ग

पर टाट का आसन बछाकर

समािध थ ह | मुझे आ य हआ क जन ु

थम

महाराजा या ा करते ह ऐसी बोगी और तीसर

वामी

ी लीलाशाहजी महाराज

ण े ी क वातानुकूिलत बोिगय म राजाण े ी क बोगी के बीच इन संत को कोई

भेद नह ं लगता | ऐसी बोिगय म भी वे समािध थ होते है यह दे खकर िसर झुक जाता है | मने पू य महाराज ी को

णाम करके कहा : "आप जैसे संत के िलए तो सब एक

समान है | हर हाल म एकरस रहकर आप मु जैसे

ह थ को

का आनंद ले सकते ह | ले कन हमारे

या करना चा हए ता क हम भी आप जैसी समता बनाये रखकर जीवन

जी सक ?" पू य महाराजजी ने कहा : "काम और जीव मु

ोध को तू छोड़ दे तो तू भी

हो सकता है | जहाँ राम तहँ नह ं काम, जहाँ काम तहँ नह ं राम | ... और

ोध

तो, भाई ! भ मासुर है | वह तमाम पु य को जलाकर भ म कर दे ता है , अंतःकरण को मिलन कर दे ता है |" मने कहा : "

भु ! अगर आपक कृ पा होगी तो म काम- ोध को

छोड़ पाऊँगा |" पू य महाराजजी ने कहा : "भाई ! कृ पा ऐसे थोड़े ह क जाती है ! संतकृ पा के साथ तेरा पु षाथ और जीवनपय त काम और

ढ़ता भी चा हए | पहले तू

ित ा कर

क तू

ोध से दरू रहेगा... तो म तुझे आशीवाद दँ ू |" मने कहा :

"महाराजजी म जीवनभर के िलए

ित ा तो क ँ ले कन उसका पालन न कर पाऊँ तो

झूठा माना जाऊँगा |" पू य महाराजजी ने कहा : "अ छा, पहले तू मेरे सम के िलए

ित ा कर | फर

ित ा को एक-एक

दन बढ़ते जाना | इस

आठ दन कार तू उन

बलाओं से बच सकेगा | है कबूल ?" मने हाथ जोड़कर कबूल कया | पू य महाराजजी ने आशीवाद दे कर दो-चार फूल

साद म दये | पू य महाराजजी ने मेर जो दो कमजो रयाँ

थीं उन पर ह सीधा हमला कया था | मुझे आ य हआ क अ य कोई भी दगु ु ण छोड़ने ु का न कहकर इन दो दगु ु ण के िलए ह उ ह ने

ित ा य करवायी ? बाद म म इस

राज से अवगत हआ | ु दसरे दन म पैसे जर ू थे | तीसर

े न म कानपुर से आगे जा रहा था | सुबह के कर ब नौ बजे

ण े ी क बोगी म जाकर मने या य के टकट जाँचने का काय शु

कया |

सबसे पहले बथ पर सोये हए ु एक या ी के पास जाकर मने एक या ी के पास जाकर मने टकट दखाने को कहा तो वह गु सा होकर मुझे कहने लगा : "अंधा है ? दे खता नह ं क म सो गया हँू ? मुझे नींद से जगाने का तुझे

या अिधकार है ? यह कोई र त है टकट

के बारे म पूछने क ? ऐसी ह अ ल है तेर ?" ऐसा कुछ-का-कुछ वह बोलता ह गया... बोलता ह गया | म भी ित ा मुझे याद थी, अतः

ोधा व

होने लगा कंतु पू य महाराजजी के सम

ली हई ु

ोध को ऐसे पी गया मान , वष क पु ड़या ! मने उसे कहा :

"महाशय ! आप ठ क ह कहते ह क मुझे बोलने क अ ल नह ं है , भान नह ं है | दे खो, मेरे ये बाल धूप म सफेद हो गये ह | आपम बोलने क अ ल अिधक है , न ता है तो कृ पा करके िसखाओं क टकट के िलए मुझे कस

कार आपसे पूछना चा हए | म लाचार हँू

क 'डयूट ' के कारण मुझे टकट चेक करना पड़ रहा है इसिलए म आपको क ... और फ़र मने खूब मुझे

दे रहा हँू |"

ेम से हाथ जोड़कर वनती क : "भैया ! कृ पा करके क

के िलए

मा करो | मुझे अपना टकट दखायगे ?" मेर न ता दे खकर वह ल जत हो गया

एवं तुरंत उठ बैठा | ज द -ज द नीचे उतरकर मुझसे

मा माँगते हए ु कहने लगा :"मुझे

माफ करना | म नींद म था | मने आपको पहचाना नह ं था | अब आप अपने मुँह से मुझे कह क आपने मुझे माफ़ कया ?" यह दे खकर मुझे आनंद और संतोष हआ | म सोचने ु लगा क संत क आ ा मानने म कतनी श कैसा चम का रक प रणाम लाती है ! वह बदल सकती है | अ यथा, मुझम



और हत िन हत है ! संत क क णा के

ाकृ ितक

वभाव को भी जड़-मूल से

ोध को िनयं ण म रखने क कोई श

नह ं थी | म

पूणतया असहाय था फर भी मुझे महाराजजी क कृ पा ने ह समथ बनाया | ऐसे संत के ीचरण म को ट-को ट नम कार ! - ी र जुमल,

रटायड ट .ट . आई., कानपुर

अ य अनुभव जला हआ कागज ु पूव सु िस िस

प म एक बार परमहंस वशु ानंदजी से आनंदमयी माँ क िनकटता पानेवाले

पं डत गोपीनाथ क वराज ने िनवेदन कया: "तरणीका त ठाकुर को अलौ कक ा

हई ु है | वे बना दे खे या बना छुए ह कागज म िलखी हई ु बात पढ़ लेते ह |"

गु दे व बोले :"तुम एक कागज पर कुछ िलखो और उसम आग लगाकर जला दो |" क वराजजी ने कागज पर कुछ िलखा और पूर तरह कागज जलाकर हवा म उड़ा दया | उसके बाद गु दे व ने अपने त कये के नीचे से वह कागज िनकालकर क वराजजी के आगे रख दया | यह दे खकर उ ह बड़ा आ य हआ ु

क यह कागज वह था एवं जो

उ ह ने िलखा था वह भी उस पर उ ह ं के सुलेख म िलखा था और साथ ह उसका उ र भी िलखा हआ देखा | जड़ता, पशुता और ई रता का मेल हमारा शर र है | जड़ शर र को ु 'म-मेरा' मानने क वृ

जतनी िमटती है, पाशवी वासनाओं क गुलामी उतनी हटती है

और हमारा ई र य अंश जतना अिधक वकिसत होता है उतना ह योग-साम य, ई र य साम य

कट होता है | भारत के ऐसे कई भ

साम य दे खा गया है , अनुभव

, संत और योिगय के जीवन म ई र य

कया गया है, उसके

भारतभूिम म रहनेवाले... भारतीय सं कृ ित म अंश को जगाने क सेवा-साधना करनेवाले ! और वष -वष



वषय म सुना गया है | ध य ह

ा- व ास रखनेवाले... अपने ई र य

वामी वशु ानंदजी वष क एकांत साधना

गु सेवा से अपना दे हा यास और पाशवी वासनाएँ िमटाकर अपने

ई र य अंश को वकिसत करनेवाले भारत के अनेक महापु ष म से थे | उनके जीवन क और भी अलौ कक घटनाओं का वणन आता है | ऐसे स पु ष के जीवन-च र

और उनके

जीवन म घ टत घटनाएँ पढ़ने-सुनने से हम लोग भी अपनी जड़ता एवं पशुता से ऊपर उठकर ई र य अंश को उभारने म उ सा हत होते है | बहत ु ऊँचा काम है ... बड़ समझ, बड़ा धैय चा हए ई र य साम य को पूण चल आ शंकराचाय क ओर...

ा, बड़

प से वकिसत करने म | अब आओ,

नद क धारा मुड़ गयी आ

शंकराचाय क माता विश ा दे वी अपने कुलदे वता केशव क पूजा करने जाती

थीं | वे पहले नद म

नान करतीं और फ़र मं दर म जाकर पूजन करतीं | एक दन वे

ातःकाल ह पूजन-साम ी लेकर मं दर क ओर गयीं, कंतु सायंकाल तक घर नह ं लौट ं | शंकराचाय क आयु अभी सात-आठ वष के म य म ह थी | वे ई र के परम भ

और

िन ावान थे | सायंकाल तक माता के वापस न लौटने पर आचाय को बड़ िच ता हई ु और वे उ ह खोजने के िलए िनकल पड़े | मं दर के िनकट पहँु चकर उ ह ने माता को माग म ह मू छत पड़े दे खा | उ ह ने बहत ु दे र तक माता का उपचार कया तब वे होश म आ सक ं | नद अिधक दरू थी | वहाँ तक पहँु चने म माता को बड़ा क भगवान से मन-ह -मन

ाथना क क " भो ! कसी

जससे क माता िनकट ह

नान कर सक |" वे इस

होता था | आचाय ने

कार नद क धारा को मोड़ दो, कार क

ाथना िन य करने लगे |

एक दन उ ह ने दे खा क नद क धारा कनारे क धरती को काटती-काटती मुड़ने लगी है तथा कुछ दन म ह वह आचाय शंकर के घर के पास बहने लगी | इस घटना ने आचाय का अलौ कक श

स प न होना

िस

कर दया |

सू म शर र से चोर का पीछा कया ह रहर बाबा क बड़

िस

थी | एक बार वे हरपालपुर

टे शन पर थे | वहाँ के

टे शन मा टर ने उनको एक चोर सुपद ु कया | चोर ने बाबा से कहा : " महाराज ! मुझे इतनी छु ट दे द जये क म अपने बाल-ब च का

बंध कर आऊँ |" बाबा: "गाड़ आने

पर लौट आना |" चोर चला गया | टे शन मा टर को पता चला तो वह बाबा पर गम हआ ु और बोला : "उसके बदले तु ह जेल क हवा खानी होगी | तुमने जान-बूझकर उसे भगा दया है |" बाबा : "घबराओ मत, गाड़ आने से पहले ह वह लौट आयेगा |" चोर क नीयत ठ क नह ं थी | वह जंगल के माग से अ ात उसे हर समय यह

थान को भाग जाना चाहता था कंतु

तीत होता रहा क ह रहर बाबा डं डा फटकारते हए ु उसके पीछे -पीछे

चले आ रहे ह | इसीिलए वह गाड़ आने से पहले ह लौट आया |

मंगली बाधा-िनवारण मं

"अं रां अं " इस मं

को १०८ बार जपने से

ोध दरू होता है | ज मकु डली म मंगली योग

होने से जनके ववाह न हो रहे ह , वे २७ मंगलवार इस मं

का १०८ बार जप करते हए ु

त रखकर हनुमानजी पर िसंदरू का चोला चढ़ाय | इससे मंगल-बाधा का

सुखपूवक

य होता है |

सवकारक मं

पहला उपाय "एं

ं भगवित भगमािलिन चल चल इस मं

ामय

ारा अिभमं त दध ू गिभणी

ामय पु पं वकासय वकासय ी को पलाय तो सुखपूवक

वाहा |"

सव होगा |

दसरा उपाय ू गिभणी



वयं

सव के समय 'ज भला-ज भला' जप करे |

तीसरा उपाय दे शी गाय के गोबर का १२ से १५ िम.ली. रस 'ॐ नमो नारायणाय' मं जप करके पीने से भी

सव-बाधाएँ दरू ह गी और बना ऑपरे शन के

सुित के समय अमंगल क आशंका हो तो िन न मं

का २१ बार

सव होगा |

का जप कर :

सवमंगल मांग ये िशवे सवाथ सािधके | शर ये य बके गौर नारायणी नमोS तुते || (दगास शती) ु



शाली व गोरे पु



ाि

के िलए

सगभाव था म ढाक (पलाश, खाखरा) का एक कोमल प ा घ टकर गौ-द ु ध के साथ रोज सेवन करने से बालक श कलूटे ह

फर भी बालक गोरा होगा |

शाली और गोरा होता है | माता- पता भले काले-

सदगु -म हमा गु

बनु भव िनिध तरै न कोई | ज बरंिच संकर सम होई || -संत तुलसीदासजी

ह रहर आ दक जगत म पू यदे व जो कोय | सदगु

क पूजा कये सबक पूजा होय || -िन लदासजी महाराज

सहजो कारज संसार को गु ह र तो गु

बन

बन होत नाँह |

या िमले, समझ ले मन माँह || -संत कबीरजी संत

सरिन जो जनु परै सो जनु उधरनहार | संत क िनंदा नानका बहु र बहु र अवतार || -गु "गु सेवा सब भा य क ज मभूिम है और वह शोकाकुल लोग को गु

पी सूय अ व ा पी रा

करके बु

का नाश करता है और

ाना ान

नानक दे वजी

मय कर दे ती है | पी िसतार का लोप

मान को आ मबोध का सु दन दखाता है |" -संत

"स य के कंटकमय माग म आपको गु

ाने र महाराज

के िसवाय और कोई मागदशन नह ं दे सकता |" - वामी िशवानंद सर वती

" कतने ह राजा-महाराजा हो गये और ह गे, सायु य मु

कोई नह ं दे सकता | स चे

राजा-महाराज तो संत ह ह | जो उनक शरण जाता है वह स चा सुख और सायु य मु

पाता है |" -समथ

ी रामदास

वामी

"मनु य चाहे कतना भी जप-तप करे , यम-िनयम का पालन करे परं तु जब तक सदगु क कृ पा

नह ं िमलती तब तक सब यथ है |" - वामी रामतीथ

लेटो कहते है क : "सुकरात जैसे गु पाकर म ध य हआ |" ु इमसन ने अपने गु

थोरो से जो



कया उसके म हमागान म वे भाव वभोर हो जाते

थे | ी रामकृ ण परमहंस पूणता का अनुभव करानेवाले अपने सदगु दे व क

शंसा करते नह ं

अघाते थे | पू यपाद

वामी

ी लीलाशाहजी महाराज भी अपने सदगु दे व क याद म

नेह के आँसू

बहाकर गदगद कंठ हो जाते थे | पू य बापूजी भी अपने सदगु दे व क याद म कैसे हो जाते ह यह तो दे खते ह बनता है | अब हम उनक याद म कैसे होते ह यह को अपने सदगु

से

है | ब हमुख िनगुरे लोग कुछ भी कह, साधक

या िमलता है इसे तो साधक ह जानते ह |

लेड मा टन के सुहाग क र ा करने अफगािन तान म

कटे

िशवजी साधू संग संसार म, दलभ मनु य शर र | ु स संग स वत त व है ,

वध ताप क पीर ||

मानव-दे ह िमलना दलभ है और िमल भी जाय तो आिधदै वक, आिधभौितक और ु आ या मक ये तीन ताप मनु य को तपाते रहते है | कंतु मनु य-दे ह म भी प व ता हो, स चाई हो, शु ता हो और साधु-संग िमल जाय तो ये सन १८७९ क

बात है | भारत म

अफगािन तान पर आ मण कर

वध ताप िमट जाते ह |

टश शासन था, उ ह ं

दया | इस यु

दन

अं ज े

का संचालन आगर मालवा

ने टश

छावनी के ले टनट कनल मा टन को स पा गया था | कनल मा टन समय-समय पर यु - े

से अपनी प ी को कुशलता के समाचार भेजता रहता था | यु

लंबा चला और

अब तो संदेश आने भी बंद हो गये | लेड मा टन को िचंता सताने लगी क 'कह ं कुछ अनथ न हो गया हो, अफगानी सैिनक ने मेरे पित को मार न डाला हो | कदािचत पित यु

म शह द हो गये तो म जीकर

या क ँ गी ?'-यह सोचकर वह अनेक शंका-कुशंकाओं

से िघर रहती थी | िच तातुर बनी वह एक दन घोड़े पर बैठकर घूमने जा रह थी | माग म कसी मं दर से आती हई ु शंख व मं

विन ने उसे आक षत कया | वह एक पेड़ से

अपना घोड़ा बाँधकर मं दर म गयी | बैजनाथ महादे व के इस मं दर म िशवपूजन म िनम न पं डत से उसने पूछा :"आप लोग

या कर रहे ह ?" एक

ा ण ने कहा : "

हम भगवान िशव का पूजन कर रहे ह |" लेड मा टन : 'िशवपूजन क ा ण :'बेट ! भगवान िशव तो औढरदानी ह, भोलेनाथ ह | अपने भ करने म वे तिनक भी दे र नह ं करते ह | भ के आता है , उसे वे शी आ रह हो !

या मह ा है ?' के संकट-िनवारण

उनके दरबार म जो भी मनोकामना लेकर

पूर करते ह, कंतु बेट ! तुम बहत ु िच तत और उदास नजर

या बात है ?" लेड मा टन :" मेरे पितदे व यु

दन से उनका कोई समाचार नह ं आया है | वे यु

म गये ह और वगत कई

म फँस गये ह या मारे गये है , कुछ

पता नह ं चल रहा | म उनक ओर से बहत ु िच तत हँू |" इतना कहते हए ु लेड मा टन क आँखे नम हो गयीं | ा ण : "तुम िच ता मत करो, बेट ! िशवजी का पूजन करो, उनसे

ाथना करो, लघु

करवाओ | भगवान िशव तु हारे पित का र ण अव य करगे | "

पं डत क सलाह पर उसने वहाँ अनु ान

यारह दन का 'ॐ नमः िशवाय' मं

से लघु

ारंभ कया तथा ित दन भगवान िशव से अपने पित क र ा के िलए

करने लगी क "हे भगवान िशव ! हे बैजनाथ महादे व ! य द मेरे पित यु लौट आये तो म आपका िशखरबंद मं दर बनवाऊँगी |" लघु

ाथना

से सकुशल

क पूणाहित के ु

दन

भागता हआ एक संदेशवाहक िशवमं दर म आया और लेड मा टन को एक िलफाफा दया ु | उसने घबराते-घबराते वह िलफाफा खोला और पढ़ने लगी | प

म उसके पित ने िलखा था :"हम यु

म रत थे और तुम तक संदेश भी

भेजते रहे ले कन आक पठानी सेना ने घेर िलया |

टश सेना कट मरती और म भी मर

जाता | ऐसी वकट प र थित म हम िघर गये थे क

ाण बचाकर भागना भी अ यािधक

क ठन था | इतने म मने दे खा क यु भूिम म भारत के कोई एक योगी, जनक बड़ ल बी जटाएँ ह, हाथ म तीन न कवाला एक हिथयार ( शूल) इतनी ती

गित से घुम रहा

था क पठान सैिनक उ ह दे खकर भागने लगे | उनक कृ पा से घेरे से हम िनकलकर पठान पर वार करने का मौका िमल गया और हमार हार क घ ड़याँ अचानक जीत म बदल गयीं | यह सब भारत के उन बाघा बरधार एवं तीन न कवाला हिथयार धारण कये

हए | उनके महातेज वी य ु ( शूलधार ) योगी के कारण ह स भव हआ ु

व के

भाव से

दे खते-ह -दे खते अफगािन तान क पठानी सेना भाग खड़ हई ु और वे परम योगी मुझे ह मत दे ते हए ु कहने लगे | घबराओं नह ं | म भगवान िशव हँू तथा तु हार प ी क पूजा से

स न होकर तु हार र ा करने आया हँू , उसके सुहाग क र ा करने आया हँू |" प

पढ़ते हए ु ारा बहती जा रह थी, उसका ु लेड मा टन क आँख से अ वरत अ ध

दय अहोभाव से भर गया और वह भगवान िशव क

ितमा के स मुख िसर रखकर

ाथना करते-करते रो पड़ | कुछ स ाह बाद उसका पित कनल मा टन आगर छावनी लौटा | प ी ने उसे सार बात सुनाते हए ु कहा : "आपके संदेश के अभाव म म िच तत हो उठ थी ले कन भगवान िशव से

ा ण क सलाह से िशवपूजा म लग गयी और आपक र ा के िलए ाथना करने लगी | उन दःखभं जक महादे व ने मेर ु

आपको सकुशल लौटा दया |" अब तो पित-प ी दोन ह िनयिमत

ाथना सुनी और

प से बैजनाथ महादे व

के मं दर म पूजा-अचना करने लगे | अपनी प ी क इ छा पर कनल मा टन मे सन १८८३ म पं ह हजार

पये दे कर बैजनाथ महादेव मं दर का जीण ार करवाया, जसका

िशलालेख आज भी आगर मालवा के इस मं दर म लगा है | पूरे भारतभर म अं ज े िनिमत यह एकमा

ार

ह द ू मं दर है |

यूरोप जाने से पूव लेड मा टन ने प ड़त से कहा : "हम अपने घर म भी भगवान िशव का मं दर बनायगे तथा इन दःख ु -िनवारक दे व क आजीवन पूजा करते रहगे |" भगवान िशव म... भगवान कृ ण म... माँ अ बा म... आ मवे ा सदगु

म.. स ा

तो एक ह है | आव यकता है अटल व ास क | एकल य ने गु मूित म व ास कर वह ा

कर िलया जो अजुन को क ठन लगा | आ ण, उपम यु,

सैकड़ उदारहण हमारे सामने साधक



ह | आज भी इस

को भगवान व आ मवे ा सदगु ओं के

हलाद आ द अ य

कार का सहयोग हजार भ

ारा िनर तर

आव यकता है तो बस, केवल व ास क |

महामृ युज ं य मं ॐ ह जूँ सः | ॐ भूभुवः

ुव,

वः |

ॐ य बकं यजामहे सुगंिधं पु वधनम |



को,

होता रहता है |

उवा किमव ब धना मृ योमु ीय मामृतात | वः

वः भुः ॐ |

सः जूँ ह ॐ | भगवान िशव का यह महामृ युज ं य जपने से अकाल मृ यु तो टलती ह आरो यता क भी इस मं

ाि

है ,

होती है | नान करते समय शर र पर लोटे से पानी डालते व

का जप करने से

वा

य-लाभ होता है | दध ू म िनहारते हए ु इस मं

का जाप

कया जाय और फर वह दध ू पी िलया जय तो यौवन क सुर ा म भी सहायता िमलती है | आजकल क तेज र तारवाली ज दगी म कहाँ आतंक, उप व, दघटना हो जाय, कहना ु मु कल है | घर से िनकलते समय एक बार यह मं रहता है और सुर

त घर लौटता है | (इस मं ानु ान के

जानकार के िलए आ म आ व

जपनेवाला इन उप व से सुर

ारा

कंध म तीसरे अ याय के

विध- वधान क



व तृत

कािशत 'आरो यिनिध' पु तक पढ़ |) ' ीमदभागवत' के ोक १ से ३३ तक म व णत 'गजे

पाठ करने से तमाम व न दरू होते ह |

मो ' तो

का

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