िरपोताज
अपनीअपनी-अपनी ौा - ओम ूकाश ितवारी हम एक िकलोमीटर की भी चढ़ाई नहीं चढ़े ह$गे िक सुःताने के िलए ःथान तलाशने लगे। यही नहीं हमारी टोली के लगभग सभी सदःय आगे-पीछे हो गए थे। हां, ब0च$ की बात अलहदा थी। वह पूरे उ3साह के साथ आगे बढ़ते जा रहे थे। उनके उ3साह म4 मुझे आःथा-ौा का भाव रं च माऽ भी नहीं नजर आ रहा था। शायद वह पिरवतन से थी, िजसकी उ3सािहत थे। िज8ासा के कारण रोमांिचत थे। उनके सामने एक नई दिनया ु िवसंगितय$ से वह अनजान थे। उनकी कोिशश यही थी िक इस याऽा के हर पल को आंख$ म4 समेट िलया जाए। ब0चे यह जानते थे िक वह माता वैंणो दे वी के दशन के िलए जा रहे ह? । िजनका मंिदर पहाड़ की ऊंचाई पर है । लेिकन वह माता का दशन Bय$ करना चाहते ह? , यह शायद नहीं जानते थे। मेरा बड़ा बेटा छठी कEा म4 पढ़ता है । जब उसकी पाँचवी कEा की परीEा आरं भ हई ु थी तो पहले िदन वह ःनान करने के बाद अगरबGी जलाकर पूजा करने लगा। उसे ऐसा करते दे ख मुझे आIय हआ। म? कभी घर म4 Bया मंिदर जाकर पूजा-पाठ नहीं करता। ु उसकी मKमी जLर धािमक ह? , लेिकन मेरी उदासीनता धीरे -धीरे उन पर भी ूभावी हो गई है । गहरी आिःतकता के बावजूद अब वह भी कभी-कभार ही पूजा-पाठ करती ह? । ऐसे म4 बेटे Nारा पूजा करना चOकाया। लेिकन म?ने उसे त3काल टोका नहीं। उसकी पूजा ख3म होने के बाद म?ने उससे पूछा िक बेटा आज तुमने पूजा Bय$ की? - आज मेरा पेपर है । उसने सरलता से जवाब िदया। उसके जवाब से लगा जैसे वह कहना चाहता हो िक आपको तो पता होना चािहए डै ड ी। - मालूम है , लेिकन पेपर का पूजा से Bया संबंध? वह सकुचा गया और चुप हो गया। जब म?ने िफर पूछा तो जवाब िदया िक तािक पेपर बिढ़या हो और म? अ0छे नंबर से पास हो जाऊं।
- यह सच नहीं है । ऐसा िबSकुल भी नहीं होता बेटा। पेपर बिढ़या तभी होगा जब आप मन लगाकर मेहनत से पढ़ाई िकये ह$गे। यिद आपकी तैयारी बिढ़या होगी तो पेपर तो अ0छा होगा ही और तभी ईTर भी आपकी मदद कर4 गे। अUयथा सब बेकार। पूजा-पाठ पर Vयान दे ने से बेहतर है िक अपनी पढ़ाई पर Vयान दो। म?ने उसे समझाने की कोिशश की। बेटे ने अगले िदन पूजा नहीं की। वह पास हो गया। वह भी अ0छे नंबर$ से। इस याऽा म4 मेरे साथ यह बेटा भी था। उससे छोटा बेटा, उसकी मKमी और मेरी मां। साथ म4 एक िमऽ और उनका पिरवार। यह याऽा मेरी मां की वजह से हो रही थी। वह गांव से मेरे पास आW थीं। उनकी अिभलाषा थी िक वह माता वैंणो दे वी का दशन कर4 । उUह$ने सुन रखा था िक माता वैंणो दे वी का दशन करने के बाद इनसान की मुराद पूरी हो जाती है । गांव (सुSतानपुर) से जालंधर के िलए (मेरे पास) चलते समय ही उUह$ने तय कर िलया था िक माता का दशन जLर कर4 गी। िलहाजा जब उUह$ने इ0छा [य\ की तो म? इनकार नहीं कर पाया। दरअसल घूमने से जो अनुभव होता है , उससे म? वंिचत भी नहीं रहना चाहता था। मेरे िलए यह अ0छा मौका था। पैसे की िक़Sलत$ की वजह से घर से बाहर िनकलना कहां हो पाता है ? हम सुःताने के िलए एक जगह बैठ गए। मेरे बगल म4 एक आदमी भी बैठा था। उसके गोद म4 एक ब0चा था। उसे दे खकर म? चOका। ब0चे के कपड़े और रं ग दे खकर नहीं लग रहा था िक वह उसका ब0चा होगा। लेिकन वह आदमी उस ब0चे से बड़े _यार से बात4 कर रहा था। िबःकुट िखला रहा था। पानी िपला रहा था। म? उसकी यह िबया दे खते हए ु सोच रहा था िक इसने िकसी का ब0चा चुरा िलया है । लेिकन उसकी बेिफबी ने मेरे िदमाग से इस सोच को उड़ा िदया। वह िपaठू था। िपaठू मतलब, यािऽय$ के ब0च$ को ढोने वाला मजदर। ू चूिं क म? पहली बार माता के दशन के िलए याऽा पर था और िवःतृत जानकारी लेकर नहीं आया था, इसिलए म? उसे समझ नहीं पा रहा था। लेिकन मेरे िदमाग म4 यह बात आ गई िक वह पैसे के िलए िकसी के ब0चे को ढो रहा है ...।
िनगुण ी ठीक ही कहते ह? िक यह दिनया माया है । माया-मोह के च कर म4 आदमी ु परमा3मा से दरू हो जाता है । आःथा के बीच दिनयादारी और ब0चे...। ु यह िवचार आते ही मेरे िदमाग म4 यह भी िवचार आया िक माता Bया आप इस गरीब की दशा से अनिभ8 ह? ? यिद आपका दशन करने माऽ से ही आपके दशनािथय$ का दख ु और संकट दरू हो जाते ह? तो आपके चरण$ म4 पड़े हए ु आपके दशनािथय$ की सेवा करने वाले आपके भ\$ का कe Bय$ दरू नहीं होता? मेरे मन म4 यह सवाल इसिलए उठा Bय$िक यहां आने वाला ू3येक आदमी माता से कुछ न कुछ मांगने ही आता है । लोग$ की धारणा भी है िक माता जी से जो माँग$ िमल जाता है । तो Bया यह ःथानीय लोग मां से कुछ मांगते ही नहीं? 'दशनािथय$` शfद इसिलए इःतेमाल िकया Bय$िक यहां आने वाले अिधकतर लोग मुझे 'दशनाथg` या िफर 'पयटक` ही नजर आए। मेरा मानना है िक भ\ को भगवान या दे वी के दशन के िलए कहीं जाना नहीं पड़ता। भगवान यिद ह? तो वह अपने भ त के आसपास ही रहते ह? । मुझे लगता है िक भगवान 'दशनािथय$` से नहीं, 'भ\$` से ह? । यह कहना अितशयोि\ नहीं होगी िक भ त ह? तो भगवान ह? ...। मेरे मन म4 यह िवचार आया तो यह भी आया िक इसका मतलब दशनाथg ह? तो पहाड़ के लोग$ की आय है ...उनके पास रोजगार है ...। शायद यही कारण है िक िहं दओं के कई ूिस तीथ ःथल पहाड़$ पर ह? ...। ु ूकृ ित की गोद म4...। पहाड़ जो मैदान के िनवािसय$ को आकिषत और रोमांिचत करता है । पहाड़ जो पहाड़ पर रहने वाल$ के जीवन को किठन और संघष पूण बनाता है ...और कई मायन$ म4 जीना मुिँकल भी कर दे ता है । ब0चे के माता-िपता आ गए तो वह (िपaठू ) ब0चे को कंधे पर बैठाकर चलने लगा। मेरी िनगाह उसके पैर$ पर पड़ी। _लािःटक का िघसा हआ जूता पहनकर वह पैर घसीटते हए ु ु चल रहा था...। उसका पायजामा गंदा और फटा हआ था...। लबादे जैसा िलबास जो वह ु पहने हए ु था वह भी गंदा और फटा था, िजसम4 जगह-जगह पैबंद लगे थे...। उस समय उसके शरीर पर उस लबादे का औिच3य मेरी समझ म4 नहीं आया। लेिकन जब माता के भवन पहंु चा और रात हो गई और ठं ड लगने लगी तो मुझे iयाल आया िक वह िपaठू िदन म4 भी गम लबादा Bय$ पहने हए ु था...। ु हम बातचीत करते हए का एक रे ला आया और ु िफर आगे बढ़ने लगे। इसी बीच टaटओं हम4 ध का दे ते हए ु आगे िनकल गया। घोड़$-घोिड़य$ पर सैलानी बैठे थे और उनकी पूछ पकड़े उनके मािलक दौड़ रहे थे...। मुझे अवधी की कहावत याद आई-ठाकुर भूW, कुकुर
पुरौठे । (मािलक पैदल कुGा घोड़े पर) यह सोचकर म? मन ही मन मुःकराया। लेिकन यहां संबंध आिथक था। एक के पास पैसा था। वह माता का दशन करना चाहता था, लेिकन पहाड़ पर चढ़ाई के कe$ से बचना चाहता था। दसरे को पैसा चािहए था। वह माता के ू दशनािथय$ से पैसा कमाकर अपनी जीिवका चलाना चाहता था। मां वैंणो म4 दोन$ की आःथा बराबर थी। एक जो है उससे jयादा चाहता है तो दसरा रोजगार चलता रहे िक ू कामना से पिरपूण है ...। मुझे याद आया माता वैंणो दे वी आने वाले याऽी कहते ह? िक १४-१५ िकलोमीटर की चढ़ाई और उतराई आदमी माता की कृ पा से ही कर पाता है । तो Bया घोड़े से चढ़ाई करने वाल$ और नीचे उतरने वाल$ पर माता की कृ पा नहीं होती....या इUह4 माता की कृ पा चािहए ही नहीं.... जबिक माता की कृ पा के यही सबसे jयादा आकांEी होते ह? ...। कहते ह? िक यिद भ त अपने आपको कe दे ता है तो मां उसकी जSदी सुनती ह? । लेिकन जो पहले ही कe म4 हो वह Bया करे ...? मेरी आंख$ के सामने थोड़ी दे र पहले दे खा nँय तैर गया। एक आदमी सांप की तरह लेटकर चढ़ाई कर रहा था...। उसकी मदद दो आदमी कर रहे थे। एक आदमी दो पैर होते हए ू पैर को ु भी एक पैर से चढ़ाई कर रहा था...। दसरे मोड़कर बांध िलया था और लंगड़ा हो गया था...। एक घुटन$ के बल चल रहा था...। पूछने पर पता चला िक इUह$ने माUयता मानी थी। वह पूरी हो गई तो मां का दशन करने जा रहे ह? ...। अपनी-अपनी ौा....। म?ने सोचा और उनकी आःथा को नमन िकया...। चार पांच लोग$ की टोली, चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है , गाते हए ु चली जा रही थी। उनके पीछे एक टोली माता के जयकारे लगाते हए ु आगे बढ़ रही थी। 'ूेम से बोलो, जयमाता दी। जोर से बोलो, जयमाता दी। सारे बोलो, जयमाता दी। िमलकर बोलो, जयमाता दी।` थोड़ी दरी ू पर एक ढोल वाला कोई भि\ धुन बजा रहा था। एक जगह िलखा था 'भीख मांगना मना है ।` ढोल वाला इस आशा म4 ही ढोल बजा रहा था िक माता के दशनाथg उसे कुछ द4 गे...। भीख का पिरंकृ त Lप...। पूरे राःते ऐसे ढोल बजाने वाले िमलते रहे ...। िकसी ने बताया िक टaटू वाले िदन म4 चार-पांच बार माता के भवन तक जाते ह? और नीचे आते ह? । मुझे आIय हआ ु , Bय$िक हम लोग$ से तो एक बार ही नहीं चढ़ा जा रहा
था। हर बीस-तीस िमनट बाद ॄेक ले रहे थे। बेशक यह कमिशयल नहीं था, लेिकन शरीर को ऊजावान और तरोताजा बनाने के िलए जLरी था। म?ने अपनी मां से पूछा िक घोड़े की सवारी करोगी? उUह$ने इनकार कर िदया। म?ने िफर पूछा िक चढ़ाई चढ़ लोगी? उUह$ने त3काल उGर िदया िक सब माता जी िनभाएंगी। म? आTःत हआ। इसिलए नहीं िक मां ने इनकार कर िदया, बिSक इसिलए िक िजस ौा के ु साथ उUह$ने इनकार िकया, वह उUह4 'भ त` की ौेणी म4 ले जाता था...। धािमक एंगल से और मनोवै8ािनक nिe से माता के ूित उनकी ौा और आःथा मानिसक तौर पर उUह4 मजबूत बनाती थी...। माता के ूित उनका अनुराग उनके राःते को सरल बना रहा था। ु िपpठओं और टaटू वाल$ की तरह...। याऽा से दो िदन पहले मां बीमार हो गW थीं तो म? िचंितत हो गया था। यिद ठीक नहीं हW ु तो याऽा पर कैसे जाएंगी? म?ने अपनी आशंका उनसे जािहर की तो उUह$ने कहा िक माता को बुलाना होगा तो ठीक कर4 गी...। 'चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है ` कहता हआ एक ज3था मेरे सामने से िनकल ु गया...। लगभग आधी चढ़ाई चढ़ने के बाद हम एक जगह qके तो एक छोटा पहाड़ हमारे नीचे आ गया था...। उसकी चोटी पर बना मंिदर साफ िदख रहा था। ब0चे यह nँय दे खकर उ3सािहत और रोमांिचत थे...। कहावत याद आई 'अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे।` यहां पहाड़ आदमी के नीचे था...। वह पहाड़ जो नीचे से दे खने पर काफी ऊंचा लगता था अब ऊंचे से दे खने पर िकतना नीचा लग रहा था...। हमारी िनगाह पहाड़ के बीच बनी घाटी पर गई तो वहां दो-तीन घर नजर आए और सीढ़ीदार खेत। घर से बाहर एक मिहला नजर आई। लेिकन हम इतनी ऊंचाई पर थे िक वह बहत ु छोटी िदखी। वहां से कटरा शहर भी िदख रहा था। कटरा से ही माता के दशन के िलए चढ़ाई चढ़नी पड़ती है । म?ने शहर को दे खा और सोचा 'यिद माता का मंिदर यहां नहीं होता तो Bया यह शहर होता?` जवाब न म4 आया। हम िफर चढ़ाई चढ़ने लगे। म? सोचता जा रहा था। माता का भवन इतनी ऊंचाई पर Bय$? अब तो माता के भवन तक जाने के िलए बिढ़या राःता बनाया गया है । टaटू भी चलते ह? । िपaठू भी ह? । आटोिरBशा भी चलाने की योजना है , जो िक ूायोिगक तौर पर शुL भी हो गया है । कटरा से सांझीछत तक हे िलकॉ_टर की भी सुिवधा है । लेिकन पहला याऽी मां
तक कैसे पहंु चा होगा? िकतने िदन$ म4 पहंु चा होगा? यहां पहंु चने की उसे जLरत ही Bया थी? कहानी है िक मां ने उसे दशन िदया था। अपना ःथान और राःता भी बताया था। बताते ह? िक बहत ु समय तक उसी [यि\ का मंिदर पर कfजा रहा। उसी ने माता की मिहमा को लोग$ तक पहंु चाया। धीरे -धीरे ूिसि फैली और दे श-दिु नया से ौालु आने लगे...। और मंिदर आमदनी का जिरया बन गया...। Bया यही चाहता था माता का वह पहला पुजारी? वह पुजारी आिथक संकट म4 रहा होगा। इसिलए यह उि\ िनकाली। यह भी हो सकता है िक वह जंगली जानवर$ से परे शान रहा हो? सोचा इस तरह माता का सहारा िमल जाएगा और उनकी मिहमा के च कर म4 लोग आएंगे तो यह जंगल गुलजार हो जाएगा। जािहर है आदिमय$ की आवाजाही से जंगली जानवर भाग गए ह$गे। मंिदर होने की वजह से ही यहां बहत ु तरह के रोजगार पैदा हो गए...। हम लोग माता के भवन पहंु चे तो शाम हो गई थी। पूछने पर पता चला िक माता के दशन के िलए मंिदर आठ बजे खुलेगा। उस समय छह बज रहे थे। लोग लाइन म4 लग कर बैठते जा रहे थे। ऊंचाई पर चढ़ने की थकान आःथा बनकर उनके चेहरे पर तैर रही थी...। मां के दशन की अिभलाषा और बैठने से आराम की संतुिe उUह4 ौालु से भ त बना रही थी...। ऐसा मुझे लगा। माता के भवन की पूरी सुरEा [यवःथा सीआरपीएफ के हवाले है । म?ने पहले ही एक सीआरपीएफ जवान का पिरचय खोज िलया था। सीधा उसी के पास पहंु चा। उसके आिफस म4 पूछने पर पता चला िक वह sयूटी पर ह? । उनकी sयूटी आठ बजे ख3म होगी। तब तक हम लोग नहाने-धोने का काय करने लगे। ठीक आठ बजे हम लोग सीआरपीएफ के जवान रामिमलन यादव, जो िक हमारे िजले के थे, के पास िफर गए। वह sयूटी से अभी नहीं आए थे। हम लोग सीआरपीएफ के मेहमान हाल म4 बैठ गए। ठं ड बढ़ गई थी और थकान परे शान कर रही थी...। ब0चे तो लेट कर सो गए। साढ़े आठ बजे रामिमलन आए। नौ बजे उUह$ने वीवीआईपी दरवाजे से हम लोग$ को माता के दशन िलए मंिदर म4 ूवेश करवा िदया...। पंिह िमनट म4 ही हम माता के दशन करके बाहर आ गए...। यिद रामिमलन न िमले होते तो हम लोग$ को माता का दशन सुबह चार बजे ही िमल पाता...। रामिमलन की कृ पा से हम uयारह बजे लंगर छक कर कंबल vढ़कर सीआरपीएफ के आरामखाने म4 आराम से सो गए...।
सुबह छह बजे उठकर ृेश होने के बाद हम लोग$ ने भैरो मंिदर के िलए चढ़ाई शुL की। रात म4 िमले आराम के कारण शरीर म4 ताजगी आ गई थी। मां, जो रात भर घुटन$ म4 जोड़$ के दद के कारण परे शान थीं, वह भी चढ़ाई के िलए तैयार हो गW। यही नहीं उUहीं की वजह से हम भैरो मंिदर जाने को तैयार भी हए। मेरे िमऽ तो कह रहे थे िक यहीं से ु वापस हो लेते ह? । मां का कहना था िक माता के दशन के बाद भैरो बाबा का दशन जLरी है , नहीं तो दशन फलीभूत नहीं होगा। मेरी भी इ0छा थी िक जब यहां तक आ ही गए ह? तो आगे भी चलकर दे ख ही िलया जाए। भैरो मंिदर इस पहाड़ की चोटी पर है । म? िशखर पर होने के आनंद की अनुभूित करना चाहता था...। भैरो मंिदर से कँमीर घाटी के पहाड़$ की ऊंची चोिटय$ पर फैली बफ की सफेद चादर साफ िदख रही थी...। ब0चे यह दे खकर खुश थे। रोमांिचत थे। मेरी िनगाह साथ चल रहे िपaठू पर पड़ी। उसका चेहरा सपाट था...। आंख4 ःव_निवहीन लगीं। उसने एक बार भी उन पहाड़$ की तरफ नहीं दे खा...। भैरो बाबा की ूितमा को म? नहीं दे ख पाया। कारण जैसे ही मंिदर के दरवाजे पर पहंु चा जवान ने पीठ पर थपकी दी और आगे बढ़ने को कहा। म?ने िसर झुकाया तो आंख बंद हो गई... भैरो बाबा कैसे ह? यह दे ख नहीं पाया। सीआरपीएफ के जवान$ की मुःतैदी से अिधकतर ौालुओं के साथ ऐसा ही होता है । जवान भी Bया कर4 । यिद ू3येक ौालु को पांच िमनट का समय द4 गे तो भीड़ ख3म ही नहीं होगी। अफरातफरी मच जाएगी अलग से। वैसे भी यहां पहंु चने के बाद लोग जSदी से जSदी नीचे पहंु चना चाहते ह? । म?ने मां को बताया िक म? भैरोबाबा को नहीं दे ख पाया तो उUह4 बहत जबिक ु हआ। ु दख ु म?ने गंभीरता से नहीं िलया। पहाड़ से उतरते समय नीचे खाई की तरफ दे खने से मुझे बहत ु डर लगता था। इस कारण म? नीचे नहीं दे खता था। दे खता तो दरी ू बनाए रखता। मुझे लगता था िक खाई म4 झांकने से म? उसम4 िगर पड़ू ं गा। इस डर के कारण मेरे मन म4 यह िवचार आया िक कहीं माता के ूित मेरी अनाःथा के कारण तो ऐसा नहीं हो रहा है ...? िफर Vयान आया िक ऊंचाई से नीचे दे खने पर मुझे हमेशा ही डर लगता रहा है । मुझे याद आया िक गांव म4 नहर पार करने के िलए दो बांस रखकर राःता बनाया गया था। उस पर चलकर नहर पार करना मेरे िलए हमेशा ही मुिँकल रहा। यही नहीं मुझे सपने म4 अ सर ऐसा पुल पार करना
होता है जो संकरा है । उस पुल पर चलते हए ु मुझे डर लगता है । यही लगता है िक म? कभी भी नदी म4 िगर पड़ू ं गा...। म?ने इसे मनोवै8ािनक डर माना। पहाड़ से नीचे आते-आते मां की तबीयत खराब हो गई। हम जSदी से होटल पहंु चे। वहां उनकी दवा रखी थी। उUह4 दवा िखलाई गई। मां को आराम होने के बाद हम जKमू के िलए चल पड़े । कटरा से हमारी बस चली तो शाम हो गई थी। थोड़ी दरू आने के बाद अंधेरा हो गया। बस जKमू की तरफ भागी जा रही थी िक बेटे ने कहा िक डै ड ी बाहर दे खो। म?ने बाहर दे खा तो माता के भवन को जाने वाला राःता िबजली की रोशनी से जगमगा रहा था। लग रहा था जैसे आसमान म4 कई तारे चमक रहे ह$। मुझे यह nँय अ0छा लगा, लेिकन इस रोशनी से परे पसरा अंधेरा भयावह था...। उसका सUनाटा डरावना था...। मुझे उस अंधेरे म4 वह मजदरू अपने घर जाता नजर आया...। उसके जेब म4 टािफयां थीं, जो अपने ब0च$ को दे ने के िलए खरीदी थीं...। पीठ पर चावल-दाल, आटा और सfजी की गठरी...। इसे लेकर वह घर पहंु चेगा तब जाकर चूSहा जलेगा...। बस आगे बढ़ रही थी उसी के साथ म? भी सीने म4 यह दद िलए भागा आ रहा था...। कान$ के पास गूंज रहा था -चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है । ूेम से बोलो जयमाता दी।
--------------संपक : -ओमूकाश ितवारी अमर उजाला, जालंधर मोबाइल : ०९९१५०२७२०९ मेल :
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