Zameen Ka Aadmi

  • June 2020
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  • Words: 5,817
  • Pages: 16
जमीन का आदमी

कहानी

-राजनारायण बोहरे

उनका मन बड़ा िवचिलत था । रात के बारह बज चुके थे, पर उनकी आंख से नींद अब भी कोस दरू थी । िदन म% खूब खुला और हवादार िदखता सरकारी बंगले का बैठक वाला यह कमरा अंधेरे म% खूब डरावना और खाली-खाली सा लग रहा था । एक अजीब सी उदासी और घुटन सारे माहौल म% 3या4 थी । ''बाहर शायद बादल िघर आये ह गे'' माहौल म% भरी हई ु घुटन के कारण मन ही मन मौसम का अनुमान लगाते हए ु उनने करवट ली और सामने की दीवार को िनरपे7 भाव ु ु र-टक ु ु र ताकने लगे । से टक दीवार पर ठीक सामने ही पारदश9 प:नी से मढ़ा हआ ु , एक बड़ा सा फोटो टं गा था । फोटो म% वे ूदे श के मु>यमंऽी की बगल म% खड़े िदख रहे थे । मु>यमंऽी अपना बायां हाथ उनके कंधे पर रखे थे, और दांये हाथ को ऊँचा उठाये हवा म% लहराते हए ु जनता का अिभवादन करते ूतीत होते थे । फोटो पर नजर गई तो उन 7ण की याद करके वे अब भी पुलिकत हो उठे । मु>यमंऽी की गुलाबी, गदबदी और मजबूत हथेली अब भी अपने कंधे पर रखी महसूस की उनने । उ:ह% याद आया - बहत ु पहले की बात है यह । तब वे नये-नये चुने गये थे । िजले के पंच-सरपंच सCमेलन म% मु>यमंऽी खुद हे लीकॉEटर (िजसे वे उडनखटोला कहते हG ) म% बैठ कर आये थे । पंचायती-राज के ूतीक के Iप म% उ:ह% अपने पास खड़ा करके मु>यमंऽी ने जनता से कहा था-असली जनतंऽ अब आया है ! हमने एक ूदे श की िकतनी सारी राजधािनयाँ बना दी हG ।

संपतूसाद का कंधा थपथपाते हये ु वे बोले थे - ये दे खो, आपके बीच के संपतूसाद को हमने राKयमंऽी का दजाL िदया है । ये आपके िजला पंचायत अMय7 हG । इ:ह% यहाँ इतना ऊँचा खड़ा दे ख के आज ःवगL म% बैठे, बाबा साहब और गांधीजी को िकतनी खुशी हो रही होगी । तब संपतूसाद ने सोचा था िक ःवगL म% बैठकर यह Pँय दे ख रहे गा:धी जी और बाबा साहब की आँख% सचमुच आज जुड़ा गई ह गी । एक गरीब दिलत िकसान का खेितहर बेटा मु>यमंऽी के िढं ग खड़ा है , यह कोई छोटी बात थोड़ी है । मगर मु>यमंऽी को इतने िदन दे खने के बाद उ:ह% आज लगता है िक उस िदन मु>यमंऽी ने िकसी और की नहीं, ःवयं अपनी तारीफ की थी । उनके भाषण का िछपा हआ आशय ु यह था - लो दे ख लो मुझे, मG ही हँू , इस जनतंऽी गंगा का भागीरथ । मG ही तार सकता हँू तुCह% । मेरी ही बदौलत ऐरे -गैरे-नWथू खैरे लोग अब सXा म% सीधे-सीधे भागीदार हो रहे हG । पंच-संरपंच, मेCबर से लेकर िजला ूधान तक सब कमाई की गंगा म% हर हर गंगे बोल रहे हG । अब तो घर का चूYहा फूँकती मिहलाओं को भी दिलत की तरह हमने कुछ जगह% छोड़ दी हG । मिहलाएं चाह% तो घर की चार-दीवारी लांघ के खुद राज कर सकती हG । इस 7ण एकाएक संपतूसाद को लगा िक फोटो के सामने खड़े होते समय उनका मन और मिःतंक सु:न सा हो गया था । सच ये है िक िचऽ म% मु>यमंऽी मजाक सा उड़ाते लग रहे थे, संपतराम और सुरािजय के पुराने वगL का, उनकी िनर7रता का भी, भोले 3यि\Wव का भी, बिYक सच तो यह है िक पुराने िस]ांत वािदय और पुराने अठि:नया मैCबर की झूठी गवL भावना का भी । इन नये नेताओं को पुराने लोग अूासंिगक ही तो लगने लगे हG अब । गांव के गंवई लोग की तरह िबना इःतरी िकये हये ु ख^र के मोटे कुताL पजामा पहनने वाले मु>यमंऽी अपनी धज म% कुछ अलग ही िदखते हG । आम आदमी की बोली-बानी म% भाषण दे कर जनता को लुभाने का बड़ा हनर है उनके पास । मुःकराते हG तो फूल झड़ते ु हG , हँ सते हG तो धूप िखल उठती है । लेिकन इसी हँ सी और मुःकान म% वे सबको उड़ा दे ते हG । पहले वे ऐसे न थे । पर अब बड़े घाघ हो गये है । अपने राजनैितक गुI को भी पट_का दे िदया है उनने, लोकनीित और दिलत चेतना का नया झुनझुना जनता के हाथ म% दे के ।

संपतराम अनुभव करते हG िक ूदे श की राजनीित के सव`सवाL होने की वजह से मु>यमंऽी ु आज के सारे छटभै या नेताओं के आदशL बन चुके हG । सहसा उनने सोचा िक इन नय की तुलना म% वे कहाँ खड़े हG ? वे तो पंि\ के आिखरी िहःसे म% हG बिYक पंि\ से बाहर ही िनकल चुके हG वे तो । काश! वे खुद को जमाने के मुतािबक बदल पाते, तो आज ये िःथित नहीं आती िक................. याद आते ही उनके सीने की आग बढ़ उठी । लेटना मुहाल हो गया । वे उठे और पांव म% चEपल डाल के दरवाजे की ओर लपके । कुछ िदन से वे रात-रात भर जागते थे, और जाने _या-_या बड़बड़ाते थे, सो बbच की नींद म% खलल पड़ता था । इसिलये पcी के कहने पर अब बैठक वाले कमरे म% ही रात का िबःतर लगा िलया है उनने । िदन म% भी ूाय: स:नाटे म% डू बे रहने वाले िसिवल लाइन के इस 7ेऽ म% इस व\ पैना और धारदार स:नाटा 3या4 था । आसमान म% काले घटाटोप बादल छाये हये ु थे । कृ ंण प7 की काली अंिधयारी रात को इन बादल ने और घनी अंधेरी बना िदया था । वातावरण म% उमस सी िघरी हई ु थी । वे कुछ दे र तक बरामदे म% खड़े रहे िफर लॉन म% उतर आये । लॉन म% ही उनका Eयारा कुXा मोती बंधा था । उनने गौर से दे खा मोती बहत ु वे बंगले ु कमजोर और दीन-हीन सा िदखने लगा था इन िदन । लॉन को रfदते हये की बाउं सीवाल म% ठीक सामने बने चौडे ज़ालीदार दरवाजे की ओर सरपट बढ़ िलये, जैसे कहीं जाने की जYदी हो । गेट म% लगी िसटकनी को खोलने के िलये उनने Kय ही हाथ लगाया, हYकी सी 'खi' की Mविन ने स:नाटे को भेद िदया । बंगले के पीछे से एक कड़क ःवर गूंजा -''हक ु ु म सदर'' संपतराम ने खांसते हये ु अपने होने का संकेत िदया और जोर से बोले -''कोऊ नहीं है लYला । परे रहो तुम तो ।'' गेट म% ताला लगा था, इसिलये दरवाजे की दायीं ओर बने सीढ़ीदार राःते पर चढ़ के संपतूसाद चहार दीवारी के बाहर िनकल आये और मुड़कर अपने बंगले को ताकने लगे । वहां से उ:ह% दरू खड़ा अपना बंगला तो धुध ं ला सा िदखा पर बाउं सीवाल म% बना दरवाजा, जालीदार िकवाड़ और दोन ओर बने सफेद खंब के ऊपर लाल रं ग म% िलखा चमकता खुद का नाम जIर खूब ःपj और उजागर िदखा उ:ह% संपत ूसाद

िजला पंचायत अMय7 (दजाL राKय मंऽी) वे मोह म% डू बे से अपने नाम की इबारत को कुछ दे र तक एकटक दे खते रहे िफर आगे बढ़े और बड़े लाड़ से अपने नाम पर हाथ फेरने लगे । ................_या पता कल _या होगा ? उनके मिःतंक म% संदेह कfधा । कल शायद............उनके नाम के नीचे ये पद और उसके िवभूषण नहीं िलखे जायेग% । बिYक यूं कह% िक पद और िवभूषण के ऊपर शायद उनका नाम नहीं होगा । उनने िकसी तरह खुद को संभाला । अपने होठ को पूरी ताकत से कस िलया और वहां से हट आये । आिहःता-आिहःता चलते हए ु वापस लॉन म% आये, बैठक का दरवाजा खोला और िफर से उसी िबःतर पर जा लेटे, जहां से अभी-अभी उठकर भागे थे । वे िचX लेट गये ओर छत को ताकने लगे । खुद को िध_कारने लगे िक आदमी को ऐसा सीधा नहीं होना चािहये िक दसरे लोग उसे चूितया समझने लग% । ू सन ्kयालीस का आंदोलन चल रहा था उन िदन । उन िदन सुराजी लोग गांव-गांव जाकर जनजागरण कर रहे थे । इसी िसलिसले म% सुरािजय का एक जWथा उनके गांव म% आया । घंटे भर Iक के वे लोग अगले गांव जाने वाले थे िक आंधी तूफान आ गया सो उन लोग का वह पूरा िदन उसी गांव म% बीता । संपत ने िदन भर उन लोग की मदद की । वह उन लोग की बात से बड़ा ूभािवत हआ ु । रात को चौपाल पर बैठकर सुरािजय ने जब िवःतार से गुलामी, आजादी और अिहं सा आंदोलन का मतलब समझाते हये ु अंमेज के अWयाचार की दाःताँ बयान की तो गांव के युवाओं की भुजा फड़क उठी थी । संपत ने भी अपनी इbछा बताई । सुराज आंदोलन म% भाग लेने की संपत की इbछा जानकर सुरािजय ने उसे खूब ूेिरत िकया और सलाह दी िक वे लोग गांव म% ूजा मंड ल की एक शाखा डाल ल% या अपनी कोई अलग सिमित बना के आजादी का आंदोलन चलाते रह% । तब संपत के जीवन म% समाज सेवा, दे श सेवा का सूऽपात हो गया था । दे श ःवतंऽ हआ । सन ्पचास से दे श का अपना कानून लागू हआ । ु ु

पाटo की तरफ से िवधान सभा के चुनाव म% रामIप ूWयाशी बने और जब वे संपत के गांव म% आये, तो िबना कहे ही संपतूसाद ने आसपास के तमाम गांव म% पाटo को वोट िदलाने का आpासन दे िदया । उनने यह िजCमेदारी िनभाई भी ।वोट वाले िदन उन गांव के अिधकांश वोट रामIप की पेटी म% डलवाने के बाद ही उसने भोजन िकया । उन गॉव से रामIप को भारी बहमत िमला । वैसे भी पाटo की लोकिूयता बढ़ रही थी । ु सो रामIप िवधायक चुन िलये गये । उनकी पारखी नजर ने संपतूसाद की ूितभा को पहचान िलया था । संपत को खूब मान दे ने लेगे थे वे, यहां तक िक शपथ लेने गये तो अपने साथ संपतूसाद को भी राजधानी ले गये । उनने भाई जैसा नेह िदया संपत ूसाद को । उसी नेह का नतीजा था िक वे पाटo के पूणL कािलक कायLकताL हो गये । अपनी गृहःथी गांव से उठाई और लाकर शहर के िपछड़े मुहYले के एक मकान म% जमा ली । जीवन चलने लगा । उनकी पcी आज भी कहती है - ''तुCह% का पतो के गृहःथी कैसे चलत तुम तो अपनी राजनीित म% बीधे रहे िजदं गी भर, हम जानत कैसे िदन िनकारे हमने, चार बाल बbच का साथ और तुCहारी यहीं शहर म% रिहब% की िजq म% फंस के अधपेटे भूखे रहके िदन िनकारे हमने । आज किल के नेता होते तो का ऐसे रिह सकत थे ।'' सचमुच आजकल के युवा नेता ऐसे नहीं रह सकते थे । अपने िवधायक को कभी बदनाम नहीं िकया था संपत ूसाद ने । अपने से बड़े नेताओं का हक ु ु म मानना, बैग उठा लेना, जIरत पड़ने पर उनके पैर तक दबाने को तैयार रहना, खास गुण रहा है संपतूसाद का । उस जमाने म% तो सारे के सारे युवा नेता ऐसे ही होते थे । वो तो इमरजे:सी के जमाने से िबगड़ गये हG सारे राग-बाग। नहीं तो कैसी अनुशासन िूय पाटo थी वाह ! आज याद आता है िक उनके साथ के िकतने सारे लोग आज लाख म% खेल रह% हG , बड़ीबड़ी कोिठयां तनवा ली हG और वे है िक शहर म% एक झ पड़ी भी नहीं डाल सके । वे भी सदै व अपने उसूल पर कायम रहे । ''फालतू के उसूल । _या िमला इन बेकार के उसूल से ? आज भी आपकी न पाटo म% इKजत हो सकी न समाज म%, ूितrा ।'' संपतूसाद का बड़ा बेटा नवल ूाय: झुंझलाता हआ कहता है । ु

समय बीतता गया । जमाना बदलता चला गया । संपतूसाद ने दःतखत करने लायक पढ़ना-िलखना सीखने के अलावा कुछ न सीखा और चालीस बरस बीत गये । इस बीच बहत ु कुछ घटा । जो पद आरि7त कोटे के होते गये, उन पर रामIप के हक ु ु म बरदार रहकर संपतूसाद चुने जाते रहे , पर सदा वह पद रामIप म% यहां बंधक सा रहता रहा । वे ही आदे श जारी होते रहे जो रामIप कहते थे । उन िदन संपतूसाद डायरी िलखा करते थे । उनका महीने भर का िहसाब लेनदारी दे नदारी खास-खास घटनाय% दजL करते थे वे । याद आया तो संपतूसाद उठे । sयूबलाईट जलाई । लोहे की अलमारी म% उनके पुराने कागज पXर रखे हG । अलमारी खोल कर उसके िनचले खन म% जमा के रखी पुरानी डायिरय का ब:डल उठा िलया यूं ही एक डायरी के प:ने पलटते हये ु एक पृr पर वे Iके, वहां िलखा था 150 Iपये िकराने वाले िस:धी के 30 Iपये चाय वाले अ:नू के कुल 240 Iपये पटाये (Iपया रामIप जी ने िदये) 30 Iपये दध ू वाले यादव के 20 Iपये बीड़ी बtडल वाले के 10 Iपये नाई के कुछ माह बाद एक प:ने पर िलखा था 280 I. कपड़े वाले गु4ा जी के उधार 140 I. चॉदी की पायल खरीदी, सुनार से उधार कुल खचL 571 Iपये kयाज सिहत पटा कर 151 I. 3यवहार म% रखे भानजी के िववाह म% खाता बेबाक िकया (जनपद पंचायत से तनखा िमली) हर महीने की पहली तारीख के प:ने पर ूाय: इस तरह का िहसाब दजL था । इसे चुकाने के िलये पैसा कहां से आया इसका भी वे िजब कर दे ते थे । सीिमत आमदनी म% खचL

चलाने वाले इसी तरह का तो िहसाब िकताब रखते हG यह वे आज भी मानते हG । लेिकन अब वे नहीं बड़ा बेटा नवल अब उनके घर का ऐसे ही िहसाब िलखता है । इ:हीं डायिरय के बीच सबसे पुरानी डायरी सन ्1964 की िमली । उसके पृr पलटते हये ु उ:होने वह प:ना खोला जहां उनने अपने राजधानी ूवास का िजब िलखा था । आज सकारे उठके नहाना थोना िनपटाया, कलेऊ करके एमेले साब के संग गृहमंऽी के बंगला पर िमलने गये । तॉगे से गये और लौटे पॉव पैदल । ऐसे िक एमेले साब लौटते म% मंऽी जी के संग कार म% चले गये और हम बाहर बगीचा म% बैठे रह गये । हमारी जेब म% कानी कौड़ी भी न थी, सो िरं गत भये एमेले रे ःट हाउस आना पड़ा । तीन बजे खाना खाया और आराम करते रहे । एमेले साब संजा 5 बजे लौटे और अपनी गलती मनात रहे िक चलते समय जYदबाजी म% बता न सके ,िजससे फालतू तकलीफ उठानी पड़ी हम% । बड़ा िदल है एमेले रामIप का, परमाWमा उYटे हजार बरस की उमर दे । एक जगह िलखा था आज अब पता लगा िक ऐमेले साब ने खादी संघ, हिरजन सेवक संघ, पंचायत ूितिनिध संघ के िचsठी पैड काहे बैग म% रखवाये थे । हरे क पैड से एक प:ना फाड़ के उनने मुखमंऽी के लाने हमसे कई िचsठी िलखाई िक रामIप जी को मंऽी मtडल म% सिCमिलत िकया जावे । हम% खुषी है िक हम उनके कछु कमा आये । हाथ की डायरी खुली हई ु हाथ म% ही रह गई, और वे अतीत म% खो गये । राजनीित म% उनने रामIप का पYला पकड़ा तो िकसी दसरे म% आःथा रखी ही नहीं । घर ू म% पGतालीस बरस म% बहत ु कुछ घटा । तीन बbचे हये ु उनके । गृहःथी पहले ही गांव से उठकर शहर के हिरजन मुहYले म% आ चुकी थी । गांव से थोड़ा-मोड़ा अनाज आ जाता तो उसी म% वे Iखा-सूखा खा कर अपना गुजारा करते । एक जोड़ी खादी के उजले से धोती कुताL वे संभाल कर रखते थे । बाकी अपना और बbच का गुजारा जैसा िमल जाता, वैसा खा पहन कर करते रहते । बाद म% जेठा लड़का जब कुछ बड़ा हआ तो खुद ही लेबर ु सEलाई की ठे केदारी करने लगा था । उन लोग ने गांव से लाकर एक दे शी कुXा

'मोती'पाला था अपने घर म% । वह कुXा Iखी-सूखी खाकर भी तगड़ा बना रहा तथा रात को खूब भfकता था । एकाएक एक रात रामIप को िदल का दौरा पड़ा । उ:ह% ॄेन हे मरे ज हआ और लकवा लग ु गया । उस िदन संपतूसाद की आंख के आगे तो अंधेरा छा गया था - अब _या होगा ? बेचारी भाभी पर बड़ी दया आई उ:ह% । एक महीना तक वे अःपताल म% रात िदन हािजर रहे । िहले तक नहीं। रामIप को दे खने बड़े बड़े नेता और मंऽी लोग आये। इसी अंधेरे से आशा की नयी िकरण चमकी । रामIप के मंझले भाई को पाटo ने िदYली आने की खबर भेजी थी । अगले िदन ही मंझला भाई राजIप िदYली रवाना हो गया। तीसरे िदन वह लौटा तो बड़ा ूस:न था। पाटo ने रामIप जी की लCबी सेवा और जनता म% उनकी आःथा को आधार मानकर सहानुभूित लहर का फायदा उठाने का िनणLय िलया । पाटo ने राजIप को िटकट दे ने का फैसला कर िलया था । िवधानसभा चुनाव हये ु । राजIप भारी बहमत से जीत गया । रामIप की तरह चुनाव म% उसने भी संपत ूसाद को ु भरपूर मान िदया। उ:हीं िदन दे श म% दिलत की अपनी पाटo बनी। संपत ूसाद के पास ूःताव आया िक वे इस मMयमाग9 पाटo की गुलामी छोड़% और दिलत की अपनी पाटo म% शािमल हो जाय% पर वे उसम% नहीं गये । अचानक ही ूदे श के मु>यमंऽी ने ूदे श म% पंचायत चुनाव की घोषणा कर दी । संयोग की बात, िक इस िजले का पंचायत अMय7 पद दिलत जाित के िलये आरि7त हो गया। िजला पंचायत अMय7 को राKयमंऽी का दजाL िमलना था, सो तमाम नये पुराने लोग इस पद के िलये चुनाव लड़ने को अपना मन बनाने लग%। उनने राजIप से बात की तो राजIप ने उ:ह% सबके सामने बुरी तरह फटकार िदया । उनका बूढ़ा िविोही मन भला कैसे सुन सकता था सो वे राजIप को छोड़कर तुरंत ही अपने घर चले आये । अपने लोग की एक बैठक बुलाई और िजले भर म% आदमी भेज िदये गये । सब जगह से उ:ह% समथLन िमल रहा था । उनने िजला पंचायत अMय7 बनने के िलये कमर कस ली ।

लेिकन इसके िलये संपत ूसाद को खुद को बहत ु बदलना पड़ा । पहले उसने राजIप की परवाह िकये बगैर राजIप के क%डीडे ट के िखलाफ एक नCबर वाडL के सदःय के िलये चुनाव का पचाL भरा। खूब मेहनत करके रातिदन एक कर िदये। वे जीत भी गये। सदःय पद पर जीतते ही वे राजधानी की ओर दौड़ गये वे अपने पुराने कागज पXर लेकर । पाटo हाई कमान ने उनके दावे को सही माना । वे मु>यमंऽी से िमले तो मु>यमंऽी ने बड़ा नेह िदया उनको और वे पाटo के उCमीदवार बने । अंतत: बड़े संघषL से िजला पंचायत अMय7 बन सके थे वे। तब यह बंगला, एCबेसेड र कार, और भरपूर ःटाफ िदया था, शासन ने । कले_टर ने उनसे ू -फूटी गृहःथी का थोड़ा सा सामान लेकर िसिवल-लाइन के इस आमह िकया तो अपनी टटी बंगले म% आने की िहCमत नहीं हो सकी थी, उनकी । मन म% वे सोचते रहे िक जाने िकनु िकन ज:म का पुtय था िजसके कारण यह राजयोग िमला है , इसे ठकराना तो अपने ु भाxय को ठकराना है । सो वे एक रात अपने गांव के एक शै _टर वाले की शॉली म% गृहःथी लादकर बंगले म% ले आये थे। उन िदन यह बंगला खूब बड़ा लगता था। उ:ह% बड़ा और अWयंत भ3य लगता था । ऐसा भ3य िक इसकी भ3यता के नीचे वे ःवयं को दबा हआ महसूस करते रहे थे कई िदन तक ु । उन सबसे Kयादा परे शान तो कुXा मोती था जो अब, िसिवल लाइन म% आकर कुछ Kयादा ही उदास हो गया था। अकःमात िकसी आगंतुक को काटना ले इस कारण बंगले म% उसे एक पsटे से बांध कर रखा जाने लगा था। वह धीरे -धीरे भ कना भी भूल गया। िफर उ:ह% धीरे -धीरे सब कुछ अbछा लगने लगा था। िजले के हर सरकारी कायL म% वे खास मेहमान होते थे । अंजाने और जाने-पहचाने हजार लोग उ:ह% आदर दे ने लगे थे। जब बाजार म% या िकसी शादी-kयाह म% जाते तो हजार हाथ उनके ूित नमःकार के िलये उठते । वे खुद को कुछ खास मानने लगे थे। इस सCमान के िलये वे मु>यमंऽी, गांधी बkबा और बाबा साहब को ध:यवाद दे ते थे। एक िदन अकःमात राजIप उनके दफतर म% टपक बैठा था और उनसे बड़े लपक के िमला था । अनायास ही संपतूसाद की एक एक िबया पर राजIप का िनयंऽण होता चला गया। यहां तक िक उनके बगंले के दो कमरो म% राजIप का िनजी दzतर आकर जम गया, जहां वह िनयिमत Iप से सुबह-शाम बैठने भी लगा। बंगले की चहार-िदवारी के बड़े ग़ेट पर छोटा सा एक बोडL लटक गया था-

''िबना अनुमित ूवेश विजLत है ।'' सचमुच इस बंगले ने अपने लोग से दरू कर िदया था उ:ह% । गांव के पुराने भाई बंध,ु बचपन के िहतू और सखा अब बंगले म% घुसने का साहस नहीं कर पाते थे। खुद की लोकिूयता पर िवpास सा हो चला था उ:ह% । एक-आध बार ऐसा भी हआ ु िक िकसी गांव म% साथ-साथ जाने पर राजIप की बजाय गांव के लोग ने उ:ह% Kयादा आव-आदर िदया । तब बkबा के मन म% एक बड़ी इbछा ने न:हे से अंकुर के Iप म% ज:म िलया..........._या ऐसा नहीं हो सकता िक वे एमेले का चुनाव लड़ ल%................ इतना तो तय है िक वे जIर ही जीत सकते हG । उनसे जाने कैसे गलती हो गई िक एक िदन अपनी पाटo के िजलाMय7 से अकेले म% वे अपनी इbछा बता बैठे । िफर _या था, पूरी पाटo है रानी से इस बात पर बहस करने म% जुट गयी िक अनपढ़ व पुराने अ3यावहािरक राजनीितक िबरादरी के खtडहर संपतूसाद उफL बkबा को एमेले का िटिकट दे ना ठीक होगा िक नहीं । उ:ह% िवpास है िक उन जैसा पुराना समाज सेवक िजले भर म% और कोई नहीं बचा है , पुराना भी और िस]ांत वादी भी । उ:ह% खुश रखना पाटo की मजबूरी थी । दिलत वोट के िलये बड़े लुभावने चारे के Iप म% पाटo उनका इःतेमाल कर रही थी। एक मुखौटा भर थे वे पाटo के, पर वे कहां समझ पाये । राजIप की कैद म% रहने के बड़े कj भोगे हG उनने । उनके कायLकाल म% उनके आदे श पर िजले भर म% हजार है tडपंप लगे, सैकड सड़क% बनीं , पचास पाठशालाय% बनी और माःटर से लेकर डॉ_टर तक की अनिगनत जगह% भरी गयी, पर वे अपनी मज9 का एक काम भी न करा सके । िनज अपने गांव म% कोई एक बड़ी चीज न दे सक% । अपने एक भी िरँतेदार और गांव वाले को िकसी छोटे मोटे पद पर बहाल न कर सके ।शुI म% लाल बXी की गाड़ी, बड़ा आलीशान बंगला ,ऊंचे अहलदार की तरफ से रोज की जा रही हजूरी म% ऐसे खोये रहे िक और कहीं Mयान ही नहीं रहा उनका, बाद म% सबसे पहले गांव वाल ने दबे ढं के ःवर म% उ:ह% रोका ,िफर इलाके के दीगर लोग ने इशारा िकया और अंत म% बड़े बेटे नवल और उसकी मां ने खुलकर टोकना शुI िकया तो उ:ह% कुछ समझ म% आया । हालांिक पcी से उ:होने यही कहा िक वे उतने गंदे नहीं हो सकते के िवjा खाने लगे। अपने भोलेपन के कारण िफर छले गये वे । अपने गांव का िवकास तथा िरँतेदार की नौकरी लगाने के िलये उनने राजIप से कहा तो हं सी उड़ाने के अंदाज म% राजIप बोला-

तुम प गा के प गा रहे संपत, अरे भले आदमी सारे के सारे काम अपने गांव वाल और िरँतेदार के करा लोगे तो इलाके के दसरे लोग तुCह% _या वोट द% ग%। आगे तुCह% िसफL वाडL ू मेCबरी का चुनाव थोड़ी लड़ना है , तुम तो एमेले का चुनाव लड़ोगे न ,इसिलये पूरे ऐिरया का Mयान रखो। एमेले के चुनाव की बात करके उनके मन की दखती रग को छू िलया था राजIप ने । ु सो बkबा चुप हो गये। उ:ह% उस समय का _या पता था िक बkबा के एमेले बनने की महाWवकां7ा से खुद राजIप सबसे Kयादा नाराज है । घर मे एक िदन नवल ने िफर टोका तो बkबा ने उ:ह% बरज िदया िक राजनीित म% Kयादा दखलंदाजी मती करो। हम Kयादा जानत हG की काम अbछे है और की काम बुरो। हालांिक नवल की मां ने उ:ह% राजIप के बढ़ते जा रहे दखल से उस व\ उ:ह% चेताया था । उ:ह ने पcी के बारे म% सोचा िक कहने को ये औरत िबना पढ़ी िलखी ऐसी जनी मा:स है , िजसके बारे म% रामायण म% शबरी के बहाने से िलखा गया हG - ''अधम से अधम अधम अित नारी, ितन मह मG मित मंद गवारी'' लेिकन उ:ह ने अनुभव िकया है िक यह दिनयादारी की बात% खूब समझती है । ु ठीक उसी 7ण से राजIप के ूित गहरी िवतृंणा हो आई थी उ:ह% । वे एक दम सिबय हो उठे । अपने गांव के लछमन बागला को मूितL चोरी के मामले म% पुिलस |ारा झूठा फंसाया जाने पर वे एस.पी. से आग-बबूला हो गये थे और जब एस.पी. ने बताया िक यह सब राजIप के कहने से हो रहा है तो राजIप को भी काफी बुरा भला कह डाला था । राजIप ने अपने दँमन को िजन ष}यंऽ और झूठे ूकरण म% फंसाया था, एक एक करके ु बkबा को सब याद आने लगे थे । मन के िकसी कोने म% खुद के िवI] भी ऐसे िकसी ष}यंऽ का हYका सा भय पैदा हआ तो कुछ दे र के िलये वे डर गये । जाने शाम तक ु कैसे उनम% आWम िवpास उभरा था िक वे अगली सुबह से बेधड़क होकर अपनी मज9 से काम करने लगे थे। लेिकन ऐसा एक स4ाह तक ही तो चल पाया था । राजIप ने पलट कर उन पर ऐसे वार िकये िक वे स:न रह गये थे । िजला पंचायत अMय7 के सरकारी बंगले म% एक ूायवेट ठे केदार के रहने का मु^ा उठा कर उसने बkबा के बड़े बेटे को घर से बेदखल कराने का ष}यंऽ रच डाला था । सरकारी एCबेसेड र के िनजी उपयोग के सैकड ूसंग की सूची बना

के राजIप ने कले_टर को सfप दी थी - िजनका जवाब दे ना बड़ा किठन लगा था, संपत को । ऐसे मे संपत ने तमाम िवकYप पर िवचार िकया था - पाटo के दसरे गुट म% जा िमलने ू से लेकर दिलत की पाटo म% चले जाने तक की कYपना की थी। पर हर िवकYप अधूरा सा लग रहा था उ:ह% । अंत म% वे इसी राःते पर वापस लौटे थे िक राजIप से ही सुलहसफाई कर ली जावे, तनाव और िवरोध सदा से हािनूद रहा है । एक बार वे िफर राजIप के शरणागत हो गये थे लेिकन अब की बार उनके साथ युMदबंिदय सा सलूक हआ था । राजIप तो चुप ही बैठा रहा था उस िदन, उसके चेले ु चमचे ही िवष उगलते रहे थे। ऐसी ऐसी शत` लाद दी गई थी उन पर, िक जीना भी दभर ू हो जाये । एमेले के िलये िटकट मागंना तो दरू की बात पाटo के िकसी भी अिधकारी से िमलने की मनाही कर दी गई उनसे । उनकी ऐCबेसेड र उनका साईवर ,उनका पी.ए. अब राजIप की कोठी पर रहने लगा था - वे िसफL रबर ःटांप बनकर रह गये थे। हर रात वे आज की तरह जागते हये ु काटते थे। आWम िवषलेशण करते हये ु वे ःवयं से पूछने का यc करते रहते थे िक एक बार िफर से वे _य राजIप के गुलाम हो गये ? शायद इस राKयमंऽी ःतर के पद के िलये या इन सुख-सुिवधाओं और ताम-झाम के िलये । रामIप जी की नमक-हलाली के िलये या खुद म% अनायास उमड़ आये सXा ूेम के िलये ! िजससे ता िजंदगी वे और उनकी पीढ़ी के दीगर लोग दरू-दरू रहे । हर रात जागते हये ु ूाय: वे उन पिरणाम पर भी गौर करते जो वे राजIप की नाराजगी की वजह से भोग सकते थे । खुद पर बड़ा ताKजुब होता था उ:ह% । उनका ज:म से जुड़ा दबंग रवैया जाने कहाँ चला गया था । ठसकेदार आवाज जाने कहाँ िबला गई थी । ''सचमुच आज की राजनीित उन पैस के िलये कतई उपयु\ नहीं बची है ,'' यह जुमला हर बार उनके िदल और िदमाग पर छा जाता था । महीना भर पहले ूदे श भर म% चचाL उठी थी िक हर िजला पंचायत को एक-एक करोड़ Iपया िदया जा रहा है - मामीण िवकास के नाम पर ।

हर िजले के िजला सभा क7, कायाLलय भवन, जीप, जनपद के कायाLलय और वाहन के अलावा इं िदरा आवास योजना जैसी दजLन योजनाओं के िलये एक-एक करोड़ िदया जाना था । इस काम का जYदी से जYदी टै tडर िनकालकर काम शुI होना था । शासन ने ऐसा ब:दोबःत िकया था िक पूरा एक करोड़ िकसी एक ठे केदार को सfपा जाये िजससे सारे काम जYदी से जYदी हो सक% । िफर _या था, दे श भर म% हड़कंप मच गया । जाने कहाँ-कहाँ के िकस-िकस नःल के ठे केदार अपनी ए.सी. गािड़य म% बैठकर बkबा के बंगले पर दआ ु -सलाम करने आने लगे । उधर राजIप तो ऐसे मामल म% दरू की कौड़ी लाता था । उसने जाने कब ौी कंःश_शन ूा. िल. नाम की कंपनी बना ली थी, िजसके िनदे शक म% बkबा के बेटे नवल को भी शािमल कर िलया था । एक िदन पता चला िक राजIप की भी िग]-नजर इसी एक करोड़ Iपये पर है तो उनका माथा ठनका था । घर पर नवल से बात करी तो पहली बार नवल भी राजIप के प7 म% बोला था । वे समझ गये िक िनदे शक मtडल म% शािमल होने की वजह से उरचन-खुरचन भी िमली तो चार-छह लाख Iपये से Kयादा पैसा ही िमलेगा नवल को । उनने मन ही मन तय िकया था िक चाहे दसरी कोई कंपनी ठे का लेले वे ौी कंःश_शन ू को ठे का नहीं लेने द% गे । एक हzता पहले शासन से एक करोड़ Iपया की ःवीकृ ित आ गई है और तभी से राजIप चाहता है इस काम का ौी कंःश_शन कंपनी को ही ठे का िमल जाये । पर वे न माने और उनने एक बड़े अखबार म% िवि4 छपा दी है । संपत मानते हG िक यह एक करोड़ का टे tडर कल खुलना है । Iपया उनके बाप का नहीं है , जो नाग सा बैठकर वे उसकी रखवाली कर% । न ही सरकारी पैसे का गबन रोकने का कोई ठे का उनके पास है , जो इस Iपये के पीछे लsठ िलये घूमते रह% । पर सवाल है आटे म% नमक और नमक म% आटे का । आज िजले म% िकसी भी िवभाग का ठे का _य न हो, राजIप का उसम% जIर िहःसा है । सड़क बनाना हो चाहे पुल, खदान का ठे का हो चाहे शराब का, हर जगह राजIप का आदमी िचपका है । शायद यही होती है नई राजनीित । पूरे ूदे श म% आजकल यही फैशन चल पड़ा है । मन ही मन िहसाब लगाया संपत ने, आज तीस माचL है , कल टै tडर खुल%गे और तुरंत ही Iपया शांःफर कर दे ना पड़े गा । नहीं तो पूरा Iपया वापस हो जायेगा । इकतीस माचL तो सदै व से िवXीय वषL का अंितम भुगतान िदन होता है । बीते हये ु कल राजIप उनके पास आया था और संपत की बेIखी दे ख कर बड़ा नाराज हआ था। वह ु

उ:ह% सीधे ःवर म% धमका गया है िक अगर यह एक करोड़ Iपये का ठे का उसकी कंपनी को न िमला, तो बkबा के िखलाफ अिवpास ूःताव प_का है । इधर टे tडर िछनेगा उधर राजIप आठ िदन के भीतर संपत को ग^ी से उतार फ%केगा । अिवpास ूःताव पर आठ लोग के दःतखत कराके तैयार करा रखे हG राजIप ने । िकतना बड़ा अपमान होगा उनका । ''_या सचमुच इसे अपमान कह% गे ......?'' मन ही मन ःवयं से उनने ू€ िकया था, और कल शाम से ही वे इस ू€ से लड़ रहे हG । पूरी रात बीत चली है । इस रात म% अपना सारा अतीत दे ख डाला है उनने । कहीं कोई खोट, कोई ऐब नहीं िमला है , िफर भी उनकी सीट खतरे म% हG , यह दे खकर वे बड़े िविःमत हG । कल उनने मु>यमंऽी को फोन लगा के इस समःया का िनदान पूछा था । तो उनने टके सा उXर दे िदया था - ''िवधायक को िमला कर चलो । '' आिखर वे िवधायक के गुलाम हG _या ? अपना मूYय ही कहाँ समझ पाये वे िजंदगी भर । बेकार उसूल से बंधे रहे । नवल सच कहता है िक उसूल के िलये फालतू िजंदगी गंवा दी उनने । भोर हो चली थी । पंछी चहचहाने लगे थे । बाहर उजास फूट रही थी । यकायक वे उठे और बरामदे म% चले आये । उ:ह% दे खकर मोती बड़े लाड़ से भ का - भfभf-भf ! वे झुककर मोती के पास बैठ गये, उसका गला सहलाया और धीरे से उसका पsटा खोल िदया ◌ं बड़ी अिवpसनीय सी िनगाह से मोती ने उ:ह% दे खा । अपने कान फटकारे । एक जोरदार अंगड़ाई ली बkबा की अनुभवी आंख म% दे खा िक उसकी आंख म% मुि\ का अहसास था ।

वे मुःकराये । उठकर कुछ दरू खड़े हो गये । मोती ने एक बार और अंगड़ाई ली िफर फुत9 से एक लCबी छलांग लगाई और चहारदीवारी पार करके सीधे सड़क पर जा खड़ा हो गया । मोती ने एक 7ण मुड़कर बंगले को उदासीन भाव से ताका और दसरे ही 7ण िनम‚ही ू सा हो कर वह गांव की िदशा म% दौड़ता चला गया । बkबा आने मन को बड़ा खुला और हYका सा महसूस कर रहे थे । वे अपनी ूात: िबया म% 3यःत हो गये । ूात: xयारह बजे थे । कले_टर के चैCबर म% टे बल के सामने बैठे बkबा के हाथ का पऽ दे खकर कले_टर अचंिभत थे - बkबा आप _या कर रहे हो ? कले_टर ने और कुछ पूछने का यc िकया पर हाथ के इशारे से बkबा ने बरज िदया और उ:ह% िविःमत सा खड़ा छोड़कर चैCबर से बाहर िनकल आये । उ:ह% पैदल चलते दे ख साइवर दौड़ा आया ''पैदल कहां चल िदये आप । हम गाड़ी ला रहे हG । '' '' न लला, हम पैदल जैह% । हमने इःतीफा दे िदया है अबई हाल । खुशी रहो तुम ।'' एक 7ण Iककर बkबा ने साइवर पर Eयार भरी नजर डाली और उसे भfच_का खड़ा छोड़कर चल पड़े । सड़क पर चलते हये ु उनने महसूस िकया िक वे तो जमीन पर चलना भी भूल चले थे । जमीन तो सबकी मां है । सब की जड़% जमीन म% ही तो होती हG । उन जैसे जमीन पर काम करने वाले आदमी के िलये तो जमीन से जुड़ा रहना उतना ही जIरी है िजतना िजंदा रहने के िलये हवा से जुड़ा रहना । यह याद करते ही उनम% उछाह भर उठा । वे खरामा-खरामा चल पड़े । जमीन पर पड़ता हर कदम उ:ह% ताकत दे ता महसूस हो रहा था । ''''''''

रचनाकार पिरचयराजनारायण बोहरे ज:म बीस िसतCबर उनसठ को अशोकनगर मMयूदे श म% िश7ा िह:दी सािहWय म% एम. ए. और िविध तथा पऽकािरता म% ःनातक ूकाशन ूकाशन ' इKज़त-आबI ' एवं ' गोःटा तथा अ:य कहािनयां' दो कहानी संमह और िकशोर के िलए दो उप:यास पुरःकार अिखल भारतीय कहानी ूितयोिगता 96 म% पbचीस हजार Iपए के िह:दी म% एक कहानी पर अब तक के सबसे बड़े पुरःकार से पुरःकृ त सCपकL एल आय जी 19 , हाउिसंग बोडL कॉलोनी दितया-475661 07522-506304

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