Sukhmanisahibinhindidevnagri.pdf

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  • Words: 13,275
  • Pages: 51
भगत जना कै मिन िब ाम ॥ रहाउ ॥  

    गउड़ी सुखमनी मः ५ ॥   सलोकु ॥  

ੴ सितगरु  प्रसािद ॥   आिद गुरए नमह ॥  

जुगािद गरु ए नमह ॥   सितगुरए नमह ॥  

ी गरु दे वए नमह ॥१॥  

असटपदी ॥  

िसमरउ िसमिर िसमिर सुखु पावउ ॥  

किल कलेस तन मािह िमटावउ ॥   िसमरउ जासु िबसु ्मभर एकै ॥   नामु जपत अगनत अनेकै ॥  

बेद पुरान िसिम्रित सुधाख्यर ॥   कीने राम नाम इक आख्यर ॥  

िकनका एक िजसु जीअ बसावै ॥   ता की मिहमा गनी न आवै ॥   कांखी एकै दरस तुहारो ॥  

नानक उन संिग मोिह उधारो ॥१॥   सुखमनी सुख अिम्रत प्रभ नामु ॥  

प्रभ कै िसमरिन गरिभ न बसै ॥   प्रभ कै िसमरिन दख ू  ु जम ु नसै ॥   प्रभ कै िसमरिन कालु परहरै  ॥  

प्रभ कै िसमरिन दस ु मनु टरै  ॥  

प्रभ िसमरत कछु िबघनु न लागै ॥   प्रभ कै िसमरिन अनिदन ु जागै ॥  

प्रभ कै िसमरिन भउ न िबआपै ॥   प्रभ कै िसमरिन दख ु ु न संतापै ॥   प्रभ का िसमरनु साध कै संिग ॥  

सरब िनधान नानक हिर रं िग ॥२॥  

प्रभ कै िसमरिन िरिध िसिध नउ िनिध ॥   प्रभ  कै  िसमरिन  िगआनु  िधआनु  ततु 

बिु ध ॥  

प्रभ कै िसमरिन जप तप पूजा ॥   प्रभ कै िसमरिन िबनसै दज ू ा ॥  

प्रभ कै िसमरिन तीरथ इसनानी ॥   प्रभ कै िसमरिन दरगह मानी ॥  

प्रभ कै िसमरिन होइ सु भला ॥   प्रभ कै िसमरिन सुफल फला ॥  

से िसमरिह िजन आिप िसमराए ॥  

नानक ता कै लागउ पाए ॥३॥  

प्रभ कउ िसमरिह से परउपकारी ॥  

प्रभ का िसमरनु सभ ते ऊचा ॥  

प्रभ कउ िसमरिह ितन सद बिलहारी ॥  

प्रभ कै िसमरिन ित्रसना बुझै ॥  

प्रभ कउ िसमरिह ितन सूिख िबहावै ॥  

प्रभ कै िसमरिन उधरे  मच ू ा ॥  

प्रभ कउ िसमरिह से मख ु  सह ु ावे ॥  

प्रभ कै िसमरिन सभ ु िकछु सझ ु ै ॥  

प ्रभ कउ िसमरिह ितन आतम ु जीता ॥  

प्रभ कै िसमरिन नाही जम त्रासा ॥  

प्रभ कउ िसमरिह ितन िनरमल रीता ॥  

प्रभ कै िसमरिन परू न आसा ॥  

प्रभ कउ िसमरिह ितन अनद घनेरे ॥  

अिम्रत नामु िरद मािह समाइ ॥  

संत िक्रपा ते अनिदनु जािग ॥  

प्रभ कै िसमरिन मन की मलु जाइ ॥  

प्रभ कउ िसमरिह बसिह हिर नेरे ॥  

प्रभ जी बसिह साध की रसना ॥  

नानक िसमरनु पूरै भािग ॥६॥  

नानक जन का दासिन दसना ॥४॥   प्रभ कउ िसमरिह से धनवंते ॥   प्रभ कउ िसमरिह से पितवंते ॥   प्रभ कउ िसमरिह से जन परवान ॥  

प्रभ कै िसमरिन कारज पूरे ॥  

प्रभ कै िसमरिन कबहु न झूरे ॥  

प्रभ कै िसमरिन हिर गुन बानी ॥  

प्रभ कै िसमरिन सहिज समानी ॥  

प्रभ कउ िसमरिह से पुरख प्रधान ॥  

प्रभ कै िसमरिन िनहचल आसनु ॥  

प्रभ कउ िसमरिह िस सरब के राजे ॥  

प्रभ कै िसमरिन अनहद झुनकार ॥  

प्रभ कउ िसमरिह िस बेमह ु ताजे ॥   प्रभ कउ िसमरिह से सुखवासी ॥  

प्रभ कउ िसमरिह सदा अिबनासी ॥  

प्रभ कै िसमरिन कमल िबगासनु ॥   सुखु प्रभ िसमरन का अंतु न पार ॥  

िसमरिह से जन िजन कउ प्रभ मइआ ॥  

िसमरन ते लागे िजन आिप दइआला ॥  

नानक ितन जन सरनी पइआ ॥७॥  

नानक जन की मंगै रवाला ॥५॥  

हिर िसमरन ु किर भगत प्रगटाए ॥  

हिर िसमरिन लिग बेद उपाए ॥   हिर िसमरिन भए िसध जती दाते ॥   हिर िसमरिन नीच चहु कंु ट जाते ॥   हिर िसमरिन धारी सभ धरना ॥   िसमिर िसमिर हिर कारन करना ॥  

हिर को नामु िखन मािह उधारी ॥  

अिनक पुनहचरन करत नही तरै  ॥   हिर को नामु कोिट पाप परहरै  ॥  

गुरमुिख नामु जपहु मन मेरे ॥  

हिर िसमरिन कीओ सगल अकारा ॥  

नानक पावहु सख ू  घनेरे ॥१॥   सगल ि सिट को राजा दख ु ीआ ॥  

किर िकरपा िजस ु आिप बुझाइआ ॥  

लाख करोरी बंधु न परै  ॥  

हिर िसमरन मिह आिप िनरं कारा ॥  

नानक  गुरमुिख  हिर  िसमरनु  ितिन  पाइआ ॥८॥१॥   सलोकु ॥  

दीन  दरद  दख ु   भंजना  घिट  घिट  नाथ 

अनाथ ॥  

सरिण  तु हारी  आइओ  नानक  के  प्रभ 

साथ ॥१॥  

असटपदी ॥  

हिर का नामु जपत होइ सख ु ीआ ॥   हिर का नामु जपत िनसतरै  ॥  

अिनक माइआ रं ग ितख न बुझावै ॥   हिर का नामु जपत आघावै ॥  

िजह मारिग इहु जात इकेला ॥   तह हिर नामु संिग होत सुहेला ॥   ऐसा नाम ु मन सदा िधआईऐ ॥  

नानक गुरमुिख परम गित पाईऐ ॥२॥   छूटत नही कोिट लख बाही ॥  

जह मात िपता सुत मीत न भाई ॥  

नामु जपत तह पािर पराही ॥  

जह महा भइआन दत ू  जम दलै ॥  

हिर का नामु ततकाल उधारै  ॥  

जह मस ु कल होवै अित भारी ॥  

नामु जपत पावै िब ाम ॥  

मन ऊहा नामु तेरै संिग सहाई ॥  

तह केवल नामु संिग तेरै चलै ॥  

अिनक िबघन जह आइ संघारै  ॥   अिनक जोिन जनमै मिर जाम ॥  

हउ मैला मलु कबहु न धोवै ॥  

पारब्रहिम जन कीनो दान ॥  

ऐसा नाम ु जपहु मन रं िग ॥  

नानक जन कै िबरित िबबेकै ॥५॥  

िजह मारग के गने जािह न कोसा ॥  

हिर कै नािम जन कउ ित्रपित भग ु ित ॥  

हिर का नामु कोिट पाप खोवै ॥  

मन तन रं िग रते रं ग एकै ॥  

नानक पाईऐ साध कै संिग ॥३॥  

हिर का नामु जन कउ मुकित जुगित ॥  

हिर का नामु ऊहा संिग तोसा ॥  

हिर का नामु जन का  प रं गु ॥  

हिर का नामु संिग उजीआरा ॥  

हिर का नामु जन की विडआई ॥  

िजह पैड ै महा अंध गब ु ारा ॥  

जहा पंिथ तेरा को न िसञानू ॥  

हिर का नामु तह नािल पछानू ॥  

हिर नाम ु जपत कब परै  न भंग ु ॥   हिर कै नािम जन सोभा पाई ॥  

हिर का नामु जन कउ भोग जोग ॥  

जह महा भइआन तपित बहु घाम ॥   तह हिर के नाम की तुम ऊपिर छाम ॥  

हिर नामु जपत कछु नािह िबओगु ॥  

तह नानक हिर हिर अिम्रतु बरखै ॥४॥  

हिर हिर जन कै माल ु खजीना ॥  

संत जना कै मिन िब ाम ु ॥  

हिर हिर जन कै ओट सताणी ॥  

जहा ित्रखा मन तुझु आकरखै ॥  

भगत जना की बरतिन नामु ॥  

जन ु राता हिर नाम की सेवा ॥  

नानक पूजै हिर हिर दे वा ॥६॥  

हिर धनु जन कउ आिप प्रिभ दीना ॥  

हिर का नामु दास की ओट ॥  

हिर प्रतािप जन अवर न जाणी ॥  

हिर जस ु करत संत िदनु राित ॥  

सुंन समािध नाम रस माते ॥  

हिर जन कै हिर नाम ु िनधान ु ॥  

हिर का भगतु प्रगट नही छपै ॥  

हिर कै नािम उधरे  जन कोिट ॥  

हिर हिर अउखधु साध कमाित ॥  

ओित पोित जन हिर रिस राते ॥   आठ पहर जनु हिर हिर जपै ॥  

हिर की भगित मुकित बहु करे  ॥  

जोग अिभआस करम ध्रम िकिरआ ॥  

नानक जन संिग केते तरे  ॥७॥  

सगल ितआिग बन मधे िफिरआ ॥  

पारजात ु इहु हिर को नाम ॥  

कामधेन हिर हिर गुण गाम ॥  

अिनक प्रकार कीए बहु जतना ॥   पुंन दान होमे बहु रतना ॥  

नामु सुनत दरद दख ु  लथा ॥  

वरत नेम करै  बहु भाती ॥  

संत प्रतािप दरु तु सभु नसै ॥  

नानक  गुरमुिख  नामु  जपीऐ  इक  बार 

सभ ते ऊतम हिर की कथा ॥  

नाम की मिहमा संत िरद वसै ॥  

संत का संगु वडभागी पाईऐ ॥  

सरी  कटाइ होमै किर राती ॥   नही तुिल राम नाम बीचार ॥   ॥१॥  

संत की सेवा नामु िधआईऐ ॥  

नउ खंड िप्रथमी िफरै  िच  जीवै ॥  

नानक  गरु मिु ख  नामु  पावै  जन ु कोइ 

अगिन मािह होमत परान ॥  

सलोकु ॥  

िनउली करम करै  बहु आसन ॥  

नाम तुिल कछु अव  न होइ ॥   ॥८॥२॥  

महा उदास ु तपीस  थीवै ॥  

किनक अ व है वर भूिम दान ॥  

बहु सासत्र बहु िसिम्रती पेखे सरब ढढोिल  ॥  

जैन मारग संजम अित साधन ॥  

पूजिस नाही हिर हरे   नानक नाम अमोल 

तउ भी हउमै मैलु न जावै ॥  

असटपदी ॥  

नानक  गुरमुिख  नामु  जपत  गित  पािह 

॥१॥  

जाप ताप िगआन सिभ िधआन ॥   खट सासत्र िसिम्रित विखआन ॥  

िनमख िनमख किर सरी  कटावै ॥   हिर के नाम समसिर कछु नािह ॥  

॥२॥  

मन कामना तीरथ दे ह छुटै  ॥  

गरबु गुमानु न मन ते हुटै  ॥  

जे को आपुना दख ू ु िमटावै ॥  

सोच करै  िदनसु अ  राित ॥  

हिर हिर नामु िरदै  सद गावै ॥  

इसु दे ही कउ बहु साधना करै  ॥  

साधसंिग इह हउमै छोरै  ॥  

मन की मैल ु न तन ते जाित ॥   मन ते कबहू न िबिखआ टरै  ॥  

जे को अपन ु ी सोभा लोरै  ॥  

जे को जनम मरण ते डरै  ॥  

जिल धोवै बहु दे ह अनीित ॥  

साध जना की सरनी परै  ॥  

मन हिर के नाम की मिहमा ऊच ॥  

नानक ता कै बिल बिल जासा ॥५॥  

सध ु  कहा होइ काची भीित ॥  

नानक नािम उधरे  पितत बहु मूच ॥३॥   बहुतु िसआणप जम का भउ िबआपै ॥   अिनक जतन किर ित्रसन ना ध्रापै ॥   भेख अनेक अगिन नही बझ ु ै ॥  

कोिट उपाव दरगह नही िसझै ॥   छूटिस नाही ऊभ पइआिल ॥  

मोिह िबआपिह माइआ जािल ॥   अवर करतूित सगली जम ु डानै ॥  

िजस ु जन कउ प्रभ दरस िपआसा ॥   सगल पुरख मिह पुरखु प्रधानु ॥  

साधसंिग जा का िमटै  अिभमानु ॥   आपस कउ जो जाणै नीचा ॥  

सोऊ गनीऐ सभ ते ऊचा ॥   जा का मनु होइ सगल की रीना ॥  

हिर हिर नामु ितिन घिट घिट चीना ॥   मन अपुने ते बुरा िमटाना ॥  

पेखै सगल ि सिट साजना ॥  

गोिवंद भजन िबनु ितल ु नही मानै ॥  

सूख दख ू  जन सम िद्रसटे ता ॥  

नानक बोलै सहिज सुभाइ ॥४॥  

िनरधन कउ धनु तेरो नाउ ॥  

साध जना की सेवा लागै ॥  

िनमाने कउ प्रभ तेरो मानु ॥  

हिर का नामु जपत दख ु ु जाइ ॥  

चािर पदारथ जे को मागै ॥  

नानक पाप पुंन नही लेपा ॥६॥  

िनथावे कउ नाउ तेरा थाउ ॥  

सगल घटा कउ दे वहु दानु ॥  

िजिन  कीआ  ितसु  चीित  रखु  नानक 

सगल घटा के अंतरजामी ॥  

असटपदी ॥  

अपनी गित िमित जानहु आपे ॥   आपन संिग आिप प्रभ राते ॥  

रमईआ के गुन चेित परानी ॥  

करन करावनहार सुआमी ॥  

तु हरी उसतित तुम ते होइ ॥  

नानक अव  न जानिस कोइ ॥७॥  

िनबही नािल ॥१॥  

कवन मल ू  ते कवन िद्रसटानी ॥  

िजिन तूं सािज सवािर सीगािरआ ॥  

गरभ अगिन मिह िजनिह उबािरआ ॥  

सरब धरम मिह  ेसट धरमु ॥  

बार िबवसथा तुझिह िपआरै  दध ू  ॥  

सगल िक्रआ मिह ऊतम िकिरआ ॥  

िबरिध भइआ ऊपिर साक सैन ॥  

हिर को नामु जिप िनरमल करम ु ॥   साधसंिग दरु मित मलु िहिरआ ॥  

सगल उदम मिह उदम ु भला ॥  

भिर जोबन भोजन सुख सूध ॥   मुिख अिपआउ बैठ कउ दै न ॥  

हिर का नामु जपहु जीअ सदा ॥  

इहु िनरगन ु  ु गन ु ु कछू न बझ ू ै ॥   बखिस लेहु तउ नानक सीझै ॥१॥  

हिर को जसु सुिन रसन बखानी ॥  

सुत भ्रात मीत बिनता संिग हसिह ॥  

सगल बानी मिह अिम्रत बानी ॥  

सगल थान ते ओहु ऊतम थानु ॥  

नानक िजह घिट वसै हिर नामु ॥८॥३॥  

िजह प्रसािद धर ऊपिर सिु ख बसिह ॥   िजह प्रसािद पीविह सीतल जला ॥   सुखदाई पवनु पावकु अमुला ॥  

सलोकु ॥  

िजह प्रसािद भोगिह सिभ रसा ॥  

समािल ॥  

दीने हसत पाव करन नेत्र रसना ॥  

िनरगुनीआर  इआिनआ  सो  प्रभु  सदा 

सगल समग्री संिग सािथ बसा ॥   ितसिह ितआिग अवर संिग रचना ॥  

ऐसे दोख मूड़ अंध िबआपे ॥  

नानक कािढ लेहु प्रभ दइआल ॥४॥  

आिद अंित जो राखनहा  ॥  

लोक पचारा करै  िदनु राित ॥  

नानक कािढ लेहु प्रभ आपे ॥२॥  

ितस िसउ प्रीित न करै  गवा  ॥   जा की सेवा नव िनिध पावै ॥   ता िसउ मूड़ा मनु नही लावै ॥   जो ठाकु  सद सदा हजूरे ॥  

करतूित पसू की मानस जाित ॥  

बाहिर भेख अंतिर मलु माइआ ॥  

छपिस नािह कछु करै  छपाइआ ॥  

बाहिर िगआन िधआन इसनान ॥   अंतिर िबआपै लोभ ु सआ ु न ु ॥  

ता कउ अंधा जानत दरू े  ॥  

अंतिर अगिन बाहिर तनु सुआह ॥  

ितसिह िबसारै  मुगधु अजानु ॥  

जा कै अंतिर बसै प्रभु आिप ॥  

जा की टहल पावै दरगह मानु ॥   सदा सदा इहु भूलनहा  ॥   नानक राखनहा  अपा  ॥३॥  

रतन ु ितआिग कउडी संिग रचै ॥   साचु छोिड झूठ संिग मचै ॥  

गिल पाथर कैसे तरै  अथाह ॥  

नानक ते जन सहिज समाित ॥५॥   सिु न अंधा कैसे मारग ु पावै ॥  

क  गिह लेहु ओिड़ िनबहावै ॥   कहा बझ ु ारित बझ ू ै डोरा ॥  

जो छडना सु असिथ  किर मानै ॥  

िनिस कहीऐ तउ समझै भोरा ॥  

छोिड जाइ ितस का  मु करै  ॥  

जतन करै  तउ भी सुर भंग ॥  

जो होवन ु सो दिू र परानै ॥  

कहा िबसनपद गावै गंग ु  ॥  

संिग सहाई ितसु परहरै  ॥  

कह िपंगुल परबत पर भवन ॥  

चंदन लेपु उतारै  धोइ ॥  

गरधब प्रीित भसम संिग होइ ॥   अंध कूप मिह पितत िबकराल ॥  

नही होत ऊहा उसु गवन ॥  

करतार क णा मै दीनु बेनती करै  ॥  

नानक तुमरी िकरपा तरै  ॥६॥  

संिग सहाई सु आवै न चीित ॥  

दे नहा  प्रभ छोिड कै लागिह आन सुआइ 

जो बैराई ता िसउ प्रीित ॥  

॥  

बलआ ू  के िग्रह भीतिर बसै ॥  

नानक कहू न सीझई िबन ु नावै पित जाइ  ॥१॥  

िद्रड़ु किर मानै मनिह प्रतीित ॥   कालु न आवै मूड़ े चीित ॥  

असटपदी ॥  

अनद केल माइआ रं िग रसै ॥  

बैर िबरोध काम क्रोध मोह ॥  

झूठ िबकार महा लोभ ध्रोह ॥  

दस बसतू ले पाछै  पावै ॥  

एक बसतु कारिन िबखोिट गवावै ॥  

एक भी न दे इ दस भी िहिर लेइ ॥  

इआहू जुगित िबहाने कई जनम ॥   नानक रािख लेहु आपन किर करम ॥७॥  

तउ मूड़ा कहु कहा करे इ ॥  

जीउ िपंडु सभ ु तेरी रािस ॥  

जा कै मिन लागा प्रभ ु मीठा ॥  

तुमरी िक्रपा मिह सख ू  घनेरे ॥  

िजस ु जन अपना हुकम ु मनाइआ ॥  

तू ठाकु  तुम पिह अरदािस ॥  

तुम मात िपता हम बािरक तेरे ॥  

कोइ न जानै तुमरा अंतु ॥  

िजसु ठाकुर िसउ नाही चारा ॥  

ता कउ कीजै सद नमसकारा ॥   सरब सूख ताहू मिन वूठा ॥  

सरब थोक नानक ितिन पाइआ ॥१॥  

सगल समग्री तुमरै  सूित्र धारी ॥  

अगनत साहु अपनी दे  रािस ॥   खात पीत बरतै अनद उलािस ॥  

तुमरी गित िमित तुम ही जानी ॥  

अिगआनी मिन रोसु करे इ ॥  

ऊचे ते ऊचा भगवंत ॥  

तुम ते होइ सु आिगआकारी ॥  

नानक दास सदा कुरबानी ॥८॥४॥  

सलोकु ॥  

अपुनी अमान कछु बहुिर साहु लेइ ॥   अपनी परतीित आप ही खोवै ॥   बहुिर उस का िब वास ु न होवै ॥  

िजस की बसतु ितसु आगै राखै ॥  

िमिथआ आपस ऊपिर करत गुमानु ॥  

प्रभ की आिगआ मानै माथै ॥  

असिथ  भगित साध की सरन ॥  

उस ते चउगन ु  करै  िनहालु ॥  

नानक जिप जिप जीवै हिर के चरन ॥४॥  

अिनक भाित माइआ के हे त ॥  

िमिथआ हसत पर दरब कउ िहरिह ॥  

नानक सािहबु सदा दइआलु ॥२॥  

िमिथआ  वन पर िनंदा सुनिह ॥  

सरपर होवत जानु अनेत ॥  

िमिथआ नेत ्र पेखत पर ित्रअ  पाद ॥  

िबरख की छाइआ िसउ रं ग ु लावै ॥  

िमिथआ रसना भोजन अन  वाद ॥  

जो दीसै सो चालनहा  ॥  

िमिथआ मन पर लोभ लुभाविह ॥  

ओह िबनसै उहु मिन पछुतावै ॥   लपिट रिहओ तह अंध अंधा  ॥   बटाऊ िसउ जो लावै नेह ॥   ता कउ हािथ न आवै केह ॥  

मन हिर के नाम की प्रीित सुखदाई ॥  

िमिथआ चरन पर िबकार कउ धाविह ॥   िमिथआ तन नही परउपकारा ॥   िमिथआ बासु लेत िबकारा ॥  

िबन ु बझ ू  े िमिथआ सभ भए ॥  

सफल दे ह नानक हिर हिर नाम लए ॥५॥  

किर िकरपा नानक आिप लए लाई ॥३॥  

िबरथी साकत की आरजा ॥  

िमिथआ तनु धनु कु मबु सबाइआ ॥  

साच िबना कह होवत सूचा ॥  

िमिथआ हउमै ममता माइआ ॥  

िमिथआ राज जोबन धन माल ॥   िमिथआ काम क्रोध िबकराल ॥  

िमिथआ रथ हसती अ व बसत्रा ॥   िमिथआ रं ग संिग माइआ पेिख हसता ॥   िमिथआ ध्रोह मोह अिभमान ु ॥  

िबरथा नाम िबना तन ु अंध ॥   मुिख आवत ता कै दरु गंध ॥  

िबनु िसमरन िदनु रै िन िब्रथा िबहाइ ॥   मेघ िबना िजउ खेती जाइ ॥  

गोिबद भजन िबनु िब्रथे सभ काम ॥   िजउ िकरपन के िनरारथ दाम ॥  

धंिन धंिन ते  जन िजह घिट बिसओ हिर 

सो सेवकु िजस ु िकरपा करी ॥  

नाउ ॥  

िनमख िनमख जिप नानक हरी ॥८॥५॥  

नानक ता कै बिल बिल जाउ ॥६॥  

सलोकु ॥  

रहत अवर कछु अवर कमावत ॥  

काम  क्रोध  अ   लोभ  मोह  िबनिस  जाइ 

मिन नही प्रीित मख ु हु गंढ लावत ॥  

अहमेव ॥  

बाहिर भेख न काहू भीन ॥  

गरु दे व ॥१॥  

जाननहार प्रभू परबीन ॥  

नानक  प्रभ  सरणागती  किर  प्रसाद ु

अवर उपदे सै आिप न करै  ॥  

असटपदी ॥  

आवत जावत जनमै मरै  ॥  

िजह प्रसािद छतीह अिम्रत खािह ॥  

िजस कै अंतिर बसै िनरं का  ॥  

ितस ु ठाकुर कउ रखु मन मािह ॥  

ितस की सीख तरै  संसा  ॥  

िजह प्रसािद सुगंधत तिन लाविह ॥  

जो तुम भाने ितन प्रभ ु जाता ॥  

ितस कउ िसमरत परम गित पाविह ॥  

करउ बेनती पारब्रहम ु सभु जानै ॥  

ितसिह िधआइ सदा मन अंदिर ॥  

नानक उन जन चरन पराता ॥७॥   अपना कीआ आपिह मानै ॥  

आपिह आप आिप करत िनबेरा ॥  

िजह प्रसािद बसिह सुख मंदिर ॥  

िजह प्रसािद िग्रह संिग सुख बसना ॥  

िकसै दिू र जनावत िकसै बुझावत नेरा ॥  

आठ पहर िसमरहु ितस ु रसना ॥   िजह प्रसािद रं ग रस भोग ॥  

सभु कछु जानै आतम की रहत ॥  

॥१॥  

थान थनंतिर रिहआ समाइ ॥  

ितसिह ितआिग कत अवर लभ ु ाविह ॥  

उपाव िसआनप सगल ते रहत ॥   िजसु भावै ितस ु लए लिड़ लाइ ॥  

नानक  सदा  िधआईऐ  िधआवन  जोग 

िजह प्रसािद पाट प मबर हढाविह ॥  

िजह प्रसािद सुिख सेज सोईजै ॥  

मन ितसु प्रभ कउ कबहू न िबसारी ॥  

िजह प्रसािद तुझ ु सभ ु कोऊ मानै ॥  

राख ु परोइ प्रभ ु अपन ु े मना ॥  

िजह प्रसािद तेरो रहता धरम ु ॥  

ऊठत बैठत सद ितसिह िधआई ॥  

मन आठ पहर ता का जस ु गावीजै ॥   मुिख ता को जस ु रसन बखानै ॥  

िजह प्रसािद बाग िमलख धना ॥   िजिन तेरी मन बनत बनाई ॥  

मन सदा िधआइ केवल पारब्रहमु ॥  

ितसिह िधआइ जो एक अलखै ॥  

नानक पित सेती घिर जाविह ॥२॥  

िजह प्रसािद करिह पुंन बहु दान ॥  

प्रभ जी जपत दरगह मानु पाविह ॥   िजह प्रसािद आरोग कंचन दे ही ॥  

ईहा ऊहा नानक तेरी रखै ॥४॥  

मन आठ पहर किर ितस का िधआन ॥  

िलव लावहु ितस ु राम सनेही ॥   िजह प्रसािद तेरा ओला रहत ॥  

िजह प्रसािद तू आचार िबउहारी ॥  

मन सख ु ु पाविह हिर हिर जस ु कहत ॥  

िजह प्रसािद तेरा संद ु र  प ु ॥  

िजह प्रसािद तेरे सगल िछद्र ढाके ॥  

मन सरनी प  ठाकुर प्रभ ता कै ॥   िजह प्रसािद तुझु को न पहूचै ॥  

मन सािस सािस िसमरहु प्रभ ऊचे ॥   िजह प्रसािद पाई द्रल ु भ दे ह ॥   नानक ता की भगित करे ह ॥३॥  

िजह प्रसािद आभूखन पिहरीजै ॥  

मन ितसु िसमरत िकउ आलसु कीजै ॥   िजह प्रसािद अ व हसित असवारी ॥  

ितस ु प्रभ कउ सािस सािस िचतारी ॥  

सो प्रभु िसमरहु सदा अनूपु ॥  

िजह प्रसािद तेरी नीकी जाित ॥   सो प्रभु िसमिर सदा िदन राित ॥   िजह प्रसािद तेरी पित रहै  ॥  

गुर प्रसािद नानक जसु कहै  ॥५॥   िजह प्रसािद सुनिह करन नाद ॥   िजह प्रसािद पेखिह िबसमाद ॥  

िजह प्रसािद बोलिह अिम्रत रसना ॥   िजह प्रसािद सिु ख सहजे बसना ॥  

िजह प्रसािद हसत कर चलिह ॥  

प्रभ दइआ ते मित ऊतम होइ ॥  

िजह प्रसािद  मपूरन फलिह ॥  

सरब िनधान प्रभ तेरी मइआ ॥  

िजह प्रसािद परम गित पाविह ॥  

िजह प्रसािद सुिख सहिज समाविह ॥  

आपहु कछू न िकनहू लइआ ॥   िजतु िजतु लावहु िततु लगिह हिर नाथ ॥  

गुर प्रसािद नानक मिन जागहु ॥६॥  

सलोकु ॥  

ऐसा प्रभ ु ितआिग अवर कत लागहु ॥  

नानक इन कै कछू न हाथ ॥८॥६॥  

िजह प्रसािद तंू प्रगटु संसािर ॥  

अगम अगािध पारब्रहम ु सोइ ॥  

िजह प्रसािद तेरा परताप ु ॥  

सुिन मीता नानकु िबनवंता ॥  

ितस ु प्रभ कउ मूिल न मनहु िबसािर ॥  

रे  मन मूड़ तू ता कउ जापु ॥  

जो जो कहै  सु मुकता होइ ॥  

साध जना की अचरज कथा ॥१॥  

िजह प्रसािद तेरे कारज पूरे ॥  

असटपदी ॥  

िजह प्रसािद तूं पाविह साचु ॥  

साधसंिग मलु सगली खोत ॥  

ितसिह जान ु मन सदा हजूरे ॥  

साध कै संिग मख ु  ऊजल होत ॥  

रे  मन मेरे तंू ता िसउ राच ु ॥  

साध कै संिग िमटै  अिभमानु ॥  

िजह प्रसािद सभ की गित होइ ॥   नानक जाप ु जपै जप ु सोइ ॥७॥   आिप जपाए जपै सो नाउ ॥  

आिप गावाए सु हिर गुन गाउ ॥   प्रभ िकरपा ते होइ प्रगासु ॥  

प्रभू दइआ ते कमल िबगासु ॥  

प्रभ सप्र ु संन बसै मिन सोइ ॥  

साध कै संिग प्रगटै  सुिगआनु ॥   साध कै संिग बझ ु ै प्रभ ु नेरा ॥   साधसंिग सभु होत िनबेरा ॥  

साध कै संिग पाए नाम रतनु ॥  

साध कै संिग एक ऊपिर जतनु ॥  

साध की मिहमा बरनै कउनु प्रानी ॥  

नानक साध की सोभा प्रभ मािह समानी  ॥१॥   साध कै संिग अगोच  िमलै ॥   साध कै संिग सदा परफुलै ॥  

साध कै संिग आविह बिस पंचा ॥   साधसंिग अिम्रत रसु भुंचा ॥  

साधसंिग होइ सभ की रे न ॥   साध कै संिग मनोहर बैन ॥  

नानक साध प्रभू बिन आई ॥३॥   साध कै संिग न कबहू धावै ॥  

साध कै संिग सदा सख ु  ु पावै ॥  

साधसंिग बसतु अगोचर लहै  ॥  

साधू कै संिग अज  सहै  ॥  

साध कै संिग बसै थािन ऊचै ॥  

साधू कै संिग महिल पहूचै ॥  

साध कै संिग िद्रड़ै सिभ धरम ॥  

साध कै संिग न कतहूं धावै ॥  

साध कै संिग केवल पारब्रहम ॥  

साध कै संिग माइआ ते िभंन ॥  

नानक साधू कै कुरबान ॥४॥  

साधसंिग असिथित मनु पावै ॥  

साध कै संिग पाए नाम िनधान ॥  

साधसंिग नानक प्रभ सप्र ु संन ॥२॥  

साध कै संिग सभ कुल उधारै  ॥  

साधसंिग दस ु मन सिभ मीत ॥  

साधसंिग  साजन  मीत  कु मब  िनसतारै  

साधू कै संिग महा पन ु ीत ॥  

॥  

साध कै संिग न बीगा पै  ॥  

िजस ु धन ते सभु को वरसावै ॥  

साधसंिग िकस िसउ नही बै  ॥   साध कै संिग नाही को मंदा ॥   साधसंिग जाने परमानंदा ॥  

साध कै संिग नाही हउ तापु ॥  

साध कै संिग तजै सभु आपु ॥   आपे जानै साध बडाई ॥  

साधू कै संिग सो धनु पावै ॥  

साधसंिग धरम राइ करे  सेवा ॥   साध कै संिग सोभा सुरदे वा ॥   साधू कै संिग पाप पलाइन ॥  

साधसंिग अिम्रत गुन गाइन ॥  

साध कै संिग  ब थान गिम ॥  

नानक साध कै संिग सफल जनम ॥५॥  

साध की मिहमा बेद न जानिह ॥  

साध कै संिग नही कछु घाल ॥  

जेता सुनिह तेता बिखआनिह ॥  

दरसन ु भेटत होत िनहाल ॥  

साध कै संिग कलूखत हरै  ॥  

साध की उपमा ितहु गण ु  ते दिू र ॥   साध की उपमा रही भरपूिर ॥  

साध कै संिग ईहा ऊहा सुहेला ॥  

साध की सोभा सदा बेअंत ॥  

साध कै संिग नरक परहरै  ॥  

साधसंिग िबछुरत हिर मेला ॥  

साध की सोभा का नाही अंत ॥  

साध की सोभा ऊच ते ऊची ॥  

जो इछै  सोई फल ु पावै ॥  

साध की सोभा मूच ते मूची ॥  

पारब्रहमु साध िरद बसै ॥  

नानक साध प्रभ भेद ु न भाई ॥८॥७॥  

साध कै संिग सन ु उ हिर नाउ ॥  

मिन साचा मिु ख साचा सोइ ॥  

साध कै संिग न िबरथा जावै ॥   नानक उधरै  साध सुिन रसै ॥६॥   साधसंिग हिर के गुन गाउ ॥  

साध की सोभा साध बिन आई ॥   सलोकु ॥  

अव  न पेखै एकसु िबनु कोइ ॥  

साध कै संिग न मन ते िबसरै  ॥  

नानक  इह  लछण  ब्रहम  िगआनी  होइ 

साधसंिग सरपर िनसतरै  ॥  

॥१॥  

साध कै संिग लगै प्रभ ु मीठा ॥  

असटपदी ॥  

साधसंिग भए आिगआकारी ॥  

जैसे जल मिह कमल अलेप ॥  

साधू कै संिग घिट घिट डीठा ॥  

ब्रहम िगआनी सदा िनरलेप ॥  

साधसंिग गित भई हमारी ॥  

ब्रहम िगआनी सदा िनरदोख ॥  

साध कै संिग िमटे  सिभ रोग ॥  

जैसे सू  सरब कउ सोख ॥  

नानक साध भेटे संजोग ॥७॥  

ब्रहम िगआनी कै िद्रसिट समािन ॥  

जैसे राज रं क कउ लागै तुिल पवान ॥  

ब ्रहम िगआनी की िद्रसिट अिम्रतु  बरसी 

िजउ बसध ु ा कोऊ खोदै  कोऊ चंदन लेप ॥  

ब्रहम िगआनी बंधन ते मक ु ता ॥  

नानक  िजउ  पावक  का  सहज  सभ ु ाउ 

ब्रहम िगआनी का भोजन ु िगआन ॥  

ब्रहम िगआनी कै धीरजु एक ॥   ब्रहम िगआनी का इहै  गुनाउ ॥  

॥१॥  

ब्रहम िगआनी िनरमल ते िनरमला ॥  

॥  

ब्रहम िगआनी की िनरमल जुगता ॥   नानक  ब्रहम  िगआनी  का  ब्रहम  िधआनु  ॥३॥  

जैसे मैलु न लागै जला ॥  

ब्रहम िगआनी एक ऊपिर आस ॥  

जैसे धर ऊपिर आकासु ॥  

ब्रहम िगआनी कै गरीबी समाहा ॥  

ब्रहम िगआनी कै मिन होइ प्रगासु ॥  

ब्रहम िगआनी का नही िबनास ॥  

ब्रहम िगआनी कै िमत्र सत्र ु समािन ॥  

ब्रहम िगआनी परउपकार उमाहा ॥  

ब्रहम िगआनी कै नाही अिभमान ॥  

ब्रहम िगआनी कै नाही धंधा ॥  

ब्रहम िगआनी ऊच ते ऊचा ॥  

ब्रहम िगआनी ले धावतु बंधा ॥  

मिन अपनै है  सभ ते नीचा ॥   ब्रहम िगआनी से जन भए ॥   नानक िजन प्रभ ु आिप करे इ ॥२॥   ब्रहम िगआनी सगल की रीना ॥  

ब्रहम िगआनी कै होइ स ु भला ॥   ब्रहम िगआनी सुफल फला ॥  

ब्रहम िगआनी संिग सगल उधा  ॥   नानक  ब्रहम  िगआनी  जपै  सगल  संसा  

आतम रसु ब्रहम िगआनी चीना ॥  

॥४॥  

ब्रहम िगआनी की सभ ऊपिर मइआ ॥  

ब्रहम िगआनी कै एकै रं ग ॥  

ब्रहम िगआनी ते कछु बुरा न भइआ ॥  

ब्रहम िगआनी कै बसै प्रभु संग ॥  

ब्रहम िगआनी सदा समदरसी ॥  

ब ्रहम िगआनी कै नामु आधा  ॥  

ब्रहम िगआनी कै नामु परवा  ॥  

ब्रहम िगआनी का कउन जानै भेद ु ॥  

ब्रहम िगआनी अ मबिु ध ितआगत ॥  

ब्रहम  िगआनी  का  किथआ  न  जाइ 

ब्रहम िगआनी कै मिन परमानंद ॥  

अधाख्य  ॥  

ब्रहम िगआनी कै घिर सदा अनंद ॥  

ब्रहम िगआनी सरब का ठाकु  ॥  

ब्रहम िगआनी सदा सद जागत ॥  

ब्रहम िगआनी सुख सहज िनवास ॥  

नानक  ब्रहम  िगआनी  का  नही  िबनास 

ब्रहम िगआनी कउ सदा अदे सु ॥  

ब्रहम िगआनी की िमित कउनु बखानै ॥  

ब्रहम  िगआनी  की  गित  ब्रहम  िगआनी 

॥५॥  

जानै ॥  

ब्रहम िगआनी ब्रहम का बेता ॥  

ब्रहम िगआनी का अंतु न पा  ॥  

ब्रहम िगआनी एक संिग हे ता ॥  

नानक  ब्रहम  िगआनी  कउ  सदा 

ब्रहम िगआनी कै होइ अिचंत ॥  

नमसका  ॥७॥  

ब्रहम िगआनी का िनरमल मंत ॥  

ब्रहम िगआनी सभ ि सिट का करता ॥  

ब्रहम िगआनी िजसु करै  प्रभु आिप ॥  

ब्रहम िगआनी सद जीवै नही मरता ॥  

ब्रहम िगआनी का दरसु बडभागी पाईऐ ॥  

दाता ॥  

ब्रहम िगआनी का बड परताप ॥  

ब्रहम िगआनी कउ बिल बिल जाईऐ ॥  

ब्रहम िगआनी कउ खोजिह महे सुर ॥  

नानक  ब्रहम  िगआनी  आिप  परमेसुर  ॥६॥  

ब्रहम िगआनी की कीमित नािह ॥   ब्रहम िगआनी कै सगल मन मािह ॥  

ब्रहम  िगआनी  मक ु ित  जग ु ित  जीअ  का  ब्रहम िगआनी परू न परु ख ु िबधाता ॥   ब्रहम िगआनी अनाथ का नाथु ॥  

ब्रहम िगआनी का सभ ऊपिर हाथु ॥   ब्रहम िगआनी का सगल अका  ॥   ब्रहम िगआनी आिप िनरं का  ॥  

ब्रहम  िगआनी  की  सोभा  ब्रहम  िगआनी 

िबसन की माइआ ते होइ िभंन ॥  

बनी ॥  

करम करत होवै िनहकरम ॥  

नानक  ब्रहम  िगआनी  सरब  का  धनी 

ितस ु बैसनो का िनरमल धरम ॥  

॥८॥८॥   सलोकु ॥  

काहू फल की इछा नही बाछै  ॥   केवल भगित कीरतन संिग राचै ॥  

सरब मै पेखै भगवान ु ॥  

सभ ऊपिर होवत िकरपाल ॥  

उिर धारै  जो अंतिर नामु ॥  

मन तन अंतिर िसमरन गोपाल ॥  

िनमख िनमख ठाकुर नमसकारै  ॥  

आिप िद्रड़ै अवरह नामु जपावै ॥  

नानक ओहु अपरसु सगल िनसतारै  ॥१॥   असटपदी ॥   िमिथआ नाही रसना परस ॥   मन मिह प्रीित िनरं जन दरस ॥   पर ित्रअ  पु न पेखै नेत्र ॥  

साध की टहल संतसंिग हे त ॥   करन न सुनै काहू की िनंदा ॥  

सभ ते जानै आपस कउ मंदा ॥   गुर प्रसािद िबिखआ परहरै  ॥  

नानक ओहु बैसनो परम गित पावै ॥२॥   भगउती भगवंत भगित का रं ग ु ॥   सगल ितआगै दस ु ट का संगु ॥   मन ते िबनसै सगला भरम ु ॥   किर पूजै सगल पारब्रहमु ॥   साधसंिग पापा मल ु खोवै ॥  

ितस ु भगउती की मित ऊतम होवै ॥   भगवंत की टहल करै  िनत नीित ॥   मनु तनु अरपै िबसन परीित ॥  

मन की बासना मन ते टरै  ॥  

हिर के चरन िहरदै  बसावै ॥  

इंद्री िजत पंच दोख ते रहत ॥  

नानक  ऐसा  भगउती  भगवंत  कउ  पावै 

नानक कोिट मधे को ऐसा अपरस ॥१॥  

॥३॥  

बैसनो सो िजस ु ऊपिर सप्र ु संन ॥  

सो पंिडतु जो मन ु परबोधै ॥  

राम नामु आतम मिह सोधै ॥  

ितस का नामु सित रामदासु ॥  

राम नाम सा  रसु पीवै ॥  

आतम रामु ितस ु नदरी आइआ ॥  

हिर की कथा िहरदै  बसावै ॥  

सदा िनकिट िनकिट हिर जानु ॥  

उस ु पंिडत कै उपदे िस जग ु जीवै ॥  

दास दसंतण भाइ ितिन पाइआ ॥  

सो पंिडतु िफिर जोिन न आवै ॥  

सो दासु दरगह परवान ु ॥  

सख ू  ु ॥   ू म मिह जानै असथल

ितस ु दास कउ सभ सोझी परै  ॥  

बेद पुरान िसिम्रित बूझै मूल ॥  

चहु वरना कउ दे  उपदे सु ॥   नानक उसु पंिडत कउ सदा अदे सु ॥४॥   बीज मंत्र ु सरब को िगआनु ॥  

अपुने दास कउ आिप िकरपा करै  ॥  

सगल संिग आतम उदासु ॥  

ऐसी जुगित नानक रामदासु ॥६॥   प्रभ की आिगआ आतम िहतावै ॥  

चहु वरना मिह जपै कोऊ नामु ॥   जो जो जपै ितस की गित होइ ॥  

जीवन मुकित सोऊ कहावै ॥  

साधसंिग पावै जनु कोइ ॥  

सदा अनंद ु तह नही िबओगु ॥  

किर िकरपा अंतिर उर धारै  ॥   पसु प्रेत मुघद पाथर कउ तारै  ॥  

तैसा हरख ु तैसा उस ु सोग ु ॥  

तैसा सव ु रन ु तैसी उस ु माटी ॥  

तैसा अिम्रतु तैसी िबखु खाटी ॥  

सरब रोग का अउखद ु नाम ु ॥  

तैसा मान ु तैसा अिभमान ु ॥  

काहू जुगित िकतै न पाईऐ धरिम ॥   नानक  ितसु  िमलै  िजस ु िलिखआ  धुिर 

जो वरताए साई जुगित ॥  

किलआण  प मंगल गुण गाम ॥  

करिम ॥५॥  

िजस कै मिन पारब्रहम का िनवास ु ॥  

तैसा रं कु तैसा राजानु ॥  

नानक  ओहु  पुरखु  कहीऐ  जीवन  मुकित  ॥७॥  

पारब्रहम के सगले ठाउ ॥  

िजतु िजतु घिर राखै तैसा ितन नाउ ॥  

कई कोिट तपीसुर होते ॥  

आपे करन करावन जोगु ॥  

कई कोिट आतम िधआनु धारिह ॥  

पसिरओ आिप होइ अनत तरं ग ॥  

कई कोिट नवतन नाम िधआविह ॥  

लखे न जािह पारब्रहम के रं ग ॥  

नानक करते का अंतु न पाविह ॥१॥  

प्रभ भावै सोई फुिन होगु ॥  

कई कोिट किब कािब बीचारिह ॥  

जैसी मित दे इ तैसा परगास ॥  

कई कोिट भए अिभमानी ॥  

सदा सदा सदा दइआल ॥  

कई कोिट िकरपन कठोर ॥  

िसमिर  िसमिर  नानक  भए  िनहाल 

कई कोिट अिभग आतम िनकोर ॥  

॥८॥९॥  

कई कोिट पर दरब कउ िहरिह ॥  

सलोकु ॥  

कई कोिट पर दख ू ना करिह ॥  

पारावार ॥  

कई कोिट परदे स भ्रमािह ॥  

नानक रचना प्रिभ रची बहु  िबिध अिनक  प्रकार ॥१॥  

िजत ु िजतु लावहु ितत ु िततु लगना ॥  

नानक करते की जानै करता रचना ॥२॥  

असटपदी ॥  

कई कोिट िसध जती जोगी ॥  

कई कोिट होए पूजारी ॥  

कई कोिट राजे रस भोगी ॥  

कई कोिट भए तीरथ वासी ॥  

कई कोिट पाथर िबरख िनपजाए ॥  

कई कोिट बन भ्रमिह उदासी ॥  

कई कोिट पवण पाणी बैसंतर ॥  

कई कोिट बेद के  ोते ॥  

कई कोिट दे स भ ू मंडल ॥  

पारब्रहम ु करता अिबनास ॥  

उसतित  करिह  अनेक  जन  अंत ु न 

कई कोिट आचार िबउहारी ॥  

कई कोिट अंध अिगआनी ॥  

कई कोिट माइआ  म मािह ॥  

कई कोिट पंखी सरप उपाए ॥  

कई कोिट ससीअर सूर नख्यत्र ॥  

कई कोिट बैठत ही खािह ॥  

कई कोिट दे व दानव इं र िसिर छत्र ॥  

कई कोिट घालिह थिक पािह ॥  

सगल समग्री अपनै सिू त धारै  ॥  

कई कोिट कीए धनवंत ॥  

नानक  िजसु  िजसु  भावै  ितस ु ितसु 

कई कोिट माइआ मिह िचंत ॥  

िनसतारै  ॥३॥  

जह जह भाणा तह तह राखे ॥  

कई कोिट राजस तामस सातक ॥  

नानक सभु िकछु प्रभ कै हाथे ॥५॥  

॥  

राम नाम संिग ितिन िलव लागी ॥  

कई कोिट कीए रतन समुद ॥  

कई कोिट प्रभ कउ खोजंत े ॥  

कई कोिट बेद परु ान िसिम्रित अ  सासत 

कई कोिट नाना प्रकार जंत ॥   कई कोिट कीए िचर जीवे ॥  

कई कोिट भए बैरागी ॥  

आतम मिह पारब्रहमु लहं ते ॥  

कई कोिट दरसन प्रभ िपआस ॥  

कई कोिट िगरी मेर सव ु रन थीवे ॥  

ितन कउ िमिलओ प्रभ ु अिबनास ॥  

कई कोिट भत ू  प्रेत सक ू र िम्रगाच ॥  

पारब्रहम ितन लागा रं ग ु ॥  

कई कोिट जख्य िकंनर िपसाच ॥   सभ ते नेरै सभहू ते दिू र ॥  

नानक  आिप  अिलपत ु रिहआ  भरपिू र  ॥४॥  

कई कोिट मागिह सतसंगु ॥  

िजन कउ होए आिप सुप्रसंन ॥  

नानक ते जन सदा धिन धंिन ॥६॥   कई कोिट खाणी अ  खंड ॥  

कई कोिट पाताल के वासी ॥  

कई कोिट अकास ब्रहमंड ॥  

कई कोिट नरक सुरग िनवासी ॥  

कई कोिट होए अवतार ॥  

कई कोिट बहु जोनी िफरिह ॥  

कई बार पसिरओ पासार ॥  

कई कोिट जनमिह जीविह मरिह ॥  

कई जुगित कीनो िबसथार ॥  

सदा सदा इकु एकंकार ॥  

करन करावन करनै जोगु ॥  

कई कोिट कीने बहु भाित ॥  

जो ितस ु भावै सोई होगु ॥  

ता का अंतु न जानै कोइ ॥  

अंतु नही िकछु पारावारा ॥  

प्रभ ते होए प्रभ मािह समाित ॥   आपे आिप नानक प्रभ ु सोइ ॥७॥   कई कोिट पारब्रहम के दास ॥   ितन होवत आतम परगास ॥   कई कोिट तत के बेत े ॥  

सदा िनहारिह एको नेत्र े ॥  

िखन मिह थािप उथापनहारा ॥  

हुकमे धािर अधर रहावै ॥   हुकमे उपजै हुकिम समावै ॥   हुकमे ऊच नीच िबउहार ॥   हुकमे अिनक रं ग परकार ॥  

किर किर दे खै अपनी विडआई ॥  

कई कोिट नाम रसु पीविह ॥  

नानक सभ मिह रिहआ समाई ॥१॥  

कई कोिट नाम गन ु  गाविह ॥  

प्रभ भावै ता पाथर तरावै ॥  

अपन ु े जन कउ सािस सािस समारे  ॥  

प्रभ भावै ता हिर गण ु  भाखै ॥  

अमर भए सद सद ही जीविह ॥  

प्रभ भावै मानुख गित पावै ॥  

आतम रिस सुिख सहिज समाविह ॥  

प्रभ भावै िबनु सास ते राखै ॥  

नानक ओइ परमेसुर के िपआरे  ॥८॥१०॥  

प्रभ भावै ता पितत उधारै  ॥  

सलोकु ॥  

आिप करै  आपन बीचारै  ॥  

॥  

खेलै िबगसै अंतरजामी ॥  

करण कारण प्रभु  एकु है   दस ू र नाही कोइ 

दह ु ा िसिरआ का आिप सुआमी ॥  

नानक  ितस ु बिलहारणै  जिल  थिल 

जो भावै सो कार करावै ॥  

महीअिल सोइ ॥१॥  

नानक िद्रसटी अव  न आवै ॥२॥  

असटपदी ॥  

कहु मानख ु  ते िकआ होइ आवै ॥  

जो ितस ु भावै सोई करावै ॥  

इस कै हािथ होइ ता सभु िकछु लेइ ॥   जो ितस ु भावै सोई करे इ ॥  

अनजानत िबिखआ मिह रचै ॥  

जे जानत आपन आप बचै ॥   भरमे भूला दह िदिस धावै ॥  

िनमख मािह चािर कंु ट िफिर आवै ॥  

किर िकरपा िजस ु अपनी भगित दे इ ॥   नानक ते जन नािम िमलेइ ॥३॥   िखन मिह नीच कीट कउ राज ॥   पारब्रहम गरीब िनवाज ॥   जा का िद्रसिट कछू न आवै ॥  

ितस ु ततकाल दह िदस प्रगटावै ॥   जा कउ अपन ु ी करै  बखसीस ॥  

ता का लेखा न गनै जगदीस ॥  

जीउ िपंडु सभ ितस की रािस ॥  

आिगआकारी बपरु ा जीउ ॥  

जो ितस ु भावै सोई फुिन थीउ ॥   कबहू ऊच नीच मिह बसै ॥   कबहू सोग हरख रं िग हसै ॥  

कबहू िनंद िचंद िबउहार ॥   कबहू ऊभ अकास पइआल ॥  

कबहू बेता ब्रहम बीचार ॥   नानक आिप िमलावणहार ॥५॥  

कबहू िनरित करै  बहु भाित ॥   कबहू सोइ रहै  िदनु राित ॥   कबहू महा क्रोध िबकराल ॥   कबहूं सरब की होत रवाल ॥  

कबहू होइ बहै  बड राजा ॥   कबहु भेखारी नीच का साजा ॥   कबहू अपकीरित मिह आवै ॥   कबहू भला भला कहावै ॥  

घिट घिट पूरन ब्रहम प्रगास ॥  

िजउ प्रभु राखै ितव ही रहै  ॥  

नानक जीवै दे िख बडाई ॥४॥  

कबहू होइ पंिडतु करे  बख्यानु ॥   कबहू मोिनधारी लावै िधआनु ॥  

अपनी बणत आिप बनाई ॥  

इस का बलु नाही इसु हाथ ॥  

करन करावन सरब को नाथ ॥  

गुर प्रसािद नानक सचु कहै  ॥६॥  

कबहू तट तीरथ इसनान ॥  

कबहू िसध सािधक मुिख िगआन ॥   कबहू कीट हसित पतंग होइ जीआ ॥  

॥१॥  

अिनक जोिन भरमै भरमीआ ॥  

असटपदी ॥  

नाना  प िजउ  वागी िदखावै ॥  

िजस कै अंतिर राज अिभमानु ॥  

िजउ प्रभ भावै ितवै नचावै ॥  

बडे  बडे  अहं कारीआ  नानक  गरिब  गले 

सो नरकपाती होवत सआ ु न ु ॥  

जो ितस ु भावै सोई होइ ॥  

जो जानै मै जोबनवंतु ॥  

कबहू साधसंगित इहु पावै ॥   उसु असथान ते बहुिर न आवै ॥  

आपस कउ करमवंतु कहावै ॥  

जनिम मरै  बहु जोिन भ्रमावै ॥  

उसु असथान का नही िबनासु ॥  

सो मूरखु अंधा अिगआनु ॥  

नानक दज ू ा अव  न कोइ ॥७॥  

अंतिर होइ िगआन परगासु ॥  

मन तन नािम रते इक रं िग ॥  

सो होवत िबसटा का जंत ु ॥  

धन भूिम का जो करै  गुमानु ॥  

किर िकरपा िजस कै िहरदै   गरीबी बसावै 

सदा बसिह पारब्रहम कै संिग ॥  

॥  

िजउ जल मिह जल ु आइ खटाना ॥  

नानक ईहा मक ु तु आगै सुख ु पावै ॥१॥  

ितउ जोती संिग जोित समाना ॥  

धनवंता होइ किर गरबावै ॥  

िमिट गए गवन पाए िब ाम ॥  

ित्रण समािन कछु संिग न जावै ॥  

नानक प्रभ कै सद कुरबान ॥८॥११॥   सलोकु ॥  

बहु लसकर मानुख ऊपिर करे  आस ॥   पल भीतिर ता का होइ िबनास ॥  

॥  

िखन मिह होइ जाइ भसमंतु ॥  

सुखी बसै  मसकीनीआ आपु  िनवािर तले 

सभ ते आप जानै बलवंतु ॥  

िकसै न बदै  आिप अहं कारी ॥  

धरम राइ ितस ु करे  खुआरी ॥  

प्रभ िकरपा ते बंधन तूटै ॥  

सो जन ु नानक दरगह परवान ु ॥२॥  

सहस खटे  लख कउ उिठ धावै ॥  

गुर प्रसािद जा का िमटै  अिभमानु ॥   कोिट करम करै  हउ धारे  ॥   म ु पावै सगले िबरथारे  ॥  

अिनक तपिसआ करे  अहं कार ॥  

गुर प्रसािद नानक हउ छूटै  ॥४॥   ित्रपित न आवै माइआ पाछै  पावै ॥   अिनक भोग िबिखआ के करै  ॥   नह ित्रपतावै खिप खिप मरै  ॥  

नरक सरु ग िफिर िफिर अवतार ॥  

िबना संतोख नही कोऊ राजै ॥  

हिर दरगह कहु कैसे गवै ॥   आपस कउ जो भला कहावै ॥  

नाम रं िग सरब सुखु होइ ॥  

अिनक जतन किर आतम नही द्रवै ॥  

सुपन मनोरथ िब्रथे सभ काजै ॥   बडभागी िकसै परापित होइ ॥  

ितसिह भलाई िनकिट न आवै ॥  

करन करावन आपे आिप ॥  

सरब की रे न जा का मन ु होइ ॥  

सदा सदा नानक हिर जािप ॥५॥  

कहु नानक ता की िनरमल सोइ ॥३॥   जब लगु जानै मझ ु  ते कछु होइ ॥  

करन करावन करनैहा  ॥   इस कै हािथ कहा बीचा  ॥  

तब इस कउ सुखु नाही कोइ ॥  

जैसी िद्रसिट करे  तैसा होइ ॥  

तब लगु गरभ जोिन मिह िफरता ॥  

जो िकछु कीनो सु अपनै रं िग ॥  

जब इह जानै मै िकछु करता ॥  

आपे आिप आिप प्रभ ु सोइ ॥  

जब धारै  कोऊ बैरी मीतु ॥  

सभ ते दिू र सभहू कै संिग ॥  

तब लगु िनहचलु नाही चीतु ॥  

जब लगु मोह मगन संिग माइ ॥  

तब लगु धरम राइ दे इ सजाइ ॥  

बूझै दे खै करै  िबबेक ॥  

आपिह एक आपिह अनेक ॥   मरै  न िबनसै आवै न जाइ ॥  

नानक सद ही रिहआ समाइ ॥६॥   आिप उपदे सै समझै आिप ॥  

सलोकु ॥  

संत  सरिन  जो  जनु  परै   सो  जनु 

आपे रिचआ सभ कै सािथ ॥  

उधरनहार ॥  

आिप कीनो आपन िबसथा  ॥   सभ ु कछु उस का ओहु करनैहा  ॥  

संत  की  िनंदा  नानका  बहुिर  बहुिर  अवतार ॥१॥  

थान थनंतिर एकै सोइ ॥  

संत कै दख ू िन आरजा घटै  ॥  

उस ते िभंन कहहु िकछु होइ ॥  

असटपदी ॥  

अपुने चिलत आिप करणैहार ॥  

संत कै दख ू िन जम ते नही छुटै  ॥  

कउतक करै  रं ग आपार ॥  

संत कै दख ू िन सुखु सभ ु जाइ ॥  

मन मिह आिप मन अपुने मािह ॥  

संत कै दख ू िन नरक मिह पाइ ॥  

सित सित सित प्रभ ु सआ ु मी ॥  

संत कै दख ू िन सोभा ते हीन ॥  

नानक कीमित कहनु न जाइ ॥७॥   गुर परसािद िकनै विखआनी ॥  

संत कै दख ू िन मित होइ मलीन ॥   संत के हते कउ रखै न कोइ ॥  

सच ु सचु सच ु सभ ु कीना ॥  

संत कै दख ू िन थान भ्रसटु होइ ॥  

भला भला भला तेरा  प ॥  

नानक संतसंिग िनंदकु भी तरै  ॥१॥  

कोिट मधे िकनै िबरलै चीना ॥   अित सुंदर अपार अनूप ॥  

िनरमल िनरमल िनरमल तेरी बाणी ॥   घिट घिट सुनी  वन बख्याणी ॥   पिवत्र पिवत्र पिवत्र पुनीत ॥  

नामु जपै नानक मिन प्रीित ॥८॥१२॥  

संत िक्रपाल िक्रपा जे करै  ॥  

संत के दख ू न ते मुखु भवै ॥  

संतन कै दख ू िन काग िजउ लवै ॥  

संतन कै दख ू िन सरप जोिन पाइ ॥  

संत कै दख ू िन ित्रगद जोिन िकरमाइ ॥  

संतन कै दख ू िन ित्रसना मिह जलै ॥  

संत कै दख ू िन सभु को छलै ॥  

संत का दोखी महा अहं कारी ॥  

संत कै दख ू िन तेजु सभु जाइ ॥  

संत का दोखी सदा िबकारी ॥  

संत दोखी का थाउ को नािह ॥  

संत की दख ू ना सुख ते टरै  ॥  

संत कै दख ू िन नीच ु नीचाइ ॥  

संत का दोखी जनमै मरै  ॥  

नानक  संत  भावै  ता  ओइ  भी  गित  पािह 

संत के दोखी कउ नाही ठाउ ॥  

॥२॥  

नानक संत भावै ता लए िमलाइ ॥४॥  

संत का िनंदकु िखनु िटकनु न पाई ॥  

संत का दोखी िकतै कािज न पहूचै ॥  

संत का िनंदकु महा अतताई ॥  

संत का दोखी अध बीच ते टूटै  ॥  

संत का िनंदकु महा हितआरा ॥  

संत के दोखी कउ उिदआन भ्रमाईऐ ॥  

संत का िनंदकु राज ते हीनु ॥  

संत का दोखी अंतर ते थोथा ॥  

संत के िनंदक कउ सरब रोग ॥  

संत के दोखी की जड़ िकछु नािह ॥  

संत का िनंदकु परमेसुिर मारा ॥  

संत का दोखी उझिड़ पाईऐ ॥  

संत का िनंदकु दख ु ीआ अ  दीनु ॥  

िजउ सास िबना िमरतक की लोथा ॥  

संत के िनंदक कउ सदा िबजोग ॥  

आपन बीिज आपे ही खािह ॥  

संत की िनंदा दोख मिह दोखु ॥  

संत के दोखी कउ अव  न राखनहा  ॥  

॥३॥  

संत का दोखी इउ िबललाइ ॥  

नानक संत भावै ता उस का भी होइ मोखु 

नानक संत भावै ता लए उबािर ॥५॥  

संत का दोखी िकसै का नही िमतु ॥  

िजउ जल िबहून मछुली तड़फड़ाइ ॥   संत का दोखी भूखा नही राजै ॥  

संत के दोखी कउ सभ ितआगै ॥  

संत का दोखी छुटै  इकेला ॥  

संत का दोखी सदा अपिवतु ॥   संत के दोखी कउ डानु लागै ॥  

िजउ पावकु ईधिन नही ध्रापै ॥  

िजउ बूआड़ु ितलु खेत मािह दह ु े ला ॥  

अपना खेलु आिप करनैहा  ॥  

संत का दोखी सद िमिथआ कहत ॥  

िजस नो िक्रपा करै   ितस ु आपन नाम ु दे इ 

संत का दोखी धरम ते रहत ॥  

िकरतु िनंदक का धुिर ही पइआ ॥  

नानक जो ितस ु भावै सोई िथआ ॥६॥   संत का दोखी िबगड़  पु होइ जाइ ॥  

संत के दोखी कउ दरगह िमलै सजाइ ॥  

दस ू र कउनु कहै  बीचा  ॥   ॥  

बडभागी नानक जन सेइ ॥८॥१३॥   सलोकु ॥  

संत का दोखी सदा सहकाईऐ ॥  

तजहु  िसआनप  सिु र  जनहु  िसमरहु  हिर  हिर राइ ॥  

संत का दोखी न मरै  न जीवाईऐ ॥  

एक  आस  हिर  मिन  रखहु  नानक  दख ू ु 

संत के दोखी की पुजै न आसा ॥  

भरमु भउ जाइ ॥१॥  

संत कै दोिख न ित्रसटै  कोइ ॥  

मानख ु  की टे क िब्रथी सभ जान ु ॥  

संत का दोखी उिठ चलै िनरासा ॥  

जैसा भावै तैसा कोई होइ ॥   पइआ िकरत ु न मेटै कोइ ॥  

नानक जानै सचा सोइ ॥७॥  

असटपदी ॥  

दे वन कउ एकै भगवानु ॥  

िजस कै दीऐ रहै  अघाइ ॥  

सभ घट ितस के ओहु करनैहा  ॥  

बहुिर न ित्रसना लागै आइ ॥   मारै  राखै एको आिप ॥  

प्रभ की उसतित करहु िदनु राित ॥   ितसिह िधआवहु सािस िगरािस ॥  

ितस का हुकमु बूिझ सुखु होइ ॥   ितस का नामु रखु कंिठ परोइ ॥  

सदा सदा ितस कउ नमसका  ॥  

मानुख कै िकछु नाही हािथ ॥  

सभु कछु वरतै ितस का कीआ ॥  

िसमिर िसमिर िसमिर प्रभु सोइ ॥  

जैसा करे  तैसा को थीआ ॥  

नानक िबघनु न लागै कोइ ॥१॥  

उसतित मन मिह किर िनरं कार ॥   किर मन मेरे सित िबउहार ॥   िनरमल रसना अिम्रत ु पीउ ॥   सदा सुहेला किर लेिह जीउ ॥   नैनहु पेख ु ठाकुर का रं ग ु ॥  

साधसंिग िबनसै सभ संगु ॥  

ितस की जानहु ित्रसना बुझै ॥   साधसंिग हिर हिर जसु कहत ॥  

सरब रोग ते ओहु हिर जन ु रहत ॥  

अनिदनु कीरतन ु केवल बख्यानु ॥   िग्रहसत मिह सोई िनरबान ु ॥  

एक ऊपिर िजसु जन की आसा ॥  

चरन चलउ मारिग गोिबंद ॥  

ितस की कटीऐ जम की फासा ॥  

िमटिह पाप जपीऐ हिर िबंद ॥  

पारब्रहम की िजस ु मिन भूख ॥  

कर हिर करम  विन हिर कथा ॥   हिर दरगह नानक ऊजल मथा ॥२॥   बडभागी ते जन जग मािह ॥  

नानक ितसिह न लागिह दख ू  ॥४॥  

िजस कउ हिर प्रभु मिन िचित आवै ॥   सो संतु सुहेला नही डुलावै ॥  

सदा सदा हिर के गन ु  गािह ॥  

िजस ु प्रभ ु अपन ु ा िकरपा करै  ॥  

से धनवंत गनी संसार ॥  

जैसा सा तैसा िद्रसटाइआ ॥  

मिन तिन मुिख बोलिह हिर मुखी ॥  

अपुने कारज मिह आिप समाइआ ॥  

राम नाम जो करिह बीचार ॥  

सदा सदा जानहु ते सख ु ी ॥   एको एकु एकु पछानै ॥  

इत उत की ओहु सोझी जानै ॥   नाम संिग िजस का मनु मािनआ ॥  

नानक ितनिह िनरं जनु जािनआ ॥३॥   गरु  प्रसािद आपन आप ु सझ ु ै ॥  

सो सेवकु कहु िकस ते डरै  ॥  

सोधत सोधत सोधत सीिझआ ॥   गुर प्रसािद ततु सभु बूिझआ ॥  

जब दे खउ तब सभु िकछु मूलु ॥  

नानक सो सूखमु सोई असथल ू ु ॥५॥  

नह िकछु जनमै नह िकछु मरै  ॥   आपन चिलत ु आप ही करै  ॥  

आवनु जावनु िद्रसिट अनिद्रसिट ॥  

सहज सुभाइ होवै सो होइ ॥  

आपे आिप सगल मिह आिप ॥  

प्रभ का कीआ जन मीठ लगाना ॥  

अिनक जुगित रिच थािप उथािप ॥  

जैसा सा तैसा िद्रसटाना ॥  

धारण धािर रिहओ ब्रहमंड ॥  

ओइ सुख िनधान उनहू बिन आए ॥  

आिगआकारी धारी सभ ि सिट ॥  

करणैहा  पछाणै सोइ ॥  

अिबनासी नाही िकछु खंड ॥  

िजस ते उपजे ितस ु मािह समाए ॥  

अलख अभेव परु ख परताप ॥  

आपस कउ आिप दीनो मान ु ॥  

आिप जपाए त नानक जाप ॥६॥   िजन प्रभ ु जाता सु सोभावंत ॥  

सगल संसा  उधरै  ितन मंत ॥  

नानक प्रभ जनु एको जानु ॥८॥१४॥   सलोकु ॥  

सरब कला भरपूर प्रभ िबरथा जाननहार 

प्रभ के सेवक सगल उधारन ॥  

॥  

प्रभ के सेवक दख ू  िबसारन ॥  

जा  कै  िसमरिन  उधरीऐ  नानक  ितस ु

गरु  का सबद ु जिप भए िनहाल ॥  

असटपदी ॥  

िजस नो िक्रपा करिह बडभागै ॥  

सरब जीआ आपे प्रितपाल ॥  

आपे मेिल लए िकरपाल ॥   उन की सेवा सोई लागै ॥  

बिलहार ॥१॥  

टूटी गाढनहार गोपाल ॥  

नामु जपत पाविह िब ामु ॥  

सगल की िचंता िजसु मन मािह ॥  

॥७॥  

रे  मन मेरे सदा हिर जािप ॥  

जो िकछु करै  सु प्रभ कै रं िग ॥  

अिबनासी प्रभु आपे आिप ॥  

नानक  ितन  पुरख  कउ  ऊतम  किर  मानु 

सदा सदा बसै हिर संिग ॥  

ितस ते िबरथा कोई नािह ॥  

आपन कीआ कछू न होइ ॥  

जे सउ प्रानी लोचै कोइ ॥   ितस ु िबनु नाही तेरै िकछु काम ॥  

गित नानक जिप एक हिर नाम ॥१॥   पवंतु होइ नाही मोहै  ॥  

प्रभ की जोित सगल घट सोहै  ॥   धनवंता होइ िकआ को गरबै ॥  

ितन संतन की बाछउ धूिर ॥  

नानक की हिर लोचा पूिर ॥३॥   मन मरू ख काहे  िबललाईऐ ॥  

पुरब िलखे का िलिखआ पाईऐ ॥   दख ू  प्रभ दे वनहा  ॥   ू  सख

अवर ितआिग तू ितसिह िचता  ॥  

जा सभ ु िकछु ितस का दीआ दरबै ॥  

जो कछु करै  सोई सख ु  ु मान ु ॥  

प्रभ की कला िबना कह धावै ॥  

कउन बसतु आई तेरै संग ॥  

अित सूरा जे कोऊ कहावै ॥   जे को होइ बहै  दाता  ॥  

भूला काहे  िफरिह अजान ॥  

लपिट रिहओ रिस लोभी पतंग ॥  

ितस ु दे नहा  जानै गावा  ॥  

राम नाम जिप िहरदे  मािह ॥  

नानक सो जनु सदा अरोगु ॥२॥  

िजसु वखर कउ लैिन तू आइआ ॥  

िजस ु गरु  प्रसािद तूटै हउ रोग ु ॥  

नानक पित सेती घिर जािह ॥४॥  

िजउ मंदर कउ थामै थमनु ॥  

राम नाम ु संतन घिर पाइआ ॥  

िजउ पाखाणु नाव चिड़ तरै  ॥  

राम नाम ु िहरदे  मिह तोिल ॥  

ितउ गुर का सबद ु मनिह असथमनु ॥   प्राणी गुर चरण लगतु िनसतरै  ॥   िजउ अंधकार दीपक परगासु ॥  

गुर दरसनु दे िख मिन होइ िबगासु ॥  

िजउ महा उिदआन मिह मारग ु पावै ॥  

ितउ साध ू संिग िमिल जोित प्रगटावै ॥  

तिज अिभमानु लेहु मन मोिल ॥   लािद खेप संतह संिग चालु ॥  

अवर ितआिग िबिखआ जंजाल ॥  

धंिन धंिन कहै  सभु कोइ ॥  

मुख ऊजल हिर दरगह सोइ ॥   इहु वापा  िवरला वापारै  ॥  

नानक ता कै सद बिलहारै  ॥५॥   चरन साध के धोइ धोइ पीउ ॥   अरिप साध कउ अपना जीउ ॥   साध की धूिर करहु इसनानु ॥  

जा कै मिन गुर की परतीित ॥  

ितस ु जन आवै हिर प्रभु चीित ॥   भगतु भगतु सन ु ीऐ ितहु लोइ ॥   जा कै िहरदै  एको होइ ॥  

साध ऊपिर जाईऐ कुरबान ु ॥  

सच ु करणी सचु ता की रहत ॥  

साधसंिग हिर कीरतन ु गाईऐ ॥  

साची िद्रसिट साचा आका  ॥  

साध सेवा वडभागी पाईऐ ॥  

सचु िहरदै  सित मुिख कहत ॥  

अिनक िबघन ते साधू राखै ॥  

सचु वरतै साचा पासा  ॥  

ओट गही संतह दिर आइआ ॥  

नानक सो जनु सिच समाता ॥८॥१५॥  

हिर गुन गाइ अिम्रत रसु चाखै ॥   सरब सूख नानक ितह पाइआ ॥६॥   िमरतक कउ जीवालनहार ॥  

पारब्रहमु िजिन सचु किर जाता ॥   सलोकु ॥  

प ु न रे ख न रं ग ु िकछु ित्रहु  गण ु  ते  प्रभ 

भूखे कउ दे वत अधार ॥  

िभंन ॥  

पुरब िलखे का लहणा पािह ॥  

॥१॥  

ितस ु िबनु दस ू र होआ न होगु ॥  

अिबनासी प्रभु मन मिह राखु ॥  

सभ ते ऊच िनरमल इह करणी ॥  

ितस ते परै  नाही िकछु कोइ ॥  

सरब िनधान जा की िद्रसटी मािह ॥  

ितसिह बझ ु ाए नानका िजस ु होवै  सप्र ु संन 

सभ ु िकछु ितस का ओहु करनै जोग ु ॥  

असटपदी ॥  

जिप जन सदा सदा िदनु रै णी ॥  

मानुख की तू प्रीित ितआगु ॥  

किर िकरपा िजस कउ नामु दीआ ॥   नानक सो जन ु िनरमल ु थीआ ॥७॥  

सरब िनरं तिर एको सोइ ॥   आपे बीना आपे दाना ॥  

गिहर ग्मभी  गही  सुजाना ॥  

जन दास नाम ु िधआविह सेइ ॥  

पारब्रहम परमेसुर गोिबंद ॥  

िक्रपा िनधान दइआल बखसंद ॥  

ितहु गुण मिह जा कउ भरमाए ॥   जनिम मरै  िफिर आवै जाए ॥  

साध तेरे की चरनी पाउ ॥  

ऊच नीच ितस के असथान ॥  

नानक कै मिन इहु अनराउ ॥१॥  

जैसा जनावै तैसा नानक जान ॥३॥  

जो किर पाइआ सोई होग ु ॥  

नाना भेख करिह इक रं ग ॥  

मनसा परू न सरना जोग ॥  

नाना  प नाना जा के रं ग ॥  

हरन भरन जा का नेत्र फो  ॥  

नाना िबिध कीनो िबसथा  ॥  

ितस का मंत्र ु न जानै हो  ॥  

प्रभु अिबनासी एकंका  ॥  

सरब थोक सुनीअिह घिर ता कै ॥  

पूिर रिहओ पूरनु सभ ठाइ ॥  

तप मिह तपीस  िग्रहसत मिह भोगी ॥  

अपनी कीमित आपे पाई ॥  

िधआइ िधआइ भगतह सख ु  ु पाइआ ॥  

सभ घट ितस के सभ ितस के ठाउ ॥  

पाइआ ॥२॥  

नाम के धारे  सगले जंत ॥  

जा की लीला की िमित नािह ॥  

नाम के धारे  खंड ब्रहमंड ॥  

िपता का जनमु िक जानै पूतु ॥  

नाम के धारे  सुनन िगआन िधआन ॥  

अनद  प मंगल सद जा कै ॥   राज मिह राज ु जोग मिह जोगी ॥  

नानक  ितसु  पुरख  का  िकनै  अंतु  न 

सगल दे व हारे  अवगािह ॥   सगल परोई अपुनै सूित ॥  

सम ु ित िगआन ु िधआन ु िजन दे इ ॥  

नाना चिलत करे  िखन मािह ॥   नाना िबिध किर बनत बनाई ॥  

जिप जिप जीवै नानक हिर नाउ ॥४॥  

नाम के धारे  िसिम्रित बेद पुरान ॥   नाम के धारे  आगास पाताल ॥   नाम के धारे  सगल आकार ॥  

नाम के धारे  पुरीआ सभ भवन ॥  

िजस की ि सिट सु करणैहा  ॥  

किर िकरपा िजस ु आपनै नािम लाए ॥  

करते की िमित न जानै कीआ ॥  

॥५॥  

िबसमन िबसम भए िबसमाद ॥  

नाम कै संिग उधरे  सुिन  वन ॥  

नानक चउथे  पद मिह सो जनु  गित पाए  पु सित जा का सित असथानु ॥  

परु ख ु सित केवल परधान ु ॥  

अवर न बूिझ करत बीचा  ॥  

नानक जो ितस ु भावै सो वरतीआ ॥७॥   िजिन बूिझआ ितसु आइआ  वाद ॥   प्रभ कै रं िग रािच जन रहे  ॥  

करतूित सित सित जा की बाणी ॥  

गुर कै बचिन पदारथ लहे  ॥  

सित करमु जा की रचना सित ॥  

जा कै संिग तरै  संसार ॥  

सित पुरख सभ मािह समाणी ॥   मूलु सित सित उतपित ॥  

ओइ दाते दख ु  काटनहार ॥  

जन का सेवकु सो वडभागी ॥  

सित करणी िनरमल िनरमली ॥  

जन कै संिग एक िलव लागी ॥  

िजसिह बुझाए ितसिह सभ भली ॥  

गुन गोिबद कीरतनु जनु गावै ॥  

िब वासु सित नानक गुर ते पाई ॥६॥  

सलोकु ॥  

सित ते जन जा कै िरदै  प्रवेस ॥  

है  िभ सचु नानक होसी िभ सचु ॥१॥  

सित नाम ु प्रभ का सख ु दाई ॥   सित बचन साधू उपदे स ॥  

सित िनरित बूझै जे कोइ ॥  

गरु  प्रसािद नानक फल ु पावै ॥८॥१६॥  

आिद सच ु जुगािद सच ु ॥   असटपदी ॥  

नामु जपत ता की गित होइ ॥  

चरन सित सित परसनहार ॥  

आपे जानै अपनी िमित गित ॥  

दरसन ु सित सित पेखनहार ॥  

आिप सित कीआ सभु सित ॥  

पूजा सित सित सेवदार ॥  

नामु सित सित िधआवनहार ॥  

ठाकुर कउ सेवकु जानै संिग ॥  

आपे गण ु  आपे गण ु कारी ॥  

सेवक कउ प्रभ पालनहारा ॥  

सरु ित सित सित जस ु सन ु ता ॥  

सो सेवकु िजस ु दइआ प्रभ ु धारै  ॥  

नानक सित सित प्रभ ु सोइ ॥१॥  

॥३॥  

करन करावन ितिन मूलु पछािनआ ॥  

अपने सेवक की सरपर राखै ॥  

आिप सित सित सभ धारी ॥  

सबद ु सित सित प्रभु बकता ॥  

बुझनहार कउ सित सभ होइ ॥  

प्रभ का सेवकु नाम कै रं िग ॥   सेवक की राखै िनरं कारा ॥  

नानक  सो  सेवकु  सािस  सािस  समारै  

सित स प ु िरदै  िजिन मािनआ ॥  

अपुने जन का परदा ढाकै ॥  

जा कै िरदै  िब वासु प्रभ आइआ ॥  

अपने दास कउ दे इ वडाई ॥  

भै ते िनरभउ होइ बसाना ॥  

अपने सेवक की आिप पित राखै ॥  

ततु िगआनु ितसु मिन प्रगटाइआ ॥  

अपने सेवक कउ नामु जपाई ॥  

िजस ते उपिजआ ितस ु मािह समाना ॥  

ता की गित िमित कोइ न लाखै ॥  

ता कउ िभंन न कहना जाई ॥  

प्रभ के सेवक ऊच ते ऊचे ॥  

बसतु मािह ले बसतु गडाई ॥  

प्रभ के सेवक कउ को न पहूचै ॥  

बझ ू ै बझ ू नहा  िबबेक ॥  

जो प्रिभ अपनी सेवा लाइआ ॥  

ठाकुर का सेवकु आिगआकारी ॥  

॥४॥  

नाराइन िमले नानक एक ॥२॥  

नानक  सो  सेवकु  दह  िदिस  प्रगटाइआ 

ठाकुर का सेवकु सदा पूजारी ॥  

नीकी कीरी मिह कल राखै ॥  

ठाकुर के सेवक की िनरमल रीित ॥  

िजस का सास ु न काढत आिप ॥  

ठाकुर के सेवक कै मिन परतीित ॥  

भसम करै  लसकर कोिट लाखै ॥  

ता कउ राखत दे  किर हाथ ॥  

जो होआ होवत सो जानै ॥  

मानस जतन करत बहु भाित ॥   ितस के करतब िबरथे जाित ॥  

प्रभ अपने का हुकमु पछानै ॥  

मारै  न राखै अव  न कोइ ॥  

ितस का गुनु किह एक न जानउ ॥  

सरब जीआ का राखा सोइ ॥   काहे  सोच करिह रे  प्राणी ॥  

ितस की मिहमा कउन बखानउ ॥   आठ पहर प्रभ बसिह हजूरे ॥  

जिप नानक प्रभ अलख िवडाणी ॥५॥  

कहु नानक सेई जन पूरे ॥७॥   मन मेरे ितन की ओट लेिह ॥  

बारं  बार बार प्रभु जपीऐ ॥  

मनु तनु अपना ितन जन दे िह ॥  

नाम रतनु िजिन गुरमुिख पाइआ ॥  

सो जनु सरब थोक का दाता ॥  

पी अिम्रतु इहु मनु तनु ध्रपीऐ ॥  

ितस ु िकछु अव  नाही िद्रसटाइआ ॥   नामु धनु नामो  प ु रं ग ु ॥  

नामो सुखु हिर नाम का संगु ॥   नाम रिस जो जन ित्रपताने ॥  

मन तन नामिह नािम समाने ॥   ऊठत बैठत सोवत नाम ॥  

िजिन जिन अपना प्रभू पछाता ॥   ितस की सरिन सरब सुख पाविह ॥  

ितस कै दरिस सभ पाप िमटाविह ॥   अवर िसआनप सगली छाडु ॥  

ितस ु जन की त ू सेवा लाग ु ॥  

आवनु जानु न होवी तेरा ॥  

नानक  ितस ु जन  के  पज ू हु  सद  पैरा 

कहु नानक जन कै सद काम ॥६॥   बोलहु जसु िजहबा िदनु राित ॥  

॥८॥१७॥  

करिह भगित आतम कै चाइ ॥  

का नाउ ॥  

प्रिभ अपनै जन कीनी दाित ॥  

प्रभ अपने िसउ रहिह समाइ ॥  

सलोकु ॥  

सित पुरखु  िजिन जािनआ सितगु  ितस 

ितस कै संिग िसखु  उधरै   नानक हिर गुन 

ितस कउ होत परापित सुआमी ॥  

असटपदी ॥  

नानक सो सेवकु गरु  की मित लेइ ॥२॥  

गाउ ॥१॥  

सितगु  िसख की करै  प्रितपाल ॥   सेवक कउ गु  सदा दइआल ॥  

अपनी िक्रपा िजसु आिप करे इ ॥   बीस िबसवे गुर का मनु मानै ॥  

सो सेवकु परमेसरु  की गित जानै ॥  

िसख की गु  दरु मित मलु िहरै  ॥  

सो सितगु  िजसु िरदै  हिर नाउ ॥  

सितगु  िसख के बंधन काटै  ॥  

सरब िनधान जीअ का दाता ॥  

गरु  बचनी हिर नाम ु उचरै  ॥  

अिनक बार गरु  कउ बिल जाउ ॥  

गुर का िसखु िबकार ते हाटै  ॥  

आठ पहर पारब ्रहम रं िग राता ॥  

गुर का िसखु वडभागी हे  ॥  

एकिह आिप नही कछु भरमु ॥  

सितगु  िसख कउ नाम धनु दे इ ॥   सितगु  िसख का हलतु पलतु सवारै  ॥  

ब्रहम मिह जनु जन मिह पारब्रहमु ॥   सहस िसआनप लइआ न जाईऐ ॥  

नानक  सितगु   िसख  कउ  जीअ  नािल 

नानक ऐसा गु  बडभागी पाईऐ ॥३॥  

गुर कै िग्रिह सेवकु जो रहै  ॥  

परसत चरन गित िनरमल रीित ॥  

समारै  ॥१॥  

सफल दरसन ु पेखत पन ु ीत ॥  

गरु  की आिगआ मन मिह सहै  ॥  

भेटत संिग राम गन ु  रवे ॥  

हिर हिर नामु िरदै  सद िधआवै ॥  

सुिन किर बचन करन आघाने ॥  

आपस कउ किर कछु न जनावै ॥   मनु बेचै सितगुर कै पािस ॥  

ितस ु सेवक के कारज रािस ॥  

सेवा करत होइ िनहकामी ॥  

पारब्रहम की दरगह गवे ॥  

मिन संतोख ु आतम पतीआने ॥  

पूरा गु  अख्यओ जा का मंत्र ॥   अिम्रत िद्रसिट पेखै होइ संत ॥  

गुण िबअंत कीमित नही पाइ ॥  

अंधकार दीपक परगासे ॥  

नानक िजसु भावै ितस ु लए िमलाइ ॥४॥  

नानक भरम मोह दख ु  तह ते नासे ॥६॥  

सित पुरख पूरन िबबेक ॥  

अनद ु भइआ दख ु  नाठे  भाई ॥  

िजहबा एक उसतित अनेक ॥  

काहू बोल न पहुचत प्रानी ॥   अगम अगोचर प्रभ िनरबानी ॥  

तपित मािह ठािढ वरताई ॥  

जनम मरन के िमटे  अंदेसे ॥   साधू के पूरन उपदे से ॥  

िनराहार िनरवैर सख ु दाई ॥  

भउ चक ू ा िनरभउ होइ बसे ॥  

अिनक भगत बंदन िनत करिह ॥  

िजस का सा ितिन िकरपा धारी ॥  

चरन कमल िहरदै  िसमरिह ॥  

साधसंिग जिप नामु मुरारी ॥  

ता की कीमित िकनै न पाई ॥  

सद बिलहारी सितगुर अपने ॥  

नानक  िजस ु प्रसािद  ऐसा  प्रभ ु जपने  ॥५॥  

सगल िबआिध मन ते खै नसे ॥  

िथित पाई चूके भ्रम गवन ॥  

सिु न नानक हिर हिर जस ु वन ॥७॥   िनरगुनु आिप सरगुनु भी ओही ॥  

इहु हिर रस ु पावै जन ु कोइ ॥   अिम्रतु पीवै अम  सो होइ ॥  

कला धािर िजिन सगली मोही ॥  

अपने चिरत प्रिभ आिप बनाए ॥  

जा कै मिन प्रगटे  गुनतास ॥  

हिर िबन ु दज ू ा नाही कोइ ॥  

उस ु परु ख का नाही कदे  िबनास ॥  

अपन ु ी कीमित आपे पाए ॥  

आठ पहर हिर का नामु लेइ ॥  

सरब िनरं तिर एको सोइ ॥  

सचु उपदे सु सेवक कउ दे इ ॥  

ओित पोित रिवआ  प रं ग ॥  

मन मिह राखै हिर हिर एकु ॥  

रिच रचना अपनी कल धारी ॥  

मोह माइआ कै संिग न लेपु ॥  

भए प्रगास साध कै संग ॥  

अिनक बार नानक बिलहारी ॥८॥१८॥   सलोकु ॥  

िजसु सोभा कउ करिह भली करनी ॥   सा सोभा भजु हिर की सरनी ॥  

सािथ  न  चालै  िबन ु भजन  िबिखआ 

अिनक उपावी रोग ु न जाइ ॥  

हिर  हिर  नामु  कमावना  नानक  इहु  धनु 

सरब िनधान मिह हिर नाम ु िनधान ु ॥  

सगली छा  ॥   सा  ॥१॥  

असटपदी ॥   संत जना िमिल करहु बीचा  ॥   एकु िसमिर नाम आधा  ॥  

अविर उपाव सिभ मीत िबसारहु ॥   चरन कमल िरद मिह उिर धारहु ॥  

करन कारन सो प्रभ ु समरथ ु ॥  

िद्रड़ु किर गहहु नामु हिर वथु ॥   इहु धन ु संचहु होवहु भगवंत ॥   संत जना का िनरमल मंत ॥  

एक आस राखहु मन मािह ॥   सरब रोग नानक िमिट जािह ॥१॥  

रोगु िमटै  हिर अवखधु लाइ ॥  

जिप नानक दरगिह परवानु ॥२॥   मन ु परबोधहु हिर कै नाइ ॥  

दह िदिस धावत आवै ठाइ ॥   ता कउ िबघनु न लागै कोइ ॥   जा कै िरदै  बसै हिर सोइ ॥  

किल ताती ठांढा हिर नाउ ॥   िसमिर िसमिर सदा सख ु  पाउ ॥   भउ िबनसै पूरन होइ आस ॥  

भगित भाइ आतम परगास ॥   िततु घिर जाइ बसै अिबनासी ॥  

कहु नानक काटी जम फासी ॥३॥   ततु बीचा  कहै  जनु साचा ॥  

िजसु धन कउ चािर कंु ट उिठ धाविह ॥  

जनिम मरै  सो काचो काचा ॥  

िजसु सुख कउ िनत बाछिह मीत ॥  

आपु ितआिग सरिन गुरदे व ॥  

सो धनु हिर सेवा ते पाविह ॥  

आवा गवनु िमटै  प्रभ सेव ॥  

सो सख ु  ु साधू संिग परीित ॥  

इउ रतन जनम का होइ उधा  ॥  

हिर हिर िसमिर प्रान आधा  ॥   अिनक उपाव न छूटनहारे  ॥  

िसिम्रित सासत बेद बीचारे  ॥   हिर की भगित करहु मनु लाइ ॥   मिन बंछत नानक फल पाइ ॥४॥   संिग न चालिस तेरै धना ॥  

तंू िकआ लपटाविह मरू ख मना ॥  

आिप जपहु अवरा नामु जपावहु ॥   सुनत कहत रहत गित पावहु ॥   सार भत ू  सित हिर को नाउ ॥  

सहिज सुभाइ नानक गुन गाउ ॥६॥   गन ु  गावत तेरी उतरिस मैल ु ॥  

िबनिस जाइ हउमै िबखु फैलु ॥   होिह अिचंतु बसै सख ु  नािल ॥  

सुत मीत कु मब अ  बिनता ॥  

सािस ग्रािस हिर नामु समािल ॥  

राज रं ग माइआ िबसथार ॥  

साधसंिग पाविह सचु धना ॥  

इन ते कहहु तुम कवन सनाथा ॥   इन ते कहहु कवन छुटकार ॥   अस ु हसती रथ असवारी ॥  

झूठा  मफु झूठु पासारी ॥  

छािड िसआनप सगली मना ॥  

हिर पूंजी संिच करहु िबउहा  ॥   ईहा सख ु  ु दरगह जैका  ॥  

सरब िनरं तिर एको दे खु ॥  

िजिन दीए ितस ु बझ ु ै न िबगाना ॥  

कहु नानक जा कै मसतिक लेख ु ॥७॥   एको जिप एको सालािह ॥  

गरु  की मित तंू लेिह इआने ॥  

एकु िसमिर एको मन आिह ॥  

नामु िबसािर नानक पछुताना ॥५॥   भगित िबना बहु डूबे िसआने ॥   हिर की भगित करहु मन मीत ॥   िनरमल होइ तु हारो चीत ॥  

चरन कमल राखहु मन मािह ॥   जनम जनम के िकलिबख जािह ॥  

एकस के गुन गाउ अनंत ॥  

मिन तिन जािप एक भगवंत ॥   एको एकु एकु हिर आिप ॥  

पूरन पूिर रिहओ प्रभु िबआिप ॥   अिनक िबसथार एक ते भए ॥  

एकु अरािध पराछत गए ॥  

िजन चािखआ से जन ित्रपताने ॥  

गरु  प्रसािद नानक इकु जाता ॥८॥१९॥  

सभ ु र भरे  प्रेम रस रं िग ॥  

मन तन अंतिर एकु प्रभु राता ॥  

पूरन पुरख नही डोलाने ॥  

सलोकु ॥  

उपजै चाउ साध कै संिग ॥  

िफरत  िफरत  प्रभ  आइआ  पिरआ  तउ 

परे  सरिन आन सभ ितआिग ॥  

सरनाइ ॥  

अंतिर प्रगास अनिदनु िलव लािग ॥  

नानक की प्रभ बेनती अपनी भगती लाइ  ॥१॥   असटपदी ॥   जाचक जनु जाचै प्रभ दानु ॥  

किर िकरपा दे वहु हिर नामु ॥  

साध जना की मागउ धिू र ॥  

बडभागी जिपआ प्रभ ु सोइ ॥  

नानक नािम रते सुखु होइ ॥२॥   सेवक की मनसा पूरी भई ॥  

सितगुर ते िनरमल मित लई ॥  

जन कउ प्रभ ु होइओ दइआलु ॥  

सेवकु कीनो सदा िनहालु ॥  

पारब्रहम मेरी सरधा पूिर ॥  

बंधन कािट मुकित जनु भइआ ॥  

सािस सािस प्रभ तुमिह िधआवउ ॥  

इछ पुनी सरधा सभ पूरी ॥  

सदा सदा प्रभ के गन ु  गावउ ॥  

चरन कमल िसउ लागै प्रीित ॥  

भगित करउ प्रभ की िनत नीित ॥  

जनम मरन दख ू  ु भ्रम ु गइआ ॥   रिव रिहआ सद संिग हजूरी ॥  

िजस का सा ितिन लीआ िमलाइ ॥  

एक ओट एको आधा  ॥  

नानक भगती नािम समाइ ॥३॥  

नानकु मागै नामु प्रभ सा  ॥१॥  

सो िकउ िबसरै  िज घाल न भानै ॥  

हिर रस ु पावै िबरला कोइ ॥  

सो िकउ िबसरै  िजिन सभ ु िकछु दीआ ॥  

प्रभ की िद्रसिट महा सुखु होइ ॥  

सो िकउ िबसरै  िज कीआ जानै ॥  

सो िकउ िबसरै  िज जीवन जीआ ॥   सो िकउ िबसरै  िज अगिन मिह राखै ॥   गरु  प्रसािद को िबरला लाखै ॥  

भगत जना कै मिन तिन रं गु ॥   िबरला कोऊ पावै संगु ॥  

एक बसतु दीजै किर मइआ ॥  

सो िकउ िबसरै  िज िबखु ते काढै  ॥  

गुर प्रसािद नामु जिप लइआ ॥  

गुिर पूरै ततु इहै  बुझाइआ ॥  

नानक रिहआ सरब समाइ ॥६॥  

जनम जनम का टूटा गाढै  ॥  

ता की उपमा कही न जाइ ॥  

प्रभ ु अपना नानक जन िधआइआ ॥४॥  

प्रभ बखसंद दीन दइआल ॥  

आन ितआिग जपहु हिर नामु ॥   िसमिर िसमिर िसमिर सुख पावहु ॥  

अनाथ नाथ गोिबंद गुपाल ॥  

साजन संत करहु इहु कामु ॥  

भगित वछल सदा िकरपाल ॥   सरब घटा करत प्रितपाल ॥  

आिप जपहु अवरह नामु जपावहु ॥   भगित भाइ तरीऐ संसा  ॥  

आिद पुरख कारण करतार ॥  

िबनु भगती तन ु होसी छा  ॥  

जो जो जपै सु होइ पुनीत ॥  

सरब किलआण सख ू  िनिध नामु ॥  

भगत जना के प्रान अधार ॥  

भगित भाइ लावै मन हीत ॥  

बूडत जात पाए िब ामु ॥  

हम िनरगन ु ीआर नीच अजान ॥  

नानक नामु जपहु गुनतासु ॥५॥  

सरब बैकंु ठ मुकित मोख पाए ॥  

सगल दख ू  का होवत नासु ॥   उपजी प्रीित प्रेम रसु चाउ ॥  

मन तन अंतिर इही सुआउ ॥   नेत्रहु पेिख दरसु सुख ु होइ ॥  

मन ु िबगसै साध चरन धोइ ॥  

नानक तुमरी सरिन परु ख भगवान ॥७॥   एक िनमख हिर के गुन गाए ॥   अिनक राज भोग बिडआई ॥  

हिर के नाम की कथा मिन भाई ॥   बहु भोजन कापर संगीत ॥  

रसना जपती हिर हिर नीत ॥  

जब होवत प्रभ केवल धनी ॥  

भली सु करनी सोभा धनवंत ॥  

तब बंध मुकित कहु िकस कउ गनी ॥  

िहरदै  बसे परू न गरु  मंत ॥  

जब एकिह हिर अगम अपार ॥  

सरब सूख नानक परगास ॥८॥२०॥  

जब िनरगन ु  प्रभ सहज सभ ु ाइ ॥  

साधसंिग प्रभ दे हु िनवास ॥  

तब नरक सुरग कहु कउन अउतार ॥  

सलोकु ॥  

सरगन ु   िनरगन ु   िनरं कार  संन ु   समाधी 

तब िसव सकित कहहु िकतु ठाइ ॥   जब आपिह आिप अपनी जोित धरै  ॥  

आिप ॥  

तब कवन िनड  कवन कत डरै  ॥  

आपन कीआ नानका आपे ही िफिर जािप 

आपन चिलत आिप करनैहार ॥  

॥१॥  

नानक ठाकुर अगम अपार ॥२॥  

असटपदी ॥   जब अका  इहु कछु न िद्रसटे ता ॥   पाप पुंन तब कह ते होता ॥   जब धारी आपन संन ु  समािध ॥  

तब बैर िबरोध िकसु संिग कमाित ॥   जब इस का बरन ु िचहनु न जापत ॥  

अिबनासी सुख आपन आसन ॥  

तह जनम मरन कहु कहा िबनासन ॥   जब पूरन करता प्रभु सोइ ॥   तब जम की त्रास कहहु िकस ु होइ ॥   जब अिबगत अगोचर प्रभ एका ॥   तब िचत्र गप ू त लेखा ॥   ु त िकस ु पछ

तब हरख सोग कहु िकसिह िबआपत ॥   जब आपन आप आिप पारब्रहम ॥  

जब नाथ िनरं जन अगोचर अगाधे ॥  

तब मोह कहा िकसु होवत भरम ॥  

आपन आप आप ही अचरजा ॥  

आपन खेलु आिप वरतीजा ॥  

नानक करनैहा  न दज ू ा ॥१॥  

तब कउन छुटे  कउन बंधन बाधे ॥  

नानक आपन  प आप ही उपरजा ॥३॥   जह िनरमल परु ख ु परु ख पित होता ॥  

तह िबनु मैलु कहहु िकआ धोता ॥   जह िनरं जन िनरं कार िनरबान ॥  

आपस कउ आपिह आदे सु ॥  

तह कउन कउ मान कउन अिभमान ॥  

ितहु गुण का नाही परवेस ु ॥   जह एकिह एक एक भगवंता ॥  

जह स प केवल जगदीस ॥  

तह कउनु अिचंतु िकस ु लागै िचंता ॥  

तह छल िछद्र लगत कहु कीस ॥   जह जोित स पी जोित संिग समावै ॥   तह िकसिह भख ू  कवन ु ित्रपतावै ॥  

करन करावन करनैहा  ॥  

नानक करते का नािह सुमा  ॥४॥  

जब अपनी सोभा आपन संिग बनाई ॥  

जह आपन आप ु आिप पतीआरा ॥   तह कउनु कथै कउनु सुननैहारा ॥  

बहु बेअंत ऊच ते ऊचा ॥   नानक आपस कउ आपिह पहूचा ॥६॥   जह आिप रिचओ परपंच ु अका  ॥  

तब कवन माइ बाप िमत्र सुत भाई ॥  

ितहु गुण मिह कीनो िबसथा  ॥   पापु पुंनु तह भई कहावत ॥  

तह बेद कतेब कहा कोऊ चीन ॥  

आल जाल माइआ जंजाल ॥  

जह सरब कला आपिह परबीन ॥  

जब आपन आप ु आिप उिर धारै  ॥  

तउ सगन अपसगन कहा बीचारै  ॥   जह आपन ऊच आपन आिप नेरा ॥  

कोऊ नरक कोऊ सरु ग बंछावत ॥   हउमै मोह भरम भै भार ॥  

दख ू  सूख मान अपमान ॥  

अिनक प्रकार कीओ बख्यान ॥  

तह कउन ठाकु  कउनु कहीऐ चेरा ॥  

आपन खेलु आिप किर दे खै ॥  

नानक अपनी गित जानहु आिप ॥५॥   जह अछल अछे द अभेद समाइआ ॥  

जह अिबगतु भगतु तह आिप ॥  

िबसमन िबसम रहे  िबसमाद ॥  

ऊहा िकसिह िबआपत माइआ ॥  

खेलु संकोचै तउ नानक एकै ॥७॥   जह पसरै  पासा  संत परतािप ॥   दह ु ू  पाख का आपिह धनी ॥  

उन की सोभा उनहू बनी ॥   आपिह कउतक करै  अनद चोज ॥  

सो समदरसी तत का बेता ॥  

आपिह रस भोगन िनरजोग ॥  

जीअ जंत्र सभ ता कै हाथ ॥  

िजसु भावै ितस ु आपन नाइ लावै ॥  

दीन दइआल अनाथ को नाथु ॥  

बेसुमार अथाह अगनत अतोलै ॥  

सो मूआ िजसु मनहु िबसारै  ॥  

िजस ु भावै ितस ु खेल िखलावै ॥  

िजउ  बल ु ावहु  ितउ  नानक  दास  बोलै  ॥८॥२१॥   सलोकु ॥  

जीअ जंत के ठाकुरा आपे वरतणहार ॥  

नानक सगल ि सिट का जेता ॥१॥  

िजस ु राखै ितस ु कोइ न मारै  ॥  

ितस ु तिज अवर कहा को जाइ ॥   सभ िसिर एकु िनरं जन राइ ॥  

जीअ की जुगित जा कै सभ हािथ ॥   अंतिर बाहिर जानहु सािथ ॥  

नानक  एको  पसिरआ  दज ू ा  कह  िद्रसटार 

गुन िनधान बेअंत अपार ॥  

असटपदी ॥  

पूरन पूिर रहे  दइआल ॥  

॥१॥  

आिप कथै आिप सन ु नैहा  ॥  

नानक दास सदा बिलहार ॥२॥   सभ ऊपिर होवत िकरपाल ॥  

आपिह एकु आिप िबसथा  ॥  

अपने करतब जानै आिप ॥  

आपनै भाणै लए समाए ॥  

प्रितपालै जीअन बहु भाित ॥  

आपन सूित सभु जगतु परोइ ॥  

िजसु भावै ितस ु लए िमलाइ ॥  

सच ु नामु सोई जन ु पाए ॥  

मन अंतिर िब वास ु किर मािनआ ॥  

जा ितस ु भावै ता ि सिट उपाए ॥  

अंतरजामी रिहओ िबआिप ॥  

तुम ते िभंन नही िकछु होइ ॥  

जो जो रिचओ सु ितसिह िधआित ॥  

जा कउ प्रभ जीउ आिप बुझाए ॥  

भगित करिह हिर के गुण गाइ ॥  

करनहा  नानक इकु जािनआ ॥३॥  

हलतु पलतु दइ ु  लेहु सवािर ॥  

जनु लागा हिर एकै नाइ ॥  

राम नामु अंतिर उिर धािर ॥  

सेवक कउ सेवा बिन आई ॥  

िजसु मिन बसै ितसु साचु परीिखआ ॥  

ितस की आस न िबरथी जाइ ॥   हुकम ु बिू झ परम पद ु पाई ॥   इस ते ऊपिर नही बीचा  ॥  

जा कै मिन बिसआ िनरं का  ॥  

बंधन तोिर भए िनरवैर ॥   अनिदनु पूजिह गुर के पैर ॥  

इह लोक सुखीए परलोक सुहेले ॥  

नानक हिर प्रिभ आपिह मेले ॥४॥   साधसंिग िमिल करहु अनंद ॥   गुन गावहु प्रभ परमानंद ॥  

परू े  गरु  की परू ी दीिखआ ॥  

मिन तिन नामु जपहु िलव लाइ ॥  

दख ू ु दरद ु मन ते भउ जाइ ॥   सच ु वापा  करहु वापारी ॥   दरगह िनबहै  खेप तुमारी ॥  

एका टे क रखहु मन मािह ॥  

नानक बहुिर न आविह जािह ॥६॥   ितस ते दिू र कहा को जाइ ॥   उबरै  राखनहा  िधआइ ॥  

िनरभउ जपै सगल भउ िमटै  ॥  

राम नाम तत ु करहु बीचा  ॥  

प्रभ िकरपा ते प्राणी छुटै  ॥  

अिम्रत बचन हिर के गुन गाउ ॥  

नामु जपत मिन होवत सख ू  ॥  

द्रल ु भ दे ह का करहु उधा  ॥  

प्रान तरन का इहै  सुआउ ॥  

आठ पहर प्रभ पेखहु नेरा ॥  

िमटै  अिगआनु िबनसै अंधेरा ॥   सुिन उपदे सु िहरदै  बसावहु ॥  

मन इछे  नानक फल पावहु ॥५॥  

िजसु प्रभु राखै ितसु नाही दख ू  ॥   िचंता जाइ िमटै  अहं का  ॥  

ितस ु जन कउ कोइ न पहुचनहा  ॥   िसर ऊपिर ठाढा गु  सूरा ॥  

नानक ता के कारज पूरा ॥७॥  

मित परू ी अिम्रत ु जा की िद्रसिट ॥  

दरसनु पेखत उधरत ि सिट ॥  

दे ही मिह इस का िब ामु ॥  

सफल दरसन ु संद ु र हिर  प ॥  

कहन ु न जाई अचरज िबसमाद ॥  

चरन कमल जा के अनूप ॥   धंनु सेवा सेवकु परवानु ॥  

सुंन समािध अनहत तह नाद ॥  

ितिन दे िखआ िजसु आिप िदखाए ॥  

अंतरजामी परु ख ु प्रधानु ॥  

नानक ितस ु जन सोझी पाए ॥१॥  

ता कै िनकिट न आवत काल ु ॥  

घिट घिट िबआिप रिहआ भगवंत ॥  

िजसु मिन बसै सु होत िनहालु ॥  

सो अंतिर सो बाहिर अनंत ॥  

अमर भए अमरा पद ु पाइआ ॥  

धरिन मािह आकास पइआल ॥  

॥८॥२२॥  

बिन ितिन परबित है  पारब्रहमु ॥  

साधसंिग 

नानक 

हिर 

िधआइआ 

सलोकु ॥  

सरब लोक पूरन प्रितपाल ॥  

जैसी आिगआ तैसा करम ु ॥  

िगआन  अंजन ु गिु र  दीआ  अिगआन 

पउण पाणी बैसंतर मािह ॥  

हिर  िकरपा  ते  संत  भेिटआ  नानक  मिन 

ितस ते िभंन नही को ठाउ ॥  

अंधेर िबनासु ॥  

चािर कंु ट दह िदसे समािह ॥  

परगासु ॥१॥  

गुर प्रसािद नानक सुखु पाउ ॥२॥  

संतसंिग अंतिर प्रभु डीठा ॥  

ससीअर सूर नख्यत्र मिह एकु ॥  

असटपदी ॥  

नामु प्रभू का लागा मीठा ॥  

बेद परु ान िसिम्रित मिह दे ख ु ॥   बाणी प्रभ की सभु को बोलै ॥  

सगल सिमग्री एकसु घट मािह ॥  

आिप अडोलु न कबहू डोलै ॥  

नउ िनिध अिम्रतु प्रभ का नामु ॥  

मोिल न पाईऐ गण ु ह अमोल ॥  

अिनक रं ग नाना िद्रसटािह ॥  

सरब कला किर खेलै खेल ॥  

सरब जोित मिह जा की जोित ॥  

आपे आिप आप भरपूिर ॥  

धािर रिहओ सुआमी ओित पोित ॥  

अंतरगित िजसु आिप जनाए ॥  

नानक ितन मिह एहु िबसासु ॥३॥   संत जना का पेखन ु सभ ु ब्रहम ॥  

सरब भूत आिप वरतारा ॥  

सरब नैन आिप पेखनहारा ॥  

संत जना सन ु  बचन ॥   ु िह सभ

आपन जस ु आप ही सन ु ा ॥  

गरु  परसािद भरम का नास ु ॥  

नानक ितस ु जन आिप बझ ु ाए ॥५॥  

संत जना कै िहरदै  सिभ धरम ॥  

सगल समग्री जा का तना ॥  

सरब िबआपी राम संिग रचन ॥  

आवन जानु इकु खेलु बनाइआ ॥  

िजिन जाता ितस की इह रहत ॥  

आिगआकारी कीनी माइआ ॥  

सित बचन साधू सिभ कहत ॥  

सभ कै मिध अिलपतो रहै  ॥  

करन करावनहा  प्रभ ु जानै ॥  

आिगआ आवै आिगआ जाइ ॥  

अंतिर बसे बाहिर भी ओही ॥  

नानक जा भावै ता लए समाइ ॥६॥  

नानक दरसन ु दे िख सभ मोही ॥४॥  

इस ते होइ स ु नाही बरु ा ॥  

ितस ु प्रभ ते सगली उतपित ॥  

आिप भला करतिू त अित नीकी ॥  

ितस ु भावै ता एकंका  ॥  

आिप साचु धारी सभ साचु ॥  

जो जो होइ सोई सुखु मानै ॥  

आिप सित कीआ सभु सित ॥   ितस ु भावै ता करे  िबसथा  ॥  

अिनक कला लखी नह जाइ ॥   िजसु भावै ितस ु लए िमलाइ ॥  

कवन िनकिट कवन कहीऐ दिू र ॥  

जो िकछु कहणा सु आपे कहै  ॥  

ओरै  कहहु िकनै कछु करा ॥  

आपे जानै अपने जी की ॥  

ओित पोित आपन संिग राचु ॥  

ता की गित िमित कही न जाइ ॥   दस ू र होइ त सोझी पाइ ॥  

ितस का कीआ सभु परवानु ॥  

गुर प्रसािद नानक इहु जानु ॥७॥   जो जानै ितस ु सदा सख ु  ु होइ ॥   आिप िमलाइ लए प्रभु सोइ ॥  

ओहु धनवंत ु कुलवंत ु पितवंत ु ॥   जीवन मुकित िजसु िरदै  भगवंतु ॥  

आस अिनत ितआगहु तरं ग ॥   संत जना की धूिर मन मंग ॥   आप ु छोिड बेनती करहु ॥  

साधसंिग अगिन साग  तरहु ॥   हिर धन के भिर लेहु भंडार ॥   नानक गुर पूरे नमसकार ॥१॥  

धंनु धंनु धंनु जन ु आइआ ॥  

खेम कुसल सहज आनंद ॥  

जन आवन का इहै  सुआउ ॥  

नरक िनवािर उधारहु जीउ ॥   गुन गोिबंद अिम्रत रसु पीउ ॥  

िजसु प्रसािद सभु जगतु तराइआ ॥   जन कै संिग िचित आवै नाउ ॥   आिप मुकतु मुकतु करै  संसा  ॥  

नानक  ितस ु जन  कउ  सदा  नमसका  

साधसंिग भजु परमानंद ॥  

िचित िचतवहु नाराइण एक ॥   एक  प जा के रं ग अनेक ॥  

॥८॥२३॥  

गोपाल दामोदर दीन दइआल ॥  

सलोकु ॥  

दख ु  भंजन परू न िकरपाल ॥  

पूरा प्रभु आरािधआ पूरा जा का नाउ ॥  

िसमिर िसमिर नामु बारं  बार ॥  

असटपदी ॥  

उतम सलोक साध के बचन ॥  

पारब्रहमु िनकिट किर पेखु ॥  

सुनत कमावत होत उधार ॥  

नानक परू ा पाइआ परू े  के गन ु  गाउ ॥१॥   पूरे गुर का सुिन उपदे सु ॥  

सािस सािस िसमरहु गोिबंद ॥   मन अंतर की उतरै  िचंद ॥  

नानक जीअ का इहै  अधार ॥२॥   अमुलीक लाल एिह रतन ॥  

आिप तरै  लोकह िनसतार ॥  

सफल जीवन ु सफल ु ता का संग ु ॥  

जा कै मिन लागा हिर रं ग ु ॥   जै जै सबद ु अनाहद ु वाजै ॥  

सभ ते ऊच पाए असथानु ॥  

सिु न सिु न अनद करे  प्रभ ु गाजै ॥  

बहुिर न होवै आवन जानु ॥   हिर धन ु खािट चलै जन ु सोइ ॥  

नानक उधरे  ितन कै साथे ॥३॥  

खेम सांित िरिध नव िनिध ॥  

सरिन जोगु सुिन सरनी आए ॥  

बुिध िगआनु सरब तह िसिध ॥  

प्रगटे  गुपाल महांत कै माथे ॥  

किर िकरपा प्रभ आप िमलाए ॥   िमिट गए बैर भए सभ रे न ॥   अिम्रत नामु साधसंिग लैन ॥  

नानक िजसिह परापित होइ ॥५॥  

िबिदआ तप ु जोग ु प्रभ िधआन ु ॥   िगआनु  ेसट ऊतम इसनानु ॥   चािर पदारथ कमल प्रगास ॥  

सुप्रसंन भए गुरदे व ॥  

सभ कै मिध सगल ते उदास ॥  

आल जंजाल िबकार ते रहते ॥  

समदरसी एक िद्रसटे ता ॥  

राम नाम सुिन रसना कहते ॥  

इह फल ितसु जन कै मुिख भने ॥  

पूरन होई सेवक की सेव ॥  

सुंद  चतु  तत का बेता ॥  

किर प्रसाद ु दइआ प्रिभ धारी ॥  

गरु  नानक नाम बचन मिन सन ु े ॥६॥  

प्रभ की उसतित करहु संत मीत ॥   सावधान एकागर चीत ॥  

गुण गोिबंद नाम धुिन बाणी ॥  

नानक िनबही खेप हमारी ॥४॥  

सुखमनी सहज गोिबंद गुन नाम ॥   िजसु मिन बसै सु होत िनधान ॥   सरब इछा ता की पूरन होइ ॥  

प्रधान परु ख ु प्रगटु सभ लोइ ॥  

इहु िनधानु जपै मिन कोइ ॥   सभ जुग मिह ता की गित होइ ॥   िसिम्रित सासत्र बेद बखाणी ॥  

सगल मतांत केवल हिर नाम ॥   गोिबंद भगत कै मिन िब ाम ॥   कोिट अप्राध साधसंिग िमटै  ॥  

संत िक्रपा ते जम ते छुटै  ॥  

जा कै मसतिक करम प्रिभ पाए ॥  

साध सरिण नानक ते आए ॥७॥   िजसु मिन बसै सुनै लाइ प्रीित ॥   ितस ु जन आवै हिर प्रभ ु चीित ॥  

जनम मरन ता का दख ू ु िनवारै  ॥   दल ु भ दे ह ततकाल उधारै  ॥  

िनरमल सोभा अिम्रत ता की बानी ॥   एकु नामु मन मािह समानी ॥   दख ू  रोग िबनसे भै भरम ॥  

साध नाम िनरमल ता के करम ॥   सभ ते ऊच ता की सोभा बनी ॥  

नानक इह गिु ण नामु सुखमनी ॥८॥२४॥      

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