शांितपाठ शांितनाथ मुख शिश उनहार, शीलगुणोत संयमधार। लखन एक सौ आठ वराजे, िनरखत नयन कमल दल लाजै।। पंचम चबवत' पदधार, सोलम तीथ)कर सुखकार। इ+ि नरे +ि पू.य /जननायक, नमो शांित0हत शांित वधायक।। 0द1य वटप पहपन क3 वरषा, दं द आसन वाणी सरसा। ु िभ ु ु छऽ चमर भामंडल भार, ये तुव ूाितहाय: मनहार।। शांित /जनेश शांित सुखदाई, जगत पू.य पूज< िसरनाई। परम शांित दजे हम सबको, पढ़? /ज+ह@ पुिन चार संघ को।। पूज@ /ज+ह@ मुकुटहार 0करट लाके, इ+िा0ददे व अC पू.यपदाDज जाके। सो शांितनाथ वर वंश-जगFूदप, मेरे िलए करहु शांित सदा अनूप।। संपूजक< को ूितपालक< को, यतीनक< को यितनायक< को। राजा ूजा राG सुदेश को ले, क3जे सुखी हे /जन शांित को दे ।। होवे सार ूजा को सुख, बलयुत हो धम:धार नरे शा। होवे वरषा समय पे, ितलभर न रहे 1यािधय< का अ+दे शा।। होवे चोर न जार, सुसमय परतै, हो न दंकाल भारं। ु सारे ह दे श धार? , /जनवर वृषको जो सदा सौJयकार।। घाित कम: /जन नाश कKर, पायो केवलराज। शांित करो ते जगत म@, वृषभा0दक /जनराज।।
(तीन बार शांित धारा दे व@) शाL< का हो पठन सुखदा लाभ तFसंगित का। सMवृN< का सुजस कहके, दोष ढाँकँू सभी का ।। बोलूँ Qयारे वचन 0हतके, आपका Rप Sयाऊँ । तौलौ सेऊँ चरण /जनके, मोU जौलV न पाऊँ ।। तब पद मेरे 0हय म@, मम 0हय तेरे पुनीत चरण< म@। तबलV लीन रहौ ूभु, जबलौ पाया न मुW पद म?ने ।। अUर पद माऽा से दषत जो कछु कहा गया मुझसे। ू Uमा करो ूभु सो सब कCणा कKरपुिन छुड़ाहु भवदःख से ।। ु हे जगब+धु /जने[र, पाऊँ तब चरण शरण बिलहार। मरणसमािध सुदल: ु भ, कम\ का Uय सुबोध सुखकार।
(पुंपांजिल Uेपण) (यहाँ नौ बार णमोकार मंऽ का जाप कर@ ) वसज:न बन जाने वा जान के, रह टू ट जो कोय। तुम ूसाद त@ परम गुC, सो सब पूरन होय।। पूजन विध जानूँ नहं, न0हं जानूँ आ]ान। और वसज:न हँू नहं, Uमा करो भगवान।। मंऽहन धनहन हँू , 0बयाहन /जनदे व । Uमा करहु राखहु मुझे, दे हु चरण क3 सेव ।। ॑ां ॑ं ॑ंू ॑V हः अ िस आ उ सा पूजा विध वसज:नं करोिम जः जः जः । अपारधम Uमापनं भवतु भूवाFपुनद:श:नम । इFयाशीवा:द