Ramcharitmanas-balkand

  • May 2020
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  • Words: 49,141
  • Pages: 149
रामचिरतमानस

- 1-

गोःवामी तुलसीदास िवरिचत

रामचिरतमानस बालकाण्ड

Sant Tulsidas’s

Rāmcharitmānas Bāl Kānd

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बालकांड

रामचिरतमानस

- 2-

बालकांड

RAMCHARITMANAS: AN INTRODUCTION Ramayana, considered part of Hindu Smriti, was written originally in Sanskrit by Sage Valmiki (3000 BC). Contained in 24,000 verses, this epic narrates Lord Ram of Ayodhya and his ayan (journey of life). Over a passage of time, Ramayana did not remain confined to just being a grand epic, it became a powerful symbol of India's social and cultural fabric. For centuries, its characters represented ideal role models - Ram as an ideal man, ideal husband, ideal son and a responsible ruler; Sita as an ideal wife, ideal daughter and Laxman as an ideal brother. Even today, the characters of Ramayana including Ravana (the enemy of the story) are fundamental to the grandeur cultural consciousness of India. Long after Valmiki wrote Ramayana, Goswami Tulsidas (born 16th century) wrote Ramcharitamanas in his native language. With the passage of time, Tulsi's Ramcharitmanas, also known as Tulsi-krita Ramayana, became better known among Hindus in upper India than perhaps the Bible among the rustic population in England. As with the Bible and Shakespeare, Tulsi Ramayana’s phrases have passed into the common speech. Not only are his sayings proverbial: his doctrine actually forms the most powerful religious influence in present-day Hinduism; and, though he founded no school and was never known as a Guru or master, he is everywhere accepted as an authoritative guide in religion and conduct of life. Tulsi’s Ramayana is a novel presentation of the great theme of Valmiki, but is in no sense a mere translation of the Sanskrit epic. It consists of seven books or chapters namely Bal Kand, Ayodhya Kand, Aranya Kand, Kiskindha Kand, Sundar Kand, Lanka Kand and Uttar Kand containing tales of King Dasaratha's court, the birth and boyhood of Rama and his brethren, his marriage with Sita - daughter of Janaka, his voluntary exile, the result of Kaikeyi's guile and Dasaratha's rash vow, the dwelling together of Rama and Sita in the great central Indian forest, her abduction by Ravana, the expedition to Lanka and the overthrow of the ravisher, and the life at Ayodhya after the return of the reunited pair. Ramcharitmanas is written in pure Avadhi or Eastern Hindi, in stanzas called chaupais, broken by 'dohas' or couplets, with an occasional sortha and chhand. Here, you will find the text of Bal Kand, 1st chapter of Ramcharitmanas.









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रामचिरतमानस

- 3-

बालकांड

ौीगणेशाय नमः

ौीरामचिरतमानस ूथम सोपान बालकाण्ड ोक वणानामथसंघानां म गलानां

रसानां च

क ारौ

भवानीश करौ या यां

िवना

वन्दे

वन्दे

वन्दे



गु ं

वबोऽिप

सीताराम

सवऽ

पुण्यारण्य

िवशु िव ानौ

कबी र

उ व ःथितसंहारकािरणीं सवौेयःकर ं

सीतां

य स वादमृषैव

भाित

सकलं

य पाद लवमेकमेव वन्दे ऽहं

ःवान्तः

सुखाय

भाषा

॥४॥ । ॥५॥

ॄ ािददे वासुरा

र जौ

यथाहे ॅमः

रामा यमीशं

िनगमागम िनगिदतं





भवा भोधे ःततीषावतां

तमशेषकारणपरं

रामायणे



िवहािरणौ

रामव लभाम ्

िह

नानापुराण

॥२॥ ॥३॥

कपी रौ

िव म खलं



वन् ते

लेशहािरणीम ्

नतोऽहं

यन्मायावशवित

॥१॥

श कर िपणम ्

चन्िः

गुणमाम

वन्दे

वाणीिवनायकौ

िस ाःःवान्तःःथमी रम ्

िन यं

िह



ौ ािव ास िपणौ

पँय न्त

बोधमयं

यमािौतो

छन्दसामिप

स मतं

हिरम ्

॥६॥ य

विचदन्यतोऽिप



तुलसी

रघुनाथगाथा

िनबन्धमितम जुलमातनोित

॥७॥

सोरठा जो

सुिमरत

िसिध

करउ

अनुमह

मूक

होइ

जासु

कृ पाँ

होइ

सोइ

बुि

बाचाल सो

गन

दयाल

रािस पंगु

चढइ

िवउ

सकल

किल

करउ

सो

कुंद

इं द ु

सम

दे ह

उमा

रमन

दन

पर

नेह

करउ

कृ पा

गु

पद

बंदउ

उर

कंज

धाम

अ न सदा

कृ पा

गुन िगिरबर

सरो ह मम

त न

किरबर

सुभ

नील

जािह

ःयाम

नायक

मल बािरज

छ रसागर

िसंधु

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क ना मदन नर प

बदन सदन गहन दहन नयन सयन अयन

मयन हिर

। ॥१॥ । ॥२॥ । ॥३॥ । ॥४॥ ।

रामचिरतमानस

- 4-

महामोह बंदउ

गु

तम पद

अिमय

मूिरमय

सुकृित

संभु

जन

मन पद

दलन

मोह

उघरिहं

चा

मुकुर

मल

मिन



। हरनी

िबलोचन मिन

भव



मंजुल

मंगल

िकएँ

ितलक



बड़े



मािनक

गुपुत

दोष

ूगट

जहँ

िनकर

॥५॥

सरस

अनुरागा

ज गन

॥१॥

करनी

िहयँ

उर

आवइ

दख ु

भव



ूसूती

बस

ििृ

जो



पिरवा

मोद

िद य

भाग

िमटिहं



गुन

सुिमरत



के

सुबास

सकल

जोती



कर

समन ।

सूकासू

रिब

सु िच

िबभूती

गन

सो

चिरत

बचन

परागा

िबमल

तम

राम

जासु

तन नख

िबमल

सूझिहं

पदम ु

चूरन

मंजु

ौीगुर

पुंज

बालकांड

॥२॥

होती



॥३॥

जासू रजनी

जेिह

के



खािनक

॥४॥

दोहरा जथा

सुअंजन

कौतुक गु

पद

तेिहं

किर

सुजन

समाज

जो

मृद ु

िबमल

ूथम

साधु

दे खत

रज

बंदउँ

चिरत

सिह

दख ु

मंगलमय

राम

भि

हिर बटु

अकथ

कथा

सुलभ

अिमअ

िबलोचन



बरनउँ

राम

अलौिकक

मोह

खानी

दरावा ु

सुरसिर

सब





करउँ

िबसद

जो

जग



सरसइ

बेनी



। धरमा

सब

तीरथराऊ

दे सा ।

िबभंजन

चिरत

भव

मोचन



फल

जस

बरनी

मंगल समाज

सादर

पावा

ूचारा

रिबनंदिन

मुद

जासू

तीरथराजू

िबचार

फल

हरना सुबानी

जंगम

कथा

सेवत

सब

सूेम

तीरथराज

। दे इ

दोष

जग

सकल







करम

सुनत

॥१॥

गुनमय

जेिहं



िनधान

संसय

िनरस



सुजान

ूनाम

बंदनीय

हरनी

िनज

िदन



धारा

मल

जिनत



समाजू

अचल

भूिर

नयन

िबराजित

िबःवास

भूतल ।

कपासू

किल

िस

अंजन

गुन

संत

साधक

बन

चरना

परिछि

िनषेधमय

सबिहं

िबबेक

चिरत

जहँ

हर

मंजुल

सकल सुभ



सैल

मह सुर

मुद िबिध

अं ज

समन ूगट

दे नी सुकरमा कलेसा ूभाऊ

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥

॥३॥ ॥

॥४॥ ॥ ॥५॥ ॥ ॥६॥ ॥७॥

दोहरा

म जन सुिन

सुिन

समुझिहं

लहिहं

चािर

फल आचरज

पे खअ करै

जन फल

मुिदत अछत

ततकाला जिन

मन

कोई

तनु ।

म जिहं साधु

काक ।

समाज

होिहं

सतसंगित

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अित

अनुराग ूयाग

िपक

बकउ

मिहमा

निहं

। ॥२॥ मराला गोई

॥ ॥१॥

रामचिरतमानस

- 5-

बालमीक

नारद

जलचर

घटजोनी



िनज

नभचर

नाना



जे

जड़

चेतन

जीव

भलाई



जब

जेिहं

जतन

जहाँ



आन

उपाऊ

िबनु

सुलभ



थलचर

मित

क रित

गित

सो

जानब

सतसंग

िबनु

सतसंग

सतसंगत सठ

मुद

िबिध िबिध सो

बस मो

मंगल

मूला

कुसंगत

किह

किब

जात

िनज



होई

लोकहँु





सतसंगित

हर

सन

ूभाऊ न

सुजन

हिर

भूित

िबबेक

सुधरिहं

बालकांड

राम

सोइ

पाई परह ं न



कैस

बेद कृ पा

फल

िसिध

पारस

। फिन

कोिबद

मुखिन

बानी ।

सम

जेिहं

गुन

॥२॥ पाई

॥ ॥३॥

सोई



फूला

॥४॥

सुहाई



अनुसरह ं ॥५॥

मिहमा

मिन



जहाना

कुधात

साधु

बिनक

होनी

साधन

िनज

कहत

साक

िनज

सब

परस

मिन ।

कह

गुन

सकुचानी

गन

जैस

कोइ





॥६॥

दोहरा बंदउँ

संत

अंजिल

गत

संत

बंिद

पर

िहत

हिर

हर

जे

पर

तेज

िहत

जिम

जगत

किर

गन

हािन

दोष

सुमन

सुिन

जन्ह

राकेस

राहु

जािन

राम

चरन

लखिहं

सहसाखी

रोष

मिहषेसा

जे

केर ।

। पर

पर

िहत



अघ

सम

िहत

सबह

अकाजु

लिग

तनु

पिरहरह ं



जिम

बंदउँ

खल

जस

सरोषा



सहस

पुिन

ूनवउँ

बहिर ु

सब

बचन

बळ

सेष

पृथुराज सम

समाना िबनवउँ

जेिह

सदा



। तेह

िपआरा

जन्ह

िहम

धन

बदन

संतत सहस

मन

बरनइ

सुनइ

दस

दोष

॥ ॥२॥ ॥

॥३॥

गरह ं

दोषा



॥४॥

काना



जेह

॥५॥

िनहारा

॥६॥

िहत

पर

से

दिल

सहस

॥१॥

नीके

पर

सुरानीक नयन

बसेर

धनेसा

सोवत कृ षी



माखी

धनी

सम

बाएँ

सहसबाहु

के

उपल



॥३(ख)॥

िबषाद

भट

कुंभकरन

सनेहु

दािहनेहु

हरष

घृत



॥३(क)॥

दे हु

काज

अकाज

अघ



रित

िबनु

पर

दोइ

सुभाउ

अवगुन

केत

पर

के

कर

उजर



निहं

सुगंध

िहत



से

अनिहत

सम

कृ पा

सितभाएँ

लाभ

जस

िचत

िचत

खल

कृ सानु

उदय

सुभ

सरल

बालिबनय बहिर ु

समान

दोहरा उदासीन जािन म

अपनी

बायस

अिर पािन

िदिस

पिलअिहं

मीत जुग

क न्ह अित

िहत जोिर

िनहोरा अनुरागा

सुनत जन

जरिहं

िबनती



ितन्ह



होिहं

करइ

िनज िनरािमष

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खल

र ित

सूीित

ओर



कबहँु

। ॥४॥

लाउब िक

भोरा

कागा

॥ ॥१॥

रामचिरतमानस

बंदउँ

- 6-

संत

अस जन

िबछुरत

एक

ूान

उपजिहं

एक

संग

हिर

सुरा

भल

अनभल

िनज

सुधा

सुधाकर

सुरसिर

अवगुन



लेह ं

जग

सुधा

गुन

सम

चरना

साधू

दखूद ु



उभय

िमलत



जलज

जक

असाधू



जनक

एक

करतूती

साधू सब



कोई

बीच

एक

माह ं

िनज

जानत

बालकांड

दख ु

जग सुजस

गरल

अनल

किलमल

जेिह

दे ह ं

गुन

िबलगाह ं

जलिध

लहत

जो

बरना

दा न

जिम





कछु

भाव

॥२॥ ॥

अगाधू

अपलोक

॥३॥

िबभूती

सिर

नीक





याधू

॥४॥

तेिह

सोई

॥५॥

नीचु



दोहरा भलो

भलाइिह

पै

सुधा

सरािहअ

अमरताँ

खल

अघ

तेिह



अगुन कछु

साधू

गुन सब

कहिहं

बेद

इितहास

सुख

पाप

गाहा

पुराना

दे व

ऊँच



नीचू



माया



जीव

कासी

मग

सुरसिर

बमनासा

सरग

नरक

अनुराग

िबरागा

जगद सा



गुन

दोष

असाधु

ल छ

अल छ मारव

िनगमागम



पिहचाने

बेद

॥१॥

िबलगाए

अवगुन

सुजीवनु



अवगाहा

िबनु

गुन

साधु

॥५॥

उदिध



अिमअ ।



अपार

ूपंचु



मीचु

याग

गिन

िबिध

राती

दानव

उभय

संमह ।



िदन

िनचाइिह सरािहअ





उपजाए

पुन्य

लहइ गरल

बखाने

िबिध

पोच

दख ु

गुन

दोष

भलेउ

लहइ



साना

सुजाित

॥२॥

कुजाती

माहु



मीचू

रं क

॥३॥

अवनीसा



मिहदे व

गवासा

॥४॥

दोष

िबभागा

॥५॥

गुन

दोहरा जड़

अस काल सो

चेतन

संत

हं स

गुन

िबबेक

जब

दे इ

सुभाउ सुधािर

खलउ

करिहं

लख

सुबेष

िकएहँु

कुबेष

हािन

कुसंग

गगन

चढ़इ

असाधु

गहिहं

जिम

भल

पाइ

जग

होइ

सुसंगित

लाहू

पवन

सुक



ूसंगा सार ं

पिरहिर

बािर

तज

दिल ।

। ।

दख ु

। ।



बेष

लोकहँु

क चिहं

सुिमरिहं

मनु

चुकइ

जसु

मिलन

सुभाउ

ूताप

पू जअिहं

जग बेद

िमलइ

जामवंत

राम

नीच

दे िहं



तेऊ

जल

गिन

॥ ॥२॥ ॥

राहू

॥३॥

काहू

॥४॥

गार

॥५॥

हनुमानू

सब

॥१॥

दे ह ं

अभंगू

रावन

िबिदत

राता

भलाई

िबमल

जिम

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॥६॥

गुनिहं

बस

कालनेिम



िबकार

दोष



जिम

करतार

दोष

ूकृ ित

िमटइ

जेऊ

सनमानू

क न्ह

भलेउ ।

िनबाहू

िबःव

तब



सुसंगू

साधु

सदन



लेह ं

बंचक



रज

पय

बिरआई

हिरजन

अंत

दोषमय

िबधाता

करम

उधरिहं

साधु

गुन

संगा

॥ ॥

रामचिरतमानस

- 7-

धूम

कुसंगित

सोइ

जल

कािरख

अनल

होई

अिनल



बालकांड

िल खअ

संघाता



पुरान

होइ

मंजु

जलद

मिस

जग

सोई

जीवन



दाता

॥६॥

दोहरा मह

भेषज

जल

होिह

कुबःतु

सुबःतु

सम

ूकास

तम

पोषक

समु झ

जड़

चेतन

जग

जीव

बंदउँ

सब

दे व

दनुज

आकर

िकंनर लाख

राममय

सब

कृ पाकर

िनज

बुिध

बल

चहउँ

सूझ



एकउ

मित

अित

नीच

छिमहिहं बालक

हँ िसहिह िनज जे

रघुपित

मोिर

कह

तोतिर

किवत पर

जग

बहु

स जन

केिह

नर

जाित ।



सब

नाह ं ।

आछ

। ।



नीका



सरस



ते

बर

हरषाह सम

सम



भाई कोई

। ।

जे

जोिर छािड़

मन

मन

होउ

दे ख



लाई

॥४॥



माता



अित

फ का



जग

बढ़िहं

िबधु

॥३॥

छाछ

बहत ु

बािढ़

पूर



भूषनधार

अथवा



राऊ

दषन ू

पु ष िनज

िपतु

॥२॥

अवगाहा

मनोरथ

बालबचन



पाह

चिरत जुरइ

॥१॥

छोहू

सब

जग



पानी

छल

करउँ

रं क

पर

बासी

जुग

मोिर

मुिदत

जे



नभ

अिमअ

सुनिहं

गंधब

थल

करहु

सुिनहिहं

॥७(ग)॥

जल

मित

चिहअ



॥७(घ)॥

मित

मन

जािन

॥७(ख)॥

सब

िबनय



सिर

िसंधु

लघु



अब

ूनाम

तात

क न्ह

पािन

िपतर

िमिल





जुग

जीव

करउँ

द न्ह

राममय

करहु

बाता

लाग

सर



कुिबचार

सुनत

सकृ त

कृ पा

िढठाई

कुिटल

भिनित

ूेत

गाहा

िच

स जन कूर

खग

उपाऊ

ऊँिच

सकल



॥७(क)॥

िबिध

अपजस

नाग

जानी

गुन

जस जोिर

मोिह

अंग

जग

सुजोग

लोग

भेद

सदा

मोहू

भरोस

नाम

कमल

चौरासी जग

दहँु ु

कुजोग

सुल छन

जत

रजिनचर

िकंकर

करन

जौ

नर

चािर

जािन

पद

पाइ

लखिहं

पाख

सोषक

के

पट

जग

सिस

बंदउँ

सीय

पवन

॥५॥

नाह ं जल

बाढ़इ

॥६॥

पाई

जोई



॥७॥

दोहरा भाग पैहिहं खल

पिरहास

हं सिह

बक

किबत

रिसक

भाषा

भिनित

छोट

अिभलाषु

सुख

सुिन

होइ दादरु न

सुजन

िहत चातकह

राम

भोिर

बड़

पद

मित

करउँ

एक

सब

खल

करहिहं

उपहास



काक

कहिहं

कलकंठ

मोरा । नेहू

मोर

हँ सिहं ।



मिलन ितन्ह

हँ िसबे

खल

कहँ

जोग

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िबःवास

िबमल

सुखद

हँ स

हास

निहं

। ॥८॥ कठोरा

बतकह रस

खोर

॥ ॥१॥

एहू



॥२॥

रामचिरतमानस

- 8-

ूभु

पद

हिर

हर

ूीित पद

राम

भगित

किब





रित

भेद

किबत



ितन्हिह

न कुतरक ।

ितन्ह

कथा

कहँु

सुिन

मधुर

कथा



निहं

बचन

ूबीनू



सकल

कला



छं द

ूबंध

अनेक

गुन

िबिबध

रस

भेद

िबबेक

नाना

अपारा

एक

निहं



किबत

मोर



सुजन

दोष

स य

कहउँ

फक

रघुवर

जानी

अलंकृित

सुिनहिहं

लागिह

जयँ

अरथ

भाव

मित

नीक

भूिषत

होउँ

आखर

सामु झ

बालकांड

सरािह

सब



॥३॥

सुबानी

िब ा

िल ख

॥ ॥

ह नू

॥४॥

िबधाना



ूकारा

॥५॥

कोरे

॥६॥

कागद

दोहरा भिनित

एिह

मोिर

सो

िबचािर

महँ

रघुपित

मंगल

भवन

भिनित

िबिचऽ

िबधुबदनी

सब

सब

रिहत

गुन

सादर

कहिहं

जदिप

किबत

सोइ

भरोस

धूमउ

तजइ

भिनित

भदे स

सब

गुन

सुिनहिहं नाम

रिहत

सुमित उदारा

िबःव जन्ह



हार



उमा

सुकिब

कृ त

जोऊ



भाँित

सँवार



सोन

कृ त



अित

अमंगल

कुकिब

बानी

नाम





बुध

ताह



मधुकर

रस

एकउ

नाह



राम

मन

आवा

सहज बःतु



केिहं

क आई भिल



बरनी

जस

ूताप

ौुित न

बर

संत ूकट

सुगंध

॥ ॥३॥

माह ं पावा बसाई

मंगल

॥ ॥२॥

जानी

एिह

ूसंग

॥१॥

सोऊ

गुनमाह

बड पनु

जग



नार

अंिकत

सुसंग

कथा

सारा पुरार

सोह

नाम



राम

िबनु

सिरस

। ॥९॥

जपत

िबना

अग



पुरान

बसन

राम

एक

िबवेक

जेिह

सिहत राम

गुन

िबमल

पावन

सुनिहं मोर

िबिदत

करनी

॥ ॥४॥ ॥ ॥५॥

छं द मंगल

करिन

किल

मल

किबता

सिरत

हरिन

गित

कूर



ूभु

सुजस

संगित

भिनित

भिल

भव

अंग

भूित

मसान



तुलसी य

कथा

सिरत

रघुनाथ

पावन सुजन

होइिह सुिमरत

पाथ मन

सुहाविन









भावनी



पावनी

दोहरा िूय

लािगिह

दा

िबचा

ःयाम िगरा

सुरिभ मा य

अित िक पय िसय

सबिह करइ

कोउ

िबसद राम

मम

बंिदअ

अित

जस

भिनित

मलय

गुनद

गाविहं

राम

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ूसंग

करिहं

सुनिहं

जस सब

सुजान

संग



॥१०(क)॥ पान



॥१०(ख)॥



रामचिरतमानस

- 9-

मिन

मािनक

मुकुता

छिब

जैसी

नृप

िकर ट

त नी

तनु

पाई



लहिहं

बुध

कहह ं



उपजिहं

तैसेिहं

सुकिब

भगित

हे तु

किबत िबिध



बालकांड

िबहाई

भवन

राम

चिरत

सर

िबनु

अन्हवाएँ

किब

कोिबद

अस

हृदयँ

िबचार

हृदय

िसंधु

मित

सीप

क न्ह ज

ूाकृ त

जन

बरषइ

गुन

बर

अिह



गाविहं िसर

समाना

बािर

सो

। ।

िबचा

गज



तैसी

अिधकाई

अनत

अनत

छिब

सारद

ौम

जाइ

हिर

जस

धुिन

होिहं

सोह

सोभा

आवित कोिट

किल

मल

लहह ं

॥ ॥२॥

उपाएँ

॥ ॥३॥

कहिहं

सुजाना

॥४॥

मुकुतामिन

चा

॥५॥

लगत

सारदा किबत

॥१॥

धाई





हार

िगरा

ःवाित



िसर

सकल

सुिमरत

। ।

गाना

िगिर

पिछताना



दोहरा

जे

जुगुित

बेिध

पिहरिहं

स जन

िबमल

उर

किलकाल

कराला



जनमे

पुिन

चलत

कुपंथ

बेद

बंचक

भगत

कहाइ

ितन्ह ज

ताते

महँ

ूथम

अपने

अित

िबिबिध पर

किरहिहं



होउँ

कहँ

रघुपित

किब जेिहं

अिमत



असंका



अपारा

मे

राम



ते

अिधक





मित

कहँ

उड़ाह ं ूभुताई

कोउ

मोिह

कहावउँ । ।

महँु

कहहु

करत

कोह

धंधक

ते

तूल

कथा

मित

राम केिह

गावउँ

संसारा

लेखे

अित

खोर रं का

गुन

िनरत

मन

लहऊँ

दे इिह

जड़

मोिर

के

सयाने

सुिन

॥ ॥१॥

धोर

निहं

जािनहिहं

कथा

भाँड़

काम

पार

अनु प

मित

मराला

मल

धरम वज

थोरे



किल

कथा

॥११॥

बेष

कंचन

धींग



अनुराग

कलेवर

बाढ़इ



मोर

चिरत



ताग

बायस

िकंकर

मोर

बखाने

चतुर

िगिर



िबनती

जे

के

के

बर

अित

करतब कपट

कहऊँ

अलप

रामचिरत सोभा



जग

सब

निहं

मा त

समुझत

राम

िबिध

एतेहु

छाँड़े

रे ख

अवगुन



समु झ

मग

पोिहअिहं

माह ं

कदराई

॥ ॥२॥ ॥

॥३॥

॥ ॥४॥ ॥ ॥५॥ ॥ ॥६॥

दोहरा सारद

सब

तहाँ

एक यापक

सेस

महे स

िबिध

आगम

नेित

नेित

किह

जासु

गुन

जानत

ूभु

ूभुता

सोई



बेद

अनीह

अस

कारन

अ प

िबःव प

राखा

अनामा

भगवाना





िनगम

करिहं तदिप

भजन



अज

तेिहं

धिर

िनरं तर कह

ूभाउ

िबनु

भाँित

स चदानंद दे ह

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चिरत

पुरान गान रहा

बहु पर

कृ त

। ॥१२॥



कोई

भाषा

धामा नाना



॥१॥ ॥ ॥२॥

रामचिरतमानस

- 10 -

सो

केवल

जेिह

जन

भगतन पर

गई

बहोर

बुध

बरनिहं

तेिहं

बल

मुिनन्ह

ममता

िहत

लागी

अित

छोहू

गर ब हिर म

नेवाजू

जस

अस

रघुपित

ूथम

हिर

। ।

क रित

परम

जेिहं



क ना





किर

अनुरागी

क न्ह



सािहब

पुनीत

किहहउँ

तेिहं

ूनत

सबल

करिह



गाथा

गाई

कृ पाल

सरल

जानी

गुन

बालकांड

सुफल

नाइ



कोहू

॥३॥

बानी

॥४॥

रघुराजू

िनज

राम

पद



माथा

मग

चलत

सुगम

मोिह

भाई



नृप

सेतु

करािहं



॥ ॥५॥

दोहरा अित

अपार

चिढ एिह

आिद

किब

पुंगव

कमल के ूाकृ त

भए

जे

राम तु हर

बंदउँ

बर

लघु

िबनु

दे खाई नाना

ितन्ह





ौम

जन्ह

केरे

। ।

जन्ह

किब

परम

सयाने



भाषाँ ूनवउँ

जे

ूबंध

बुध

भिनित

आग



दे हु

बरदानू



आदरह ं



भूित

भिल

निहं

सुक रित कृ पा

होइहिहं

भिनित सुलभ

साधु सो

सोई

भदे सा सोउ

मोरे

जन्ह

हिर

चिरत

सबिहं

कपट

सम

सब

िसअिन

मेरे

किबत

सहज सो

क रित

बयर न

िबसराइ

होइ

करहु

कृ पा

बाल

िबनय

किब

िबनु हिर

िरपु

िबमल जस

कोिबद

िबमल

किब

करह ं िहत

मोिह

सुिन

मित

मोिह

मित

पुिन

पुिन

चिरत

सु िच

बल

होई

करउँ

मानस

लख

मोपर

िनहोर मंजु

होहु

थोर

। ।

॥१४(ख)॥ मराल

कृ पाल



॥१४(ग)॥

सोरठा कंजु

मुिन

सखर

सुकोमल

मंजु

दोष

बंदउँ

चािरउ

बेद

भव

जन्हिह



पद

रामायन

बंदउँ

सपनेहुँ

खेद

रिहत

बरनत

बािरिध

जेिहं दषन ू

रघुबर

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िनरमयउ सिहत

बोिहत

िबसद

जसु

॥ ॥६॥

॥१४(क)॥

अित

॥४॥

पटोरे

सुजान

बखान



॥५॥

आदरिहं करिहं

॥३॥

अँदेसा

टाट

सुिन



सनमानू

सुहाविन

जो

कहउँ

रघुबर

सोइ

॥२॥

याग

दोहरा सरल



बखाने

सब

कहँ

अस

॥१॥

मामा

भिनित बाल

असमंजस ।

मनोरथ

बािद



बखाना

गुन

समाज

सुहाई

सुजस

रघुपित

सुरसिर



॥१३॥

कथा

सकल

बरने

ौम



हिर

पुरवहँु

परनामा

जािहं

रघुपित

सादर

करउँ

अहिहं

पारिह

किरहउँ

किबन्ह

ूसन्न

क रित

परम

मनिह

जे

जो

िपपीिलकउ बल

चरन

होहु

सिरत

ूकार

यास किल

जे



॥१४(घ)॥ सिरस



॥१४(ङ)॥

रामचिरतमानस

- 11 -

बंदउँ

िबिध

संत

सुधा

बालकांड

पद

रे नु

भव

सागर

सिस

धेनु

ूगटे

खल

जेिह

क न्ह

िबष

जहँ

बा नी



॥१४(च)॥

दोहरा िबबुध

िबू

होइ पुिन

ूसन्न

बंदउँ

म जन

बुध पुरवहु

सारद

पान

मह

सकल

सुरसिरता

पाप

हर



एका



ःवािम

सखा

िसय

पी

के

किल

िबलोिक

जग

िहत

हर

िगिरजा



जापू

उमेस िसवा

भिनित

मोिर

जे

एिह

अरथ

मोिह

सुिमिर

सनेह

सपनेहुँ

बंदउँ ूनवउँ

अवध

नर

िसय

िनंदक

बंदउँ

कौस या

नािर

। ।

अघ िदिस

पर

कहे उँ पाविन

दोहरा





हर भाषा

सरजू

ममता ।

लोक



क रित

जहँ

रघुपित

सिस

चा



दसरथ

राउ

सिहत

सब

रानी



सुकृत

ूनाम

करम

मन

बानी



बड़

भयउ

िबधाता



करहु

जन्हिह

िबरिच

बंदउँ िबछुरत

अवध

भुआल

द नदयाल

िूय

िबःव

मिहमा

सोरठा

स य

तनु

ूेम

पसाउ ूभाउ

ूभुिह जग

कमल मूरित

सुत

जेिह

राम

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बनाइ

खल

नसाविन थोर बसाए माची तुसा मानी

सेवक िपतु

पिरहरे उ

। ॥१५॥

कलुष

राम

इव

॥ ॥६॥

अविध

तृन

सुराती भागी

सुमंगल कृ पा

॥४॥

सुमंगल

सकल

सुखद



॥५॥

िबसोक

जासु

मूला

सचेता

किल पर

॥३॥

चाऊ

मनहँु



समु झ

भिनित

जन्ह

ूतापू

िचत

गौिर

सिर

ूगटे उ करउँ

रिहत

॥२॥

िसिरजा

मंगल

िमिल

सुिनहिहं

मल

नसाए

ूाची

समाज



तुलसीके

जन्ह

मुद

॥१॥

दानी

महे स

रामचिरत

सिस

सब



ओघ

बरनउँ

किल

िबिध

ूभाउ



अिबबेका िदन

जाल

कथा

चिरता

हर

सब

मंऽ

ूगट

किहहिहं



बहोर

िन पिध

किरिहं

िबभाती

मनोहर

एक



॥१४(छ)॥

द नबंधु

साबर

। ।

जो

अित





मोिह

पुनीत

ूनवउँ

जोिर

मोिर

सुनत

िहत

पसाऊ

अनुरागी

होउ

पुर



समेता

साचेहुँ

फुर

पुर

कृ पाँ

चरन



अनुकूला पाइ

िसव

राम

तौ

पर

िसव

कथिह

होइहिहं

भवानी

कर

मनोरथ

कहत

सेवक

आखर

कहउँ

जुगल

िपतु

सो

महे स

बंिद मंजु

गुर

अनिमल

मातु

चरन

पद

जानी माता

। ॥१६॥

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 12 -

ूनवउँ

पिरजन

जोग

भोग

ूनवउँ राम

सिहत

महँ

ूथम चरन

बंदउँ रघुपित

राखेउ

भरत पंकज

लिछमन सह सीस

सदा

सो

जासू

पद

महावीर

िबनवउँ



राम



पताका



दं ड

रह



मो

कमल

पर

नमामी

हनुमाना





तजइ

सूर

राम

जासु



॥१॥ ॥ ॥२॥

दाता

॥ ॥३॥

गुनाकर

॥४॥

भरत

टारन

अनुगामी

आप



जाका

भय

सौिमिऽ

जस

पासू

जस

भूिम

सुसील

बरना

सुख

भयउ

कृ पािसंधु





भगत

अवतरे उ

सोई

जाइ

इव

समान

सनेहू

ूगटे उ

ॄत

सुभग

जो

गूढ़

िबलोकत

मधुप

सीतल

कारन

पद

नेम

लुबुध



राम

जासु



जग

सानुकूल

जािह

जलजाता

िबमल

िरपुसूदन

चरना

मन

क रित



गोई

के

पद

सेष

िबदे हू

बालकांड

बखाना

॥ ॥

॥५॥

सोरठा ूनवउँ

पवनकुमार

जासु किपपित बंदउँ

रछ सब

रघुपित बंदउँ

सुक

ूनवउँ

हृदय

िनसाचर

के

चरन

आगार

चरन

सनकािद

जनकसुता

। ।

धिर

जे

िबनु

काम





जे

करहु

कमल

मनावउँ



जासु

बचन

कम

धर

धनु

रघुनायक सायक





भगत

पाए

असुर

क ना

कमल

॥२॥

मुनीसा

॥३॥

िनधान

बंदउँ

भंजन



पावउँ

सब सुख



चेरे

िबसारद

मित

॥ ॥१॥

समेते

के

जािन

िनरमल

िबपित

समाजा

िब यान

िूय

चरन

॥१७॥

राम

जन

कृ पाँ



जन्ह

नर

मुिनबर

कृ पा

अितसय

मन

राम

सुर



पुिन

कस

सर र

जानक

पद

जे

अंगदािद

जनिन

जुग

धर

मृग

नारद

सीसा

चाप

खग ।

मुिन

यानधन

सर

अधम



केरे

पावक

जग

ताके

रा जवनयन

राम

जेते

सब

धरिन

बसिहं

सुहाए

भगत

सबिहं

बन

राजा

उपासक

सरोज

पद

खल

लायक दायक



॥ ॥४॥ ॥ ॥५॥

दोहरा िगरा

अरथ

जल

बीिच

बदउँ

सीता

राम

पद

बंदउँ

नाम

राम

रघुवर

िबिध

हिर

महामंऽ मिहमा

हरमय

जोइ

जासु

बेद

जपत

जान

सम

जन्हिह

को

ूान



सो

। ।

िभन्न

परम

हे तु ।

महे सू

गनराउ

किहअत

अगुन ूथम

िूय

कृ सानु

कासीं

अनूपम

पू जअत

िभन्न

खन्न

भानु

मुकुित

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गुन



॥१८॥

िहमकर िनधान

हे तु

नाम

को सो

उपदे सू

ूभाऊ

॥ ॥१॥ ॥

॥२॥

रामचिरतमानस

- 13 -

जान

आिदकिब

नाम

सहस

नाम

सुिन

हरषे

हे तु

नाम

ूभाउ

सम हे िर

हर

ूतापू िसव ह

जान



िसव

भयउ

बानी

को

बालकांड





जिप

िकय

नीको

सु जेई

उलटा

िपय

भूषन

कालकूट



किर

संग

ितय

फलु

जापू भवानी

भूषन

द न्ह



ती

॥३॥

को

अमी

को

सुदास



॥ ॥४॥

दोहरा बरषा

िरतु

राम

आखर कहत

सुनत बरन सुितय

ःवाद

तोष

सुखद

सब

काहू



सुिठ



सुॅाता



जग

करन

िबभूषन

कंज

सुधा

। ।

से

लाहु

जीव



जीह

जोऊ िनबाहू

तुलसी

सहज

जन

िबमल

िबधु

सम

॥ ॥१॥

के

सँघाती

िबसेिष

हे तु सेष

जय िूय

सम

िहत

॥१९॥

परलोक

सम

पालक

कमठ

मास

जन

लखन

जग

के

मधुकर

िबलोचन

राम



सुगित

मंजु



भादव

लोक

िबलगाती

सिरस कल

नीके

सािल

सावन

बरन

सम

मन

जुग



ूीित

नारायन

बरन

तुलसी

दोऊ

सुिमरत

भगित जन

बर

भगित

मनोहर

सुलभ

बरनत नर

नाम

मधुर

सुिमरत

रघुपित

धर

॥२॥

ऽाता



पूषन

बसुधा

॥३॥ के

जसोमित

हिर

हलधर

से

बरनिन

पर

जोउ







॥४॥

दोहरा एकु

छऽु

तुलसी

समुझत

प बड़

छोट

दे खअिहं प



िबसेष

सुिमिरअ अगुन

सगुन



कहत

अपराधू

नाम

िबनु

गित

िबच

नाम

ूीित

प ।

दे ख ।

अनुगामी

सुसामु झ

साधी

समु झहिहं

यान

निहं

नाम

गत

आवत



ूभु

भेद

समुझत

सुसाखी

परसपर

॥२०॥

गुन

करतल ।

दोउ

अनािद

सुिन



कहानी

अकथ

िबराजत

अकथ



जान

िबनु





आधीना



बरन

नामी

उपाधी

नाम प

के

ईस

नाम

नाम

नाम

नाम

दइु

सब

मुकुटमिन

रघुबर

सिरस

नाम को

एकु



सुखद

उभय

िबह ना

परिहं

हृदयँ

पिहचान

सनेह न

ूबोधक

साधू

िबसेष

परित चतुर

बखानी दभाषी ु

दोहरा राम

तुलसी

नाम

भीतर

मिनद प

बाहे रहँु





जीह

चाहिस

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दे हर

उ जआर

ार



॥२१॥

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 14 -

नाम

जीहँ

जिप

ॄ सुखिह

जागिहं

अनुभविहं

चहिहं

साधक

नाम

जपिहं

जपिहं

नामु

जन

चहू

चहँु

गूढ़

भगत

जुग

गित

जग

चतुर

कहँु

चहँु





अकथ

अनूपा

जाना

राम

जोगी जेऊ लाएँ

आरत

भार

चािर

ौुित

ना

अनामय जीहँ

होिहं

िस



िमटिहं



अधारा

किल

नाम

िबयोगी



जिप

िबसेिष



पाएँ

होिहं

॥२॥

सुखार

अनघ

िबसेिष

निहं

॥१॥

तेऊ

अिनमािदक

ूभुिह



पा

जानिहं

चािरउ

यानी



ूपंच

कुसंकट

सुकृती



ूभाऊ

िबरं िच

नाम ।

ूकारा

नाम

िबरित



लय

बालकांड



उदारा

॥३॥

उपाऊ

॥४॥

िपआरा

आन



दोहरा सकल

कामना

नाम अगुन

सुूेम

सगुन

मोर

मत

ूोिढ़

सुजन

एकु

दा गत

उभय

अगम

यापकु

जिन

अस

ूभु

नाम

िन पन



जानिहं

दे खअ

अछत

नाम

। ।



कहे उँ

सत

अिबकार

सकल

सोउ

जुग

िनज िच

बड़

धन

बूत

मन

॥१॥ क



राम

जग

मोल



रासी

दन

रतन

॥ ॥२॥

िबबेकू

आनँद

जिम



अनूपा



जीव

ूगटत

॥२२॥

बस

ूीित

नामु

चेतन





ूतीित



अनािद

िनज

सम



मीन

अगाध

कहउँ



लीन

मन

जुग

पावक

नाम

जतन

जेिहं



रस

िकए अकथ

िकए

अिबनासी

हृदयँ





एकू

सुगम





जन

भगित

ितन्हहँु

स पा

दहु ू

जुग

राम

हद



नामु

एकु

जे

िपयूष

दइु

बड़

हन

॥ ॥३॥

दखार ु





॥४॥

दोहरा िनरगुन



कहउँ राम

भगत

नामु

नर

सूेम

राम

एक

तापस

िरिष

िहत

राम

दोष

भंजेउ

राम

दं डक

बनु

िनिसचर

जपत

दख ु

िनकर

तनु



धार

तार

सुकेतुसुता



दरासा ु



क न्ह

सुहावन



दले

रघुनंदन



भव

चापू

नाम

िनज ।



अनयासा

दास

बड़

राम

ितय

आपु

ूभु

भाँित

बड़

िहत

नामु

सिहत

एिह

ूभाउ

िबचार

सिह

अनुसार

संकट

िकए

भगत

होिहं

मुद



नाम

कोिट

खल



सिहत

सेन

दलइ ।

नामु

भव

जन

नामु

मन

भय

सुत जिम

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किल



॥२३॥

साधु मंगल

सुखार

क न्ह

नाम

॥१॥

सुधार



िबबाक िनिस

नाम

िकए

कलुष



बासा

कुमित रिब

भंजन

अिमत

सकल

अपार

॥२॥

नासा

ूतापू

पावन

िनकंदन

॥ ॥३॥





॥४॥

रामचिरतमानस

- 15 -

बालकांड

दोहरा सबर

गीध

नाम

सुसेवकिन

उधारे

अिमत

राम

सुकंठ

िबभीषन

नाम

गर ब

अनेक

राम

भालु

किप

नामु

लेत

राम

सकुल

रन

राजा

रामु

अवध

सुिमरत

िफरत

सनेहँ

खल

दोऊ

कटकु



सूीती सुख

गुन

बेद

सेतु

बर ौमु

सुजन

सिहत

िनज सुर

िबनु

ौम

ूबल



नाम

सबु न

मन

थोरा माह ं

पुर

पगु

मुिन

ूसाद

कोऊ िबराजे

क न्ह

िबचा गुन

अपन

॥२४॥

िबिरद

गावत



गाथ

जान

हे तु

सीय



रघुनाथ

सरन

करहु

। ।

रजधानी

मगन



मारा

िबिदत

लोक

बटोरा

रावनु

द न्ह

राखे



सुखाह ं

नामु

बेद



नेवाजे

भविसंधु

सेवक

सुगित

बर

मोह सोच

धारा बानी

दलु निहं

जीती सपन

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा ॄ

राम



रामचिरत

नामु

सत

कोिट

बड़

बर

महँ

दायक

िलय

महे स

बर जयँ



दािन जािन

॥२५॥

मासपारायण, पहला िवौाम नाम

ूसाद

संभु

अिबनासी

सुक

सनकािद

िस

मुिन

नारद

जानेउ

नाम

नामु

जपत

ूभु

ीुवँ

सगलािन

सुिमिर अपतु कह

कहाँ

चहँु बेद

यानु किल

जुग

तीिन

पुरान ूथम केवल

बड़ाई

भयो

काल

संत जुग मल

मत

ितहँु

मूल

मुकुत

हिर

सकिहं

नाम

दोहरा

किल



लोका





सकल

मखिबिध मलीना

दज ू ।

अचल

भए

भाँग

एहू

हर

हिर

बस



भए ।

पाप

नाम

सुकृत ापर पयोिनिध

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भोगी

िूय

भे

फल जन

॥३॥

ठाऊँ

ूभाऊ

गुन

गाई

िनवासु

॥ ॥ ॥४॥

। ॥२६॥

जीव राम

पिरतोषत



रामू

नाम

जिप

॥१॥ ॥२॥

राखे

तुलसीदासु

आपू



ूहलाद ू

अनूपम

किर

क यान

तुलसी

रासी

ॄ सुख

िसरोमिन

पायउ

रामु

कलपत

हिर

मंगल

अपने ।



ूसाद

भगत ।



नाम

नाम



नामू

अमंगल

िूय

नाऊँ

गिनकाऊ

सुिमरत



ूसाद ू

को

साजु

जग

गजु

राम

जो

हिर

पावन

लिग

नामु



क न्ह

पवनसुत अजािमलु

जोगी

ूतापू

जपेउ



ूभु जन

िबसोका



सनेहू

॥१॥

मीना

॥२॥

पूज



रामचिरतमानस

नाम राम निहं

- 16 -

कामत नाम

काल किल

किल

कालनेिम

कराला

अिभमत

करम किल



दाता



भगित

कपट

िनधानू

बालकांड

सुिमरत

समन

सकल

िहत

परलोक

लोक



िबबेकू ।



राम

नाम

जग िपतु

नाम

सुमित

जाला माता

अवलंबन

समरथ

॥ ॥३॥

एकू

हनुमानू

॥ ॥४॥

दोहरा राम

भायँ

राम लोकहँु

नरकेसर

जापक

जन

कुभायँ

अनख

सुिमिर मोिर

नाम

सो

नाम

सुधािरिह

ूहलाद

राम

सुःवािम

जिम

आलसहँू गुन

सब

सो कुसेवकु

कनककिसपु

पािलिह



नाम

गाथा



भाँती

मोसो





दिल

करउँ जासु

िनज

मंगल नाइ

दै ख

र तीं



िबनय

सुनत

गनी

गर ब

मामनर

नागर



पंिडत

मूढ़

सुकिब

कुकिब

िनज

साधु

सुजान

सुसील

सुिन

सनमानिहं

यह

ूाकृ त

र झत

नृपाला



सुबानी



सबिह मिहपाल

राम

सनेह

अनुहार

। ईस

जान



को

जग

माथा

अघाती

दयािनिध

पोसो

पिहचानत सब

भव

परम

नित

नार

॥ ॥ ॥ ॥४॥

पिहचानी

कोसलराऊ

मिलनमित

॥१॥

॥३॥

कृ पाला

गित

िसरोमिन मंद

ूीती

नर



॥२॥

उजागर

मलीन

भगित



दसहँू

कृ पाँ

सराहत

अंस

भिनित

सुभाऊ

िनसोत

नृपिह

िदिस

निहं

सुसािहब

॥२७॥

रघुनाथिह

कृ पा

िदिस



सुरसाल

जपत

बेद

मित

किलकाल

॥ ॥५॥

मोत

॥६॥

दोहरा सठ

सेवक

उपल

िकए

हौहु

समु झ

बिड़

मोिर

सहम अवलोिक

कहत

नसाइ

रहित



जेिहं

अघ

ते

िच

जलजान

जेिहं

सिचव

सुिचत होइ

बधेउ

भरतिह

अपडर

िचत

चूक

याध िबभीषन भटत



अपन



चाह

नीक जिम





िकए

सहत



अघ

सुिध

राम

भालु

करत

सपनेहुँ

सुकंठ सो

राजसभाँ

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॥२८(ख)॥ नाक

सकोर

क न्ह

निहं

सपन

मित

ःवािम

जन सय

सोइ न



उपहास

जािन सुरित



॥२८(क)॥

नरकहँु

मोिर

राम

िफिर



कृ पालु

तुलसीदास

भगित ।

बाली।

सनमाने

राम

र झत



केर

किप

सुिन सो

राम

सुमित

सेवक

खोर

चख

िहयँ

र खहिहं

कहत सो

िढठाई

मोिह

ूभु

करतूित

सबु

सीतानाथ

सुिन

सोइ

ूीित

कहावत

सािहब अित



जी

बार क न्ह

राम रघुबीर

सराह क

िहए

बखाने

॥१॥ ॥ ॥२॥



कुचाली िहयँ



हे र

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 17 -

बालकांड

दोहरा ूभु



तर

तुलसी

किप

कहँू

राम



डार

पर

राम

िनका

से

िकए

सािहब

रावर

है

सबह

साँची

है

सदा

तौ

नीको

एिह

िबिध

िनज

गुन

दोष

किह

सबिह

जागबिलक किहहउँ

िबसद

जो सोइ

कथा

संबाद

जसु

सुिन

सुहाई

बखानी



क न्ह

यह

चिरत

सुहावा



सोइ

िसव

कागभुसुंिडिह

द न्हा



तेिह

सन

जागबिलक

ते

ौोता

बकता

जानिहं

तीिन जे

पावा



समसीला िनज

काल

हिरभगत



सुजाना







मानी

॥१॥

सुनावा



चीन्हा ूित

जानिहं

सुनिहं

सुनाई

उमिह

भर ाज

गत



॥२९(ग)॥

अिधकार

पुिन

करतल

कहिहं

नाइ

सुखु

किर

सवँदरसी

याना

िस

स जन

भगत

ितन्ह

॥२९(ख)॥

नसाइ

कृ पा

राम



मुिनबरिह

सकल

बहिर ु

नीक

बहिर ु

कलुष



॥२९(क)॥

तुलसीक

भर ाज

सुनहँु

संभु

पुिन

किल



समान

को

यह

रघुबर

आपु

सीलिनधान

ज बरनउँ

औरउ

ते

॥२॥

गावा



हिरलीला

आमलक

समुझिहं

॥३॥

समाना

िबिध



नाना

॥४॥

दोहरा मै

पुिन

समुझी

निह

ौोता

बकता

िकिम तदिप

िनज

संदेह

बुध

िबौाम

रामकथा रामकथा सोइ

बसुधातल

असुर

सेन

संत

समाज

जम

गन

रामिह

सम

िूय

ॅम

सुधा

पाविन



। । । ।

िनकंिदिन

रमा

सी

जग

जमुना

तुलसी

सी



कथा

सुजन





किहहउँ

िबबेक

भय

सी

जीवन



तुलिसदास

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अनुसारा

िहयँ

हिर

के

॥१॥ ूेर

सिरता

तरनी

किल

कलुष

िबभंजिन

कहँु

ॅम कुल

भर

अचल

मुकुित

िहत

िहयँ

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

िगिरनंिदिन छमा

हे तु

॥२॥

सुहाई

भुअंिगिन

िहत



अरनी

मूिर

भेक



होई

भव

िबबुध भार

॥३०(ख)

जेिहं

सजीविन

िबःव



मित

पावक

भंजिन

साधु

िबमूढ़

ूबोध

रामकथा

पुिन

गूढ़

कछु

मन



गाई

मिसत



॥३०(क)॥

कै

पर

तस

सूकरखेत

अचेत

राम मल

करउँ

रं जिन

तरं िगिन

नरक मिस

मेर

सो

रहे उँ

समु झ मोर

भरनी

कामद

किल



हरनी

जन

पंनग

पयोिध

मुहँ

बल

अित

कथा

कथा



सोई

सकल

किल

तब

जड़

बारा

िबबेक

मोह

किल

जीव



बुिध

सुनी

बालपन

बारिहं

करिब

सन

यानिनिध मै

गुर

कछु

गुर

तिस

समुझ

कह

भाषाब जस

िनज

जनु

हलसी ु

सी



॥५॥

कासी

सी



॥६॥

रामचिरतमानस

- 18 -

िसवूय

मेकल

सदगुन

सुरगन

सैल अंब

सुता

सी



अिदित

सी



बालकांड

सकल

िसि

रघुबर

सुख

भगित

संपित

ूेम

रासी

परिमित



सी

॥७॥

दोहरा

राम जग

राम

कथा

तुलसी

सुभग

सनेह

िचंतामिन

चा

चिरत मंगल

गुन

माम

सदगुर

यान

जनिन

जनक

िसय

समन

पाप

संताप

सिचव

सुभट

काम

कोह

अितिथ

िसय

। के

जोग राम

िचऽकूट

बन

राम

िबराग

ूेम

सोक

के

रघुबीर ितय

दािन

मुकुित

धन

िबबुध



बीज



भव

सकल

ॄत

पालक

सुभग

कुंभज

लोभ

उदिध

किलमल

किरगन

के



केहिर

सावक

जन दािरद

मोह

िूयतम

पुरािर

के



कामद

घन

िबषय

याल

के



मेटत

किठन

से



सेवक

सािल

तम

िदनकर

दािन

दे वत

कर बर

से

सुकिब

सरद

नभ

मन

उडगन

सकल

सुकृत

फल

भूिर

भोग

सेवक

मन

मानस



सेवत

से



से

मराल

से

सुलभ

रामभगत



जग



पावक

जन

िहत

गंग

के के

भाल

॥४॥ ॥ ॥५॥

से हर

से

धन

साधु



के

जलधर

जीवन

िन पिध

॥३॥

बन

हिर



के

दवािर

सुखद

॥२॥

के

अपार

पाल



के

लोक

कुअंक

॥१॥

के

नेम

मन



के

रोग

परलोक



हरन

धाम

धरम

के

महामिन

िसंगा

भीम

िबचार

मंऽ

॥३१॥

धरम

बैद

िूय



िबहा

सुमित



के

चा

संत ।

के

िचत

भूपित

पू य

अिभमत

मंदािकनी



से

॥६॥

लोग

से

तंरग

माल

से

दं भ

पाषंड





॥७॥

दोहरा कुपथ

कुतरक

दहन

राम

गुन

रामचिरत

ूःन

कुमुद जेिह

भाँित

सब

हे तु

कहब

जेिह

यह

कथा

सुनी

कथा

अलौिकक

नाना कलपभेद किरअ

कै

सुनिहं िमित

भाँित न

संसय

अस

िचत

नाह ं

जेिह



। । ।

आनी

िबसेिष





अवतारा उर



अनल

िबिध

लाहु

काहु



कहा

बखानी

॥३२(ख)॥

संकर

कथाूबंध जिन

॥३२(क)॥

सब बड़

िबिचऽ

आचरजु

कर

आचरजु

करिहं

अस

अिस

ूतीित

ितन्ह

के

भाँित

सुिनअ

सत अनेक कथा

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मन

॥१॥

सोई

जानी

कोिट रित



॥२



माह ं



अपारा

मुनीसन्ह

सारद



बनाई सुिन

निहं

रामायन ।

ूचंड

सुखद

िहत

होई

यानी

सुहाए

इं धन

गाई

निहं

कपट

सिरस



जग

हिरचिरत

जिम

भवानी

जे

राम

किल

कर

चकोर

सो

रामकथा

माम

राकेस

स जन क न्ह

कुचािल

गाए

मानी

॥३॥ ॥

॥४॥

रामचिरतमानस

- 19 -

बालकांड

दोहरा राम

अनंत

अनंत

सुिन

आचरजु



गुन

अिमत

मािनहिहं

जन्ह

एिह िबिध सब संसय किर दरू

कथा



िबःतार

िबमल

िबचार

। ॥३३॥

। िसर धिर गुर पद पंकज धूर



पुिन सबह िबनवउँ कर जोर । करत कथा जेिहं लाग न खोर ॥१॥ सादर

िसविह

संबत

सोरह

सै

नौमी

भौम

बार

जेिह

िदन

नाइ

राम

असुर

नाग

जन्म

महो सव

अब

माथा

एकतीसा



मधु

मासा

जनम

खग

ौुित

नर

बरनउँ

करउँ

कथा

। ।



पद

सकल

गाथा सीसा

चिरत

तहाँ

ूकासा

चिल

करिहं

राम

गुन धिर

यह

आइ

करिहं

राम

हिर

तीरथ

दे वा

सुजाना

िबसद

अवधपुर ं



गाविहं

मुिन

रचिहं



आविहं

रघुनायक

कल

क रित

सेवा गाना

॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा म जिह जपिहं दरस नद

परस

स जन धिर

राम म जन

पुनीत

बृंद

अिमत

यान



धामदा

पुर

चािर

खािन

जग

जीव

सब

िबिध

पुर

मनोहर

कथा

मन

किर

िवषय

दोष

रिच

महे स

िनज

तात

रामचिरतमानस

कहउँ

कथा

सोइ

जस

मानस

अब

सोइ

मानस बर सुखद

जेिह कहउँ

पाप

कह

सकइ

सारद

किह





सुनत

ौवन सुखी



किल ।

धरे उ

सुहाई



भयउ सब

जौ

निह

नाम

िहयँ सुनहु

जग

सुिमिर

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संसारा

मंगल

खानी

मद

दं भा िबौामा

एिहं

सर

परई

सुहावन

कुिल

सुसमउ

दोहरा

पाविन

पाइअ

पाइ सादर

पुराना

िबमलमित

काम

संभु

कुचािल

॥३४॥

अित

तनु

नसािहं



बेद

िसि ूद

िबरचेउ



ूसंग

तजे

सुनत होइ

सर र

िबिदत

सकल



राखा

िबिध

समःत



जरई

दावन



अवध



भावन

दािरद

हरइ



बन

मुिन



जानी

नामा

नीर

ःयाम

लोक

अरं भा

अनल

दख ु



सरजू

सुंदर



अपारा

क न्ह

एिह

रामचिरतमानस िऽिबध

सुहाविन

कर

रामचिरतमानस

अित

पावन

उर

पाना

मिहमा

राम

िबमल

बहु

पावन

कलुष िसवा

नसावन सन

भाषा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥ ॥ ॥५॥ ॥

हे िर

हरिष

हर

॥६॥

सुजन

मन

लाई

॥७॥

ूचार

जेिह

उमा

बृषकेतु

हे तु



॥३५॥

रामचिरतमानस

- 20 -

संभु

ूसाद

करइ

मनोहर

सुमित

भूिम

बरषिहं

राम

लीला ूेम सो

िहयँ

मित

अनुहार

थल सुजस

कहिहं

भगित

जो

बरिन

मिह

भरे उ

सो

सुमानस

अगाधू

जल

सुथल

बेद ।



होई ।

पावन

िथराना

राम

सुखद

सीत

घन

साधू

मंगलकार

मधुरता

ौवन

तुलसी सुधार

करइ

भगत

सिकिल



उदिध

ःव छता सोइ



लेहु

मनोहर

मधुर ।

किब

सुिन

पुरान

सोइ

जाई

िहत

सुिचत



बार न

रामचिरतमानस

सुजन

बखानी

सािल

गत





बर

जो

सुकृत

हलसी ु

हृदय

सगुन जल

मेधा

सुमित

बालकांड

मल

॥१॥ ॥ ॥२॥

हानी

सुसीतलताई

जन



जीवन

सोई

॥ ॥३॥ ॥

मग

चलेउ

सुहावन

॥४॥

िच

चा

िचराना

॥५॥

दोहरा सुिठ

सुंदर

तेइ स

एिह

ूबन्ध

रघुपित राम पुरइिन छं द

सघन अनूप

सुकृत

पुंज

धुिन

अवरे ब रस

सुकृती भगित औरउ

मंजुल

तप नाम

चहँु

िन पन कथा

फूल

अनेक



गुन

जाती



चार

जोग

िबरागा

गुन

गाना

अवँराई

। ।



ूसंगा



ते

िब यान

जलचर

सोहा

सुबासा

िबचार

यान

सब

सुहाई

मकरं द

मनोहर

कहब

मनोरम

कुल

िबराग

मीन

अगाधा

सीप

कमल

माना

मराला

ौ ा

िरतु

बसंत

सम

गाई

दम

लता

िबताना

हिर

तेइ

सुक

पत

रित िपक

रस

॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥

॥५॥

चा िबहग





तड़ागा

िबचार

जल

दया

॥१॥

॥४॥

िबिचऽ

छमा



बहभाँ ु ती

ते



याना

मन

िबलास

मिन

यान

॥३६॥

बािर

बीिच

पराग



चािर

बर

बहरंु ग

ते



िबधाना फल

सोइ मंजु

सोइ

िबचािर

िनरखत

उपमा

सोइ ।

िबिबध

िनयम

। माला

िदिस

नयन

जुगुित

अिल

कामािदक

मनोहर





सुभासा

किबत

घाट

बरनब

सुधासम

दोहा

बुि

यान ।

चौपाई

सुमाव

साधु

जम

सिलल

िबरचे

सर



अबाधा

सुंदर

जप

संतसभा

सोपाना

चा

धरम

अरथ

बर

सुभग

अगुन

जस

अरथ

सम

सुभग

सोरठा

नव

पावन

मिहमा सीय

संबाद

बेद

बहबरन ु

समाना



॥ ॥६॥ ॥

बखाना

॥७॥

िबहं गा

॥८॥

दोहरा पुलक माली जे

सदा

गाविहं

सुनिहं

बािटका सुमन यह

सादर

बाग सनेह

चिरत

नर

बन जल

सँभारे नार

सुख सींचत





तेइ

तेइ

सुिबहं ग लोचन एिह

सुरबर

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िबहा चा

ताल

मानस

। ॥३७॥

चतुर

रखवारे

अिधकार



॥१॥

रामचिरतमानस

अित

- 21 -

खल

जे

संबुक

भेक

तेिह

कारन

िबषई सेवार

एिहं

सर

किठन

कुसंग कारज

बन

बहु

कागा



समाना



इहाँ

आवत

आवत गृह

बग िहयँ

अित

कुपंथ नाना

िबषम

एिहं

हारे ।

ितन्ह

जंजाला



ते

मद

िबषय

राम



माना

िनकट

कृ पा

आइ

बचन

नाना

सैल

॥३॥

याला



िबसाला

॥४॥

नाना

॥५॥

भयंकर

कुतक



जाई

हिर



॥२॥

िबचारे



बाघ

दगम ु

नद ं

अभागा

बलाक

िबनु

अित

जािहं रस

काक

के





कथा

कामी

कराला

मोह

सर

न ।

किठनाई

बालकांड

दोहरा जे

ौ ा

ितन्ह ज





बहोिर

सकल सोइ जो भयउ

कोई

सरजू

नाम

सर

म जनु

सर

तजिहं एिहं

आनंद

किबता

सुमानस

गएहँु ।





काऊ

सर

चाह

उछाहू

सिरता

मूला नंिदिन

पाव

होई

॥१॥

किर

तािह

बुझावा

घोर

िबलोकिहं

ऽयताप

के

राम



भइ

किब



चरन

करउ बुि

ूेम

राम

िबमल

जस

लोक

बेद

मत

तृन



॥ ॥३॥

भाऊ

लाई

िबमल

॥ ॥५॥

भिरता

मंजुल



॥४॥

अवगाह ूबाहू

जल

॥२॥

जेह

भल

ूमोद



जरई

मन

मूल



अभागा अिभमाना

सतसंग

किलमल

जुड़ाई

सुकृपाँ

उमगेउ

॥३८॥

समेत

िनंदा

जन्ह



आवइ

सो



रघुनाथ

नींद







िफिर

महा



सो

िूय

साथ

म जन

राम



भाई





। ।

कर

जातिहं

सर

तेह करई

चख



पाना

आवा

संतन्ह

जन्हिह



निहं

सुमंगल

पुनीत

लागा

म जन

मानस

हृदयँ

सुभग

उर पूछन

चह

मानस

चली नद

पुिन

यापिह

यह

नहाइ

अस

जाइ

कोउ

सादर नर

अित

सर

िब न

निह

अगम

िबषम

जाइ

रिहत

मानस



जाड़

किर

ते

कहँु

किर

जड़ता

संबल

सो



कूला

॥६॥

िनकंिदिन

॥७॥

दोहरा ौोता

िऽिबध

संतसभा रामभगित सानुज जुग

अनुपम

राम

समर

िबच

भगित

ताप

मानस

मूल

िबच

जाई जसु

ऽासक

कथा

। धारा

सुरसिरह

िबभागा

नगर

। ।



राम सुनत जनु

सोन

सिहत

स प सुजन

सिर

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मन

तीर

तीर

सुहाई सुहावन

सुिबरित िसंधु



॥३९॥

सरजु

महानद ु

सोहित

कूल

मूल

सुक रित

िमलेउ



दहँु ु

सुमंगल

िमली ।

ितमुहानी

िबिचऽ

माम सकल

पावन

दे वधुिन

िमली

पुर

अवध

सुरसिरतिह

िऽिबध िबच

समाज

िबचारा

समुहानी पावन

बन

किरह

बागा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥

॥३॥

रामचिरतमानस

उमा

- 22 -

महे स

रघुबर

िबबाह

जनम

बराती

अनंद



बालकांड

ते

बधाई

जलचर



भवँर

अगिनत तरं ग

बहभाँ ु ती

मनोहरताई

॥ ॥४॥

दोहरा बालचिरत नृप

चहु

रानी

सीय

ःवयंबर

नद

नाव

सुिन

अनुकथन

घोर

धार

कथा

पटु

अनेका

परःपर

होई

िबबाह

कहत

सुनत

हरषिहं

काई



परब



पर

बर

सुखद

मन

जोग

जासु

जनु

सोई बानी

सब

मुिदत

फल

छाई

सिर

राम

सुकृती

॥४०॥

सिबबेका

सोह

उमग



छिब

उतर

सुब

ते ।

सो

समाज

सुभ

साजा

केर

केकई

घाट सो

बािरिबहं ग

कुसल

पिथक



बहरंु ग

सुहाविन

केवट



पुलकाह ं

मंगल

सिरत ।

उछाहू

िबपुल

मधुकर



िरसानी

िहत

कुमित



ूःन

राम

बनज

सुकृत

सुहाई

भृगुनाथ

ितलक

के

पिरजन

सानुज राम

बंधु

काहू

नहाह ं

जुरे

समाजा

िबपित

घनेर

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा समन

अिमत

किल क रित िहम

अघ

सिरत िहमसैलसुता

खल

िरतु

िसव

राम

िबबाह

मीषम

दसह ु

राम

राम

घोर

राज

सुख

सती

िसरोमिन

भरत

सुभाउ

कथन र

याहू

समाजू



बनगवनू



रार

िबनय

बड़ाई

ते

सुखद

सो

मुद

पंथकथा





काग

॥४१॥

पाविन

भूर

जनम

मंगलमय खर

॥१॥

पवनू

॥२॥

सुमंगलकार

सोइ

सरद

गुन

अमल

एकरस

बरिन

सुहाई

अनूपम न



उछाहू

िरतुराजू

आतप

सािल

सुखद

सोइ

सदा

बग

ूभु

सुरकुल िबसद

जपजाग

सुहाविन

िसिसर





जलमल

समय



गुनगाथा

सुसीतलताई

भरतचिरत





िनसाचर िसय

सब

अवगुन

छहँू

बरनब बरषा

उतपात

पाथा जाई

॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा अवलोकिन भायप आरित

िबनय

अदभुत

सिलल

बोलिन

भिल द नता सुनत

चहु

िमलिन बंधु

मोर गुनकार

क ।

ूीित जल लघुता



आस

परसपर माधुर लिलत िपआस

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हास सुबास

सुबािर मनोमल

। ॥४२॥



थोर हार

॥ ॥१॥

रामचिरतमानस

राम भव

- 23 -

सुूेमिह ौम

पोषत

सोषक

काम

कोह

सादर

म जन

पानी



हरत

तोषक

तोषा

मोह

नसावन

मद पान

िकए

जन्ह

एिह

बािर



तृिषत

िनर ख

रिब

कर



मानस

सकल

समन ।



भव

बालकांड

दिरत ु

िबमल



िमटिहं

धोए



बार



किल दख ु

िबबेक

पाप ते

गलानौ

दािरद

दोषा

िबराग

पिरताप

कायर

िफिरहिह

कलुष

जिम

॥२॥

बढ़ावन

िहए





किलकाल

मृग



॥३॥

िबगोए

जीव



दखार ु

॥४॥

दोहरा मित सुिमिर

दे व

भवानी

संकरिह

मन कथा

सुहाइ

िहयँ

धिर

पाइ

कहउँ

जुगल

मुिनबज

कर

िमलन

सुभग



ितन्हिह

राम

मुिन

बसिहं दम

दया

िकंनर

म जिहं

जब

मुिन ूात

। ।

पावन

िरषय

समेत

सादर



परम

समाजा

उछाहा

र य





परम

कहिहं

बटु

जे

सब

॥१॥

कोई

हरषिहं मन

हिर

॥ ॥

िऽबेनीं

म जन

परसपर

अनुरागा सुजाना

सकल

मुिनबर

जािहं

॥४३(ख)॥

आव

अखय



अित

पथ

म जिहं

परिस

॥४३(क)॥

संबाद

तीरथपितिहं



ूसाद

पद

परमारथ



ौेनी

जलजाता

अित



होई

नर

पद

आौम होइ

िनधाना

रिब

माधव

भर ाज

ूयागा

अन्हवाइ

किब

पंक ह

दनुज

तहाँ

कह

गिन

पद

मकरगत

पूजिह

गुन

रघुपित

सम

माघ

सुबािर

अब

भर ाज तापस

अनुहािर

॥२॥

गाता



भावन

॥३॥

तीरथराजा

गुन

गाहा

॥ ॥४॥

दोहरा ॄ

िन पम

कहिहं एिह

ूकार

ूित

संबत

एक

बार

जगबािलक

नाथ कहत

पूजा एक सो

माघ

भिर अित

िबिध

भगवंत

कै

नहाह ं

होइ

अनंदा

भिर

मकर

नहाए

मुिन

परम

िबबेक

चरन

सादर किर

भगित

धरम

सरोज मुिन

सुजस

संसउ मोिह

लागत

बखानी

बड़ भय

त व

संजुत



पखारे

बरनिहं

पुिन । । ।

यान

सब

म ज

सब

मुनीस



लाजा



जौ

राखे

अित

करगत न

कहउँ

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िसधाए टे क

आसन

पुनीत बड़

जाह ं

मुिनबृंदा

पद

बेदत व

दोहरा

आौम

आौमन्ह

पुनीत

बोले

मोर

िनज



॥४४॥

गवनिहं

भर दाज अित



िबराग

िनज

मकर ।

िबभाग

मृद ु

बैठारे बानी

सबु

होइ

तोर

अकाजा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥

॥४॥

रामचिरतमानस

- 24 -

संत

कहिह

होइ



अस

िबचािर

रास

नाम

अिस

िबमल

जपत

संभु

आकर

चािर

जीव

सोिप

राम

रामु

कवन

एक

राम

नािर

िबरहँ

िनज

जग

अवधेस



कुमारा

हरहु

संत

ितन्ह

अपारा



किर

रोषु

किर

रासी

॥१॥ ॥ ॥२॥

मोह

॥३॥

दाया

िबिदत

रन



लहह ं

कृ पािनिध

चिरत

छोहू

गावा

पद

करत

बुझाइ

भयहु

पर गुन

परम

उपदे सु कर

जन

यान

मरत



॥४५॥

उपिनषद

भगवान

िसव

गाव

दराव ु

पुरान

किहअ



मुिन

िकएँ

नाथ

कासीं



पुरान

सन

िसव



तोह

लहे उ





मुिनराया

पूछउँ

दखु ु



अहह ं

ौुित गुर

ूभावा

अिबनासी

मिहमा ूभु

उर

मोहू

अिमत

संतत

ूभु

िबबेक

ूगटउँ कर

नीित

बालकांड

संसारा

रावनु

मारा



॥ ॥४॥

दोहरा ूभु

सोइ

राम

स यधाम जैसे

िमटै

चाहहु

सुनै

तात

सुनहु

महामोहु

रामकथा ऐसेइ

भार

मुसुकाई

तु ह

मन

राम

सादर

मनु

मिहषेसु

सिस

क न्ह

कहहु

बानी

सो



लाई





कथा

राम

रामकथा

समाना



संत

भवानी



महादे व

नाथ

िबःतार ूभुताई

तु हार

ूःन

मनहँु



करिहं

तब

मूढ़ा

कथा

कािलका

चकोर

जानी

अित

कै



॥४६॥

रघुपित

चतुराई कहउँ

िऽपुरािर

िबचािर

िबिदत

क न्हहु



जपत

िबबेकु

तु हिह

िबसाला

िकरन

संसय



गूढ़ा

जािह

कहहु ।

बम

गुन

कोउ

तु ह

ॅम

बोले

राममगत

अपर

सब य

मोर

जागबिलक

िक

सुहाई

कराला जेिह

कहा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥



॥३॥ पाना

बखानी

॥ ॥४॥

दोहरा कहउँ

सो

मित

भयउ

समय

जेिह

हे तु

एक

बार

ऽेता

जुग

माह ं



संभु

गए

कुंभज

संग

सती

जगजनिन

भवानी



पूजे

िरिष

अ खलेःवर

रामकथा िरिष

मुनीबज पूछ

कहत

सुनत

मुिन

सन

बखानी

हिरभगित

रघुपित िबदा

अनुहािर

गुन

मािग

अब

जेिह



सुहाई

गाथा

िऽपुरार

सुनु

उमा मुिन

सुनी ।

। ।

िमिटिह

महे स कह

संभु

संभु

कछु

िदन

चले

भवन

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संबाद िबषाद

परम

अिधकार

तहाँ

सँग

॥४७॥

िरिष सुखु



पाह ं जानी मानी

॥ ॥१॥ ॥

पाई

॥२॥

द छकुमार

॥३॥

रहे

िगिरनाथा



रामचिरतमानस

- 25 -

तेिह

अवसर

िपता

बचन

भंजन तज

बालकांड

मिहभारा



हिर

उदासी



दं डक

राजु

रघुबंस

लीन्ह

अवतारा

बन

िबचरत

अिबनासी

िबिध

दरसनु

होइ

॥ ॥४॥

दोहरा अदयँ

िबचारत

गु



जात

हर

अवतरे उ

केिह

ूभु

गएँ

जान

सबु

कोइ



॥४८(क)॥

सोरठा संकर

उर

तुलसी रावन ज एिह लीन्ह किर मृग

दरसन

मरन निहं

अित

मनुज जाउँ

िबिध

कर

रहइ

मन





। ।

िबिध

करत

ईसा



संगा



भयउ

हर

बैदेह



ूभु

सिहत

हिर

आए



िबरह

िबकल

नर

इव

कबहँू

जोग

िबयोग

जानिहं

बचनु

तेिह ूभाउ



खोजत

जाक



दे खा



॥४८(ख)॥

क न्ह न

चह

साचा

बनत

बनावा

समय

जाइ

दससीसा

सोइ

कपट

कुरं गा

तुरत

तस

िबिदत

दे ख

आौमु

सोइ

लालची

िबचा

रघुराई



मरमु

लोचन

ूभु

पिछतावा

सोचबस

मूढ़ बन्धु

सती

जाचा

मार चिह

छलु बिध

लोभु

भए

नीच

छोभु

नयन

िबिपन ूगट



तेह

जल

िफरत

छाए

दोउ

िबरह

दख ु

परम

सुजान

भाई

ताक

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा अित जे

िविचऽ मितमंद

रघुपित

समय

तेिह

भिर

लोचन

छिबिसंधु

जय

स चदानंद

चले

जात

िसव

सती

सतीं

सो

दसा

संभु

संक

जगतबं

ितन्ह भए

रामिह

छिब

हृदयँ

दे खा



धरिहं

उपजा



कुसमय

पावन



अस

समेता कै

जगद सा नह तासु

जानिहं

िनहार

जग

नृपसुतिह मगन

बस

िबमोह

संभु

चिरत







सुर

नर

परनामा िबलोक

किह पुिन उर मुिन

अजहँु

आन

अित

ूीित

॥४९॥

हरपु

क न्ह

चलेउ पुलकत

िचन्हार नसावन

कृ पािनकेता संदेहु

सब

िबसेषी

नावत

स चदानंद उर

िबसेषा

मनोज

उपजा

किह





िहयँ जािनन

पुिन

दे खी

कछु



रहित

सीसा परधमा



रोक

दोहरा ॄ सो

जो िक

यापक दे ह

धिर

िबरज होइ

अज नर

जािह

अकल न

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अनीह जानत

अभेद वेद



॥५०॥

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 26 -

िबंनु

जो

खोजइ

सुर

सो

संभुिगरा अस

िहत

िक

अ य

पुिन

संसय

ज िप

नरतनु

मृषा मन

ूगट

इव न

भयउ



धार



नार

सोउ





िसव

अपारा



होई

भवानी

सुनिह

सती

तव

सुभाऊ

जासु

कथा

कुभंज

िरिष

सोउ

मम

इ दे व

रघुबीरा

गाई





भगित सेवत

सबु

ूबोध

अंतरजामी

अस



कोई

ूचारा

सब

धिरअ

जासु



जािह

िऽपुरार असुरार

जान

हृदयँ

हर

संसय

जथा

ौीपित

सब य न





सब य

यानधाम

होई

कहे उ नािर

बालकांड

जानी

उर

काऊ

मुिनिह

सदा

सुनाई

मुिन

धीरा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

छं द मुिन

धीर

किह

नेित

सोइ

जोगी

संतत

िनगम

रामु

अवतरे उ

िस पुरान

यापक अपने

िबमल

मन

आगम



भुवन

भगत

िहत

जेिह

जासु

यावह ं

क रित

िनकाय

पित

िनजतंऽ

िनत

गावह ं

माया

धनी

रघुकुलमिन

। ॥ । ॥

सोरठा



तब

लाग



बोले

िबहिस

तु हर

बैठ

लिग

उर

मन

उपदे सु

जदिप

महे सु

अहउँ

हिरमाया

अित

संदेहू

बटछािहं



जैस

जाइ

मोह

ॅम

चलीं

सती

िसव

आयसु

इहाँ

संभु

अस

मन

अनुमाना

कह



संसय

जाह ं

सोइ

जो

राम

मोरे हु

होइिह अस

किह

लगे

भार पाई

बलु

जािन

लिग

करे हु



िकन

। ।



ऐहहु

जतनु कहँु

िबपर त

को

गई

किर

सती

मोिह

िबबेक

क याना

भलाई

नाह ं

बढ़ावै

ूभु

सीता

कर

पाह भाई

निहं

जहँ

लेहू

िबचार

का

तक



॥५१॥

पर छा

कर

द छसुता

बहु

जयँ

िबचा

िबधी

राखा

बार

जाइ

तु ह

सो

करिहं



हिरनामा

िसवँ

तौ

जब



रिच

जपन



कहे उ

साखा

सुखधामा



॥१॥

॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा

लिछमन किह

सती सुिमरत

पुिन

पुिन

हृदयँ

िवचा

आग

होइ

चिल

पंथ



दख

सकत

कपटु

जािह

उमाकृ त

कछु

जानेउ िमटइ

किर तेिह

धिर जेिहं

बेषा

चिकत

सुरःवामी



अित

गंभीरा

अ याना





आवत भए

ूभु

ॅम

ूभाउ

सबदरसी सोइ

सरब य

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नरभूप हृदयँ

जानत सब रामु





॥५२॥ िबसेषा



मितधीरा

॥१॥

अंतरजामी



भगवाना

॥२॥

रामचिरतमानस

- 27 -

चह

तहँ हुँ

सती

क न्ह

िनज

माया

बलु

हृदयँ

बखानी



बोले

िबहिस

जोिर

पािन

ूभु

क न्ह

ूनामू



िपता

समेत

कहे उ

बहोिर

कहाँ

दराऊ ु

बालकांड

बृषकेतू



दे खहु

िबिपन



नािर

सुभाव

रामु लीन्ह

ूभाऊ

मृद ु

बानी हे तू

िनज

अकेिल

िफरहु

केिह

उपजा

अित

संकोचु

नामू

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा राम

बचन

सती

म जाइ

सभीत

संकर

कर

उत



हृदयँ

िनज उर

दखु ु

पावा



िनज

कौतुकु

िचतवा

बंदत



चलीं



दख

िसव

माना

पिहं

काहा

सतीं

दे खे

सुिन

दे हउँ

सतीं

िचतविहं

गूढ़

अब

राम

जहँ

महे स

कहा

जाना िफिर

मृद ु

मग

पाछ

ूभु

तहँ िबिध

चरन

जाता



दे खा

उपजा

दाहा

कछु

ूगिट

जनावा

रामु

सिहत

बंधु

सेविहं

िस

िबंनु

अनेका



अिमत

ूभाउ



िबिबध

ौी

ॅाता

सुंदर

िसय



सेवा

आना

दा न

आसीना

ूभु

पर

अित

ूभाउ

सिहत

॥५३॥

राम

ूभु

करत

सोचु

अ यानु

आग ।

बड़



मुनीस

बेष

ूबीना

एक

दे खे

वेषा



एका

सब

दे वा

अनूप



॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा सती

िबधाऽी

जेिहं

दे खे

जेिहं

जहँ

बेष

तहँ

चराचर

जो

पूजिहं

ूभुिह

दे व

रघुपित

सोइ

रघुबर

हृदय

कंप

बहिर ु पुिन

तन

बहु

सुिध राम

सुर

कछु उघार पद

तेिह

सि न्ह

तन

सकल

राम

सीता

अनु प

सिहत

दे खे ।



अिमत

तेिह



बेषा

लिछमनु

दे खीं



संसारा

नयन

नाइ

जेते

बहते ु रे

सोइ

िबलोकेउ पुिन

अजािद

रघुपित

जीव अवलोके

इं िदरा



सिहत

॥५४॥

सकल

सुर

अनेक

ूकारा

दसर ू

निहं



बेष

तेते दे खा

घनेरे



दे ख

सती

अित

भई

सभीता

नाह ं



नयन

मूिद

बैठ ं

मग

माह ं

सीसा

कछु ।

चलीं



दख तहाँ

तहँ जहँ

द छकुमार

रहे

िगर सा

दोहरा गई

लीन्ह

समीप

पर छा

महे स

कवन

तब

िबिध

हँ िस

कहहु

स य

पूछ

मासपारायण, दसरा िवौाम ू

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सब

कुसलात बात

॥१॥ ॥ ॥२॥

सीता ।





॥५५॥

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 28 -

सतीं

समु झ

कछु



पर छा

जो

तु ह

कहा

तब

संकर

दे खेउ

धिर

याना

राममायिह

िस

नावा



ूेिर

बलवाना



हृदयँ

बहिर ु हिर

इ छा

सतीं ज

रघुबीर

ली न्ह सो

सीता

भय

गोसाई न

कर

सती

करउँ



मृषा

भावी

क न्ह

अब

ूभाऊ

बालकांड

। ।



ूीती

जो

ूतीित

क न्ह सितिह

िमटइ

भगित

दराऊ ु

सब

जेिहं

झूँठ

भयउ

नाई

अित

चिरत

िबचारत

उर

क न्ह

तु हािरिह

मन

िसव



सन

ूनामु

मोर

सतीं



िसव

क न्ह

होई

बेषा

सन

बस

संभु

जाना कहावा

सुजाना

िबषाद

पथु

सोई

िबसेषा

होइ

अनीती

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥



॥४॥

दोहरा परम

पुनीत

ूगिट



तब

संकर

एिहं

तन

ूभु

िबचािर

चलत

गगन

अस

पन

कहत

महे सु

नभिगरा

जदिप

सतीं

कछु

ूेम

हृदयँ सुिमरत

भेट

मोिह

नाह ं



िसव

संक पु

चले

भवन

मितधीरा

िगरा

सुहाई

िबनु

करइ

पूछा

जय

कृ पाला

भाँती





। पूछा

क न्ह

तदिप

अस मन

रघुबीरा

भिल

भगित

रामभगत

समरथ समेत



ूभु

कहे उ

िऽपुर

आवा माह ं

सुिमरत

स यधाम



॥५६॥

हृदयँ

िसविह



पापु

संतापु

रामु

महे स

आना

सोचा

कहहु

बहु

। को

उर

पन



बड़

अिधक



सती

कवन

िकएँ

नावा

भै

तु ह

तज

िस

संक

सुिन

क न्ह

जाइ

पद

सितिह

अस



ढ़ाई भगवाना

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥

सकोचा

॥३॥

आराती

॥४॥

द नदयाला



दोहरा सतीं

हृदयँ

क न्ह

कपटु

सोचु

समुझत

कृ पािसंधु

िसव

संकर



िनज

अघ

पंथ

संभु

सहज



कछु

जािन िबिबध

समु झ

स प





िचंता

जाई





इितहासा

पन

आपन

स हारा



मोिह तपइ

कह ं ।



सब य

जड़

अ य

अिमत न

ूभु

बृषकेतू

जानेउ

सहज

ूगट



किह

सबु

नािर

करनी

भवानी

बरनत संकर

िनज

सन

अवलोिक समु झ

िकय

संभु

अगाधा

ससोच

पुिन



परम

सितिह तहँ

अनुमान

हृदय

जाइ

कहे उ

मोर

तजेउ

हृदयँ

अवाँ

इव

उर

कथा

सुंदर

िबःवनाथ

पहँु चे

बैठे

लािग

बट

समािध

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तर

किर

अखंड



॥५७॥ निह

बरनी

अपराधा अकुलानी अिधकाई सुख

हे तू

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥

कैलासा

॥३॥

अपारा

॥४॥

कमलासन



रामचिरतमानस

- 29 -

बालकांड

दोहरा

िनत म

सती

बसिह

मरमु



नव जो फलु

अब

िबिध

किह



जौ

ूभु

तौ





मोरे

तब

जान

कछु

जुग

भारा



कोऊ

सोचु

क न्ह

सो

कैलास

सतीं

उर

रघुपित

अपमाना

मोिह

िबधाताँ

द न्हा

अस

बू झअ

निह

जाई

कछु

हृदय

द नदयालु

अिधक

। ।

सम

पुिनपित

बचनु



सनेहू



जआविस

मन

महँु

रामािह

हरन

बम

बेिग

सोइ

क न्हा मोह सयानी

जसु

गावा

दे ह

बचन

यह

स य

पारा जाना

सुिमर

बेद

छूटउ

मन

किर

मृषा

िबमुख



चरन

सागर

संकर

जोर

िसव

दख ु



॥५८॥

रहा

आरती

कर

िसरािहं

उिचत



करउँ

मािहं

कछु

कहावा

िबनय

िदवस जैहउँ



गलानी

मन

कब

जो

तोह

सोचु

मोर

ॄतु

एहू

बेिग

उपाइ



िबहाइ

॥५९(क)॥

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा तौ

सबदरसी

होइ

मरनु

सुिनअ

जेह

ूभु

िबनिहं

करउ

ौम

सो

दसह ु

िबपि

सोरठा जलु

पय

सिरस

िबलग

होइ

एिह

िबिध

बीत

संबत

द ु खत

राम

नाम

िसव

जाइ

संभु

पद

लगे

कहन

दे खा

िबिध

बड़

अिधकार

निहं

कोउ

िबकाइ

रसु

जाइ

कपट

ूजेसकुमार

सहस

सुिमरन बंदनु

िबचािर द छ



जनमा



जानेउ द छ द छिह

पावा



अित ।

भार

दखु ु

अिबनासी

जगतपित

संकर

आसनु भए

क न्ह पाइ

जागे द न्हा

तेिह

ूजापित

अिभमानु



॥५९(ख)॥

संभु

सतीं

ूभुता

भिल

दा न

ूजेस



माह ं

पुिन

समािध

सनमुख



र ित

परत

लायक जग

िक

अकथनीय



रसाला जब

खटाई

तजी

लागे

क न्ह

सब

ूीित



सतासी

हिरकथा

अस

दे खहु

हृदयँ जािह

काला नायक

तब मद

आवा नाह ं

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा द छ

िलए

नेवते

सादर

िकंनर

नाग

िबंनु

िबरं िच

मुिन

बोिल

सकल

सब

सुर

करन

जे

िस

गंधबा



बधुन्ह

महे सु

िबहाई



चले

लगे

पावत

मख

समेत सकल

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बड़ भाग चले

सुर

जाग



॥६०॥ सुर

जान

सबा बनाई

॥ ॥१॥

रामचिरतमानस

- 30 -

सतीं सुर

िबलोके सुंदर

िबमाना



करिहं

कल

गाना

तब

िसवँ

कहे उ

बखानी

महे सु

मोिह

आयसु

पूछेउ ज

योम

पित

पिर याग

बोली

सती

हृदय

दखु ु

मनोहर

जात

। ।

िपता ।



सुंदर

ौवन

कुछ

भार

बानी

चले

सुनत ।

दे ह ं

बालकांड

छूटिहं

ज य

िदन

भय

िनज

संकोच

ूेम

याना

कछु

रह



नाना

मुिन

सुिन

जाइ

कहइ

िबिध

हरषानी

िमस

एह ं

अपराध

िबचार

रस

सानी

॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा िपता

कहे हु

द छ

उ सव

मै

नीक

मोरे हुँ

मन

सन

दखु ु

सकल हम

िबनु

जाउँ

िनज

बोल

िमऽ

तदिप

िबरोध

मान

भाँित

अनेक

संभु

कह

ूभु

ूभु

जाहु

भावा

सुता

जाहु

जदिप

परम

ूभु

सादर



यह

बोलाई



माना

तेिह



रहइ



गुर

गेहा



जाइअ

जहँ

कोई

समुझावा िबनिहं



भावी

बोलाएँ



अजहँु

बस निहं

नेवत

अपमाना

करिहं न

बोलेहुँ



सँदेहा



यानु बात

कानी न

क यानु

भिल

पठावा

िबसराई

सनेहु

िबनु

गएँ

। ॥६१॥

तु हउ

सीलु

तहाँ



निहं

बयर त

होइ

सोइ

अनुिचत हमर



आयसु

दे खन

भवानी

िपतु

जो



कृ पायतन

तौ

ॄ सभाँ ज

भवन

होई

उर

आवा

हमारे

भाएँ

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा किह

दे खा

हर

िदए

मु य

गन

संग

गई

िपता

भवन

जब

सादर

भलेिहं

िमली

द छ



सतीं

जाइ

तब

िचत

पािछल

कछु

दखु ु

ज िप

जग

समु झ

सो



भवानी



द छ

ऽास

माता



भिगनीं

जागा

। ।

संकर

कहे ऊ

हृदयँ

अस

यापा

सितिह

दख ु

भयउ

न क न्ह

जो

दा न

रहइ िबदा

कुसलाता

तब

चढ़े उ

बहु

तब

एक

पूछ

दे खेउ

जतन

नाना अित

िमलीं

सितिह कतहँु



दख

ूभु

अपमानु



जस

यह

सब

बोधा।बहु

िऽपुरािर काहँु

त िबिध

सनमानी मुसुकाता

जरे

संभु

सब कर

समु झ

भयउ

महा

किठन जननीं



॥६२॥



बहत ु

िबलोिक





द छकुमािर

गाता भागा

उर

दहे ऊ

पिरतापा

जाित

अवमाना

क न्ह

ूबोधा

दोहरा िसव सकल

अपमानु



सभिह

हिठ

जाइ हटिक

सिह

हृदयँ



तब

बोलीं

बचन

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होइ

ूबोध

सबोध



॥६३॥

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

सुनहु

- 31 -

सभासद

सो

फलु

संत

तुरत

संभु

कािटअ

अस

जो

महे सु

िनंदत

तुरत

किह

जोग





भली

तनु





पिछताब



अिस



भयउ

िपताहँू

॥१॥

पराई

॥२॥

िहतकार



यह

दे ह

बृषकेतू

चंिमौिल

सकल

मख



मरजादा

के

संभव

धिर

िनंदा

चिलअ

सब

सुब

उर

संकर

तहँ

जनक

द छ

जारा

भाँित

मूिद

जगत हे तू

जन्ह

जहाँ

ौवन



तेिह

सुनी

सुिनअ





अिगिन

कह

काहँू

तेह

दे ह



बसाई

पुरार

मंदमित

त जहउँ

सब

अपबादा

जीभ

जगदातमा

मुिनंदा

लहब

ौीपित

तासु

िपता

सकल

बालकांड

हाहाकारा



॥३॥



॥४॥

दोहरा सती

मरनु

ज य समाचार भे

िबधंस सब

िबधंस

ज य

सुिन

जाइ

इितहास

सतीं

मरत

तेिह

कारन

सकल

जग

सन

जब



उमा

जहँ

तहँ

मुिनन्ह

कछु



मागा

गृह

सैल

जिस

जानी



िहमिगिर

सुरन्ह



जाई

गृह

सुआौम



जा



क न्हे



संभु

िसि

उिचत

बास

फलु

पठाए



द न्हा

॥१॥

कै

संछेप

होई

बखानी

िसव

॥ ॥२॥

पद

अनुरागा

पारबती

तनु

पाई

॥३॥

िहम

भूधर

द न्हे

॥४॥

जनम

सकल

॥६४॥

िबमुख



जनमीं



कोप

िबिधवत

ताते

जनम

खीस

मुनीस

किर

सकल ।

मख

क न्ह

बीरभि ु



सोई

करन

र छा



क न्हा

गित

लगे

भृगु

पाए

ितन्ह

द छ हिर

गन

िबलोिक

संकर

जगिबिदत

यह

संभु

संपित

तहँ

छाई

॥ ॥

दोहरा सदा

सुमन

ूगट ं सिरता

सुंदर

सब

सहज

बय

सोह

सैल

िनत

नूतन

नारद

सब

जलु

नािर

सिहत

िनज

सौभा य

गृह

मंगल

पर

मिन

आदर

पद

बहत ु



यागा



आएँ



गृह सब

मुिन

सब

बहह ं

जीवन्ह

िगिरजा

बड़

सिहत

सैल

पुिनत

समाचार

सैलराज

फल

तासू पाए

क न्हा िस

िगिर

बरना

मृग

मधुप

सुखी

पर

सकल

करिहं

जनु

ॄ ािदक कौतुकह ं ।



जाित

भाँित

जिम

पद

नाना

बहु

िगिर ।

नावा

नव

आकर

खग

। ।

िम ु

पखािर

चरन सुता

रामभगित

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॥६५॥ सब

रहह ं

के

जासू

िगिर

गेह

िसधाए

आसनु

सबु

मेली

भवनु

मुिन

॥१॥

पाएँ

जसु

बर



अनुरागा

गाविहं

सिलल

बोिल



॥ ॥२॥ ॥

द न्हा

॥३॥

चरना

॥४॥

िसंचावा



रामचिरतमानस

- 32 -

बालकांड

दोहरा िऽकाल य कहहु कह

सब य

सुता

मुिन

के

िबहिस

सहज

सुसील

सब

ल छन

संपन्न

अचल

होइिह

एिह

पू य

दोष

गूढ़

सुंदर सदा

तु ह

मृद ु

कर

बानी

मुिनबर

हृदयँ



सुता नाम

कुमार



होइिह

जग



एिह

माह ं

सुिमिर



संसारा

कर

सैल

सुल छन

सुता

तु हार

अमान

मातु

िपतु

िऽय



सुनहु

ह ना



सेवत

कछु

चढ़हिहँ

िपआर

िपतु

पितॄत

अब

माता

दलभ ु

नाह ं

दइु

चार

अिसधारा

अवगुन

सब

खानी

भवानी

िपयिह पैहिहं

उदासीन

गुन

अंिबका

जसु

जे

॥६६॥

सकल

संतत





िबचािर

उमा

एिह



तु हािर

तु हािर



एिह अगुन

सबऽ

सयानी

अिहवाता

सकल

नामु

गुन

गित

संसय

छ ना

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा जोगी

सुिन

ःवामी

एिह

मुिन

िगरा

स य

जयँ



जाना

यह

सकल

भेद ु

सखीं न

िगिरजा

मृषा िसव

पद

जािन

कुअवस

झूिठ

न धिर

धीर

दे विरिष कहइ

पर

जानी ।



सनेहू

दराई ु



िमलन

बानी

िगिरराऊ



सर र बचनु

सखी कहहु

उमा जल धिर

मन पुिन

दं पित

सखीं

का

किरअ

नैना राखा

भा

बैठ

नाथ

हरषानी

िबलगाना

हृदयँ

उछँ ग

॥ ॥६७॥

भरे

किठन

सोचिह



रे ख

समुझब

पुलक सो

बेष

दं पितिह

एक

उमा ।

अिस

दख ु

दसा

मैना

अमंगल

हःत





भाषा

कमल

नगन

िमिलिह

िगिर

ूीित

होइ

मन

कहँ

दे विरिष

उपजेउ

उर

अकाम

अस

नारदहँु होइ

जिटल

संदेहू

जाई

सयानी उपाऊ

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा कह

मुनीस

दे व

दनुज

तदिप जस

एक ब



जे

जे

बर



िबबाहु

िहमवंत नर



नाग

कहउँ

बरनेउँ

सुनु

जो

मुिन

उपाई

तु ह



पाह ं

के

दोष

बखाने

संकर

सन

होई

। ।



िबिध

दोषउ

िललार



होइ

करै



दै उ

सहाई

उमिह

तस

संसय

नाह ं अनुमाने

सब गुन

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मेटिनहार



कोउ

िमलिह ते

िलखा

िसव

पिह



सम

कह

सबु

॥६८॥

कोई

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

रामचिरतमानस



- 33 -

अिह

सेज

भानु

कृ सानु

सुभ



सयन सब

रस

असुभ कहँु

समरथ

हिर

करह ं

खाह ं

सिलल

निहं



सब

दोषु



बालकांड

बुध ितन्ह

बहई

गोसाई





कछु

ितन्ह

कहँ

मंद

सुरसिर

रिब

कर

दोषु

कहत

कोउ

पावक



कोउ

नाह ं

अपुनीत

सुरसिर

धरह ं





॥३॥

कहई नाई

॥ ॥

॥४॥

दोहरा ज

अस

परिहं सुरसिर

कलप

जल

सुरसिर दरारा य ु



पै

तपु

ज िप

बर

बर

दायक

इ छत



माह ं

िबनु



अवराधे

समान

संत

िबबाहँ

सब पुिन

भािवउ

एिह

कहँ

िसव

लिहअ

तैस

िबिध

क याना कलेसू

सकिहं

सेवक



॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

िऽपुरार

दसर ू

नाह ं

जप

साध

मन

जोग

कोिट

पाना

अंत

तज

कृ पािसंधु

तेिह

िकएँ

मेिट



॥६९॥

करिहं

अनीसिह





अिभमान

ईस



ईस



िबबेक

िक

आसुतोष

भंजन

िसव

जीव

एिह

तु हार

जग

जिड़

कबहँु



महे सू

ूनतारित

फल

जैस ।

कुमािर

अनेक



भगवाना

अहिहं

करै

महँु

जाना

पावन

समरथ

नर

नरक

बा िन

सो

सहज

करिहं

भिर

कृ त

िमल

संभु

िहिसषा

॥ ॥३॥

रं जन

॥ ॥४॥

दोहरा अस

किह

होइिह किह

अस

पितिह ज

यह



कन्या





िमलिह िबचािर

अस

किह



पावक

ब ब पित

पिर

मैना

होइ

अनूपा कुआर

िगिरजिह

जोगू

िबबाहू

चरन

ूगटै



धिर

सिस

िगिरजिह

तजहु

आिगल

चिरत

नाथ





किरअ

। ।

कंत िगिर

जेिहं



सीसा



बोले



नारद

सुनहु

समुझे



िबबाहु

जड़

असीस

िगर स

उमा



माह ं

द न्ह

संसय



रहउ करे हु

हिर

अब

गयऊ

कह

कुलु

न सोइ

मुिन

पाइ



सुिमिर

क यान

ॄ भवन

एकांत घ

नारद

मुिन

सुता

होइ

सिहत

भयऊ

उर

सनेह अन्यथा

पारबितिह

सोचु

पिरहरहु

िनरमयउ

जेिहं

सबु

सोइ

सुिमरहु

किरिह

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ौीभगवान

क यान

॥१॥

अनु पा सबु

॥ ॥२॥

लोगू

दाहू

िगर सा नाह ं

दोहरा िूया



बैना

ूानिपआर

किहिह

बहोिर बचनु

॥७०॥

जस

मम

सहज





॥७१॥



॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

अब करै

- 34 -

जौ

तु हिह

सो

नारद

तपु

जेिहं

बचन

अस

िबचािर

सुिन

पित

सुता

पर

िमलिहं

सगभ

तजहु

उमिह

िबलोिक

बारिहं

बार

जगत

मातु

हरिष



मन

अस

जाइ

आन

उपायँ



सुंदर

असंका



सब

भाँित

गई

बार



सिहत

लाई



गदगद

कंठ

भवानी



मातु

सुखद

उर

िसखावन

गुन

सबिह

माह ं

भरे

सब य



तौ



नयन

लेित



महे सू

सहे तू

तु ह बचन

नेहू

बालकांड

िमटिह

कलेसू

िनिध

बृषकेतू

संक

तुरत

अकलंका

उिठ

सनेह न

दे हू

िगिरजा गोद

बैठार

कछु

बोलीं

पाह ं

किह मृद ु

जाई

बानी

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा

करिह मातु

सुनिह

मातु



सुंदर

गौर

सुिबूबर

जाइ

तपु

िपतिह

पुिन

दख

अस अस

सैलकुमार यह

मत

। ।

तपबल

रचइ

ूपंच

तपबल

संभु

करिहं

संघारा



सृि

भवानी



तप

सब

अधार

सुनत

बचन

िबसिमत

महतार

मातु

िपतुिह

समुझाई

िूय

पिरवार

बहिबिध ु

िपता





माता

तपु

सकल

सेषु

धरइ



उमा

िबकल

॥७२॥ िबचार



दोष

नसावा

॥१॥

जग जयँ

िगिरिह तप

मुख

ऽाता

मिहभारा

अस

सुनायउ

चलीं भए

तपु



स य

दख ु

िबंनु जाइ

सपन



सो

सुखूद

तपबल करिह

तोिह

मोिह

कहा

तपबल



सुनावउँ

उपदे सेउ

नारद

भावा

िबधाता

सपन

जानी

हँ कार

िहत

आव

हरषाई



बाता

समुझाइ



॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा

उर

बेदिसरा

मुिन

पारबती

मिहमा

सुनत

ूानपित

चरना

धिर

उमा

आइ

तब

सबिह रहे



कहा

ूबोधिह

जाइ

पाइ

िबिपन

॥७३॥

लागीं

तपु

करना



अित सुकुमार न तनु तप जोगू । पित पद सुिमिर तजेउ सबु भोगू ॥१ ॥ िनत संबत

नव सहस

चरन

उपज

अनुरागा

मूल

फल

खाए

बािर

बतासा

कछु

िदन

भोजनु

बेल

पाती

मिह

परइ

पुिन

पिरहरे

सुखानेउ

दे ख

उमिह

तप

खीन

। ।

सुखाई परना



सर रा

दे ह

सागु

खाइ

िकए

किठन

तपिहं सत

उपबासा

सोई

खाई

उमिह

नाम

तब

दोहरा

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भै

गवाँए

िदन

संबत

ॄ िगरा

लागा

कछु

सहस



मनु

बरष

तीिन

। ।

िबसर

भयउ गगन

अपरना गभीरा

॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 35 -

भयउ

मनोरथ

पिरह

दसह ु

अस

तपु

अब

उर

आवै

िपता

िमलिहं

धरहु

उमा



क न्ह



बर स

िबिध

गगन

चिरत

सुंदर



सदा

जाइ

अब

भवानी

। ।



गावा

रघुनायक



अनेक सदा

जानेहु



धीर

संभु

तब

घर

जाएहु

जहँ

िगिरजा

तहँ

मन

सुनिहं

राम

मोह

मद

॥ ॥१॥

तबह ं



बागीसा

॥२॥

सुहावा

॥३॥

हरषानी

चिरत

िसव

यानी जानी

ूमान

कर



मुिन सुिच

गात

। ॥७४॥

संतत तब

पुलक

सुनहु



िऽपुरािर

पिरहिर





यागा

नामा

भउ

हठ

बखानी

िगिरजाकुमािर

िमिलहिहं

स य

िरषीसा

तनु

सुनु

सब

जबह ं

जब

सती

तव

बानी

िगरा त

जपिहं

कलेस

बोलावन

तु हिह

सुनत जब

काहँु

सुफल

बालकांड

भयउ



िबरागा

गुन

मामा

॥ ॥४॥

दोहरा िचदानन्द

कतहँु

जदिप

सुखधाम

िबचरिहं

मिह

मुिनन्ह

उपदे सिहं

अकाम

धिर

तदिप

िबिध

गयउ

कालु

नैमु

ूेमु

संकर

कर

बहु

ूकार

रामु

बहिबिध ु अित

संकरिह राम

पुनीत

हिर

याना



बहु

िसविह िगिरजा

बीती



कृ पाला

सराहा

कतहँु

भगत

। ।



तु ह

समुझावा कै

नै



गुन

िनिध

ॄतु

पारबती िबःतर

सिहत

पद

कै

॥ ॥१॥

ूीती



रे खा

॥२॥

िनरबाहा

॥३॥

तेज

िबसाला

को

कर

बखाना सुजाना

राम

भगित

अस

॥७५॥

द ु खत

होइ

सील



करिहं

दख ु

हृदयँ

िबनु ।

करनी

िबरह

काम

अिभराम

राम

िनत

अिबचल



लोक

सकल



दे खा

कृ त य

िबगत

हृदयँ

भगवाना

एिह ूगटै

िसव



सुनावा

जन्मु कृ पािनिध

बरनी

॥ ॥४॥

दोहरा अब

िबनती

जाइ

िबबाहहु

कह

िसव

िसर

धिर

मातु

िपता

गुर

तु ह

सब

भाँित

ूभु

तोषेउ

कह

ूभु

मम

जदिप आयसु

सुिन

हर

सुनेहु

सैलजिह

उिचत

अस

किरअ ूभु परम



यह ।

नाह ं

तु हारा

कै

संकर

तु हार

िसव



मो

मोिह

पर

िनज

माग

दे हु

पुिन

मेिट



परम

धरमु

यह

नाथ

हमारा

िबनिहं

िबचार

िहतकार



अ या

िसर

पन

रहे ऊ



॥७६॥

बचन

। ।



नाथ

बानी बचना

नेहु

भि

अब

िबबेक

उर

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किरअ पर

राखेहु

सुभ

नाथ

धम जो

जानी

तु हार

जुत

हम

जाह ं

रचना

कहे ऊ

॥ ॥१॥ ॥

॥२॥ ॥

॥३॥

रामचिरतमानस

- 36 -

अंतरधान तबिहं

भए

अस

स िरिष

भाषी

िसव

पिहं



बालकांड

संकर

आए



सोइ

बोले

मूरित

ूभु

उर

अित

राखी

बचन

सुहाए

॥ ॥४॥

दोहरा पारबती

पिहं

िगिरिह िरिषन्ह

गौिर

बोले केिह कहत मनु

ूेिर

मुिन अवराधहु

दे खहु

मुिन

भवन

तहँ

तु ह

मनु

परा

कहा

पठएहु



स य

सोइ

अिबबेकु



िसखावा जाना





हमारा

कवन

हम

सकुचाई

सुनइ

करे हु

स य

हँ िसहहु

सुिन

िबनु



चािहअ

॥७७॥

भार

िकन

हमािर पर

हम

सदा

जैसी

तपु

मरमु

बािर

पंखन्ह



तपःया

कारन

सन चहत

लेहु

संदेहु

मूरितमंत

करहु



पिर छा

दिर ू ।



चहहू

अित

ूेम

कैसी

सैलकुमार

का

बचत

नारद

तु ह

दे खी सुनु

हठ

जाइ

कहहू

जड़ताई

भीित चहिहं

उठावा उड़ाना

भरतारा

िसविह

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥४॥

दोहरा सुनत

बचन

नारद

कर

द छसुतन्ह िचऽकेतु नारद तेिह



पंच

जे

उन

तन

कवन कह

सुिन

नर

मािन कुबेष

सुखु

बसेउ

ितन्ह

नार



िबःवासा



कपाली





पाएँ

िबबाह

िफिर अविस

आपु



कर

सिरस

भल

पुिन

दे खा

पुिन

अस

तज

भवनु

िभखार क न्हा

सहज

उदासा

िदगंबर

भूिलहु

अवडे िर

आई हाला

चह

पित

अगेह

। ॥७८॥



सबह

चाहहु

अकुल

दे ह गेह

भवनु होिहं

तु ह ।

तब िकसु

कनककिसपु

। ।

सती

िगिरसंभव

कहहु

चीन्हा

अस

िसवँ



घाला

स जन

बचन

िरषय

जाई

सुनिहं

िनलज

िनगुन कहहु



िसख कपट

उपदे सु

उपदे से न्ह

कर

मन

िबहसे

याली

ठग

के

बौराएँ

मराए न्ह

ताह

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा अब

सुख

सहज अजहँू

अित

दषन ू अस

मानहु

सुंदर

रिहत ब

सोवत

एकािकन्ह कहा सुिच

के

हमारा सुखद

सकल

तु हिह

सोचु

गुन

िमलाउब

भीख

निह

भवन

कबहँु

िक



हम

तु ह

सुसीला



गाविहं

रासी आनी

। ।

सुनत

मािग

भव

नािर कहँु बेद

ौीपित िबहिस

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खािहं

खटािहं



॥७९॥



नीक

िबचारा

जासु

जस

लीला

पुर कह

बैकुंठ बचन

िनवासी भवानी

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

रामचिरतमानस

- 37 -

स य कनकउ

कहे हु

िगिरभव

बचन



पुिन

नारद गुर



तनु

पषान





ूतीित

बचन

एहा



होई



पिरहरऊँ





जेह

बालकांड

हठ



जारे हुँ बसउ



सपनेहुँ

छूट

छूटै



दे हा

सहजु



भवनु

उजरउ

निहं

सुख

िसिध

तेह

धाम



सुगम



पिरहर



सोई

॥३॥

डरऊँ

॥ ॥४॥

दोहरा महादे व जेिह

कर



तु ह

अब





तु हरे

तौ

कौतुिकअन्ह

जन्मु

कोिट

तजउँ



दे ख

मनु

िमलतेहु

जन्म म

अवगुन

पा

संभु

जािह

सन

मुनीसा

िहत

सकल



हारा

तेिह

सुनितउँ ।

को

गुन

रिह



आलसु

नाह ं



बर

कन्या

हमार

कर

उपदे सू

कहइ बोले



जगदं बा

मुिन

बरउँ

कहिह



तु ह

गृह



करै

अनेक

जग

जय

जय

िबनु



॥८०॥

धिर

दषन ू

संभु

आपु

काम

तु हािर

जाइ



यानी

सन

िसख



रगर

गुन

तेह

िबसेषी

नारद

ूेमु

िबंनु

हृदयँ

लिग

परउँ

रम

ूथम

हठ

भवन

िबचारा िकएँ



बरे षी माह ं

रहउँ

सत

कुआर

बार

गवनहु

सीसा

महे सू

भयउ

जगदं िबके

िबलंबा भवानी

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥

॥४॥

दोहरा तु ह

माया

नाइ

चरन

जाइ

मुिनन्ह

बहिर ु

स िरिष

भए

मनु तारकु तिह अजर तब

मगन िथर

अमर िबरं िच

िसर

तब

संभु तेिह

लोकपित

सो

जीित

सन

जाइ

जगत

पुिन



किर

जाई

सुनत

भयउ लोक

पिहं

सकल

चले

पठाए

िसव

किर

िसव

मुिन

िहमवंतु िसव

असुर सब

भगवान



पुिन

सनेहा



सुजाना



हरषत

िबनती

कथा

कै

काला



भुज

ूताप

जीते



भए

दे व



जाई

पुकारे

। ।

हारे

सुर िबिध

दे खे



गृह

याए

॥८१॥

सकल

स िरिष करन

मातु

गातु

िगरजिहं

उमा

हरिष लगे

िपतु

सुनाई

गवने

गेहा

रघुनायक

याना

बल

िबसाला

सुख

तेज संपित

र ते

किर

िबिबध

सब

दे व

लराई

दखारे ु

दोहरा सब

संभु

सन

सुब

कहा

संभूत

बुझाइ

सुत

िबिध

एिह

दनुज

जीतइ

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िनधन

रन

तब

सोइ

होइ



॥८२॥

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 38 -

मोर

कहा

सुिन

करहु

सतीं

जो

तजी

द छ

तेिहं

तपु

क न्ह

संभु

अहइ

असमंजस

पठवहु

कामु

जाइ

हम

जाइ

एिह

िबिध

अःतुित

मख

पित

जदिप तब

उपाई

भलेिह

सुरन्ह

क न्ह

किरिह

जाइ

िहमाचल

जनमी

लागी



िसव



तदिप ।

िसर

दे विहत

ईःवर



पाह ं

िसविह

होइिह

दे हा

भार

िसव



बालकांड

अित

बात

करै

नाई

होई

समािध

बैठे

छोभु



संकर

करवाउब



मर

अित

हे तू



ूगटे उ

गेहा

सबु

सुनहु

एक

सहाई यागी हमार

मन

माह ं

बिरआई

िबषमबान

झषकेतू

कहइ

सबु

॥१॥ ॥ ॥२॥

िबबाहु

नीक



कोई

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा सुरन्ह

कह ं

संभु तदिप

िनज

िबरोध





काजु

करब

कुसल

िहत

लािग

तजइ

अस

किह

चलेउ

सबिह

अस

हृदयँ

मार

तब

आपन

कोपेउ

ूभाउ

जबिह

ॄ चज

ॄत

सदाचार

जप

मोिह

जो

संजम





िसव





छन

नाना िबरागा



ीुव

सभय

उपकारा तेह

सिहत मरनु

क न्ह

िमटे

धीरज

धरम

कर

धरम

संसारा

ौुित

सेतू

यान

िबबेक

कटकु

सुभट

संजुग

सहाई

हमारा

सकल

सकल



॥८३॥

ूसंसिहं

धनुष

बस

महँु



परम

िबरोध

िनज

मार

संत

सुमन

िबचार

अस

कह संतत



क न्ह

कहे उ

ौुित

नाई

िबचारा

मन

िबहिस

दे ह

िस

बािरचरकेतू

सुिन



िबःतारा

जोग

सब

तु हारा

पर चलत

िबपित

िब याना

सब

भागा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

छं द भागेउ

िबबेक

सदमंथ

पबत

होिनहार

का

दइु

माथ

सिहत

सहाय कंदर न्ह

केिह

सो

महँु

करतार

को

रितनाथ

जेिह

मिह

जाइ

तेिह

अवसर

रखवार

जग

खरभ

कहँु

कोिप

कर

धनु

मुरे दरेु

परा स

धरा

। ॥ । ॥

दोहरा जे ते सब

के

जहँ

अिस

पसु

प छ

नद ं

सजीव

जग

अचर

िनज

िनज

मरजाद

हृदयँ

मदन

अिभलाषा

उमिग

अंबुिध

दसा नभ

जड़न्ह जल

कहँु

चर तज

धाई

कै

नािर



लता



बरनी

थलचार

भए

सकल

संगम

। ।

पु ष

को भए

अस बस

िनहािर

करिहं

किह

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काम

नविहं

तलाव

सकइ

कामबस

नाम

॥८४॥ त

साखा

तलाई

सचेतन

समय



करनी

िबसार



॥१॥

॥ ॥२॥

रामचिरतमानस

- 39 -

मदन

अंध

याकुल

दे व

दनुज

इन्ह

कै

िस

सब

नर

लोका

िकंनर

दसा



िनिस

याला

कहे उँ

महामुिन

िबर





िदनु

ूेत

बखानी

जोगी

बालकांड





निहं

अवलोकिहं

िपसाच

सदा

तेिप

भूत

काम

बेताला

के

कामबस

कोका

चेरे

भए

जानी

िबयोगी

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

छं द भए

कामबस

दे खिहं

जोगीस

चराचर

अबला

नािरमय

िबलोकिहं

दइु

दं ड

तापस

जे

पु षमय

भिर

पावँर न्ह

ॄ मय

जगु

ॄ ांड



पु ष

कहै

दे खत

सब

कामकृ त

भीतर

को

रहे





अबलामयं



अयं



कौतुक

सोरठा धर

उभय



जे

राखे

घर

अस

िसविह

तुरत दे ख

िफरत

लाज

बन जहँ

कौतुक

भयऊ

ससंकेउ

मा



भयउ

जथािथित

जीव

सुखारे



जिम

मद

सब

ििह ूगटे िस

िधर

रघुबीर

िबलोिक

भए

काहँू

मदन कछु

तुरत

िचर

उपबन तहँ



तड़ागा



मरनु

कुसुिमत



परम ।

ठािन

नव

मुएहँु

सबु

गयऊ

संसा

गएँ

मतवारे

रचेिस

रा ज

उपाई

िबराजा

िदसा

िबभागा

मनिसज

॥ ॥१॥

भगवाना

मन

सब मन

पिहं

दगम ु





॥८५॥

संभु

उतिर

सुभग

दे ख

हरे

महँु

कामु

दराधरष ु



अनुरागा

काल

लिग



जाई

मनिसज

तेिह

जौ

माना

निहं

उमगत

मन

उबरे

िरतुराजा

बािपका

जनु

ते

भय किर

सबके

जागा

॥ ॥२॥ ॥

॥३॥

॥ ॥४॥

छं द मन

सुगंध

मुएहँु

सुमंद

िबकसे

सर न्ह

कंज

कलहं स

िपक

बहु

जागइ

मनोभव

सीतल

सुक

बन

मा त

सुभगता

मदन

अनल

गुंजत

सरस

रव



पुंज

किर

परै सखा

मंजुल

गान

कह सह

। ॥

मधुकरा



अपछरा



नाचिहं

दोहरा सकल

किर

कला

चली



दे ख

रसाल

िबटप

सुमन

चाप

िनज

अचल बर सर

कोिट समािध

साखा संधाने

। ।

िबिध

हारे उ

िसव

कोपेउ

तेिह

पर

अित

िरस

सेन

हृदयिनकेत

चढ़े उ तािक

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समेत

मदनु ौवन



॥८६॥ मन

लिग

माखा ताने

॥ ॥१॥

रामचिरतमानस

- 40 -

छाड़े

िबषम

भयउ

ईस

सौरभ तब

िबिसख मन

छोभु

प लव िसवँ

उर

हाहाकार

भयउ

समु झ

कामसुखु



िबसेषी

मदनु

तीसर

लागे ।



उघारा

जग



भार

सोचिहं

छुिट

नयन

िबलोका

नयन

बालकांड

समािध उघािर

डरपे

भोगी

सकल

भयउ



कामु

जागे दे खी

कंपेउ

भए

छारा

असुर

अकंटक

॥ ॥२॥

ऽैलोका

जिर

भयउ

सुर

भए

तब िदिस

कोपु

िचतवत



संभु

॥ ॥३॥

सुखार

साधक

जोगी

॥ ॥४॥

छं द जोिग

अकंटक

रोदित

बदित

अित

ूेम

ूभु

आसुतोष

भए

पित

बहु

किर

गित

भाँित

िबनती

कृ पाल

सुनत

क ना

रित

करित

िबिबध

िबिध

िसव

अबला

मु िछत

भई



संकर

पिहं

गई



कर

सन्मुख

रह



जोिर

िनर ख

बोले

सह



दोहरा

जब

अब



िबनु

बपु

जदबं ु स

कृ ंन

तनय

रित

गवनी

सब

सुर

दे वन्ह

यािपिह

होइिह सुिन

समाचार

पृथक

बोले

कृ पािसंधु

नाथ पुिन

अवतारा



होइिह

सुनु

नामु

होइिह



बचनु

अन्यथा

संकर

बानी



कथा

अपर

िबरं िच

समेता

क न्ह





अंतरजामी



गए ।

जहाँ

भए

कहहु



ूसन्न

भगित

बस

बखानी

िसधाए

॥ ॥१॥ ॥

॥२॥

कृ पािनकेता

चंि

आए

मोरा

कहउँ

िसव

अमर

तदिप

मिहभारा

होइ बैकुंठ



॥८७॥

महा अब

ॄ ािदक

ूसंसा

बृषकेतू ूभु



ूसंगु

हरन

तोरा पाए

अनंगु

िमलन

िनज

पित

ितन्ह

तु ह

कर

सबिह

सब

िबंनु

िबिध

तव

कृ ंन

पृथक कह

रित

अवतंसा

॥३॥

हे तू



ःवामी

॥४॥

केिह िबनवउँ



दोहरा सकल

सुरन्ह

िनज

नयन न्ह

यह

उ सव

कामु

जािर

सासित

पारबतीं

किर

दे खअ रित

तपु

के दे खा

भिर

कहँु

हृदयँ चहिहं

लोचन





द न्हा

करिहं

पसाऊ

अपारा

सुिन

िबिध

िबनय

समु झ

ूभु

तब

दे वन्ह

दं द ु भीं ु

बजा





सोइ ।

बानी बरिष

संकर

नाथ



पुिन

क न्ह

अस

तु हार

कछु

करहु

कृ पािसंधु नाथ

करहु ।

परम

िबबाहु मदन

यह

अित

ूभुन्ह

कर

तासु

ऐसेइ

सुमन

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होउ जय

उछाहु

अब कहा जय



॥८८॥

मद

भल

मोचन क न्हा

सहज

सुभाऊ

अंगीकारा सुखु

सुर

मानी साई



॥१॥ ॥

॥२॥

॥ ॥३॥

रामचिरतमानस

- 41 -

अवस

जािन

ूथम

गए

स िरिष

जहँ

रह

आए



भवानी



बालकांड

तुरतिहं

िबिध

बोले

िगिरभवन

मधुर

बचन

नारद



पठाए

छल

सानी

॥ ॥४॥

दोहरा कहा

हमार

अब

भा



सुनेहु

झूठ

तब

तु हार

पन

जारे उ

उपदे स

कामु

। ॥८९॥

महे स

मासपारायण तीसरा िवौाम सुिन

बोलीं

मुसकाइ

तु हर

जान

कामु

अब

हमर

जान

सदा

िसव

जोगी

अस

जानी



मुनीसा







िसव

तौ

हमार

भवानी

सेये

पन कहा

हर

जारा

सुनहु

तु ह

जो

जारे उ

तात

अनल

कर

सहज

गएँ

समीप

सो

अविस



उिचत



अब ।

मारा

संभु



रहे

तेिह

अिस

कम

स य

अित

िब यानी सिबकारा

अकाम

समेत

किरहिहं िहम

मुिनबर

अनव

ूीित सोइ



नसाई

लिग

अज



सुभाऊ

कहे हु

मन

बानी

कृ पािनिध

बड़

अिबबेकु

िनकट

जाइ

मन्मथ

अभोगी ईसा

तु हारा निहं

महे स



काऊ नाई

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा

सबु बहिर ु

िहयँ

हरषे

चले

भवािनिह

नाइ

ूसंगु

िगिरपितिह

सुनावा

कहे उ

मुिन

रित

कर

हृदयँ

िबचािर

संभु

सुिदनु

सुनखतु

सुघर

पऽी

स िरिषन्ह

जाइ

िबिधिह

लगन

बािच

सुमन

बृि

बचन

अज नभ

िसर

मदन ।

ूभुताई सोचाई सो सबिह

बाजन

सादर



बेिग



बाजे

सुिन

अित

बहत ु

बेदिबिध पद





पास

ूीित

हरषे

मंगल

कलस

िलए

हृदयँ

सब

माना

धराई क न्ह समाती

सुर

दसहँु

पावा बोलाई

िहमाचल



मुिन

दखु ु

लगन

िबनय

॥ ॥९०॥

सुखु

मुिनबर

बाचत

सुनाई

िबःवास

िहमाचल

िहमवंत

। गिह

पाती

ूीित

दहन

सुिन



द न्ह

दे ख

गए



बरदाना

सोइ द न्ह

सुिन

िदिस

समुदाई साजे

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा लगे

सँवारन

होिह

सगुन

िसविह

संभु

कुंडल

कंकन

गन पिहरे

सकल मंगल करिहं

सुर

बाहन

सुभद िसंगारा

याला



करिहं । तन

जटा

िबिबध अपछरा मुकुट

िबभूित

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िबमान गान

अिह पट

मौ

केहिर

। ॥९१॥ सँवारा छाला

॥ ॥१॥

रामचिरतमानस

- 42 -

सिस

ललाट

गरल

कंठ

कर

उर

िऽसूल

दे ख

गंगा



नयन

िसर

माला



अिसव

डम

िबराजा



सुरिऽय

मुसुकाह ं



आिद

सुरॄाता



िबरं िच समाज

िसर

नर



िसविह

िबंनु सुर

सुंदर

सब

बालकांड

भाँित

तीिन बेष

चले चिढ़

अनूपा



निहं

चिढ़

जग

बाहन

बरात



कृ पाला

बाजिहं

दलिहिन ु

चिढ़

भुजंगा

िसवधाम

बसहँ

लायक

बर

उपबीत

बाजा



नाह ं

चले

दलह ू

॥२॥ ॥३॥

बराता



अनु पा

॥४॥

दोहरा

बर

िबंनु

कहा

अस

िबलग

िबलग

होइ

अनुहािर

िबंनु

बचन

मनह ं

मन

बरात सुिन

अित

िूय

िसव

अनुसासन

नाना

बाहन

कोउ

मुखह न

िबपुल

भाई

आए

नाना

बेषा



िबपुल

मुख

कोउ

हिर

िबह ना

कर

िर पु

निहं

अित

बहु

॥१॥ ॥

टे रे

ितन्ह

िनज

कोउ



जाह ं

गन

सीस

कोउ

जाई

िबलगाने

सकल

समाज

पद

पुर

बचन

जलज



॥९२॥

सिहत

ूेिर

िसव



पर

िबं य पद

िबनु

समाज

सेन

भृंिगिह

िबहसे ।

सिहत

िनज

ूभु

िदिसराज

करै हहु

के





काहू

नयन

िनज

िनज

केरे

सब

सकल

हँ सी





िूय

बोिल

िनज ।

मुसकाने

सुनत सुिन

तब

सब

मुसुकाह ं

बचन

नयन

चलहु



सुर

महे सु

िबहिस

॥२॥

नाए

॥ ॥३॥

दे खा पद

बाहू



धर



तनखीना

॥४॥

छं द तन

खीन

भूषन

कोउ

कराल

खर

ःवान

बहु

अित

पीन

कपाल सुअर

जनस

कर

सृकाल

ूेत

पावन

कोउ

सब गन

जोिग

गित

सोिनत



मुख

िपसाच

अपावन

बेष

जमात

तन

अगिनत

भर

को

गनै

बरनत

निहं

बनै

भूत

सब



॥ । ॥

सोरठा नाचिहं

गाविहं

दे खत जस

अित तिस

इहाँ

दलह ू ु

िहमाचल

सैल

सकल

जहँ

बन

सागर

काम प गए

सब

परम

िबपर त बनी

रचेउ

सुंदर

सकल

गीत

बोलिहं

बराता

बचन



कौतुक

िबताना



अित

जग

माह ं



लिग नद ं

तन तुिहनाचल

तलावा धार





गेहा

तरं गी

िहमिगिर सिहत



िबिबध

िबिचऽ लघु

गाविहं

िबिध

िबिचऽ

निहं

िबसाल सब

समाज मंगल

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होिहं

मग

जाइ

निहं

कहँु

॥९३॥

बखाना

बरिन

नेवत

सिहत सिहत

जाता

बर

िसराह ं

पठावा

नार

सनेहा

॥ ॥१॥ ॥

॥२॥

॥ ॥३॥

रामचिरतमानस

- 43 -

ूथमिहं पुर

िगिर

बहु

सोभा

गृह

अवलोिक

सँवराए सुहाई



बालकांड

जथाजोगु



लागइ

तहँ

लघु

तहँ

सब

िबरं िच

छाए

िनपुनाई

॥ ॥४॥

छं द लघु

लाग

बन

बाग

मंगल

िबिध कूप

िनपुनता

तड़ाग

िबपुल

बिनता

क तोरन

पु ष

सुंदर

अवलोिक

सिरता

सुभग

पताका

केतु

चतुर

छिब

पुर

सह



को

कह



सक

सब गृह

दे ख

सोभा गृह

मुिन

सोहह ं

मन

मोहह ं





दोहरा जगदं बा िरि

जहँ

अवतर

िसि

सो

संपि

पुर

खरभ

नाना



चले

लेन

बनाव

िहयँ

हरषे

िसव

समाज

जब

दे खन

धिर

धीरजु

तहँ

रहे

पूछिहं

िपतु

माता

किह

जाइ



किहअ



भवन काह

बौराह

सेन

बसहँ

िनहार



लागे



सयाने



असवारा





॥९४॥

सोभा

अिधकाई

सादर

अगवाना

दे ख

अित

भए

सुखार

िबडिर

चले

बाहन

सब

भागे

कहिहं

बाता



हिरिह बालक



जाइ

अिधकाइ



किर

सुर

नूतन

आई

सुिन बाहन

िक

िनत

िनकट

सज

बरिन

सुख

नगर

गएँ

बरात

पु

सब

लै

जीव

पराने

बचन

भय

कंिपत

गाता

कर

धार

िकध

बिरआता

जम

याल

कपाल

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥

िबभूषन

छारा

॥४॥

भयंकरा



रजनीचरा



छं द तन

छार

सँग

भूत

जो

जअत

दे खिह

सो

याल

कपाल

ूेत

िपसाच

रिहिह

बरात

उमा

भूषन

नगन

जिटल

जोिगिन

िबकट

मुख

दे खत

िबबाहु

घर

पुन्य घर

बड़

बात

तेिह

कर

सह



अिस

लिरकन्ह

कह



जनक

मुसुकािहं



दोहरा समु झ बाल लै

अगवान

मैनाँ

सुभ

कंचन

थार

िबकट

बेष

महे स बुझाए

समाज िबिबध

बरातिह आरती सोह ििह

सब िबिध

आए सँवार

बर जब

जनिन



संग ।



होहु

िदए



पानी दे खा

िनडर

नािहं

सबिह

जनवास

सुमंगल

गाविहं

पिरछन

अबलन्ह



उर

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चली

हरिह

भय

भयउ

॥९५॥ सुहाए नार हरषानी िबसेषा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

रामचिरतमानस

- 44 -

भािग

भवन

मैना

हृदयँ

अिधक जेिहं

पैठ ं

अित

भयउ

दखु ु

सनेहँ

गोद

ऽासा

िबिध तु हिह



भार

बैठार

बालकांड

गए





महे सु

लीन्ह

जहाँ

बोिल

ःयाम

सरोज

पु अस द न्हा । तेिहं

जड़ ब

जनवासा

िगर सकुमार

नयन

भरे

॥ ॥३॥

बार



बाउर कस क न्हा ॥४॥

छं द कस

क न्ह



बौराह त

जो

फलु

चिहअ

तु ह

सिहत

िगिर



जाउ

िबिध

सुरत िहं

अपजसु

िगर

होउ

जेिहं

सो

पावक

तु हिह

बरबस जर

दई

बबूरिहं

जलिनिध

जीवत

जग

सुंदरता

िबबाहु

लागई

महँु









पर



कर



दोहरा भई

िबकल

अबला

सकल

किर

िबलापु

रोदित

बदित

नारद

कर

अस

उपदे सु

साचेहुँ पर



उन्ह

के

घालक

जनिनिह

िबकल

करम तु ह

िबचािर

िलखा सन

िबगारा

उमिह

घर

अस

काह

जन्ह मोह

लाज

भीरा

िबलोिक

सोचिह

मित

जौ

बाउर

िमटिहं

िक

भवनु ।

माया



िबिध

। ।

माता



नाहू



के

जन्ह

बरिह

उदासीन

सो

िक

बोली



धामु

जान

ूसव

कत मातु

जिन

क न्हा जाया



पीरा

मृद ु

बानी

लगाइअ

काहू

रचइ

दोसु यथ

उजारा



िबबेक

जो

॥९६॥

तपु

धनु

टरइ



बसत

लिग

जुत



तौ

अंका

सँभािर

मोर

बाझँ

िगिरनािर

सनेहु

बौरे



भवानी

दे ख

सुता



द न्हा



द ु खत

िबधाता

लेहु

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥

॥३॥



कलंका ॥४॥

छं द जिन

लेहु

दखु ु

सुखु

बहु

भाँित

सुिन

उमा

कलंकु

मातु जो

िलखा बचन

क ना

िललार िबनीत

िबिधिह

हमर

पिरहरहु जाब

अवसर जहँ

पाउब

कोमल

सकल

अबला

दषन ू

नयन

बािर

लगाइ

नह ं तह ं

। ॥

सोचह ं



िबमोचह ं



दोहरा तेिह समाचार तब मयना

नारद स य

अवसर सुिन सबिह सुनहु

नारद

सिहत



िरिष

तुिहनिगिर

गवने

समुझावा



मम

बानी





तुरत पू ब

जगदं बा

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समेत

िनकेत कथाूसंगु तव

सुता



॥९७॥ सुनावा भवानी

॥ ॥१॥

रामचिरतमानस

अजा

- 45 -

अनािद

जग

संभव

जनमीं तहँ हुँ

सि

अिबनािसिन

पालन

ूथम

लय

कािरिन

द छ

सती

संकरिह

एक

बार

आवत

भयउ

मोहु

िसव

गृह



सदा िनज

जाई





कथा

िबबाह ं िसव

संगा



क न्हा

कहा



बालकांड

संभु इ छा

नामु

सती

ॅम

धािरिन

सुंदर

बेषु

तनु जग

रघुकुल

बस

िनवािसिन

बपु

सकल

दे खेउ



लीला

ूिस



अरधंग

माह ं

कमल

सीय

पाई पतंगा

कर

लीन्हा

॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

छं द िसय

बेषु

सती

जो

हर

िबरहँ

जाइ

बहोिर

अब

जनिम

तु हरे

भवन

अस

जािन

संसय

क न्ह

तेिह

िपतु



िनज

पित

तजहु

अपराध

संकर

ज य

जोगानल

लािग

िगिरजा

दा न

सबदा

तपु

संकर

पिरहर ं



जर ं



िकया



िूया



दोहरा सुिन

नारद

छन

के

महँु

बचन सकल

यापेउ

तब

मयना

नािर

पु ष

िससु

जुबा

लगे

होन

पुर

मंगलगाना

सो

जेवनार

िक

भाँित

िहमवंतु

अनेक

सादर

बोले

भई

पाँित

नािरबृंद

सुर

सयाने

जाइ

घर





जानी

संबाद

पारबती

नगर

लोग

सब

सबिह

जस

बसिहं

िबरं िच

लगीं

॥९८॥ पद

अित

बंदे

हरषाने

घट

नाना

जेिहं

मातु

भवानी

कछु

यवहारा

दे व

सब

प सन दे न



हाटक

भवन

लागे

। ।

यह

िबषाद

पुिन

िबंनु

जेवनारा

िमटा

पुिन

सूपसा



कर घर

सजे



बराती

जेवँत

पुर



बखानी

बैठ

सब



जेवराना

सकल

िबिबिध

अनंदे

तब

जाती

िनपुन

गार ं

सुआरा

मृद ु

बानी

॥ ॥१॥ ॥

॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

छं द गार ं

मधुर

ःवर

भोजनु

करिहं

सुर

जेवँत

जो

अचवाँइ

बहिर ु

समय

सुंदिर

अित

बकयो द न्हे

दे िहं अनंद ु

पान

िबं य

िबलंबु सो

मुख

गवने

मुिनन्ह

िहमवंत

िबलोिक

िबबाह

िबनोद ु

कहँु

कर

सुिन

कोिटहँू

बास दोहरा

बचन सचु न

जहँ

लगन पठए

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सुनावह ं

जाको

सुनाई दे व

परै

बोलाइ

आइ



पावह ं



क ो



र ो

। ॥९९॥



रामचिरतमानस

- 46 -

बोिल

सकल

बेद

बेद

अित

िसव

बहिर ु

सादर

िबधान

िसंघासनु बैठे

सुर

िबून्ह

पु

जगदं िबका सुंदरता

सँवार

िद य



सुभग

सुर

मोहे



जािन

भव

भामा



सुरन्ह जाइ

गाविहं

सखीं जग

मनिहं

मन

कोिटहँु

नार रघुराई लै

किब

बदन

आई

को

क न्ह

॥ ॥१॥

बनावा

ूभु

िनज

अस



द न्हे

िबरं िच

िसंगा

छिब

आसन

बरिन

सुिमिर

किर

बरनै



भवानी



हृदयँ ।

जथोिचत सुमंगल

जाइ



बोलाई

सकल

सबिह



नाई

उमा

मरजाद



सुहावा

िस

मुनीसन्ह

दे खत

लीन्हे

बालकांड

है ूनामा

बखानी

॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

छं द कोिटहँु

बदन

सकुचिहं

निहं

कहत

छिबखािन

बरनत

ौुित

मातु

अवलोिक

बनै सेष

भवािन

सकिहं

सारद

गवनी

सकुच



जग

जनिन मंदमित

म य

पित

सोभा

पद



तुलसी

कहा



िसव

जहाँ



मंडप

कमल

महा

मनु

मधुक

तहाँ



दोहरा मुिन

अनुसासन

कोउ जिस

संसय

करै

कै

िबिध

ौुित

गाई



महे सा



िहं यँ

कुस

िगर स

पािनमहन

जब

बेद

मुिनबर

मंऽ

बाजिहं हर

कन्या

क न्ह

बाजन

िगिरजा

पूजेउ

सुिन

िबबाह

गिह

गनपितिह

पानी

उ चरह ं

िबिबध कर

भयउ

जिन



सुर



संभु

अनािद

जय

िबधाना



सुमनबृि

िबबाहू



सकल

तुरग

रथ

नागा



धेनु

अन्न

कनकभाजन

भिर

जाना



दाइज

जािन सो

समरपीं

हरषे

जय

दास

जयँ

महामुिनन्ह

भविह

दासीं

भवािन

जािन

तब

जय

बसन

भिर मिन

द न्ह



करवाई

भवानी

सुरेसा

सुर

भै

नभ

॥१००॥

सकल

संकर

भुवन

सब



करह ं

िबिध रहा बःतु जाइ

नाना



॥१॥

॥ ॥२॥ ॥

उछाहू

॥३॥

बखाना

॥४॥

िबभागा



छं द दाइज का

िदयो दे उँ

बहु

पूरनकाम

िसवँ

कृ पासागर

पुिन

गहे

पुिन

भाँित

संकर

ससुर पद

कर

पाथोज

कर

जोिर

चरन

पंकज

संतोषु

सब

मयनाँ

ूेम

दोहरा

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िहमभूधर गिह भाँितिहं पिरपूरन

क ो



र ो



िकयो



िहयो



रामचिरतमानस

बहु

- 47 -

नाथ

उमा

छमेहु

सकल

िबिध

जननीं

उमा

करे हु

बचन

कत

संभु

ूान

अपराध

सास

सम

अब

गृहिकंकर

होइ

ूसन्न

समुझाई



गवनी

तब

लीन्ह



लै

सदा

संकर

पद

पूजा



नािरधरमु

कहत

भरे

सृजीं

अित

ूेम

पुिन

पुिन

सब

नािरन्ह

लोचन

बार

नािर

िबकल

िमलित

परित

िमिल



जग

माह ं

महतार



गिह

भेिट

भवानी



ली न्ह

नाई

॥ ॥२॥

िबचार

॥३॥

नाह ं



पुिन

॥१॥

कुमार

जाइ

उर

दजा ू

सुखु

कुसमय

कछु



द न्ह न

सपनेहुँ

जनिन

॥१०१॥

िसख

उर

ूेम



िस

दे उ

क न्ह

परम

जाइ

चरन

पित

पराधीन

धीरजु ।

दे हु

सुंदर

लाइ



चरना



उछं ग

बहिर ु

करे हु

भवन

बोिल

िबिध

भै

मन

बालकांड



बरना

लपटानी



॥४॥

छं द जनिनिह िफिर

बहिर ु

िफिर

जाचक

िमिल

िबलोकित

सकल

सब

अमर

चली मातु

तन

संतोिष हरषे

असीस

उिचत तब

संक

सुमन

सखीं

उमा

बरिष

सब लै

िसव

सिहत

िनसान

काहँू





गई



पिहं

भवन

चले



बाजे

भले



नभ

दोहरा चले

संग

िबिबध

तुरत

भवन

आदर

िहमवंतु

भाँित

पिरतोषु

आए

िगिरराई

दान

िबनय

जबिहं

संभु

कैलासिहं

बहमाना ु

जगत

मातु

िपतु

करिहं

िबिबध

हर

िगिरजा

तब

जनमेउ

आगम

िबिध

िबहार

िनत



सब ।

तेह

िबलासा

नयऊ



पुराना



एिह ।



िबदा

िबिध

षन्मुख

जन्मु

बोलाई

िहमवाना लोक

कहउँ

समेत

असुर

॥१०२॥

क न्ह न

िबपुल



िलए

िनज

िसंगा गनन्ह

तारकु

सर

िनज

सब

हे तु

बृषकेतु

सैल

कर

सुर

अित

क न्ह

सकल



कुमारा

ूिस

िबदा



भवानी

भोग

षटबदन

िनगम

किर

आए

संभु

पहँु चावन

तब

िसधाए बखानी

बसिहं

काल समर

सकल

कैलासा

चिल

गयऊ

जेिहं जग

मारा जाना

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

छं द जगु

तेिह

यह क यान

जान

हे तु उमा



षन्मुख

संगु काज

बृषकेतु िबबाहु

िबबाह

जन्मु

सुत

जे

कमु

कर

नर मंगल

ूतापु

चिरत

नािर सबदा

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पु षारथु

संछेपिहं

कहिहं सुखु

जे

महा



कहा



गावह ं



पावह ं



रामचिरतमानस

- 48 -

बालकांड

दोहरा चिरत

िसंधु

बरनै

तुलसीदासु

संभु

चिरत

बहु

लालसा

ूेम

िबबस

मुख

अहो

धन्य

तव

िसव

पद

िबनु

छल

िसव

सम

पनु

िगिरजा

सुिन

िकिम

सरस

कथा



जन्मु

िबःवनाथ

किर

बानी

नी

रोमाविल

दसा

दे ख

राम



ूान

रामिह

िबनु

ते

भगत अघ

को

िसव

सुख

हरषे सम

पावा

िूय

कर

॥१॥

यानी

गौर सा न

॥ ॥२॥

सोहाह ं

ल छन

तजी



ठाढ़

मुिन

सपनेहुँ

सम

। ॥१०३॥

नयन न्ह



दे खाई

भगित

गवाँ अित





पा

मुिन

तु हिह

ॄतधार

पाविहं

भर ाज

नाह ं

नेहू

न मितमंद





रित

पद

रघुपित

रघुपित



मुनीसा

जन्हिह

को



बाढ़

आव

बेद

अित

सुहावा

पर

कमल

रमन



एहू

॥३॥

िूय

भाई

॥४॥

तु हार



सती

अिस

रामिह

नार



दोहरा ूथमिहं सुिच म

जाना

किह

सेवक

तु ह

तु हार

सुनु

मुिन

राम

चिरत

तदिप

मै

आजु

गुन

अित

कहउँ

पर

ूनवउँ

कृ पा

परम

। ।

जानी

रघुनाथा

िगिरब

। ।

कैलासू



जस

रामु

सदा

कोिट

ूभु

अ जर

िबसद जहाँ

नचाविहं उमा

॥१॥

अह सा

बानी

गुन



मोर

अंतरजामी

तासु

िसव

लीला

धनुपानी

सूऽधर

उर

बरनउँ

मन

सत

िगरापित

॥१०४॥

रघुपित सुखु

सकिहं



किब



िबकार अब

जाइ

सुिमिर

ःवामी

जनु

सुनहु



किह

मरमु

समःत

कहउँ किह

मुिनसा

सम

कृ पाल

र य



बूझा

रिहत



बखानी

करिहं

सोइ

तोर

चिरत के

सीला

अिमत

दा नािर

जेिह

राम

समागम

जथाौुत

सारद

िसव

गाथा

िनवासू



॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा िस

तपोधन

बसिहं

िबमुख

हिर

हर

तेिह

िगिर

िऽिबध एक

बार

तहाँ

पर

समीर तेिह

जोिगजन

सुकृती धम

बट

रित िबटप

सुसीतिल तर

ूभु

सूर

सकल नाह ं

सेविहं ।

िबसाला छाया

गयऊ

ते ।

। ।

िकंनर

नर िनत

िसव त

िसब तहँ नूतन

िबौाम

िबलोिक

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उर

मुिनबृंद सुखकंद सपनेहुँ

सुंदर िबटप अित

। ॥१०५॥

निहं सब ौुित सुखु

जाह ं काला गाया भयऊ

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

रामचिरतमानस

- 49 -

िनज

कर

कुंद

डािस

इं द ु

त न

दर

अ न

भुजग

नागिरपु गौर

अंबुज

भूित

छाला





भुज



नख

सर रा

सम

भूषन

चरना

िऽपुरार

बालकांड

बैठै ूलंब

संभु

पिरधन

दित ु

आननु



सहजिहं भगत

सरद

कृ पाला

मुिनचीरा

हृदय

चंद

तम

छिब

हरना हार

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा जटा

मुकुट

नीलकंठ बैठे

कामिरपु

भल

अवस आद

अित

बैठ ं

िसव

समीप

हरषाई

पित

िहयँ

हे तु

कथा

जो

सकल

बालिबधु



जानी

िूया

लोचन

सोह

कैस

जािन

धर







पू ब

संभु बाम

िबसाल

भाल

सर

गई

क न्हा

निलन

सांतरसु

भाग

जन्म

कथा उमा

बोलीं

लोक

िहतकार



सोइ

पूछन

चह

चर

अचर

नाग

नर



िऽभुवन

दे वा



मिहमा

सकल

करिहं

हर

द न्हा

िचत

िबहिस

पुरार

भवानी

आसनु



नाथ

जैस

मातु

पिहं

अनुमानी

मम



॥१०६॥

अिधक

िबःवनाथ अ

िसर

लावन्यिनिध

सोह

पारबती

सुरसिरत

आई िूय

पद

बानी

॥ ॥ ॥३॥

तु हार

पंकज

॥१॥ ॥२॥

सैलकुमार

िबिदत



सेवा

॥ ॥४॥

दोहरा ूभु

समरथ

जोग

सब य

यान

बैरा य



मो

पर



ूभु

हरहु

मोर

अस

हृदयँ

जासु

भवनु

सिसभूषन ूभु

जे

सेस

सारदा

तु ह

पुिन

रामु

सो

ूसन्न

होई

िबचार

राम

पुराना राम

नृपित

गुन

धाम



स य

मोिह

िनज

दासी

कलपत

जािनअ किह

रघुनाथ



सिह

िक

। ।

िदन

कला





सुत

ूनत



परमारथबाद

बेद

अवध

सुखरासी तर

सकल

िनिध

अ याना

सुरत

मुिन

िसव

हरहु

सकल ।





सोई

सादर अज

िबिध

मित

राम

॥१०७॥

जिनत

मम

करिहं

राती

कथा

दिरि

नाथ

कहिहं

नाम

कहँु

रघुपित जपहु

नाना दखु ु

ॅम

सोई

भार



अनाद

गुन

गाना

अनँग

आराती

अगुन

अलखगित

िबरहँ

मित

कोई

दोहरा ज

दे ख

नृप

चिरत

तनय



मिहमा



सुनत

िकिम

ॅमित

नािर

बुि

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अित

मोिर

भोिर



॥१०८॥

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस



अनीह

अ य मै

- 50 -

यापक

जािन बन

िरस

मिलन

अजहँू

कछु

ूभु

तब

तब

कर

कहहु

कोऊ

जिन

धरहू

उर

द ख

तदिप

िबभु

राम मन

ूभुताई

बोधु

संसउ

मन

मोिह बहु अस



जेिह



अित

आवा



भय



सोइ तु हिह

भाँित

समु झ

जिन

िच

भुजगराज

॥१॥

पावा

॥२॥



जोर बोधा

मन

भूषन



करहू

कर

करहु

पर

सोऊ सुनाई

हम

िबनवउँ

रामकथा



मोिह

िमटै

भली

कृ पा

सो



गाथा

मोह

फलु

। नाथ

नाथ

िबकल

करहु

नाह ं

गुन

बुझाइ

िबिध

सो



ूबोधा अब

राम

कबहु



मोरे

भाँित

िबमोह

पुनीत



बालकांड

॥ ॥३॥

माह ं

सुरनाथा

॥ ॥४॥

दोहरा बंदउ

पद

बरनहु जदिप

धिर

रघुबर

जोिषता त व



अित

आरित

ूथम

सो

कारन

पुिन

ूभु

कहहु

बन

बिस

राज

बैिठ

साधु

सुरराया

जानक

क न्हे क न्ह ं

िबबाह ं



मन

। ।

कहहु



सकल

धार

जिम

कहहु

संकर

॥ ॥२॥

उदारा

दष ू न

नाथ

॥१॥

दाया

बपु कहहु

सो



पाविहं

किर

पुिन

तजा

तु हार

जहँ

सगुन



॥१०९॥

बचन

कहहु

बालचिरत



लीला

बम



राज

जोिर

िनचोिर

कथा

िनगुन ।

कर

अिधकार

रघुपित

अपारा

बहु

दासी आरत

अवतारा

चिरत

िस ांत



िबचार

राम

करउँ

ौुित



दराविहं ु

कहहु

िबनय

जसु

अिधकार

पूछउँ

जथा

िस

िबसद

निहं

गूढ़उ

कहहु

धरिन

काह ं

रावन

॥ ॥३॥

मारा

सुखलीला

॥ ॥४॥

दोहरा बहिर ु

कहहु

ूजा

पुिन

ूभु

भगित औरउ जो

सिहत कहहु

यान राम

िब यान

रहःय

क न्ह

रघुबंसमिन त व

बखानी

िबरागा अनेका होई

तु ह

िऽभुवन

गुर

बेद

बखाना

ूःन

उमा

सहज

ौीरघुनाथ

रामचिरत प

उर

सुहाई सब

। ।

आवा

जेिहं

। ।



नाथ

सोउ

िनज

आन

जीव

िबह न

सुिन

ूेम

पुलक

परमानंद दोहरा

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मुिन

सिहत

अित

िबबेका

जिन

पाँवर

का

िसव

मन

लोचन सुख

यानी

िबभागा

िबमल

राखहु

अिमत



॥११०॥

मगन

बरनहु

दयाल

राम

धाम

िब यान

सब

कहहु

छल

आए

अचरज

गवने

पुिन



निह

िहयँ





पूछा कै

जो

िकिम



हर

ूभु

सो

क नायतन

गोई जाना भाई

जल

छाए

पावा

॥ ॥१॥ ॥

॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 51 -

मगन

यानरस

दं ड

जुग

रघुपित

चिरत

महे स

तब

झूठेउ

स य

जािह

जेिह

जान

जग

बंदउँ

बाल प

मंगल

भवन

ूनाम

धन्य

धन्य

पूँछेहु

रघुपित

जान

जाइ

सोई



सब

िऽपुरार

िगिरराजकुमार कथा

रघुबीर



चरन

हरिष

तु ह

ूसंगा



अनुरागी

जथा

सपन

ॅम

जपत

सुधा

समान

सकल



रजु

दसरथ

लोक

क न्हहु

जगत

तव

मन

जाई नामू

॥ ॥१॥ ॥

अ जर

िबहार

॥२॥

कोउ

उपकार

॥३॥

िगरा

जग

ूःन

पिहचान

जसु

सम

निहं



॥१११॥

िबनु

सुलभ

सो

क न्ह

लीन्ह

भुजंग

िसिध

िवउ

बाहे र

बरनै

जिम जाग





मन

हरिषत

। ।

हार

रामिह

पुिन

हे राई

रामू

अमंगल

किर

तु ह

िबनु

बालकांड

उचार

पाविन िहत

गंगा लागी

॥ ॥

॥४॥

दोहरा रामकृ पा सोक तदिप

हिर

नयन न्ह िसर

जन्ह

जो

पारबित

मोह

असंका

जन्ह ते



संदेह

क न्हहु

कथा संत

दरस

कटु

हिरभगित

निहं

सुनी

तुंबिर

करइ कठोर

िनठु र

िगिरजा

सुनहु

राम

मम

सोई



निहं

काना



दे खा



समतूला

जे

आनी



कछु

िबचार

कहत



निहं

राम

कुिलस

ॅम

निहं

हृदयँ

सपनेहुँ

सुनत

रं ी

लोचन



नमत

जीवत

सव

गाना



जीह

सो

सोइ

छाती



सुिन

हिरचिरत

लीला



सुर

कर

िहत

मोरपंख हिर

िहत

दनुज

सब

सुख

होई

समाना

कर

गुर

लेखा

पद

समान

दादरु



॥११२॥

अिहभवन

गुन कै

नािहं

सब

ौवन

मािहं



॥१॥ ॥

मूला

॥२॥

समाना

॥३॥

तेइ

जीह



जो

ूानी

हरषाती

िबमोहनसीला



॥ ॥४॥

दोहरा रामकथा

सुरधेनु

सम

सतसमाज

सुरलोक

सब

कर

तार



संसय

कुठार



सादर

रामकथा

सुंदर

रामकथा राम

किल

नाम

िबटप

गुन

जथा

अनंत जथा

ौुत

उमा

ूःन

तव

तदिप

राम

चिरत

सहज

को

सुहाए

भगवाना

जिस

सेवत

मित



। ।

मोर

सुहाई

सुनै

जनम तथा ।



अस

जािन

सुनु

कथा

दे ख

किहहउँ

संतसंमत

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॥११३॥

िगिरराजकुमार

अगिनत क रित



उडाविनहार

िबहग

करम

सुखद

दािन

ौुित

गुन

ूीित

मोिह

॥ ॥१॥

गाए



नाना

॥२॥

भाई

॥३॥

अित

तोर



रामचिरतमानस

एक

- 52 -

बात

तुम

जो

निह कहा

मोिह

राम

सोहानी

कोउ



आना



बालकांड

जदिप

जेिह

मोह

बस

ौुित

गाव

धरिहं

मसे

जे

मोह

कहे हु

भवानी

मुिन

याना

॥ ॥४॥

दोहरा कहिह

सुनिह

पाषंड

हिर

अ य

अकोिबद

लंपट

कपट

कहिहं

ते

मुकर

मिलन

जन्ह

जन्ह



कुिटल

िबसेषी



कृ त

बानी

नयन

काई

। ।

सगुन

िबबेका

जगत

ॅमाह ं



महामोह

मद



पाना





मन

लाभु

दे खिहं

निहं

कहा

निहं

॥१॥

हानी द ना

॥ ॥२॥

अनेका

अघिटत

नाह ं

बचन

किरअ



दे खी

बचन

बोलिहं

ितन ् कर

लागी

िकिम

क पत कछु



॥११४॥

निहं

सूझ

कहत

ते

साच मुकर

ज पिहं

ितन्हिह

मतवारे



राम ।

िपसाच

संतसभा

जन्ह

िबह ना



िबषय

सपनेहुँ



िबबस

झूठ

जानिहं

अभागी



भूत

नर

िबमुख

असंमत

बस

बातुल

पद

अगुन

हिरमाया

अधम

अंध

बेद



अस

॥ ॥३॥

िबचारे

निहं

काना

॥ ॥४॥

सोरठा अस सुनु सगुनिह अगुन जो जासु

िनज

हृदयँ

िगिरराज

अगुनिह अ प

गुन नाम

ॅम

स चदानंद

सहज

ूकास प िबषाद

राम



अज

कैस

िदनेसा भगवाना यान



यापक

जग

राम

बचन

सगुन

जलु

िहम

उपल



िकिम

किहअ

तहँ

मोह

तहँ

पुिन

जीव

िबलग

बुध

बेदा

लवलेसा िबहाना

अहिमित

अिभमाना

परे स

॥१॥

जैस

ूसंगा

िनसा



होई

निहं

िबमोह

परमानन्द



॥११५॥

सो

िब यान

धम



जाना

मम पुरान

बस

तेिह

पद

मुिन

ूेम

निहं

अ याना

कर

गाविहं

निहं



भजु

भगत ।



रिब





पतंगा

ितिमर

संसय

तम

भेदा

जोई

सोइ

तजु

ॅम

कछु

निहं सगुन

राम हरष

कुमािर

अलख

रिहत

िबचािर

पुराना



॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा पु ष

ूिस

रघुकुलमिन िनज

ॅम

जथा

गगन

निहं घन

ूकास मम

ःवािम

समुझिहं पटल

िनिध सोइ

ूगट किह

िसवँ

अ यानी



ूभु

िनहार



झाँपेउ

पर

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परावर नायउ मोह मानु

नाथ माथ धरिहं

कहिहं

॥ ॥११६॥

जड़

ूानी

कुिबचार

॥ ॥१॥

रामचिरतमानस

िचतव

- 53 -

जो

उमा

लोचन

राम

िबषय

िबषइक

करन

सब

कर

जगत

अंगुिल अस

सुर

परम

ूकासक त

ूगट



जड

तम



सकल

जोई



रामू



माया

जुगल

नभ

समेता

ूकासक

स यता



मोहा

जीव

ूकाःय

जासु

लाएँ

बालकांड

सिस

धूम

राम

धूिर

एक अनािद

भास

सोहा

॥ ॥२॥

सचेता

अवधपित इव

भाएँ

एक

यान

स य

के

जिम



मायाधीस



तेिह

सोई

गुन मोह

॥ ॥३॥

धामू सहाया

॥ ॥४॥

दोहरा रजत

सीप

जदिप

मृषा

महँु

मास

ितहँु

सोइ

िबिध

जग



सपन

िसर

काटै

कोई



जासु

कृ पाँ

अस

ॅम

िमिट

जाई

आिद

अंत पद

आनन

कोउ चलइ

रिहत

आिौत

जासु



सुनइ

िबनु

सकल

रहई

िबनु

परस

नयन

अिस

सब

भाँित

अलौिकक



कर



िबनु

करनी

सकइ

। ।

कर

कोउ



दिर ू

सोइ

अनुमािन

िनगम

करम

बानी

महइ मिहमा

दख ु

होई

अस

गावा

कृ पाल

बकता

बड़

जाइ

॥ ॥१॥

रघुराई

िबिध

िबनु

जासु

अहई

दख ु

करइ

यान



॥११७॥

दे त

िगिरजा िबनु

बािर

टािर

अस य

जाग



दे खा

भानु

जदिप

मित

काना

िबनु





भोगी

तनु



िबनु

पावा

रस

जथा

ॅम

एिह

िबनु

हिर

काल

जिम

॥ ॥२॥

नाना

जोगी

बास

॥३॥

असेषा

निहं

बरनी

॥ ॥

॥४॥

दोहरा

कासीं सोइ िबबसहँु

सादर

जेिह

इिम

सोइ

दसरथ

मरत

जंतु

ूभु

मोर नाम

सुिमरन

जे

सो

अस

संसय

सुिन

िसव

परमातमा

भइ

रघुपित

आनत के

बेद

सुत

अवलोक

उर

ॅम

भंजन

पद

ूीित



माह ं

भव

तहँ

। ।

बचना ूतीती

रघुबर

ॅम िमिट ।

अित िबराग गै दा न

दोहरा

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अघ इव

अिबिहत सकल सब

िबसोक



अंतरजामी

रिचत गोपद



॥११८॥

करउँ उर

अनेक

यान ।

सब

बािरिध

यान

भगवान बल

नाम

जनम



मुिन

कोसलपित

। ।

करह ं

धरिहं

जासु

कहह ं

भवानी

जािह

िहत

ःवामी

नर नर

बुध

भगत

चराचर

जासु

राम

गाविह

दहह ं

गुन

असंभावना



तरह ं तव

कुतरक

॥१॥

बानी जाह ं

कै

॥२॥ ॥ ॥३॥

रचना

बीती



॥४॥

रामचिरतमानस

- 54 -

पुिन

पुिन

बोली कर

तु ह

कृ पाल

नाथ

कृ पाँ

ूथम

राम

पद

िगिरजा

सिस

अब

ूभु

सम

जो





पूछा

तु हार

धरे उ

नरतनु

उमा

बचन

सुिन

ूेम ।



राम

ःव प

जािन

मोिह

परे ऊ

ूभु

चरन

ूसादा



जदिप

सहज

केिह

हे तू

परम



सब





िबनीता

मो

पर

रिहत

सब

मोिह



॥११९॥

सरदातप

जानी



सािन



मोह

भयउँ

कहहू

पािन

िमटा

सुखी

सोइ

पंक ह रस



अिबनासी

नाथ

जोिर

िबषादा

िकंकिर

िचनमय

गिह मनहँु

हरे ऊ

गयउ

आपिन

बर

िगरा

संसउ

अब

मोिह

बचन

सुिन

सबु

कमल

बालकांड

जड

नािर

ूसन्न उर

समुझाइ

रामकथा

पर

॥१॥ ॥ ॥२॥

बासी

॥३॥

पुर

अहहू

बृषकेतू

ूीित



अयानी

ूभु

कहहु

भार

पुनीता

॥ ॥

॥४॥

दोहरा िहँ यँ

हरषे

बहु

कामािर उमिह

िबिध

तब

ूसंिस

संकर

पुिन

बोले

सहज

सुजान

कृ पािनधान

॥१२०(क)॥

नवान्हपारायन,पहला िवौाम मासपारायण, चौथा िवौाम सोरठा सुनु

सुभ

कथा

कहा

भुसुंिड

बखािन

सुना

िबहग

नायक

सो

संबाद

उदार

जेिह

िबिध

राम

अवतार

चिरत

परम

सुनहु

हिर म

गुन

भवािन

नाम

िनज

मित

अपार अनुसार

सुनु

िगिरजा

हिर

अवतार

हे तु

जेिह

होई

राम

अत य

बुि

मन

बानी

तदिप

संत

हिरचिरत

मुिन

तस



सुमु ख

जब

जब

होइ

तब

तब

करिहं

अनीित

ूभु

बेद

सुनावउँ धरम

कथा

कै

जाइ

निहं

धिर

िबिबध

भा

आग

कहब

सुंदर

अनघ

॥१२०(ग)॥



अगिनत



िबपुल

िबसद

इदिम थं

किह





मत

जस

सादर

हमार

अिमत

सुनहु

िनगमागम जाइ

अस

कछु

कहिहं

न सुनिह

ःवमित



समु झ

परइ

जस

हानी



बाढिहं

असुर

अधम

सर रा

। ।

सीदिहं

हरिह

िबू

कृ पािनिध

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। ।

॥१२०(घ)॥

तोह बरनी



॥१२०(ख)॥

उमा



िबमल

ग ड

कहउँ

सुहाए

पुराना

रामचिरतमानस

सोई सयानी

अनुमाना कारन

धेनु

गाए

मोह

अिभमानी सुर

स जन

धरनी

पीरा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥



॥४॥

रामचिरतमानस

- 55 -

बालकांड

दोहरा असुर

मािर

जग

िबःतारिहं

जस

राम

जनम

के

हे तु

एक

दइु

कहउँ

ारपाल िबू

हिर ौाप

होइ

बीर

नरहिर

दोऊ भाई



लोचन



पुिन

मारा

सेतु

हे तु

जन

तनु

एक सुनु



सुमित

भवानी

िबजय

जान

सब

तामस

असुर

दे ह

ितन्ह

धिर

बराह



जन

सुरपित

मद

बपु

एक

ूहलाद

सुजस

धरह ं एका



िबिदत



॥१२१॥

िहत

िबिचऽ

जगत ।

कर

सावधान

जय

ौुित

जन्म

परम ।



िनज

कृ पािसंधु



िब याता

दसर ू



बखानी

हाटक

समर

राम

तरह ं

अनेका

दनउ ू



राखिहं

जस

भव

िूय



कनककिसपु िबजई

भगत

के

सुरन्ह

िबसद

सोइ जनम

गाइ

थापिहं

कोऊ पाई मोचन िनपाता

िबःतारा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा भए

िनसाचर

जाइ

रावण

सुभट

कुंभकरन मुकुत एक कःयप



भए

बार

हते

ितन्ह

िहत

तहाँ

महाबीर

सुर

भगवाना

के

अिदित

तेइ

िबजई



तीिन

लागी

िपतु



माता

एक

कलप

एिह

िबिध

अवतारा

एक

कलप

सुर

दे ख

संभु

क न्ह

संमाम

दखारे ु

अपारा

परम

सती

असुरािधप

नार



जनम



तेिह

जलंधर

िब याता

िकए सन

मरइ

तािह



सुर

कारज

ूवाना

अनुरागी

कौस या

महाबल

बल

बचन

पिवऽ

समर

। ॥१२२॥

भगत

दसरथ

दनुज



ि ज

सर र

चिरऽ



जान

जग

धरे उ



बलवान

संसारा सब

हारे

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥



मारा

॥३॥

जतिहं

पुरार

॥४॥

दोहरा छल जब तासु

ौाप

तहाँ

जलंधर

एक

जनम

ूित

अवतार

नारद

ौाप

िगिरजा

टारे उ

तासु

जानेउ

मरम

किर तेिह हिर रावन कर द न्ह भई

तब



ूभु

केर

एक

बारा

सुिन

बानी

। रन ।

एहा

ूभु ौाप

ूमाना

भयऊ कारन

कथा

चिकत

द न्ह

ॄत

कोप

कौतुकिनिध हित जेिह



सुनु



नारद

द न्ह कृ पाल

राम

परम

पद

लािग

राम

धर

मुिन

कलप ।

किर

क न्ह

बरनी

एक

किबन्ह



॥१२३॥ भगवाना दयऊ नरदे हा घनेर

तेिह

लिग

अवतारा

िबंनुभगत

पुिन

यािन

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॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥

रामचिरतमानस

- 56 -

कारन

कवन

यह

ौाप

ूसंग

मोिह

मुिन

द न्हा

कहहु

पुरार

बालकांड





का

मुिन

अपराध

रमापित

मोह

आचरज

मन

क न्हा भार

॥ ॥४॥

दोहरा बोले

िबहिस

महे स

तब

यानी

मूढ़



कोइ



जेिह जस रघुपित करिहं जब सो तस तेिह छन होइ ॥१२४(क)॥ सोरठा कहउँ

राम

भव

भंजन

िहमिगिर

गुहा

आौम

परम

िनर ख

सैल

सुिमरत

हिरिह

मुिन सुनासीर जे

एक

कामी

पाविन

गित

बाधी

सुरेस

जाहु

महँु

लोलुप

ऽासा

जग

माह ं

दे विरिष भयउ



चकेउ ।



मद

॥१२४(ख)॥ सुहाविन

अित

रमापित

पद

मन बोिल

अनुरागा समाधी

क न्ह

िहयँ

काक

भावा

लािग

दे विरिष

कुिटल



सुरसर

हरिष

चहत

सुनहु

मन

िबमल

कामिह



अिस

समीप

सहज

डे राना हे तू

बह





मम

मान

दे ख

िबभागा

सादर

तज





िबिपन

दे ख

भर ाज

तुलसी

सुहावा

ौाप

मन

भजु

अित

सिर

सहाय

गाथ

रघुनाथ

पुनीत

गित

सिहत

गुन

जलचरकेतू

मम

इव

समाना पुर

सबिह

बासा डे राह ं

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा

तेिह

सुख

हाड़

छ िन

लेइ

आौमिहं

कुसुिमत चली

दे ख

सहाय

काम

कला

सीम

िक

जब

िबटप

बहु

कछु चाँिप

गयऊ

। ।



तान

मदन

ितिम

बयार

नबीना

ःवान

जड़

बहरंु गा

िऽिबध

सुरनािर

सठ

जान

मदन

सुहाविन गान

भाग

जिन

िबिबध

रं भािदक करिहं

लै

िनज





लाज

मायाँ

कूजिहं

असमसर



बहिबिध ु

क न्हे िस

मुिनिह



यापी



िनज

सकइ

कोउ

तासु



बड़

नाना

मनोभव

रमापित

पापी

जासू

दोहरा सिहत गहे िस

सहाय जाइ

सभीत मुिन

चरन

अित तब

मािन किह

हािर सुिठ

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मन

आरत

मैन बैन

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

पतंगा

िबिध

डरे उ

रखवार

ूबीना पािन

ूपंच भयँ

भृंगा

बढ़ाविनहार

कला

ब ड़िह

पुिन

िनरमयऊ

गुंजिह

कृ सानु



॥१२५॥

बसंत

कोिकल

काम

सकल

तरं गा

हरषाना

सुरपितिह



मृगराज

िनर ख



॥१२६॥

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 57 -

भयउ



नाइ

चरन

मुिन

नारद

मार बार

िस क

आपिन मन

नारद

जिन



करनी



आवा पाह ं

सुनाए

िबनवउँ

मुिन

हिरिह



पाई

िसव

संकरिहं

बार

रोषा

अचरजु

गवने

चिरत

ितिम

कछु

आयसु

सुसीलता

सुिन सब तब

मन

किह

िूय

गयउ

बचन

मदन

सुरपित

काम

तब

सभाँ

जाइ

ूसंिस

हिरिह



जता

काम

अहिमित

तोह ं



जािन

जिम ।

कबहँू

यह

कथा

चलेहुँ

मन

दराएड ु ु



॥२

माह ं

िसखाए

सुनायहु

ूसंग

॥१॥

बरनी नावा

िस

महे स



सहाई

सब

मुिनिह अितिूय

पिरतोषा

सिहत

। ।

सुनावहु

बालकांड

मोह ं तबहँू

॥ ॥

॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा संभु

द न्ह

भार ाज

कौतुक

राम

क न्ह

संभु

बचन

मुिन

एक

बार

करतल

छ रिसंधु

उपदे स

चाहिहं

हरिष

सोइ

उिठ

बीना

चराचर

काम

चिरत

नारद

राया

रघुपित

कै

माया

गावत

हिर

गुन

बस

जेिह

लोक

ूबीना

ौुितमाथा

क न्ह

मोह

िसधाए

िरिषिह

ूथम



कोई

गान

आसन

ज िप

निहं

ौीिनवास

िदनन



॥१२७॥

अस के

बहते ु



अन्यथा

बैठे



बलवान

िबरं िच



भाषे

सोहान

तब

जहँ



सब

करै





नारदिह इ छा



रमािनकेता

िबहिस ूचंड



भाए

मुिननाथा

िमले

निहं हिर

होई

निहं

बर

बोले अित

सुनहु

मन

गवने

िहत

बर ज

अस

दाया

िसवँ

को

॥१॥ ॥ ॥२॥

समेता

मुिन



राखे

जग

जाया

ौीभगवान



॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा ख

बदन

तु हरे सुनु नारद

सुिमरन

मुिन

ॄ चरज

मोह ॄत

होइ रत

कहे उ

क नािनिध

मन

सो

मै

मुिन

कर

िहत

तब

नारद िनज

बचन



िमटिहं

मन

ताक

मितधीरा

सिहत

बेिग

ौीपित

किर

हिर

पद

माया



कौतुक

होई

िसर

नाई

ूेर

यान



मद िबराग

िक

उर

मान हृदय

करइ

तु हािर

कृ पा



उखार

तब

मार

तु हिह

िबचार

डािरहउँ मम



बोले

मोह ।

अिभमाना

दख

मृद ु

अंकुरे उ

निहं

मनोभव सकल

गरब

पन

हमार



अविस

उपाय

करिब

हृदयँ

अहिमित

चले

सुनहु

किठन

दोहरा

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पीरा भार

सेवक

करनी

जाके

भगवाना



। ।

॥१२८॥

िहतकार मै

तेिह

सोई अिधकाई केर

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 58 -

िबरचेउ

मग

ौीिनवासपुर बसिहं

नगर



सुंदर

तेिहं

पुर

बसइ

सत

सुरेस

सम

िबःवमोहनी

तासु

सोइ

हिरमाया

करइ

ःवयंबर

मुिन

कौतुक

सुिन

सब

महँु

नगर

तेिहं

अिधक

नर



सीलिनिध

राजा

िबभव

िबलासा

सब सो

नगर चिरत

तेिहं

तेज

आए ।

आए



रित सेन

बल

नीित

तासु

पु

िक

तहँ

अगिनत

पुरबािसन्ह

सब

किर

पूजा



॥१२९॥

गय

जसु

सोभा



ूकार

हय

िबमोह



गयऊ

भूपगृहँ



िबःतार

मनिसज

अगिनत

ौी

नृपबाला

बहु



खानी

जोजन

िबिबध

जनु ।



गुन

सत

रचना

नार

कुमार

बालकांड

तनुधार समाजा िनवासा

॥१॥ ॥

िनहार

॥२॥

मिहपाला

॥३॥

जाइ

बखानी

पूछत

नृप



भयऊ

मुिन

बैठाए

राजकुमािर





॥ ॥४॥

दोहरा आिन

दे खाई

कहहु

नाथ

दे ख



ल छन

तासु

जो

एिह

गुन

मुिन

दोष

िबरित

िबलोिक

बरइ

सेविहं

सकल

सुता

सुल छन

कर

जाइ

ल छन

नारदिह

उर

राखे

किह

नृप

पाह ं

जतन







िबचार

िबचािर

हृदयँ

बड़

हृदयँ

होई

ताह

के

। ।

िबचािर

सोइ

एिह

िबसार

सोइ

चराचर

सब

सब

भुलाने

अमर

भूपित

बार

लिग

॥१३०॥ रहे

िनहार

हरष

निहं

ूगट

बखाने

समरभूिम

तेिह

जीत



बरइ

सीलिनिध

कछुक

बनाइ



नारद

चले



जेिह

ूकार

जप तप कछु न होइ तेिह काला । हे

कन्या

जाह

भूप सोच

सन

मन

मोिह

कोई भाषे

माह ं

बरै

कुमार

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥

॥३॥ ॥

िबिध िमलइ कवन िबिध बाला ॥४॥

दोहरा एिह

अवसर

जो

िबलोिक

हिर

सन

माग

मोर

िहत

बहिबिध ु

ूभु

अित आपन जेिह

हिर

आरित प

िबिध

कुअँिर

सुंदरताई



निहं

क न्ह मुिन

नाथ

कथा ूभु

होइ

तब



जुड़ाने

सुनाई

। मोरा

। ।



जयमाल

अित

अवसर

सहाय

सोइ

ूभु काजु

करहु

कृ पा

भाँित सो

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॥१३१॥

गह

होइिह

करहु

िबसाल

जात ूगटे उ

आन ।



मेलै

एिह

काला

मोह िहत

सोभा

होइिह

कोऊ

तेिह नयन

किह दे हु

परम

र झै

सम

िबनय

िबलोिक

चािहअ

भाई होऊ

कौतुक िहएँ

किर

कृ पाला

पाव

बेिग

दास

॥१॥ ॥

हरषाने

॥२॥

ओह

॥३॥

होहु

निहं



सहाई



तोरा





रामचिरतमानस

- 59 -

िनज

माया

बल

दे ख

िबसाला



बालकांड

िहयँ

हँ िस

बोले

द नदयाला

॥४॥

दोहरा जेिह

िबिध

सोइ कुपथ

हम

माग

एिह

िहत

माया

िबबस

गवने

तुरत मन

मुिन सो

कछु

याकुल

रोगी



ठयऊ



कारन लख

अित

मोर



बहु

हिर

द न्ह



नारद

॥१३२॥

ूभु

किर

िनगूढ़ा

सिहत



जािन

भयऊ बनाई



जाइ

सबिहं

भोर बखाना

िसर

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

समाजा

बािरिह

कु प

जोगी

िगरा

भूिम

आनिह



मुिन

अंतरिहत

निहं

तज

हमार

सुनहु

ःवयंबर



पावा

दे इ

बनाव

मोिह

तु हार

मृषा

अस

जहाँ



कृ पािनधाना



समुझी



सुनहु



किह



राजा

काहँु

बैद



बैठे

नारद

बचन



मूढ़ा

िरिषराई

आसन

चिरऽ



मुिन

तहाँ

िहत

िहत

आन

तु हार

हरष

परम



भए

िनज

मुिन

करब



िबिध

िनज

होइिह

नावा

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा रहे

तहाँ

िबूबेष जिह तहँ

दइु

दे खत

समाज

बठे

गन

दोऊ

कूिट

र झिह

राजकुअँिर

मुिनिह

मोह

मन

हाथ

जदिप

सुनिहं

मुिन

अटपिट

काहँु



मकट

नारदिह

बदन

। ।

दे खी



भयंकर

इन्हिह

बानी

दे ह

बिरिह

हिर

संभु



समु झ

िबसेषा





लखइ

द न्ह



परइ

सो

दे खत



कोऊ

हिर

सुंदरताई

जािन

िबसेषी

बुि

स प

हृदयँ

अिधकाई

अित

गन



॥१३३॥

अहिमित

गित

हँ सिहं

भेउ

तेउ



नीिक



सब

कौतुक

हृदयँ



पराएँ चिरत

जानिहं

िबूबेष

सुनाई

छिब

सो

ते परम

जाई

करिहं

लखा

गन

िफरिहं

मुिन

महे स

बैठ

ि

सचु ॅम

पाएँ सानी

नृपकन्याँ

बोध

भा

दे खा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

तेह

दोहरा सखीं

संग

दे खत

िफरइ

जेिह

िदिस

पुिन

पुिन

धिर

नृपतनु

दलिहिन ु

बैठे मुिन

लै

तहँ गे

लै

कुअँिर मह प

नारद उकसिहं गयउ

तब

सब

फूली



कर सो

अकुलाह ं



कृ पाला



ल छिनवासा



चिल

जनु

सरोज िदिस

दे ख

जयमाल

दे िह दसा

कुअँिर नृपसमाज

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राजमराल

न हर

हरिष सब

॥१३४॥

िबलोक गन मेलेउ

भयउ



भूली

मुसकाह ं जयमाला िनरासा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

रामचिरतमानस

- 60 -

मुिन

अित

िबकल

तब

हर

अस

किह

बेषु

िबलोिक

गन

म हँ

बोले

दोउ

मित

नाठ



मुसुकाई



िनज

भागे

बोध

भयँ

अित

भार

बाढ़ा

मिन

िगिर

मुख





बालकांड

गई

मुकुर

बदन

दख

ितन्हिह

छूिट िबलोकहु

मुिन

सराप

जनु

जाई

बािर

द न्ह

गाँठ िनहार

अित

गाढ़ा

दोउ



॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा होहु

िनसाचर

हँ सेहु

पुिन फरकत दे हउँ बीचिहं

जल

हमिह

सो

दख

अधर ौाप

प कोप

िक

पंथ

जाइ

लेहु

फल

िनज

पावा

मन

माह ं

मिरहउँ

जाई

िमले

मधुर

बचन

सुरसा

सुनत

बचन

उपजा

अित

सकहु

निहं

मथत

संपदा िसंधु

ििह



। ।



मोर

कहँ

चले

सुरन्ह

रहा

पाह ं कराई

क मन

इिरषा

ूेर

आवा

राजकुमार

िबकल



तु हर



उपहास

सोइ

बस

॥१३५॥

कमलापित

रमा

माया

कोउ

संतोष

चले

संग

दे खी

हृदयँ

जगत

मुिन

बोधा

मुिन

तदिप





पापी

हँ सेहु

सपद



बौरायहु

कपट

बहिर ु



दनुजार

बोले पर

तु ह

िबष

पान

॥१॥ ॥ ॥२॥

ना बोधा

कपट



िबसेषी करायहु

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा असुर

सुरा

परम

ःवतंऽ



भलेिह

मंद

मंदेिह

डहिक

डहिक

करम

सुभासुभ

भले

भवन

अब

बायन

बंचेहु

मोिह

जविन

धिर

ःवारथ

िबष

साधक

संकरिह

कुिटल

िसर

तु ह

पर

भल

पिरचेहु

सब

तु हिह

कोई

करहू



आपु

सदा





बाधा



द न्हा

किप

आकृ ित

तु ह

क न्ह

मम

अपकार

क न्ह

तु ह

। ।

तु ह कछु

असंक

मन

सदा

तु हिह



पावहगे ु तनु



फल धरहु

किरहिहं



॥१३६॥

िहयँ

लिग

नार

करहु

चा



हरष

अब



यवहा

मनिह

अित

सोइ

हमार भार

भावइ



मिन

कपट

िबसमय

काहू

दे हा

रमा

कस

िबरहँ

तु ह

॥१॥

काहँू

साधा

॥२॥

मम

एहा

उछाहू

बहु

िबनती

क न्हा

सहाय होब

तु हार दखार ु

दोहरा ौाप

िनज

सीस

माया

धर

कै

हरिष

ूबलता

िहयँ

ूभु

करिष

कृ पािनिध

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ली न्ह



धरहू

आपन ौाप

सोई

क न्ह



॥१३७॥

॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 61 -

जब

हिर

माया

तब

मुिन

अित

मृषा म जपहु

होउ दबचन ु

दिर ू

िनवार

सभीत

हिर

मम

ौाप

कहे

बहते ु रे

जाइ

संकर

निहं

िसव

समान

जेिह

पर

कृ पा



अस

उर

धिर

चरना

मुिन

कह नामा

िबचरहु

पाप

अिस



सो



अब

जाई

न कह

िमिटिहं

परतीित न

द नदयाला मेरे

तुरंत तजहु

तु हिह

िबौामा

जिन

मुिन

पाव

हरना

िकिम

हृदयँ



राजकुमार

ूनतारित

इ छा

होइिह



पुरार

पािह

मम



मोर

रमा

गहे

। िूय

तहँ

। ।

करिहं

मिह

निहं

कृ पाला

सत

कोउ



बालकांड

भोर

भगित

माया

हमार

िनअराई

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा बहिबिध ु

मुिनिह

स यलोक हर

गन

अित हर

गन

ौाप

हम अनुमह जाइ

भुजबल

िबःव

चले

होहु



। ।

कृ पाला



दोऊ

तु ह

तब

भए

अंतरधान

राम

गुन

गान

िबगतमोह

गिह

मुिनराया

तु ह

जतब

दे खी

आए

िबू करहु

करत

पथ

पिहं



ूभु

चले

जात

नारद

िनिसचर समर

नारद

मुिनिह

सभीत

ूबोिध

पद

बड़

अपराध

बोले



जिहआ।धिरहिहं

मरन

हिर

हाथ

तु हारा

जुगल

मुिन

पद

िसर



नाई



क न्ह

होइहहु

फल

तेज

बल

मनुज

मुकुत

भए

सुनाए पाया

द नदयाला

िबपुल िबंनु

िबसेषी

बचन

नारद

बैभव

॥१३८॥ हरष

मन

आरत





िनसाचर

तनु

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

होऊ



तिहआ॥३॥

पुिन

संसारा

कालिह

पाई

॥ ॥४॥

दोहरा एक सुर एिह कलप तब िबिबध हिर रामचंि

रं जन

िबिध कलप तब

के

यह

ूसंग

ूभु

कौतुक

हे तु

स जन

जनम

ूभु

कथा

ूभु

सुखद

करम

ूित

ूसंग अनंत

एिह

कलप

हिर

हिर ।



गाई





करिहं

हिरकथा

अनंता



कहिहं

म ूनत

कहा



कलप

भवानी



िहतकार



सुिन

सुनिहं लिग

हिरमायाँ सेवत

भार

सुलभ

सोरठा

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िबिचऽ

जािहं

मोहिहं सकल

घनेरे करह ं

ूबंध

आचरजु बहिबिध ु



॥१३९॥

नानािबिध

पुनीत

न कोिट

अवतार

सुखद

चिरत परम

बखाने सुहाए

भुिब

सुंदर

चा

अनूप चिरत

मनुज

भंजन

केरे

अवतरह ं

मुनीसन्ह

लीन्ह

बनाई सयाने

सब न मुिन दख ु

संता गाए यानी हार

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 62 -

सुर

नर

अस

मुिन

कोउ

िबचािर

नािहं

मन

कथा





भयउ

तु ह

दे खा



भवानी



सती

कारन

अज

अगुन

चिरत

अजहँु



लीला

छाया

क न्ह

भर ाज लगे

िमटित

तु हार



तेिहं

अवतारा



जो

सुिन

संकर

बहिर ु



अ पा

िफरत

अवलोिक

बरने

ूबल

िबिचऽ

जेिह जासु

माया

कहउँ

सैलकुमार

भ जअ

मोह

पितिह

सुनु िबिपन



महामाया

हे तु ूभु

जेिह

मािहं

अपर जो

बालकांड

बानी

चिरत

सब

सो

सकुिच



सो

िबःतार भूपा

धर

मुिनबेषा

रिहहु

सुनु

बौरानी

ॅम

किहहउँ

मित

सूेम

उमा

अवतार

॥१४०॥

कोसलपुर

समेत

सर र

तासु



बृषकेतू

बंधु



भयउ



हार

अनुसारा मुसकानी

जेिह

हे तू

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥



॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा सो



राम ःवायंभू

तु ह

कथा

मनु

दं पित

उ ानपाद

लघु

सुत

पुिन

आिददे व

सां य तेिहं

नाम

मनु



तासू



कुमार

जन्ह राज

बहु

मुनीस

मन

मंगल

करिन

सुहाइ

हिर



काला



अनूपा

भगत

भयउ

सुत

जेिहं

लीका

ूसंसिह

कदम

त व

ूभु

नरसृि कै

धरे उ



॥१४१॥

जन्ह

पुरान



लाई

ौुित

मुिन

जठर

भै

बेद

जो

बखाना



गाव

ीुव



ूगट

क न्ह

अजहँु



सुनु

जन्ह

ताह

द नदयाला

सा



िूेॄत

तासु

सबु हरिन

नीका

सुत

ूभु

मल

सत पा

आचरन

नृप

कहउँ

किल



धरम

दे वहित ू

सन

कै

िबचार

आयसु

सब

बसत

भा

॥ ॥२॥

कृ पाला

॥३॥

िनपुन िबिध

॥१॥

जाह

िूय

किपल

जासू



नार

भगवाना ूितपाला

॥ ॥

॥४॥

सोरठा होइ



िबषय

हृदयँ

बहत ु

बरबस

राज

तीरथ

बर

नैिमष

बसिहं

तहाँ

मुिन

पंथ

जात

आए

िमलन

जहँ

जँह

पहँु चे

जाइ

दख ु

सुतिह

सोहिहं

तब

तीरथ

लाग

िस

जनम

मितधीरा

रहे





समाजा

मुिन

भवन

द न्हा

िब याता

धेनुमित

िस

िबराग

तीरा



यानी सुहाए

हिरभगित

नािर

समेत

अित ।



गयउ

तहँ यान

हरिष

भगित

धरम

जनु

नहाने

धुरंधर

मुिनन्ह

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िबनु

गवन

साधक

िहयँ

हरिष

। ।

पुनीत

चौथपन

सकल



॥१४२॥ बन

क न्हा

िसिध चलेउ धर

दाता मनु

िनरमल नृपिरिष सादर

राजा

॥ ॥१॥ ॥

सर रा

॥२॥

जानी

॥३॥

नीरा

करवाए





रामचिरतमानस

कृ स

- 63 -

सर र

मुिनपट

पिरधाना



बालकांड

सत

समाज

िनत

सुनिहं

पुराना

॥४॥

दोहरा ादस

अ छर

बासुदेव

पद

पंक ह

साक

फल

करन

तप

करिहं

अहार

पुिन

उर

अिभलाष

िनंरंतर

होई

अखंड

अनंत

अनाद

जेिह

बेद

संभु

िबरं िच

िबंनु

भगवाना

ऐसेउ

ूभु

सेवक

बस

स य

जेिह

ौुित

भाषा

परम

िनजानंद



तौ

यागे

ूभु

सोई

परमारथबाद िन पािध

जासु

भगत ।

फल

िचंतिहं

उपजिहं

अहई

स चदानंदा

मूल

नयन



॥१४३॥



अधार





लाग

सुिमरिहं

दे खा ।

अनुराग

अित

बािर

िन पा

नेित

बचन





नेित

यह



लागे

सिहत

मन

कंदा

हिर



जपिहं

दं पित

पुिन अगुन

हे तु

मंऽ

अंस

हे तु

नाना

लीलातनु

हमार

पूजिह

॥१॥ ॥ ॥२॥

अनूपा





॥ ॥३॥

गहई

अिभलाषा

॥ ॥४॥

दोहरा एिह

िबिध

बीत

संबत



सह

पुिन

बरष

सहस

दस

यागेउ

सोऊ

िबिध

हिर

तप

दे ख

अपारा



मनु

समीप

मागहु

बर

बहु

भाँित

लोभाए



परम

धीर

अ ःथमाऽ

होइ

ूभु

सब य

मागु

मागु

रहे

सर रा

दास ब

िनज भै

मृतक

जआविन

॑ पु

तन

बरष

भए



रहे



सुहाए



ठाढ़े



रहे

ौबन मानहँु

पद

आए

बारा

निहं

चलिहं

मनिहं

निहं

पीरा

तापस

नृप

उर

भवन

सानी

ते

॥ ॥२॥

रानी

जब

॥ ॥१॥

चलाए

कृ पामृत

होइ

अबिहं

दोऊ

बहु

गभीर रं ी



॥१४४॥

एक

अनन्य

परम

आहार

अधार

मनाग

गित



बािर

समीर



बानी

सुहाई

सहस

तदिप

जानी

नभ

िगरा

षट

॥ ॥३॥

आई

आए

॥ ॥४॥

दोहरा ौवन

सुनु सेवत

सुधा

बोले

मनु

सेवक

सुरत

सुलभ



अनाथ

जो

स प

सम किर

बस

सुिन

पुलक

दं डवत

ूेम



सुरधेनु

सकल िहत

बचन

हम िसव

सुख पर मन



िबिध

दायक नेहू

माह ं

। ।



ूफु लत हृदयँ

हिर

तौ

ूसन्न

जेिह

कारन

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समात

हर

ूनतपाल

गात

बंिदत सचराचर होइ

मुिन

यह जतन



॥१४५॥ पद

रे नू

नायक बर

॥ ॥१॥

दे हू

कराह ं

॥ ॥२॥

रामचिरतमानस

जो

- 64 -

भुसुंिड

दे खिहं

हम

दं पित

बचन

भगत

बछल

मन

मानस

सो



हं सा

भिर

परम



सगुन

लोचन

िूय



लागे

अगुन

कृ पा



कृ पािनधाना

ूभु

बालकांड

करहु

मुदल ु



जेिह

िनगम

ूसंसा

ूनतारित

िबनीत

मोचन

ूेम

िबःवबास

रस

ूगटे

॥ ॥३॥

पागे

भगवाना

॥ ॥४॥

दोहरा नील

सरो ह तन

सोभा

िनर ख

सरद

मयंक

बदन

छिब

सींवा

अधर

अ न

रद

लाजिहं

नव

अबुंज

भुकुिट कुंडल उर

ौीब स

किर



नीरधर

कोिट

चा



ःयाम

सत

कपोल

काम

िनकर

िबिनंदक

िचतविन

लिलत

भावँती

ितलक

ॅाजा



कुिटल

केस

जनु

पिदक

हार

भूषन



चा

जनेउ



सुभग

भुजदं डा



दर

कर



ललाट

बाहु

मीवा हासा

जी

पटल

कर

रे ख

बर

॥१॥ ॥ ॥२॥

मिनजाला

॥३॥

समाजा

सुंदर

िनषंग





दितकार ु

मधुप

िबभूषन

किट



॥१४६॥

िचबुक

हार

बनमाला

सिर

नील

िबधु

िचर

कंधर कर

िसर

कोिट



नीक

छिब

मुकुट

मिन

नासा

छिब

चाप

मकर

केहिर

सुंदर

अंबक

मनोज

नील

तेऊ

सर

कोदं डा

॥ ॥ ॥४॥

दोहरा तिडत

िबिनंदक

नािभ पद

राजीव

मनोहर बरिन

लेित

निह

पीत

पट

जनु

जाह ं

जमुन



उदर

भवँर

मुिन

मन

मधुप

बाम

भाग

सोभित

अनुकूला



जासु

अंस

उपजिहं

गुनखानी



अगिनत

भृकुिट

िबलास

जासु

जग



राम

हिर



िबलोक

सादर



अनूपा

छिबसमुि िचतविहं हरष

िबबस

तन

दसा

िसर

परसे

ूभु

िनज

होई

भुलानी कर

आिदसि

। ।

छिब

। कंजा



बसिहं

ल छ

बाम

िदिस

रहे

न परे

छ िन



॥१४७॥

जेन्ह

छिबिनिध

एकटक तृि

तीिन

माह ं

जगमूला उमा

ॄ ानी

सीता

सोई

नयन

पट

रोक

मानिहं

मनु

सत पा

इव

गिह

पद

दं ड तुरत

पानी

उठाए

क नापुंजा

मोिह

जािन

दोहरा बोले

मागहु

कृ पािनधान बर

जोइ

पुिन

भाव

अित मन

ूसन्न

महादािन

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अनुमािन



॥१४८॥

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 65 -

सुिन

ूभु

बचन

नाथ

दे ख

एक

लालसा

पद

दे त

जथा

दिरि

िबहाइ

मागु

धिर





सुगम

पाई



बहु



पूरे



नृप



मोिह

काम

किह

लाग

मोिह

सो

नाह ं

मम

निहं

॥१॥ ॥

कृ पना

॥२॥

सकुचाई

संसय



होई

मनोरथ

अदे य



हमारे

िनज

मोर

मोर

बानी

मागत

हृदयँ

पुरवहु

मृद ु

जात

संपित

तथा

अंतरजामी

बोली

सब

अगम

अगम

सोई

धीरजु

अब



निहं

जानहु



गोसा

िबबुधत

तु ह

सकुच

माह

सुगम

जान

पानी

तु हारे

उर

अित

ूभा

सो

जुग

कमल

बिड़

तु हिह तासु

जोिर

बालकांड

॥३॥

ःवामी

कछु



तोह

॥४॥

दोहरा दािन

िसरोमिन

चाहउँ

तु हिह

दे ख

ूीित

सुिन

आपु

सिरस

सत पिह जो ब ूभु

खोज

नाथ

समान

सुत

बचन

अमोले

कहँ

िबलोिक

जाई

कर

ूभु

सन





जोर

कहउँ



सितभाउ

कवन

दराउ ु

एवमःतु

नृप

तव

दे िब

मागु

॥ ॥१४९॥

क नािनिध

तनय

होब



जो

बोले





आई

िच

॥१॥

तोरे



नाथ चतुर नृप मागा । सोइ कृ पाल मोिह अित िूय लागा ॥२ ॥ परं तु

सुिठ

तु ह

ॄ ािद

अस

समुझत

जे

कृ पािनिध

िनज

होित

जनक मन

भगत

जग

जदिप

ःवामी

संसय

नाथ



िढठाई

तव



भगत



होई



कहा

अहह ं



जो

िहत

सकल जो

सुख

तु हिह

उर

ूभु



अंतरजामी

ूवान

पाविहं

सोहाई

जो

पुिन गित

॥३॥

सोई

॥ ॥४॥

लहह ं

दोहरा

सुनु जो मातु

सोइ

सुख

सोइ

िबबेक

मृद ु

गूढ़

कछु

गित

सोइ

तु हे र

बर

चरन

मनु

सुत

िबषइक

मिन

िबनु

फिन

अस



मािग

अब

तु ह

मम

तव

कहे उ

भगित ूभु

माह ं

तोर





बहोर

सोइ

हमिह

रचना

मन

अलोिकक

बंिद

सोइ

रहिन

िचर

िच

िबबेक

सोइ

कृ पा



सो

सब

अवर मोिह

होऊ



जिम

जल

िबनु

मीना।मम

अनुसासन

रहे ऊ

मानी

दे हु

बोले

रित

गिह

किर

कृ पािसंधु

पद चरन

चरन

। कबहँु



िनज



। बसहु

द न्ह



िमिटिह

एक बड़

जीवन एवमःतु जाइ

सोरठा

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॥१५०॥

मृद ु

बचना

संसय ूभु

कहै ितिम

॥१॥

मोर



मोर

िकन तु हिह

क नािनिध सुरपित



नाह ं

अनुमह

िबनित मूढ़

सनेहु

॥२॥

कोऊ



अधीना॥ कहे ऊ

रजधानी

॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 66 -

तहँ

किर

होइहहु इ छामय

अवध

सिहत

सुिन

आिदसि पुरउब

दे ह

जेिहं

अस

ताता



सोउ



पुिन

पुिन

दं पित

उर

धिर

भगत

कृ पाला

समय

पाइ

तनु

तज

अनयासा

स य

कृ पािनधाना

तु हार





भगत

सुखदाता

॥१॥

अवतिरिह

मोिर

अंतरधान

जाइ

मद

माया

स य

हमारा

भगवाना

भए िनवसे

क न्ह

यागी

यह

पन

आौम

॥१५१॥ तु हारे

ममता

तेिहं



िनकेत

चिरत

स य

पुिन

सुत

तिरहिहं





काल

ूगट

भव



तु हारा

किह

होब

किरहउँ



उपजाया

अिभलाष

कछु

होइहउँ

बड़भागी

जग

गउँ





धिर नर

तात

तब

सँवार

सादर



िबसाल भुआल

नरबेष

अंसन्ह जे

भोग

बालकांड

कछु

काला

अमरावित

बासा

॥ ॥२॥



॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा यह

इितहास

भर ाज

सुनु

पुनीत

अित

अपर

पुिन

उमिह

राम

कह

जनम

बृषकेतु हे तु

कर



॥१५२॥

मासपारायण पाँचवाँ िवौाम सुनु

मुिन

कथा

पुनीत

िबःव

िबिदत

धरम

धुरंधर

नीित

भए

जुगल

तेिह



राज

धनी

अपर भाइिह जेठे

एक

जो

सुतिह सुतिह

कैकय







द न्हा

गुन नाम

भुजबल



सकल



ूित

हिर

बसइ

धाम

आपु

नरे सू बलवाना

महा

ूतापभानु

दोष

बखानी

सील

अतुल

िहत

संभु

तहँ

ूताप

सब

आह

समीती

नृप

तेज



नामा

िगिरजा स यकेतु



बीरा

सुत

परम

जो

दे सू

सुत

जेठ

राज



िनधाना

अिरमदन

भाइिह

पुरानी

रनधीरा अस

अचल

छल

संमामा

बर जत

गवन

ताह

बन

ूीती क न्हा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा जब

ूतापरिब

ूजा नृप सिचव

पाल

िहतकारक संग

सेन

िबलोिक

िबजय

अित

हे तु

नृप

बेदिबिध

सिचव

सयाना

बंधु

बलबीरा

सयान

सेन

भयउ

चतुरंग राउ कटकई

अपारा

कतहँु ।

। ।

अघ

अ सुिदन

दे स लेस

धरम िच

आपु

अिमत

हरषाना

दोहाई

नह ं

नाम ।



बनाई

िफर

सुभट बाजे सािध

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ूतापपुंज सब गहगहे नृप



॥१५३॥

सुब

समाना रनधीरा

समर

जुझारा

िनसाना चलेउ

बजाई

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥

रामचिरतमानस

- 67 -

जँह

तहँ

पर ं



दप

भुजबल

सकल

अनेक

अविन

बस

मंडल

लरा



क न्हे



तेिह

बालकांड

जीते

काला

सकल

लै

लै



एक

भूप

दं ड

बिरआई

छािड़

नृप

ूतापभानु

॥३॥

द न्ह



मिहपाला

॥४॥

दोहरा ःवबस

िबःव

अरथ भूप सब सिचव गुर

धरम

दख ु

बल

बर जत

धरम िच

भूप

धरम

िदन

ूित

नाना िबूभवन

सेवइ

समयँ



ूीती



नृप करइ

बेद

बखाने



सकल

िबिध

दाना

तड़ागा



सुरभवन

सुहाए

। सब

सुहाई

नर

सादर

सा

बर

बािटका

कै

॥१॥

नीती सेवा

सुख बेद

पुराना बागा

िबिचऽ

॥ ॥२॥

माने

सुंदर

तीरथन्ह



नार

िनत

सब

करइ

सुनहु

॥१५४॥

िसखव

नृप

सुमन



सुंदर

सदा



भूिम

हे तु

िहत

ूबेसु

नरे सु

भै

धरमसील



कूप

क न्ह

कामधेनु

मिहदे वा

िबिबध

बापीं

पुर



सुखार

पद

िनज

िपतर

जे दे ह

सुख

पाई

ूजा

हिर

संत

बाहबल ु

कामािद

ूतापभानु

सुर

किर

बनाए

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा जँह

लिग

बार

सह

कहे सह

हृदयँ



कछु

फल

करइ

जे

धरम

करम

चिढ़

बर

बा ज

बार

िबं याचल

गभीर

िफरत बड़

िबिपन िबधु

कोल

कराल

घु घुरात

हय

मन



बासुदेव

बानी राजा ।

बराहू

छिब

। ।

पुनीत

जनु

बन



गाई



पाएँ



बहु

दरेु उ

मनहँु

सुजाना

नृप

यानी

सा ज

समाजा

मारत सिसिह

भयऊ मिस

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

राहू

बोधबस

उिगलत

िबसाल

पीवर

अिधकाई

िबलोकत

कान

उठाएँ

तनु

चिकत

सब



॥१५५॥

परम

अिपत

कर

मृग

जाग

अनुराग िबबेक

मृगया

माह ं

सब

सिहत भूप

मुख

आरौ

िकए

एक



गयऊ

समात

एक

अनुसंधाना

दख

दसन

ौुित

नृप

एक

बन

नृप

निह

पुरान

नाह ं

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा नील चपिर आवत तुरत

दे ख क न्ह

मह धर चलेउ

िसखर

नृप

सुटु िक

हय

अिधक सर

सम

रव

बाजी

संधाना



दे ख

नृप

हाँिक



चलेउ

मिह

िबसाल न

होइ

बराह

िमिल

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गयउ

बराहु

िनबाहु म त



॥१५६॥

गित

िबलोकत

भाजी बाना

॥ ॥१॥

रामचिरतमानस

- 68 -

तिक

तिक

ूगटत

तीर

दरत ु

गयउ

जाइ

दिर ू

अित

मह स

अकेल

मृग

भागा

घन

गहन

बन

िबपुल

कोल

िबलोिक

अगम

दे ख

चलावा

भूप नृप

। ।

बराहू

बड़ अित

किर

िरस ।

कलेसू

बालकांड

छल

बस

जहँ



सुअर

भूप

चलेउ

नािहन

तदिप



सर र संग

लागा

गज

बा ज

मग

तजइ

मृग

धीरा



भािग

पैठ

पिछताई



िफरे उ

महाबन

बचावा िनबाहू

नरे सू

िगिरगुहाँ

गभीरा

परे उ

भुलाई

॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा खेद

छुि त

खोजत

याकुल

सिरत

िबिपन

आौम

एक

िफरत जासु

खन्न

दे स

समय

नृप

सर

राजा

जल

दे खा



कपट

मुिनबेषा

सेन

तज

गयउ

पराई

कर

जानी



आपन

मन

िरस

उर

मािर

तासु

समीप

गवन

नृप

राउ

तृिषत

निह

सो

उतिर

तुरग

रं क

बहत ु

गलानी

जिम

क न्ह



क न्हा



। ।



असमय

राजिह

िबिपन

यह

पिहचाना ूनामा

अित

िमला

राजा

॥१५७॥

नृपित

समर

गृह

अचेत

बस





भयउ



तहँ

छड़ाई

गयउ

समेत

बा ज

िबनु

लीन्ह

ूतापभानु



तृिषत

बसइ

नृप

अनुमानी अिभमानी

तापस

ूतापरिब

तेिह



दे ख

सुबेष

परम

चतुर





तब

चीन्हा

महामुिन

कहे उ

साजा जाना

िनज

नामा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहा

गै

भूपित

तृिषत

म जन

पान

ौम

आसन को

सकल द न्ह

तु ह

नाम िफरत

सुखी अःत

कस के

चबबित

अहे र कहँ

कह

मुिन

हय

नृप

भयऊ जानी

िफरहु

ल छन

तोर

अवनीसा परे उँ

दलभ ु तात

तेिहं

समेत

रिब बन

ूतापभानु

हम

िबलोिक

सरब

क न्ह ।

भुलाई

बोलेउ



सुंदर

जुबा

तासु

दरस

तु हारा

भयउ

अँिधयारा

बडे ।

दया

लािग

सिचव



भाग

दे खउँ ह

जानत ।

जोजन

स िर

लै

मृद ु

गयऊ बानी

जीव

परहे ल

अित

मोर

सुनहु

कछु



॥१५८॥

तापस

तापस

दे खत ।

आौम

पुिन

अकेल ।

दे खाइ

हरषाइ

नृपित

िनज





द न्ह

मुनीसा

पद

आई

भल

होिनहारा

नग

तु हारा

दोहरा िनसा बसहु

घोर आजु

ग भीर अस

बन

जािन

तु ह

पंथ जाएहु

न होत

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सुनहु

िबहान

सुजान



॥१५९(क)॥

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 69 -

तुलसी

तािह

पिहं

तािह

नाथ

आयसु

धिर

सीसा



भाित

बोले

मोिह



बैर

पुिन

समु झ

जान



िगरा

सुहाई



जािन



नाथ

नृप

जानी

नृपिह

पुिन

राजसुख बचन

सेवक

नृप

छऽी

बाँिध

ताह

सुत

चरन

जाइ

तुरग



िपता नाम

बल

क न्ह

चहइ



अवाँ

अनल

इव



बयर

करउँ

सो

सँभािर

॥ ॥१॥

सराह िढठाई

कहहु

छल

काना

सु॑द

मह सा

भा य



सुिन

भूप

बैठ

ूभु िनज



॥१५९(ख)॥

िनज

जाना

अराती

के

लै

बंिद



सहाइ

सो

राजा

द ु खत

िमलइ

तहाँ

ूसंसेउ

मृद ु

मुिनस

तेिह

सरल

तैसी

आवइ

बहु

पुिन

भवत यता

आपुनु भलेिहं नृप

जिस

बालकांड

बखानी

॥२॥

काजा

॥३॥

कपट

सयाना

िनज सुलगइ हृदयँ



छाती

हरषाना

॥ ॥

॥४॥

दोहरा कपट

बोिर

नाम कह

रहिह

तेिह



तु ह

सम

जोिस सहज

हमार

नृप

सदा

बानी

जे

िभखािर

िब यान

सोिस

दराएँ ु

संत

अधन

ौुित

िभखािर

तव

चरन

ूीित

भूपित

सब

ूकार

राजिह

सुनु

सितभाउ

कहउँ

िनधन

। सब

टे र



अगेहा

होत पर



आपु

अपनाई



बोलेउ

मिहपाला



कै

दे खी

कुबेष

बनाएँ

िूय

िबरं िच

िसविह

िबषय

इहाँ

अिभमाना

अिकंचन कृ पा

हिर

किरअ

॥१॥ ॥ ॥२॥

िबसेषी

॥३॥

ःवामी

सनेह

बीते

केर



संदेहा

अब

िबःवास

अिधक बसत



॥१६०॥

गिलत

कुसल

परम मो

समेत

िनकेित

सािरखे

िबिध





रिहत

तु ह



नमामी

जुगुित

बोलेउ

अब

िनधाना

अपनपौ कहिह

मृदल ु

जनाई

बहु

काला

॥ ॥

॥४॥

दोहरा अब

लिग

मोिह

लोकमान्यता



िमलेउ

अनल

कोउ

कर

सम



तप



जनावउँ

कानन

दाहु

मूढ़



चतुर

सम

असन

अिह

काहु



नर



॥१६१(क)॥

सोरठा तुलसी

दे ख

सुंदर

केिकिह

तात

गुपुत

रहउँ

ूभु

जानत

तु ह

सुिच

सब सुमित

सुबेषु पेखु

भूलिहं

बचन

जग

माह ं

िबनिहं

जनाएँ

परम

िूय

सुधा । । मोर

हिर कहहु ।

तज कविन ूीित

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िकमिप िसिध ूतीित

॥१६१(ख)॥ ूयोजन लोक मोिह

नाह ं

िरझाएँ पर

तोर

॥ ॥१॥ ॥

रामचिरतमानस

अब

- 70 -



जिम

तात

जिम

दरावउँ ु

तब

बोला



सुिन

करहु

मन

सृजइ

करिहं सुिन

तापस

मह स

मोिह

तोिह

तु हार

दे ख

तात

उप ज

पिर

पर ूताप

सब तव

सहज

ममता

अब

ूसन्न



सुिन

सुबचन

भूपित

कृ पािसंधु ूभुिह

तथािप

जरा एकछऽ

दरसन ूसन्न

मरन

दख ु

िरपुह न



। ।



ूीित कहउँ



मागु

तोर

। ।

पद

लाग

दोहरा

रिहत

तनु

मिह

राज

कहिहं

िपता जािन

ूतीित

नीित

िनज

अगम

समर कलप

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बर

जतै

भाव

सत

अकाजा िनपुनाई तोर

िबिध करतल होउँ

होउ

॥ ॥४॥

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥



नरे सा

मन

जिन

॥३॥

॥१६३॥

पूछे

क न्ह

पदारथ

मोह

नृप

तव

भूप

लयऊ

भल

तव

िबनय

मािग

िबबेका बखानी

िबचािर

कथा

चािर

लागा

तब

आपन

जो

संसारा

सो

कहत



चतुरता

किहअ

गिह

िबलोक

नाम

कछु िबरित

नाम कपट

नाह ं

पिरऽाता

आचरज

स यकेतु



हरषाना

अिमत

तहँ



मोर नाह ं

िन पन

सोइ

सुधाई

मन

संसय

मुिन

ूीित

राजा

करइ

सोरठा

िदनेसा

जािनअ

कहै





कछु

भए

पुरातन

॥२॥

॥१६२॥

दलभ ु



कथा

क न्हे हु

जहँ

बहोिर

िबंनु

आपन



नीित

अित



जानी

मोिर



कहे िस

भयऊ

आपन

अगम





तप

नाई

िस

भै

धर



बग यानी

पुिन

अित

तपबल



तोह

अिस

सुत

तप

अनुरागा

बस







कहानी

जानउँ

सुनु



बोले

उतपित

दे ह

अनेका

ूलय नृप

ूसाद

अित

तापस

तब

माह ं

तापस

सेवक

दोहरा

तेिह

संघारा

नृप

मोिह

िबधाता

इितहास

मिहप

नाम गुर

हे तु

जग



जबिहं

एकतनु

आच ज

पालन

कह

बखानी

उपजी

उदभव सुिन

भाई

अरथ

आिदसृि

धरम

िबःवासा



कर

करम

उपज

बानी

नाम

नृपिह

नृपिह

मन

कहहु

भयउ

मोह

ितिम

एकतनु

संभु

अित

ितिम

हमार

तपबल

घटइ



नाम



दोष

उदासा

कम

तपबल

दा न

कथइ

ःवबस

नाम



तापसु

दे खा

जिन

तोह

बालकांड

माह ं नाना मोर

असोक

कोउ



॥१६४॥

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

कह

- 71 -

तापस

नृप

ऐसेइ

कालउ

तुअ

पद

नाइिह

तपबल

िबू

सदा



िबून्ह

सब

चल



ॄ कुल

िबू

ौाप

हरषेउ तव



तौ

तुअ



स य

मिहपाला

बिरआई

सुिन

एक

ितन्ह

सुनु

सन



एक



नरे सा

ूभु

कारन

सीसा

बिरआरा

बचन

ूसाद



करहु

िबनु

राउ

होऊ

बालकांड

तासू

कृ पािनधाना

िबूकुल

के

बस नास



नाथ



मो

कोउ

िबिध

िबंनु

दोउ

निह

॥ ॥२॥

उठाई



काला

अब

काल

॥१॥

महे सा

भुजा

मोर

सब



रखवारा

कवनेहुँ

होइ

कहँु

सोऊ

मह सा



कहउँ

तोर

सुनु

छािड़

कोप

। ।

किठन

॥३॥

नासू

क याना

॥ ॥४॥

दोहरा एवमःतु

किह

िमलब

हमार

भुलाब

मै

छठ

ौवन

यह

ूगट

आन

उपायँ

स य

नाथ

पद

राखइ

गुर



कोप

िबधाता

चलब

हम

कहे



एकिहं

बरजउँ

िनज

तात



तोिह

कपटमुिन

यह

परत

अथवा

कहहु

डरपत



न तव

कह

कथा

कहानी



नास

तु हार



नाह ं

नृप

मन

नास





भाषा ।

तु हार मोरा





गुर

॥१६५॥

सुनु कहहु

कोउ

होउ

नास

निहं

मिहदे व

बानी

मन

निहं

॥१॥ ॥

माह ं को

॥२॥

राखा

जग



ऽाता

सोच

ौाप



भानुूतापा

कोपिहं कोप

अकाजा

मम

िबरोध

ूभु



परम

स य

हर

ि ज

गुर

खोिर

तोर

हिर



बहोिर

हमिह



तव

गिह

कुिटल

राजा ि जौापा

िनधन

डर

बोला

॥३॥

हमार

अित

घोरा

॥ ॥४॥

दोहरा

सुनु

िबू

बस

तु ह

तज

द नदयाल

नृप

िबिबध

अहइ

एक

मम

आधीन

आजु

लग





सुिन बड़े

जतन

अित अ

जब

जाउँ

सनेह

तव बोलेउ

लघुन्ह

अगाध

जग

मौिल

कहहु

िहतू

माह ं



उपाई

कृ पा



क सा य



तहाँ



मोर

जाब



भयऊँ



काहू

के

मृद ु

बानी करह ं

बह



। ।

फेनू

नाथ िगिर ।

बना

िनज

तव गृह

धरिन

दोहरा

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कोउँ

॥१६६॥

होिहं

िक न



नीित

धरत

होई

गयऊँ

असमंजस सदा

नाह ं

किठनाई

नगर माम

अिस िसरिन

सोउ

एक

आइ

िनगम

संतत

पुिन

परं तु

सोई अकाजू

किर

दे खउँ

नृप होइ

पर

िबिध िनज

सुगम

जुगुित

मह स

जलिध

कवन

होिहं

आजू

बखानी तृन

िसर

धरह ं रे नू

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥

॥४॥

रामचिरतमानस

- 72 -

अस

किह

गहे

नरे स

पद

ःवामी

मोिह

लािग

दख ु

सिहअ

ूभु

स जन

जािन

नृपिह

स य

आपन

कहउँ

अविस जोग

भूपित

आधीना



बोला

द नदयाल

तोह



जग

नािहन



किरहउँ

तोरा



मन

तन

तप

मंऽ

कर

ूभाऊ

सो

जोइ

जोइ

भोजन

करई



सोइ

सोइ

पुिन

ितन्ह

के

गृह

जेवँइ

जोऊ



तव

बस

नृप

तु ह

एहू



दलभ ु

तबिहं

अन्न

रचहु



फलइ

जब

प सहु

संबत



॥१६७॥

कपट

बचन



उपाय

रसोई



कृ पाल

तापस

नरे स

जाइ

होहु

सुनु

काज जुगुित



बालकांड

कछु त

किरअ

जान

तव

आयसु

होइ

॥१॥

मोरा



दराऊ ु

॥२॥

अनुसरई

॥३॥



भूप



मोह

भगत

मोिह

भिर

ूबीना

कोई

सुनु

संकलप



सोऊ

करे हू

॥ ॥४॥

दोहरा िनत

एिह

नूतन



तु हरे

िबिध

भूप

किरहिहं और

िबू एक

तु हरे

सहस

संकलप

लिग



अित

होम

तोिह

उपरोिहत

तपबल

ि ज

तेिह

मख कहऊँ

कहँु

धिर

तासु

बेषु

गै

िनिस

बहत ु

सयन



तपबल

तोिह

सुनु

। ।



बरष

पहँु चेहउँ

॥ ॥१॥

काऊ



माया

॥२॥

काजा

॥३॥

परवाना

सँवारब

भूप

तोर दे वा

आउब िनज

तोर

तोिह

बस बस



इहाँ

िबिध



िबू

किर

र खहउँ



॥१६८॥

सहजेिहं बेष

आनब

मोिह

समेता

सकल

एिह

सब

क जे

तुरग



पिरवार

जेवनार

ूसंग



समाना

अब

किरब

तेिहं

हिर

राजा

सिहत

होइहिहं



लखाऊ

आपु



। ।



बरे हु

िदनिहं

थोर

सेवा

राया

किर

सत

भट

िदन

सोवतिह



तीजे

िनकेता



॥४॥

दोहरा म

आउब

जब

एकांत

सयन

क न्ह

ौिमत

भूप

कालकेतु परम

तेिह

ूथमिह तेिहं

नृप िनिा

िनिसचर िमऽ

के

सत

भूप खल

सोइ

तापस

सुत

समर पािछल

बेषु सब

बोलाइ आयसु अित तहँ नृप



सब बय

धिर

पिहचानेहु

कथा

मानी

आसन िकिम



सो

आवा



जेिहं

केरा



जानइ

दस

भाई

मारे सँभरा



। ।

सुनाव



आई

तब

खल

िबू तापस

तोिह

जाइ सोव

सूकर

मोिह

॥१६९॥

बैठ

छल यानी

सोच

होइ



अिधकाई

नृपिह

भुलावा

॥ ॥१॥ ॥

सो

अित

कपट

घनेरा

॥२॥

संत

सुर

दे ख

दखारे ु

॥३॥

अित

नृप

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अजय

िमिल

दे व

मंऽ

दखदाई ु िबचारा





रामचिरतमानस

जेिह

- 73 -

िरपु

छय

सोइ

रचे न्ह

उपाऊ



बालकांड

भावी

बस



जान

कछु

राऊ



ताहु

॥४॥

दोहरा िरपु

तेजसी

अजहँु तापस

तापस

िरपु

नृपिह

भानुूतापिह

बा ज

नृपिह

पिहं

नािर

सोई

मूल

बहाई

। ।

। ।

भयउ

सुखार

सुख

पाई

तु ह

क न्ह

मोर

उपदे सा

िबआिध

िबिध

खोई

औषध



उिठ

॥१७०॥

बोला

चौथे

पिरतोषी

राहु



जातुधान

िबनु

कराई

िमलेउ





समेता

अवसेिषत

हरिष ।

नरे सा

गिनअ

िसर



सुनाई

सयन

किर

सिसिह

तु ह

बहत ु

लघु

िनहार

सुनहु

रहहु

समेत

रिब

कथा

िरपु

सोच

अिप

सखिह

सब

साधेउँ

पिरहिर

दख ु

िनज

किह

अब कुल

दे त

नृप

िमऽिह

अकेल

िदवस

चला

िमलब

महाकपट

पहँु चाएिस

छन

॥१॥ ॥ ॥२॥

आई



अितरोषी माझ

बाँधेिस

हयगृहँ





॥३॥

िनकेता

बा ज

बनाई

॥ ॥४॥

दोहरा राजा लै आपु

के राखेिस

िबरिच

जागेउ

नृप

मुिन

मिहमा

कानन गएँ

सम

समय

महँु

मायाँ

उपरोिहत

पा



परे उ

बा ज

जाम

जुग



िबहाना महँु

दे ख

अनुमानी

चिढ़

तेह ं

भूपित

दे ख

जब

राजा

नृपिह

गए

िदन

जािन

लै

खोह

मन

गयउ

हिर

िगिर

अनभएँ

उपरोिहतिह जुग

उपरोिहतिह

उपरोिहत

। ।



चिकत

आवा



जाइ

भोिर

तेिह

नर

॥१७१॥ अनूपा

अचरजु

जेिह

जान



जानेउ

घर

उ सव

बाज

िबलोिक

सुिमिर

सोइ

नृपिह

मुिन मते

पद

सब

रह किह



माना



कपट

नािर



सेज

अित

गवँिह

घर



बहोिर

मित

भवन

पुर

आवा तीनी

किर

उठे उ



गयउ

॥१॥

रानी



केह ं

॥२॥

बधावा



काजा

मित

॥३॥

लीनी

समुझावा



॥४॥

दोहरा नृप

हरषेउ

बरे

तुरत

उपरोिहत

जेवनार

मायामय

तेिहं

पिहचािन सत

सहस

बनाई

क न्ह

गु



रसोई

िबिबध

मृगन्ह

कर

आिमष

भोजन

कहँु

सब

िबू

ॅम

। राँधा

कुटंु ब

चािर

िबिध

बोलाए

िबंजन ।

तेिह ।

रहा

िबू

बर छरस

बस

बहु

पद

महँु

गिन िबू पखािर

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न समेत जिस सकइ माँसु सादर

चेत



॥१७२॥ ौुित न

गाई कोई

खल

साँधा

बैठाए

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

रामचिरतमानस

- 74 -

प सन

जबिहं

िबूबृंद

उिठ

भयउ

रसो

भूप

लाग उिठ

मिहपाला

गृह

जाहू

भूसुर

िबकल

मित



माँसू मोहँ



बालकांड



भै

है

बिड़

सब

भुलानी



अकासबानी हािन

ि ज

अन्न उठे

बस

भावी

तेिह

काला

जिन

मािन आव

खाहू

॥३॥

बानी

॥४॥

िबःवासू

मुख

॥ ॥

दोहरा बोले

िबू

जाइ

िनसाचर

छऽबंधु



ईःवर

राखा

संबत नृप िबूहु

चिकत तहँ

सब

िबचािर

िबू

सब

असन

ूसंग

तव

िबकल

ौाप न

हमारा

नास

अित

सुिन निहं

मूढ़

क न्ह

सिहत

पिरवार

घालै



जैहिस



समेत



जलदाता



रिहिह

ऽासा



िलए

भै

बहोिर

बर



निहं

अपराध

नभबानी



भूप

गयउ

सुआरा

सुनाई





िफरे उ

ऽिसत

िबचार

पिरवारा कुल

भूप

राउ

कोऊ

अकासा

कछु भोजन

मन

परे उ

समुदाई

िगरा

जहँ



॥१७३॥

सिहत

द न्हा

िबू

मिहसुरन्ह

कछु



होऊ



निहं

नृप

बोलाई

धरम

ौाप

तब

होहु

िबू

म य सुिन

सकोप

खानी

सोच

अवनीं

क न्हा अपारा

अकुलाई

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा भूपित

भावी

िकएँ

अन्यथा

किह

सब

अस सोचिहं

दषन ू

उपरोिहतिह तेिहं

खल

घेरे न्ह जूझे िरपु

जित

पहँु चाई पऽ

िनसान

सकल

सुभट

कुल सब

कोउ नृप

। ।

बजाई

किर



नगर

बाँचा

बंधु ।

बसाई



िकय

भाँित

िनज

पुर

होई

परे उ

नृप

िकिम

होइ

गवने

जनाई

सब

िनत

समेत

िबूौाप

भूप

जय

पाए जेह ं

खबिर

सेन



॥१७४॥

पुरलोगन्ह

काग

सज

तोर

घोर

तापसिह

िबिबध ।

अित

हं स

सज



दषन ू

समाचार

असुर

करनी

निहं



िबचरत

पठाए



िबूौाप

िसधाए

दे ह ं

तहँ

जदिप

निहं

मिहदे व

भवन

जहँ

निहं

होइ

दै विह

नगर

स यकेतु

िमटइ

धाए लराई धरनी असाँचा

जसु

पाई

दोहरा भर ाज धूिर

सुनु

मे सम

जािह

जनक

जब

जम

तािह

होइ

िबधाता

यालसम

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दाम

बाम



॥१७५॥

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 75 -

काल

पाइ

मुिन

दस

िसर

तािह

भूप

अनुज

सिचव

बीस

रहा

जे

काम प कृ पा

खल

जनस िहं सक



केरे

सो

भए

बरिन

बंधु

॥ ॥२॥

तासू िनधाना

घोर

घनेरे

िबगत

जािहं

॥१॥

बलधामा

िब यान

भयंकर



बिरबंडा लघु

िनसाचर



समाजा

कुंभकरन

िबमाऽ

कुिटल



बीर

िबंनुभगत

। ।

पापी

सब



सिहत

नाम

भयउ

जाना

अनेका

िनसाचर

भयउ

जासू

नृप

भयउ रावन



जग

सेवक

। ।

नामा

जेिह

सुत

रिहत

राजा

भुजदं डा

धरम िच

िबभीषन

रहे

सोइ

अिरमदन

जो

नाम

सुनु

बालकांड

॥ ॥३॥

िबबेका

िबःव

पिरतापी

॥ ॥४॥

दोहरा उपजे

जदिप

तदिप

मह सुर

क न्ह

िबिबध

तप

गयउ

िनकट

तप

दे ख

िबधाता

किर

िबनती

पद

गिह

दससीसा

हम

काहू

एवमःतु पुिन

ूभु



एिहं

सारद

के

ौाप

तीिनहँु

मरिहं

तु ह

बड़

खल

पिहं िनत

तासु

पावन

बस भाई

न तप

कुंभकरन

ूेिर

पुलः यकुल

भए

सकल

परम

उम

। । ।

मागहु

मार



बानर

क न्हा





अघ प

बर

बरिन

ूसन्न

बचन

मनुज

जाित

मन

िबसमय





मागेिस

होइिह

सब मास

पुऽ

बर

॥१॥

बार

बर

॥२॥ ॥

॥३

संसा

षट



द न्हा

भयऊ

उजािर

नीद



जगद सा

दइु

िबलोिक

जाई

ताता

सुनहु

तेिह

अहा

सो म

िमिल

करब



॥१७६॥

ॄ ाँ



फेर

तेिह

अनूप

निहं

बोलेउ

गयऊ

मित

अमल

केर

॥ ॥

॥४॥

दोहरा गए

िबभीषन

तेिहं

मागेउ

ित न्ह

दे इ तनुजा

सोइ

मयँ

हरिषत

िऽकूट

सोइ

मय त

एक दानवँ

जिस अिधक

नामा

कमल

भिल िसंधु

मझार

बहिर ु

सँवारा

र य

अित

परम ।

। । ।

रिचत

अमरावित िब यात

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नािर

बंधु

कनक

दोहरा

गृह

आए

ललामा

जातुधानपित

िनिमत

जग



॥१७७॥

अपने

सुंदर

िबिध । ।

ते

दोउ

मागु

अनुरागु

होइिह

पुिन

बासा बंका

अमल

हरिषत

आनी पाई

अिहकुल

। ।

रावनिह

नािर

कहे उ

पद

िसधाए

द न्ह

िगिर

ितन्ह



मंदोदिर

भयउ

भोगावित

भगवंत

बर

मय

पुिन

पास

जानी

िबआहे िस

जाई

दगम ु

अित

जिस

सबिनवासा

मिनभवन नाम

भार

अपारा

तेिह

लंका

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 76 -

खा

िसंधु

कनक

कोट

गभीर मिन

हिरूेिरत सूर

ूतापी िनिसचर

अब

तहँ

रहिहं

कतहँु

िबकट

िफिर

सब

सुंदर

सहज

िदिस

बरिन

कलप



जोइ दल

समेत



र छक

बिड़

कटकाई



दसानन

दे खा

के

खबिर

भट

अिस

अगम

पाई



अनुमानी

जेिह

जस

जोग

बाँिट

गृह

एक

बार

कुबेर

पर

धावा



। द न्हे

सेन

सा ज

ज छ

जीव

गयउ

सोच

क न्ह

तहाँ

सुखी

पुंपक

होइ

समर

संघारे

ज छपित

गढ़ लै

गए

॥१॥

पराई

॥२॥

जाई

भयउ

रावन

सकल

िबसेषा

रजधानी

रजनीचर

जीित

लै



केरे

घेरेिस

सुख

जान



॥१७८(ख)॥

सुरन्ह कोिट



॥१७८(क)॥

सोइ

सब





बनाव

बस

ूेरे

सब

आव

जातुधानपित

ते

भारे

िफिर

जाइ



भट

नगर

चािरहँु



अतुलबल

तहाँ

दे ख

खिचत

जेिहं

रहे

दसमुख

अित

बालकांड



॥ ॥३॥

क न्हे आवा

॥ ॥४॥

दोहरा कौतुकह ं

कैलास

पुिन

लीन्हे िस

मनहँु

तौिल

िनज

बाहबल ु

सुख

संपित

सुत

सेन

सहाई

िनत

नूतन

सब

करइ

पान

सोवइ

अितबल



कुंभकरन

िदन

समर

बाढ़त

अस

ूित

धीर

जेठ

जेिह

होइ



ॅाता

षट

कर

जाइ सुत रन

। ।



मासा

अहार

निहं

बािरदनाद

जाई

चला

जेिह

जागत





सनमुख

। भट

कोई

होइ

ितहँु

सम महँु



ूथम

॥१॥

ऽासा

॥२॥

पुर

जाता

चौपट

लीक



अिधकाई

बीर

िनतिहं

बड़ाई

जग

सब

अिमत

सुरपुर

॥१७९॥

लोभ

ूितभट

बेिग



बुि

निहं

िबःव

तेिह

पाइ बल

ूितलाभ

कहँु

उठाइ

सुख

ूताप

जिम

सोई

तासू

बहत ु

जय



बखाना

जाइ

होई

बलवाना जग

परावन

जासू होई



॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा कुमुख एक

अकंपन एक

काम प

जानिहं

दसमुख

बैठ

सुत

समूह

सेन

िबलोिक

सुनहु

सकल

कुिलसरद

जग सब

सभाँ

जन

सहज

जीित माया

एक

पिरजन

सक ।

रजनीचर



नाती

जूथा

ऐसे

सपनेहुँ

बारा

अिभमानी

धूमकेतु



। ।

सुभट जन्ह

दे ख

िनकाय क

अिमत

गे

बोला

अितकाय

को

पार

बचन

हमरे

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धरम आपन

बोध बैर

। ॥१८०॥ न

िबबुध



पिरवारा

॥१॥

सानी

॥२॥

िनसाचर मद

दाया जाती

ब था





रामचिरतमानस

ते

- 77 -

सनमुख

तेन्ह

निहं

कर

करह

मरन

ि जभोजन

लराई

एक

मख

िबिध

होम



दे ख

होई

सराधा

बालकांड





सबल

कहउँ

सब

िरपु

बुझाइ

कै

जाइ

जािहं सुनहु

करहु

पराई अब

तु ह

सोई

बाधा

॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा छुधा

छन

तब

मािरहउँ

मेघनाद जे

पुिन

जीित

रन

समर

ितन्हिह एिह

िक

कहँु

सुर

िबिध

धीर

दसानन

रावन

आवत



द न्ह

बलवाना



जन्ह

बाँधी

अ या डोलित



गजत

गभ

सकोहा



दे वन्ह

भार

िफरइ

जग

धावा

िकंनर

िस

सुहाए

ब न



धनधार

मनुज

सुर



नागा

ॄ सृि

जहँ

लिग

तनुधार

आयसु

करिहं

सकल

भयभीता



दे इ

दे वतन्ह

। ।

नविहं

जम

सबह

दसमुख

लीन्ह

सुर

रवनी खोहा पाए

गािर

पचार

कतहँु



सब के

िनत

पावा लागा

नर चरन

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

अिधकार

पंथिहं

बसबत

आइ

काँधी

दसानन

खौजत

काल

हिठ

कर िगिर

सकल

अिगिन



अनुसासन

मे

ूितभट

बढ़ावा अिभमाना

विहं

सूने ।

॥१८१॥

कर गदा

तके



बय

िपतु



किर

पवन

सुत

अवनी

िसंघनाद

सिस

लिरबे चलेउ

पुिन रिब

उिठ

बलु

आपुनु

लोक





आइ

अपनाइ

िसख



के

मद

भाँित

द न्ह

िदगपालन्ह रन

िमिलहिहं

भली

हँ करावा

सुनेउ

पुिन

सहजेिहं

छािड़हउँ

आनेसु

सबह

चलत

सुर

बलह न

॥ ॥५॥ ॥

नार

॥६॥

िबनीता

॥७॥

दोहरा भुजबल

िबःव

बःय

किर

राखेिस

मंडलीक

मिन

रावन

राज

करइ

गंधव

नर

दे व

ज छ

जीित

बर ं

िनज

इं िजीत

सन

जो

कछु

ूथमिहं

जन्ह

दे खत

भीम प

करिह

उपिव

जेिह

िबिध जेिहं

सुभ

आचरन

सब

िनकाया

धम

सो

सब

जनु

ितन्ह

॥१८२(क)॥

कर

कुमािर नािर

॥१८२(ख)॥

पिहलेिहं

चिरत

किर

सुनहु



धरिहं

किर

माया



सो

सब

करिहं

बेद

ूितकूला



नगर

कतहँु

निहं

होई

याना





दे व

गाउँ िबू

सपनेहुँ

पुर गु

सुिनअ

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आिग न

मान

बेद

पिरतापी

लगाविहं न



क न्हा॥१॥

नाना

पाविहं

दे व

जो

रहे ऊ



िनमूला

िनकर



िनिसचर

ि ज तप

बर





धेनु ज य

सुंदर

सुतंऽ

मंऽ

नाग

बहु





िनज

िकंनर



द न्हा

पापी

असुर

दे स

हिरभगित

कहे ऊ

आयसु

होइ

जेिहं निहं

कहँु

बाहबल ु

कोउ

कोई

पुराना

॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥

॥४॥

रामचिरतमानस

- 78 -

बालकांड

छं द जप

जोग

आपुनु

िबरागा

उिठ

अस



तेिह

बहिबिध ु

तप

धावइ

रहै

अचारा

भा

ऽासइ

मख

भागा



ौवन

पावइ

धिर

संसारा दे स

धम

िनकासइ

सुनइ

दससीसा



सब

घालइ

खीसा



सुिनअ

निह

काना



कह

बेद

पुराना



जो

सोरठा बरिन



िहं सा

जाइ

पर

अनीित

अित

ूीित

घोर

ितन्ह

िनसाचर

के

पापिह

जो

करिहं

कविन

िमित



॥१८३॥

मासपारायण छठा िवौाम बाढ़े

खल

मानिहं

मातु

जन्ह

के

अितसय िगिर

बहु

सिर

चोर

िपता

यह िसंधु

धम

धेनु



िनज

संताप

धिर

कै

भार

दे खइ

धम

निहं

आचरन

दे ख

सकल

जुआरा

लंपट

परधन

परदारा

सन

करवाविहं

सेवा



साधुन्ह

भवानी



ते

लानी



परम

निहं

मोह





रोई





िनिसचर

सभीत

तहाँ

काहू

रावन

एक भय

सुर

कछु

ूानी

अकुलानी

ग अ

जहँ



सब

धरा

मोिह सकइ

गई



जानेहु

जस

किह

िबचार

सुनाएिस

जे

दे वा

िबपर ता हृदयँ



परिोह

भीता

मुिन

काज

झार



होई

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥



॥३॥ ॥ ॥४॥

छं द सुर

मुिन

गंधबा

सँग

गोतनुधार

ॄ ाँ

सब

जा

भूिम जाना

किर

किर

िमिल



सबा

िबचार

मन

गे

परम

अनुमाना

दासी

सो

िबरं िच िबकल

मोर

के

हमरे उ



भय

सोका





बसाई



तोर

सहाई



कछू

अिबनासी

लोका

सोरठा धरिन

धरिह

जानत बैठे

सुर

पुर

बैकुंठ

जाके

हृदयँ

तेिह

समाज

हिर

जन

सब



करिहं

जान

यापक

मन

कह

भगित िगिरजा सबऽ

धीर

पीर

ूभु

िबचारा कोई

भं जिह





िबरं िच

कह

कहँ

कोउ

कह

ूीित



ूभु



रहे ऊँ



अवसर



ूेम

दा न

पाइअ

जिस

समाना

हिरपद

िबपित

ूभु

पयिनिध तहँ



ूगट

पाइ ूगट

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सुिम



॥१८४॥

किरअ बस

ूभु

सदा

बचन होिहं

पुकारा सोई

तेिहं

एक म

र ती

कहे ऊँ जाना

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥

रामचिरतमानस

- 79 -

दे स

काल

िदिस

अग

जगमय

मोर

बचन

िबिदिसहु

सब

रिहत

सब

के

माह ं



िबरागी



मन

माना

बालकांड

कहहु

सो

ूेम



कहाँ



जहाँ

ूभु

साधु

ूभु

ूगटइ

साधु

किर

नाह ं

जिम



आगी

बखाना

॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा सुिन

मन

िबरं िच

अःतुित

हरष

करत

तन

जोिर

पुलिक

कर

नयन

सावधान

बह

नीर

मितधीर



॥१८५॥

छं द जय

जय

गो

सुरनायक

ि ज

पालन

िहतकार

सुर सहज

जय

जय

अिबनासी िबरागी

िनिस

बासर

याविहं

जेिहं

सृि करउ

जो

भव

भय

बच ौुित

भव

बािरिध

मुिन

िस

घट

गुन

मुिन

बानी

छािड़

िपआरे

िरषय

मंदर सकल

बेद

। ॥

परमानंदा



मुकुंदा



मुिनबृंदा



िबगतमोह जयित

स चदानंदा



संग

सहाय





जािनअ

भगित



जा

िबिध

परम

कोई सोई

यापक

रं जन

पुकारे



गाविहं

सयानी

असेषा

सब सुर

मन

कंता

जानइ

मायारिहत

बनाई हमार



अनुमह

अनुरागी गन

भगवंता

िूय



बासी

पुनीतं

भंजन सेषा

दन

करउ

िचंत

बम

सारद

द नदयाला

िऽिबध

अघार

िसधुंसुता मरम

अित

उपाई

ूनतपाल

करनी

चिरत

लािग

सो

असुरार

सब

गोतीतं

जेिह

जेिह

अ त ु

कृ पाला

अिबगत

सुखदायक

जय

धरनी

जो

मन

जन

गंजन

सरन

सकल

कहँु

कोउ

िवउ सुंदर

भयातुर

पूजा



िबपित

ब था



सुर

जूथा



निह

जाना



सो

ौीभगवाना

गुनमंिदर

नमत

दजा ू

सुखपुज ं ा पद

कंजा

सनेह



नाथ

॥ । ॥

दोहरा जािन

सभय

गगनिगरा जिन अंसन्ह कःयप ते ितन्ह

नारद

डरपहु

सुरभूिम

गंभीर

मुिन

िस

सुिन

भइ

हरिन

सुरेसा



तु हिह

सिहत

मनुज

अवतारा

अिदित

महातप

क न्हा

कौस या

पा



जाई



दसरथ के

बचन

गृह

अवतिरहउँ

स य

सब

किरहउँ

बचन

। ।

सोक लािग कहँु



कोसलपुर ं रघुकुल परम

संदेह

॥१८६॥

धिरहउँ

नर

िदनकर

लेहउँ ितन्ह



समेत

ितलक

सि

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बंस पूरब

ूगट सो

समेत

बेसा

उदारा बर

द न्हा

नरभूपा चािरउ

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

भाई

अवतिरहउँ



॥३॥

रामचिरतमानस

- 80 -

हिरहउँ

सकल

गगन

ॄ बानी

तब

ॄ ा

भूिम

ग आई

सुनी

धरिनिह



बालकांड

िनभय

होहु

दे व

समुदाई

काना



तुरत

िफरे

सुर

हृदय

समुझावा



अभय

भई

भरोस

जयँ

इहइ

िसखाइ



जुड़ाना

॥४॥

आवा

॥५॥

दोहरा िनज

लोकिह

बानर गए

दे व

जो

कछु

बनचर

सब



िगिर

कानन

धिर िनज

धिर

िछित

माह ं

जहँ

सब

तहँ



रघुकुलमिन धुरंधर

दे व

अतुिलत ।

रहे





सो

बेद ।

हृदयँ

क न्हा

बीचिहं

तेिह

॥ ॥२॥



॥ ॥३॥

राखा

दसरथ

मित

पाह ं

रिच

। ॥१॥

मितधीरा

अनीक जो

भगित

िबौामा

ितन्ह

िचतविहं

सुनहु

िबिदत

॥१८७॥



ूताप

िनज



कहँु

िबलंब

मारग िनज

अब

जाइ मन

बल

हिर



यानी

सेवहु सिहत

हरषे



पूर

राऊ

पद

भूिम



भाषा

गुनिनिध



बीरा

भिर

चिरत

हिर

धामा द न्हा

आयुध

दे वन्ह

मिह

ॄ ाँ

िचर

अवधपुर ं धरम

िनज

नख

सब

धिर

गे

आयसु

दे ह

िगिर यह

तनु

िबरं िच

नाऊँ

सारँ गपानी

॥ ॥४॥

दोहरा कौस यािद

एक गुर िनज धरहु

नािर

पित

अनुकूल

बार

भूपित

गृह

सुख

सब

होइहिहं

सृंगी

िरषिह

भगित

सिहत बिस

यह

हिब

कछु बाँिट

माह ं

गुरिह सुत

मुिन

हिर



हृदयँ दे हु

नृप

लािग





िऽभुवन ।

द न्ह

किह

किर बिस

िबनय

भगत

सुभ

अिगिन



काजु

भा



सकल

जाई



जथा

जोग

नाह ं

जेिह



िबसाला

॥१॥

समुझायउ

भय

ज य

ूगटे

िबचारा

सुत

बहिबिध ु

िबिदत

पुऽकाम



मोर

। ॥१८८॥

िबनीत

गलािन

चरन

बोलावा

पुनीत

कमल

भै

सुनायउ

चार

आहित ु

आचरन

पद



मिहपाला

बिस

सब



मन

तुरत

धीर

जो

ूेम

गयउ

दख ु

िूय

हार करावा

कर

लीन्ह

िस

तु हारा

भाग

बनाई

॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥

॥४॥

दोहरा तब

अ ःय

परमानंद तबिहं अध

रायँ भाग

भए

मगन िूय

नािर

कौस यािह

पावक नृप

हरष

बोला द न्हा

सकल न ।



उभय

सभिह हृदयँ

कौस यािद भाग

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समुझाइ समाइ तहाँ

आधे



॥१८९॥ चिल

कर

आई क न्हा

॥ ॥१॥

रामचिरतमानस

- 81 -

कैकेई

कहँ

कौस या एिह जा

नृप

कैकेई

िबिध िदन

मंिदर

सो

दयऊ



र ो

हाथ

धिर



गभसिहत

सब

नार



गभिहं

आए

राजिहं

रानी

हिर

महँ

सब

बालकांड

सो

द न्ह

उभय

सुिमऽिह

। ।

मन



हृदयँ

सकल

लोक



सोभा

सुख जुत कछुक काल चिल गयऊ । जेिहं

भाग

पुिन

भयऊ

ूसन्न

हरिषत सुख

सील

किर

सुख

तेज

॥२॥

भार

संपित

छाए





खानीं

॥ ॥३॥ ॥

ूभु ूगट सो अवसर भयऊ ॥४॥

दोहरा जोग

लगन

चर नौमी



ितिथ

बन सो

अित

मंद कुसुिमत

गगन

पुनीता

सीत



िगिरगन

िबमल सुमन

अःतुित

करिहं

बाऊ

जब

। चले ।



बहिबिध ु

चाऊ

मन

सुर

सा ज

गगन

ब था

दं द ु भी ु

लाविहं

िनज

िनज

िनज

लोक

िबौाम

॥ ॥३॥

बाजी

िनज

॥ ॥२॥

िबमाना

गंधब

॥ ॥१॥

सिरताऽमृतधारा

गुन

गहगिह

िबौामा

संतन

सकल

हिरूीता

लोक

सकल

गाविहं



दे वा

सुर



॥१९०॥

अिभ जत

काल

विहं



साजी

मुिन

पावन

अनुकूल

सुखमूल

प छ

हरिषत

जूथा

सुअंजिल नाग

सुकल



जाना

सुर

जनम



मिनआरा

सकुल

बरषिहं



भए

सकल

राम

घामा

बह

िबरं िच

ितिथ

हषजुत

मास

सुरिभ

अवसर

बार

अचर

मधु

म यिदवस सीतल

मह

सेवा

॥ ॥४॥

दोहरा सुर

समूह

जगिनवास

िबनती ूभु

किर ूगटे

पहँु चे

अ खल

धाम



॥१९१॥

छं द भए

कृ पाला

ूगट

हरिषत

महतार

लोचन

अिभरामा

भूषन कह माया क ना सो

उपजा

कर

मम

जब

नयन

सागर िहत

सो

लागी िनिमत

बासी

याना

यह

ूभु

िनज

तोर अमाना आगर

जन

अनुरागी

आयुध

केिह

रोम

उपहासी

सुनत

धीर

बहत ु

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खरार कर

ूगट ूित पित

िबिध

अनंता

ौुित

। ॥

संता



ौीकंता



कहै



बेद िथर

। ॥

भनंता

गाविहं

भयउ



चार

पुरान

रोम चिरत

भुज

िबिध

जेिह



िबचार

सोभािसंधु

माया मुसकाना



बेद

गुन

िहतकार

अ त ु

िबसाला

अःतुित सब

कौस या

हार

घनःयामा

यानातीत

िनकाया उर

मन

तनु जोर

गुन

सुख

ॄ ांड मम

मुिन

बनमाला दइु

द नदयाला



क न्ह

रहै

चहै

॥ ।

रामचिरतमानस

- 82 -

किह

कथा

सुहाई

मातु

माता

पुिन

बोली

सो

क जै

िससुलीला

सुिन

बचन

यह

अित

जे

धेनु

िनज

इ छा

िससु

दन

परम

तहँ

धा

हरिषत

जहँ

दसरथ

सुर

परम

ूेम

जाकर

नाम

परमानंद गुर अनुपम

कहँ

राजा

गयउ

जाई



तोरन

पुर

छावा



होई

कलस आरित

मागध

सूत

सबस

दान चंदन

गृह हरषवंत

मंगल

धिर

नेवछाविर सब

कुंकुम

गृह

गायक क चा

बाज सब

जहँ

काहू



बधाव तहँ

करत





िसराई

क न्ह द न्ह

संगार

उिठ

िससु

चरन न्ह

गुन

जेिहं

गाविहं

पावा

सकल

सुभ

ूगटे

नगर

नािर

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राखा

बीिथन्ह

नर

॥ ॥ ॥४॥

धाई

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

रघुनायक

॥३॥

िबच

बृंद

॥२॥

दआरा ु

निहं

सुषमा

बनावा लोई

बार

पावन



॥१९३॥

सब िकएँ

॥१॥



भाँित

मगन



॥३॥

नृप ारा

भूप



दोहरा

सिहत

जेिह

सोई

बाजा

पैठिहं

बार

मची

ूभु

बजावहु

कहँ जाइ

धीरा

गावत

। ।

समाना

आवा

किह

रानी

पुरबासी

मित

सब

सहज

थारा

करह ं

बंिदगन





ॄ ानंद

गुन

ॄ ानंद



अवतार

सकल

रािस



भवकूपा

सब



किह



आई

ि जन



लोगाई

चलीं

द न्ह



सुरभूपा

चिल

आए

िबून्ह



॥१९२॥



नृप

अनूपा

परिहं

बोलाइ

जातकरम

मिन



परम

गृह

दोहरा

किर

पा

पार

उठत

कहा

हँ कारा

यह

गो

मानहँु

मोर



पताक बृंद



तात

मगन

चाहत

होई

बसन

िमिल

मृगमद

सुभ

संॅम







मनुज

आनँद

काना

धेनु

बृंद



लहै

बालक

गुन



ूेम



लीन्ह

माया

बानी

हाटक

अकास

किर

तनु

सराध

सुमनबृि कनक

िहत

सर रा

दे खे न्ह

नंद मुख

वज

ते

िूय

मन

बालक

पाविहं

संत

पुलक

पूिर

बिस

हिरपद

दोहरा

सुत

सुख

होइ

दासी

सुनत

यह ठाना

सुिन

मन

तजहु

रोदन

िनिमत

पुऽजन्म

ूकार

डौली

िूयसीला

गाविहं

िबू

जेिह

मित

सुजाना

चिरत

सुिन

बुझाई

बालकांड

परह ं ताहू

बीचा

कंद



॥१९४॥

॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 83 -

कैकयसुता वह

सुिमऽा

सुख

अवधपुर

दोऊ

संपित

समय

सोहइ

एिह



सुंदर

समाजा



भाँती

भानू

जनु

मन

सकुचानी

अगर

धूप

जनु

अँिधआर

मंिदर

मिन

बहु

भवन

बेदधुिन

अित

कौतुक

दे ख

पतंग

जनु

तारा

मृद ु



बानी ।

सकइ

तदिप

नृप

गृह

जनु

खग

एक

आई

बनी

उड़इ



सारद

िमलन





जनमत



ूभुिह



भुलाना

सुत

किह



दे ख

समूह

बालकांड

कलस

अिहराजा

॥१॥

समयँ

तेइँ

जात

मरम



जानइ

॥ ॥२॥

अ नार

इं द ु

मास

राती

अनुमानी

मनहँु

सो

मूखर



जनु

सं या

अभीर

ओऊ



उदारा जनु



॥३॥

सानी

जाना



॥४॥

दोहरा मास

यह दे ख

िदवस

िदवस

भा

रथ

समेत

रिब

थाकेउ

िनसा

रहःय

काहू

निहं

जाना



कहउँ

िनज

महो सव

औरउ

एक

काक

भुसुंिड

परमानंद

सुर

मुिन

संग

सुभ

तेिह

अवसर

चोर



जो

जेिह

िबिध

तुरग

हे म

गो

चले

भवन

बरनत

सुनु

िगिरजा मनुज प

कोइ

होइ

चले

बीिथन्ह

पै

िबिध

मिन





जान

कवन

िदन



दोऊ

फूले

चिरत

रथ

नागा

हम

ूेमसुख

यह गज

कर

॥१९५॥

िनज ढ़

जानइ

निहं

मगन

सोई



कृ पा

राम

आवा



द न्ह

भूप

ह रा



द न्हे

जो

मित

॥१॥

तोर

कोऊ

॥ ॥२॥

भूले

जापर जेिह



भागा

मन

कै

नृप

गुनगाना

करत

अित

िफरिहं



होई

मन

नानािबिध

॥ ॥३॥

भावा

चीरा



॥४॥

दोहरा मन

संतोषे

सकल कछुक

कर

किर

पूजा

इन्ह

के

जो

आनंद

सो

सुख

के

िचर

जीवहँु

तनय

िदवस

नामकरन

सब न्ह

बीते

धाम

िबःव

भरन

जाके

सुिमरन

भाँती

िसंधु राम



जात

न बोिल

भाषा



धिरअ

नाम

अनूपा





अस



नामा

पोषन

कर

जोई



िरपु

नासा

नृप

। ।

पठए जो

असीस

॥१९६॥

िदन



मुिन

सीकर



ऽैलोक

अ खल

लोक

दायक

नाम

दोहरा

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सऽुहन

राती

मुिन

ःवमित

नाम



ईस

कहब

ताकर



के जािनअ

भूप

सुखरासी

दे िह

तुलिसदास



अस अनेक

तहँ

जानी

अवस

भूपित नाम

एिह

जहँ

भरत बेद

यानी गुिन

राखा

अनु पा सुपासी िबौामा अस ूकासा

होई

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 84 -

ल छन

धाम

गु

राम

बिस

तेिह

िूय राखा

सकल

नाम

गुर

हृदयँ

िबचार



बेद

मुिन

धन

जन

सरबस

िसव

ूाना



बारे िह

ते

िनज

िहत

भरत

सऽुहन

चािरउ

सील

हृदयँ

अनुमह

ःयाम

दनउ ू

गौर

कबहँु

उछं ग

सुंदर

दोउ



गुन इं द ु

कबहँु

जानी

भाई

जोर





धामा पलना

त व

उदार

नृप

बाल

केिल राम

ूभु

सेवक

जिस

िनरखिहं तदिप

मातु

सुत

चार

सुख

चरन

रित

ूीित

जननीं

िकरन

दलारइ ु

॥१॥

मानी



बड़ाई

॥२॥

रामा

॥३॥

तृन

तोर

मनोहर

किह



माना

सुखसागर

अिधक

सूचत



तव

छिब



॥१९७॥

तेिहं

लिछमन



आधार

नाम





ूकासा बर

जगत

लिछमन

धरे

पित

बालकांड



हासा

िूय

ललना

॥ ॥४॥

दोहरा यापक सो



अज

िनरं जन ूेम

िनगुन

भगित

काम

कोिट

छिब

अ न

चरन

पकंज

नख

जोती



कुिलस

धवज

अंकुर

सोहे



ऽय

रे खा



रे ख किट

िकंिकनी

ःयाम

बस

उदर

िबगत



नील

कमल

धुिन

नािभ

सुिन जान

भूषन

जुत

भूर

उर

मिनहार

पिदक



सोभा



िबू

िचबुक

सुहाई



आनन

अिमत

मदन

अ नारे



नासा

ितलक

को

दइु

दइु

सुंदर

दसन

ौवन

िच कन पीत प

अित

अधर सुचा

कच

कुंिचत

झगुिलआ सकिहं

कपोला

तनु

निहं



गभुआरे

किह



ौुित

सेषा

चरन

अित

दे खत

िूय

बहु

ूकार

रिच

पािन

िबचरिन

जानु ।

सो

मधुर

जानइ

मोती मन

दे खा

मन

लोभा

सोभा

छिब

मातु

सपनेहुँ

॥१॥



॥ ॥२॥



॥३॥

छाई पारे

तोतरे



मोहे

जेिह

बरनै

अित ।

पिहराई

नख

मुिन

िबसाल कंठ

हिर

गंभीरा

जनु

भुज

कंबु

िहयँ

॥१९८॥

बािरद बैठे

गभीर



गोद

कंज

दल न्ह

नूपुर



के

कौस या

सर रा

िबनोद

॥ ॥४॥

बोला

॥५॥

सँवारे

मोिह जेिह



भाई दे खा

॥ ॥६॥

दोहरा सुख

संदोह

दं पित एिह जन्ह रघुपित

िबिध

मोहपर

परम राम

रघुनाथ िबमुख

चरन

ूेम

बस

जगत

िपतु

रित

मानी

जतन

यान

कर



कोर

िससुचिरत

कर माता

िगरा



कोसलपुर

ितन्ह





कवन

यह

गित

सकइ

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गोतीत पुनीत

॥१९९॥

बािसन्ह ूगट भव



सुखदाता भवानी

बंधन

॥१

छोर

॥ ॥ ॥

रामचिरतमानस

- 85 -

जीव

चराचर

भृकुिट

बस

िबलास

कै

नचावइ

मन

बम

बचन

एिह

िबिध

िससुिबनोद

लै

उछं ग

कबहँु क

राखे



सो

माया

ूभु

ताह



अस

ूभु

छािड़

भजत

कृ पा

छािड़

चतुराई ूभु

हलरावै

सुत

सनेह

बस

एक

बार

जननीं

अन्हवाए

िनज

कुल

इ दे व

भगवाना

किर

पूजा

नैबे

बहिर ु

मातु

तहवाँ

उहाँ

दे ख

राम

अगिनत

रिब

चढ़ावा



हृदयँ

बालक

दे खा



मितॅम

दइु

जननी

अकुलानी



मातिह रोम

गुन

चतुरानन

यान

सुभाऊ

दे खा

जीव

नचावइ

तन

पुलिकत

िबिध

मुख

बचन

दे ख न

बहिबिध ु

बार

बार

अब

जिन





बहु

। ।

दे खी । भए

जो मूिद

बहिर ु

जोर

कर

चरनिन

िपता



समुझाई



यह

जिन

कतहँु

कहिस

कौस या कबहँू

यापै

िबनय ूभु

करइ मोिह

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कर माया

॥३॥ ॥ ॥४॥

कानन

िस किर

नावा



॥३॥ जाना

सुनु

माई

जोिर



तोिर

॥ ॥२॥

खरार

सुत

॥ ॥१॥

ठाढ़ ताह

िससु प

जगत



काऊ

छोरइ



दोहरा

मिह न

माना

॥२॥



सुना

भय



॥२०१॥

िसंधु

सभीत

नयन

मुसुकानी

ॄ ड ं

जो

॥१॥

िबसेषा

अखंड

दे खा भगित

होई

आन



सिरत



सूता



मधुर

िगिर

अित

आवा ।

िक

द न्ह

जाई

पुिन

धीर

कोिट

सोउ



महतार जाइ

कोिट

गाढ़

जाह

हँ िस

॥४॥

बनावा

सुत

तहाँ

मोर



पौढ़ाए

पाक

मन

॥३॥

अःनाना

दे ख

अदभुत

लागे

िसव

कंप





पलनाँ

बाल

॥२॥

॥२००॥

क न्ह

दोहरा

िनज

ूित

सिस

ूभु

जान

जहँ

दे खा

द न्हा

गान

करत

सोई

सब

जनिन

हे तु

सुत

माया

हिर

पूजा

दे खा

दे खी

किर





कम

अःतुित

िसंगार

भयभीता

काल

िबसमयवंत

किर

भोजन

सुख

रघुराई

झुलावै







काह

घािल

जात

गई

भाखे कहु

किरहिहं

कर

आपु

आई

भ जअ

बालचिरत



भय

नगरबािसन्ह

िदन

पिहं

दे खरावा रोम

िनिस



पालन

िससु

आइ

इहाँ

कबहँु

माता

चिल

सकल

दोहरा

कौस या

बहिर ु





मगन

जननी



क न्हा

ूेम

गै

बालकांड

॥२०२॥



॥४॥

रामचिरतमानस

- 86 -

बालचिरत कछुक

हिर

बहिबिध ु

काल

चूड़ाकरन परम

बीत

क न्ह

बम

भोजन

सब

गु

मनोहर

मन

करत जब





अपारा

जब

िनगम

नेित

िसव

अंत

धूरस

धूिर

भर

तनु

जोई



पावा

िबून्ह

पुिन

दिछना

करत

िफरत

चािरउ

दसरथ निहं

अ जर

आवत

ठु मकु ।

आए

कहँ

पिरजन

। ।

दासन्ह

भए



जाई

अनंद

बड़े



राजा

बोलन

अित

भाई

अगोचर

बोल



जाई

चिरत

बचन

कौस या

क न्हा

बालकांड

ठु मकु

तािह



धरै

भूपित

सुखदाई बहु

ूभु

बाल

सोई

समाजा

ूभु

चलिहं

जननी

हिठ

िबहिस

पाई

सुकुमारा

िबचर

तज

द न्हा

पराई धावा

गोद

बैठाए

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥ ॥५॥

दोहरा भोजन

करत

भा ज बालचिरत जन

अित

कर

भए

चले

िचत

इत

उत

िकलकत

मुख

दिध

ओदन

सरल

मन

कुमार

चपल

इन्ह जबिहं पढ़न

जाक

सहज

ःवास

ौुित

िब ा

िबनय

िनपुन

गुन

जन्ह

बीिथन्ह

निहं

राता

सब

गए

बान



सन

गुरगृहँ

करतल

सुहाए ॅाता

रघुराई



िबहरिहं

सब

द न्ह



जनेऊ

हिर

। ।

दे खत

थिकत

होिहं

गाए िबधाता

िपतु सब

यह

खेल

॥२०३॥

िकए

गु

पढ़



ौुित

िब ा

खेलिहं

सोहा

संभु बंिचत

काल

सो ।

भाई

जन

पाइ

लपटाइ

सेष

ते

अलप

सीला

अित





चार

धनुष

सारद

अवस

माता आई

कौतुक

सकल

भार

नृपलीला



चराचर

सब

लोग

मोहा लुगाई

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा कोसलपुर

बासी

नर

ते

िूय

लागत

संग

लेिहं

बोलाई

ूानहु बंधु

सखा

पावन जे

मृग मृग

अनुज

मारिहं राम

सखा

बान सँग

जेिह

िबिध

सुखी

बेद

पुरान

सुनिहं

ूातकाल आयसु

उिठ मािग

जयँ

कै करिहं

मन

। ।

मारे

भोजन

रघुनाथा पुर

काजा

। । ।

अ राम

मृगया

बाल कृ पाल

िनत



॥२०४॥ खेलिहं

जाई

िदन

ूित

नृपिह

दे खाविहं

आनी

ते

तनु

तज

सुरलोक

िसधारे



लोगा

लाई

कहँु बन



करह ं पुर

बृ

सब

जानी

के

होिहं

नािर

मातु ।

िपता

करिहं

अ या

सोइ

कृ पािनिध

आपु

कहिहं

अनुजन्ह

मातु

िपता

गु

चिरत

हरषइ

दे ख

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अनुसरह ं संजोगा

समुझाई

नाविहं मन

माथा राजा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 87 -

बालकांड

दोहरा यापक

अकल

भगत यह

सब

जहँ

हे तु

चिरत

िबःवािमऽ

गािधतनय मुिनवर

एहँु

िमस

म यानी

करह



यापी



गुन

िबनु



जाई

उपिव

ूभु



हरन

िबनती

आनौ

किर

अयना



सो

ूभु

मै

पाविहं

िनिसचर

अवतरे उ

॥१॥ ॥ ॥२॥

पापी

मिह



भारा

दोउ

दे खब



डरह ं

दख ु



लाई

जानी

सुबाहिह ु

मुिन

मरिह

मन

आौम

मार च



॥२०५॥

सुनहु

सुभ

अित



अनूप

कथा

िबिपन

हिर



चिरऽ

करिह

िबचारा

पद

सकल



नाम

आिगिल

बसिह

िचंता

दे ख





धाविह

क न्ह

िनगुन करत

गाई

मुिन

मन

िबराग

िबिध

िनसाचर

मन

तब यान

कहा

ज य

ज य

अज

नाना

महामुिन

जप

दे खत

अनीह

भिर

॥३॥

भाई नयना

॥ ॥४॥

दोहरा बहिबिध ु

करत

किर

म जन

सरऊ

सुना

जब

मुिन

आगमन

किर

दं डवत

मुिनिह

चरन

पखािर

क न्ह

िबिबध

भाँित

पुिन भए तब

मगन

केिह

सुत

कारन

बचन

समूह

सताविहं

अनुज

समेत

दे हु

मो

राऊ ।

मोह

रघुनाथा



राम

दे ख

जनु

चकोर

मुिन

अस



सो

मै



हरष

करत

निहं

न म

दजा ू

॥२॥ ॥

लोभा

लावउँ

॥३॥

काऊ

बारा

नृप

होब



िबसार

क न्हहु

आयउँ

॥१॥

पावा

सिस न



आनी

दे ह

पूरन

बध

समाजा

अित

मुिन

जाचन

िनिसचर

िबू

धन्य

कृ पा



॥२०६॥

बैठारे न्ह

आजु

हृदयँ

कहहु

लै

आसन सम

बार

दरबार

गयऊ

मुिनवर । ।

तु हारा

असुर

। ।

सोभा कह

आगमन

िनज

निहं

भूप

िमलन



चार

मुख

लािग

गए



पूजा

करवावा

मेले

हरिष

जल राजा

अित

दे खत

जात

सनमानी

भोजन

चरनिन मन

मनोरथ

तोह

सनाथा



॥४॥ ॥ ॥५॥

दोहरा दे हु

सुिन चौथपन मागहु

भूप

धम

सुजस

राजा

अित

पायउँ भूिम

मन ूभु

हरिषत तु ह

अिूय सुत

धेनु

चार धन



बानी । कोसा

इन्ह ।

तजहु

कहँ

हृदय

िबू ।

अ यान

मोह अित कंप

बचन सबस

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क यान मुख

निहं दे उँ

दित ु

कहे हु

आजु



॥२०७॥ कुमुलानी िबचार सहरोसा

॥ ॥१॥ ॥

रामचिरतमानस

- 88 -

दे ह

ूान



िूय

सब

सुत

िूय

कहँ

िनिसचर

मोिह

नृप

िगरा

तब

बिस

बहु

मेरे

आदर ूान

नाह

ूान

अित

सुिन अित

कछु घोर

ूेम

दोउ

सुत

मुिन

ना



कठोरा



कहँ

दे उँ

राम

िनिमष

दे त

सुंदर

एक

निहं

सुत

परम

हृदयँ

समुझावा



नृप

संदेह

नास

कहँ

बोलाए



हृदयँ

लाइ

भाँित

तु ह

मुिन

िपता

बहु



माना

मुिन

यानी पावा िसखाए

आन

निहं

दे इ

असीस

॥२॥

गोसाई

िकसोरा



दोऊ

हरष

माह

बनइ

सानी

तनय

नाथ

सोउ

िक

रस

िनिध



बालकांड

कोऊ

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥ ॥

॥५॥

दोहरा स पे

भूप

जननी

िरिषिह

भवन

सुत

गए

ूभु

चले

बहु

िबिध नाइ

पद

सीस

मुिन

भय



॥२०८(क)॥

सोरठा

अ न किट

पु षिसंह

दोउ

कृ पािसंधु

मितधीर

नयन पट

ःयाम ूभु

चले एकिहं तब जाते

उर

बाहु

पीत

सुंदर

ॄ न्यदे व

मै

मुिन

बान

ूान

िरिष लाग

अ खल

बर







द न्ह

लीन्हा





दन ।

सायक



तेिह

हाथा

िनज तनु

पाई

भगवाना

बोध

िब ािनिध बल

दहँु ु

तजेहु

ताड़का

अतुिलत

तमाला

महािनिध

िपता

जािन

चीन्ह

िपपासा

ःयाम

िबःबािमऽ सुिन



॥२०८(ख)॥

तनु

चाप

िनित

हरन

करन

जलज

िचर



जयँ

छुधा

। मोिह

िदखाई

कारन

नील

भाई

जाना

नाथिह

चले िबःव

भाथा

दोउ

हिर

िनज

हरिष

िबसाला

कस

गौर जात

बीर

किर पद

कहँु

धाई

द न्हा

िब ा

तेज

द न्ह

ूकासा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥



॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा आयुष

सब

समिप

कै

ूभु

िनज

कंद

मूल

फल

भोजन

द न्ह

ूात

कहा

मुिन

सन

रघुराई



िनभय

होम

करन

मुिन

झार



आपु

िनसाचर

बोह

सुिन

मार च

िबनु

फर

मािर

असुर

पावक

तहँ

लागे

सर

पुिन

बान

राम

सुबाहु

ि ज कछुक

तेिह

पुिन

मारा

मारा

िनमयकार िदवस



रघुराया

भगित

आौम िहत

ज य रहे

जािन

मख

कं

लै

सहाय



सत

जोजन

गा

अःतुित

करिहं

दे व



क न्ह

अनुज रहे

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॥ ॥१॥

मुिनिोह



पारा

॥२॥

सागर

कटकु मुिन

िबून्ह

जाई

रखवार

धावा

िनसाचर



॥२०९॥ तु ह

करहु

। ।

आिन

सँघारा

झार पर

दाया



॥३॥ ॥

रामचिरतमानस

- 89 -

भगित

हे तु

तब

बहु

मुिन

सादर

धनुषज य आौम



िबू

चिरत



हरिष

मग

माह ं



खग

दे खी



सकल

ूभु

नािर

चरन

बुझाई

कहे

नाथा

िसला

गौतम



रघुकुल

दख

मुिनिह

पुराना

कहा

मुिन एक

पूछा

कथा

बालकांड

ौाप

कमल

रज

एक

ूभु

ूभु

चले

जीव

कथा

के

जंतु

मुिन

दे ह

धिर

कृ पा

करहु

रघुबीर

जाई साथा

तहँ

कहा

उपल

चाहित

जाना

दे खअ

मुिनबर

मृग

दोहरा

बस

ज िप

नाह ं

िबसेषी

धीर

॥४॥ ॥ ॥५॥ ॥ ॥६॥



॥२१०॥

छं द पद

परसत

पावन

दे खत

रघुनायक

अित

ूेम

अितसय अित

िनमल नािर

राजीव

क न्हा बानीं

जो

लागी कहँु

चीन्हा

अःतुित

ठानी

जग

पावन मोचन

द न्हा

अित

भल

िबनती

ूभु

मोर



पद

कमल

परागा

जेिहं

पद

सुरसिरता

सोइ

पद

एिह

भाँित

पंकज

हिर रस

परम

जेिह

िसधार



बह



जन

अनुमह

लाभ

पाई



सुखदाई





आई



माना



जाना

बर

मधुप



रघुराई

संकर

मागउँ

मन

कह

करै

आना

॥ ।

पाना



ूगट

भई

िसव

सीस

धर



अज

मम

िसर

धरे उ

कृ पाल

हर



बार

बार

हिर

चरन

पर



पितलोक

अनंद

भर



गौतम सो

मम

बचन

सरनिहं

परम न



जय

पािह

इहइ

रह

भगित

िरपु

पािह

जोिर

पुनीता

पूजत

भावा

कृ पाँ

रावन



जलधार

यानग य

नाथ

अनुरागा

आवइ

रघुपित

सह

कर

नयन

क न्हा

भोर

तपपुंज

होइ

निहं

भवमोचन

मित

भई

जुगल

भय

लोचन

मन

मुख

भव

भिर

ूगट सनमुख

सर रा

ूभु

िबलोचन

अित

दायक

ूभु

दे खेउँ

जो

सुख

चरन न्ह

अपावन

ौाप

नसावन

पुलक

बड़भागी मन

मुिन

जन

अधीरा

धीरजु मै

सोक

नार ब

पावा

गै

दोहरा अस

ूभु

तुलिसदास

सठ

द नबंधु

हिर

तेिह

भजु

कारन छािड़

रिहत कपट

दयाल जंजाल

। ॥२११॥

मासपारायण सातवाँ िवौाम चले

राम

गािधसूनु

लिछमन सब

कथा

मुिन सुनाई

संगा





जेिह

गए

जहाँ

ूकार

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जग सुरसिर

पाविन मिह

गंगा आई

॥ ॥१॥

रामचिरतमानस

तब

- 90 -

ूभु

हरिष

िरिषन्ह

चले

पुर

मुिन

र यता

बापीं बरन

बरन



सहाया

जब

सिरत

मंजु

नहाए

बृद ं

राम

कूप

गुंजत

समेत

िबिबध



बेिग

दे खी

सर



दान

मिहदे व न्ह

िबदे ह

हरषे



नाना

बालकांड

नगर

अनुज

सिलल



रस

भृंगा



कूजत

कल

िबकसे

बन

जाता



िऽिबध

समीर

िनअराया

समेत

सुधासम

पाए िबसेषी

मिन

सोपाना

बहबरन ु

सदा

िबहं गा

सुखदाता

॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा

बनइ

सुमन

बािटका

फूलत

फलत



चा

नगर अँबार धनद

धिनक

बिनक

बर

चौहट

सुंदर

गलीं

मंिदर

पुर

नािर

नर

सुभग

सुिच

जहँ

जनक

होत

चिकत

िचत

कोट

पुर

मिनमय

जाइ

िनवासू िबलोक



तहँ इँ लै

नाना

िसंचाई

रितनाथ यानी

िबबुध

भुवन

लोभाई सँवार

सुगंध

धरमसील

सकल

॥२१२॥

बःतु

जनु

िबथकिहं



ःवकर

रहिहं





मन

सकल

िचिऽत

संता

पास

जनु

बैठ

संतत ।

िनवास

चहँु

िबिध





केर

िबहं ग

जहाँ

समाना

सब

अनूप





सुहाई

अित

िबपुल

सोहत

िनकाई

िबिचऽ

मंगलमय

बन

सुप लवत

बरनत

बजा

बाग

गुनवंता िबलासू

सोभा

जनु

नाना

भाँित

॥१॥ ॥ ॥२॥

िचतेर

िबलोिक



रोक

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा धवल

धाम

मिन

पुरट

पट

िसय

िनवास

सुंदर

सदन

सोभा

सुभग

ार

बनी

िबसाल

सूर

सिचव

पुर

बाहे र

दे ख

सब

कुिलस

बा ज सेनप सर

अनूप

एक

कहे उ

मोर

भलेिहं

नाथ

किह महामुिन

साला ।

अँवराई



भूप

हय ।

सब ।

कृ पािनकेता





किह

मागध

रथ

संकुल

सब

सिरस

सदन तहँ

सुपास रिहअ

उतरे समाचार

दोहरा

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तहँ

भाटा काला

सब

िबपुल

सब



॥२१३॥

नट

जहँ

इहाँ

जाित

भीर

गय

उतरे

माना

आए

िकिम

नृपगृह

समीपा

मनु





बहते ु रे

सािरत

कौिसक िबःवािमऽ

गज

कपाटा

सुघिटत

भाँित

रघुबीर मुिनबृंद

िमिथलापित

केरे

मह पा सुहाई सुजाना समेता पाए

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 91 -

संग

सिचव

सुिच

चले

िमलन

मुिननायकिह

क न्ह

ूनामु

चरन

भूिर

धिर

सब

सादर

बंदे

कुसल

ूःन

किह

बारिहं

अवसर

आए

ःयाम

गौर

उठे

सकल

भए

सब

मूरित

मृद ु

दोउ

बयस

जब

सुखी

मधुर

राउ

जािन

भाई

िकसोरा



ॅाता





याित

भाँित

असीस बड़

राउ दे खन

सुखद

िबःव

िबःवािमऽ

भयउ

मुिननाथा

िबदे हु

॥१॥

बैठारा



फुलवाई

॥२॥

बैठाए

॥३॥

िचत

िनकट

िबलोचन



अनंदे

नृपिह

रहे

बािर



॥२१४॥

मुिदत

िबःवािमऽ

लोचन ।

दे खी

एिह

गए

आए

गुर

भा य ।



बर

द न्ह

बारा

दोउ

मनोहर





रघुपित दे ख

भूसुर

मुिदत

माथा

िबूबृंद तेिह

भट

बालकांड

पुलिकत

िबदे हु

चोरा



गाता

िबसेषी

॥ ॥४॥

दोहरा ूेम

मगन

बोलेउ कहहु

नाथ



जो ूभु

इन्हिह कह ए

सुंदर

मिन



नृप

जहाँ

लिग

दसरथ

के

गदगद



। ।

उभय

कहहु

बेष



बचन

ूानी



मन



धिर

जिम ॄ सुखिह

िहत

आवा

चंद

चकोरा

रामु

॥ ॥१॥ ॥

दराऊ ु

॥२॥

अलीका

॥३॥

मन

होइ

लािग

पालक

सोइ

करहु



मुसुकािहं

मम

॥२१५॥



तु हार



नृपकुल

जिन

बरबस

धीर

गभीर िक

होत

नीका जाए

िगरा

नाथ



धिर

ितलक

थिकत

अनुरागा

कहे हु

िबबेकु

मुिनकुल

गावा

मोरा

अित

सबिह

रघुकुल

किह

किर

िस

सितभाऊ

िबहिस

नृपु

बालक

मनु

िबलोकत

िूय

नाइ

नेित

पूछउँ

मुिन

पद दोउ

िबराग प

ताते

जािन

मुिन

िनगम

सहज

मनु

यागा

सुिन

नरे स



बानी

पठाए

॥ ॥४॥

दोहरा रामु

लखनु

मख मुिन सुंदर इन्ह सुनहु पुिन

ॆुिनिह सुंदर

राखेउ

तव

गौर

ूीित

नाथ

पुिन

कह

दोउ

सुखद

राऊ

पाविन

िचतव पद सब



जगु ।

िबदे हू

नरनाहू

। ।

किह ।



सील

बल

धाम

जते

असुर

संमाम



सकउँ

िनज

किह

ॅाता

मुिदत

नाइ

बंधुबर सा ख

कह

परसपर

ूभुिह

ूसंिस सदनु

सबु

दे ख

चरन

ःयाम कै

दोउ

आनँदहू न



पुलक

सीसू



चलेउ

काला



तहाँ

के जाइ

जीव

गात

आनँद

इव

उर

लवाइ बासु

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॥२१६॥ पुन्य

मन

सहज

सुहाविन

॥ ॥१॥ ॥

सनेहू

॥२॥

अवनीसू

॥३॥

अिधक

द न्ह

ूाभाऊ दाता

भाव

नगर लै



उछाहू

भुआला





रामचिरतमानस

किर

- 92 -

पूजा

सब

िबिध

सेवकाई



बालकांड

गयउ

राउ

गृह

िबदा

कराई

॥४॥

दोहरा िरषय

संग

बैठे लखन ूभु राम

हृदयँ भय अनुज

परम नाथ ज

ूभु

रघुबंस ॅाता

मुिनिह

मन

िबनीत



पु

राउर

िदवसु

िबसेषी



सकुचाह ं



गित

सकुिच

लखनु

म बचन

सुिन

मुनीसु

कह

धरम

सेतु

पालक

रहा

। ूभु

पाव



नगर

तु ह



ताता





गुर



ूेम

॥२१७॥

मनिहं

दे खी

मुसुकाह ं

िहं यँ

हलसानी ु

अनुसासन डर

दे खाइ



लै

तु ह

िबबस

पाई

ूगट

तुरत

राम



आइअ

बछलता

सकोच

कस

जामु

कहिहं

बोले



सूीती

भिर

भगत



िबौामु

जनकपुर

ूगट

चहह ं

दे खन

भोजनु

जाइ

जानी

मुसुकाई

आयसु

किर

सिहत

लालसा

बहिर ु

मिन

कहह ं आवौ

राखहु

नीती

भाइ



सुखदाता

सेवक

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा जाइ

दे खी

करहु

सुफल

आवहु

नग

सब

के

सुख नयन

िनधान

सुंदर

दोउ

बदन

दे खाइ

॥२१८॥

मासपारायण, आठवाँ िवौाम नवान्हपारायण, दसरा िवौाम ू मुिन

पद

बालक

कमल

बृंिद

दे ख

पीत

बसन

तन

अनुहरत

केहिर

कंधर

सुभग

सोन

बंिद

दोउ

अित

पिरकर

सोभा

किट

सुचंदन बाहु

कनक

िचतविन

चा





भाथा खोर

िबसाला

सरसी ह

कान न्ह

ॅाता

फूल

छिब

भृकुिट

बर

लगे ।

लोक संग

चा

। उर ।

लोचन

लोचन

चाप

ःयामल



लोचन

चले

अित बदन

िचर



िचतवत

बाँक



ितलक

सोहत

हाथा जोर

नागमिन तापऽय

िचतिह रे खा

दाता

लोभा

मनोहर

मयंक

दे ह ं

मनु

सर

गौर

सुख

सोभा

माला

जनु

जनु

॥१॥ ॥ ॥२॥

मोचन

चोिर



लेह ं

चाँक

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा िचर नख दे खन धाए

चौतनीं िसख

नग धाम

सुंदर भूपसुत

काम

सब

सुभग बंधु

िसर दोउ

आए यागी

मेचक सोभा

। ।

कुंिचत सकल

समाचार मनहु

रं क

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केस

सुदेस पुरबािसन्ह

िनिध

लूटन



॥२१९॥ पाए



लागी

॥१॥

रामचिरतमानस

- 93 -

िनर ख

सहज

सुंदर

जुबतीं

भवन

झरोख न्ह

कहिहं

परसपर

बचन

असुर

नाग

सुर

नर

िबंनु

चािर

अपर

दे उ

भुज अस

दोउ

भाई लागीं

सूीती मुिन

िबिघ कोउ





सुखी

िनरखिहं

सख

माह ं मुख

होिहं





बालकांड



इन्ह

सोभा

लोचन

राम



कोिट

काम

अिस



िबकट

बेष



यह

छिब

सख

आह

पाई



अनुरागीं छिब

सुिनअित

कहँु

चार

फल

मुख

॥२॥

जीती



नाह ं

पंच

॥३॥

पुरार

पटतिरअ

जाह

॥ ॥४॥

दोहरा

कहहु

कोउ ए

बय

िकसोर

अंग

अंग

सदन

वािरअिहं

कोिट ।

अस

को

तनुधार

सूेम

बोली

मृद ु

बानी



के

ढोटा



के

रखवारे

दोऊ

दसरथ

कौिसक

ःयाम

गात

कौस या

मख कल

सुत

िकसोर

लिछमनु

कंज सुख

बेषु

बर

राम



जो



ॅाता



के

अ जर

मार च

नामु



सो

रामु

कर

सर

सुनु

सख



॥२२०॥

यह

मराल न्ह रन

घाम

काम

मोह सुना

जन्ह ।

सुख

सत



बाल

खानी

लघु

जो



काछ

गौर

कोिट

जो

िबलोचन

सो

नामु

ःयाम

पर

सखी

मुिन

गौर

सुषमा



सुनहु

िनहार सयानी

कल

धनु

मारे

मद ु

राम

तासु

॥ ॥२॥

मोचन

सायक

चाप

॥१॥

जोटा

िनसाचर

सुभुज





पानी

के

॥३॥

पाछ

सुिमऽा

माता

॥ ॥४॥

दोहरा िबूकाजु आए दे ख जौ

राम सख

किर दे खन

छिब

कह



सख

परं तु

पनु

कोउ

कह

तौ

जानिकिह

जौ

िबिध हमर



चापमख एक

कोउ

इन्हिह

कोउ

सख

बंधु

दे ख भूपित राउ

भल अस

आरित

मग

सुिन

हरषीं

कहई



नरनाहू



तजई



पिहचाने

न अहइ

िमिलिह

बस

दोउ

ब बनै

अित

मुिन



सँजोगू ।

बस

सब

नािर

जानिकिह

पिरहिर

िबिध

एहू

तात

पन

उधािर

सब

जोगु



िबधाता

मुिनबधू

॥२२१॥

यह

हिठ





करइ

अहई



िबबाहू

॥१॥ ॥२॥

समेत

सादर

सनमाने

हिठ

अिबबेकिह

भजई



कहँ

सुिनअ

उिचत

फलदाता



नािहन

आिल

इहाँ

॥३॥



तौ

संदेहू

नात

॥४॥

कबहँु क

कृ तकृ य ए

दोहरा

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होइ

आविहं

सब एिह

लोगू

॥ ॥

रामचिरतमानस

- 94 -

नािहं



यह

संघटु

बोली

अपर

कोउ

कह

कहे हु

हम

कहँु

होइ

जब

सख

नीका



चाप

कठोरा

सबु

असमंजस

अहइ

सख

इन्ह

कोउ

परिस सो

जासु

िक

सयानी कोउ

पद

रिहिह

सख

तब

संकर कहँ

सुनहु

पंकज

िबनु

एिहं



िसवधनु

कर

िबआह

तोर

अित

सुिन ।

तर



िहत

ूतीित

पिरहिरअ

अह या

िबरं िच

रिच

सीय

सँवार



तेिहं

ःयामल

तासु

बचन

सुिन

सब

हरषानीं



ऐसेइ

अघ



होउ

मृद ु

लघु

कृ त



रचेउ

कहिहं

का

िकसोरा

कहइ

दे खत

जेिहं

सबह ं

मृदगात ु

अपर



॥२२२॥

बड़ ूभाउ

यह

दिर ू

भूिर

ःयामल

यह ।

दरसनु

पुराकृ त



कहह ं

धूर

इन्ह

पुन्य



अस

बालकांड

बानी

॥१॥ ॥

अहह ं

॥२॥

भोर

॥३॥

भूर

िबचार

मुद ु



बानी

॥ ॥

॥४॥

दोहरा

पुर

िहयँ

हरषिहं

जािहं

जहाँ

पूरब

अित चहँु

जहँ

िदिस

िबःतार

बरषिहं

गे चा

सुमन

बंधु

दोउ ।

जहँ

गच

ढार



िबमल

मंच

िबसाला

तेिह

पाछ

समीप

चहँु

पासा

ितन्ह

के

िनकट

िबसाल

जहँ

बठ

दे खिहं

सब

पुर

बालक

किह

सब

भाँित

सुहाई सुहाए

नार

किह





मृद ु

बैठिहं

जथा

बचना



जोगु सादर

मिहपाला

िनज ूभुिह

॥ ॥१॥ ॥

िबलासा

॥२॥

बहबरन ु

बनाए

॥३॥

दे खाविहं

रचना

लोग

धाम

बनाई सँवार

मंडली

नगर

धवल

भूिम

बेठिहं

मंच



॥२२३॥

िचर

जहाँ

अपर



िहत

बेिदका

रचे

बृंद

परमानंद

धनुमख

। ।

सुलोचिन

तहँ

भाई

कंचन

ऊँिच

तहँ

दोउ

िदिस

कछुक

सुमु ख

जहँ

कुल

जाई

अनुहार

॥ ॥

॥४॥

दोहरा सब

िससु

तन िससु

सब

िनज

िनज

राम

दे खाविहं

लव

िनमेष

भगित कौतुक जासु

हे तु

दे ख ऽास

एिह

िमस

पुलकिहं

अित

हरषु

राम

ूेमबस

िच

सब

लिहं

अनुजिह महँ

सोइ चले

डर

भुवन

ूेमबस िहयँ

ूीित

बोलाई



सिहत



िनकाया



गु



पाह ं

होई

किह ।

रचइ



दोउ

मधुर

चिकत

िबलंबु भजन

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जािहं

दोउ

अनुसासन धनुष

ूभाउ

बखाने

मनोहर

ऽास



॥२२४॥

िनकेत

सनेह जासु

गात

ॅात

समेत

मृद ु

िचतवत जािन

मनोहर

दे ख



रचना

डर

दे ख

जाने

द नदयाला

कहँु

परिस

भाई बचना

दे खावत

॥१॥ ॥

माया

॥२॥

माह ं

॥३॥

मखसाला

मन



सोई





रामचिरतमानस

किह

- 95 -

बात

मृद ु

मधुर

सुहा



बालकांड

िकए

िबदा

बालक

बिरआई

॥४॥

दोहरा सभय

सूेम

गुर िनिस

ूबेस

कहत

कथा

मुिनबर जन्ह

दोउ

बारबार पुिन

पंकज

नाइ

सकुच

िसर

इितहास

पुरानी



िचर

तब

जाई



क न्ह सरो ह

बंधु

ूेम

जीते ।

अ या

द न्ह

चरन

लखनु

उर

कह

करत

। ।

पद

कमल

सूेम

दोउ

जोग

भाई

िबरागी

पलोटत

सयन

धिर

क न्हा िसरानी

चापन जप

पौढ़े

॥२२५॥

जाम

िबिबध

सभय

ताता

जुग

जाइ



सं याबंदनु

चरन

गुर

रघुबर

लाएँ

सोवहु

लगे

भाइ

पाइ

सबह ं रजिन



दोउ

आयसु





जनु

मुिन ूभु

द न्हा

लागी

सिहत

बैठे

आयसु

चरन

पुिन

अित

मुिन

सयन के

तेइ चापत

पद

िबनीत

तब

क न्ह

परम उर

ूीते

सचु

पद

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥

पाएँ

जलजाता

॥ ॥४॥

दोहरा उठे

लखन

गुर



सकल

सौच

समय

जािन

भूप

बागु

लागे

िबटप

नव

िनिस पिहलेिहं

किर

आयसु

फल

कोिकल

म य

बाग

िबमल

सिललु

सुमान



पाई

नाना

कर

अ निसखा

िन य ।



चकोरा



सुहावा

सरिसज

मुिनिह

िसर

िनज



बहरंु गा

िनबािह

बरन

कूजत

चले िरतु

बर

िबहग

जलखग

नाए

दोउ

भाई

रह

लोभाई

बेिल

संपित

मिन





॥२२६॥

बसंत

बरन

कान

सुजान

ूसून

जहँ ।

धुिन

रामु

लेन



सुहाए

सोह

जागे



जाई

मनोहर

चातक

नहाए

दे खेउ

बर

सुिन

जगतपित

जाइ

गुर

प लव

िबगत

िबताना

सुर



नटत

कल

सोपान

िबिचऽ

कूजत

गुंजत

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

लजाए मोरा

॥ ॥३॥

बनावा भृंगा

॥ ॥४॥

दोहरा बागु परम चहँु

िदिस

तेिह

अवसर

संग

सखीं

सर

समीप

तड़ागु र य िचतइ सीता

िबलोिक आरामु

पूँिछ तहँ

सब

सुभग

िगिरजा

गृह

यहु

मािलगन आई सयानी सोहा



ूभु

हरषे

जो

रामिह



लगे

लेन



िगिरजा ।

गाविहं

बरिन



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बंधु

समेत

सुख

दे त

दल

फूल

पूजन जाइ

॥२२७॥ मुिदत

जनिन

गीत दे ख



मनोहर मनु

मन

पठाई बानी मोहा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

रामचिरतमानस

म जनु

- 96 -

किर

सर

स खन्ह

पूजा

क न्ह

अिधक

एक

सखी

िसय

तेिह

दोउ

बंधु

समेता

अनुरागा संगु





जाई

गई

िनज

िबहाई

िबलोके

बालकांड

मन

अनु प





मुिदत

गई

सुभग रह

िबबस

ूेम

गौिर

िनकेता



मागा

दे खन सीता

॥ ॥३॥

फुलवाई

पिहं

आई

॥ ॥४॥

दोहरा तासु

दसा

कहु

कारनु

दे खन

बागु

ःयाम

गौर

िकिम

सुिन

हरषी

एक

सब

मृद ु

नैन

बैन

सब

भाँित

कह

बखानी



िगरा

अनयन

नयन

िबनु

सब

सखीं

सयानी



नृपसुत

तेइ

छिब

जहँ

आली

मोहनी तहँ

अित किर



सुने

डार

सब

जे



सुहाने

सख

लािग

नर

॥ ॥२॥

नार

दे खन

लखइ

॥१॥

जानी काली जोगू

लोचन

पुरातन



बानी

आए

नगर

दे खअिहं

ूीित

सुहाए

उतकंठा

सँग

ःवबस

दरस



अित

मुिन

अविस



सोई

िहयँ

क न्ह



लोगू

िसयिह िूय

िसय



॥२२८॥

िकसोर

बरनत

अम

पूछिह

जलु

बय



दइु

कर

गात



िनज

चली

हरष

पुलक

आए

जन्ह

वचन

स खन्ह

िनज

कुअँर

कहइ

तासु

दे ख

॥ ॥३॥

अकुलाने न

कोई

पुनीत



॥ ॥४॥

दोहरा सुिमिर

सीय

चिकत

कंकन मानहँु

नूपुर

मदन किह

भए

िबलोचन

दे ख

सीय

जनु

िबरं िच

सुंदरता सब

िबलोकित

िकंिकिन

अस

िफिर

कहँु

उपमा

नारद

सकल

धुिन

दं द ु भी ु

िचतए

तेिह

सुखु

सुंदर

ओरा पावा



रहे





िनिम

िबःव

नयन

बचनु कहँ

पटतर

गुिन चकोरा

िदगंचल न

ूगिट

आवा दे खाई

जनु

बरई

िबदे हकुमार

बोले

सोभा

सुिच

िहयँ

मन

बरिन

अनुज

सन

ूभु

आपिन

बचन

समय

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दसा

िबचािर

अनुहािर



॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा िसय

॥ ॥१॥

क न्ह

तजे

द पिसखा

केिहं

हृदयँ

कहँ भए

सराहत

छिबगृहँ

जुठार

सिस

सकुिच

॥२२९॥

रामु

िबजय

मुख

हृदयँ

सभीत

सन

िबःव

िबरिच



मृगी

लखन

िसय

मनहँु

ूीित

िससु

कहत ।



करई

जनु

उपजी

मनसा

िनपुनाई

िनज

किब





अचंचल

सोभा सब

िदिस

सुिन

द न्ह

चा

बचन



॥२३०॥

रामचिरतमानस

- 97 -

तात

जनकतनया

पूजन

गौिर

जासु

िबलोिक

सो

सबु

रघुबंिसन्ह मोिह

यह

सोई



लै

आई



करत

ूकासु

िफरइ

सोभा



सहज

पुनीत

मोर

सखीं

अलोिकक

कारन

जान

कर

सहज

अितसय

ूतीित

जन्ह

कै

मंगन

लहिहं

धनुषज य

िबधाता



फरकिहं

सुभाऊ



मनु

मन





लहिह

बालकांड

िरपु

केर रन

जन्ह



कै

सुभद

कुपंथ

जेिहं

पीठ



नाह ं

जेिह

निहं



पगु

होई

फुलवाई मनु

अंग

छोभा

सुनु

ॅाता

धरइ

सपनेहुँ

परनािर

नरबर

थोरे

पाविहं

ते

कारन



काऊ



परितय

हे र

मनु

जग

डठ

माह ं

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा करत

बतकिह

मुख िचतविह

सरोज

चिकत

िबलोक

मृग

लता

ओट

तब

दे ख



लोचन

थके

नयन

करइ

िदिस

सीता



नैनी

स खन्ह



रघुपित

छिब भोर

दे ह

भै

लोचन

मग

रामिह

स खन्ह

उर

ूेमबस





सरद

आनी



जानी



बिरस

जनु

पान

िनज

िनिध

किह



सकिहं

सुहाए

पिहचाने िनमेष

िचतव

पलक

िचंता ौेनी

पिरहर ं

जनु

द न्हे

िसत िकसोर

पलक न्हहँू

सिसिह

मनु

कमल गौर



॥२३१॥

नृपिकसोर

ःयामल

हरषे

लोभान

इव

गए

तहँ



दे ख



मधुप

जनु



िसय

कहँ

लखाए

ललचाने

सनेहँ

मन

छिब

सावक

अिधक

िसय

सन

मकरं द

चहँू

जहँ

जब

अनुज

चकोर

कपाट कछु

सयानी

मन

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥

सकुचानी॥४॥

दोहरा लताभवन िनकसे सोभा

सीवँ

मोरपंख

सुमन

मिन

नीके



ौमिबंद ु

सुहाए

कच

घूघरवारे

नािसका

कपोला



मोिह

जाइ कंबु

बाम

कल कर

तेिह िबधु

सोहत

माल

समेत

िबमल बीरा

िचबुक किह

जुग

भे

दोउ

भृकुिट

मुखछिब

ूगट

सुभग

ितलक

िबकट

उर

जनु

िसर

भाल चा



बीच

ौवन । ।

गीवा

। ।



िबच सुभग सरोज

हास

िबलास

जो

िबलोिक

सावँर

कलभ कुअँर

दोहरा

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भाइ

िबलगाइ

पीत

नव

काम

दोउ

पटल

नील

गु छ

पाह ं

दोना

जलद





अवसर



॥२३२॥

जलजाभ

सर रा

कुसुम

कली

के

भूषन

छिब

छाए

लोचन लेत

रतनारे मनु

मोला

बहु

काम भुज

बलसींवा

सखी

सुिठ

लोना

कर

लजाह ं

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

धिर बहिर ु

- 98 -

केहिर

किट

पट

पीत

दे ख

भानुकुलभूषनिह

धीरजु

एक

आिल

गौिर

कर

यान

सकुिच

तब

सीयँ

बालकांड

धर

सुषमा

िबसरा

सील

स खन्ह

सयानी



सीता

करे हू



भूपिकसोर

नयन

उघारे



िनधान

अपान

सन

॥२३३॥

बोली

गिह

दे ख

सनमुख



पानी

िकन

दोउ

लेहू

रघुिसंघ

॥ ॥१॥

िनहारे



नख िसख दे ख राम कै सोभा । सुिमिर िपता पनु मनु अित छोभा ॥२ ॥

परबस

स खन्ह

लखी

जब

पुिन

आउब

एिह

बेिरआँ

गूढ़

िगरा

सुिन

िसय

धिर

बिड़

धीर

सीता

काली





अस

सकुचानी

रामु

उर

भयउ

आने

गह

मन

किह

सब

कहिह

िबहसी

एक



भयउ

िबलंबु

मातु



िफिर

अपनपउ

सभीता

आली

भय

मानी

िपतुबस

जाने



॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा

जािन ूभु

दे खन

िमस

िनर ख

िनर ख

किठन

िसवचाप

जब

जात

परम

ूेममय

गई

भवानी

जय

मृद ु

गज

बदन

निहं

तव

आिद

बहोिर

बाढ़इ

ूीित



बहोिर

थोिर

चली

रा ख

उर

ःयामल

जानी



सुख

सनेह

सोभा

गुन

क न्ह

बहोर



िकसोर माता

म य

। । ।

अवसाना

पराभव

कािरिन

चा

िचत

भीतीं

चरन

बोली

जगत

जनिन

दािमिन



महे स

अिमत



िबःव

जोर

चकोर

दित ु

गाता

निहं

ःवबस

॥ ॥१॥

लीन्ह

चंद

बेद ु

िबमोहिन

खानी

कर

मुख

ूभाउ

मूरित

िलख

बंिद

जय



॥२३४॥



षड़ानन

िबभव

भव

िफरइ

िबसूरित

मिस

िगिरबरराज



छिब

रघुबीर

भवन

जय

िबहग

जानक

जय भव

मृग

जाना

िबहािरिन

॥ ॥२॥



॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा पितदे वता

सेवत दे िब मोर क न्हे उँ

मिहमा

अिमत

तोिह

सुलभ

पू ज

ूगट

ूेम

सादर

िसयँ िसय

महँु



जानहु

नीक

कारन

ूसाद ु

स य

। ।

भई

भवानी



िसर

धरे ऊ



हमार

सहस ।

सुर

तेह ं

असीस

ूथम

किह

चार

तु हारे



बस

मातु

सकिहं फल

कमल

पद

मनोरथु

िबनय सुनु

सुतीय



सारदा

नर

सब

उर

होिहं

पुर

किह

चरन

गहे

बोली

गौिर

हरषु

िहयँ

माल

पू जिह

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मूरित

मन

िपआर



सुखारे

॥१॥

सबह

अस

खसी



॥२३५॥

पुरािर

मुिन

सदा

रे ख सेष

बरदायनी

बसहु ।

तव

कामना





बैदेह ं

॥२॥

भरे ऊ

॥३॥

मुसुकानी तु हार

॥ ॥

रामचिरतमानस

नारद

- 99 -

बचन

सदा

सुिच

साचा



सो

बालकांड



िमिलिह

जािहं

मनु

राचा

॥४॥

छं द मनु

जािहं

क ना एिह तुलसी

राचेउ

िमिलिह

िनधान भाँित

सो

सुजान

गौिर

सीलु

असीस

भवािनिह

सुिन

पू ज

ब िसय

पुिन

पुिन

सहज सनेहु

सुंदर

साँवरो

जानत

सिहत

रावरो

िहयँ

मुिदत



अली

हरषीं

मन



मंिदर



चली



सोरठा जािन

गौिर

मंजुल हृदयँ राम

सबु

पाइ

सुफल

मनोरथ

िबगत बहिर ु

िबचा

लोनाई पाह ं

पूजा

क न्ह

होहँु

गु

उयउ

क न्ह

अंग



जाइ

किह

फरकन

लगे

समीप

गवने



सरल

सुभाउ

छुअत

छल

दहु ु

भाइन्ह

पुिन



रामु

सुहावा

लखनु



लगे



सं या



माह ं

असीस

िसय



सुिन

कहन मुख

सीय

भए

चले

नाह ं

सम

॥१॥

द न्ह



सुखारे

॥२॥

पुरानी

दोउ

दे ख



भाई

कथा

सिरस

बदन

दोउ

कछु

करन



॥२३६॥

गुर

पाई

मन

हरषु



िब यानी आयसु

सिस

िहय



तु हारे

मुिनबर

िदवसु िदिस

बाम

कौिसक

मुिन

भोजनु

ूाची

मूल

सीय

सुमन किर

िसय

मंगल

सराहत कहा

अनुकूल



भाई

सुखु

िहमकर

॥३॥

पावा

नाह ं



॥४॥

दोहरा जनमु िसय

िसंधु मुख

घटइ

बढ़इ

कोक

िसकूद

बैदेह

मुख

िसय किर

मुख

पुिन

बंधु

िबषु

िदन

समता

पाव

िकिम

चंद ु

िबरहिन पंकज पटतर छिब

मुिन

िबधु

चरन

िनसा

रघुनायक

उदउ

अ न

अवलोकहु

लखनु

जोिर



िोह

मसइ



अवगुन

राहु

बहत ु

होइ

याज

बखानी



ूनामा



आयसु

बंधु

िबलोिक

जुग

जागे



ताता पानी

। ।

दोष

ूभु

बड़

पिहं

पंकज

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॥२३७॥

चंिमा

पाई तोह

अनुिचत

चले

िनसा क न्ह

कहन

कोक



संिधिहं

पाइ

ूभाउ

दोहरा

रं क

िनज



गु

सकलंक

बापुरो

द न्हे सरोज

िबगत बोले

दखदाई ु

मलीन

अस लोक

सूचक

मृद ु

क न्हे बिड़

॥ ॥१॥ ॥

जानी॥२॥

िबौामा लागे सुखदाता बानी

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 100 -

अ नोदयँ जिम नृप

सब

सकुचे तु हार

नखत

आगमन

करिहं

कमल

कोक

मधुकर

ऐसेिहं

ूभु

सब

उयउ

भानु

रिब

िनज

उदय

तव

भुज

बल

बंधु

बचन

सतानंद ु

भए



टािर ।

तु हारे

नृपित न

हरषे ।

नासा

जोित



बलह न

सकिहं सकल

होइहिहं दरेु

नखत

चाप

उदघाट



ूगट

ूभु

मुसुकाने



होइ

सुिच



चरन

सरोज

सुभग

िसर

कौिसक

मुिन

पिहं

तुरत



बोिल

िलए

दोउ

गुर

पिहं

जाइ

जनक

आए

बोलाए आइ

ितन्ह



सुनाई

हरषे



ूकासा

मिहमा

िबघटन

॥१॥

सुखारे

नृपन्ह

सहज



अवसाना

तेजु

सब

धनु

भार

धनुष

जग

ूतापु

तम

िनसा

ू टट



॥२३८॥



पिहं

ूभु

मलीन

रघुराया

गु

िबनय

सुिन

नाना

तम

याज

सुिन

तब

जनक

खग

ौम

किर

उडगन

उ जआर

भगत

िबनु

िन यिबया

कुमुद

बालकांड

॥२॥

िदखाया



पिरपाट

पुनीत

॥३॥

नहाने



नाए

॥४॥

पठाए भाई

॥ ॥५॥

दोहरा सतानंद चलहु

तात

सीय

ःवयंब

लखन

कहा

हरषे

चले

सब

मुिनबृंद

रं गभूिम

मुिन

ूभु

सुिन

तब

पठवा

जाई



ईसु

कािह



दे इ

नाथ

कृ पा

तव

जापर

दे खन

चले

धनुषमख

गृह

जनक

भीर

तुरत

सकल

लोगन्ह



बानी



कृ पाला भाई

काज

दे खी

सोई

बर

दोउ भै

बैठे

कहे उ

भाजनु

समेत

आए

सकल

बंिद

दे खअ जस

मुिन

पुिन

पद



भार



जाहू

असीस

सुिध

अिस

िबसार

पिहं

द न्ह





जनक

बोलाइ

॥२३९॥

सबिहं

सब



बड़ाई होई

सुखु

मानी

साला

पुरबािसन्ह

पाई

जुबान

जरठ

नर

सुिच

सेवक

सब

िलए

हँ कार

दे हू

सब

काहू

नर

नािर

आसन

उिचत

॥१॥



॥२॥

बाल





नार

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा किह

मृद ु

उ म राजकुअँर गुन

राज जन्ह दे खिहं

म यम तेिह

सागर

िबराजत

रह प

िबनीत

नीच

अवसर नागर

समाज क

बचन

बर

भावना महा

रे

ितन्ह

बैठारे

लघु

िनज

िनज

आए



बीरा



मनहँु



जैसी

रनधीरा

उडगन । ।

सुंदर

ूभु मनहँु

थल

अनुहािर

मनोहरता

महँु

ःयामल जनु



॥२४०॥ तन

गौर

जुग

छाए सर रा

िबधु

पूरे

मूरित

ितन्ह

दे खी

तैसी

बीर

रसु

धर

सर रा

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॥ ॥१॥ ॥

॥२॥ ॥

रामचिरतमानस

- 101 -

डरे

कुिटल

रहे

असुर

नृप

ूभुिह

िनहार

छल

छोिनप

बेषा

दे खे

दोउ

भाई

पुरबािसन्ह



बालकांड

मनहँु



भयानक

ितन्ह ।

ूभु

मूरित

ूगट

नरभूषन

भार

कालसम

लोचन

॥३॥

दे खा

सुखदाई

॥ ॥४॥

दोहरा नािर

िबलोकिहं

जनु

सोहत

िबदषन्ह ु

हरिष िसंगार

िहयँ

िनज

धिर

मूरित

ूभु

िबराटमय

द सा



जनक

जाित

अवलोकिहं

कैस



सिहत

िबदे ह

िबलोकिहं

जोिगन्ह

परम

हिरभगतन्ह रामिह उर एिह

भासा

दोउ

ॅाता

भायँ

अनुभवित िबिध

जेिह



किह

रहा

सक

जािह

बहु

मुख

िससु

सम



सीया जस

परम

सजन



त वमय

दे खे

िचतव

रानी

िच

िनज

सांत इ दे व



सो

पग

ूीित

सोऊ



कवन

भाऊ



तेिहं

सीसा

सब

ूकासा

सुख

॥ ॥२॥

दाता

निहं

कथनीया

ूकार

कहै

किब

दे खेउ

॥१॥

बखानी

सुखु तस



जैस

जाित सहज

इव

सनेहु

॥२४१॥

लागिहं न

सम



लोचन

िूय

सु



अनूप

कर

सगे

अनु प

॥ ॥३॥

कोऊ

कोसलराऊ

॥ ॥४॥

दोहरा राजत

राज

सुंदर सहज

चंद

िचतवत कल

ःयामल

मनोहर

सरद

मार

कपोल

ौुित कर

भाल

िबसाल

पीत

चौतनीं

रे ख

िचर

गौर

मूरित

िनंदक

चा

कुमुदबंधु

समाज



कोसलराज

िबःव

िबलोचन

कोिट

काम

िकसोर चोर उपमा

लघु

नीके



नीरज

नयन

भावते

जी

मनु

हरनी



भावित

हृदय

जाित

नह ं

कुंडल

लोला



िचबुक



भृकुट

िबकट

कच

िबलोिक

अिल

हाँसा

झलकाह ं



सुहाई

कल



कुसुम



गीवाँ

जनु

अधर

सुद ं र

कलीं िऽभुवन

मृद ु

अविल

सुषमा

सोऊ



के

॥१॥

बरनी

॥ ॥२॥

बोला

मनोहर िबच



॥२४२॥

मुख

िसर न्ह कंबु

तन

दोऊ

िनंदक ितलक

महँु

नासा

लजाह ं बीच क



॥३

बना सीवाँ

॥ ॥

॥४॥

दोहरा कुंजर

मिन

कंठा

बृषभ

कंध

केहिर

किट

तूनीर

पीत

पट

पीत

ज य

उपबीत

किलत ठविन

बाँधे

सुहाए

बल ।



उर न्ह

कर नख

िनिध

तुलिसका बाहु

माल

िबसाल

सर

धनुष

बाम

िसख

मंजु

महाछिब

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॥२४३॥ बर

काँधे छाए

॥ ॥१॥

रामचिरतमानस

- 102 -

दे ख

लोग

सब

भए

सुखारे

हरषे

जनकु

दे ख

दोउ

भाई

किर

िबनती

जहँ

जहँ

िनज

कथा

कुअँर

जािह

िनज

िनज



भिल

रचना

मुिन

एकटक



मुिन

सुनाई

बर

रामिह



सबु

नृप



दोऊ



लोचन

पद

रं ग तहँ

दे खा

सन

बालकांड



कमल अविन

तहँ





सब

जाई

मुिनिह

कछु

मरमु

महासुख

॥ ॥२॥

दे खाई

सबु

मुिदत

तारे

तब

िचतव

जान

राजाँ



गहे

चिकत

कोउ

कहे ऊ

चलत

कोऊ

॥ ॥३॥

िबसेषा लहे ऊ



॥४॥

दोहरा सब

मंचन्ह

मुिन

समेत

ते दोउ

ूभुिह

दे ख

सब

नृप

अिस

ूतीित

सब

के

िबनु

भंजेहुँ

अस

भव

िबचािर

िबहसे

अपर

तोरे हुँ

धनुषु

एक

बार

यह

सुिन

मंचु बंधु

िहँ यँ

सुिन

याहु

अवगाहा

कालउ

िकन

अवर

बानी होऊ

मिहप

जसु । िबनु



िसय

मुसकाने

िहत

भएँ सक

राम बलु

अिबबेक तोर



उदय

सीय

तेजु

समर

जतब

माला गवाँई

अंध कुअँिर

तारे नाह ं

उर

को

धरमसील



॥२४४॥

तोरब

ूतापु

जे



मिहपाल

चाप

मेिलिह



िबसाल

राकेस

राम



भाई

भूप

जनु



िबसाला

िबसद

बैठारे



माह ं

घर

सुंदर

तहँ

हारे

मन

धनुषु

गवनहु

एक

अिभमानी िबआहा हम

हिरभगत

सोऊ

सयाने

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

सोरठा

यथ िसख जगत

सीय

िबआहिब

जीित

को

सक

संमाम

दसरथ

मरहु

जिन

गाल

बजाई



हमािर

सुिन

िपता सुखद

सकल

सुधा

समुि

समीप

जाइ

अस

किह

दे खिहं

सुर

परम

रघुपितिह

सुंदर करहु

राम

जा

कहँु

भले नभ

गरब

पुनीता िबचार

गुन

रासी

िबहाई जोई भूप

चढ़े

किर के

मन ।

भिर





लोचन दोउ



अनुरागे ।

हम । बरषिहं

संभु मरहु

आजु

जनम

अनूप सुमन

दोहरा

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करिहं



॥२४५॥ भूख

जयँ

छिब

बंधु



िक

जानहु

िनर ख तौ

के

बाँकुरे

मोदक न्ह

मृगजलु

भावा

नृपन्ह

रन

जगदं बा

। ।

िबमाना

दिर ू

लेहु उर

कत फलु

िबलोकन कल

बुताई सीता िनहार बासी धाई पावा लागे गाना

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 103 -

जािन

िसय

सुअवस

चतुर

सखीं

सोभा

निहं

सीय सुंदर

मोिह

लघु

िसय

बरिनअ

तेइ

उपमा

िगरा

मुखर

िबष जौ

तीय

तन

बा नी रजु

भवानी

मंद







परम

मथै

पािन

को

कहाँ

अतनु

रमासम

खानी लेई

॥ ॥२॥

बैदेह

॥३॥

पित

जानी

क छप

पंकज

॥१॥

कमनीया

िकिम

पमय



अनुरागीं

अजसु

द ु खत

किहअ

होई

िसंगा

अित

गुन

अंग

जुबित



॥२४६॥



कहाइ

अिस

रित ।

लवा

नािर

कुकिब जग

जेह

पयोिनिध

ूाकृ त

। ।

चलीं

बोलाई

जगदं िबका



दे ई

िूय

सुधा



लागीं सीया

अरध

बंधु

छिब

सोभा

सम

जनक

सादर

बखानी

सकल पटतिरअ

पठई

सकल

जाइ

उपमा जौ

तब

बालकांड

िनज

सोई मा

॥ ॥

॥४॥

दोहरा एिह

िबिध

तदिप

सकोच

चिलं

संग

लै

सोह

नवल

तनु

भूषन

सकल

रं गभूिम

उपजै

ल छ

समेत

सखीं

किब

सुंदर सुदेस

जगत

सुहाए



अंग

पािन

सरोज

सोह

जयमाला

सीय

चिकत

िचत

रामिह

मुिन

समीप

दं द ु भीं ु

दे खे

दोउ

धार

समतूल

। चाहा



ूसून

लगे

छिब

मोहे

भार बनाए



भुआला

॥३॥

गाई

सब

लोचन

॥१॥ ॥२॥

अपछरा

सकल



नार

नर

मोहबस

ललिक

बानी

स खन्ह

िचतए

भए



॥२४७॥

अतुिलत प

बरिष

मूल

मनोहर

रिच

दे ख अवचट



गीत

अंग



भाई

सीय

जनिन



बजाई

सुख

गावत



पगु

सुरन्ह



सार

िसय

सुंदरता

कहिहं

सयानी

जब

हरिष

जब

नरनाहा

िनिध

पाई

सकुचािन





॥ ॥४॥

दोहरा गुरजन

लाज

लािग

िबलोकन

राम

पु

सोचिहं

सकल

ह िबनु

िबिध िबचार



िसय कहत

बेिग

जग

भल

एिहं

लालसाँ

तब

बंद जन

पनु

कहिह

समाजु

बड़

स खन्ह

तन

छिब

दे ख रघुबीरिह

दे ख

सकुचाह ं



सीय



उर

नर

िबिध

सन

नािरन्ह

अिस

दे िह

मित

हमािर

तज

नरनाहु



सीय

राम

मगन जनक

सब

लोगू

बौलाए



। ।

हठ



िनमेष

मन



काहू

पिरहर ं

करिहं

जड़ताई सब

॥२४८॥

िबनय

जनक भाव

आिन

कर

करै

क न्हे

साँवरो

िबिरदावली

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अंतहँु

जानक

कहत

चिल

माह ं सुहाई

॥ ॥१॥ ॥

िबबाहू

॥२॥

जोगू

॥३॥

उर

दाहू

आए





रामचिरतमानस

कह

- 104 -

नृप

जाइ

कहहु

पन

मोरा



बालकांड

चले

भाट

िहयँ

हरषु



थोरा

मिहपाल



॥४॥

दोहरा बोले

बंद

पन नृप

बानु

सोइ

पुरािर

िऽभुवन सुिन

जन्ह

कर

िबधु

पन

सकल

कठोरा बैदेह भूप

उठे तिक

कछु

सुनहु

हम

राहू

भारे

समेत

तािक के

िसवधनु

कोदं डु

बाँिध

बर

कहिहं

महाभट

जय

पिरकर तमिक

िबदे ह

भुजबल

रावनु

बचन

िबसाल

॥२४९॥

ग अ

कठोर

िबिदत

सब

दे ख



राज

समाज

आजु

िबनिहं

िबचार

बरइ

सरासन



अकुलाई

भटमानी



चले

धरह ं

मन

उठाइ



अिभलाषे

िबचा

भुजा





िसवधनु

सकल



माह ं

चाप

मन बलु

मह प

॥ ॥२॥

माखे नाई

भाँित

समीप

तेह

िसर

कोिट

॥१॥

तोरा

हिठ

अितसय





िसधारे जोइ

इ दे वन्ह

उठइ ।

गवँिहं

काहू



॥ ॥३॥

करह ं जाह ं



॥४॥

दोहरा तमिक

भूप

धनु

मनहँु

पाइ

भट

सहस

दस

एकिह

डगइ



सब

नृप

क रित

धरिहं

संभु िबजय

भए

नृपन्ह

िबलोिक

दप

दप

दे व

दनुज

हािर के



जनकु

अकुलाने

भूपित

नाना

मनुज

उठावन

जैस



सर रा



मनु

सुिन िबपुल

संन्यासी

जनु

साने

पनु

आए

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

समाजा

जो

बीर

हार

जाइ

रोष हम

टारा जैस

बरबस

िनज

बचन

आए



िबराग

कर

िनज

बोले



िबनु



॥२५०॥

टरइ सती

चाप

बैठे

लजाइ

ग आइ

बचन

चले ।

चलिहं

अिधकु

कामी ।

राजा



लगे



उपहासी

िहयँ

धिर



कैस भार

उठइ

अिधकु

बारा

जोगु बीरता

नृप

बाहबलु ु

सरासन

भए

ौीहत

मूढ़

ठाना

रनधीरा

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा कुअँिर

मनोहर

पाविनहार कहहु रहउ

अब तजहु

कािह चढ़ाउब जिन आस

िबजय

बिड़

क रित

जनु

रचेउ



िबरं िच

यहु

लाभु

कोउ

माखै

भट

िनज

िनज

गृह

तोरब



भावा

भाई





मानी जाहू

भिर ।



धनु

काहँु

ितलु

अित

दमनीय



संकर

भूिम



बीर िलखा

कमनीय

िबह न न

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िबिध



॥२५१॥ चाप

सके मह बैदेिह

चढ़ावा छड़ाई



जानी िबबाहू

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

रामचिरतमानस

- 105 -

सुकृत जो

जाइ जनतेउँ

जनक

बचन

माखे

लखनु



पनु

िबनु

भट

सुिन

पिरहरऊँ भुिब

सब

कुिटल



भाई

नर

भइँ

कुअँिर



नार

भह

बालकांड



कुआिर

रहउ

किर

होतेउँ

तौ

पनु



दे ख

का न

जानिकिह

रदपट

फरकत

करऊँ हँ साई

भए

नयन



दखार ु

िरस ह

॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा किह



नाइ रघुबंिसन्ह कह

राम महँु

जनक

सुनहु

सकत पद

जहँ

जिम



भानू





फोर



सकउँ

भगवाना



को

काचे

घट

डार

तव

ूताप

मिहमा

नाथ

जािन

अस

आयसु

कमल

नाल

जिम

चाफ

होऊ



चढ़ाव

मूलक

बापुरो



जोजन

सत

॥१॥ ॥

उठाव जिम

िपनाक

कर



अिभमानू

ॄ ांड

मे

कोई

जानी

कछु

इव

कौतुकु



मिन





॥२५२॥

कहइ

रघुकुल

सुभाउ

कंदक ु

बान

ूमान अस

िब मान



जनु

िगरा

समाज

कहउँ

पाव

बचन

बोले तेिहं

बानी

अनुसासन

लगे

िस

होई

अनुिचत

पंकज

तु हािर

डर

कमल

कोउ

जिस

भानुकुल

जौ

रघुबीर

॥२॥ तोर



पुराना

िबलोिकअ ूमान

लै

बल

नाथ

॥३॥

सोऊ धाव

॥ ॥४॥

दोहरा तोर ज



लखन

सकोप

सकल

लोक

गुर

उठहु

समय

सुिन

गु

ठाढ़े

भए

भंजहु

बचन

बोले

मन

कर ।



ूताप धर

धनु

डगमगािन



िसय

माह ं



िहयँ

हरषु

मुिदत

भए

नेवारे



ूेम

समेत

सुभ

जानी



बोले

अित

भवचापा िस

सहज

। नावा

सुभाएँ

। ।

मेटहु

हरषु

ठविन

भाथ

मिह

लखनु

चरन

उिठ

सपथ

डे राने

मुिन

तव

जिम

पद

जे

भूप

रघुपित राम

ूभु

बचन सब

िबःवािमऽ

दं ड

कर

सब

रघुपित

सयनिहं

छऽक

तात िबषाद ु जुबा



॥२५३॥

िद गज जनकु

पुिन

डोले

सकुचाने

पुिन

िनकट



िबकसे

उदयिगिर

संत

सरोज

मंच

सब

पर

हरषे

रघुबर

लोचन

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॥२॥

बानी



पिरतापा

कछु

उर

मृगराजु

॥३॥

आवा

लजाएँ

बालपतंग भृंग



बैठारे

दोहरा उिदत

॥१॥

पुलकाह ं

सनेहमय जनक





॥२५४॥



॥४॥

रामचिरतमानस

- 106 -

नृपन्ह

केिर

मानी

मिहप

भए गुर

आसा कुमुद

िबसोक पद

चलत

मुिन

सिहत

चले

सब

बंिद

िपतर

सुर

तौ

िसवधनु



बचन

नखत



कपट

भूप

दे वा

। ।

अनुरागा

सकल

राम

नासी

सकुचाने

कोक

बंिद

सहजिहं

िनिस

बालकांड

बिरसिहं राम

ःवामी

नर

नार



पुलक

सँभारे





सुकृत

मृनाल





ना

सुमन





पुन्य

कछु राम

मागा

भए

॥ ॥२॥

गामी

सुखार

ूभाउ

गनेस

॥१॥

सेवा

कुंजर

तन



लुकाने

आयसु

बर

पूिर

ूकासी

जनाविहं

सन

मंजु

तोरहँु



उलूक

मुिनन्ह

जग

पुर

अवली

॥ ॥३॥

हमारे

गोसा

॥ ॥४॥

दोहरा रामिह

ूेम

सीता सख कोउ रावन

मातु

सब न

समेत सनेह

कौतुक

बुझाइ बान

छुआ राजकुअँर

स खन्ह

बस

बचन

दे खिनहारे

कहइ

गुर



निहं

चापा

कर

दे ह ं





धनु

भूप

सयानप

सकल

िसरानी

बोली

चतुर

सखी

कहँ

कुंभज

कहँ

मृद ु

रिब

मंडल

कहावत

बालक

अिस सकल

मराल

सख

िबिध

गित



तेजवंत

लघु

अपारा लागा

लघु

जेठ हारे





सोषेउ

उदयँ

बोलाइ

िबलखाइ

बाल

बानी

िसंधु

ए ।

समीप

कहइ



पाह ं

सो

दे खत

लख

॥२५५॥ िहतू

हठ

भिल

भूप

किर

िक कछु





नाह ं

॥१॥

संसारा

तम

॥ ॥२॥

जानी

रानी

सकल

ितभुवन



लेह ं

जाित

गिनअ

हमारे दापा

मंदर

सुजसु

तासु



भागा



॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा मंऽ महाम

परम

लघु

जासु

गजराज

कहँु

काम

कुसुम

धनु

दे िब

त जअ

संसउ

सखी

बचन

सुिन

तब

रामिह

मनह ं करहु

कर

अंकुस

खब

भुवन

अपने

अस

जानी



भंजब

धनुष

रामु

परतीती



िमटा

िबषाद ु

बढ़

भै

आपिन िबनती

सुर

सकल

सफल बार

हर



मनाव

बार

बस

हिर

लीन्हे

मन

बरदायक

िबिध

सायक

िबलोिक

गननायक

बस

बैदेह



सभय

अकुलानी सेवकाई दे वा

सुिन

। ।

। मोर

किर

हृदयँ



ूसन्न

होहु

आजु करहु

िबनवित

िहतु

लग चाप

दोहरा

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हरहु

क न्हउँ गु ता

सब



॥२५६॥ बस सुनु अित जेिह

रानी ूीती तेह

महे स चाप

क न्हे

भवानी ग आई

तुअ अित

सेवा थोर

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 107 -

दे ख

दे ख

भरे

िबलोचन

नीक

िनर ख

अहह

तात

सिचव

नयन

धनु

िबिध

िसख

केिह

भाँित

सकल

सभा

िनज

जड़ता

अित

पिरताप

मित

कै





कोई

सीय

उर

। ।

भोर

पर

मन

कछु

िसरस



होिह

लव

संभुचाप

िनमेष

जुग

हानी

अनुिचत

कन

ह अ

छोभा



मृदगात ु

सुमन

मोिह

मनु

लाभु

बड़

ःयामल



॥२५७॥

बहिर ु

समाज

कहँ

धीर

सर र

निहं

अब

डार ।

धिर

सुिमिर

बुध





माह

पनु

समुझत

धीरा

भै

लोगन्ह

िपतु

कठोरा

धर

मनाव

पुलकावली



ठानी

दे इ चािह

सुर

जल

सोभा

हठ

कुिलसहु

तन

ूेम

भिर

दा िन

सभय

कहँ

रघुबीर

बालकांड

होई

॥ ॥१॥ ॥

िकसोरा

॥२॥

तोर

॥३॥

बेिधअ

गित

ह रा

रघुपितिह

िनहार

सब

जाह ं

सय



॥ ॥४॥

दोहरा

िगरा

ूभुिह

िचतइ

खेलत

मनिसज

अिलिन

लोचन तन

तौ

मुख

जलु

सकुची

रह

जेिह



ूभु

तन

िसयिह

मीन

मोर

मिह

जुग

पंकज

जनु

रोक



कोना

बिड़

बचन

भगवानु

िचतव

लोचन

याकुलता मन

पुिन



जानी पनु



साचा



धीरजु

रघुपित

स य

सनेहू



सो

ठाना



कैसे



िबलोिक

तकेउ

तन धनु

ूतीित

मोिह

तेिह



कृ पािनधान

िचतव



आनी

॥ ॥१॥ ॥

िचतु

राचा

॥२॥

कछु

संहेहू

॥३॥

जैसे

॥४॥

कै

राम लघु

सोना

उर

रघुबर

िमलइ

अवलोक

कर

सरोज



॥२५८॥

िनसा

कृ पन

पद

किरिहं

लोल

डोल

लाज

धिर

पर

ूेम

न परम

बासी

लोचन

मंडल

जैसे

उर

िचतइ

िबधु

ूगट

सकल

जेिह



राजत

सबु यालिह

दासी

जाना





दोहरा लखन

लखेउ

पुलिक िदसकुंजरहु

गात

कमठ

रघुबंसमिन बोले

अिह

बचन

कोला



रामु

चहिहं

संकर

धनु

तोरा



चाप

सपीप

रामु

जब

आए



सब

कर

िसय

कर

भृगुपित

संभुचाप

संसउ

केिर

सोचु बड



गरब

जनक बोिहतु

ताकेउ

अ यानू

ग आई

धरहु होहु

नर



चािप

धीर

सजग

सुिन

आयसु

नािरन्ह



रािनन्ह

सुर

मह पन्ह

सुर

मुिनबरन्ह कर

जाइ

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दा न सब



सुकृत कर



॥२५९॥

ॄ ांडु धिर

मंद

चढे

कोदं डु

धरिन





पिछतावा पाई

चरन

हर

केिर

डोला मोरा मनाए

अिभमानू

दख ु

संगु

कदराई दावा बनाई

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥



॥३॥ ॥

रामचिरतमानस

- 108 -

राम

बाहबल ु

िसंधु

अपा



बालकांड

चहत

पा

निह

कोउ

कड़हा

॥४॥

दोहरा राम

िबलोके

लोग

िचतई

सीय

दे खी

िबपुल

िबकल

तृिषत

बािर

का अस

जयँ

गुरिह

ूनामु

दमकेउ

बैदेह

जो कृ षी

जािन

जानक

मनिह

लेत

चढ़ावत

तेिह

छन

जिम

राम

यागा दे खी

मन

क न्हा

जब

लयऊ

म य





समय



ूभु



गाढ़



धनु

तोरा

चुक पुलके

पुिन काहँु

पुिन

का

धनु

मंडल

लखा

दे ख

भुवन

तेह तड़ागा पिछतान

ूीित

उठाइ

नभ

भरे

सुधा

लाघवँ





सम

का लख



॥२६०॥

कलप

करइ

अित

दे ख

िबसेिष

िबहात मुएँ



से

िबकल

िनिमष

सुखान

खचत

िलखे

जानी ।

तनु

सब

दािमिन

िचऽ

कृ पायतन

िबनु

बरषा

सब

िबसेषी

धनु

लीन्हा

सम

धुिन

भयऊ

सबु घोर

ठाढ़

कठोरा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

छं द भरे

भुवन

घोर

िच करिहं सुर

िद गज

डोल

मुिन

कर

असुर

कोदं ड

कठोर

खंडेउ

रव

रिब

मिह कान

बा ज

मारगु

चले



अिह

कोल

कू म

कलमले



द न्ह

सकल

िबकल

िबचारह ं



तुलसी

राम

तज

जयित

बचन

उचारह



सोरठा संकर बूड़ ूभु

चापु सो

दोउ

सकल

चापखंड

कोिसक प

राकेसु नभ

िस

बिरसिहं

सुमन

रं ग

भुवन कहिहं

भिर जहँ

साग चढ़ा

डारे

पावन

गहगहे सुर

मुिदत

मिह





मुनीसा

तहँ

दे ख

जय

बानी

नर

दे वबधू



माला नार

बीिच



गाविहं



धनुषभंग ।

भंजेउ

दोहरा

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बस

सब

। ॥२६१॥

भए

अवगाहु

सुखारे

सुहावन

पुलकाविल

नाचिहं

ूभुिह

बाहबलु ु

मोह

लोग बािर

बढ़त

िनसाना

जय

ूथमिहं

ूेम



बहु

रघुबर

जो



िनहार

ॄ ािदक रह

समाजु

पयोिनिध

राम प बाजे

जहाजु

किर

भार गाना

ूसंसिह

दे िहं

असीसा

िकंनर

गीत

रसाला

धुिन

जात



राम

संभुधनु

जानी भार

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 109 -

बंद

मागध

करिहं

िनछाविर

झाँ झ

मृदंग

बाजिहं

बहु

बाजने

लहे उ

सुखु

स खन्ह ौीहत

सुखिह लखनु

सतानंद

तब

हय



अित सोचु

ू टटे

िबलोकत आयसु

गय

जहँ

तहँ

जुबितन्ह

सूखत



पैरत



परा

जैस

िदवस

जनु

चातक

पाइ

सुहाई गाए

जनु

पानी

जनु

दप

पिहं

॥१॥ ॥ ॥२॥

ःवाती

॥३॥

छूटे

िकसोरकु

राम



पाई

छिब

जलु

चकोर

गमनु

॥२६२॥

मंगल

थाह

सीताँ



दं द ु भी ु

धान

सिसिह



चीर

थक



द न्हा

मिन ढोल



कैस

धन

मितधीर

भेिर ।

भाँती

केिह

बदिहं



रानी िबहाई

धनु

बरिनअ

रामिह

सब

सुहाए

भूप

िब द

सहनाई

हरषी

भए

सीय

लोग

संख

सिहत

जनक

सूतगन

बालकांड

जैस

क न्हा



॥ ॥४॥

दोहरा संग

सखीं

गवनी

बाल

स खन्ह

म य

सुदंर मराल

गित

िसय

सोहित

कैसे

सुहाई

कर

सरोज

जयमाल

तन

सकोचु

मन

परम

जाइ

समीप

राम

छिब

चतुर

सखीं

लख

सुनत

जुगल

सोहत

जनु

गाविहं

छिब

चतुर

कर जुग

कहा

अवलोिक



म य

िबजय

सोभा





कुँअिर

पिहरावहु िबबस

सिसिह

िसयँ

॥२६३॥ जैस

जेिहं

छाई

परइ



िचऽ

जयमाल

पिहराइ

सभीत

जयमाल



महाछिब

लख

जनु

ूेम

सनाला सहे ली

ूेमु





अपार

छिबगन

रिह

बुझाई

मंगलचार

अंग

गूढ़



उठाई

जलज

। िबःव

उछाहू

माल

सुषमा



दे खी

गाविहं

काहू

॥१॥ ॥

अवरे खी

॥२॥

जाई

॥३॥

सुहाई

न दे त

राम



जयमाला

उर

मेली



॥ ॥४॥

सोरठा रघुबर

उर

सकुचे

सकल

पुर



योम

सुर

िकंनर

नर

नाचिहं जहँ

मिह

नाग

पाताल

नाक

जनु

बाजे

बेदधुिन जसु

करिहं

आरती

पुर

नर

सोहित

सीय

राम

कै

खल



बधूट ं

बिरसिहं



बार

बार





बंद

राम दे िहं

छिब

बर

किह

िसंगा

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सब

दे िहं

िसय

िब मनहँु

राजे

असीसा

कुसुमांजिल

िबरदाविल

िनछाविर



॥२६४॥

साधु

मिलन जय

। ।

भए

सुमन

कुमुदगन

जय

यापा नार

रिब

जय

करह ं

जौर

दे व

िबलोिक



मुनीसा

िबबुध

िबू

दे ख

भुआल

बाजने

गाविहं तहँ

जयमाल

छूट ं

॥ ॥१॥ ॥

उ चरह ं

॥२॥

िबसार

॥३॥

भंजेउ

एक

चापा ठोर





रामचिरतमानस

- 110 -

सखीं

कहिहं

ूभुपद

गहु

सीता



बालकांड

करित



चरन

परस

अित

भीता

॥४॥

दोहरा गौतम

ितय

मन

गित

िबहसे

तब

िसय

दे ख

उिठ

उिठ

पिहिर

लेहु

छड़ाइ

सुरित

रघुबंसमिन भूप सनाह

सीय

धनुषु

चाड़

निहं

सरई



िबदे हु

कछु

करै

सहाई

भूप

बलु

बोले

ूतापु

सुिन

बीरता

कूर



कोऊ

। ।

बानी

बड़ाई

। ।

पग

तहँ

धिर

बाँधहु

पािन

जािन

कपूत

जहँ जीवत



परसित

अलौिकक



अभागे

कह

निहं

ूीित

अिभलाषे

तोर साधु

किर

हमिह

॥२६५॥

मूढ़

गाल

बजावन

लागे

बालक

कुअँिर

को

समर

सिहत

नाक

िपनाकिह

राजसमाजिह

माखे

मन

नृप

जीतहु



दोऊ बरई

दोउ

लाज

भाई

लजानी

संग

िसधाई

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥

सोइ सूरता िक अब कहँु पाई । अिस बुिध तौ िबिध मुहँ मिस लाई ॥४ ॥ दोहरा दे खहु

रामिह

लखन बैनतेय

चह

लोभी हिर

पद

रामु

तज

ूबल

चह

कागू

इिरषा

जािन ।

सलभ

जिम

जिन

ससु

चहै

िसविोह

कल

क रित

चहई



अकलंकता



तस

सुिन

सीय चले

सिहत

सकानी

गु

पाह ं

सोचबस

सुिन

इत



सीया

उत

िसय

। ।

तकह ं



लवाइ सनेहु

अब

कामी

लालचु ग

िबिधिह

राम

डर

नरनाहा रानी

मन

माह ं

काह

बोिल

भागू लहई

जहँ

बरनत



लखनु

िक

तु हार

सखीं

॥२६६॥

संपदा

सब

चाहा



अिर



गित

होहु

कोहु

नाग

कोह

परम

मद ु

चहै

अकारन

िबमुख

बचन

भिर

कुसल

सुभायँ

रािनन्ह

पावकु

जिम

लोलुप

कोलाहलु

भूप

रोषु

बिल

जिम

नयन

करनीया



सकह ं

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा

खरभ

अ न

नयन

मनहँु



दे ख

तेिहं

अवसर

दे ख

मह प

गौिर

सर र

िबकल सुिन सकल भूित

भृकुट

कुिटल

िचतवत

गजगन

िनर ख

िसंघिकसोरिह

पुर

िसव

नार ं धनु

भंगा

सकुचाने भल



ॅाजा

सब ।

। ।

िमिल

आयसु

बाज भाल

नृपन्ह चोप दे िहं

मह पन्ह कमल

जनु

लवा

िबसाल



॥२६७॥

भृगुकुल

झपट

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सकोप

िऽपुंड

गार ं पतंगा लुकाने

िबराजा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

रामचिरतमानस

- 111 -

सीस

जटा

सिसबदनु

भृकुट

कुिटल

बृषभ

कंध

किट

नयन उर

मुिन

सुहावा िरस

बाहु

बसन



िरसबस

राते



िबसाला दइु

तून

बालकांड

सहजहँु



बाँध



कछुक िचतवत

चा

धनु

अ न मनहँु

जनेउ

सर

कर

होइ

आवा

िरसाते

माल

मृगछाला

कुठा

कल

काँध

जाइ

स प

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा सांत

बेषु

धिर

दे खत

मुिनतनु

भृगुपित

िपतु

समेत

जेिह

सुभायँ

जनक

किह

िबःवािमऽु रामु

िनज

पुिन

रहे

नामा



के

ढोटा

थिक

सो

पद



लोचन

जानइ

सीय



दं ड

जनु

आइ

लै

खुटानी करावा सयानीं

दोउ

दे ख

अपार

ूनामा

गई

मेले

असीस



भुआला

ूनामु

समाज सरोज

॥२६८॥

सब

बोलाइ

द न्ह

भूप



िबकल

करन

िनज



सब भय

लगे





आई

जहँ

सकल



हरषानीं

दसरथ

िचतइ

उठे

नावा



आयउ

जानी

िस

सखीं

बरिन

रसु



िहतु

आइ

लखनु

रामिह

किह

िमले

बीर

कराला

िचतविहं

द न्ह

किठन

जनु

बेषु

बहोिर

आिसष

करनी

मार

भाई

भल मद

जोटा

मोचन

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा िबलोिक

बहिर ु

पूछत समाचार सुनत

िबदे ह

जािन

किह

अजान

जनक

बचन

िफिर

सन

जिम

सुनाए अनत

बोले

बचन

कठोरा

बेिग

दे खाउ

मूढ़



आजू

अित



उत

दे त

सुर

मुिन

नाग

नगर

नर

सीय

महतार

मन

पिछताित

भृगुपित

कर

सुभाउ

नृपु

सुिन

जेिह

िनहारे

िरस

। ।

नाह ं

सीता

अित

भीर



कारन

मह प

सब

आए

दे खे

कहु

जड़

। ॥

। ।

कोपु

। उलटउँ

नार

काह

यापेउ



अित



कहहु

चापखंड जनक

मिह

॥२६९॥

मिह धनुष

डारे कै

जहँ

लिह

तव

भूप

हरषे

मन

सकल

ऽास

कुिटल सोचिहं

सर र

िबिध

अब

सँवर

अरध

िनमेष

कलप

उर बात

तोरा राजू माह ं भार िबगार

सम

बीता

भी



दोहरा सभय हृदयँ

िबलोके



हरषु

लोग

िबषाद ु

सब

कछु

जािन

बोले

मासपारायण नवाँ िवौाम

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जानक

ौीरघुबी

॥२७०॥

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 112 -

नाथ

संभुधनु

आयसु

काह

सेवकु

सो

जो

सुनहु

राम

जेिहं

सो

सुिन

बहु

एिह

भंजिनहारा किहअ

िबलगाउ

करै

पर



सेवकाई







केिह



कबहँु

हे तू



सम

सुिन

लराई

िरपु

जैहिहं िरस

मोरा

सब

परसुधरिह

अिस

कोह

किरअ

सो

मारे

तु हारा

मुिन

किर

बोले



दास

बोले

करनी

सहसबाहु

मुसुकाने

लिरका

ममता



एक

िरसाइ

अिर ।

समाजा

केउ

सुिन



तोरा

लखन

तोर ं

होइिह

मोह

िसवधनु

बचन

धनुह ं धनु

िकन

िबहाइ

मुिन



बालकांड

राजा

कह

बोलत

तोिह



िबिदत

सकल

॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥

अपमाने

॥३॥

भृगुकुलकेतू

॥४॥

क न्ह

िरसाइ



गोसा



दोहरा रे

ितपुरािर

कहा

हँ िस

हमर

लाभु

ू टट

छुअत बालकु

बोिल

भुजबल

भूप

भुज



सुनहु

तौर



दोसू



मुिन

ओरा



रे

निहं

अित

भूिम

सहसबाहु



बधउँ

ॄ चार

धनु न

परसु

धनु

जाना

जून

रघुपितहु

िचतइ

बाल

कालबस

सम

छित

बोले

बालक

धनुह लखन का

नृप

तोह

कोह

। ।

िबनु

क न्ह

छे दिनहारा

राम

िबनु

सुनेिह

केवल

मुिन



िबपुल

परसु



धनुष

समाना

के

किरअ न

जड़

रोसू

मोरा

जानिह

छिऽयकुल

बार

भोर

कत

सुभाउ

िबिदत



॥२७१॥

नयन

काज

सठ

िबःव

संसार सब

दे व

दे खा

सँमार

मिहदे वन्ह

िबलोकु

मोह िोह

द न्ह

मह पकुमारा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥



॥४॥

दोहरा

िबहिस

मातु

िपतिह

गभन्ह

के

लखनु पुिन

इहाँ

कु हड़बितया

दे ख

कुठा

सुर

बध कोिट

मोिह

पापु

कुिलस

जनेउ



नाह ं

। ।

िबलोक

मोर



कुठा

बाना

करिस

परसु

बानी

दे खाव कोउ

सोचबस दलन

मृद ु

सरासन

समु झ

मिहसुर

अभक

बोले

पुिन

भृगुसुत

जिन

भटमानी

चहत

उड़ावन

फूँिक

पहा

तरजनी

कछु



हमर

गाई

अपक रित

हार

सम

बचनु

तु हारा

। ।

॥२७२॥

महा

जो



घोर

मुनीसु



हिरजन

अित



अहो जे



मह सिकसोर

कहा

कछु कुल

मारतहँू यथ

कहहु

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मिर

सिहत

अिभमाना

इन्ह

पा

धरहु

॥१॥

दे ख सहउँ

धनु

पर

पिरअ

जाह ं

िरस न

बान



रोक

॥ ॥२॥ ॥

सुराई

॥३॥

कुठारा

॥४॥

तु हार



रामचिरतमानस

- 113 -

बालकांड

दोहरा जो

िबलोिक

सुिन कौिसक

सरोष

सुनहु

बंस

राकेस

काल

कवलु

होइिह

तु ह

हटकउ



लखन

कहे उ

मुिन

अपने

मुँह

निहं

संतोषु

यहु

छन चहहु

तु ह

कुिटल



उबारा



किह

तु हारा



करनी

कछु



कहहू

बार



अछोभा



बलु

अनेक

मोिह रोषु

अछत

को

भाँित

जिन

िरस

रोिक

गार

दे त



घालकु



असंकू

खोिर

ूतापु

तु हिह

कुल

अबुध

पुकािर



॥२७३॥

िनज

िनरं कुस

कहउँ

धीर

गभीर

कालबस

िनपट ।

आपिन धीर



महामुिन

िगरा

माह ं

सुजस

पुिन

छमहु

बोले

बालकु

कलंकू

तु ह त

कहे उँ

भृगुबंसमिन

मंद

भानु

बीरॄती

अनुिचत

नाह ं

बहु

पावहु



हमारा बरनै

दसह ु

॥१॥ ॥२॥

पारा



बरनी दख ु

॥३॥

सहहू

सोभा



॥४॥

दोहरा सूर

तु ह सुनत

करनी

समर

िब मान

रन

तौ

हाँक

कालु

लखन

अब

जिन

बाल

िबलोिक

कौिसक

के दे इ

किह

िरपु

कायर

लावा



पाइ जनु

बचन

कठोरा

दोसु

मोिह

लोगू

बाँचा



बहत ु

कहा

करिहं



छिमअ

अपराधू



कुठार



अक न

उतर

दे त

छोड़उँ

िबनु

मार



कािट

कुठार

कठोर





एिह

बार

यहु

लािग



आग

साँचा

गनिहं



अपराधी

उिरन

बधजोगू

भा

कौिसक

गुरिह

घोरा

बालकु

गुन

केवल

बोलावा

कर

मरिनहार

दोष



॥२७४॥

धरे उ

ु कटबाद

बाल

कोह

मोिह

सुधािर



आपु

ूतापु

बार

अब



जनाविहं

कथिहं

परसु

खर न



साधू

गु िोह सील

होतेउँ

॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥

तु हार

ौम



थोर

॥ ॥४॥

दोहरा गािधसूनु अयमय

कह खाँड

हृदयँ न

ऊखमय तु हारा

कहे उ

लखन

मुिन

सीलु

माता

िपतिह

उिरन

भए

सो अब सुिन

जनु

हमरे िह

आिनअ कटु

माथे यवहिरआ

बचन

हँ िस

कुठार

नीक काढ़ा

मुिनिह

। ।

बोली सुधारा



अजहँु ।

हिरअरइ

को

बूझ निह

गुर

िरनु

िदन

चिल



तुरत ।

हाय

अबूझ जान

रहा दे उँ हाय



॥२७५॥

िबिदत

सोचु

गए

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सूझ

बड़

याज म सब

संसारा जीक

बड़

थैली सभा

बाढ़ा

खोली पुकारा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥

रामचिरतमानस

- 114 -

भृगुबर

परसु

िमले



दे खावहु

कबहँु

अनुिचत

मोह

सुभट

किह

सब



रन

लोग

बालकांड

िबू

गाढ़े

िबचािर



पुकारे

ि ज



बचउँ

दे वता

रघुपित

नृपिोह

घरिह

सयनिहं

के

लखनु

॥३॥ बाढ़े

नेवारे

॥ ॥४॥

दोहरा लखन

नाथ

आहित ु

उतर

भृगुबर

कोपु

बढ़त

दे ख

जल

सम

बचन

करहु

बालक

पर



सूध

ूभाउ

कछु

छोहू

जाना



तौ

िक

करह ं



गुर

िपतु



पै



लिरका

ूभु

कछु

अचगिर

कृ पा

िससु

सेवक

राम

बचन

सुिन

कछुक

हँ सत

दे ख

नख

िसख

गौर

सर र

सहज

टे ढ़

किरअ

सिरस

ःयाम

जानी







माह ं

तोह



तोर

नीचु

मन

यानी

पयमुख

नाह ं

सम

दे ख

बोधु

पाप

कर

बड़

पापी



॥१॥ ॥

॥२

मुसकाने

मीचु



भरह ं

बहिर ु

ॅाता

कालकूटमुख

कोहू

अयाना

मुिन

लखनु

राम



मोद

धीर

कछु



करत

मातु



॥२७६॥

किरअ

बराबिर

सील

किह ।

रघुकुलभानु

दधमु ू ख

सम

यापी

मन

अनुहरइ

तु ह

जुड़ाने िरस

बोले

कृ सानु

मौह ं

॥ ॥

॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा लखन जेिह म

ू टट जौ

मनु

निहं

अनुिचत

सुिन

रामिह

दे इ तनु

करिहं ।

कोपु

किरअ



जोिरअ

कोउ





नार



करहु

बानी

िनहोरा सुंदर

ूितकूल

होइिहं

उपाई

नर

िनरभय







कैस

बचउँ



िबष

कुमार

खोट

जरइ

तन

िबचािर रस

बड़

भरा

होइ बंधु



॥२७७॥ अब

पाय

अनुिचत

छोट िरस

मूल

िबःव

बैिठअ

डे राह ं

पुर

चरिहं पिरहिर

िरसाने

किरअ

जनकु

सुिन

मुिन

मुिनराया

तौ

कापिहं

मलीन

सुनहु

जुरिह

लखनिहं

भृगुपित बोले

जन

िूय

थर

हँ िस

अनुचर

चाप

बोलत थर

बस

तु हार अित

कहे उ

दाया

िपराने गुनी

भल

बोलाई नाह ं

बड़ बल लघु

भार हानी तोरा

कनक

घटु

जैस

तरे रे

राम



॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा सुिन गुर अित

िबनीत

सुनहु

नाथ

लिछमन समीप मृद ु

तु ह

िबहसे

गवने

सकुिच

सीतल

बानी

सहज

सुजाना

बहिर ु

पिरहिर

। ।

नयन बानी

बोले बालक

रामु बचनु

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बाम जोिर किरअ

॥२७८॥ जुग निहं

पानी काना

॥ ॥१॥

रामचिरतमानस

- 115 -

बररै

बालक

तेिहं

नाह ं

कृ पा

कोपु

किहअ

एकु कछु

मुिन

एिह

के

काज

बधु

बेिग

कह

सुभाऊ

िबिध

राम कंठ

जाइ





गोसा



मो

िरस

जाई



िरस

कुठा

इन्हिह

िबगारा

बँधब

जेिह



बालकांड

कैस



द न्हा



िबदषिहं ू

अपराधी



पर

किरअ

मुिननायक

अजहँु



संत

तौ

तु हारा

दास

सोइ

अनुज



नाथ



कर

तव

काह

काऊ नाई उपाई

िचतव

कोपु

किर

अनैस

क न्हा

॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा गभ

विहं

परसु

अछत

बहइ



भयउ

बाम

िबिध

आजु

दया

बाउ

कृ पा

दखु ु



पै

हाथु

अविनप दे खउँ

दहइ दसह ु

कृ पाँ

जनक

हिठ

बालक

बेिग

करहु

िकन

आँ खन्ह

लखनु

कहा

मन

भा



बोध

क न्ह

ओटा

माह ं

बचन

। । ।

जनु

तनु

नावा फूला

राख

जड़

िबधाता

खोट

कतहँु

॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥

नाह ं

॥४॥

नृप

ढोटा

कोउ



गेहू

जमपुर

छोट

आँ ख

काऊ

िस

झरत

दे खत

नृपघाती

किस

िबहिस

भएँ



॥२७९॥

कृ पा

चहत

मूद

घोर

कुंिठत

सौिमऽ

बोलत

एहू

कुठा हृदयँ

सुिन

गाता

गित

भूपिकसोर

मोरे

। ।

मुिन

दे खु िबहसे

। ।

सहावा

अनुकूला

जिरिहं

बैर

छाती

सुभाऊ

कुठार

सुिन

जअत

िरस

िफरे उ

मूरित

रविन



दोहरा परसुरामु संभु बंधु

कटु



पिरतोषु

छलु

तज

गुनह

राम

सरासनु

कहइ

भृगुपित

तब

मोर

संमामा

कर

हम

टे ढ़

जािन

सब

बंदइ

राम

कहे उ

िरस

त जअ

जिहं

िरस

जाइ

किरअ



तू

छल



नािहं ।



मन

पर

रोषू



सोइ



बब ।

मुनीसा ःवामी

बोधु



ूबोधु

॥२८०॥

िबनय

करिस

कर

छाड़ सिहत

मुसकािहं कतहँु

कहाउब न



रामु

सुधाइहु

चंिमिह

कर ।

अित

हमार



बंधु

उठाएँ काहू

उर

करिस

िसविोह

कुठार

बकिहं लखन

तोर

सम

बोले

सठ

तोिर

संमत

करिह

ूित

कुठा

मोिह

दोहरा

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जािन

रामा

मारउँ िसर

ते

मसइ आग आपन

जोर तोह नाएँ

बड़ न यह

दोषू राहू

सीसा

अनुगामी

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 116 -

ूभुिह

सेवकिह

बेषु दे ख

िबलोक

कुठार

नामु

पै

तु ह

छमहु

हमिह

धनु

तु हिह

धार चीन्हा

मुिन



ना

केर

सिरबिर

राम

माऽ

लघु

नाम

दे व

एकु

गुनु

धनुष

सब

ूकार

हम



बी

उत

तिहं

िससु



कहाँ

चरन

परसु

सिहत

बड़

नाम

गुन

परम



कहहु

नव

हारे



उर

छमहु

िबचार

कृ पा

िबू



द न्हा

धरत

िबू



सन

िरस

िसर



॥२८१॥

चिहअ



हमार

रज

रोसु

दोसु

सुभायँ

पद

नाथा

निहं

लिरकिह

बंस



हमारा

तु ह

भै



किस

िबूबर

बालकहू





अनजानत

तजहु

कछु

तु हिह

औतेहु

चूक

कस

कहे िस

बान

जान



सम

बालकांड

॥१॥

गोसा



घनेर

॥२॥

तोहारा

॥३॥

कहँ

पुनीत

माथा

तु हार

अपराध

हमारे



॥ ॥४॥

दोहरा बार

बार

बोले

भृगुपित

िनपटिहं

ि ज

चाप

ुवा सेन

मै

परसु

मोर

चापु कहा

छुअतिहं

िबूबर हिस

तहँू

जानिह

मोह



आहित ु

कािट

जानू सुहाई

बिल

िबिदत दापु

ू टट

कहहु

महा





जस

मनहँु





भए

किह

पसु

िबू

जीित बिड़

आई

के

॥१॥ ॥ ॥२॥

ठाढ़ा

॥३॥

चूक

कर



क न्हे

जगु

लघु

हे तु

तोह

कृ सानु

कोिटन्ह

िनदिर

अित

॥२८२॥

घोर

जप



सुनावउँ

अित

अहिमित िरस

बाम

मह प

बोलिस

राम

िबू

मोर ज य



पुराना

सम

समर



िबचार

िपनाक



तोर

बाढ़ा



कोप

सन

राम बंधु



द न्हे

निहं

बड़

मुिन

कहा

स ष

चतुरंग

ूभाउ

भंजेउ राम

किर सर

सिमिध एिह

मुिन

भोर

हमार

अिभमाना

॥ ॥

॥४॥

दोहरा ज

हम

तौ

अस

दे व

दनुज



रन

िनदरिहं को

जग

भूपित

भट

हमिह

पचारै

िबू

बिद

सुभटु

जेिह

नाना कोऊ

धिर

समर

सकाना

कहउँ

सुभाउ



कुलिह

ूसंसी

सुनु राम

मृद ु

अिस

ूभुताई



गूढ़

बचन

रघुपित

के

रमापित

कर

धनु

लेहू

बस

समबल



तनु कै

भय



छिऽय िबूबंस

स य

लरिहं । ।

सुनहु

नाविहं

भृगुनाथ माथ

अिधक

सुखेन

कुल

कलंकु

तेिहं

कालहु

डरिहं



अभय ।

उघरे ।

होइ

पटल खचहु

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जो

बलवाना

िकन

होऊ

पावँर रन

तु हिह

परसुधर िमटै

॥२८३॥

होउ

कालु



रघुबंसी

मित मोर

आना डे राई के संदेहू

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥

॥३॥ ॥

रामचिरतमानस

दे त

- 117 -

चापु

आपुिहं

चिल

गयऊ



बालकांड

परसुराम

मन

िबसमय

भयऊ

॥४॥

दोहरा जाना

राम

जोिर

पािन

बोले

बचन

बनज

बन

भानू

जय

रघुबंस

जय

सुर

िबू

ूभाउ

धेनु

तब

पुलक अदयँ



िहतकार





जय

क ना

गुन

सागर

सेवक

सुखद

सुभग

सब

अंगा



ूसंसा



जय

अ याता



छमहु

अनुिचत किह

एक

बहत ु

कहे उँ

कुिटल

मह प

जय

अपभयँ

मुख जय

जय



मद

जय

रघुकुलकेतू



डे राने

जहँ



कुल

मोह

जयित

गात

अमात

दनुज

सील काह

ूेमु

गहन

िबनय कर

ूफु लत

बचन सर र

ॅम

रचना

अित

कोिट

तहँ

कायर

हार नागर

अनंगा

मानस

छमामंिदर गए

कृ सानु

कोह

मन

भृगुपित

॥२८४॥ दहन

छिब

महे स



दोउ

हं सा ॅाता

बनिह

तप

गवँिहं

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥

हे तू

पराने

॥ ॥४॥

दोहरा दे वन्ह

द न्ह ं

हरषे अित

पुर

गहगहे

जूथ

जूथ

सुखु

िबदे ह

गत

ऽास

नर

ूभु

नािर

बाजने

बाजे सुनयनीं

कर

बरिन



क न्ह

मोिह

कृ तकृ य

कह

मुिन

सीय

ूनामा

क न्ह

भा

दहँु ु

नरनाथ

भयउ

। ।

िबबाहू



उिचत

रहा नर

नाग



॥२८५॥

मंगल

कल मनहँु

िनिध भंजेउ

किहअ

िबबाहु

पाई

चकोरकुमार

धनु सो

साजे

कोिकलबयनी

उदयँ

ूसाद

जो



सुर

िबधु

ूभु

अब

ूबीना

गान

जन्मदिरि

जनु

सूल

मनोहर

करिहं ।



कौिसकिह सुनु

धनु

जाई

फूल

मोहमय

सबिहं ।

सुखार

बरषिहं

िमट



सुमुख

भइ

पर

सब

िमिल

जनक

ू टटतह ं

दं द ु भीं ु

रामा गोसाई

चाप

िबिदत

आधीना

सब

काहु

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा तदिप

जाइ

बू झ दत ू

िबू

अवधपुर

मुिदत

राउ

बहिर ु

महाजन

हाट

बाट

किह

तु ह

करहु

कुलबृ

गुर

पठवहु

जाई

सकल

बोलाए

भलेिहं

मंिदर



कृ पाला

सुरबासा



जथा

बेद

िबिदत

आनिहं ।



अब

पठए आइ नग

बंस

नृप दत ू

सब न्ह सँवारहु

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यवहा

आचा



॥२८६॥

दसरथिह बोिल

बोलाई

तेिह

सादर चािरहँु

काला

िसर

नाए

पासा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

रामचिरतमानस

- 118 -

हरिष

चले

रचहु

िबिचऽ

पठए

िनज

बोिल

िबिधिह

िनज

िबतान गुनी

बंिद

गृह

आए

बनाई ितन्ह

ितन्ह



क न्ह



पुिन

िसर

नाना

बालकांड



धिर जे

अरं भा

पिरचारक



बचन

िबतान

िबरचे

बोिल

चले

सचु

िबिध

कनक

पठाए पाई

कुसल

सुजाना

कदिल

के

खंभा

के

फूल

परिहं

निहं

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा हिरत

मिनन्ह

रचना बेिन

हिरत

कनक

के

सुर चक

िबिचऽ

मिनमय

सब

पिच

मरकत भृंग

कुिलस

भाँित

। ।

अनेक

सरल



िपरोजा



निह

चीिर



सुहाई

दाम रचे

सुहाए

सरोजा

पवन

कूजिहं

िसंधुर

चीन्हे

सपरन

पिच

ि य



॥२८७॥

मुकता

कोिर

मंगल



भूल

परइ

िबच

गुज ं िहं

काढ़

कर

सपरब

िबच



पुरा

िबरं िच

लख

बनाए

गढ़

पदमराग ु

मनु

क न्हे

िबहं गा

खंभन

फल

अित

बंध

बहरंु ग

ूितमा

पऽ

बनाई

अिहबेल

रिच

मािनक िकए

दे ख

किलत

तेिह

के

िलएँ

मिनमय

ूसंगा

सब

सहज

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥

ठाढ़

॥३॥

सुहाई

॥४॥

दोहरा सौरभ हे म

प लव बौर

मरकत

रचे

िचर

बर

मंगल

कलस

अनेक

दप

मनोहर

जेिहं

मंडप

दलह ू ु

रामु

जेिहं

तेरहित ु

जनक जो

संपदा

सुिठ घविर

बंदिनबारे

लसत





गुन

सागर

कै

सौभा

जैसी

तेिह

समय

िनहार

नीच

गृह

सोहा

पाटमय

वज



नीलमिन

मनहँु



नाना बैदेह

िकए



बनाए

मिनमय दलिहिन ु

भवन

सुभग

जाइ सो





सो

। । ।

गृह

ूित

तेिह

लघु

सो

िबलोिक

सँवारे

चमर

बरिन

िबतानु

गृह

फंद

पट

अिस

बरनै



॥२८८॥

डोिर

मनोभवँ

पताक

कोिर

सुहाए

िबिचऽ

मित ितहँु

पुर

लगिहं

िबताना

किब

केह

लोक

उजागर

दे खअ

तैसी

भुवन

दस

सुरनायक

चार

मोहा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा बसइ तेिह पहँु चे

भूप

दत ू

ार

नगर पुर राम ितन्ह

जेिह कै

ल छ

सोभा पुर

पावन

खबिर

जनाई

किर

कहत । ।

कपट सकुचिहं हरषे

दसरथ

नािर

बर

सारद

सेषु

नगर नृप

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िबलोिक सुिन

िलए

बेषु



॥२८९॥ सुहावन बोलाई

॥ ॥१॥

रामचिरतमानस

- 119 -

किर

ूनामु

ितन्ह

बािर

िबलोचन

पाती

बाचत

द न्ह



पाँती

मुिदत

मह प

पुलक

उर

कर

पुिन

धिर

धीर

पिऽका

बाँची



हरषी

सभा

सुिध

पाई



आए

भरतु

तात

कहाँ

तहाँ

पूछत

अित

सनेहँ



सकुचाई

रिह



आपु

आई

लखनु रहे

चीठ

गात

रामु खेलत

बर



बालकांड

गए

उिठ

लीन्ह

भिर

कहत



छाती

खाट

सुिन

बात सिहत त

॥२॥

मीठ साँची

िहत

पाती

॥ ॥ ॥३॥

भाई आई

॥ ॥४॥

दोहरा कुसल

ूानिूय

बंधु

सुिन

सनेह

सुिन

पाती

पुलके

दोउ

ूीित

पुनीत

भरत

कै

तब

नृप

भैया

कहहु

ःयामल जा

कहहु

दत ू

ॅाता ।

धर

धनु

भाथा

मुिन कवन



लवाई

िबिध

जाने

नरे स

॥२९०॥

अिधक

सनेहु

समात



सभाँ

सुखु

मधुर नीक

बय

िकसोर

ूेम । ।

गाता

बचन

कौिसक

िनहारे

साँिच

राऊ

सुिध

बचन

दत ू

सम

धन्य



॥१॥ ॥ ॥२॥

साथा

कह

िूय



उचारे

मुिन

पुिन

आजु



िबसेषी

नयन

पुिन



सुिन

लहे उ

िनज

िबबस तब

दे स

मनोहर

तु ह



गए

बहिर ु

। ।

सुभाऊ

केिहं

बाची

कहहु

सकल

बैठारे

िनकट

कहहु



दे खी बारे



िबदे ह

बचन

दोउ

तु ह

िदन

अहिहं

कुसल

गौर

पिहचानहु

साने

दोउ

॥ ॥३॥

पाई

मुसकाने

॥ ॥४॥

दोहरा सुनहु

मह पित

रामु पूछन

लखनु

जोगु

जन्ह

के

ितन्ह

कहँ

जन्ह

न जस

मुकुट

तनय ूताप

किहअ

नाथ

सीय

ःवयंबर

भूप

संभु

सरासनु

तीिन

लोक

काहँु

महँ

जे

सकइ

उठाइ

सरासुर

जेिह

कौतुक

िसवसैलु

मिन के

तु ह

तनय

तु हारे क

आगे

िकिम न



भटमानी

। ।

उठावा

सिस ।

मलीन

दे खअ

सिमटे । सभ सोउ



िबभूषन

पु षिसंघ



टारा

मे



चीन्हे

अनेका

िबःव

सोउ

पुर

िक

दप

एक



सकल सकित

िहयँ

हािर

तेिह

दोहरा

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उ जआरे

सीतल

सुभट

कै

॥२९१॥

रिब

रिब

हारे

दोउ

ितहु

सभाँ

गयउ

बिरआरा

धनु किर

॥१॥

लीन्हे

एका

पराभउ



लागे

कर

बीर संभु



कोउ



॥२॥ ॥

भानी

॥३॥

फे



पावा

॥४॥

रामचिरतमानस

सुिन दे ख

- 120 -

तहाँ

राम

भंजेउ

चाप

सरोष

भृगुनायकु

राम

बलु

राजन

रामु

कंपिह

भूप

रघुबंस ूयास

िनज

दे ख

तव

दत ू

बचन

धनु

सभा

समेत

किह

अनीित

द न्हा





दोऊ

राउ

अनुरागे



िबनय

गज

आँ ख

दतन्ह ू



धरमु

आँ ख

दे खाए

लखनु

पुिन

िकसोर

के

बीर

दे न

द न्ह

पिऽका



ताक

॥२॥

पागी

॥३॥

कोऊ

िनछाविर सबिहं

॥१॥

तैस

आवत रस

िबचािर



क न्हा

बन

तर

ूताप



॥२९२॥

गवनु

हिर



ूेम

नाल

ितन्ह

िनधान

अब



काना

बहु

तेज

लागी

मूदिहं

किर

मिहपाल

पंकज

भाँित

जिम



महा

गज

बहत ु



जाक

िूय

ते



जैस

बालक

रचना

जिम

आए

िबलोकत

सुिनअ

िबनु

अतुलबल

दे व

मिन

बालकांड



लागे

सुख

माना

॥ ॥४॥

दोहरा तब

उिठ

कथा सुिन जिम

बोले

सिरता सुख

तु ह

गुर

तु ह

ते

बीर

िबनीत

तु ह

कहँु

सुकृती

सुनाई गुर

ितिम

भूप

गुरिह सुखु

पाई

सागर

महँु

जाह ं

संपित

िबनिहं धेनु

अिधक

पुन्य

धरम सब



माह ं

बड़

ॄत







धार क याना

तिस

भयउ



गुन



॥२९३॥

मिह

तािह

धरमसील

राजन



कहँु

सुख

कामना

पिहं

पुनीत

जािहं

सुभाएँ

कौस या

है

कोउ

होनेउ

सिरस

सुत

सागर

बर

बालक

बरात

बजाइ

छाई

नाह ं

राम

सजहु



जाइ

बोलाइ

पु ष

ज िप ।

काक

दत ू

पुन्य ।

सेबी

जग

काल

सादर

बोलाएँ

सुर

समान

कहँु

सब

अित

िबू

तु ह

बिस

॥ ॥१॥ ॥

दे बी

॥२॥

जाक

॥३॥

नाह ं

चार

िनसाना



॥ ॥४॥

दोहरा चलहु

बेिग

सुिन

भूपित

गवने

राजा

सबु

रिनवास

सुिन

संदेसु

ूेम मुिदत

असीस

भवन

सकल

ूफु लत

लेिहं

परःपर

अित

राम

लखन

कै

मुिन

ूसाद ु

किह

बचन तब

बोलाई

भलेिहं

नाथ

दतन्ह ू



जनक अपर

कथा

रानी



मनहँु

िस खिन

िूय

नार ं

पाती





अित

हृदयँ

करनी



बारिहं

ार

िसधाए



रािनन्ह

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लगाइ बार तब

सुनाई

भूप

सुिन



॥२९४॥

बािच

सब

आनंद

क रित

नाइ

दे वाइ

पिऽका



गु

िस

बासु

हरषानीं

राजिहं दे िहं

गुर

बखानीं बािरद

मगन

मिहदे व

॥१॥ ॥

महतार ं

॥२॥

बरनी

॥३॥

जुड़ाविहं

भूपबर

बनी



छाती

बोलाए

॥ ॥

रामचिरतमानस

- 121 -

िदए

दान

आनंद

समेता



बालकांड

चले

िबूबर

आिसष

दे ता

॥४॥

सोरठा जाचक

िलए

िच कहत

चािर

चबबित

पिहर

पट

नाना



सुभ

ज िप

पाए

लोगन्ह

चािर

सुिन

िनछाविर

सुत

सब

भुवन

द न्ह

जीवहँु

चले

समाचार

हँ कािर

दस कथा

भरा लोग

अवध ूीित

कै

वज

पताक

पट

कनक

कलस

तोरन

उछाहू



सुहाविन

ूीित चामर

मग ।



घर

गृह



॥२९५॥ िनसाना

होने

बधाए

रघुबीर

गलीं पुर



िबआहू

सँवारन

लागे

मंगलमय

॥१॥ ॥ ॥२॥

पाविन

रचना

रची

छावा

परम

िबिचऽ

बजा



दिध

अ छत

माला

॥४॥

हरद

दब ू

बनाई



मंगल



जाला

गहगहे

राम

चा

मिन

हने

जनकसुता



सुहाई

के

घर



िबिध

दसर थ

हरिष लागे

अनुरागे

सदै व

तदिप



कोिट

॥३॥

दोहरा मंगलमय

िनज

बीथीं जहँ

तहँ

गाविहं भूप

िमिल

भािमिन



सावक

लोचिन



मंगल

मंजुल

बानीं



भवन

िकिम

ि य

कतहँु

िबिरद

बहत ु

जूथ

बंद



गीता



भवनु

अित

नव



सकल दित ु

रित

मानु

िबःव

िबमोहन

रचेउ

बाजत

िबपुल

धुिन

िनसाना

भूसुर

करह ं

रामु



उमिग

चला

चहु

को

किब

बरनै

राम

लीन्ह

अवतार

लै

मानहँु

लजानीं िबताना

नामु

लै

दािमिन

िबमोचिन

कलकंिठ

बेद



॥२९६॥

रव

राजत



पुराइ

स प

कतहँु

थोरा

बनाइ

सुिनकल



उ चरह ं

मंगल

सज



नाना

रचे

चा

िनज

बखाना

मनोहर

सुंदिर उछाहु

जाइ

लोगन्ह

चौक

मृग

मंगल गाविहं

भवन

चतुरसम

सीचीं

जूथ

िबधुबदनीं

िनज

सीता ओरा

॥ ॥१॥ ॥

॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा सोभा

दसरथ

जहाँ भूप चलहु

सकल

भरत

पुिन

बेिग

भवन सुर

िलए

रघुबीर

भरत

सकल

रिच

िच

जीन

साहनी तुरग

कइ

सीस

मिन

बोलाई बराता

। ।

बोलाए



ितन्ह

साजे

हय सुनत आयसु ।

बरन

गय

ःयंदन

पुलक

पूरे

द न्ह बरन

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पार

॥२९७॥ साजहु

दोउ

मुिदत बर



उिठ

बा ज

जाई ॅाता धाए

िबराजे

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

रामचिरतमानस

- 122 -

सुभग

सकल

सुिठ

नाना

जाित



ितन्ह

सब

सब

चंचल जािहं

छयल

सुंदर

सब

करनी



बखाने

अय



भए

असवारा

भूषनधार



बालकांड

इव

िनदिर ।

जरत

पवनु

भरत

कर

धरत

जनु

चहत

सिरस

सर

धरनी

उड़ाने

बय

तून

चाप

पग

राजकुमारा

किट

भार

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा छरे

छबीले

छयल

सब

जुग

पदचर

बाँधे

िबरद

बीर

रन

गाढ़े

फेरिहं

चतुर

तुरग

गित

नाना



हरषिहं

बनाए



वज

रथ

सारिथन्ह

चवँर

चा

िबिचऽ िकंिकन

सावँकरन सुंदर

असवार

धुिन

अगिनत

सकल

जे

जल





हय

अलंकृत

चलिहं

सुजान

अिसकला

िनकिस

भए

सुिन



भानु



ते

ितन्ह



जन्हिह



नाई

बनाई





ूबीन

सुिन

जान

बाहे र पवन

िनसाना

सारिथन्ह मन

बूड़

जोते मोहे

बेग

सारिथन्ह

लाए

अपहरह ं

मुिन



ठाढ़े

भूषन

सोभा

रथन्ह

टाप



॥२९८॥

मिन

िबलोकत

रथी

नबीन

पुर

पताक

करह

सोहे

साजु

जे



होते

थलिह

सबु

ूित

सूर

अिधकाई

िलए

बोलाई

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा चिढ़

होत किलत

रथ

म गज

बाहन ितन्ह

चिढ़

मागध

सूत

बेसर

ऊँट

चले बंिद

सकल

बहु

चले

सेवक

किह



िबधाना



बृन्दा



गुनगायक

बृषभ

जो



िबराजी

िबूबर

नगर

सबिह

अँबार ं

अनेक

काँविर

कोिटन्ह

पर ं

घंट

अपर

बाहे र

सुन्दर

सगुन

किरबर न्ह

चले

चले

चिढ़



जाती कहारा

जनु चले

। ।

जेिह न

कारज

सुभग तनु

जात

जेिह सावन

सुभग धर

जान



॥२९९॥

भाँित घन

सँवार ं राजी जाना

सकल

ौुित

छं दा

जो

जेिह

लायक

भिर बःतु

िनज

बरात

सुखासन

चिढ़

बःतु

िबिबध िनज

जुरन

जािहं

िसिबका

चले ।

समुदाई

मनहँु

लागी

अगिनत को

साजु

भाँती

बरनै

समाजु

पारा बनाई

दोहरा सब

कबिहं



दे खबे

उर

िनभर

नयन

भिर

हरषु

रामु

पूिरत

लखनू

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पुलक

दोउ

बीर

सर र



॥३००॥

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 123 -

गरजिहं

गज

घंटा

धुिन

िनदिर

घनिह

घु मरिहं

महा

भीर

भूपित

चढ़

अटािरन्ह

गाविहं

सुमंऽ

दोउ

रथ

राज

समाजु

िनसाना के

दे खिहं

गीत

तब

घोरा

मनोहर दइु

भूप

एक



ार



नार ं



पिहं

रव

कछु

िलँएँ

। । ।

जाइ

आनंद ु

निहं

सारद

दसर ू

तेज

थार

पिहं

बाजी बखाने

जािहं

पुज ं

अित

॥ ॥

॥२॥

बखाना

िनंदक



॥१

पबार

जाइ

हय

ओरा

काना

मंगल न

रिब



चहु

पषान

आरती

जोते

आने

िहं स

सुिनअ

होइ

अित

साजा

बा ज

पराइ रज



साजी

रथ

रथ

िनज

नाना

ःपंदन

िचर



बालकांड

ॅाजा

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा तेिहं

रथ

िचर

आपु

चढ़े उ

ःपंदन

सिहत किर

बिस कुल

सुिमिर

सोह र ित

रामु

हरषे

गुर

िबबुध

भयउ

बेद

कैस

िबिध

राऊ

आयसु

सुर

नर

नािर

सुमंगल

घंट

घंिट

धुिन

बरिन

करिहं

दे ख ।



गाई

। ।

सब

भाँित

मह पित

संख

सुमन

पुरंदर

राग

बजाई दाता

बाजने

बाजिहं

सरव

करिहं

कुसल

कल

जैस बनाऊ

सुमंगल

बरात



॥३०१॥

सबिह

सरस

हास

गनेसु संग

योम



नरे सु

गुर

चले



चढ़ाइ गौिर

बरषिहं

जाह ं

नाना

गुर सुर



गाजे



कौतुक

िबदषक ू

हर

पाई

गय

हरिष



बराता

हय

कहँु

सुिमिर

नृप

िबलोिक

कोलाहल

बिस

बाजे

सहनाई

पाइक गान

फहराह ं सुजाना

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा तुरग

नचाविहं

नागर

नट

िचतविहं बनी

बनइ



बरनत

चारा

चाषु

बाम

दािहन सानुकूल लोवा

कुँअर

िदिस

। ।

बह

िऽिबध

बयार

मृगमाला

िफिर

दािहिन

छे मकर

कह

छे म

सनमुख

आयउ

दिध

िबसेषी

होिहं

सगुन

सुंदर

सघट



ःयामा कर



॥३०२॥ सुभदाता

मंगल

किह

दे ई

दरसु

सब

पावा

सवाल

आव

काहँू

सनमुख

सुरभी

मंगल ।

बँधान

सकल



िनसान

ताल

मनहँु



मीना

मृदंग



नकुल



दे खावा आई





लेई सुहावा

दरसु

डगिहं

बराता

सुखेत िफिर

अकिन

चिकत

काग िफिर

बर

गन बाम पुःतक

दोहरा

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जनु

बर

िससुिह द न्ह

सुत दइु

िपआवा दे खाई

पर िबू

नार

दे खी ूबीना

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 124 -

मंगलमय जनु मंगल

क यानमय

सब

सगुन

साचे

राम

सिरस



सुिन

अस

एिह

िबिध

याहु

बीच असन

आवत

िनत

अिभमत

होन

सुगम

िहत

भए

सगुन

दातार

एक

ताक



सगुन



दलिहिन ु

सीता



समधी

दसरथु

सब

क न्ह

बरात

पयाना

बीच

बर

बास

बनाए

सयन

बर

बसन

सुख

लख

नूतन

फल

सब

सगुन

जािन

बालकांड

भानुकुल

नाचे





केतू

हय



गय

पाविहं

अनुकूले



सुत

जनकु

जाक पुनीता

िबरं िच

हम

साँचे

िनज

॥१॥ ॥

िनसाना

॥२॥

संपदा

छाए

॥३॥

बँधाए

सिरस



हने

जनक

सब

॥३०३॥

सुंदर

गाजिहं

सुरपुर



बार

क न्हे

सिरत न्ह



सुहाए

अब



िनज

सेतू

मन

सकल

बराितन्ह

मंिदर

बर

सुिन

गहगहे

िनसान

तुरग

लेन

भाए

भूले



॥ ॥४॥

दोहरा आवत

जािन

सज

गज

बरात

रथ

पदचर

चले

अगवान



॥३०४॥

मासपारायण दसवाँ िवौाम कनक

कलस

भिर

कोपर

भरे

सुधासम

सब

पकवाने

फल

अनेक

भूषन

बसन

मंगल दिध

बःतु

महामिन

सगुन िचउरा

अगवानन्ह दे ख

बर

बनाव

सिहत

नाना

लिलत

भाँित





खग

मृग



बहत ु

अपारा

द ख

भाजन

सुहा सुहाए

उपहार





नाना

सुगंध

जब

थारा

हरिष

भिर

भिर

बराता

।उर

आनंद ु



मुिदत

जािहं िहत

गय

ूकारा बखाने

भूप

बहिबिध ु

भाँित



अगवाना



भट हय

अनेक

मिहपाल

काँविर पुलक

बराितन्ह

हने



जाना

॥२॥

कहारा गाता

भर

॥१॥

पठा पठाए

चले



िनसाना

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा हरिष जनु बरिष

सुमन

परसपर आनंद

िमलन समुि

सुर

दइु

सुंदिर

बःतु

सकल

राखीं

नृप

ूेम

समेत

रायँ

सबु

किर

पूजा

बसन

िबिचऽ

मान्यता पाँवड़े

िहत

िमलत



लीन्हा परह ं

। ।

िबहाइ

बगमेल सुबेल

मुिदत

दे व

िबनय

क न्ह

ितन्ह



बड़ाई

चले



गाविहं

आग

कछुक

भै

बकसीस

जनवासे दे ख

धनहु

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कहँु

धन

॥३०५॥

दं द ु भीं ु अित

जाचक न्ह चले मद ु



बजाविहं अनुराग द न्हा लवाई पिरहरह ं

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥

रामचिरतमानस

- 125 -

अित

सुंदर

द न्हे उ

जानी

िसयँ

हृदयँ

सुिमिर

जनवासा

बरात

पुर

सब



जहँ

आई

िसि



बालकांड

सब

कहँु

कछु

बोलाई

सब

िनज



भूप

भाँित

मिहमा पहनई ु

सुपासा

ूगिट

॥३॥

जनाई

करन

पठाई

॥ ॥४॥

दोहरा िसिध

सब

िसय

िलएँ

संपदा

सकल

िनज

िनज

बास

िबलोिक

िबभव

भेद

कछु

कोउ

िसय

मिहमा

िपतु

आगमनु

सकुचन्ह

सुरपुर ।

सुर

जाना



सकल

जानी

दोउ

हृदयँ

िबनय

बिड़

दे खी



उपजा

हृदयँ

लगाए



पुलक

दोउ

चले

जहाँ

दसरथु

जनवासे





कर

िपतु

आनंद ु

संतोषु

सरोबर

जल

तकेउ

॥२॥

माह ं

िबसेषी

अंबक



अमाई मन

॥ ॥१॥

पिहचानी

लालचु

उर

भाँती

बखाना

हे तु

दरसन अंग

मनहँु

सब

करिहं

अित



॥३०६॥

सुलभ

हृदयँ न

सकत

बंधु

पाह ं

सकल

हरषे



जनवास

िबलास

जनक



हरिष

गु

भोग

सुख



भाई

जहाँ



बराती



सुनत

अकिन

सुख

रघुनायक

किह

िबःवािमऽ

आयसु

॥ ॥३॥

छाए

िपआसे

॥ ॥४॥

दोहरा भूप

िबलोके

उठे

हरिष

मुिनिह

दं डवत

कौिसक

राउ

करत

सुत

िहयँ

पुिन

बिस

पद

िबू

बृंद

बंदे

भरत

सहानुज

लाइ

लखन

उर दोउ

दसह ु

िसर



बार ।

भाई



थाह

किह



पद

ूेम

मुिदत

मुिनबर असीस



मन

भावती

ूनामा



िलए

उठाइ

ॅाता



ूान

भा

दोउ

सुखु

सर र





िमले

ूेम

सीसा

कुसलाई

मृतक

नाए

क न्ह

धिर

पूछ

उर



॥३०७॥

रज

असीस नृपित

समेत लेत

सी

बार

दे ख

मेटे

सुतन्ह

ितन्ह

दहँु ु

दे ख

चले

लाई

दख ु

आवत

महँु

मह सा

िलये

दं डवत

मुिन

सुखिसंधु

क न्ह

पुिन

हरषे

जबिहं

समाई

जनु

लाइ

भटे

उर

लाए

पा उर

पिरपूिरत

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥

रामा गाता

॥ ॥४॥

दोहरा पुरजन िमले रामिह नृप

दे ख समीप

पिरजन जथािबिध बरात सोहिहं

जाितजन सबिह

जुड़ानी सुत

ूभु ।

चार

ूीित ।

जाचक परम िक जनु

मंऽी

कृ पाल र ित धन

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मीत

िबनीत न

जाित

धरमािदक



॥३०८॥ बखानी तनुधार

॥ ॥१॥

रामचिरतमानस

- 126 -

सुतन्ह

समेत

सुमन

दसरथिह

बिरिस

सतानंद

सुर

दे खी

हनिहं

मुिदत ।

नाकनट ं

गन



मागध

िबू

सिचव

सिहत

बरात

राउ

सनमाना

ूथम

बरात

लगन

ॄ ानंद ु

लोग





आयसु

आई

लहह ं

नगर

िनसाना



सब



बालकांड





बढ़हँु

नर

नािर

नाचिहं

किर

सूत

िबदष ु

मािग

तात

िदवस

िफरे

पुर

िबसेषी गाना बंद जन

अगवाना

ूमोद ु

िनिस

िबिध

अिधकाई

सन

कहह ं

॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा रामु

सीय

जहँ जनक

सुकृत

इन्ह

सम

इन्ह

सम

हम

सब

जन्ह

काँहु

कहिहं

अविध नर

अस

िमिल

मूरित

बैदेह



दसरथ

िसव



सकल

राम

कै

रासी



छिब

दे खी

िबआहू

बात

बनाई



नािर

राज

समाज

दे ह



फल

लाधे

॥१॥

समान

है

निहं

कतहँू

को

जनिम

सुकृती

॥३०९॥ धर

इन्ह

जग



रामु





भए

दोउ

सुकृत

कािहँ

माह ं

कोिकलबयनीं

िबिध



जग

सुकृत

परसपर

अवराधे

भयउ

रघुबीर

भाग

सुकृत

कहिहं

कोउ

दे खब

अविध

पुरजन



जानक

पुिन बड़

जहँ

सोभा

होनेउ

जनकपुर

हम

बासी

सिरस



लेब

भली

िबिध



एिह

िबआहँ

बड़



नयन

अितिथ

होइहिहं

नाह ं िबसेषी

॥ ॥२॥ ॥

लाहू

॥३॥

दोउ

भाई

॥४॥

सीय



लोचन लाभु

सुनयनीं



दोहरा बारिहं लेन

तब

राम

लखनिह

जस

राम

ःयाम

गौर

सब

कहा

एक

भरतु

रामह

मन



भाविहं

मुख

जनक

दोउ

पहनाई ु

िूय

िनहार



सुहाए

आजु

िनहारे

। ।

सहसा

एक पा



नख

जाह ं



अस

सब

सब

जनु

कमनीय

कािह

तैसेइ

ते









अनुहार बरिन

काम

होइहिहं

जोटा

अंग

बोलाउब

कोिट



लखनकर



सऽुसूदनु

बस

बंधु

होइिह

सख

लखनु

सनेह

आइहिहं

भाँित

िबिबध तब

बार

पुर

िबरं िच

सासुर लोग

भूप कहिहं

॥३१०॥

संग दे ख

सुखार दइु

जे

िनज

हाथ



सकिहं

नर

िसख

ते

सब

अंग

उपमा

कहँु

लख

िऽभुवन

माई

कोउ

ढोटा आए सँवारे नार अनूपा नाह ं

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

छं द उपमा बल

न िबनय

कोउ िब ा

कह

दास सील

तुलसी सोभा

कतहँु

िसंधु

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किब इन्ह

कोिबद से

एइ

कह अह

। ॥

रामचिरतमानस

- 127 -

पुर

नािर

सकल

यािहअहँु

पसािर

चािरउ

भाइ

बालकांड

अंचल एिहं

िबिधिह

बचन

सुनावह ं



हम

सुमंगल

गावह ं



पुर सोरठा

कहिहं

परःपर

सख एिह जे

सबु

िबिध नृप

कहत गए

राम

मह पठै

मूल ितिथ

नखतु

एिह

िदनु जोगु

नारद

सकल

करह ं

सन

आनँद

दे ख ।

भाँती

ितन्ह

िनज

गए

िहम

िरतु

अगहनु

बा



लगन

सोिध

िबिध

सोई



गनी

जनक

के

बाता



मिहपाला बराती

मासु

सुहावा

क न्ह

िबचा

गनकन्ह

जोितषी

कहिहं

आिहं

भरह ं पाए

सकल



यह

उर सुख

भवन

पुरजन

ूमुिदत



॥३११॥

उमिग

सब

िनज

तन दोउ

उमिग

बंधु



भूप

आवा

बर

लोगन्ह



पुलक

पयोिनिध



िबसाला

िदन

िबलोचन

पुन्य

आए

िबसद

लगन

द न्ह

सुनी

ःवयंबर

कुछ

बािर

पुरािर

मनोरथ

जसु

बीित

मंगल

करब

सकल सीय

नािर

जोई

िबधाता

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा धेनुधूिर

बेला

िबून्ह उपरोिहतिह सतानंद संख सुभग लेन

कहे उ

िबदे ह

कहे उ तब

सुआिसिन

कोसलपित भयउ

समउ

गुरिह

पूिछ

बहु

गाविहं

सादर अब



मंगल

गीता



करिहं

भाँती । पाऊ

िबिध

अनुकुल

कलस बेद

धुिन जहाँ

अित

लघु

लाग

राजा

यह ।

सुिन

चले

संग

॥३१२॥ काहा

सब

सगुन

गए



कारनु

सा ज

। ।

मूल

कर

सकल

मंगल

समाजू

कुल

िबलंब



धािरअ

किर

अब

सगुन

बाजे

एिह

दे ख

कर

सुमंगल

जािन



बोलाए

पनव

सकल

सन

नरनाहा

सिचव

िनसान चले

िबमल

याए

सुभ

िबू

पुनीता

जनवास ितन्हिह

साजे बराती

सुरराजू

परा

िनसानिहं

मुिन

साधु

घाऊ

समाजा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा भा य लगे सुरन्ह िसव ूेम

िबभव सराहन

सहस

सुमंगल

अवस

ॄ ािदक

िबबुध

पुलक

तन

कर

दे ख

दे व

जािन

जनम

िनज

अवधेस

हृदयँ

मुख जाना ब था उछाहू



बरषिहं



चढ़े ।

सुमन िबमान न्ह

चले

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िबलोकन

ॄ ािद बािद बजाइ नाना राम



॥३१३॥ िनसाना जूथा िबआहू

॥ ॥१॥ ॥

रामचिरतमानस

- 128 -

दे ख

जनकपु

िचतविहं नगर

सुर

चिकत नािर

अनुरागे

िबिचऽ

नर

दे ख

सब

िबिधिह

भयह

आचरजु

समुझाए

हृदयँ

िबचारहु

जन्ह

कर

करतल एिह

नामु

होिहं िबिध

सुरन्ह

दे खे

साधु

समाज

संग

सोहत

साथ

सुभग

पुिन

केिक याह सरद

रामिह

जेिह किह

जनु

जनु

नसाह ं

कहे उ

आग

बर

मन

पुलिकत

तनु

धर

कामार

बसह

करिहं

चलावा गाता

सुख

अपबरग

बरन

बर

जोर



दे ख

सुरन्ह

भै

िबलोिक

िहयँ

हरषे



नृपिह

सरािह

सुमन

ितन्ह

बार

िनहािर

गात

कंठ िबभूषन

नख

ःयामल

िबिबध

िबधु

अलौिकक

सोहिहं

बर

तुरंग

बदनु

बा ज पर

जाइ

बा ज बय जीनु

बेषु

बनाइ

बल



नयन न



जात

। ।

सुहावा



मनिसजु गुन जोित

गित

लजावन

मन

िहत मिन

भाई

चपल िबिरद

सकल

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सुरंगा

राजीव

जनु

॥३॥ ॥ ॥४॥

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

॥३१५॥

बसन

मनह ं





नवल

बेषु

सुमोित

बरषे

सुहाए

िबलोिक

राम

थोर

भाँित

ूसंसक

बा ज

छं द

पुरािर

नचावत

गित



सब

जाइ

बंस

सेवा

तनुधार

ूीित

िबिनंदक

सब

किह

िबराजे

भाँित

तिड़त ।

सकल

समेत

मंगल

सुहावन

दे खाविहं

जराव







बारिहं

उमा

अंगा

संगा

रामु सब

सुभग

सजल

बनाए

सुंदरताई

मनोहर

दोहरा

िसख

लोचन

दित ु

िबमल

जगमगत



मूल

॥२॥

॥३१४॥

जनु

पुलक

आपन

मिहदे वा

महामोद





पु





भुलाहु

चार

राम

राजकुअँर

जाता

रामु

पुिन

दे खी

अमंगल

िसय





सुत

कनक

सकल बंधु

दसरथु

तेइ

नाना उ जआर ं

िबधु

िबआहु

सकल

लागे

सुजाना

कतहँु

रघुबीर



समुझावा

जनु

आचरज

िसय



सुसील

कछु

जिन

माह ं

चार

करनी

दोहरा

धिर

जग

पदारथ संभु

सब

धीर

लेत

दे वन्ह

मरकत

दे व

नखत

लघु

अलौिकक

सुधरम

भए

िनज

सबिहं

सकल

सुघर





लोक

रचना



सुरनार ं िबसेषी

िनज



िनधाना

सुर

िसवँ

िनज

िबताना



ितन्हिह



बालकांड

तुरंगा सुनाविहं

खगनायकु काम

अित भुवन मािनक

लाजे बनावा

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

सोहई



िबमोहई



लगे



रामचिरतमानस

- 129 -

िकंिकिन

ललाम

लगामु

लिलत

बालकांड

िबलोिक

सुर

नर

मुिन

ठगे



दोहरा ूभु

मनसिहं

भूिषत जेिहं

बर

संक हिर

राम

िनर ख सुर

छिब उर

िचतव सकल

मुिदत

हरषाने

बहत ु

उछाहू



समेत

गौतम ।

दे खी

रमा

नयन ते

ौापु

आजु



पारा

िूय

िहत

सम

दहँु ु

लाहू

माना

कोउ

हरषु

॥१॥

मोहे

पिछताने

लोचन

परम



लागे

रमापित जािन

पुरंदर

नृपसमाज

बरनै

डे वढ़



॥३१६॥



अित

िबिध



िसहाह ं

रामिह

सारदउ

आठइ

पाव

नचाव

पंचदस ।



सुजाना

सुरपितिह

दे वगन

जोहे

छिब

बरिह

तेिह

नयन

जब

बा ज

बर





िबिध

सुरेस

जनु

असवारा

रामु

चलत

घनु

अनुरागे

सिहत

सेनप

मनु

तिड़त

रामु



राम

रामिह दे व

उड़गन बा ज

िहत

लयलीन

॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥

नाह ं

िबसेषी

॥ ॥४॥

छं द अित

हरषु

राजसमाज

बरषिहं

सुमन

सुर

एिह

भाँित

रािन

दहु ु

हरिष

जािन

िदिस

किह

जय

बरात

सुआिसिन

दं द ु भीं ु

जयित

आवत

बोिल

बाजिहं जय

बाजने

पिरछिन

हे तु

घनी



रघुकुलमनी

बहु



बाजह ं

मंगल



साजह ं



दोहरा आरती

सज चलीं िबधुबदनीं पिहर

अनेक

मुिदत

पिरछिन

सब

मृगलोचिन

सब

बरन

बरन

सकल

सुमग ं ल

कंकन

िकंिकिन

बाजिहं

बाजने

बर अंग

नूपुर

बाजिहं

िबिबध

भवानी

कपट

नािर

बर

बेष मंगल



सकल

गजगािमिन

बर

नािर

छिब

रित

िनज



सकल

िबभूषन

करिहं

गान

चािल जे

बनाई

। ।

तन

िबलोिक





बानीं

मंगल

सब ।

ूकारा

रमा कल



बनाएँ

सारदा गान

करन

चीरा

सची करिहं

िबिध

नभ िमलीं

हरष

काम

सकल

छं द

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मद ु

सब

लजाएँ लाजिहं

सुमंगलचारा

सहज

सयानी

रिनवासिहं काहँु

मोचिन

सर रा

गज

नगर सुिच

िबबस

सज



॥३१७॥

कलकंिठ



सुरितय

सँवािर



जाई जानी

॥ ॥१॥ ॥

॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

को

- 130 -

जान

कल

केिह

गान

आनंदकंद ु

आनंद

मधुर

िनसान

िबलोिक

अंभोज

बस

अंबक

सब

ॄ ु

बरषिहं

दलह ू ु

अंबु

बालकांड

बर

सुमन

सकल उमिग

पिरछन

चली



सोभा

भली



सुर

िहयँ सुअंग

हरिषत

भई



पुलकाविल

छई



दोहरा सुख

जो

सो नयन



नी

बेद

िबिहत

पंच

सबद

किर

आरती

दसरथु

एिह

मंगल



कुल

धुिन

कलप

जानी

दे ख

सत



आचा

सहस

पिरछिन



राम

क न्ह

बर

बेषु



मुिदत

मन

रानी

सारदा

करिहं

भली

सेषु

िबिध



पट

पाँवड़े

परिहं

ितन्ह

द न्हा



राम

गमनु

मंडप

सुर

िबराजे

बरषिहं

फूला

कोलाहल

रामु

। ।

पढ़िहं

आपिन

आए



नाना क न्हा

लोकपित मिहसुर

पर

कछु

अरघु

िबिध

दे इ

लाजे न

आसन

॥ ॥२॥

अनुकूला

सुनइ

॥ ॥१॥

यवहा

तब

िबलोिक

सांित



होई

मंडपिहं

िबभव

॥३१८॥

सब

गाना

समाज

िबिध

मन

मंगल

अरघु

नगर

मातु

किह

हिट

समयँ अ

िसय

सकिहं

सिहत

समयँ नभ

भा

॥ ॥३॥

कोई

बैठाए

॥ ॥४॥

छं द बैठािर

आसन

आरती

बसन

मिन

किर

भूषन

िनर ख

भूिर

ॄ ािद

सुरबर

िबू

अवलोिक

रघुकुल

कमल



वारिहं

बेष

सुखु

नािर

मंगल

बनाइ

रिब

छिब

पावह ं

कौतुक सुफल



गावह ं



दे खह ं



जीवन

लेखह ं



दोहरा नाऊ

िमले

सामध जगु

सकल दे व दे त

भाट

मुिदत

असीसिहं

जनकु

दसरथु

िमलत लह

बार

महा न

दोउ

कतहँु

दे ख िबरं िच

भाँित

िगरा पाँवड़े

नाइ अित

राज

हािर दे व

सुिन अरघु

राम

िसर

हरषु

ूीतीं

िबराजे

। ।

किर उपमा

िहयँ

मानी

अनुरागे



सुमन

जब





उपजावा सम

नट

साजु

सुद ं र



समाजू

साँची सुहाए

। ।

इन्ह



दे खे

सम

ूीित सादर

िनछाविर हृदयँ



बैिदक

बरिष

खो ज एइ

समधी

अलौिकक

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। ॥३१९॥

सब

किब

उपमा

जसु

सुने

जनकु

समाइ लौिकक

खो ज सम

पाइ

लाजे

उर

गावन

याह

दे खे दहु ु

बहु

मंडपिहं

हम

र तीं

॥१॥

आनी लागे

तब

िदिस

आजू

॥ ॥२॥



माची याए





॥३॥

॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 131 -

बालकांड

छं द मंडपु

िबलोिक

िनज

पािन

कुल



िबचीऽ जनक

सुजान

सिरस

कौिसकिह

रचनाँ सब

बिस

पूजत

परम

िचरताँ कहँु

पूजे ूीित

मुिन आिन

िबनय

िक

मन

हरे



िसंघासन

धरे



आिसष

लह



परै

कह



किर

र ित

तौ



दोहरा बामदे व

आिदक

िदए बहिर ु

िद य

क न्ह

क न्ह

जोिर

पूजे

भूपित

िरषय

आसन

सबिह

कोसलपित कर

िबनय

सकल

उिचत

िदए

सकल

बरात

जनक

िबिध

हिर



कपट

िबू

बर

पूजे

जनक

दे व

सब ।

जािन

बड़ाई



किह

सब

। काहू

सनमानी

िदिसपित बेष

मुिदत सन

पूजा बराती

आसन

पूजे

मह स

लह

असीस

ईस

सम

िनज

भा य सादर



कह

काह

मूख



दान

मान जे

सब एक

िबनती

जानिहं

बर

रघुबीर

बनाएँ



कौतुक

दे खिहं

अित

जान



िदए

सुआसन

िबनु

सम



िबभव

सम



॥३२०॥

भाउ

समिध

िदनराऊ



दजा ू



बहताई ु

॥१॥

उछाहू

॥२॥

ूभाऊ

॥३॥

भाँती बानी

सचु

पाएँ

पिहचान

॥ ॥ ॥ ॥४॥

छं द पिहचान

को

आनंद

केिह

कंद ु

सुर

िबलोिक

लखे

अवलोिक

जान

राम

सीलु

सबिहं दलह ू ु

पूजे

ूभु

को

सुिध

भोर

भई



िदिस

आनँद

मई



मानिसक

आसन

दए

। ॥

उभय

सुजान

सुभाउ

अपान

िबबुध

मन

ूमुिदत

भए

लोचन

चा

चकोर



दोहरा रामचंि करत समउ

मुख पान

सादर

िबलोिक कुअँिर

रानी

सुिन

िबू

बधू

कुलबृ

नािर

बेष

जे

दे ख

अब

सुखु



जाई बानी

बोला सुर

ूेमु

बोलाए

आनहु

उपरोिहत

छिब सकल

बिस

बेिग

ितन्हिह

चंि

बर पाविहं

चले



नार ं

मुिदत

ूमुिदत किर

बामा

। ।



सादर





ूमोद ु

सतानंद ु

सकल

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आयसु समेत

र ित

सुमंगल

सुभायँ

पिहचािन

॥३२१॥

सुिन

मुिन

स खन्ह

कुल

िबनु

थोर

सुंदर

ूानहु

ते

आए पाई सयानी गा ःयामा यार ं

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥

रामचिरतमानस

- 132 -

बार

बार

सीय

सनमानिहं

सँवािर

समाजु

बालकांड

रानी



उमा

रमा

बनाई



मुिदत

सारद

मंडपिहं

सम

जानी

चलीं

लवाई

॥ ॥४॥

छं द चिल

याइ

नवस

सीतिह

साज

कल

मंजीर

नूपुर

सादर

सुंदर

सुिन

गान

सखीं

सज

सब

मुिन



यान

किलत

सुमंगल कुंजर

यागिहं

कंकन

भािमनीं

काम

ताल

गािमनीं कोिकल

गती



लाजह ं

बर



बाजह ं





दोहरा सोहित छिब

बिनता ललना

बृंद

गन

िसय

सुंदरता

बरिन

आवत

द ख

बराितन्ह

सबिह

मनिहं

हरषे सुर

दसरथ

गान

िनसान

एिह

िबिध

तेिह





भार

िबिध

कमनीय

लघु

मित

बहत ु



रािस

सब



दे ख

राम



ूेम

आई

यवहा



जाइ

मुिन

। ।

सीय

ितय

किह

फूला

मंडपिहं

कर



सुहाविन

सुषमा



ूनामा

समेता

कोलाहलु

अवसर

जनु

सीता

बरसिहं

सीय

सहज

जाई

िकए

सुतन्ह किर

ूनामु

म य न

मन

महँु

ूमोद कुलगुर

दहँु ु

भए

पूरनकामा

धुिन

सांित

मनोहरताई पुनीता

आनँद ु

जेता

नर

नार

मंगल

मगन

ूमुिदत

॥३२२॥

भाँित

उर

असीस

पढ़िहं

सब



मूला

॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥

मुिनराई

क न्ह



अचा



॥४॥

छं द आचा सुर

किर

गुर

ूगिट

मधुपक

गौिर

पूजा

मंगल कनक

कोपर

कुल

र ित

ूीित

मुिदत

लेिहं

दे िहं

असीस

जो

जेिह

समय

कलस

सो

ि य

भरे

गनपित

समेत

एिह

भाँित

दे व

पुजाइ

िसय

राम

अवलोकिन

मन

बुि

बर

बानी

दे त

सीतिह अगोचर

मन

ूगट



पावह ं



महँु

चह

पिरचारक सबु

सुभग

ूेम

पुजावह ं

सुखु

िलएिहं

किह

परसपर

अित मुिन

सब

रिब

िबू

रह

सादर

िकयो

िसंघासनु

काहु



किब

समय

िबू

बेष

तनु धिर

धिर बेद

अनलु सब

किह

अित

सुख

िबबाह

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आहित ु

परै



करै

िबिध

दे िहं

लेिहं

। ॥ ॥२॥

दोहरा होम

॥१॥

िदयो

लख कैस





॥३२३॥

रामचिरतमानस

- 133 -

जनक

पाटमिहषी

सुजसु

सुकृत

सुख

समउ

जािन

मुिनबरन्ह

जनक

बाम

कनक

जग

मिन

कोपर

मुिदत

रायँ

पढ़िहं

बेद

मुिन

मंगल

िबलोिक



जाइ

समेिट

िबिध

रची

सुिच

रानी





अनुरागे

िकिम

िहमिगिर ।

बानी

मातु

सुनत

। रे



दं पित

सब ।

सुनयना

कर

सीय

बोलाई

सोह

िनज ब



सुदंरताई

िदिस

कलस

जानी

बालकांड



सादर

संग

जनु

धरे

बिन के

सुमन

जल

आग

झिर

पुनीत

याई मयना

मंगल

राम

पाय

बनाई

सुआिसिन सुंगध

गगन

बखानी

पूरे

आनी

अवस

जानी

पखारन

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥

लागे

॥४॥

पुलकावली



िदिस



छं द लागे

पखारन

पाय

पंकज

नभ

नगर

गान

जे

पद

सरोज

मनोज

जे

सकृ त

सुिमरत

िबमलता

जे

परिस

मकरं द ु

मधुप

को मन

पद

बर

कुअँिर

भयो

पािनगहनु लोक

किर

मुिन

िहमवंत

जिम

ितिम

िबिध

दे ख

दं पित

सुर



करै

िबनय

किर

होम

िबिधवत

अिभमत

जय

जय

मनुज

महे सिह

िसय

समरपी

िबदे हु

िकयो

गाँिठ

नृपभूषन

िबःव

कहै

। ॥२॥

कर भर िहयो

िकयो

। ॥ । ॥३॥

ौी

सागर

दई



कल

क रित

नई



िबदे हु

मूरित

होन

जोर

लह

आँनद

हलःयो ु

हिरिह



कुलगुर

तन

कन्यादानु

बरनई गित

मुिन

॥१॥ ।

सब

दोउ



पातकमई सुर

सेइ

पुलक

िबधानु

रामिह

जे

भाजह ं

जो अविध

साखोचा

िबलोिक

जनक

सुिचता

चली

िबराजह ं

मल

रह

जनकु

जोिर

सदै व

किल

गित

जोिगजन

चहँु

सर

सकल

िसर

िगिरजा

जनु

उर

मन

भा यभाजनु

बेद

तन

उमिग

लह

करतल

दलह ू ु

धुिन अिर

संभु

पखारत

सुखमूल

जय

मुिनबिनता

जन्ह

किर

ते

िनसान

ूेम

लागी

सावँर भावँर

। ॥४॥

दोहरा जय

धुिन

सुिन

हरषिहं

बरषिहं

िबबुध

कल

भावँिर

दे ह ं

कुअँ जाइ

कुअँिर न

बरिन

बंद

मनोहर

बेद

जोर

धुिन



मंगल

सुरत ॥ जो

गान

सुमन

नयन उपमा

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िनसान

सुजान



॥३२४॥

लाभु

सब

सादर

कछु

कह

सो

लेह ं थोर

॥ ॥१॥

रामचिरतमानस

- 134 -

राम

सीय

सुंदर

मनहँु

मदन

रित

भए

मगन

दरस

लालसा

ूमुिदत राम

ूितछाह ं धिर

सकुच सब

भावँर

िसर

सदरु

अ न

पराग

जलजु

बहिर ु

बिस

द न्ह



जगमगात

पा



थोर

दे खिनहारे

मुिनन्ह

सीय



बहु

भिर





नीक



अनुसासन

दरत ु

समान

नेगसिहत

सोभा

किह

सिसिह





खंभन

राम

ूगटत

जनक

फेर

मिन

दे खत





दे ह ं

बालकांड



माह ं

िबआहु

अनूपा

बहोिर

॥२॥

बहोर

अपान

। ॥ ॥३॥

िबसारे

सब

र ित

िनबेर ं

जाित

िबिध

केह ं

भूष

अिह

लोभ

अमी

दलिहिन ु

बैठे

एक

आसन

॥ ॥४॥



॥ ॥५॥

छं द बैठे

बरासन

तनु

रामु

पुलक

पुिन

पुिन

भिर

भुवन

रहा

केिह

भाँित

बरिन

तब

जनक

पाइ

माँडवी

कन्या र ित

ूीित

जानक सो

लघु तनय

बिस

आयसु

उरिमला जो

समेत

किर

भिगनी द न्ह

यािह

ौुतक रित

सो

दई

िरपुसूदनिह

बर मुिदत

सुंदर जनु

जीव

बरन्ह उर

साज

यािह

सुंदिर

नृप

॥१॥ कै

के

भरतिह

। ॥

दई

। ॥२॥

कै



िबिध

सनमािन

कै



सुमु ख

सब

गुन



सील

सकल

लख

सकुच

सराहिहं

सुमन

सुर

सब

एक िबमुन

अवःथा



सोभामई

िसरोमिन

परःपर

चािरउ

कहा

जािन

लखनिह

सह



सँवािर

सुख



नए महा

हँ कािर

सील

सो

फल

मंगलु



गुन

भए

सबह ं

यहु

याह

भूपित

सुंदरता

सुद ं र

एक

सुलोचिन

दलिहिन ु

सुरत भा

कुअँिर

सकल

दसरथु

सुकृत िबबाहु

रसना

ूथम

मन

अपन

िसरात

नामु

सब

दे ख

राम

जेिह

अनु प

मुिदत

उछाहु

ौुितक रित

कुसकेतु सब

जानिक

आगर

उजागर िहयँ

। ॥३॥

हरषह ं



गन

बरषह ं



मंडप

राजह ं



सिहत

िबराजह ं

॥४॥

दोहरा मुिदत जनु

अवधपित पार

जिस

रघुबीर

किह



जाइ

सकल

सुत

बधुन्ह

मिन

िबयन्ह

सिहत

मिहपाल याह कछु

िबिध दाइज

बरनी भूर

। ।

सकल रहा

समेत फल

कुअँर कनक

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िनहािर चािर

याहे मिन



॥३२५॥ तेिहं मंडपु

करनी पूर

॥ ॥१॥

रामचिरतमानस

- 135 -

कंबल

बसन

गज

रथ

बःतु

अनेक

तुरग

लोकपाल द न्ह तब

िबिचऽ

पटोरे

दास

किरअ

अवलोिक जाचक न्ह

कर



लेखा

िसहाने



जेिह

जनकु

भाँित

दासी

िकिम जो

जोिर



बालकांड

भाँित





धेनु

किह

लीन्ह

मोल

अलंकृत



जाइ



उबरा

बानी



बोले



थोरे

कामदहा ु

जानिहं

अवधपित

भावा

मृद ु

बहु

सबु सो

सी

जन्ह

सुखु

बरात

॥२॥

दे खा

माने

जनवासेिहं

सब



आवा

सनमानी

॥ ॥३॥ ॥

॥४॥

छं द सनमािन

सकल

ूमुिदत िस सुर कर

महा नाइ साधु

चाहत

भाउ

जोिर राजन

एिह

राज



दािरका

बयन

छिमबो

भानुकुलभूषन

किह

जाित

तब

दलह ू

बंधु

सकल

निहं

गन

सुमन

जय सखीं

बेद

मंगल

गान

दलिहिनन्ह ु



संपुट

िकएँ



अंजिल

॥१॥

कोसलराय





सुभाय





भए



िबिध

जािनबे

िबनु

गथ

परःपर

लए

क ना ह

ढ यो

िनिध

समधी

ूेम

मुनीस

आयसु

चलीं

कोहबर



कई





भले



कै



पाइ याइ



॥३॥

चले

कौतूहल

नगर

नई

िहए

जनवासेिह

नभ

॥२॥

िकए

पिरपूरन

राउ

करत

िदएँ

सब

सनमान

सुंदिर

कर

सील

बहत ु

धुिन

सिहत

कै

अब

बिरसिहं

धुिन

लड़ाइ

पािलबीं

पठए

िबनती

ूेम जल

सनेह

किर

बोिल



समेत

सेवक

पिरचािरका

कै

तोष

बड़े

समेत

बड़ाइ

कहत

िक

हम

िबनय

पू ज

सन

सािन

रावर

पुिन

दं द ु भी ु

सब

बहोिर

साज

दान

बंदे

िसंधु

जनकु

संबंध

बृंदारका

बृंद

मनाइ

मनोहर

आदर

मुिन दे व

बोले

अपराधु

बरात

कै

॥४॥

दोहरा पुिन हरत

पुिन

रामिह

मनोहर

िचतव मीन

िसय छिब

सकुचित ूेम

मनु

सकुचै नैन

िपआसे





॥३२६॥

मासपारायण यारहवाँ िवौाम ःयाम

सर

जावक

जुत

पीत

पुनीत

सुभायँ पद

कमल

मनोहर

सुहावन सुहाए धोती

। । ।

सोभा

मुिन हरित

मन

कोिट मधुप

बाल

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मनोज रहत

रिब

जन्ह दािमिन

लजावन छाए जोती

॥ ॥१॥ ॥

रामचिरतमानस

- 136 -

कल

िकंिकिन

पीत

जनेउ

किट

सूऽ

मनोहर

महाछिब

सोहत

याह

िपअर

उपरना

नयन

कमल

सुंदर

भृकुिट

सोहत

मौ

साज

दे ई



सब

काना नासा

मनोहर

दहँु ु

माथे

िबसाल

उर

आयत

बदनु

िचतु

लगे

लेई राजे

िनधाना

िचरता

मुकुता

िनवासा

मिन

॥२॥ ॥ ॥३॥

मोती

मिन

स दज

ितलकु

मंगलमय

सुद ं र

उरभूषन

सकल

भाल



िबभूषन चोिर

आँचर न्ह





बाहु

मुििका





कुंडल

मनोहर

कर

साजे

काखासोती कल



बालकांड

गाथे

॥ ॥४॥ ॥ ॥५॥

छं द गाथे

महामिन

पुर

नािर

मिन

मौर

सुर

बसन

सुर

सुमन

कोहबरिहं अित

ूीित

लहकौिर

सूत

कुँअर

िबनोद

ूमोद ु

सुिनअ

असीस

चले

िस

हरिष

जहँ

चा

तहँ

चारयो

मुनीस

बरिष

दे व

ूसून



कह



िनज

सब

लह

बस

नगर

नभ

जानक

अलीं चलीं

आनँद ु

मन

िबलोिक



जानिहं

जनवासेिह

मुिदत

िनज

सारद

सु पिनधान

किह

समय

जोगीन्ि

कै

जाइ

तेिह

॥१॥

गाइ

फलु

लवाइ



मंगल

ूेमु

सखीं

गाविहं



भय

सकल



कै

िबरह



तोरह ं

पाइ

को मूरित



सुनावह ं

सन

जन्म

चोरह ं

सुख

िबलोकिन

सुंदर

जोर ं

करन

दे खअित

कुअँिर

जअहँु

सुजसु

सीय

बस

ितन मंगल

सुआिसिनन्ह

रामिह

बर

िच

सब

बंिद

लागीं

रस

िचत

करिहं

मागध

िसखाव

भुजब ली

िबलोिक

कुँअिर

महँु

सब

आरित

र ित

मिन



कौतुक

बिरसिहं

िबलास

पािन

चालित

वािर

लौिकक

हास

बरिह

भूषन

गौिर

रिनवासु िनज

सुंदर ं

आने

अंग

मंजुल

सबह ं

ूभु

दं द ु िभ ु

लोक

जय

जय

तब

आए

िपतु

जय

॥२॥ ।

॥ । ॥३॥

महा



कहा



हनी



भनी

॥४॥

दोहरा सिहत

बधूिटन्ह

सोभा

मंगल

पुिन

जेवनार

परत

पाँवड़े

सादर

सबके

भई बसन

कुअँर मोद

भिर

बहु

भाँती





सुतन्ह

अनूपा पाय

सब

पखारे

उमगेउ



जनु

पठए

जनवास जनक

समेत जथाजोगु

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पास

गवन

बोलाइ िकयो पीढ़न्ह



॥३२७॥ बराती



भूपा

॥१॥

बैठारे



रामचिरतमानस

- 137 -

धोए

जनक

बहिर ु

राम

अवधपित पद

तीिनउ

भाई

आसन

उिचत

सादर

पंच

सब

महँु किर

दे िहं

समय

सुहाविन

एिह

नूतन

बड़े

भोर

दे ख

कुअँर

पान

तु हर

मंगल बर किर

ूनाम

पूजा

कृ पाँ

अब

सब

िबू

सुिन

गुर

किर

बामदे उ आए



एक ।



हँ सत

क न्हा





सुिन

नार

सिहत

गुन

गन

गावन

िकिम

किह

जात

मोद ु

मुिनराजा



भयउँ ।



दे हु

पुिन

दोहरा

िगरा आजु

ूेमु

पठए

मुिन

कौिसकािद

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जाह ं लागे

मन

अिमअँ सब

जेता

माह ं जनु

बोर

पूरनकाजा भाँित

बनाई

बृंद

बोलाई

जाबािल



तपसािल

॥ ॥४॥

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

॥३२९॥

जािमिन



॥३॥



मन

धेनु

बालमीिक

द न्हा

समाज

जाचक

बोले

समाजा

आचमनु

िदन



भाँती



सिहत

महाूमोद ु

जाई

अगिनत

पु ष

सिहत

जाना



सिरस



तब

बरिन

िनिमष ।

दे विरिष

को

िसरताज

जोर

िनकर

राउ

अनुरागे बखाने

भूप

पाह ं

बड़ाई

नाम

नाम

आदर

अित

रस



॥३२८॥

सकल ।

मिहपाल

लै

दसरथु

मुिदत

गु

एक

॥२॥



जािहं

िबिध

दोहरा

जनक

समेता

िबिबध

एक

लीन्हे सँवारे

िबनीत

निहं

एक

पानी

सब

सुिन

सिरस

िबंजन

जाती

जागे

गान

गोए

पुनीत

सुआर

गािर

िनज

महँु

पान

ःवाद ु

चतुर

सुधा

गाई

गोसा

मुिनबर

गे



बोलाइ



मिन

िबराजा

कर

सुनहु

कल

लै

बधुन्ह गे

कनक

सुंदर

बरना

कमल

सूपकार



माह ं

जनक

हृदय

निहं

बोिल



पुर

चरन

हर

गार

गवने

जाइ

दोहरा



पूजे

सनेहु



प िस

भौजनु

भूपितमिन

ूातिबया किर

बहु

गािर

जनवासेिह िनत



लागे

धुिन

सबह ं

दे इ

द न्हे

सरिप

िबिध

मधुर

िबिध

धोए

सुजाना

िबंजन

जेवँत



पकवाने

भोजन

िचर

छरस

जानी



सुआर

भाँित

जे

जेवन

परे

लगे



पनवारे

छन

अनेक

धोए नृप

सुरभी

प सन चािर

सबिह

सूपोदन

भाँित

सीलु

सम

परन

कवल



पंकज

राम

लगे

चरना

बालकांड

॥३३०॥

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 138 -

दं ड

ूनाम

चािर सब

सबिह

ल छ

नृप

बर

िबिध

धेनु

सकल

करत

िबनय

पाइ

असीस

कनक

बसन

िबिध

मिन

मह सु

पढ़त

गावत

एिह

िबिध

राम



मगाई

अलंकृत

बहु

चले

क न्हे

पू ज



सूेम

कामसुरिभ

क न्ह ं नरनाहू

बालकांड



सम

मुिदत लहे उँ



बरासन सील

मिहप

आजु बोिल

द न्हे सुहाई

मिहदे वन्ह

जग

जीवन

पुिन

जाचक

द न्ह ं

॥ ॥१॥ ॥

लाहू

॥२॥

रिबकुलनंदन

॥३॥

अनंदा



िलए

बृंदा

हय

गय

ःयंदन



िदए

बू झ

िच

गुन

गाथा



जय

जय

जय

िदनकर

िबआह

उछाहू



सकइ



बरिन

सहस

मुख

जाहू

नाइ

कह

राउ



कुल

नाथा

॥ ॥ ॥४॥

दोहरा बार

बार

यह जनक

सबु

सुखु

सनेहु

िदन

उिठ

नूतन

िनत

नव

कौिसक अब

अनंद

बीते

एिह

सतानंद कहँ

नाथ

किह

नृपु

मागा

। ।

जाई



आयसु सिचव

िबभूती

सराह

जनकु

ूित

सिहत

सहस

अनुरागा

भाँित

पहनाई ु

सोहाइ



जनु

सनेह

रजु

बँधे

कहा

िबदे ह

ज िप



भाँित

॥३३१॥

गवनु



बोलाए

पसाउ

दसरथ ।

दे हू

सब

िदन

उछाहू

कटा छ

राखिहं



भाँती

तब

कृ पा



अिधकाई

नगर

दसरथ

भलेिहं

अवधपित

सीसु

तव

करतूती

आद

िदवस

चरन

मुिनराज

सीलु

िबदा

िनत बहत ु

कौिसक

किह

नृपिह

छािड़



जीव

सीस

जय

काहू

बराती

समुझाई सकहु

ितन्ह

सनेहू

नाए

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा अवधनाथु भए पुरबासी स य जहँ िबिबध

चाहत

ूेमबस सुिन

गवनु

सुिन

भाँित

सिचव

चिलिह

भिर

बसहँ

तुरग

लाख

रथ



सहस

दस

िसंधुर

मिन

भिर

बसन

अपार सहस

तहँ



कहारा



पचीसा



साजे



भिर

जाना

साँझ

तहँ

साजु

सकल

चला न

जाइ

जनक

जन्हिह मिहषीं

दोहरा

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दे ख धेनु

॥३३२॥

सरिसज

सँवारे



परःपर

िस

पठई



राउ

िबकल

मनहँु

भोजन

जनाउ

सभासद

बूझत

। ।

पकवाना

करहु

िबू ।

बराती

भिर

कनक

सुिन

िबलखाने

बसे

मेवा

भीतर

बराता

सब

आवत

जहँ

चलन

बाता

सकुचाने बहु

बखाना

अनेक

नख



िदिसकुंजर बःतु

भाँती

िबिध

सुसारा सीसा लाजे नाना

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 139 -

दाइज

अिमत

जो सबु पुिन

एिह

बरात संतत

िपयिह

सासु

ससुर

गुर

सेवा

अित

सनेह

बस

सखीं

सादर

सकल

बहिर ु

बहिर ु

किर िपआर

लेह ं



सयानी

महतार ं

दे इ

लख

नािर

धरम



कहिहं

असीस

रचीं

अनुसरे हू

मृद ु

बार

दे ह ं

हमार

आयसु

बार

िबरं िच

पानीं

िसखावनु

िसखविहं

रािनन्ह

पठाई

लघु

असीस





द न्ह

जनु

अिहबात



॥३३३॥

अवधपुर

पित



बहोिर

थोिर

मीनगन

िच

समुझाई

भेटिहं

जनक

िबकल



िबदे हँ

संपदा

। ।

करे हू

कुअँिर



रानीं

गोद

द न्ह

लोक

बनाई

सब

सीय

किह

लोकपित

भाँित

सुनत

पुिन

होएहु

सिकअ

अवलोकत

समाजु

चिलिह



बालकांड

बानी

उर

लाई

कत

नार ं

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥

॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहरा तेिह

अवसर

चले

जनक

चािरअ

भाइ

कोउ

कह

लेहु

नयन

को

मरनसीलु पाव

िबिध



सोभा सबिह



िनहार िपऊषा

जैस उर



धरहू

नयन

फलु

िूय

नयन



इन्ह ।

कर

दे ता



कर

पाहने ु

भूप

सुत

क न्हे

जनम

दरसनु

गए

धाए

िबदा

मन

िनज

दे खन

िबदे ह

लहै

सब

चार

॥१॥ ॥

आनी

॥२॥

कहँ

तैसे

॥३॥

कर

मूरित

कुअँर

साजू



िबिध

हम

फिन



॥३३४॥

नर

अितिथ

सुरत

केतु

हे तु

नािर

क न्ह



कुल

करावन

नगर

आजू ।

भानु

िबदा



सयानी

पाव

हिरपद ु

राम

हिहं

सुकृत

जिम

नारक

िनर ख एिह

भिर

रामु

मुिदत

सुहाए

चहत

केिह

सिहत

मंिदर

सुभायँ

चलन

जानै

भाइन्ह

भूखा

मिन

राज

करहू

िनकेता



॥ ॥४॥

दोहरा प

िसंधु

करिह दे ख रह भाइन्ह बोले

राम न

लाज सिहत

राउ

अवधपुर

मातु

मुिदत

सुनत

बचन

बंधु

िनछाविर छिब

रामु

सब

आरती

उर

उबिट सुअवस

चहत

मन



ूेमिबबस



अन्हवाए



िसधाए

आयसु

िबलखेउ

मुिदत

छाई

जानी

दे हू

रिनवासू



हरिष

महा

अनुरागीं

अित ूीित

लख



सहज छरस सील

िबदा



बालक



बोिल

उठा

सासु

॥३३५॥

पुिन

पुिन

पद

बरिन

असन

सनेह

होन

जािन

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मन

सनेहु



रिनवासु

िकिम

अित

हे तु

सकुचमय हम

इहाँ

करब

िनत

सकिहं

ूेमबस

लागीं जाई जेवाँए

बानी

पठाए नेहू

सासू

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥



॥३॥ ॥

रामचिरतमानस

- 140 -

हृदयँ

लगाइ

कुअँिर

सब

लीन्ह



बालकांड

पितन्ह

स िप

िबनती

अित

क न्ह

॥४॥

छं द किर

िबनय

बिल

जाँउ

िसय तात

पिरवार

पुरजन

तुलसीस

सीलु

रामिह

समरपी

सुजान

तु ह

मोिह

जोिर

कहँु

िबिदत

राजिह

सनेहु

लख

कर

पुिन

गित

कहै





अहै



सब िसय

ूानिूय

िनज

पुिन

िकंकर

किर

जािनबी



मािनबी



सोरठा तु ह

पिरपूरन

जन अस

गुन

किह

काम

गाहक

रह

चरन

जान

राम

गिह

दोष

रानी

सुिन

सनेहसानी

राम

िबदा

मागत

कर

जोर

पाइ

असीस

िस

नाई

मंजु

मधुर

बहिर ु

मूरित

पुिन

धीरजु

धिर

पहँु चाविहं

पुिन

बर

िफिर

पुिन

बानी

उर

िमलिहं

िमलत



पंक

बहिबिध ु

राम

क न्ह



भई ।

बहोर

। ।

बाल

िगरा

सनमानी

चले

िसिथल भेटिहं

परःपर

ूीित जिम

बहोर रघुराई

सब

बार ब छ

समानी

बहोिर

सिहत

बार



॥३३६॥

सासु

सनेह

बढ़

िबलगाई

जनु

ूनामु

भाइन्ह



भाविूय

क नायतन

ूेम



हँ कार

स खन्ह

दलन



आनी

कुअँिर

िसरोमिन

रानी

महतार ं न धेनु

थोर लवाई

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहा ूेमिबबस

नर

मानहँु सुक

क न्ह

सािरका

याकुल

िबकल

खग

बंधु

समेत

जनकु

सीय

िबलोिक

ली न्ह

राँय

बारिहं

बार



बैदेह

मृग तब



एिह

कनक सुिन

भाँित

आए



ूेम रहे

लाइ

जानक



िमट

सुता

उर

लाई

। ।

दसा

क न्ह सज

रा ख

कहावत

सुंदर

केह

किह जल



िबरागी

यान



अवसर

पालक ं

जाती छाए

परम

महामरजाद िबचा

पढ़ाए



कैस

लोचन



॥३३७॥

पिरहरइ

उमिग



सयाने

िपंजर न्ह

मनुज



रिनवासु

िनवासु

धीरजु

भागी

सिचव

सिहत

िबरहँ

धीरता उर

सब

स खन्ह क नाँ

याए

कहाँ

भए

सब

िबदे हपुर

जानक

कहिहं

समुझावत

नािर

जाने

मगाई

दोहा ूेमिबबस

पिरवा

सबु

जािन

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सुलगन

नरे स



॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 141 -

कुँअिर बहिबिध ु

चढ़ाई

भूप

दासीं

दास

सीय

चलत

सुता िदए

भूसुर

सिचव

समय

िबलोिक

दसरथ

िबू

चरन

सरोज

सुिमिर

पालिकन्ह

समेत

समाजा

बाजने

बोिल

सब

धूिर

धिर क न्ह

सेवक



होिहं ।

बाजे

रथ

॥३३८॥

कुलर ित

िसखाई

जे

िूय

िसय

सगुन

सुभ

मंगल

संग



गनेस

नािरधरमु

सुिच

पुरबासी

िसि





याकुल

गजाननु

सुिमरे

समुझाई

बहते ु रे

बालकांड

चले गज

बा ज

राजा

पिरपूरन

क न्हे

बराितन्ह



दान

सीसा



मुिदत

मह पित

पाइ

मंगलमूल

सगुन

भए

करिहं

अपछरा



रासी

पहँु चावन

लीन्हे

पयाना

केरे

मान

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

साजे

असीसा नाना



॥३॥

॥ ॥४॥

दोहा

नृप भूषन

सुर

ूसून

चले

अवधपित

किर

िबनय

बसन

बार पुिन

अवधपुर

गज

कह

उतिर

फेरे

बजाइ

। ।

ूेम



िफरे

कहह ं



जनकु

बचन

सुहाए जोर

राउ

बहोिर

भए

तब

िबदे ह

बोले

कर

करौ

कवन

िबिध

िबनय



ठाढ़े





बनाई

सकल

पोिष

सब

ूबाह

बचन

सनेह

िबलोचन सुधाँ

मोिह

सनमाने

सब

क न्हे



दिर ू

महाराज

टे रे

उर

िफरै

मह स

ूेम



॥३३९॥

रामिह

ूेमबस



मागने

ठाढ़े

सकल

िफिरअ

गान

िनसान

सादर

भाषी

कोसलपित भूपित

मुिदत

द न्हे

िबिरदाविल

बहिर ु

हरिष

महाजन

बा ज

बार

बहिर ु

बरषिह

राखी चहह ं

बिड़

जनु

द न्ह

आए

बाढ़े

बोर बड़ाई

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥

॥३॥

॥ ॥४॥

दोहा कोसलपित िमलिन मुिन

पुिन

जोिर

पंक ह

राम

करौ

यापकु

मन मिहमा

परसपर

मंडिलिह

सादर

करिहं

समधी

जनक भटे

समेत

िनगमु

ूीित

िस

नावा



भाँित अलखु

जेिह

अित

ूसंसा

जेिह

जान नेित



सुहाए

पािन जोगी

ॄ ु

िबनय

जामाता

केिह

जोग

सजन

प ।

मुिन



बानी



किह

कहई

अिबनासी

सील बोले







हृदयँ

आिसरबाद ु



लागी



समाित सबिह

गुन

िनिध

बचन

ूेम

महे स

कोहु

भाँित

मोहु

िचदानंद ु

॥३४०॥ सन

सब जनु

मन

मानस

ममता

िनरगुन

मद ु

पावा ॅाता जाए हं सा यागी

गुनरासी

तरिक



सकिहं

सकल

जो

ितहँु

काल

एकरस

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अनुमानी रहई

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥

॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

- 142 -

बालकांड

दोहा

सबिह

नयन

िबषय

मो

सबइ

लाभु

जग

भाँित

मोिह

द न्ह

होिहं

सहस

दस

मोर

भा य

राउर

मै

कछु

कहँु

सारद

कहउँ

सो

जीव

कहँ

भएँ

बड़ाई



सेषा

गुन

एक

भयउ

। ।

मोर



तु ह

बार

बार

मागउँ

कर

जोर



सुिन

बर

बचन

ूेम

जनु

पोषे

किर

बर

िबनती

िबनय

बहिर ु

ससुर

भरत



क न्ह



लीन्ह

कोिटक

भिर

िसरािहं

पिरहरै

पूरनकाम

िपतु

कौिसक

िमिल

सूेमु

॥१॥

रघुनाथा थोर

जिन

रामु

॥ ॥२॥

भोर

पिरतोषे

बिस

पुिन



लेखा

सुिठ

चरन



अपनाई

सुनहु

सनेह



॥३४१॥

जािन

र झहु

मनु

सनमाने

सन

कलप न

मूल

अनुकुल

जन

किह

सुख

ईसु

िनज

करिहं

गाथा

बल

समःत

सम

आिसष

॥ ॥३॥

जाने

द न्ह

॥ ॥४॥

दोहा िमले

लखन

भए बार

परःपर

बार

जनक

किर

गहे

सुनु

सुखु

सो

सुखु

क न्ह

ूेमबस िबनय

कौिसक

मुनीस

जो

िरपुसूदनिह

बर

िबनय

चली

बरात

रामिह

िनर ख

पद

तोर

सुलभ पुिन िनसान





िस

नर



नाई ।



िफरे

मुिदत

नार



पाइ

कछु िसिध

ूतीित

मन

फलु

पाई

सब

समुदाई

होिहं

॥१॥ ॥ ॥२॥

अनुगामी

आिसषा

बड़



मोर

अहह ं

दरसन

मह सु

नयन

भाई लाई

सकुचत

तव

छोट

सब

नयनन्ह

मनोरथ

सब



॥३४२॥

संग

िसर



करत

सीस

चले रे नु

अगमु

चहह ं

बजाई

माम

चरन

मोिह ःवामी

पुिन

नाविहं

रघुपित



मह स

असीस

िफिर



जाई

लोकपित

सुजसु

िफिर

बड़ाई

दरसन

सुजसु

द न्ह

सुखार



॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहा बीच

बीच

अवध हने पुर

समीप

िनसान

झाँ झ

पनव

िबरव जन

बर

िनज

गलीं

सकल

पुनीत बर

िडं डमीं

आवत

िनज

बास

सुंदर

किर िदन

बाजे सुहाई



मग

लोगन्ह

सुख

पहँु ची

आइ

जनेत

भेिर



संख

सरस

अकिन

बराता



मुिदत

सदन

सँवारे



हाट

अरगजाँ

िसंचाई



जहँ

धुिन

राग

हय

दे त

॥३४३॥ गय

बाजिहं

सकल



गाजे

सहनाई

पुलकाविल

गाता

बाट

चौहट

पुर

ारे

तहँ

चौक

चा

पुराई

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॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥

रामचिरतमानस

- 143 -

बना

बजा

सफल



जाइ

पूगफल

लगे

सुभग



बखाना



कदिल

रसाला

परसत

धरनी

बालकांड

तोरन ।

केतु

रोपे



पताक

बकुल

मिनमय

िबताना

कदं ब

आलबाल

॥३॥

तमाला

कल

करनी

॥ ॥४॥

दोहा िबिबध

भाँित

सुर भूप जनु

ॄ ािद

भवन

मंगल

तेिह

सगुन उछाह

दे खन जुथ

मंगल

हे तु जूथ

िसहािहं अवसर

सहज

सोहा

बैदेह

िमिल

सकल

सुमंगल

भूपित

भवन



सुआिसिन

सज

आरती

कोलाहलु

होई

महतार ं

रचे

रघुबर

पुर

िनहािर

रचना धिर

लालसा

िनज

। ।

जाइ



जनु न

ूेम

िबबस

छाए

भारती

समउ

सुखु

दसा



॥२॥

िबलासिन

बेष

तन

॥ ॥१॥

केह

मदन

बहु

बरिन

गृहँ



िनदरिहं

मोहा

सुहाई

दसरथ

होिह

छिब

गाविहं

मनु

संपदा

दसरथ



॥३४४॥

मदन

सुख

धिर

कहहु



दे ख

िसिध

तनु

चलीं

राम

गृह

िरिध ।

सँवािर

गृह





सुहाए

राम

कौस यािद

सब

मनोहरताई

सब

कलस

॥३॥

सोई

िबसार ं

॥ ॥

॥४॥

दोहा िदए

दान

ूमुिदत मोद

ूमोद

राम

दरस

िबिबध हरद अ छत छुहे सगुन रचीं

िबून्ह

परम िबबस

िहत

दब ू

अित

अंकुर

सुंगध आरतीं

जनु

माता

लाजा

सहज

सुहाए

न बहत ु

जािहं

। । ।



चािर

चरन

॥३४५॥

िसिथल

साजु



सजन

भए सब

गाता लागीं

मुिदत

पान

पूगफल

मंगल

मूला

मंजुल

मंजिर

तुलिस

िबराजा

मदन ।

पुरार

मंगल



बखानी

िबधाना



पिरछिन

फूला

लोचन

घट



गनेस पदारथ

चलिहं

बाजे

प लव

पू ज पाइ



अनुरागीं

बाजने

दिध

पुरट

दिरि

सब

िबधान

िबपुल

सकुन

मंगल

मुिदत

जनु

सकल

करिहं

सुिमऽाँ

नीड़

बनाए

सजिहं

कल

साजे

सब

मंगल

रानी

गाना

॥ ॥१॥ ॥

॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहा

धूप सुरत

कनक

थार

चलीं

मुिदत

धूम सुमन

नभु माल

भिर

मंगल न्ह

पिरछिन

करन

मेचक

भयऊ

सुर

बरषिहं

। ।

कमल

कर न्ह

पुलक

प लिवत

सावन मनहँु

घन बलाक

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िलएँ

मात

गात

घमंडु

अविल



॥३४६॥ जनु

मनु

ठयऊ करषिहं

॥ ॥१॥

रामचिरतमानस

- 144 -

मंजुल

मिनमय

ूगटिहं दं द ु िभ ु सुर

बंदिनवारे

दरिहं अटन्ह ु धुिन

घन

सुगन्ध

समउ

सुिच

जानी

सुिमिर

पर

भािमिन

गरजिन बरषिहं

गुर

संभु



िगरजा

मनहँु



पाकिरपु

चा

चपल

घोरा



जाचक



सुखी

सकल

बार

आयसु

बालकांड

द न्हा

गनराजा





पुर

जनु

सँवारे



दमकिहं

दािमिन

॥२॥

चातक सिस

ूबेसु

मुिदत

चाप दादरु

पुर

मोरा

नर

नार

रघुकुलमिन

मह पित

सिहत

क न्हा

समाजा

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहा होिहं

सगुन

िबबुध

बधू

सूत

बंिद

मागध जय

धुिन

िबपुल बने

बराती

पुरबािसन्ह

नट

सुमन

बेद

सुर

मुिदत

नागर बर

बाजन



बानी

दस



जसु

लोग

मिनगन

चीरा



बािर

नार



हरषिहं

पुर

सुभग

ओहार

उघार

महा

मुिदत



दे खत



सानी

नगर

जोहारे

मुिदत

उजागर

सुर

राय

करिहं

लोक सुमंगल

तब

आरित

ितहु

दे ख

मन

सुख

रामिह



॥३४७॥

सुिनअ

नभ



गाइ

िदिस



िनछाविर

जाह ं

बजाइ

मंगल

गाविहं



लागे

दं द ु भीं ु

मंजुल

बरिन

करिहं िसिबका

नाचिहं

िबमल

बाजने

बरषिहं

अनुरागे



समाह ं

भए

िबलोचन

पुलक

िनर ख

कुँअर

दलिहिनन्ह ु

होिहं

सुखारे सर रा बर

चार

सुखार

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहा एिह

िबिध

सबह

दे त

सुखु

आए

मुिदत

मातु

प छिन

करिहं

बधुन्ह

समेत

आरती

करिहं भूषन

मिन

बधुन्ह पुिन सखीं

पट

समेत पुिन

मुख

सुमन

दे ख

मनोहर न

बनिहं

ूेमु

जाती



करह

िनछाविर

अगिनत



परमानंद

मगन

छिब

पुिन छनिहं

दे खी



जग

करिहं

िनज



गान

छन

दे वा



नाचिहं

लघु

। लागी

को

सफल

चाह

जोर ं

कहै

मुिदत

पुिन

चािरउ िनपट

चार

ूमोद ु

गाविहं

सारद ।

उपमा

एकटक



॥३४८॥



सुत

राम

कुमार

बारा

नाना दे ख

सीय

सीय

बरषिहं दे त

बारिहं

राजदआर ु

पारा भाँती



लेखी

॥२॥

सुकृत

सराह

लाविहं

सेवा

सकल

ढँ ढोर ं



अनुरागीं

दोहा िनगम

नीित

बधुन्ह

सिहत

कुल सुत

र ित पिरिछ

किर सब

चलीं

अरघ लवाइ

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पाँवड़े िनकेत

दे त

॥१॥

महतार

जीवन

रह ं





॥३४९॥

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

रामचिरतमानस

चािर

- 145 -

िसंघासन

ितन्ह

पर

धूप

सहज

कुअँिर

दप

कुअँर

नैबेद

बारिहं

बार

बःतु

अनेक

सुहाए

िनछावर

परम

त व

जनु

मूक

बदन

जनु

सारद

रं क

जनु

पारस

मनोज



िबिध

करह ं

आरती

जनु

बैठारे

बेद

पावा

जनम



बालकांड

सादर



पूजे



िनज पाय

बर

यजन

चा

चामर



भर ं

ूमोद

जोगीं



अमृत

लहे उ

छाई





मानहँु

पखारे

मातु लोचन

समर

ढरह ं

सब

॥ ॥१॥

मंगलिनिध

िसर

जनु

अंधिह

बनाए

पुिनत

दलिहिन ु

होह ं पावा

हाथ

॥ ॥२॥

सोह ं



संतत

रोगीं

॥३॥

जय

पाई

॥४॥

लाभु

सूर

सुहावा



दोहा एिह

सुख

भाइन्ह

दे व

सिहत

जननी

मोद ु

िबनोद ु

िबलोिक

िपतर

पूजे

अंतरिहत

पुर

बोिल

रा ख

नािर

जाचक

जन

सेवक

सकल

बड़



दे ह ं



सकल



बजिनआ



जोई नाना

गए

घर ।

सिहत

बसन

मुिदत

घर

पूरन

सकुचािहं



॥३५०(क)॥ ॥३५०(ख)॥ जी

राम



क याना

अंचल

भिर

लह ं

॥ ॥१॥ ॥

मिन

भूषन

द न्हे

॥२॥

बाजन

लगे

बधाए

॥३॥

सब

ूमुिदत





बासना

मातु

जान

अनंद ु

मुसकािहं

सकल

मुिदत

पिहराए जोइ

जाचिह

पूजीं

दलिहिन ु

भाइन्ह



रामिह

मनिहं



मातु

रघुकुलचंद ु

बर रामु

बरदाना

पाविहं

आए

करिहं

लीन्हे

उर

गुन

घर

नीक

आिसष बराती

पाइ नर

िबिध

मागिहं

सुर

कोिट

िबआिह

रत

बंिद

आयसु

सत

लोक

सबिहं भूपित

ते

िनज

राउ

िनज

दे िहं

धामिह

सोइ

सोई

िकए

दान

सनमाना

गाविहं

गुन

गन

गाथ

गवनु

क न्ह

॥ ॥

॥४॥

दोहा दिहं

असीस

तब जो

गुर

बिस भीर

पाय

पखािर

आदर

दान

िबिध

भूसुर

दे ख

गृहँ

द न्ह



लोक

बेद

रानी



सादर

उठ ं

अन्हवाए



पू ज

भली

ूेम

क न्ह

क न्ह

ूसंसा

भीतर

भवन

सब

सकल

द न्ह

पिरपोषे

गािधसुत

भूपित

सब

सिहत

अनुसासन

भूसुर

बहु

जोहािर

भूर बर



दे त

पूजा ।

बासु



नाथ

रािनन्ह ।

असीस

मन

मोिह

सिहत जोगवत

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नरनाथ िबिध भा य िबिध चले

सम

ली न्ह रह



॥३५१॥

सादर बड़

क न्ह जानी

भूप मन

धन्य पग नृप

जेवाँए तोषे



धूर

दजा ू

रिनवासू

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥



॥३॥ ॥

रामचिरतमानस

पूजे

- 146 -

गुर

पद

कमल

बहोर



बालकांड

क न्ह

िबनय

उर

ूीित



थोर

॥४॥

दोहा बधुन्ह

समेत

पुिन िबनय

क न्ह

नेगु उर

पुिन

मािग धिर

उर

नेग

िूय

पाहने ु

दे व

अित

रािनन्ह

चरन

दे त



समेता



सुआिसिन जे

रघुबीर

क न्ह

चैल

चा

िच िच

जाने

। ।

रा ख

बहत ु

सब

िबिध

गुर

गवनु

िनकेता

पिहराई

पिहराविन

अनु प

भूपमिन

भली

आग

द न्हा

भूषन

दे ह ं सनमाने

ूसंिस

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

द न्ह ं

भाँित

ूसून



॥३५२॥

िबचािर

भूपित बरिष

मह सु

मुनीसु

संपदा

हरिष



िबबाहू

असीस

आिसरबाद ु



लेह ं

सिहत

सुत



लीन्ह ं

सब

पू य



लीन्हा बोलाई

जोग

दे ख

सब

अनुराग

सीय भूप

बोलाइ

नेगी

गुर

मुिननायक

सब

बहिर ु

बंदत

रामिह

िबूबधू

कुमार

उछाहू

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहा चले

िनसान

कहत

बजाइ

परसपर

सब

िबिध

सबिह

जहँ

रिनवासु

िलए

गोद

बधू

सूेम

गोद

दे ख

समाजु

मुिदत

कहे उ

भूप

राम समिद

तहाँ

किर

पगु

मोद

राज

गुन

बहिबिध ु

भूप

भाट

िनज

पाइ

हृदयँ

समाइ

नरनाहू



रहा

हृदयँ

भिर

सिहत





को

। ।



बड़ाई

बरनी

क सुिन

। ।

िहयँ

हरिष

उर

अनंद

हरषु

होत

ूीित

रानीं

कुअँर भयउ

सब



॥३५३॥ पूिर

सकइ

बार

सब

िबबाहू

बहिटन्ह ू

किह

बार

रिनवासू

जिम

सुख



समेता

सीलु

पुर

ूेम

धारे

भयउ

िनज

जसु

बैठार ं

जिम

जनक

सुर

उछाहू

िनहारे सुखु

जेता

दलार ं ु

िकयो सब

र ित

संपदा

ूमुिदत

सुिन

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

बासू



काहू

॥३॥

करनी

॥४॥

सुहाई



दोहा सुतन्ह

समेत

भोजन

क न्ह

मंगलगान

करिहं

अँचइ

पान

रामिह

दे ख

ूेम

ूमोद

अनेक बर

सब

काहँू

रजायसु

िबनोद ु

नृप

नहाइ

बोिल

िबिध

भािमिन पाए पाई

। ।



बढ़ाई

घर



पंच

भै ग

िनज

िबू

गुर गइ

सुखमूल सुगंध

िनज समउ

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याित राित

भवन समाजु

॥३५४॥

मनोहर

भूिषत चले



जािमिन

छिब

छाए

िसर मनोहरताई

नाई

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥

रामचिरतमानस

- 147 -

किह



सो

सकिह

मै

कह

सत

कवन

नृप

सब

भाँित

बधू

लिरकनीं

सारद

िबिध

बरनी

सबिह







बेद

िबरं िच

भूिमनागु

सनमानी

घर

पर

सेसू

बालकांड





िसर

किह

धरइ

मृद ु

राखेहु

महे स

नयन

गनेसू

िक

धरनी

बचन

बोलाई

पलक



रानी नाई

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहा लिरका

भूप

ौिमत

उनीद

अस

किह

गे

बचन

सुिन

सहज

सुभग

सुरिभ

उपबरहन

बर

रतनद प

सुिठ

सेज

पय

पुिन

चा

दे ख

ःयाम

मारग

जात

राम



जिरत



जाह ं





चँदोवा



भाइन्ह

कहत

द न्ह

मंजुल

भयाविन



गाता

भार



किलत

ूेम

िनज

िनज

नाना

मिनमंिदर

माह ं

जेिहं

जोवा

पलँग

सयन

सूेम

िबिध

डसाए

सुपेतीं

समेत

कहिहं

केिह

पलँग

जान

सेज



॥३५५॥

मिन

बनइ



जाइ

लाइ

सुगंध





िचतु

कनक

कोमल

उठाए

करावहु

चरन



रामु

मृद ु

सयन

समाना

रिच पुिन

सुहाए

फेन

बरिन

िचर

अ या

िबौामगृहँ

बस

ितन्ह क न्ह

बचन

तात

पौढ़ाए

सब

ताड़का

माता मार

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहा घोर

िनसाचर

मारे

िबकट

सिहत

िकिम तु हार

ूसाद

बिल

तात

मख

रखवार

किर

दहँु ु

तर

कमठ

पीिठ

िबःव

िबजय

सकल आजु जे

लगत पिब

अमानुष सुफल

िदन

गए

कूट

जानिक जनमु

तु हिह



। नृप

पाई



दे ख

अनेक

समाज आए

। ।

भुवन

महँु

िसव

धनु

यािह

तात

िबधुबदन

पूर तोरा

सब

कृ पाँ

जिन

पाई

भिर

कौिसक िबरं िच

टार

िब ा

रह



॥३५६॥

करवर

सब

भवन

दे ख ते

काहु

सुबाहु

ूसाद

केवल



हमारा

िबनु

ईस

क रित



निहं

मार च

गु ।

तु हारे

गनिहं

खल

धूर

कठोरा

करम जग

भाई

पग

जसु

समर

सहाय

मुिन मुिनतय

भट

भाई

सुधारे तु हारा

पारिहं

लेख

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहा राम

सुिमिर नीदउँ

बदन

ूतोषीं

मातु

संभु

गुर

सोह

सुिठ

िबू

सब

लोना

पद

किह

िकए



िबनीत

नीदबस

मनहँु

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साँझ

बर

नैन

बैन



॥३५७॥

सरसी ह

सोना



रामचिरतमानस

घर

- 148 -

घर

करिहं

पुर

िबराजित

सुंदर

बधुन्ह

ूात

पुनीत

बंिद

मागध न्ह

बंिद

राजित सासु

नार ं

सोई

गुर

सादर



िसरमिन बर

पुरजन

माता



िनहारे

जनु ार

पाइ



भूपित

गार ं

िबलोकहु

अ नचूड़



मंगल

कहिहं

फिनकन्ह

गाए

बदन

परसपर

रानीं

जागे

िपतु

दे िहं

। ।

ूभु

गुनगन

सुर



रजनी

लै

काल

िबू

जनिनन्ह

जागरन

बालकांड

सजनी

उर

गोई लागे

बोलन जोहारन

असीस

मुिदत

संग

ार

आए सब

पगु

ॅाता धारे

॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

दोहा क न्ह

सौच

ूातिबया

सब

किर

सहज तात

सुिच

पिहं

पुनीत

सिरत

आए

चािरउ

नहाइ

भाइ



॥३५८॥

नवान्हपारायण, तीसरा िवौाम भूप

िबलोिक

दे ख

रामु

पुिन

बिस ु

सब

समेत

कहिहं

बिस ु

मुिन

मन

सुिन

आनंद ु

उर

सभा

मुिन

सुतन्ह

बोले

िलए

पद

धरम

बामदे उ



जुड़ानी

कौिसक

पू ज

अगम

लाई ।





इितहासा

सब

साँची

भयउ

सब

िनर ख मुिदत

क रित

काहू



राम

रजायसु अविध

रामु

दोउ

मह सु बिस

लखन

मुिन गुर

लोक

उर

बैठाए

अनुरागे

सिहत

िबपुल

किलत

पाई

अनुमानी

आसन न्ह

सुनिहं





लाभ

सुभग



गािधसुत करनी

हरिष

लोचन

आए

लागे

बैठै

रिनवासा

िबिध

बरनी

ितहँु

माची

अिधक

उछाहू

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥



॥४॥

दोहा

सुिदन िनत

मंगल

मोद

उछाह

उमगी

अवध

अनंद

कल

कंकन

सोिध नव

सुखु

िबःवािमऽु िदन मागत नाथ

करब

अस द न्ह

सुर

चलन सयगुन

िदन िबदा सकल सदा

किह

असीस

िदवस

अिधक

छौरे



िसहाह ं

मंगल



चहह ं



राम

सूेम

िबनय

बस



सुतन्ह

संपदा

तु हार





िबू

बहु

सुत

रानी

भाँती

। ।



िबिध

अनुरागे

सिहत

िबनोद जाचिहं





मोद

दे ख

सराह

समेत

सेवकु

परे उ चले

दे त

चरन न

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मुख

ूीित

थोरे पाह ं रहह ं

महामुिनराऊ

ठाढ़

समेत

दरसन



॥३५९॥

अिधकाित

जन्म

राउ

छोहू

भाँित

अवध

भाऊ

पर

एिह

अिधक

भूपित

लिरकनः

राउ

जािहं

भिर

दे ख िनत

िनत

रहब

भे सुत

आव र ित

मुिन

आगे नार

मोहू

न बानी किह

जाती

॥ ॥१॥ ॥ ॥२॥ ॥ ॥३॥ ॥

॥४॥ ॥

रामचिरतमानस

- 149 -

रामु

सूेम

संग

सब

भाई



बालकांड

आयसु

पाइ

िफरे

पहँु चाई

॥५॥

दोहा राम

पु

जात बामदे व

सराहत

रघुकुल

सुिन

मुिन

बहरेु

लोग

जहँ

आए

यािह

रामु

िबबाहँ

जीवनु

तेिह



मन

सबु

घर

भयउ पावन कहा

कछु

बहिर ु

राऊ ।

उछाहु

मुिदत



भयऊ

याहु

जस

किबकुल ते

मनिहं

याहु

मन

यानी

रजायसु राम

भगित

मनिहं

गुर

सुजसु

तहँ

ूभु

भूपित



गािधकुलचंद ु गािधसुत

बरनत

सुतन्ह

गावा



सुजसु

पुनीत





बसइ

अनंद

जब

उछाहू जानी



सकिहं



राम

बखानी





करन

ूभाऊ

नृपित

गृहँ

लोक

ितहँु

बरिन

सीय

बखानी

पुन्य

अवध

िगरा

पुनीत

िनज

॥ ॥२॥



अिहनाहू

मंगल

हे तु

गयऊ तब

॥ ॥१॥

छावा

सब

जसु



॥३६०॥

कथा

आपन

समेत

अनंद ु

खानी

बानी

॥ ॥३॥ ॥ ॥४॥

छं द िनज

िगरा

पाविन

करन

कारन

राम

जसु

रघुबीर

चिरत

अपार

बािरिध

पा

किब

उपबीत

याह

उछाह

मंगल

सुिन

जे

बैदेिह

राम

ूसाद

ते

जन

सबदा

तुलसी

क ो

कौन सादर सुखु

ल ो



गावह ं



पावह ं

सोरठा िसय

रघुबीर

ितन्ह

कहँु

सदा

िबबाहु

जे

उछाहु

सूेम

गाविहं

मंगलायतन

राम

सुनिहं जसु



॥३६१॥

मासपारायण, बारहवाँ िवौाम

इित ौीमिामचिरतमानसे सकलकिलकलुषिब वंसने ूथमः सोपानः समा ः । (बालकाण्ड समा )

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