क वताएँ मृ यु-बोध : जीवन-बोध
डा. मह भटनागर
(1) आभार मृ यु है ;
मृ यु िन अटल है
त है,
जीवन इसिलए ह तो इतना का य है ! इसिलए ह तो
जीवन-मरण म
इतना पर पर सा य है !
मृ यु ने ह
जीवन को दया सौ दय इतना
अशेष - अपार ! मृ यु ने ह
मानव को दया
जीवन-कला-सौकय इतना
िसँगार-िनखार !
िन:संदेह है
वीकाय
न रता,
म य दशन / भाव
ितपल मृ यु-तनाव !
आभार
मृ यु के
ित
ाण का आभार !
(2) आभार; पुन: मौत ने ज़ दगी को
बड़ा ख़ूबसूरत बना दया, लोक को,
असिलयत म
सुखद एक ज नत
बना दया, अथ हम यार का
जान पाये, तभी तो सह -सह ,
आदमी को
अमर दे व से;
और उ नत बना दया !
(3) काल-च िनमम है काल-च
अितशय िनमम !
जसके नीचे
जड़-जंगम
मश: पसता और बदलता
हर
ण, हर पल !
थर-थर कँपता भू-मंडल ! अ
य
िन:श द कये
अ वरत घूम रहा यह काल-च
िन व न ... िन वकार ! इसके स मुख
थरता का कोई
अ त व नह ,ं
इसक गित से सतत िनय
त
जीवन और मरण,
धरती और गगन !
(4) िन
न
मृ यु से डरते रहगे तो
हो जायगा
जीना िनरथक !
भार बो झल शु क नीरस
िन वषय मानस। अत:
साथक तभी जीवन,
मरण-डर मु हर
ण।
हो
अशुभ है
नाम लेना
मृ यु-भय का, या
लय का
इसी कारण।
(5) िच तन मृ यु ? एक
-िच ह !
भेद जानना
द ु ह ह नह ;ं
मनु य के िलए अ- ात सब।
दे ह पंच-त व म वलीन सब बखर- बखर ! समा ।
ाण लौटना नह ;ं
न स भवी
पुन: सचेत कर सक, रह य
ात कर सक
वयं जब नह ।ं
मरण -
हे िलका
अजब
हे िलका !
गज़ब
हे िलका !
अबूझ आज तक य
यथ
मृ यु-अथ य ज टल क ठन
हो सके;
वचारणा।
(6) पहे ली या कहा ?
तन
रहने यो य नह ं रहा; इसिलए ... आ मन !
तुम चले गये। नये क चाह म कसी राह म;
कहाँ ?
ले कन कहाँ ?? अ ात है,
सब अ ात है !
घुप अंधेर रात है, रह यपूण
हर बात है ! कसका है ?
उ र कसका है ?
(7) सचाई
मृ यु नह ं होती
तो ई र का भी अ त व नह ं होता, कभी नह ं करता मानव
ार धवाद से समझौता !
ई र ई र
तीक है
माण है
मानव क लाचार का,
मृ युपरा त तैयार का। वग-नरक का
सारा दशन-िच तन क पत है,
मानव
मृ यु-दत ू क आहट से हर
ण आतं कत है,
रह-रह रोमांिचत है ! मालूम है उसे 'मृ यु सुिन
त है !'
इसीिलए पग-पग पर आशं कत है ! यह नह ं
तथाकिथत म यलोक से िनता त अप रिचत है; वह।
अत: तभी तो जाता है
ई र क शरण म
पाने िचर-शा त मरण म !
अत: तभी तो गाता है एक-मा
'राम नाम स य है !'
अरे , ज म-मृ यु कुछ नह ं उसी का
वनोद- ू र कृ य है !
(8) मृ यु- प मृ यु
ाकृितक हो
या आक मक दघटना हो ु िन कष एक है
अ त-कम जीवन का, होना चेतनह न स
य तन का,
सदा-सदा को होना सु दय- प दन का !
दोन ह तथाकिथत विध-लेख हो,
भा य-िल प अ ले कन
अिमट रे ख हो !
जीवन-वध
चाहे आ म-हनन हो,
या ह या-भाव-वहन हो, या य
और समाज र ा हे तु
द र द का दमन-दलन हो, नह ं मरण; है
ाण-हरण।
भले ह अंत एक मृ यु !
सह मृ यु या अकाल मृ यु।
(9) िन कष मृ यु ?
-िच ह। थर
अनु रत अड़ा,
व
खड़ा।
बन
पर, नह ं
मनु य हार मानना,
तिनक न ईश क पना बचाव म,
सवाल के जवाब म, नह ं, नह ं !
रह य मृ यु का िनरावरण ... अव य
कट
अव य
एक दन !
(10) ज म-मृ यु मृ यु :
ज म से बँधी
अटू ट डोर है,
ज म :
एक ओर; मृ यु : दसरा ू
तीप छोर है !
ज म - एक तट
मरण - वलोम तीर; ज म : हष
य ?
मृ यु :
पीर ... !
य ?
ज म-मृ यु
जब समान हो ? एक /
पवान;
दसरा / महािनधान है ! ू ज म सू
पात है,
मृ यु
नाश है : िनघात है ! ज म ...
ात,
मृ यु ... अ- ात ! ज म : आ द,
मृ यु : अ त है ! ज म : मृ यु :
ीगणेश,
ित दग त है !
ज म : हाँ, हयात है,
मृ यु : हा! वघात है ! ज म : नव- भात है, मृ यु : घोर रात है !
(11) यु म चार ओर फैली म भूिम रे तीली
बुझते द पक लौ-सी भूर
पंगल।
पीत-ह रत जल-र हत ढलती उ
मरणास न !
ले कन
अनिगनती
लहराते ... ह रआते म
प !
कँट ले प
र हत
पनपते पेड़
जीवन-िच ह पताकाएँ !
जलाशय
आशय ... जीवन-द ाणद !
(12) वलोम जीवन : हष लास
मृ यु : अंितम िन ास
मधुर राग / ची कार ! शुभ-कृत / हाहाकार !
(13) समान ात भी अ ण
सा
य भी अ ण
ात-सा
ज म पर मृ यु पर
य एक हो। दन
दन
ज म-मृ यु एक हो। यह
सह
यथाथ यथ
ववेक है,
ान है,
और ... और
यान है।
(14) साखी
इतने उदास होशोहवास
य होते हो ?
य खोते हो ?
जीवन - बहमू ु य है; सह है अटल मृ यु;
य रोते हो ?
(15) कामना जएँ सम त िशशु त ण
अकाल मृ यु है क ण।
(16) वा तव ''मृ यु
ज म है
पुन: - पुन:
आ म - त व का।''
अस य; इस वचार को क स य मान ल ?
अंध मा यता
तक ह न मा यता ! ाण / पंच - त व म वलीन,
अंत / एक सृ
अंत / एक य एक जीव का।
का,
का,
कह ं नह ं
यहाँ ... वहाँ। सह यह
क लय सदै व को। न है नरक कह ,ं न
वग है कह ,ं
यथाथ लोक स य है। मृ यु स य है,
ज म स य है।
(17) जीवन-दशन ब हगित
भौितक
प दन;
अ तर-गित जीवन।
जीवन गित का वाहक मो
सतत िनय
क
मो
जब - तक
गितशील रहे गा जीवन इितहास रचेगा मानव-मन
मानव-तन। लय हो न कभी;
जीवन लयवान रहे ,
कण-कण गितमान रहे । लयगत होना
अ तर गित खोना।
(18) चरै वेित संघष -सं ाम से
जीवन क िनिमित,
होना िन
य
ापक - आस न मरण का,
थमना
जीवन क प रणित।
जीवन : केवल गित, अ वरित गित !
मश: वकिसत होना,
होना प रवितत
जीवन का धारण है ! थरता
ाण- वह न का
था पत ल ण है !
जीवन म क पन है,
प दन है ,
जीव त उर म अ वरल धड़कन है ! कना
अ त व - वनाशक
अशुभ मृ यु को आमं ण, चलते रहना ... चलते रहना ! एक मा
मूल-मं
(19)
योगरत
साधक जीवन !
आदमी म
चाह जीवन क
सनातन और सवािधक
बल है;
जब क
हर जीव त क
अ तम सचाई मृ यु है !
हाँ, अ त िन अटल है !
त है,
ले कन / स य है यह भी अमरता क : अजरता क लहकती वासना का वेग होगा कम नह ,ं
अ त ु परा म आदमी का चाहता कलरव,
दन मातम नह ं !
हर बार
ुव मृित क चुनौती से
िनर तर जूझना मृ युज ं य
वीकार !
बनेगा वह; बनेगा वह !
(20) साथकता जीना-भर
जीवन-साथकता का नह ं
जीना -
माण,
मा
ववशता
जो
वाभा वक
जैसे - मृ यु .....
याण।
उसके धारण म
कोई वैिश य नह ,ं सं ा
ाणी होना मा
मनु य नह ।ं
मानव - म हमा का उ
घोष तभी,
मन म हो
स चा तोष तभी
जब हम जीवन को अिभनव अथ भरे अंधेरे म नव - नव
संधान कर।
दान कर,
योितल क का
सृ -रह य को
ात कर,
चाँद-िसतार से बात कर। परमाथ
हमारे जीने का ल य बने, हर भौितक संकट
पग-पग पर भ य बने।
इतनी
मताएँ
अ जत ह ,
फर,
ाण भले ह
मृ यु सम पत ह , कोई लािन नह ,ं कोई खेद नह ,ं इसम
कंिचत मतभेद नह ,ं
जीवन सफल यह जीवन वरल यह ध य मह !
(21)
ाथना
वांिछत
अमरता नह ;ं चाहता हँू अजरता। सकल िन
वा
नता
य, आरो य
तन और मन क । अिभ ेत वरदान यह
क पत कसी ईश से नह ं।
व-सािधत सतत साधना से
आराधना से नह ।ं तन
मन हाँ,
लेश-मु
लेश-मु
एक-सौ-और-प चीस वष जएँ हम!
अपने िलए,
दसर के िलए। ू
(22) मृग - तृषा उ छृंखल और मह वाकां ी मानव
धन के पीछे भाग रहा है
सुख के पीछे भाग रहा है जीवन क क़ मत पर।
आ य अरे
इस अ त ु द ू षत नीयत पर ! जीवन है तो / धन-योग बनेगा,
जीवन है तो / सुख-भोग सधेगा ! खं डत और वशृख ं ल जीवन रोग-
त / हत घायल जीवन
ण-भंगरु
मृ यु-कु ड म
िगरने को आतुर !
अंधा, सं म, अ ानी मानव
धन ह वच व समझ रहा है
सुख को सव व समझ रहा है ! बहमू ु य िमला जो जीवन / धो बैठेगा, जीवन क नेमत / खो बैठेगा !
(23) संक प पूण िन ावान हम,
आ
त हो उतरे
वकट जीवन-मरण के म !
बन िसपाह
अमर जीवन-वा हनी के, िघर न पाएंगे
वप ी के कसी छल-छ द म !
हार जाएँ,
पर, वच व मानगे नह ं तिनक भी मरण का,
अिधकार अपना
िछनने नह ं दगे
जीवन वरण का !
जयघोष गूज ँ ेगा
चरम िन ास तक, संघषरत
बल- ाण जूझेगा शेष आस /
यास तक !
(24) जयघोष सारा व
सोता है
इतनी रात गुज़रे कौन रोता है ? सुना है
पास के घर म
मृ यु का धावा हआ है, ु स य है
कोई मुआ है ! यमदत ू के
तीखे छुरे ने
आदमी को फर छुआ है !
पहँु चो
अमृत-स वेदना-लहर िलए, यह आदमी
फर- फर जए !
जीवन-दं द ु भी ु बजती रहे , ण- ण
भले ह , अरिथयाँ सजती रह !
(25) आ ान अलख
जगाने वाले आये हो, नव-जीवन का
य मधु गीत
सुनाने वाले आये हो !
सोहर गाने वाले आये हो ! उर-वीणा के तार-तार पर जीवन-राग
बजाने वाले आये हो ! मन से हारो ! जागो !
तन के मारो ! जागो !
जीवन के
लहराते सागर म कूदो
ओ गोताख़ोरो !
जड़ता झकझोरो !
(26) एक दन जीवन
वजयी होगा
व ास कर,
नीच मीच से
न डर; न डर ! हर संशय का
नाश- वनाश कर !
जीवन जीतेगा
व ास कर !
घनघोर अंधेरा मौत मर का
छाएगा / डरपाएगा;
सूरज के बल पर / दम पर व ास कर !
इसका
क़तरा-क़तरा फ़ाश कर ! चार ओर
काश भर !
जीवन जीतेगा
व ास कर !
(27) उ े य हम
जो जीवन के िश पी हो केवल जीवन क बात कर,
जीवन क साथकता खोज, जीवन - त व को ात कर !
मरण
हमारा हरण करे तो उस पर बढ़ कर आघात कर,
जीवन का
जय - जयकार कर, यम का
मृित का
संघात कर !
(28) अभी जीवन-उपवन म
मृ यु स पणी का
अ त व न हो,
मृ यु भीत से आतं कत मानव- य
व न हो !
हर मानव
भोगे जीवन
संदेह र हत,
हो हर पल उसका
मधु रत िसंिचत !
जीवन - धम
जीवन से खेले,
भरपूर जये जीवन हर सुख क बाँह
बाँह म ले ले !
(29) मन-वांिछत जब-तक
जीना चाहा हमने;
ख़ूब जये !
मान
वषा म भी
जलते रहे दये !
नह ं कसी क रह कृपा,
जूझे -
अपने बल पर
व ास कये !
(30) िस द
जजी वषु
नह ं करे गा
मृ यु- ती ा !
सोना
स चा खरा तपा य दे गा
अ न-पर म तोड़ो,
काल-च
ा ?
को मोड़ो !
जीवन से नाता जोड़ो ! जड़ता छोड़ो !
(31)
व थ
वयं को
शा त समझ कर जीते हो, िन
त
हँ सते और गाते हो, बे फ़
खाते और पीते हो; जीना
या इसे ह
हम कह ? अंत से जब
-ब-
अ यथा अनिभ या
ह,
ह उससे रह,
जीना इसे ह हम कह ?
(32) सा य
गाता हँू
वजय के गीत गाता हँू !
मृ यु पर
जीवन जगत क जीत गाता हँू !
अित
य व तु
जीवन- व फुरण क बेधड़क जयकार गाता हँू !
क़
तान के आकाश म
जो गूज ँ ते हो प र द के
वर
व छ द र द के
अनुवाद हो मेर
जीवन-भावनाओं के ! सहचार हो मेर
जीवन-अचनाओं के !
(33) द शतअंगेज़ सावधान !
फहरा द है हमने
घर-घर, गाँव-गाँव, नगर-नगर जीवन क
नव-जीवन क
लाल पताकाएँ !
ब ती-ब ती, चौराह -सतराह पर, यहाँ-वहाँ -
ठाँव-ठाँव !
लहरा द हो
र -पताकाएँ !
अब नह ं चलेगा
आतंक , घातक, जन-भ ी, मद- वर-
त
मरण-रा स का
कोई भी दांव !
तन के भीतर घुस कर घात लगाता है,
अपने को अ व जत यम का दत ू बताता है, तन के भीतर
व फोटक-बा द बछाता है,
और ... अ श
थान से
िछप-िछप कर दरू थ-िनय दे ख
त-यं
चलाता है !
अब और कधर से आता है !
(34) मृ यु-दशन मृ यु : सुिन
त है जब;
यथ इस क़दर य होते हो
आशं कत,
आतं कत ! मृ यु से अरे कह दो
'जब चाहे आना; आये।' इस समयाविध तो आओ,
िमल कर नाच-गाएँ ! नाना वा
बजाएँ !
तोड़ मौन;
मृ यु क िच ता
करता है कौन ?
(35) आमं ण मृ यु
आना,
एक दन ज़ र आना ! और मुझे
अपने उड़नखटोले म बैठा कर ले जाना; दरू ... बहत ु दरू नरक म !
जससे मो
नरक-वािसय को
संग ठत कर सकूँ,
उ ह व ोह के िलए ललकार सकूँ,
ज़ दगी बदलने के िलए
तैयार कर सकूँ !
नह ं मानता मो कसी िच गु
को
कसी यमराज को;
चुनौती दं ग ू ा उ ह !
बस, ज़रा कूद तो जाऊँ नरक-कु ड म ! िमल जाऊँ
नरक-वािसय के
वशाल झु ड म !
(36) मृ यु-पर से मृ यु आओ
हम तैयार हो !
मत समझो
क लाचार हो ।
पूव-सूचना
दोगी नह ं
या ?
लोगी नह ं
या ?
आभार मेरा
आओगी -
बना आहट कये आ य दे ती !
नटखट बािलका क तरह ! ठ क है,
वीकार है !
मेर चहे ती,
तु हारा खेल यह वीकार है !
चुपचाप आओ, मृ यु आओ
हम तैयार हो !
अ छ तरह समझते हो
क जीवन-पु तका का उपसंहार हो तुम !
इसिलए
मेरे िलए
पूणता का
शुभ-समाचार हो तुम ! आओ,
मृ यु आओ,
हम तैयार हो !
ती ा म तु हार
सज-धज कर तैयार हो !
(37) िनवेदन
मृ यु
या हआ ु
य द तुम तु ह िम शरमाती
ी-िलंग हो,
बना सकता हँू !
य हो ?
आओ
हमजोली बनो ना ! हमख़ाना नह ं तो
हमसाया बनो ना ! चाँद के टु कड़े जैसी तुम ! सामने वाली खड़क से झाँकना,
ऑंकना ! और एक दन अचानक मुझे साथ ले चल पड़ना
ेत-लोक म !
य ह
नोकझ क म !
(38) मृ यु- विध व न दे खते
आती होगी मृ यु, तन से
ाण चले जाते ह गे
तभी।
व न दे खता रहता आदमी
दवंगत हो जाता होगा ! वह
या जाने ?
दिनया वाल से पूछो ु
ज ह ने
तन पर रख
ढक द है चादर ! या हआ ? ु
हआ ु
या ?
आ ख़र ?
(39) तुलना िशव म शव म
अ तर है मा
इकार का
(तीसरे वण वार का।) िशव
मंगलकार है
सुख झड़ता है !
शव
अिन -सूचक
केवल सड़ता है !
िशव के तीन ने
ह,
शव अंधा है !
कैसा गोरखधंधा है ?
(40) अ तर आपने याद कया आभार !
मीठा दद दया वीकार !
कतना अ त ु है संयोग क अ तम वदा
अरे ! ओ आये
ेम
थम !
ओझल होती राह पर, िलए चाह ◌े
जो कभी पूर होनी नह ,ं कभी वा तव
थूल छुअन से
सह-अनुभूत हमार
यह दरू होनी नह ं ! जाता हँू
याद िलए जाता हँू,
दद िलए जाता हँू !
(41) अ त समर
अब कहाँ है ? सफ़र
अब कहाँ है ? थम गया सब
बहता उछलता नद -जल तरल, जम गया सब नस म
िधर क तरह !
दद से
दे ह क ह डयाँ सब चटखती लगातार, अब कौन
इ ह दबाए
टू टती आ ख़र साँस तक ? अंधेरे-अंधेरे िघरे जब न कोई पास तक !
लहर अब कहाँ एक ठहराव है, ज़ दगी अब
िशिथल तार; बखराव है !
(42) आघात मोने ...
जी वत रखा तु ह अत: तु हार
जी वत गिलत लाश भी ढोऊंगा !
मूक ववश ढोऊंगा ! व ास का ख़ून कया तुमने,
अरमान को
जलती भ ठ म भून दया तुमने !
छल-छ
का
सफल अिभनय कर,
जीवन के हर पल म दद असह भर !
यारा नह ं बना,
ह यारा नह ं बना !
अरे ! नह ं छ ना जीने का हक़; यद प हआ बेपरदा शक, ु हर शक !
जी वत रखा जब
नरका न म दहंू गा बन संवेदनह न
सब सहंू गा !
पहले या फर सब को
िचर-िन ा म सोना है,
िम ट -िम ट होना है ! ओ बद क़ मत !
फर, कैसा रोना है ?
(43) स य ाण-पखे
उड़ जाएंग,े
उड़ जाएंगे ! ाण-पखे
उड़ जाएंगे ! काहे इतना जतन करे , शाम-सबेरे भजन करे , तेरे वश म
या है रे
म दर-म दर नमन करे , इक दन तन के पंजर से ाण-पखे
उड़ जाएंगे !
जो कभी न
वापस आएंगे !
उड़ जाएंगे ाण-पखे
उड़ जाएंगे !
(44) िन
ित
तय है क तू
एक दन
मृ यु क गोद म मौन
सो जायगा ! तय है क तू
एक दन
मृ यु के घोर अंिधयार म डू ब
खो जायगा ! तय है क तू
एक दन
याग कर
प
भ म म सात ्
ी
हो जायगा !
(45) घोषणा दिनया वाल से ु कह दो अब महे
भटनागर सोता है !
िचर-िन ा म सोता है ! जो
होना होता है; वह होता है ! रे मानव ! तू
य रोता है ?
जीवन
जो अपना है,
उस पर भी
अपना अिधकार नह ,ं घर-धन
जो अपना है
उसम भी सचमुच
कोई सार नह ं ! उसके
तुम दावेदार नह ं !
बन कर
मौन वर
- वरागी
चल दे ते हो
छोड़ सभी,
चल दे ते हो
नये-पुराने नाते- र ते तोड़ सभी !
रे इस
ण का
अनुभव
सब को करना है, मृ यु अटल है फर
उससे
या डरना है ?
ओ, मृ यु अमर ! तुम समझो चाहे लाचार मुझे,
उपसंहार मुझे, वे छा से
करता हँू अंगीकार तु ह तन-मन से
वीकार तु ह !
सुखदायी
िम ट क शैया पर सोता हँू ! इस िम ट के
कण - कण म िमल कर अपनापन खोता हँू !
नव जीवन बोता हँू !
जैसे जीवन अपनाया वैसे
हे , मृ यु
तु ह भी अपनाता हँू ! जाता हँू,
दिनया से जाता हँू ! ु
सु दर घर, सु दर दिनया से ु
जाता हँू !
सदा ... सदा को जाता हँू !
(46) नमन अल वदा !
जग क बहारो अल वदा !
ओ, दमकते चाँद
झलिमलाते िसत िसतारो अल वदा !
पहाड़ो ... घा टयो ढालो ... कछारो अल वदा !
उफ़नती िस धु-धारो अल वदा !
फड़फड़ाती
मोह क पाँखो, छलछलाती
यार क ऑंखो अल वदा !
अटू टे बंध क बाँहो अधूर छूटती चाहो अल वदा ! अल वदा !
(47) अल वदा ! ार ध के मारे हए ु
हम,
ज़ दगी के खेल म हारे हए ु
हम,
हाय !
अपन से सताए,
दय पर चोट खाए,
िसर झुकाए मौन
जाते ह सदा को कभी भी
याद मत करना,
आज के दन भी सुनो,
मृित-द प मत रखना !
(48) तप वी मृ यु पर पाने वजय िस दाथ - साधक एक और चला !
जसने हर चरण
यम-वा हनी क
छल-कुचाल को दला ! कसी भी यूह म न फँसा,
मौत पर
अपना क ठन फंदा कसा ! गा रहा है जो
ज़ दगी के गीत
मृ यु-कगार पर, एक दन
पा जायगा
पद अमर
अपना बदल कर रखना सुर
त
इस धरोहर को
प !
बना कर
तूप !
(49) मृ यु-प रोना नह ,ं
द न-िनर ह होना नह ं ! आघात सहना,
संयिमत रहना। आड बर से मु
अ तम कम हो, यान म बस
पारलौ कक-पारमािथक मम हो ! मृ यूपरा त जगत व जीवन न जाना कसी ने
न दे खा कसी ने ....
िनधा रत यव थाएँ सम त कपोल-क पत हो,
सब अत कत ह।
अनुसरण उनका अवांिछत है ! अंधानुयायी रे नह ं बनना, ान के आलोक म
हो सं कार-पूत उपासना। आदे श यह
स म स ावना।
(50) कृ तकमा द:ु ख
य ?
शर र-धम क पूित पर द:ु ख
अंत
य ?
िच ह पूणता, सफल चरण द:ु ख
य ?
जीव क समाि एक
द:ु ख
म
य ?
शेष
जीवनी वृता त
अथ िस द दो,
नाम दो।
आ ख़र सलाम लो ! ---------------.
रचनाकार प रचय: उ कृ
का य-संवेदना सम वत
-भा षक क व :
ह द और अं ेज़ी। सन ् 1941 से का य-रचना आर भ। ' वशाल भारत', कोलकाता (माच 1944) म
थम क वता का
लगभग छह-वष क का य-रचना का प र े य
काशन। वतं ता-पूव भारत; शेष
वातं यो र।
सामा जक-राजनीितक-रा ीय चेतना-स प न रचनाकार। ल ध- ित वषय
गितवाद -जनवाद क व। अ य ेम,
मुख का य-
कृ ित, जीवन-दशन ।
दद क गहन अनुभूितय के समा तर जीवन और जगत के अद य जजी वषा एवं आशा-
ित आ थावान क व।
व ास के अ त ु -अक प
वर के सजक।
ज म : 26 जून 1926 / झाँसी (उ र- दे श)
िश ा : एम.ए. (1948), पी-एच.ड . (1957) नागपुर व
व ालय से।
काय : कमलाराजा क या
नातको र महा व ालय /
स
ह द भाषा एवं सा ह य।
जीवाजी व
व ालय, वािलयर से
ित : शोध-िनदशक
काय े
ोफ़ेसर-अ य
पद से सेवािनवृ ।
: च बल-अंचल, मालवांचल, बुंदेलखंड।
काशन % 'डा. मह भटनागर-सम ' छह खंड म
उपल ध।
कािशत का य-कृ ितयाँ 20
अनुवाद : क वताएँ अं ेज़ी, पु तकाकार
च, चेक एवं अिधकांश भारतीय भाषाओं म अनू दत व
कािशत।
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य।
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