Mrityu Bodh Jeevan Bodh1

  • November 2019
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  • Words: 3,863
  • Pages: 37
क वताएँ मृ यु-बोध : जीवन-बोध

डा. मह भटनागर

(1) आभार मृ यु है ;

मृ यु िन अटल है

त है,

जीवन इसिलए ह तो इतना का य है ! इसिलए ह तो

जीवन-मरण म

इतना पर पर सा य है !

मृ यु ने ह

जीवन को दया सौ दय इतना

अशेष - अपार ! मृ यु ने ह

मानव को दया

जीवन-कला-सौकय इतना

िसँगार-िनखार !

िन:संदेह है

वीकाय

न रता,

म य दशन / भाव

ितपल मृ यु-तनाव !

आभार

मृ यु के

ित

ाण का आभार !

(2) आभार; पुन: मौत ने ज़ दगी को

बड़ा ख़ूबसूरत बना दया, लोक को,

असिलयत म

सुखद एक ज नत

बना दया, अथ हम यार का

जान पाये, तभी तो सह -सह ,

आदमी को

अमर दे व से;

और उ नत बना दया !

(3) काल-च िनमम है काल-च

अितशय िनमम !

जसके नीचे

जड़-जंगम

मश: पसता और बदलता

हर

ण, हर पल !

थर-थर कँपता भू-मंडल ! अ



िन:श द कये

अ वरत घूम रहा यह काल-च

िन व न ... िन वकार ! इसके स मुख

थरता का कोई

अ त व नह ,ं

इसक गित से सतत िनय



जीवन और मरण,

धरती और गगन !

(4) िन



मृ यु से डरते रहगे तो

हो जायगा

जीना िनरथक !

भार बो झल शु क नीरस

िन वषय मानस। अत:

साथक तभी जीवन,

मरण-डर मु हर

ण।

हो

अशुभ है

नाम लेना

मृ यु-भय का, या

लय का

इसी कारण।

(5) िच तन मृ यु ? एक

-िच ह !

भेद जानना

द ु ह ह नह ;ं

मनु य के िलए अ- ात सब।

दे ह पंच-त व म वलीन सब बखर- बखर ! समा ।

ाण लौटना नह ;ं

न स भवी

पुन: सचेत कर सक, रह य

ात कर सक

वयं जब नह ।ं

मरण -

हे िलका

अजब

हे िलका !

गज़ब

हे िलका !

अबूझ आज तक य

यथ

मृ यु-अथ य ज टल क ठन

हो सके;

वचारणा।

(6) पहे ली या कहा ?

तन

रहने यो य नह ं रहा; इसिलए ... आ मन !

तुम चले गये। नये क चाह म कसी राह म;

कहाँ ?

ले कन कहाँ ?? अ ात है,

सब अ ात है !

घुप अंधेर रात है, रह यपूण

हर बात है ! कसका है ?

उ र कसका है ?

(7) सचाई

मृ यु नह ं होती

तो ई र का भी अ त व नह ं होता, कभी नह ं करता मानव

ार धवाद से समझौता !

ई र ई र

तीक है

माण है

मानव क लाचार का,

मृ युपरा त तैयार का। वग-नरक का

सारा दशन-िच तन क पत है,

मानव

मृ यु-दत ू क आहट से हर

ण आतं कत है,

रह-रह रोमांिचत है ! मालूम है उसे 'मृ यु सुिन

त है !'

इसीिलए पग-पग पर आशं कत है ! यह नह ं

तथाकिथत म यलोक से िनता त अप रिचत है; वह।

अत: तभी तो जाता है

ई र क शरण म

पाने िचर-शा त मरण म !

अत: तभी तो गाता है एक-मा

'राम नाम स य है !'

अरे , ज म-मृ यु कुछ नह ं उसी का

वनोद- ू र कृ य है !

(8) मृ यु- प मृ यु

ाकृितक हो

या आक मक दघटना हो ु िन कष एक है

अ त-कम जीवन का, होना चेतनह न स

य तन का,

सदा-सदा को होना सु दय- प दन का !

दोन ह तथाकिथत विध-लेख हो,

भा य-िल प अ ले कन

अिमट रे ख हो !

जीवन-वध

चाहे आ म-हनन हो,

या ह या-भाव-वहन हो, या य

और समाज र ा हे तु

द र द का दमन-दलन हो, नह ं मरण; है

ाण-हरण।

भले ह अंत एक मृ यु !

सह मृ यु या अकाल मृ यु।

(9) िन कष मृ यु ?

-िच ह। थर

अनु रत अड़ा,



खड़ा।

बन

पर, नह ं

मनु य हार मानना,

तिनक न ईश क पना बचाव म,

सवाल के जवाब म, नह ं, नह ं !

रह य मृ यु का िनरावरण ... अव य

कट

अव य

एक दन !

(10) ज म-मृ यु मृ यु :

ज म से बँधी

अटू ट डोर है,

ज म :

एक ओर; मृ यु : दसरा ू

तीप छोर है !

ज म - एक तट

मरण - वलोम तीर; ज म : हष

य ?

मृ यु :

पीर ... !

य ?

ज म-मृ यु

जब समान हो ? एक /

पवान;

दसरा / महािनधान है ! ू ज म सू

पात है,

मृ यु

नाश है : िनघात है ! ज म ...

ात,

मृ यु ... अ- ात ! ज म : आ द,

मृ यु : अ त है ! ज म : मृ यु :

ीगणेश,

ित दग त है !

ज म : हाँ, हयात है,

मृ यु : हा! वघात है ! ज म : नव- भात है, मृ यु : घोर रात है !

(11) यु म चार ओर फैली म भूिम रे तीली

बुझते द पक लौ-सी भूर

पंगल।

पीत-ह रत जल-र हत ढलती उ

मरणास न !

ले कन

अनिगनती

लहराते ... ह रआते म

प !

कँट ले प

र हत

पनपते पेड़

जीवन-िच ह पताकाएँ !

जलाशय

आशय ... जीवन-द ाणद !

(12) वलोम जीवन : हष लास

मृ यु : अंितम िन ास

मधुर राग / ची कार ! शुभ-कृत / हाहाकार !

(13) समान ात भी अ ण

सा

य भी अ ण

ात-सा

ज म पर मृ यु पर

य एक हो। दन

दन

ज म-मृ यु एक हो। यह

सह

यथाथ यथ

ववेक है,

ान है,

और ... और

यान है।

(14) साखी

इतने उदास होशोहवास

य होते हो ?

य खोते हो ?

जीवन - बहमू ु य है; सह है अटल मृ यु;

य रोते हो ?

(15) कामना जएँ सम त िशशु त ण

अकाल मृ यु है क ण।

(16) वा तव ''मृ यु

ज म है

पुन: - पुन:

आ म - त व का।''

अस य; इस वचार को क स य मान ल ?

अंध मा यता

तक ह न मा यता ! ाण / पंच - त व म वलीन,

अंत / एक सृ

अंत / एक य एक जीव का।

का,

का,

कह ं नह ं

यहाँ ... वहाँ। सह यह

क लय सदै व को। न है नरक कह ,ं न

वग है कह ,ं

यथाथ लोक स य है। मृ यु स य है,

ज म स य है।

(17) जीवन-दशन ब हगित

भौितक

प दन;

अ तर-गित जीवन।

जीवन गित का वाहक मो

सतत िनय



मो

जब - तक

गितशील रहे गा जीवन इितहास रचेगा मानव-मन

मानव-तन। लय हो न कभी;

जीवन लयवान रहे ,

कण-कण गितमान रहे । लयगत होना

अ तर गित खोना।

(18) चरै वेित संघष -सं ाम से

जीवन क िनिमित,

होना िन



ापक - आस न मरण का,

थमना

जीवन क प रणित।

जीवन : केवल गित, अ वरित गित !

मश: वकिसत होना,

होना प रवितत

जीवन का धारण है ! थरता

ाण- वह न का

था पत ल ण है !

जीवन म क पन है,

प दन है ,

जीव त उर म अ वरल धड़कन है ! कना

अ त व - वनाशक

अशुभ मृ यु को आमं ण, चलते रहना ... चलते रहना ! एक मा

मूल-मं

(19)

योगरत

साधक जीवन !

आदमी म

चाह जीवन क

सनातन और सवािधक

बल है;

जब क

हर जीव त क

अ तम सचाई मृ यु है !

हाँ, अ त िन अटल है !

त है,

ले कन / स य है यह भी अमरता क : अजरता क लहकती वासना का वेग होगा कम नह ,ं

अ त ु परा म आदमी का चाहता कलरव,

दन मातम नह ं !

हर बार

ुव मृित क चुनौती से

िनर तर जूझना मृ युज ं य

वीकार !

बनेगा वह; बनेगा वह !

(20) साथकता जीना-भर

जीवन-साथकता का नह ं

जीना -

माण,

मा

ववशता

जो

वाभा वक

जैसे - मृ यु .....

याण।

उसके धारण म

कोई वैिश य नह ,ं सं ा

ाणी होना मा

मनु य नह ।ं

मानव - म हमा का उ

घोष तभी,

मन म हो

स चा तोष तभी

जब हम जीवन को अिभनव अथ भरे अंधेरे म नव - नव

संधान कर।

दान कर,

योितल क का

सृ -रह य को

ात कर,

चाँद-िसतार से बात कर। परमाथ

हमारे जीने का ल य बने, हर भौितक संकट

पग-पग पर भ य बने।

इतनी

मताएँ

अ जत ह ,

फर,

ाण भले ह

मृ यु सम पत ह , कोई लािन नह ,ं कोई खेद नह ,ं इसम

कंिचत मतभेद नह ,ं

जीवन सफल यह जीवन वरल यह ध य मह !

(21)

ाथना

वांिछत

अमरता नह ;ं चाहता हँू अजरता। सकल िन

वा

नता

य, आरो य

तन और मन क । अिभ ेत वरदान यह

क पत कसी ईश से नह ं।

व-सािधत सतत साधना से

आराधना से नह ।ं तन

मन हाँ,

लेश-मु

लेश-मु

एक-सौ-और-प चीस वष जएँ हम!

अपने िलए,

दसर के िलए। ू

(22) मृग - तृषा उ छृंखल और मह वाकां ी मानव

धन के पीछे भाग रहा है

सुख के पीछे भाग रहा है जीवन क क़ मत पर।

आ य अरे

इस अ त ु द ू षत नीयत पर ! जीवन है तो / धन-योग बनेगा,

जीवन है तो / सुख-भोग सधेगा ! खं डत और वशृख ं ल जीवन रोग-

त / हत घायल जीवन

ण-भंगरु

मृ यु-कु ड म

िगरने को आतुर !

अंधा, सं म, अ ानी मानव

धन ह वच व समझ रहा है

सुख को सव व समझ रहा है ! बहमू ु य िमला जो जीवन / धो बैठेगा, जीवन क नेमत / खो बैठेगा !

(23) संक प पूण िन ावान हम,



त हो उतरे

वकट जीवन-मरण के म !

बन िसपाह

अमर जीवन-वा हनी के, िघर न पाएंगे

वप ी के कसी छल-छ द म !

हार जाएँ,

पर, वच व मानगे नह ं तिनक भी मरण का,

अिधकार अपना

िछनने नह ं दगे

जीवन वरण का !

जयघोष गूज ँ ेगा

चरम िन ास तक, संघषरत

बल- ाण जूझेगा शेष आस /

यास तक !

(24) जयघोष सारा व

सोता है

इतनी रात गुज़रे कौन रोता है ? सुना है

पास के घर म

मृ यु का धावा हआ है, ु स य है

कोई मुआ है ! यमदत ू के

तीखे छुरे ने

आदमी को फर छुआ है !

पहँु चो

अमृत-स वेदना-लहर िलए, यह आदमी

फर- फर जए !

जीवन-दं द ु भी ु बजती रहे , ण- ण

भले ह , अरिथयाँ सजती रह !

(25) आ ान अलख

जगाने वाले आये हो, नव-जीवन का

य मधु गीत

सुनाने वाले आये हो !

सोहर गाने वाले आये हो ! उर-वीणा के तार-तार पर जीवन-राग

बजाने वाले आये हो ! मन से हारो ! जागो !

तन के मारो ! जागो !

जीवन के

लहराते सागर म कूदो

ओ गोताख़ोरो !

जड़ता झकझोरो !

(26) एक दन जीवन

वजयी होगा

व ास कर,

नीच मीच से

न डर; न डर ! हर संशय का

नाश- वनाश कर !

जीवन जीतेगा

व ास कर !

घनघोर अंधेरा मौत मर का

छाएगा / डरपाएगा;

सूरज के बल पर / दम पर व ास कर !

इसका

क़तरा-क़तरा फ़ाश कर ! चार ओर

काश भर !

जीवन जीतेगा

व ास कर !

(27) उ े य हम

जो जीवन के िश पी हो केवल जीवन क बात कर,

जीवन क साथकता खोज, जीवन - त व को ात कर !

मरण

हमारा हरण करे तो उस पर बढ़ कर आघात कर,

जीवन का

जय - जयकार कर, यम का

मृित का

संघात कर !

(28) अभी जीवन-उपवन म

मृ यु स पणी का

अ त व न हो,

मृ यु भीत से आतं कत मानव- य

व न हो !

हर मानव

भोगे जीवन

संदेह र हत,

हो हर पल उसका

मधु रत िसंिचत !

जीवन - धम

जीवन से खेले,

भरपूर जये जीवन हर सुख क बाँह

बाँह म ले ले !

(29) मन-वांिछत जब-तक

जीना चाहा हमने;

ख़ूब जये !

मान

वषा म भी

जलते रहे दये !

नह ं कसी क रह कृपा,

जूझे -

अपने बल पर

व ास कये !

(30) िस द

जजी वषु

नह ं करे गा

मृ यु- ती ा !

सोना

स चा खरा तपा य दे गा

अ न-पर म तोड़ो,

काल-च

ा ?

को मोड़ो !

जीवन से नाता जोड़ो ! जड़ता छोड़ो !

(31)

व थ

वयं को

शा त समझ कर जीते हो, िन



हँ सते और गाते हो, बे फ़

खाते और पीते हो; जीना

या इसे ह

हम कह ? अंत से जब

-ब-

अ यथा अनिभ या

ह,

ह उससे रह,

जीना इसे ह हम कह ?

(32) सा य

गाता हँू

वजय के गीत गाता हँू !

मृ यु पर

जीवन जगत क जीत गाता हँू !

अित

य व तु

जीवन- व फुरण क बेधड़क जयकार गाता हँू !



तान के आकाश म

जो गूज ँ ते हो प र द के

वर

व छ द र द के

अनुवाद हो मेर

जीवन-भावनाओं के ! सहचार हो मेर

जीवन-अचनाओं के !

(33) द शतअंगेज़ सावधान !

फहरा द है हमने

घर-घर, गाँव-गाँव, नगर-नगर जीवन क

नव-जीवन क

लाल पताकाएँ !

ब ती-ब ती, चौराह -सतराह पर, यहाँ-वहाँ -

ठाँव-ठाँव !

लहरा द हो

र -पताकाएँ !

अब नह ं चलेगा

आतंक , घातक, जन-भ ी, मद- वर-



मरण-रा स का

कोई भी दांव !

तन के भीतर घुस कर घात लगाता है,

अपने को अ व जत यम का दत ू बताता है, तन के भीतर

व फोटक-बा द बछाता है,

और ... अ श

थान से

िछप-िछप कर दरू थ-िनय दे ख

त-यं

चलाता है !

अब और कधर से आता है !

(34) मृ यु-दशन मृ यु : सुिन

त है जब;

यथ इस क़दर य होते हो

आशं कत,

आतं कत ! मृ यु से अरे कह दो

'जब चाहे आना; आये।' इस समयाविध तो आओ,

िमल कर नाच-गाएँ ! नाना वा

बजाएँ !

तोड़ मौन;

मृ यु क िच ता

करता है कौन ?

(35) आमं ण मृ यु

आना,

एक दन ज़ र आना ! और मुझे

अपने उड़नखटोले म बैठा कर ले जाना; दरू ... बहत ु दरू नरक म !

जससे मो

नरक-वािसय को

संग ठत कर सकूँ,

उ ह व ोह के िलए ललकार सकूँ,

ज़ दगी बदलने के िलए

तैयार कर सकूँ !

नह ं मानता मो कसी िच गु

को

कसी यमराज को;

चुनौती दं ग ू ा उ ह !

बस, ज़रा कूद तो जाऊँ नरक-कु ड म ! िमल जाऊँ

नरक-वािसय के

वशाल झु ड म !

(36) मृ यु-पर से मृ यु आओ

हम तैयार हो !

मत समझो

क लाचार हो ।

पूव-सूचना

दोगी नह ं

या ?

लोगी नह ं

या ?

आभार मेरा

आओगी -

बना आहट कये आ य दे ती !

नटखट बािलका क तरह ! ठ क है,

वीकार है !

मेर चहे ती,

तु हारा खेल यह वीकार है !

चुपचाप आओ, मृ यु आओ

हम तैयार हो !

अ छ तरह समझते हो

क जीवन-पु तका का उपसंहार हो तुम !

इसिलए

मेरे िलए

पूणता का

शुभ-समाचार हो तुम ! आओ,

मृ यु आओ,

हम तैयार हो !

ती ा म तु हार

सज-धज कर तैयार हो !

(37) िनवेदन

मृ यु

या हआ ु

य द तुम तु ह िम शरमाती

ी-िलंग हो,

बना सकता हँू !

य हो ?

आओ

हमजोली बनो ना ! हमख़ाना नह ं तो

हमसाया बनो ना ! चाँद के टु कड़े जैसी तुम ! सामने वाली खड़क से झाँकना,

ऑंकना ! और एक दन अचानक मुझे साथ ले चल पड़ना

ेत-लोक म !

य ह

नोकझ क म !

(38) मृ यु- विध व न दे खते

आती होगी मृ यु, तन से

ाण चले जाते ह गे

तभी।

व न दे खता रहता आदमी

दवंगत हो जाता होगा ! वह

या जाने ?

दिनया वाल से पूछो ु

ज ह ने

तन पर रख

ढक द है चादर ! या हआ ? ु

हआ ु

या ?

आ ख़र ?

(39) तुलना िशव म शव म

अ तर है मा

इकार का

(तीसरे वण वार का।) िशव

मंगलकार है

सुख झड़ता है !

शव

अिन -सूचक

केवल सड़ता है !

िशव के तीन ने

ह,

शव अंधा है !

कैसा गोरखधंधा है ?

(40) अ तर आपने याद कया आभार !

मीठा दद दया वीकार !

कतना अ त ु है संयोग क अ तम वदा

अरे ! ओ आये

ेम

थम !

ओझल होती राह पर, िलए चाह ◌े

जो कभी पूर होनी नह ,ं कभी वा तव

थूल छुअन से

सह-अनुभूत हमार

यह दरू होनी नह ं ! जाता हँू

याद िलए जाता हँू,

दद िलए जाता हँू !

(41) अ त समर

अब कहाँ है ? सफ़र

अब कहाँ है ? थम गया सब

बहता उछलता नद -जल तरल, जम गया सब नस म

िधर क तरह !

दद से

दे ह क ह डयाँ सब चटखती लगातार, अब कौन

इ ह दबाए

टू टती आ ख़र साँस तक ? अंधेरे-अंधेरे िघरे जब न कोई पास तक !

लहर अब कहाँ एक ठहराव है, ज़ दगी अब

िशिथल तार; बखराव है !

(42) आघात मोने ...

जी वत रखा तु ह अत: तु हार

जी वत गिलत लाश भी ढोऊंगा !

मूक ववश ढोऊंगा ! व ास का ख़ून कया तुमने,

अरमान को

जलती भ ठ म भून दया तुमने !

छल-छ

का

सफल अिभनय कर,

जीवन के हर पल म दद असह भर !

यारा नह ं बना,

ह यारा नह ं बना !

अरे ! नह ं छ ना जीने का हक़; यद प हआ बेपरदा शक, ु हर शक !

जी वत रखा जब

नरका न म दहंू गा बन संवेदनह न

सब सहंू गा !

पहले या फर सब को

िचर-िन ा म सोना है,

िम ट -िम ट होना है ! ओ बद क़ मत !

फर, कैसा रोना है ?

(43) स य ाण-पखे

उड़ जाएंग,े

उड़ जाएंगे ! ाण-पखे

उड़ जाएंगे ! काहे इतना जतन करे , शाम-सबेरे भजन करे , तेरे वश म

या है रे

म दर-म दर नमन करे , इक दन तन के पंजर से ाण-पखे

उड़ जाएंगे !

जो कभी न

वापस आएंगे !

उड़ जाएंगे ाण-पखे

उड़ जाएंगे !

(44) िन

ित

तय है क तू

एक दन

मृ यु क गोद म मौन

सो जायगा ! तय है क तू

एक दन

मृ यु के घोर अंिधयार म डू ब

खो जायगा ! तय है क तू

एक दन

याग कर



भ म म सात ्



हो जायगा !

(45) घोषणा दिनया वाल से ु कह दो अब महे

भटनागर सोता है !

िचर-िन ा म सोता है ! जो

होना होता है; वह होता है ! रे मानव ! तू

य रोता है ?

जीवन

जो अपना है,

उस पर भी

अपना अिधकार नह ,ं घर-धन

जो अपना है

उसम भी सचमुच

कोई सार नह ं ! उसके

तुम दावेदार नह ं !

बन कर

मौन वर

- वरागी

चल दे ते हो

छोड़ सभी,

चल दे ते हो

नये-पुराने नाते- र ते तोड़ सभी !

रे इस

ण का

अनुभव

सब को करना है, मृ यु अटल है फर

उससे

या डरना है ?

ओ, मृ यु अमर ! तुम समझो चाहे लाचार मुझे,

उपसंहार मुझे, वे छा से

करता हँू अंगीकार तु ह तन-मन से

वीकार तु ह !

सुखदायी

िम ट क शैया पर सोता हँू ! इस िम ट के

कण - कण म िमल कर अपनापन खोता हँू !

नव जीवन बोता हँू !

जैसे जीवन अपनाया वैसे

हे , मृ यु

तु ह भी अपनाता हँू ! जाता हँू,

दिनया से जाता हँू ! ु

सु दर घर, सु दर दिनया से ु

जाता हँू !

सदा ... सदा को जाता हँू !

(46) नमन अल वदा !

जग क बहारो अल वदा !

ओ, दमकते चाँद

झलिमलाते िसत िसतारो अल वदा !

पहाड़ो ... घा टयो ढालो ... कछारो अल वदा !

उफ़नती िस धु-धारो अल वदा !

फड़फड़ाती

मोह क पाँखो, छलछलाती

यार क ऑंखो अल वदा !

अटू टे बंध क बाँहो अधूर छूटती चाहो अल वदा ! अल वदा !

(47) अल वदा ! ार ध के मारे हए ु

हम,

ज़ दगी के खेल म हारे हए ु

हम,

हाय !

अपन से सताए,

दय पर चोट खाए,

िसर झुकाए मौन

जाते ह सदा को कभी भी

याद मत करना,

आज के दन भी सुनो,

मृित-द प मत रखना !

(48) तप वी मृ यु पर पाने वजय िस दाथ - साधक एक और चला !

जसने हर चरण

यम-वा हनी क

छल-कुचाल को दला ! कसी भी यूह म न फँसा,

मौत पर

अपना क ठन फंदा कसा ! गा रहा है जो

ज़ दगी के गीत

मृ यु-कगार पर, एक दन

पा जायगा

पद अमर

अपना बदल कर रखना सुर



इस धरोहर को

प !

बना कर

तूप !

(49) मृ यु-प रोना नह ,ं

द न-िनर ह होना नह ं ! आघात सहना,

संयिमत रहना। आड बर से मु

अ तम कम हो, यान म बस

पारलौ कक-पारमािथक मम हो ! मृ यूपरा त जगत व जीवन न जाना कसी ने

न दे खा कसी ने ....

िनधा रत यव थाएँ सम त कपोल-क पत हो,

सब अत कत ह।

अनुसरण उनका अवांिछत है ! अंधानुयायी रे नह ं बनना, ान के आलोक म

हो सं कार-पूत उपासना। आदे श यह

स म स ावना।

(50) कृ तकमा द:ु ख

य ?

शर र-धम क पूित पर द:ु ख

अंत

य ?

िच ह पूणता, सफल चरण द:ु ख

य ?

जीव क समाि एक

द:ु ख



य ?

शेष

जीवनी वृता त

अथ िस द दो,

नाम दो।

आ ख़र सलाम लो ! ---------------.

रचनाकार प रचय: उ कृ

का य-संवेदना सम वत

-भा षक क व :

ह द और अं ेज़ी। सन ् 1941 से का य-रचना आर भ। ' वशाल भारत', कोलकाता (माच 1944) म

थम क वता का

लगभग छह-वष क का य-रचना का प र े य

काशन। वतं ता-पूव भारत; शेष

वातं यो र।

सामा जक-राजनीितक-रा ीय चेतना-स प न रचनाकार। ल ध- ित वषय

गितवाद -जनवाद क व। अ य ेम,

मुख का य-

कृ ित, जीवन-दशन ।

दद क गहन अनुभूितय के समा तर जीवन और जगत के अद य जजी वषा एवं आशा-

ित आ थावान क व।

व ास के अ त ु -अक प

वर के सजक।

ज म : 26 जून 1926 / झाँसी (उ र- दे श)

िश ा : एम.ए. (1948), पी-एच.ड . (1957) नागपुर व

व ालय से।

काय : कमलाराजा क या

नातको र महा व ालय /



ह द भाषा एवं सा ह य।

जीवाजी व

व ालय, वािलयर से

ित : शोध-िनदशक

काय े

ोफ़ेसर-अ य

पद से सेवािनवृ ।

: च बल-अंचल, मालवांचल, बुंदेलखंड।

काशन % 'डा. मह भटनागर-सम ' छह खंड म

उपल ध।

कािशत का य-कृ ितयाँ 20

अनुवाद : क वताएँ अं ेज़ी, पु तकाकार

च, चेक एवं अिधकांश भारतीय भाषाओं म अनू दत व

कािशत।

वेबसाइट : ह द और अं ेज़ी क अनेक वेबसाइट पर का य-सा ह य

------------------.

य।

स पकZ : फ़ोन : 0751-4092908 110, बलव तनगर, गांधी रोड, वािलयर

474 002 (म. .) भारत

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