कहानी की कहानी
-मु मुंशी ूेमचंद
मनुंय जाित के िलए मनुंय ही सबसे िवकट प हे ली है . वह खुद अप नी समझ म# नहीं आता. िकसी न िकसी &प म# वह अप नी ही आलोचना िकया करता है , अप ने ही मन के रहःय खोला करता है . इसी आलोचना को, इस रहःयो+ाटन को और मनुंय ने जगत ् म# जो कुछ स0य और सु1दर प ाया है और प ा रहा है उसी को सािह0य कहते ह3 . और कहानी या आ4याियका सािह0य का एक ूधान अंग है . आज से नहीं, आिद काल से ही. हाँ, आजकल की आ4याियका म# समय की गित और &िच से बहत ु कुछ अंतर हो गया है . ूाचीन आ4याियका कुतूहल ूधान होती थी, या अ9या0मिवषयक. वत;मान आ4याियका सािह0य के दसरे अंग< की भांित मनोवै>ािनक िव?ेषण और मनोरहःय के उAाटन को ू अप ना 9येय समझती है . यह ःवीकार कर लेने म# हम# संकोच न होना चािहए िक उप 1यास< ही की तरह आ4याियका की कला भी हमने प िCम से ली है . मगर प ाँच सौ वष; प हले यूरोप भी इस कला से अनिभ> था. बड़े -बड़े उGचकोिट के दाश;िनक तथा ऐितहािसक उप 1यास िलखे जाते थे. लेिकन छोटी-छोटी कहािनय< की ओर िकसी का 9यान न जाता था. हाँ, कुछ प िरय< और भूत< की कहािनयाँ अलबKा ूचिलत थीं. िक1तु इसी एक शताLदी के अ1दर या उससे भी कम म# समिझए, छोटी कहािनय< ने सािह0य के और सभी अंग< प र िवजय ूाM कर ली है . कोई प िऽका ऐसी नहीं िजसम# कहािनय< की ूधानता न हो. यहाँ तक िक कई प िऽकाओं म# केवल कहािनयाँ ही दी जाती ह3 . कहािनय< के इस ूाबPय का मु4य कारण आजकल का जीवन-संमाम और समयाभाव है . अब वह जमाना नहीं रहा िक हम ‘बोःताने खयाल’ लेकर बैठ जाएं और सारे िदन उसी के कुँओं म# िवचरते रह# . अब तो हम जीवन संमाम म# इतने त1मय हो गये ह3 िक हम#
मनोरं जन के िलए समय ही नहीं िमलता. अगर कुछ मनोरं जन ःवाःSय के िलए अिनवाय; न होता, और हम िविTM हए ु िबना िन0य अठारह घंटे काम कर सकते तो शायद हम मनोरं जन का नाम भी न लेते. लेिकन ूकृ ित ने हम# िववश कर िदया है . हम चाहते ह3 िक थोड़े से थोड़े समय म# अिधक से अिधक मनोरं जन हो जाए. इसीिलए िसनेमा गृह< की सं4या िदन ब िदन बढ़ती जाती है . िजस उप 1यास को प ढ़ने म# महीन< लगते उसका आनंद हम दो घंट< म# उठा लेते ह3 . कहानी के िलए प 1िह-बीस िमनट ही काफी ह3 . अतएव हम कहानी ऐसी चाहते ह3 िक वह थोड़े से थोड़े शLद< म# कही जाए, उसम# एक वाZय, एक शLद भी अनावँयक न आने प ाए, उसका प हला ही वाZय मन को आकिष;त कर ले, और अ1त तक हम# मु\ध िकए रहे , और इसके साथ ही कुछ त0व भी ह<. त0वहीन कहानी से चाहे मनोरं जन भले हो जाए, मानिसक तृिM नहीं होती. यह सच है िक हम कहािनय< म# उप दे श नहीं चाहते, लेिकन िवचार< को उKेिजत करने के िलए, मन के सु1दर भाव< को जागृत करने के िलए कुछ न कुछ अवँय चाहते ह3 . वही कहानी सफल होती है , िजसम# इन दोन< म# से एक अवँय उप लLध हो. सबसे उKम कहानी वह होती है िजसका आधार िकसी मनोवै>ािनक स0य प र हो. साधु िप ता का अप ने कु]यसनी प ुऽ की दशा से दःखी होना मनोवै>ािनक स0य है . इस आवेग ु म# िप ता के मनोवेग< को िचिऽत करना और तदनुकूल उनके ]यवहार< को ूदिश;त करना कहानी को आकष;क बना सकता है . बुरा आदमी भी िबलकुल बुरा नहीं होता, उसम# कहीं न कहीं दे वता अवँय िछप ा होता है , यह मनोवै>ािनक स0य है . उस दे वता को खोल कर िदखा दे ना सफल आ4याियका लेखक का काम है . िवप िK प र िवप िK प ड़ने से मनुंय िकतना िदलेर हो जाता है . यहाँ तक िक वह बड़े बड़े संकट< का सामना करने के िलए ताल ठ<क कर तैयार हो जाता है . उसकी दवा; ु सना भाग जाती है , उसके _दय के िकसी गुM ःथान म# िछपे हए ु जौहर िनकल आते ह3 और हम# चिकत कर दे ते ह3 . यह एक मनो वै>ािनक स0य है . एक ही घटना या दघ; ु टना िभ1न-िभ1न ूकृ ित के मनुंय को िभ1निभ1न &प से ूभािवत करती है . हम कहानी म# इसकी सफलता के साथ िदखा सक# तो कहानी अवँय आकष;क होगी. िकसी समःया का समावेश कहानी को आकष;क बनाने का सबसे उKम साधन है . जीवन म# ऐसी समःयाएं िन0य ही उप िःथत होती रहती ह3 , और उनसे प ैदा होने वाला `1` आ4याियका से चमका दे ता है . स0यवादी िप ता को मालूम होता है िक उसके प ुऽ ने ह0या की है . वह उसे 1याय की वेदी प र बिलदान कर दे या अप ने जीवन िस+ांत< की ह0या कर डाले? िकतना भीषण `1` है . प Cाताप ऐसे `1`< का अखbड ॐोत है . एक भाई ने अप ने दसरे भाई की सdप िK छल कप ट से अप हरण कर ली ू
है . उसे िभTा मांगते दे ख कर Zया छली को जरा भी प Cाताप न होगा? अगर ऐसा न हो तो वह मनुंय नहीं है . उप 1यास< की भांित कहािनयाँ भी कुछ घटना ूधान होती ह3 . कुछ चिरऽ ूधान. चिरऽ ूधान कहानी का प द ऊँचा समझा जाता है , मगर कहानी म# बहत ु िवःतृत िव?ेषण की गुंजाइश नहीं होती. यहाँ हमारा उfे ँय संप ूण; मनुंय को िचिऽत करना नहीं, वरन ् उसके चिरऽ का एक अंग िदखाना है . यह प रमावँयक है िक हमारी कहानी से जो प िरणाम या त0व िनकले वह सव;मा1य हो, और उसम# कुछ बारीकी हो. यह एक साधारण िनयम है िक हम# उसी बात म# आन1द आता है िजससे हमारा कुछ सdब1ध हो. जुआ खेलने वाल< को जो उ1माद और उPलास होता है , वह दश;क का कदािप नहीं हो सकता. जब हमारे चिरऽ इतने सजीव और आकष;क होते ह3 िक प ाठक अप ने को उनके ःथान प र समझ लेता है तभी उसे कहानी म# आनंद ूाM होता है . अगर लेखक ने अप ने प ाऽ< के ूित प ाठक म# यह सहानुभूित नहीं उ0प1न कर दी तो वह अप ने उfे ँय म# असफल है . मगर यह समझना भूल होगी िक कहानी जीवन का यथाथ; िचऽ है . यथाथ; जीवन का िचऽ तो मनुंय ःवयं हो सकता है . कहानी कहानी है , यथाथ; नहीं हो सकती. जीवन म# बहधा हमारा अ1त उस समय हो जाता है , जब वह वांछनीय नहीं होता. लेिकन कथा ु ; ः हमारे सािह0य मनुंय का रचा हआ जगत है और प िरिमत होने के कारण सdप ूणत ु सामने आ जाता है और जहाँ वह हमारी 1याय-बुि+ या अनुभूित का अितबमण करता हआ प ाया जाता है , हम उसे दbड दे ने के िलए तैयार हो जाते ह3 . कथा म# अगर िकसी को ु भी िमलता है तो इसका कारण सुख ूाM होता है तो इसका कारण बताना होगा. दःख ु बताना होगा. यहाँ कोई चिरऽ मर नहीं सकता जब तक िक मानव बुि+ उसकी मौत न मांगे. ॐhा को जनता की अदालत म# अप नी हर एक कृ ित के िलए जवाब दे ना प ड़े गा. काल का रहःय ॅाि1त है , प र वह ॅाि1त िजस प र यथाथ; का आवरण प ड़ा हो.