Hindi - Bapu Ka Path

  • November 2019
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  • Words: 14,164
  • Pages: 38
पकाशक यशपाल जैन मंती ससता सािितय मणडल एन ९९ कनॉट सककस, नई ििलली ११०००१



तीसरी बार: १९८८ मूलय: र ५.००

• मुदक कंवलिकशेर एणड कमपनी नई ििलली-

मिातमा गाधी का जनम भारत मे िआ ु था, लेिकन उनका पेम अपन ि अपन अ

े ं









र ि ल







त किीसीिमतनिीरिा , सारी ििुनया को उसने

े सअननतपे य ा।अपनइ ‘बापू किलये । विमिजस केकारणिीवि मागक पर चले, वि िकसी एक वयिित के

िित का निी, समपूणक मानव-जाित के कलयाण का मागक था। इस पुसतक मे बापू के उसी मागक की सूकम झाकी ििखान क े





य त

ि

क य

ग यािै।पाथकनातथापेमऔरभिितकेभज



उनकी आतमा के खुराक थे ; ईसा का ‘िगिर पवचन’ उनकी मानयताओं का पेरक था; एकािश वरत उनके जीवन की आधार -िशला े थे और उनके रचनातमक कायककम भारत ओर उसके सवराजय की बुिनयाि को पका करन व ा ल े थ े।इनसबकोपाठकइसपुसतक मे पायगंे। पढन क े

साथ िी, बापू के जीवन के कुछ िशकापि पसंग और भारत के भावी सवरप के िवषय मे उनके िवचारी भी पाठको को इसमे ोिमलेगे।

बापू का पथ पेम का पथ था, नीित का पथ था, उस पर चल-कर िी िमारा, िमारे िेश का और िवशास का भला िो सकता िै। िमे िवशास िै िक इस पुसतक को पतयेक आतम शोधक और िेश -पेम पढेगा , िवशेषकर िमारी नई पीढी, िजस पर िेश का भिवषय िनभकर करता िै, इसे आवशय पढेगी और अपन ज





वन





िनमाणमेइससेपेरणापापतकरेगी।

-

वैषणव जन गाधीजी की पाथकनाएं

नरसी संकालन

पात:काल की पाथकना सायकाल की पाथकना िपय भजन

संकलन

िगिर पवचन एकािश वरत रचनातमक कायककम जीवन पसंग

अनु. डॉ. कािमल बुलके गाधीजी गाधीजी िविवध

“मेरी िबसतरा इसी पर” िौड से गमी अलपजीवी निी बनना सतय का साधक और अपमाि

मिािेव िेसाई मनु गाधी संकलन कािशनाथ ितवेिी

“यि किा का इसंाफ िै” मंती जनता के सेवक पेिसलका टुकडा

संकलन मनु गाधी मनु गाधी

“यिि मै ताना शाि बना” जयािा ताकत की इचछा ियो ं े अचछी नीि एक घट वि राषट भाषा सममेलन

पयारे लाल संकलन संकलन सीताराम सेकसिरया

ताज के सचचे िकिार तुमिारे भी उतन बेालक

आर. के. पभु संकलन

“आटा पीसना बितु अचछा िै” “तब तो नौकर तुमसे बढ गए”

काका कालेलकर शाित कुमार िवनुभाई शाि गाधीजी

सामूििक मृतयु का आननि गाधीजी के सपनो का भारत



वैशणव जन तो तेन क

ि





जे ; पीडपराईजाणरे

परिु :खे उपकार करे तोये,मन अिभमान न आणे रे। े

सकल लोकमा सिनु व

िं



िननिानकरे ; केनीरे

वाच काछ,मन िनशल राखे धन धन जनती तेनी रे। े समििृि न त ृ ष णापरसतीजे ; नमेातरे िजहा थकी असतय न बोले परधन नव झले िाथ रे। मोि माया वयापे निि जेने , िढ ृ वैरकगय जेना मनमा रे ; रामनामशूं ताली लागी, सकल तीरथ तेना तनमा रे।

,पटरिितछे काम वतोध िनवाया रे; भणे नरसैयो तेनु िरसन करता, कुल एकोतेर तायक रे। वणलोथभी न क



:

। ।

(:) :

।।

इस जगत मे जो कुछ भी जीवन िै , वि सब ईशर का बसाया िआ ु िै। इसिलए ईशर के नाम से मयाग करके तू यथापापत िकया कर। िकसी के धनकी वासना न कर।

: : १.

मै सवेरे अपन ह

-

-

े ि









-

:

।। ।।







ि



तिोनवेालेआ (सत् तमततवकासमरणकरताि , जो जान ूं।जोआतमासिचचिा

ं ो की अिनतम गित िै, जो चतुथक अवसथारप िै, जो जागित, सवप और िनदा, तीनो अवसथाओं को और सुखमय) िै, जो परमिस ं मिाभूतो से बनी िईू यि िेि मै निी िंू। िमेशा जानता िै और जो शुद बहा िै, विी मै िंू पच । ‘



-

।।2।।

२. जो मन ओर वाणी के िलए अगोचर िै , िजसकी कृपा से चारो तरि की वाणी पकट िोती िै , वेि भी िजसका वणकन े से ‘िेवो का िेव’, ‘विी यि निी, यि निी’ किकर िी कर सके िै , उस बहा का सवेरे उठकर मै भजन करता िंू। ऋिषयो न उ

‘अजनमा’, ‘पतनरिित और सबका आिि किा िै। : -



।।3।। ३. मै सवेरे उठकर उस सनाति पि को नमन करता िूं, जो अनधकार से परे िै, सूयक के समान िै , पूणक पुरषोतम नाम से पिचाना जाता िै और िजसके अननत सवरप के भीतर यि सारा जगत् उसी तरि ििखाई िेता िै साप।

-

!

!

-

-

!

,

िजस तरि रससी मे

-

!

;

-

।। ।। ४. समुदो के वसतवाली , पवकतो के सतनवाली , िवषणु की पती, िे पृथवीमाता अपन प

े ै

!

मै तुझे नमसकार करता िूं। मै तुझे

रसे ; छमेूतरेािइस ूं अपराध को कमा कर।

-

-

-

-

-

-



:

: ।।5।। े ५. जो कुनि , चनद यार बरफ के िार के समान गौरवपूणक िै , िजसन स फ ेि,वसतपिले िजसके िाथ िै वीणा के सुनिर िणड से सुशोिभत िै, जो सफेि कमल पर बैठी िै , बिा, िवषणु मिेश आिि सभी िेव िमेशा िजसकी सतुित करते िै , समसत अजान और जडता का जो नाश करनवेाली िै, वि िेवी सरसवती मेरी रका करे। ! ! - ! ! ।। ।। ६. बाके मुंिवाले , िवशाल शरीरवाले, करोडो सूयक की-सी कािनत वाले, िे िसिि िवनायक! मेरे सभी कमों मे मुझे िनिवकध करो। गुरर ब्हा, गुरर ि्वषणुर् , गुरर ि

् ेवोमिे:श।र

गर: साकात् परबिा; तसमै शीगुरवे नम: ।।७।। ७. गुर िी बहा िै, गुर िी िवषणु िै, गुर िी मिािेव िै; गुर साकात् परबहा िै। उन शीगुर को मै नमसकार करता िूं।

-

-

:

-



-

- -

-

-

।। ।।

८. संसार के भय का नाश करन वेाले , सब लोगो के एकमात सवामी शी िवषणु को मै नमसकार करता िूं। उनका आकार शानत िै, वे शेषनाग पर लेटे िै , वे आकश की तरि अिलपत िै और उनका वणक मेघ की तरि शयाम िै ,वे कलयाणकारी गातवाले िै, े कमल के समान िै। योगी उनिे धयान दारा िी जान सकते िै। सब समपित के सवामी िै , उनके नत

-

-



!

!

!

।। ।।

९. िाथ से या पैर से, वाणी से या शरीर से, कान से या आंख से मै जो भी अपराध करं, वि कमक से उतपन िो या केवल मानिसक िो , अमुक करन स े



ि

ो य

ा अमु ,क िे नकरनस करणाे-सागर ेिो , कलयाणकारी मिािेव! उन सबके िलए तू मुझे

कमा कर। (मेरे हिय मे और जीवन मे) तेरा िी जयजयकार िो। । १०. अपन ि

े लए



: ।। ।। ,मैराजयचािताि न सवगक कीूं इचछा करता िूं। मोक भी मै निी चािता। मै तो यिी चािता िूं िक

िु :ख से तपे िएु पािणयो की पीडा का नाश िो।

:; ; -

: :

; :

।। ।।

११. पजा का कलयाण िो, राजयकता लोग नयाय के मागक से पृथवी का पालन करे , गाय और बाहाणो का सिा भला िो और सब लोग सुखी बने।

-



।। ।।

(खेती और जान-पसार के िलए )

१२. जगत् के कारणरप , सत् सवरप िे परमेशर नमसकार। मुिित िेन व

े ालेिेअ -ततव दैत

!

!

तुझे नमसकार। सार िवशास के आधाररप िे चैतनय

तुझे नमसकार। िे शाशत और सवकवयापी बहा

-

!

-

!

तुझे

मुझे नमसकार।



।। ।।

१३.

े ोगयतू िी एक शरण लेन य

आशय का सथान िै। तू िी एक वरणीय-इचछा करन ल

का पालन करलेवाला िै और अपन ि े ी प क ा शस े संिार करनवेाला िै और तू िी एक िनशल और िनिवककलप िै।





ा य क िै।तूिीएकजगत्

े ाला और े ला िशतिै।तू,िीएकइससृ पालनव ििकोपै िाकरनव इसका

क ा

; :

;



: करन व

१४. तू भयो को भय ििखान व े ा ल ा त ू ि

; ।। ।। ं रो का भय ं कर िै। तू पािणयो की गित िै और पिवत वसतुओं को भी पिवत ,ालािैभयक



िै



। श े ष स था





का

एकमातिनयनतातूिै।तूपरसेभीपरिैऔररककोकाभीर

; : ।। ।। १५. िम तेरा समरण करते िै और तुझे भजते िै ; जगत् के साकीरप तुझको िम नमसकार करते िै। िम सत् सवरप एकमात िनधान, िनरालमब और इस भव-सागर के िलए नौकारप तेरी शरण लेते िै।

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। ।।

ं ा, सतय, असतेय, बहचायक, अपिरगि, शरीरशम, असवाि, अभय सब धमों के पित समानता , सविेशी और अििस असपृशता-िनवारण, इन गयारि वरतो का सेवन नमतापूवकक वरत के िनशय से करना चाििए।

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। । ।

; ।। शरण लेता िूं मै अललाि की, पापातमा शैतान से बचन क े

ेिलए।

पिले िी पिल नाम लेता िूं अललाि का, जो िनिायत रिमवाला मिेरबान िै। िर तरि की सतुित भगवान के िी योगय िै।



वि सारे िवश का पालने -पोसन व

ालाऔरउिरक , परमकृपालु , परमियालु िै। चुकौती के ििन का विी मािलक िै।



(पाप-पुणय का फल िेन क

े ा वि तउसीक ) ेअधीनिै। िम तुमिारी िी आराधना करते िै और तुमिारी िी मिि मागते िै। ले चलो िमको सीधी राि-उन लोगो की राि, िजन पर तुमिारा कृपा -पसाि उतरा िै।

उनके रासते निी , िजन तुमिारी अपसनता िईु िै या जो मागक भूले िएु िै। तथासतु

-। ।



,

; ।।

पिले िी पिल नाम लेता िंू अललाि का, जो िनिायत रिमवाला मेिरबान िै।

(ऐ पैगमबर !

लोग तुमिे खुिा का बेटा किते िै और तुमसे िाल खुिा का पूछते िै , तो तुम उनसे)

किो िक वि अललाि एक िै और अललाि बेिनयाज िै (उसे िकसी की भी गरज निी) न उसका कोई बेटा िै और न वि िकसी से पैिा िआ ु िै और न कोई उसकी बराबरी का िै। ।

।। े ी के रासते रिकर ऐ िोरमजि ! सवोतम िीन (धमक) के कलाम (शबि) और कामो के बारे मे मुझसे कि , तािक मै नक तेरी मििमा का गान करं। तू िजस तरि चािे उस तरि मुझे आगे चला। मेरी िजनिगी को ताजगी बखश और मुझे सवगक का सुख िे।

(

)

। ।

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:। :

:

।।

बहा, वरण, इनद, रद और मरत् ििवयश् सतोतो से िजसकी सतुित करते िै , सामवेि का गान करन व



ालेम,ुिनअं पिग, कम

, योगीजन समािध लगाकर परमातमा मे लीन मन दारा िजसके िशकन करते िै तथा िेवता और िैतय िजसकी मििमा का पार निी पाते , उस परमातमा को मै नमसकार करता िूं। और उपिनषि के साथ वेिमंतो से िजसकी सतुित करते िै

: ! :

।।1।।

अजुकन बोले:

1.

िे केशव

!

िसथतपज या समािधसथ के लकण िया िै

?

िसथतपज िकस तरि बोलता, बैठता और चलता िै?

: ! : शी भगवान बोले:

। ।। 3।।

2.

िे पाथक

!

जब मनुषय मन मे पैिा िोनवेाली सभी कामनाओं को छोड िेता िै और आतम दारा आतमा मे िी सतुि

रिता िै, तब वि िसथतपज किलाता िै।

:

-

-

- : 3. जो िु :ख से िु :खी निी िोता, सुख की चाि निी करता और जो राग,

:।

-

।। 3।। भय और ऋोोध से रिित िोता िै, वि

िसथरबुिद मुिन किलाता िै।

:

। ।।

4.

जो सब किी िनरासित रिकर शुभ या अशुभ पान प

े र

4।।

ं मनाता िै, उसकी बुिद िसथर िै। खु , शनिोतािै रज



:। ।। ।। ५.

िजस तरि कछुआ सब ओर से अपन अ

े ं



,ोकोिसकोडले उसी तरि तािैजब पुरष अपनी इिनदयो को उनके

िवषयो से अलग कर लेता िै, तब वि िसथरबुिि किाजाता िै।

:। ।। ।। ६. जब िेिधारी िनरािारी रिता िै, तब उसके िवषय ढीले पड जाते िै , पर रस निी छूटता ; रस तो परमातमा का साकातकार िोन प े र िीछूटतािै।

: : ७. िे कुनतीपुत खीच ले जाती िै।

!

जानी पुरष के यतशील रिन प









।। ।। ी



ि न दय



इ तनीमसतिोतीिैिकवेउसकेमनकोजबर

:। ।। ।। ८. इन सब इिनदयो को वश मे रखकर योगी को चाििए िक वि मुझमे तनमय िोकर िरे; अपनवेश मे िै उसकी बुिि िसथर िै।

:



: ९. िवषयो का िचनतन करन व िै और कामना से कोध पैि िोता िै।



।। ।।



ल े

पु

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क ो

:



न ि



षयोमेआसिितपैिािोतीिै।िफर

:।

१०.

ियोिक िजसकी इिनदया

।। ।।

कोध से मूढता पैिा िोती िै ,

मूढता से समृित-लोप िोता िै और समृित-लोप से बुिि नि िोती िै और िजसकी

बुिि नि िो जाती िै, वि मरे के बराबर िै। । ।। ।।

११. लेिकन िजस मनुषय का मन उसके वश मे िोता िै ओर िजसकी इिनदया राग -देष-रिित िोकर उसके अधीन रिती िै, वि मनुषय इिनदयो से काम लेता िआ ु भी िचत की पसनता पा जाता

- : -



:

।।

।।

१२. िचत की पसनता से उसके सब िु :ख िमअ जाते िै। और पसन मनुषय की बुिि तुरनत िी िसथर िो जाती िै। ।

:

:

।।

।।

१३. िजसमे समतव निी, उसमे िववेक निी, भिित निी और िजसमे भिित निी, उसे शािनत निी और जिा शािनत निी, विा सुख किा से आये

? ।

।। ।। १४. िजसका मन िवषयो मे भटकती िईु इिनदयो के पीछे िौडता िै

,

उसका मन उसकी बुिि को उसी तरि चािे जिा

खीच ले जाता िै, िजस तरि िवा नाव को पानी मे खीच ले जीती िै।

! ।।

:।

।।

१५. इसिलए, िे मिाबािो िसथर िो जाती िै।

!

िजसकी इिनदयो सब तरफ से िवषयो से िटकर उसके वश मे आ जाती िै , उसकी बुिद

-

,



:

।।

।।

१६. जब सब पाणी सोये िोते िै , तब संयमी पुरष जागता िै। जिा लोग जागते िोते िै , विा जानवान मुिन सोता िै।

:

। ।। ।।

१७. निियो से लगातार भरा जाते िएु भी समुद िजस तरि अचल रिता िै , उसी तरि िजस मनुषय के सारे काम -भोग उसके पास आते िै, विी शािनत पाता िै, कामनाओं वाला मनुषय निी।

:

:

: १८. सभी कामनाए छ ं

:।

।। ।।

ं ार-रिित िोकर िवचरता िै,विी शािनत पाता िै। डकरजोमनु , ममताषयइचछा और अिक



:



-

।। ।।

(भगवदगीता, २.५४-७२) १९. िे पाथक

!

इिनदय-जय करन व









क ी

य ि ी



मरते समय भी यिी िसथित बनी रिे , तो वि बह िनवाणयानी मोक पाता पाता िै।

(भगवदगीता, २.५४-७२)

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ा ह ी

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सथ ितिै।इसेपानपेरमनुषयमोिकेवशनि

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े रे, (“यिि तेरी पुकार सुनकर कोई न आये तो तू अकेला िी चल पड। अरे ओ अभागे ! यिि तुझसे कोई बात न क यिि सभी मुंि िफरा ले, सब (तेरी पुकार से) डर जायं, तो तू पाण खोलकर अपन म े न क ी व ा णीअकेलािीबोल।अरेओ अभागे ! यिि सभी लौट जायं, यिि किठन मागक पर चलते समय तेरी ओर कोई िफरकर भी न िेेखे , तो रासते के काटो को अपने खून से लथपथ चरणो दारा अकेला िी रौिता िआ ु आगे बढ। अरे ओ अभागे ! यिि तेरी मशाल न जले और आंधी और तूफान से ं केल भरी अनधेरी रात मे (तुझे िेखकर) सब लोग िरवाजा बनि कर ले, तो िफर अपन क े ो ज ल ाकरतू-अ पज र ािीहिय जला। यिि तेरी पुकार सुनकर कोई तेरे पास न आये तो िफर अकेला िी चलता चल , अकेला िी चलता चल। सतवनन सुनी अवाज। ˝

Lead , kindly light, amid the encircling gloom Lead Thou me on : The night is dark and I am far from home Lead Thou me on : Keep Thou my feet, I do not ask to see The distant scene; one step enough for me. I was not ever thus, nor prayed that Thou Shouldst lead me on; I loved tochoose and see my path; but now Lead Thou me on : I lonved the garish day, and spite of fears, Pride ruled my will: remember not past years So long Thy power hath blest me, sure it still Will lead me on, O’er moor and fen. O’er crag and torrent, till The night is gone; And with the morn, those angel faces smile, Which I have loved long since and lonst a while (िलऐ चलो, जयोितमकय, मुझको सघन ितिमर से िलये चलो। रात अनधेरी, गेि िरू िै, मुझे सिारा ििये चलो।। थामो ये मेरे डगमग पग, िरू िशृय चािे न लगे िगृमुझे अलं िै िेव , एक डग। े नस-“सिायिोमागा कभी न मैन ि मुझको िलए चलो।˝ िनज पथ आप खोजता-लखता ! पर तुम अब तो िलये चलो। िलये चलो, जयोितमकय, मुझको सघन ितिमर से िलये चलो। पयारा था मुझको जगमग ििन, िेय मुझे थे ये भय अनिगन , ं ार से गया सभी िछन। अिक मेरे िपछले जीवन को िपय, मन मे रखकर अब न छलो। िलये चलो, जयोितमकय, मुझको सघन ितिमर से िलये चलो। जबतक िै तेरा बल िसर पर , िूंगा मै गितशील िनरनतर

बीिड-िलिल, शैल पलय पर तबतक, जबतक रात अनधेरी, रमय उषा मे आ बिलो, िचरिपय खोये िेवित ू वे, मुसकाते िफर मुझे िमलो।

िलये चलो, जयोितमकय, मुझको सघन ितिमर से िलये चलो।

-अनु0 (ड 0) *

*

सुधीनद

*

When I survey the wondrous Cross On which the Prince of Glory died, My richest gain I count but loss, And pour contempt on all my pride. Forbid it,m Lord, that I should boast Save in the Cross of Chirst, my God; Forbid it, Lord, that I should boast Save in the Cross of Chist, my God; All the vain things that charm me most, I sacrifice them to His Blood. See from His Head, His Hands, His Feet, Sorrow and love flow mingling down; Did e’er such love and sorrow meet, Or thorns compose so rich a crown ? Were the whole realm of nature mine, That were an offering for too small; Love so amazing, so divine, De,ands my soul, my life, my all. To Chirst, Who won for sinners grace By bitter grief and anguish sore, Be paraise from all the ransomed race, For ever and for evermore. (करता िूं जब ििृिपात आशयकजनक सूली पर, तयागे िजस पर पाण मिा मििमामय पभु ने े ग ैमुझकोअपनीसबसेमूलयवानिनिध तब लगन ल त ी ि और निी कुछ , कवे ल घाटा , ं ार पर। और अवजा छा जाती िै मेरे सारे अिक रोको, मेरे सवामी, मुझको निी करं गुणगान िकसी का िजन िनससर वसतुओं मे रमता मेरा मन मन सबसे जयािा, उन सबको नयौछावर कर िं म ू ै उ नकेपावनलोिूपर। उनके मसतक , िाथो औ’ चरणो से

िमलाकर बिती िै धारा िु :ख और पेम की। कया िोता िै कभी पेम और िु :ख का ऐसा संगम, अथवा काटो से बनता िै इतना मुकुट मनोरम

?

मेरे िनसगक की सारी ििुनया िै िकतना नगणय सा अपकण , िवसमयकारी और भागवत पेम चािता मेरी आतमा, मेरा जीवन, मेरा सबकुछ। िकया पािपयो का उिार िजनिोने घोर यातना औ’ पीडा से, अिपकत िो उन पभु मसीिा के चरणो मे सिा-सिा के िलए समूची मुित जाित के साधुवाि।

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१.

ईसा िवशाल जनसमूि िेखकर पिाडी पर चढे और बैठ गये। उनके िशषय उनके पास आये और वि यि किते िएु

े गे: उनिे िशका िेन ल

“धनय िै वे, जो अपन क े ोिीन -िीन समझते िै, सवगक का राजय उनिी का िै। धनय िै वे, जो नम िै, उनिे पितजात िेश पापत िोगा। धनय िै वे, जो शोक करते िै, उनिे सानतवना िमलेगी। धनय िै वे, जो धािमककता के भूखे और पयासे िै , वे तृपत िकये जायेगे। धनय िै वे, जो ियालु िै, उन पर िया की जायेगी। धनय िै वे, िजनका हिय िनमकल िै वे ईशर के िशकन करेगे। धनय िै वे, जो मेल कराते िै, वे ईशर के पुत किलायेगे। धनय िै वे, जो धािमककता के कारण अनयाचार सिते िै , सवगक का राजय उनिी का िै। धनय िो तुम, जब लोग मेरे कारण तुमिारा अपमान करते िै , तुम पर अतयाचार करते और तरि-तरि के झूठे िोष लगाते े सीतरि िै। खुश िो और आननि मजाओ, सवगक मे तुमिे मिान् पुरसकार पापत िोगा। तुमिारे पिले के निबयो पर भी उनिोन इ अतयाचार िकया। तुम पृथवी के नमक िो। यिि नमक फीका पड जाये , तो वि िकससे नमकीन िकया जायेगा रि जाता। वि बािर फेका और मनुषयो के पैरो तले रौिा जाता िै।

?

वि िकसी काम का निी ेनीचे,निी

तुम संसार की जयोित िो। पिाड पर बसा िआ ु नगर िछप निी सकता। लोग िीपक जलाकर पैमान क े

े मकती बिलक िीवट पर रखते िै, जिा से वि घर के सब लोगो को पकाश िेता िै। उसी पकार तुमिारी जयोित मनुषयो के सामन च रिे, िजससे वे तुमिारे कामो को िेखकर तुमिारे सविगकक िपता की मििमा करे। यि न समझो िक मै संििता अथवा निबयो के लेखो को रद करन आ





े या , रदकरनन बिलक े पूिी रा करन आ ूं ।उनिे

ा ि

िूं। मै तुम लोगो से यि किता िूं-आकाश और पृथवी भले िी टल जाये,

िकनतु संििता की एक माता अथवा एक िबनि भ ु



ि







प ू

रािए-ु निीटले से- गा।इसीिलएजोउनछोट

छोटी आजाओं मे से एक को भी भगं करता और िस ू सो को ऐसा करना िसखाता िै, वि सवगक के राजय मे छोटा समझा जायेगा। जो उनका पालन करता और उनिे िसखाता िै,

वि सवगक के रजय मे बडा समझा जायेगा। मै तुम लोगो से किता िूं -यिि तुमिारी

धािमककता शािसतयो ओर फरीिसयो की धािमककता से गिरी निी िईु, तो तुम सवगक राजय मे पवेश निी करोगे। तुम लोगो न स

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िकपू -ितया वकजमत ोसेककरो। िागयािैयिि कोई ितया करे,

ठिराया जायेगा। परनतु मै तुमसे यि किता िूं- जो अपन भ जायेगा।

े ाईसे,किे“रे मूखक

!”

तो वि कचिरी मे िणड के योगय

तो वि मिासभा मे िणड के यागय ठिराया

जब तुम वेिी पर अपनी भेट चढा रिे िो और तुमिे विा याि आये िक मेरे भाई को मुझसे कोई िशकायत िै , तो अपनी े े ाईसेमेलकरनज े ाओऔरतबआकरअपनीभेटचढाओ। भेट विी वेिी के सामन छ ो ड कर प ि ल े अ प न भ े ु कचिरी जाते समय रासते मे िी अपन म द ई स े सम झ ौ त ा कर लो।किीऐसानिोिकवितुमिेनयाय िे,

नयायकता तुमिे पयािे के िवाले कर िे और पयािा तुमिे बनिीगृि मे डाल िे। मै तुमसे यि किता िूं -

चुका िोगे, तब-तक विा से निी िनकल पाओगे।

जबतक कोडी-कौडी न

े ु

तुम लोगो न स ििृि डालता िै, वि अपन म

न े न

ािैिककिागया म



। परनतु मै तुमसे किता िूं-जो बुरीइचछा से िकसी सती पर केसाथवयिभचारकरचुकािै।

उ स

यिि तुमिारी िाििनी आंख तुमिारे िलए पाप का कारण बनती िै ,

तो उसे िनकालकर फेक िो। अचछा यिी िै िक तुमिारे

अंगो मे से एक नि िो जाये, िकनतु तुमिारा सारा शरीर नरक मे न डाला जाये। और यिि िाििना िाथ तुमिारे िलए पाप का कारण बनता िै, तो उसे काटकर फेक िो। अचछा यिी िै िक तुमिारे अंगो मे से एक नि िो जोय, िकनतु तुमिारा सारा शरीर नरक मे न जाये। यि भी किा गया िै-जो अपनी पती का पिरतयाग करता िै, वि उसे तयागपत िे िे। परनतु मै तुमसे किता िूं-वयिभचार को छोड िकसी अनय कारण से जो अपनी पती का पिरतयाग करता िै, वि उससे वयिभचार कराता िै और जो पिरतयिता से िववाि करता िै, वि वयिभचार करता िै। तुम लोगो न य



िस ु

न ा

ैि-कपूवकजझूोसे ठीकशपथ िागयािै मत खाओ। पभु के सामन ख

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ु शपथपूरीकरो।परनतुमै

तुमसे किता िूं-शपथ कभी निी खानी चाििए, न तो सवगक की, कयोिक वि ईशर का िसंिासन िै, न पृथवी की, ियोिक वि उसका पाविास िै; नयेरसलाम की, ियोिक वि राजािधराज का नगर िै और न अपन ि सफेि या काला निी कर सकते। तुमिारी बात

े स, रकी ियोिक तुम इसका एक भी बाल

इतनी िो- िा की िा, निी की निी। जो इससे अिधक िै, वि बुराई से उतपन िोता िै। तुम लागो न स

े ु



िै-िककिागयािै आंख के बिले आंख , और िात के बिले िात। परनतु मै तुमसे किता िंू -िि ु का





सामना न करो। यिि कोई तुमिारे िाििन ग

लपरथपपडमारे , तो िस ू रा भी उसके सामन क



कुरता लेना चािता िै , उसे अपनी चािर भी ले लेन ि







औ र



ि



र ि



।जोमुकमालडकरतुमिारा

ि क ोईतु,मिेआ तोधाकोसबे उसके साथ गारमेकोस लेजाये

भर चले जाओ। जो तुमसे मागता िै, उसे िे िो और जो तुमसे उधार लेना चािता िै, उससे मुंि न मोडो। तुम लोगो न स

े ु



े ड ो िै-िककिागयािै अपन प



शतुओं से पेम करो और जो तुम पर अतयाचार करते िै,

स ी

स े प



मक

ोऔरअपनब - अपने े ैरीसेबैर।परनतुमैतूमसेकि



उनके िलए पाथकना करो। इससे तुम अपन स



व िगककिपताकीसतान

बनजाओगे; ियोिक वि भले और बुरे, िोनो पर अपना सूय उगाता तथा धमी ओर अधमी, िोनो पर पानी बरसाता िै। यिि तुम उनिी से पेम करते िो,

जो तुमसे पेम करते िै,

तो पुरसकार का िावा कैसे कर सकते िो ,

तो कौन-सा बडा काम करते िो?

इसिलए तुम पूणक बनो, जैसे तुमिारा सविगकक िपता पूणक िै। ेिलएअपनध -कायोे का मक पिशकन न करो,



सावधान रिो। लोगो का धयान आकिषकत करन क सविगकक िपता के पुरसकार से विंचत रि जाओगे।

निी तो तुम अपने

जब तुम िान िेते िो , तो इसका िढंढोरा मत िपटवाओ। ढोगी सभा-गृिो और गिलयो मे ऐसा िी िकया करते िै, िजससे लोग उनकी पशंसा करे। मै तुम लोगो से यि किता िूंिाथ यि न जानन प तुमिे पुरसकार िेगा।









ि

वे अपना पुरसकार पा चुके िै। जब तुम िान िेता िो ,

क त ु



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र ा

ि

तो तुमिारा बाया

ायािाथियाकररिािै , जो सबकुछ।तुिेख मिारािानगु ता िै , पतरिेऔरतुमिारािपता

ढोिगयो की तरि पाथकना निी करो। वे सभागृिो मे और चौको पर खडा िोकर पाथकना करना पसि करते िै , लोग उनिे िेखे। मै तुम लोगो से यि किता िूं-वेअपना पुरसकार पा चुके िै। जब तुम पाथकना करते िो , े प

दार बनि कर लो और एकानत मे अपन ि



तो अपन क

े मरेमेजाकर

सेप,ाथकजो नाकरो।तु एकानत मको िारािपता भी िेखता िै, तुमिे पुरसकार िेगा।



पाथकना करते समय गैर-यूििू ियो की तरि रट मत लगाओ। वे समझते िै िक लमबी लमबी पाथकनाए क सुनवाई िोती िै। उनके समानमत बनो ,

िजससे

ियोिक तुमिारी मागन स े





ि



े ि ी

े ेिमारी ं रनस तुमिारािपताजानतािै -िकन चीजो कीिकतुमिेिकन

जररत िै। तो इस पकार पाथकना िकया करो: िे सवगक मे िवराजमान िमोर िपता तेरा नाम पिवत माना जाये। तेरा राजय आये।

!

तेरी इचछा जैसे सवगक मे , वैसे पृथवी पर भी पूरी िो। आज िमारा पितििन का आिार िमे िे। िमारे अपराध कमा कर, जैसे िमन भ े



अ प



े परािधयोकोकमािकयािै। अ

और िमे परीका मे न डाल, बिलक बुराई से िमे बचा। यिि तुम िस ू रो के अपराध कमा करोगे ,

तो तुमिारा सविगकक िपता भी तुमिे कमा करेगा। परनतु यिि तुम िस ू रो को निी

कमा करोगो, तो तुमिारा िपता भी तुमिारे अपराध कमा निी करेगा। ढोिगयो की तरि मुिं उिास बनाकर उपवास निी करो। वे अपना मंि मिलन कर लेते िै , िजससे लोग यि समझे िक वे उपवास कर रिे िै। मै तुम लोगो से यि किता िूं-वे अपना पुरसकार पा चुके िै। जब तुम उपवास करते िो ,

तो अपन ि

तेल लगाओ ओर अपना मुिं धो लो, िजससे लोगो को निी, केवल तुमिारे िपता को , जो अिशृय िै, तुमिे पुरसकार िेगा।

े स रमे



पृथवी पर अपन ि े

मे अपन ि



ए पूंज,ीजमामतकरो जिा मोरचा लगता िै, कीडे खाते िै और चोर सेध लगाकर चुराते िै। सवगक



येप,ूंजजिा ीजमाकरो न तो मोरचा िै, विी तुमिारा हिय भी रिेगा।

आंख शारीर का िीपक िै। यिि तुमिारी आंख अचछी िै, तो तुमिारा सारा शरीर पकाशमान िोगा; िकनतु यिि तुमिारी आंख बीमार िै, तो तुमिारा सारा शरीर अनधकारमय िोगा। इसिलए जो जयोित तुममे िै, यिि विी अनधकार िै, तो यि िकतना घोर अनधकार िोगा। कोई भी िो सवािमयो की सेवा निी कर सकता। वि या तो एक से बैर और िस ू रे से पेम करेगा , या एक का आिर और िस ू रे का ितरसकार करेगा। तुम ईशर और धन -िोनो की सेवा निी कर सकते। े ीवन-िनवाि की, मै तुम लोगो से किता िूं,ख् िचनता मत करो-नअपन ज

िक िम िया खाये और न अपन श

े रीरकीख्

िक िम िया पिने। िया जीवन भोजन से बढकर निी? और िया शरीर कपडे से बढकर निी? आकश के िकयो को िेखो। वे न तो बोते िै,

न लुनते िै और न बखारो मे जमा करते िै। िफर भी तुमिारी सविगकक िपता उनिे िखलाता िै। िया तुम उनसे बढकर

निी िो? िचनता करन स े

े त

अपनी आयु घडी भर भी बढा सकता िै

?









स े

ौनअपनीआयु ? और कपडो घडीभरभीबढासकतािै की िचनता करन स े



और कपडो की िचनता ियो करते िो

?

े तुममेसेकौन

खेत के फूलो को िेखो । वि कैसे बढते िै

!

वे न तो शम करते िै और न कातते िै। िफर भी मै। तुमिे िवशास ििलाता िंू िक सुलेमान अपन पेूरे -ठाट-बाट मे उनमे से एक की भी बराबरी निी कर सकता था। रे अलप-िवशािसयो

!

खेत की घास आज भर िै और कल चूले मे झोक िी जायेगी। उसे भी यिि

ईशर इस पकार सजाता िै, तो वि तुमिे ियो निी पिनायेगा।? इसिलए यि किते िएु िचनता मत करो-िम िया खाये, िया िपये, िया पिने? इन सब चीजो की खोज मे गैर-यिूिी लगे रिते िै। तुमिारा सविगकक िपता जानता िै, िक तुमिे इनसब चीजो की जररत िै। तुम सबसे पिले ईशर के राजय और उसकी धािमककता की खोज मे लगे रिो और ये सब चीजे तुमिे यािी िमल जायेगी। कल की िचनता मत करो। कल अपनी िचनता सवय कर लेगा। आज की मुसीबत आज के िलए बित ु िै।

िोष मत लगाओ, िजससे तुम पर भी िोष न लगाया जाये; ियोिक िजस पकार तुम िोष लगाते िो, उसी पकार तुम पर

भी िोष लगाया जायेगा और िजस नाम से तुम नापते िो, उसी से तुमिारे िलए भी नापा जायेगा। जब तुमिे अपनी िी आंख के शितीर का पता निी, तो तुम अपन भ





ई क



ं? खकाितनकाियोिे जब तुमिारी िीखआंतेख िो मे शितीर िै, तो तुम अपन भ



े ाईसे

कैसे कि सकते िो , “मै तुमिारी आंख का ितनका िनकाल िं ू?” रे ढोगी ! पिले अपनी िी आंख के शितीर िनकाल लो। तभी े ेिलएअचछीतरििेखसकोगे। अपन भ े ा ई क ी आं ख क ा ितनकािनकालनक े पिवत वसतु कुतो को मत िो और अपन म ो त ी स ू अ र ो क े स ा म नमेतफेको।किीऐसानिोिकवेउनिेअ कुचल िे और पलटकर तुमिे फाड डाले। मागो और तुमिे ििया जायेगा; ढू ढ ं ो और तुमिे िमल जायेगा; खटखटाओ और तुमिारे िलए खोला जायगा; ियोिक जो मागता िै, उसे ििया जाता िै; जो ढू ढ ं ता िै, उसे िमल जाता िै। और जो खटखटाता िै, उसके िलए खोला जाता िै। मागो और तुमिे ििया जायेगा; ढू ढ ं ो और तुमिे िमल जायेगा; खटखटाओ और तुमिारे िलए खोला जायगा;

ियोिक जो मागता िै,

उसे ििया जाता िै; जो ढू ंढता िै; जो ढू ंढता िै, उसे िमल जाता िै और जो खटखटाता िै, उसके िलए खोल ििया जाता िै। यिि तुमिारा पुत तुमसे रोटी मागे, तो तुममे ऐसा कौन िै, जो उसे पतथर िेगा, अथवा मछली मागे, तो उसे साप िेगा? बुरे िोने े चचोको पर भी यिि तुम लोग अपन ब सज िी अचछी चीजे िेते िो, तो तुमिारा सविगकक िपता मागन व े

िस ू रो से अपन स













क ोअचछीचीजे ? ियोनिीिेगा

जै,सावयविारचािते तो तुम भी उनक िो े साथ वैसा िी िकया करो। यिी संििता और निबयो की

िशका िै। संकरे दार से पवेश करो। चौडा िै वि फाटक और िवसतृत िै वि मागक , जो िवनाश की ओर ले जाता िै। उस पर चलने वालो की संखया बडी िै। िकनतु संकरा िै वि दार और संकीणक िै वि मागक , उनकी संखया थोडी िै। झूठे निबयो से सावधान रिो। वे भेडो के भेस मे तुमिारे पास आते िै

जो जीवन की ओर ले जाता िै। जो उसे पाते िै ,

,

िकनतु वे भीतर से खूंखार भेिडया िै। उनके फलो

से तुम उनिे पिचान जाओगे। िया लोग कंटीली झािडयो से अंगूर या ऊंटकटारो से अंजीर तोडते िै ?इस तरि िर अचछा पेड अचछे पेड अचछे फल िेता िै और बुरा पेड बुरे फल िेता िै। अचछा पेड बुरे फल निी िेसकता और न बुरा पेड अचछे फल। जो पेड अचछा फल निी िेता, वि काटा और आग मे झोक ििया जाता िै इसिलए उनके फलो से तुम उनिे पिचान जाओगे। जो लोग मृझे “पभु

!

पभु

!

किकर पुकारते िै, उनमे से सब-के-सब सवगक के राजय मे पवेश निी करेगे। जो मेरे

सविगकक िपता की इचछा पूरी करता िै, विी सवगक के राजय मे पवेश करेगा। उस ििन बित ु -से लोग मुझसे किेगे, पभु

! िया िमने आपका नाम लेकर भिवषयवाणी निी की ? आपका नाम लेकर अपित ू ो को निी िनकाला ? आपका नाम लेकर बित ु -से चमतकार निी ििखाये ?” तब मै उनिे साफ-साफ बात िंगूा, “मै तुम लोगो को कभी निी जाना। रे कुकिमकयो ! मुझसे िरू िटो।” े ट जो मेरी ये बाते सुनता और उन पर चलता िै, वि उस समझार मनुषय के सिश िजसन च ानपरअपनाघर ृ िै , बनवाया था। पानी बरसा, निियो मे बाढ आयी, आंिधया चली और उस घर से टकरायी। तब भी वि घर निी ढिा, ियोिक उसकी नीव चटान पर डाली गयी थी।

जो मेरी ये बाते सुनता िै,

िकनतु उन पर निी चलता,

वि उस मूखक के सिश ृ िै ,

िजसन ब





ल ू

परअपनाघरबनवाया।पानी

बरसाया, निियो मे बाढ आयी, आंिधया चली और घर से टकरायी। वि घर ढि गया और उसका सवकनाश िो गया।” जब ईसा का वि उपिेश समापत िआ ु , तो लोग उनकी िशका पर बडे अचमभे मे पड गये ; ियोिक वि उनके पिंडतो की तरि निी, बिलक अिधकार के साथ िशका िेते थे।

0:

0

१.

-सतय िी परमेशर िै। सतय-आगि, सतय-िवचार, सतय-वाणी और सतय-कमक ये सब उसके अंग िै। जिा सतय िै, विा शुद जान िै। जिा शुि जान िै , विा आननि िी िो सकता िै। २. -सतय िी एक परमेशर िै। उसके साकातकार का एक िी मागक , एक िी साधन, अििसंा िै। बगैर ं ा के सतय की खोज असमभव िै। अििस ३.

-बहचयक का अथक िै, बह की-सतय की–खोज मे चया, अथात् उससे समबनध रखन वेाला आचार। इस मूल अथक मे से सवेिनदय-संयम का िवशेष अथक िनकलता िै। केवल जननेिदय -संयम के अधूरे अथक को तो िमे भूल जाना चाििए। ४.

-मनुषय जबतक जीभ के रसो को न जीते तबतक बहाचयक का पालन अित किठन िै। भोजन केवल

शरीर-पोषण के िलए िो , सवाि या भोग के िलए निी। ५.

(

)-िसूरे की चीज को उसकी इजाजत के िबना लेना तो चोरी िै िी , लेिकन मनुषय अपनी कम-से-कम जररत के अलावा जो कुछ लेता या संगि करता िै , वि भी चोरी िी िै। ६. -सचचे सुधार की िनशानी पिरगि-वृिद निी, बिलक िवचार और इचछापूवकक पिरगि कम करना उसकी िनशानी िै। जयो-जयो पिरगि कम िोता िै, सुख और सचचा सतोष बढता िै, सेवा-शिित बढती िै। ७. -जो सतयपरायण रिना चािे, वि न तो जात-िबरािरी से डरे, न सरकार से डरे, न चोर से डरे, न बीमारी या मौत से डरे, न िकसी के बुरा मानन स े ेडरे। ९. -िनवारण-छुआछू त ििनिू -धमक का अंग निी िै; इतनािी निी, बिलक उसमे घुसी िईु सडन िै, विम िै, पाप िै और उसका िनवारण करना पतयेक ििनि क ू ाधमक , कतक िै वय िै। ९. -शम-िजनका शरीर काम सकता िै, उन सती-पुरषो को अपना रोजमरा का सभी काम, जो खुि करने लायक िो, खुि िी कर लेना चाििए और िबना कारण िस ू रो से सेवा न लेनी चाििए। जो खुि मेिनत न करे, उनिे खान क े

ा ि

किीियािै ?

१०.

-समभाव-िजतनी इजजत िम अपन ध े म ,क कीकरते उतनी िी िै इजजत िमे िस ू रो के धमक की करनी े ीकोिशशिीिो चाििए। जिा वृित िै, विा एक-िस े लानक ू रे के धमक का िवरोध िो िी निी सकता , न परधमी को अपन ध े म क म सकती िै, बिलक िमेशा पाथकना यिी की जानी चाििए िक सब धमों मे पाये जानवेाले िोष िरू िो। े ११. -अपन आ स प ा स र ि नवेालोकीसे -धमक विैामे।ओजोतपोतिोजानासविे िनकटवालो कीशसेी वा छोडकर िरूवलो की सेवा करन क े ोिौडतािै , वि सविेशी का भगं करता िै।

ं ातमक साधनो दारा पूणक सवराजय की रचना किा जा सकता िै।...उसके रजचातमक कायककम को सतय और अििस एक-एक अंग पर िवचार करे। १.

-एकता का मतलब िसफक राजनिैतक एकता निी िै...सचचे मानी तो िै वि ििली िोसती, जो तोडे े न टूटे। इसतरि की एकता पैिा करन क े ि ल ए स ब स े पिलीजररतइसबातकीिै , वे िकसी भी धमक िककागे के माननव सजने ाले िो, अपन क े ोििनिू , मुसलमान, ईसाई, पारसी, यिूिी सभी कौमो का नुमाइिंा समझे।

२. उसका अपना काम िै। ३.

-

-िनवारण-ििरजनो के मामले मे तो िरेक ििनि क

-अफीम,





शराब, वगैरि चीजो के वयसन मे फंसे िएु अपन क



ि स

म झनाचाििएिकििरजनोकाकाम

रोडोभाई -बिनो के भिवषय को सरकार की



ं े मे फंसे िएु लोगो को छुडान क े मेिरबानी या मरजी पर झूलता निी छोड सकते।...इन वयसनो के पज



उपायिनकालनिेोगे।

४.

-खािी का मतलब िै िेश के सभी लोगो की आिथकक सवततंता और समानता का आरमभ। खािी को अपनाना चाििए। खािी मे जो चीजे समाई िईु िै, उन सबके साथ खािी को अपनाना चाििए। खािी का एक मतलब यि िै िक िममे से िरेक को समपूणक सविेशी की भावना बढानी और िटकानी चाििए। ५.

-िाथ सेपीसना,

िाथ से कुटना और पछोरना ,

साबुन बनाना,

कागज बनाना,

ं ो के िबना िियासलाई बनाना, चमडा कमाना, तेल पेरना और इस तरि के िस ू रे सामािजक जीवन के िलए जररी और मितव के धध गावो की आिथकक रचना समपूणक निी िो सकती। ६. िेखन क े

-

िेश मे जगि-जगि सुिावन औ

े ोटे के बिले िमे घूरे -जैसे गाव रमनभावनछ -छोटे गावो



ोिमलते ...ििमारा ै। फजक िो जाता िै िक गावो को सब तरि से सफाई के नमून बेनावे।

७.

-बुिनयािी तालीम ििनिसुतान के तमाम बचचो को ,

चािे वे गावो के रिनवेाले िो या शिरो

के; ििनिसुतान के सभी शेष ततवो के साथ जोड िेती िै। यि तालीम बालक के समन और शरीर िोनो का िवकास करती िै। ८.

-

-बडी उम के िेशवािसयो को जबानीयानी सीधी बातचीत दारा सचची राजैितक िशका िी

जाय। ९. -सती को अपना िमत या साथी मानन क े े ब ि ल े प ु कागेसवालो का यि खास कतकवय िै िक वे ििनिसुतान की िसतयो को इस िगरी िईु िालत से िाथ पकडकर ऊपर उठावे।

े पनक े ोउसकासवामीमान रषनअ

१०.

-िमारे िेश की िसूरो िेशो से बढी-चढी मृतयु-संखया का जयािातर कारण िनशय िी वि गरीबी िै, जो िेशवािसयो के शरीरो को कुरेि -कर खा रिी िै; लेिकन अगर उनको तनिर ु सती के िनयमो की ठीक ठीक तालीम िी जाय तो उसमे बित ु कमी की जा सकती िै। े जब बीमार पडे तब अचछे िोन क े ि

ल ए

अप



े ाधनोकीमायािाकेअनुसारपाकृितकिचिकतसाकर।



११.

-ििनिसुतान की मिान भाषाओं की अवगणना की वजि से ििनिसुतान को जो बेिि नुिसान िआ ु िै , उसका कोई अनिाजा िम निी कर सकते।....जब-तक जन-साधारण को अपनी बोली मे लडाई के िर पिलू व किम को अचछी तरि से निी समझाया जाता , तबतक उनसे यि उममीि कैसे की जा सकती िै िक वे उसमे िाथ बटावे ? १२. -समूचे ििनिसुतान के साथ वयविार करन क े े िलएिमकोभारतीय -भाषाओं मे से एक ऐसी भाषा की जररत िै, िजसे आज जयािा-से-जयािा तािाि मे लोग जानते और समझते िो , बाकी के लोग िजसे झट से सीख सके , और वि भाषा ििनिी (ििनिसुतानी) िी िो सकती िै। १३.

-आिथकक समानता के िलए काम करन क



िमेशा के िलए िमटा िेना। ....अगर धनवान लोग अपन ध े न क ो औ छोडकर और सबके कलयाण के िलए सबो के साथ िमलकर बरतन क े ो त ै य ा और खूंखार काित िएु िबना निी रिेगी। १४.

-सवराजय की इमारत एक जबरिसत चीज िै,

िजसे बनान म े

ा म





बि



पूंजीऔरमजिरूोकेबीचझगडोको

उ स केकारणिमलनव -खुशी सेे ालीसताकोखुिराजी ं न ि ो ग ेतोयितयसमिझयेिकिमारेमुलकमेििस

र र े





स ी

वालो मे िकसानो की तािािसबसे बडी िै। सच तो यि िै िक सवराजय की इमारत बनानवेालो मे जयािातर (करीब ८० फीसिी)

करोडिाथोकाकामिै।इनबनाने वे

िी लोग िै; इसिलए असल मे िकसान िी कागेस िै, ऐसी िालत पैिा िोनी चाििए। १५.

-अिमिाबाि के मजिरू -संघ का नमूना समूचे ििनिसुतान के िलए अनुकरणीय िै , ियोिक वि शुि अििसंा की बुिनयाि पर खडा िै।....मेरा बस चले तो ििनिसुतान की सब मजिरू-संसथाओ का संचालन अिमिाबाि के मजूिर -संघ की नीित पर करं। १६.

-आििवािसयो की सेवा भी रचनातमक कायककम का एक अंग िै।....समूचे ििनिसुतान मे आििवािसयो

की आबािी िो करोड िै।...उनके िलए कई सेवक काम रिे िै। िफर भी उनकी संखया काफी निी िै। १७.

-यि एक बिनाम शबि िै। िफर भी िममे जो सबसे शेष या बढे चढे िै। , उनिी की तरि कुष रोगी भी िमारे समाज के अंग िै। पर िकीकत यि िै िक िजन कुष -रोिगयो की सार-संभाल की सबसे जयािा जररत िै, उनिी की िमारे यिा जान-बूझकर उपेका की जाती िै। १८. -िवदाथी भिवषय की आशा िै। इनिी नौजवान िसतयो और पुरषो मे से तो राषट के भावी नतेा े ा तैयार िोन व लेिै।िवदािथक -वाली योकोिलबनिी राजनीित मे कभी शािमल निी िोना चाििए। उनिे राजनिैतक िडताले निी करनी

े े िलए वे िमेशा खािी का चाििए। सब िवदािथकयो को सेवा की खाितर शासतीय तरीके से कातना चाििए। अपन पेिनने -ओढन क इसतेमाल करे। १९. -गोरका मुझे बितु िपय िै। मुझे कोई पूछे िक ििनि ध ू मकक-ाबडे से-बडा बाह सवरप िया िै, तो मै गोरका बताऊंगा। मुझे वषों से िीख रिा िै िक िम इस धमक को भूल गये िै। ििुनया मे ऐसा कोई िेश मैन क े ि ी निीिेखाजिागाय के वश ं की ििनिसुतान जैसी लावािरस िालत िो।





यरविा-जेल मे रात को जब बािरश आती तब खाट उठाकर बरामिे मे लाना भारी पडता था। इसिलए गाधीजी न मेेजर से िलकी खाट मागी। े िा, उसन क

“नािरयल की रससी की चारपाई िै। िया उससे काम चलेगा? आप किे तो नािरयल की रससी िनकालकर उसे िनवाड से बुन ििया जाय।˝ शाम को खाट आई। गाधीजी बोले, “यि ठीक िै। इस पर िनवाड चढान क े ी क ो ई जररतनिी।मेरािबसतराआज इसी पर करना।˝ े िा, “िया किा? इस पर भी सोते िै ? गदे मे नािरयल के बाल िया कम िै , जो नािरयल की रससी पर सोना िै वललभभाई न क ! बस चारो कोनो पर नािरयल बाधना बाकी िै। ऐसी बिशगुन खाट से काम न चलेगा। इसमे कल िनवाड भरवा िंगूा।˝ गाधीजी बोले, “निी, वललभभाई, िनवाड मे धूल पर भर जाती िै। वि धूलती निी। इस पर पानी उंडेलना तो साफ। ˝ े तरििया वललभभाई न उ , “िनवाड धोबी को िो तो िसूरे ििन धुलकर आई।˝ गाधीजी बोले, “मगर यि रससी िनकालनी निी पडती, यिी धुल जाती िै।˝ े ी गाधीजी का समथकन िकया। किा, “यि तो गमक पानी से धोई जा सकती िै और इसमे खटमल भी निी मिािेवभाई नभ रिते।˝ वललभभाई बोले, “चलो, अब तुमन भ े ी र ा य ि े िी।इसखाटमे -खटमल तइतन ोिपससूि े ो त ेिैिकपू˝छोमत। े िा, “मै तो इसी पर साऊंगा। मुझे याि िै, बचपन मे िमारे यिा ऐसी िो खोटे काम मे आती थी। जब गाधीजी न क अिरक का अचार डालना िोता तो अिरक को चाकू से साफ न करके मेरी मा इस खाट पर िघस लेती थी। इससे सब िछलके साफ िो जाते थे।” वललभभाई बोले,

“इसयी तरि इन मुटी भर िििडयो पर से चमडी उधड जायेगी। इसीिलए किता िंू िक िनवाड लगवा

लीिजये।” े तरििया गाधीजी न उ , “िनवाड तो ‘बूढी घोडी लाल लगाम’ जैसी िो जायगी। इस खाट पर िनवाड शोभा निी िेगी। इस पर तो नािरयल की रससी िी अचछी लगेगी। पानी डालते िी वि िबलकुल धुल जायगी , जैसे कपडे धुल जाते िै , और वि कभी सडेगी निी यि िकतना आराम िै !” े िा, “खैर, मेरा किना न माने तो आपकी मजी।” वललभभाई न क े और गाधीजी न उ स ी खाटकापयोगिकया।

-

उस ििन गाधीजी शीमती अरणा आसफअली के साथ वाइसराय से िमलन ग भगंीबसती मे आ पिंच ु े। एक कोन म े





य े

ु थेिकपिंडतजवािरलालनिेर ग े।मनु,सेबोले “तुमिे रोज

ि

े ीरससीरखीिई क , उसे उठाकर कूिन ल ु थी।बस

ि न









सवेरे सौ बार कूिना चाििए और ऊपर से िध ू पी लेना चाििए। इससे तुम पिलवान बन जाओगी। िफर बुखार कैसे आ सकता िै और तुमिारी जैसी जवान लडकी को जुकाम ियो िो ये बाते िो िी रिी थी िक गाधीजी न क कूिन क े



?

!” े म र



मे

पै

रखा।जवािरलालजीक , “िया िोनोिे ाथमेरससीिेखकरबोले



ि ोडलगारिे ? ” िो

ं पडे। िस ं ते -िस ं ते जवािरलालजी बोले, सब लोग िस

“इस लडकी को रससी बूिन क





ल ा

भ बतारिाथा।विइस

े ाििए।” ं इसे आसन भी करन च पकार करे तो जुकाम और बुखार, जो इसे बार-बार परेशान करते िै , भाग जाय। गाधी जी न उ सिी थी,

े तरििया , ‘‘िबलकुल सच बात िै। जब मै इगंलैड मे था तो मेरे पास बितु गमक कपडे निी थे। विा बडी सखत

िफर भी निाये िबना अचछा निी लगता था। इसिलए मै खूब िौडता था,

िजससे शरीर मे गमी आ जाती थी। मै विा

अपना सवासथय िबिढया रख सका, तो काम निी चलेगा।’’

तो केवल कसरत के पाताप से िी। लोगो का यि िवचार था िक यिि मै मासािारी निी बनूंगा

,

एक बार सुपिरिचत जैन िवदान पिंडत सुखलालजी को आशम मे भोजन के िलए आमिनतत िकया गया। पाथकना के बाि े

गाधीजी न स



क ो



ो े

यिा तो सिा िी फीकापन रिता िै। आपन क

प रोसा।गे , ि“ंक ीरोिटयाऔरसागपरोसकरविबोले कुछ भी निी िै। िया यि सब भायेगा ? ु मीठा









फीकाखानाखायािै ?˝

े स ं करकिा गाधीजी न ि , “तब तो तुमिे यि आशम सुिा जायगा।˝ े े उस ििन एकािशी थी। गाधीजी नािरयल का िध ू और खजूर आिि लेकर िी बैठे थे िक एक सजजन उनसे िमलन क े नसे,क“िाजरा बैिठए, मै भोजन करके अभी आता िूं। ”

िलए आ पिंच ु े। गाधीजी न उ

लेिकन गाधीजी का भोजन िया पाच-िस िमनट मे समापत िोनवेाला था? वि सजजन बैठे-बैठे ऊब गये और बडी नमता से बोले,

“आपको तो बितु समय लग गया।˝ ं पडे। किा, “अभी एक घट ं ा किा िआ गाधीजी िस ु िै?” वि सजजन बोले, “ऐसे फलािार और खजूर भर खान म े े ए कघ ट ं !” ालगानातोआशयककीबातिै े तरििया गाधीजी न उ , “इसमे अशयक कैसा ! मुझे कोई तुम जैसा अलपजीवी थोडे िी बनना िै। ˝ े खानस े ?” वि सजजन बोले, “तो िया आप इतन ध े ी र ेिीघकजीवीबनजायगंे े तरििया गाधीजी न उ , “जरर, मुझे तो पूरे सौ वषक जीना िै और उसका उपाय यिी िै। ” -

एक ििन गाधीजी सूत कातन क े







ि

े पनसे-टेटाइिपसट बािर जाना पडा। जाते समय उनिोन अ नो शी सुबैया से किा, और पाथकना के समय से पिले मुझे बता िेना। ” सुबैया न उ



उ स े ल प





े ारिेथेिकअचानकिकसीआवश प रलपेटनज

“सूत लपेटे पर उतार लेना ,

तार िगन लेना

े तरििया , “जीिा, मै कर लूंगा।”

गाधीजी चले गये। साधया-पाथकना के समय आशमवािसयो की िािजरी ली जाती थी। पतयेक उपिसथत वयिित अपना नाम बोले जान प े र ॐ क ि त ा थ ा । उ सीसमयउसनि , उनकी संे कतनस खया ेभीूतबता केतारकाते िेता था। िै उसी सूची मे सबसे पिला नाम गाधीजी का था। उस ििन भी िनयमानुसार सब लोग पाथकना के िलए इकटे िएु। गाधीजी का नाम पुकारा गया। उनिोने

उतर मे किा, “ॐ”। लेिकन सूत के तारो की संखया तो उनिे मालूम िी निी थी। उनिोन स भी चुप रिे।









य ा

ीओरिेखा।सुबैयाचुपरिगये।गाधीज



िािजरी समापत िो गई। पाथकना भी समापत िो गई। पाथकना के बाि गाधीजी आशमवािसयो से कुछ बातचीत िकया करते थे उस ििन गमभीर थे, आरमभ िकया,

जैसे उनके अनतर मे गिरी वेिना िो ,

“मैन आ

गया। सोचा था,





भ ा

सुबैया मेरा काम कर लेगे,

,

लेिकन

जैसे मन मे मनथन चल रिा िो। उनिोन वेयथा-भरे सवर मे किना

ई स ु









स े

क ि





ा ि

कमेरासूतउतारलेनाऔरमुझेतारो

लेिकन यि मेरी भूल थी। मुझे अपना काम आप करना चाििए था। मै सूत कात

चुका था,

तभी एक जररी काम सामन आ े

करना था,

वि निी िकया। भाई सुबैया का इसमे कोई िोष निी िोष मेरा िै। मैन ि

गया और मै सुबैया से सूत उतारन क े

ो े

क य

ि



क र अ



ािरचलागया।जोकाममुझेपिले

पनाकामउनक ? मुझेभसेरोसेछोडा

यि पमाि ियो िआ ू रे के भरोसे निी छोडना चाििए। ु ? सतय के साधक को ऐसे पमाि से बचना चाििए। उसे अपना काम िकसी िस आज की इस भूल से मैन ए े क ब ि त ु बड ा प ा ठ सीखािै”।अबमैिफरऐसीभूलकभीनिीकरंगा।

-



” उस वषक लािौर मे कागेस-अिधवेशन के साथ -साथ चखासंघ की ओर से खािी पिशकनी भी िोन व

िचत आिि तैयार करन क े ं आ जाय।

ा भ



र श



र ा

व ज

े ालीथी , उसके िलए

ीभाईपटे , जोलपरथा।उनिे अनपढ जनता ऐसेकीसमझ िचतोकीआवशयताथी मे भी

आशम मे ऐसा कोई िचतकार निी था। नगर के एक िचतकार दारा िी वे िचत तैयार कराये गए। वे बारि िचत थे। उसका मूलय िआ ु १२० रपये। गाधीजी उन िचतो को िेखकर बित ु पसन िएु, पूछा, “िकतना खचक िआ ु ?” े तरििया , “१२० रपये।”

शी पटेल न उ इतन प

यि सुनकर गाधीजी बित ु िु :खी िएु। बोले, े ै स े ि े सक

िै। अगर िमन ख े ि

िकतन ि



ा ि



प ि

“ये िचत तो िकसी धनवान के घर को सुशोिभत करन ल त े



ि



। ि







ि

े ि

नीक-ेिलएिकसीसे न-कोई ऐसा किािोतातोकोई िमल िी जाता।” िफर सिसा पूछा,



ा यकिै।वेिी र दनारायणकेपितिनिधिै।िमारेिलएइ

“ये िचत

न ?” ोमेतैयारिएुिै

शी पटेल न उ

े तरििया , “लगभग बारि ििन लगे िै।”

वि बोले,

े िाले “तो मेिनताना िस रपये रोज पडा। आज ििनिसुतान मे िकतन ल े ो ग ो क ोिसरपये ! कातनरोजिमलते व ै और े क ? बनजारे को िया िमलता िै ? यि तुमन ि सीसे इस पूछगरीब ािै मुलक मे मजिरूी उतनी िी िनिशत करनी चाििए, िजससे कोई भूखो न मरे !” े नसे, पूछ“ा ियो रामजी, तुम रोज िकतन ग े उस समय बुनकर शी रामजीभाई आ गये। गाधीजी न उ ज बुनतेिोओर उससे तुमिे िया िमलता िै?” े तरििया रामजीभाई न उ , “बापू, लगातार काम करे तब मिीन म े े ब डीकिठनतासे -बीस रपये पनदििमल जाते िै।” े ेजयािानिी शी पटेल की ओर िेखकर गाधीजी बोले , “िेखो, सारा ििन काम करन प े र भ ी र ा म जीभाईकोआठआनस िमलते और एक िचतकार को िस रपये िमल जाते िै ! यि किा का इस ं ाफ िै ? मेरा बस चले तो िर तरि के मजिरू के िलए एक ं ा किा का इस ं ा िनिशत कर िं। आना घट ं ाफ िै? मेरा बस चले तो िर तरि के मजिरू के िलए एक आना घट ू वि चािे वकील िो या डािटर या पुिलस अिधकारी या सरकारी अफसर, कोई भी ियो न िो ! इस िेश मे िर वयािित को आठ घणटे काम करना चाििए।”

-

िेश के िवभाजन से कुछ ििन पूवक गाधीजी ििलली से कलकता जा रिे थे। मागक मे पटना सटेशन पर मंितमंडल के सभी े मंती उनसे िमलन आ य े । ज न त ा क ी भ ी अ प ा र भ ीडथी।खूबचनिाइकटािकया।त के रवाना िोन क े कैसे चलाये

!

ा स

यआगया।परनतु -मासटर सनौकर टेशन आिमी ठिरे। मंितगण गाधीजी से बातो मे वयसत िो, तो वि गाडी



सािस करके वि गाधीजी के पास आये। बोले

, “रेल के चलन क

ा स मयतोिोगया , परनतु आपको जररत िो



तो रोकूं। िजस समय किे, उस समय रवाना करं?” कोई मनती इस पश का उतर िे, उससे पिले िी गाधी जी बोल उठे ,

े य े

निी पाता। आपको तालीम िी ऐसी िमली िै। लेिकन आप जैसे यिा पूछन आ जाय त ं ो मुझसे िमलन न े

आप क ि

ो ी

य िा भ ी आये।आपकाफजकिैिक

न आन

“आप यि पूछन आ



वै

ि ै





,येिइसमे ै मै आपका िोष सेियािरिडबबे ? यििमेपविा ूछनज ने ायगंे

ििएथा।मै , परनतु कोईिािकतनिीि ये सता के भाव ूं।येसेमंतीआपकेिािकमजररिै



े आप कानून के रल से जब गाडी रवाना करनी िै तब सीटी बजा िे। िा , आपको अफसरो न ि कस ी कारणसेआपकोसिाकी कोई िलिखत कायककम ििया िो तो बात िस ू री िै। परनतु ऐसा निी तो आपको सिा की तरि काम करते रिना चाििए। मंितयो को िेखकर आपको घबराना निी चाििए। मंितयो को भी आप लोगो को नौकर न समझकर छोटा भाई समझना चाििए। तभी िम सचचे लोकतनत का आननि लूट सकेगे।.....आपको उलािना निी िेता, मोका िमल गया,

आप िु :ख न माने। परनतु यि िम सबको िशका िेनवेाला

इसिलए इस समबनध मे न किूं तो आपको िया पता चले और अनतरातमा को भूल मालूम िो तब उसे सुधारे िबना

मुझसे निी रिा जाता। चिलये, आपको इतन ि सटेशन -मासटर न ग





े ध

े िै। नौकरी लगन क े ब ा ि तै मिातमाजी िेश के राषटिपता किलाते िै। ”

म ी त





क ोपणामिकया।विबित , “मिातमाजीु खुकीशथेक।ैसबोले ी मिानता और िवशलता

सन् १९४७ मे गाधीजी जब िबिार की याता कर रिे थे,

ल ी

ि य



आपअपनीसु ” िवधासेगाडीरवानाकरनमेेसंक





ि





स व ष

तो मनु न ि







अब

,ीउममेऐसीिनडरताऔरबडे इसीिलए तो अनुशासनकायिपिल







ि

क उ नकीपेिसलबित ु छोटीिोगईिै।

े उसन उ स क ी ज ग ि न ई प े ि स ल रखिी।रामकोसाढे , “मेरा वि पेबिारिबजे सल कागाधीजीनउ टुकडा े तोसेउठाया।किा ले आओ।” े िा मनु बेचारी कुछ नीि मे थी। घबरा गई। लेिकन वि टुकडा तो ढू ढ ं ना िी था। उसे याि निी था िक वि उसन क रखा िै। सवा बज गया तो गाधीजी अनिर आये और पूछा,

“ियो,

निी िमलती?”

े िा, मनु न क गाधीजी बोले,

“बापूजी,

“ठीक िै,

किी-न-किी रखकर मै भूल गई िूं।”

सवेरे ढू ढ ं लेना। अब सो जाओ।”

सवेरे साढे तीन बजे पाथकना िईु। गाधीजी न ि े

वि पेिसल िनकली। मनु न उ िो। अभी जररत निी िै।”







तु

फ र र







स लकीयािििलाई।बडीकिठनतासे -झोले की जेब मे से बगल

ि

े िारख ा धीजीकोिे , “ििया।शानतभावसे ठीक िै, िमल गगई ाधीजीनक तो अब

त ग

मनु को बडा कोध आया। इतना परेशान िकया। खुि भी परेशान िएु और जब िमल गई तो किते िै , अब निी चाििए। खैर, कुछ भी िो,



उस टुकडे कोउसन स





ा ल



भिवषय के समबनध मे चचा चल रिी थी। उनिे जरा भी फुसकत निी िोती थी उठाया। किा,

“पटना मे मैन त





म ि

,







ि

ि

य ा

लेिकन अचानक रात को बारि बजे उनिोन म

।लगभगिोिफतेबािगाधीज

े नुको

कालीपे , वििसलकाटु लाना तो।” कडािियाथा



मनु तुरनत वि टुकडा ले आई। संभालकर जो रखा िआ ु था। गाधीजी बोले, “अब तुम मेरी परीका मे उतीणक िो गई। तुम जानती िो िक िमारा िेश िकतना गरीब िै। िजारो गरीब बालको को पेिसल का इतना छोटा टुकडा भी िलखन क े ोनिी िमलता। तब िमे िया अिधकार िै िक इस तरि जिा-तिा पेिसल का टुकडा रख िे अथवा बेकार समझकर फेक िे?

अभी तो

बित ु काम िे सकता िै। िमारे िेश मे इतना -सा पेिसल का टुकडा सोन क े

ेबराबरिै।यिजानकरतुमिेपिलेिी

ििनउसे संभालकर रखना चाििए था, परनतु तुमन ल

े ा

पास बित ु ेरी पेिसल आती िै। आज तुम तुरनत ले आयी, िाथ मे चीजे सौपी जा सकती िै।”











क ड





ािीसे , इियोिक सेकिीरखिियाथा तुमिारा खयाल िोगा िक बापू के



इसिलए परीका मे पास िो गई। मुझे अब िवशास िो गया िै िक तुमिारे

-





े पीछे “आराम करन क े ी ि ि िस े ए कब ा रगं,धपतकार ीजीमसूरउनक ीमेठिरे िएुथे-।पीछे वेकविी िीभीजायं पिंच ृ ु े -िमशन भारत मे िनिध न उ े ससे जाते। उन ििनो तो कैिबनट , प“ूछअगर ा आपको एक ििन के िलए भारत का तानाशाि बना ििया जाय तो आप िया करेगे?” े तरििया गाधीजी न उ , “पिले तो मै उसे सवीकार िी निी करंगा, परतंु यिि मै एक ििन के िलए तानाशाि बन िी गया तो ििलली के ििरजनो के झोपडे , जो वाइसराय भवन के असतबल जैसे िै , साफ करन मेे वि ििन िबताऊंगा।” े िा, पितिनिध न क

“मान लीिजये िक लोग आपकी तानाशािी िसूरे ििन भी जारी रखे?” गाधीजी सिज भाव से बोले, “तो िस ू रे ििन भी विी पिले ििन का काम जारी रिेगा।” -

े बित च ु पिले गाधीजी न क िलया था। गाधीजी पेट मे ििक िोन क े एक मिीन क े



च ा

ब ा



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ा प य

ोगिकयाथा।औरवयिितयोकेसाथशीरिव

ा रणबित , लेु िकन िबुलेवयास िोगये को कोई िवशेष कि निी िआ ु । ध ी

पास गये तो डािटर की आजा का उललंघन करते िएु उनिोन पेूछा, वयासजी न उ

ज जी क



े ेभीडनिे े े गा य ििसथितिोगईिकबोलनम , लेिकन शी वयास जबकउनक ििोनल

“तुमिारा शरीर कैसा िै ?”

े तरििया , ठीक िै।”

गाधीजी न पेूछा,

“वजन िकतना कम िआ ु ?” े तरििया वयासजी न उ , “जयािा निी, तीन पाव िी कम िआ ु , परनतु कमजोरी बित ु मालूम िोती िै।” गाधीजी न पेूछा, “काम करते िो?” े िा, वयासजी न क “सारे ििन सूत कातता रिता िूं। िकसी ििन सफाई आिि का काम िोता िै तो वि भी कर िलया करता िं। ू ” गाधीजी न ि

े फ ,रपू“छइतना ा काम कर लेते िो?”

े िा, वयासजी नक

“जी िा।” इस पर गाधीजी बोले, “तब और जयािा ताकत की इचछा ियो करते िो?

जररत से जयािा ताकत शरीर मे िवकार े ाताथा। उतपन करती िै और आतमशिित का हास करती िै। ििकण अफीका मे इकीस मील पैिल चलकर मै वकालत करन ज शिनवार को तो बाईस मील पैिल चलता था। बडे सवेरे उठकर रात की रोिटया और नीबू का अचार साथ मे बाध लेता था। रासते

मे जो झरना पडता था, उसमे सनान करके िफतर पिंच ु ता और खाना खाकर काम मे लग जाता। शिनवार को छोडकर और ििन शाम के समय गाडी मे लौटता , इसिलए शरीर से िजतन क





कीजररतिोतीिै , उतनी िी ताकत की इचछा िोनी चाििए।˝



शी थमबी नायडू गाधीजी के ििकण अफीका के साथी थे। उनिोन अ







न ल



े गाधीजीकोसौपिियेथे।उनिीमेएक



लडका मरण-शैया पर पडा िआ ु था। ं

िवाए क











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गयाथा।आशममेविइसिलएआयाथािकमौतआवेतोयिीआवे।

बारी-बारी से सभी आशमवासी उसकी िेखभाल करते थे। उनिी मे गाधीजी भी एक थे। अपनी बारी के अितिरित जब कभी िवशेष िेखभाल की आवशयकता िोती, तब भी उनिे िािजर िोना पडता था। े नसे एक रात की बात िै। बारि अजे उनकी बारी समापत िईु। उसक बाि शी फडके की बारी थी। गाधीजी न उ किा,

“मुझे एक घटंे के बाि जगा िेना। “

बीमार के पास बैठन स े े त गाधीजी के िबसतर के पास बजाकर उनिोन प नीि

!



े ाडरथा।इसिलएशीफडक ेबाि आन क -उधर घूमन ल े इधरग े ।१५िमनटक , ि क व ि ग ि र ी न ी ि मेसोएिएुिै।बीमारकीइतनीअिधक

न ी ि ा य ा



शी फडके आशयकचिकत िो उठे। ं ा बीत गया। शी फडके गाधीजी को उठान ज े धीरे-धीरे एक घट

“ियो,

ा र

ि







क एकिमनटपिले , िीउनिोनपेूछिलया

ि

वित पूरा िो गया न?”

ं े अचछी नीि आई।“ शी फडके को और भी आशयक िआ ु । गाधीजी बोले , “एक घट े न िी क ं े बाि बीमार न उ और वि बीमार के पाव जा बैठे। आध घट िकसी को निी जगाया।







ि

मेिसररखकरपाणछोडे।उससमयउनिो

-

! सन् १९१७ मे राषटीय कागेस का वािषकक अिधवेशन कलकता मे िआ ु था। उसी के साथ िआ ु था राषटभाषा सममेलन। े ा इसमे भाग लेन आ े े थ े।लेिकनवेसबबोले लोकमानय बाल गंगाधर ितलक इसके सभापित थे। कागेस और बगंाल के सभी नत य अंगेजी मे। सरोिजनी नायडू भी अंगेजी मे िी बोली ,

यिा तक िक सभापित का भाषण भी अंगेजी मे िी िआ ु । लेिकन जब गाधीजी

बोलन क े





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िै। वि चािे जो करे ,

ड े



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े िा,थे उसी सीििनिीविउनििनोजानते मे बोले। उनिोन क ु , तोजै

“लोकमानय िमारे सबसे बडे नतेा

वि मितव का िै। परनतु राषटभाषा का सभापित यिि िविेशी भाषा मे बोले तो वि राषटभाषा सममेलन

कैसा ?” े तरििया , “आप ठीक किते िै, पर मेरी तो लाचारी िै। मै जरा भी ििनिी निी जानता।”

लोकमानय न उ े िा, बडी नमता से गाधीजी न क

“आप मराठी जानते िै,

संसकृत जानते िै। ये िमारे िेश की भाषाए ि ं

ै औ



येसरोिजनीिेवीतो

बित िै । य िभीियाअं ?” गेजीमेिीबोलसकतीिै ू ा न त ी ु अचछी उिक ज उस कण के बाि िवा िी बिल गई। एक वयिित भी अंगेजी मे निी बोला। संधया के समय लोकमानय एक सावकजिनक सभा मे भाषण िेन क े



ि



े िा ििनिी मे बोल रिा िूं। मेरी भाषा समबनधी िकतनी ये।,ििनिीबोलते “आज मैिएुपिले उनिोनक -पिल

ए ग

गलितया िोगी, यि मै निी जानता, पर मै मानता िूं िक िमारी राषटभाषा ििनिी िै और िमे इसमे िी अपना काम करना चाििए।”

-

गाधीजी जब िकण अफीका से लौटे तो घूमते -घामते मदास गये। विा उनका बडा सवागत-सतकार िकया गया। उनिे और कसतूरबा को एक मान-पत भेट िकया गया। उस मान-पत मे उनकी बित ु अिधक पशंसा की गई थी। उसका उतर िेते िएु गाधीजी ने किा,

“अधयक मिोिय,

इस मान-पत मेमेरे और मेरी पती के िलए िजस भाषा का पयोग िकया गया िै ,

ििससे के भी िकिार िै तो मै निी जानता िक आप उन लोगो के िलए िकस भाष का पयोग करेगे अपन प



ी ि





लडको को आप िकस भाषा मे याि करेगे,

ि े

श व

िजनिोन अ

,

यिि िम उसके िसवे े

िजनिोन ि

िकणअफीकामे

ािसयोक ? िे लएअपनप नागपपने ािणयोकीिचनताभीनिीकी और नारायणसवामी जैसे सति-अठारि वषक के े

प न

ी म











िमकीपितषाकेिलएिनिशलशदाकेस

अपमान सिे? उस सति वषक की पयारी लडकी वली अममा के बारे मे आप कौन -सी भाषा काम मे लेना चािेगे, जो मैिरतसवगक जेल से कंकाल बनकर छूटी थी , और उसी के पिरणामसवरप एक मिीन क े





ीतरचलबसीथी ?

यि िभ ु ागय की बात िै िक मेरे और पती के काम के समबनध मे सभी लोग जानते िै। िमन ज े बढा-चढाकर बखान िकया िै, िै।”

कुछ,िकयािै उसका आपन बेेिि



लेिकन वासतव मे आप जो ताज िमारे िसर पर रखना चािते िै ,

उसके सचचे िकिार ये वयिित

- 0

0

...

सेवागाम मे नाना पकार के वयिित आते रिते थे। िशव की बारात की तरि उनके नाना रप िोते थे। एक बार िया िआ ु िक कुछ े म े ेिलएआशम अछू त जाितयो के सतयागिी अपन स ा ज की ि क सी क ि थ तिशकायतकेिवरदसतयागिकरनक गाधीजी तो अजातशतु थे। उनिोन उ े न स त य चुनाव कर ले। आप चािे तो मै। कुिटया आपके िलए खाली कर िं। ” ू े स लेिकन उन लोगो न क तू र ब ा

ागिियोकासवागतिकया।उनसे , “आप लोग अपन रकिा े ि क



े ेिलएजगिका क



े ीइचछापकटकी।िस ं तेिएुकसतूरबानपेूछ ि ट ,यामेरिनक “मै किा

क ु

रिंूगी?” गाधीजी बोले, िकया था।”

“तुमिे जयािा सथान की जररत निी िागी और िया तुम जानती िो िक मैन त

बा बोली,

े “आपन इ स ी ि ल े िा, “िया वे तुमिारे भी उतन ि े गाधीजी न क





अपनीकुिटयािेनपेसताव

िकयाथािकवे ” आपकेबालकिै।

ए ी

बालकनिीिै ?”

िनरतर बा मौन िो रिी और वे मेिमान जबतक रिे , उनिी की कुिटया मे रिे।

-



” गाधीजी की एक बिन थी। जब वि ििकण अफीका मे थे तो उनके पास जो कुछ था वि उनिोन आ े था। भारत लौटे तो यिा भी उनिोन अ प न ी स म प ि त प र लेिकन अब उनकी बिन का िया िो? वि िवधवा थी। गाधीजी अपन ि े थे। लेिकन बिन का तो कुछ पबनध िोना िी चाििए। उनिोन अ प न प गोकीबिन को िस रपये मिीना भेज ििया करे। े गे, मेिता सािब रपये भेजन ल

े े

े श मकोिेििया स े अिधकारछोडिियाथा।सबकुछिेकरव

ै ानिीलेते नज ी खच क किे लएिकसीसेपस ु र ा न िेमतडािटरपाणजीवनिासमेितासेकि

े गी। लेिकन कुछ ििन बाि गोकीबिन की लडकी भी िवधवा िो गई और मा के पास आकर रिन ल

े ाधीजीकोिलखा िस रपये मािसक मे िोनो का गुजारा िोना असमभव था। बिनन ग , “अब खचक बढ गया िै और उसे पूरा करने के िलए िमे पडोिसयो का अनाज पीसन क े ा क ामकरनापडतािै ” । गाधीजी न उ

े तरमे,िलखा

पीसते िै। और जब जी चािे , रिते

“आटा पीसना बितु अचछा िै। िोनो का सवासथय अचछा रिेगा। िम भी आशम मे आटा तुम िोनो को आशम मे आकर रिन औ े र बनस -े सेोजन वा करन क े ा प ू राअिधकारिै।जैसेिम

िै वैसे िी तुम भी रि सकती िो। मै घर पर कुछ निी भेज सकता। न िमतो से िी कुछ कि सकता िूं। ” जो बिन आटा पीसन क े ी म जिर , ू ीकरसकतीथी उसे आशम का जीवन कुछ किठन निी मालूम िोना चाििए था। लेिकन आशम मे तो ििरजन भी रिते थे न। उनके साथ रिना -सिना, खाना-पीना पुराना ढंग के लोग कैसे कर सकते थे निी आई। गाधीजी न भ े ी उ न क ेपैसेकापबनधनिीिकया।

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बिन





जुिू से िविा िोकर जब गाधीजी पूना पिंच ु े तो पता चला िक पेट और िसर पर पितििन गीली िमटी को जो पिटया चढती थी, वे पीछे निी छूट गई िै। तुरनत शािनतकुमार को पत िलखा िक पिटया भेज िे। े पत पाकर शािनतकुमारजी न इेधर -उधर पूछताछ की, पर वे पिटटया निी िमली। इसिलए उनिोन ख ािीकीनईपिटया बनवाकर उनिे भेज िी। गाधीजी का उतर आया,

“मुझे नई पिटयो की जररत निी थी, पुरानी पिटया िी भेजो।” े बेचारे शािनतकुमार पुरानी पिटटया किा से लाते ! नौकरो न ब ि त ु प ि

ल े िीउनिेचीथडेसमझकरफेकिि गाधीजी थे िक फटे िएु कपडो मे से काटकर पिटया बनवा लेते थे। े चछा -खासा भाषण िे डाला। जब यि समाचार गाधीजी को िमला और शािनतकुमार से उनकी भेट िईु तो उनिोन अ े िा, उनिोन क

“नई खािी की पिटया बनवाकर ियो भेजी? िकफायतशारी की बात िकस तरि समझाऊं?”

यि ियो मान िलया िक पुरानी पिटया फेक िी िेनी थी। तुमिे

शािनतकुमार न अ



गाधीजी बोले,



बचावकरते , “बापूिएुजउतरििया ी, मैन न

न ा

े िीफे,कनौकरो ी नि े

ी फेक”िीथी।

“तब तो नौकर तुमसे बढ गये !” -

अिमिाबाि मे गाधीजी का आशम साबरमी निी के तट पर था। १९२३ की वषा ऋतु मे इतन ज निीमे भयानक बाढ आ गई। आशम के िनचले भाग मे पानी भर गया। विा पर जो पशु बध ं ते थे,

उनिे ऊंचे सथान पर ले जाना पडा,







कापानीपडािक

लेिकन निी का पानी तो िकलोले

मारता िआ ु ऊंचा, और ऊंचा, चढता आ रिा था। शिर से सरिार वललभभाई पटेल का संिेशा आया िक आशम खाली कर ििया जाय और सब लोग शिर चले आवे। इसके िलए सवारी का पबनध िकया जा रिा िै। यि सिेशा पाकर गाधीजी िचनतामगन िो गये। उनिोन स े भ ी आ शम व ा िसयोकोतुरनतपाथकनासथलमेइकटेि आिेश ििया। निी का पानी आशम के मागों पर लिराता िआ ु चला आ रिा था। चारो ओर काल भगवान का रद रप उपिसथत िो गया था। सब लोग आ गये तब गाधीजी बोले, एक कण मे समा जान क े ी त ै य

“भगवान काल-रप मे िशकन िेन क ा





चािता िै? मै तो आशम के पशुओं को छोडकर शिर जान क े



बढा जा रिा था। एक भाई न ग गाधीजी न त









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लए ा ि ू

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ए िै।मैइनकीलपलपातीजीभम ।आशमखालीकरकेअिमिाबािशिरज

इचछानिीरखता। ”



उन ििनो बमबई के एक वृद खोजा गुिसथ आशम मे आये थे। गाधीजी न उ गाधीजी कोअकेला छोड जान स े



र े

शिरजानक , े ाआगििकया लेिकन

नसेपिइक ं ारकरििया।उससमयपाथक -सथल मे निी का पानी निकललोल ा करता िआ ु

े ाधीजीसे , “पमृूछतयुा के समुख आ जान प



र भ



यिक ?”सै ाआननििै

ुरनतउतरििया , “यि सामूििक मृतयु का आननि िै।”

-

भारत की िर चीज मुझे आकिषकत करती िै। सवोिय की आकाकाए र ं



न व



ा लेिकसीवयिितकोअपनिेवकासकेिल

जो कुछ चाििए , वि सब उसे भारत मे िमल सकता िै।... मेरा िवशास िै िक भारत का धयेय िस ू रे िेशो के धयेय से कुछ अलग िै। भारत मे ऐसी योगयता िै िक वि धमक के केत मे े त म ेिलएसवेिि ििुनया मे सबसे बडा िो सकता िै। भारत न आ श ु ि ि, क उसका चछापू मे जै िस ापयतिकयािै उिािरण ु नयावकक ू सरा निी िमलता... मै भारत की भिित करता ि,ंू ियोिक मेरे पास जो कुछ भी िै , वि सब उसी का ििया िआ ु िै, मेरा पूरा िवशास िै िक उसके पास सारी ििुनया के िलए एक संिेश िै।

...

मै भारत से उसी तरि बध ं ा ि,ूं िजस तरि कोई बालक अपनी मा की छाती से िचपटा रिता िै, ियोिक मै। मिसूस करतािूं िक वि मुझे मेरा आवशयक आधयाितमक पोषण िेता िै। उसके वातावरण मे मुझे अपनी उचचतम पुकार का उतर िमलता िै। े ी यिि िकसी कारण मेरा यि िवशास ििल जाय या चला जाये तो मेरी िश उस अनाथ के जैसी िोगी , िजसे अपना पालक पान क आशा िी न रिी िो.... ं और बलवान बना िआ मै भारत को सवतत ियोिक मै चािता िूं िक वि ििुनया के भले के िलए ु िेखना चािता िूं, ं ता से शाित और युद के बारे मे ििुनया की ििृि मे जडमूल से काित िो सवेचछापूवकक अपनी पिवत आििुत िे सके। भारत की सवतत जायेगी।....

भारत का भिवषय पिशम के उस रित् -रिंजत मागक पर निी िै, िजस पर चलते-चलते पिशम अब सवय थ ं कगयािै। ै । भारतकेसामनइेससमयअपनी ं क रासते पर चलन म े े ि उसका भिवषय तो सरल धािमकक जीवन दारा पापत शािनत के अििस ी ि आतमा को खोन क े ा खत र ा उप ि स थ त ि ै औ र य िसंभविैिकअपनीआतमाकोखोजकरभीविज आलसी की तरि उसे लाचारी पकट करते िएु ऐसा निी किना चाििए िक “पिशम की इस बाढ से मै निी बच सकता।” अपनी और ििुनया की भलाई के िलए उस बाढ को रोकन य मै ऐसे संिवधान की रचना करवान क े िे।....मै ऐसे भारत के िलए कोिशश करंगा ,



ो ग



श िितशालीतोउसे ... बननािीिोगा।

ापयतकर , ं गाजो भारत को िर तरि की गुलामी और परावलमबन से मुित कर िजसमे गरीब-से-गरीब लोग भी यि अनुभव करेगे िक वि उनका िेश िै-िजसके

िनमाण मे उनकी आवाज का मितव िै। मै ऐसे भारत के िलए कोिशश करंगा , िसमे ऊंचे और नीचे वगों का भेि निी िोगा और िजसमे िविवध समपिायो मे पूरा मेलजोल िोगा। ऐसे भारत मे असपृशयता या शराब और िस ू री नशीली चीजो के अिभशाप के िलए कोई

सथान निी िो सकता। उसमे िसतयो को विी अिधकार िोगे,

जो पुरषो के िोगे। चूंिक शेष सारी ििुनया के साथ िमारा समबनध

शािनतकर िोता, यानी न तो िम िकसी का शोषण करेगे और न िकसी के दारा अपना शेषण िोन िेेगे , इसिलए िमारी सेना छोटीसे-छोटी िोगी। ऐसे सब िितो का, िजनका करोडो मूक लोगो के िितो से कोई िवरोध निी िै , पूरा सममान िकया जायगा। यि िै मेरे सपनो का भारत।......

सवराजय एक पिवत शबि िै-वि एक वैििक शबि िै , िजसका अथक आतम-शासन और आतम-संयम िै।..... सवराजय िमारी आंतिरक शिित पर, बडी किठनाइयो से जूझन क े सवराजय, िजसे पान क े



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ा कतपरिनभकरकरतािै।सचपूछ

े ेिलएसततजागितनिीचाििए ेयोगयनिी यतऔरबचाये , सवराजय रखनक किलान क े



िै।.... मै वचन और कायक से यि ििखलान क े

क ोिशशकीिै -पुरषोिकसती के िवशाल समूि का राजनिैतक सवराजय एक -एक



वयिित के सवराजय से कोई जयािा अचछी चीज निी िै और इसिलए उसे पान क े



तरीकाविीिै , जो एक आिमी के आतम -सवराजय

या आतमसंयम का िै।.... सवराजय की रका केवल निी िो सकती िै , जिा िेशविसयो की जयािा बडी संखया ऐसे िेश-भितो कीिो, िजनके िलए िस ू री सब चीजो से-अपन ि

न जीलाभसे -िेश कीभभलाई ी का अिधक मितव िो। सवराजय का अथक िै िेश की बिस ु ंखयक जनता



का शासन। जाििर िै िक जिा बिस ु ंखयक जनता नीित-भि िोया सवाथी िो, विा उसकी सरकार अराजकता की िी िसथित पैिा कर सकती िै, िस ू रा कुछ निी। .... मेरे-िमारे-सपनो के सवराजय मे जाित या धमक के भेिो को कोई सथान निी िो सकता। उस परी िशिकतो या धन वालो का एकािधपतय निी िोगा। वि सवराजय सबके िलए -सबके कलयाण के िलए लूले, लंगडे, अंधे और भूख से मरन व

-िोगा। सबकी िगनती मे िकसान तो आते िी िै, ालेल-ाखो करोडो मेिनतकश मजिरू भी अवशय आते िै।.....



िकनतु

ं का सार यि िै िक उसमे िरेक वयिित उन िविवध सवाथों का पितिनधतव करता िै , िजनसे राषट बनता िै। पजातत ं का अथक यि समझा िूं िक इस तत ं मे नीचे-से-नीचे और ऊंचे-सेपजातत ऊंचे आिमी को आगे बढन क े



ं वािी वि िोता िै, जनमजात लोकतत उसी को पापत िोता िै,

मानअवसरिमलनाचाििए ; लेिकन िसवा अििसंा के ऐसा कभी निी िो सकता।



जो जनम से िी अनुशासन कापालन करन व े

जो साधारण रप मे अपन म















ल ि ै



ं सवाभािवकरपम िो।लोकतत



वीसभीिनयमोकासवेचछापूवककप

े ं वािी को िन:सवाथक तो िोना िी चाििए। उसे अपनी या अपन ि ं की ले।....लोक-तत ल कीिि , ृ िसे बिलक निीएकमात लोकतत िी ििृि से सबकुछ सोचना चाििए। ं ता के साथ सवोचचकोिट का अनुशासन और िवनय िोता िै। अनुशासन और िवनय से िमलने सवोचचकोिट की सवतत ं ता को कोई छीन निी सकता। संयमिीन सवचछनिता संसकारिीनता की दोतक िै। उससे वयिित की अपनी और वाली सवतत पडोिसयो की भी िािन िोती िै।... ं ता की मै कद करतािंू, वयिितगत सवतत लेिकन आपको यि ििगकज निी भूलना चाििए िक मनुषय मूलत: एक े य सामािजक पाणी िै। वयिितगत सामािजक पगित की आवशयकताओं के अनुसार अपन व ि ित तवकोढालनासीखकरिीवतकमान ं ता और सामािजक संयम के बीच समनवय िसथित तक पिंच ु ा िै। अबाध वयिितवाि वनय पशुओं का िनयम िै। िमे वयिितगत सवतत करना सीखना िै। समसत समाज के िित के खाितर सामािजक संयम के आगे सवेचछतापूवकक िसर झुकान स े

वयिितऔरसमाज ,



िजसका िक वि एक सिसय िै, िोनो का िी कलयाण िोता िै। े

जो वयिित अपन क े

एकमात अपन क











,यकाउिचतपालनकरतािै उसे अिधकार अपन आ े प ि म ल ज ा तेिै।सचतोयििैिक ेपालनकाअिधकारिीऐसीअिधकार , िजसके िलए िी मनुषय को जीना और मरना चाििए। उसमे सब



य क

उिचत अिधका समावेश िो जाता िै।...

िमन ि जयािा िेते जायं ,





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यकीवृ -धूपितयाचं िकयाचकरता लिै।उसकामनबे िै। उसकाकशरीर ारकीिौड जैसे-जैसे

वैसे-वैसे जयािा मागता िै। जयािा लेकर भी वि सुखी निी िोता। भोग भोगन स े

इसिलए िमारे पुरखो न भ





अमीरी की वजि से सुखी निी िै, िेखन म े ेआतािै।



क ी

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गकीइचछाबढतीिै।

े ेखिैािकसु धिी।बित -िु :खु सोचकरउनिोनि तो मन के कारण । अमीर ख अपनी

गरीब अपनी गरीबी के कारण िु :खी निी िै। अमीर िु :खी िेखन म े

ेआ , तािैगरीब सुखी

करोडो लोग गरीब िी रिेगे, ऐसा िेखकर पूवकजो न भ े े उनिोन ि ख ा ि



ो कर

गकीवासनाछुडवाई। ा ज ा ओ ं

औ र

उनकीतलवारोकेबिनसबतनीितकाबलजयािा

राजाओं को नीितवान पुरषो-ऋिषयो और कलाकारो-से कम िरजे का माना।...... इस राषट मे अिालते थी, वकील थे, डािटर-वैद थे, लेिकन वे सब ठीक ढंग से, िनयम के अनुसार , चलते थे। वे ं रिकर अपन ख े े लोगो के मािलक बनकर निी रिते थे। आम पजा उनसे सवतत त ो कामािलकीिकभोगतीथी , खेती करके अपना िनवाि करती थी। उसके पास सचचा सवराजय था। भगवान के नाम पर ियका गया और उसे समिपकत िकया गया कोई भी काम छोटा निी िै। इस तरि िकये गए िरेक छोटे या बडे काम का समान मूलय िै। .... ं ा का पुजारी ‘सवकभूतििताय’ यानी सबके अिधकतम लाभ के िलए िी पयत करेगा। अििस

.....

ं ा मे न िो, तबतक यि समभव िी निी िै। सचचा पेम समुद की तरि िनससीम िोता जबतक सेवा की जड पेम या अििस िै और हिय के भीतर जवार की तरि उठकर बढते िएु वि बािर फैल जाता िै ओर सीमाओं को पार करके ििुनया के छोरो तक जा पिंच ु ता िै।.......

ं ार भूलकर शूनयता की िसथित पापत निी कर लेते, तबतक जब िम अपना अिक तबतक िमारे िलए अपन ि









कोजीतनासमभवनिीिै ... ।

सतय की भिित के कारण िी िमारी िसती िो। उसी के िलए िमारा िरेक काम

,

िरेक पवृित िो।..... ं ा बरतन वेाला, पिरगि निी कर सकता। परमातमा पिरगि निी करता। अपन िेलए सतय की खोज करनवेाला, अििस जररी चीज वि रोज-की-रोज पैिा करता िै। इसिलए अगर िम उस पर पूरा भरोसा रखते िै तो िमे समझना चाििए िक िमारी जररत की चीजे वि रोजाना िेता िै और िेता रिेगा। ....

लाग किते िै, “आिखर साधन तो साधन िी िै।” मै किंग ू ा, “आिखर तो साधन िी सबकुछ िै। ” जैसे साधन िोगे, े वैसा िीसाधय िोगा। साधन और साधय को अलग करन व ा ल ी क ो ई ि ी व ा र निीिै।गंिेसाधनोसेिमलनवेालीची िोगी। े कोई असतय को निी पा सकता। सतय को पान क े ि ल ए ि म े श ा सतयकाआचरणकरनािीिोगा।अिि की जोडी िै न

?

ं ा ििगकज निी। सतय मे अििस

ं ा मे सतय।....पूरी-पूरी पिवतता के िबना अििस ं ा और सतय िनभ निी सकते। शरीर या मन की अपिवतता िछपी िईु िै और अििस िछपान स े े अ सत ै समाजवाि फला सकता िै।





ं ािीपै, िािोगी।इसिलएसतयवािी ं क और पिवत समाजवािी िी ििुनया मे ििनिसुतानी मे रििस अििस

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मणडल दारा पकािशत —



□ ● पथ के आलोक ● िमारे संत मिातमा ● िमारे पमुख तीथक ● िमारी आिशक नािरया ● बेताल पचचीसी ● िमारी बोध कथाएं

● िमारी नििया ● माताजी का ििवय िशकन ● बडो की बडी बात ● भारतीय लोक-कथाएं ● ईट की िीवार ● िवश की शेष किािनया ● िसंिासन बतीसी ● संतो की सीख ● बापू का पथ □□

ससता सािितय मणडल

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