Divya Prerna Prakash

  • November 2019
  • PDF

This document was uploaded by user and they confirmed that they have the permission to share it. If you are author or own the copyright of this book, please report to us by using this DMCA report form. Report DMCA


Overview

Download & View Divya Prerna Prakash as PDF for free.

More details

  • Words: 40,977
  • Pages: 102
पसतावना आज तक

पूजयशी के समपकक मे आकर असंखय लोगो ने अपने

पतनोनमुख जीवन

को यौवन सुरका के पयोगो दारा

ऊधवग क ामी बनाया है । वीयन क ाश और

सवपनदोष जैसी बीमािरयो की चपेट

मे आकर हतबल हुए कई युवक-युवितयो के िलए अपने

िनराशापूणक जीवन मे पूजयशी की सतेज अनुभवयुक वाणी एवं उनका पिवत

मागद क शन क डू बते को ितनके का ही नहीं, बििक नाव का

सहारा बन जाता है । समाज की

तेजिसवता का हरण करने वाला आज के िवलािसतापूण,क कुििसत और

वासनामय वातावरण मे यौवन सुरका के िलए पूजयशी जैसे महापुरषो के ओजसवी मागद क शन क की अियंत आवशयकता है ।

उस आवशयकता की पूितक हे तु ही पूजयशी ने जहाँ अपने पवचनो मे

‘अमूिय यौवन-धन की

सुरका’ िवषय को छुआ है , उसे संकिलत करके पाठको के सममुख रखने का यह अिप पयास है ।

इस पुसतक मे सी-

पुरष, गह ृ सथी-वानपसथी,

िवदाथी एवं वद ृ सभी के िलए अनुपम सामगी है ।

सामानय दै िनक जीवन को िकस पकार जीने से यौवन का ओज बना रहता है

और जीवन िदवय बनता है , उसकी भी रपरे खा इसमे सिननिहत है और सबसे

पमुख बात िक योग की गूढ पिियाओं से सवयं

पिरिचत होने के कारण पूजयशी की वाणी मे तेज, अनुभव एवं पमाण का सामंजसय है जो अिधक पभावोिपादक िसद होता है ।

यौवन सुरका का मागक आलोिकत करने वाली यह छोटी सी पुसतक िदवय जीवन की चाबी

है । इससे सवयं लाभ उठाये एवं औरो तक पहुँचाकर उनहे भी लाभािनवत करने का पुणयमय कायक करे ।

शी योग व ेदानत स ेवा स िम ित , अमदावाद

आ शम।

वीय क वान बनो पालो बहचयक िवषय-वासनाएँ ियाग। ईशर के भक बनो जीवन जो पयारा है ।। उिठए पभात काल रिहये पसननिचत। तजो शोक िचनताएँ जो दःुख का िपटारा है ।।

कीिजए वयायाम िनिय भात! शिक अनुसार। नहीं इन िनयमो पै िकसी का इजारा1 है ।।

दे िखये सौ शरद औ’कीिजए सुकमक िपय! सदा सवसथ रहना ही कतवकय तुमहारा है ।। लाँघ गया पवनसुत बहचयक से ही िसंधु। मेघनाद मार कीितक लखन कमायी है ।। लंका बीच अंगद ने जाँघ जब रोप दई। हटा नहीं सका िजसे कोई बलदायी है ।।

पाला वत बहचयक राममूितक, गामा ने भी। दे श और िवदे शो मे नामवरी2 पायी है ।। भारत के वीरो! तुम ऐसे वीयव क ान बनो। बहचयक मिहमा तो वेदन मे गायी है ।। 1- एकािधकार। 2- पिसिद ॐॐॐॐॐॐ

बहच यक रक ा ह ेत ु म ंत एक कटोरी दध ू मे िनहारते हुए इस मंत का इककीस बार जप करे | तदपशात उस दध ू को पी

ले, बहचयक रका मे सहायता िमलती है | यह मंत सदै व मन मे धारण करने योगय है : ॐ नमो भगवत े महाबल े पर ाि माय मनो िभला िषत ं मनः सत ं भ कु र कु र सवाहा

|

अनु िम यौवन सु रका पसतावना िवदािथय क ो, माता-िपता-अिभभावको व राष के कणध क ारो के नाम बहिनष संत शी आसारामजी बापू का संदेश।

यौवन सुरका- बहचयक कया है ? बहचयक उिकृ ष तप है । वीयरककण ही जीवन है । आधुिनक िचिकिसको का मत। वीयक कैसे बनता है ? आकषक क वयिकतव का कारण। माली की कहानी। सिृष-िम के िलए मैथुन: एक पाकृ ितक वयवसथा। सहजता की आड मे भिमत न हो। अपने को तोले। मनोिनगह की मिहमा। आिमघाती तकक। सीपसंग िकतनी बार? राजा ययाित का अनुभव। राजा मुचुकनद का पसंग। गलत अभयास का दषुपिरणाम। वीयरककण सदै व सतुिय। अजुन क और अंगारपणक गंधवक। बहचयक का ताितवक अथक।

वीयरकका के उपाय- सादा रहन सहन बनाये। उपयुक आहार। िशशेिनिय सनान। उिचत आसन एवं वयायाम करो। बहमुहूतक मे उठो। दवुयस क नो से दरू रहो। सिसंग करो। शुभ संकिप करो। ितबनधयुक पाणायाम और योगाभयास करो। नीम का पेड चला। सी जाित के पित मातभ ृ ाव पबल करो। िशवाजी का पसंग। अजुन क और उवश क ी। सिसािहिय पढो।

वीयरककण की महता वीयस क च ं य के चमिकार- भीषम िपतामह और वीर अिभमनयु। पथृवीराज चौहान कयो हारे ? सवामी रामतीथ क का अनुभव।

युवावगक से दो बाते- हसतमैथुन के दषुपिरणाम। अमेिरका मे िकया गया पयोग। कामशिक का दमन या ऊधवग क मन। एक साधक का अनुभव। दस ू रे साधक का अनुभव। योगी का संकिपबल। कया यह चमिकार है ? हसतमैथुन व सवपनदोष से कैसे बचे? सदै व पसनन रहो। वीयक का ऊधवग क मन कया है ? वीयरकका का महतवपूणक पयोग। दस ू रा पयोग। वीयरककक चूणक। गोद का पयोग। तुलसी: एक अदभुत औषधी। बहचयरकका हे तु मंत।

पादपिशमोतानासन। पादांगुषासन। बुिदशिकवधक क पयोग। मेधाशिकवधक क पयोग। हमारे अनुभवः महापुरष के दशन क का चमिकार। ‘यौवन सुरका’ पुसतक आज के युवावगक के िलए एक अमूिय भेट है । ‘यौवन सुरका’ पुसतक नहीं अिपतु एक िशका-गनथ है ।

बहचयक ही जीवन है । शासवचन। भसमासुर िोध से बचो। बहचयक-रका का मंत। महामिृयुंजय मंत। मंगली बाधा िनवारक मंत। ॐॐॐॐॐॐ (अनुिम)

पावन उदगार सुख शांित व सवासथय का पसाद बाँटने के िलए बापू जी का अवतरण हुआ है । हर वयिक जो िनराश है उसे आसारामजी की जररत है । बापू िनिय नवीन, िनिय वधन क ीय आनंदसवरप है ।

पुणय संचय व ईशर की परम कृ पा का फलः बहजान का िदवय सिसंग। बापू जी का सािननधय गंगा के पावन पवाह जैसा है । भगवननाम का जाद।ू

पूजयशी के सिसंग मे पधानमंती शी अटल िबहारी वाजपेयीजी के उदगार।

परमप ूजय बाप ू जी क ी कृपा -पसाद से ला भािनवत हदयो के उदगार पूजय बापू जीः राषसुख के संवधक क ।

बापूजी वहाँ के लोगो के िलए भी करते

गरीबो व िपछडो को ऊपर उठाने के िलए

सचची िशका तो बापू जी ही दे सकते है ।

सराहनीय पयासो की सफलता के िलए

धरती तो बापू जी जैसे संतो के कारण

आपने िदवय जान का पकाश पुज ं

....इतने समय तक गुरवाणी से वंिचत

आप समाज की सवाग ा ीण उननित कर

इतनी मधुर वाणी! इतना अदभुत जान!

भारतवषक आपका िचर आभारी रहे गा।

जानरपी गंगाजी सवयं यहाँ आ गयीं।

करे गे।

िडकशनरी याद कर िवश िरकाडक बनाया।

जरर आयेगा।

.....कहाँ से कहाँ पहुँचा िदया!

पहुँचाने के िलए अथक तपशयाक कर रहे

.....िजतना आदर िकया जाये, कम है ।

आपके दशन क मात से अदभुत शिक

गुर जी की तसवीर ने पाण बचा िलए।

हम सभी... आपके बताये रासते पर चले।

गुरकृ पा से अंधापन दरू हुआ।

का।

मंत दारा मत ृ दे ह मे पाण संचार।

होगा।

िमली।

आशीवाद क दो।

पूजय बापूजी ने फेका कृ पा-पसाद।

राष उनका ऋिण है । कायक चालू रहे । बधाई।

पसफुिटत िकया है । रहे है ।

आपने जो कहा है हम उसका पालन

गुर के साकात दशन क हो गये तो बदलाव बापू जी सवत क संसकार – धरोहर को है ।

िमलती है ।

.........सरल रासता िदखाऊँ राम को पाने संतो के मागद क शन क मे चलेगा तो आबाद सिय का मागक कभी न छूटे , ऐसा पुणयोदय पर संत समागम।

है ।

योग की अणुशिक पैदा हो रही है ... िटकी है । रहा।

.....मेरे हदय की सफाई हो गयी।

बापू जी से िवशभर के लोग लाभािनवत। मंतदीका से बुिद का अपितम िवकास। 5 वषक के बालक ने चलाई कार! मुझे िनवयस क नी बना िदया....

गुर िशषय का साथ कभी नहीं छोडते। ....और डकैत घबराकर भाग गये। गुरजी की कृ पा से नेतजयोित वापस

बडदादा की िमटटी व जल से जीवनदान। मनौती मानी और गुरकृ पा हुई।

.....और गुरदे व की कृ पा बरसी।

....अंधकार मे जान की जयोत...पूजय बापू

गुरदे व ने भेजा अकयपात।

जी।

'शी आसारामायण के पाठ से जीवनदान'।

हिरनाम ने छुडाई शराब की बोतल।

सेवफल के दो टु कडो से दो सनताने।

पूजयशी की तसवीर से िमली पेरणा।

अदभुत रही मौन मंिदर की साधना।

मंत से लाभ।

....वरदान से पुतपािि।

गुरवाणी पर िवशास से अवणन क ीय लाभ। .....और खराब टाँग ठीक हो गयी। असाधय रोग से मुिक।

मुिसलम मिहला को पाणदान। पूरे गाँव का कायापलट! नेतिबनद ु का चमिकार।

काम-िोध पर िवजय पायी।

कैसेट का चमिकार।

जला हुआ कागज पूवक रप मे।

गुर कृ पा से जीवन दान।

सदगुर मिहमा।

है ।

सुखपूवक क पसवकारक मंत।

मुझ पर बरसी संत कृ पा। ....संत दिुनया को सवगक मे बदल सकते

नदी की धारा मुड गयी।

....सुहाग की रका करने पकटे महादे व। सवाग ा ीण िवकास की कुंिजयाँ।

महाम ृ ियुंजय म ंत ॐ हौ ज ूँ स ः। ॐ भ ूभ ुक व ः सवः। ॐ तयमबक ं यजामह े स ु गंिध ं प ुिष वधक नम।् उवा क रक िमव बनधनानम ृ ियोम ुक िकय मा मृ तात।् सव ः भ ुवः भ ूः ॐ। स ः ज ूँ हौ ॐ।

भगवान िशव का यह महामिृयुंजय मंत जपने से अकाल मिृयु तो टलती ही है , आरोगयता

की भी पािि होती है । सनान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक इस मंत का जप

करने से सवासथय लाभ होता है । दध ू मे िनहारते हुए इस मंत का जप करके दध ू पी िलया जाये तो यौवन की सुरका मे भी सहायता िमलती है । आजकल की तेज रफतार वाली िजंदगी के कहाँ

उपिव, दघ क ना हो जाये, कहना मुिशकल है । घर से िनकलते समय एक बार यह मंत जपने वाला ु ट उपिवो से सुरिकत रहता है और सुरिकत लौटता है । (इस मंत के अनुषान की पूणक जानकारी के िलए आशम की 'आरोगयिनिध ' पुसतक पढे ।

शीमद भागवत क े आठव े सकं ध म े तीसर े अधयाय क े शोक

विण क त 'गजेनि म ोक ' सतोत का पाठ कर

ने स े तमाम

1 से 33 तक म े

िवघन द ू र होत े ह ै।

मंगली बाधा िनवारक म

ंत

अं रा ं अ ं। इस मंत को 108 बार जपने से िोध दरू होता है । जनमकुणडली मे मंगली

दोष होने से िजनके िववाह न हो रहे हो, वे 27 मंगलवार इसका 108 बार जप करते हुए वत रख के हनुमान जी पर िसंदरू का चोला चढाये तो मंगल बाधा का कय होता है ।

1. िवदा िथक य ो, मा ता -िपत ा-अिभ भावक ोंो व राष के क णक धारो के नाम बहिन ष संत शी आसाराम जी बाप ू का संदेश हमारे दे श का भिवषय हमारी युवा पीढी पर िनभरक है िकनतु उिचत मागद क शन क के अभाव मे वह आज गुमराह हो रही है |

पाशािय भोगवादी सभयता के दषुपभाव से उसके यौवन का हास होता जा रहा है | िवदे शी

चैनल, चलिचत, अशलील सािहिय आिद पचार माधयमो के दारा युवक-युवितयो को गुमराह िकया जा रहा है | िविभनन सामियको और समाचार-पतो मे भी तथाकिथत पाशािय मनोिवजान से

पभािवत मनोिचिकिसक और ‘सेकसोलॉिजसट’ युवा छात-छाताओं को चिरत, संयम और नैितकता से भष करने पर तुले हुए है |

िबतानी औपिनवेिशक संसकृ ित की दे न इस वतम क ान िशका-पणाली मे जीवन के नैितक

मूियो के पित उदासीनता बरती गई है | फलतः आज के िवदाथी का जीवन कौमायव क सथा से ही िवलासी और असंयमी हो जाता है |

पाशािय आचार-वयवहार के अंधानुकरण से युवानो मे जो फैशनपरसती, अशुद आहार-िवहार के सेवन की पविृत कुसंग, अभिता, चलिचत-पेम आिद बढ रहे है उससे िदनोिदन उनका पतन होता

जा रहा है | वे िनबल क और कामी बनते जा रहे है | उनकी इस अवदशा को दे खकर ऐसा लगता है िक वे बहचयक की मिहमा से सवथ क ा अनिभज है | लाखो नहीं, करोडो-करोडो छात-छाताएँ अजानतावश अपने तन-मन के मूल ऊजाक-सोत का वयथक मे अपकय कर पूरा जीवन दीनता-हीनता-दब क ता मे तबाह कर दे ते है और सामािजक अपयश के ु ल

भय से मन-ही-मन कष झेलते रहते है | इससे उनका शारीिरक-मानिसक सवासथय चौपट हो जाता है , सामानय शारीिरक-मानिसक िवकास भी नहीं हो पाता | ऐसे युवान रकािपता, िवसमरण तथा दब क ता से पीिडत होते है | ु ल

यही वजह है िक हमारे दे श मे औषधालयो, िचिकिसालयो, हजारो पकार की एलोपैिथक

दवाइयो, इनजेकशनो आिद की लगातार विृद होती जा रही है | असंखय डॉकटरो ने अपनी-अपनी दक ु ाने खोल रखी है िफर भी रोग एवं रोिगयो की संखया बढती ही जा रही है | इसका मूल कारण कया है ? दवुयस क न तथा अनैितक, अपाकृ ितक एवं अमयािकदत मैथुन दारा

वीयक की कित ही इसका मूल कारण है | इसकी कमी से रोगपितकारक शिक घटती है , जीवनशिक का हास होता है |

इस दे श को यिद जगदगुर के पद पर आसीन होना है , िवश-सभयता एवं िवश-संसकृ ित का

िसरमौर बनना है , उननत सथान िफर से पाि करना है तो यहाँ की सनतानो को चािहए िक वे बहचयक के महिव को समझे और सतत सावधान रहकर सखती से इसका पालन करे | बहचयक के दारा ही हमारी युवा पीढी अपने वयिकिव का संतिु लत एवं शष े तर िवकास कर

सकती है | बहचयक के पालन से बुिद कुशाग बनती है , रोगपितकारक शिक बढती है तथा महान ्से-महान ् लकय िनधािकरत करने एवं उसे समपािदत करने का उिसाह उभरता है , संकिप मे दढता आती है , मनोबल पुष होता है |

आधयाििमक िवकास का मूल भी बहचयक ही है | हमारा दे श औदोिगक, तकनीकी और आिथक क केत मे चाहे िकतना भी िवकास कर ले , समिृद पाि कर ले िफर भी यिद युवाधन की सुरका न

हो पाई तो यह भौितक िवकास अंत मे महािवनाश की ओर ही ले जायेगा कयोिक संयम, सदाचार आिद के पिरपालन से ही कोई भी सामािजक वयवसथा सुचार रप से चल सकती है | भारत का सवाग ा ीण िवकास सचचिरत एवं संयमी युवाधन पर ही आधािरत है |

अतः हमारे युवाधन छात-छाताओं को बहचयक मे पिशिकत करने के िलए उनहे यौन-सवासथय, आरोगयशास, दीघाय क ु-पािि के उपाय तथा कामवासना िनयंितत करने की िविध का सपष जान

पदान करना हम सबका अिनवायक कतवकय है | इसकी अवहे लना करना हमारे दे श व समाज के िहत मे नहीं है | यौवन सुरका से ही सुदढ राष का िनमाण क हो सकता है | (अनुिम)

2. यौवन -सुरक ा शरीरमाद ं खल ु धम क साधनम ् | धमक का साधन शरीर है | शरीर से ही सारी साधनाएँ समपनन होती है | यिद शरीर कमजोर है तो उसका पभाव मन पर पडता है , मन कमजोर पड जाता है | कोई भी कायक यिद सफलतापूवक क करना हो तो तन और मन दोनो सवसथ होने चािहए | इसीिलये कई बूढे लोग साधना की िहममत नहीं जुटा पाते, कयोिक वैषियक भोगो से उनके शरीर का सारा ओज-तेज नष हो चुका होता है | यिद मन मजबूत हो तो भी उनका जजरक शरीर पूरा साथ नहीं दे पाता | दस ू री ओर युवक वगक साधना करने की कमता होते हुए भी संसार की

चकाचौध से पभािवत होकर वैषियक सुखो मे बह जाता है | अपनी वीयश क िक का महिव न समझने के कारण बुरी आदतो मे पडकर उसे खचक कर दे ता है , िफर िजनदगी भर पछताता रहता है |

मेरे पास कई ऐसे युवक आते है , जो भीतर-ही भीतर परे शान रहते है | िकसीको वे

अपना

दःुख-ददक सुना नहीं पाते, कयोिक बुरी आदतो मे पडकर उनहोने अपनी वीयश क िक को खो िदया है | अब, मन और शरीर कमजोर हो गये गये, संसार उनके िलये दःुखालय हो गया, ईशरपािि उनके िलए असंभव हो गई | अब संसार मे रोते-रोते जीवन घसीटना ही रहा |

इसीिलए हर युग मे महापुरष लोग बहचयक पर जोर दे ते है | िजस वयिक के जीवन मे संयम

नहीं है , वह न तो सवयं की ठीक से उननित कर पाता है और न ही समाज मे कोई महान ् कायक कर पाता है | ऐसे वयिकयो से बना हुआ समाज और दे श भी भौितक उननित व आधयाििमक उननित मे िपछड जाता है | उस दे श का शीघ पतन हो जाता है | (अनुिम)

बह चय क कया है ? पहले बहचयक कया है - यह समझना चािहए | ‘याजविकय संिहता’ मे आया है : कम क णा मनसा वाचा सवा

क स थास ु सव क दा |

सव क त म ैथ ुनत ुआ गो ब हचय ा पच कते ||

‘सवक अवसथाओं मे मन, वचन और कमक तीनो से मैथुन का सदै व ियाग हो, उसे बहचयक कहते है |’ भगवान वेदवयासजी ने कहा है : बह चय ा गुि ेिनिसयोपसथ सय संयमः | ‘िवषय-इिनियो दारा पाि होने वाले सुख का संयमपूवक क ियाग करना बहचयक है |’ भगवान शंकर कहते है :

िसद े िबनदौ म हाद ेिव िकं न िसदयित भ ूतल े

|

‘हे पावत क ंी! िबनद ु अथात क वीयरककण िसद होने के बाद कौन-सी िसिद है , जो साधक को पाि नहीं हो सकती ?’

साधना दारा जो साधक अपने वीयक को ऊधवग क ामी बनाकर योगमागक मे आगे बढते है , वे कई

पकार की िसिदयो के मािलक बन जाते है | ऊधवरकेता योगी पुरष के चरणो मे समसत िसिदयाँ दासी बनकर रहती है | ऐसा ऊधवरकेता पुरष परमाननद को जिदी पा सकता है अथात क ् आिमसाकािकार जिदी कर सकता है |

दे वताओं को दे विव भी इसी बहचयक के दारा पाि हुआ है : बह चये ण तप सा द ेवा म ृ ियुम ुपाघनत

इनिो ह ब हचय े ण द ेव ेभयः सवराभरत

| ||

‘बहचयर क पी तप से दे वो ने मिृयु को जीत िलया है | दे वराज इनि ने भी बहचयक के पताप से ही दे वताओं से अिधक सुख व उचच पद को पाि िकया है |’

(अथवव क ेद 1.5.19)

बहचयक बडा गुण है | वह ऐसा गुण है , िजससे मनुषय को िनिय मदद िमलती है और जीवन के सब पकार के खतरो मे सहायता िमलती है |

(अनुिम)

बह चय क उिकृष त प ह ै ऐसे तो तपसवी लोग कई पकार के तप करते है , परनतु बहचयक के बारे मे भगवान शंकर

कहते है :

न त पसतप इियाह ु बक ह चय ा त पोतमम ् |

ऊधव क रेता भव ेदसत ु स देवो न तु मान ुष ः || ‘बहचयक ही उिकृ ष तप है | इससे बढकर तपशयाक तीनो लोको मे दस ू री नहीं हो सकती | ऊधवरकेता पुरष इस लोक मे मनुषयरप मे पियक दे वता ही है |’ जैन शासो मे भी इसे उिकृ ष तप बताया गया है | तवेस ु वा उतम ं ब ं भचेरम ् |

‘बहचयक सब तपो मे उतम तप है |’

वी यक रक ण ह ी ज ीवन है वीयक इस शरीररपी नगर का एक तरह से राजा ही है | यह वीयर क पी राजा यिद पुष है , बलवान ्

है तो रोगरपी शतु कभी शरीररपी नगर पर आिमण नही करते | िजसका वीयर क पी राजा िनबल क है , उस शरीररपी नगर को कई रोगरपी शतु आकर घेर लेते है | इसीिलए कहा गया है : मरण ं िब नदोपात ेन जीवन ं िब नद ु धारणात ् | ‘िबनदन क ाश) ही मिृयु है और िबनदरुकण ही जीवन है |’ ु ाश (वीयन जैन गंथो मे अबहचयक को पाप बताया गया है :

अबंभ चिरय ं घोर ं पमाय ं द ु रिह ििठयम ् |

‘अबहचयक घोर पमादरप पाप है |’ (दश वैकािलक सूत: 6.17) ‘अथवद े ’ मे इसे उिकृ ष वत की संजा दी गई है : वतेष ु व ै व ै बह चय क म ् |

वैदकशास मे इसको परम बल कहा गया है : बह चय ा पर ं ब लम ् | ‘बहचयक परम बल है |’ वीयरककण की मिहमा सभी ने गायी है | योगीराज गोरखनाथ ने कहा है : कंत गया क ूँ का िमनी झूर ै

| िब नद ु गया क ूँ जोगी

||

‘पित के िवयोग मे कािमनी तडपती है और वीयप क तन से योगी पशाताप करता है |’ भगवान शंकर ने तो यहाँ तक कह िदया िक इस बहचयक के पताप से ही मेरी ऐसी महान ् मिहमा हुई है :

यसय प सादानमिह मा ममापय े तादशो भव ेत ् |

(अनुिम)

आधुिन क िच िक िस को क ा मत यूरोप के पितिषत िचिकिसक भी भारतीय योिगयो के कथन का समथन क करते है | डॉ. िनकोल

कहते है :

“यह एक भैषिजक और दे िहक तथय है िक शरीर के सवोतम रक से सी तथा पुरष दोनो ही

जाितयो मे पजनन ततव बनते है | शुद तथा वयविसथत जीवन मे यह ततव पुनः अवशोिषत हो जाता है | यह सूकमतम मिसतषक, सनायु तथा मांसपेिशय ऊतको (Tissue) का िनमाण क करने के

िलये तैयार होकर पुनः पिरसंचारण मे जाता है | मनुषय का यह वीयक वापस ऊपर जाकर शरीर मे िवकिसत होने पर उसे िनभीक, बलवान ्, साहसी तथा वीर बनाता है | यिद इसका अपवयय िकया गया तो यह उसको सण ै , दब क , कृ शकलेवर एवं कामोतेजनशील बनाता है तथा उसके शरीर के ु ल

अंगो के कायवकयापार को िवकृ त एवं सनायुतंत को िशिथल (दब क ) करता है और उसे िमगी (मग ृ ी) ु ल एवं अनय अनेक रोगो और मिृयु का िशकार बना दे ता है | जननेिनिय के वयवहार की िनविृत से शारीिरक, मानिसक तथा अधयाििमक बल मे असाधारण विृद होती है |” परम धीर तथा अधयवसायी वैजािनक अनुसध ं ानो से पता चला है िक जब कभी भी रे तःसाव को सुरिकत रखा जाता तथा इस पकार शरीर मे उसका पुनवश क ोषण िकया जाता है तो वह रक को समद ृ तथा मिसतषक को बलवान ् बनाता है |

डॉ. िडओ लुई कहते है : “शारीिरक बल, मानिसक ओज तथा बौिदक कुशागता के िलये इस ततव का संरकण परम आवशयक है |” एक अनय लेखक डॉ. ई. पी. िमलर िलखते है : “शुिसाव का सवैिचछक अथवा अनैिचछक अपवयय जीवनशिक का पियक अपवयय है | यह पायः सभी सवीकार करते है िक रक के सवोतम ततव शुिसाव की संरचना मे पवेश कर जाते है | यिद यह िनषकषक ठीक है तो इसका अथक यह हुआ िक वयिक के कियाण के िलये जीवन मे बहचयक परम आवशयक है |” पिशम के पखयात िचिकिसक कहते है िक वीयक क य से, िवशेषकर तरणावसथा मे वीयक क य से िविवध पकार के रोग उिपनन होते है | वे है : शरीर मे वण, चेहरे पर मुह ँ ासे अथवा िवसफोट, नेतो

के चतुिदक क नीली रे खाये, दाढी का अभाव, धँसे हुए नेत, रककीणता से पीला चेहरा, समिृतनाश, दिष की कीणता, मूत के साथ वीयस क खलन, अणडकोश की विृद, अणडकोशो मे पीडा, दब क ता, िनिालुता, ु ल

आलसय, उदासी, हदय-कमप, शासावरोध या कषशास, यकमा, पष ृ शूल, किटवात, शोरोवेदना, संिध-पीडा, दब क वक ृ क, िनिा मे मूत िनकल जाना, मानिसक अिसथरता, िवचारशिक का अभाव, दःुसवपन, ु ल सवपन दोष तथा मानिसक अशांित |

उपरोक रोग को िमटाने का एकमात ईलाज बहचयक है | दवाइयो से या अनय उपचारो से ये

रोग सथायी रप से ठीक नहीं होते |

(अनुिम)

वी यक कैस े बन ता है वीयक शरीर की बहुत मूियवान ् धातु है | भोजन से वीयक बनने की पििया बडी लमबी है | शी

सुशत ु ाचायक ने िलखा है :

रसािक ं ततो मा ंस ं मा ंसानम े दः पजायत े | मेदसयािसथ ः ततो मज जा म जजाय ा: शुिस ं भवः || जो भोजन पचता है , उसका पहले रस बनता है | पाँच िदन तक उसका पाचन होकर रक बनता है | पाँच िदन बाद रक मे से मांस, उसमे से 5-5 िदन के अंतर से मेद, मेद से हडडी, हडडी से मजजा और मजजा से अंत मे वीयक बनता है | सी मे जो यह धातु बनती है उसे ‘रज’ कहते है |

वीयक िकस पकार छः-सात मंिजलो से गुजरकर अपना यह अंितम रप धारण करता है , यह सुशत ु के इस कथन से जात हो जाता है | कहते है िक इस पकार वीयक बनने मे करीब 30 िदन व 4 घणटे लग जाते है | वैजिनक लोग कहते है िक 32 िकलोगाम भोजन से 700 गाम रक बनता है और 700 गाम रक से लगभग 20 गाम वीयक बनता है |

(अनुिम)

आकष क क वय िकि व क ा क ारण इस वीयक के संयम से शरीर मे एक अदभुत आकषक क शिक उिपनन होती है िजसे पाचीन वैद

धनवंतिर ने ‘ओज’ नाम िदया है | यही ओज मनुषय को अपने परम-लाभ ‘आिमदशन क ’ कराने मे सहायक बनता है | आप जहाँ-जहाँ भी िकसी वयिक के जीवन मे कुछ िवशेषता, चेहरे पर तेज, वाणी मे बल, कायक मे उिसाह पायेगे, वहाँ समझो इस वीयक रकण का ही चमिकार है |

यिद एक साधारण सवसथ मनुषय एक िदन मे 700 गाम भोजन के िहसाब से चालीस िदन मे

32 िकलो भोजन करे , तो समझो उसकी 40 िदन की कमाई लगभग 20 गाम वीयक होगी | 30 िदन

अथात क महीने की करीब 15 गाम हुई और 15 गाम या इससे कुछ अिधक वीयक एक बार के मैथुन मे पुरष दारा खचक होता है |

मा ली क ी क हान ी एक था माली | उसने अपना तन, मन, धन लगाकर कई िदनो तक पिरशम करके एक सुनदर

बगीचा तैयार िकया | उस बगीचे मे भाँित-भाँित के मधुर सुगंध युक पुषप िखले | उन पुषपो को

चुनकर उसने इकिठा िकया और उनका बिढया इत तैयार िकया | िफर उसने कया िकया समझे आप …? उस इत को एक गंदी नाली ( मोरी ) मे बहा िदया |

अरे ! इतने िदनो के पिरशम से तैयार िकये गये इत को, िजसकी सुगनध से सारा घर

महकने वाला था, उसे नाली मे बहा िदया ! आप कहे गे िक ‘वह माली बडा मूखक था, पागल था …’ मगर अपने आपमे ही झाँककर दे खे | वह माली कहीं और ढू ँ ढने की जररत नहीं है | हममे से कई लोग ऐसे ही माली है |

वीयक बचपन से लेकर आज तक यानी 15-20 वषो मे तैयार होकर ओजरप मे शरीर मे

िवदमान रहकर तेज, बल और सफूितक दे ता रहा | अभी भी जो करीब 30 िदन के पिरशम की

कमाई थी, उसे यूँ ही सामानय आवेग मे आकर अिववेकपूवक क खचक कर दे ना कहाँ की बुिदमानी है ? कया यह उस माली जैसा ही कमक नहीं है ? वह माली तो दो-चार बार यह भूल करने के बाद

िकसी के समझाने पर सँभल भी गया होगा, िफर वही-की-वही भूल नही दोहराई होगी, परनतु आज तो कई लोग वही भूल दोहराते रहते है | अंत मे पशाताप ही हाथ लगता है | किणक सुख के िलये वयिक कामानध होकर बडे उिसाह से इस मैथुनरपी कृ िय मे पडता है परनतु कृ िय पूरा होते ही वह मुदे जैसा हो जाता है | होगा ही | उसे पता ही नहीं िक सुख तो नहीं िमला, केवल सुखाभास हुआ, परनतु उसमे उसने 30-40 िदन की अपनी कमाई खो दी |

युवावसथा आने तक वीयस क ंचय होता है वह शरीर मे ओज के रप मे िसथत रहता है | वह तो

वीयक क य से नष होता ही है , अित मैथुन से तो हिडडयो मे से भी कुछ सफेद अंश िनकलने लगता है , िजससे अियिधक कमजोर होकर लोग नपुस ं क भी बन जाते है | िफर वे िकसी के सममुख आँख उठाकर भी नहीं दे ख पाते | उनका जीवन नारकीय बन जाता है |

वीयरककण का इतना महिव होने के कारण ही कब मैथुन करना, िकससे मैथुन करना, जीवन

मे िकतनी बार करना आिद िनदे शन हमारे ॠिष-मुिनयो ने शासो मे दे रखे है | (अनुिम)

सृ िष ि म के िलए मैथ ुन : एक पाकृित क व यवसथ ा शरीर से वीयक-वयय यह कोई किणक सुख के िलये पकृ ित की वयवसथा नहीं है | सनतानोिपित के िलये इसका वासतिवक उपयोग है | यह पकृ ित की वयवसथा है | यह सिृष चलती रहे , इसके िलए सनतानोिपित होना जररी है | पकृ ित मे हर पकार की वनसपित व पाणीवगक मे यह काम-पविृत सवभावतः पाई जाती है | इस काम- पविृत के वशीभूत होकर हर पाणी मैथुन करता है और उसका रितसुख भी उसे िमलता है | िकनतु इस पाकृ ितक वयवसथा को ही बार-बार किणक सुख का आधार बना लेना कहाँ की बुिदमानी है ? पशु भी

अपनी ॠतु के अनुसार ही इस कामविृत मे पवत ृ होते है और सवसथ रहते है , तो कया मनुषय पशु वगक से भी गया बीता है ? पशुओं मे तो बुिदतिव िवकिसत नहीं होता, परनतु मनुषय मे तो उसका पूणक िवकास होता है |

आहारिनिाभयम ैथ ुन ं च सामानयम ेतिप शुिभ नक राणाम ् |

भोजन करना, भयभीत होना, मैथुन करना और सो जाना यह तो पशु भी करते है | पशु शरीर मे रहकर हम यह सब करते आए है | अब यह मनुषय शरीर िमला है | अब भी यिद बुिद और िववेकपूणक अपने जीवन को नहीं चलाया और किणक सुखो के पीछे ही दौडते रहे तो कैसे अपने मूल लकय पर पहुँच पायेगे ?

(अनुिम)

सह जत ा की आड मे भिम त न होवे कई लोग तकक दे ने लग जाते है : “शासो मे पढने को िमलता है और जानी महापुरषो के

मुखारिवनद से भी सुनने मे आता है िक सहज जीवन जीना चािहए | काम करने की इचछा हुई

तो काम िकया, भूख लगी तो भोजन िकया, नींद आई तो सो गये | जीवन मे कोई ‘टे नशन’, कोई तनाव नहीं होना चािहए | आजकल के तमाम रोग इसी तनाव के ही फल है … ऐसा

मनोवैजािनक कहते है | अतः जीवन सहज और सरल होना चािहए | कबीरदास जी ने भी कहा है : सा धो , सहज स मािध भली |”

ऐसा तकक दे कर भी कई लोग अपने काम-िवकार की तिृि को सहमित दे दे ते है | परनतु यह

अपने आपको धोखा दे ने जैसा है | ऐसे लोगो को खबर ही नहीं है िक ऐसा सहज जीवन तो

महापुरषो का होता है , िजनके मन और बुिद अपने अिधकार मे होते है , िजनको अब संसार मे

अपने िलये पाने को कुछ भी शेष नहीं बचा है , िजनहे मान-अपमान की िचनता नहीं होती है | वे उस आिमततव मे िसथत हो जाते है जहाँ न पतन है न उिथान | उनको सदै व िमलते रहने वाले आननद मे अब संसार के िवषय न तो विृद कर सकते है न अभाव | िवषय-भोग उन महान ्

पुरषो को आकिषत क करके अब बहका या भटका नहीं सकते | इसिलए अब उनके सममुख भले ही िवषय-सामिगयो का ढे र लग जाये िकनतु उनकी चेतना इतनी जागत ृ होती है िक वे चाहे तो उनका उपयोग करे और चाहे तो ठु करा दे | बाहरी िवषयो की बात छोडो, अपने शरीर से भी उनका ममिव टू ट चुका होता है | शरीर रहे अथवा न रहे - इसमे भी उनका आगह नहीं रहता | ऐसे आननदसवरप मे वे अपने-आपको हर समय अनुभव करते रहते है | ऐसी अवसथावालो के िलये कबीर जी ने कहा है : साधो , सहज समा िध भ ली |

(अनुिम)

अप ने को तोल े हम यिद ऐसी अवसथा मे है तब तो ठीक है | अनयथा धयान रहे , ऐसे तकक की आड मे हम अपने को धोखा दे कर अपना ही पतन कर डालेगे | जरा, अपनी अवसथा की तुलना उनकी अवसथा से करे | हम तो, कोई हमारा अपमान कर दे तो िोिधत हो उठते है , बदला तक लेने को तैयार हो जाते है | हम लाभ-हािन मे सम नहीं रहते है | राग-दे ष हमारा जीवन है | ‘मेरा-तेरा’ भी वैसा ही

बना हुआ है | ‘मेरा धन … मेरा मकान … मेरी पती … मेरा पैसा … मेरा िमत … मेरा बेटा … मेरी इजजत … मेरा पद …’ ये सब सिय भासते है िक नहीं ? यही तो दे हभाव है , जीवभाव है | हम इससे ऊपर उठ कर वयवहार कर सकते है कया ? यह जरा सोचे |

कई साधु लोग भी इस दे हभाव से छुटकारा नहीं पा सके, सामानय जन की तो बात ही कया ?

कई साधु भी ‘मै िसयो की तरफ दे खता ही नहीं हूँ … मै पैसे को छूता ही नहीं हूँ …’ इस

पकार की अपनी-अपनी मन और बुिद की पकडो मे उलझे हुए है | वे भी अपना जीवन अभी सहज नहीं कर पाए है और हम … ?

हम अपने साधारण जीवन को ही सहज जीवन का नाम दे कर िवषयो मे पडे रहना चाहते है |

कहीं िमठाई दे खी तो मुह ँ मे पानी भर आया | अपने संबंधी और िरशतेदारो को कोई दःुख हुआ तो भीतर से हम भी दःुखी होने लग गये | वयापार मे घाटा हुआ तो मुह ँ छोटा हो गया | कहीं अपने घर से जयादा िदन दरू रहे तो बार-बार अपने घरवालो की, पती और पुतो की याद सताने लगी | ये कोई सहज जीवन के लकण है , िजसकी ओर जानी महापुरषो का संकेत है ? नहीं | (अनुिम)

मन ोिनग ह की मिहम ा आज कल के नौजवानो के साथ बडा अनयाय हो रहा है | उन पर चारो ओर से िवकारो को

भडकाने वाले आिमण होते रहते है |

एक तो वैसे ही अपनी पाशवी विृतयाँ यौन उचछृंखलता की ओर पोिसािहत करती है और

दस क बढाती है … इस पर उन पविृतयो को ू रे , सामािजक पिरिसथितयाँ भी उसी ओर आकषण

वौजािनक समथन क िमलने लगे और संयम को हािनकारक बताया जाने लगे … कुछ तथाकिथत आचायक भी फायड जैसे नािसतक एवं अधूरे मनोवैजािनक के वयिभचारशास को आधार बनाकर ‘संभोग स े समा िध ’ का उपदे श दे ने लगे तब तो ईशर ही बहचयक और दामपिय जीवन की पिवतता का रकक है |

16 िसतमबर , 1977 के ‘नयूयॉकक टाइमस मे छपा था:

“अमेिरकन पेनल कहती है िक अमेिरका मे दो करोड से अिधक लोगो को मानिसक िचिकिसा की आवशयकता है |” उपरोक पिरणामो को दे खते हुए अमेिरका के एक महान ् लेखक, समपादक और िशका िवशारद

शी मािटक न गोस अपनी पुसतक ‘The Psychological Society’ मे िलखते है : “हम िजतना समझते है उससे कहीं जयादा फायड के मानिसक रोगो ने हमारे मानस और समाज मे गहरा पवेश पा

िलया है | यिद हम इतना जान ले िक उसकी बाते पायः उसके िवकृ त मानस के ही पितिबमब है

और उसकी मानिसक िवकृ ितयो वाले वयिकिव को पहचान ले तो उसके िवकृ त पभाव से बचने मे सहायता िमल सकती है | अब हमे डॉ. फायड की छाया मे िबिकुल नहीं रहना चािहए |” आधुिनक मनोिवजान का मानिसक िवशेषण, मनोरोग शास और मानिसक रोग की िचिकिसा … ये फायड के रगण मन के पितिबमब है | फायड सवयं सफिटक कोलोन, पायः सदा रहने वाला मानिसक अवसाद, सनायिवक रोग, सजातीय समबनध, िवकृ त सवभाव, माईगेन, कबज, पवास, मिृयु और धननाश भय, साईनोसाइिटस, घण ृ ा और खूनी िवचारो के दौरे आिद रोगो से पीिडत था | पोफेसर एडलर और पोफेसर सी. जी. जुग ं जैसे मूधन क य मनोवैजािनको ने फायड के िसदांतो का खंडन कर िदया है िफर भी यह खेद की बात है िक भारत मे अभी भी कई मानिसक रोग िवशेषज और सेकसोलॉिजसट फायड जैसे पागल वयिक के िसदांतो को आधार लेकर इस दे श के जवानो को अनैितक और अपाकृ ितक मैथुन (Sex) का, संभोग का उपदे श वतम क ान पतो और

सामयोको के दारा दे ते रहते है | फायड ने तो मिृयु के पहले अपने पागलपन को सवीकार िकया था लेिकन उसके लेिकन उसके सवयं सवीकार न भी करे तो भी अनुयायी तो पागल के ही माने

जायेगे | अब वे इस दे श के लोगो को चिरतभष करने का और गुमराह करने का पागलपन छोड दे ऐसी हमारी नम पाथन क ा है | यह ‘यौव न स ुरका ’ पुसतक पाँच बार पढे और पढाएँ- इसी मे सभी का कियाण िनिहत है |

आँकडे बताते है िक आज पाशािय दे शो मे यौन सदाचार की िकतनी दग ु िकत हुई है ! इस

दग ु िकत के पिरणामसवरप वहाँ के िनवािसयो के वयिकगत जीवन मे रोग इतने बढ गये है िक

भारत से 10 गुनी जयादा दवाइयाँ अमेिरका मे खचक होती है जबिक भारत की आबादी अमेिरका से तीन गुनी जयादा है | मानिसक रोग इतने बढे है िक हर दस अमेिरकन मे से एक को मानिसक

रोग होता है | दव क नाएँ इतनी बढी है िक हर छः सेकणड मे एक बलािकार होता है और हर वषक ु ास लगभग 20 लाख कनयाएँ िववाह के पूवक ही गभव क ती हो जाती है | मुक साहचयक (free sex) का

िहमायती होने के कारण शादी के पहले वहाँ का पायः हर वयिक जातीय संबध ं बनाने लगता है | इसी वजह से लगभग 65% शािदयाँ तलाक मे बदल जाती है | मनुषय के िलये पकृ ित दारा

िनधािकरत िकये गये संयम का उपहास करने के कारण पकृ ित ने उन लोगो को जातीय रोगो का िशकार बना रखा है | उनमे मुखयतः एडस (AIDS) की बीमारी िदन दन ू ी रात चौगुनी फैलती जा रही है | वहाँ के पािरवािरक व सामािजक जीवन मे िोध, कलह, असंतोष, संताप, उचछृंखलता,

उदंडता और शतुता का महा भयानक वातावरण छा गया है | िवश की लगभग 4% जनसंखया

अमेिरका मे है | उसके उपभोग के िलये िवश की लगभग 40% साधन-सामगी (जैसे िक कार, टी वी, वातानुकूिलत मकान आिद) मौजूद है िफर भी वहाँ अपराधविृत इतनी बढी है की हर 10

सेकणड मे एक सेधमारी होती है , हर लाख वयिकयो मे से 425 वयिक कारागार मे सजा भोग रहे है जबिक भारत मे हर लाख वयिक मे से केवल 23 वयिक ही जेल की सजा काट रहे है | कामुकता के समथक क फायड जैसे दाशिकनको की ही यह दे न है िक िजनहोने पशािय दे शो को मनोिवजान के नाम पर बहुत पभािवत िकया है और वहीं से यह आँधी अब इस दे श मे भी

फैलती जा रही है | अतः इस दे श की भी अमेिरका जैसी अवदशा हो, उसके पहले हमे सावधान रहना पडे गा | यहाँ के कुछ अिवचारी दाशिकनक भी फायड के मनोिवजान के आधार पर युवानो को बेलगाम संभोग की तरफ उिसािहत कर रहे है , िजससे हमारी युवापीढी गुमराह हो रही है | फायड ने तो केवल मनोवैजािनक मानयताओं के आधार पर वयिभचार शास बनाया लेिकन तथाकिथत दाशिकनक ने तो ‘संभोग स े समा िध ’ की पिरकिपना दारा वयिभचार को आधयाििमक जामा

पहनाकर धािमक क लोगो को भी भष िकया है | संभोग स े समा िध नही ं हो ती , सियान ाश होता

है | ‘संयम से ही समािध होती है …’ इस भारतीय मनोिवजान को अब पाशािय मनोिवजानी भी सिय मानने लगे है | जब पिशम के दे शो मे जान-िवजान का िवकास पारमभ भी नहीं हुआ था और मानव ने

संसकृ ित के केत मे पवेश भी नहीं िकया था उस समय भारतवषक के दाशिकनक और योगी मानव

मनोिवजान के िविभनन पहलुओं और समसयाओं पर गमभीरता पूवक क िवचार कर रहे थे | िफर भी पाशािय िवजान की छतछाया मे पले हुए और उसके पकाश से चकाचौध वतम क ान भारत के

मनोवैजािनक भारतीय मनोिवजान का अिसततव तक मानने को तैयार नहीं है | यह खेद की बात है | भारतीय मनोवैजािनको ने चेतना के चार सतर माने है : जागत, सवपन, सुषुिि और तुरीय | पाशािय मनोवैजािनक पथम तीन सतर को ही जानते है | पाशािय मनोिवजान नािसतक है |

भारतीय मनोिवजान ही आिमिवकास और चिरत िनमाण क मे सबसे अिधक उपयोगी िसद हुआ है

कयोिक यह धमक से अियिधक पभािवत है | भारतीय मनोिवजान आिमजान और आिम सुधार मे सबसे अिधक सहायक िसद होता है | इसमे बुरी आदतो को छोडने और अचछी आदतो को

अपनाने तथा मन की पिियाओं को समझने तथा उसका िनयंतण करने के महिवपूणक उपाय बताये गये है | इसकी सहायता से मनुषय सुखी, सवसथ और सममािनत जीवन जी सकता है |

पिशम की मनोवैजािनक मानयताओं के आधार पर िवशशांित का भवन खडा करना बालू की नींव पर भवन-िनमाण क करने के समान है | पाशािय मनोिवजान का पिरणाम िपछले दो िवशयुदो

के रप मे िदखलायी पडता है | यह दोष आज पिशम के मनोवैजािनको की समझ मे आ रहा है | जबिक भारतीय मनोिवजान मनुषय का दै वी रपानतरण करके उसके िवकास को आगे बढाना

चाहता है | उसके ‘अनेकता मे एकता’ के िसदांत पर ही संसार के िविभनन राषो, सामािजक वगो, धमो और पजाितयो मे सिहषणुता ही नहीं, सििय सहयोग उिपनन िकया जा सकता है | भारतीय मनोिवजान मे शरीर और मन पर भोजन का कया पभाव पडता है इस िवषय से लेकर शरीर मे िविभनन चिो की िसथित, कुणडिलनी की िसथित, वीयक को ऊधवग क ामी बनाने की पििया आिद

िवषयो पर िवसतारपूवक क चचाक की गई है | पाशािय मनोिवजान मानव-वयवहार का िवजान है | भारतीय मनोिवजान मानस िवजान के साथ-साथ आिमिवजान है | भारतीय मनोिवजान

इिनियिनयंतण पर िवशेष बल दे ता है जबिक पाशािय मनोिवजान केवल मानिसक िियाओं या मिसतषक-संगठन पर बल दे ता है | उसमे मन दारा मानिसक जगत का ही अधययन िकया जाता

है | उसमे भी पायड का मनोिवजान तो एक रगण मन के दारा अनय रगण मनो का ही अधययन है जबिक भारतीय मनोिवजान मे इिनिय-िनरोध से मनोिनरोध और मनोिनरोध से आिमिसिद का ही लकय मानकर अधययन िकया जाता है | पाशािय मनोिवजान मे मानिसक तनावो से मुिक का

कोई समुिचत साधन पिरलिकत नहीं होता जो उसके वयिकिव मे िनिहत िनषेधािमक पिरवेशो के िलए सथायी िनदान पसतुत कर सके | इसिलए पायड के लाखो बुिदमान अनुयायी भी पागल हो गये | संभोग के मागक पर चलकर कोई भी वयिक योगिसद महापुरष नहीं हुआ | उस मागक पर

चलनेवाले पागल हुए है | ऐसे कई नमूने हमने दे खे है | इसके िवपरीत भारतीय मनोिवजान मे

मानिसक तनावो से मुिक के िविभनन उपाय बताये गये है यथा योगमागक, साधन-चतुषय, शुभसंसकार, सिसंगित, अभयास, वैरागय, जान, भिक, िनषकाम कमक आिद | इन साधनो के िनयिमत

अभयास से संगिठत एवं समायोिजत वयिकिव का िनमाण क संभव है | इसिलये भारतीय मनोिवजान के अनुयायी पािणिन और महाकिव कािलदास जैसे पारमभ मे अिपबुिद होने पर भी महान िवदान हो गये | भारतीय मनोिवजान ने इस िवश को हजारो महान भक समथक योगी तथा बहजानी महापुरष िदये है |

अतः पाशचािय मनोिवजान को छोडकर भारतीय मनोिवजान का आशय लेने मे ही वयिक,

कुटु मब, समाज, राष और िवश का कियाण िनिहत है |

भारतीय मनोिवजान पतंजिल के िसदांतो पर चलनेवाले हजारो योगािसद महापुरष इस

दे श मे हुए है , अभी भी है और आगे भी होते रहे गे जबिक संभोग के मागक पर चलकर कोई

योगिसद महापुरष हुआ हो ऐसा हमने तो नहीं सुना बििक दब क हुए, रोगी हुए, एडस के िशकार ु ल

हुए, अकाल मिृयु के िशकार हुए, िखनन मानस हुए, अशांात हुए | उस मागक पर चलनेवाले पागल हुए है , ऐसे कई नमूने हमने दे खे है |

फायड ने अपनी मनःिसथित की तराजू पर सारी दिुनया के लोगो को तौलने की गलती

की है | उसका अपना जीवन-िम कुछ बेतुके ढं ग से िवकिसत हुआ है | उसकी माता अमेिलया बडी खूबसूरत थी | उसने योकोव नामक एक अनय पुरष के साथ अपना दस ू रा िववाह िकया था | जब फायड जनमा तब वह २१ वषक की थी | बचचे को वह बहुत पयार करती थी |

ये घटनाएँ फायड ने सवयं िलखी है | इन घटनाओं के अधार पर फायड कहता है : “पुरष बचपन से ही ईिडपस कॉमपलेकस (Oedipus Complex) अथात क अवचेतन मन मे अपनी माँ के पित यौन-आकांका से आकिषत क होता है तथा अपने िपता के पित यौन-ईषयाक से गिसत रहता है | ऐसे ही लडकी अपने बाप के पित आकिषत क होती है तथा अपनी माँ से ईषयाक करती है | इसे इलेकटा कोऊमपलेकस (Electra Complex) कहते है | तीन वषक की आयु से ही बचचा अपनी माँ के साथ यौन-समबनध सथािपत करने के िलये लालाियत रहता है | एकाध साल के बाद जब उसे पता

चलता है िक उसकी माँ के साथ तो बाप का वैसा संबध ं पहले से ही है तो उसके मन मे बाप के पित ईषयाक और घण ृ ा जाग पडती है | यह िवदे ष उसके अवचेतन मन मे आजीवन बना रहता है | इसी पकार लडकी अपने बाप के पित सोचती है और माँ से ईषयाक करती है |"

फायड आगे कहता है : "इस मानिसक अवरोध के कारण मनुषय की गित रक जाती है |

'ईिडपस कोऊमपलेकस' उसके सामने तरह-तरह के अवरोध खडे करता है | यह िसथित कोई अपवाद नहीं है वरन साधारणतया यही होता है | यह िकतना घिृणत और हासयासपद पितपादन है ! छोटा बचचा यौनाकांका से पीिडत होगा, सो भी अपनी माँ के पित ? पशु-पिकयो के बचचे के शरीर मे भी वासना तब उठती है जब उनके शरीर पजनन के योगय सुदढ हो जाते है | ... तो मनुषय के बालक मे यह विृत इतनी छोटी आयु मे कैसे पैदा हो सकती है ? ... और माँ के साथ वैसी तिृि करने िक उसकी शािरिरक-मानिसक िसथित भी नहीं होती | िफर तीन वषक के बालक को काम-ििया और माँ-बाप के रत रहने की जानकारी उसे कहाँ से हो जाती है ? िफर वह यह कैसे समझ लेता है िक उसे बाप से ईषयाक करनी चािहए ?

बचचे दारा माँ का दध ू पीने की ििया को ऐसे मनोिवजािनयो ने रितसुख के समकक

बतलाया है | यिद इस सतनपान को रितसुख माना जाय तब तो आयु बढने के साथ-साथ यह

उिकंठा भी पबलतर होती जानी चािहए और वयसक होने तक बालक को माता का द ूध ही पीते रहना चािहए | िकनतु यह िकस पकार संभव है ?

... तो ये ऐसे बेतुके पितपादन है िक िजनकी भिसन क ा ही की जानी चािहए | फायड ने अपनी मानिसक िवकृ ितयो को जनसाधारण पर थोपकर मनोिवजान को िवकृ त बना िदया | जो लोग मानव समाज को पशुता मे िगराने से बचाना चाहते है , भावी पीढी का जीवन िपशाच होने से बचाना चाहते है , युवानो का शारीिरक सवासथय, मानिसक पसननता और बौिदक

सामथयक बनाये रखना चाहते है , इस दे श के नागिरको को एडस (AIDS) जैसी घातक बीमािरयो से गसत होने से रोकना चाहते है , सवसथ समाज का िनमाण क करना चाहते है उन सबका यह नैितक कतवयक है िक वे हमारी गुमराह युवा पीढी को 'यौव न सुरका ' जैसी पुसतके पढाये |

यिद काम-िवकार उठा और हमने 'यह ठीक नहीं है ... इससे मेरे बल-बुिद और तेज का

नाश होगा ...' ऐसा समझकर उसको टाला नहीं और उसकी पूितक मे लमपट होकर लग गये, तो हममे और पशुओं मे अंतर ही कया रहा ? पशु तो जब उनकी कोई िवशेष ऋतु होती है तभी

मैथुन करते है , बाकी ऋतुओं मे नहीं | इस दिष से उनका जीवन सहज व पाकृ ितक ढं ग का होता है | परं तु मनुषय ... ! मनुषय तो बारहो महीने काम-ििया की छूट लेकर बैठा है और ऊपर से यह भी कहता है िक यिद काम-वासना की पूितक करके सुख नहीं िलया तो िफर ईशर ने मनुषय मे जो इसकी रचना की है , उसका कया मतलब ? ... आप अपने को िववेकपूणक रोक नहीं पाते हो, छोटे -छोटे सुखो मे उलझ जाते हो- इसका तो कभी खयाल ही नहीं करते और ऊपर से भगवान तक को अपने पापकमो मे भागीदार बनाना चाहते हो ?

(अनुिम)

आिम घा ती त कक अभी कुछ समय पूवक मेरे पास एक पत आया | उसमे एक वयिक ने पूछा था: “आपने सिसंग मे कहा और एक पुिसतका मे भी पकािशत हुआ िक : ‘बीडी, िसगरे ट, तमबाकू आिद मत िपयो |

ऐसे वयसनो से बचो, कयोिक ये तुमहारे बल और तेज का हरण करते है …’ यिद ऐसा ही है तो भगवान ने तमबाकू आिद पैदा ही कयो िकया ?” अब उन सजजन से ये वयसन तो छोडे नहीं जाते और लगे है भगवान के पीछे | भगवान ने गुलाब के साथ काँटे भी पैदा िकये है | आप फूल छोडकर काँटे तो नहीं तोडते ! भगवान ने आग

भी पैदा की है | आप उसमे भोजन पकाते हो, अपना घर तो नहीं जलाते ! भगवान ने आक (मदार), धतूरे, बबूल आिद भी बनाये है , मगर उनकी तो आप सबजी नहीं बनाते ! इन सब मे तो आप अपनी बुिद का उपयोग करके वयवहार करते हो और जहाँ आप हार जाते हो, जब आपका मन आपके कहने मे नहीं होता। तो आप लगते हो भगवान को दोष दे ने ! अरे , भगवान ने तो

बादाम-िपसते भी पैदा िकये है , दध ू भी पैदा िकया है | उपयोग करना है तो इनका करो, जो आपके बल और बुिद की विृद करे | पैसा ही खचन क ा है तो इनमे खचो | यह तो होता नहीं और लगे है

तमबाकू के पीछे | यह बुिद का सदप ु योग नहीं है , दर ु पयोग है | तमबाकू पीने से तो बुिद और भी कमजोर हो जायेगी |

शरीर के बल बुिद की सुरका के िलये वीयरककण बहुत आवशयक है | योगदशन क के ‘साधपाद’

मे बहचयक की महता इन शबदो मे बतायी गयी है : बह चय क पितषाया ं वीय क लाभः ||37||

बहचयक की दढ िसथित हो जाने पर सामथयक का लाभ होता है | (अनुिम)

सी पसं ग िक तन ी ब ार ? िफर भी यिद कोई जान-बूझकर अपने सामथयक को खोकर शीहीन बनना चाहता हो तो यह

यूनान के पिसद दाशिकनक सुकरात के इन पिसद वचनो को सदै व याद रखे | सुकरात से एक वयिक ने पूछा :

“पुरष के िलए िकतनी बार सी-पसंग करना उिचत है ?” “जीवन भर मे केवल एक बार |”

“यिद इससे तिृि न हो सके तो ?” “तो वषक मे एक बार |”

“यिद इससे भी संतोष न हो तो ?” “िफर महीने मे एक बार |”

इससे भी मन न भरे तो ?” “तो महीने मे दो बार करे , परनतु मिृयु शीघ आ जायेगी |” “इतने पर भी इचछा बनी रहे तो कया करे ?” इस पर सुकरात ने कहा :

“तो ऐसा करे िक पहले कब खुदवा ले, िफर कफन और लकडी घर मे लाकर तैयार रखे | उसके पशात जो इचछा हो, सो करे |” सुकरात के ये वचन सचमुच बडे पेरणापद है | वीयक क य के दारा िजस-िजसने भी सुख लेने का पयास िकया है , उनहे घोर िनराशा हाथ लगी है और अनत मे शीहीन होकर मिृयु का गास

बनना पडा है | कामभोग दारा कभी तिृि नहीं होती और अपना अमूिय जीवन वयथक चला जाता है | राजा ययाित की कथा तो आपने सुनी होगी |

(अनुिम)

राजा य या ित क ा अ नुभ व शुिाचायक के शाप से राजा ययाित युवावसथा मे ही वद ृ हो गये थे | परनतु बाद मे ययाित के

पाथन क ा करने पर शुिाचायक ने दयावश उनको यह शिक दे दी िक वे चाहे तो अपने पुतो से

युवावसथा लेकर अपना वाधक क य उनहे दे सकते थे | तब ययाित ने अपने पुत यद ु, तवस क ु, िह ु ु और अनु से उनकी जवानी माँगी, मगर वे राजी न हुए | अंत मे छोटे पुत पुर ने अपने िपता को अपना यौवन दे कर उनका बुढापा ले िलया |

पुनः युवा होकर ययाित ने िफर से भोग भोगना शुर िकया | वे ननदनवन मे िवशाची नामक अपसरा के साथ रमण करने लगे | इस पकार एक हजार वषक तक भोग भोगने के बाद भी भोगो

से जब वे संतुष नहीं हुए तो उनहोने अपना बचा हुआ यौवन अपने पुत पुर को लौटाते हुए कहा : न जात ु का मः कामानाम ुपभोग ेन शामय ित | हिव षा कृषणविम े व भ ूय एवािभ वधक ते ||

“पुत ! मैने तुमहारी जवानी लेकर अपनी रिच, उिसाह और समय के अनुसार िवषयो का सेवन

िकया लेिकन िवषयो की कामना उनके उपभोग से कभी शांत नहीं होती, अिपतु घी की आहुित पडने पर अिगन की भाँित वह अिधकािधक बढती ही जाती है |

रतो से जडी हुई सारी पथ ृ वी, संसार का सारा सुवणक, पशु और सुनदर िसयाँ, वे सब एक पुरष

को िमल जाये तो भी वे सबके सब उसके िलये पयाि क नहीं होगे | अतः तषृणा का ियाग कर दे ना चािहए |

छोटी बुिदवाले लोगो के िलए िजसका ियाग करना अियंत किठन है , जो मनुषय के बूढे होने

पर भी सवयं बूढी नहीं होती तथा जो एक पाणानतक रोग है उस तषृणा को ियाग दे नेवाले पुरष को ही सुख िमलता है |” (महाभारत : आिदपवािकण संभवपवक : 12)

ययाित का अनुभव वसतुतः बडा मािमक क और मनुषय जाित ले िलये िहतकारी है | ययाित आगे कहते है : “पुत ! दे खो, मेरे एक हजार वषक िवषयो को भोगने मे बीत गये तो भी तषृणा शांत नहीं होती और आज भी पितिदन उन िवषयो के िलये ही तषृणा पैदा होती है | पूण ा वष क सह सं म े िव षयासकच ेतस ः | तथापयन ुिदन ं त ृ षणा म मैत ेषविभ जायत े || इसिलए पुत ! अब मै िवषयो को छोडकर बहाभयास मे मन लगाऊँगा | िनदक नद तथा ममतारिहत होकर वन मे मग ृ ो के साथ िवचरँगा | हे पुत ! तुमहारा भला हो | तुम पर मै पसनन हूँ | अब तुम अपनी जवानी पुनः पाि करो और मै यह राजय भी तुमहे ही अपण क करता हूँ |

इस पकार अपने पुत पुर को राजय दे कर ययाित ने तपसया हे तु वनगमन िकया | उसी राजा

पुर से पौरव वंश चला | उसी वंश मे परीिकत का पुत राजा जनमेजय पैदा हुआ था | (अनुिम)

राजा मु चक नद क ा प संग राजा मुचकनद गगाच क ायक के दशन क -सिसंग के फलसवरप भगवान का दशन क पाते है | भगवान से सतुित करते हुए वे कहते है : “पभो ! मुझे आपकी दढ भिक दो |” तब भगवान कहते है : “तूने जवानी मे खूब भोग भोगे है , िवकारो मे खूब डू बा है | िवकारी

जीवन जीनेवाले को दढ भिक नहीं िमलती | मुचकनद ! दढ भिक के िलए जीवन मे संयम बहुत जररी है | तेरा यह कितय शरीर समाि होगा तब दस ू रे जनम मे तुझे दढ भिक पाि होगी |” वही राजा मुचकनद किलयुग मे नरिसंह मेहता हुए | जो लोग अपने जीवन मे वीयरकका को महिव नहीं दे ते, वे जरा सोचे िक कहीं वे भी राजा

ययाित का तो अनुसरण नहीं कर रहे है ! यिद कर रहे हो तो जैसे ययाित सावधान हो गये, वैसे आप भी सावधान हो जाओ भैया ! िहममत करो | सयाने हो जाओ | दया करो | हम पर दया न

करो तो अपने-आप पर तो दया करो भैया ! िहममत करो भैया ! सयाने हो जाओ मेरे पयारे ! जो

हो गया उसकी िचनता न करो | आज से नवजीवन का पारं भ करो | बहचयरकका के आसन, पाकृ ितक औषिधयाँ इियािद जानकर वीर बनो | ॐ … ॐ … ॐ … (अनुिम)

गल त अ भय ास का दु षप िरण ाम आज संसार मे िकतने ही ऐसे अभागे लोग है , जो शंग ृ ार रस की पुसतके पढकर, िसनेमाओं के

कुपभाव के िशकार होकर सवपनावसथा या जागतावसथा मे अथवा तो हसतमैथुन दारा सिाह मे िकतनी बार वीयन क ाश कर लेते है | शरीर और मन को ऐसी आदत डालने से वीयाश क य बार-बार

खाली होता रहता है | उस वीयाश क य को भरने मे ही शारीिरक शिक का अिधकतर भाग वयय होने लगता है , िजससे शरीर को कांितमान ् बनाने वाला ओज संिचत ही नहीं हो पाता और वयिक

शिकहीन, ओजहीन और उिसाहशूनय बन जाता है | ऐसे वयिक का वीयक पतला पडता जाता है | यिद वह समय पर अपने को सँभाल नहीं सके तो शीघ ही वह िसथित आ जाती है िक उसके

अणडकोश वीयक बनाने मे असमथक हो जाते है | िफर भी यिद थोडा बहुत वीयक बनता है तो वह भी पानी जैसा ही बनता है िजसमे सनतानोिपित की ताकत नहीं होती | उसका जीवन जीवन नहीं

रहता | ऐसे वयिक की हालत मत ृ क पुरष जैसी हो जाती है | सब पकार के रोग उसे घेर लेते है | कोई दवा उस पर असर नहीं कर पाती | वह वयिक जीते जी नकक का दःुख भोगता रहता है | शासकारो ने िलखा है :

आयुसत ेजोबल ं वीय ा प जा श ीश महदय शः | पुणय ं च पी ितमिव ं च हनयत े ऽबहचया क ||

‘आयु, तेज, बल, वीयक, बुिद, लकमी, कीितक, यश तथा पुणय और पीित ये सब बहचयक का पालन न

करने से नष हो जाते है |’

(अनुिम)

वी यक रक ण सद ैव सत ुिय इसीिलए वीयरकका सतुिय है | ‘अथवव क ेद मे कहा गया है : अित स ृ षो अपा व ृ षभोऽ ितस ृ षा अगनयो

िदवया

इदं त मित स ृ जािम तं माऽभयविन िक ||2||

||1||

अथात क ् ‘शरीर मे वयाि वीयक रपी जल को बाहर ले जाने वाले, शरीर से अलग कर दे ने वाले

काम को मैने परे हटा िदया है | अब मै इस काम को अपने से सवथ क ा दरू फेकता हूँ | मै इस आरोगयता, बल-बुिदनाशक काम का कभी िशकार नहीं होऊँगा |’

… और इस पकार के संकिप से अपने जीवन का िनमाण क न करके जो वयिक वीयन क ाश करता

रहता है , उसकी कया गित होगी, इसका भी ‘अथवव क ेद’ मे उिलेख आता है : रजन ् पिररजन ् मृ णन ् पिरम ृ णन ् |

मोको मनोहा

खनो िनदा क ह आिमद ू िषसतन द ू ू िषः ||

यह काम रोगी बनाने वाला है , बहुत बुरी तरह रोगी करने वाला है | मण ृ न ् यानी मार दे ने

वाला है | पिरमण ृ न ् यानी बहुत बुरी तरह मारने वाला है |यह टे ढी चाल चलता है , मानिसक

शिकयो को नष कर दे ता है | शरीर मे से सवासथय, बल, आरोगयता आिद को खोद-खोदकर बाहर फेक दे ता है | शरीर की सब धातुओं को जला दे ता है | आिमा को मिलन कर दे ता है | शरीर के वात, िपत, कफ को दिूषत करके उसे तेजोहीन बना दे ता है | बहचयक के बल से ही अंगारपणक जैसे बलशाली गंधवरकाज को अजुन क ने परािजत कर िदया था | (अनुिम)

अजुक न औ र अं ग ार पणक गं धव क अजुन क अपने भाईयो सिहत िौपदी के सवंयवर-सथल पांचाल दे श की ओर जा रहा था, तब बीच मे गंगा तट पर बसे सोमाशयाण तीथक मे गंधवरकाज अंगारपणक (िचतरथ) ने उसका रासता रोक

िदया | वह गंगा मे अपनी िसयो के साथ जलििडा कर रहा था | उसने पाँचो पांडवो को कहा : “मेरे यहाँ रहते हुए राकस, यक, दे वता अथवा मनुषय कोई भी इस मागक से नहीं जा सकता | तुम लोग जान की खैर चाहते हो तो लौट जाओ |” तब अजुन क कहता है :

“मै जानता हूँ िक समपूणक गंधवक मनुषयो से अिधक शिकशाली होते है , िफर भी मेरे आगे

तुमहारी दाल नहीं गलेगी | तुमहे जो करना हो सो करो, हम तो इधर से ही जायेगे |”

अजुन क के इस पितवाद से गंधवक बहुत िोिधत हुआ और उसने पांडवो पर तीकण बाण छोडे |

अजुन क ने अपने हाथ मे जो जलती हुई मशाल पकडी थी, उसीसे उसके सभी बाणो को िनषफल

कर िदया | िफर गंधवक पर आगनेय अस चला िदया | अस के तेज से गंधवक का रथ जलकर भसम हो गया और वह सवंय घायल एवं अचेत होकर मुँह के बल िगर पडा | यह दे खकर उस गंधवक की

पती कुममीनसी बहुत घबराई और अपने पित की रकाथक युिधिषर से पाथन क ा करने लगी | तब युिधिषर ने अजुन क से उस गंधवक को अभयदान िदलवाया | जब वह अंगारपणक होश मे आया तब बोला ; “अजुन क ! मै परासत हो गया, इसिलए अपने पूवक नाम अंगारपणक को छोड दे ता हूँ

| मै अपने

िविचत रथ के कारण िचतरथ कहलाता था | वह रथ भी आपने अपने परािम से दगध कर िदया है | अतः अब मै दगधरथ कहलाऊँगा | मेरे पास चाकुषी नामक िवदा है िजसे मनु ने सोम को, सोम ने िवशावसु को और िवशावसु ने मुझे पदान की है | यह गुर की िवदा यिद िकसी कायर को िमल जाय तो नष हो जाती है |

जो छः महीने तक एक पैर पर खडा रहकर तपसया करे , वही इस िवदा को पा सकता है | परनतु अजुन क ! मै आपको ऐसी तपसया के िबना ही यह िवदा पदान करता हूँ | इस िवदा की िवशेषता यह है िक तीनो लोको मे कहीं भी िसथत िकसी वसतु को आँख से दे खने की इचछा हो तो उसे उसी रप मे इस िवदा के पभाव से कोई भी वयिक दे ख सकता है | अजुन क ! इस िवदा के बल पर हम लोग मनुषयो से शष े माने जाते है और दे वताओं के तुिय पभाव िदखा सकते है |” इस पकार अंगारपणक ने अजुन क को चाकुषी िवदा, िदवय घोडे एवं अनय वसतुएँ भेट कीं | अजुन क ने गंधवक से पूछा : गंधवक ! तुमने हम पर एकाएक आिमण कयो िकया और िफर हार

कयो गये ?”

तब गंधवक ने बडा ममभ क रा उतर िदया | उसने कहा :

“शतुओं को संताप दे नेवाले वीर ! यिद कोई कामासक कितय रात मे मुझसे युद करने आता तो िकसी भी पकार जीिवत नहीं बच सकता था कयोिक रात मे हम लोगो का बल और भी बढ जाता है |

अपने बाहुबल का भरोसा रखने वाला कोई भी पुरष जब अपनी सी के सममुख िकसीके दारा

अपना ितरसकार होते दे खता है तो सहन नहीं कर पाता | मै जब अपनी सी के साथ जलिीडा

कर रहा था, तभी आपने मुझे ललकारा, इसीिलये मै िोधािवष हुआ और आप पर बाणवषाक की | लेिकन यिद आप यह पूछो िक मै आपसे परािजत कयो हुआ तो उसका उतर है : बह चय ा परो ध मक ः स चािप

िनयतसवतिय

|

यसमात ् तसमादह ं पाथ क रण ेऽ िसम िविज तसिवया

||

“बहचयक सबसे बडा धमक है और वह आपमे िनिशत रप से िवदमान है | हे कुनतीनंदन !

इसीिलये युद मे मै आपसे हार गया हूँ |”

(महाभारत : आिदपविकण चैतरथ पवक : 71)

हम समझ गये िक वीयरककण अित आवशयक है | अब वह कैसे हो इसकी चचाक करने से पूवक एक बार बहचयक का ताितवक अथक ठीक से समझ ले |

(अनुिम)

बह चय क का ता ितवक अ थक ‘बहचयक’ शबद बडा िचताकषक क और पिवत शबद है | इसका सथूल अथक तो यही पिसद है िक

िजसने शादी नहीं की है , जो काम-भोग नहीं करता है , जो िसयो से दरू रहता है आिद-आिद |

परनतु यह बहुत सतही और सीिमत अथक है | इस अथक मे केवल वीयरककण ही बहचयक है | परनतु

धयान रहे , केवल वीयरककण मात साधना है , मंिजल नहीं | मनुषय जीवन का लकय है अपने-आपको जानना अथात क ् आिम-साकािकार करना | िजसने आिम-साकािकार कर िलया, वह जीवनमुक हो गया | वह आिमा के आननद मे, बहाननद मे िवचरण करता है | उसे अब संसार से कुछ पाना

शेष नहीं रहा | उसने आननद का सोत अपने भीतर ही पा िलया | अब वह आननद के िलये िकसी भी बाहरी िवषय पर िनभरक नहीं है | वह पूणक सवतंत है | उसकी िियाएँ सहज होती है | संसार के िवषय उसकी आननदमय आििमक िसथित को डोलायमान नहीं कर सकते | वह संसार के तुचछ िवषयो की पोल को समझकर अपने आननद मे मसत हो इस भूतल पर िवचरण करता है | वह

चाहे लँगोटी मे हो चाहे बहुत से कपडो मे, घर मे रहता हो चाहे झोपडे मे, गह ृ सथी चलाता हो चाहे एकानत जंगल मे िवचरता हो, ऐसा महापुरष ऊपर से भले कंगाल नजर आता हो, परनतु भीतर से शहं शाह होता है , कयोिक उसकी सब वासनाएँ, सब कतवकय पूरे हो चुके है | ऐसे वयिक को, ऐसे

महापुरष को वीयरककण करना नहीं पडता, सहज ही होता है | सब वयवहार करते हुए भी उनकी हर समय समािध रहती है | उनकी समािध सहज होती है , अखणड होती है | ऐसा महापुरष ही सचचा बहचारी होता है , कयोिक वह सदै व अपने बहाननद मे अविसथत रहता है |

सथूल अथक मे बहचयक का अथक जो वीयरककण समझा जाता है , उस अथक मे बहचयक शष े वत है ,

शष े तप है , शष े साधना है और इस साधना का फल है आिमजान, आिम-साकािकार | इस फलपािि के साथ ही बहचयक का पूणक अथक पकट हो जाता है |

जब तक िकसी भी पकार की वासना शेष है , तब तक कोई पूणक बहचयक को उपलबध नहीं हो सकता | जब तक आिमजान नहीं होता तब तक पूणक रप से वासना िनवत ृ नहीं होती | इस

वासना की िनविृत के िलये, अंतःकरण की शुिद के िलये, ईशर की पािि के िलये, सुखी जीवन जीने के िलये, अपने मनुषय जीवन के सवोचच लकय को पाि करने के िलये या कहो परमाननद की पािि के िलये… कुछ भी हो, वीयरककणरपी साधना सदै व अब अवसथाओं मे उतम है , शष े है और आवशयक है | वीयरककण कैसे हो, इसके िलये यहाँ हम कुछ सथूल और सूकम उपायो की चचाक करे गे | (अनुिम)

3. वी यक र का के उपा य सा दा रहन -सह न ब ना ये काफी लोगो को यह भम है िक जीवन तडक-भडकवाला बनाने से वे समाज मे िवशेष माने जाते है | वसतुतः ऐसी बात नहीं है | इससे तो केवल अपने अहं कार का ही पदशन क होता है | लाल

रं ग के भडकीले एवं रे शमी कपडे नहीं पहनो | तेल-फुलेल और भाँित-भाँित के इतो का पयोग करने से बचो | जीवन मे िजतनी तडक-भडक बढे गी, इिनियाँ उतनी चंचल हो उठे गी, िफर वीयरकका तो दरू की बात है |

इितहास पर भी हम दिष डाले तो महापुरष हमे ऐसे ही िमलेगे, िजनका जीवन पारं भ से ही

सादगीपूणक था | सादा रहन-सहन तो बडपपन का दोतक है | दस ू रो को दे ख कर उनकी अपाकृ ितक व अिधक आवशयकताओंवाली जीवन-शैली का अनुसरण नहीं करो |

उपय ुक आ हार ईरान के बादशाह वहमन ने एक शष े वैद से पूछा : “िदन मे मनुषय को िकतना खाना चािहए?” “सौ िदराम (अथात क ् 31 तोला) | “वैद बोला |

“इतने से कया होगा?” बादशाह ने िफर पूछा |

वैद ने कहा : “शरीर के पोषण के िलये इससे अिधक नहीं चािहए | इससे अिधक जो कुछ खाया जाता है , वह केवल बोझा ढोना है और आयुषय खोना है |”

लोग सवाद के िलये अपने पेट के साथ बहुत अनयाय करते है , ठू ँ स-ठू ँ सकर खाते है | यूरोप का

एक बादशाह सवािदष पदाथक खूब खाता था | बाद मे औषिधयो दारा उलटी करके िफर से सवाद लेने के िलये भोजन करता रहता था | वह जिदी मर गया |

आप सवादलोलुप नहीं बनो | िजहा को िनयंतण मे रखो | कया खाये, कब खाये, कैसे खाये और

िकतना खाये इसका िववेक नहीं रखा तो पेट खराब होगा, शरीर को रोग घेर लेगे, वीयन क ाश को पोिसाहन िमलेगा और अपने को पतन के रासते जाने से नहीं रोक सकोगे | पेमपूवक क , शांत मन से, पिवत सथान पर बैठ कर भोजन करो | िजस समय नािसका का

दािहना सवर (सूयक नाडी) चालू हो उस समय िकया भोजन शीघ पच जाता है , कयोिक उस समय जठरािगन बडी पबल होती है | भोजन के समय यिद दािहना सवर चालू नहीं हो तो उसको चालू

कर दो | उसकी िविध यह है : वाम कुिक मे अपने दािहने हाथ की मुिठी रखकर कुिक को जोर से दबाओ या बाँयी (वाम) करवट लेट जाओ | थोडी ही दे र मे दािहना याने सूयक सवर चालू हो जायेगा | राित को बाँयी करवट लेटकर ही सोना चािहए | िदन मे सोना उिचत नहीं िकनतु यिद सोना आवशयक हो तो दािहनी करवट ही लेटना चािहए | एक बात का खूब खयाल रखो | यिद पेय पदाथक लेना हो तो जब चनि (बाँया) सवर चालू हो तभी लो | यिद सूयक (दािहना) सवर चालू हो और आपने दध ू , काफी, चाय, पानी या कोई भी पेय

पदाथक िलया तो वीयन क ाश होकर रहे गा | खबरदार ! सूयक सवर चल रहा हो तब कोई भी पेय पदाथक न िपयो | उस समय यिद पेय पदाथक पीना पडे तो दािहना नथुना बनद करके बाँये नथुने से शास लेते हुए ही िपयो |

राित को भोजन कम करो | भोजन हिका-सुपाचय हो | बहुत गमक-गमक और दे र से पचने वाला

गिरष भोजन रोग पैदा करता है | अिधक पकाया हुआ, तेल मे तला हुआ, िमचक-मसालेयुक, तीखा, खटटा, चटपटे दार भोजन वीयन क ािडयो को कुबध करता है | अिधक गमक भोजन और गमक चाय से दाँत कमजोर होते है | वीयक भी पतला पडता है |

भोजन खूब चबा-चबाकर करो | थके हुए हो तो तिकाल भोजन न करो | भोजन के तुरंत बाद

पिरशम न करो |

भोजन के पहले पानी न िपयो | भोजन के बीच मे तथा भोजन के एकाध घंटे के बाद पानी

पीना िहतकर होता है |

राित को संभव हो तो फलाहार लो | अगर भोजन लेना पडे तो अिपाहार ही करो | बहुत रात

गये भोजन या फलाहार करना िहतावह नहीं है | कबज की िशकायत हो तो 50 गाम लाल िफटकरी तवे पर फुलाकर, कूटकर, कपडे से छानकर बोतल मे भर लो | राित मे 15 गाम सौफ एक िगलास

पानी मे िभगो दो | सुबह उसे उबाल कर छान लो और डे ढ गाम िफटकरी का पाउडर िमलाकर पी लो | इससे कबज व बुखार भी दरू होता है | कबज तमाम िबमािरयो की जड है | इसे दरू करना आवशयक है |

भोजन मे पालक, परवल, मेथी, बथुआ आिद हरी तरकािरयाँ, दध ू , घी, छाछ, मकखन, पके हुए

फल आिद िवशेष रप से लो | इससे जीवन मे साितवकता बढे गी | काम, िोध, मोह आिद िवकार घटे गे | हर कायक मे पसननता और उिसाह बना रहे गा |

राित मे सोने से पूवक गमक-गमक दध ू नहीं पीना चािहए | इससे रात को सवपनदोष हो जाता है | कभी भी मल-मूत की िशकायत हो तो उसे रोको नहीं | रोके हुए मल से भीतर की नािडयाँ

कुबध होकर वीयन क ाश कराती है |

पेट मे कबज होने से ही अिधकांशतः राित को वीयप क ात हुआ करता है | पेट मे रका हुआ मल

वीयन क ािडयो पर दबाव डालता है तथा कबज की गमी से ही नािडयाँ कुिभत होकर वीयक को बाहर

धकेलती है | इसिलये पेट को साफ रखो | इसके िलये कभी-कभी ितफला चूणक या ‘संतकृ पा चूणक’ या ‘इसबगुल’ पानी के साथ िलया करो | अिधक ितक, खटटी, चरपरी और बाजार औषिधयाँ

उतेजक होती है , उनसे बचो | कभी-कभी उपवास करो | पेट को आराम दे ने के िलये कभी-कभी िनराहार भी रह सकते हो तो अचछा है | आहार ं पच ित िशखी दोषान ् आहारव िज क तः | अथात क पेट की अिगन आहार को पचाती है और उपवास दोषो को पचाता है | उपवास से

पाचनशिक बढती है |

उपवास अपनी शिक के अनुसार ही करो | ऐसा न हो िक एक िदन तो उपवास िकया और

दस ू रे िदन िमषानन-लडडू आिद पेट मे ठू ँ स-ठू ँ स कर उपवास की सारी कसर िनकाल दी | बहुत अिधक भूखा रहना भी ठीक नहीं |

वैसे उपवास का सही अथक तो होता है बह के, परमािमा के िनकट रहना | उप यानी समीप और वास यानी रहना | िनराहार रहने से भगवदजन और आिमिचंतन मे मदद िमलती है | विृत अनतमुख क होने से काम-िवकार को पनपने का मौका ही नहीं िमल पाता |

मदपान, पयाज, लहसुन और मांसाहार – ये वीयक क य मे मदद करते है , अतः इनसे अवशय बचो | (अनुिम)

िश शेिनि य स ना न शौच के समय एवं लघुशंका के समय साथ मे िगलास अथवा लोटे मे ठं डा जल लेकर जाओ

और उससे िशशेिनिय को धोया करो | कभी-कभी उस पर ठं डे पानी की धार िकया करो | इससे कामविृत का शमन होता है और सवपनदोष नहीं होता |

उिचत आस न ए वं व या या म क रो सवसथ शरीर मे सवसथ मन का िनवास होता है | अंगेजी मे कहते है : A healthy mind resides in a healthy body. िजसका शरीर सवसथ नहीं रहता, उसका मन अिधक िवकारगसत होता है | इसिलये रोज

पातः वयायाम एवं आसन करने का िनयम बना लो |

रोज पातः काल 3-4 िमनट दौडने और तेजी से टहलने से भी शरीर को अचछा वयायाम िमल

जाता है |

सूयन क मसकार 13 अथवा उससे अिधक िकया करो तो उतम है | इसमे आसन व वयायाम दोनो

का समावेश होता है |

‘वयायाम’ का अथक पहलवानो की तरह मांसपेिशयाँ बढाना नहीं है | शरीर को योगय कसरत

िमल जाय तािक उसमे रोग पवेश न करे और शरीर तथा मन सवसथ रहे – इतना ही उसमे हे तु है | वयायाम से भी अिधक उपयोगी आसन है | आसन शरीर के समुिचत िवकास एवं बहचयकसाधना के िलये अियंत उपयोगी िसद होते है | इनसे नािडयाँ शुद होकर सतवगुण की विृद होती है | वैसे तो शरीर के अलग-अलग अंगो की पुिष के िलये अलग-अलग आसन होते है , परनतु

वीयरकका की दिष से मयूरासन, पादपिशमोतानासन, सवाग ा ासन थोडी बहुत सावधानी रखकर हर

कोई कर सकता है | इनमे से पादपिशमोतानासन तो बहुत ही उपयोगी है | आशम मे आनेवाले कई साधको का यह िनजी अनुभव है |

िकसी कुशल योग-पिशकक से ये आसन सीख लो और पातःकाल खाली पेट, शुद हवा मे

िकया करो | शौच, सनान, वयायाम आिद के पशात ् ही आसन करने चािहए |

सनान से पूवक सुखे तौिलये अथवा हाथो से सारे शरीर को खूब रगडो | इस पकार के घषण क से

शरीर मे एक पकार की िवदुत शिक पैदा होती है , जो शरीर के रोगो को नष करती है | शास तीव गित से चलने पर शरीर मे रक ठीक संचरण करता है और अंग-पियंग के मल को िनकालकर फेफडो मे लाता है | फेफडो मे पिवष शुद वायु रक को साफ कर मल को अपने साथ बाहर

िनकाल ले जाती है | बचा-खुचा मल पसीने के रप मे िवचा के िछिो दारा बाहर िनकल आता है | इस पकार शरीर पर घषण क करने के बाद सनान करना अिधक उपयोगी है , कयोिक पसीने दारा

बाहर िनकला हुआ मल उससे धुल जाता है , िवचा के िछि खुल जाते है और बदन मे सफूितक का संचार होता है |

(अनुिम)

बहम ुहू तक मे उ ठो सवपनदोष अिधकांशतः राित के अंितम पहर मे हुआ करता है | इसिलये पातः चार-साढे चार

बजे यानी बहमुहूतक मे ही शैया का ियाग कर दो | जो लोग पातः काल दे री तक सोते रहते है , उनका जीवन िनसतेज हो जाता है |

दु वयक स नो से द ू र र हो शराब एवं बीडी-िसगरे ट-तमबाकू का सेवन मनुषय की कामवासना को उदीि करता है |

कुरान शरीफ के अिलाहपाक ितकोल रोशल के िसपारा मे िलखा है िक शैतान का भडकाया हुआ मनुषय ऐसी नशायुक चीजो का उपयोग करता है | ऐसे वयिक से अिलाह दरू रहता है , कयोिक यह काम शैतान का है और शैतान उस आदमी को जहननुम मे ले जाता है |

नशीली वसतुओं के सेवन से फेफडे और हदय कमजोर हो जाते है , सहनशिक घट जाती है

और आयुषय भी कम हो जाता है | अमरीकी डॉकटरो ने खोज करके बतलाया है

िक नशीली

वसतुओं के सेवन से कामभाव उतेिजत होने पर वीयक पतला और कमजोर पड जाता है |

(अनुिम)

सिस ंग क रो आप सिसंग नहीं करोगे तो कुसंग अवशय होगा | इसिलये मन, वचन, कमक से सदै व सिसंग

का ही सेवन करो | जब-जब िचत मे पितत िवचार डे रा जमाने लगे तब-तब तुरंत सचेत हो जाओ और वह सथान छोडकर पहुँच जाओ िकसी सिसंग के वातावरण मे, िकसी सिनमत या सिपुरष के सािननधय मे | वहाँ वे कामी िवचार िबखर जायेगे और आपका तन-मन पिवत हो जायेगा | यिद ऐसा नहीं िकया तो वे पितत िवचार आपका पतन िकये िबना नहीं छोडे गे, कयोिक जो मन मे

होता है , दे र-सबेर उसीके अनुसार बाहर की ििया होती है | िफर तुम पछताओगे िक हाय ! यह मुझसे कया हो गया ? पानी का सवभाव है नीचे की ओर बहना | वैसे ही मन का सवभाव है पतन की ओर सुगमता से बढना | मन हमेशा धोखा दे ता है | वह िवषयो की ओर खींचता है , कुसंगित मे सार िदखता है , लेिकन वह पतन का रासता है | कुसंगित मे िकतना ही आकषण क हो, मगर… िज सके पीछ े हो गम

की कतार े , भूलकर उस ख ु शी स े न खेलो |

अभी तक गत जीवन मे आपका िकतना भी पतन हो चुका हो, िफर भी सिसंगित करो | आपके उिथान की अभी भी गुज ं ाइश है | बडे -बडे दज क भी सिसंग से सजजन बन गये है | ु न शठ स ु धरिह ं सि संग ित पाई

|

सिसंग से वंिचत रहना अपने पतन को आमंितत करना है | इसिलये अपने नेत, कणक, िवचा

आिद सभी को सिसंगरपी गंगा मे सनान कराते रहो, िजससे कामिवकार आप पर हावी न हो सके |

(अनुिम)

शुभ स ं कि प क रो ‘हम बहचयक का पालन कैसे कर सकते है ? बडे -बडे ॠिष-मुिन भी इस रासते पर िफसल पडते

है …’ – इस पकार के हीन िवचारो को ितलांजिल दे दो और अपने संकिपबल को बढाओ | शुभ

संकिप करो | जैसा आप सोचते हो, वैसे ही आप हो जाते हो | यह सारी सिृष ही संकिपमय है |

दढ संकिप करने से वीयरककण मे मदद होती है और वीयरककण से संकिपबल बढता है | िव शासो फ लदायकः

| जैसा िवशास और जैसी शदा होगी वैसा ही फल पाि होगा | बहजानी

महापुरषो मे यह संकिपबल असीम होता है | वसतुतः बहचयक की तो वे जीती-जागती मुितक ही होते है |

(अनुिम)

ित बन धयुक पाण ाय ाम और य ोगाभय ास करो ितबनध करके पाणायाम करने से िवकारी जीवन सहज भाव से िनिवक क ािरता मे पवेश करने

लगता है | मूलबनध से िवकारो पर िवजय पाने का सामथयक आता है | उिडडयानबनध से आदमी उननित मे िवलकण उडान ले सकता है | जालनधरबनध से बुिद िवकिसत होती है | अगर कोई वयिक अनुभवी महापुरष के सािननधय मे ितबनध के साथ पितिदन 12 पाणायाम करे तो पियाहार िसद होने लगेगा | 12 पियाहार से धारणा िसद होने लगेगी | धारणा-शिक बढते ही पकृ ित के रहसय खुलने लगेगे | सवभाव की िमठास, बुिद की िवलकणता, सवासथय की सौरभ आने लगेगी | 12 धारणा िसद होने पर धयान लगेगा, सिवकिप समािध होने लगेगी | सिवकिप समािध का 12 गुना समय पकने पर िनिवक क िप समािध लगेगी |

इस पकार छः महीने अभयास करनेवाला साधक िसद योगी बन सकता है | िरिद-िसिदयाँ

उसके आगे हाथ जोडकर खडी रहती है | यक, गंधवक, िकननर उसकी सेवा के िलए उिसुक होते है | उस पिवत पुरष के िनकट संसारी लोग मनौती मानकर अपनी मनोकामना पूणक कर सकते है | साधन करते समय रग-रग मे इस महान ् लकय की पािि के िलए धुन लग जाय|

बहचयक-वत पालने वाला साधक पिवत जीवन जीनेवाला वयिक महान ् लकय की पािि मे

सफल हो सकता है |

हे िमत ! बार-बार असफल होने पर भी तुम िनराश मत हो | अपनी असफलताओं को याद

करके हारे हुए जुआरी की तरह बार-बार िगरो मत | बहचयक की इस पुसतक को िफर-िफर से पढो | पातः िनिा से उठते समय िबसतर पर ही बैठे रहो और दढ भावना करो :

“मेरा जीवन पकृ ित की थपपडे खाकर पशुओं की तरह नष करने के िलए नहीं है | मै अवशय

पुरषाथक करँगा, आगे बढू ँ गा | हिर ॐ … ॐ … ॐ … मेरे भीतर परबह परमािमा का अनुपम बल है | हिर ॐ … ॐ … ॐ …

तुचछ एवं िवकारी जीवन जीनेवाले वयिकयो के पभाव से मै अपनेको िविनमुक क करता जाऊँगा | हिर ॐ … ॐ … ॐ … सुबह मे इस पकार का पयोग करने से चमिकािरक लाभ पाि कर सकते हो | सविकनयनता सवश े र को कभी पयार करो … कभी पाथन क ा करो … कभी भाव से, िवहलता से आतन क ाद करो | वे अनतयाम क ी परमािमा हमे अवशय मागद क शन क दे ते है | बल-बुिद बढाते है | साधक तुचछ िवकारी

जीवन पर िवजयी होता जाता है | ईशर का असीम बल तुमहारे साथ है | िनराश मत हो भैया ! हताश मत हो | बार-बार िफसलने पर भी सफल होने की आशा और उिसाह मत छोडो |

शाबाश वीर … ! शाबाश … ! िहममत करो, िहममत करो | बहचयक-सुरका के उपायो को बार-

बार पढो, सूकमता से िवचार करो | उननित के हर केत मे तुम आसानी से िवजेता हो सकते हो | करोगे न िहममत ? अित खाना, अित सोना, अित बोलना, अित याता करना, अित मैथुन करना अपनी सुषुि योगयताओं को धराशायी कर दे ता है , जबिक संयम और पुरषाथक सुषुि योगयताओं को जगाकर जगदीशर से मुलाकात करा दे ता है |

(अनुिम)

नी म क ा पेड चल ा हमारे सदगुरदे व परम पूजय लीलाशाहजी महाराज के जीवन की एक घटना बताता हूँ:

िसंध मे उन िदनो िकसी जमीन की बात मे िहनद ू और मुसलमानो का झगडा चल रहा

था | उस जमीन पर नीम का एक पेड खडा था, िजससे उस जमीन की सीमा-िनधारकण के बारे मे कुछ िववाद था | िहनद ू और मुसलमान कोटक -कचहरी के धकके खा-खाकर थके | आिखर दोनो पको

ने यह तय िकया िक यह धािमक क सथान है | दोनो पको मे से िजस पक का कोई पीर-फकीर उस सथान पर अपना कोई िवशेष तेज, बल या चमिकार िदखा दे , वह जमीन उसी पक की हो जायेगी | पूजय लीलाशाहजी बापू का नाम पहले ‘लीलाराम’ था | लोग पूजय लीलारामजी के पास पहुँचे और बोले: “हमारे तो आप ही एकमात संत है | हमसे जो हो सकता था वह हमने िकया, परनतु असफल रहे | अब समग िहनद ू समाज की पितषा आपशी के चरणो मे है | इंसा ँ की अज म स े जब द ू र िकना रा होता ह ै | तूफ ाँ म े टूटी िकशती का एक भ

गवान िकनार ा होता ह ै ||

अब संत कहो या भगवान कहो, आप ही हमारा सहारा है | आप ही कुछ करे गे तो यह धमस क थान िहनदओ ु ं का हो सकेगा |” संत तो मौजी होते है | जो अहं कार लेकर िकसी संत के पास जाता है , वह खाली हाथ लौटता है और जो िवनम होकर शरणागित के भाव से उनके सममुख जाता है , वह सब कुछ पा लेता है | िवनम और शदायुक लोगो पर संत की करणा कुछ दे ने को जिदी उमड पडती है |

पूजय लीलारामजी उनकी बात मानकर उस सथान पर जाकर भूिम पर दोनो घुटनो के बीच

िसर नीचा िकये हुए शांत भाव से बैठ गये |

िवपक के लोगो ने उनहे ऐसी सरल और सहज अवसथा मे बैठे हुए दे खा तो समझ िलया िक

ये लोग इस साधु को वयथक मे ही लाये है | यह साधु कया करे गा …? जीत हमारी होगी |

पहले मुिसलम लोगो दारा आमंितत पीर-फकीरो ने जाद ू-मंत, टोने-टोटके आिद िकये | ‘अला

बाँधँू बला बाँध… ँू पथ ृ वी बाँध… ँू तेज बाँधँू… वायू बाँधँू… आकाश बाँध… ँू फूऽऽऽ‘ आिद-आिद िकया | िफर पूजय लीलाराम जी की बारी आई | पूजय लीलारामजी भले ही साधारण से लग रहे थे, परनतु उनके भीतर आिमाननद िहलोरे ले रहा था | ‘पथ ृ वी, आकाश कया समग बहाणड मे मेरा ही पसारा है … मेरी सता के िबना एक पता भी नहीं िहल सकता… ये चाँद-िसतारे मेरी आजा मे ही चल रहे है … सवत क मै ही इन सब िविभनन रपो मे िवलास कर रहा हूँ…’ ऐसे बहाननद मे डू बे हुए वे बैठे थे | ऐसी आिममसती मे बैठा हुआ िकनतु बाहर से कंगाल जैसा िदखने वाला संत जो बोल दे , उसे

घिटत होने से कौन रोक सकता है ?

विशष जी कहते है : “हे रामजी ! ितलोकी मे ऐसा कौन है , जो संत की आजा का उिलंघन कर सके ?” जब लोगो ने पूजय लीलारामजी से आगह िकया तो उनहोने धीरे से अपना िसर ऊपर की ओर उठाया | सामने ही नीम का पेड खडा था | उस पर दिष डालकर गजन क ा करते हुए आदे शािमक भाव से बोल उठे :

“ऐ नीम ! इधर कया खडा है ? जा उधर हटकर खडा रह |”

बस उनका कहना ही था िक नीम का पेड ‘सरक रक… सरक रक…’ करता हुआ दरू जाकर पूवव क त्

खडा हो गया |

लोग तो यह दे खकर आवाक रह गये ! आज तक िकसी ने ऐसा चमिकार नहीं दे खा था | अब िवपकी लोग भी उनके पैरो पडने लगे | वे भी समझ गये िक ये कोई िसद महापुरष है |

वे िहनदओ ु ं से बोले : “ये आपके ही पीर नहीं है बििक आपके और हमारे सबके पीर है | अब

से ये ‘लीलाराम’ नहीं िकंतु ‘लीलाशाह’ है |

तब से लोग उनका ‘लीलाराम’ नाम भूल ही गये और उनहे ‘लीलाशाह’ नाम से ही पुकारने लगे | लोगो ने उनके जीवन मे ऐसे-ऐसे और भी कई चमिकार दे खे | वे 13 वषक की उम पार करके बहलीन हुए | इतने वद ृ होने पर भी उनके सारे दाँत सुरिकत थे,

वाणी मे तेज और बल था | वे िनयिमत रप से आसन एवं पाणायाम करते थे | मीलो पैदल याता करते थे | वे आजनम बहचारी रहे | उनके कृ पा-पसाद दारा कई पुतहीनो को पुत िमले, गरीबो को

धन िमला, िनरिसािहयो को उिसाह िमला और िजजासुओं का साधना-मागक पशसत हुआ | और भी कया-कया हुआ यह बताने जाऊँगा तो िवषयानतर होगा और समय भी अिधक नहीं है | मै यह

बताना चाहता हूँ िक उनके दारा इतने चमिकार होते हुए भी उनकी महानता चमिकारो मे िनिहत नहीं है | उनकी महानता तो उनकी बहिनषता मे िनिहत थी |

छोटे -मोटे चमिकार तो थोडे बहुत अभयास के दारा हर कोई कर लेता है , मगर बहिनषा तो

चीज ही कुछ और है | वह तो सभी साधनाओं की अंितम िनषपित है | ऐसा बहिनष होना ही तो वासतिवक बहचारी होना है | मैने पहले भी कहा है िक केवल वीयरकका बहचयक नहीं है | यह तो

बहचयक की साधना है | यिद शरीर दारा वीयरकका हो और मन-बुिद मे िवषयो का िचंतन चलता रहे , तो बहिनषा कहाँ हुई ? िफर भी वीयरकका दारा ही उस बहाननद का दार खोलना शीघ संभव होता है | वीयरककण हो और कोई समथक बहिनष गुर िमल जाये तो बस, िफर और कुछ करना

शेष नहीं रहता | िफर वीयरककण करने मे पिरशम नहीं करना पडता, वह सहज होता है | साधक िसद बन जाता है | िफर तो उसकी दिष मात से कामुक भी संयमी बन जाता है |

संत जानेशर महाराज िजस चबूतरे पर बैठे थे, उसीको कहा: ‘चल…’ तो वह चलने लगा | ऐसे

ही पूजयपाद लीलाशाहजी बापू ने नीम के पेड को कहा : ‘चल…’ तो वह चलने लगा और जाकर

दस ू री जगह खडा हो गया | यह सब संकिप बल का चमिकार है | ऐसा संकिप बल आप भी बढा सकते है |

िववेकाननद कहा करते थे िक भारतीय लोग अपने संकिप बल को भूल गये है , इसीिलये गुलामी का दःुख भोग रहे है | ‘हम कया कर सकते है …’ ऐसे नकारािमक िचंतन दारा वे

संकिपहीन हो गये है जबिक अंगेज का बचचा भी अपने को बडा उिसाही समझता है और कायक मे सफल हो जाता है , कयोिक वे ऐसा िवचार करता है : ‘मै अंगेज हूँ | दिुनया के बडे भाग पर

हमारी जाित का शासन रहा है | ऐसी गौरवपूणक जाित का अंग होते हुए मुझे कौन रोक सकता है सफल होने से ? मै कया नहीं कर सकता ?’ ‘बस, ऐसा िवचार ही उसे सफलता दे दे ता है |

जब अंगेज का बचचा भी अपनी जाित के गौरव का समरण कर दढ संकिपवान ् बन सकता

है , तो आप कयो नहीं बन सकते ?

“मै ॠिष-मुिनयो की संतान हूँ | भीषम जैसे दढपितज पुरषो की परमपरा मे मेरा जनम हुआ है

| गंगा को पथ ृ वी पर उतारनेवाले राजा भगीरथ जैसे दढिनशयी महापुरष का रक मुझमे बह रहा है | समुि को भी पी जानेवाले अगसिय ॠिष का मै वंशज हूँ | शी राम और शीकृ षण की अवतारभूिम भारत मे, जहाँ दे वता भी जनम लेने को तरसते है वहाँ मेरा जनम हुआ है , िफर मै ऐसा दीन-हीन कयो? मै जो चाहूँ सो कर सकता हूँ | आिमा की अमरता का, िदवय जान का, परम

िनभय क ता का संदेश सारे संसार को िजन ॠिषयो ने िदया, उनका वंशज होकर मै दीन-हीन नहीं

रह सकता | मै अपने रक के िनभय क ता के संसकारो को जगाकर रहूँगा | मै वीयव क ान ् बनकर रहूँगा |” ऐसा दढ संकिप हरे क भारतीय बालक को करना चािहए | (अनुिम)

सी -जाित के प ित म ात ृ भ ाव प बल क रो शी रामकृ षण परमहं स कहा करते थे : “ िकसी सुंदर सी पर नजर पड जाए तो उसमे माँ

जगदमबा के दशन क करो | ऐसा िवचार करो िक यह अवशय दे वी का अवतार है , तभी तो इसमे इतना सौदयक है | माँ पसनन होकर इस रप मे दशन क दे रही है , ऐसा समझकर सामने खडी सी को मन-ही-मन पणाम करो | इससे तुमहारे भीतर काम िवकार नहीं उठ सकेगा | मात ृ वत ् परदार ेष ु परिवय ेष ु लोषवत ् | पराई सी को माता के समान और पराए धन को िमटटी के ढे ले के समान समझो | (अनुिम)

िश वा जी का पसं ग िशवाजी के पास कियाण के सूबेदार की िसयो को लाया गया था तो उस समय उनहोने यही आदशक उपिसथत िकया था | उनहोने उन िसयो को ‘माँ’ कहकर पुकारा तथा उनहे कई उपहार

दे कर सममान सिहत उनके घर वापस भेज िदया | िशवाजी परम गुर समथक रामदास के िशषय थे | भारतीय सभयता और संसकृ ित मे 'माता' को इतना पिवत सथान िदया गया है िक यह मातभ ृ ाव

मनुषय को पितत होते-होते बचा लेता है | शी रामकृ षण एवं अनय पिवत संतो के समक जब कोई सी कुचेषा करना चाहती तब वे सजजन, साधक, संत यह पिवत मातभ ृ ाव मन मे लाकर िवकार के फंदे से बच जाते | यह मातभ ृ ाव मन को िवकारी होने से बहुत हद तक रोके रखता है | जब भी िकसी सी को दे खने पर मन मे िवकार उठने लगे, उस समय सचेत रहकर इस मातभ ृ ाव का पयोग कर ही लेना चािहए |

(अनुिम)

अजुक न औ र उवक श ी अजुन क सशरीर इनि सभा मे गया तो उसके सवागत मे उवश क ी, रमभा आिद अपसराओं ने निृय िकये | अजुन क के रप सौनदयक पर मोिहत हो उवश क ी राित के समय उसके िनवास सथान पर गई और पणय-िनवेदन िकया तथा साथ ही 'इसमे कोई दोष नहीं लगता' इसके पक मे अनेक दलीले भी कीं | िकनतु अजुन क ने अपने दढ इिनियसंयम का पिरचय दे ते हुए कह : िवया ||

गचछ मूधनाक पपननोऽिसम पादौ ते वरविणन क ी | िवं िह मे मातव ृ त ् पूजया रकयोऽहं पुतवत ् ( महाभारत : वनपविकण इनिलोकािभगमनपव क : ४६.४७) "मेरी दिष मे कुनती, मािी और शची का जो सथान है , वही तुमहारा भी है | तुम मेरे िलए

माता के समान पूजया हो | मै तुमहारे चरणो मे पणाम करता हूँ | तुम अपना दरुागह छोडकर लौट जाओ |" इस पर उवश क ी ने िोिधत होकर उसे नपुंसक होने का शाप दे िदया | अजुन क ने उवश क ी से शािपत होना सवीकार िकया, परनतु संयम नहीं तोडा | जो अपने आदशक से नहीं हटता, धैयक और सहनशीलता को अपने चिरत का भूषण बनाता है , उसके िलये शाप भी वरदान बन जाता है |

अजुन क के िलये भी ऐसा ही हुआ | जब इनि तक यह बात पहुँची तो उनहोने अजुन क को कहा :

"तुमने इिनिय संयम के दारा ऋिषयो को भी परािजत कर िदया | तुम जैसे पुत को पाकर कुनती वासतव मे शष े पुतवाली है | उवश क ी का शाप तुमहे वरदान िसद होगा | भूतल पर वनवास के १३वे वषक मे अजातवास करना पडे गा उस समय यह सहायक होगा | उसके बाद तुम अपना पुरषिव

िफर से पाि कर लोगे |" इनि के कथनानुसार अजातवास के समय अजुन क ने िवराट के महल मे नतक क वेश मे रहकर िवराट की राजकुमारी को संगीत और निृय िवदा िसखाई थी और इस पकार

वह शाप से मुक हुआ था | परसी के पित मातभ ृ ाव रखने का यह एक सुंदर उदाहरण है | ऐसा ही एक उदाहरण वािमीिककृ त रामायण मे भी आता है | भगवान शीराम के छोटे भाई लकमण को

जब सीताजी के गहने पहचानने को कहा गया तो लकमण जी बोले : हे तात ! मै तो सीता माता के पैरो के गहने और नूपुर ही पहचानता हूँ, जो मुझे उनकी चरणवनदना के समय दिषगोचर होते रहते थे | केयूर-कुणडल आिद दस ृ ाववाली दिष ही इस ू रे गहनो को मै नहीं जानता |" यह मातभ

बात का एक बहुत बडा कारण था िक लकमणजी इतने काल तक बहचयक का पालन िकये रह

सके | तभी रावणपुत मेघनाद को, िजसे इनि भी नहीं हरा सका था, लकमणजी हरा पाये | पिवत मातभ ृ ाव दारा वीयरककण का यह अनुपम उदाहरण है जो बहचयक की महता भी पकट करता है | (अनुिम)

सिसा िहिय प ढो जैसा सािहिय हम पढते है , वैसे ही िवचार मन के भीतर चलते रहते है और उनहींसे हमारा सारा वयवहार पभािवत होता है | जो लोग कुििसत, िवकारी और कामोतेजक सािहिय पढते है , वे कभी ऊपर नही उठ सकते | उनका मन सदै व काम-िवषय के िचंतन मे ही उलझा रहता है और इससे वे अपनी वीयरकका करने मे असमथक रहते है | गनदे सािहिय कामुकता का भाव पैदा

करते है | सुना गया है िक पाशािय जगत से पभािवत कुछ नराधम चोरी-िछपे गनदी िफिमो का पदशन क करते है जो अपना और अपने संपकक मे आनेवालो का िवनाश करते है | ऐसे लोग

मिहलाओं, कोमल वय की कनयाओं तथा िकशोर एवं युवावसथा मे पहुँचे हुए बचचो के साथ बडा

अनयाय करते है | 'बियू िफिम' दे खने-िदखानेवाले महा अधम कामानध लोग मरने के बाद शूकर, कूकर आिद योिनयो मे जनम लेकर अथवा गनदी नािलयो के कीडे बनकर छटपटाते हुए द :ु ख

भोगेगे ही | िनदोष कोमलवय के नवयुवक उन दष ु ो के िशकार न बने, इसके िलए सरकार और समाज को सावधान रहना चािहए |

बालक दे श की संपित है | बहचयक के नाश से उनका िवनाश हो जाता है | अतः नवयुवको

को मादक िवयो, गनदे सािहियो व गनदी िफिमो के दारा बबाद क होने से बचाया जाये | वे ही तो

राष के भावी कणध क ार है | युवक-युवितयाँ तेजसवी हो, बहचयक की मिहमा समझे इसके िलए हम सब लोगो का कतव क य है िक सकूलो-कालेजो मे िवदािथय क ो तक बहचयक पर िलखा गया सािहिय

पहुँचाये | सरकार का यह नैितक कतवकय है िक वह िशका पदान कर बहचयक िवशय पर िवदािथय क ो को सावधान करे तािक वे तेजसवी बने | िजतने भी महापुरष हुए है , उनके जीवन पर दिषपात

करो तो उन पर िकसी-न-िकसी सिसािहिय की छाप िमलेगी | अमेिरका के पिसद लेखक इमसन क

के गुर थोरो बहचयक का पालन करते थे | उनहो ने िलखा है : "मै पितिदन गीता के पिवत जल से सनान करता हूँ | यदिप इस पुसतक को िलखनेवाले दे वताओं को अनेक वषक वयतीत हो गये, लेिकन इसके बराबर की कोई पुसतक अभी तक नहीं िनकली है |"

योगेशरी माता गीता के िलए दस ू रे एक िवदे शी िवदान ्, इं गलैणड के एफ. एच. मोलेम कहते

है : "बाइिबल का मैने यथाथक अभयास िकया है | जो जान गीता मे है , वह ईसाई या यदह ू ी

बाइिबलो मे नहीं है | मुझे यही आशयक होता है िक भारतीय नवयुवक यहाँ इं गलैणड तक पदाथक

िवजान सीखने कयो आते है ? िन:संदेह पाशाियो के पित उनका मोह ही इसका कारण है | उनके भोलेभाले हदयो ने िनदक य और अिवनम पिशमवािसयो के िदल अभी पहचाने नहीं है | इसीिलए उनकी िशका से िमलनेवाले पदो की लालच से वे उन सवािथय क ो के इनिजाल मे फंसते है |

अनयथा तो िजस दे श या समाज को गुलामी से छुटना हो उसके िलए तो यह अधोगित का ही मागक है |

मै ईसाई होते हुए भी गीता के पित इतना आदर-मान इसिलए रखता हूँ िक िजन गूढ

पशो का हल पाशािय वैजािनक अभी तक नहीं कर पाये, उनका हल इस गीता गंथ ने शुद और सरल रीित से दे िदया है | गीता मे िकतने ही सूत आलौिकक उपदे शो से भरपूर दे खे, इसी कारण

गीताजी मेरे िलए साकात योगेशरी माता बन गई है | िवश भर मे सारे धन से भी न िमल सके, भारतवषक का यह ऐसा अमूिय खजाना है | सुपिसद पतकार पॉल िबिनटन सनातन धम क की ऐसी धािमक क पुसतके पढकर जब पभािवत हुआ तभी वह िहनदस क करके ु तान आया था और यहाँ के रमण महिषक जैसे महािमाओं के दशन

धनय हुआ था | दे शभिकपूणक सािहिय पढकर ही चनिशेखर आजाद, भगतिसंह, वीर सावरकर जैसे रत अपने जीवन को दे शािहत मे लगा पाये |

इसिलये सिसािहिय की तो िजतनी मिहमा गाई जाये, उतनी कम है | शीयोगविशष महारामायण, उपिनषद, दासबोध, सुखमिन, िववेकचूडामिण, शी रामकृ षण सािहिय, सवामी रामतीथक के पवचन आिद भारतीय संसकृ ित की ऐसी कई पुसतके है िजनहे पढो और उनहे अपने दै िनक जीवन का अंग बना लो | ऐसी-वैसी िवकारी और कुििसत पुसतक-पुिसतकाएँ हो तो उनहे उठाकर कचरे ले ढे र पर फेक दो या चूिहे मे डालकर आग तापो, मगर न तो सवयं पढो और न दस ू रे के हाथ लगने दो |

इस पकार के आधयाििमक सिहिय-सेवन मे बहचयक मजबूत करने की अथाह शिक होती है | पातःकाल सनानािद के पशात िदन के वयवसाय मे लगने से पूवक एवं राित को सोने से पूवक

कोई-न-कोई आधयाििमक पुसतक पढना चािहए | इससे वे ही सतोगुणी िवचार मन मे घूमते रहे गे जो पुसतक मे होगे और हमारा मन िवकारगसत होने से बचा रहे गा | कौपीन (लंगोटी) पहनने का भी आगह रखो | इससे अणडकोष सवसथ रहे गे और वीयरककण मे मदद िमलेगी | वासना को भडकाने वाले नगन व अशील पोसटरो एवं िचतो को दे खने का आकषण क छोडो | अशील शायरी और गाने भी जहाँ गाये जाते हो, वहाँ न रको | (अनुिम)

वी यक संच य के चमि कार वीयक के एक-एक अणु मे बहुत महान ् शिकयाँ िछपी है | इसीके दारा शंकराचायक, महावीर,

कबीर, नानक जैसे महापुरष धरती पर अवतीणक हुए है | बडे -बडे वीर, योदा, वैजािनक, सािहियकारये सब वीयक की एक बूद ँ मे िछपे थे … और अभी आगे भी पैदा होते रहे गे | इतने बहुमूिय वीयक का सदप ु योग जो वयिक नहीं कर पाता, वह अपना पतन आप आमंितत करता है | वीय ं वै भ गक ः |

(शतप थ बाहण

)

वीयक ही तेज है , आभा है , पकाश है | जीवन को ऊधवग क ामी बनाने वाली ऐसी बहुमूिय वीयश क िक को िजसने भी खोया, उसको िकतनी

हािन उठानी पडी, यह कुछ उदाहरणो के दारा हम समझ सकते है | (अनुिम)

भी षम िपत ाम ह औ र वी र अिभम नयु महाभारत मे बहचयक से संबंिधत दो पसंग आते है : एक भीषम िपतामह का और दस ू रा वीर

अिभमनयु का | भीषम िपतामह बाल बहचारी थे, इसिलये उनमे अथाह सामथयक था | भगवान शी कृ षण का यह वत था िक ‘मै युद मे शस नहीं उठाऊँगा |’ िकनतु यह भीषम की बहचयक शिक का ही चमिकार था िक उनहोने शी कृ षण को अपना

वत भंग करने के िलए मजबूर कर िदया |

उनहोने अजुन क पर ऐसी बाण वषाक की िक िदवयासो से सुसिजजत अजुन क जैसा धुरनधर धनुधारकी

भी उसका पितकार करने मे असमथक हो गया िजससे उसकी रकाथक भगवान शी कृ षण को रथ का पिहया लेकर भीषम की ओर दौडना पडा |

यह बहचयक का ही पताप था िक भीषम मौत पर भी िवजय पाि कर सके | उनहोने ही यह सवयं तय िकया िक उनहे कब शरीर छोडना है | अनयथा शरीर मे पाणो का िटके रहना असंभव

था, परनतु भीषम की िबना आजा के मौत भी उनसे पाण कैसे छीन सकती थी ! भीषम ने सवेचछा से शुभ मुहूतक मे अपना शरीर छोडा | दस क का वीर पुत अिभमनयु ू री ओर अिभमनयु का पसंग आता है | महाभारत के युद मे अजुन

चिवयूह का भेदन करने के िलए अकेला ही िनकल पडा था | भीम भी पीछे रह गया था | उसने जो शौयक िदखाया, वह पशंसनीय था | बडे -बडे महारिथयो से िघरे होने पर भी वह रथ का पिहया लेकर अकेला युद करता रहा, परनतु आिखर मे मारा गया | उसका कारण यह था िक युद मे

जाने से पूवक वह अपना बहचयक खिणडत कर चुका था | वह उतरा के गभक मे पाणडव वंश का बीज डालकर आया था | मात इतनी छोटी सी कमजोरी के कारण वह िपतामह भीषम की तरह अपनी मिृयु का आप मािलक नहीं बन सका |

(अनुिम)

पृ थव ीर ाज चौह ान कयो हार ा ? भारात मे पथ ृ वीराज चौहान ने मोहममद गोरी को सोलह बार हराया िकनतु सतहवे युद मे वह खुद हार गया और उसे पकड िलया गया | गोरी ने बाद मे उसकी आँखे लोहे की गमक सलाखो से फुडवा दीं | अब यह एक बडा आशयक है िक सोलह बार जीतने वाला वीर योदा हार कैसे गया ? इितहास बताता है िक िजस िदन वह हारा था उस िदन वह अपनी पती से अपनी कमर

कसवाकर अथात क अपने वीयक का सियानाश करके युदभूिम मे आया था | यह है वीयश क िक के वयय का दषुपिरणाम | रामायण महाकावय के पात रामभक हनुमान के कई अदभुत परािम तो हम सबने सुने ही है जैसे- आकाश मे उडना, समुि लाँघना, रावण की भरी सभा मे से छूटकर लौटना, लंका

जलाना, युद मे रावण को मुकका मार कर मूिछक त कर दे ना, संजीवनी बूटी के िलये पूरा पहाड उठा लाना आिद | ये सब बहचयक की शिक का ही पताप था | फांस का समाट नेपोिलयन कहा करता था : "असं भव शबद ही मेरे शबदकोष मे नहीं है |" परनतु वह भी हार गया | हारने के मूल कारणो मे एक कारण यह भी था िक युद से पूवक ही उसने सी के आकषण क मे अपने वीयक का कय कर िदया था |

सेमसन भी शूरवीरता के केत मे बहुत पिसद था | "बाइिबल" मे उसका उिलेख आता है |

वह भी सी के मोहक आकषण क से नहीं बच सका और उसका भी पतन हो गया | (अनुिम)

सव ामी र ामती थक क ा अन ुभ व सवामी रामतीथक जब पोफेसर थे तब उनहोने एक पयोग िकया और बाद मे िनषकषर क प मे

बताया िक जो िवदाथी परीका के िदनो मे या परीका के कुछ िदन पहले िवषयो मे फंस जाते है , वे परीका मे पायः असफल हो जाते है , चाहे वषक भर अपनी कका मे अचछे िवदाथी कयो न रहे हो | िजन िवदािथय क ो का िचत परीका के िदनो मे एकाग और शुद रहा करता है , वे ही सफल होते है | काम िवकार को रोकना वसतुतः बडा दःुसाधय है |

यही कारण है िक मनु महाराज ने यहां तक कह िदया है : "माँ, बहन और पुती के साथ भी वयिक को एकानत मे नहीं बैठना चािहये, कयोिक मनुषय

की इिनियाँ बहुत बलवान ् होती है | वे िवदानो के मन को भी समान रप से अपने वेग मे खींच ले जाती है |"

(अनुिम)

यु वा वगक से दो बा ते मै युवक वगक से िवशेषरप से दो बाते कहना चाहता हूं कयोिक यही वह वगक है जो अपने

दे श के सुदढ भिवषय का आधार है | भारत का यही युवक वगक जो पहले दे शोिथान एवं

आधयाििमक रहसयो की खोज मे लगा रहता था, वही अब कािमिनयो के रं ग-रप के पीछे पागल होकर अपना अमूिय जीवन वयथक मे खोता जा रहा है | यह कामशिक मनुषय के िलए अिभशाप नहीं, बििक वरदान सवरप है | यह जब युवक मे िखलने लगती है तो उसे उस समय इतने

उिसाह से भर दे ती है िक वह संसार मे सब कुछ कर सकने की िसथित मे अपने को समथक अनुभव करने लगता है , लेिकन आज के अिधकांश युवक दवुयस क नो मे फँसकर हसतमैथुन एवं सवपनदोष के िशकार बन जाते है |

(अनुिम)

हस तमैथ ु न का दु ष पिरण ाम इन दवुयस क नो से युवक अपनी वीयध क ारण की शिक खो बैठता है और वह तीवता से

नपुसंकता की ओर अगसर होने लगता है | उसकी आँखे और चेहरा िनसतेज और कमजोर हो

जाता है | थोडे पिरशम से ही वह हाँफने लगता है , उसकी आंखो के आगे अंधेरा छाने लगता है | अिधक कमजोरी से मूचछाक भी आ जाती है | उसकी संकिपशिक कमजोर हो जाती है |

अमेिर का मे िक या ग या प योग अमेिरका मे एक िवजानशाला मे ३० िवदािथय क ो को भूखा रखा गया | इससे उतने समय के िलये तो उनका काम िवकार दबा रहा परनतु भोजन करने के बाद उनमे िफर से काम-वासना

जोर पकडने लगी | लोहे की लंगोट पहन कर भी कुछ लोग कामदमन की चेषा करते पाए जाते है | उनको 'िसकिडया बाबा' कहते है | वे लोहे या पीतल की लंगोट पहन कर उसमे ताला लगा दे ते है

| कुछ ऐसे भी लोग हुए है , िजनहोने इस काम-िवकार से छुटटी पाने के िलये अपनी जननेिनिय ही काट दी और बाद मे बहुत पछताये | उनहे मालूम नहीं था िक जननेिनिय तो काम िवकार पकट होने का एक साधन है | फूल-पतते तोडने से पेड नष नहीं होता | मागद क शन क के अभाव मे लोग कैसी-कैसी भूले करते है , ऐसा ही यह एक उदाहरण है | जो युवक १७ से २४ वषक की आयु तक संयम रख लेता है , उसका मानिसक बल एवं बुिद बहुत तेजसवी हो जाती है | जीवनभर उसका उिसाह एवं सफूितक बनी रहती है | जो युवक बीस वषक की आयु पूरी होने से पूवक ही अपने वीयक का नाश करना शुर कर दे ता है , उसकी सफूितक और होसला पसत हो जाता है तथा सारे जीवनभर के िलये उसकी बुिद कुिणठत हो जाती है | मै

चाहता हूँ िक युवावगक वीयक के संरकण के कुछ ठोस पयोग सीख ले | छोटे -मोटे पयोग, उपवास,

भोजन मे सुधार आिद तो ठीक है , परनतु वे असथाई लाभ ही दे पाते है | कई पयोगो से यह बात िसद हुई है |

(अनुिम)

काम शिक का दमन य ा ऊ धव क गमन ? कामशिक का दमन सही हल नहीं है | सही हल है इस शिक को ऊधवम क ुखी बनाकर शरीर मे ही इसका उपयोग करके परम सुख को पाि करना | यह युिक िजसको आ गई, उसे सब आ गया और िजसे यह नहीं आई वह समाज मे िकतना भी सतावान ्, धनवान ्, पितशठावान ् बन

जाय, अनत मे मरने पर अनाथ ही रह जायेगा, अपने-आप को नहीं िमल पायेगा | गौतम बुद यह युिक जानते थे, तभी अंगुलीमाल जैसा िनदक यी हियारा भी सारे दषुकृ िय छोडकर उनके आगे

िभकुक बन गया | ऐसे महापुरषो मे वह शिक होती है , िजसके पयोग से साधक के िलए बहचयक

की साधना एकदम सरल हो जाती है | िफर काम-िवकार से लडना नही पडता है , बििक जीवन मे बहचयक सहज ही फिलत होने लगता है |

मैने ऐसे लोगो को दे खा है , जो थोडा सा जप करते है और बहुत पूजे जाते है | और ऐसे

लोगो को भी दे खा है , जो बहुत जप-तप करते है , िफर भी समाज पर उनका कोई पभाव नहीं,

उनमे आकषण क नहीं | जाने-अनजाने, हो-न-हो, जागत ृ अथवा िनिावसथा मे या अनय िकसी पकार से उनकी वीयक शिक अवशय नष होती रहती है |

(अनुिम)

एक स ाध क क ा अ नुभ व एक साधक ने, यहाँ उसका नाम नहीं लूँगा, मुझे सवयं ही बताया : "सवामीजी ! यहाँ आने

से पूवक मै महीने मे एक िदन भी पती के िबना नहीं रह सकता था ... इतना अिधक काम-िवकार मे फँसा हुआ था, परनतु अब ६-६ महीने बीत जाते है पती के िबना और काम-िवकार भी पहले की भाँित नहीं सताता |"

दू सरे सा धक का अनुभव दस ू रे एक और सजजन यहाँ आते है , उनकी पती की िशकायत मुझे सुनने को िमली है |

वह सवयं तो यहाँ आती नहीं, मगर लोगो से कहा है िक : "िकसी पकार मेरे पित को समझाये िक वे आशम मे नहीं जाया करे |" वैसे तो आशम मे जाने के िलए कोई कयो मना करे गा ? मगर उसके इस पकार मना करने का कारण जो उसने लोगो को बताया और लोगो ने मुझे बताया वह इस पकार है : वह

कहती है : "इन बाबा ने मेरे पित पर न जाने कया जाद ू िकया है िक पहले तो वे रात मे मुझे पास मे सुलाते थे, परनतु अब मुझसे दरू सोते है | इससे तो वे िसनेमा मे जाते थे, जैसे-तैसे

दोसतो के साथ घूमते रहते थे, वही ठीक था | उस समय कम से कम मेरे कहने मे तो चलते थे, परनतु अब तो..." कैसा दभ ु ागकय है मनुषय का ! वयिक भले ही पतन के रासते चले, उसके जीवन का भले ही

सियानाश होता रहे , परनतु "वह मेरे कहने मे चले ..." यही संसारी पेम का ढाँचा है | इसमे पेम दो-पांच पितशत हो सकता है , बाकी ९५ पितशत तो मोह ही होता है , वासना ही होती है | मगर

मोह भी पेम का चोला ओढकर िफरता रहता है और हमे पता नहीं चलता िक हम पतन की ओर जा रहे है या उिथान की ओर |

(अनुिम)

यो गी क ा संक िप बल बहचयक उिथान का मागक है | बाबाजी ने कुछ जाद -ू वाद ू नहीं िकया| केवल उनके दारा

उनकी यौिगक शिक का सहारा उस वयिक को िमला, िजससे उसकी कामशिक ऊधवग क ामी हो गई | इस कारण उसका मन संसारी काम सुख से ऊपर उठ गया | जब असली रस िमल गया तो गंदी नाली दारा िमलने वाले रस की ओर कोई कयो ताकेगा ? ऐसा कौन मूखक होगा जो बहचयक का पिवत और असली रस छोडकर घिृणत और पतनोनमुख करने वाले संसारी कामसुख की ओर दौडे गा ?

कया य ह च मि का र है ? सामानय लोगो के िलये तो यह मानो एक बहुत बडा चमिकार है , परनतु इसमे चमिकार

जैसी कोई बात नहीं है | जो महापुरष योगमागक से पिरिचत है और अपनी आिममसती मे मसत रहते है उनके िलये तो यह एक खेल मात है | योग का भी अपना एक िवजान है , जो सथूल िवजान से भी सूकम और अिधक पभावी होता है | जो लोग ऐसे िकसी योगी महापुरष के

सािननधय का लाभ लेते है , उनके िलये तो बहचयक का पालन सहज हो जाता है | उनहे अलग से कोई मेहनत नहीं करनी पडती |

(अनुिम)

हस तमैथ ु न व सवप नदो ष स े कैस े बचे यिद कोई हसत मैथुन या सवपनदोष की समसया से गसत है और वह इस रोग से छुटकारा पाने को वसतुतः इचछुक है , तो सबसे पहले तो मै यह कहूँगा िक अब वह यह िचंता छोड दे िक 'मुझे यह रोग है और अब मेरा कया होगा ? कया मै िफर से सवासथय लाभ कर सकूँगा ?' इस पकार के िनराशावादी िवचारो को वह जडमूल से उखाड फेके |

सदैव पस नन र हो

जो हो चुका वह बीत गया | बीती सो बीती

, बीती ता ही िबसार द े , आगे की स ु िध

लेय | एक तो रोग, िफर उसका िचंतन और भी रगण बना दे ता है | इसिलये पहला काम तो यह करो िक दीनता के िवचारो को ितलांजिल दे कर पसनन और पफुििलत रहना पारं भ कर दो |

पीछे िकतना वीयन क ाश हो चुका है , उसकी िचंता छोडकर अब कैसे वीयरककण हो सके, उसके

िलये उपाय करने हे तु कमर कस लो |

धयान रह े : वीयश क िक का दमन नहीं करना है , उसे ऊधवग क ामी बनाना है | वीयश क िक का

उपयोग हम ठीक ढं ग से नहीं कर पाते | इसिलये इस शिक के ऊधवग क मन के कुछ पयोग हम समझ ले |

(अनुिम)

वी यक का ऊध वक ग मन क या है ? वीयक के ऊधवग क मन का अथक यह नहीं है िक वीयक सथूल रप से ऊपर सहसार की ओर

जाता है | इस िवषय मे कई लोग भिमत है | वीयक तो वहीं रहता है , मगर उसे संचािलत करनेवाली जो कामशिक है , उसका ऊधवग क मन होता है | वीयक को ऊपर चढाने की नाडी शरीर के भीतर नहीं

है | इसिलये शुिाणु ऊपर नहीं जाते बििक हमारे भीतर एक वैदिु तक चुमबकीय शिक होती है जो नीचे की ओर बहती है , तब शुिाणु सििय होते है | इसिलये जब पुरष की दिशट भडकीले वसो पर पडती है या उसका मन सी का िचंतन करता है , तब यही शिक उसके िचंतनमात से नीचे मूलाधार केनि के नीचे जो कामकेनि है , उसको

सििय कर, वीयक को बाहर धकेलती है | वीयक सखिलत होते ही उसके जीवन की उतनी कामशिक वयथक मे खचक हो जाती है | योगी और तांितक लोग इस सूकम बात से पिरिचत थे | सथूल िवजानवाले जीवशासी और डॉकटर लोग इस बात को ठीक से समझ नहीं पाये इसिलये

आधुिनकतम औजार होते हुए भी कई गंभीर रोगो को वे ठीक नहीं कर पाते जबिक योगी के दिषपात मात या आशीवाद क से ही रोग ठीक होने के चमिकार हम पायः दे खा-सुना करते है |

आप बहुत योगसाधना करके ऊधवरकेता योगी न भी बनो िफर भी वीयरककण के िलये इतना

छोटा-सा पयोग तो कर ही सकते हो :

(अनुिम)

वी यक रक ा क ा मह तवप ूण क प योग

अपना जो ‘काम-संसथान’ है , वह जब सििय होता है तभी वीयक को बाहर धकेलता है | िकनतु िनमन पयोग दारा उसको सििय होने से बचाना है | जयो ही िकसी सी के दशन क से या कामुक िवचार से आपका धयान अपनी जननेिनिय की तरफ िखंचने लगे, तभी आप सतकक हो जाओ | आप तुरनत जननेिनिय को भीतर पेट की तरफ़

खींचो | जैसे पंप का िपसटन खींचते है उस पकार की ििया मन को जननेिनिय मे केिनित करके करनी है | योग की भाषा मे इसे योिनमुिा कहते है | अब आँखे बनद करो | िफर ऐसी भावना करो िक मै अपने जननेिनिय-संसथान से ऊपर िसर मे िसथत सहसार चि की तरफ दे ख रहा हूँ | िजधर हमारा मन लगता है , उधर ही यह शिक

बहने लगती है | सहसार की ओर विृत लगाने से जो शिक मूलाधार मे सििय होकर वीयक को सखिलत करनेवाली थी, वही शिक ऊधवग क ामी बनकर आपको वीयप क तन से बचा लेगी | लेिकन

धयान रहे : यिद आपका मन काम-िवकार का मजा लेने मे अटक गया तो आप सफल नहीं हो पायेगे | थोडे संकिप और िववेक का सहारा िलया तो कुछ ही िदनो के पयोग से महतवपूणक

फायदा होने लगेगा | आप सपष महसूस करे गे िक एक आँधी की तरह काम का आवेग आया और इस पयोग से वह कुछ ही कणो मे शांत हो गया |

(अनुिम)

दू सर ा पय ोग जब भी काम का वेग उठे , फेफडो मे भरी वायु को जोर से बाहर फेको | िजतना अिधक बाहर

फेक सको, उतना उतम | िफर नािभ और पेट को भीतर की ओर खींचो | दो-तीन बार के पयोग से ही काम-िवकार शांत हो जायेगा और आप वीयप क तन से बच जाओगे |

यह पयोग िदखता छोटा-सा है , मगर बडा महतवपूणक यौिगक पयोग है | भीतर का शास

कामशिक को नीचे की ओर धकेलता है | उसे जोर से और अिधक माता मे बाहर फेकने से वह

मूलाधार चि मे कामकेनि को सििय नहीं कर पायेगा | िफर पेट व नािभ को भीतर संकोचने से वहाँ खाली जगह बन जाती है | उस खाली जगह को भरने के िलये कामकेनि के आसपास की

सारी शिक, जो वीयप क तन मे सहयोगी बनती है , िखंचकर नािभ की तरफ चली जाती है और इस पकार आप वीयप क तन से बच जायेगे | इस पयोग को करने मे न कोई खचक है , न कोई िवशेष सथान ढू ँ ढने की जररत है | कहीं भी बैठकर कर सकते है | काम-िवकार न भी उठे , तब भी यह पयोग करके आप अनुपम लाभ उठा सकते है | इससे जठरािगन पदीि होती है , पेट की बीमािरयाँ िमटती है , जीवन तेजसवी बनता है और वीयरककण सहज मे होने लगता है |

(अनुिम)

वी यक रक क चू णक बहुत कम खचक मे आप यह चूणक बना सकते है | कुछ सुखे आँवलो से बीज अलग करके

उनके िछलको को कूटकर उसका चूणक बना लो | आजकल बाजार मे आँवलो का तैयार चूणक भी िमलता है | िजतना चूणक हो, उससे दग ु ुनी माता मे िमशी का चूणक उसमे िमला दो | यह चूणक उनके िलए भी िहतकर है िजनहे सवपनदोष नहीं होता हो |

रोज राित को सोने से आधा घंटा पूवक पानी के साथ एक चममच यह चूणक ले िलया करो

| यह चूणक वीयक को गाढा करता है , कबज दरू करता है , वात-िपत-कफ के दोष िमटाता है और संयम को मजबूत करता है |

(अनुिम)

गोद का पय ोग 6 गाम खेरी गोद राित को पानी मे िभगो दो | इसे सुबह खाली पेट ले लो | इस पयोग के

दौरान अगर भूख कम लगती हो तो दोपहर को भोजन के पहले अदरक व नींबू का रस िमलाकर लेना चािहए |

तुलसी: एक अदभुत औषिध पेनच डॉकटर िवकटर रे सीन ने कहा है : “तुलसी एक अदभुत औषिध है | तुलसी पर िकये गये

पयोगो ने यह िसद कर िदया है िक रकचाप और पाचनतंत के िनयमन मे तथा मानिसक रोगो मे तुलसी अियंत लाभकारी है | इससे रककणो की विृद होती है | मलेिरया तथा अनय पकार के बुखारो मे तुलसी अियंत उपयोगी िसद हुई है | तुलसी रोगो को तो दरू करती ही है , इसके अितिरक बहचयक की रका करने एवं यादशिक

बढाने मे भी अनुपम सहायता करती है | तुलसीदल एक उिकृ ष रसायन है | यह ितदोषनाशक है | रकिवकार, वायु, खाँसी, कृ िम आिद की िनवारक है तथा हदय के िलये बहुत िहतकारी है | (अनुिम)

बहच यक रक ा ह ेत ु म ंत एक कटोरी दध ू मे िनहारते हुए इस मंत का इककीस बार जप करे | तदपशात उस दध ू को पी

ले, बहचयक रका मे सहायता िमलती है | यह मंत सदै व मन मे धारण करने योगय है :

ॐ नमो भगवत े महाबल े पर ाि माय मनो िभला िषत ं मनः सत ं भ कु र कु र सवाहा

|

पाद पिशमो तान ास न िव िध : जमीन पर आसन िबछाकर

दोनो पैर सीधे करके बैठ जाओ | िफर दोनो हाथो से पैरो के अगूँठे पकडकर झुकते हुए िसर को दोनो घुटनो से िमलाने का पयास

करो | घुटने जमीन पर सीधे रहे | पारं भ मे

घुटने जमीन पर न िटके तो कोई हजक नहीं | सतत अभयास से यह आसन िसद हो जायेगा | यह आसन करने के 15 िमनट बाद एक-दो कचची िभणडी खानी चािहए | सेवफल का सेवन भी फायदा करता है |

लाभ : इस आसन से नािडयो की िवशेष शुिद होकर हमारी कायक क मता बढती है और शरीर

की बीमािरयाँ दरू होती है | बदहजमी, कबज जैसे पेट के सभी रोग, सदी-जुकाम, कफ िगरना, कमर

का ददक , िहचकी, सफेद कोढ, पेशाब की बीमािरयाँ, सवपनदोष, वीयक-िवकार, अपेिनडकस, साईिटका, नलो की सुजन, पाणडु रोग (पीिलया), अिनिा, दमा, खटटी डकारे , जानतंतुओं की कमजोरी, गभाश क य के

रोग, मािसकधमक की अिनयिमतता व अनय तकलीफे, नपुंसकता, रक-िवकार, िठं गनापन व अनय कई पकार की बीमािरयाँ यह आसन करने से दरू होती है |

पारं भ मे यह आसन आधा िमनट से शुर करके पितिदन थोडा बढाते हुए 15 िमनट तक कर

सकते है | पहले 2-3 िदन तकलीफ होती है , िफर सरल हो जाता है |

इस आसन से शरीर का कद लमबा होता है | यिद शरीर मे मोटापन है तो वह दरू होता है

और यिद दब ु लापन है तो वह दरू होकर शरीर सुडौल, तनदर ु सत अवसथा मे आ जाता है | बहचयक पालनेवालो के िलए यह आसन भगवान िशव का पसाद है | इसका पचार पहले िशवजी ने और बाद मे जोगी गोरखनाथ ने िकया था |

पादा ंग ु षाना सन

(अनुिम)

इसमे शरीर का भार केवल पाँव के अँगूठे पर आने से इसे 'पादाँगुषानासन' कहते है । वीयक की रका व ऊधवग क मन हे तु महतवपूणक होने से सभी को िवशेषतः बचचो व युवाओं को यह आसन अवशय करना चािहए।

लाभ ः अखणड बहचयक की िसिद, वजनाडी (वीयन क ाडी) व मन पर िनयंतण तथा

वीयश क िक को ओज मे रपांतिरत करने मे उतम है । मिसतषक सवसथ रहता है व बुिद की िसथरता व पखरता शीघ पाि होती है । रोगी-नीरोगी सभी के िलए लाभपद है ।

रोगो मे ल ाभः सवपनदोष, मधुमेह, नपुंसकता व समसत वीयोदोषो मे लाभपद है । िविध ः पंजो के बल बैठ जाये। बाये पैर की एडी

िसवनी (गुदा व जननेिनिये के बीच का सथान) पर लगाये। दोनो हाथो की उं गिलयाँ जमीन पर रखकर दायाँ पैर बायीं जंघा पर रखे। सारा भार बाये पंजे पर (िवशेषतः अँगुठे पर) संतिु लत

करके हाथ कमर पर या नमसकार की मुिा मे रखे। पारमभ मे कुछ िदन आधार लेकर कर सकते है । कमर सीधी व शरीर

िसथर रहे । शास सामानय, दिष आगे िकसी िबंद ु पर एकाग व

धयान संतुलन रखने मे हो। यही ििया पैर बदल कर भी करे । समयः पारं भ मे दोनो पैरो से आधा-एक िमनट। दोनो पैरो को एक

समान समय दे कर यथासंभव बढा सकते है । सावधानीः

अंितम िसथती मे आने की शीघता न करे , िमशः अभयास बढाये। इसे िदन

भर मे दो-तीन बार कभी भी कर सकते है । िकनतु भोजन के तुरनत बाद न करे । बुिदश िकव धक क पयोगः

लाभ ः इसके िनयिमत अभयास से जानतनतु पुष होते है । चोटी के सथान के नीचे गाय के खुर के आकार वाला बुिदमंडल है , िजस पर इस पयोग का िवशेष पभाव पडता है और बुिद ब धारणाशिक का िवकास होता है ।

िव िधः सीधे खडे हो जाये। हाथो की मुिटठयाँ बंद करके हाथो को शरीर से

सटाकर रखे। िसर पीछे की तरफ ले जाये। दिष आसमान की ओर हो। इस िसथित मे 25 बार गहरा शास ले और छोडे । मूल िसथती मे आ जाये। मेधा शिकव धक क पयोगः

लाभ ः इसके िनयिमत अभयास से मेधाशिक बढती है ।

िव िधः सीधे खडे हो जाये। हाथो की मुिटठयाँ बंद करके हाथो को शरीर से सटाकर रखे।

आँखे बंद करके िसर को नीचे की तरफ इस तरफ झुकाये िक ठोढी कंठकूप से लगी रहे और कंठकूप पर हलका-सा दबाव पडे । इस िसथती मे 25 बार गहरा शास ले और छोडे । मूल िसथती मे आ जाये।

िव शेषः शास लेते समय मन मे 'ॐ' का जप करे व छोडते समय उसकी िगनती करे ।

धयान दे - पियेक पयोग सुबह खाली पेट 15 बार करे , िफर धीरे -धीरे बढाते हुए बार तक कर सकते है ।

25

(अनुिम)

हमार े अन ुभव मह ापुरष के दश क न क ा च मि का र “पहले मै कामतिृि मे ही जीवन का आननद मानता था | मेरी दो शािदयाँ हुई परनतु दोनो

पितयो के दे हानत के कारण अब तीसरी शादी 17 वषक की लडकी से करने को तैयार हो गया |

शादी से पूवक मै परम पूजय सवामी शी लीलाशाहजी महारज का आशीवाद क लेने डीसा आशम मे जा पहुँचा | आशम मे वे तो नहीं िमले मगर जो महापुरष िमले उनके दशन क मात से न जाने कया हुआ िक

मेरा सारा भिवषय ही बदल गया | उनके योगयुक िवशाल नेतो मे न जाने कैसा तेज चमक रहा

था िक मै अिधक दे र तक उनकी ओर दे ख नहीं सका और मेरी नजर उनके चरणो की ओर झुक गई | मेरी कामवासना ितरोिहत हो गई | घर पहुँचते ही शादी से इनकार कर िदया | भाईयो ने एक कमरे मे उस 17 वषक की लडकी के साथ मुझे बनद कर िदया |

मैने कामिवकार को जगाने के कई उपाय िकये, परनतु सब िनरथक क िसद हुआ … जैसे,

कामसुख की चाबी उन महापुरष के पास ही रह गई हो ! एकानत कमरे मे आग और पेटोल जैसा संयोग था िफर भी !

मैने िनशय िकया िक अब मै उनकी छतछाया को नहीं छोडू ँ गा, भले िकतना ही िवरोध सहन

करना पडे | उन महापुरष को मैने अपना मागद क शक क बनाया | उनके सािननधय मे रहकर कुछ

यौिगक िियाएँ सीखीं | उनहोने मुझसे ऐसी साधना करवाई िक िजससे शरीर की सारी पुरानी वयािधयाँ जैसे मोटापन, दमा, टी.बी., कबज और छोटे -मोटे कई रोग आिद िनवत ृ हो गये |

उन महापुरष का नाम है परम पूजय संत शी आसारामजी बापू | उनहींके सािननधय मे मै अपना जीवन धनय कर रहा हूँ | उनका जो अनुपम उपकार मेरे ऊपर हुआ है , उसका बदला तो मै अपना समपूणक लौिकक वैभव समपण क करके भी चुकाने मे असमथक हूँ |” -महनत चंदीराम ( भूतपूवक चंदीराम कृ पालदास )

संत शी आसारामजी आशम, साबरमित, अमदावाद |

मेरी वासना उपासना मे बदली

“आशम दारा पकािशत “यौवन सुरका ” पुसतक पढने से मेरी दिष अमीदिष हो गई | पहले परसी को एवं हम उम की लडिकयो को दे खकर मेरे मन मे वासना और कुदिष का भाव पैदा होता था लेिकन यह पुसतक पढकर मुझे जानने को िमला िक: ‘सी एक वासनापूितक की वसतु नहीं है ,

परनतु शुद पेम और शुद भावपूवक क जीवनभर साथ रहनेवाली एक शिक है |’ सचमुच इस ‘यौव न सुरका ’ पुसतक को पढकर मेरे अनदर की वासना, उपासना मे बदल गयी है |” -मकवाणा रवीनि रितभाई

एम. के. जमोड हाईसकूल, भावनगर (गुज) (अनुिम)

‘यौव न सुर का ’ पुस तक आज के य ु वा वग क के िलय े एक अम ूिय भेट है “सवप क थम मै पूजय बापू का एवं शी योग वेदानत सेवा सिमित का आभार पकट करता हूँ | ‘यौव न स ुरका ’ पुसतक आज के युवा वगक के िलये अमूिय भेट है | यह पुसतक युवानो के

िलये सही िदशा िदखानेवाली है |

आज के युग मे युवानो के िलये वीयरककण अित किठन है | परनतु इस पुसतक को पढने के

बाद ऐसा लगता है िक वीयरककण करना सरल है | ‘यौव न स ुरका ’ पुसतक आज के युवा वगक को सही युवान बनने की पेरणा दे ती है | इस पुसतक मे मैने ‘अनुभव-अमत ृ ’ नामक पाठ पढा | उसके बाद ऐसा लगा िक संत दशन क करने से वीयरककण की पेरणा िमलती है | यह बात िनतांत सिय है | मै हिरजन जाित का हूँ | पहले मांस, मछली, लहसुन, पयाज आिद सब खाता था लेिकन ‘यौवन सुरका ’ पुसतक पढने के बाद मुझे मांसाहार से सखत नफरत हो गई है | उसके बाद मैने इस

पुसतक को दो-तीन बार पढा है | अब मै मांस नहीं खा सकता हूँ | मुझे मांस से नफरत सी हो

गई है | इस पुसतक को पढने से मेरे मन पर काफी पभाव पडा है | यह पुसतक मनुषय के जीवन को समद ृ बनानेवाली है और वीयरककण की शिक पदान करने वाली है |

यह पुसतक आज के युवा वगक के िलये एक अमूिय भेट है | आज के युवान जो िक 16 वषक से 17 वषक की उम तक ही वीयश क िक का वयय कर दे ते है और दीन-हीन, कीणसंकिप, कीणजीवन

होकर अपने िलए व औरो के िलए भी खूब दःुखद हो जाते है , उनके िलए यह पुसतक सचमुच पेरणादायक है | वीयक ही शरीर का तेज है , शिक है , िजसे आज का युवा वगक नष कर दे ता है |

उसके िलए जीवन मे िवकास करने का उतम मागक तथा िदगदशक क यह ‘यौव न स ुरका ’ पुसतक है | तमाम युवक-युवितयो को यह पुसतक पूजय बापू की आजानुसार पाँच बार अवशय पढनी चािहए | इससे बहुत लाभ होता है |” -राठौड िनलेश िदनेशभाई

(अनुिम)

‘यौव न सुर का ’ पुस तक नही ं , अिपत ु ए क िशका गनथ है “यह ‘यौवन सुरका ’ एक पुसतक नहीं अिपतु एक िशका गनथ है , िजससे हम िवदािथय क ो को

संयमी जीवन जीने की पेरणा िमलती है | सचमुच इस अनमोल गनथ को पढकर एक अदभुत

पेरणा तथा उिसाह िमलता है | मैने इस पुसतक मे कई ऐसी बाते पढीं जो शायद ही कोई हम

बालको को बता व समझा सके | ऐसी िशका मुझे आज तक िकसी दस ू री पुसतक से नहीं िमली | मै इस पुसतक को जनसाधारण तक पहुँचाने वालो को पणाम करता हूँ तथा उन महापुरष

महामानव को शत-शत पणाम करता हूँ िजनकी पेरणा तथा आशीवाद क से इस पुसतक की रचना हुई |”

हरपीत िसंह अवतार िसंह कका-7, राजकीय हाईसकूल, सेकटर-24 चणडीगढ

बहचय क ही जीव न है बहचयक के िबना जगत मे, नहीं िकसीने यश पाया | बहचयक से परशुराम ने, इककीस बार धरणी जीती | बहचयक से वािमीकी ने, रच दी रामायण नीकी |

बहचयक के िबना जगत मे, िकसने जीवन रस पाया ? बहचयक से रामचनि ने, सागर-पुल बनवाया था | बहचयक से लकमणजी ने मेघनाद मरवाया था |

बहचयक के िबना जगत मे, सब ही को परवश पाया | बहचयक से महावीर ने, सारी लंका जलाई थी |

बहचयक से अगंदजी ने, अपनी पैज जमाई थी | बहचयक के िबना जगत मे, सबने ही अपयश पाया | बहचयक से आिहा-उदल ने, बावन िकले िगराए थे |

पथ ृ वीराज िदिलीशर को भी, रण मे मार भगाए थे |

बहचयक के िबना जगत मे, केवल िवष ही िवष पाया | बहचयक से भीषम िपतामह, शरशैया पर सोये थे |

बहचारी वर िशवा वीर से, यवनो के दल रोये थे | बहचयक के रस के भीतर, हमने तो षटरस पाया | बहचयक से राममूितक ने, छाती पर पिथर तोडा |

लोहे की जंजीर तोड दी, रोका मोटर का जोडा |

बहचयक है सरस जगत मे, बाकी को करकश पाया | (अनुिम)

शासवच न राजा जनक शुकदे वजी से बोले : “बाियावसथा मे िवदाथी को तपसया, गुर की सेवा, बहचयक का पालन एवं वेदाधययन करना

चािहए |”

तप सा ग ुरव ृ तया च बह चये ण वा िवभो |

- महाभारत म े मोक धम क प वक

संकिपाजजायत े काम ः स ेवयमानो यदा पाजो

िववध क ते |

िवरमत े तदा सदः प णश यित ||

“काम संकिप से उिपनन होता है | उसका सेवन िकया जाये तो बढता है और जब बुिदमान ्

पुरष उससे िवरक हो जाता है , तब वह काम तिकाल नष हो जाता है |”

-महाभारत म े आपदम क प वक

“राजन ् (युिधिषर)! जो मनुषय आजनम पूणक बहचारी रहता है , उसके िलये इस संसार मे कोई भी ऐसा पदाथक नहीं है , जो वह पाि न कर सके | एक मनुषय चारो वेदो को जाननेवाला हो और दस े है |” ू रा पूणक बहचारी हो तो इन दोनो मे बहचारी ही शष

-भीषम िप तामह

“मैथुन संबध ं ी ये पविृतयाँ सवप क थम तो तरं गो की भाँित ही पतीत होती है , परनतु आगे चलकर ये कुसंगित के कारण एक िवशाल समुि का रप धारण कर लेती है | कामसबंधी वाताल क ाप कभी शवण न करे |”

-ना रदजी “जब कभी भी आपके मन मे अशुद िवचारो के साथ िकसी सी के सवरप की किपना उठे तो आप ‘ॐ द ु गाक देवय ै नमः ’ मंत का बार-बार उचचारण करे और मानिसक पणाम करे |” -िश वान ंदजी

“जो िवदाथी बहचयक के दारा भगवान के लोक को पाि कर लेते है , िफर उनके िलये ही वह सवगक है | वे िकसी भी लोक मे कयो न हो, मुक है |”

उ पिनषद

-छानदोगय

“बुिदमान ् मनुषय को चािहए िक वह िववाह न करे | िववािहत जीवन को एक पकार का दहकते

हुए अंगारो से भरा हुआ खडडा समझे | संयोग या संसगक से इिनियजिनत जान की उिपित होती है , इिनिजिनत जान से तिसंबंधी सुख को पाि करने की अिभलाषा दढ होती है , संसगक से दरू रहने पर जीवािमा सब पकार के पापमय जीवन से मुक रहता है |”

-महािमा ब ुद

भग ृ ुवश ं ी ॠिष जनकवंश के राजकुमार से कहते है :

मनोऽप ितकूलािन प ेिय च ेह च वा ंछ िस

|

भूताना ं पित कूल ेभयो िनव तक सव यत ेिनिय ः || “यिद तुम इस लोक और परलोक मे अपने मन के अनुकूल वसतुएँ पाना चाहते हो तो अपनी इिनियो को संयम मे रखकर समसत पािणयो के पितकूल आचरणो से दरू हट जाओ |” –महाभारत म े मोक धम क प वक : 3094 (अनुिम)

भस मास ुर िोध से बचो काम, िोध, लोभ, मोह, अहं कार- ये सब िवकार आिमानंदरपी धन को हर लेनेवाले शतु है | उनमे भी िोध सबसे अिधक हािनकताक है | घर मे चोरी हो जाए तो कुछ-न-कुछ सामान बच

जाता है , लेिकन घर मे यिद आग लग जाये तो सब भसमीभूत हो जाता है | भसम के िसवा कुछ नही बचता | इसी पकार हमारे अंतःकरण मे लोभ, मोहरपी चोर आये तो कुछ पुणय कीण होते है लेिकन िोधरपी आग लगे तो हमारा तमाम जप, तप, पुणयरपी धन भसम हो जाता है | अंतः

सावधान होकर िोधरपी भसमासुर से बचो | िोध का अिभनय करके फुफकारना ठीक है , लेिकन िोधािगन तुमहारे अतःकरण को जलाने न लगे, इसका धयान रखो | 25 िमनट तक चबा-चबाकर भोजन करो | साितवक आहर लो | लहसुन, लाल िमचक और तली हुई चीजो से दरू रहो | िोध आवे तब हाथ की अँगुिलयो के नाखून हाथ की गदी पर दबे, इस पकार मुिठी बंद करो |

एक महीने तक िकये हुए जप-तप से िचत की जो योगयता बनती है वह एक बार िोध

करने से नष हो जाती है | अतः मेरे पयारे भैया ! सावधान रहो | अमूिय मानव दे ह ऐसे ही वयथक न खो दे ना | दस गाम शहद, एक िगलास पानी, तुलसी के पते और संतकृ पा चूणक िमलाकर बनाया हुआ

शबत क यिद हररोज सुबह मे िलया जाए तो िचत की पसननता बढती है | चूणक और तुलसी नहीं िमले तो केवल शहद ही लाभदायक है | डायिबिटज के रोिगयो को शहद नहीं लेना चािहए | हिर ॐ

बहाचय क -रका का म ंत ॐ नमो भ गवत े महाबल े परािमाय मनोिभ

लाषत ं मनः स तंभ कुर कुर स वाहा।

रोज दध ू मे िनहार कर 21 बार इस मंत का जप करे और दध ू पी ले। इससे बहचयक की

रका होती है । सवभाव मे आिमसात ् कर लेने जैसा यह िनयम है । ॐॐॐॐॐॐॐॐ (अनुिम) पावन उदगार

पावन उदगार

सुख -शांित व सवा सथ य क ा प साद बाँटन े के िलए ही बा पू जी का अवत रण हु आ है।

"मेरे अियनत िपय िमत शी आसाराम जी बापू से मै पूवक क ाल से हदयपूवक क पिरिचत हूँ।

संसार मे सुखी रहने के िलए समसत जनता को शारीिरक सवासथय और मानिसक शांित दोनो आवशयक है । सुख-शांित व सवासथय का पसाद बाँटने के िलए ही इन संत का, महापुरष का

अवतरण हुआ है । आज के संतो-महापुरषो मे पमुख मेरे िपय िमत बापूजी हमारे भारत दे श के, िहनद ू जनता के, आम जनता के, िवशवािसयो के उदार के िलए रात-िदन घूम-घूमकर सिसंग,

भजन, कीतन क आिद दारा सभी िवषयो पर मागद क शन क दे रहे है । अभी मे गले मे थोडी तकलीफ है

तो उनहोने तुरनत मुझे दवा बताई। इस पकार सबके सवासथय और मानिसक शांित, दोनो के िलए उनका जीवन समिपत क है । वे धनभागी है जो लोगो को बापूजी के सिसंग व सािननधय मे लाने का दै वी कायक करते है ।"

काँ ची कामकोिट पीठ क

महाराज।

े श ंकराचाय क ज गदग ुर श ी जय े नि सरसवती जी (अनुिम) पावन उदगार

हर वयिक जो िनराश

है उस े आसाराम

जररत ह ै

ज ी की

"शदे य-वंदनीय िजनके दशन क से कोिट-कोिट जनो के आिमा को शांित िमली है व हदय उननत हुआ है , ऐसे महामनीिष संत शी आसारामजी के दशन क करके आज मै कृ ताथक हुआ। िजस

महापुरष ने, िजस महामानव ने, िजस िदवय चेतना से संपनन पुरष ने इस धरा पर धमक, संसकृ ित, अधयािम और भारत की उदात परं पराओं को पूरी ऊजाक (शिक) से सथािपत िकया है , उस महापुरष

के मै दशन क न करँ ऐसा तो हो ही नहीं सकता। इसिलए मै सवयं यहाँ आकर अपने-आपको धनय और कृ ताथक महसूस कर रहा हूँ। मेरे पित इनका जो सनेह है यह तो मुझ पर इनका आशीवाद क है

और बडो का सनेह तो हमेशा रहता ही है छोटो के पित। यहाँ पर मै आशीवाद क लेने के िलए आया हूँ।

मै समझता हूँ िक जीवन मे लगभग हर वयिक िनराश है और उसको आसारामजी की

जररत है । दे श यिद ऊँचा उठे गा, समद ृ बनेगा, िवकिसत होगा तो अपनी पाचीन परं पराओं, नैितक मूियो और आदशो से ही होगा और वह आदशो, नैितक मूियो, पाचीन सभयता, धमक-दशन क और संसकृ ित का जो जागरण है , वह आशाओ के राम बनने से ही होगा। इसिलए शदे य, वंदनीय

महाराज शी 'आसाराम जी' की सारी दिुनया को जररत है । बापू जी के चरणो मे पाथन क ा करते हुए

िक आप िदशा दे ते रहना, राह िदखाते रहना, हम भी आपके पीछे -पीछे चलते रहे गे और एक िदन मंिजल िमलेगी ही, पुनः आपके चरणो मे वंदन!"

पिसद योगाचाय क शी रामद ेव जी महाराज। (अनुिम) पावन उदगार

बाप ू िन िय नवीन , िनिय वध क नीय आ नंद सवरप ह ै "परम पूजय बापू के दशन क करके मै पहले भी आ चुका हूँ। दशन क करके 'िद ने -िद ने नव ं -

नवं प ितकण व धक नाम ् ' अथात क बापू िनिय नवीन, िनिय वधन क ीय आनंदसवरप है , ऐसा अनुभव हो रहा है और यह सवाभािवक ही है । पूजय बापू जी को पणाम!" सुप िसद कथाकार स ंत श ी म ोरा री बाप ू।

(अनुिम) पावन उदगार

पुणय स ंचय व ईश र की क ृप ा का फलः िदवय सिस ंग

बहजान का

"ईशर की कृ पा होती है तो मनुषय जनम िमलता है । ईशर की अितशय कृ पा होती है तो मुमक ु िव का उदय होता है परनतु जब अपने पूवज क नमो के पुणय इकटठे होते है और ईशर की परम कृ पा होती है तब ऐसा बहजान का िदवय सिसंग सुनने को िमलता है , जैसा पूजयपाद बापूजी के शीमुख से आपको यहाँ सुनने को िमल रहा है ।" पिसद क थाकार सुशी कनक ेशरी द ेवी।

(अनुिम) पावन उदगार

बाप ू ज ी का सािननधय ग

ंगा के पावन पवा ह ज ैसा है

"कल-कल करती इस भागीरथी की धवल धारा के िकनारे पर पूजय बापू जी के सािननधय

मे बैठकर मै बडा ही आहािदत व पमुिदत हूँ... आनंिदत हूँ... रोमाँिचत हूँ...

गंगा भारत की सुषुमना नाडी है । गंगा भारत की संजीवनी है । शी िवषणुजी के चरणो से

िनकलकर बहाजी के कमणडलु व जटाधर के माथे पर शोभायमान गंगा तैयोगिसिदकारक है ।

िवषणुजी के चरणो से िनकली गंगा भिकयोग की पतीित कराती है और िशवजी के मसतक पर

िसथत गंगा जानयोग की उचचतर भूिमका पर आरढ होने की खबर दे ती है । मुझे ऐसा लग रहा है िक आज बापूजी के पवचनो को सुनकर मै गंगा मे गोता लगा रहा हूँ कयोिक उनका पवचन, उनका सािननधय गंगा के पावन पवाह जैसा है ।

वे अलमसत फकीर है । वे बडे सरल और सहज है । वे िजतने ही ऊपर से सरल है , उतने

ही अंतर मे गूढ है । उनमे िहमालय जैसी उचचता, पिवतता, शष े ता है और सागरतल जैसी

गमभीरता है । वे राष की अमूिय धरोहर है । उनहे दे खकर ऋिष-परमपरा का बोध होता है । गौतम, कणाद, जैिमिन, किपल, दाद ू, मीरा, कबीर, रै दास आिद सब कभी-कभी उनमे िदखते है ।

रे भाई ! कोई स िगुर स ं त कहाव े , जो न ै नन अलख लखाव े। धरती उखाड े , आकाश उखाड े , अधर म डइया ध ावे।

शूनय िश खर के पार िशला पर , आसन अ चल ज माव े।। रे भाई ! कोई स िगुर स ं त कहाव े .....

ऐसे पावन सािननधय मे हम बैठे है जो बडा दल क व सहज योगसवरप है । ऐसे महापुरष ु भ

के िलए पंिकयाँ याद आ रही है - तु म चलो तो च ले धरती , चले अ ंबर , चले द ु िनया ...

ऐसे महापुरष चलते है तो उनके िलए सूयक, चंि, तारे , गह, नकत आिद सब अनुकूल हो

जाते है । ऐसे इिनियातीत, गुणातीत, भावातीत, शबदातीत और सब अवसथाओं से परे िकनहीं महापुरष के शीचरणो मे जब बैठते है तो .... भागवत कहता है ः सा धुना ं द शक नं लोके सव क िसिदकर ं परम।्

साधुओं के दशन क मात से िवचार, िवभूित, िवदता, शिक, सहजता, िनिवष क यता,

पसननता, िसिदयाँ व आिमानंद की पािि होती है ।

दे श के महान संत यहाँ सहज ही आते है , भारत के सभी शंकराचायक भी आते है । मेरे मन

मे भी िवचार आया िक जहाँ सब आते है , वहाँ जाना चािहए कयोिक यही वह ठौर-िठकाना है , जहाँ मन का अिभमान िमटाया जा सकता है । ऐसे महापुरषो के दशन क से केवल आनंद व मसती ही नहीं बििक वह सब कुछ िमल जाता है जो अिभलिषत है , आकांिकत है , लिकत है । यहाँ मै

करणा, कमठ क ता, िववेक-वैरागय व जान के दशन क कर रहा हूँ। वैरागय और भिक के रकण, पोषण व संवधन क क िलए यह सिऋिषयो का उतम जान जाना जाता है । आज गंगा अगर िफर से साकार िदख रही है तो वे बापू जी के िवचार व वाणी मे िदख रही है । अलमसतता, सहजता, उचचता,

शष े ता, पिवतता, तीथक-सी शुिचता, िशशु-सी सरलता, तरणो-सा जोश, वद ृ ो-सा गांभीयक और ऋिषयो जैसा जानावबोध मुझे जहाँ हो रहा है , वह पंडाल है । इसे आनंदगर कहूँ या पेमनगर? करणा का सागर कहूँ या िवचारो का समनदर?... लेिकन इतना जरर कहूँगा िक मेरे मन का कोना-कोना

आहािदत हो रहा है । आपलोग बडभागी है जो ऐसे महापुरष के शीचरणो मे बैठे है , जहाँ भागय

का, िदवय वयिकिव का िनमाण क होता है । जीवन की कृ तकृ ियता जहाँ पाि हो सकती है वह यही दर है ।

िम ले त ुम िमली म ं िजल , िम ला मकस द और मुदा भी। न िम ले त ुम तो रह गया म

ुदा , मकसद और म ं िजल भी।।

आपका यह भावराजय व पेमराजय दे खकर मै चिकत भी हूँ और आनंद का भी अनुभव

कर रहा हूँ। मुझे लगता है िक बापू जी सबके आिमसूयक है । आपके पित मेरा िवशास व अटू ट िनषा बढे इस हे तु मेरा नमन सवीकार करे ।"

सवामी अवध े शान ंदजी म हाराज , हिरदार।

(अनुिम) पावन उदगार

भगवननाम का जाद ू

"संतशी आसारामजी बापू के यहाँ सबसे अिधक जनता आती है कारण िक इनके पास भगवननाम-संकीतन क का जाद ू, सरल वयवहार, पेमरसभरी वाणी तथा जीवन के मूल पशो का उतर भी है ।"

िवरक िशरोमिण श ी वामद ेवजी महाराज।

"सवामी आसारामजी के पास भांित तोडने की दिष िमलती है ।" युगप ुरष सवामी शी परमान

ंदजी महाराज।

"आसारामजी महाराज ऐसी शिक के धनी है िक दिषपातमात से लाखो लोगो के जानचकु खोलने का मागक पशसत करते है ।"

लोकलाडल े स वामी श ी बहान ंदिगरीजी महाराज। "हमारे पूजय आसारामजी बापू बहुत ही कम समय मे संसकृ ित का जतन और उिथान

करने वाले संत है ।"

आचाय क शी िगरीर ाज िकशोरजी , िव शिह नद ू पिरषद।

(अनुिम) पावन उदगार

पूजयशी क े सिस ंग म े पधानम ंती शी अटल

िबह ारी

वाजप ेयी जी के उदगार "पूजय बापूजी के भिकरस मे डू बे हुए

शोता भाई-बहनो! मै यहाँ पर पूजय बापूजी का अिभनंदन करने आया हूँ.... उनका आशीवच क न

सुनने आया हूँ.... भाषण दे ने य बकबक करने

नहीं आया हूँ। बकबक तो हम करते रहते है ।

बापू जी का जैसा पवचन है , कथा-अमत ृ है , उस तक पहुँचने के िलए बडा पिरशम करना पडता

है । मैने पहले उनके दशन क पानीपत मे िकये थे। वहाँ पर रात को पानीपत मे पुणय पवचन समाि होते ही बापूजी कुटीर मे जा रहे थे.. तब उनहोने मुझे बुलाया। मै भी उनके दशन क और आशीवाद क के िलए लालाियत था। संत-महािमाओँ के दशन क तभी होते है , उनका सािननधय तभी िमलता है जब कोई पुणय जागत ृ होता है ।

इस जनम मे मैने कोई पुणय िकया हो इसका मेरे पास कोई िहसाब तो नहीं है िकंतु जरर

यह पूवक जनम के पुणयो का फल है जो बापू जी के दशन क हुए। उस िदन बापूजी ने जो कहा, वह

अभी तक मेरे हदय-पटल पर अंिकत है । दे शभर की पिरिमा करते हुए जन-जन के मन मे

अचछे संसकार जगाना, यह एक ऐसा परम राषीय कतवकय है , िजसने हमारे दे श को आज तक

जीिवत रखा है और इसके बल पर हम उजजवल भिवषय का सपना दे ख रहे है ... उस सपने को साकार करने की शिक-भिक एकत कर रहे है ।

पूजय बापूजी सारे दे श मे भमण करके जागरण का शंखनाद कर रहे है , सवध क मक-समभाव

की िशका दे रहे है , संसकार दे रहे है तथा अचछे और बुरे मे भेद करना िसखा रहे है ।

हमारी जो पाचीन धरोहर थी और हम िजसे लगभग भूलने का पाप कर बैठे थे, बापू जी

हमारी आँखो मे जान का अंजन लगाकर उसको िफर से हमारे सामने रख रहे है । बापूजी ने कहा िक ईशर की कृ पा से कण-कण मे वयाि एक महान शिक के पभाव से जो कुछ घिटत होता है , उसकी छानबीन और उस पर अनुसंधान करना चािहए।

पूजय बापूजी ने कहा िक जीवन के वयापार मे से थोडा समय िनकाल कर सिसंग मे

आना चािहए। पूजय बापूजी उजजैन मे थे तब मेरी जाने की बहुत इचछा थी लेिकन कहते है न,

िक दाने-दाने पर खाने वाले की मोहर होती है , वैसे ही संत-दशन क के िलए भी कोई मुहूतक होता है ।

आज यह मुहूतक आ गया है । यह मेरा केत है । पूजय बापू जी ने चुनाव जीतने का तरीका भी बता िदया है ।

आज दे श की दशा ठीक नहीं है । बापू जी का पवचन सुनकर बडा बल िमला है । हाल मे

हुए लोकसभा अिधवेशन के कारण थोडी-बहुत िनराशा हुई थी िकनतु रात को लखनऊ मे पुणय पवचन सुनते ही वह िनराशा भी आज दरू हो गयी। बापू जी ने मानव जीवन के चरम लकय

मुिक-शिक की पािि के िलए पुरषाथक चतुषय, भिक के िलए समपण क की भावना तथा जान, भिक और कमक तीनो का उिलेख िकया है । भिक मे अहं कार का कोई सथान नहीं है । जान अिभमान

पैदा करता है । भिक मे पूणक समपण क होता है । 13 िदन के शासनकाल के बाद मैने कहाः "मेरा जो कुछ है , तेरा है ।" यह तो बापू जी की कृ पा है िक शोता को वका बना िदया और वका को नीचे से ऊपर चढा िदया। जहाँ तक ऊपर चढाया है वहाँ तक ऊपर बना रहूँ इसकी िचंता भी बापू जी को करनी पडे गी।

राजनीित की राह बडी रपटीली है । जब नेता िगरता है तो यह नहीं कहता िक मै िगर

गया बििक कहता है ः "हर हर गंगे।" बापू जी का पवचन सुनकर बडा आनंद आया। मै लोकसभा

का सदसय होने के नाते अपनी ओर से एवं लखनऊ की जनता की ओर से बापू जी के चरणो मे िवनम होकर नमन करना चाहता हूँ।

उनका आशीवाद क हमे िमलता रहे , उनके आशीवाद क से पेरणा पाकर बल पाि करके हम

कतवकय के पथ पर िनरनतर चलते हुए परम वैभव को पाि करे , यही पभु से पाथन क ा है ।" शी अट ल िबहारी वाजप

ेय ी, पधानम ंती , भारत सरकार।

परम प ूजय बाप ू संत शी आ सार ामजी बाप ू के कृ पा -पसाद से पिरपलािव त हदयो के उदगार

(अनुिम) पावन उदगार

पू . बाप ूः राषस ु ख के स ंवध क क "पूजय बापू दारा िदया जाने वाला नैितकता का संदेश दे श के कोने-कोने मे िजतना अिधक पसािरत होगा, िजतना अिधक बढे गा, उतनी ही माता मे राषसुख का संवधन क होगा, राष की पगित होगी। जीवन के हर केत मे इस पकार के संदेश की जररत है ।" (शी ल ालकृषण आडवाणी

गृ हमंती , भारत सरकार। )

, उपप धानम ंती ए वं केनिीय

(अनुिम) पावन उदगार

......राष उनका ऋणी ह



भारत के भूतपूवक पधानमंती शी चनिशेखर, िदिली के सवणक जयनती पाकक मे 25 जुलाई 1999 को बापू जी की अमत ृ वाणी का रसासवादन करने के पशात बोलेः

"आज पूजय बापू जी की िदवय वाणी का लाभ लेकर मै धनय हो गया। संतो की वाणी ने

हर युग मे नया संदेश िदया है , नयी पेरणा जगायी है । कलह, िविोह और दे ष से गसत वतम क ान वातावरण मे बापू िजस तरह सिय, करणा और संवेदनशीलता के संदेश का पसार कर रहे है , इसके िलए राष उनका ऋणी है ।"

(शी चन िशेखर , भूतप ूव क पधानम ंती , भारत सरकार। )

(अनुिम) पावन उदगार

गरीब ो व िपछडो को ऊपर उठान

े के काय क चा लू र हे

"गरीबो और िपछडो को ऊपर उठाने का काय क आशम दारा चलाये जा रहे है , मुझे

पसननता है । मानव-कियाण के िलए, िवशेषतः, पेम व भाईचारे के संदेश के माधयम से िकये जा रहे िविभनन आधयाििमक एवं मानवीय पयास समाज की उननित के िलए सराहनीय है ।" डॉ . ए.पी .जे .अबद ु ल क लाम , राषपित , भारत गण तंत।

(अनुिम) पावन उदगार

सराहनीय पयासो की सफलता

के िलए ब धाई

"मुझे यह जानकर बडी पसननता हुई है िक 'संत शी आसारामजी आशम नयास' जन-जन

मे शांित, अिहं सा और भातिृव का संदेश पहुँचाने के िलए दे श भर मे सिसंग का आयोजन कर रहा है । उसके सराहनीय पयासो की सफलता के िलए मै बधाई दे ता हूँ।"

शी के . आर . नारा यणन ् , तिकालीन

राषप ित , भारत गणत ंत , नई िदिली।

(अनुिम) पावन उदगार

आपन े िदवय जान का पकाशप

ुंज पसफ ुिटत िकया ह ै

"आधयाििमक चेतना जागत ृ और िवकिसत करने हे तु भारतीय एवं वैिशक समाज मे

िदवय जान का जो पकाशपुंज आपने पसफुिटत िकया है , संपूणक मानवता उससे आलोिकत है । मूढता, जडता, दं द और िततापो से गसत इस समाज मे वयाि अनासथा तथा नािसतकता का

ितिमर समाि कर आसथा, संयम, संतोष और समाधान का जो आलोक आपने िबखेरा है , संपूणक समाज उसके िलए कृ तज है ।"

शी कम लनाथ , वािणजय एव ं उदोग म ंती , भारत सरकार। (अनुिम) पावन उदगार

आप स माज की सवा ा गीण उननित कर रह

े है

"आज के भागदौड भरे सपधािकमक युग मे लुिपाय-सी हो रही आििमक शांित का आपशी

मानवमात को सहज मे अनुभव करा रहे है । आप आधयाििमक जान दारा समाज की सवाग ा ीण उननित कर रहे है व उसमे धािमक क एवं नैितक आसथा को सुदढ कर रहे है । शी क िपल िसबबल , िवजान व पौदोिग की त था महासागर

भारत सरकार।

िवकास राजयम ंती ,

(अनुिम) पावन उदगार

'योग व उ चच स ंसका र िशका ' हेत ु भारतवष क आपका िचर -आभारी र हेग ा "दे श िवदे श मे भारतीय संसकृ ित की जानगंगाधारा बचचे-बचचे के िदल-िदमाग मे बापू जी के

िनदे श पर पिरचािलत होना शुभंकर है । िवदािथय क ो मे संसकार िसंचन दारा हमारी संसकृ ित और नैितक िशका सुदढ बन जायेगी। दे श को संसकािरत बनाने के िलए चलाये जाने वाले 'योग व उचच संसकार िशका' कायि क म हे तु भारतवषक आप जैसे महािमाओं का िचरआभारी रहे गा।"

शी चन िशेख र साह ू , गा मी ण िवक ास राजय मन ती , भारत सर कार।

(अनुिम) पावन उदगार

आपन े ज ो कहा ह ै हम उसका पालन कर ेग े "आज तक केवल सुना था िक 'तेरा सा ँई त ुझम े ह ै। ' लेिकन आज पूजय बापू जी के

सिसंग सुनकर आज लगा - 'मेरा स ाँई म ुझम े ह ै। ' बापूजी! आपको दे खकर ही शिक आ गयी, आपको सुनकर भिक पकट हो गयी और आपके दशन क और आशीवाद क से मुिक अब सुिनिशत हो

गयी। पाथन क ा करता हूँ िक यहीं बस जाओ। हम बार-बार आपके दशन क करते रहे और भिक, शिक पाि करते हुए मुिक की ओर बढते रहे । अब हदय से कभी िनकल न पाओगे बापू जी! जो भिक रस की सिरता और जान की गंगा आपने बहायी है वह मधय पदे श वािसयो को हमेशा पेरणा

दे ती रहे गी। हम तो भक है , िशषय है । आपने जो कुछ बाते कहीं है , हम उनका पालन करे गे। हम िवशेषरप से धयान रखेगे िक आपने जो आजा की है नीम, पीपल, आँवला जगह-जगह लगे और

तुलसी मैया का पौधा हर घर मे लहराये, उस आजा का पालन हो। िफर मधय-पदे श नंदनवन की तरह महकेगा।

तीन चीजे आपसे माँगता हूँ – सत ् बुिद, सत ् मागक और सामथयक दे ना तािक जनता की

सुचार रप से सेवा कर सकूँ। "

शी िशवर ाज िसंह च ौहान , मुखयम ं ती , मधयपद ेश

(अनुिम) पावन उदगार

जब ग ुर के साकात द शक न हो ग ये ह ै त ो कुछ बदलाव जरर आ येगा

"राजमाता की वजह से महाराज बापूजी से हमारा बहुत पुराना िरशता है । आज रामनवमी

के िदन मै तो मानती हूँ िक मै तो धनय हो गयी कयोिक सुबह से लेकर दशन क हो रहे है ।

महाराज! आपका आशीवाद क बना रहे कयोिक मै राज करने के िलए नहीं आयी, धमक और कमक को एक साथ जोडकर मै सेवा करने के िलए आयी हूँ और वह मै करती रहूँगी। आप आते रहोगे,

आशीवाद क दे ते रहोगे तो हममे ऊजाक भी पैदा होगी। आप रासता बताते रहो और इस राजयरपी पिरवार की सेवा करने की शिक दे ते रहो।

मै माफी चाहती हूँ िक आपके चरणो मे इतनी दे र से पहुँची लेिकन मै मानती हूँ िक जब

गुर के साकात दशन क हो गये है तो कुछ बदलाव जरर आयेगा, राजय की समसयाएँ हल होगी व हम लोग जनसेवा के काम कर सकेगे।"

वसुन धरा राज े िसं िध या , मुखयम ंत ी, रा जस थान।

(अनुिम) पावन उदगार

बाप ू जी सव क त संसकार धरोहर को प हुँचान े के िलए अथक तपशया क कर रह े है

"पूजय बापू जी! आप दे श और दिुनया – सवत क ऋिष-परमपरा की संसकार-धरोहर को

पहुँचाने के िलए अथक तपशयाक कर रहे है । अनेक युगो से चलते आये मानव-कियाण के इस तपशयाक-यज मे आप अपने पल-पल की आहूित दे ते रहे है । उसमे से जो संसकार की िदवय

जयोित पकट हुई है , उसके पकाश मे मै और जनता – सब चलते रहे है । मै संतो के आशीवाद क से

जी रहा हूँ। मै यहाँ इसिलए आया हूँ िक लासेनस िरनयू हो जाये। जैसे नेवला अपने घर मे जाकर औषिध सूँघकर ताकत लेकर आता है , वैसे ही मै समय िनकाल कर ऐसा अवसर खोज लेता हूँ।"

शी नरेन ि मो दी , मुखयम ं ती , गुजर ात।

(अनुिम) पावन उदगार

आपके दश क न मात स े म ुझ े अदभ ु त शिक िम लती ह ै "पूजय बापू जी के िलए मेरे िदल मे जो शदा है , उसको बयान करने के िलए मेरे पास कोई शबद नहीं है । आज के भटके समाज मे भी यिद कुछ लोग सनमागक पर चल रहे है तो यह

इन महापुरषो के अमत ृ वचनो का ही पभाव है । बापूजी की अमत ृ वाणी का िवशेषकर मुझ पर तो बहुत पभाव पडता है । मेरा तो मन करता है िक बापू जी जहाँ कहीं भी हो वहीं पर उडकर उनके दशन क करने के िलए पहुँच जाऊँ व कुछ पल ही सही, उनके सािननधय का लाभ लूँ। आपके दशन क मात से ही मुझे एक अदभुत शिक िमलती है ।"

शी पक ाश िसंह बा दल , मुखयम ंत ी, पं जाब।

(अनुिम) पावन उदगार

हम सभी

का क तक वय ह ोगा िक आपक े बत ाये रास ते पर चल े

"हम सबका परम सौभागय है िक बापू जी के दशन क हुए। कल आपसे मुलाकात हुई,

आशीवाद क िमला, मागद क शन क भी िमला और इशारो-इशारो मे आपने वह सब कुछ जो सदगुरदे व एक िशषय को बता सकते है , मेरे जैसे एक िशषय को आशीवाद क रप मे पदान िकया। आपके आशीवाद क व कृ पादिष से छतीसगढ मे सुख-शांित व समिृद रहे । यहाँ के एक-एक वयिक के घर मे िवकास की िकरण आये।

आपने जो जानोपदे श िदया है हम सभी का कतवकय होगा िक उस रासते पर चले। बापूजी

से खासतौर से पीपल, नीम, आँवला व तुलसी के वक ृ लगाने के बारे मे कहा है । हम इस पर िवशेषरप से धयान रखेगे।"

डॉ . रम न िसंह , मुखयम ंत ी, छत ीसग ढ।

(अनुिम) पावन उदगार

आपका म ंत हैः 'आओ, सरल रासता िदखाऊ ँ , रा म को पान े के िलए '

"पूजय बाबा आसारामजी बापू! आपका नाम आसारामजी बापू इसिलए िनकला है कयोिक आपका यही मंत है िक 'आओ, सरल रासता िदखाऊँ राम को पाने के िलए।' आज हम धनय है िक सिसंग मे आये। सिसंग उसे कहते है िजसके संग मे हम सत ् हो जाये। पूजय बापू जी ने हमे

भगवान को पाने का सरल रासता िदखाया है , इसिलए मै जनता की ओर से बापूजी का धनयवाद करता हूँ।"

शी ई.एस .एल . नरिस मह न, राजय पा ल, छत ीसग ढ।

(अनुिम) पावन उदगार

संतो के माग क दशक न मे द ेश चल ेगा त ो आबाद हो गा "पूजय बापू जी मे कमय क ोग, भिकयोग तथा जानयोग तीनो का ही समावेश है । आप आज करोडो-करोडो भको का मागद क शन क कर रहे है । संतो के मागद क शन क मे दे श चलेगा तो आबाद होगा। मै तो बडे -बडे नेताओं से यही कहता हूँ िक आप संतो का आशीवाद क जरर लो। इनके चरणो मे अगर रहे गे तो सता रहे गी, िटकेगी तथा उसी से धमक की सथापना होगी।"

शी अ शो क िसंघल , अधयक , िवश िह नद ू प िरष द।

(अनुिम) पावन उदगार

सिय का माग क कभी न छ ूटे ऐसा आशीवा क द दो "हमे आपके मागद क शन क की जररत है , वह सतत िमलता रहे । आपने हमारे कंधो पर जो जवाबदारी दी है उसे हम भली पकार िनभाये। बुरे मागक पर न जाये, सिय के मागक पर चले। लोगो की अचछे ढं ग से सेवा करे । संसकृ ित की सेवा करे । सिय का मागक कभी न छूटे , ऐसा आशीवाद क दो।"

शी उ दव ठाकर े , काय कका री अधयक , िशव सेन ा।

(अनुिम) पावन उदगार

पुणयोदय पर

संत समागम

"जीवन की दौड-धूप से कया िमलता है यह हम सब जानते है । िफर भी भौितकवादी संसार मे हम उसे छोड नहीं पाते। संत शी आसारामजी जैसे िदवय शिकसमपनन संत पधारे और हमको आधयाििमक शांित का पान कराकर जीवन की अंधी दौड से छुडाये, ऐसे पसंग कभी-कभी ही पाि होते है । ये पूजनीय संतशी संसार मे रहते हुए भी पूणत क ः िवशकियाण के िलए िचनतन करते है , कायक करते है । लोगो को आनंदपूवक क जीवन वयतीत करने की कलाएँ और योगसाधना की युिकयाँ बताते है ।

आज उनके समक थोडी ही दे र बैठने से एवं सिसंग सुनने से हमलोग और सब भूल गये

है तथा भीतर शांित व आनंद का अनुभव कर रहे है । ऐसे संतो के दरबार मे पहुँचना पुणयोदय का फल है । उनहे सुनकर हमको लगता है िक पितिदन हमे ऐसे सिसंग के िलए कुछ समय

अवशय िनकालना चािहए। पूजय बापू जी जैसे महान संत व महापुरष के सामने मै अिधक कया कहूँ? चाहे कुछ भी कहूँ, वह सब सूयक के सामने िचराग िदखाने जैसा है ।"

शी मोती ला ल व ोरा , अिखल भ ारतीय क ाँग े स कोष ाधयक , पूव क मुखयम ंत ी (म.प.), पूव क राजयप ाल (उ.प.)।

(अनुिम) पावन उदगार

बाप ूजी ज हाँ नह ीं होत े वहा ँ के लोगो क े िलए भी बहुत कुछ करत े ह ै

"सारे दे श के लोग पूजय बापूजी के आशीवच क नो की पावन गंगा मे नहा कर धनय हो रहे

है । आज बापूजी यहाँ उडीसा मे सिसंग-अमत ृ िपलाने के िलए उपिसथत है । वे जब यहाँ नहीं होते है तब भी उडीसा के लोगो के बहुत कुछ करते है , उनको सब समय याद करते है । उडीसा के दिरिनारायणो की तन-मन-धन से सेवा दरू-दराज मे भी चलाते है ।"

शी ज ानक ीव िल भ पटन ायक , मुखयम ं ती , उडी सा।

(अनुिम) पावन उदगार

जी वन की सचची िशका

त ो प ूजय बाप ू जी ही द े

सकत े है

"बापूजी िकतने पेमदाता है िक कोई भी वयिक समाज मे दःुखी न रहे इसिलए सतत

पयत करते रहते है । मै हमेशा 'संसकार चैनल' चालू करके आपके आशीवाद क लेने के बाद ही सोती हूँ। जीवन की सचची िशका तो हम भी नहीं दे पा रहे है , ऐसी िशका तो पूजय संत शी आसारामजी बापू जैसे संत िशरोिमणी ही दे सकते है ।"

आनंद ीबहन पटे ल , िशक ामं ती (पूव क ), रा जस व एव ं माग क व मक ान मंत ी (वतक म ान ), गुजर ात।

(अनुिम) पावन उदगार

आपकी क ृपा स े यो ग की अण ुशिक प ैदा हो रही ह ै .... "अनेक पकार की िवकृ ितयाँ मानव के मन पर, सामािजक जीवन पर, संसकार और संसकृ ित पर आिमण कर रही है । वसतुतः इस समय संसकृ ित और िवकृ ित के बीच एक

महासंघषक चल रहा है जो िकसी सरहद के िलए नहीं बििक संसकारो के िलए लडा जा रहा है । इसमे संसकृ ित को िजताने का बम है योगशिक। हे गुरदे व! आपकी कृ पा से इस योग की िदवय अणुशिक लाखो लोगो मे पैदा हो रही है ... ये संसकृ ित के सैिनक बन रहे है ।

गुरदे व! मै आपसे पाथन क ा करता हूँ िक शासन के अंदर भी धमक और वैरागय के संसकार

उिपनन हो। आपसे आशीवाद क पाि करने के िलए मै आपके चरणो मे आया हूँ।"

(शी अश ोक भाई भट ट, कान ून मंत ी, गुज रात राजय )

(अनुिम) पावन उदगार

धरती तो ब ापू ज ैस े स ंतो के कारण िटकी

है

"मुझे सिसंग मे आने का मौका पहली बार िमला है और पूजय बापूजी से एक अदभुत

बात मुझे और आप सब को सुनने को िमली है , वह है पेम की बात। इस सिृष का जो मूल ततव है , वह है पेम। यह पेम नाम का ततव यिद न हो तो सिृष नष हो जाएगी। लेिकन संसार मे कोई पेम करना नहीं जानता, या तो भगवान पयार करना जानते है या संत पयार करना जानते है । िजसको संसारी लोग अपनी भाषा मे पेम कहते है , उसमे तो कहीं-न-कहीं सवाथक जुडा होता है

लेिकन भगवान, संत और गुर का पेम ऐसा होता है िजसको हम सचमुच पेम की पिरभाषा मे बाँध सकते है । मै यह कह सकती हूँ िक साधू संतो को दे श की सीमाएँ नहीं बाँधतीं। जैसे निदयो की धाराएँ दे श और जाित की सीमाओं मे नहीं बाँधती, उसी पकार परमािमा का पेम और संतो

का आशीवाद क भी कभी दे श, जाित और संपदाय की सीमाओं मे नहीं बंधता। किलयुग मे हदय की िनषकपटता, िनःसवाथक पेम, ियाग और तपसया का कय होने लगा है , िफर भी धरती िटकी है तो बापू! इसिलए िक आप जैसे संत भारतभूिम पर िवचरण करते है । बापू की कथा मे ही मैने यह

िवशेषता दे खी है िक गरीब और अमीर, दोनो को अमत ृ के घूँट एक जैसे पीने को िमलते है । यहाँ कोई भेदभाव नहीं है ।"

(सु शी उ मा भा रती , मुखयम ंत ी, मधय पदेश। )

(अनुिम) पावन उदगार

मै कमन सीब ह ूँ ज ो इत ने स मय तक ग ुरवाणी

से

वंिचत रहा

"परम पूजय गुरदे व के शी चरणो मे सादर पणाम! मैने अभी तक महाराजशी का नाम भर

सुना था। आज दशन क करने का अवसर िमला है लेिकन मै अपने-आपको कमनसीब मानता हूँ

कयोिक दे र से आने के कारण इतने समय तक गुरदे व की वाणी सुनने से वंिचत रहा। अब मेरी कोिशश रहे गी िक मै महाराजशी की अमत ृ वाणी सुनने का हर अवसर यथासमभव पा सकूँ। मै

ईशर से यही पाथन क ा करता हूँ िक वे हमे ऐसा मौका दे िक हम गुर की वाणी को सुनकर अपनेआपको सुधार सके। गुर जी के शी चरणो मे सादर समिपत क होते हुए मधयपदे श की जनता की ओर से पाथन क ा करता हूँ िक गुरदे व! आप इस मधयपदे श मे बार-बार पधारे और हम लोगो को

आशीवाद क दे ते रहे तािक परमाथक के उस कायक मे, जो आपने पूरे दे श मे ही नहीं, दे श के बाहर भी फैलाया है , मधयपदे श के लोगो को भी जुडने का जयादा-से-जयादा अवसर िमले।"

(शी िद िगवज य िसंह , तिका लीन मुखयम ंत ी, मधय पदेश। )

(अनुिम) पावन उदगार

इतन ी मध ु र वाणी ! इतन ा अदभ ु त जान !

"मै अपनी ओर से तथा यहाँ उपिसथत सभी महानुभावो की ओर से परम शदे य संतिशरोमिण बापू जी का हािदक क सवागत करता हूँ। मैने कई बार टी.वी. पर आपको दे खा सुना है और िदिली मे एक बार आपका पवचन भी सुना है । इतनी मधुर वाणी! इतना मधुर जान! अगर आपके पवचन पर गहराई से िवचार करके अमल िकया जाये तो इनसान को िजंदगी मे सही

रासता िमल सकता है । वे लोग धन भागी है जो इस युग मे ऐसे महापुरष के दशन क व सिसंग से अपने जीवन-सुमन िखलाते है ।"

(शी भजन ला ल, तिक ाल ीन मुखयम ती , हिरय ाण ा। )

(अनुिम) पावन उदगार

सिस ंग शवण स े म ेरे हदय की सफाई ह

ो गयी ....

पूजयशी के दशन क करने व आशीवाद क लेने हे तु आये हुए उतरपदे श के तिकालीन राजयपाल

शी सूरजभान ने कहाः "समशानभूिम से आने के बाद हम लोग शरीर की शुिद के िलए सनान

कर लेते है । ऐसे ही िवदे शो मे जाने के कारण मुझ पर दिूषत परमाणू लग जाते थे, परं तु वहाँ से लौटने के बाद यह मेरा परम सौभागय है िक यहाँ महाराज शी के दशन क व पावन सिसंग-शवण

करने से मेरे िचत की सफाई हो गयी। िवदे शो मे रह रहे अनेको भारतवासी पूजय बापू के पवचनो को पियक या परोक रप से सुन रहे है । मेरा यह सौभागय है िक मुझे यहाँ महाराजशी को सुनने का सुअवसर पाि हुआ।"

(शी सूरज भान , तिका लीन राजय पाल , उतर पदेश। )

(अनुिम) पावन उदगार

जानरपी

गंग ाजी सवय ं बहकर यहा ँ आ गयी ं ...

उतरांचल राजय का सौभागय है िक इस दे वभूमी मे दे वता सवरप पूजय बापूजी का आशम बन रहा है | आप ऐसा आशम बनाये जैसा कहीं भी न हो | यह हम लोगो का सौभागय है िक अब

पूजय बापूजी की जानरपी गंगाजी सवयं बहकर यहां आ गयी है | अब गंगा जाकर दशन क करने व सनान करने की उतनी आवशयकता नहीं है , िजतनी संत शी आसारामजी बापू के चरणो मे बैठकर उनके आशीवाद क लेने की है |

-शी िनिय ानंद स वा मी जी , तिका लीन , मुखयम ं ती , उतर ांच ल

(अनुिम) पावन उदगार

बाप ू ज ी के सिस ंग स े िवशभर

के लोग लाभािनवत

...

भारतभूिम सदै व से ही ऋिष-मुिनयो तथा संत-महािमाओं की भूिम रही है , िजनहोने िवश को शांित एवं अधयािम का संदेश िदया है । आज के युग मे पूजय संत शी आसारामजी अपनी

अमत ृ वाणी दारा िदवय आधयाििमक संदेश दे रहे है , िजससे न केवल भारत वरन ् िवशभर मे लोग लाभािनवत हो रहे है ।

(शी सुर जीत िस ंह बरना ला , राजय पा ल, आनध पदेश )

(अनुिम) पावन उदगार

पूरी िडकशनरी याद कर

िव श िरकॉ डक बनाया

ऑकसफोडक एडवांस लनस क क िडकशनरी (अंगेजी छठा संसकरण) के 80000 शबदो को उनकी पष ृ संखया सिहत मैने याद कर िलया, जो िक समसत िवश के िलए िकसी चमिकार से कम नहीं है । फलसवरप मेरा नाम 'िलमका बुक ऑफ विडक िरकॉडक स' मे दजक हो गया। यही नहीं 'जी' टी.वी. पर िदखाये जाने वाले िरयािलटी शो मे 'शाबाश इं िडया' मे भी मैने िवश िरकॉडक बनाया। 'द वीक' पितका के एक सवक े ण मे भी मेरा नाम 25 अदभुत वयिकयो की सूची मे है ।

मुझे पूजय गुरदे व से मंतदीका पाि होना, 'भामरी पाणायाम' सीखने को िमलना तथा अपनी

कमजोरी को ही महानता पाि करने का साधन बनाने की पेरणा, कला, बल एवं उिसाह पाि होना – यह सब तो गुरदे व की अहै तुकी कृ पा का ही चमिकार है । "गुरकृपा ही क ेव लं िश षयस य पर ं मंग लम।् "

िवर ेन ि मेहता , अजक नु नगर , रो हतक (हिर .)।

(अनुिम) पावन उदगार

मंतदीका

व यौ िगक पयोग ो स े बुिद का अ पितम िवकास

"पहले मै एक साधारण छात था। मुझे लगभग 50-55 पितशत अंक ही िमलते थे। 11 वीं

कका मे तो ऐसी िसथित हुई िक सकूल का नाम खराब न हो इसिलए पधानाधयापक ने मेरे

अिभभावको को बुलाकर मुझे सकूल से िनकाल दे ने तक की बात कही थी। बाद मे मुझे पूजय

बापू जी से सारसविय मंत की दीका िमली। इस मंत के जप व बापूजी दारा बताये गये पयोगो के अभयास से कुछ ही समय मे मेरी बुिदशिक का अपितम िवकास हुआ। तिपशात 'नोिकया'

मोबाइल कंपनी मे 'गलोबल सिवस क ेस पोडकट मैनेजर' के पद पर मेरी िनयुिक हुई और मैने एक

पुसतक िलखी जो अंतराष क ीय कंपिनयो को सेियुलर नेटवकक की िडजाईन बनाने मे उपयोगी हो रही है । एक िवदे शी पकाशन दारा पकािशत इस पुसतक की कीमत 110 डॉलर (करीब 4500 रपये) है । इसके पकाशन के बाद मेरी पदोननती हुई और अब िवश के कई दे शो मे मोबाइल के केत मे

पिशकण दे ने हे तु मुझे बुलाते है । िफर मैने एक और पुसतक िलखी, िजसकी 150 डॉलर (करीब 6000 रपये) है । यह पूजयशी से पाि सारसविय मंतदीका का ही पिरणाम है ।"

अजय रंजन िम शा , जन कपु री , िद िली।

(अनुिम) पावन उदगार

सिस ंग व म ंत दीका न े कह ाँ स े कहा ँ प हुँचा िदया

"पहले मै भैसे चराता था। रोज सुबह रात की रखी रोटी, पयाज, नमक और मोिबल ऑयल के िडबबे मे पानी लेकर िनकालता व दोपहर को वही खाता था। आिथक क िसथित ठीक न होने से टायर की ढाई रपये वाली चपपल पहनता था।

12 वीं मे मुझे केवल 60 पितशत अंक पाि हुए थे। उसके बाद मैने इलाहाबाद मे

इं जीिनयिरं ग मे पवेश िलया। तब मै अजानवश संतो का िवरोध करता था। संतो के िलए जहर उगलने वाले मूखो के संग मे आकर मै कुछ-का-कुछ बकता था लेिकन इलाहाबाद मे पूजय बापू

जी का सिसंग आयोिजत हुआ तो सोचा, '5 िमनट बैठते है ।' वहाँ बैठा तो बैठ ही गया। िफर मुझे

बापूजी दारा सारसविय मंत िमला। मेरी सूझबूझ मे सदगुर की कृ पा का संचार हुआ। मैने सिविध मंत-अनुषान िकया। छठे िदन मेरे आजाचि मे कमपन होने लगा था। मै एक साल तक एकादशी के िनजल क वत व जागरण करते हुए "शी आसारामायण", "शी िवषणु सहसनाम", "गजेनिमोक" का

पाठ व सारसविय मंत का जप करता था। रात भर मै यही पाथन क ा करता था, 'बस, पभु! मुझे गुर जी से िमला दो।'

पभुकृपा से अब मेरा उदे शय पूरा हो गया है । इस समय मै 'गो एयर' (हवाई जहाज

कमपनी) मे इं जीिनयर हूँ। महीने भर का करीब एक लाख 80 हजार पाता हूँ। कुछ िदनो मे

तनखवाह ढाई लाख हो जायेगी। गुर जी ने भैसे चराने वाले एक गरीब लडके को आज िसथित मे पहुँचा िदया है ।"

िकित ज सोनी (एयरि ाफ ट इं जी िनयर ), िद िली।

(अनुिम) पावन उदगार

5 वष क के ब ालक ने चलायी

ज ोिख म भ री सडको पर

कार "मैने पूजय बापूजी से 'सारसविय मंत' की दीका ली है । जब मै पूजा करता हूँ, बापूजी मेरी

तरफ पलक झपकाते है । मै बापूजी से बाते करता हूँ। मै रोज दस माला करता हूँ। मै बापूजी से

जो माँगता हूँ, वह मुझे िमल जाता है । मुझे हमेशा ऐसा एहसास होता है िक बापूजी मेरे साथ है । 5 जुलाई 2005 को मै अपने दोसतो के साथ खेल रहा था। मेरा छोटा भाई छत से नीचे

िगर गया। उस समय हमारे घर मे कोई बडा नहीं था। इसिलए हम सब बचचे डर गये। इतने मे पूजय बापूजी की आवाज आयी िक ताशु! इसे वैन मे िबठा और वैन चलाकर हॉिसपटल ले जा।' उसके बाद मैने अपनी दीिदयो की मदद से िहमांशु को वैन मे िलटाया। गाडी कैसी चली और

असपताल कैसे पहुँची, मुझे नहीं पता। मुझे रासते भर ऐसा एहसास रहा िक बापूजी मेरे साथ बैठे है और गाडी चलवा रहे है ।" (घर से असपताल का 5 िक.मी. से अिधक है ।)

तांश ु बेस ोया , रा जव ीर कॉ लोन ी, िदि ली – 16.

(अनुिम) पावन उदगार

ऐसे स ंतो क ा िजतना आदर िकया जाय

, कम है

"िकसी ने मुझसे कहा थाः धयान की कैसेट लगाकर सोयेगे तो सवपन मे गुरदे व के दशन क होगे...’

मैने उसी रात धयान की कैसेट लगायी और सुनते-सुनते सो गया। उस वक राित के

बारह-साढे बारह बजे होगे। वक का पता नहीं चला। ऐसा लगा मानो, िकसी ने मुझे उठा िदया। मै गहरी नींद से उठा एवं गुर जी की लैपवाले फोटो की तरफ टकटकी लगाकर एक-दो िमनट तक

दे खता रहा। इतने मे आशयक! टे प अपने-आप चल पडी और केवल ये तीन वाकय सुनने को िमलेः ‘आिमा चैतनय है । शरीर जड है । शरीर पर अिभमान मत करो।’

टे प सवतः बंद हो गयी और पूरे कमरे मे यह आवाज गूज ँ उठी। दस ू रे कमरे मे मेरी पती

की भी आँखे खुल गयीं और उसने तो यहाँ तक महसूस िकया, जैसे कोई चल रहा है । वे गुरजी के िसवाय और कोई नहीं हो सकते।

मैने कमरे की लाइट जलायी और दौडता हुआ पती के पास गया। मैने पूछाः ‘सुना?’ वह

बोलीः ‘हाँ।’

उस समय सुबह के ठीक चार बजे थे। सनान करके मै धयान मे बैठा तो डे ढ घणटे तक

बैठा रहा। इतना लंबा धयान तो मेरा कभी नहीं लगा। इस घटना के बाद तो ऐसा लगता है िक गुरजी साकात ् बहसवरप है । उनको जो िजस रप मे दे खता है वैसे वे िदखते है ।

मेरा िमत पाशािय िवचारधारावाला है । उसने गुरजी का पवचन सुना और बोलाः ‘मुझे तो

ये एक बहुत अचछे लेकचरर लगते है ।’

मैने कहाः ‘आज जरर इस पर गुरजी कुछ कहे गे।’

यह सूरत आशम मे मनायी जा रही जनमाषमी के समय की बात है । हम कथा मे बैठे। गुरजी ने कथा के बीच मे ही कहाः ‘कुछ लोगो को मै लैकचरर िदखता हूँ, कुछ को ‘पोफेसर’ िदखता हूँ, कुछ को ‘गुर’ िदखता हूँ और वैसा ही वह मुझे पाता है ।’

मेरे िमत का िसर शमक से झुक गया। िफर भी वह नािसतक तो था ही। उसने हमारे

िनवास पर मजाक मे गुरजी के िलए कुछ कहा, तब मैने कहाः "यह ठीक नहीं है । अबकी बार मान जा, नहीं तो गुर जी तुझे सजा दे गे।"

15 िमनट मे ही उसके घर से फोन आ गया िक "बचचे की तबीयत बहुत खराब है उसे

असपताल मे दािखल करना पड रहा है ।"

तब मेरे िमत की सूरत दे खने लायक थी। वह बोलाः "गिती हो गयी। अब मै गुर जी के िलए कुछ नहीं कहूँगा, मुझे चाहे िवशास हो या न हो।"

अखबारो मे गुर जी की िनंदा िलखनेवाले अजानी लोग नहीं जानते िक जो महापुरष

भारतीय संसकृ ित को एक नया रप दे रहे है , कई संतो की वािणयो को पुनजीिवत कर रहे है ,

लोगो के शराब-कबाब छुडवा रहे है , िजनसे समाज का कियाण हो रहा है उनके ही बारे मे हम हलकी बाते िलख रहे है । यह हमारे दे श के िलए बहुत ही शमज क नक बात है । ऐसे संतो का तो

िजतना आदर िकया जाये, वह कम है । गुरजी के बारे मे कुछ भी बखान करने के िलए मेरे पास शबद नहीं है ।

(डॉ . सतव ीर िस ंह छ ाबड ा, बी.बी.ई.एम., आकाश वाण ी, इन दौ र। )

(अनुिम) पावन उदगार

मुझ े िनवय क सनी बना िदया .... "मै िपछले कई वषो से तमबाकू का वयसनी था और इस दग क को छोडने के िलए मैने ु ुण

िकतने ही पयत िकये, पर मै िनषफल रहा। जनवरी 1995 मे पूजय बापू जब पकाशा आशम (महा.) पधारे तो मै भी उनके दशन क ाथक वहाँ पहुँचा और उनसे अनुऱोध िकयाः

"बापू! िवगत 32 वषो से तमबाकू का सेवन कर रहा हूँ। अनेक पयतो के बाद भी इस

दग क से मै मुक न हो सका। अब आप ही कृ पा कीिजए।’ ु ुण

पूजय बापू ने कहाः ‘लाओ तमबाकू की िडबबी और तीन बार थूककर कहो िक आज से मै

तमबाकू नहीं खाऊँगा।’

मैने पूजय बापू जी के िनदे शानुसार वही िकया और महान आशयक! उसी िदन से मेरा

तमबाकू खाने का वयसन छूट गया। पूजय बापू की ऐसी कृ पादिष हुई िक वषक पूरा होने पर भी मुझे कभी तमबाकू खाने की तलब नहीं लगी।

मै िकन शबदो मे पूजय बापू का आभार वयक करँ! मेरे पास शबद ही नहीं है । मुझे

आननद है िक इन राषसंत ने बरबाद व नष होते हुए मेरे जीवन को बचाकर मुझे िनवयस क नी िदया।"

(शी लख न भ टव ाल , िज .धु िलय ा, मह ारा ष)

(अनुिम) पावन उदगार

गुरजी की तसवीर ने पाण बचा िलये

"कुछ ही िदनो पहले मेरा दस ू रा बेटा एम. ए. पास करके नौकरी के िलये बहुत जगह

घूमा, बहुत जगह आवेदन-पत भेजा िकनतु उसे नौकरी नहीं िमली | िफर उसने बापूजी से दीका ली | मैने आशम का कुछ सामान कैसेट, सतसािहिय लाकर उसको दे ते हुए कहा: 'शहर मे जहाँ मंिदर है , जहाँ मेले लगते है तथा जहाँ हनुमानजी का पिसद दिकणमुखी मंिदर है वहां सटाल लगाओ |'

बेटे ने सटाल लगाना शुर िकया | ऐसे ही एक सटाल पर जलगांव के एक पिसद वयापारी अगवालजी आये, बापूजी की कुछ कैसेट खरीदीं और 'ईशर की ओर' नामक पुसतक भी साथ मे ले गये, पुसतक पढी और कैसेट सुनी | दस ू रे िदन वे िफर आये और कुछ सतसािहिय खरीद कर ले गये, वे पान के थोक िविता है | उनको पान खाने की आदत है | पुसतक पढकर उनहे लगा: 'मै

पान छोड दँ ू |' उनकी दक ु ान पर एक आदमी आया | पांचसौ रपयो का सामान खरीदा और उनका फोन नमबर ले गया | एक घंटे के बाद उसने दक ु ान पर फोन िकया: 'सेठ अगवालजी ! मुझे

आपका खून करने का काम सौपा गया था | काफी पैसे (सुपारी) भी िदये गये थे और मै तैयार भी हो गया था, पर जब मे आपकी दक ु ान पर पहुंचा तो परम पूजय संत शी आसारामजी बापू के

िचत पर मेरी नजर पडी | मुझे ऐसा लगा मानो, साकात बापू बैठे हो और मुझे नेक इनसान बनने की पेरणा दे रहे हो ! गुरजी की तसवीर ने (तसवीर के रप मे साकात गुरदे व ने आकर) आपके पाण बचा िलये |' अदभुत चमिकार है ! मुमबई की पाटी ने उसको पैसे भी िदये थे और वह

आया भी था खून करने के इरादे से, परनतु जाको राखे सांइयाँ.... िचत के दार भी अपनी कृ पा बरसाने वाले ऐसे गुरदे व के पियक दशन क करने के िलये वह यहाँ भी आया है |"

-बालकृष ण अगव ाल , जलगा ंव , मह ारा ष

(अनुिम) पावन उदगार

सदगुर िशषय का साथ कभी नहीं छोडते "एक रात मै दक ु ान से सकूटर दारा अपने घर जा रहा था | सकूटर की िडककी मे काफी

रपये रखे हुए थे | जयो ही घर के पास पहुंचा तो गली मे तीन बदमाश िमले | उनहोने मुझे घेर

िलया और िपसतौल िदखायी | सकूटर रकवाकर मेरे िसर पर तमंचे का बट मार िदया और धकके मार कर मुझे एक तरफ िगरा िदया | उनहोने सोचा होगा िक मै अकेला हूं, पर िशषय जब सदगुर से मंत लेता है , शदा-िवशास रखकर उसका जप करता है तब सदगुर उसका साथ नहीं छोडते | मैने सोचा "िडककी मे बहुत रपये है और ये बदमाश तो सकूटर ले जा रहे है | मैने गुरदे व से

पाथन क ा की | इतने मे वे तीनो बदमाश सकूटर छोडकर थैला ले भागे | घर जाकर खोला होगा तो सबजी और खाली िटिफ़न दे खकर िसर कूटा, पता नहीं पर बडा मजा आया होगा | मेरे पैसे बच गये...उनका सबजी का खचक बच गया |"

-गोकुल चन ि गोय ल , आगरा

(अनुिम) पावन उदगार

गुरकृ पा से अंधापन दरू हुआ

"मुझे गलुकोमा हो गया था | लगभग पैतीस साल से यह तकलीफ़ थी | करीब छः साल तक तो मै अंधा रहा | कोलकाता, चेननई आिद सब जगहो पर गया, शंकर नेतालय मे भी गया

िकनतु वहां भी िनराशा हाथ लगी | कोलकाता के सबसे बडे नेत-िवशेषज के पास गया | उसने भी मना कर िदया और कहा | 'धरती पर ऐसा कोई इनसान नहीं जो तुमहे ठीक कर सके |' ...लेिकन सूरत आशम मे मुझे गुरदे व से मंत िमला | वह मंत मैने खूब

शदा-िवशासपूवक क जपा कयोिक

सकात बहसवरप गुरदे व से वह मंत िमला था | करीब छः-सात महीने ही जप हुआ था िक मुझे

थोडा-थोडा िदखायी दे ने लगा | डॉकटर कहते थे िक तुमको भांित हो गयी है , पर मुझे तो अब भी अचछी तरह िदखता है | एक बार एक अनय भंयकर दघ क ना से भी गुरदे व ने मुझे बचाया था | ु ट ऐसे गुरदे व का ॠण हम जनमो-जनमो तक नहीं चुका सकते |"

-शं करल ाल मह ेशरी , कोल काता

(अनुिम) पावन उदगार

और डकैत घबराकर भाग गये "१४ जुलाई '९९ को करीब साढे तीन बजे मेरे मकान मे छः डकैत घुस आये और उस समय दभ ु ागकय से बाहर का दरवाजा खुला हुआ था | दो डकैत बाहर मारित चालू रखकर खडे थे | एक डकैत ने धकका दे कर मेरी माँ का मुह ँ बंद कर िदया और अलमारी की चाबी माँगने लगा | इस घटना के दौरान मै दक ु ान पर था | मेरी पती को भी डकैत धमकाने लगे और आवाज न

करने को कहा | मेरी पती ने पूजय बापूजी के िचत के सामने हाथ जोडकर पाथन क ा की 'अब आप ही रका करो ...' इतना ही कहा तो आशयक ! आशयक ! परम आशयक !! वे सब डकैत घबराकर

भागने लगे | उनकी हडबडाहट दे खकर ऐसा लग रहा था मानो उनहे कुछ िदखायी नहीं दे रहा था | वे भाग गये | मेरा पिरवार गुरदे व का ॠणी है | बापूजी के आशीवाद क से सब सकुशल है | हमने १५ नवमबर '९८ को वाराणसी मे मंतदीका ली थी |"

-मन ोहरल ाल तलर े जा , ४, झु लेल ाल नगर , िशवा जी नगर , वार ाण सी

(अनुिम) पावन उदगार

मंत दारा मत ृ दे ह मे पाण-संचार

"मै शी योग वेदानत सेवा सिमित, आमेट से जीप दारा रवाना हुआ था | ११ जुलाई १९९४

को मधयानह बारह बजे हमारी जीप िकसी तकनीकी तुिट के कारण िनयंतण से बाहर होकर तीन

पििटयाँ खा गयी | मेरा पूरा शरीर जीप के नीचे दब गया | िकसी तरह मुझे बाहर िनकाला गया | एक तो दब ु ला पतला शरीर और ऊपर से पूरी जीप का वजन ऊपर आ जाने के कारण मेरे शरीर

के पियेक िहससे मे असह ददक होने लगा | मुझे पहले तो केसिरयाजी असपताल मे दािखल कराया गया | जयो-जयो उपचार िकया गया, कष बढता ही गया कयोिक चोट बाहर नहीं, शरीर के भीतरी िहससो मे लगी थी और भीतर तक डॉकटरो का कोई उपचार काम नहीं कर रहा था | जीप के

नीचे दबने से मेरा सीना व पेट िवशेष पभािवत हुए थे और हाथ-पैर मे काँच के टु कडे घुस गये

थे | ददक के मारे मुझे साँस लेने मे भी तकलीफ हो रही थी | ऑकसीजन िदये जाने के बाद भी दम घुट रहा था और मिृयु की घिडयाँ नजदीक िदखायी पडने लगीं | मै मरणासनन िसथित मे

पहुँच गया | मेरा मिृयु-पमाणपत बनाने की तैयािरयाँ िक जाने लगीं व मुझे घर ले जाने को कहा गया | इसके पूवक मेरा िमत पूजय बापू से फ़ोन पर मेरी िसथित के समबनध मे बात कर चुका था | पाणीमात के परम िहतैषी, दयालु सवभाव के संत पूजय बापू ने उसे एक गुि मंत पदान करते

हुए कहा था िक 'पानी मे िनहारते हुए इस मंत का एक सौ आठ बार (एक माला) जप करके वह पानी मनोज को एवं दघ क ना मे घायल अनय लोगो को भी िपला दे ना |' जैसे ही वह अिभमंितत ु ट जल मेरे मुह ँ मे डाला गया, मेरे शरीर मे हलचल होने के साथ ही वमन हुआ | इस अदभुत

चमिकार से िविसमत होकर डॉकटरो ने मुझे तुरंत ही िवशेष मशीनो के नीचे ले जाकर िलटाया | गहन िचिकिसकीय परीकण के बाद डॉकटरो को पता चला िक जीप के नीचे दबने से मेरा पूरा

खून काला पड गया था तथा नाडी-चालन (पिस), हदयगित व रक पवाह भी बंद हो चुके थे | मेरे शरीर का समपूणक रक बदल िदया गया तथा आपरे शन भी हुआ | उसके ७२ घंटे बाद मुझे होश

आया | बेहोशी मे मुझे केवल इतना ही याद था की मेरे भीतर पूजय बापू दारा पदत गुरमंत का जप चल रहा है | होश मे आने पर डॉकटरो ने पूछा : 'तुम आपरे शन के समय 'बापू...बापू...' पुकार रहे थे | ये 'बापू' कौन है ? मैने बताया :'वे मेरे गुरदे व पातः समरणीय परम पूजय संत शी

असारामजी बापू है |' डॉकटरो ने पुनः मुझसे पश िकया : 'कया तुम कोई वयायाम करते हो ?' मैने

कहा :'मै अपने गुरदे व दारा िसखायी गयी िविध से आसन व पाणायाम करता हूँ |' वे बोले : 'इसील िंये तुमहारे इस दब ु ले-पतले शरीर ने यह सब सहन कर िलया और तुम मरकर भी पुनः िजनदा हो उठे दस ू रा कोई होता तो तुरंत घटनासथल पर ही उसकी हिडडयाँ बाहर िनकल जातीं और वह मर जाता |' मेरे शरीर मे आठ-आठ निलयाँ लगी हुई थीं | िकसीसे खून चढ रहा था तो िकसी से

कृ ितम ऑकसीजन िदया जा रहा था | यदिप मेरे शरीर के कुछ िहससो मे अभी-भी काँच के टु कडे मौजूद है लेिकन गुरकृ पा से आज मे पूणक सवसथ होकर अपना वयवसाय व गुरसेवा दोनो कायक

कर रह हूँ | मेरा जीवन तो गुरदे व का ही िदया हुआ है | इन मंतदषा महिषक ने उस िदन मेरे िमत

को मंत न िदया होता तो मेरा पुनजीवन तो समभव नहीं था | पूजय बापू मानव-दे ह मे िदखते हुए भी अित असाधारण महापुरष है | टे िलफ़ोन पर िदये हुए उनके एक मंत से ही मेरे मत ृ शरीर मे पुनः पाणो का संचार हो गया तो िजन पर बापू की पियक दिष पडती होगी वे लोग िकतने भागयशाली होते होगे ! ऐसे दयालु जीवनदाता सदगुर के शीचरणो मे कोिट-कोिट दं डवत पणाम..."

-मनो ज कुमार स ोनी , जयो ित ट े लसक , लकम ी बाज ार , आमे ट , रा जस थान

(अनुिम) पावन उदगार

सदगुरदे व की कृ पा से नेतजयोित वापस िमली

"मेरी दािहनी आँख से कम िदखायी दे ता था तथा उसमे तकलीफ़ भी थी | धयानयोग िशिवर, िदिली मे पूजय गुरदे व मेवा बाँट रहे थे, तब एक मेवा मेरी दािहनी आँख पर आ लगा |

आँख से पानी िनकलने लगा |... पर आशयक ! दस ू रे ही िदन से आँख की तकलीफ िमट गयी और अचछी तरह िदखायी दे ने लगा |"

-रा जक ली देवी , असैनाप ुर , लालग ं ज अ जा रा , िज . पतापग ढ, उतर पद ेश

(अनुिम) पावन उदगार

बडदादा की िमटटी व जल से जीवनदान "अगसत '९८ मे मुझे मलेिरया हुआ | उसके बाद पीिलया हो गया | मेरे बडे भाई ने आशम

से पकािशत 'आरोगयिनिध' पुसतक मे से पीिलया का मंत पढकर पीिलया तो उतार िदया परं तु

कुछ ही िदनो बाद अंगेजी दवाओं के 'िरएकन' से दोनो िकडिनयाँ 'फेल' (िनिषिय) हो गई | मेरा 'हाटक ' (हदय) और 'लीवर' (यकृ त) भी 'फेल' होने लगे | डॉकटरो ने तो कह िदया 'यह लडका बच

नहीं सकता |' िफर मुझे गोिदया से नागपुर हॉिसपटल मे ले जाया गया लेिकन वहाँ भी डॉकटरो ने जवाब दे िदया िक अब कुछ नहीं हो सकता | मेरे भाई मुझे वहीं छोडकर सूरत आशम आये,

वैदजी से िमले और बडदादा की पिरिमा करके पाथन क ा की तथा वहाँ की िमटटी और जल िलया

| ८ तारीख को डॉकटर मेरी िकडनी बदलने वाले थे | जब मेरे भाई बडदादा को पाथन क ा कर रहे थे, तभी से मुझे आराम िमलना शुर हो गया था | भाई ने ७ तारीख को आकर मुझे बडदादा िक

िमटटी लगाई और जल िपलाया तो मेरी दोनो िकडनीयाँ सवसथ हो गयी | मुझे जीवनदान िमल गया | अब मै िबिकुल सवसथ हूँ |"

-पव ीण पटे ल , गो िद या , महार ाष

(अनुिम) पावन उदगार

पूजय बापू ने फेका कृ पा-पसाद "कुछ वषक पूवक पूजय बापू राजकोट आशम मे पधारे थे | मुझे उन िदनो िनकट से दशन क

करने का सौभागय िमला | उस समय मुझे छाती मे ' एनजायना पेकिटोिरस' के कारण ददक रहता था | सिसंग पूरा होने के बाद कुछ लोग पूजय बापू के पास एक-एक करके जा रहे थे | मै कुछ

फल-फूल नहीं लाया था इसिलए शदा के फूल िलये बैठा था | पूजय बापू कृ पा-पसाद फेक रहे थे िक इतने मै एक चीकू मेरी छाती पर आ लगा और छाती का वह ददक हमेशा के िलए िमट गया |"

-अर िवं दभ ाई वसा वडा , राज को ट

(अनुिम) पावन उदगार

बेटी ने मनौती मानी और गुरकृ पा हुई

"मेरी बेटी को शादी िकये आठ साल हो गये थे | पहली बार जब वह गभव क ती हुई तब

बचचा पेट मे ही मर गया | दस ू री बार बचची जनमी, पर छः महीने मे वह भी चल बसी | िफर मेरी पती ने बेटी से कहा : 'अगर तू संकिप करे िक जब तीसरी बार पसूती होगी तब तुम

बालक की जीभ पर बापूजी के बताने के मुतािबक ‘ॐ’ िलखोगी तो तेरा बालक जीिवत रहे गा, ऐसा मुझे िवशास है कयोिक ॐकार मंत मे परमानंदसवरप पभु िवराजमान है |' मेरी बेटी ने इस पकार मनौती मानी और समय पाकर वह गभव क ती हुई | सोनोगाफ़ी करवायी गयी तो डॉकटरो ने

बताया : 'गभक मे बचची है और उसके िदमाग मे पानी भरा हुआ है | वह िजंदा नहीं रह सकेगी | गभप क ात करवा दो | मेरी बेटी ने अपनी माँ से सलाह की | उसकी माँ ने कहा : ' गभप क ात का

महापाप नहीं करवाना है | जो होगा, दे खा जायेगा | गुरदे व कृ पा करे गे |' जब पसूती हुई तो िबिकुल पाकृ ितक ढं ग से हुई और उस बचची की जीभ पर शहद एवं िमशी से ॐ िलखा गया | आज वह िबिकुल ठीक है | जब उसकी डॉकटरी जाँच करवायी गयी तो डॉकटर आशयक मे पड गये !

सोनोगाफ़ी मे जो बीमािरयाँ िदख रही थीं वे कहाँ चली गयीं ? िदमाग का पानी कहाँ चला गया ? िहनदज ु ा हॉिसपटलवाले यह किरशमा दे खकर दं ग रह गये ! अब घर मे जब कोई दस ू री कोई

कैसेट चलती है तो वह बचची इशारा करके कहती है : 'ॐवाली कैसेट चलाओ |' िपछली पूनम को हम मुंबई से 'टाटा सुमो' मे आ रहे थे | बाढ के पानी के कारण रासता बंद था | हम सोच मे पड

गये िक पूनम का िनयम टू टे गा | हमने गुरदे व का समरण िकया | इतने मे हमारे डाइवर ने हमसे पूछा :'जाने दँ ू ?' हमने भी गुरदे व का समरण करके कहा : 'जाने दो और 'हिर हिर ॐ...' कीतन क

की कैसेट लगा दो |' गाडी आगे चली | इतना पानी िक हम जहाँ बैठे थे वहाँ तक पानी आ गया | िफर भी हम गुरदे व के पास सकुशल पहुँच गये और उनके दशन क िकये|"

-मुरा रील ाल अग वाल , सांतािू ज , मुंबई

(अनुिम) पावन उदगार

और गुरदे व की कृ पा बरसी "जबसे सूरत आशम की सथापना हुई तबसे मै गुरदे व के दशन क करते आ रहा हूँ, उनकी

अमत ृ वाणी सुनता आ रहा हूँ | मुझे पूजयशी से मंतदीका भी िमली है | पारबधवश एक िदन मेरे साथ एक भयंकर दघ क ना घटी | डॉकटर कहते थे: आपका एक हाथ अब काम नहीं करे गा |' मै ु ट

अपना मानिसक जप मनोबल से करता रहा | अब हाथ िबिकुल ठीक है | उससे मै ७० िक.गा. वजन उठा सकता हूँ | मेरी समसया थी िक शादी होने के बाद मुझे कोई संतान नहीं थी | डॉकटर कहते थे िक संतान नहीं हो सकती | हम लोगो ने गुरकृ पा एवं गुरमंत का सहारा िलया,

धयानयोग िशिवर मे आये और गुरदे व की कृ पा बरसी | अब हमारी तीन संताने है : दो पुितयाँ और एक पुत | गुरदे व ने ही बडी बेटी का नाम गोपी और बेटे का नाम हिरिकशन रखा है | जय हो सदगुरदे व की..."

-हँसम ुख क ां ितला ल मो दी , ५७ , 'अपना घर ' सोसा यट ी, संदेर रोड , सूरत

(अनुिम) पावन उदगार

गुरदे व ने भेजा अकयपात

"हमे पचारयाता के दौरान गुरकृ पा का जो अदभुत अनुभव हुआ वह अवणन क ीय है | याता

की शुरआत से पहले िदनांक : ८-११-९९ को हम पूजय गुरदे व के आशीवाद क लेने गये | गुरदे व ने

कायि क म के िवषय मे पूछा और कहा "पंचेड आशम (रतलाम) मे भंडारा था | उसमे बहुत सामान बच गया है | गाडी भेजकर मँगवा लेना... गरीबो मे बाँटना | हम झाबुआ िजले के आस-पास के गरीब आिदवासी इलाको मे जानेवाले थे | वहाँ से रतलाम के िलए गाडी भेजी | िगनकर सामान

भरा गया | दो िदन चले उतना सामान था | एक िदन मे दो भंडारे होते थे | अतः चार भंडारे का

सामान था | सबने खुिले हाथो बतन क , कपडे , सािडयाँ धोती, आिद सामान छः िदनो तक बाँटा िफर भी सामान बचा रहा | सबको आशयक हुआ ! हम लोग सामान िफर से िगनने लगे परं तु गुरदे व

की लीला के िवषय मे कया कहे ? केवल दो िदन चले उतना सामान छः िदनो तक खुिले हाथो बाँटा, िफर भी अंत मे तीन बोरे बतन क बच गये, मानो गुरदे व ने अकयपात भेजा हो ! एक िदन शाम को भंडारा पूरा हुआ तब दे खा िक एक पतीला चावल बच गया है | करीब १००-१२५ लोग खा सके उतने चावल थे | हमने सोचा : 'चावल गाँव मे बांट दे ते है |'... परं तु गुरदे व की लीला

दे खो ! एक गाँव के बदले पाँच गाँवो मे बाँटे िफर भी चावल बचे रहे | आिखर राित मे ९ बजे के बाद सेवाधािरयो ने थककर गुरदे व से पाथन क ा की िक 'गुरदे व ! अब जंगल का िवसतार है ... हम पर कृ पा करो |'... और चावल खिम हुए | िफर सेवाधारी िनवास पर पहुँचे |"

-संत श ी आसा रा मज ी भक मंडल , कतारग ाम , सूरत

(अनुिम) पावन उदगार

सवपन मे िदये हुए वरदान से पुतपािि

"मेरे गहसथ जीवन मे एक-एक करके तीन कनयाएँ जनमी | पुतपािि के िलए मेरी धमप क ती ने गुरदे व से आशीवाद क पाि िकया था | चौथी पसूित होने के पहले जब उसने वलसाड मे

सोनोगाफ़ी करवायी तो िरपोटक मे लडकी बताया गया | यह सुनकर हम िनराश हो गये | एक रात पती को सवपन मे गुरदे व ने दशन क िदये और कहा : 'बेटी िचंता मत कर | घबराना मत धीरज

रख | लडका ही होगा |' हमने सूरत आशम मे बडदादा की पिरिमा करके मनौती मानी थी, वह भी

फ़लीभूत हुई और गुरदे व का बहवाकय भी सिय सािबत हुआ, जब पसूित होने पर लडका हुआ | सभी गुरदे व की जय-जयकार करने लगे |"

-सुन ील कुमा र राध ेशय ाम चौ रिस या , दीप कव ाडी , िक िला पारडी , िज . वलस ाड

(अनुिम) पावन उदगार

'शी आसारामायण' के पाठ से जीवनदान "मेरा दस वषीय पुत एक रात अचानक बीमार हो गया | साँस भी मुिशकल से ले रहा था |

जब उसे हॉिसपटल मे भती िकया तब डॉकटर बोले | 'बचचा गंभीर हालत मे है | ऑपरे शन करना पडे गा |' मै बचचे को हॉिसपटल मे ही छोडकर पैसे लेने के िलए घर गया और घर मे सभी को कहा : “आप लोग 'शी आसारामायण' का पाठ शुर करो |” पाठ होने लगा | थोडी दे र बाद मै

हॉिसपटल पहुँचा | वहाँ दे खा तो बचचा हँ स-खेल रहा था | यह दे ख मेरी और घरवालो की खुशी का िठकाना न रहा ! यह सब बापूजी की असीम कृ पा, गुर-गोिवनद की कृ पा और शी आसारामायणपाठ का फल है |"

-सुन ील चा ंड क, अम रावत ी, मह ारा ष

(अनुिम) पावन उदगार

गुरवाणी पर िवशास से अवणीय लाभ "शादी होने पर एक पुती के बाद सात साल तक कोई संतान नहीं हुई | हमारे मन मे

पुतपािि की इचछा थी | १९९९ के िशिवर मे हम संतानपािि का आशीवाद क लेनेवालो की पंिक मे बैठे | बापूजी आशीवाद क दे ने के िलए साधको के बीच आये तो कुछ साधक नासमझी से कुछ ऐसे पश कर बैठे, जो उनहे नहीं करने चािहए थे | गुरदे व नाराज होकर यह कहकर चले गये िक

'तुमको संतवाणी पर िवशास नहीं है तो तुम लोग यहाँ कयो आये ? तुमहे डॉकटर के पास जाना

चािहए था |' िफर गुरदे व हमारे पास नहीं आये | सभी पाथन क ा करते रहे , पर गुरदे व वयासपीठ से बोले : 'दब ु ारा तीन िशिवर भरना |' मै मन मे सोच रहा था िक कुछ साधको के कारण मुझे आशीवाद क नहीं िमल पाया परं तु 'वजादिप कठोरािण म

ृ द ु िन कुस ु मादिप .. .' बाहर से वज से

भी कठोर िदखने वाले सदगुर भीतर से फूल से भी कोमल होते है | तुरंत गुरदे व िवनोद करते

हुए बोले : 'दे खो ! ये लोग संतानपािि का आशीवाद क लेने आये है | कैसे ठनठनपाल-से बैठे है ! अब जाओ... झूला-झुनझुना लेकर घर जाओ |' मैने और मेरी पती ने आपस मे िवचार िकया : 'दयालु गुरदे व ने आिखर आशीवाद क दे ही िदया | अब गुरदे व ने कहा है िक झूला-झुनझुना ले

जाओ |' ... तो मैने गुरवचन मानकर रे लवे सटे शन से एक झुनझुना खरीद िलया और गवािलयर

आकर गुरदे व के िचत के पास रख िदया | मुझे वहाँ से आने के १५ िदन बाद डॉकटर दारा मालूम हुआ िक पती गभव क ती है | मैने गुरदे व को मन-ही-मन पणाम िकया | इस बीच डॉकटरो ने सलाह

दी िक 'लडका है या लडकी, इसकी जाँच करा लो |' मैने बडे िवशास से कहा िक 'लडका ही होगा | अगर लडकी भी हुई तो मुझे कोई आपित नहीं है | मुझे गभप क ात का पाप अपने िसर पर नहीं

लेना है |' नौ माह तक मेरी पती भी सवसथ रही | हिरदार िशिवर मे भी हम लोग गये | समय आने पर गुरदे व दारा बताये गये इलाज के मुतािबक गाय के गोबर का रस पती को िदया और िदनांक २७ अकूबर १९९९ को एक सवसथ बालक का जनम हुआ |"

-राज े नि कुम ार वाजप ेयी , अचक न ा व ाज पेयी , बलव ंत नगर , ढाढ ीपु र , मुर ार ा, गव ािल यर

(अनुिम) पावन उदगार

सेवफल के दो टु कडो से दो संताने

"मैने सन १९९१ मे चेटीचंड िशिवर, अमदावाद मे पूजय बापूजी से मंतदीका ली थी | मेरी शादी के १० वषक तक मुखे कोई संतान नहीं हुई | बहुत इलाज करवाये लेिकन सभी डॉकटरो ने

बताया िक बालक होने की कोई संभावना नहीं है | तब मैने पूजय बापूजी के पूनम दशन क का वत िलया और बाँसवाडा मे पूनम दशन क के िलए गया | पूजय बापूजी सबको पसाद दे रहे थे | मैने मन मे सोचा | 'कया मै इतना पापी हूँ िक बापूजी मेरी तरफ दे खते तक नहीं ?' इतने मे पूजय बापूजी िक दिष मुझ पर पडी और उनहोने मुझे दो िमनट तक दे खा | िफर उनहोने एक सेवफल लेकर

मुझ पर फेका जो मेरे दाये कंधे पर लगकर दो टु कडो मे बँट गया | घर जाकर मैने उस सेवफल के दोनो भाग अपनी पती को िखला िदये | पूजयशी का कृ पापूणक पसाद खाने से मेरी पती गभव क ती हो गयी | िनरीकण कराने पर पता चला िक उसको दो िसर वाला बालक उिपनन होगा | डॉकटरो

ने बताया " 'उसका 'िसजेिरयन' करना पडे गा अनयथा आपकी पती के बचने की समभावना नहीं है | 'िसजेिरयन मे लगभग बीस हजार रपयो का खचक आयेगा |' मैने पूजय बापूजी से पाथन क ा की "है बापूजी ! आपने ही फल िदया था | अब आप ही इस संकट का िनवारण कीिजये |' िफर मैने बड बादशाह के सामने भी पाथन क ा की : 'जब मै असपताल पहुँचँू तो मेरी पती की पसूती सकुशल हो जाय... |' उसके बाद जब मै असपताल पहूँचा तो मेरी पती एक पुत और एक पुती को जनम दे चुकी थी | पूजयशी के दारा िदये गये फल से मुझे एक की जगह दो संतानो की पािि हुई |"

-मुकेश भाई सो लंक ी ,

शार दा मं िदर सकूल के पी छे , बावन चा ल, वड ोद रा

(अनुिम) पावन उदगार

साइिकल से गुरधाम जाने पर खराब टाँग ठीक हो गयी

"मेरी बाँयी टाँग घुटने से उपर पतली हो गयी थी | 'ऑल इिणडया मेिडकल इनसटीटयूट, िदिली' मे मै छः िदन तक रहा | वहाँ जाँच के बाद बतलाया गया िक 'तुमहारी रीढ की हडडी के

पास कुछ नसे मर गयी है िजससे यह टाँग पतली हो गयी है | यह ठीक तो हो ही नहीं सकती |

हम तुमहे िवटािमन 'ई' के कैपसूल दे रहे है | तुम इनहे खाते रहना | इससे टांग और जयादा पतली नहीं होगी |' मैने एक साल तक कैपसूल खाये | उसके बाद २२ जून, १९९७ को मुजफ़फ़रनगर मे

मैने गुरजी से मंतदीका ली और दवाई खाना बंद कर दी | जब एक साधक भाई राहुल गुिा ने

कहा िक सहारनपुर से साइिकल दारा उतरायण िशिवर, अमदावाद जाने का कायि क म बन रहा है ,

तब मैने टाँग के बारे मे सोचे िबना साइिकल याता मे भाग लेने के िलए अपनी सहमित दे दी | जब मेरे घर पर पता चला िक मैने साइिकल से गुरधाम, अमदावाद जाने का िवचार बनाया है ,

अतः तुम ११५० िक.मी. तक साइिकल नहीं चला पाओगे |' ... लेिकन मैने कहा : 'मै साइिकल से ही गुरधाम जाऊँगा, चाहे िकतनी भी दरूी कयो न हो ?' ... और हम आठ साधक भाई सहारनपूर से २६ िदसमबर '९७ को साइिकलो से रवाना हुए | मागक मे चढाई पर मुझे जब भी कोइ िदककत

होती तो ऐसा लगता जैसे मेरी साइिकल को कोई पीछे से धकेल रहा है | मै मुडकर पीछे दे खता तो कोई िदखायी नहीं पडता | ९ जनवरी को जब हम अमदावाद गुरआशम मे पहूँचे और मैने सुबह अपनी टाँग दे खी तो मै दं ग रह गये ! जो टाँग पतली हो गयी थी और डॉकटरो ने उसे

ठीक होने से मना कर िदया था वह टाँग िबिकुल ठीक हो गयी थी | इस कृ पा को दे खकर मै चिकत रह गया ! मेरे साथी भी दं ग रह गये ! यह सब गुरकृ पा के पसाद का चमिकार था | मेरे आठो साथी, मेरी पती तथा ऑल इिणडया मेिडकल इनसटीटयूट, िदिली दारा जाँच के पमाणपत इस बात के साकी है |"

-िनर ंक ार अगव ाल , िव षणुप ुरी , नयूम ाध ोनगर , सहार नपुर (उ.प.)

(अनुिम) पावन उदगार

अदभुत रही मौनमंिदर की साधना ! "परम पूजय सदगुरदे व की कृ पा से मुझे िदनांक १८ से २४ मई १९९९ तक अमदावाद

आशम के मौनमंिदर मे साधना करने का सुअवसर िमला | मौनमंिदर मे साधना के पाँचवे िदन यानी २२ मई की राित को लगभग २ बजे नींद मे ही मुझे एक झटका लगा | लेटे रहने िक

िसथित मे ही मुझे महसूस हुआ िक कोई अदशय शिक मुझे ऊपर... बहुत ऊपर उडये ले जा रही

है | ऊपर उडते हुए जब मैने नीचे झाँककर दे खा तो अपने शरीर को उसी मौनमंिदर मे िचत लेटा हुआ, बेखबर सोता हुआ पाया | ऊपर जहाँ मुझे ले जाया गया वहाँ अलग ही छटा थी... अजीब

और अवणीय ! आकाश को भी भेदकर मुझे ऐसे सथान पर पहुँचाया गया था जहाँ चारो तरफ कोहरा-ही-कोहरा था, जैसे, शीशे की छत पर ओस फैली हो ! इतने मे दे खता हूँ िक एक सभा

लगी है , िबना शरीर की, केवल आकृ ितयो की | जैसे रे खाओं से मनुषयरपी आकृ ितयाँ बनी हो | यह

सब कया चल रहा था... समझ से परे था | कुछ पल के बाद वे आकृ ितयाँ सपष होने लगी | दे वीदे वताओं के पुंज के मधय शीषक मे एक उचच आसन पर साकात बापूजी शंकर भगवान बने हुए कैलास पवत क पर िवराजमान थे और दे वी-दे वता कतार मे हाथ बाँधे खडे थे | मै मूक-सा होकर

अपलक नेतो से उनहे दे खता ही रहा, िफर मंतमुगध हो उनके चरणो मै िगर पडा | पातः के ४ बजे थे | अहा ! मन और शरीर हिका-फ़ुिका लग रहा था ! यही िसथित २४ मई की मधयराित मे भी दोहरायी गयी | दस ू रे िदन सुबह पता चला िक आज तो बाहर िनकलने का िदन है यानी रिववार २५ मई की सुबह | बाहर िनकलने पर भावभरा हदय, गदगद कंठ और आखो मे आँसू ! यो लग

रहा था िक जैसे िनजधाम से बेघर िकया जा रहा हूँ | धनय है वह भूिम, मौनमंिदर मे साधना की वह वयवसथा, जहां से परम आनंद के सागर मे डू बने की कुंजी िमलती है ! जी करता है , भगवान ऐसा अवसर िफर से लाये िजससे िक उसी मौनमंिदर मे पुनः आंतिरक आनंद का रसपान कर पाऊँ |"

-इनि नार ायण शाह , १० ३, रतनद ीप -२, िनर ाला नगर , कानप ुर

(अनुिम) पावन उदगार

असाधय रोग से मुिक

"सन १९९४ मे मेरी पुती िहरल को शरद पूिणम क ा के िदन बुखार आया | डॉकटरो को

िदखाया तो िकसीने मलेिरया कहकर दवाइयाँ दी तो िकसीने टायफायड कहकर इलाज शुर िकया तो िकसीने टायफायड और मलेिरया दोनो कहा | दवाई की एक खुराक लेने से शरीर नीला पड

गया और सूज गया | शरीर मे खून की कमी से उसे छः बोतले खून चढाया गया | इं जेकन दे ने से पूरे शरीर को लकवा मार गया | पीठ के पीछे शैयावण जैसा हो गया | पीठ और पैर का एकस-रे

िलया गया | पैर पर वजन बाँधकर रखा गया | डॉकटरो ने उसे वायु का बुखार तथा रक का कैसर बताया और कहा िक उसके हदय तो वािव चौडा हो गया है | अब हम िहममत हार गये | अब

पूजयशी के िसवाय और कोई सहारा नहीं था | उस समय िहरल ने कहा :'मममी ! मुझे पूजय बापू के पास ले चलो | वहाँ ठीक हो जाऊगी |' पाँच िदन तक िहरल पूजयशी की रट लगाती रही | हम उसे अमदावाद आशम मे बापू के पास ले गये | बापू ने कहा: 'इसे कुछ नहीं हुआ है |' उनहोने

मुझे और िहरल को मंत िदया एवं बडदादा की पदिकणा करने को कहा | हमने पदिकणा की और िहरल पनिह िदन मे चलने-िफ़रने लगी | हम बापू की इस करणा-कृ पा का ॠण कैसे चुकाये ! अभी तो हम आशम मे पूजयशी के शीचरणो मे सपिरवार रहकर धनय हो रहे है |"

-पफुि ल वयास , भाव नगर

वतक मान मे अ मद ाव ाद आ शम मे सप िरव ार सम िपक त

(अनुिम) पावन उदगार

कैसेट का चमिकार

"वयापार उधारी मे चले जाने से मै हताश हो गया था एवं अपनी िजंदगी से तंग आकर

आिमहिया करने की बात सोचने लगा था | मुझे साधु-महािमाओं व समाज के लोगो से घण ृ ा-सी

हो गयी थी : धमक व समाज से मेरा िवशास उठ चुका था | एक िदन मेरी साली बापूजी के सिसंग िक दो कैसेटे 'िविध का िवधान' एवं 'आिखर कब तक ?' ले आयी और उसने मुझे सुनने

के िलए कहा | उसके कई पयास के बाद भी मैने वे कैसेटे नहीं सुनीं एवं मन-ही-मन उनहे 'ढोग' कहकर कैसेटो के िडबबे मे दाल िदया | मन इतना परे शान था िक रात को नींद आना बंद हो

गया था | एक रात िफ़िमी गाना सुनने का मन हुआ | अँधेरा होने की वजह से कैसेटे पहचान न सका और गलती से बापूजी के सिसंग की कैसेट हाथ मे आ गयी | मैने उसीको सुनना शुर

िकया | िफर कया था ? मेरी आशा बँधने लगी | मन शाँत होने लगा | धीरे -धीरे सारी पीडाएँ दरू

होती चली गयीं | मेरे जीवन मे रोशनी-ही-रोशनी हो गयी | िफर तो मैने पूजय बापूजी के सिसंग की कई कैसेटे सुनीं और सबको सुनायीं | तदनंतर मैने गािजयाबाद मे बापूजी से दीका भी गहण की | वयापार की उधारी भी चुकता हो गयी | बापूजी की कृ पा से अब मुझे कोई दःुख नहीं है | हे गुरदे व ! बस, एक आप ही मेरे होकर रहे और मै आपका ही होकर रहूँ |"

-ओमप का श बज ाज ,

िद िली रोड , सहार नपुर , उतर पद ेश

(अनुिम) पावन उदगार

मुझ पर बरसी संत की कृ पा "सन १९९५ के जून माह मे मै अपने लडके और भतीजे के साथ हिरदार धयानयोग िशिवर मे भाग लेने गया | एक िदन जब मै 'हर की पौडी' पर सनान करने गया तो पानी के तेज बहाव के कारण पैर िफसलने से मेरा लडका और भतीजा दोनो अपना संतुलन खो बैठे और गंगा मे बह गये | ऐसी संकट की घडी मे मै अपना होश खो बैठा | कया करँ ? मै फूट-फूटकर रोने

लगा और बापूजी से पाथन क ा करने लगा िक ' हे नाथ ! हे गुरदे व ! रका कीिजये... मेरे बचचो को बचा लीिजये | अब आपका ही सहारा है | पूजयशी ने मेरे सचचे हदय से िनकली पुकार सुन ली

और उसी समय मेरा लडका मुझे िदखायी िदया | मैने झपटकर उसको बाहर खींच िलया लेिकन मेरा भतीजा तो पता नहीं कहाँ बह गया ! मै िनरं तर रो रहा था और मन मे बार-बार िवचार उठ

रहा था िक 'बापूजी ! मेरा लडका बह जाता तो कोई बात नहीं थी लेिकन अपने भाई की अमानत के िबना मै घर कया मुह ँ लेकर जाऊँगा ? बापूजी ! आपही इस भक की लाज बचाओ |' तभी

गंगाजी की एक तेज लहर उस बचचे को भी बाहर छोड गयी | मैने लपककर उसे पकड िलया | आज भी उस हादसे को समरण करता हूँ तो अपने-आपको सँभाल नहीं पाता हूँ और मेरी आँखो से िनरं तर पेम की अशध ु ारा बहने लगती है | धनय हुआ मै ऐसे गुरदे व को पाकर ! ऐसे सदगुरदे व के शीचरणो मे मेरे बार-बार शत-शत पणाम !"

-सुम ालख ाँ, पान ीपत , हिरया णा

(अनुिम) पावन उदगार

गुरकृ पा से जीवनदान

"िदनांक १५-१-९६ की घटना है | मैने धातु के तार पर सूखने के िलए कपडे फैला रखे थे | बािरश होने के कारण उस तार मे करं ट आ गया था | मेरा छोटा पुत िवशाल, जो िक ११ वीं कका मे पढता है , आकर उस तार से छू गया और िबजली का करं ट लगते ही वह बेहोश हो गया, शव के समान हो गया | हमने उसे तुरंत बडे असपताल मे दािखल करवाया | डॉकटर ने बचचे की

हालत गंभीर बतायी | ऐसी पिरिसथित दे खकर मेरी आँखो से अशध ु ाराएँ बह िनकली | मै िनजानंद की मसती मे मसत रहने वाले पूजय सदगुरदे व को मन-ही-मन याद िकया और पाथन क ा िक :'हे

गुरदे व ! अब तो इस बचचे का जीवन आपके ही हाथो मे है | हे मेरे पभु ! आप जो चाहे सो कर सकते है |' और आिखर मेरी पाथन क ा सफल हुई | बचचे मे एक नवीन चेतना का संचार हुआ एवं धीरे -धीरे बचचे के सवासथय मे सुधार होने लगा | कुछ ही िदनो मे वह पूणत क ः सवसथ हो गया |

डॉकटर ने तो उपचार िकया लेिकन जो जीवनदान उस पयारे पभु की कृ पा से, सदगुरदे व की कृ पा से िमला, उसका वणन क करने के िलए मेरे पास शबद नहीं है | बस, ईशर से मे यही पाथन क ा करता हूँ िक ऐसे बहिनष संत-महापुरषो के पित हमारी शदा मे विृद होती रहे |" -

डॉ . वाय . पी . का लरा ,

शा मल दा स कॉ लेज , भाव नगर , गुज रात

(अनुिम) पावन उदगार

पूजय बापू जैसे संत दिुनया को सवगक मे बदल सकते है

मई १९९८ के अंितम िदनो मे पूजयशी के इं दौर पवास के दौरान ईरान के िवखयात

िफ़िजिशयन शी बबाक अगानी भारत मे अधयाििमक अनुभवो की पािि आये हुए थे | पूजयशी के दशन क पाकर जब उनहोने अधयाििमक अनुभवो को फलीभूत होते दे खा तो वे पंचेड आशम मे

आयोिजत धयानयोग िशिवर मे भी पहुँच गये | शी अगानी जो दो िदन रककर वापस लौटने वाले थे, वे पूरे गयारह िदन तक पंचेड आशम मे रके रहे | उनहोने िवधाथी िशिवर मे सारसविय मंत की दीका ली एवं िविशष धयानयोग साधना िशिवर (४ -१० जून १९९८) का भी लाभ िलया |

िशिवर के दौरान शी अगानी ने पूजयशी से मंतदीका भी ले ली | पूजयशी के सािननधय मे संपाि

अनुभूितयो के बारे मे केितय समाचार पत 'चेतना' को दी हुई भेटवाताक मे शी अगानी कहते है : " यिद पूजय बापू जैसे संत हर दे श मे हो जाये तो यह दिुनया सवगक बन सकती है | ऐसे शांित से बैठ पाना हमारे िलए किठन है , लेिकन जब पूजय बापूजी जैसे महापुरषो के शीचरणो मे बैठकर

सिसंग सुनते है तो ऐसा आनंद आता है िक समय का कुछ पता ही नहीं चलता | सचमुच, पूजय बापू कोई साधारण संत नहीं है |"

-शी बब ाक अग ानी , िवश िवखय ात िफ़ िज िशयन , ईरान

(अनुिम) पावन उदगार

भौितक यग ु के अंधकार मे जान की जयोित : पूजय बापू

मादक िनयंतण बयूरो भारत सरकार के महािनदे शक शी एच.पी. कुमार ९ मई को अमदावाद आशम मे सिसंग-कायि क म के दौरान पूजय बापू से आशीवाद क लेने पहुँचे | बडी िवनमता एवं शदा के साथ उनहोने पूजय बापू के पित अपने उदगार मे कहा : "िजस वयिक के पास

िववेक नहीं है वह अपने लकय तक नहीं पहुँच सकता है और िववेक को पाि करने का साधन

पूजय आसारामजी बापू जैसे महान संतो का सिसंग है | पूजय बापू से मेरा पथम पिरचय टी.वी. के माधयम से हुआ | तिपशात मुझे आशम दार पकािशत 'ॠिष पसाद' मािसक पाि हुआ | उस समय मुझे लगा िक एक ओर जहाँ इस भौितक युग के अंधकार मे मानव भटक रहा है वहीं

दस ू री ओर शांित की मंद-मंद सुगिं धत वायु भी चल रही है | यह पूजय बापू के सिसंग का ही

पभाव है | पूजयशी के दशन क करने का जो सौभागय मुझे पाि हुआ है इससे मै अपने को कृ तकृ िय मानता हूँ | पूजय बापू के शीमुख से जो अमत ृ वषाक होती है तथा इनके सिसंग से करोडो हदयो

मे जो जयोित जगती है , व इसी पकार से जगती रहे और आने वाले लंबे समय तक पूजयशी हम सब का मागद क शन क करते रहे यही मेरी कामना है | पूजय बापू के शीचरणो मे मेरे पणाम..."

-शी एच .पी. कुम ार ,

महा िनद ेशक , मा दक िनय ंत ण ब यूरो , भारत सर कार

(अनुिम) पावन उदगार

मुिसलम मिहला को पाणदान २७ िसतमबर २००० को जयपुर मे मेरे िनवास पर पूजय बापू का 'आिम-साकािकार

िदवस' मनाया गया, िजसमे मेरे पडोस की मुिसलम मिहला नाथी बहन के पित, शी माँगू खाँ, ने भी पूजय बापू की आरती की और चरणामत ृ िलया | ३-४ िदन बाद ही वे मुिसलम दं पित खवाजा

सािहब के उसक मे अजमेर चले गये | िदनांक ४ अकटू बर २००० को अजमेर के उसक मे असामािजक तिवो ने पसाद मे जहर बाँट िदया, िजससे उसक मेले मे आये कई दशन क ाथी असवसथ हो गये और कई मर भी गये | मेरे पडोस की नाथी बहन ने भी वह पसाद खाया और थोडी दे र मे ही वह

बेहोश हो गयी | अजमेर मे उसका उपचार िकया गया िकंतु उसे होश न आया | दस ू रे िदन ही

उसका पित उसे अपने घर ले आया | कॉलोनी के सभी िनवासी उसकी हालत दे खकर कह रहे थे िक अब इसका बचना मुिशकल है | मै भी उसे दे खने गया | वह बेहोश पडी थी | मै जोर-जोर से

हिर ॐ... हिर ॐ... का उचचारण िकया तो वह थोडा िहलने लगी | मुझे पेरणा हुई और मै पुनः घर गया | पूजय बापू से पाथन क ा की | ३-४ घंटे बाद ही वह मिहला ऐसे उठकर खडी हो गयी

मानो, सोकर उठी हो | उस मिहला ने बताया िक मेरे चाचा ससुर पीर है और उनहोने मेरे पित के मुँह से बोलकर बताया िक तुमने २७ िसतमबर २००० को िजनके सिसंग मे पानी िपया था, उनहीं सफेद दाढीवाले बाबा ने तुमहे बचाया है ! कैसी करणा है गुरदे व की !

-जे . एल . पुर ोिहत , ८७, सु ितान नगर , जयप ु र (रा ज.) उस मिह ला का पता है : - शी मती नाथ ी पत ी शी म ाँग ू खा ँ , १०० , सु ितान नगर , गुज क र क ी ध डी , नयू स ांगान ेर रोड , जयप ूर (राज .)

(अनुिम) पावन उदगार

हिरनाम की पयाली ने छुडायी शराब की बोतल सौभागयवश, गत २६ िदसमबर १९९८ को पूजयशी के १६ िशषयो की एक टोली िदिली से

हमारे गाँव मे हिरनाम का पचार-पसार करने पहूँची | मै बचपन से ही मिदरापान, धूमपान व

िशकार करने का शौकीन था | पूजय बापू के िशषयो दारा हमारे गाँव मे जगह-जगह पर तीन िदन तक लगातार हिरनाम का कीतन क करने से मुझे भी हिरनाम का रं ग लगता जा रहा था | उनके

जाने के एक िदन के पशात शाम के समय रोज की भांित मैने शराब की बोतल िनकाली | जैसे ही बोतल खोलने के िलए ढककन घुमाया तो उस ढककन के घुमने से मुझे 'हिर ॐ... हिर ॐ'

की धविन सुनायी दी | इस पकार मैने दो-तीन बार ढककन घुमाया और हर बार मुझे 'हिर ॐ' की धविन सुनायी दी | कुछ दे र बाद मै उठा तथा पूजयशी के एक िशषय के घर गया | उनहोने थोडी दे र मुझे पूजयशी की अमत ृ वाणी सुनायी | अमत ृ वाणी सुनने के बाद मेरा हदय पुकारने लगा िक इन दवुयस क नो को ियाग दँ ू | मैने तुरंत बोतल उठायी तथा जोर-से दरू खेत मे फेक दी | ऐसे

समथक व परम कृ पालु सदगुरदे व को मै हदय से पणाम करता हूँ, िजनकी कृ पा से यह अनोखी घटना मेरे जीवन मे घटी, िजससे मेरा जीवन पिरवितत क हुआ |

-मोहन िस ंह िबष , िभखय ासैन , अि मो डा (उ.प.)

(अनुिम) पावन उदगार

पूरे गाँव की कायापलट !

पूजयशी से िदनांक २७.६.९१ को दीका लेने के बाद मैने वयवसनमुिक के पचार-पसार का लकय बना िलया | मै एक बार कौशलपुर (िज. शाजापुर) पहुँचा | वहाँ के लोगो के वयवसनी और लडाई-झगडे युक जीवन को दे खकर मैने कहा: "आप लोग मनुषय-जीवन सही अथक ही नहीं

समझते है | एक बार आप लोग पूजय बापूजी के दशन क कर ले तो आपको सही जीवन जीने की कुंजी िमल जायेगी |" गाँव वालो ने मेरी बात मान ली और दस वयिक मेरे गाँव ताजपुर आये | मैने एक साधक को उनके साथ जनमाषमी महोिसव मे सूरत भेजा | पूजय बापूजी की उन पर

कृ पा बरसी और सबको गुरदीका िमल गयी | जब वे लोग अपने गाँव पहुँचे तो सभी गाँववािसयो

को बडा कौतूहल था िक पूजय बापूजी कैसे है ? बापूजी की लीलाएँ सुनकर गाँव के अनय लोगो मे भी पूजय बापूजी के पित शदा जगी | उन दीिकत साधको ने सभी गाँववालो को सुिवधानुसार

पूजय बापूजी के अलग-अलग आशमो मे भेजकर दीका िदलवा दी | गाँव के सभी वयिक अपने पूरे पिरवार सिहत दीिकत हो चुके है | पियेक गुरवार को पूरे गाँव मे एक समय भोजन बनता है | सभी लोग गुरवार का वत रखते है | कौशलपुर गाँव के पभाव से आस-पास के गाँववाले एवं

उनके िरशतेदारो सिहत १००० वयिकयो शराब छोडकर दीका ले ली है | गाँव के इितहास मे तीन-

तीन पीढी से कोई मंिदर नहीं था | गाँववालो ने ५ लाख रपये लगाकर दो मंिदर बनवाये है | पूरा गाँव वयवसनमुक एवं भगवतभक बन गया है , यह पूजय बापूजी की कृ पा नहीं तो और कया है ? सबके तारणहार पूजय बापूजी के शीचरणो मे कोिट-कोिट पणाम...

-शयाम प जाप ित (सु परव ाइजर , ितलहन संघ ) ता जपुर , उज जैन (म.प.)

(अनुिम) पावन उदगार

पूजयशी की तसवीर से िमली पेरणा सवस क मथक परम पूजय शी बापूजी के चरणकमलो मे मेरा कोिट-कोिट नमन... १९८४ के भूकंप से समपूणक उतर िबहार मे काफी नुकसान हुआ था, िजसकी चपेट मे हमारा घर भी था | पिरिसथितवश मुझे नौवी कका मे पढायी छोड दे नी पडी | िकसी िमत की सलाह से मै नौकरी ढू ँ ढने के िलए िदिली गया लेिकन वहाँ भी िनराशा ही हाथ लगी | मै दो िदन से

भूखा तो था

ही, ऊपर से नौकरी की िचंता | अतः आिमहिया का िवचार करके रे लवे सटे शन की ओर चल पडा | रानीबाग बाजार मे एक दक ु ान पर पूजयशी का सिसािहिय, कैसेट आिद रखा हुआ था एवं

पूजयशी की बडे आकार की तसवीर भी टँ गी थी | पूजयशी की हँ समुख एवं आशीवाद क की मुिावाली उस तसवीर पर मेरी नजर पडी तो १० िमनट तक मै वहीं सडक पर से ही खडे -खडे उसे दे खता रहा | उस वक न जाने मुझे कया िमल गया ! मै काम भले मजदरूी का ही करता हूँ लेिकन

तबसे लेकर आज तक मेरे िचत मे बडी पसननता बनी हुई है | न जाने मेरी िजनदगी की कया

दशा होती अगर पूजय बापूजी की 'युवाधन सुरका', 'ईशर की ओर', 'िनिशनत जीवन' पुसतके और 'ॠिष पसाद' पितका हाथ न लगती ! पूजयशी की तसवीर से िमली पेरणा एवं उनके सिसािहिय

ने मेरी डू बती नैया को मानो, मझदार से बचा िलया | धनभागी है सािहिय की सेवा करने वाले ! िजनहोने मुझे आिमहिया के पाप से बचाया |

-महेश शाह , नारा यणप ु र , द ु मर ा, िज . सीताम ढी (िबहार )

(अनुिम) पावन उदगार

नेतिबंद ु का चमिकार

मेरा सौभागय है िक मुझे 'संतकृ पा नेतिबंद ु' (आई डॉपस) का चमिकार दे खने को िमला |

एक संत बाबा िशवरामदास उम ८० वषक, गीता कुिटर, तपोवन झाडी, सिसरोवर, हिरदार मे रहते है

| उनकी दािहनी आँख के सफेद मोितये का ऑपरे शन शाँितकुंज हिरदार आयोिजत कैमप मे हुआ | केस िबगड गया और काल मोितया बन गया | ददक रहने लगा और रोशनी घटने लगी | दोबारा

भूमाननद नेत िचिकिसालय मे ऑपरे शन हुआ | एबसियूट गलूकोमा बताते हुए कहा िक ऑपरे शन से िसरददक ठीक हो जायेगा पर रोशनी जाती रहे गी | परं तु अब वे बाबा संत शी आसारामजी

आशम दार िनिमत क 'संतकृ पा नेतिबंद ु' सुबह-शाम डाल रहे है | मैने उनके नेतो का परीकण िकया | उनकी दािहनी आँख मे उँ गली िगनने लायक रोशनी वापस आ गयी है | काले मोितये का पेशर

नॉमल क है | कोिनय क ा मे सूजन नहीं है | वे काफी संतुष है | वे बताते है : 'आँख पहले लाल रहती थी परं तु अब नहीं है | आशम के 'नेतिबंद ु' से किपनातीत लाभ हुआ |' बायीं आँख मे भी उनहे

सफेद मोितया बताया गया था और संशय था िक शायद काला मोितया भी है | पर आज बायीं आँख भी ठीक है और दोनो आँखो का पेशर भी नॉमल क है | सफेद मोितया नहीं है और रोशनी

काफी अचछी है | यह 'संतकृ पा नेतबंद 'ु का िवलकण पभाव दे खकर मै भी अपने मरीजो को इसका उपयोग करने की सलाह दँग ू ा |

-डॉ . अन नत कुमार अग वा ल (ने तर ोग िवश े षज ) एम.बी .बी.एस ., एम.एस . (नेत ), डी .ओ.एम .एस. ( आई ), सीताप ुर , सहार नपुर (उ.प.)

(अनुिम) पावन उदगार

मंत से लाभ

मेरी माँ की हालत अचानक पागल जैसी हो गयी थी मानो, कोई भूत-पेत-डािकनी या

आसुरी तिव उनमे घुस गया | मै बहुत िचंितत हो गया एवं एक सािधका बहन को फोन िकया | उनहोने भूत-पेत भगाने का मंत बताया, िजसका वणन क आशम से पकािशत 'आरोगयिनिध' पुसतक मे भी है | वह मंत इस पकार है :

ॐ नमो भगवत े रर भ ैरवाय भूतप ेत कय क ुर कुर ह ूं फट सवाहा

|

इस मंत का पानी मे िनहारकर १०८ बार जप िकया और वही पानी माँ को िपला िदया | तुरंत ही माँ शांित से सो गयीं | दस ू रे िदन भी इस मंत की पाँच माला करके माँ को वह जल

िपलाया तो माँ िबिकुल ठीक हो गयीं | हे मेरे साधक भाई-बहनो ! भूत-पेत भगाने के िलए 'अला बाँधँू... बला बाँध.ँू .. ' ऐसा करके झाड-फ़ूँक करनेवालो के चककर मे पडने की जररत नहीं है |

इसके िलए तो पूजय बापूजी का मंत ही तारणहार है | पूजय बापूजी के शीचरणो मे कोिट-कोिट

पणाम ! -चंपक भाई एन . पटेल (अमेिर का )

(अनुिम) पावन उदगार

काम िोध पर िवजय पायी

एक िदन 'मुंबई मेल' मे िटकट चेिकंग करते हुए मै वातानुकूिलत बोगी मे पहुँचा | दे खा तो

मखमल की गदी पर टाट का आसन िबछाकर सवामी शी लीलाशाहजी महाराज समािधसथ है |

मुझे आशयक हुआ िक िजन पथम शण े ी की वातानुकूिलत बोिगयो मे राजा-महाराजा याता करते है ऐसी बोगी और तीसरी शण े ी की बोगी के बीच इन संत को कोई भेद नहीं लगता | ऐसी बोिगयो मे भी वे समािधसथ होते है यह दे खकर िसर झुक जाता है | मैने पूजय महाराजशी को पणाम

करके कहा : "आप जैसे संतो के िलए तो सब एक समान है | हर हाल मे एकरस रहकर आप मुिक का आनंद ले सकते है | लेिकन हमारे जैसे गहसथो को कया करना चािहए तािक हम भी

आप जैसी समता बनाये रखकर जीवन जी सके ?" पूजय महाराजजी ने कहा : "काम और िोध को तू छोड दे तो तू भी जीवनमुक हो सकता है | जहाँ राम तहँ नहीं काम, जहाँ काम तहँ नहीं राम | ... और िोध तो, भाई ! भसमासुर है | वह तमाम पुणय को जलाकर भसम कर दे ता है ,

अंतःकरण को मिलन कर दे ता है |" मैने कहा : " पभु ! अगर आपकी कृ पा होगी तो मै कामिोध को छोड पाऊँगा |" पूजय महाराजजी ने कहा : "भाई ! कृ पा ऐसे थोडे ही की जाती है !

संतकृ पा के साथ तेरा पुरषाथक और दढता भी चािहए | पहले तू पितजा कर िक तू जीवनपयन क त काम और िोध से दरू रहे गा... तो मै तुझे आशीवाद क दँ ू |" मैने कहा : "महाराजजी मै जीवनभर के िलए पितजा तो करँ लेिकन उसका पालन न कर पाऊँ तो झूठा माना जाऊँगा |" पूजय

महाराजजी ने कहा : "अचछा, पहले तू मेरे समक आठ िदन के िलए पितजा कर | िफर पितजा को एक-एक िदन बढते जाना | इस पकार तू उन बलाओं से बच सकेगा | है कबूल ?" मैने हाथ जोडकर कबूल िकया | पूजय महाराजजी ने आशीवाद क दे कर दो-चार फूल पसाद मे िदये | पूजय

महाराजजी ने मेरी जो दो कमजोिरयाँ थीं उन पर ही सीधा हमला िकया था | मुझे आशयक हुआ िक अनय कोई भी दग क छोडने का न कहकर इन दो दग क ो के िलए ही उनहोने पितजा कयो ु ुण ु ुण करवायी ? बाद मे मै इस राज से अवगत हुआ |

दस ू रे िदन मै पैसेनजर टे न मे कानपुर से आगे जा रहा था | सुबह के करीब नौ बजे थे |

तीसरी शण े ी की बोगी मे जाकर मैने याितयो के िटकट जाँचने का कायक शुर िकया | सबसे पहले बथक पर सोये हुए एक याती के पास जाकर मैने एक याती के पास जाकर मैने िटकट िदखाने को कहा तो वह गुससा होकर मुझे कहने लगा : "अंधा है ? दे खता नहीं िक मै सो गया हूँ ? मुझे

नींद से जगाने का तुझे कया अिधकार है ? यह कोई रीत है िटकट के बारे मे पूछने की ? ऐसी ही अकल है तेरी ?" ऐसा कुछ-का-कुछ वह बोलता ही गया... बोलता ही गया | मै भी िोधािवष होने

लगा िकंतु पूजय महाराजजी के समक ली हुई पितजा मुझे याद थी, अतः िोध को ऐसे पी गया मानो, िवष की पुिडया ! मैने उसे कहा : "महाशय ! आप ठीक ही कहते है िक मुझे बोलने की

अकल नहीं है , भान नहीं है | दे खो, मेरे ये बाल धूप मे सफेद हो गये है | आपमे बोलने की अकल अिधक है , नमता है तो कृ पा करके िसखाओं िक िटकट के िलए मुझे िकस पकार आपसे पूछना

चािहए | मै लाचार हूँ िक 'डयूटी' के कारण मुझे िटकट चेक करना पड रहा है इसिलए मै आपको

कष दे रहा हूँ|" ... और िफ़र मैने खूब पेम से हाथ जोडकर िवनती की : "भैया ! कृ पा करके कष

के िलए मुझे कमा करो | मुझे अपना िटकट िदखायेगे ?" मेरी नमता दे खकर वह लिजजत हो गया एवं तुरंत उठ बैठा | जिदी-जिदी नीचे उतरकर मुझसे कमा माँगते हुए कहने लगा :"मुझे माफ करना | मै नींद मे था | मैने आपको पहचाना नहीं था | अब आप अपने मुँह से मुझे कहे िक

आपने मुझे माफ़ िकया ?" यह दे खकर मुझे आनंद और संतोष हुआ | मै सोचने लगा िक संतो की आजा मानने मे िकतनी शिक और िहत िनिहत है ! संतो की करणा कैसा चमिकािरक पिरणाम लाती है ! वह वयिक के पाकृ ितक सवभाव को भी जड-मूल से बदल सकती है | अनयथा, मुझमे िोध को िनयंतण मे रखने की कोई शिक नहीं थी | मै पूणत क या असहाय था िफर भी मुझे

महाराजजी की कृ पा ने ही समथक बनाया | ऐसे संतो के शीचरणो मे कोिट-कोिट नमसकार !

-शी रीज ुमल ,

िरट ायड क टी .टी. आई ., कानप ुर

(अनुिम) पावन उदगार

जला हु आ का गज प ूव क रप म े

पूवक रप मे एक बार परमहं स िवशुदानंदजी से आनंदमयी माँ की िनकटता पानेवाले सुपिसद पंिडत गोपीनाथ किवराज ने िनवेदन िकया: "तरणीकानत ठाकुर को अलौिकक िसिद

पाि हुई है | वे िबना दे खे या िबना छुए ही कागज मे िलखी हुई बाते पढ लेते है |" गुरदे व बोले

:"तुम एक कागज पर कुछ िलखो और उसमे आग लगाकर जला दो |" किवराजजी ने कागज पर

कुछ िलखा और पूरी तरह कागज जलाकर हवा मे उडा िदया | उसके बाद गुरदे व ने अपने तिकये के नीचे से वही कागज िनकालकर किवराजजी के आगे रख िदया | यह दे खकर उनहे बडा आशयक

हुआ िक यह कागज वही था एवं जो उनहोने िलखा था वह भी उस पर उनहीं के सुलेख मे िलखा था और साथ ही उसका उतर भी िलखा हुआ दे खा |

जडता, पशुता और ईशरता का मेल हमारा शरीर है | जड शरीर को 'मै-मेरा' मानने की विृत

िजतनी िमटती है , पाशवी वासनाओं की गुलामी उतनी हटती है और हमारा ईशरीय अंश िजतना अिधक िवकिसत होता है उतना ही योग-सामथयक, ईशरीय सामथयक पकट होता है | भारत के ऐसे कई भको, संतो और योिगयो के जीवन मे ईशरीय सामथयक दे खा गया है , अनुभव िकया गया है , उसके िवषय मे सुना गया है | धनय है भारतभूिम मे रहनेवाले... भारतीय संसकृ ित मे शदा-

िवशास रखनेवाले... अपने ईशरीय अंश को जगाने की सेवा-साधना करनेवाले ! सवामी िवशुदानंदजी वषो की एकांत साधना और वषो-वषो की गुरसेवा से अपना दे हाधयास और पाशवी

वासनाएँ िमटाकर अपने ईशरीय अंश को िवकिसत करनेवाले भारत के अनेक महापुरषो मे से थे | उनके जीवन की और भी अलौिकक घटनाओं का वणन क आता है | ऐसे सिपुरषो के जीवन-चिरत और उनके जीवन मे घिटत घटनाएँ पढने-सुनने से हम लोग भी अपनी जडता एवं पशुता से

ऊपर उठकर ईशरीय अंश को उभारने मे उिसािहत होते है | बहुत ऊँचा काम है ... बडी शदा, बडी समझ, बडा धैयक चािहए ईशरीय सामथय क को पूणक रप से िवकिसत करने मे | (अनुिम) पावन उदगार

नदी की ध ारा मु ड ग यी आद शंकराचायक की माता िविशषा दे वी अपने कुलदे वता केशव की पूजा करने जाती थीं |

वे पहले नदी मे सनान करतीं और िफ़र मंिदर मे जाकर पूजन करतीं | एक िदन वे पातःकाल ही पूजन-सामगी लेकर मंिदर की ओर गयीं, िकंतु सायंकाल तक घर नहीं लौटीं | शंकराचायक की आयु अभी सात-आठ वषक के मधय मे ही थी | वे ईशर के परम भक और िनषावान थे | सायंकाल तक

माता के वापस न लौटने पर आचायक को बडी िचनता हुई और वे उनहे खोजने के िलए िनकल पडे | मंिदर के िनकट पहुँचकर उनहोने माता को मागक मे ही मूिचछक त पडे दे खा | उनहोने बहुत दे र तक माता का उपचार िकया तब वे होश मे आ सकीं | नदी अिधक दरू थी | वहाँ तक पहुँचने मे माता को बडा कष होता था | आचायक ने भगवान से मन-ही-मन पाथन क ा की िक "पभो ! िकसी पकार

नदी की धारा को मोड दो, िजससे िक माता िनकट ही सनान कर सके |" वे इस पकार की पाथन क ा िनिय करने लगे | एक िदन उनहोने दे खा िक नदी की धारा िकनारे की धरती को काटती-काटती

मुडने लगी है तथा कुछ िदनो मे ही वह आचायक शंकर के घर के पास बहने लगी | इस घटना ने आचायक का अलौिकक शिकसमपनन होना पिसद कर िदया |

(अनुिम) पावन उदगार

सदगुर-मिहमा गुर िबन ु भ व िनिध

तर ै न कोई

|

जौ बर ंिच संकर सम होई || -संत तुलसीदासजी

हिरहर आ िदक ज गत म े प ूजयद ेव जो कोय

सदग ुर की प ूजा िकय े स बकी प ूजा होय || -िनशलदासजी महाराज

|

सहजो कारज स ंसार को ग ुर िबन होत ना हिर तो ग ुर िबन कया

ँ ही |

िमल े , समझ ल े मन म ाँही ||

-संत कबीरजी संत

सरिन जो जन ु पर ै सो जन ु उधरनहार

संत की िन ंदा ना नका बह ु िर ब हुिर अवतार

| ||

-गुर नानक दे वजी

"गुरसेवा सब भागयो की जनमभूिम है और वह शोकाकुल लोगो को बहमय कर दे ती है | गुररपी सूयक अिवदारपी राित का नाश करता है और जानाजान रपी िसतारो का लोप करके बुिदमानो को आिमबोध का सुिदन िदखाता है |" -संत जानेशर महाराज "सिय के कंटकमय मागक मे आपको गुर के िसवाय और कोई मागद क शन क नहीं दे सकता |" - सवामी िशवानंद सरसवती "िकतने ही राजा-महाराजा हो गये और होगे, सायुजय मुिक कोई नहीं दे सकता | सचचे राजामहाराज तो संत ही है | जो उनकी शरण जाता है वही सचचा सुख और सायुजय मुिक पाता है |" -समथक शी रामदास सवामी

"मनुषय चाहे िकतना भी जप-तप करे , यम-िनयमो का पालन करे परं तु जब तक सदगुर की कृ पादिष नहीं िमलती तब तक सब वयथक है |" -सवामी रामतीथक पलेटो कहते है िक : "सुकरात जैसे गुर पाकर मै धनय हुआ |" इमसन क ने अपने गुर थोरो से जो पाि िकया उसके मिहमागान मे वे भाविवभोर हो जाते थे | शी रामकृ षण परमहं स पूणत क ा का अनुभव करानेवाले अपने सदगुरदे व की पशंसा करते नहीं अघाते थे | पूजयपाद सवामी शी लीलाशाहजी महाराज भी अपने सदगुरदे व की याद मे सनेह के आँसू बहाकर गदगद कंठ हो जाते थे | पूजय बापूजी भी अपने सदगुरदे व की याद मे कैसे हो जाते है यह तो दे खते ही बनता है | अब

हम उनकी याद मे कैसे होते है यह पश है | बिहमुख क िनगुरे लोग कुछ भी कहे , साधक को अपने सदगुर से कया िमलता है इसे तो साधक ही जानते है |

(अनुिम) पावन उदगार

लेडी मािटक न के सुहाग की रका करने अफगािनसतान मे पकटे िशवजी सा धू स ंग स ंसार म े , द ु लक भ मन ुषय शरीर

सिस ं ग सिव त तिव ह ै , ितिव ध ताप की पीर

| ||

मानव-दे ह िमलना दल क है और िमल भी जाय तो आिधदै िवक, आिधभौितक और आधयाििमक ये ु भ तीन ताप मनुषय को तपाते रहते है | िकंतु मनुषय-दे ह मे भी पिवतता हो, सचचाई हो, शुदता हो और साधु-संग िमल जाय तो ये ितिवध ताप िमट जाते है | सन १८७९ की बात है | भारत मे िबिटश शासन था, उनहीं िदनो अंगेजो ने अफगािनसतान पर आिमण कर िदया | इस युद का संचालन आगर मालवा िबिटश छावनी के लेिफ़टनेट कनल क

मािटक न को सौपा गया था | कनल क मािटक न समय-समय पर युद-केत से अपनी पती को कुशलता के समाचार भेजता रहता था | युद लंबा चला और अब तो संदेश आने भी बंद हो गये | लेडी

मािटक न को िचंता सताने लगी िक 'कहीं कुछ अनथक न हो गया हो, अफगानी सैिनको ने मेरे पित को मार न डाला हो | कदािचत पित युद मे शहीद हो गये तो मै जीकर कया करँगी ?'-यह

सोचकर वह अनेक शंका-कुशंकाओं से िघरी रहती थी | िचनतातुर बनी वह एक िदन घोडे पर बैठकर घूमने जा रही थी | मागक मे िकसी मंिदर से आती हुई शंख व मंत धविन ने उसे आकिषत क िकया | वह एक पेड से अपना घोडा बाँधकर मंिदर मे गयी | बैजनाथ महादे व के इस मंिदर मे

िशवपूजन मे िनमगन पंिडतो से उसने पूछा :"आप लोग कया कर रहे है ?" एक वद बाहण ने

कहा : " हम भगवान िशव का पूजन कर रहे है |" लेडी मािटक न : 'िशवपूजन की कया महता है ?' बाहण :'बेटी ! भगवान िशव तो औढरदानी है , भोलेनाथ है | अपने भको के संकट-िनवारण करने मे वे तिनक भी दे र नहीं करते है | भक उनके दरबार मे जो भी मनोकामना लेकर के आता है , उसे वे शीघ पूरी करते है , िकंतु बेटी ! तुम बहुत िचिनतत और उदास नजर आ रही हो ! कया बात है ?" लेडी मािटक न :" मेरे पितदे व युद मे गये है और िवगत कई िदनो से उनका कोई

समाचार नहीं आया है | वे युद मे फँस गये है या मारे गये है , कुछ पता नहीं चल रहा | मै उनकी ओर से बहुत िचिनतत हूँ |" इतना कहते हुए लेडी मािटक न की आँखे नम हो गयीं | बाहण : "तुम िचनता मत करो, बेटी ! िशवजी का पूजन करो, उनसे पाथन क ा करो, लघुरिी करवाओ | भगवान िशव तुमहारे पित का रकण अवशय करे गे | "

पंिडतो की सलाह पर उसने वहाँ गयारह िदन का 'ॐ नमः िशवाय' मंत से लघुरिी अनुषान पारं भ

िकया तथा पितिदन भगवान िशव से अपने पित की रका के िलए पाथन क ा करने लगी िक "हे भगवान िशव ! हे बैजनाथ महादे व ! यिद मेरे पित युद से सकुशल लौट आये तो मै आपका िशखरबंद मंिदर बनवाऊँगी |" लघुरिी की पूणाह क ु ित के िदन भागता हुआ एक संदेशवाहक

िशवमंिदर मे आया और लेडी मािटक न को एक िलफाफा िदया | उसने घबराते-घबराते वह िलफाफा खोला और पढने लगी |

पत मे उसके पित ने िलखा था :"हम युद मे रत थे और तुम तक संदेश भी भेजते रहे लेिकन आक पठानी सेना ने घेर िलया | िबिटश सेना कट मरती और मै भी मर जाता | ऐसी िवकट

पिरिसथित मे हम िघर गये थे िक पाण बचाकर भागना भी अियािधक किठन था | इतने मे मैने दे खा िक युदभूिम मे भारत के कोई एक योगी, िजनकी बडी लमबी जटाएँ है , हाथ मे तीन

नोकवाला एक हिथयार (ितशूल) इतनी तीव गित से घुम रहा था िक पठान सैिनक उनहे दे खकर भागने लगे | उनकी कृ पा से घेरे से हमे िनकलकर पठानो पर वार करने का मौका िमल गया

और हमारी हार की घिडयाँ अचानक जीत मे बदल गयीं | यह सब भारत के उन बाघामबरधारी

एवं तीन नोकवाला हिथयार धारण िकये हुए (ितशूलधारी) योगी के कारण ही समभव हुआ | उनके महातेजसवी वयिकिव के पभाव से दे खते-ही-दे खते अफगािनसतान की पठानी सेना भाग खडी हुई और वे परम योगी मुझे िहममत दे ते हुए कहने लगे | घबराओं नहीं | मै भगवान िशव हूँ तथा

तुमहारी पती की पूजा से पसनन होकर तुमहारी रका करने आया हूँ, उसके सुहाग की रका करने आया हूँ |"

पत पढते हुए लेडी मािटक न की आँखो से अिवरत अशध ु ारा बहती जा रही थी, उसका हदय अहोभाव से भर गया और वह भगवान िशव की पितमा के सममुख िसर रखकर पाथन क ा करते-करते रो पडी | कुछ सिाह बाद उसका पित कनल क मािटक न आगर छावनी लौटा | पती ने उसे सारी बाते

सुनाते हुए कहा : "आपके संदेश के अभाव मे मै िचिनतत हो उठी थी लेिकन बाहणो की सलाह से िशवपूजा मे लग गयी और आपकी रका के िलए भगवान िशव से पाथन क ा करने लगी | उन दःुखभंजक महादे व ने मेरी पाथन क ा सुनी और आपको सकुशल लौटा िदया |" अब तो पित-पती

दोनो ही िनयिमत रप से बैजनाथ महादे व के मंिदर मे पूजा-अचन क ा करने लगे | अपनी पती की इचछा पर कनल क मािटक न मे सन १८८३ मे पंिह हजार रपये दे कर बैजनाथ महादे व मंिदर का जीणोदार करवाया, िजसका िशलालेख आज भी आगर मालवा के इस मंिदर मे लगा है | पूरे भारतभर मे अंगेजो दार िनिमत क यह एकमात िहनद ू मंिदर है |

यूरोप जाने से पूवक लेडी मािटक न ने पिडतो से कहा : "हम अपने घर मे भी भगवान िशव का मंिदर बनायेगे तथा इन दःुख-िनवारक दे व की आजीवन पूजा करते रहे गे |"

भगवान िशव मे... भगवान कृ षण मे... माँ अमबा मे... आिमवेता सदगुर मे.. सता तो एक ही है | आवशयकता है अटल िवशास की | एकलवय ने गुरमूितक मे िवशास कर वह पाि कर िलया जो

अजुन क को किठन लगा | आरिण, उपमनयु, धुव, पहलाद आिद अनय सैकडो उदारहण हमारे सामने पियक है | आज भी इस पकार का सहयोग हजारो भको को, साधको को भगवान व आिमवेता सदगुरओं के दारा िनरनतर पाि होता रहता है | आवशयकता है तो बस, केवल िवशास की | (अनुिम) पावन उदगार

सु खपूव क क पसवकारक

मंत

पहला उपाय "एं ही ं भ गवित भग मािलिन च ल च ल भामय भामय प |"

ुषप ं िवकासय िवकासय सवाहा

इस मंत दारा अिभमंितत दध क ी सी को िपलाये तो सुखपूवक क पसव होगा | ू गिभण द ू सरा उपाय गिभण क ी सी सवयं पसव के समय 'जमभला-जमभला' जप करे | तीसरा

उपा य

दे शी गाय के गोबर का १२ से १५ िम.ली. रस 'ॐ नमो नारायणाय' मंत का २१ बार जप करके पीने से भी पसव-बाधाएँ दरू होगी और िबना ऑपरे शन के पसव होगा | पसुित के समय अमंगल की आशंका हो तो िनमन मंत का जप करे : सवक मंग ल मा ं गिय े िश वे सवा क थक सा िधके | शर णये तयमबक े गौरी नार ायणी नमो S सतुत े || (द ु गाक सि शती )

(अनुिम) पावन उदगार

सवा ा गीण िवकास

क ी कुंिजया ँ

यादशिक बढा ने ह ेत ुः पितिदन 15 से 20 िम.ली. तुलसी रस व एक चममच चयवनपाश

का थोडा सा घोल बना के सारसविय मंत अथवा गुरमंत जप कर पीये। 40 िदन मे चमिकािरक लाभ होगा।

भोजन के बाद एक लडडू चबा-चबाकर खाये। 100 गाम सौफ, 100 गाम बादाम

200 गाम िमशी तीनो को कूटकर िमला ले। सुबह यह

िमशण 3 से 5 गाम चबा-चबाकर खाये, ऊपर से दध ू पी ले। (दध ू के साथ भी ले सकते है )। इससे भी यादशिक बढे गी।

पढा ह ु आ पाठ याद

रह े , इस ह ेत ुः अधययन के समय पूवक या उतर की ओर मुँह करके

सीधे बैठे।

सारसविय मंत का जप करके, िफर जीभ की नोक को तालू मे लगाकर पढे । अधययन के बीच-बीच मे अंत मे शांत हो और पढे हुए का मनन करे । ॐ शांित...

राम..राम.. या गुरमंत का समरण करके शांत हो।

कद बढान े ह ेत ु ः पातःकाल दौड लगाये, पुल-अपस व ताडासन करे तथा 2 काली िमचक के

टु कडे करके मकखन मे िमलाकर िनगल जाये। दे शी गाय का दध ू कदविृद मे िवशेष सहायक है । शरीरप ुिष ह ेत ु ः भोजन के पहले हरड चूसे व भोजन के साथ भी खाये।

राित मे एक िगलास पानी मे एक नींबू िनचोडकर उसमे दो िकशिमश िभगो दे । सुबह पानी छानकर पी जाये व िकशिमश चबाकर खा ले।

नेतजयोित ब ढान े ह ेत ुः सौफ व िमशी 1-1 चममच िमलाकर रात को सोते समय खाये।

यह पयोग िनयिमत रप से 5-6 माह तक करे ।

नेतरोगो स े रका ह ेत ुः पैरो के तलुवो व अँगूठो की सरसो के तेल से मािलश करे । ॐ

अरणाय हूँ फट स वाहा।

इसे जपते हुए आँखे धोने से अथात क आँखो मे धीरे -धीरे पानी छाँटने

से आँखो की असह पीडा िमटती है । डरावन े , बुरे सवपनो

से बचाव ह ेत ुः ॐ हरय े नम ः। मंत जपते हुए सोये। िसरहाने

आशम की िनःशुिक पसादी 'गहदोष-बाधा िनवारक यंत' रख दे । द ु ःख म ुसीबत े एव ं गह बाधा िनवारण

हेत ु ः जनमिदवस के अवसर पर महामिृयुञजय

मंत का जप करते हुए घी, दध ू , शहद और दव ू ाक घास के िमशण की आहूितयाँ डालते हुए हवन करे । इससे जीवन मे दःुख आिद का पभाव शांत हो जायेगा व नया उिसाह पाि होगा।

घर मे स ुख , सवासथय व शा ंित हेत ुः रोज पातः व सांय दे शी गाय के गोबर से बने

कणडे का एक छोटा टु कडा जला ले उस पर दे शी गौघत ृ िमिशत चावल के कुछ दाने डाल दे

तािक वे जल जाये। इससे घर मे सवासथय व शांित बनी रहती है तथा वासतुदोषो का िनवारण होता है ।

आधयाििमक उ ननित ह ेत ु ः चलते िफरते, दै िनक कायक करते हुए भगवननाम का जप,

सब मे भगवननाम, हर दो कायो के बीच थोडा शांत होना, सबकी भलाई मे अपना भला मानना, मन के िवचारो पर िनगरानी रखना, आदरपूवक क सिसंग व सवाधयाय करना आिद शीघ आधयाििमक उननित के उपाय है ।

(अनुिम) पावन उदगार ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Related Documents

Divya Prerna Prakash
November 2019 16
Divya Prerna Prakash
November 2019 15
Divya
June 2020 8
Prakash
November 2019 17
Prakash
April 2020 14