कहानी
दे व -राजेश कुमार पािटल िनमला, समय िकतनी तेज गित से चलता है हम यह सोच ही नहीं पाते, वह न तो िकसी के िलये ठहरता है न िकसी के साथ चलता है , वह तो अपनी गित से िनरं तर चलायमान रहता है । ह जीवन म" सफलता के िलये हम" हर कदम उसके साथ चलना पड़ता है । दे खो ना कल हमारे िववाह को तीस साल पूरे जाएंगे । अतीत की तरफ मुड़कर दे खता हंू तो लगता है िक जैसे यह कल की बात हो । इन तीस साल- म" म.ने तु/ह" 0या िदया ऐसा कुछ खास तो मुझे िदखता नह है , िकंतु तुमने मुझे इतना कुछ िदया है िक म. उसकी िगनती नहीं कर सकता । हमारी शादी के बाद मेरे जीवन म" िकतने दःख ु , िकतनी मुसीबत" आ6, िकंतु तुम हर पिरिःथित म" मेरे साथ पूरी :ढ़ता से खड़ी रहीं । मेरी हर आशा, हर उ/मीद को तुमने यथाथ का धरातल िदया है । ब=च- की अ=छी परविरश, उनके अ=छे संःकार, अ=छी िश?ा, सास @सुर की सेवा, ननद--दे वर- की शािदयाँ और 0या कुछ नहीं िकया तुमने मेरे और मेरे पिरवार के िलये । बीते साल- म" मुझे ऐसी कोई घटना, ऐसी कोई बात या ऐसा कोई पल याद नहीं है , जब तुमने मेरे Fदय को ठे स पहंु चाई हो । हाँ मनोिवनोदपूण कई छोटी-छोटी न-कझ-क तो हमारे बीच यदाकदा होती रही है , िकंतु ऐसी कोई गंभीर बात तुमने कभी नहीं कही िजससे मुझे दःख हआ हो और िनमला तुम इस ु ु बात का अंदाजा नहीं लगा सकती िक इतने ल/बे वैवािहक जीवन म" एक पुIष के िलये यह िकतनी बड़ी उपलिKध है ? इस बात को तो िववािहत पुIष ही समझ सकते ह. िक वाःतव म" यह िकतनी बड़ी बात है । तु/हारे Lयवहार और काम- की म. चचा करने लगूं तो शायद दो-चार िदन कम पड़ जाएंगे, म. तो तु/ह" आज वह बात बताने जा रहा हंू िजसको जानने के िलये तुम िकतनी बार मुझ से कह चुकी हो । तुमने मेरे िमऽ दे वनारायण की कहािनयाँ पऽ पिऽकाओं म" तो बहत ु पढ़ी है । म. आज तु/ह" खुद दे व की कहानी सुनाता हंू । वैसे उसकी कहानी म" कुछ नया नहीं है , बस थोड़े से धैय और ू पारःपिरक सामंजःय के अभाव म" एक अ=छे पिरवार के टटकर िबखरने की दखद दाःतां ु है । दे वनारायण िबलकुल दे व ही था । न काहु से दोःती न काहु से बैर । त/बाखू, गुटखा, बीड़ी
-िसगरे ट, मांस मिदरा दिनया की तमाम Lयसनकारी चीज- से कोस- दरू सादा जीवन और ु उ=च िवचार की उिO को पूरे मन, आPमा और अपने िवनॆ Lयवहार से चिरताथ करता, अPयिधक कम बोलनेवाला धीर, गंभीर दे व । िमतभाषी इतना िक १२ घंटे के लंबे सफर म" सामने बैठे सहयाऽी से यह तक नहीं कह पाये िक आप कहाँ तक जा रहे है । शौक था तो बस शKद- म" उलझकर भावनाओं को शािKदक आकार दे ने का, किवता और कहािनयाँ िलखने का । अपने माता-िपता का इकलौता बेटा । तु/ह" तो पता ही है मेरी उससे खूब बनती थी । वह मुझसे अपने जीवन की हरबात बता िदया करता था या यूं कहो अपने मन की बात मुझसे कहने के िलये वह सदा आतुर रहता था । म. भी उससे अपनी कोई ु भी बात छपाता नहीं था चाहे वह अपने घर पिरवार ऑिफस या और कहीं की हो । तु/हारी और मेरी जोड़ी को वह कहता था यार तु/हारी तो सीता राम जैसी जोड़ी है । तुम बहत ु खुशनसीब हो िक तु/ह" िनमला जैसी लड़की जीवन साथी के Iप म" िमली । वह खुद तो तु/हारी तारीफ करता ही था, िकंतु यिद म. तु/हारी तारीफ करता तो कहता यार मत बता मुझे तुझसे जलन होने लगती है । पुIष के जीवन म" एक Vी का 0या ःथान होता है उसकी 0या महWा होती है इसका वाःतिवक अहसास मुझे तब हआ जब से तुम मेरी ु पXी बनकर मेरे जीवन म" आई । तु/हारी िवनॆता, तु/हारा Lयवहार, तु/हारा पिरौम, अपने पिरवार के ूित तु/हारा समपण . . . . 0या-0या कहंू तु/हारे गुण- की तारीफ करने के िलये शKद कम पड़ते ह. । तु/ह" याद है , म. शादी के पहले से ही िकतनी \यादा िसगरे ट पीया करता था और शादी के बाद भी म. तु/हारे मना करने के बावजूद तुम से ु छप ु कर िनरं तर िसगरे ट पीया करता था, पर तुमने एक िदन गांधीजी वाला ऐसा छप सीधा राःता िनकाला िक िजस िदन तुम मुझे िसगरे ट पीता दे खती, उस िदन तुम खाना ही नहीं खाती, एक िदन, दो िदन म. तुमको िकतने िदन भूखा रख सकता था । तुम मेरी ु िसगरे ट की लत छड़ाने के िलये भूखी रहती वह भी िबना िकसी गुःसे के, िबना कुछ कहे बस मुःकराते रहती तु/हारे इस राःते ने मुझे एक िदन म" ही िसगरे ट छोड़ने पर िववश कर िदया । िनमला, तु/ह" शायद याद न हो हमारी शादी के एक साल बाद ही दे व की शादी हई ु थी । शादी के एक-दो साल तक उसका वैवािहक जीवन ठीकठाक चलता रहा, िकंतु संयुO पिरवार म" रहना उसकी पXी को शायद रास नहीं आ रहा था । और बस यहीं से पािरवािरक कलह के कीटाणु पनपने शुI हो गये । िपता की असमय मृPयु होने से उसपर आई िज/मेदािरय- और इकलौता पुऽ होने से पिरवार की आिथक किठनाइय- के कारण दे व अपनी गृहःथी अलग कर पाने म" असमथ था । सबकुछ जानते हए ु भी दे व की पXी का उसके पिरवार के साथ सामंजःय नहीं बन पा रहा था । वह दे व क सदा ही अपनी
पसनल ूापट^ समझती रही, वह यह कभी नहीं समझ सकी िक दे व उसका पित होने के साथ-साथ िकसी का बेटा, िकसी का भाई भी है उसकी अपने मां-बाप अपने भाई बहन के ूित भी िज/मेदािरयां ह. । न जाने 0य- दे व की पXी उसके पिरवार म" पूरे मन से सि/मिलत ही नहीं हो पाई । उसे हमेशा बस अपनी अलग गृहःथी बसाने की ही धुन लगी रही । बात-बात पर पिरवार के लोग- का अपमान करना, कभी भी अपने मायके चले जाना उसकी आदत म" शािमल हो गया था । िनमला, पिरवार के संचालन म" बेशक पित की अपनी िज/मेदारी होती है , िकंतु यह तभी संभव है जब उस पित के पीछे उसका संबल बनकर दख ु सुख म" साथ िनबाहनेवाली समझदार पXी खड़ी हो । िकसी भी घर पिरवार की सुख शांित उस पिरवार की Vी के Lयवहार पर िनभर करती है । यिद वह िवनॆ और Lयवहारकुशल हो तो अपने घर पिरवार को ःवग सा सु_दर बना सकती है और यिद वही Vी छोटी-छोटी बात- पर नािगन की तरह फुफकारने वाली अिभमानी, कलहकारी गुणवाली हो तो एक अ=छे घर पिरवार को नरक म" पिरवितत होते दे र नहीं लगती । पितपXी म" छोटी-छोटी बात- पर लडाई, हमेशा िकसी न िकसी बात पर अनबन रोज-रोज की पािरवािरक कलह के चलते दे व इतना अिधक अवसाद म" चला गया था िक लगता था जैसे वह कभी भी आPमहPया कर लेगा, िकंतु मेरे समझाने पर बड़ी मुिँकल से वह इस आPमघाती िवचार से बाहर िनकल पाया । ऐसा नहीं िक उसने अपनी पXी को समझाने का ूयX न िकया हो, िकंतु हर संभव ूयास करने के बाद भी वह पािरवािरक कलह से मुO नहीं हो पाया और घोर िनराशा के बीच एक िदन वह घर छोड़कर कहीं चला गया । िनमला, िकसी समःया का हल िनकालने की बजाय उससे मुंह मोड़कर दरू भाग जाना उस समःया का िनराकरण नहीं हो सकता, िकंतु अपने सामने ही अपने माता-िपता का िनरं तर अनादर होते दे खना, ःवयं के आPमस/मान की र?ा न कर पाना, दे व जैसे अPयंत भावुक LयिO के िलये असहनीय था । और शायद इसी कारण उसने रोज-रोज की झंझट- से की भावनाओं मुिO के िलये घर ही छोड़ िदया । िनमला, सफल िववाह 0या है एक-दसरे ू का स/मान, एक दसरे के िहःसे की खुिशय--गमं का बंटवारा, एक दसरे के गुण--अवगुणू ू को समझकर सहष ःवीकारना, परःपर िव@ास के साथ एक दसरे के ःवािभमान का ू स/मान करना और िनमला मुझे लगता है िबना आपसी ूेम के कदािचत यह संभव नहीं है वःतुतः Pयाग, समपण, सामंजःय, धैय सेवाभाव, जैसी भावनाओं से िमलकर ही यथाथ ूेम की कोमल भावना का आिवभाव होता है , िकंतु इतने वष एक साथ रहने के उपरांत भी उसकी पXी के मन म" दे व के ूित ऐसी कोई भावना ज_म नहीं ले पायी और ूेम को िकसी के मन म" जबरन उपजाया तो नहीं जा सकता और जहां ूेम न हो वह घर, घर कहने लायक नहीं रहता । पित-पXी के आपसी कलह और लड़ाई का सीधा असर उनके दोन- ब=च- पर पड़ा । बेटी ने कॉलेज पढते-पढते ही अपने सहपाठी से ूेमिववाह कर
िलया और बेटा तो अपने जीवन म" कुछ कर ही नहीं पाया । जैसे तैसे दसवीं तक पढ़ पाया और गुंडे -बदमाश- की संगत म" पड़कर चोिरयाँ करने लगा । कई बार जेल जा चुका है और अब पता नहीं आजकल कहाँ है । ौीमान जी, आपने मुझे दे वनारायणजी की सारी कहानी तो बता दी, िकंतु इतने साल बीत जाने के बाद भी आपने अपने दोःत से मुझे कभी िमलवाया नहीं । नहीं, ऐसी बात नहीं है , तुम तो उससे िमल चुकी हो बिdक िपछले दो-तीन साल से तो उससे हर साल ही िमल रही हो । कब ! कहां ? म. कुछ समझी नहीं ? अरे ौीमतीजी, हम अपनी शादी की सालिगरह पर वृfाौम म", बढी हई ु दाढी, लंबे िबखरे बाल-वाले िजस दीनहीन बूढ़े को सबसे पहले िमठाई का िडKबा दे ते ह. और वह बड़ी िम_नत के बाद उसम" से बमुिँकल एकआध ु टकड़ा उठाता है वही तो है दे व, मेरे बचपन का दोःत दे वनारायण, दे वनारायण पांडे । ----संपक: राजेश कुमार पािटल म.नं. डी.के.१/२ (दािनशकुंज गेट के बगल म") दािनशकुंज, कोलार रोड, भोपाल ई-मेल-
[email protected] (उO कहानी िदनांक १९.०३.२००८ को नव भारत के ‘सुIिच‘ म" ूकािशत)