8888

  • October 2019
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  • Words: 4,774
  • Pages: 14
माता- पता के हक़ ु ूक़ ूेम एक विचऽ मनोभाव है । इसी मनोभाव के कारण मनुंय मु ँकल से मु ँकल काम को सरलतापूवक कर ले जाता है । इसी अनुराग के ूित उ नित तथा ूगित के कृ

का न ऽ को ूा

करता है



क जस

चीज़ से मनुंय ूेम करता है उसे अपने ूाण से भी अिधक ूेम करता है । अपने आप को उस के िलए बिलदान कर

दे ता है । इसी कारण य द

ूेम अ लाह से हो तो पूजा बन जाती है य द ूेम नबी स0 अ0 व0 स0 से हो तो अनुसरण का ूकाश बन जाता है । ूेम माँ-बाप से हो तो अ लाह क ूस नता का कारण बन जाता है । अ लाह त

ला सव मानव

से ूेम करता है । इसी कारण उसने मानव को एक दसरे से ूेम करने क ु आ ा दया है और तमाम मानव के बीच एक दसरे पर कुछ ु क़ूक़ एंव ु

अिधकार को अिनवाय कया है जसे पूरा करना ज़ र है । इन हक ु ू क और

वाजबात म सब से पहला और बड़ा हक़ अ लाह का है और वह यह क

केवल अ लाह क उपासना तथा उसी क पूजा क जाऐ और उसके साथ कसी को भागीदार न ठहराया जाए। एक बार ूय नबी स0 अ0 व0 स0 ने मआज़ र ज0 से ूशन कया। << ऐ मआज़ ! म ने कहाः अ लाह के रसूल हा ज़र हँू , फरमाईये, आपने कहाः

या तुम जानते हो क अ लाह का अपने दास पर कया हक़ है ?

म ने उ र दयाः अ लाह और उस के रसूल अिधक जानते ह। तो आप ने कहाः अ लाह का दास पर हक़ है क वह केवल अ लाह क पूजा कर और उस के साथ कसी को उस का साझीदार न बनाऐ ,, (स

ु ल बुखार ः

द स सं खयां- 113512)

यह तो पहला हक़ हआ हम पर दसरा हक ूय नबी स0 अ0 व0 स0 ु ु

का है जन के िश ा के कारण हम ने अपने वाःत वक मािलक को

पहचाना है और वह हक यह है क हम अपने जीवन के हर मोड़ पर ूय

नबी स0 अ0 व0 स0 के आ ा का पालन कर, जन चीज़ो के करने का हु म दया है वह कर और जन चीज़ से रोका है उस से आदे श अ लाह तआला ने हम क़ुरआन म दया है -

क जाएं यह

<< और तु ह जो कुछ रसूल द उसे ले लो और जस से रोक

क जोओ >>

(सूराः अल हशर,7) तीसरे न बर पर हम पर हमारे माता पीता के अिधकार ूचिलत होते ह। जन के ूेम तथा मोह बत, मेहनत और लगन , उनक सेवा और ःवाथ याग के कारण ह हमने अपने य अ लाह त

व को परवान चढ़ाया है और

ला के बाद हमारे उ प न का कारण भी वह दोन ह, इस

िलए अ लाह तथा उस के रसूल के बाद हम पर अपने माता पता का बड़ा अिधकार और

क़ है । यह वजह है क अ लाह ने उन के पद को

काफ ऊंचा और बुलंद कया है । अ लाह तआला फरमाता है – << और अ लाह क इबादत करो और उस के साथ कसी को शर क़ न करो और माँ-बाप के साथ एहसान करो >> ( सूराः िनसा, 36 ) इस आयत पर िचंतन मनन कर क अ लाह ज ल शानहु ने अपनी पूजा

और उपासना के साथ माता- पता के साथ उपकार करने का आ ा दे कर इनसान को खबरदार कया क उनके साथ हर ूकार क भलाई, ूेम, ःवाथ

याग, कृ पा का यवहार करो।

अ लाह तआला माता- पता के पद, ौे ा, महानता और स मान को बढ़ाते हे तू विभ न शैली से मानव को संबोिधत करता ह जैसा क अ लाह तआला का फरमान है << और जब हम ने इसराईल के पुऽ से वचन िलया क तुम अ लाह के सेवाय कसी और क इबादत न करना और माँ-बाप के साथ अ छा सुलूक करना >> ( सूराः बक़रा, 83 ) प वऽ क़ुरआन म अ य ःथान पर अ लाह तआला फरमाता है << और तेरा रब खुला हु म दे चुका है क तुम उसके िसवाय कसी दसरे ू

क अराधना (इबादत) न

करना और माता- पता के साथ अ छा सुलूक

करना >> ( सूराः इॐा ,23) इसी तरह अ लाह तआला ने मानव को आ ा दया क वह माता- पता के साथ उ म उपकार तथा भलाई का बरताव कर जैसा क अ लाह त

ला का फरमान है ।

<< और हमने मानव को ताक द से आ ा दया क वह अपने माता- पता के साथ उपकार कर >> ( सूराः अ का़फ, 15 ) य द कोई मनुंय अ लाह के विस यत को याद कर के माँ-बाप का आदर और उन का स मान करते हऐ ु उनक अधीक सेवा करता है तो अ लाह उन को अ छा बदला दे गा। पर तु जो मनुंय अ लाह के विस यत को

भुला कर माँ-बाप के साथ अशु द यवहार करे गा अ लाह उस अभागी से स त ूशन करे गा। अ लाह त

ला के पास ब दो के कम म से ूय कम माता- पता के

साथ उ म यवहार है । अ द ु लाह बन मसऊद र ज़ ने ूय नबी स0

अ0 व0 स0 से ूशन कया।

<< कौन सा कत य अ लाह के प पात ूय है ? आप ने उ र दयाः नमाज़ के ूाथिमक समय म नमाज़ पढ़ना , म ने कहाः फर कौन सा ? आप ने उ र दयाः माता- पता के साथ उ म यवहार करना , म ने

कहाः फर कौन सा ? आप ने उ र दयाः अ लाह के माग म जहाद करना >> (स

ु ल बुखार ः

द स सं खयां - 117454)

इःलाम धम ने माता- पता को सवौे

पद दया है और उन को इतना

ऊंचा और बुलंद वग पर बैठाया है क अ य धम म इसका उदाहरण और तुलना नह ं। इःलाम ने माँ-बाप के साथ उपकार और अ छा ःवभाव को अ लाह क पूजा और आराधना के बाद का दजा तथा पद दया है ।

माता- पता के कुछ अनीवाियत हक़ ु ूक़ िनःसंदेह माता- पता का अपने सपूत पर अनिगिनत हक़ ु ू क़ तथा उपकार

है । कोई भी मानव अपने माँ-बाप का हक़ अदा नह ं कर सकता और नह ं उनके कृ पा को िगन सकता है पर तू उनके कुछ अनीवाियत हक़ ु ूक़

िन ल खत शतर म बयान कया जा रहा है ।

(1) माता- पता के साथ हर हाल म उपकार एंव इहसान करना जैसा क

अ लाह त

ला का आदे श है ।

<< और हम ने हर इं सान को अपने माता- पता से अ छा सुलूक करने क िश ा द है >>। ( सूराः अनकबूत , 8)

(2) माता- पता के आ ा का पालन करना जब तक वह आ ा ूमेशवर

के आदे श के ूितप ी और उनके कथन के वरोधी न हो जैसा क ूय नबी स0 अ0 व0 स0 ने फरमाया है ।

<< अ लाह क नाफरमानी म कसी ब दे क आ ाकार उिचत नह ं >> (तार खः बग़दाद , द स सं खया,36298) उमर र ज़0 के ़कन ा से माता- पता क बात मा ने क मह वपुण ् ता

ःप

होती है । उमर फा क़ र ज0 ने अपने पुऽ अ द ु लाह र ज़0 को कहा

क तुम अपनी

ी को तलाक़ दो ू तु वह अपने

ी से अधीक ूेम

करते थे उनहो ने तलाक़ दे ने से इनकार कया फर उमर फा क़ र ज़0 ने नबी स0 अ0 व0 स0 से िगला कया तो आप स0 अ0 व0 स0 ने अ द ु लाह र ज़0 को अपने पता का कहना मा ने और दे ने का आ ा दया फर अ द ु लाह र ज़0 ने अपनी

ी को तलाक़ ी को तलाक़ दे

दया।

(3) अगर माँ-बाप अ लाह क नाफरमानी , अ लाह के अित र

कसी

अ य क पूजा , उस के साथ कसी को भागीदार बनाने का आ ा दे तो उनके आ ा का पालन न करना क तु उनके साथ उ म यवहार के साथ जीवन बताना जैसा क अ लाह त

ला का ु म है -

<< और अगर वह दोन इस बात क अंधक कोिशश कर के तुम मेरे साथ िशक करो जस का तेरे पास

ान नह है तो तुम उन दोन क बात न

मानो और संसार म उन के साथ भलाई करते हऐ ु जीवन गुज़ारो >> (सूराः लुक़मान , 94)

इस आयत क ःप त म सा़द बन अबील व का़स र ज़0 के इःलाम लाने का क़ःसा बहत ु ह िश ा और नसीहत से भरा है । जब साद र ज़0

ने इःलाम ःवीकार कया तो उनक माँ ने कहाः म उस समय तक खाना नह खाऊंगी जब तक तुम इःलाम छोड़ कर अपने पुवज धम म लौट न आऔ और उनक माँ ने खाना-पीना

याग दया। साद र ज़0 ने माँ से

कहाः ऐ माता , अगर तेरे पास एक सौ ूाण होती और वह एक एक कर के िनकलती तब भी म इःलाम नह ं छो ं गा। दो दन क भूक हढताल के बाद अंत म उनक माँ ने खाना-पीना आरं भ कर दया।

(4) माँ-बाप क सेवा करना तथा उनका हर ूकार से धयान रखना अ लाह के माग मे जहाद करने से उ म औऱ सवौे है जैसा क अ द ु लाह बन अॆ र ज़0

बयान करते ह।

<< एक आदमी नबी स0 अ0 व0 स0 के पास अ लाह के पथ म जहाद करने के िलए आ ा लेने के िलए आया तो आपने ूशन या। या तु हारे माता- पता जीवीत ह ? उसने कहाः जी हाँ, आप ने कहाः तो तम उन दोन क

दय क ूेम के

साथ खूब सेवा करो >>। ( स ह मु ःलम, सं खया, 175940 )

(5) माँ-बाप को बुरा-भला न कहना और नह ं डांटना-फटकारना ब क

उनके कसी बात पर << हँू >> तक न कहना जैसा क अ लाह तआला का

फरमान है ।

<< अगर तु हारे पास इन म से एक या यह दोन बुढ़ापे क उॆ को पहंु च जाय तो उनको ऊफ तक न कहना और नह ं उ ह डाँटना >>

( सूराः इॐा ,23)

(6) माता- पता के साथ नीची आवाज़ और इएज़त एहतेराम से

बातचीत करना अ छ बातचीत एंव आदर तथा स मान के अधीक कदार माँ-बाप ह ह। अ लाह तआला ने भी मानव को इसी का ु म दया है -

<<और उनके साथ आदर तथा स मान से बातचीत करो >> ( सूराः इॐा ,23)

(7) उनके साथ हर ूकार से नरमी करना और ूेम का ःवभाव करना

जैसा के अ लाह तआला का आदे श है ।

<< और नम तथा मुह बत के साथ उन के सामने इ केसार के हाथ फैलाये रखो >> ( सूराः इॐा ,23)

(8) माता- पता के िलए अ लाह से रहमतो-मग़ फरत क दआ करना ु

, अ लाह त

ला सब लोग से चाहता है क लोग अपने िलए ,

माता- पता के िलए , सव लोग के िलए अ लाह से ह दआ ु कर और

अपने माँ-बाप के िलए बहत ु कर , अ लाह त ु दआ

ला के इस कथन

को खौ़र से पढ़े

<< और कहोः ऐ मेरे रब , उन दोन पर वैसे ह कृ पा कर जैसा क उनह ने बचपन म हम पर दया और हमार पालन पोषन कया >> ( सूराः इॐा ,23)

(9) माता- पता पर पैसा खच करना और उनको जीवन वेयवःथा का

साममी दे ना य द वह मोहताज हो तो अपने प ी तथा सपूत पर उनको तरजी

दे ना जैसा क ूय नबी स0 अ0 व0 स0 के आदे श से

ूमा णत है । << अ द ु लाह बन अॆ बन

स र ज़0 से वणन है क एक दे हाती

नबी स0 अ0 व0 स0 के पास आया और कहाः बैशक मेरे पास धन-

दौलत और बाल-ब चे ह। और मेरे पता मेरा धन-दौलत ले लेते ह। आप स0 अ0 व0 स0 ने उ र दया -

<< तुम और तु हार धन-दौलत तु हारे पता क चीज़ है । िनःसंदेह संतान तेर उ म कमाई है तो तुम अपने संतान क कमाई खाओ >> ( इरवाउल ग़लील ,

द स,बमांक ,148533)

नबी स0 अ0 व0 स0 के इस कथन से माता- पता क सेवा , उन पर अपनी संपती खच करने का उपदे श िमलता है । और उन को हर ूकार से ूसनन रखने का िश ण िमलता है ।

(10) य द माता- पता पुकारे तो उनक पुकार पर परःतुत होना और उनक जीवन सामिमय को पूरा करना य द न ली नमाज़ पढ़ रहा हो तो उसे छोड़ कर आना जैसा क हम जुरैज

़बद के ़कःसे़ से िश ण िमलता है ।

<< अबू-होरै रा र ज़0 फरमाते ह << जुरैज अपने कु या म अराधना (इबादत) करता था तो उसक माँ आई और कहाः ऐ जुरैज ! म तु हार माँ हँू , तुम मुझ से बात करो ू तु वे नमाज़ पढ़ रहे थे तो

दय म वचार कया, ऐ अ लाह ,मेर माँ और नमाज़ फर वे नमाज़

पढ़ते रहे , और उसक माता लौट आई फर दसर बार आई और कहा, ु

ऐ जुरैज ! म तु हार माता हँू , तुम मुझ से बात करो ू तु वे नमाज़ पढ़ रहे थे तो

दय म वचार कया, ऐ अ लाह, मेर माता और

नमाज़ फर वे नमाज़ पढ़ते रहे , तो उसक माँ ने कहा, ऐ अ लाह जुरैज मेरा पुऽ है और म उस से बात करना चाहती हँू ू तु वे बात करना नह ं चाहता, ऐ अ लाह उसे संभोिगक

ी के सम

बना मृ यु

न दे , (रावी कहते ह) और य द यौन स बंिधत क शाप दे ती तो वे करता ! और एक चड़वाहा उसके कु या म आता था। तो एक



माम से िनकली और उन दोन ने यौन स बंध कया और औरत गभ से होगई और एक पुऽ जनम दया। उस से कहा गया क यह कस का है ? औरत ने उ र दयाः यह इस कुटया वाले का है ! लोग अपने कु हार और हथौर से उसके घर को मु ह दम करने लगे फर वह

नीचे आया तो लोग ने कहा यह

या है ? जुरैज हं सा फर ब चे के

सर पर हाथ फैरा और कहाः तु हारा बाप कौन है ? ब चे ने उ र दयाः मेरा बाप चड़वाहा है । तो जब लोग ने ( जनम हे तू ) ब चे को बोलते हऐ ू सूना तो कहा क हम आप के घर को सोने-चाँद से बना

दगे तो उसने उ र दयाः नह ं, पर तु जैसा था वैसा ह बना दो >> (स ह मु ःलम,

द स बमांक, 175942)

(11) माता- पता का उपकार मा ना और उनके ूित कृ त

दखाना

जैसा क आकाश-पृथवी के मािलक का आदे श है ।

<< तुम मेरे ूित कृ तर ता दखाओ और माँ-बाप के ूित कृ त दखाओ >>( सूराः लुक़मान ,14)

अ लाह तआला ने मानव को आ ा दया क तम मेरे उपकार का शुब या अदा करो और माता- पता के इहसान का शुब या अदा करो य

क वाःतव म तुम जतना भी मेरा फर अपने माँ-बाप का

कृ तर ता दखाओगे तब भी वह कम है ।

माता का हक़ पता से अधीक ह। इःलाम ने माँ-बाप का पद बहत ु ऊंचा कया है और उन दोन के ूित उ म

सुलूक और उन दोन का खूब आदर तथा स मान करने का आदे श दया है । ू तु उन दोन म माता का क़ और अधीकार पता के सम

अधीक दया है

य क माँ ने ब चे क दे ख-भाल म काफ क झेली है । माँ ने संतान के पालन पोषण म बहत ु ज़यादा तकलीफ बदाँत क है । बाल-ब चे को हर

ूकार के हष तथा वयाकुिलय से सुर

त कया है । माता ने संतान के पालन-

पोषण म पता से अधीक बिलदान ू

कया है और ब च के िलऐ हर

ूकार का ःवाथ याग दया है । इस िलऐ इःलाम ने माँ को अ छे यवहार का ज़यादा मुःत क़ क़रार दया है । जैसा क नबी स0 अ0 व0 स0 के कथन से ूमा णत है । << एक आदमी रसूलु लाह स0 अ0 व0 स0 के पास आया और कहाः ऐ अ लाह के रसूल ! कौन मेरे अ छे यवहार तथा खूब सेवा का क़दार है ? तो आप स0 अ0 व0 स0 ने उ र दयाः तु हार माँ, उस ने कहाः फर कौन ? आप स0 अ0 व0 स0 ने उ र दयाः फर तु हार माँ, उस ने कहाः फर कौन ? आप स0 अ0 व0 स0 ने उ र दयाः फर तु हार माँ, उस ने कहाः फर कौन ? आप स0 अ0

व0 स0 ने उ र दयाः फर तु हारा बाप। >> (स 113508)

ु ल बुखार ः

द स सं खयां-

माता- पता के मृ यु के प ात के अधीकार ौीमानः यह कुछ ु क़ूक़ और अधीकार ह जो माता- पता के जीवन म ह ब च

पर अनीवाय होता है क तु कुछ वाजबात तथा अधीकार एंव ु क़ूक़ ऐसे भी ह

जो माता- पता के मृ यु के प ात भी पूरा करना पड़ता है । जैसा क ूय नबी स0 अ0 व0 स0 के आदे श से ूमा णत है । << अबू उसैद अ सा़र र ज़0 फरमाते ह क हम नबी कर म स0 अ0 व0 स0 के पास थे क एक आदमी ने कहाः ऐ अ लाह के रसूल ! या मेरे वािलदै न के मरण के प ात भी कुछ अ छा आचार, यवहार है जो म उन के साथ क

? आप स0 अ0 व0 स0 ने फरमायाः << हाँ,चार चीज़ ह जो

उन क मृ यु के उपरांत भी कया जा सकता है >>।

(अल अदब अल मुफरद िलल बुखार )

(1) उन दोन के िलए दआ ु करना य क दआ ु मरने के बाद भी लाभ पहंु चाती है

जैसा क नबी स0 अ0 व0 स0 के कथन म आया है -

<< जब मानव मर जाता है तो उन के सारे कम ख़ म हो जाते ह सवाये तीन कम केः हमेशा रहने वाला दान , या,

ान जस से लाभ उठाया

जाऐ , या, नेक पुऽ जो उन के िलए दआ करे >> ( स ह मु ःलम , ु

दस

बमांक ,89269)

(2) इसी ूकार माता- पता के िलए अ लाह से ब शश मांगना जैसा क

अ लाह के नबी नू

अलै हःसलाम अपने माँ-बाप के िलए अ लाह से

ब शश मांगते थे। << ऐ मेरे मािलक , मुझे पु ष तथा

ीय को

मा कर दे और मेरे माता- पता और मोिमन मा कर दे >> (सूराः नू

, 28)

(3) माता- पता के वचन तथा ू र थ को उन के मृ यु प ात पुरा करना य द उन पर उधार हो तो उसे अदा करना होगा य क अ लाह तआला अपने अधीकार और ु क़ूक़ को माफ कर सकता है ू तु मानव का अधीकार व ु क़ूक़

केवल मानव ह माफ करे गा , अ लाह तआला

मा नह ं करे गा इसी िलए

अ य मानव के अधीकार एंव ु क़ूक़ को माता- पता के मृ यु के बाद

संतान पर वापस करना अनीवाय है ।

(4) माँ-बाप के िमऽ और सािथय का आदर - स मान करना , उन के संबंिधय और नातेदार

के साथ भी उ म सुलूक करना और इन सब को अपने शैली

के अनुसार सौगात दे ना है । इःलाम का यह आदे श है । अ द ु लाह बन द नार कहते ह क एक मामीण से भट हई ु ,तो अ द ु लाह

ने उसे सलाम कया। और जस ग हे पर बैठे थे वह उसे दे दया और अपने सर से पगड़ उतार कर उसे दे दया। तो इ ने द नार ने कहाः अ लाह आप का भला करे ! िनःसंदेह ये मािमक लोग ह। और ये थोड़ा ूा

कर के परस न होते ह। अ द ु लाह ने उ र दया, बैशक इस य

का पता उमर बन खग ाब का िमऽ था और म ने नबी स0 अ0 व0 स0 को फरमाते हे तू सुना है । << िनःसंदेह ने कय म सब से बड़ नेक पुऽ का अपने पता के ूेिमय के पर वार वालो के साथ अ छा यवहार करना है >> (स

मु ःलमः

द स सं खयां- 175943)

इःलाम ह वह महान धम है जस ने ूित य

को उस का मुनािसब

ःथान दया है और इःलाम ने माता- पता का जो ःथान एंव पद दया है अ य धम इस के बहत पछे है । ु

लाभ जो माता- पता का सेवा करने से ूा

होते ह।

(1) य द आप पतर के साथ भलाई तथा उपकार करते ह तो मानो आप

अ लाह के आ ाकार के पथ पर गमन करते ह और जो अ लाह के पथ पर चलेगा अ लाह उसे महान प ंकार दे गा।

(2) माता- पता जस य

से ूस न ह गे तो अ लाह भी उस य

से खुश

होगा जैसा क रसूलु लाह स0 अ0 व0 स0 का कथन ह। << अ लाह क खुशी माता- पता क ूस नता म गु क अूस नता माँ-बाप के बोध म है >> (स

इ न

बान,

द स सं खयां- 3349)

है और अ लाह

(3) िमतरौ के साथ सव छ यवहार और उनक िनःःवाथ सेवा तथा

उनके साथ बेहतर न सुलूक ज नत (ःवग) म ूवेश का सट फकेट है । जैसा क नबी स0 अ0 व0 स0 ने फरमाया है । << पता ज नत के

ार म से बी ला

करलो या इसे न

ार है तो तुम इसे सुर

कर दो ,, (सुनन ितिमज़ीः



द स सं खयां- 9979)

(4) माता- पता क खूब खदमत करना औ हर ूकार से उन को खूश

रख कर उन क दआ लेना और उन के शाप से संयम रहना , उनका ु

आशीरवाद लेना



क क माँ-बाप क शाप या दआ संतान के हक़ म ु

अ लाह ःवीकार करता है । जैसा क नबी स0 अ0 व0 स0 ने फरमाया है -

<< िनःसंदेह तीन दआय ःवीकर क जाती ह नृशंिसत क दआ और याऽी ु ु

क दआ और माँ-बाप क दआ संतान के बारे म >> (तरगी़ब व तरह बः ु ु द स सं खयां- 19884)

(5) माँ-बाप के साथ अ छा यवहार करने पर अ लाह तआला ऊॆ म ज़यादती और जीवीका तथा रोज़ी म अधीकता वःतार करता है । जैसा क रसूलु लाह के फरमान म आता है । << जस य

को ूस नता ूा हो क उसे लंबी ऊॆ िमले और उस के रोज़ी म

ज़यादती हो तो वह अपने माँ-बाप के साथ नेक करे और अपने संबंिधय के साथ उपकार करे >> (स

मु ःलमः

द स सं खयां- 175943)

हािन जो माँ-बाप के अव ा एंव कृ तिनंदा करने से ूा

होता है ।

(1) माँ-बाप क अव ा और उनक नाफरमानी बड़े पाप म से है । जैसा क रसुलू लाह ने फरमाया है ।

<< कया तु ह पाप म बड़े पाप के बारे म आप के सािथय ने उ र दयाः

ान न दँ ू , तीन बार कहा,

य नह ऐ अ लाह के रसूल, आप ने

फरमायाः अ लाह के साथ कसी दसरे को साझीदार बनाना, और वािलदै न ु

क नाफरमानी करना, और आप टे क लगाऐ थे ,बैठ गऐ, तो फरमाया, सुनो, झूट गवाह दे ना,(रावी कहते ह) आप

इसे बार बार दोहरा रहे थे

यहाँ तक क हमने ( दल म) कहाः काश क आप खामूश हो जाते >> (स

ु ल बुखार ः

द स सं खयां- 2654)

(2) य द माँ-बाप नाराज़,अूस न हो तो अ लाह भी नाराज़ होगा।और वह बद ब त होगा जस से अ लाह नाराज़ हो, इसी िलए माँ-बाप क खूब सेवा करके उनको खूश रख। जैसा क नबी स0 अ0 न0 स0 ने फरमाया – << अ लाह क खुशी माता- पता क ूस नता म गु है और अ लाह क अूस नता माँ-बाप के बोध म है >> (स

इ न

बान, द स सं खयां- 33459)

(3) जो लोग माता- पता के साथ अ ूय यवहार करते ह। उनको



दे ते , उन पर अ याचार करते , उनको सताते ह। उनक संतान

भी उनके साथ अ ूय यवहार करते, उनको क

दे ते ह। और यह

बात तजुरबे से सा बत है । और आप लोग ने भी अनगिनत वा क़यात दे खे ह गे। बैशक जो जैसा बीज बोऐगा, वैसा फल काटे गा, और ूय नबी स0 अ0 व0 स0 का फरमान है । << अपने माँ-बाप के साथ अ छा यवहार करो, तुमहार संतान तु हारे साथ उ म यवहार करे गी >> (तरगी़ब व तरह बः 3/294)

(4) जो लोग माँ-बाप के साथ अनुिचत यवहार और अिश

अ याचार करते ह। अ लाह तआला एसे य अपमािनत करता है । वह य

तथा

को संसार म ह

लोग क नज़र म नीच , कमीना और

बेइएज़त होता है और मृ यु के प ात भी अ लाह उसे स त दं ड दे गा।

(5) माता- पता के अव ा कार को अ लाह तआला क़यामत के दन

कृ पा क

से नह ं दे खेगा और जस से अ लाह नज़र मोड़ ले, वह

बहत ु बड़ा अभागी है । एसे बद नसीब श स के बारे म रसूलु लाह स0

अ0 व0 स0 का कथन पढ़े -

<< क़यामत के दन अ लाह त

ला तीन श स क ओर दया क नज़र

से नह ं दे खेगाः अपने माता- पता क नाफरमानी करने वाले , खूब दा पीने वाले , भलाई करके उपकार जताने वाले >> ( कताबुत तौव द िल इ न खुज़ैमा, 859/2)

(6) बरबाद और हलाकत है उस आदमी के िलए जो बूढ़े माता- पता क सेवा और खदमत करके ज नत (ःवग) म दा खल न हो सका। एसे य

के बारे म

नबी स0 अ0 व0 स0 का कथन खौर से पढ़े << उस य य

क स यानाश हो , फर उस य

क स यानाश हो , फर उस

क स यानाश हो, कहा गया , कौन ? ऐ अ लाह के रसूल ! आप ने

फरमायाः जो अपने माता- पता म से एक या दोन को बूढ़ापे क उॆ म पाये और ज नत म दा खस न हो सका >>

(स

मु ःलमः

द स सं खयां- 1880)

(7) जबर ल अलै हःसलाम क िध कार और नबी स0 अ0 व0 स0 क िध कार उस य

पर जो बूढ़े माता- पता को पाये और उनक सेवा न कया , उनको खूश

न कर सका जस के कारण जह नम (नग) म ूवेश हो गया। << रसूलु लाह स0 अ0 व0 स0 िमंबर पर चढ़े तो जब पहला जीना चढ़े , कहाः आमीन , फर दसरा ज़ीना चढ़े तो कहाः आमीन , फर तीसरा ु

ज़ीना चढ़े तो कहाः आमीन , फर फरमायाः मेरे पास जबर ल

अलै हःसाम आये और कहाः ऐ मोह मद जो रमज़ान पाये तो उसे माफ नह ं कया गया तो अ लाह उसे दरू करे , म ने कहाः आमीन , जबर ल

ने कहाः और जो अपने माँ-बाप या उन दोन म से एक को पाये तो

जह नम (नग) म दा खल हआ तो अ लाह उसे दरू करे , म ने कहाः ू आमीन , जबर ल ने कहाः और जस के सम

आप का नाम आये और

आप पर द द न पढ़े तो अ लाह उसे दरू करे , आमीन कहो , तो म ने

कहाः आमीन >> (तरगी़ब व तरह बः िलल मुन जर 406/2) इःलाम ह वह महान एंव सवौे

धम है जो हर मनुंय को उसके उिचत

ःथान पर रखता है । जब संतान छोटा होता है तब माता- पता को

अ लाह ने यह आ ा दया क तुम अपने संतान क अ छ पालण पोशन करो , उसे उ म िश ा दलाओ , उस पर हर ूकार से धयान दो, फर जब माता- पता बुढ़ापे क उॆ को पहंु च जाऐ तो उन के साथ भी

सवौे

सुलूक कया जाऐ। उनको हर ूकार से ूस न रखा जाए। और

उन पर अपनी संपती खच कया जाऐ । और अपने इस कत य का पु ंकार अ लाह के पास ूा

करे ...अ छा .... या बुरा....

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