योगयात ा-4 शी अ ििल भारतीय योग
वेदानत स ििित , अिदावा द।
पसतावन ा बहवेता िहापुरषो की उपिसिित िात से असंखय जीवो के दष-अदष, सांसािरक-
आधयािििक सहायता पाप होती है । पातः सिरणीय परि पूजय सदगुरदे व संत शी आसाराि जी बापू की पियक अिवा अपियक पेरणा से जो लोग लाभािनवत हुए है , उनके पिरपलािवत हदयो के उदगार एवं पतो को िलिपबद िकया जाये तो एक-दो नहीं, कई गनि तैयार हो सकते है । इस
पुिसतका ‘योगयाता-4’ िे भको के अनुभवो की बिगया से चुने हुए िोडे -से पुषप है । भारतवषष के योगिवजा और बहवेताओं की अलौिकक शिक का वणन ष केवल कपोलकििपत बाते नहीं है । ये हजार-दो-हजार लोगो का ही नहीं बििक बापू जी के लािो लािो साधको का अनुभव है ।
इन िविभनन पकार के अलौिकक आधयािििक अनुभवो को पढने से हिारे हदय िे
आधयािििकता का संचार होता है । भारतीय संसकृ ित व भारत की साधना-पदित की सचचाई और
िहानता की िहक ििलती है । नशर जगत के सुिाभास की पोल िुलती है । शाशत सुि की ओर उनिुि होने का उिसाह हििे उभरता है ।
इन आधयािििक अनुभवो को पढकर शदा के साि आधयािििक िागष िे जो पविृत होती
है उसे यिद साधक जागत ृ रिे तो वह शीघ ही साधना की ऊँचाइयो को छू सकता है ।
हजारो लोगो के बीच साधको ने अपने सनेही-िितो के सिक जो अनुभव कहे है उनकी
पिािणकता िे संदेह करना उिचत नहीं है । उनके अनुभव उनहीं की भाषा िे.... शी अ ििल भारतीय योग व
पूजयशी क े सि संग ि े प धानि ंती शी अटल
ेदानत स ेवा स ििती , अिदावाद।
िबहारी वाजप ेय ीजी के उदगार
...
"पूजय बापूजी के भिकरस िे डू बे हुए शोता भाई-बहनो! िै यहाँ पर पूजय बापूजी का
अिभनंदन करने आया हूँ.... उनका आशीवच ष न सुनने आया हूँ.... भाषण दे ने य बकबक करने नहीं आया हूँ। बकबक तो हि करते रहते है । बापू जी का जैसा पवचन है , किा-अित ृ है , उस तक
पहुँचने के िलए बडा पिरशि करना पडता है । िैने पहले उनके दशन ष पानीपत िे िकये िे। वहाँ पर रात को पानीपत िे पुणय पवचन सिाप होते ही बापूजी कुटीर िे जा रहे िे.. तब उनहोने
िुझे बुलाया। िै भी उनके दशन ष और आशीवाद ष के िलए लालाियत िा। संत-िहाििाओँ के दशन ष तभी होते है , उनका सािननधय तभी ििलता है जब कोई पुणय जागत ृ होता है ।
इस जनि िे िैने कोई पुणय िकया हो इसका िेरे पास कोई िहसाब तो नहीं है िकंतु जरर यह पूवष जनि के पुणयो का फल है जो बापू जी के दशन ष हुए। उस िदन बापूजी ने जो कहा, वह अभी तक िेरे हदय-पटल पर अंिकत है । दे शभर की पिरकिा करते हुए जन-जन के िन िे
अचछे संसकार जगाना, यह एक ऐसा परि राषीय कतवषय है , िजसने हिारे दे श को आज तक
जीिवत रिा है और इसके बल पर हि उजजवल भिवषय का सपना दे ि रहे है ... उस सपने को साकार करने की शिक-भिक एकत कर रहे है ।
पूजय बापूजी सारे दे श िे भिण करके जागरण का शंिनाद कर रहे है , सवध ष िष-सिभाव
की िशका दे रहे है , संसकार दे रहे है तिा अचछे और बुरे िे भेद करना िसिा रहे है ।
हिारी जो पाचीन धरोहर िी और हि िजसे लगभग भूलने का पाप कर बैठे िे, बापू जी
हिारी आँिो िे जान का अंजन लगाकर उसको िफर से हिारे सािने रि रहे है । बापूजी ने कहा िक ईशर की कृ पा से कण-कण िे वयाप एक िहान शिक के पभाव से जो कुछ घिटत होता है , उसकी छानबीन और उस पर अनुसंधान करना चािहए।
पूजय बापूजी ने कहा िक जीवन के वयापार िे से िोडा सिय िनकाल कर सिसंग िे
आना चािहए। पूजय बापूजी उजजैन िे िे तब िेरी जाने की बहुत इचछा िी लेिकन कहते है न,
िक दाने-दाने पर िाने वाले की िोहर होती है , वैसे ही संत-दशन ष के िलए भी कोई िुहूतष होता है ।
आज यह िुहूतष आ गया है । यह िेरा केत है । पूजय बापू जी ने चुनाव जीतने का तरीका भी बता िदया है ।
आज दे श की दशा ठीक नहीं है । बापू जी का पवचन सुनकर बडा बल ििला है । हाल िे
हुए लोकसभा अिधवेशन के कारण िोडी-बहुत िनराशा हुई िी िकनतु रात को लिनऊ िे पुणय पवचन सुनते ही वह िनराशा भी आज दरू हो गयी। बापू जी ने िानव जीवन के चरि लकय
िुिक-शिक की पािप के िलए पुरषािष चतुषय, भिक के िलए सिपण ष की भावना तिा जान, भिक और किष तीनो का उिलेि िकया है । भिक िे अहं कार का कोई सिान नहीं है । जान अिभिान
पैदा करता है । भिक िे पूणष सिपण ष होता है । 13 िदन के शासनकाल के बाद िैने कहाः "िेरा जो कुछ है , तेरा है ।" यह तो बापू जी की कृ पा है िक शोता को वका बना िदया और वका को नीचे से ऊपर चढा िदया। जहाँ तक ऊपर चढाया है वहाँ तक ऊपर बना रहूँ इसकी िचंता भी बापू जी को करनी पडे गी।
राजनीित की राह बडी रपटीली है । जब नेता िगरता है तो यह नहीं कहता िक िै िगर
गया बििक कहता है ः "हर हर गंगे।" बापू जी का पवचन सुनकर बडा आनंद आया। िै लोकसभा
का सदसय होने के नाते अपनी ओर से एवं लिनऊ की जनता की ओर से बापू जी के चरणो िे िवनम होकर निन करना चाहता हूँ।
उनका आशीवाद ष हिे ििलता रहे , उनके आशीवाद ष से पेरणा पाकर बल पाप करके हि
कतवषय के पि पर िनरनतर चलते हुए परि वैभव को पाप करे , यही पभु से पािन ष ा है ।"
शी अट ल िबहारी वाजप
ेय ी, पधानि ंती , भारत सरकार।
परि प ूजय बाप ू संत शी आ सार ािजी बाप ू के कृ पा -पसाद से पिरपलािव त हदयो
के उदगार
पू . बाप ूः राषस ु ि के स ंवध ष क "पूजय बापू दारा िदया जाने वाला नैितकता का संदेश दे श के कोने-कोने िे िजतना अिधक पसािरत होगा, िजतना अिधक बढे गा, उतनी ही िाता िे राषसुि का संवधन ष होगा, राष की पगित होगी। जीवन के हर केत िे इस पकार के संदेश की जररत है ।"
(शी लाल कृषण आ डवाणी , उपपधानि ंती एव ं के नदीय ग ृ हिंती , भारत सरकार। )
......राष उनका ऋणी ह
ै
भारत के भूतपूवष पधानिंती शी चनदशेिर, िदिली के सवणष जयनती पाकष िे 25 जुलाई
1999 को बापू जी की अित ृ वाणी का रसासवादन करने के पशात बोलेः
"आज पूजय बापू जी की िदवय वाणी का लाभ लेकर िै धनय हो गया। संतो की वाणी ने
हर युग िे नया संदेश िदया है , नयी पेरणा जगायी है । कलह, िवदोह और दे ष से गसत वति ष ान वातावरण िे बापू िजस तरह सिय, करणा और संवेदनशीलता के संदेश का पसार कर रहे है , इसके िलए राष उनका ऋणी है ।"
(शी चन दशेिर , भूतप ूव ष पधानि ंती , भारत सरकार। )
सिस ंग शवण स े ि ेरे हदय की सफाई ह
ो गयी ....
पूजयशी के दशन ष करने व आशीवाद ष लेने हे तु आये हुए उतरपदे श के तिकालीन राजयपाल
शी सूरजभान ने कहाः "सिशानभूिि से आने के बाद हि लोग शरीर की शुिद के िलए सनान
कर लेते है । ऐसे ही िवदे शो िे जाने के कारण िुझ पर दिूषत परिाणू लग जाते िे, परं तु वहाँ से लौटने के बाद यह िेरा परि सौभागय है िक यहाँ िहाराज शी के दशन ष व पावन सिसंग-शवण
करने से िेरे िचत की सफाई हो गयी। िवदे शो िे रह रहे अनेको भारतवासी पूजय बापू के पवचनो को पियक या परोक रप से सुन रहे है । िेरा यह सौभागय है िक िुझे यहाँ िहाराजशी को सुनने का सुअवसर पाप हुआ।"
(शी स ूरज भा न , तिकालीन
राजयपाल , उतरपद ेश। )
पू जय बाप ू जीवन को स ु ििय बन ाने का िाग ष ब ता रहे है
गुजरात के तिकालीन िुखयिंती शी केशुभाई पटे ल 11 िई को पूजय बापू के दशन ष करने
अिदावाद आशि पहुँचे। सिसंग सुनने के बाद उनहोने भावपूणष वाणी िे कहाः
"िै तो पूजय बापू के दशन ष करने के िलए आया िा िकंतु बडे सौभागय से दशन ष के साि ही सिसंग का लाभ भी ििला। जीवन िे आधयािििकता के सहजता
कैसे लाये तिा िनुषय
सुिी एवं िनरोगी जीवन िकस पकार िबताये, इस गहन िवषय को िकतनी सरलता से पूजय बापू ने हिे सिझाया है । ईशर-पदत इस िनुषय-जनि को सुििय बनाने का िागष पूजय बापू हिे बता रहे है । भारतीय संसकृ ित िे िनिहत सिय की ओर चलने की पेरणा हिे दे रहे है । एक
वैिशक कायष, ईशरीय कायष िजसे सवयं भगवान को करना है , वह कायष आज पूजय बापू जी कर रहे है । बापू को िेरा शत-शत पणाि!"
(शी केश ुभाई पट ेल , तिका ली न ि ुखयि ंती , गुजरात राज य। )
धरती तो ब ापू ज ैस े स ंतो के कारण िटकी
है
"िुझे सिसंग िे आने का िौका पहली बार ििला है और पूजय बापूजी से एक अदभुत
बात िुझे और आप सब को सुनने को ििली है , वह है पेि की बात। इस सिृष का जो िूल ततव है , वह है पेि। यह पेि नाि का ततव यिद न हो तो सिृष नष हो जाएगी। लेिकन संसार िे कोई पेि करना नहीं जानता, या तो भगवान पयार करना जानते है या संत पयार करना जानते है । िजसको संसारी लोग अपनी भाषा िे पेि कहते है , उसिे तो कहीं-न-कहीं सवािष जुडा होता है
लेिकन भगवान, संत और गुर का पेि ऐसा होता है िजसको हि सचिुच पेि की पिरभाषा िे बाँध सकते है । िै यह कह सकती हूँ िक साधू संतो को दे श की सीिाएँ नहीं बाँधतीं। जैसे निदयो की धाराएँ दे श और जाित की सीिाओं िे नहीं बाँधती, उसी पकार परिाििा का पेि और संतो
का आशीवाद ष भी कभी दे श, जाित और संपदाय की सीिाओं िे नहीं बंधता। किलयुग िे हदय की िनषकपटता, िनःसवािष पेि, ियाग और तपसया का कय होने लगा है , िफर भी धरती िटकी है तो बापू! इसिलए िक आप जैसे संत भारतभूिि पर िवचरण करते है । बापू की किा िे ही िैने यह
िवशेषता दे िी है िक गरीब और अिीर, दोनो को अित ृ के घूँट एक जैसे पीने को ििलते है । यहाँ कोई भेदभाव नहीं है ।"
(सु शी उ िा भारती , िुख यिंती , िधयपद ेश। )
हि सबको
भक बन ने की ता कत िि ले
"िै तो पूजय बापू जी के शी वचनो को पणाि करने आया हूँ। भिक से बडी दिुनया िे
कोई ताकत नहीं होती और भक हर कोई बन सकता है । हि सबको भक बनने की ताकत ििले, आशीवाद ष ििले। िै सिझता हूँ िक संतो के आशीवाद ष ही हि सबकी बडी पूँजी होती है ।" (नरेनद िोदी , िुखयि ंती , गुजरात राज य। )
सही ऊजा ष बाप ूजी स े िि लती ह ै
"गुजरात सरकार ने िुझे ऊजाष िंती का पद सौपा है , पर सही आिििक ऊजाष िुझे बापूजी से ििलती है ।"
(शी कौिश क भाई पट े ल , तिकालीन
आपूित ष िंती , गुजरात राज य। )
ऊ जाष िंती , वतष िान िे राजसव व नागिरक
िै त ो बाप ू जी का ए क सा िानय काय ष क ताष हूँ
िदिली िे आयोिजत पूजयशी के सिसंग-कायक ष ि के दौरान िदिली के तिकालीन
िुखयिंती शी सािहब िसंह विाष सिसंग शवण हे तु आि भको के बीच आ बैठे। सिसंग शवण के पशात उनहोने पूजय बापू को िािा टे ककर पणाि िकया... िाियापण ष के साि सवागत करके
उनका आशीवाद ष पाप िकया। एक संत के पित लोगो की शदा, तडप, सिसंग-पेि, उनका पेिपूणष वयवहार, अनुशासन व भारतीयता को दे िकर िुखयिंतीशी गदगद हो उठे । उनहोने बार-बार िदिली पधारने के िलए पूजय बापू जी से पािन ष ा की और कहाः "आज िै पूजय बापूजी के दशन ष व
सिसंग-शवण करके पावन हो गया हूँ। िै िहसूस करता हूँ िक परि संतो के जब दशन ष होते है और उनके पावन शरीर से जो तरं गे िनकलती है वे िजसको भी छू जाती है उसकी बहुत-सी
किियाँ दरू हो जाती है । िै चाहता हूँ िक िेरी सभी किियाँ दरू हो जाये। िै तो पूजय बापू जी
का एक सािानय सा कायक ष ताष हूँ। पूजय बापू की कृ पा हिेशा िुझ पर बनी रहे ऐसी िेरी कािना
है । िेरा परि सौभागय है िक िुझे आपके दशन ष करने का, आपके आशीवाद ष पाप करने का अवसर ििला।"
(शी सा िहब िस ंह विा ष , केनदीय श ि ि ंती , भारत सरकार। )
िै किन सीब ह ूँ ज ो इत ने स िय तक ग ुरवाणी वंिचत रहा
से
"परि पूजय गुरदे व के शी चरणो िे सादर पणाि! िैने अभी तक िहाराजशी का नाि भर सुना िा। आज दशन ष करने का अवसर ििला है लेिकन िै अपने-आपको किनसीब िानता हूँ
कयोिक दे र से आने के कारण इतने सिय तक गुरदे व की वाणी सुनने से वंिचत रहा। अब िेरी कोिशश रहे गी िक िै िहाराजशी की अित ृ वाणी सुनने का हर अवसर यिासमभव पा सकूँ। िै
ईशर से यही पािन ष ा करता हूँ िक वे हिे ऐसा िौका दे िक हि गुर की वाणी को सुनकर अपनेआपको सुधार सके। गुर जी के शी चरणो िे सादर सििपत ष होते हुए िधयपदे श की जनता की ओर से पािन ष ा करता हूँ िक गुरदे व! आप इस िधयपदे श िे बार-बार पधारे और हि लोगो को
आशीवाद ष दे ते रहे तािक परिािष के उस कायष िे, जो आपने पूरे दे श िे ही नहीं, दे श के बाहर भी फैलाया है , िधयपदे श के लोगो को भी जुडने का जयादा-से-जयादा अवसर ििले।" (शी िद िगवजय िस ंह , तिकालीन
िुखयि ंती , िधयपद ेश। )
इतन ी िध ु र वाणी ! इतन ा अदभ ु त जान !
"िै अपनी ओर से तिा यहाँ उपिसित सभी िहानुभावो की ओर से परि शदे य
संतिशरोििण बापू जी का हािदष क सवागत करता हूँ। िैने कई बार टी.वी. पर आपको दे िा सुना है और िदिली िे एक बार आपका पवचन भी सुना है । इतनी िधुर वाणी! इतना िधुर जान! अगर आपके पवचन पर गहराई से िवचार करके अिल िकया जाये तो इनसान को ििंदगी िे सही
रासता ििल सकता है । वे लोग धन भागी है जो इस युग िे ऐसे िहापुरष के दशन ष व सिसंग से अपने जीवन-सुिन ििलाते है ।"
(शी भजनला ल , तिकालीन
िुखयिती , हिरयाण ा। )
ऐसे स ंतो क ा िजतना आदर िकया जाय
होगे...’
, कि है
"िकसी ने िुझसे कहा िाः धयान की कैसेट लगाकर सोयेगे तो सवपन िे गुरदे व के दशन ष िैने उसी रात धयान की कैसेट लगायी और सुनते-सुनते सो गया। उस वक राित के
बारह-साढे बारह बजे होगे। वक का पता नहीं चला। ऐसा लगा िानो, िकसी ने िुझे उठा िदया। िै गहरी नींद से उठा एवं गुर जी की लैपवाले फोटो की तरफ टकटकी लगाकर एक-दो ििनट तक
दे िता रहा। इतने िे आशयष! टे प अपने-आप चल पडी और केवल ये तीन वाकय सुनने को ििलेः ‘आििा चैतनय है । शरीर जड है । शरीर पर अिभिान ित करो।’
टे प सवतः बंद हो गयी और पूरे किरे िे यह आवाज गूज ँ उठी। दस ू रे किरे िे िेरी पती
की भी आँिे िुल गयीं और उसने तो यहाँ तक िहसूस िकया, जैसे कोई चल रहा है । वे गुरजी के िसवाय और कोई नहीं हो सकते।
िैने किरे की लाइट जलायी और दौडता हुआ पती के पास गया। िैने पूछाः ‘सुना?’ वह
बोलीः ‘हाँ।’
उस सिय सुबह के ठीक चार बजे िे। सनान करके िै धयान िे बैठा तो डे ढ घणटे तक
बैठा रहा। इतना लंबा धयान तो िेरा कभी नहीं लगा। इस घटना के बाद तो ऐसा लगता है िक गुरजी साकात ् बहसवरप है । उनको जो िजस रप िे दे िता है वैसे वे िदिते है ।
िेरा िित पाशािय िवचारधारावाला है । उसने गुरजी का पवचन सुना और बोलाः ‘िुझे तो ये एक बहुत अचछे लेकचरर लगते है ।’
िैने कहाः ‘आज जरर इस पर गुरजी कुछ कहे गे।’ यह सूरत आशि िे िनायी जा रही जनिाषिी के सिय की बात है । हि किा िे बैठे।
गुरजी ने किा के बीच िे ही कहाः ‘कुछ लोगो को िै लैकचरर िदिता हूँ, कुछ को ‘पोफेसर’ िदिता हूँ, कुछ को ‘गुर’ िदिता हूँ और वैसा ही वह िुझे पाता है ।’
िेरे िित का िसर शिष से झुक गया। िफर भी वह नािसतक तो िा ही। उसने हिारे
िनवास पर िजाक िे गुरजी के िलए कुछ कहा, तब िैने कहाः "यह ठीक नहीं है । अबकी बार िान जा, नहीं तो गुर जी तुझे सजा दे गे।"
15 ििनट िे ही उसके घर से फोन आ गया िक "बचचे की तबीयत बहुत िराब है उसे
असपताल िे दाििल करना पड रहा है ।"
तब िेरे िित की सूरत दे िने लायक िी। वह बोलाः "गिती हो गयी। अब िै गुर जी के
िलए कुछ नहीं कहूँगा, िुझे चाहे िवशास हो या न हो।"
अिबारो िे गुर जी की िनंदा िलिनेवाले अजानी लोग नहीं जानते िक जो िहापुरष
भारतीय संसकृ ित को एक नया रप दे रहे है , कई संतो की वािणयो को पुनजीिवत कर रहे है , लोगो के शराब-कबाब छुडवा रहे है , िजनसे सिाज का कियाण हो रहा है उनके ही बारे िे हि हलकी बाते िलि रहे है । यह हिारे दे श के िलए बहुत ही शिज ष नक बात है । ऐसे संतो का तो
िजतना आदर िकया जाये, वह कि है । गुरजी के बारे िे कुछ भी बिान करने के िलए िेरे पास शबद नहीं है ।
(डॉ. सतवीर िसंह छाबडा, बी.बी.ई.एि., आकाशवाणी, इनदौर।)
आपकी क ृपा स े यो ग की अण ुशिक प ैदा हो रही ह ै .... "अनेक पकार की िवकृ ितयाँ िानव के िन पर, सािािजक जीवन पर, संसकार और
संसकृ ित पर आकिण कर रही है । वसतुतः इस सिय संसकृ ित और िवकृ ित के बीच एक
िहासंघषष चल रहा है जो िकसी सरहद के िलए नहीं बििक संसकारो के िलए लडा जा रहा है ।
इसिे संसकृ ित को िजताने का बि है योगशिक। हे गुरदे व! आपकी कृ पा से इस योग की िदवय अणुशिक लािो लोगो िे पैदा हो रही है ... ये संसकृ ित के सैिनक बन रहे है ।
गुरदे व! िै आपसे पािन ष ा करता हूँ िक शासन के अंदर भी धिष और वैरागय के संसकार
उिपनन हो। आपसे आशीवाद ष पाप करने के िलए िै आपके चरणो िे आया हूँ।" (शी अशोकभाई भटट, कानूनिंती, गुजरात राजय)
िुझ े िनवय ष सनी बना िदया ....
"िै िपछले कई वषो से तमबाकू का वयसनी िा और इस दग ष को छोडने के िलए िैने ु ुण
िकतने ही पयत िकये, पर िै िनषफल रहा। जनवरी 1995 िे पूजय बापू जब पकाशा आशि (िहा.) पधारे तो िै भी उनके दशन ष ािष वहाँ पहुँचा और उनसे अनुऱोध िकयाः
"बापू! िवगत 32 वषो से तमबाकू का सेवन कर रहा हूँ। अनेक पयतो के बाद भी इस
दग ष से िै िुक न हो सका। अब आप ही कृ पा कीिजए।’ ु ुण
पूजय बापू ने कहाः ‘लाओ तमबाकू की िडबबी और तीन बार िूककर कहो िक आज से िै
तमबाकू नहीं िाऊँगा।’
िैने पूजय बापू जी के िनदे शानुसार वही िकया और िहान आशयष! उसी िदन से िेरा
तमबाकू िाने का वयसन छूट गया। पूजय बापू की ऐसी कृ पादिष हुई िक वषष पूरा होने पर भी िुझे कभी तमबाकू िाने की तलब नहीं लगी।
िै िकन शबदो िे पूजय बापू का आभार वयक करँ! िेरे पास शबद ही नहीं है । िुझे
आननद है िक इन राषसंत ने बरबाद व नष होते हुए िेरे जीवन को बचाकर िुझे िनवयस ष नी िदया।"
(शी लिन भटवाल, िज.धुिलया, िहाराष)
बाप ू ज ी के सिस ंग स े िवशभर
के लोग लाभािनवत
...
भारतभूिि सदै व से ही ऋिष-िुिनयो तिा संत-िहाििाओं की भूिि रही है , िजनहोने िवश
को शांित एवं अधयािि का संदेश िदया है । आज के युग िे पूजय संत शी आसारािजी अपनी
अित ृ वाणी दारा िदवय आधयािििक संदेश दे रहे है , िजससे न केवल भारत वरन ् िवशभर िे लोग लाभािनवत हो रहे है ।
(शी सुरजीत िसंह बरनाला, राजयपाल, आनधपदे श)
जानरपी
गंग ाजी सवय ं बहकर यहा ँ आ गयी ं ...
उतरांचल राजय का सौभागय है िक इस दे वभूिी िे दे वता सवरप पूजय बापूजी का आशि बन रहा है | आप ऐसा आशि बनाये जैसा कहीं भी न हो | यह हि लोगो का सौभागय है िक अब
पूजय बापूजी की जानरपी गंगाजी सवयं बहकर यहां आ गयी है | अब गंगा जाकर दशन ष करने व सनान करने की उतनी आवशयकता नहीं है , िजतनी संत शी आसारािजी बापू के चरणो िे बैठकर उनके आशीवाद ष लेने की है | -शी िनियानंद सवािीजी,
तिकालीन, िुखयिंती, उतरांचल
गुरजी की तसवीर ने पाण बचा िलये "कुछ ही िदनो पहले िेरा दस ू रा बेटा एि. ए. पास करके नौकरी के िलये बहुत जगह घूिा, बहुत जगह आवेदन-पत भेजा िकनतु उसे नौकरी नहीं ििली | िफर उसने बापूजी से दीका ली | िैने
आशि का कुछ सािान कैसेट, सतसािहिय लाकर उसको दे ते हुए कहा: 'शहर िे जहाँ िंिदर है ,
जहाँ िेले लगते है तिा जहाँ हनुिानजी का पिसद दिकणिुिी िंिदर है वहां सटाल लगाओ |' बेटे ने सटाल लगाना शुर िकया | ऐसे ही एक सटाल पर जलगांव के एक पिसद वयापारी अगवालजी आये, बापूजी की कुछ कैसेट िरीदीं और 'ईशर की ओर' नािक पुसतक भी साि िे ले गये,
पुसतक पढी और कैसेट सुनी | दस ू रे िदन वे िफर आये और कुछ सतसािहिय िरीद कर ले गये, वे पान के िोक िवकता है | उनको पान िाने की आदत है | पुसतक पढकर उनहे लगा: 'िै पान
छोड दँ ू |' उनकी दक ु ान पर एक आदिी आया | पांचसौ रपयो का सािान िरीदा और उनका फोन नमबर ले गया | एक घंटे के बाद उसने दक ु ान पर फोन िकया: 'सेठ अगवालजी ! िुझे आपका िून करने का काि सौपा गया िा | काफी पैसे (सुपारी) भी िदये गये िे और िै तैयार भी हो
गया िा, पर जब िे आपकी दक ु ान पर पहुंचा तो परि पूजय संत शी आसारािजी बापू के िचत
पर िेरी नजर पडी | िुझे ऐसा लगा िानो, साकात बापू बैठे हो और िुझे नेक इनसान बनने की पेरणा दे रहे हो ! गुरजी की तसवीर ने (तसवीर के रप िे साकात गुरदे व ने आकर) आपके पाण बचा िलये |' अदभुत चििकार है ! िुमबई की पाटी ने उसको पैसे भी िदये िे और वह आया भी
िा िून करने के इरादे से, परनतु जाको रािे सांइयाँ.... िचत के दार भी अपनी कृ पा बरसाने वाले ऐसे गुरदे व के पियक दशन ष करने के िलये वह यहाँ भी आया है |" -बालकृ षण अगवाल, जलगांव, िहाराष
सदगुर िशषय का साि कभी नहीं छोडते "एक रात िै दक ु ान से सकूटर दारा अपने घर जा रहा िा | सकूटर की िडककी िे काफी रपये रिे हुए िे | जयो ही घर के पास पहुंचा तो गली िे तीन बदिाश ििले | उनहोने िुझे घेर िलया और िपसतौल िदिायी | सकूटर रकवाकर िेरे िसर पर तिंचे का बट िार िदया और धकके िार कर
िुझे एक तरफ िगरा िदया | उनहोने सोचा होगा िक िै अकेला हूं, पर िशषय जब सदगुर से िंत
लेता है , शदा-िवशास रिकर उसका जप करता है तब सदगुर उसका साि नहीं छोडते | िैने सोचा "िडककी िे बहुत रपये है और ये बदिाश तो सकूटर ले जा रहे है | िैने गुरदे व से पािन ष ा की | इतने िे वे तीनो बदिाश सकूटर छोडकर िैला ले भागे | घर जाकर िोला होगा तो सबजी और
िाली िटििन दे िकर िसर कूटा, पता नहीं पर बडा िजा आया होगा | िेरे पैसे बच गये...उनका सबजी का िचष बच गया |"
-गोकुलचनद गोयल, आगरा
गुरकृ पा से अंधापन दरू हुआ "िुझे गलुकोिा हो गया िा | लगभग पैतीस साल से यह तकलीि िी | करीब छः साल तक तो िै अंधा रहा | कोलकाता, चेननई आिद सब जगहो पर गया, शंकर नेतालय िे भी गया िकनतु वहां भी िनराशा हाि लगी | कोलकाता के सबसे बडे नेत-िवशेषज के पास गया | उसने भी िना कर िदया और कहा | 'धरती पर ऐसा कोई इनसान नहीं जो तुमहे ठीक कर सके |' ...लेिकन सूरत आशि िे िुझे गुरदे व से िंत ििला | वह िंत िैने िूब
शदा-िवशासपूवक ष जपा कयोिक सकात
बहसवरप गुरदे व से वह िंत ििला िा | करीब छः-सात िहीने ही जप हुआ िा िक िुझे िोडािोडा िदिायी दे ने लगा | डॉकटर कहते िे िक तुिको भांित हो गयी है , पर िुझे तो अब भी
अचछी तरह िदिता है | एक बार एक अनय भंयकर दघ ष ना से भी गुरदे व ने िुझे बचाया िा | ु ट ऐसे गुरदे व का ॠण हि जनिो-जनिो तक नहीं चुका सकते |" -शंकरलाल िहे शरी, कोलकाता
और डकैत घबराकर भाग गये "१४ जुलाई '९९ को करीब साढे तीन बजे िेरे िकान िे छः डकैत घुस आये और उस सिय
दभ ु ागषय से बाहर का दरवाजा िुला हुआ िा | दो डकैत बाहर िारित चालू रिकर िडे िे | एक
डकैत ने धकका दे कर िेरी िाँ का िुह ँ बंद कर िदया और अलिारी की चाबी िाँगने लगा | इस घटना के दौरान िै दक ु ान पर िा | िेरी पती को भी डकैत धिकाने लगे और आवाज न करने को कहा | िेरी पती ने पूजय बापूजी के िचत के सािने हाि जोडकर पािन ष ा की
'अब आप ही
रका करो ...' इतना ही कहा तो आशयष ! आशयष ! परि आशयष !! वे सब डकैत घबराकर भागने लगे | उनकी हडबडाहट दे िकर ऐसा लग रहा िा िानो उनहे कुछ िदिायी नहीं दे रहा िा | वे
भाग गये | िेरा पिरवार गुरदे व का ॠणी है | बापूजी के आशीवाद ष से सब सकुशल है | हिने १५ नवमबर '९८ को वाराणसी िे िंतदीका ली िी |" -िनोहरलाल तलरे जा,
४, झुलेलाल नगर, िशवाजी नगर, वाराणसी
िंत दारा ित ृ दे ह िे पाण-संचार "िै शी योग वेदानत सेवा सििित, आिेट से जीप दारा रवाना हुआ िा | ११ जुलाई १९९४ को
िधयानह बारह बजे हिारी जीप िकसी तकनीकी तुिट के कारण िनयंतण से बाहर होकर तीन
पििटयाँ िा गयी | िेरा पूरा शरीर जीप के नीचे दब गया | िकसी तरह िुझे बाहर िनकाला गया | एक तो दब ु ला पतला शरीर और ऊपर से पूरी जीप का वजन ऊपर आ जाने के कारण िेरे शरीर
के पियेक िहससे िे असह ददष होने लगा | िुझे पहले तो केसिरयाजी असपताल िे दाििल कराया गया | जयो-जयो उपचार िकया गया, कष बढता ही गया कयोिक चोट बाहर नहीं, शरीर के भीतरी िहससो िे लगी िी और भीतर तक डॉकटरो का कोई उपचार काि नहीं कर रहा िा | जीप के
नीचे दबने से िेरा सीना व पेट िवशेष पभािवत हुए िे और हाि-पैर िे काँच के टु कडे घुस गये िे | ददष के िारे िुझे साँस लेने िे भी तकलीफ हो रही िी | ऑकसीजन िदये जाने के बाद भी
दि घुट रहा िा और ििृयु की घिडयाँ नजदीक िदिायी पडने लगीं | िै िरणासनन िसिित िे
पहुँच गया | िेरा ििृयु-पिाणपत बनाने की तैयािरयाँ िक जाने लगीं व िुझे घर ले जाने को कहा गया | इसके पूवष िेरा िित पूजय बापू से िोन पर िेरी िसिित के समबनध िे बात कर चुका िा | पाणीिात के परि िहतैषी, दयालु सवभाव के संत पूजय बापू ने उसे एक गुप िंत पदान करते
हुए कहा िा िक 'पानी िे िनहारते हुए इस िंत का एक सौ आठ बार (एक िाला) जप करके वह पानी िनोज को एवं दघ ष ना िे घायल अनय लोगो को भी िपला दे ना |' जैसे ही वह अिभिंितत ु ट जल िेरे िुह ँ िे डाला गया, िेरे शरीर िे हलचल होने के साि ही विन हुआ | इस अदभुत
चििकार से िविसित होकर डॉकटरो ने िुझे तुरंत ही िवशेष िशीनो के नीचे ले जाकर िलटाया | गहन िचिकिसकीय परीकण के बाद डॉकटरो को पता चला िक जीप के नीचे दबने से िेरा पूरा
िून काला पड गया िा तिा नाडी-चालन (पिस), हदयगित व रक पवाह भी बंद हो चुके िे | िेरे शरीर का समपूणष रक बदल िदया गया तिा आपरे शन भी हुआ | उसके ७२ घंटे बाद िुझे होश
आया | बेहोशी िे िुझे केवल इतना ही याद िा की िेरे भीतर पूजय बापू दारा पदत गुरिंत का जप चल रहा है | होश िे आने पर डॉकटरो ने पूछा : 'तुि आपरे शन के सिय 'बापू...बापू...' पुकार रहे िे | ये 'बापू' कौन है ? िैने बताया :'वे िेरे गुरदे व पातः सिरणीय परि पूजय संत शी
असारािजी बापू है |' डॉकटरो ने पुनः िुझसे पश िकया : 'कया तुि कोई वयायाि करते हो ?' िैने
कहा :'िै अपने गुरदे व दारा िसिायी गयी िविध से आसन व पाणायाि करता हूँ |' वे बोले : 'इसील ििये तुमहारे इस दब ु ले-पतले शरीर ने यह सब सहन कर िलया और तुि िरकर भी पुनः िजनदा हो उठे दस ू रा कोई होता तो तुरंत घटनासिल पर ही उसकी हििडयाँ बाहर िनकल जातीं और वह िर जाता |' िेरे शरीर िे आठ-आठ निलयाँ लगी हुई िीं | िकसीसे िून चढ रहा िा तो िकसी से
कृ िति ऑकसीजन िदया जा रहा िा | यदिप िेरे शरीर के कुछ िहससो िे अभी-भी काँच के टु कडे िौजूद है लेिकन गुरकृ पा से आज िे पूणष सवसि होकर अपना वयवसाय व गुरसेवा दोनो कायष
कर रह हूँ | िेरा जीवन तो गुरदे व का ही िदया हुआ है | इन िंतदषा िहिषष ने उस िदन िेरे िित
को िंत न िदया होता तो िेरा पुनजीवन तो समभव नहीं िा | पूजय बापू िानव-दे ह िे िदिते हुए भी अित असाधारण िहापुरष है | टे िलिोन पर िदये हुए उनके एक िंत से ही िेरे ित ृ शरीर िे पुनः पाणो का संचार हो गया तो िजन पर बापू की पियक दिष पडती होगी वे लोग िकतने भागयशाली होते होगे ! ऐसे दयालु जीवनदाता सदगुर के शीचरणो िे कोिट-कोिट दं डवत पणाि..."
-िनोज कुिार सोनी, जयोित टे लसष, लकिी बाजार, आिेट, राजसिान
सदगुरदे व की कृ पा से नेतजयोित वापस ििली "िेरी दािहनी आँि से कि िदिायी दे ता िा तिा उसिे तकलीि भी िी | धयानयोग िशिवर, िदिली िे पूजय गुरदे व िेवा बाँट रहे िे, तब एक िेवा िेरी दािहनी आँि पर आ लगा | आँि से पानी िनकलने लगा |... पर आशयष ! दस ू रे ही िदन से आँि की तकलीफ ििट गयी और अचछी तरह िदिायी दे ने लगा |" -राजकली दे वी,
असैनापुर, लालगंज अजारा, िज. पतापगढ, उतर पदे श
बडदादा की ििटटी व जल से जीवनदान "अगसत '९८ िे िुझे िलेिरया हुआ | उसके बाद पीिलया हो गया | िेरे बडे भाई ने आशि से
पकािशत 'आरोगयिनिध' पुसतक िे से पीिलया का िंत पढकर पीिलया तो उतार िदया परं तु कुछ ही िदनो बाद अंगेजी दवाओं के 'िरएकन' से दोनो िकडिनयाँ 'फेल' (िनिषकय) हो गई | िेरा 'हाटष ' (हदय) और 'लीवर' (यकृ त) भी 'फेल' होने लगे | डॉकटरो ने तो कह िदया 'यह लडका बच नहीं सकता |' िफर िुझे गोिदया से नागपुर हॉिसपटल िे ले जाया गया लेिकन वहाँ भी डॉकटरो ने जवाब दे िदया िक अब कुछ नहीं हो सकता | िेरे भाई िुझे वहीं छोडकर सूरत आशि आये,
वैदजी से ििले और बडदादा की पिरकिा करके पािन ष ा की तिा वहाँ की ििटटी और जल िलया | ८ तारीि को डॉकटर िेरी िकडनी बदलने वाले िे | जब िेरे भाई बडदादा को पािन ष ा कर रहे िे, तभी से िुझे आराि ििलना शुर हो गया िा | भाई ने ७ तारीि को आकर िुझे बडदादा िक
ििटटी लगाई और जल िपलाया तो िेरी दोनो िकडनीयाँ सवसि हो गयी | िुझे जीवनदान ििल गया | अब िै िबिकुल सवसि हूँ |" -पवीण पटे ल,
गोिदया, िहाराष
पूजय बापू ने फेका कृ पा-पसाद "कुछ वषष पूवष पूजय बापू राजकोट आशि िे पधारे िे | िुझे उन िदनो िनकट से दशन ष करने का सौभागय ििला | उस सिय िुझे छाती िे ' एनजायना पेकिटोिरस' के कारण ददष रहता िा |
सिसंग पूरा होने के बाद कुछ लोग पूजय बापू के पास एक-एक करके जा रहे िे | िै कुछ फलफूल नहीं लाया िा इसिलए शदा के फूल िलये बैठा िा | पूजय बापू कृ पा-पसाद फेक रहे िे िक
इतने िै एक चीकू िेरी छाती पर आ लगा और छाती का वह ददष हिेशा के िलए ििट गया |" -अरिवंदभाई वसावडा, राजकोट
एक छोटी िैली बनी अकयपात "सन १९९२ िे रतलाि (ि.प.) के पास सैलाना के आिदवासी िवसतार िे भंडारे का आयोजन िा | भंडारे िे सेवाएँ दे ने बहुत-से साधक आये हुए िे | आशिवासी भाई भी पहुँचे िे | एक िदन का ही आयोजन िा और सिसंग-कायक ष ि भी िा | उस भंडारे िे गरीबो के िलए भोजन के अलावा बतन ष , कपडे , अनाज और दिकणा (पैसे) बाँटने की भी वयवसिा की गयी िी | िेरे िहससे पैसे
बाँटने की सेवा िी | िैने पाँच रपयोवाले सौ-सौ नोटो के पचीस बंडल िगनकर िैली िे रिे िे | िुझे आदे श िदया गया िा : 'आठ सेवाधारी िनयुक कर लो | वे लोग पाँच रपये के नोट बाँटते
जायेगे |' िैने आठ सवयंसेवको को पहली बार आठ बंडल दे िदये | िफर पंदह-बीस ििनट के बाद
िैने दस ू री बार आठो को एक-एक बंडल िदया | िफर तीसरी बार आठो को एक-एक बंडल िदया | कुल २४ बंडल गये | अब दस ू री पंिक भोजन के िलए िबठायी गयी | िैने आठो सवयंसेवको को
पहली की भाँित तीन बार एक-एक बंडल बाँटने के िलए िदया | कुल ४८ बंडल गये | भंडारा पूरा होने के बाद िैने सोचा : चलो, अब िहसाब कर ले | िै िगनने बैठा | िेरे पास ६ बंडल बचे िे |
यह कैसे ? िै दं ग रह गया ! िैने पैसे बाँटनेवालो से पूछा तो उनहोने बताया िक कुल ४८ बंडल बाँटे गये िे | िै आशि आया तो वयवसिापक ने कहा : िैने तो आपको २५ बंडल िदये िे |' सबको आशयष हो रहा िा िक बँटे ४८ बंडल और लेकर चले िे २५ बंडल | २५ िे से ४८ बँटे
और ६ बच गये ! गुरदे व का आशीवाद ष दे ििये िक एक छोटी-सी िैली अकय पात बन गयी !" -ईशरभाई नायक, अिदावाद आशि
बेटी ने िनौती िानी और गुरकृ पा हुई "िेरी बेटी को शादी िकये आठ साल हो गये िे | पहली बार जब वह गभव ष ती हुई तब बचचा पेट िे ही िर गया | दस ू री बार बचची जनिी, पर छः िहीने िे वह भी चल बसी | िफर िेरी पती ने बेटी से कहा : 'अगर तू संकिप करे िक जब तीसरी बार पसूती होगी तब तुि बालक की जीभ
पर बापूजी के बताने के िुतािबक ‘ॐ’ िलिोगी तो तेरा बालक जीिवत रहे गा, ऐसा िुझे िवशास है कयोिक ॐकार िंत िे परिानंदसवरप पभु िवराजिान है |' िेरी बेटी ने इस पकार िनौती िानी और सिय पाकर वह गभव ष ती हुई | सोनोगािी करवायी गयी तो डॉकटरो ने बताया : 'गभष िे
बचची है और उसके िदिाग िे पानी भरा हुआ है | वह िजंदा नहीं रह सकेगी | गभप ष ात करवा दो | िेरी बेटी ने अपनी िाँ से सलाह की | उसकी िाँ ने कहा : ' गभप ष ात का िहापाप नहीं करवाना
है | जो होगा, दे िा जायेगा | गुरदे व कृ पा करे गे |' जब पसूती हुई तो िबिकुल पाकृ ितक ढं ग से हुई
और उस बचची की जीभ पर शहद एवं ििशी से ॐ िलिा गया | आज वह िबिकुल ठीक है | जब उसकी डॉकटरी जाँच करवायी गयी तो डॉकटर आशयष िे पड गये ! सोनोगािी िे जो बीिािरयाँ
िदि रही िीं वे कहाँ चली गयीं ? िदिाग का पानी कहाँ चला गया ? िहनदज ु ा हॉिसपटलवाले यह किरशिा दे िकर दं ग रह गये ! अब घर िे जब कोई दस ू री कोई कैसेट चलती है तो वह बचची
इशारा करके कहती है : 'ॐवाली कैसेट चलाओ |' िपछली पूनि को हि िुंबई से 'टाटा सुिो' िे आ रहे िे | बाढ के पानी के कारण रासता बंद िा | हि सोच िे पड गये िक पूनि का िनयि
टू टे गा | हिने गुरदे व का सिरण िकया | इतने िे हिारे डाइवर ने हिसे पूछा :'जाने दँ ू ?' हिने भी गुरदे व का सिरण करके कहा : 'जाने दो और 'हिर हिर ॐ...' कीतन ष की कैसेट लगा दो |'
गाडी आगे चली | इतना पानी िक हि जहाँ बैठे िे वहाँ तक पानी आ गया | िफर भी हि गुरदे व के पास सकुशल पहुँच गये और उनके दशन ष िकये|" -िुरारीलाल अगवाल, सांताकूज, िुब ं ई
और गुरदे व की कृ पा बरसी "जबसे सूरत आशि की सिापना हुई तबसे िै गुरदे व के दशन ष करते आ रहा हूँ, उनकी
अित ृ वाणी सुनता आ रहा हूँ | िुझे पूजयशी से िंतदीका भी ििली है | पारबधवश एक िदन िेरे साि एक भयंकर दघ ष ना घटी | डॉकटर कहते िे: आपका एक हाि अब काि नहीं करे गा |' िै ु ट
अपना िानिसक जप िनोबल से करता रहा | अब हाि िबिकुल ठीक है | उससे िै ७० िक.गा. वजन उठा सकता हूँ | िेरी सिसया िी िक शादी होने के बाद िुझे कोई संतान नहीं िी | डॉकटर कहते िे िक संतान नहीं हो सकती | हि लोगो ने गुरकृ पा एवं गुरिंत का सहारा िलया,
धयानयोग िशिवर िे आये और गुरदे व की कृ पा बरसी | अब हिारी तीन संताने है : दो पुितयाँ
और एक पुत | गुरदे व ने ही बडी बेटी का नाि गोपी और बेटे का नाि हिरिकशन रिा है | जय हो सदगुरदे व की..."
-हँ सिुि कांितलाल िोदी, ५७, 'अपना घर' सोसायटी, संदेर रोड, सूरत
कैसेट-शवण से भिक का सागर िहलोरे लेने लगा "िै हर साल गििय ष ो िे कभी बदीनाि तो कभी केदारनाि तो कभी गंगोती आिद तीिो िे जाता रहता िा | हिषकेश िे एक दक ृ वाणी की ु ान के पास िडे रहने पर िुझे पूजय गुरदे व की अित
कैसेटे 'िोक का िागष', 'िौत की िौत', 'तीन बाते' आिद दे िने-सुनने को ििलीं तो िैने ये कैसेटे िरीद लीं | घर पहुँचकर कैसेटे सुनने के बाद हदय िे भिक का सागर िहलोरे लेने लगा | िुझे ऐसा लगा िानो, कोई िुझे बुला रहा हो | दक ु ान जाते सिय ऐसा आभास हुआ िक 'कोई पवष
आनेवाला है और िुझे अिदावाद जाना होगा;' उसी िदन अिदावाद आशि से िेरे पत का जवाब
आया िक 'िदनांक १२ को गुरपूनि का पवष है | आप गुरदे व के दशन ष कर सकते है | हि सपिरवार आशि पहुँचे | दशन ष करके धनय हुए | दीका पाकर कृ तािष हुए | अब तो हर िहीने जब तक
गुरदे व के दशन ष नहीं करता, तब तक िुझे ऐसा लगता है िक िैने कुछ िो िदया है | दीका के बाद साधन-भजन बढ रहा है ... भिक बढ रही है | पहले संसार िे सफलता-िवफलता की जो चोटे
लगती िी, अब उनका पभाव कि हुआ है | िवषय-िवकारो का पभाव कि हुआ है | जाने जीव तब जागा हिर पद रिच िवषय िवलास िवरागा... िेरे जीवन िे संत तुलसीदासजी के इन वचनो का सूयोदय हो रहा है |"
-िशवकुिार तुलसयान, गोरिपुर, उतर पदे श
गुरदे व ने भेजा अकयपात
"हिे पचारयाता के दौरान गुरकृ पा का जो अदभुत अनुभव हुआ वह अवणन ष ीय है | याता की
शुरआत से पहले िदनांक : ८-११-९९ को हि पूजय गुरदे व के आशीवाद ष लेने गये | गुरदे व ने
कायक ष ि के िवषय िे पूछा और कहा "पंचेड आशि (रतलाि) िे भंडारा िा | उसिे बहुत सािान बच गया है | गाडी भेजकर िँगवा लेना... गरीबो िे बाँटना | हि झाबुआ िजले के आस-पास के गरीब आिदवासी इलाको िे जानेवाले िे | वहाँ से रतलाि के िलए गाडी भेजी | िगनकर सािान
भरा गया | दो िदन चले उतना सािान िा | एक िदन िे दो भंडारे होते िे | अतः चार भंडारे का
सािान िा | सबने िुिले हािो बतन ष , कपडे , सािडयाँ धोती, आिद सािान छः िदनो तक बाँटा िफर भी सािान बचा रहा | सबको आशयष हुआ ! हि लोग सािान िफर से िगनने लगे परं तु गुरदे व
की लीला के िवषय िे कया कहे ? केवल दो िदन चले उतना सािान छः िदनो तक िुिले हािो बाँटा, िफर भी अंत िे तीन बोरे बतन ष बच गये, िानो गुरदे व ने अकयपात भेजा हो ! एक िदन शाि को भंडारा पूरा हुआ तब दे िा िक एक पतीला चावल बच गया है | करीब १००-१२५ लोग िा सके उतने चावल िे | हिने सोचा : 'चावल गाँव िे बांट दे ते है |'... परं तु गुरदे व की लीला
दे िो ! एक गाँव के बदले पाँच गाँवो िे बाँटे िफर भी चावल बचे रहे | आििर राित िे ९ बजे के बाद सेवाधािरयो ने िककर गुरदे व से पािन ष ा की िक 'गुरदे व ! अब जंगल का िवसतार है ... हि पर कृ पा करो |'... और चावल ििि हुए | िफर सेवाधारी िनवास पर पहुँचे |" -संत शी आसारािजी भकिंडल, कतारगाि, सूरत
सवपन िे िदये हुए वरदान से पुतपािप "िेरे गहसि जीवन िे एक-एक करके तीन कनयाएँ जनिी | पुतपािप के िलए िेरी धिप ष ती ने
गुरदे व से आशीवाद ष पाप िकया िा | चौिी पसूित होने के पहले जब उसने वलसाड िे सोनोगािी करवायी तो िरपोटष िे लडकी बताया गया | यह सुनकर हि िनराश हो गये | एक रात पती को सवपन िे गुरदे व ने दशन ष िदये और कहा : 'बेटी िचंता ित कर | घबराना ित धीरज रि |
लडका ही होगा |' हिने सूरत आशि िे बडदादा की पिरकिा करके िनौती िानी िी, वह भी
िलीभूत हुई और गुरदे व का बहवाकय भी सिय सािबत हुआ, जब पसूित होने पर लडका हुआ | सभी गुरदे व की जय-जयकार करने लगे |" -सुनील कुिार राधेशयाि चौरिसया,
दीपकवाडी, िकिला पारडी, िज. वलसाड
'शी आसारािायण' के पाठ से जीवनदान "िेरा दस वषीय पुत एक रात अचानक बीिार हो गया | साँस भी िुिशकल से ले रहा िा | जब उसे हॉिसपटल िे भती िकया तब डॉकटर बोले | 'बचचा गंभीर हालत िे है | ऑपरे शन करना पडे गा |' िै बचचे को हॉिसपटल िे ही छोडकर पैसे लेने के िलए घर गया और घर िे सभी को कहा : “आप लोग 'शी आसारािायण' का पाठ शुर करो |” पाठ होने लगा | िोडी दे र बाद िै हॉिसपटल
पहुँचा | वहाँ दे िा तो बचचा हँ स-िेल रहा िा | यह दे ि िेरी और घरवालो की िुशी का िठकाना
न रहा ! यह सब बापूजी की असीि कृ पा, गुर-गोिवनद की कृ पा और शी आसारािायण-पाठ का फल है |"
-सुनील चांडक,
अिरावती, िहाराष
गुरवाणी पर िवशास से अवणीय लाभ "शादी होने पर एक पुती के बाद सात साल तक कोई संतान नहीं हुई | हिारे िन िे पुतपािप की इचछा िी | १९९९ के िशिवर िे हि संतानपािप का आशीवाद ष लेनेवालो की पंिक िे बैठे | बापूजी
आशीवाद ष दे ने के िलए साधको के बीच आये तो कुछ साधक नासिझी से कुछ ऐसे पश कर बैठे, जो उनहे नहीं करने चािहए िे | गुरदे व नाराज होकर यह कहकर चले गये िक 'तुिको संतवाणी
पर िवशास नहीं है तो तुि लोग यहाँ कयो आये ? तुमहे डॉकटर के पास जाना चािहए िा |' िफर
गुरदे व हिारे पास नहीं आये | सभी पािन ष ा करते रहे , पर गुरदे व वयासपीठ से बोले : 'दब ु ारा तीन िशिवर भरना |' िै िन िे सोच रहा िा िक कुछ साधको के कारण िुझे आशीवाद ष नहीं ििल
पाया परं तु 'वजादिप कठोरािण िद ृ िुन कुसुिादिप...' बाहर से वज से भी कठोर िदिने वाले सदगुर भीतर से फूल से भी कोिल होते है | तुरंत गुरदे व िवनोद करते हुए बोले : 'दे िो ! ये लोग
संतानपािप का आशीवाद ष लेने आये है | कैसे ठनठनपाल-से बैठे है ! अब जाओ... झूला-झुनझुना लेकर घर जाओ |' िैने और िेरी पती ने आपस िे िवचार िकया : 'दयालु गुरदे व ने आििर
आशीवाद ष दे ही िदया | अब गुरदे व ने कहा है िक झूला-झुनझुना ले जाओ |' ... तो िैने गुरवचन िानकर रे लवे सटे शन से एक झुनझुना िरीद िलया और गवािलयर आकर गुरदे व के िचत के पास रि िदया | िुझे वहाँ से आने के १५ िदन बाद डॉकटर दारा िालूि हुआ िक पती गभव ष ती है | िैने गुरदे व को िन-ही-िन पणाि िकया | इस बीच डॉकटरो ने सलाह दी िक 'लडका है या
लडकी, इसकी जाँच करा लो |' िैने बडे िवशास से कहा िक 'लडका ही होगा | अगर लडकी भी हुई तो िुझे कोई आपित नहीं है | िुझे गभप ष ात का पाप अपने िसर पर नहीं लेना है |' नौ िाह तक
िेरी पती भी सवसि रही | हिरदार िशिवर िे भी हि लोग गये | सिय आने पर गुरदे व दारा बताये गये इलाज के िुतािबक गाय के गोबर का रस पती को िदया और िदनांक २७ अकूबर १९९९ को एक सवसि बालक का जनि हुआ |" -राजेनद कुिार वाजपेयी, अचन ष ा वाजपेयी, बलवंत नगर, ढाढीपुर, िुरारा, गवािलयर
और सोना ििल गया "हिारे संयुक पिरवार िे साठ तोला सोना चोरी हो गया िा | सिसंगी होने के कारण हिे दःुि
तो नहीं हुआ िफर भी िोडी-बहुत िचनता अवशय हुई | आशि के एक साधक ने हिसे कहा | 'आप लोग 'शी आसारािायण ' के १०८ पाठ करो और संकिप करो िक हिारा सोना हिे जरर ििलेगा
|' यिुनापार, िदिली िे गुरदे व का आगिन हुआ | हि शाि को गुरदे व के दशन ष करने गये | हिने कुछ कहा नहीं कयोिक गुरदे व अंतयाि ष ी है | उनहोने हिको पसाद िदया | उसी रात घर पर फोन आया िक 'आपका सोना ििल गया है | चोर लिनऊ िे पकडा गया है |' हिे आशयष हुआ ! 'शी आसारािायण' के १०८ पाठ पूरे भी नहीं हुए िे और सोना ििल गया |' -लीना बुटानी,
रानीबाग, िदिली
सेवफल के दो टु कडो से दो संताने "िैने सन १९९१ िे चेटीचंड िशिवर, अिदावाद िे पूजय बापूजी से िंतदीका ली िी | िेरी शादी के १० वषष तक िुिे कोई संतान नहीं हुई | बहुत इलाज करवाये लेिकन सभी डॉकटरो ने बताया िक
बालक होने की कोई संभावना नहीं है | तब िैने पूजय बापूजी के पूनि दशन ष का वत िलया और बाँसवाडा िे पूनि दशन ष के िलए गया | पूजय बापूजी सबको पसाद दे रहे िे | िैने िन िे सोचा | 'कया िै इतना पापी हूँ िक बापूजी िेरी तरफ दे िते तक नहीं ?' इतने िे पूजय बापूजी िक दिष िुझ पर पडी और उनहोने िुझे दो ििनट तक दे िा | िफर उनहोने एक सेवफल लेकर िुझ पर
फेका जो िेरे दाये कंधे पर लगकर दो टु कडो िे बँट गया | घर जाकर िैने उस सेवफल के दोनो भाग अपनी पती को ििला िदये | पूजयशी का कृ पापूणष पसाद िाने से िेरी पती गभव ष ती हो गयी | िनरीकण कराने पर पता चला िक उसको दो िसर वाला बालक उिपनन होगा | डॉकटरो ने बताया " 'उसका 'िसजेिरयन' करना पडे गा अनयिा आपकी पती के बचने की समभावना नहीं है |
'िसजेिरयन िे लगभग बीस हजार रपयो का िचष आयेगा |' िैने पूजय बापूजी से पािन ष ा की "है
बापूजी ! आपने ही फल िदया िा | अब आप ही इस संकट का िनवारण कीिजये |' िफर िैने बड बादशाह के सािने भी पािन ष ा की : 'जब िै असपताल पहुँचँू तो िेरी पती की पसूती सकुशल हो जाय... |' उसके बाद जब िै असपताल पहूँचा तो िेरी पती एक पुत और एक पुती को जनि दे चुकी िी | पूजयशी के दारा िदये गये फल से िुझे एक की जगह दो संतानो की पािप हुई |" -िुकेशभाई सोलंकी,
शारदा िंिदर सकूल के पीछे , बावन चाल, वडोदरा
साइिकल से गुरधाि जाने पर िराब टाँग ठीक हो गयी "िेरी बाँयी टाँग घुटने से उपर पतली हो गयी िी | 'ऑल इिणडया िेिडकल इनसटीटयूट, िदिली' िे िै छः िदन तक रहा | वहाँ जाँच के बाद बतलाया गया िक 'तुमहारी रीढ की हिडी के पास कुछ
नसे िर गयी है िजससे यह टाँग पतली हो गयी है | यह ठीक तो हो ही नहीं सकती | हि तुमहे
िवटाििन 'ई' के कैपसूल दे रहे है | तुि इनहे िाते रहना | इससे टांग और जयादा पतली नहीं होगी |' िैने एक साल तक कैपसूल िाये | उसके बाद २२ जून, १९९७ को िुजफ़िरनगर िे िैने गुरजी से िंतदीका ली और दवाई िाना बंद कर दी | जब एक साधक भाई राहुल गुपा ने कहा िक
सहारनपुर से साइिकल दारा उतरायण िशिवर, अिदावाद जाने का कायक ष ि बन रहा है , तब िैने
टाँग के बारे िे सोचे िबना साइिकल याता िे भाग लेने के िलए अपनी सहिित दे दी | जब िेरे घर पर पता चला िक िैने साइिकल से गुरधाि, अिदावाद जाने का िवचार बनाया है , अतः तुि ११५० िक.िी. तक साइिकल नहीं चला पाओगे |' ... लेिकन िैने कहा : 'िै साइिकल से ही
गुरधाि जाऊँगा, चाहे िकतनी भी दरूी कयो न हो ?' ... और हि आठ साधक भाई सहारनपूर से २६ िदसमबर '९७ को साइिकलो से रवाना हुए | िागष िे चढाई पर िुझे जब भी कोइ िदककत
होती तो ऐसा लगता जैसे िेरी साइिकल को कोई पीछे से धकेल रहा है | िै िुडकर पीछे दे िता तो कोई िदिायी नहीं पडता | ९ जनवरी को जब हि अिदावाद गुरआशि िे पहूँचे और िैने सुबह अपनी टाँग दे िी तो िै दं ग रह गये ! जो टाँग पतली हो गयी िी और डॉकटरो ने उसे
ठीक होने से िना कर िदया िा वह टाँग िबिकुल ठीक हो गयी िी | इस कृ पा को दे िकर िै चिकत रह गया ! िेरे सािी भी दं ग रह गये ! यह सब गुरकृ पा के पसाद का चििकार िा | िेरे आठो सािी, िेरी पती तिा ऑल इिणडया िेिडकल इनसटीटयूट, िदिली दारा जाँच के पिाणपत इस बात के साकी है |" -िनरं कार अगवाल, िवषणुपुरी,
अदभुत रही िौनिंिदर की साधना ! "परि पूजय सदगुरदे व की कृ पा से िुझे िदनांक १८ से २४ िई १९९९ तक अिदावाद आशि के िौनिंिदर िे साधना करने का सुअवसर ििला | िौनिंिदर िे साधना के पाँचवे िदन यानी २२
िई की राित को लगभग २ बजे नींद िे ही िुझे एक झटका लगा | लेटे रहने िक िसिित िे ही िुझे िहसूस हुआ िक कोई अदशय शिक िुझे ऊपर... बहुत ऊपर उडये ले जा रही है | ऊपर उडते हुए जब िैने नीचे झाँककर दे िा तो अपने शरीर को उसी िौनिंिदर िे िचत लेटा हुआ, बेिबर
सोता हुआ पाया | ऊपर जहाँ िुझे ले जाया गया वहाँ अलग ही छटा िी... अजीब और अवणीय ! आकाश को भी भेदकर िुझे ऐसे सिान पर पहुँचाया गया िा जहाँ चारो तरफ कोहरा-ही-कोहरा
िा, जैसे, शीशे की छत पर ओस फैली हो ! इतने िे दे िता हूँ िक एक सभा लगी है , िबना शरीर
की, केवल आकृ ितयो की | जैसे रे िाओं से िनुषयरपी आकृ ितयाँ बनी हो | यह सब कया चल रहा िा... सिझ से परे िा | कुछ पल के बाद वे आकृ ितयाँ सपष होने लगी | दे वी-दे वताओं के पुंज के िधय शीषष िे एक उचच आसन पर साकात बापूजी शंकर भगवान बने हुए कैलास पवत ष पर
िवराजिान िे और दे वी-दे वता कतार िे हाि बाँधे िडे िे | िै िूक-सा होकर अपलक नेतो से
उनहे दे िता ही रहा, िफर िंतिुगध हो उनके चरणो िै िगर पडा | पातः के ४ बजे िे | अहा ! िन और शरीर हिका-िुिका लग रहा िा ! यही िसिित २४ िई की िधयराित िे भी दोहरायी गयी | दस ू रे िदन सुबह पता चला िक आज तो बाहर िनकलने का िदन है यानी रिववार २५ िई की
सुबह | बाहर िनकलने पर भावभरा हदय, गदगद कंठ और आिो िे आँसू ! यो लग रहा िा िक जैसे िनजधाि से बेघर िकया जा रहा हूँ | धनय है वह भूिि, िौनिंिदर िे साधना की वह
वयवसिा, जहां से परि आनंद के सागर िे डू बने की कुंजी ििलती है ! जी करता है , भगवान ऐसा अवसर िफर से लाये िजससे िक उसी िौनिंिदर िे पुनः आंतिरक आनंद का रसपान कर पाऊँ |" -इनदनारायण शाह,
१०३, रतनदीप-२, िनराला नगर, कानपुर
असाधय रोग से िुिक "सन १९९४ िे िेरी पुती िहरल को शरद पूिणि ष ा के िदन बुिार आया | डॉकटरो को िदिाया तो
िकसीने िलेिरया कहकर दवाइयाँ दी तो िकसीने टायफायड कहकर इलाज शुर िकया तो िकसीने टायफायड और िलेिरया दोनो कहा | दवाई की एक िुराक लेने से शरीर नीला पड गया और सूज गया | शरीर िे िून की किी से उसे छः बोतले िून चढाया गया | इं जेकन दे ने से पूरे शरीर को लकवा िार गया | पीठ के पीछे शैयावण जैसा हो गया | पीठ और पैर का एकस-रे िलया गया |
पैर पर वजन बाँधकर रिा गया | डॉकटरो ने उसे वायु का बुिार तिा रक का कैसर बताया और कहा िक उसके हदय तो वािव चौडा हो गया है | अब हि िहमित हार गये | अब पूजयशी के
िसवाय और कोई सहारा नहीं िा | उस सिय िहरल ने कहा :'िमिी ! िुझे पूजय बापू के पास ले चलो | वहाँ ठीक हो जाऊगी |' पाँच िदन तक िहरल पूजयशी की रट लगाती रही | हि उसे
अिदावाद आशि िे बापू के पास ले गये | बापू ने कहा: 'इसे कुछ नहीं हुआ है |' उनहोने िुझे और िहरल को िंत िदया एवं बडदादा की पदिकणा करने को कहा | हिने पदिकणा की और
िहरल पनदह िदन िे चलने-ििरने लगी | हि बापू की इस करणा-कृ पा का ॠण कैसे चुकाये ! अभी तो हि आशि िे पूजयशी के शीचरणो िे सपिरवार रहकर धनय हो रहे है |" -पफुिल वयास, भावनगर
वति ष ान िे अिदावाद आशि िे सपिरवार सििपत ष
पूजय बापू का दशन ष -सिसंग ही जीवन का सचचा रत है "िुझे चार साल से पुत िक कािना िी और िेरे िन िे हुआ िक िेरी यह कािना जरर पूरी
होगी | अिदावाद िे धयानयोग िशिवर के दौरान ऐसा िवचार आया िक बापू िुझे अपने चरणो िे बुलायेगे | िन िे दढ शदा िी | इतने लोगो के बीच िे से बापू ने तेजपूणष दिष िुझ पर डाली,
संतरे का पसाद िदया और िेरा भागय िुल गया | बचचे के जनि से पहले डॉकटरो ने ऑपरे शन को कहा िा लेिकन बापू के बताने के िुतािबक िेरे घरवालो ने िुझे गाय के गोबर का रस
िपलाया और शीघ ही बालक का जनि हो गया | सचची शदा-भिक हो तो कया असंभव है ? पूजय बापू का दशन ष -सिसंग ही जीवन का सचचा रत है | सचची शदा-भिक से ऐसा रत पानेवाले हि सभी धनभागी है |" -रे िा परिार,
िीरा रोड, िुब ं ई
कैसेट का चििकार "वयापार उधारी िे चले जाने से िै हताश हो गया िा एवं अपनी िजंदगी से तंग आकर
आििहिया करने की बात सोचने लगा िा | िुझे साधु-िहाििाओं व सिाज के लोगो से घण ृ ा-सी हो गयी िी : धिष व सिाज से िेरा िवशास उठ चुका िा | एक िदन िेरी साली बापूजी के
सिसंग िक दो कैसेटे 'िविध का िवधान' एवं 'आििर कब तक ?' ले आयी और उसने िुझे सुनने
के िलए कहा | उसके कई पयास के बाद भी िैने वे कैसेटे नहीं सुनीं एवं िन-ही-िन उनहे 'ढोग' कहकर कैसेटो के िडबबे िे दाल िदया | िन इतना परे शान िा िक रात को नींद आना बंद हो
गया िा | एक रात ििििी गाना सुनने का िन हुआ | अँधेरा होने की वजह से कैसेटे पहचान न सका और गलती से बापूजी के सिसंग की कैसेट हाि िे आ गयी | िैने उसीको सुनना शुर
िकया | िफर कया िा ? िेरी आशा बँधने लगी | िन शाँत होने लगा | धीरे -धीरे सारी पीडाएँ दरू
होती चली गयीं | िेरे जीवन िे रोशनी-ही-रोशनी हो गयी | िफर तो िैने पूजय बापूजी के सिसंग की कई कैसेटे सुनीं और सबको सुनायीं | तदनंतर िैने गािजयाबाद िे बापूजी से दीका भी गहण की | वयापार की उधारी भी चुकता हो गयी | बापूजी की कृ पा से अब िुझे कोई दःुि नहीं है | हे गुरदे व ! बस, एक आप ही िेरे होकर रहे और िै आपका ही होकर रहूँ |" -ओिपकाश बजाज,
िदिली रोड, सहारनपुर, उतर पदे श
िुझ पर बरसी संत की कृ पा "सन १९९५ के जून िाह िे िै अपने लडके और भतीजे के साि हिरदार धयानयोग िशिवर िे
भाग लेने गया | एक िदन जब िै 'हर की पौडी' पर सनान करने गया तो पानी के तेज बहाव के कारण पैर िफसलने से िेरा लडका और भतीजा दोनो अपना संतल ु न िो बैठे और गंगा िे बह
गये | ऐसी संकट की घडी िे िै अपना होश िो बैठा | कया करँ ? िै फूट-फूटकर रोने लगा और बापूजी से पािन ष ा करने लगा िक ' हे नाि ! हे गुरदे व ! रका कीिजये... िेरे बचचो को बचा
लीिजये | अब आपका ही सहारा है | पूजयशी ने िेरे सचचे हदय से िनकली पुकार सुन ली और उसी सिय िेरा लडका िुझे िदिायी िदया | िैने झपटकर उसको बाहर िींच िलया लेिकन िेरा
भतीजा तो पता नहीं कहाँ बह गया ! िै िनरं तर रो रहा िा और िन िे बार-बार िवचार उठ रहा िा िक 'बापूजी ! िेरा लडका बह जाता तो कोई बात नहीं िी लेिकन अपने भाई की अिानत के िबना िै घर कया िुँह लेकर जाऊँगा ? बापूजी ! आपही इस भक की लाज बचाओ |' तभी गंगाजी की एक तेज लहर उस बचचे को भी बाहर छोड गयी | िैने लपककर उसे पकड िलया | आज भी
उस हादसे को सिरण करता हूँ तो अपने-आपको सँभाल नहीं पाता हूँ और िेरी आँिो से िनरं तर पेि की अशध ु ारा बहने लगती है | धनय हुआ िै ऐसे गुरदे व को पाकर ! ऐसे सदगुरदे व के शीचरणो िे िेरे बार-बार शत-शत पणाि !" -सुिालिाँ,
पानीपत, हिरयाणा
गुरदे व की कृ पा से संतानपािप "िेरी शादी को पाँच साल हो गये िे िफर भी कोई संतान नहीं हुई | लोग हिे बहुत ताने िारते िे | तभी िन-ही-िन िनणय ष ले िलया िक पूजय बापू के आशि िे जाना है | जनवरी १९९९ िे पिि बार उतरायण िशिवर भरा और िंतदीका ली | अब गुरदे व िक कृ पा से िुझे एक सुद ं र
बालक पाप हुआ है | पूजय बापूजी की इतनी कृ पा-करणा दे िकर हदय भर आता है | िै पूजय
बापूजी से पािन ष ा करती हूँ िक यह बालक उनहे सििपत ष कर सकूं और यह उनके योगय बनसके, ऐसी सदबुिद हिे दे | -िनिल ष ा के. तडवी,
कांितभाई हीराभाई तडवी,
रािजी िंिदर के पास, कारे ली बाग, वडोदरा
गुरकृ पा से जीवनदान "िदनांक १५-१-९६ की घटना है | िैने धातु के तार पर सूिने के िलए कपडे फैला रिे िे | बािरश होने के कारण उस तार िे करं ट आ गया िा | िेरा छोटा पुत िवशाल, जो िक ११ वीं कका िे
पढता है , आकर उस तार से छू गया और िबजली का करं ट लगते ही वह बेहोश हो गया, शव के सिान हो गया | हिने उसे तुरंत बडे असपताल िे दाििल करवाया | डॉकटर ने बचचे की हालत गंभीर बतायी | ऐसी पिरिसिित दे िकर िेरी आँिो से अशध ु ाराएँ बह िनकली | िै िनजानंद की िसती िे िसत रहने वाले पूजय सदगुरदे व को िन-ही-िन याद िकया और पािन ष ा िक :'हे
गुरदे व ! अब तो इस बचचे का जीवन आपके ही हािो िे है | हे िेरे पभु ! आप जो चाहे सो कर सकते है |' और आििर िेरी पािन ष ा सफल हुई | बचचे िे एक नवीन चेतना का संचार हुआ एवं धीरे -धीरे बचचे के सवासथय िे सुधार होने लगा | कुछ ही िदनो िे वह पूणत ष ः सवसि हो गया |
डॉकटर ने तो उपचार िकया लेिकन जो जीवनदान उस पयारे पभु की कृ पा से, सदगुरदे व की कृ पा से ििला, उसका वणन ष करने के िलए िेरे पास शबद नहीं है | बस, ईशर से िे यही पािन ष ा करता हूँ िक ऐसे बहिनष संत-िहापुरषो के पित हिारी शदा िे विृद होती रहे |" डॉ. वाय. पी. कालरा,
शािलदास कॉलेज, भावनगर, गुजरात
पूजय बापू जैसे संत दिुनया को सवगष िे बदल सकते है
िई १९९८ के अंिति िदनो िे पूजयशी के इं दौर पवास के दौरान ईरान के िवखयात िििजिशयन शी बबाक अगानी भारत िे अधयािििक अनुभवो की पािप आये हुए िे | पूजयशी के दशन ष पाकर जब उनहोने अधयािििक अनुभवो को फलीभूत होते दे िा तो वे पंचेड आशि िे आयोिजत
धयानयोग िशिवर िे भी पहुँच गये | शी अगानी जो दो िदन रककर वापस लौटने वाले िे, वे पूरे गयारह िदन तक पंचेड आशि िे रके रहे | उनहोने िवधािी िशिवर िे सारसविय िंत की दीका ली एवं िविशष धयानयोग साधना िशिवर (४ -१० जून १९९८) का भी लाभ िलया | िशिवर के
दौरान शी अगानी ने पूजयशी से िंतदीका भी ले ली | पूजयशी के सािननधय िे संपाप अनुभिू तयो के बारे िे केितय सिाचार पत 'चेतना' को दी हुई भेटवाताष िे शी अगानी कहते है : "यिद पूजय बापू जैसे संत हर दे श िे हो जाये तो यह दिुनया सवगष बन सकती है | ऐसे शांित से बैठ पाना हिारे िलए किठन है , लेिकन जब पूजय बापूजी जैसे िहापुरषो के शीचरणो िे बैठकर सिसंग
सुनते है तो ऐसा आनंद आता है िक सिय का कुछ पता ही नहीं चलता | सचिुच, पूजय बापू कोई साधारण संत नहीं है |" -शी बबाक अगानी,
िवशिवखयात िििजिशयन, ईरान
बापूजी का सािननधय गंगा के पावन पवाह जैसा है "कल-कल करती इस भागीरिी की धवल धारा के िकनारे पर पूजय बापूजी के सािननधय िे बैठकर िै बडा ही आिहािदत और पिुिदत हूँ... आनंिदत हूँ... रोिांिचत हूं | गंगा भारत की
सुषुमना नाडी है | गंगा भारत की संजीवनी है | शी िवषणुजी के चरणो से िनकलकर बहाजी के किंडलु और जटाधर के िािे पर शोभायिान गंगा ितयोगिसिदकारक है | िवषणुजी के चरणो से
िनकली गंगा भिक योग की पतीित कराती है और िशवजी के िसतक पर िसित गंगा जान योग की उचचतर भूििका पर आरढ होने की िबर दे ती है | िुझे ऐसा लग रहा है िक आज बापूजी के
पवचनो को सुनकर िै गंगा िे गोता लगा रहा हूँ कयोिक उनका पवचन, उनका सिननधय गंगा के पावन पवाह जैसा है | वे अलिसत िकीर है | वे बडे सरल और सहज है | वे िजतने ही ऊपर से
सरल है , उतने ही अंतर िे गूढ है | उनिे िहिालय जैसी उचचता, पिवतता, शष े ता है और सागरतल जैसी गंभीरता है | वे राष की अिूिय धरोहर है | उनहे दे िकर ॠिष-परमपरा को बोध होता है | गौति, कणाद, जैििनी, किपल, दाद ू, िीरा, कबीर, रै दास आिद सब कभी-कभी उनिे िदिते है | रे भाई
! कोई सत गुर संत कहाव े ,
जो न ै नन अलि लिाव े . ..
धरती उिाड े , आकाश उिाड े ,
अधर िड ैया ध ावे | शू नय िशिर क े पार
िश ला पर ,
आसन अच ल जिाव े |
रे भाई
! कोई सिग ुर स ंत कहाव े .. .
एक ऐसे पावन सािननधय िे हि बैठे है जो बडा दल ष और सहज योगसवरप है | ऐसे िहापुरषो ु भ के िलए पंिकयाँ याद आ रही है : तुि चलो तो चले धरती, चले अंबर, चले दिुनया... ऐसे
िहापुरष चलते है तो उनके िलए सूयष, चंद, तारे , गह, नकत आिद सब अनुकूल हो जाते है | ऐसे इिनदयातीत, गुणातीत, भावातीत, शबदातीत और सब अवसिाओं से परे िकनहीं िहापुरषो के शीचरणो िे जब बैठते है तो... भागवत कहता है :
साध ुना ं दशष नं लोके स वष िस िदकर ं परि
|
साधु के दशन ष िात से िवचार, िवभूित, िवदता, शिक, सहजता, िनिवष ष यता, पसननता, िसिदयाँ और आििानंद की पािप होती है | दे श के िहान संत यहाँ सहज ही आते है , भारत के सभी शंकराचायष
भी िशिवर िे आते है | अतः िेरे िन िे भी िवचार आया िक जहाँ सब जाते है , वहाँ जाना चािहए कयोिक यही वह ठोर-िठकाना है , जहाँ िन का अिभिान ििटाया जा सकता है | ऐसे िहापुरषो के दशन ष से केवल आनंद और िसती ही नहीं ििलती बििक वह सब कुछ ििल जाता है जो
अिभलािषत है , आकांिकत है , लिकत है | यहाँ िै करणा के, किठ ष ता के, िववेक-वैरागय के, जान के दशन ष कर रहा हूँ | वैरागय और भिक के रकण, पोषण और संवधन ष के िलए यह सपॠिषयो का
उति जान िाना जाता है | आज गंगा िफर से साकार िदि रही है तो वे बापूजी के िवचार और वाणी िे िदि रही है | अलिसतता, सहजता, उचचता, शष े ता, पिवततता, तीिष-सी शुिचता, िशशु-सी सरलता, तरणो-सा जोश, वद ृ ो-सा गांभीयष और ॠिषयो जैसा जानाबोध िुझे जहाँ हो रहा है , वह
यह पंडाल है | इसे आनंदनगर कहूँ या पेिनगर ? करणा का सागर कहूँ या िवचारो का सिनदर ? ... लेिकन इतना जरर कहूँगा िक िेरे िन का कोन-कोना आिहािदत हो रहा है | आप लोग
बडभागी है जो ऐसे िहापुरष के शीचरणो िे बैठे है , जहाँ भागय का, िदवय वयिकतिव का िनिाण ष होता है | जीवन की कृ तकृ ियता जहाँ पाप हो सकती है वह यही दर है | िि ले त ुि ििली ि ं िजल िि ला िकस द और िुदा भी न ििल े त ुि तो रह गया ि
|
ुदा , िक सद और ि ंिज ल भी ||
आपका यह भावराजय और पेिराजय दे िकर िै चिकत भी हूँ और आनंद का अनुभव भी कर रहा हूँ | आपके पित िेरा िवशास और अटू ट िनषा बढे इस हे तु िेरा निन सवीकार करे | िुझे ऐसा
लगता है िक बापूजी सूयष है और नारायण सवािी एक ऐसे दीप है जो न बुझ सकते है , न जलाये जाते है |"
-सवािी अवधेशानंदजी, हिरदार
सारसविय िंत से हुए अदभुत लाभ िैने १९९८ िे 'िवधािी उििान िशिवर, सोनीपत' िे पूजय गुरदे व से सारसविय िंत की दीका ली | दीका के बाद िनयिित िंतजप करने से िै इतना कुशाग बुिदवाला एवं सवावलंबी हो गया िक िैने एक िहीने िे ही टयूशन छोड दी और सवयं िूब िेहनत करने लगा | िै सकूल भी पैदल
आने-जाने लगा, िजससे िैने सकूल बस का िकराया बचा िलया | िंत जाप के पभाव से िुझे ९ वीं, १० वीं, ११ वीं की परीकाओं िे पिि सिान पाप हुआ | १२ वीं की परीका के सिय िेरा
सवासथय िराब होने के कारण िे जप ठीक से नहीं कर सका, िफर भी ७९ पितशत अंको से पास हुआ | उसके बाद इं िजिनयिरं ग की पिरका िे भी उतीणष रहा | -कुलदीप कुिार,
डी-२३४, वेसट िवनोद नगर, िदिली िै िदसमबर १९९९ िे छतीसगढ के भाटापारा िे पूजय गुरदे व से सारसविय िंत की दीका ली | तिपशात िै िनयिित रप से जप-धयान- पाणायाि करता िा, िजससे िुझे बहुत लाभ हुआ |
पूजय बपूजी की कृ पा और सारसविय िंत जाप के पभाव से िुझे १२ वीं की बोडष की पिरका िे ८४.६ पितशत अंक ििले | -िवरे नद कुिार कौिशक,
डोगरगाँव, िज. राजनांदगाँव (छ.ग.)
भौितक यग ु के अंधकार िे जान की जयोित : पूजय बापू िादक िनयंतण बयूरो भारत सरकार के िहािनदे शक शी एच.पी. कुिार ९ िई को अिदावाद
आशि िे सिसंग-कायक ष ि के दौरान पूजय बापू से आशीवाद ष लेने पहुँचे | बडी िवनमता एवं शदा के साि उनहोने पूजय बापू के पित अपने उदगार िे कहा : "िजस वयिक के पास िववेक नहीं है वह अपने लकय तक नहीं पहुँच सकता है और िववेक को पाप करने का साधन पूजय
आसारािजी बापू जैसे िहान संतो का सिसंग है | पूजय बापू से िेरा पिि पिरचय टी.वी. के
िाधयि से हुआ | तिपशात िुझे आशि दार पकािशत 'ॠिष पसाद' िािसक पाप हुआ | उस सिय
िुझे लगा िक एक ओर जहाँ इस भौितक युग के अंधकार िे िानव भटक रहा है वहीं दस ू री ओर शांित की िंद-िंद सुगिं धत वायु भी चल रही है | यह पूजय बापू के सिसंग का ही पभाव है |
पूजयशी के दशन ष करने का जो सौभागय िुझे पाप हुआ है इससे िै अपने को कृ तकृ िय िानता हूँ | पूजय बापू के शीिुि से जो अित ृ वषाष होती है तिा इनके सिसंग से करोडो हदयो िे जो
जयोित जगती है , व इसी पकार से जगती रहे और आने वाले लंबे सिय तक पूजयशी हि सब का िागद ष शन ष करते रहे यही िेरी कािना है | पूजय बापू के शीचरणो िे िेरे पणाि..." -शी एच.पी. कुिार,
िहािनदे शक, िादक िनयंतण बयूरो, भारत सरकार
गुरकृ पा ऐसी हुई िक अँधेर तो कया दे र भी नहीं हुई परि कृ पालु बापूजी के शीचरणो िे िेरे कोिट-कोिट वंदन... िै एक इसिाइली खवाजा हूँ तिा अपने धिष िे अिडग हूँ | चार वषष पूवष कुछ लोगो दारा एक सुिनयोिजत योजना बनाकर िुझे
जबरदसती 'िडष र केस' का आरोपी बना िदया गया िा | इससे िुझे कहीं शांित नहीं ििल रही िी |
२८ फरवरी १९९७ को िुझे नागपुर िे आयोिजत बापूजी के सिसंग िे जाने की पेरणा ििली और ४ िाचष १९९७ को िैने बापूजी से िंतदीका ली | िै उनसे िन-ही-िन िवनती की िक ' हे गुरदे व ! िुझे बचा लो |' गुरकृ पा ऐसी हुई िक ७ जनवरी १९९८ को िुझे अदालत ने पाक-साफ बरी कर िदया ! बाकी छः आरोिपयो को सजा हुई | धनय है ऐसे िेरे सदगुर ! उनके शीचरणो िे िेरे कोिट-कोिट वनदन...
-रहिान िान िनशान छाबडी (िबछुआ), िज. िछनदवाडा (ि.प.)
िुिसलि ििहला को पाणदान २७ िसतमबर २००० को जयपुर िे िेरे िनवास पर पूजय बापू का 'आिि-साकािकार िदवस' िनाया गया, िजसिे िेरे पडोस की िुिसलि ििहला नािी बहन के पित, शी िाँगू िाँ, ने भी पूजय बापू
की आरती की और चरणाित ृ िलया | ३-४ िदन बाद ही वे िुिसलि दं पित खवाजा सािहब के उसष िे अजिेर चले गये | िदनांक ४ अकटू बर २००० को अजिेर के उसष िे असािािजक तिवो ने
पसाद िे जहर बाँट िदया, िजससे उसष िेले िे आये कई दशन ष ािी असवसि हो गये और कई िर
भी गये | िेरे पडोस की नािी बहन ने भी वह पसाद िाया और िोडी दे र िे ही वह बेहोश हो गयी | अजिेर िे उसका उपचार िकया गया िकंतु उसे होश न आया | दस ू रे िदन ही उसका पित उसे अपने घर ले आया | कॉलोनी के सभी िनवासी उसकी हालत दे िकर कह रहे िे िक अब
इसका बचना िुिशकल है | िै भी उसे दे िने गया | वह बेहोश पडी िी | िै जोर-जोर से हिर ॐ...
हिर ॐ... का उचचारण िकया तो वह िोडा िहलने लगी | िुझे पेरणा हुई और िै पुनः घर गया | पूजय बापू से पािन ष ा की | ३-४ घंटे बाद ही वह ििहला ऐसे उठकर िडी हो गयी िानो, सोकर उठी हो | उस ििहला ने बताया िक िेरे चाचा ससुर पीर है और उनहोने िेरे पित के िुह ँ से
बोलकर बताया िक तुिने २७ िसतमबर २००० को िजनके सिसंग िे पानी िपया िा, उनहीं सफेद दाढीवाले बाबा ने तुमहे बचाया है ! कैसी करणा है गुरदे व की ! -जे.एल. पुरोिहत,
८७, सुितान नगर, जयपुर (राज.) उस ििहला का पता है : -शीिती नािी पती शी िाँगू िाँ,
१००, सुितान नगर, गुजरष की धडी,
नयू सांगानेर रोड, जयपूर (राज.)
हिरनाि की पयाली ने छुडायी शराब की बोतल सौभागयवश, गत २६ िदसमबर १९९८ को पूजयशी के १६ िशषयो की एक टोली िदिली से हिारे
गाँव िे हिरनाि का पचार-पसार करने पहूँची | िै बचपन से ही ििदरापान, धूमपान व िशकार
करने का शौकीन िा | पूजय बापू के िशषयो दारा हिारे गाँव िे जगह-जगह पर तीन िदन तक
लगातार हिरनाि का कीतन ष करने से िुझे भी हिरनाि का रं ग लगता जा रहा िा | उनके जाने के एक िदन के पशात शाि के सिय रोज की भांित िैने शराब की बोतल िनकाली | जैसे ही
बोतल िोलने के िलए ढककन घुिाया तो उस ढककन के घुिने से िुझे 'हिर ॐ... हिर ॐ' की धविन सुनायी दी | इस पकार िैने दो-तीन बार ढककन घुिाया और हर बार िुझे 'हिर ॐ' की
धविन सुनायी दी | कुछ दे र बाद िै उठा तिा पूजयशी के एक िशषय के घर गया | उनहोने िोडी दे र िुझे पूजयशी की अित ृ वाणी सुनायी | अित ृ वाणी सुनने के बाद िेरा हदय पुकारने लगा िक इन दवुयस ष नो को ियाग दँ ू | िैने तुरंत बोतल उठायी तिा जोर-से दरू िेत िे फेक दी | ऐसे
सििष व परि कृ पालु सदगुरदे व को िै हदय से पणाि करता हूँ, िजनकी कृ पा से यह अनोिी
घटना िेरे जीवन िे घटी, िजससे िेरा जीवन पिरवितत ष हुआ | -िोहन िसंह िबष,
िभखयासैन, अििोडा (उ.प.)
पूरे गाँव की कायापलट ! पूजयशी से िदनांक २७.६.९१ को दीका लेने के बाद िैने वयवसनिुिक के पचार-पसार का लकय
बना िलया | िै एक बार कौशलपुर (िज. शाजापुर) पहुँचा | वहाँ के लोगो के वयवसनी और लडाई-
झगडे युक जीवन को दे िकर िैने कहा: "आप लोग िनुषय-जीवन सही अिष ही नहीं सिझते है | एक बार आप लोग पूजय बापूजी के दशन ष कर ले तो आपको सही जीवन जीने की कुंजी ििल जायेगी |" गाँव वालो ने िेरी बात िान ली और दस वयिक िेरे गाँव ताजपुर आये | िैने एक
साधक को उनके साि जनिाषिी िहोिसव िे सूरत भेजा | पूजय बापूजी की उन पर कृ पा बरसी और सबको गुरदीका ििल गयी | जब वे लोग अपने गाँव पहुँचे तो सभी गाँववािसयो को बडा कौतूहल िा िक पूजय बापूजी कैसे है ? बापूजी की लीलाएँ सुनकर गाँव के अनय लोगो िे भी
पूजय बापूजी के पित शदा जगी | उन दीिकत साधको ने सभी गाँववालो को सुिवधानुसार पूजय बापूजी के अलग-अलग आशिो िे भेजकर दीका िदलवा दी | गाँव के सभी वयिक अपने पूरे
पिरवार सिहत दीिकत हो चुके है | पियेक गुरवार को पूरे गाँव िे एक सिय भोजन बनता है | सभी लोग गुरवार का वत रिते है | कौशलपुर गाँव के पभाव से आस-पास के गाँववाले एवं
उनके िरशतेदारो सिहत १००० वयिकयो शराब छोडकर दीका ले ली है | गाँव के इितहास िे तीन-
तीन पीढी से कोई िंिदर नहीं िा | गाँववालो ने ५ लाि रपये लगाकर दो िंिदर बनवाये है | पूरा गाँव वयवसनिुक एवं भगवतभक बन गया है , यह पूजय बापूजी की कृ पा नहीं तो और कया है ? सबके तारणहार पूजय बापूजी के शीचरणो िे कोिट-कोिट पणाि... -शयाि पजापित (सुपरवाइजर, ितलहन संघ) ताजपुर, उजजैन (ि.प.)
नेतिबंद ु का चििकार िेरा सौभागय है िक िुझे 'संतकृ पा नेतिबंद ु' (आई डॉपस) का चििकार दे िने को ििला | एक संत बाबा िशवरािदास उम ८० वषष, गीता
कुिटर, तपोवन झाडी, सपसरोवर, हिरदार िे रहते है | उनकी दािहनी आँि के सफेद िोितये का ऑपरे शन शाँितकुंज हिरदार आयोिजत
कैमप िे हुआ | केस िबगड गया और काल िोितया बन गया | ददष रहने लगा और रोशनी घटने लगी | दोबारा भूिाननद नेत
िचिकिसालय िे ऑपरे शन हुआ | एबसियूट गलूकोिा बताते हुए कहा िक ऑपरे शन से िसरददष ठीक हो जायेगा पर रोशनी जाती रहे गी |
परं तु अब वे बाबा संत शी आसारािजी आशि दार िनिित ष 'संतकृ पा नेतिबंद ु' सुबह-शाि डाल रहे है | िैने उनके नेतो का परीकण िकया | उनकी दािहनी आँि िे उँ गली िगनने लायक रोशनी
वापस आ गयी है | काले िोितये का पेशर नॉिल ष है | कोिनय ष ा िे सूजन नहीं है | वे काफी संतुष है | वे बताते है : 'आँि पहले लाल रहती िी परं तु अब नहीं है | आशि के 'नेतिबंद ु' से
किपनातीत लाभ हुआ |' बायीं आँि िे भी उनहे सफेद िोितया बताया गया िा और संशय िा
िक शायद काला िोितया भी है | पर आज बायीं आँि भी ठीक है और दोनो आँिो का पेशर भी
नॉिल ष है | सफेद िोितया नहीं है और रोशनी काफी अचछी है | यह 'संतकृ पा नेतबंद ु' का िवलकण पभाव दे िकर िै भी अपने िरीजो को इसका उपयोग करने की सलाह दँग ू ा |
-डॉ. अननत कुिार अगवाल (नेतरोग िवशेषज) एि.बी.बी.एस., एि.एस. (नेत), डी.ओ.एि.एस. (आई), सीतापुर, सहारनपुर (उ.प.)
पूजयशी की तसवीर से ििली पेरणा सवस ष ििष परि पूजय शी बापूजी के चरणकिलो िे िेरा कोिट-कोिट निन... १९८४ के भूकंप से समपूणष उतर िबहार िे काफी नुकसान हुआ िा, िजसकी चपेट िे हिारा घर भी िा |
पिरिसिितवश िुझे नौवी कका िे पढायी छोड दे नी पडी | िकसी िित की सलाह से िै नौकरी ढू ँ ढने के िलए िदिली गया लेिकन वहाँ भी िनराशा ही हाि लगी | िै दो िदन से
भूिा तो िा
ही, ऊपर से नौकरी की िचंता | अतः आििहिया का िवचार करके रे लवे सटे शन की ओर चल पडा | रानीबाग बाजार िे एक दक ु ान पर पूजयशी का सिसािहिय, कैसेट आिद रिा हुआ िा एवं
पूजयशी की बडे आकार की तसवीर भी टँ गी िी | पूजयशी की हँ सिुि एवं आशीवाद ष की िुदावाली
उस तसवीर पर िेरी नजर पडी तो १० ििनट तक िै वहीं सडक पर से ही िडे -िडे उसे दे िता रहा | उस वक न जाने िुझे कया ििल गया ! िै काि भले िजदरूी का ही करता हूँ लेिकन
तबसे लेकर आज तक िेरे िचत िे बडी पसननता बनी हुई है | न जाने िेरी िजनदगी की कया
दशा होती अगर पूजय बापूजी की 'युवाधन सुरका', 'ईशर की ओर', 'िनिशनत जीवन' पुसतके और 'ॠिष पसाद' पितका हाि न लगती ! पूजयशी की तसवीर से ििली पेरणा एवं उनके सिसािहिय
ने िेरी डू बती नैया को िानो, िझदार से बचा िलया | धनभागी है सािहिय की सेवा करने वाले ! िजनहोने िुझे आििहिया के पाप से बचाया | -िहे श शाह,
नारायणपुर, दि ु रा, िज. सीतािढी (िबहार)
िंत से लाभ िेरी िाँ की हालत अचानक पागल जैसी हो गयी िी िानो, कोई भूत-पेत-डािकनी या आसुरी तिव उनिे घुस गया | िै बहुत िचंितत हो गया एवं एक सािधका बहन को फोन िकया | उनहोने भूतपेत भगाने का िंत बताया, िजसका वणन ष आशि से पकािशत 'आरोगयिनिध' पुसतक िे भी है | वह िंत इस पकार है :
ॐ निो भगवत े रर भ ैरवाय भूतप ेत कय क ुर कुर ह ूं फट सवाहा
|
इस िंत का पानी िे िनहारकर १०८ बार जप िकया और वही पानी िाँ को िपला िदया | तुरंत ही िाँ शांित से सो गयीं | दस ू रे िदन भी इस िंत की पाँच िाला करके िाँ को वह जल िपलाया तो
िाँ िबिकुल ठीक हो गयीं | हे िेरे साधक भाई-बहनो ! भूत-पेत भगाने के िलए 'अला बाँध.ँू .. बला बाँधँू... ' ऐसा करके झाड-िूँक करनेवालो के चककर िे पडने की जररत नहीं है | इसके िलए तो पूजय बापूजी का िंत ही तारणहार है | पूजय बापूजी के शीचरणो िे कोिट-कोिट पणाि ! -चंपकभाई एन. पटे ल (अिेिरका)
काि कोध पर िवजय पायी एक िदन 'िुंबई िेल' िे िटकट चेिकंग करते हुए िै वातानुकूिलत बोगी िे पहुँचा | दे िा तो
िििल की गदी पर टाट का आसन िबछाकर सवािी शी लीलाशाहजी िहाराज सिािधसि है |
िुझे आशयष हुआ िक िजन पिि शण े ी की वातानुकूिलत बोिगयो िे राजा-िहाराजा याता करते है
ऐसी बोगी और तीसरी शण े ी की बोगी के बीच इन संत को कोई भेद नहीं लगता | ऐसी बोिगयो िे भी वे सिािधसि होते है यह दे िकर िसर झुक जाता है | िैने पूजय िहाराजशी को पणाि
करके कहा : "आप जैसे संतो के िलए तो सब एक सिान है | हर हाल िे एकरस रहकर आप िुिक का आनंद ले सकते है | लेिकन हिारे जैसे गहसिो को कया करना चािहए तािक हि भी
आप जैसी सिता बनाये रिकर जीवन जी सके ?" पूजय िहाराजजी ने कहा : "काि और कोध को तू छोड दे तो तू भी जीवनिुक हो सकता है | जहाँ राि तहँ नहीं काि, जहाँ काि तहँ नहीं राि | ... और कोध तो, भाई ! भसिासुर है | वह तिाि पुणय को जलाकर भसि कर दे ता है ,
अंतःकरण को ििलन कर दे ता है |" िैने कहा : " पभु ! अगर आपकी कृ पा होगी तो िै कािकोध को छोड पाऊँगा |" पूजय िहाराजजी ने कहा : "भाई ! कृ पा ऐसे िोडे ही की जाती है !
संतकृ पा के साि तेरा पुरषािष और दढता भी चािहए | पहले तू पितजा कर िक तू जीवनपयन ष त
काि और कोध से दरू रहे गा... तो िै तुझे आशीवाद ष दँ ू |" िैने कहा : "िहाराजजी िै जीवनभर के िलए पितजा तो करँ लेिकन उसका पालन न कर पाऊँ तो झूठा िाना जाऊँगा |" पूजय
िहाराजजी ने कहा : "अचछा, पहले तू िेरे सिक आठ िदन के िलए पितजा कर | िफर पितजा को एक-एक िदन बढते जाना | इस पकार तू उन बलाओं से बच सकेगा | है कबूल ?" िैने हाि जोडकर कबूल िकया | पूजय िहाराजजी ने आशीवाद ष दे कर दो-चार फूल पसाद िे िदये | पूजय
िहाराजजी ने िेरी जो दो किजोिरयाँ िीं उन पर ही सीधा हिला िकया िा | िुझे आशयष हुआ िक अनय कोई भी दग ष छोडने का न कहकर इन दो दग ष ो के िलए ही उनहोने पितजा कयो ु ुण ु ुण करवायी ? बाद िे िै इस राज से अवगत हुआ |
दस ू रे िदन िै पैसेनजर टे न िे कानपुर से आगे जा रहा िा | सुबह के करीब नौ बजे िे | तीसरी
शण े ी की बोगी िे जाकर िैने याितयो के िटकट जाँचने का कायष शुर िकया | सबसे पहले बिष पर
सोये हुए एक याती के पास जाकर िैने एक याती के पास जाकर िैने िटकट िदिाने को कहा तो वह गुससा होकर िुझे कहने लगा : "अंधा है ? दे िता नहीं िक िै सो गया हूँ ? िुझे नींद से
जगाने का तुझे कया अिधकार है ? यह कोई रीत है िटकट के बारे िे पूछने की ? ऐसी ही अकल है तेरी ?" ऐसा कुछ-का-कुछ वह बोलता ही गया... बोलता ही गया | िै भी कोधािवष होने लगा
िकंतु पूजय िहाराजजी के सिक ली हुई पितजा िुझे याद िी, अतः कोध को ऐसे पी गया िानो, िवष की पुिडया ! िैने उसे कहा : "िहाशय ! आप ठीक ही कहते है िक िुझे बोलने की अकल
नहीं है , भान नहीं है | दे िो, िेरे ये बाल धूप िे सफेद हो गये है | आपिे बोलने की अकल अिधक है , नमता है तो कृ पा करके िसिाओं िक िटकट के िलए िुझे िकस पकार आपसे पूछना चािहए | िै लाचार हूँ िक 'डयूटी' के कारण िुझे िटकट चेक करना पड रहा है इसिलए िै आपको कष दे
रहा हूँ|" ... और ििर िैने िूब पेि से हाि जोडकर िवनती की : "भैया ! कृ पा करके कष के िलए िुझे किा करो | िुझे अपना िटकट िदिायेगे ?" िेरी नमता दे िकर वह लिजजत हो गया एवं
तुरंत उठ बैठा | जिदी-जिदी नीचे उतरकर िुझसे किा िाँगते हुए कहने लगा :"िुझे िाफ करना | िै नींद िे िा | िैने आपको पहचाना नहीं िा | अब आप अपने िुँह से िुझे कहे िक आपने िुझे िाि िकया ?" यह दे िकर िुझे आनंद और संतोष हुआ | िै सोचने लगा िक संतो की आजा
िानने िे िकतनी शिक और िहत िनिहत है ! संतो की करणा कैसा चििकािरक पिरणाि लाती है ! वह वयिक के पाकृ ितक सवभाव को भी जड-िूल से बदल सकती है | अनयिा, िुझिे कोध
को िनयंतण िे रिने की कोई शिक नहीं िी | िै पूणत ष या असहाय िा िफर भी िुझे िहाराजजी की कृ पा ने ही सििष बनाया | ऐसे संतो के शीचरणो िे कोिट-कोिट निसकार ! -शी रीजुिल,
िरटायडष टी.टी. आई., कानपुर
अनय अनभ ु व
जला हुआ कागज पूवष रप िे एक बार परिहं स िवशुदानंदजी से आनंदियी िाँ की िनकटता पानेवाले सुपिसद
पंिडत गोपीनाि किवराज ने िनवेदन िकया: "तरणीकानत ठाकुर को अलौिकक िसिद पाप हुई है | वे िबना दे िे या िबना छुए ही कागज िे िलिी हुई बाते पढ लेते है |" गुरदे व बोले :"तुि एक
कागज पर कुछ िलिो और उसिे आग लगाकर जला दो |" किवराजजी ने कागज पर कुछ िलिा और पूरी तरह कागज जलाकर हवा िे उडा िदया | उसके बाद गुरदे व ने अपने तिकये के नीचे से वही कागज िनकालकर किवराजजी के आगे रि िदया | यह दे िकर उनहे बडा आशयष हुआ िक
यह कागज वही िा एवं जो उनहोने िलिा िा वह भी उस पर उनहीं के सुलेि िे िलिा िा और साि ही उसका उतर भी िलिा हुआ दे िा |
जडता, पशुता और ईशरता का िेल हिारा शरीर है | जड शरीर को 'िै-िेरा' िानने की विृत
िजतनी ििटती है , पाशवी वासनाओं की गुलािी उतनी हटती है और हिारा ईशरीय अंश िजतना अिधक िवकिसत होता है उतना ही योग-सािथयष, ईशरीय सािथयष पकट होता है | भारत के ऐसे कई भको, संतो और योिगयो के जीवन िे ईशरीय सािथयष दे िा गया है , अनुभव िकया गया है , उसके िवषय िे सुना गया है | धनय है भारतभूिि िे रहनेवाले... भारतीय संसकृ ित िे शदािवशास रिनेवाले... अपने ईशरीय अंश को जगाने की सेवा-साधना करनेवाले ! सवािी
िवशुदानंदजी वषो की एकांत साधना और वषो-वषो की गुरसेवा से अपना दे हाधयास और पाशवी
वासनाएँ ििटाकर अपने ईशरीय अंश को िवकिसत करनेवाले भारत के अनेक िहापुरषो िे से िे
| उनके जीवन की और भी अलौिकक घटनाओं का वणन ष आता है | ऐसे सिपुरषो के जीवन-चिरत और उनके जीवन िे घिटत घटनाएँ पढने-सुनने से हि लोग भी अपनी जडता एवं पशुता से
ऊपर उठकर ईशरीय अंश को उभारने िे उिसािहत होते है | बहुत ऊँचा काि है ... बडी शदा, बडी
सिझ, बडा धैयष चािहए ईशरीय सािथय ष को पूणष रप से िवकिसत करने िे | अब आओ, चले आद शंकराचायष की ओर...
नदी की धारा िुड गयी आद शंकराचायष की िाता िविशषा दे वी अपने कुलदे वता केशव की पूजा करने जाती िीं | वे पहले नदी िे सनान करतीं और ििर िंिदर िे जाकर पूजन करतीं | एक िदन वे पातःकाल ही पूजन-
सािगी लेकर िंिदर की ओर गयीं, िकंतु सायंकाल तक घर नहीं लौटीं | शंकराचायष की आयु अभी
सात-आठ वषष के िधय िे ही िी | वे ईशर के परि भक और िनषावान िे | सायंकाल तक िाता के वापस न लौटने पर आचायष को बडी िचनता हुई और वे उनहे िोजने के िलए िनकल पडे |
िंिदर के िनकट पहुँचकर उनहोने िाता को िागष िे ही िूिचछष त पडे दे िा | उनहोने बहुत दे र तक
िाता का उपचार िकया तब वे होश िे आ सकीं | नदी अिधक दरू िी | वहाँ तक पहुँचने िे िाता को बडा कष होता िा | आचायष ने भगवान से िन-ही-िन पािन ष ा की िक "पभो ! िकसी पकार
नदी की धारा को िोड दो, िजससे िक िाता िनकट ही सनान कर सके |" वे इस पकार की पािन ष ा िनिय करने लगे | एक िदन उनहोने दे िा िक नदी की धारा िकनारे की धरती को काटती-काटती
िुडने लगी है तिा कुछ िदनो िे ही वह आचायष शंकर के घर के पास बहने लगी | इस घटना ने आचायष का अलौिकक शिकसमपनन होना पिसद कर िदया |
सूकि शरीर से चोर का पीछा िकया हिरहर बाबा की बडी पिसिद िी | एक बार वे हरपालपुर सटे शन पर िे | वहाँ के सटे शन िासटर ने उनको एक चोर सुपुदष िकया | चोर ने बाबा से कहा : " िहाराज ! िुझे इतनी छुटटी दे दीिजये िक िै अपने बाल-बचचो का पबंध कर आऊँ |" बाबा: "गाडी आने पर लौट आना |" चोर चला
गया | सटे शन िासटर को पता चला तो वह बाबा पर गिष हुआ और बोला : "उसके बदले तुमहे जेल की हवा िानी होगी | तुिने जान-बूझकर उसे भगा िदया है |" बाबा : "घबराओ ित, गाडी
आने से पहले ही वह लौट आयेगा |" चोर की नीयत ठीक नहीं िी | वह जंगल के िागष से अजात सिान को भाग जाना चाहता िा िकंतु उसे हर सिय यही पतीत होता रहा िक हिरहर बाबा डं डा
फटकारते हुए उसके पीछे -पीछे चले आ रहे है | इसीिलए वह गाडी आने से पहले ही लौट आया |
िंगली बाधा-िनवारण िंत "अं र ां अ ं " इस िंत को १०८ बार जपने से कोध दरू होता है | जनिकुनडली िे िंगली योग होने से िजनके
िववाह न हो रहे हो, वे २७ िंगलवार इस िंत का १०८ बार जप करते हुए वत रिकर हनुिानजी पर िसंदरू का चोला चढाये | इससे िंगल-बाधा का कय होता है |
सुिपूवक ष पसवकारक िंत पहला उपाय "एं ही ं भ गवित भग िािलिन च ल च ल भािय भािय प |"
ुषप ं िवकासय िवकासय सवाहा
इस िंत दारा अिभिंितत दध ष ी सी को िपलाये तो सुिपूवक ष पसव होगा | ू गिभण द ू सरा उपाय गिभण ष ी सी सवयं पसव के सिय 'जमभला-जमभला' जप करे | तीसरा
उपा य
दे शी गाय के गोबर का १२ से १५ िि.ली. रस 'ॐ निो नारायणाय' िंत का २१ बार जप करके पीने से भी पसव-बाधाएँ दरू होगी और िबना ऑपरे शन के पसव होगा | पसुित के सिय अिंगल की आशंका हो तो िनमन िंत का जप करे : सवष िंग ल िा ं गिय े िश वे सवा ष िष सा िधके | शर णये तयमबक े गौरी नार ायणी निो S सतुत े || (द ु गाष सप शती )
शिकशाली व गोरे पुत की पािप के िलए सगभाव ष सिा िे ढाक (पलाश, िािरा) का एक कोिल पता घोटकर गौ-दगुध के साि रोज सेवन करने से बालक शिकशाली और गोरा होता है | िाता-िपता भले काले-कलूटे हो िफर भी बालक गोरा होगा |
सदगुर-ििहिा गुर िबन ु भ व िनिध
तर ै न कोई
|
जौ बर ंिच संकर सि होई || -संत तुलसीदासजी
हिरहर आ िदक ज गत ि े प ूजयद ेव जो कोय
|
सदग ुर की प ूजा िकय े स बकी प ूजा होय || -िनशलदासजी िहाराज
सहजो कारज स ंसार को ग ुर िबन होत ना
हिर तो ग ुर िबन कया
ँ ही |
ििल े , सिझ ल े िन ि ाँही ||
-संत कबीरजी संत सरिन जो जन ु पर ै सो जन ु उधरनहार संत की िन ंदा ना नका बह ु िर ब हुिर अवतार
| ||
-गुर नानक दे वजी
"गुरसेवा सब भागयो की जनिभूिि है और वह शोकाकुल लोगो को बहिय कर दे ती है | गुररपी
सूयष अिवदारपी राित का नाश करता है और जानाजान रपी िसतारो का लोप करके बुिदिानो को आििबोध का सुिदन िदिाता है |" -संत जानेशर िहाराज
"सिय के कंटकिय िागष िे आपको गुर के िसवाय और कोई िागद ष शन ष नहीं दे सकता |" - सवािी िशवानंद सरसवती
"िकतने ही राजा-िहाराजा हो गये और होगे, सायुजय िुिक कोई नहीं दे सकता | सचचे राजा-
िहाराज तो संत ही है | जो उनकी शरण जाता है वही सचचा सुि और सायुजय िुिक पाता है |" -सििष शी रािदास सवािी "िनुषय चाहे िकतना भी जप-तप करे , यि-िनयिो का पालन करे परं तु जब तक सदगुर की कृ पादिष नहीं ििलती तब तक सब वयिष है |" -सवािी राितीिष
पलेटो कहते है िक : "सुकरात जैसे गुर पाकर िै धनय हुआ |" इिसन ष ने अपने गुर िोरो से जो पाप िकया उसके ििहिागान िे वे भाविवभोर हो जाते िे | शी रािकृ षण परिहं स पूणत ष ा का अनुभव करानेवाले अपने सदगुरदे व की पशंसा करते नहीं अघाते िे |
पूजयपाद सवािी शी लीलाशाहजी िहाराज भी अपने सदगुरदे व की याद िे सनेह के आँसू बहाकर गदगद कंठ हो जाते िे |
पूजय बापूजी भी अपने सदगुरदे व की याद िे कैसे हो जाते है यह तो दे िते ही बनता है | अब
हि उनकी याद िे कैसे होते है यह पश है | बिहिुि ष िनगुरे लोग कुछ भी कहे , साधक को अपने सदगुर से कया ििलता है इसे तो साधक ही जानते है |
लेडी िािटष न के सुहाग की रका करने अफगािनसतान िे पकटे िशवजी सा धू स ंग स ंसार ि े , द ु लष भ िन ुषय शरीर
सिस ं ग सिव त तिव ह ै , ितिव ध ताप की पीर
| ||
िानव-दे ह ििलना दल ष है और ििल भी जाय तो आिधदै िवक, आिधभौितक और आधयािििक ये ु भ तीन ताप िनुषय को तपाते रहते है | िकंतु िनुषय-दे ह िे भी पिवतता हो, सचचाई हो, शुदता हो और साधु-संग ििल जाय तो ये ितिवध ताप ििट जाते है |
सन १८७९ की बात है | भारत िे िबिटश शासन िा, उनहीं िदनो अंगेजो ने अफगािनसतान पर आकिण कर िदया | इस युद का संचालन आगर िालवा िबिटश छावनी के लेिफ़टनेट कनल ष
िािटष न को सौपा गया िा | कनल ष िािटष न सिय-सिय पर युद-केत से अपनी पती को कुशलता के सिाचार भेजता रहता िा | युद लंबा चला और अब तो संदेश आने भी बंद हो गये | लेडी
िािटष न को िचंता सताने लगी िक 'कहीं कुछ अनिष न हो गया हो, अफगानी सैिनको ने िेरे पित को िार न डाला हो | कदािचत पित युद िे शहीद हो गये तो िै जीकर कया करँगी ?'-यह
सोचकर वह अनेक शंका-कुशंकाओं से िघरी रहती िी | िचनतातुर बनी वह एक िदन घोडे पर बैठकर घूिने जा रही िी | िागष िे िकसी िंिदर से आती हुई शंि व िंत धविन ने उसे आकिषत ष िकया | वह एक पेड से अपना घोडा बाँधकर िंिदर िे गयी | बैजनाि िहादे व के इस िंिदर िे
िशवपूजन िे िनिगन पंिडतो से उसने पूछा :"आप लोग कया कर रहे है ?" एक वद बाहण ने
कहा : " हि भगवान िशव का पूजन कर रहे है |" लेडी िािटष न : 'िशवपूजन की कया िहता है ?' बाहण :'बेटी ! भगवान िशव तो औढरदानी है , भोलेनाि है | अपने भको के संकट-िनवारण करने िे वे तिनक भी दे र नहीं करते है | भक उनके दरबार िे जो भी िनोकािना लेकर के आता है , उसे वे शीघ पूरी करते है , िकंतु बेटी ! तुि बहुत िचिनतत और उदास नजर आ रही हो ! कया बात है ?" लेडी िािटष न :" िेरे पितदे व युद िे गये है और िवगत कई िदनो से उनका कोई
सिाचार नहीं आया है | वे युद िे फँस गये है या िारे गये है , कुछ पता नहीं चल रहा | िै उनकी ओर से बहुत िचिनतत हूँ |" इतना कहते हुए लेडी िािटष न की आँिे नि हो गयीं | बाहण : "तुि िचनता ित करो, बेटी ! िशवजी का पूजन करो, उनसे पािन ष ा करो, लघुरदी करवाओ | भगवान िशव तुमहारे पित का रकण अवशय करे गे | "
पंिडतो की सलाह पर उसने वहाँ गयारह िदन का 'ॐ निः िशवाय' िंत से लघुरदी अनुषान पारं भ िकया तिा पितिदन भगवान िशव से अपने पित की रका के िलए पािन ष ा करने लगी िक "हे
भगवान िशव ! हे बैजनाि िहादे व ! यिद िेरे पित युद से सकुशल लौट आये तो िै आपका िशिरबंद िंिदर बनवाऊँगी |" लघुरदी की पूणाह ष ु ित के िदन भागता हुआ एक संदेशवाहक
िशविंिदर िे आया और लेडी िािटष न को एक िलफाफा िदया | उसने घबराते-घबराते वह िलफाफा िोला और पढने लगी |
पत िे उसके पित ने िलिा िा :"हि युद िे रत िे और तुि तक संदेश भी भेजते रहे लेिकन आक पठानी सेना ने घेर िलया | िबिटश सेना कट िरती और िै भी िर जाता | ऐसी िवकट
पिरिसिित िे हि िघर गये िे िक पाण बचाकर भागना भी अियािधक किठन िा | इतने िे िैने दे िा िक युदभूिि िे भारत के कोई एक योगी, िजनकी बडी लमबी जटाएँ है , हाि िे तीन
नोकवाला एक हिियार (ितशूल) इतनी तीव गित से घुि रहा िा िक पठान सैिनक उनहे दे िकर भागने लगे | उनकी कृ पा से घेरे से हिे िनकलकर पठानो पर वार करने का िौका ििल गया
और हिारी हार की घिडयाँ अचानक जीत िे बदल गयीं | यह सब भारत के उन बाघामबरधारी
एवं तीन नोकवाला हिियार धारण िकये हुए (ितशूलधारी) योगी के कारण ही समभव हुआ | उनके िहातेजसवी वयिकिव के पभाव से दे िते-ही-दे िते अफगािनसतान की पठानी सेना भाग िडी हुई
और वे परि योगी िुझे िहमित दे ते हुए कहने लगे | घबराओं नहीं | िै भगवान िशव हूँ तिा
तुमहारी पती की पूजा से पसनन होकर तुमहारी रका करने आया हूँ, उसके सुहाग की रका करने आया हूँ |"
पत पढते हुए लेडी िािटष न की आँिो से अिवरत अशध ु ारा बहती जा रही िी, उसका हदय अहोभाव से भर गया और वह भगवान िशव की पितिा के समिुि िसर रिकर पािन ष ा करते-करते रो पडी | कुछ सपाह बाद उसका पित कनल ष िािटष न आगर छावनी लौटा | पती ने उसे सारी बाते
सुनाते हुए कहा : "आपके संदेश के अभाव िे िै िचिनतत हो उठी िी लेिकन बाहणो की सलाह से िशवपूजा िे लग गयी और आपकी रका के िलए भगवान िशव से पािन ष ा करने लगी | उन दःुिभंजक िहादे व ने िेरी पािन ष ा सुनी और आपको सकुशल लौटा िदया |" अब तो पित-पती
दोनो ही िनयिित रप से बैजनाि िहादे व के िंिदर िे पूजा-अचन ष ा करने लगे | अपनी पती की इचछा पर कनल ष िािटष न िे सन १८८३ िे पंदह हजार रपये दे कर बैजनाि िहादे व िंिदर का जीणोदार करवाया, िजसका िशलालेि आज भी आगर िालवा के इस िंिदर िे लगा है | पूरे भारतभर िे अंगेजो दार िनिित ष यह एकिात िहनद ू िंिदर है |
यूरोप जाने से पूवष लेडी िािटष न ने पिडतो से कहा : "हि अपने घर िे भी भगवान िशव का िंिदर बनायेगे तिा इन दःुि-िनवारक दे व की आजीवन पूजा करते रहे गे |"
भगवान िशव िे... भगवान कृ षण िे... िाँ अमबा िे... आििवेता सदगुर िे.. सता तो एक ही है | आवशयकता है अटल िवशास की | एकलवय ने गुरिूितष िे िवशास कर वह पाप कर िलया जो
अजुन ष को किठन लगा | आरिण, उपिनयु, धुव, पहलाद आिद अनय सैकडो उदारहण हिारे सािने पियक है | आज भी इस पकार का सहयोग हजारो भको को, साधको को भगवान व आििवेता सदगुरओं के दारा िनरनतर पाप होता रहता है | आवशयकता है तो बस, केवल िवशास की |
िहाििृयंज ु य िंत ॐ हौ ज ूँ स ः | ॐ भ ूभ ुष वः सव ः |
ॐ तयमबक ं यजािह े स ु गंिध ं प ुिषव धष नि
|
उवाष रकििव ब नधनानि ृ ियोि ुष कीय िाि ृ तात | सव ः भव ः भ ुः ॐ | सः ज ूँ हौ ॐ
|
भगवान िशव का यह िहाििृयुंजय जपने से अकाल ििृयु तो टलती ही है , आरोगयता की भी पािप होती है | सनान करते सिय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक इस िंत का जप करने से सवासथय-लाभ होता है | दध ू िे िनहारते हुए इस िंत का जाप िकया जाय और िफर वह दध ू पी िलया जय तो यौवन की सुरका िे भी सहायता ििलती है | आजकल की तेज रफ़तारवाली
िजनदगी िे कहाँ आतंक, उपदव, दघ ष ना हो जाय, कहना िुिशकल है | घर से िनकलते सिय एक ु ट बार यह िंत जपनेवाला इन उपदवो से सुरिकत रहता है और सुरिकत घर लौटता है | (इस
िंतानुषान के िविध-िवधान की िवसतत ृ जानकारी के िलए आशि दारा पकािशत 'आरोगयिनिध' पुसतक पढे |) 'शीिदभागवत' के आठवे सकंध िे तीसरे अधयाय के शोक १ से ३३ तक िे विणत ष 'गजेनदिोक' सतोत का पाठ करने से तिाि िवधन दरू होते है |