Vairagya

  • May 2020
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  • Words: 2,237
  • Pages: 6
वैरागय -मुश ँ ी पेमचँद मुश ँ ी शाििगाम बनारस के पुराने रईस थे। जीवन-विृि वकािि थी और पैिक ृ समपिि भी अििक थी। दशाशमेि घाट पर उनका वैभवाििवि गह ृ आकाश को सपशश करिा था। उदार ऐसे िक पचीस-िीस हजार की वाििकश आय भी वयय को पूरी न होिी थी। सािु-बाहमणो के बडे शदावान थे। वे जो कुछ कमािे, वह सवयं बहमभोज और सािुओं के भंडारे एवं सतयकायश मे वयय हो जािा। नगर मे कोई सािु-महातमा आ जाये, वह मुंशी जी का अिििथ। संसकृ ि के ऐसे िवदान िक बडे -बडे पंिडि उनका िोहा मानिे थे वेदाििीय िसदाििो के वे अनुयायी थे। उनके िचि की पविृि वैरागय की ओर थी। मुश ं ीजी को सवभावि: बचचो से बहुि पेम था। मुहलिे-भर के बचचे उनके पेम-वािर से

अिभिसंिचि होिे रहिे थे। जब वे घर से िनकििे थे िब बािाको का एक दि उसके

साथ होिा था। एक िदन कोई पािाण-हदय मािा अपने बचवे को मार थी। िडका िबिखिबिखकर रो रहा था। मुश ं ी जी से न रहा गया। दौडे , बचचे को गोद मे उठा ििया और

सी के सममुख अपना िसर झुक िदया। सी ने उस िदन से अपने िडके को न मारने की शपथ खा िी जो मनुषय दस ू रो के बािको का ऐसा सनेही हो, वह अपने बािक को िकिना पयार करे गा, सो अनुमान से बाहर है । जब से पुत पैदा हुआ, मुश ं ी जी संसार के सब कायो

से अिग हो गये। कहीं वे िडके को िहं डोि मे झुिा रहे है और पसिन हो रहे है । कहीं वे उसे एक सुिदर सैरगाडी मे बैठाकर सवयं खींच रहे है । एक कण के ििए भी उसे अपने पास से दरू नहीं करिे थे। वे बचचे के सनेह मे अपने को भूि गये थे। सुवामा ने िडके का नाम पिापचिद रखा था। जैसा नाम था वैसे ही उसमे गुण भी थे। वह अतयिि पििभाशािी और रपवान था। जब वह बािे करिा, सुनने वािे मुगि हो

जािे। भवय ििाट दमक-दमक करिा था। अंग ऐसे पुष िक िदगुण डीिवािे िडको को भी वह कुछ न समझिा था। इस अलप आयु ही मे उसका मुख-मणडि ऐसा िदवय और जानमय था िक यिद वह अचानक िकसी अपिरिचि मनुषय के सामने आकर खडा हो जािा िो वह िवसमय से िाकने िगिा था। इस पकार हं सिे-खेििे छ: विश वयिीि हो गये। आनंद के िदन पवन की भांिि सिन-से िनकि जािे है और पिा भी नहीं चििा। वे दभ ु ागशय के िदन और िवपिि की रािे है , जो

काटे नहीं कटिीं। पिाप को पैदा हुए अभी िकिने िदन हुए। बिाई की मनोहािरणी धविन

कानो मे गूज ं रही थी छठी विग श ांठ आ पहुंची। छठे विश का अंि दिुदशनो का शीगणेश था। मुश ं ी शाििगाम का सांसािरक समबिि केवि िदखावटी था। वह िनषकाम और िनससमबद जीवन वयिीि करिे थे। यदिप पकट वह सामािय संसारी मनुषयो की भांिि संसार के

किेशो से किेिशि और सुखो से हििि श दिषगोचर होिे थे, िथािप उनका मन सवथ श ा उस महान और आनिदपूवश शांिि का सुख-भोग करिा था, िजस पर द ु:ख के झोको और सुख की थपिकयो का कोई पभाव नहीं पडिा है ।

माघ का महीना था। पयाग मे कुमभ का मेिा िगा हुआ था। रे िगािडयो मे याती रई की भांिि भर-भरकर पयाग पहुंचाये जािे थे। अससी-अससी बरस के वद ृ -िजनके ििए विो से उठना किठन हो रहा था- िंगडािे, िािठयां टे किे मंिजि िै करके पयागराज को जा रहे

थे। बडे -बडे सािु-महातमा, िजनके दशन श ो की इचछा िोगो को िहमािय की अंिेरी गुफाओं मे खींच िे जािी थी, उस समय गंगाजी की पिवत िरं गो से गिे िमिने के ििए आये हुए थे। मुश ं ी शाििगाम का भी मन ििचाया। सुवाम से बोिे- कि सनान है । सुवामा - सारा मुहलिा सूना हो गया। कोई मनुषय नहीं दीखिा। मुश ं ी - िुम चिना सवीकार नहीं करिी, नहीं िो बडा आनंद होिा। ऐसा मेिा िुमने कभी नहीं दे खा होगा।

सुवामा - ऐसे मेिा से मेरा जी घबरािा है । मुश ं ी - मेरा जी िो नहीं मानिा। जब से सुना िक सवामी परमानिद जी आये है िब से उनके दशन श के ििए िचि उिदगन हो रहा है ।

सुवामा पहिे िो उनके जाने पर सहमि न हुई, पर जब दे खा िक यह रोके न रकेगे, िब िववश होकर मान गयी। उसी िदन मुंशी जी गयारह बजे राि को पयागराज चिे गये। चििे समय उिहोने पिाप के मुख का चुमबन िकया और सी को पेम से गिे िगा

ििया। सुवामा ने उस समय दे खा िक उनके नेञ सजि है । उसका किेजा िक से हो गया। जैसे चैत मास मे कािी घटाओं को दे खकर कृ िक का हदय कॉप ं ने िगिा है , उसी भािी मुश ं ीजी ने नेतो का अशप ु ूणश दे खकर सुवामा किमपि हुई। अश ु की वे बूद ं े वैरागय और तयाग का अगाघ समुद थीं। दे खने मे वे जैसे निहे जि के कण थीं, पर थीं वे िकिनी गंभीर और िवसिीण।श

उिर मुश ं ी जी घर के बाहर िनकिे और इिर सुवामा ने एक ठं डी शास िी। िकसी ने

उसके हदय मे यह कहा िक अब िुझे अपने पिि के दशन श न होगे। एक िदन बीिा, दो िदन बीिे, चौथा िदन आया और राि हो गयी, यहा िक िक पूरा सपाह बीि गया, पर मुश ं ी जी न आये। िब िो सुवामा को आकुििा होने िगी। िार िदये, आदमी दौडाये, पर कुछ

पिा न चिा। दस ू रा सपाह भी इसी पयत मे समाप हो गया। मुंशी जी के िौटने की जो

कुछ आशा शेि थी, वह सब िमटटी मे िमि गयी। मुंशी जी का अदशय होना उनके कुटु मब मात के ििए ही नहीं, वरन सारे नगर के ििए एक शोकपूणश घटना थी। हाटो मे दक ु ानो पर, हथाइयो मे अथाि श चारो और यही वािाि श ाप होिा था। जो सुनिा, वही शोक करिा-

कया िनी, कया िनिन श । यह शौक सबको था। उसके कारण चारो और उतसाह फैिा रहिा था। अब एक उदासी छा गयी। िजन गिियो से वे बािको का झुणड िेकर िनकििे थे,

वहां अब िूि उड रही थी। बचचे बराबर उनके पास आने के ििए रोिे और हठ करिे थे। उन बेचारो को यह सुि कहां थी िक अब पमोद सभा भंग हो गयी है । उनकी मािाएं ऑच ं ि से मुख ढांप-ढांपकर रोिीं मानो उनका सगा पेमी मर गया है । वैसे िो मुश ं ी जी के गुप हो जाने का रोना सभी रोिे थे। परििु सब से गाढे आंसू, उन आढिियो और महाजनो के नेतो से िगरिे थे, िजनके िेन-े दे ने का िेखा अभी नहीं हुआ था। उिहोने दस-बारह िदन जैसे-जैसे करके काटे , पशाि एक-एक करके िेखा के पत

िदखाने िगे। िकसी बहनभोज मे सौ रपये का घी आया है और मूलय नहीं िदया गया। कही से दो-सौ का मैदा आया हुआ है । बजाज का सहसो का िेखा है । मििदर बनवािे

समय एक महाजन के बीस सहस ऋण ििया था, वह अभी वैसे ही पडा हुआ है िेखा की िो यह दशा थी। सामगी की यह दशा िक एक उिम गहृ और ितसमबिििनी सामिगयो

के अिििरक कोई वसि न थी, िजससे कोई बडी रकम खडी हो सके। भू-समपिि बेचने के अिििरक अिय कोई उपाय न था, िजससे िन पाप करके ऋण चुकाया जाए।

बेचारी सुवामा िसर नीचा िकए हुए चटाई पर बैठी थी और पिापचिद अपने िकडी के

घोडे पर सवार आंगन मे टख-टख कर रहा था िक पिणडि मोटे राम शासी - जो कुि के पुरोिहि थे - मुसकरािे हुए भीिर आये। उिहे पसिन दे खकर िनराश सुवामा चौककर उठ बैठी िक शायद यह कोई शुभ समाचार िाये है । उनके ििए आसन िबछा िदया और

आशा-भरी दिष से दे खने िगी। पिणडिजी आसान पर बैठे और सुंघनी सूंघिे हुए बोिे िुमने महाजनो का िेखा दे खा?

सुवामा ने िनराशापूणश शबदो मे कहा-हां, दे खा िो। मोटे राम-रकम बडी गहरी है । मुश ं ीजी ने आगा-पीछा कुछ न सोचा, अपने यहां कुछ िहसाबिकिाब न रखा।

सुवामा-हां अब िो यह रकम गहरी है , नहीं िो इिने रपये कया, एक-एक भोज मे उठ गये है ।

मोटे राम-सब िदन समान नहीं बीििे।

सुवामा-अब िो जो ईशर करे गा सो होगा, कया कर सकिी हूं। मोटे राम- हां ईशर की इचछा िो मूि ही है , मगर िुमने भी कुछ सोचा है ? सुवामा-हां गांव बेच डािूंगी। मोटे राम-राम-राम। यह कया कहिी हो ? भूिम िबक गयी, िो िफर बाि कया रह जायेगी? मोटे राम- भिा, पथ ृ वी हाथ से िनकि गयी, िो िुम िोगो का जीवन िनवाह श कैसे होगा? सुवामा-हमारा ईशर माििक है । वही बेडा पार करे गा। मोटे राम यह िो बडे अफसोस की बाि होगी िक ऐसे उपकारी पुरि के िडके-बािे द ु:ख भोगे।

सुवामा-ईशर की यही इचछा है , िो िकसी का कया बस? मोटे राम-भिा, मै एक युिक बिा दं ू िक सांप भी मर जाए और िाठी भी न टू टे । सुवामा- हां, बििाइए बडा उपकार होगा। मोटे राम-पहिे िो एक दरखवासि ििखवाकर किकटर सािहब को दे दो िक मािगुिारी माफ की जाये। बाकी रपये का बिदोबसि हमारे ऊपर छोड दो। हम जो चाहे गे करे गे, परििु इिाके पर आंच ना आने पायेगी। सुवामा-कुछ पकट भी िो हो, आप इिने रपये कहां से िायेगी? मोटे राम- िुमहारे ििए रपये की कया कमी है ? मुश ं ी जी के नाम पर िबना ििखा-पढी के पचास हजार रपये का बिदोसि हो जाना कोई बडी बाि नहीं है । सच िो यह है िक रपया रखा हुआ है , िुमहारे मुह ं से ‘हां’ िनकिने की दे री है । सुवामा- नगर के भद-पुरिो ने एकत िकया होगा? मोटे राम- हां, बाि-की-बाि मे रपया एकत हो गया। साहब का इशारा बहुि था।

सुवामा-कर-मुिक के ििए पाथन श ा-पञ मुझसे न ििखवाया जाएगा और मै अपने सवामी के नाम ऋण ही िेना चाहिी हूं। मै सबका एक-एक पैसा अपने गांवो ही से चुका दंग ू ी। यह कहकर सुवामा ने रखाई से मुह ं फेर ििया और उसके पीिे िथा शोकाििवि बदन पर कोि-सा झिकने िगा। मोटे राम ने दे खा िक बाि िबगडना चाहिी है , िो संभिकर बोिे-

अचछा, जैसे िुमहारी इचछा। इसमे कोई जबरदसिी नहीं है । मगर यिद हमने िुमको िकसी पकार का द ु:ख उठािे दे खा, िो उस िदन पिय हो जायेगा। बस, इिना समझ िो। सुवामा-िो आप कया यह चाहिे है िक मै अपने पिि के नाम पर दस ू रो की कृ िजिा का भार रखूं? मै इसी घर मे जि मरं गी, अनशन करिे-करिे मर जाऊंगी, पर िकसी की उपकृ ि न बनूंगी।

मोटे राम-िछ:िछ:। िुमहारे ऊपर िनहोरा कौन कर सकिा है ? कैसी बाि मुख से िनकाििी

है ? ऋण िेने मे कोई िाज नहीं है । कौन रईस है िजस पर िाख दो-िाख का ऋण न हो? सुवामा- मुझे िवशास नहीं होिा िक इस ऋण मे िनहोरा है । मोटे राम- सुवामा, िुमहारी बुिद कहां गयी? भिा, सब पकार के द ु:ख उठा िोगी पर कया िुमहे इस बािक पर दया नहीं आिी?

मोटे राम की यह चोट बहुि कडी िगी। सुवामा सजिनयना हो गई। उसने पुत की ओर करणा-भरी दिष से दे खा। इस बचचे के ििए मैने कौन-कौन सी िपसया नहीं की? कया

उसके भागय मे द :ु ख ही बदा है । जो अमोिा जिवायु के पखर झोको से बचािा जािा था, िजस पर सूयश की पचणड िकरणे न पडने पािी थीं, जो सनेह-सुिा से अभी िसंिचि रहिा

था, कया वह आज इस जििी हुई िूप और इस आग की िपट मे मुरझायेगा? सुवामा कई िमनट िक इसी िचििा मे बैठी रही। मोटे राम मन-ही-मन पसिन हो रहे थे िक अब सफिीभूि हुआ। इिने मे सुवामा ने िसर उठाकर कहा-िजसके िपिा ने िाखो को

िजिाया-िखिाया, वह दस ू रो का आिशि नहीं बन सकिा। यिद िपिा का िमश उसका

सहायक होगा, िो सवयं दस को िखिाकर खायेगा। िडके को बुिािे हुए ‘बेटा। ििनक

यहां आओ। कि से िुमहारी िमठाई, दि ू , घी सब बिद हो जायेगे। रोओगे िो नहीं?’ यह कहकर उसने बेटे को पयार से बैठा ििया और उसके गुिाबी गािो का पसीना पोछकर चुमबन कर ििया।

पिाप- कया कहा? कि से िमठाई बिद होगी? कयो कया हिवाई की दक ु ान पर िमठाई नहीं है ?

सुवामा-िमठाई िो है , पर उसका रपया कौन दे गा? पिाप- हम बडे होगे, िो उसको बहुि-सा रपया दे गे। चि, टख। टख। दे ख मां, कैसा िेज घोडा है ।

सुवामा की आंखो मे िफर जि भर आया। ‘हा हिि। इस सौिदयश और सुकुमारिा की

मूििश पर अभी से दिरदिा की आपिियां आ जायेगी। नहीं नहीं, मै सवयं सब भोग िूंगी। परििु अपने पाण-पयारे बचचे के ऊपर आपिि की परछाहीं िक न आने दंग ू ी।’ मािा िो

यह सोच रही थी और पिाप अपने हठी और मुंहजोर घोडे पर चढने मे पूणश शिक से िीन हो रहा था। बचचे मन के राजा होिे है । अिभपाय यह िक मोटे राम ने बहुि जाि फैिाया। िविवि पकार का वाकचािुयश िदखिाया, परििु सुवामा ने एक बार ‘नहीं करके ‘हां’ न की। उसकी इस आतमरका का समाचार

िजसने सुना, ििय-ििय कहा। िोगो के मन मे उसकी पििषा दन ू ी हो गयी। उसने वही िकया, जो ऐसे संिोिपूणश और उदार-हदय मनुषय की सी को करना उिचि था।

इसके पिदहवे िदन इिाका नीिामा पर चढा। पचास सहस रपये पाप हुए कुि ऋण चुका

िदया गया। घर का अनावशयक सामान बेच िदया गया। मकान मे भी सुवामा ने भीिर से ऊंची-ऊंची दीवारे िखंचवा कर दो अिग-अिग खणड कर िदये। एक मे आप रहने िगी और दस ू रा भाडे पर उठा िदया।

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