पस ताव ना
ििस पकार भवन का सथािितव एवं सुदढता नींव पर िनभरभ है । आि का
िवदाथी कल का नागिरक है ।
उिित मागद भ शन भ एवं संसकारो को पाकर वह एक आदशभ नागिरक बन सकता है ।
िवदाथी तो एक ननहे -
से कोमल पौधे की तरह होता है । उसे ििद उतम िशका-
दीका िमले तो वही ननहा-सा कोमल पौधा भिवषि मे
िवशाल वक ृ बनकर पललिवत और पुिषपत होता हुआ अपने सौरभ से संपूणभ िमन को
महका सकता है । लेिकन िह तभी संभव है िब उसे कोई िोगि मागद भ शक भ िमल िाएँ, कोई समथभ गुर िमल िाएँ
और वह दढता तथा ततपरता से उनके उपिदष मागभ का अनुसरण कर ले।
नारदिी के मागद भ शन भ
एवं सविं की ततपरता से धुव भगवद-दशन भ पाकर अटलपद मे पितिित हुआ। हिार-हिार िवघनबाधाओं के बीि भी पहाद हिरभिि मे इतना तललीन रहा िक भगवान निृसंह को अवतार लेकर पगट होना पडा।
मीरा ने अनत समि तक िगिरधर गोपाल की भिि नहीं छोडी। उसके पभु-पेम के आगे
िवषधर को हार बनना पडा, काँटो को फूल बनना पडा। आि भी मीरा का नाम करोडो लोग बडी शदा से लेते है ।
(अनुकम)
ऐसे ही कबीर िी, नानक िी, तुकाराम िी व एकनाथ िी महाराि िैसे अनेक संत हो गिे है , ििनहोने
अपने गुर के बताए मागभ पर दढता
व ततपरता से िलकर मनुषि िीवन के अंितम धिेि परमातम-साकातकार को पा िलिा।
हे िवदाथीिो! उनके िीवन का
अनुसरण करके एवं उनके बतलािे
हुए मागभ पर िलकर आप भी अवशि महान बन सकते हो।
परम पूजि संत शी
आसारामिी महाराि दारा विणत भ िुिििो एवं संतो तथा गुरभिो के
ििरत का इस पुसतक से अधििन, मनन एवं ििनतनकर आप भी
अपना िीवन-पथ आलोिकत करे गे, इसी पाथन भ ा के साथ......................
िवनीत,
शी िोग वेदानत सेवा सिमित अहमदाबाद आशम।
पसतावना। पूजि बापू िी का उदबोधन।
अनुकम
कदम अपना आगे बढाता िला िा..... तू गुलाब होकर महक।
िीवन िवकास का मूल 'संिम'। ितकाल संधिा।
शरीर सवासथि। अनन का पभाव।
भारतीि संसकृ ित की महता। हिरदास की हिरभिि।
बनावटी शग ं ृ ार से बिो। साहसी बालक।
गुरआजापालन का िमतकार। अनोखी गुरदिकणा। सतसंग की मिहमा।
'पीड पराई िाने रे '।
िवकास के बैिरिो से सावधान! कुछ िानने िोगि बाते। शिन की रीत।
सनान का तरीका।
सवचछता का धिान। समरणशिि का िवकास।
वििितव और विवहार।
पूजि ब ापू िी का उ दबोध न
हमारा भारत उन ऋिषिो मुिनिो का दे श है ििनहोने आिदकाल से ही इसकी विवसथाओं के उिित संिालन के िनिमत अनेक िसदानतो की रिना कर पतिेक शुभ कािभ के िनिमत अनेक िसदानतो की रिना कर पतिेक शुभ कािभ के साथ धािमक भ आिार-संिहता का िनमाण भ िकिा है । मनुषि के कमभ को ही ििनहोने धमभ बना िदिा ऐसे
ऋिष-मुिनिो ने बालक के िनम से ही मनुषि के कलिाण का मागभ पशसत िकिा। लेिकन मनुषि िाित का दभ ु ागभि है िक
वह उनके िसदानतो को न अपनाते हुए, पथभष होकर, अपने िदल मे अनमोल खिाना छुपा होने के बाविूद भी, किणक
सुख की तलाश मे अपनी पावन संसकृ ित का पिरतिाग कर, िवषि-िवलास-िवकार से आकिषत भ होकर िनतिपित िवनाश की गहरी खाई मे िगरती िा रही है ।
आशिभ तो मुझे तब होता है , िब उम की दहलीज पर कदम रखने से पहले ही आि के
िवदाथी को पाशाति अंधानुकरण की तिभ पर िवदे शी िेनलो से पभािवत होकर ििसको, शराब,
िुआ, सटटा, भाँग, गाँिा, िरस आिद अनेकानेक पकार की बुराईिो से िलप होते दे खता हूँ।
भारत वही है लेिकन कहाँ तो उसके भि पहाद,
बालक धुव व आरिण-एकलवि िैसे परम गुरभि और कहाँ आि के अनुशासनहीन, उदणि एवं उचछृंखल बचिे? उनकी
तुलना आि के नादान बचिो से कैसे करे ? आि का बालक बेिारा उिित मागद भ शन भ के अभाव मे पथभष हुए िा रहा है , ििसके सवािभधक ििममेदार उसके माता-िपता ही है ।
पािीन िुग मे माता-िपता बचिो को सनेह तो करते थे, लेिकन साथ ही धमि भ ुि, संिमी
िीवन-िापन करते हुए अपनी संतान को अनुशासन, आिार-संिहता एवं िशषता भी िसखलाते थे और आि के माता-िपता तो अपने बचिो के सामने ऐसे विवहार करते है िक किा बतलाऊँ? कहने मे भी शमभ आती है ।
पािीन िुग के माता-िपता अपने बचिो को वेद, उपिनषद एवं गीता के कलिाणकारी शोक
िसखाकर उनहे सुसंसकृ त करते थे। लेिकन आिकल के माता-िपता तो अपने बचिो को गंदी
िवनाशकारी िफलमो के दिूषत गीत िसखलाने मे बडा गवभ महसूस करते है । िही कारण है िक
पािीन िुग मे शवण कुमार िैसे मातृ-िपतभ ृ ि पैदा हुए िो अंत समि तक माता-िपता की सेवा-
शुशष ू ा से सविं का िीवन धनि कर लेते थे और आि की संताने तो बीबी आिी िक बस... माता-िपता से कह दे ते है िक तुम-तुमहारे , हम-हमारे । कई तो ऐसी कुसंताने िनकल िाती है िक बेिारे माँ-बाप को ही धकका दे कर घर से बाहर िनकाल दे ती है ।
इसिलए माता-िपता को िािहए िक वे अपनी संतान के गभध भ ारण की पिकिा से ही धमभ
व शास-विणत भ , संतो के कहे उपदे शो का पालन कर तदनुसार ही िनम की पिकिा संपनन करे
तथा अपने बचिो के सामने कभी कोई ऐसा िकिाकलाप िा कोई अशीलता न करे ििसका बचिो के िदलो-िदमाग पर िवपरीत असर पडे ।
पािीन काल मे गुरकुल पदित िशका की सवोतम परमपरा थी। गुरकुल मे रहकर बालक
दे श व समाि का गौरव बनकर ही िनकलता था किोिक बचिा पितपल गुर की नजरो के सामने रहता था और आतमवेता सदगुर िितना अपने िशषि का सवाग ा ीण िवकास करते है , उतना मातािपता तो कभी सोि भी नहीं सकते।
आिकल के िवदालिो मे तो पेट भरने की
ििनता मे लगे रहने वाले िशकको एवं शासन की
दिूषत िशका-पणाली के दारा बालको को ऐसी िशका दी िा रही है िक बडा होते ही उसे िसफभ नौकरी की ही
तलाश रहती है । आिकल का पढा-िलखा हर नौिवान मात कुसी पर बैठने की ही नौकरी पसनद करता है ।
उदम-विवसाि िा पिरशमी कमभ को करने मे हर कोई
कतराता है । िही कारण है िक दे श मे बेरोिगारी, नशाखोरी और आपरािधक पविृतिाँ बढती िा रही है किोिक 'खाली िदमाग शैतान का घर' है । ऐसे मे सवाभािवक ही उिित मागद भ शन भ के अभाव मे िुवा पीढी मागभ से भटक गिी है ।
आि समाि मे आवशिकता है ऐसे महापुरषो की, सदगुरओं की तथा संतो की िो बचिो
तथा िुवा िवदािथि भ ो का मागद भ शन भ कर उनकी सुषुप शिि का अपनी अपनी शििपात-वषाभ से िागत कर सके।
आि के िवदािथि भ ो को उिित मागद भ शक भ की बहुत आवशिकता है ििनके सािननधि मे
पाशाति-सभिता का अंधानुकरण करने वाले ननहे -मुनहे लेिकन भारत का भिवषि कहलाने वाले िवदाथी अपना िीवन उननत कर सके।
िवदाथी िीवन का िवकास तभी संभव है िब उनहे िथािोगि मागद भ शन भ िदिा िाए।
माता-िपता उनहे बालिावसथा से ही भारतीि संसकृ ित के अनुरप िीवन-िापन की, संिम एवं सादगीिुि िीवन की पेरणा पदान कर, िकसी ऐसे महापुरष का सािननधि पाप करवािे िो सविं िीवनमुि होकर अनिो को भी मुिि पदान करने का सामथिभ रखते हो.
भारत मे ऐसे कई बालक पैदा हुए है ििनहोने ऐसे महापुरषो के िरणो मे अपना िीवन
अपण भ कर, लाखो-करोडो िदलो मे आि भी आदरणीि पूिनीि बने रहने का गौरव पाप िकिा है ।
इन मेधावी वीर बालको की कथा इसी पुसतक मे हम आगे पढे गे भी। महापुरषो के सािननधि का ही िह फल है िक वे इतनी ऊँिाई पर पहुँि सके अनिथा वे कैसा िीवन िीते किा पता?
हे िवदाथी! तू भारत का भिवषि, िवश का गौरव
और अपने माता-िपता की शान है । तेरे भीतर भी
असीम सामथभ का भणिार छुपा पडा है । तू भी खोि ले ऐसे जानी पुरषो को और उनकी करणा-कृ पा का
खिाना पा ले। िफर दे ख, तेरा कुटु मब और तेरी िाित तो किा, संपूणभ िवश के लोग तेरी िाद और तेरा नाम िलिा करे गे।
इस पुसतक मे ऐसे ही जानी महापुरषो, संतो
और गुरभिो तथा भगवान के लािलो की कथाओं
तथा अनुभवो का वणन भ है , ििसका बार-बार पठन,
ििनतन और मनन करके तुम सिमुि मे महान बन िाओगे। करोगे ना िहममत?
िनति धिान, पाणािाम, िोगासन से अपनी सुषुप शिििो को िगाओ। दीन-हीन-कंगला िीवन बहुत हो िुका। अब
उठो... कमर कसो। िैसा बनना है वैसा आि से और अभी से संकलप करो.... मनुषि सविं ही अपने भागि का िनमात भ ा है । (अनुकम)
कदम अपना आगे बढा ता िला िा....
कदम अपना आगे बढाता िला िा। सदा पेम के गीत गाता िला िा।। तेरे मागभ मे वीर! काँटे बडे है । िलिे तीर हाथो मे वैरी खडे है ।
बहादरु सबको िमटाता िला िा।
कदम अपना आगे बढाता िला िा।। तू है आिव भ ंशी ऋिषकुल का बालक। पतापी िशसवी सदा दीनपालक।
तू संदेश सुख का सुनाता िला िा। कदम अपना आगे बढाता िला िा।। भले आि तूफान उठकर के आिे। बला पर िली आ रही है बलाएँ। िुवा वीर है दनदनाता िला िा।
कदम अपना आगे बढाता िला िा।। िो िबछुडे हुए है उनहे तू िमला िा। िो सोिे पडे है उनहे तू िगा िा।
तू आनंद का िं का बिाता िला िा।
कदम अपना आगे बढाता िला िा।।
(अनुकम)
तू ग ु लाब हो कर महक .....
संगित का मानव िीवन पर अतििधक पभाव पडता है । ििद अचछी संगत िमले तो मनुषि महान हो िाता है , लेिकन
वही मनुषि ििद कुसंग के िककर मे पड िाए तो अपना िीवन नष कर लेता है । अतः अपने से िो पढाई मे एवं िशषता मे
आगे हो ऐसे िवदािथि भ ो का आदरपूवक भ संग करना िािहए तथा अपने से िो नीिे हो उनहे दिापूवक भ ऊपर उठाने का पिास
करना िािहए, लेिकन साथ ही िह धिान भी रहे की कहीं हम उनकी बातो मे न फँस िाएं।
एक बार मेरे सदगुरदे व पूजिपाद सवामी शी लीलाशाह
िी महाराि ने मुझे गुलाब का फूल बताकर कहाः "िह किा है ?" मैने कहाः 'बापू! िह गुलाब का फूल है ।"
उनहोने आगे कहाः "इसे तू िालिा के ििबबे पर रख िफर सूँघ अथवा गुड के ऊपर रख,
शककर के ऊपर रख िा िने अथवा मूग ँ की दाल पर रख, गंदी नाली के पास रख ऑिफस मे रख। उसे सब िगह घुमा, सब िगह रख, िफर सूँघ तो उसमे िकसकी सुगंध आएगी?" मैने कहाः"िी, गुलाब की।"
गुरदे वः "गुलाब को कहीं भी रख दो और िफर सूँघो तो उसमे से सुगनध गुलाब की ही
आएगी। ऐसे ही हमारा िीवन भी गुलाब िैसा होना िािहए। हमारे सदगुणो की सुगनध दस ू रो को लेनी हो तो ले िकनतु हममे िकसी की दग भ ध पिवष न हो। तू गुलाब होकर महक.... तुझे िमाना ु न िाने।
िकसी के दोष हममे ना आिे, इसका धिान रखना िािहए। अपने गुण कोई लेना िाहे तो
भले ले ले।
भगवान का धिान करने से, एकाग होने से, माता-िपता का आदर करने से, गुरिनो की
बातो को आदरपूवक भ मानने से हममे सदगुणो की विृद होती है ।
पातःकाल िलदी उठकर माता-िपता को पणाम करो। भगवान शीरामिनदिी पातःकाल
िलदी उठकर माता-िपता एवं गुर को पणाम करते थे।
पात ःकाल उठ िह रघ ु नाथा मात ु -िपत ु ग ुर नाविह ं मा था।
शीरामिनदिी िब गुर आशम मे रहते थे ते गुर िी से पहले ही नींद से िाग िाते थे। गुर स े प हले िगप ित िाग े राम स ुिान।
ऐसा राम ििरतमानस मे आता है ।
माता-िपता एवं गुरिनो का आदर करने से हमारे िीवन मे दै वी गुण िवकिसत होते है , ििनके पभाव से ही हमारा िीवन िदवि होने लगता है ।
हे िवदाथी! तू भी िनषकामता, पसननता, असंगता की महक फैलाता िा।
(अनुकम)
िीवन िव कास का म ूल 'संिम '
एक बडे महापुरष थे। हिारो-लाखो लोग उनकी पूिा करते
थे, िि-ििकार करते थे। लाखो लोग उनके िशषि थे, करोडो लोग
उनहे शदा-भिि से नमन करते थे। उन महापुरष से िकसी वििि ने पूछाः
"रािा-महारािा, राषपित िैसे लोगो को भी केवल सलामी
मारते है िा हाथ िोड लेते है , िकनतु उनकी पूिा नहीं करते। िबिक लोग आपकी पूिा करते है । पणाम भी करते है तो बडी शदा-भिि से। ऐसा नहीं िक केवल हाथ िोड िदिे। लाखो लोग आपकी फोटो
के आगे भोग रखते है । आप इतने महान कैसे बने?
दिुनिा मे मान करने िोगि तो बहुत लोग है , बहुतो को धनिवाद और पशंसा िमलती है
लेिकन शदा-भिि से ऐसी पूिा न तो सेठो की होती है न साहबो की, न पेसीिे ट की होती है न
िमिलटी ऑिफसर की, न रािा की और न महारािा की। अरे ! शी कृ षण के साथ रहने वाले भीम, अिुन भ , िुिधििर आिद की भी पूिा नहीं होती िबिक शीकृ षण की पूिा करोडो लोग करते है ।
भगवान राम को करोडो लोग मानते है । आपकी पूिा भी भगवान िैसी ही होती है । आप इतने महान कैसे बने?"
उन महापुरष ने िवाब मे केवल एक ही शबद कहा और वह शबद था - 'संिम'।
तब उस वििि ने पुनः पूछाः "हे गुरवर! किा आप बता सकते है िक आपके िीवन मे 'संिम' का पाठ कबसे शुर हुआ?"
महापुरष बोलेः "मेरे िीवन मे 'संिम' की शुरआत मेरी पाँि वषभ की आिु से ही हो गिी।
मै िब पाँि वषभ का था तब मेरे िपता िी ने मुझसे कहाः
"बेटा! कल हम तुमहे गुरकुल भेिेगे। गुरकुल िाते समि तेरी माँ साथ मे नहीं होगी, भाई
भी साथ नहीं आिेगा और मै भी साथ नहीं आऊँगा। कल सुबह नौकर तुझे सनान, नाशता करा
के, घोडे पर िबठाकर गुरकुल ले िािेगा। गुरकुल िाते समि ििद हम सामने होगे तो तेरा मोह हममे हो सकता है । इसिलए हम दस ू रे के घर मे िछप िािेगे। तू हमे नहीं दे ख सकेगा िकनतु हम ऐसी विवसथा करे गे िक हम तुझे दे ख सकेगे। हमे दे खना है िक तू रोते-रोते िाता है िा
हमारे कुल के बालक को ििस पकार िाना िािहए वैसे िाता है । घोडे पर िब िािेगा और गली मे मुडेगा, तब भी ििद तू पीछे मुडकर दे खेगा तो हम समझेगे िक तू हमारे कुल मे कलंक है ।" पीछे मुडकर दे खने से भी मना कर िदिा। पाँि वषभ के बालक से इतनी िोगिता की
इचछा रखने वाले मेरे माता-िपता को िकतना कठोर हदि करना पडा होगा? पाँि वषभ का बेटा सुबह गुरकुल िािे, िाते वि माता-िपता भी सामने न हो और गली मे मुडते वि घर की ओर दे खने की भी मनाही! िकतना संिम!! िकतना कडक अनुशासन!!!
िपता ने कहाः "िफर िब तुम गुरकुल मे पहुँिोगे और गुरिी तुमहारी परीका के िलए
तुमसे कहे गे िक 'बाहर बैठो' तब तुमहे बाहर बैठना पडे गा। गुर िी िब तक बाहर से अनदर आने की आजा न दे तब तक तुमहे वहाँ संिम का पिरिि दे ना पडे गा। िफर गुरिी ने तुमहे गुरकुल
मे पवेश िदिा, पास िकिा तो तू हमारे घर का बालक कहलािेगा, अनिथा तू हमारे खानदान का नाम बढानेवाला नहीं, नाम िु बानेवाला सािबत होगा। इसिलए कुल पर कलंग मत लगाना, वरन ् सफलतापूवक भ गुरकुल मे पवेश पाना।"
मेरे िपता िी ने मुझे समझािा और मै गुरकुल मे पहुँिा। हमारे नौकर ने िाकर गुरिी
से आजा माँगी िक िह िवदाथी गुरकुल मे आना िाहता है ।
गुरिी बोलेः "उसको बाहर बैठा दो।" थोडी दे र मे गुरिी बाहर
आिे और मुझसे बोलेः "बेटा! दे ख, इधर बैठ िा, आँखे बनद कर ले। िब तक मै नहीं आऊँ और िब तक तू मेरी आवाज न सुने तब तक तुझे आँखे नहीं खोलनी है । तेरा तेरे शरीर पर, मन पर और अपने आप पर
िकतना संिम है इसकी कसौटी होगी। अगर तेरा अपने आप पर संिम
होगा तब ही गुरकुल मे पवेश िमल सकेगा। ििद संिम नहीं है तो िफर तू महापुरष नहीं बन सकता, अचछा िवदाथी भी नहीं बन सकेगा।"
संिम ही िीवन की नींव है । संिम से ही एकागता आिद गुण िवकिसत होते है । ििद
संिम नहीं है तो एकागता नहीं आती, तेििसवता नहीं आती, िादशिि नहीं बढती। अतः िीवन मे संिम िािहए, िािहए और िािहए।
कब हँ सना और कब एकागिित होकर सतसंग सुनना, इसके िलए भी संिम िािहए। कब
ताली बिाना और कब नहीं बिाना इसके िलिे भी संिम िािहए। संिम ही सफलता का सोपान है । भगवान को पाना हो तो भी संिम जररी है । िसिद पाना हो तो भी संिम िािहए और
पिसिद पाना हो तो भी संिम िािहए। संिम तो सबका मूल है । िैसे सब विञिनो का मूल पानी है , िीवन का मूल सूिभ है ऐसे ही िीवन के िवकास का मूल संिम है ।
गुरिी तो कहकर िले गिे िक "िब तक मै न आऊँ तब तक आँखे नहीं खोलना।" थोडी दे र मे गुरकुल का िरसेस हुआ। सब बचिे आिे। मन हुआ िक दे खे कौन है , किा है ? िफर िाद
आिा िक संिम। थोडी दे र बाद पुनः कुछ बचिो को मेरे पास भेिा गिा। वे लोग मेरे आसपास खेलने लगे, कबडिी-कबडिी की आवाि भी सुनी। मेरी दे खने की इचछा हुई परनतु मुझे िाद आिा िक संिम।।
मेरे मन की शिि बढाने का पहला पिोग हो गिा, संिम। मेरी समरणशिि बढाने की
पहली कुँिी िमल गई , संिम। मेरे िीवन को महान बनाने की पथम कृ पा गुरिी दारा हुई –
संिम। ऐसे महान गुर की कसौटी से उस पाँि वषभ की छोटी-सी वि मे पार होना था। अगर मै अनुतीणभ हो िाता तो िफर घर पर, मेरे िपतािी मुझे बहुत छोटी दिष से दे खते।
सब बचिे खेल कर िले गिे िकनतु मैने आँखे नहीं खोलीं। थोडी दे र के बाद गुड और
शककर की िासनी बनाकर मेरे आसपास उडे ल दी गई। मेरे घुटनो पर, मेरी िाँघ पर भी िासनी की कुछ बूँदे िाल दी गई। िी िाहता था िक आँखे खोलकर दे खूँ िक अब किा होता है ? िफर
गुरिी की आजा िाद आिी िक 'आँखे मत खोलना।' अपनी आँख पर, अपने मन पर संिम। शरीर पर िींिटिाँ िलने लगीं। लेिकन िाद था िक पास होने के िलए 'संिम' जररी है ।
तीन घंटे बीत गिे, तब गुरिी आिे और बडे पेम से बोलेः "पुत उठो, उठो। तुम इस
परीका मे उतीणभ रहे । शाबाश है तुमहे ।" ऐसा कहकर गुरिी ने सविं
पवेश िमल गिा। गुर के आशम मे िमल गिा। िफर गुर की आजा के पहुँि गिा।
इस पकार मुझे महान बनाने मे
अपने हाथो से मुझे उठािा। गुरकुल मे पवेश अथात भ भगवान के राजि मे पवेश
अनुसार कािभ करते-करते इस ऊँिाई तक मुखि भूिमका संिम की ही रही है । ििद
बालिकाल से ही िपता की आजा को न मान कर संिम का पालन न करता तो आि न िाने
कहाँ होता? सिमुि संिम मे अदभुत सामथिभ है । संिम के बल पर दिुनिा के सारे कािभ संभव है िितने भी महापुरष, संतपुरष इस दिुनिा मे हो िुके है िा है , उनकी महानता के मूल मे उनका संिम ही है ।
वक ृ के मूल मे उसका संिम है । इसी से उसके पते हरे -भरे है , फूल िखलते है , फल लगते
है और वह छािा दे ता है । वक ृ का मूल अगर संिम छोड दे तो पते सूख िािेगे, फूल कुमहला िाएंगे, फल नष हो िाएंगे, वक ृ का िीवन िबखर िािेगा।
वीणा के तार संित है । इसी से मधुर सवर गूँिता है । अगर वीणा के तार ढीले कर िदिे
िािे तो वे मधुर सवर नहीं आलापते।
रे ल के इं िन मे वाषप संित है तो हिारो िाितिो को दरू सूदरू की िाता कराने मे वह
वाषप सफल होती है । अगर वाषप का संिम टू ट िािे, इधर-उधर िबखर िािे तो? रे लगाडी दोड
नहीं सकती। ऐसे ही हे मानव! महान बनने की शतभ िही है – संिम, सदािार। हिार बार असफल होने पर भी िफर से पुरषाथभ कर, अवशि सफलता िमलेगी। िहममत न हार। छोटा-छोटा संिम का वत आिमाते हुए आगे बढ और महान हो िा।
(अनुकम)
ितक ाल संधिा
िीवन को ििद तेिसवी बनाना हो, सफल बनाना हो, उननत बनाना हो तो मनुषि को ितकाल संधिा जरर करनी िािहए। पातःकाल सूिोदि से दस िमनट पहले और दस िमनट बाद
मे, दोपहर को बारह बिे के दस िमनट पहले और दस िमनट बाद मे तथा सािंकाल को सूिास भ त के पाँि-दस िमनट पहले और बाद मे, िह समि संिध का होता है । इस समि िकिा हुआ
पाणािाम, िप और धिान बहुत लाभदािक होता है िो मनुषि सुषुमना के दार को खोलने मे भी सहिोगी होता है । सुषुमना का दार खुलते ही मनुषि की छुपी हुई शिििाँ िागत होने लगती है । पािीन ऋिष-मुिन ितकाल संधिा िकिा करते थे। भगवान विशष
भी ितकाल संधिा करते थे और भगवान राम भी ितकाल संधिा करते थे। भगवान राम दोपहर को संधिा करने के बाद ही भोिन करते थे। संधिा के समि हाथ-पैर धोकर, तीन िुललू पानी पीकर िफर
संधिा मे बैठे और पाणािाम करे िप करे तो बहुत अचछा। अगर कोई आिफस मे है तो वहीं मानिसक रप से कर ले तो भी ठीक है । लेिकन पाणािाम, िप और धिान करे जरर। िैसे उदोग करने से, पुरषाथभ करने से दिरदता नहीं रहती, वैसे
ही पाणािाम करने से पाप कटते है । िैसे पित करने से धन िमलता है , वैसे ही पाणािाम करने से आंतिरक सामथिभ, आंतिरक बल िमलता
है । छांदोगि उपिनषद मे िलखा है िक ििसने पाणािाम करके मन को पिवत िकिा है उसे ही गुर के आिखरी उपदे श का रं ग लगता है और आतम-परमातमा का साकातकार हो िाता है ।
मनुषि के फेफडो तीन हिार छोटे -छोटे िछद होते है । िो लोग साधारण रप से शास लेते
है उनके फेफडो के केवल तीन सौ से पाँि सौ तक के िछद ही काम करते है , बाकी के बंद पडे
रहते है , ििससे शरीर की रोग पितकारक शिि कम हो िाती है । मनुषि िलदी बीमार और बूढा हो िाता है । विसनो एवं बुरी आदतो के कारण भी शरीर की शिि िब िशिथल हो िाती है , रोगपितकारक शिि कमिोर हो िाती है तो िछद बंद पडे होते है उनमे िीवाणु पनपते है और शरीर पर हमला कर दे ते है ििससे दमा और टी.बी. की बीमारी होन की संभावना बढ िाती है ।
परनतु िो लोग गहरा शास लेते है , उनके बंद िछद भी खुल िाते है । फलतः उनमे कािभ करने की कमता भी बढ िाती है तथा रि शुद होता है , नाडी भी शुद रहती है , ििससे मन भी
पसनन रहता है । इसीिलए सुबह, दोपहर और शाम को संधिा के समि पाणािाम करने का िवधान है । पाणािाम से मन पिवत होता है , एकाग होता है ििससे मनुषि मे बहुत बडा सामथिभ आता है ।
ििद मनुषि दस-दस पाणािाम तीनो समि करे और शराब, माँस, बीडी व अनि विसनो
एवं फैशनो मे न पडे तो िालीस िदन मे तो मनुषि को अनेक अनुभव होने लगते है । केवल
िालीस िदन पिोग करके दे िखिे, शरीर का सवासथि बदला हुआ िमलेगा, मन बदला हुआ िमलेगा, िठरा पदीप होगी, आरोगिता एवं पसननता बढे गी और समरण शिि मे िादई ु िवकास होगा।
पाणािाम से शरीर के कोषो की शिि बढती है । इसीिलए ऋिष-मुिनिो ने ितकाल संधिा
की विवसथा की थी। राित मे अनिाने मे हुए पाप सुबह की संधिा से दरू होते है । सुबह से दोपहर तक के दोष दोपहर की संधिा से और दोपहर के बाद अनिाने मे हुए पाप शाम की संधिा करने से नष हो िाते है तथा अंतःकरण पिवत होने लगता है ।
आिकल लोग संधिा करना भूल गिे है , िनदा के सुख मे लगे हुए है । ऐसा करके वे
अपनी िीवन शिि को नष कर िालते है ।
पाणािाम से िीवन शिि का, बौिदक शिि का एवं समरण शिि का िवकास होता है ।
सवामी रामतीथभ पातःकाल मे िलदी उठते, थोडे पाणािाम करते और िफर पाकृ ितक वातावरण मे घूमने िाते। परमहं स िोगानंद भी ऐसा करते थे।
सवामी रामतीथभ बडे कुशाग बुिद के िवदाथी थे। गिणत उनका िपि िवषि था। िब वे
पढते थे, उनका तीथरभाम था। एक बार परीका मे 13 पश िदिे गिे ििसमे से केवल 9 हल करने
थे। तीथरभाम ने 13 के 13 पश हल कर िदिे और नीिे एक िटपपणी (नोट) िलख दी, ' 13 के 13 पश सही है । कोई भी 9 िाँि लो।', इतना दढ था उनका आतमिवशास।
पाणािाम के अनेक लाभ है । संधिा के समि िकिा हुआ पाणािाम, िप और धिान अनंत
गुणा फल दे ता है । अिमट पुणिपुंि दे ने वाला होता है । संधिा के समि हमारी सब नािडिो का
मूल आधार िो सुषुमना नाडी है , उसका दार खुला होता है । इससे िीवन शिि, कुणििलनी शिि के िागरण मे सहिोग िमलता है । उस समि िकिा हुआ धिान-भिन पुणिदािी होता है , अिधक
िहतकारी और उननित करने वाला होता है । वैसे तो धिान-भिन कभी भी करो, पुणिदािी होता ही है , िकनतु संधिा के समि उसका उसका पभाव और भी बढ िाता है । ितकाल संधिा करने से िवदाथी भी बडे तेिसवी होते है ।
अतएव िीवन के सवाग ा ीण िवकास के िलए मनुषिमात को ितकाल संधिा का सहारा
लेकर अपना नैितक, सामाििक एवं आधिाितमक उतथान करना िािहए।
(अनुकम)
शरी र सवासथि
लोकमानि ितलक िब िवदाथी अवसथा मे थे तो उनका शरीर बहुत दब ु ला
पतला और कमिोर था, िसर पर फोडा भी था। उनहोने सोिा िक मुझे दे श की
आिादी के िलए कुछ काम करना है , माता-िपता एवं समाि के िलए कुछ करना है तो शरीर तो मिबूत होना ही िािहए और मन भी दढ होना िािहए, तभी मै कुछ
कर पाऊँगा। अगर ऐसा ही कमिोर रहा तो पढ-िलखकर पाप िकिे हुए पमाण-पत
भी किा काम आिेगे?
िो लोग िसकुडकर बैठते है , झुककर बैठते है , उनके िीवन मे बहुत बरकत नहीं आती। िो
सीधे होकर, िसथर होकर बैठते है उनकी िीवन-शिि ऊपर की ओर उठती है । वे िीवन मे सफलता भी पाप करते है ।
ितलक ने िनशि िकिा िक भले ही एक साल के िलए पढाई छोडनी पडे तो छोिू ँ गा
लेिकन शरीर और मन को सुदढ बनाऊँगा। ितलक िह िनशि करके शरीर को मिबूत और मन को िनभीक बनाने मे िुट गिे। रोज सुबह-शाम दोड लगाते, पाणािाम करते, तैरने िाते, मािलश करते तथा िीवन को संिमी बनाकर बहििभ की िशकावाली 'िौवन सुरका' िैसी पुसतके पढते।
सालभर मे तो अचछा गठीला बदन हो गिा का। पढाई-िलखाई मे भी आगे और लोक-कलिाण मे
भी आगे। राममूितभ को सलाह दी तो राममूितभ ने भी उनकी सलाह सवीकार की और पहलवान बन गिे।
बाल गंगाधर ितलक के िवदाथी िीवन के संकलप को आप भी समझ िाना और अपने
िीवन मे लाना िक 'शरीर सुदढ होना िािहए, मन सुदढ होना िािहए।' तभी मनुषि मनिाही सफलता अिित भ कर सकता है ।
ितलक िी से िकसी ने पूछाः "आपका वििितव इतना पभावशाली कैसे है ? आपकी ओर
दे खते है तो आपके िेहरे से अधिातम, एकागता और तरणाई की तरलता िदखाई दे ती है ।
'सवराजि मेरा िनमिसद अिधकार है ' ऐसा िब बोलते है तो लोग दं ग रह िाते है िक आप िवदाथी है , िुवक है िा कोई तेिपुि ं है ! आपका ऐसा तेिोमि वििितव कैसे बना?"
तब ितलक ने िवाब िदिाः "मैने िवदाथी िीवन से ही अपने शरीर को मिबूत और दढ
बनाने का पिास िकिा था। सोलह साल से लेकर इककीस साल तक की उम मे शरीर को िितना भी मिबूत बनाना िाहे और िितना भी िवकास करना िाहे , हो सकता है ।"
इसीिलए िवदाथी िीवन मे इस बार पर धिान दे ना िािहए िक सोलह से इककीस साल तक की उम शरीर और मन को मिबूत बनाने के िलए है ।
मै (परम पूजि गुरदे व आसारामिी बापू) िब िौदह-पनदह वषभ का था, तब मेरा कद बहुत
छोटा था। लोग मुझे 'टे णी' (िठं ग)ू कहकर बुलाते तो मुझे बुरा लगता। सवािभमान तो होना ही
िािहए। 'टे णी' ऐसा नाम ठीक नहीं है । वैसे तो िवदाथी-काल मे भी मेरा हँ समुखा सवभाव था, इससे िशकको ने मेरा नाम 'आसुमल' के बदले 'हँ समुखभाई' ऱख िदिा था। लेिकन कद छोटा था तो िकसी ने 'टे णी' कह िदिा, िो मुझे बुरा लगा। दिुनिा मे सब कुछ संभव है तो 'टे णी' किो
रहना? मै कांकिरिा तालाब पर दौड लगाता, 'पुललअपस' करता और 30-40 गाम मकखन मे एक-दो
गाम कालीिमिभ के टु कडे िालकर िनगल िाता। िालीस िदन तक ऐसा पिोग िकिा। अब मै उस वििि से िमला ििसने 40 िदन पहल 'टे णी' कहा था, तो वह दे खकर दं ग रह गिा।
आप भी िाहो तो अपने शरीर के सवसथ रख सकते हो। शरीर को सवसथ रखने के कई
तरीके है । िैसे धनवनतरी के आरोगिशास मे एक बात आती है - 'उषःपान।'
'उषःपान' अथात भ सूिोदि के पहले िा सूिोदि के समि रात का रखा हुआ पानी पीना।
इससे आँतो की सफाई होती है , अिीणभ दरू होता है तथा सवासथि की भी रका होती है । उसमे
आठ िुललू भरकर पानी पीने की बात आिी है । आठ िुललू पानी िािन िक एक िगलास पानी। िार-पाँि तुलसी के पते िबाकर, सूिोदि के पहले पानी पीना िािहए। तुलसी के पते सूिोदि के बाद तोडने िािहए, वे सात िदन तक बासी नहीं माने िाते।
शरीर तनदरसत होना िािहए। रगड-रगडकर िो नहाता है और िबा-िबाकर खाता है , िो
परमातमा का धिान करता है और सतसंग मे िाता है , उसका बेडा पार हो िाता है ।
(अनुकम)
अन न का पभा व
हमारे िीवन के िवकास मे भोिन का अतििधक महतव है । वह
केवल हमारे तन को ही पुष नहीं करता वरन ् हमारे मन को, हमारी बुिद को, हमारे िविारो को भी पभािवत करता है । कहते भी है ः
िै सा खाओ अ नन व ैसा होता ह ै मन।
महाभारत के िुद मे पहले, दस ू रे , तीसरे और िौथे िदन केवल कौरव-कुल के लोग ही मरते
रहे । पांिवो के एक भी भाई को िरा-सी भी िोट नहीं लगी। पाँिवाँ िदन हुआ। आिखर दि ु ोधन
को हुआ िक हमारी सेना मे भीषम िपतामह िैसे िोदा है िफर भी पांिवो का कुछ नहीं िबगडता, किा कारण है ? वे िाहे तो िुद मे किा से किा कर सकते है । िविार
करते-करते आिखर वह इस िनषकषभ पर आिा िक भीषम िपतामह पूरा मन लगाकर पांिवो का मूलोचछे द करने को तैिार नहीं हुए है । इसका किा कारण है ? िह िानने के िलए सतिवादी
िुिधििर के पास िाना िािहए। उससे पूछना िािहए िक हमारे सेनापित होकर भी वे मन लगाकर िुद किो नहीं करते?
पांिव तो धमभ के पक मे थे। अतः दि ु ोधन िनःसंकोि पांिवो के िशिवर मे पहुँि गिा।
वहाँ पर पांिवो ने िथािोगि आवभगत की। िफर दि ु ोधन बोलाः
"भीम, अिुन भ , तुम लोग िरा बाहर िाओ। मुझे केवल िुिधििर से बात करनी है ।" िारो भाई िुिधििर के िशिवर से बाहर िले गिे िफर दि ु ोधन ने िुिधििर से पूछाः
"िुिधििर महाराि! पाँि-पाँि िदन हो गिे है । हमारे कौरव-पक के लोग ही मर रहे है िकनतु आप लोगो का बाल तक बाँका नहीं होता, किा बात है ? िाहे तो दे ववत भीषम तूफान मिा सकते है ।"
िुिधििरः "हाँ, मिा सकते है ।"
दि ु ोधनः "वे िाहे तो भीषण िुद कर सकते है पर नहीं कर रहे है । किा आपको लगता है
िक वे मन लगाकर िुद नहीं कर रहे है ?"
सतिवादी िुिधििर बोलेः "हाँ, गंगापुत भीषम मन लगाकर िुद नहीं कर रहे है ।" दि ु ोधनः "भीषम िपतामह मन लगाकर िुद नहीं कर रहे है इसका किा कारण होगा?"
िुिधििरः "वे सति के पक मे है । वे पिवत आतमा है अतः समझते है िक कौन सचिा है और कौन झूठा। कौन धमभ मे है तथा कौन अधमभ मे। वे धमभ के पक मे है इसिलए उनका िी िाहता है िक पांिव पक की जिादा खून-खराबी न हो किोिक वे सति के पक मे है ।" दि ु ोधनः "वे मन लगाकर िुद करे इसका उपाि किा है ?"
िुिधििरः "ििद वे सति – धमभ का पक छोड दे गे, उनका मन गलत िगह हो िाएगा, तो िफर वे िुद करे गे।"
दि ु ोधनः "उनका मन िुद मे कैसे लगे?"
िुिधििरः "ििद वे िकसी पापी के घर का अनन खािेगे तो उनका मन िुद मे लग
िाएगा।"
दि ु ोधनः "आप ही बताइिे िक ऐसा कौन सा पापी होगा ििसके घर का अनन खाने से
उनका मन सति के पक से हट िािे और वे िुद करने को तैिार हो िािे?"
िुिधििरः "सभा मे भीषम िपतामह, गुर दोणािािभ िैसे महान लोग बैठे थे िफर भी दोपदी
को नगन करने की आजा और िाँघ ठोकने की दष ु ता तुमने की थी। ऐसा धमभ-िवरद और पापी
आदमी दस ू रा कहाँ से लािा िािे? तुमहारे घर का अनन खाने से उनकी मित सति और धम भ के पक से नीिे िािेगी, िफर वे मन लगाकर िुद करे गे।"
दि ु ोधन ने िुिि पा ली। कैसे भी करके, कपट करके, अपने िहाँ का अनन भीषम िपतामह
को िखला िदिा। भीषम िपतामह का मन बदल गिा और छठवे िदन से उनहोने घमासान िुद करना आरं भ कर िदिा।
कहने का तातपिभ िह है िक िैसा अनन होता है वैसा ही मन होता है । भोिन करे तो
शुद भोिन करे । मिलन और अपिवत भोिन न करे । भोिन के पहले हाथ-पैर िरर धोिे। भोिन साितवक हो, पिवत हो, पसननता दे ने वाला हो, तनदरसती बढाने वाला हो। आहारश ुदौ सतवश ुिद ः।
िफर भी ठू ँ स-ठू ँ स कर भोिन न करे । िबा-िबाकर ही भोिन करे । भोिन के समि शांत
एवं पसननिित रहे । पभु का समरण कर भोिन करे । िो आहार खाने से हमारा शरीर तनदर ु सत रहता हो वही आहार करे और ििस आहार से हािन होती हो ऐसे आहार से बिे। खान-पान मे संिम से बहुत लाभ होता है ।
भोिन मेहनत का हो, साितवक हो। लहसुन, पिाि, मांस आिद और जिादा तेल-िमिभ-मसाले
वाला न हो, उसका िनिमत अचछा हो और अचछे ढं ग से, पसनन होकर, भगवान को भोग लगाकर िफर भोिन करे तो उससे आपका भाव पिवत होगा। रि के कण पिवत होगे, मन पिवत होगा।
िफर संधिा-पाणािाम करे गे तो मन मे साितवकता बढे गी। मन मे पसननता, तन मे आरोगिता का िवकास होगा। आपका िीवन उननत होता िािेगा।
मेहनत मिदरूी करके, िवलासी िीवन िबताकर िा कािर होकर िीने के िलिे िजंदगी नहीं
है । िजंदगी तो िैतनि की मसती को िगाकर परमातमा का आननद लेकर इस लोक और परलोक मे सफल होने के िलए है । मुिि का अनुभव करने के िलए िजंदगी है ।
भोिन सवासथि के अनुकूल हो, ऐसा िविार करके ही गहण करे । तथाकिथत वनसपित घी
की अपेका तेल खाना अिधक अचछा है । वनसपित घी मे अनेक रासाििनक पदाथभ िाले िाते है िो सवासथि के िलए िहतकर नहीं होते है ।
एलिुमीिनिम के बतन भ मे खाना िह पेट को बीमार करने िैसा है । उससे बहुत हािन
होती है । कैनसर तक होने की समभावना बढ िाती है । ताँबे, पीतल के बतन भ कलई िकिे हुए हो तो अचछा है । एलिुमीिनिम के बतन भ मे रसोई नहीं बनानी िािहए। एलिूमीिनिम के बतन भ मे खाना भी नहीं िािहए।
आिकल अणिे खाने का पिलन समाि मे बहुत बढ गिा है । अतः मनुषिो की बुिद भी
वैसी ही हो गिी है । वैजािनको ने अनुसंधान करके बतािा है िक 200 अणिे खाने से िितना
िवटािमन 'सी' िमलता है उतना िवटािमन 'सी' एक नारं गी (संतरा) खाने से िमल िाता है । िितना पोटीन, कैिलशिम अणिे मे है उसकी अपेका िने, मूँग, मटर मे जिादा पोटीन है । टमाटर मे अणिे से तीन गुणा कैिलशिम जिादा है । केले मे से कैलौरी िमलती है । और भी कई िवटािमनस केले मे है ।
ििन पािणिो का मांस खािा िाता है उनकी हतिा करनी पडती है । ििस वि उनकी हतिा की िाती है उस वि वे अिधक से अिधक अशांत, िखनन, भिभीत, उिदगन और कुद होते है । अतः मांस खाने वाले को भी भि, कोध, अशांित, उदे ग इस आहार से िमलता है । शाकाहारी
भोिन मे सुपाचि तंतु होते है , मांस मे वे नहीं होते। अतः मांसाहारी भोिन को पिाने के िीवन शिि का जिादा विि होता है । सवासथि के िलिे एवं मानिसक शांित आिद के िलए पुणिातमा होने की दिष से भी शाकाहारी भोिन ही करना िािहए।
शरीर को सथूल करना कोई बडी बात नहीं है और न ही इसकी जररत है , लेिकन बुिद को
सूकम करने की जररत है । आहार ििद साितवक होगा तो बुिद भी सूकम होगी। इसिलए सदै व साितवक भोिन ही करना िािहए।
(अनुकम)
भा रत ीि स ंसकृित की महान ता
रे वरनि ऑवर नाम का एक पादरी पूना मे िहनद ू धमभ की िननदा
और ईसाइित का पिार कर रहा था। तब िकसी सजिन ने एक बार रे वरनि ऑवर से कहाः
"आप िहनद ू धमभ की इतनी िननदा करते हो तो किा आपने िहनद ू
धमभ का अधििन िकिा है ? किा भारतीि संसकृ ित को पूरी तरह से िानने की कोिशश की है ?
आपने कभी िहनद ू धमभ को समझा ही नहीं, िाना ही नहीं है । िहनद ू धमभ मे तो ऐसे िप, धिान और सतसंग की बाते है िक ििनहे अपनाकर मनुषि िबना िवषि-िवकारी के, िबना ििसको
िांस(नतृि) के भी आराम से रह सकता है , आनंिदत और सवसथ रह सकता है । इस लोक और परलोक दोनो मे सुखी रह सकता है । आप िहनद ू धमभ को िाने िबना उसकी िनंदा करते हो, िह ठीक नहीं है । पहले िहनद ू धमभ का अधििन तो करो।"
रे वरनि ऑवर ने उस सजिन की बात मानी और िहनद ू धमभ की पुसतको को पढने का
िविार िकिा। एकनाथिी और तुकारामिी का िीवन ििरत, जानेशर महाराि की िोग सामथिभ की बाते और कुछ धािमक भ पुसतके पढने से उसे लगा िक भारतीि संसकृ ित मे तो बहुत खिाना है । मनुषि की पजा को िदवि करने की, मन को पसनन करने की और तन के रिकणो को भी
बदलने की इस संसकृ ित मे अदभुत विवसथा है । हम नाहक ही इन भोले-भाले िहनदस ु तािनिो को अपने िंगल ु मे फँसाने के िलए इनका धमप भ िरवतन भ करवाते है । अरे ! हम सविं तो अशािनत की आग मे िल ही रहे है और इनहे भी अशांत कर रहे है ।
उसने पाििशत-सवरप अपनी िमशनरी रो तिागपत िलख भेिाः "िहनदस ु तान मे ईसाइित
फैलाने की कोई जररत नहीं है । िहनद ू संसकृ ित की इतनी महानता है , िवशेषता है िक ईसाइि को
िािहए िक उसकी महानता एवं सतिता का फािदा उठाकर अपने िीवन को साथक भ बनािे। िहनद ू धमभ की सतिता का फािदा दे श-िवदे श मे पहुँिे, मानव िाित को सुख-शांित िमले, इसका पिास हमे करना िािहए।
मै 'भारतीि इितहास संशोधन मणिल' के मेरे आठ लाख िॉलर भेट करता हूँ और तुमहारी
िमशनरी को सदा के िलए तिागपत दे कर भारतीि संसकृ ित की शरण मे िाता हूँ।"
िैसे रे वरणि ऑवर ने भारतीि संसकृ ित का अधििन िकिा, ऐसे और लोगो को भी, िो
िहनद ू धमभ की िनंदा करते है , भारतीि संसकृ ित का पकपात और पूवग भ हरिहत अधििन करना िािहए, मनुषि की सुषुप शिििाँ व आनंद िगाकर, संसार मे सुख-शांित, आनंद, पसननता का पिार-पसार करना िािहए।
माँ सीता की खोि करते-करते हनुमान, िामबंत, अंगद आिद सविंपभा के आशम मे पहुँिे।
उनहे िोरो की भूख और पिास लगी थी। उनहे दे खकर सविंपभा ने कह िदिा िकः
"किा तुम हनुमान हो? शीरामिी के दत ू हो? सीता िी की खोि मे िनकले हो?" हनुमानिी ने कहाः "हाँ, माँ! हम सीता माता की खोि मे इधर तक आिे है ।" िफर सविंपभा ने अंगद की ओर दे खकर कहाः
"तुम सीता िी को खोि तो रहे हो, िकनतु आँखे बंद करके खोि रहे हो िा आँखे खोलकर?"
अंगद िरा रािवी पुरष था, बोलाः "हम किा आँखे बनद करके खोिते होगे? हम तो आँखे
खोलकर ही माता सीता की खोि कर रहे है ।"
सविंपभा बोलीः "सीतािी को खोिना है तो आँखे खोलकर नहीं बंद करके खोिना होगा।
सीता िी अथात भ ् भगवान की अधािागनी, सीतािी िानी बहिवदा, आतमिवदा। बहिवदा को खोिना है तो आँखे खोलकर नहीं आँखे बंद करके ही खोिना पडे गा। आँखे खोलकर खोिोगे तो सीतािी नहीं िमलेगीं। तुम आँखे बनद करके ही सीतािी (बहिवदा) को पा सकते हो। ठहरो मै तुमहे बताती हूँ िक सीता िी कहाँ है ।"
धिान करके सविंपभा ने बतािाः "सीतािी िहाँ कहीं भी नहीं, वरन ् सागर पार लंका मे
है । अशोकवािटका मे बैठी है और राकिसिो से िघरी है । उनमे ितिटा नामक राकसी है तो रावण की सेिवका, िकनतु सीतािी की भि बन गिी है । सीतािी वहीं रहती है ।"
वारन सोिने लगे िक भगवान राम ने तो एक महीने के अंदर सीता माता का पता लगाने
के िलए कहा था। अभी तीन सपाह से जिादा समि तो िहीं हो गिा है । वापस किा मुह ँ लेकर िाएँ? सागर तट तक पहुँिते-पहुँिते कई िदन लग िाएँगे। अब किा करे ?
उनके मन की बात िानकर सविंपभा ने कहाः "ििनता मत करो। अपनी आँखे बंद करो। मै िोगबल से एक कण मे तुमहे वहाँ पहुँिा दे ती हूँ।"
हनुमान, अंगद और अनि वानर अपनी आँखे बनद करते है और सविंपभा अपनी
िोगशिि से उनहे सागर-तट पर कुछ ही पल मै पहुँिा दे ती है । शीरामििरतमानस मे आिा है िक –
ठाड े सकल िसं धु के तीरा।
ऐसी है भारतीि संसकृ ित की कमता।
अमेिरका को खोिने वाला कोलंबस पैदा भी नहीं हुआ था उससे पाँि हिार वषभ पहले
अिुन भ सशरीर सवगभ मे गिा था और िदवि अस लािा था। ऐसी िोगिता थी िक धरती के रािा खटवांग दे वताओं को मदद करने के िलए दे वताओं का सेनापितपद संभालते थे। पितसमिृत-िवदा, िाकुषी िवदा, परकािापवेश िवदा, अषिसिद िवदा एवं नविनिध पाप कराने वाली िोगिवदा और िीते-िी िीव को बह बनाने वाली बहिवदा िह भारतीि संसकृ ित की दे न है , अनि िगह िह
नहीं िमलती भारतीि संसकृ ित की िो लोग आलोिना करते है उन बेिारो को तो पता ही नहीं है िक भारतीि संसकृ ित िकतनी महान है ।
गुर त ेगबहाद ु र बोिलिो , सुन ो सीखो बडभा िगिो ,
धड दीि े ध मभ न छो िडि े। िवनो ने गुर गोिबनदिसंह के बेटो से कहाः "तुम लोग मुसलमान हो िाओ, नहीं तो हम
तुमहे िजनदा ही दीवार मे िुनवा दे गे।"
बेटे बोलेः "हम अपने पाण दे सकते है लेिकन अपना धमभ नहीं तिाग सकते।"
कूरो ने उन दोनो को िीते-िी दीवार मे िुनवा िदिा। िब कारीगर उनहे दीवार मे िुनने लगे तब बडा भाई बोलता है ः "धमभ के नाम ििद हमे मरना ही पडता है तो पहले मेरी ओर ईटे बढा दो तािक मै छोटे भाई की मतृिु न दे खूँ।"
छोटा भाई बोलता है ः "नहीं पहले मेरी ओर ईटे बढा दो।"
किा साहसी थे! किा वीर थे! वीरता के साथ अपने िीवन का बिलदान कर िदिा िकनतु धमभ न छोडा। आिकल के लोग तो अपने धमभ और संसकृ ित को ही भूलते िा रहे है । कोई
'लवर-लवरी' धमप भ िरवतन भ करके 'लवमेरेि' करते है , अपना िहनद ू धमभ छोडकर फँस मरते है , िह भी कोई िजनदगी है ? भगवान शीकृ षण कहते है –
सवध मे िनधन ं श े ि पर धमो भिावहः
अपने धमभ मे मर िाना अचछा है । परािा धमभ दःुख दे ने वाला है , भिावह है , नरको मे ले
िाने वाला है । इसिलए अपने ही धमभ मे, अपनी ही संसकृ ित मं िो िीता है उसकी शोभा है ।
रे वरणि ऑवर ने भारतीि संसकृ ित का खूब आदर िकिा। एफ. एि. मोलेम ने, महातमा थोरो एवं अनि कई पाशाति ििनतको ने भी भारतीि संसकृ ित का बहुत आदर िकिा है । उनके कुछ उदगार िहाँ पसतुत है ः
"बाईबल का मैने िथाथभ अभिास िकिा है । उसमे िो िदवि िलखा है वह
केवल गीता के उदरण के रप मे है । मै ईसाई होते हुए भी गीता के पित इतना
सारा आदरभाव इसिलए रखता हूँ िक ििन गूढ पशो का समाधान पाशाति लोग अभी तक नहीं खोि पािे है उनका समाधान गीतागनथ ने शुद एवं सरल रीित
से कर िदिा है । उसमे कई सूत अलौिकक उपदे शो से भरपूर लगे इसीिलए गीता िी मेरे िलए साकात िोगेशरी माता बन रही है । वह तो िवश के तमाम धन से भी नहीं खरीदा िा सके ऐसा भारतवषभ का अमूलि खिाना है ।" -
एफ . एि . मोल े म (इंगल ै णि )
"पािीन िुग की सवभ रमणीि वसतुओं मे गीता से शि े कोई वसतु नहीं है । गीता मे ऐसा
उतम और सववभिापी जान है िक उसके रिििता दे वता को असंखि वषभ हो गिे िफर भी ऐसा दस ू रा एक भी गनथ नहीं िलखा गिा।"
महातमा थोरो
(अमेिरका )
"धमभ के केत मे अनि सब दे ख दिरद है िबिक भारत इस िवषि मे अरबपित है ।"
माकभ टव ेन (िू .एस .ए.)
"इस पथृवी पर सवािभधक पूणभ िवकिसत मानवपजा कहाँ है और िीवन के महतम पशो के
हल िकसने खोिे है ऐसा अगर मुझसे पूछा िाए तो मै अंगिु लिनदे श करके कहूँगा िक भारत ने ही।"
मेक समूलर (िमभ नी ) "वेदानत िैसा ऊधवग भ ामी एवं उतथानकारी और एक भी धमभ िा ततवजान नहीं है ।" शो पनहोअर
(िमभ नी )
"िवशभर मे केवल भारत ही ऐसी शि े महान परमपराएँ रखता है िो सिदिो तक िीिवत
रही है ।"
केनो
(फानस )
"मनुषि िाित के अिसततव के सबसे पारिमभक िदनो से लेकर आि तक िीिवत मनुषि के तमाम सवपन अगर कहीं साकार हुए हो तो वह सथान है भारत।"
रोम ां रोला ं (फाँस )
"भारत दे श समपूणभ मानव िाित की मातभ ृ िू म है और संसकृ त िूरोप की सभी भाषाओं की
िननी है । भारत हमारे ततवजान, गिणतशास एवं िनतंत की िननी है । भारतमाता अनेक रप से सभी की िननी है ।"
िवल ि ुरानट
(िू .एस .ए.)
भारतीि संसकृ ित की महानता का एहसास करने वाले इन सब िवदे शी ििनतको को हम
धनिवाद दे ते है ।
एक बार महातमा थोरो सो रहे थे। इतने मे उनका िशषि एमसन भ आिा। दे खा िक वहाँ
साँप और िबचछू घूम रहे है । गुरिी के िागने पर एमसन भ बोलाः
"गुरदे व! िह िगह बडी खतरनाक है । मै िकसी सुरिकत िगह पर आपकी विवसथा करवा
दे ता हूँ।"
महातमा थोरो बोलेः "नहीं, नहीं। ििनता करने की कोई जररत नहीं है । मेरे िसरहाने पर
शीमदभगवदगीता है । भगवदगीता के जान के कारण तो मुझे साँप मे, िबचछू मे, सबमे मेरा ही आतमा-परमातमा िदखता है । वे मुझे नहीं काटते है तो मै कहीं किो िाऊँ?"
िकतनी कहे गीता की महानता! िही है भारतीि संसकृ ित की मिहमा!! अदभुत है उसकी
महानता! लाबिान है उसकी मिहमा!!
(अनुकम)
हिरदास की
हिरभिि
सात वषीि गौर वणभ के गौरांग बडे -बडे िवदान पंिितो से ऐसे-ऐसे पश करते थे िक वे दं ग रह िाते थे। इसका कारण था गौरांग की हिरभिि। बडे होकर उनहोने लाखो लोगो को हिरभिि मे रं ग िदिा।
िो हिरभि होता, हिर का भिन करता उसकी बुिद अचछे मागभ पर ही
िाती है । लोभी वििि पैसो के िलए हं सता-रोता है , पद एवं कुसी के तो िकतने ही लोग हँ सते रोते है , पिरवार के िलए तो िकतने ही मोही हँ सते रोते है िकनतु धनि है वे, िो
भगवान के िलए रोते हँ सते है । भगवान के िवरह मे ििसे रोना आिा है , भगवान के िलए ििसका हदि िपघलता है ऐसे लोगो का िीवन साथक भ हो िाता है । भागवत मे भगवान शीकृ षण उदव से कहते है -
वाग ग दगदा दवत े िसि िित ं
रदतिभीकण ं ह सित कव ििच ि। िवलजि उ दगािित न ृ तित े ि मदभििि ुिो भ ुवन ं प ुनाित।।
'ििसकी वाणी गदगद हो िाती है , ििसका िित दिवत हो िाता है , िो बार-बार रोने लगता है , कभी लजिा छोडकर उचि सवर से गाने लगता है , कभी नािने लगता है ऐसा मेरा भि समग संसार को पिवत करता है ।' (शीमदभागवतः 11.14.24)
धनि है वह मुसलमान बालक िो गौरांग के कीतन भ मे आता है और ििसने गौरांग से
मंतदीका ली है ।
उस मुसलमान बालक का नाम 'हिरदास' रखा गिा। मुसलमान लोगो ने उस हिरभि
हिरदास को फुसलाने की बहुत िेषा की, बहुत िरािा िक, 'तू गौरांग के पास िाना छोडे दे नहीं तो हम िह करे गे, वह करे गे।' िकनतु हिरदास बहका नहीं। उसका भि नष हो गिा था, दम ु िभत दरू हो िुकी थी। उसकी सदबुिद और िनिा भगवान के धिान मे लग गिी थी। 'भिनाशन हरण , किल मे हिर को नाम था।
द ु मभ ित
' िह नानक िी का विन मानो उसके िीवन मे साकार हो उठा
काजी ने षििंत करके उस पर केस िकिा और फरमान िारी िकिा िक 'हिरदास को बेत
मारते-मारते बीि बािार से ले िाकर िमुना मे िाल िदिा िािे।'
िनभीक हिरदास ने बेत की मार खाना सवीकार िकिा िकनतु हिरभिि छोडना सवीकार न
िकिा। िनिशत िदन हिरदास को बेत मारते हुए ले िािा िाने लगा। िसपाही बेत मारता है तो हिरदास बोलता है ः "हिर बोल...।"
"हमको हिर बोल बुलवाता है ? िे ले हिर बोल, हिर बोल।" (सटाक...सटाक) िसपाही बोलते है ः "हम तुझे बेत मारते है तो किा तुझे पीडा नहीं होती? तू हमसे भी 'हिर
बोल... हिर बोल' करवाना िाहता है ?"
हिरदासः "पीडा तो शरीर को होती है । मै तो आतमा हूँ। मुझे तो पीडा नहीं होती। तुम भी
पिार से एक बार 'हिर बोल' कहो।"
िसपाहीः हे ! हम भी 'हिर बोल' कहे ? हमसे 'हिर बोल' बुलवाता है ? ले िे हिर बोल।" (सटाक) हिरदास सोिता है िक बेत मारते हुए भी तो िे लोग 'हिर बोल' कह रहे है । िलो, इनका
कलिाण होगा। िसपाही बेत मारते िाते है सटाक... सटाक... और हिरदास 'हिर बोल' बोलता भी
िाता है , बुलवाता भी िाता है । हिरदास को कई बेत पडने पर भी उसके िेहरे पर दःुख की रे खा तक नहीं िखंिती।
हवालदार पूछता है ः "हिरदास! तुझे बेत पडने के बाविूद भी तेरी आँखो मे िमक है , िेहरे
पर धैिभ, शांित और पसननता झलक रही है । किा बात है ?"
हिरदासः "मै बोलता हूँ 'हिर बोल' तब िसपाही कुद होकर भी कहते है ः हे ? हमसे भी
बुलवाता है हिर बोल... हिर बोल... हिर बोल.... तो ले।' इस बहाने भी उनके मुँह से हिरनाम िनकलता है । दे र सवेर उनका भी कलिाण होगा। इसी से मेरे िित मे पसननता है ।"
धनि है हिरदास की हिरभिि! कूर काजी के आदे श का पालन करते हुए िसपाही उसे
हिरभिि से िहनद ू धमभ की दीका से चिुत करने के िलए बेत मारते है िफर भी वह िनिर हिरभिि नहीं छोडता। 'हिर बोल' बोलना बंद नहीं करता।
वे मुसलमान िसपाही हिरदास को िहनद ू धमभ की दीका के पभाव से, गौरां के पभाव से दरू
हटाना िाहते थे लेिकन वह दरू नहीं हटा, बेत सहता रहा िकनतु 'हिर बोल' बोलना न छोडा। आिखरकार उन कूर िसपाहीिो ने हिरदास को उठाकर नदी मे बहा िदिा।
नदी मे तो बहा िदिा लेिकन दे खो हिरनाम का पभाव! मानो िमुनािी ने उसको गोद मे
ले िलिा। िे ढ मील तक हिरदास पानी मे बहता रहा। वह शांतिित होकर, मानो उस पानी मे नहीं, हिर की कृ पा मे बहता हुआ दरू िकसी गाँव के िकनारे िनकला। दस ू रे िदन गौरांग की पभातफेरी मे शािमल हो गिा। लोग आशिि भ िकत हो गिे िक िमतकार कैसे हुआ?
धनि है वह मुसलमान िुवक हिरदास िो हिर के धिान मे, हिर के गान मे, हिर के कीतन भ
मे गौरांग क साथ रहा। िैसे िववेकाननद के साथ भिगनी िनवेिदता ने भारत मे, अधिातम-धणभ के पिार मे लगकर अपना नाम अमर कर िदिा, वैसे ही इस मुसलमान िुवक ने हिरकीतन भ मे,
हिरधिान मे अपना िीवन धनि कर िदिा। दि भ लोग हिरदास का बाल तक न बाँका कर सके। ु न िो सचिे हदि से भगवान का हो िाता है उसकी, हिारो शतु िमलकर भी कुछ हािन नहीं कर सकते तो उस काजी की किा ताकत थी?
लोगो ने िाकर काजी से कहा िक आि हिरदास पुनः गौरांग की पभातफेरी मे उपिसथत
हो गिा था। कािी अतिनत अहं कारी था। उसने एक नोिटस भेिा। एक आदे श िैतनि महापभु (गौरांग) को भेिा िक 'कल से तुम पभातफेरी नहीं िनकाल सकते। तुमहारी पभातफेरी पर बंिदश लगाई िाती है ।'
गौरांग ने सोिा िक हम िकसी का बुरा नहीं करते, िकसी को कोई हािन
नहीं पहुँिाते। अरे ! वािुमणिल के पदष ू ण को दरू करने के िलए तो शासन पैसे
खिभ करता है । िकनतु िविारो के पदष भ िैसा, हिरभिि िैसा ू ण को दरू करने के िलए हिरकीतन
अमोघ उपाि कौन सा है ? भले कािी और शासन की समझ मे आिे िा न आिे। वातावरण को शुद करने के साथ-साथ िविारो का पदष भ करे गे और ू ण भी दरू होना िािहए। हम तो कीतन करवािेगे।
िो लोग िरपोक थे, भीर और कािर थे, ढीले-ढाले थे वे बोलेः "बाबा िी! रहने दो, रहने दो।
अपना किा? िो करे गे वे भरे गे। अपन तो घर मे ही रहकर 'हिर ॐ.... हिर ॐ' करे गे।"
गौरांग ने कहाः "नहीं, इस पकार कािरो िैसी बात करना है तो हमारे पास मत आिा
करो।"
दस ू रे िदन िो िरपोक थे ऐसे पाँि-दस वििि नहीं आिे, बाकी के िहममतवाले िितने थे
वे सब आिे। उनहे दे खकर और लोग भी िुडे।
गौरांग बोलेः "आि हमारी पभातफेरी की पूणाह भ ू ित कािी के घर पर ही होगी।"
गौरांग भि-मणिली के साथ कीतन भ करते-करते िब बािार से गुजरे तो कुछ िहनद ू एवं
मुसलमान भी कीतन भ मे िुड गिे। उनको भी कीतन भ मे रस आने लगा। वे लोग कािी को गािलिाँ दे ने लगे िक 'कािी बदमाश है , ऐसा है , वैसा है ...' आिद – आिद। तब गौरांग कहते है ः "नहीं शतु के िलए भी बुरा मत सोिो।"
उनहोने सबको समझा िदिा िक कािी के िलए कोई भी अपशबद नहीं कहे गा। कैसी महान
है हमारी िहनद ू संसकृ ित! ििसने हिरदास को बेत मारने का आदे श िदिा उसे केवल अपशबद
कहने के िलए भी गौरांग मना कर रहे है । इस भारती संसकृ ित मे िकतनी उदारता है , सहदिता है । लेिकन कािरता को कहीं भी सथान नहीं है ।
गौरांग कीतन भ करते-करते कािी के घर के िनकट पहुँि गिे। कािी घर की छत पर से
इस पभातफेरी को दे खकर दं ग रह गिा िक मेरे मना करने पर भी इनहोने पभातफेरी िनकाली
और मेरे घर तक ले आिे। उसमे मुसलमान लडके भी शािमल है । जिो ही वह पभातफेरी कािी के घर पहुँिी, कािी घर के अनदर िछप गिा।
गौरांग ने कािी का दार खटखटािा, तब कािी िा कािी की पती ने नहीं, वरन ् िौकीदार
ने दरवािा खोला। वह बोलाः
"कािी साहब घर पर नहीं है ।"
गौरांग बोलेः "नहीं कैसे है ? अभी तो हमने उनहे घर की छत पर दे खा था। कािी को िाकर बोलो हमारे मामा और माँ भी ििस गाँव की है आप भी उसी गाँव के हो इसिलए आप मेरे गाँव के मामा लगते है । मामािी! भानिा दार पर आिे और आप छुप कर बैठे, िह शोभा नहीं दे ता। बाहर आ िाईिे।"
िौकीदार न िाकर कािी को सब कह सुनािा। गौरांग के पेमभरे विन सुनकर कािी का
हदि िपघल गिा। 'ििस पर मैने िुलम ढािे वह मुझे मामा कहकर संबोिधत करता है । ििसके साथ मैने कूरता की वह मेरे साथ िकतना औदािभ रखता है ।' िह सोिकर कािी का हदि बदल गिा। वह दार पर आकर बोलाः
"मै तुमसे िरकर अनदर नहीं छुपा किोिक मेरे पास तो सता है , कलम की ताकत है ।
लेिकन हिरकीतन भ से, हिरनाम से िहनद ू तो किा, मुसलमान लडके भी आनंिदत हो रहे है , उनका भी लहू पिवत हो रहा है िह दे खकर मुझे दःुख हो रहा है िक ििस नाम के उचिारण से उनकी रगरग पावन हो रही है उसी नाम के कारण मैने हिरदास पर और तुम पर िुलम िकिा। िकसी के
बहकावे मे आकर तुम लोगो पर फरमान िारी िकिा। अब मै िकस मुँह से तुमहारे सामने आता? इसीिलए मै मुँह िछपाकर घर के अनदर घुस गिा था।"
भानिा(गौरांग) बोलता है ः "मामा! अब तो बाहर आ िाइिे।" मामा(कािी) बोलाः "बाहर आकर किा करँ?"
गौरांगः "कीतन भ करे । हिरनाम के उचिारण से छुपी हुई िोगिता िवकिसत करे , आनंद
पगट करे ।"
कािीः "किा करना होगा?" गौरांगः "मै िैसा बोलता हूँ ऐसा ही बोलना होगा। बोिलएः हिर बोल... हिर बोल...।" कािीः "हिर बोल... हिर बोल...।"
गौरांगः "हिर बोल... हिर बोल...।" कािीः "हिर बोल... हिर बोल...।"
"हिर बोल.. हिर बोल... हिर बोल.. हिर बोल..।" "हिर बोल.. हिर बोल... हिर बोल.. हिर बोल..।" कीतन भ करते-करते गौरांग ने अपनी िनगाहो से कािी पर कृ पा बरसाई तो कािी भी
झूमने लगा। उसे भी
'हिर बोल' का रं ग लग गिा। िैसे इं िन को है णिल दे कर छोडे दे ते है तब
भी इं िन िलता रहता है ऐसे ही गौरांग की कृ पादिष से कािी भी झूमने लगा।
कािी के झूमने से वातावरण मे और भी रं ग आ गिा। कािी तो झूम गिा, कािी की
पती भी झूमी और िौकीदार भी झूम उठा। सब हिरकीतन भ मे झूमते-झूमते अपने रि को पावन
करने लगे, हदि को हिररस से सराबोर करने लगा। उनके िनम-िनम के पाप-ताप नष होने लगे। ििस पर भगवान की दिा होती है , ििसको साधुओं का संग िमलता है , सतसंग का सहारा िमलता
है और भारतीि संसकृ ित की महानता को समझने की अकल िमलती है िफर उसके उदार मे किा बाकी रह िाता है ? कािी का तो उदार हो गिा।
दे खो, संत की उदारता एवं महानता। ििसने िहनदओ ु ं पर िुलम करवािे, भि हिरदास को
बेत मरवाते-मरवाते िमुना िी मे िलवा िदिा, पभातफेरी पर पितबंध लगवा िदिा उसी कािी को गौरांग ने हिररं ग मे रं ग िदिा। अपनी कृ पादिष से िनहाल कर िदिा। उसके कूर कमो की धिान
न दे ते हुए भिि का दान दे िदिा। ऐसे गौरांग के शीिरणो मे हमारे हिार-हिार पणाम है । हम उस मुसलमान िुवक हिरदास को भी धनिवाद दे ते है िक उसने बेत खाते, पीडा सहते भी भिि
न छोडी, गुरदे व को न छोडा, न ही उनके दबाव मे आकर पुनः मुसलमान बना। 'हिर बोल' के रं ग मे सविं रं गा और िसपािहिो को भी रं ग िदिा। धनि है हिरदास और उसकी हिरभिि!
(अनुकम)
बन ावटी श ं ृगा र स े बि ो
िमन भ ी के पिसद दाशिभनक शोपेनहार कहते है िक ििन दे शो मे
हिथिार बनािे िाते है उन दे शो के लोगो को िुद करने की उतेिना होती है और उन दे शो मे हिथिार बनते ही रहते है , िुद भी होते रहते है । ऐसे
ही िो लोग फैशन करते है उनके हदि मे काम, कोध, लोभ, मोह रपी िुद होता ही रहता है । उनके िीवन मे िवलािसता आती है और पतन होता है होता है ।
वैसे ही फैशन और िवलािसता से संिम, सदािार और िोगिता का संहार
इसिलए िुद के साधन बढने से िैसे िुद होता है वैसे ही िवलािसता और फैशन के
साधनो का उपिोग करने से अंतिुद भ होता है । अपनी आितमक शिििो का संहार होता है । अतः अपना भला िाहने वाले भाई-बहनो को पफ-पाउिर, िलपिसटक-लाली, वस-अलंकार के िदखावे के पीछे नहीं पडना िािहए। संिम, सादगी एवं पिवततापूणभ िीवन िीना िािहए।
अपने शासो मे शग ं ृ ार की अनुमित दी गई है । सौभागिवती िसिाँ, िब पित अपने ही
नगर मे हो, घर मे हो तब शग ं ृ ार करे । पित ििद दरू दे श गिा हो तब सौभागिवित िसिो को भी सादगीपूणभ िीवन िीना िािहए। शग ं ृ ार के उपिोग मे आनेवाली वसतुएँ भी वनिसपतिो एवं साितवक रसो से बनी हुई होनी िािहए िो पसननता और आरोगिता पदान करे ।
आिकल तो शरीर मे उतेिना पैदा करे , बीमािरिाँ पैदा करे ऐसे कैिमकलस(रसािनो) और
िहर िैसे साधनो से शग ं ृ ार-पसाधन बनाए िाते है ििससे शरीर के अनदर िहरीले कण िाते है और तविा की बीमािरिाँ होती है । आहार मे भी िहरीले कणो के िाने से पािन-तंत और मानिसक संतुलन िबगडता है , साथ ही बौिदक एवं वैिािरक संतुलन भी िबगडता है ।
पशुओं की िबी, केिमकलस और दस ू रे थोडे िहरीले दविो से बने पफ-पाउिर, िलपिसटक-
लाली आिद ििन पसाधनो का बिूटी-पालरभ मे उपिोग िकिा िाता है वैसी गंदगी कभी-भी अपने शरीर को तो लगानी ही नहीं िािहए। दस ू रे लोगो ने लगािी हो तो दे खकर पसनन भी नहीं होना िािहए। अपने संिम और सदािार की सुनदरता को पगट करना िािहए। मीरा और शबरी िकस बिूटी-पालरभ मे गिे थे? सती अनुसूिा, गागी और मदालसा ने िकस पफ-पाउिर, लाली-िलपिसटक
का उपिोग िकिा था? िफर भी उनका िीवन सुनदर, तेिसवी था। हम भी ईशर से पाथन भ ा करे िक 'हे भगवान! हम अपना संिम और साधना का सौनदिभ बढाएँ, ऐसी तू दिा करना। िवकारी सौनदिभ से अपने को बिाकर िनिवक भ ारी नारािण की ओर िािे ऐसी तू दिा करना। िवलािसता मे अपने समि को न लगाकर तेरे ही धिान-ििंतन मे हमारा समि बीते ऐसी तू कृ पा करना।'
कृ ितम सौनदिभ-पसाधन से तविा की िसनगधता और कोमलता मर िाती है । पफ-पाउिर,
कीम आिद से शरीर की कुदरती िसनगधता खतम हो िाती है । पाकृ ितक सौनदिभ को नष करके
िो कृ ितम सौनदिभ के गुलाम बनते है उनसे सनेहभरी सलाह है िक वे पफ-पाउिर आिद और तडकीले-भडकीले वस आिद की गुलामी को छोडकर पाकृ ितक सौनदिभ को बढाने की कोिशश करे । मीरा और मदालसा की तरह अपने असली सौनदिभ को पकट करने की कोिशश करे ।
(अनुकम)
साहसी बालक
एक लडका काशी मे हिरशनद हाईसकूल मे पढता था। उसका गाँव काशी से आठ मील दरू था। वह रोिाना वहाँ से पैदल िलकर आता, बीि मे िो गंगा नदी बहती है उसे पार करके िवदालि पहुँिता।
उस िमाने मे गंगा पार करने के िलए नाव वाले को दो पैसे दे ने पडते थे।
दो पैसे आने के और दो पैसे िाने के, कुल िार पैसे िािन पुराना एक आना।
महीने मे करीब दो रपिे हुए। िब सोने के एक तोले का भाव रपिा सौ से भी नीिे था तब के दो रपिे। आि के तो पाँि-पचिीस रपिे हो िाएं।
उस लडके ने अपने माँ-बाप पर अितिरि बोझा न पडे इसिलए एक भी पैसे की माँग नहीं
की। उसने तैरना सीख िलिा। गमी हो, बािरश हो िा ठणि हो, गंगा पार करके हाईसकूल मे िाना उसका कम हो गिा। इस पकार िकतने ही महीने गुिर गिे।
एक बार पौष मास की ठणि मे वह लडका सुबह की सकूल भरने के िलए गंगा मे कूदा।
तैरते-तैरते मझधार मे आिा। एक नाव मे कुछ िाती नदी पार कर रहे थे। उनहोने दे खा िक
छोटा-सा लडका अभी िू ब मरे गा। वे उसके पास नाव ले गिे और हाथ पकड कर उसे नाव मे खींि िलिा। लडके के मुख पर घबराहट िा ििनता की कोई रे खा नहीं थी। सब लोग दं ग रह गिे। इतना छोटा है और इतना साहसी है । वे बोलेः
"तू अभी िू ब मरता तो? ऐसा साहस नहीं करना िािहए।"
तब लडका बोलाः "साहस तो होना ही िािहए। िीवन मे िवघन-बाधाएँ आिेगी, उनहे कुिलने के िलए साहस तो िािहए ही। अगर अभी से साहस नहीं िुटािा तो िीवन मे बडे -बडे कािभ कैसे कर पािेगे।
लोगो ने पूछाः "इस समि तैरने किो िगरा? दोपहर को नहाने आता?"
लडका बोलता है ः "मै नहाने के िलए नदी मे नहीं िगरा हूँ। मै तो सकूल िा रहा हूँ।" "नाव मे बैठकर िाता?"
"रोि के िार पैसे आने-िाने के लगते है । मेरे गरीब माँ-बाप पर मुझे बोझा नहीं बनना है । मुझे तो अपने पैरो पर खडे होना है । मेरा खिभ बढे तो मेरे माँ-बाप की ििनता बढे । उनहे घर िलाना मुिशकल हो िािे।"
लोग उसे आदर से दे खते ही रह गिे। वही साहसी लडका आगे िलकर भारत का पधान
मंती बना।
वह लडका कौन था, पता है ? वे थे लाल बहादरु शासी। शासी िी उस पद भी सचिाई,
साहस, सरलता, ईमानदारी, सादगी, दे शपेम आिद सदगुण और सदािार के मूितम भ नत सवरप थे। ऐसे महापुरष भले िफर थोडा-सा समि ही राजि करे पर एक अनोखा पभाव छोड िाते है िनमानस पर।
(अनुकम)
गुर -आज ापालन क ा िमतका र
शीमद आदाशंकरािािभ िी िब
पर िनति पात-काल टहलते थे। एक
िकनारे से दे खा िक कोई सनिासी उस िकनारे से ही उनहे पणाम िकिा। उस संकेत िकिा िक 'इधर आ िाओ।'
उस आभासमपनन िुवक ने दे खा िक
काशी मे िनवास करते थे तब गंगा-तट
सुबह िकसी पितभासंपनन िुवक ने दस ू रे पार टहल रहे है । उस िुवक ने दस ू रे
िुवक को दे खकर आदशंकरािािभ िी ने मैने तो साधू को पणाम कर िदिा है ।
पणाम कर िदिा तो मै उनका िशषि हो गिा और उनहोने मुझे आदे श िदिा िक 'इधर आ
िाओ।' अब गुर की आजा का उललंघन करना भी तो उिित नहीं है । िकनतु िहीं कोई नाव नहीं है और मै तैरना भी नहीं िानता हूँ। अब किा करँ ? उसके मन मे िविार आिा िक वैसे भी तो हिारो बार हम मर िुके है । एक बार ििद गुर के दशन भ के िलए िाते-िाते मर िािे तो घाटा किा होगा।?
'गंगे मात की िि' कह कर उस िुवक ने तो गंगािी मे पैर रख िदिा। उसकी इचछा
कहो, शीमद आदशंकरािािभ िी का पभाव कहो िा िनिित की लीला कहो, िहाँ उस िुवक ने
कदम रखा वहाँ एक कमल पैदा हो गिा उसके पैर को थामने के िलए। िब दस ू रा पैर रखा तो वहाँ भी कमल पैदा हो गिा। इस पकार िहाँ-िहाँ वह कदम रखता गिा वहाँ कमल (पद)
उतपनन होता गिा और वह िुवक गंगा के दस ू रे तट पर, िहाँ आदशंकरािािभ िी खडे थे, पहुँि गिा।
िहाँ-िहाँ वह कदम रखता था, वहाँ-वहाँ पद (कमल) के पकट होने के कारण उसका नाम पडा - 'पदपादािािभ'। शंकरािािभ िी के मुखि िार पटटिशषिो मे आगे िाकर िही पदपादािािभ एक पटटिशषि बने।
कहने का तातपिभ िह है िक सिचिदानंद परमातमा की शिि का, सामथिभ का बिान करना
संभव नहीं है । ििसकी िितनी दढता है , ििसकी िितनी सचिाई है , ििसकी िितनी ततपरता है
उतनी ही पकृ ित भी उसकी मदद करने को आतुर रहती है । पदपादािािभ की गुर-आजापालन मे दढता और ततपरता को दे खकर गंगा िी मे कमल पगट हो गिे। िशषि ििद दढता, ततपरता और ईमानदारी से गुर-आजापालन मे लग िािे तो पकृ ित भी उसके अनुकूल हो िाती है ।
(अनुकम)
अन ोखी ग ुरदिकण ा
एकलवि गुर दोणािािभ के पास आकर बोलाः "मुझे धनुिवद भ ा िसखाने की कृ पा करे ,
गुरदे व!"
गुर दोणािािभ के समक धमस भ ंकट उतपनन हुआ किोिक उनहोने भीषम िपतामह को विन दे िदिा था िक केवल रािकुमारो को ही मै िशका
दँग भ ा कैसे िसखाऊँ ? अतः दोणािािभ ने एकलवि से ू ा। एकलवि रािकुमार नहीं है अतः उसे धनुिवद कहाः
"मै तुझे धनुिवद भ ा नहीं िसखा सकूँगा। "
एकलवि घर से िनशि करके िनकला था िक मै केवल गुर दोणािािभ को ही गुर बनाऊँगा। ििनके िलए मन मे भी गुर बनाने का भाव आ गिा उनके िकसी भी विवहार के िलए िशकाित िा िछदानवेषण की विृत नहीं होनी िािहए।
एकलवि एकांत अरणि मे गिा और उसने गुर दोणािािभ की िमटटी की मूितभ बनािी।
मूितभ की ओर एकटक दे खकर धिान करके उसी से पेरणा लेकर वह धनुिवद भ ा सीखने लगा।
एकटक दे खने से एकागता आती है । एकागता, गुरभिि, अपनी सचिाई और ततपरता के कारण उसे पेरणा िमलने लगी। जानदाता तो परमातमा है । धनुिवद भ ा मे वह बहुत आगे बढ गिा।
एक बार दोणािािभ, पांिव एवं कौरव धनुिवद भ ा का पिोग करने अरणि मे आिे। उनके
साथ एक कुता भी था, िो थोडा आगे िनकल गिा। कुता वहीं पहुँिा िहाँ एकलवि अपनी
धनुिवद भ ा का पिोग कर रहा था। एकलवि के खुले बाल, फटे कपडे एवं िविित वेष को दे खकर कुता भौकने लगा।
एकलवि ने कुते को लगे नहीं, िोट न पहुँिे और उसका भौकना बंद हो िािे इस ढं ग से
सात बाण उसके मुह ँ मे थमा िदिे। कुता वािपस वहाँ गिा, िहाँ दोणािािभ के साथ पांिव और कौरव थे।
उसे दे खकर अिुन भ को हुआ िक कुते को िोट न लगे, इस ढं ग से बाण मुँह मे घुसाकर
रख दे ना, िह िवदा तो मै भी नहीं िानता। िह कैसे संभव हुआ? वह गुर दोणािािभ से बोलाः
"गुरदे व! आपने तो कहा था िक मेरी बराबरी का दस ू रा कोई धनुधारभी नहीं होगा। िकनतु
ऐसी िवदा तो मुझे भी नहीं आती।"
दोणािािभ को हुआ िक दे खे, इस अरणि मे कौन-सा ऐसा कुशल धनुधरभ है ? आगे िाकर
दे खा तो वह था िहरणिधनु का पुत गुरभि एकलवि।
दोणािािभ ने पूछाः "बेटा! िह िवदा तू कहाँ से सीखा?" एकलवि बोलाः "गुरदे व! आपकी ही कृ पा से सीखा हूँ।"
दोणािािभ तो विन दे िुके थे िक अिुन भ की बराबरी का धनुधरभ दस ू रा कोई न होगा।
िकनतु िह तो आगे िनकल गिा। गुर के िलए धमस भ क ं ट खडा हो गिा। एकलवि की अटू ट शदा दे खकर दोणािािभ ने कहाः "मेरी मूितभ को सामने रखकर तू धनुिवद भ ा तो सीखा, िकनतु गुरदिकणा?"
एकलविः "िो आप माँगे?"
दोणािािःभ "तेरे दािे हाथ का अंगूठा।" एकलवि ने एक पल भी िविार िकिे िबना अपने दािे हाथ का अंगूठा काटकर गुरदे व के
िरणो मे अपण भ कर िदिा।
दोणािािःभ "बेटा! भले ही अिुन भ धनुिवद भ ा मे सबसे आगे रहे किोिक
मै उसे विन दे िुका हूँ। िकनतु िब तक सूिभ, िनद, नकतो का अिसततव
रहे गा तब तक लोग तेरी गुरिनिा का, तेरी गुरभिि का समरण करे गे, तेरा िशोगान होता रहे गा।"
उसकी गुरभिि और एकागता ने उसे धनुिवद भ ा मे तो सफलता िदलािी ही, लेिकन संतो के
हदि मे भी उसके िलए आदर पगट करवा िदिा। धनि है एकलवि िो गुरमूितभ से पेरणा पाकर धनुिवद भ ा मे सफल हुआ और ििसने अदभुत गुरदिकणा दे कर साहस, तिाग और समपण भ का पिरिि िदिा।
(अनुकम)
सत संग की मिहमा
तुलसीदास िी महाराि कहते है –
एक घडी आधी घडी आधी म
े प ु िन आध।
तु लसी स ंग त साध की हर े को िट अपराध।।
एक बार शुकदे व िी के िपता भगवान वेदविासिी महाराि कहीं िा रहे थे। रासते मे
उनहोने दे खा िक एक कीडा बडी तेिी से सडक पार कर रहा था। वेदविासिी ने अपनी िोगशिि दे ते हुए उससे पूछाः
"तू इतनी िलदी सडक किो पार कर रहा है ? किा तुझे िकसी काम से िाना है ? तू तो नाली का कीडा है । इस नाली को छोडकर दस ू री नाली मे ही तो िाना है , िफर इतनी तेिी से किो भाग रहा है ?"
कीडा बोलाः "बाबा िी बैलगाडी आ रही है । बैलो के गले मे बँधे घुँघर तथा बैलगाडी के
पिहिो की आवाि मै सुन रहा हूँ। ििद मै धीरे -धीर सडक पार करँगा तो वह बैलगाडी आकर मुझे कुिल िालेगी।"
वेदविासिीः "कुिलने दे । कीडे की िोिन मे िीकर भी किा करना?" कीडाः "महिषभ! पाणी ििस शरीर मे होता है उसको उसमे ही ममता होती है । अनेक पाणी
नाना पकार के कषो को सहते हुए भी मरना नहीं िाहते।"
वेदविास िीः "बैलगाडी आ िािे और तू मर िािे तो घबराना मत। मै तुझे िोगशिि से
महान बनाऊँगा। िब तक बाहण शरीर मे न पहुँिा दँ ू, अनि सभी िोिनिो से शीघ छुटकारा िदलाता रहूँगा।"
उस कीडे ने बात मान ली और बीि रासते पर रक गिा और मर गिा। िफर वेदविासिी
की कृ पा से वह कमशः कौआ, िसिार आिद िोिनिो मे िब-िब भी उतपनन हुआ, विासिी ने
िाकर उसे पूवि भ नम का समरण िदला िदिा। इस तरह वह कमशः मग ृ , पकी, शूद, वैशि िाितिो मे िनम लेता हुआ किति िाित मे उतपनन हुआ। उसे वहाँ भी वेदविासिी दशन भ िदिे। थोडे िदनो मे रणभूिम मे शरीर तिागकर उसने बाहण के घर िनम िलिा।
भगवान वेदविास िी ने उसे पाँि वषभ की उम मे सारसवति मंत दे िदिा ििसका िप
करते-करते वह धिान करने लगा। उसकी बुिद बडी िवलकण होने पर वेद, शास, धमभ का रहसि समझ मे आ गिा।
सात वषभ की आिु मे वेदविास िी ने उसे कहाः "काितक भ केत मे कई वषो से एक बाहण ननदभद तपसिा कर रहा है । तुम िाकर उसकी
शंका का समाधान करो।"
मात सात वषभ का बाहण कुमार काितक भ केत मे तप कर रहे उस बाहण के पास पहुँि
कर बोलाः
"हे बाहणदे व! आप तप किो कर रहे है ?" बाहणः "हे ऋिषकुमार! मै िह िानने के िलए तप कर रहा हूँ िक िो अचछे लोग है ,
सजिन लोग है , वे सहन करते है , दःुखी रहते है और पापी आदमी सुखी रहते है । ऐसा किो है ?" बालकः "पापी आदमी ििद सुखी है , तो पाप के कारण नहीं, वरन ् िपछले िनम का कोई
पुणि है , उसके कारण सुखी है । वह अपने पुणि खतम कर रहा है । पापी मनुषि भीतर से तो दःुखी ही होता है , भले ही बाहर से सुखी िदखाई दे ।
धािमक भ आदमी को ठीक समझ नहीं होती, उिित िदशा व मंत नहीं िमलता इसिलए वह
दःुखी होता है । वह धमभ के कारण दःुखी नहीं होता, अिपतु समझ की कमी के कारण दःुखी होता है । समझदार को ििद कोई गुर िमल िािे तो वह नर मे से नारािण बन िािे, इसमे किा आशिभ है ?"
बाहणः "मै इतना बूढा हो गिा, इतने वषो से काितक भ केत मे तप कर रहा हूँ। मेरे तप
का फल िही है िक तुमहारे िैसे सात वषभ के िोगी के मुझे दशन भ हो रहे है । मै तुमहे पणाम करता हूँ।" हूँ।"
बालकः "नहीं... नहीं, महाराि! आप तो भूदेव है । मै तो बालक हूँ। मै आपको पणाम करता उसकी नमता दे खकर बाहण और खुश हुआ। तप छोडकर वह परमातमििनतन मे लग
गिा। अब उसे कुछ िानने की इचछा नहीं रही। ििससे सब कुछ िाना िाता है उसी परमातमा मे िवशांित पाने लग गिा।
इस पकार ननदभद बाहण को उतर दे , िनःशंक कर सात िदनो तक िनराहार रहकर वह
बालक सूिम भ नत का िप करता रहा और वहीं बहूदक तीथभ मे उसने शरीर तिाग िदिा। वही
बालक दस ू रे िनम मे कुषार िपता एवं िमता माता के िहाँ पगट हुआ। उसका नाम मैतेि पडा।
इनहोने विासिी के िपता पराशरिी से 'िवषणु-पुराण' तथा 'बह ृ त ् पाराशर होरा शास' का अधििन
िकिा था। 'पकपात रिहत अनुभवपकाश' नामक गनथ मे मैतेि तथा पराशर ऋिष का संवाद आता है ।
कहाँ तो सडक से गुिरकर नाली मे िगरने िा रहा कीडा और कहाँ संत के सािननधि से
वह मैतेि ऋिष बन गिा। सतसंग की बिलहारी है ! इसीिलए तुलसीदास िी कहते है – तात सवग भ अ पवग भ सुख ध िरअ त ु ला ए क अ ंग।
तू ल न ता िह स कल िम ली िो स ुख लव स तसं ग।।
िहाँ एक शंका हो सकती है िक वह कीडा ही मैतेि ऋिष किो नहीं बन गिा?
अरे भाई! ििद आप पहली कका के िवदाथी हो और आपको एम. ए. मे िबठािा िािे तो किा आप पास हो सकते हो....? नहीं...। दस ू री, तीसरी, िौथी... दसवीं... बारहवीं... बी.ए. आिद पास करके ही आप एम.ए. मे पवेश कर सकते हो।
िकसी िौकीदार पर कोई पधानमनती अतििधक पसनन हो िाए तब भी वह उसे सीधा
कलेकटर (ििलाधीश) नहीं बना सकता, ऐसे ही नाली मे रहने वाला कीडा सीधा मनुषि तो नहीं हो सकता बिलक िविभनन िोिनिो को पार करके ही मनुषि बन सकता है । हाँ इतना अवशि है िक संतकृ पा से उसका मागभ छोटा हो िाता है ।
संतसमागम की, साधु पुरषो से संग की मिहमा का कहाँ तक वणन भ करे , कैसे बिान करे ?
एक सामानि कीडा उनके सतसंग को पाकर महान ् ऋिष बन सकता है तो िफर ििद मानव को
िकसी सदगुर का सािननधि िमल िािे.... उनके विनानुसार िल पडे तो मुिि का अनुभव करके िीवनमुि भी बन सकता है ।
(अनुकम)
'पीड पर ाई ि ाने र े ....'
जानी िकसी से पिार करने के िलए बँधे हुए नहीं है और
िकसी को िाँटने मे भी रािी नहीं है । हमारी िैसी िोगिता होती है , ऐसा उनका विवहार हमारे पित होता है ।
लीलाशाह बापू के शीिरणो मे बहुत लोग गिे थे। एक
लडका भी गिा था। वह मिणनगर मे रहता था। िशविी को
िल िढाने के पशात ही वह िल पीता। वह लडका खूब िनिा से धिान-भिन करता और सेवा पूिा करता।
एक िदन कोई वििि रासते मे बेहोश पडा हुआ था। िशविी को िल िढाने िाते समि
उस बालक ने उसे दे खा और अपनी पूिा-वूिा छोडकर उस गरीब की सेवा मे लग गिा। िबहार का कोई िुवक था। नौकरी की खोि मे आिा था। कालुपुर(अहमदाबाद) सटे शन के पलेटफामभ पर एक दो िदन रहा। कुिलिो ने मारपीट कर भगा िदिा। िलते-िलते मिणनगर मे पुनीत आशम की ओर रोटी की आशा मे िा रहा था। रोटी तो वहाँ नहीं िमलती थी इसिलए भूख के कारण िलते-िलते रासते मे िगर गिा और बेहोश हो गिा।
उस लडके का घर पुनीत आशम के पास ही था। सुबह के दस साढे दस बिे थे। वह
लडका घर से धिान-भिन से िनपटकर मंिदर मे िशविी को िल िढाने के िलए िल का लोटा
और पूिा की सामगी लेकर िा रहा था। उसने दे खा िक रासते मे कोई िुवक पडा है । रासते मे िलते-िलते लोग बोलते थेः 'शराब पी होगी, िह होगा, वह होगा... हमे किा?
लडके को दिा आई। पुणि िकिे हुए हो तो पेरणा भी अचछी िमलती
है । शुभ कमो से शुभ पेरणा िमलती है । अपने पास की पूिा सामगी एक ओर रखकर उसने उस वििि को िहलािा। बहुत मुिशकल से उसकी आँखे खुलीं। कोई उसे िूते सुंघाता, कोई कुछ करता, कोई कुछ बोलता था। आँखे खोलते ही वह वििि धीरे से बोलाः "पानी.... पानी...."
लडके ने महादे व िी के िलिे लािा हुआ िल का लोटा उसे िपला िदिा। िफर दोडकर घर
िाकर अपने िहससे का दध ू लाकर उसे िदिा।
िुवक के िी मे िी आिा। उसने अपनी विथा बताते हुए कहाः
"बाबप िी! मै िबहार से आिा हूँ। मेरे बाप गुिर गिे। काका िदन-रात टोकते रहते ते िक
कमाओ नहीं तो खाओगे किा? नौकरी धंधा िमलता नहीं है । भटकते-भटकते अहमदाबाद के
सटे शन पर कुली का काम करने का पित िकिा। हमारी रोटी-रोिी िछन िािेगी ऐसा समझकर
कुिलिो ने खूब मारा। पैदल िलते-िलते मिणनगर सटे शन की ओर आते-आते िहाँ तीन िदन की भूख और मार के कारण िककर आिे और िगर गिा।"
लडके ने उसे िखलािा। अपना इकटठा िकिा हुआ िेबखिभ का पैसा िदिा। उस िुवक को
िहाँ िाना था वहाँ भेिने की विवसथा की। इस लडके के हदि मे आनंद की विृद हुई। अंतर मे आवाि आईः
"बेटा! अब मै तुझे बहुत िलदी िमलूँगा।"
लडके ने पश िकिाः "अनदर कौन बोलता है ?" उतर आिाः "ििस िशव की तू पूिा करता है वह तेरा आतमिशव। अब मै तेरे हदि मे
पकट होऊँगा। सेवा के अिधकारी की सेवा मुझ िशव की ही सेवा है ।"
उस िदन उस अंतिाम भ ी ने अनोखी पेऱणा और पोतसाहन िदिा। वह लडका तो िनकल पडा
घर छोडकर। ईशर-साकातकार करने के िलए केदारनाथ, वनृदावन होते हुए नैिनताल के अरणि मे पहुँिा।
केदारनाथ क े दश भ न पाि े , लका िधप ित आिश ष पाि े।
इस आशीवाद भ को वापस कर ईशरपािप के िलए िफर पूिा की। उसके पास िो कुछ रपिे पैसे थे, उनहे वनृदावन मे साधु-संतो एवं गरीबो मे भणिारा करके खिभ कर िदिा था। थोडे से पैसे लेकर नैिनताल के
अरणिो मे पहुँिा। लोकलाडल, लाखो हदिो को हिररस िपलाते पूजिपाद सदगुर शी लीलाशाह बापू की राह दे खते हुए िालीस िदन बीत गिे।
गुरवर शी लीलाशाह को अब पूणभ समिपत भ िशषि िमला... पूणभ खिाना पाप करने वाला पिवतातमा िमला। पूणभ गुर की पूणभ िशषि िमला।
ििस लडके के िवषि मे िह कथा पढ रहे है , वह लडका कौन होगा, िानते हो? पूण भ गुर कृपा िमली , पूण भ गुर का जा न। आसुमल स े हो गि े , साई आ सार ाम।।
अब तो समझ ही गिे होगे।
(उस लडके के वेश मे छुपे हुए थे पूवभ िनम के िोगी और वतम भ ान मे िवशिवखिात हमारे
पूजिपाद सदगुरदे व शी आसाराम िी महाराि।)
(अनुकम)
िवकास क े ब ै िरि ो स े सावध ान !
किपलवसतु के रािा शुदोदन का िुवराि था िसदाथभ! िौवन मे कदम रखते ही िववेक और
वैरागि िाग उठा। िुवान पती िशोधरा और नविात िशशु राहुल की मोह-ममता की रे शमी
िंिीर काटकर महाभीिनषकमण (गह ृ तिाग) िकिा। एकानत अरणि मे िाकर गहन धिान साधना करके अपने साधि ततव को पाप कर िलिा।
एकानत मे तपशिाभ और धिान साधना से िखले हुए इस आधिाितमक
कुसुम की मधुर सौरभ लोगो मे फैलने लगी। अब िसदाथभ भगवान बुद के नाम से िन-समूह मे पिसद हुए। हिारो हिारो लोग उनके उपिदष मागभ पर िलने
लगे और अपनी अपनी िोगिता के मुतािबक आधिाितमक िाता मे आगे बढते हुए आितमक शांित पाप करने लगे। असंखि लोग बौद िभकुक बनकर भगवान बुद के सािननधि मे रहने लगे। उनके पीछे िलने वाले अनुिािीओं का एक संघ सथािपत हो गिा। िहुँ ओर नाद गूँिने लगे िकः
बुद ं शरण ं ग चछा िम। धम मं शरण ं गच छािम।
संघ ं शरण ं गच छािम। शावसती नगरी मे भगवान बुद का बहुत िश फैला। लोगो मे उनकी िि-ििकार होने
लगी। लोगो की भीड-भाड से िवरि होकर बुद नगर से बाहर िेतवन मे आम के बगीिे मे रहने लगे। नगर के िपपासु िन बडी तादाद मे वहाँ हररोि िनिशत समि पर पहुँि िाते और उपदे शपविन सुनते। बडे -बडे रािा महारािा भगवान बुद के सािननधि मे आने िाने लगे।
समाि मे तो हर पकार के लोग होते है । अनािद काल से दै वी समपदा के लोग एवं
आसुरी समपदा के लोग हुआ करते है । बुद का फैलता हुआ िश दे खकर उनका तेिोदे ष करने
वाले लोग िलने लगे। संतो के साथ हमेशा से होता आ रहा है ऐसे उन दष ु ततवो ने बुद को
बदनाम करने के िलए कुपिार िकिा। िविभनन पकार की िुिि-पिुिििाँ लडाकर बुद के िश को हािन पहुँिे ऐसी बाते समाि मे वे लोग फैलाने लगे। उन दष ु ो ने अपने षडिंत मे एक वेशिा को समझा-बुझाकर शािमल कर िलिा।
िाने िमल
वेशिा बन-ठनकर िेतवन मे भगवान बुद के िनवास-सथानवाले बगीिे मे लगी। धनरािश के साथ दष ु ो का हर पकार से सहारा एवं पोतसाहन उसे रहा था। राित को वहीं रहकर सुबह नगर मे वािपस लोट आती। अपनी सिखिो मे भी उसने बात फैलाई।
लोग उससे पूछने लगेः "अरी! आिकल तू िदखती नहीं है ? कहाँ िा रही है रोि रात को?" "मै तो रोि रात को िेतवन िाती हूँ। वे बुद िदन मे लोगो को उपदे श दे ते है और राित
के समि मेरे साथ रं गरे िलिाँ मनाते है । सारी रात वहाँ िबताकर सुबह लोटती हूँ।"
वेशिा ने पूरा सीििरत आिमाकर षडिंत करने वालो का साथ िदिा. लोगो मे पहले तो
हलकी कानाफूसी हुई लेिकन जिो-जिो बात फैलती गई तिो-तिो लोगो मे िोरदार िवरोध होने
लगा। लोग बुद के नाम पर िफटकार बरसाने लगे। बुद के िभकुक बसती मे िभका लेने िाते तो लोग उनहे गािलिाँ दे ने लगे। बुद के संघ के लोग सेवा-पविृत मे संलगन थे। उन लोगो के सामने भी उँ गली उठाकर लोग बकवास करने लगे।
बुद के िशषि िरा असावधान रहे थे। कुपिार के समि साथ ही साथ सुपिार होता तो
कुपिार का इतना पभाव नहीं होता। िशषि अगर िनिषकि रहकर सोिते रह िािे िक 'करे गा सो भरे गा... भगवान उनका नाश करे गे..' तो कुपिार करने वालो को खुलला मैदान िमल िाता है ।
संत के सािननधि मे आने वाले लोग शदालू, सजिन, सीधे सादे होते है , िबिक दष ु पविृत
करने वाले लोग कुिटलतापूवक भ कुपिार करने मे कुशल होते है । िफर भी ििन संतो के पीछे
सिग समाि होता है उन संतो के पीछे उठने वाले कुपिार के तूफान समि पाकर शांत हो िाते है और उनकी सतपविृतिाँ पकाशमान हो उठती है ।
कुपिार ने इतना िोर पकडा िक बुद के िनकटवती लोगो ने 'तािहमाम ्' पुकार िलिा। वे
समझ गिे िक िह विविसथत आिोिनपूवक भ षडिंत िकिा गिा है । बुद सविं तो पारमािथक भ
सति मे िागे हुए थे। वे बोलतेः "सब ठीक है , िलने दो। विवहािरक सति मे वाहवाही दे ख ली। अब िननदा भी दे ख ले। किा फकभ पडता है ?"
िशषि कहने लगेः "भनते! अब सहा नहीं िाता। संघ के िनकटवती भि भी अफवाहो के
िशकार हो रहे है । समाि के लोग अफवाहो की बातो को सति मानने लग गिे है ।"
बुदः "धैिभ रखो। हम पारमािथक भ सति मे िवशांित पाते है । िह िवरोध की आँधी िली है
तो शांत भी हो िाएगी। समि पाकर सति ही बाहर आिेगा। आिखर मे लोग हमे िानेगे और मानेगे।"
कुछ लोगो ने अगवानी का झणिा उठािा और राजिसता के
समक िोर-शोर से माँग की िक बुद की िाँि करवाई िािे। लोग बाते कर रहे है और वेशिा भी कहती है िक बुद राित को मेरे साथ होते है और िदन मे सतसंग करते है ।
बुद के बारे मे िाँि करने के िलए रािा ने अपने आदिमिो को फरमान िदिा। अब
षडिंत करनेवालो ने सोिा िक इस िाँि करने वाले पंि मे अगर सचिा आदमी आ िाएगा तो अफवाहो का सीना िीरकर सति बाहर आ िाएगा। अतः उनहोने अपने षडिंत को आिखरी
पराकािा पर पहुँिािा। अब ऐसे ठोस सबूत खडा करना िािहए िक बुद की पितभा का असत हो िािे।
उनहोने वेशिा को दार िपलाकर िेतवन भेि िदिा। पीछे से गुणिो की टोली वहाँ गई।
वेशिा पर बलातकार आिद सब दष ु कृ ति करके उसका गला घोट िदिा और लाश को बुद के बगीिे मे गाडकर पलािन हो गिे।
लोगो ने राजिसता के दार खटखटािे थे लेिकन सतावाले भी कुछ लोग दष ु ो के साथ िुडे
हुए थे। ऐसा थोडे ही है िक सता मे बैठे हुए सब लोग दध ू मे धोिे हुए वििि होते है ।
रािा के अिधकािरिो के दारा िाँि करने पर वेशिा की लाश हाथ लगी। अब दष ु ो ने िोर-
शोर से ििललाना शुर कर िदिा।
"दे खो, हम पहले ही कह रहे थे। वेशिा भी बोल रही थी लेिकन तुम भगतडे लोग मानते
ही नहीं थे। अब दे ख िलिा न? बुद ने सही बात खुल िाने के भि से वेशिा को मरवाकर बगीिे मे गडवा िदिा। न रहे गा बाँस, न बिेगी बाँसुरी। लेिकन सति कहाँ तक िछप सकता है ? मुदामाल हाथ लग गिा। इस ठोस सबूत से बुद की असिलित िसद हो गई। सति बाहर आ गिा।" लेिकन उन मूखो का पता नहीं िक तुमहारा बनािा हुआ किलपत सति बाहर आिा,
वासतिवक सति तो आि ढाई हिार वषभ के बाद भी वैसा ही िमक रहा है । आि बुद को लाखो
लोग िानते है , आदरपूवक भ मानते है । उनका तेिोदे ष करने वाले दष ु लोग कौन-से नरको मे िलते होगे किा पता!
ढाई हिार वषभ पहले बुद के िमाने मे भी संतो के साथ ऐसा घोर अनिाि हुआ करता
था। ऋिष दिाननद को भी ऐसे ही ततवो ने तेिोदे ष के कारण बाईस बार िवष दे कर मार िालने का पिास िकिा। सवामी िववेकाननद और सवामी रामतीथभ के पीछे भी दष ु लोगो ने वेशिा को तैिार करके कीिड उछाला था।
एक ओर, लाखो-लाखो लोग संतो की अनुभविुि वाणी से अपना विावहािरक –
आधिाितमक िीवन उननत करके सुख-शांित पाते है , दस ू री ओर, कुछ दष ु पकृ ित के सवाथी लोग
अपना उललू सीधा करने के िलए ऐसे महापुरषो के िवरद मे षडिंत रिकर उनको बदनाम करते है । िह तो पहले से िला आ रहा है । संत कबीर हो िा नानक, एकनाथ महाराि हो िा संत
तुकाराम, नरिसंह मेहता हो िा मीराबाई, पािः सभी संतो को अपने िीवन के दौरान समाि के कुिटल ततवो से पाला पडता ही रहा है । िीसस काइसट को इनहीं ततवो ने कॉस पर िढािा था। उनहीं लोगो ने सुकरात को िहर िपलाकर मतृिुदणि िदिा था। मनसूर को इसी िमात ने शूली
पर िढािा था। ईसाई धमभ मे माटीन लिूथर पर िुलम िकिा गिा था। अणु-अणु मे ईशर और नारीमात मे िगजिननी भगवती का दशन भ करने वाले रामकृ षण परमहं स को भी लोगो ने नहीं
छोडा था। परमहं स िोगाननद, रवीनदनाथ टै गोर, माटीन लिूथर, दिकण भारत के संत ितरवललुवर, िापानी झेन संत बाबो... इितहास मे िकतने-िकतने उदाहरण मौिूद है ।
हािसद धमग भ ुर बालशमटोव अित पिवत आतमा थे। िननदको ने उनके इदभ िगदभ भी
मािािाल िबछा दी थी। िसध के साई टे उंराम के पास असंखि लोग आतमकलिाण हे तु िाने लगे तब िवकृ त िदमागवालो ने उन संत को भी तास दे ना शुर कर िदिा। उनके आशम के िहुँ ओर
गंदगी िाल दे ते और कुएँ मे िमटटी का तेल उडे लकर पानी बेकार कर दे ते। मुगल बादशाह बाबर को बहका कर उनहीं लोगो ने गुर नानक को कैद करवािा था।
भगवान शीराम एवं शीकृ षण को भी दष ु िनो ने छोडा नहीं था। भगवान शीराम के गुर
विशििी महाराि कहते है ः
"हे राम िी! मै िब बािार से गुिरता हूँ तब अजानी मूखभ लोग मेरे िलए किा बकते है ,
मै सब िानता हूँ। लेिकन मेरा दिालू सवभाव है । मै इन सबका कलिाण िाहता हूँ।"
तुमहारे साथ िह संसार कुछ अनिाि करता है , तुमको बदनाम करता है , िननदा करता है
तो िह संसार की पुरानी रीत है । मनुषि की हीनविृत, कुपिार, िननदाखोरी िह आिकल की ही बात नहीं है । अनािदकाल से ऐसा होता आिा है । तुम अपने आतमजान के संसकार िगाकर,
आतमबल का िवकास करते िाओ, मुसकराते िाओ, आँधी तुफानो को लाँघकर आननदपूवक भ िीते िाओ।
उस िमाने मे भगवान बुद के पास आकर एक िभकुक ने पाथन भ ा कीः
"भनते! मुझे आजा दे , मै सभाएँ भरँगा। आपके िविारो का पिार करँगा।" "मेरे िविारो का पिार?"
"हाँ, भगवन ्! मै बौद धमभ फैलाऊँगा।"
"लोग तेरी िननदा करे गे, गािलिाँ दे गे।"
"कोई हिभ नहीं। मै भगवन को धनिवाद दँग ू ा िक िे लोग िकतने अचछे है ! िे केवल
शबदपहार करते है , मुझे पीटते तो नहीं।"
"लोग तुझे पीटे गे भी, तो किा करोगे?" "पभो! मै शुक गुिारँगा िक िे लोग हाथो से पीटते है , पतथर तो नहीं मारते।" "लोग पतथर भी मारे गे और िसर भी फोड दे गे तो किा करे गा?"
"िफर भी मै आशसत रहूँगा और भगवान का िदवि कािभ करता रहूँगा किोिक वे लोग
मेरा िसर फोडे गे लेिकन पाण तो नहीं लेगे।"
"लोग िनून मे आकर तुझे मार दे गे तो किा करे गा?"
"भनते! आपके िदवि िविारो का पिार करते-करते मै मर भी गिा तो समझूँगा िक मेरा िीवन सफल हो गिा।"
उस कृ तिनशिी िभकुक की दढ िनिा दे खकर भगवान बुद पसनन हो उठे । उस पर उनकी
करणा बरस पडी।
ऐसे िशषि िब बुद का पिार करने िनकल पडे तब कुपिार करने वाले धीरे -धीरे शांत हो
गिे। मनुषिो की उं गिलिाँ काट-काटकर माला बनाकर पहनने वाला अँगिु लमाल िैसा कूर हतिारा भी हदिपिरवतन भ पाकर बुद की शरण मे िभकुक होकर रहने लगा।
आि हम बुद को बहुत आदर से िानते है , मानते है । उनके िीवनकाल के दौरान उनके
पीछे लगे हुए दष ु लोग कौन से नरक मे सडते होगे... रौरव नरक मे िा कुंभीपाक नरक मे ? कौनसी िोिनिो मे भटकते होगे, सूअर बने होगे िक नाली के कीडे बने होगे, शैतान बने होगे िक
बहराकस बने होगे मुझे पता नहीं लेिकन बुद तो करोडो हदिो मे बस रहे है िह मै मानता हूँ। सति तो परमाथभ है , आतमा है , परमातमा है । उसमे िितना िटकोगे उतना तुमहारा मंगल
होगा, तुमहारी िनगाह ििन पर पडे गी उनका भी मंगल होगा।
(अनुकम)
कुछ िा नने िो गि ब ाते
सूिोदि से पूवभ उठकर सनान कर लेना िािहए। पातः खाली पेट मटके का बासी पानी पीना सवासथिपद है ।
तुलसी के पते सूिोदि के पशात ही तोडे । दध ू मे तुलसी के पते नहीं िालने िािहए तथा
दध ू के साथ खाने भी नहीं िािहए। तुलसी के पते खाकर थोडा पानी पीना िपिे।
िलनेित से पंदह सौ पकार के लाभ होते है । अपने मिसतषक मे एक पकार का िविािति
दवि उतपनन होता है । ििद वह दवि वहीं अटक िाता है तो बिपन मे ही बाल सफेद होने लगते है । इससे निले की बीमारी भी होती है । ििद वह दवि नाक की तरफ आता है तो
सुगनध-दग भ ध का पता नहीं िल पाता और िलदी-िलदी िुकाम हो िाता है । ििद वह दवि कान ु न की तरफ आता है तो कान बहरे होने लगते है और छोटे -मोटे बतीस रोग हो सकते है । ििद वह
दवि दाँत की तरफ आिे तो दाँत छोटी उम मे ही िगरने लगते है । ििद आँख की तरफ वह दवि उतरे तो िशमे लगने लगते है । िलनेित िािन नाक से पानी खींिकर मुह ँ से िनकाल दे ने से वह दवि िनकल िाता है । गले के ऊपर के पािः सभी रोगो से मुिि िमल िाती है ।
आईसकीम खाने के बाद िाि पीना दाँतो के िलए अतिािधक हािनकारक होता है । भोिन को पीना िािहए तथा पानी को खाना िािहए। इसका मतलब िह है िक भोिन को
इतना िबाओ िक वह पानी की तरह पतला हो िािे और पानी अथवा अनि पेि पदाथो को धीरे धीरे िपिो।
िकसी भी पकार का पेि पदाथभ पीना हो तो दािां नथुना बनद करके िपिे, इससे वह अमत ृ
िैसा हो िाता है । ििद दािाँ सवर(नथुना) िालू हो और पानी आिद िपिे तो िीवनशिि(ओि) पतली होने लगती है । बहििभ की रका के िलए, शरीर को तनदरसत रखने के िलए िह पिोग करना िािहए।
तुम िाहे िकतनी भी मेहनत करो िकनतु िितना तुमहारी नसो मे ओि है , बहििभ की
शिि है उतने ही तुम सफल होते हो। िो िाि-कॉफी आिद पीते है उनका ओि पतला होकर
पेशाब दारा नष होता िाता है । अतः बहििभ की रका के िलए िाि-कॉफी िैसे विसनो से दरू रहना रहे ।
पढने के बाद थोडी दे र शांत हो िाना िािहए। िो पढा है उसका मनन करो। िशकक
सकूल मे िब पढाते हो तब धिान से सुनो। उस वि मसती-मिाक नहीं करना िािहए। िवनोदमसती कम से कम करो और समझने की कोिशश अिधक करो।
िो सूिोदि के पूवभ नहीं उठता, उसके सवभाव मे तमस छा िाता है । िो सूिोदि के पूवभ
उठता है उसकी बुिदशिि बढती है ।
नींद मे से उठकर तुरंत भगवान का धिान करो, आतमसनान करो। धिान मे रिि नहीं
होती तो समझना िािहए िक मन मे दोष है । उनहे िनकालने के िलए किा करना िािहए?
मन को िनदोष बनाने के िलए सुबह-शाम, माता-िपता को पणाम करना िािहए, गुरिनो
को पणाम करना िािहए एवं भगवान के नाम का िप करना िािहए। भगवान से पाथन भ ा करनी िािहए िक 'हे भगवान! हे मेरे पभु! मेरी धिान मे रिि होने लगे, ऐसी कृ पा कर दो।' िकसी समि
गंदे िविार िनकल आिे तो समझना िािहए िक अंदर छुपे हुए िविार िनकल रहे है । अतः खुश होना िािहए। 'िविार आिा और गिा। मेरे राम तो हदि मे ही है ।' ऐसी भावना करनी िािहए। िनंदा करना तो अचछा नहीं है िकनतु िनंदा सुनना भी उिित नहीं। (अनुकम)
शि न की र ीत
मनुषि को िकस ढं ग से सोना िािहए? इसका भी तरीका होता है । सोते वि पूवभ अथवा दिकण िदशा की ओर िसर करके ही सोना िािहए।
भोिन करने के बाद िदन मे दस िमनट आराम करे िकनतु सोिे नहीं। भोिन के बाद
दस िमनट बािीं करवट लेट सकते है । राित को िागरण िकिा हो, इस कारण से कभी िदन मे सोना पडे वह अलग बात है ।
सोते वि नीिे कोई गमभ कंबल आिद िबछाकर सोिे तािक आपकी िीवनशिि अिथग ा न
हो िािे, आपके शरीर की िवदुतशिि भूिम मे न उतर िािे। (अनुकम)
सनान क ा त री का
शरीर की मिबूती एवं आरोगिता के िलए रगड-रगडकर सनान करना िािहए। िो लोग ठं िे दे शो मे रहते है , उनका सवासथि गमभ दे स के लोगो की अपेका अचछा होता है । ठं िी से अपना शरीर सुधरता है ।
सनान करते वि 12-15 िलटर पानी, बालटी मे लेकर पहले उसमे िसर िु बाना िािहए। िफर
पैर िभगोना िािहए। पहले पैर गीले नहीं करने िािहए। शरीर की गमी ऊपर की ओर िढती है िो सवासथि के िलए हािनकारक होती है ।
अतः पहले ठं िे पानी की बालटी भर ले। िफर मुँह मे पानी भरकर, िसर को बालटी मे िाले
और आँखे पटपटाएँ। इससे आँखो की शिि बढती है । शरीर को रगड-रगडकर नहाएँ। बाद मे गीले वस से शरीर को रगड-रगडकर पोछे ििससे रोम कूप का सारा मैल बाहर िनकल िािे और
रोमकूप(तविा के िछद) खुल िािेिं। तविा के िछद बंद रहने से ही तविा की कई बीमािरिाँ होती है । िफर सूखे कपडे से शरीर को पोछ कर (अथवा थोडा गीला हो तब भी िले) सूखे साफ वस पहन ले। वस भले सादे हो िकनतु साफ हो। बासी कपडे नहीं पहने। हमेशा धुले हुए कपडे ही पहने। इससे मन भी पसनन रहता है ।
पाँि पकार के सनान होते है ः बहसनान, दे वसनान, ऋिषसनान, मानवसनान, दानवसनान।
बहसनानः बह-परमातमा का ििंतन करके, 'िल बह... थल बह... नहाने वाला बह...' ऐसा ििंतन करके बाहमुहूतभ मे नहाना, इसे बहसनान कहते है ।
दे वसनानः दे वनिदिो मे सनान िा दे वनिदिो का समरण करके सूिोदि से पूवभ नहाना िह दे वसनान है ।
ऋिषसनानः आकाश मे तारे िदखते हो और नहा ले िह ऋिषसनान है । ऋिषसनान करने
वाले की बुिद बडी तेिसवी होती है ।
मानवसनानः सूिोदि के पूवभ का सनान मानवसनान है । दानवसनानः सूिोदि के पशात िाि पीकर, नाशता करके, आठ नौ बिे नहाना िह दानव
सनान है ।
अतः हमेशा ऋिषसनान करने का ही पिास करना िािहए। (अनुकम)
सवचछ ता क ा धिान
ििद शरीर की सफाई रखी िािे तो मन भी पसनन रहता है । आिकल अिधकतर लोग
बश से ही मंिन करते है । बश की अपेका नीम और बबुल की दातौन जिादा अचछी होती है और ििद बश भी करे तो कभी-कभार बश को गमभ पानी से धोना िािहए अनिथा उसमे बेकटे िरिा(िीवाणु) रह िाते है ।
िकतने ही लोग उं गली से दाँत साफ करते है । तिन भ ी (अंगूठे के पास वाली पथम उं गली)
से दाँत िघसने से मसूडे कमिोर हो िाते है तथा दाँत िलदी िगर िाते है किोिक तिन भ ी मे
िवदुतशिि का पमाण दस ू री उं गिलिो की अपेका अिधक होता है । अतः उससे दाँत नहीं िघसने िािहए एवं आँखो को भी नहीं मसलना िािहए।
ििस िदशा से हवा आती हो उस िदशा की ओर मुह ँ करके कभी-भी मलमूत का िवसिन भ
नहीं करना िािहए। सूिभ और िनदमा की ओर मुख करके भी मलमूत का िवसिन भ नहीं करना िािहए।
(अनुकम)
सम रणशिि क ा िवक ास
िादशिि बढाने का एक सुनदर पिोग है – भामरी पाणािाम।
सुखासन, पदासन िा िसदासन पर बैठे। हाथ की कोहनी की ऊँिाई कनधे तक रहे , इस पकार रखकर हाथ की पथम उं गली(तिन भ ी) से दोनो कानो को धीरे -से बंद करे । एकदम िोर से बंद न करे , िकनतु बाहर का कुछ सुनाई न दे इस पकार धीरे से कान बनद करे ।
अब गहरे शास लेकर, थोडी दे र रोके, ओठ बंद रखकर, िैसे भमर का गुि ँ न होता है वैसे 'ॐ sssss...' कहते हुए गुि ँ न करे । उसके बाद थोडी दे र तक शास न ले। पुनः िही िकिा दहुरािे।
ऐसा सुबह एवं शाम 8 से 10 बार करे । िादशिि बढाने का िह िौिगक पिोग है । इससे मिसतषक की नािडिो का शोधन होकर, मिसतषक मं रि संिार उिित ढं ग से होता है । पश और िविार करने से भी बुिदशिि का िवकास होता है ।
सुबह खाली पेट तुलसी के पते, एकाध काली िमिभ िबाकर एक िगलास पानी पीने से भी
समरणशिि का िवकास होता है , रोग-पितकारक शिि बढती है । कैनसर की बीमारी कभी नहीं होती, िलंदर-भगंदर की बीमारी भी कभी नहीं होती।
(अनुकम)
वििितव और विवहा
र
िकसी भी वििितव का पता उसके विवहार से ही िलता है । कई लोग विथभ िेषा करते
है । एक होती है सकाम िेषा, दस ू री होती है िनषकाम िेषा और तीसरी होती है विथभ िेषा। विथभ िेषा नहीं करनी िािहए। िकसी के शरीर मे कोई कमी हो तो उसका मिाक नहीं उडाना िािहए वरन ् उसे मददरप बनना िािहए, िह िनषकाम सेवा है ।
िकसी की भी िनंदा नहीं करनी िािहए। िनंदा करने वाला वििि ििसकी िनंदा करता है ।
उसका तो इतना अिहत नहीं होता िितना वह अपना अिहत करता है । िो दस ू रो की सेवा करता है , दस ू रो के अनुकूल होता है , वह दस ू रो का िितना िहत करता है उसकी अपेका उसका खुद का िहत जिादा होता है ।
अपने से िो उम से बडे हो, जान मे बडे हो, तप मे बडे हो, उनका आदर करना िािहए।
ििस मनुषि के साथ बात करते हो वह मनुषि कौन है िह िानकर बात करो तो आप विवहारकुशल कहलाओगे।
िकसी को पत िलखते हो तो ििद अपने से बडे हो तो 'शी' संबोधन करके िलखो। संबोधन
करने से सुवाकिो की रिना से िशषता बढती है । िकसी से बात करो तो संबोधन करके बात करो। िो तुकारे से बात करता है वह अिशष कहलाता है । िशषतापूवक भ बात करने से अपनी इजित बढती है ।
ििसके िीवन मे विवहार-कुशलता है , वह सभी केतो मे सफल होता है । ििसमे िवनमता
है , वही सब कुछ सीख सकता है । िवनमता िवदा बढाती है । ििसके िीवन मे िवनमता नहीं है , समझो उसके सब काम अधूरे रह गिे और िो समझता है िक मै सब कुछ िानता हूँ वह वासतव मे कुछ नहीं िानता।
एक िितकार अपने गुरदे व के सममुख एक सुनदर िित बनाकर लािा। गुर ने िित
दे खकर कहाः
"वाह वाह! सुनदर है ! अदभुत है !" िशषि बोलाः "गुरदे व! इसमे कोई तुिट रह गिी हो तो कृ पा करके बताइए। इसीिलए मै
आपके िरणो मे आिा हूँ।"
गुरः "कोई तुिट नहीं है । मुझसे भी जिादा अचछा बनािा है ।" वह िशषि रोने लगा। उसे रोता दे खकर गुर ने पूछाः
"तुम किो रो रहे हो? मै तो तुमहारी पशंसा कर रहा हूँ।"
िशषिः "गुरदे व! मेरी घडाई करने वाले आप भी ििद मेरी पशंसा ही करे गे तो मुझे मेरी गिलतिाँ कौन बतािेगा? मेरी पगित कैसे होगी?" िह सुनकर गुर अतिंत पसनन हो गिे।
हमने िितना िाना, िितना सीखा है वह तो ठीक है । उससे जिादा िान सके, सीख सके,
ऐसा हमारा पिास होना िािहए।
रामकृ षण परमहं स वद ृ हो गिे थे। िकसी ने उनसे पूछाः "बाबा िी! आपने सब कुछ िान
िलिा है ?"
रामकृ षण परमहं सः "नहीं, मै िब तक िीऊँगा, तब तक िवदाथी ही रहूँगा। मुझे अभी बहुत
कुछ सीखना बाकी है ।"
ििनके पास सीखने को िमले, उनसे िवनमतापूवक भ सीखना िािहए। िो कुछ सीखो,
सावधानीपूवक भ सीखो। िीवन मे िवनोद िररी है िकनतु िवनोद की अित न हो। ििस समि पढते हो, कुछ सीखते हो, कुछ करते हो उस समि मसती नहीं, िवनोद नहीं। वरन ् िो कुछ पढो, सीखो िा करो, उसे उतसाह से, धिान से और सावधानी से करो। है ।
पढने से पूवभ थोडे धिानसथ हो िाओ। पढने के बाद मौन हो िाओ। िह पगित की िाबी माता-िपता से ििढना नहीं िाहे । ििस माँ-बाप ने िनम िदिा है , उनकी बातो को समझना
िािहए। अपने िलए उनके मन मे िवशेष दिा हो, िवशेष पेम उतपनन हो, ऐसा विवहार करना िािहए।
भूल िाओ भल े स ब कुछ , माता -िपता को भ ू लना नह ीं।
अन िगनत उपकार ह ै उनके , िह कभी िब सरन ा नही ं।।
माता-िपता को संतोष हो, उनका हदि पसनन हो, ऐसा हमारा विवहार होना िािहए। अपने माता-िपता एवं गुरिनो को संतुष रखकर ही हम सचिी पगित कर सकते है ।
(अनुकम)