तलाश... ( मुझे बचपन से ही खुशशय ों की तलाश थी. बड़ी ह गई त नौकरी की तलाश शुरू ह गई ӏ
नौकरी शमल गई त मेरी मााँ ने मेरे शलए एक अच्छे
लड़के की तलाश शुरू कर दी ज मेरे लायक ह ӏ कभी-कभी त स चती थी, ये तलाश ख़त्म कब ह गी? ) ``समझ में आ गया क्या बच्चो?`` मैंने अपने चिर-पररचित अंदाज में दसवी कक्षा के चवद्याचथियों को अंग्रेजी का एक चनबन्ध पढ़ाने के बाद पूछा ӏ हालााँ चक मैं ये बखूबी जानती थी, की उन्हें यह पाठ समझ में नहीं आया है ӏ क्योंचक चजस स्तर का वो चनबन्ध था, शायद उस स्तर के चवद्याथी कक्षा-कक्ष में नहीं थे ӏ मेरे सामने एक कचठन िुनौती थी ӏ
ले चकन चवद्याथी होचशयार बहुत ज्यादा थे .
उन्होंने झट से कह चदया,`` हााँ ! मैडम समझ में आ गया ӏ`` मैंने नजरे उठाके जब दे खा तो ये बात लगभग सभी चवद्याथी बोल रहे थे ӏ ले चकन एक लड़की शां त थी ӏ वह हमेशा की तरह लड़चकयों की पंक्ति में अंचतम छोर पर बैठी थी ӏ
भोली सी सूरत, मुक्तिल से कभी-कभी मुस्कुराने वाली,
वह
लड़की दु चनयां से कटी- कटी सी लग रही थी ӏ उसे दे ख कर ऐसा लग रहा था, मानो वह मेरी ही छचव हो ӏ मैं भी तो उसकी तरह मुस्कुराना मानो भूल ही गई थी ӏ बिपन में अध्यापको की डां ट से डरने के कारण कम बोलने लगी थी और वो स्वभाव चजन्दगी में कब घुल गया पता ही नहीं िला ӏ
जब
दु चनयादारी की समझ हुई तो नौकरी िाचहए थी ӏ ऐसे में मैं भी शु रू हो गई अन्य युवाओं के साथ दौड़ लगाने ӏ ये जाने चबना ही की चजस दौड़ में मैं शाचमल हुई हाँ क्या वो मेरे लायक है ? ले चकन चिर भी जै से-तै से कर के नौकरी प्राप्त कर ली ӏ सोिा जै से ही नौकरी चमल जाएगी तो ख़ुशी के मारे उछलूंगी ӏ ले चकन वो तलाश ख़तम नहीं हुई ӏ मुझे ख़ुशी नहीं चमली ӏ आक्तखर चिर खुचशयों को तलाशने की कवायद शुरू हो गई ӏ गई पता ही नहीं िला ӏ
इस तलाश में कब शादी की उम्र हो
लोग तरह-तरह की बातें करने लगे ӏ
शु रू कर दी एक ऐसे लड़के की तलाश जो मेरे लायक हो ӏ जो
मााँ ने चिर मेरी
भावनाओं को समझे ӏ ले चकन जो भी लड़के मुझे चदखाए गए, वो न जाने क्यों
मुझे इस लायक नहीं लगे?
आचख़रकार मेरी मााँ ने हार मान ली ӏ उन्होंने सोिा
में मानने वाली नहीं हाँ ӏ
मेरा मन इन्ही ख्यालो में गोता लगा रहा था, की
इतने में घंटी बज गई ӏ
उस चदन मैं उस लड़की से बात नहीं कर सकी ӏ
ले चकन अगले ही चदन मैं पुन: उसके पास गई ӏ उसका नाम पुछा ӏ
पास जाकर मैंने उससे
उसने धीमे से बुदबुदाया,`` मैडम! चकस्मत ӏ ``
``वाह! चकतना प्यारा नाम है ते रा ӏ``, मैंने नकली मुस्कराहट मुस्कुराते हुए उससे कहा ӏ
चजसका उस पर कोई असर नहीं हुआ ӏ शायद मुस्कुराहटो से
उसका नाता टू ट गया था ӏ
साधारण बातिीत के बाद मैंने उसे कल बताए
पाठ के बारे में पूछना शु रू चकया ӏ इस दौरान मुझे पता िला की उसे तो अंग्रेजी पढनी तक नहीं आती ӏ
मैं आश्चयििचकत थी ӏ
सोिा भला इतनी सालो
तक इस पर चकसी भी अंग्रेजी के चशक्षक ने ध्यान क्यों नहीं चदया? ले चकन अगले ही पल मुझे अहसास हो गया की मैंने भी तो चशचक्षका होने का दाचयत्व पूणि चनष्ां और ईमानदारी से नहीं चनभाया है ӏ
मुझे भी तो इस चवद्यालय में
आए हुए छ: माह हो गए हैं ӏ आक्तखर मुझसे ऐसी भूल हो कैसे गई? ऐसे अनेको सवाल मेरे चदमाग में कोंध रहे थे ӏ
खेर अब आगे बढ़ने का समय था
ӏ अब मुझे उसे होचशयार करने की कवायद शुरू करनी थी ӏ
मैंने शु रू मैं
उसे अंग्रेजी के सामान्य शब्ों का पररिय करवाया ӏ वह रोमन के आधार पर मेक को मके बोलती तो कभी फ्यूिर को िुटू रे ӏ
इस दौरान कभी-कभी हं सी
की फ़व्वार भी छूट पड़ती ӏ अब मुझे उसके साथ वि चबताना अच्छा लगने लगा ӏ
मैं चजन मुस्कुराहटो की तलाश कर रही थी, उन्हें अब मुझे तलाशने
की कोई जरुरत नहीं थी ӏ वो खुद-ब-खुद लौट आती थीं ӏ वि का घोडा भी कुलां िे मारकर दौड़ रहा था ӏ
बोडि परीक्षाओ का टाइम टे बल आ गया और
मैंने अपनी और से चकस्मत को पूरी तै यारी करवा दी थी ӏ पहला पेपर अंग्रेजी का ही था ӏ
मैंने चकस्मत को सभी जरुरी सलाह दे दी ӏ
आचख़रकार सभी
की पररक्षाएाँ सम्पन्न हो गई और मुझे ये जानकर बहुत अच्छा लगा की चकस्मत के सभी पेपर अच्छे हुए थे ӏ
जब पररणाम का चदन आया तो मेरा कले जा मुहं
में था ӏ मैं उस चदन सभी अध्यापको के साथ हमारे स्कूल के आईटी भवन में थी ӏ कंप्यूटर स्क्रीन पर जै से ही प्रािायि महोदय ने चकस्मत के नामंक चलखे मेरा चदल धकधक कर रहा था ӏ
सकिल घूमा और पररणाम मेरी आाँ खों के सामने
था ӏ
वह पास हो गई थी ӏ मैंने जै से ही अंग्रेजी के कॉलम के सामने दे खा तो
उसमें उसके 64 अंक थे ӏ
मैं खुशी के मारे उछल पड़ी ӏ ये परवाह चकए
चबना की मेरे आसपास 15 लोग और भी हैं ӏ ले कीन मुझे इसकी परवाह नहीं थी ӏ क्योंचक आचख़रकार चकस्मत की वजह से मैंने जीना सीख चलया था ӏ मेरी खुचशयों को तलाश करने की कवायद पूणि हो िुकी थी ӏ राजे न्द्र कुमार शास्त्री (गुरु)