September2007rp Health Article

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शरद ऋत ु सवासथय चया ा (23 अगसत स े 22 अकटूबर 2007)

वषाा ऋतु मे जीव-जनतुओं, कीचड व मििन पदाथो से दिूषत हुआ जि शरद ऋतु

मे िदन मे सूया की जीवाणुनाशक पखर िकरणो से िनिवष ा हो जाता है तथा रािि मे चंदमा की अमत ृ मय िकरणो से व अगसतय तार े के उदय होन े के प भाव स े शीत ि ,

िव मि एव ं प िवि हो जाता ह ै। इसे हं सोदक कहते है । हं सोदक से सनान अमत ृ के समान फि दे ने वािा होता है ।

शरद ऋत ु म े िपत पकुिपत व वायु शांत हो जाता है । जठराििनः

मधयम बियुक होती है ।

शारीिरक बि ः मधयम होता है । सेवनीय आहारः

अचछी तरह भूख िगने पर रस मे मधुर, कुछ कडवे व कसैिे,

शीति व िपत को शांत करने वािे अनन-पान का उिचत मािा मे सेवन करना चािहए।

सामानयतः सभी के ििए पुराने चावि, जौ, मूग ँ , गेहूँ, जवार, करे िा, बथुआ, परवि,

तोरई, पािक, पका पेठा, नेनुआ, पोई, कोमि ककडी, खीरा, िटं डा, िबना बीज के छोटे बैगन, डोडी (जीवंती), गाजर, शिगम, नींब,ू हरा धिनया, गनना, फिो मे मीठा अनार, मीठे बेर,

आँविा, मौसंबी, नािरयि, सेब, अमरद, सीताफि, सूखे मेवो मे अंजीर, िकशिमश, मुनकका,

मसािो मे जीरा, धिनया, इिायची, अलप मािा मे िौग, दािचीनी तथा दध ू , मकखन व घी का उपयोग िाभदायी है । अनुकूि िवहारः

शरद ऋतु मे पदोषकाि मे अथात ा रािि के पथम पहर मे

(सूयास ा त के बाद 3 घंटे तक) चंदमा की शीति िकरणो का सेवन करना खूब िाभदायी है परनतु दे र रात तक जागरण न करे । अनयथा िपत पकुिपत हो जाता है । इस ऋतु मे

उतपनन फूिो से बनी मािा का धारण तथा चंदन का िेप, मुितानी िमटटी से सनान िाभदायी है ।

तया जय आहार -िव हारः इन िदनो मे अिधक उपवास, अिधक शम, धूप का सेवन,

तेि, कार, दही, खटटे , तीखे, नमकीन, उषण पदाथो का सेवन, िदन मे शयन एवं पूवा िदशा

की वायु का सेवन नहीं करना चािहए। पूवी हवा बंगाि की खाडी से उठने के कारण नमीयुक होती है ।

शरद ऋत ु म े घ ृ तपानः

िपत अििन का अिधषान है अथात ा शरीर मे अििन

िपत के आशय से रहती है । शरद ऋतु मे पकुिपत िपत मे दव अंश अिधक हो जाने के कारण अििन मंद हो जाती है । जैसे उषण जि अििन सदश हो जाने पर भी अििन को

बुझा दे ता है , वैसे ही दवीभूत िपत अििन को मंद कर दे ता है । घी उतम अििन-पदीपक व शष े िपतशामक है ( िपतघन ं घ ृ तम ् )। अतः शरद ऋतुजनय िपतपकोप व मंदाििन के ििए सुबह खािी पेट घी का सेवन िाभदायी है । सुबह सूयोदय के बाद 15-20 गाम

गुनगुना गौघत ृ पीकर ऊपर से गरम पानी पीये। ( डे यरी व बाजार का घी इतना भरोसे का पाि नहीं रह गया है । ) इसके बाद 1-2 घंटे तक कुछ न िे। बाद मे भूख िगने पर दध ू

िे सकते है । साधारण घी की अपेका औषधिसद घी जैसे शतावरी घत ृ , पंचितक घी आिद िवशेष िाभदायी है ।

रात को 3 से 5 गाम ििफिा चूणा गुनगुने पानी के साथ िेने से सुबह मि के साथ

अितिरक िपत का िनषकासन हो जाता है ।

िपत िवरे चन हे तु सुबह 2-3 गाम हरड चूणा मे समभाग िमशी िमिाकर िेने से भी

िाभ होता है ।

भादपद ( 21 अगसत से 26 िसतमबर ) मे कडवे पदाथा जैसे करे िा व मेथी की

सबजी, नीम तथा िगिोय की चटनी आिद का सेवन अवशय करना चािहए। भादपद मे िौकी व दही का सेवन िनिषद है ।

एक चममच िमशीयुक आँविा चूणा (आशम मे उपिबध) मे 1 चुटकी तुिसी के

बीज िमिाएं। इसे पानी मे िमिा कर पीने से िपत का शमन तो होगा ही, साथ मे शिक, सफूिता व ताजगी भी आएगी। यह पयोग वाधक ा य िनविृत, पेट के कई पकार के रोगो की

िनविृत व चेहरे पर िािी िाने मे बडा सुखदायी सािबत हुआ है । (रिववार के िदन न िे) *************************************

पुणय व सवासथय पदाता आ

ँ विा

पद पुराण के एक पसंग मे भगवान शंकर काितक ा े य जी से कहते है - बेटा! आँविे का फि परम पिवि है । यह भगवान शी िवषणु के पसनन करने वािा एवं शुभ माना

गया है । आँविा खाने से आयु बढती है । इसका रस पीने से धमा का संचय होता है और रस को शरीर पर िगाकर सनान करने से दिरदता दरू होकर ऐशवया की पािि होती है । सकनद! िजस घर मे आँविा सदा मौजूद रहता है , वहाँ दै तय और राकस नहीं आते। जो

दोनो पको की एकादिशयो को आँविे के रस का पयोग कर सनान करते है , उनके पाप नष हो जाते है । षडानन ! आँविे के रस से अपने बाि धोने चािहए। आँविे के दशन ा ,

सपशा तथा नामोचचारण से भगवान िवषणु संतुष होकर अनुकूि हो जाते है । अतः अपने घर मे आँविा अवशय रखना चािहए। जो भगवान िवषणु को आँविे का मुरबबा एवं नैवेद अपण ा करता है , उस पर वे बहुत संतुष होते है । आँविे का सेवन करने वािे मनुषयो को उतम गित िमिती है । पतयेक रिववार, िवशेषतः सिमी को आँविे का फि तयाग दे ना

चािहए। शुकवार, पितपदा, षषी, नवमी, अमावसया और सकािनत को आँविे का सेवन नहीं करना चािहए।

आयुवद े के अनुसार आँविा रकपदर, बवासीर, नपुंसकता, हदयरोग, मूिरोग, दाह,

अजीणा, शास रोग, खाँसी, दसत, पीििया एवं कय जैसे रोगो मे िाभदायी है । यह रस-रकािद सिधातुओं को पुष करता है । इसके सेवन से आयु, समिृत, कांित, बि, वीया एवं आँखो का

तेज बढता है , हदय एवं मिसतषक को शिक िमिती है , बािो की जडे मजबूत होकर बाि कािे होते है । इससे रक शुद होता है और रोग पितकारक शिक बढती है ।

आधुिनक वैजािनको ने आँविे पर शोध के पशात सवीकार िकया है िक आँविे मे

पाया जाने वािा एंटीआकसीडै ट एनजाइम बुढापे को रोकता है । पिरपकव, पुष, ताजे आँविो

का सेवन करना िाभपद है । इनके अभाव मे आँविे का चूण,ा मुरबबा तथा चयवनपाश वषा भर उपयोग मे िाये जा सकते है ।

सोतः ऋ िष पसाद िस तमबर 2007, पृ ष 30, 31

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