Rishi Prasad Aprit 1997 Ank 52 Page No. 24,25sachchamitra

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साध ना पका श सचचा िित पूज यपाद सं त शी आसारा ि ज ी बाप ू

गुजराती भक-किि नरिसंह िेहता जी ने गाया है ः सिरन े श ी ह िर , िेल ि िता परी जो ने िि चार ी ल े ि ू ल तार ँ। तुं अ लया कोण न े को ने िळगी रहो िगर स िजय े कह े िारं िारं। यहां किि नरिसंह िेहता कहते है ः ‘ििता को छौडकर जीि को शी

हिर का सिरण करना चािहए। अपने िूल सिरप का ििचार कर लेना चािहए। तुि कोन हो और ‘िेरा-िेरा’ करके िकसको पकडकर बैठे हो ? जरा सिझो।‘ शासो ने पुत पिरिार का लालन पालन करने की िना नहीं की है । धन और पद को पाने की िना नहीं की है लेिकन सथूल शरीर से संबंिधत

िजन पुत-पिरिार या धन के पीछे जीिन पूरा कर दे ते हो, उनिे से कुछ भी अंत सिय िे साथ िे नहीं आता है । िजस नशर शरीर के िलए धन इकठठा करने िे िकतने ही पाप-ताप सहे , िकतने ही दाँि-पेच िकए, उस शरीर को

यहीं पर छोड कर जाना पडता है । िजन पुत-पिरिार के लालन-पालन िे पूरा आयुषय िबता िदया, उन पुत-पिरिार को छोड कर जाना पडता है । कर सतस ं ग अभी स े पया रे नह ीं तो ििर पछताना ह

ै।

ििला िपलाकर द ेह बढायी िह भी अििन ि े ज लाना है। पडा रह ेगा िाल िजाना छोड ितया स ु त जान ा ह ै। कर सतस ं ग अभी स े पया रे नह ीं तो ििर पछताना ह

ै।

अगर तुि पीछे पछताना नहीं चाहते हो तो पुत-पिरिार धन-पद आिद िे आसिक ित करो। वयिहार के िलए िजतना आिशयक हो उतना धन ििल जाए ििर और धन किाने की, उसे संभालने की या उसे बढाने की झंझट िे पड कर जीिन बरबाद ित करो। इन सबिे आसिकरिहत होकर वयिहार

चलाओ और पीित केिल आतिा-परिातिा िे रिो, उसे बढाते जाओ कयोिक आतिा-परिातिा का संबध ं ही शाशत है । बाकी के सब संबंध नशर है । िकसी आदिी के तीन िित थे। िित तो उसके साथ इतना गाढ संबंध नहीं रिते थे, परनतु उन लोगो िे इस आदिी की थोडी-बहुत आसिक थी। पहले िित िे तो इतनी ज‍यादा आसिक थी िक जब उसके संग

िे रहता तो

िाना-पीना और सोना भी भूल जाता था। दस ू रे िित के साथ उस आदिी की दोसती पहले िित जैसी पगाढ नहीं

थी। उसके साथ भी रहता था, घूिता ििरता था और साथ िे अपना काि भी िनकाल लेता था। तीसरा िित उसे हिेशा अचछी सीि दे ता िक ‘दल ल िनुषय ु भ जनि ििला है , इसका दर ु पयोग ित कर। इस शरीर को िकतना भी

ििलाएगा-िपलाएगा आििर तो इसे सिशान की अििन िे जला दे ना है । तू अनतयाि ल ी परिातिा का सिरण कर। िही सदा के िलए तेरा साथी रहे गा।‘

इस तीसरे िित की बाते उसे इतनी जँचती नहीं थीं, इसिलए हफते दो हफते िे, िहीने दो िहीने िे उस िित से ििलता न जुलता, उसकी बात सुनीअनसुनी करके उससे ििदा ले लेता था।

दै ियोग से उस आदिी के ऊपर िकसी ने कुछ आरोप लगा िदया। सरकारी अिलदारो ने उसको जेल िे डाल दे ने का आदे श िदया। यह सुनकर

उसने सोचा िक ‘िै अपने िितो के पास जाऊँ। शायद िे िेरी कुछ िदद कर सके तो िै जेल िे जाने से बच जाऊँ। िह अपने पहले िित के पास गया और सारी बाते बताई। उस िित ने कहाः ‘तेरे साथ िेरी दोसती कहाँ है ? तू ही िेरे पीछे -पीछे घूिता था। िेरे पास ऐसा िालतू सिय नहीं है िक तेरे पीछे गिाऊँ।‘

िह अपने दस ू रे िित के पास गया और अजल करने लगा िक कुछ भी

करो, िझे जेल िे जाने से बचा लो। तब दस ू रे िित ने कहाः ‘जब पुिलस अिलदार ने तुमहे पकडने का आदे श दे ही िदया है तो अब िै कया कर

सकता हूँ ? जयादा से जयादा िै पुिलस चौकी तक तुमहारा साथ दे सकता हूँ।‘ िह िनराश होकर बैठ गया।

तीसरे िित को पता चला िक िह आदिी जो उसकी बात टाल दे ता है , उसे ििलने के िलए भी उतसुक नहीं है िह बडी िुसीबत िे है । िह तीसरा

िित उसके पास दौडता चला गया और पूछने लगा ....’िित ! कया बात है ? सुना है तुि िकसी िुसीबत िे िँस गये हो ।‘ तीसरे िित की ऐसी हदयपूिक ल सहानुभूित दे िकर उसने सारी बात बताईः ‘‘िेरा इतना दोष नहीं है लेिकन अिलदारो ने जेल िे डालने का आदे श दे िदया है । तुि अगर िुझे बचा लो तो तुमहारी बडी िेहरबानी होगी।‘’

तब उस िित ने जिाब िदयाः ‘’िेरे िित ! तू िचनता ित कर। िै तेरे

साथ हूँ। तूने कुछ गलती नहीं की होती और सािधान रहा होता तो जेल जाने से बच जाता। अब जेल जाना भी पडे तो भी िै तेरे साथ रहूँगा। तेरा साथ नहीं छोडू ं गा।‘’

यह तो एक किलपत कहानी है लेिकन अपने जीिन से जुडी हुई। िजस तरह उस आदिी ने अपने पहले िित के िलए िाना-पीना छोड िदया, पुत-पिरिार का भी खयाल नहीं रिा, लेिकन संकट के सिय िे उस

िित ने जरा भी साथ नहीं िदया, उसी तरह िनुषय का पहला िित धन है ।

िजस धन को पाप करने के िलए िनुषय िाना-पीना हराि करके भी लगा रहता है िह धन उसकी ितृयु के सिय काि नहीं आता है । जीि के िलए

संकट का सिय है ितृयु। जीि को ितृयु के सिय यिदत ू लेने आते है तब धन उसकी रका नहीं करता है । िह तो कहता है िक ‘’िैने तेरे साथ दोसती नहीं की, तू ही िेरे पीछे -पीछे घूिता था।‘’

िनुषय का दस ू रा िित है पुत-पिरिार। िनुषय पुत-पिरिार को सुिी

करने के िलए िकतने-िकतने पापकिल करता है लेिकन जब यिदत ू ितृयु रपी

िाँसी लेकर आते है तब कुटु मबी कहते है , ‘’हि जयादा-से-जयादा सिशान तक तुमहारा साथ दे सकते है लेिकन तुमहारे साथ नहीं आ सकते।‘’

िनुषय का तीसरा िित है धि।ल िह कहता है ः ‘’िित ! तू िचनता ित

कर। तू कहीं भी जाएगा, िै तेरे साथ आऊँगा। िै सदा तेरे साथ रहूँगा।‘’

इस कहानी से सिझ लेना चािहए िक िजसको तुि ‘िेरा’ िान कर

िलपटे रहते हो िह धन, पुत-पिरिार तुमहारा कहाँ तक साथ दे ता है ? धिल ही िनुषयिात का सचचा िित है । िजस धन को किाने के िलए तुि िदन-रात गँिा दे ते हो उस धन िे सदगुण तो सोलह है लेिकन दग लु चौसठ है । धन ु ण जयादा होगा और उसका सदप ु योग नहीं िकया तो जीिन िे कोई न कोई

दग ल आ ही जाएगा जो जीिन को बरबाद कर दे गा। जबिक धिल लोक और ु ुण परलोक दोनो िे जीि का रकण करता है । अतः धिल का ही आचरण करना चािहए।

िह धिल कया है ? जो सिग ििश को धारण कर रहा है उस आतिा-

परिातिा का धयान करना, उस अंतयाि ल ी परिातिा का जान पाना एिं

‘आतिा शाशत है और शरीर नशर है ’ ऐसी सिझ को दढ करके अपने

आतिसिरप को जानना ही धिल है । ‘जो सथूल, सूकि और कारण शरीर को सता दे रहा है िह चैतनय आतिा िै हूँ’ – ऐसा अनुभि पा लेना धिल है । हि लोग सथूल शरीर को ‘िै’ िान रहे है इसिलए हिारे सचचे िित धिल का साथ नहीं ले सकते है । अगर हि धिल के िागल पर चलना चाहते है तो अपनी सिझ को बदलना होगा, हिारे वयिहार को, हिारे िचंतन को बदलना होगा। जैसे सथूल शरीर के िलए अनन िल आिद आहार की

आिशयकता है िैसे सूकि शरीर के िलए भी भगिननाि, जप, धयान और आधयाितिक िचंतनरपी आहार की जररत है । इन सथूल-सूकि दोनो शरीरो को उिचत िाता िे यथायोिय आहार ििलता रहे गा तो सिसथता और शांित सहज िे ििल जाएगी। आतिा-परिातिा का रस पगट हो जाएगा।

सोतः ऋिष पसाद

, अपैल १ ९९७ , अंक ५२ ,

पृ ष २४ -२५

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