हिंदी भाषा एवं व्याकरण .pdf

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  • Pages: 148
इकाई – 1 िह दी भाषा और याकरण इकाई क 1.0

परेखा

उेय

1.1

तावना

1.2

भाषा ( विन, श द और वा य)

1.3

सं सार क भाषाओं म िह दी का व प

1.4

भाषा और याकरण 1.4.1 याकरण का अथ एवं व प 1.4.2 भाषा और याकरण का स ब ध

1.5

िह दी याकरण के िविवध िवभाग

1.6

सारां श

1.7

अ यासाथ न

1.8

सं दभ थ

1.0 उ े य इस इकाई के अ ययनोपरा त आप     

भाषा क प रभाषा समझ सकगे। विन, श द और वा य तीन इकाईय क जानकारी ा कर सकगे। िह दी भाषा के व प और देवनागरी िलिप क जानकारी ा कर सकगे। याकरण के िविवध िवभाग के अ तगत सि मिलत त व क जानकारी ा कर सकगे। भाषा और याकरण के स ब ध को समझ सकगे।

1.1 तावना मनु य एक सामािजक ाणी ह। समाज म रहकर बातचीत के मा यम से वह अपने भाव को और िवचार को कट करता है। यह बातचीत भाषा के ारा ही स भव है। भाषा के वल िवचार अिभ यि का मा यम 1

ही नह वरन् िवचार करने और सोचने का भी मा यम ह। िबना भाषा मनु य िवचार करना और सोचना ब द कर देते ह। मानव और मानवेतर भाषा म यह मूलभूतः अ तर है। भाषा का योग दो कार से िकया जाता है (1)

बोलकर और

(2) िलखकर।

बोलने म हम विनय का योग करते है और िलखने म वण का। विनय या वण से श द बनता है और साथक श द से वा य क रचना होती है। इस कार वा य ारा अथवा भाषा ारा हम अपनी पूरी बात कहते है।‘ कामता साद गु ने िलखा है िक ‘‘जगत का अिधकां श यवहार बोलचाल अथवा िलखापढ़ी से चलता है इसीिलए भाषा जगत के यवहार का मूल है।’’

1.2 भाषा ( विन श द और वा य) भाषा मनु य के िवचार और भाव को कट करती है। मानव का सबसे अ छा सृजन भाषा ही है। भाषा: श द ‘भाष’ धातु से बना है, िजसका अथ होता है - कहना या बोलना। भाषा के हम अपनी बात दूसर तक पहंचाते और दूसर क बात खुद समझते ह । इसम मु य भूिमका वाणी क ही होती है। वाणी बोलने वाले के मुहं से विन के प म िनकलती है िकं तु यिद वह विनय के प म य न भी हो और बोलने वाले अथात् व ा के मन म िवचार के प म घुमड़ती रहे तो वह भी भाषा ही है। इस कार भाषा वह यव था हे जो मौन प म तो वैचा रक होती है और मुहं से य होकर विन प म भौितक प हण करती है। इसम एक िनि त यव था है जो विन - अ र - श द - वा य तक होती है। विन श द और वा य ये तीन भाषा के अवयय होते है। विन - विन भाषा शरीर का सबसे छोटा (लघु म) अवयय है। क, च, और अ आिद विनयाँ ह◌ा इ ह वण भी कहते है। वण वह मूल विन है; िजसके ख ड नही हो सकते। वण के मेल से श द बनते है और श द से वा य। वणमाला- वण के समुदाय को वणमाला कहते है। वर और यं जन से िह दी क वणमाला बनती है िजसम 49 वण वीकार िकए गए है। ये सभी वण (13 वर और 36 यं जन) देवनागरी िलिप म िलखे जाते है । वण के भेद - (1) वर और (2) यं जन वर:- िजन वण का उ चारण वतं ता से हो और जो यंजन के उ चारण म सहायक हो उ हे वर कहते है। इनक सं या 13 होती है। जो इस कार है िह दी म वर - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अ, अः = 13 वर

2

यजन:- यं जन उन वण को कहते है जो वर क सहायता के िबना नह बोले जाते उदाहरण के िलए ‘म’ एक यं जन है जो म + अ विनय से बना है, म् विन म जब तक ‘अ’ वर नह िमलता तब तक वह ‘म’ नही बन सकता और उसका सही उ चारण भी नह िकया जा सकता है। िह दी म कु ल 36 यं जन माने गए है जो िन निलिखत है । क, ख ग, घ ड.। च,

छ,

ज,

झ,

´।

ट,

ठ,

ड,



ण।

त,

थ,





न।

प,

फ,

ब,

भ,

म।

य,

र,

ल,

व।

श,

ष,



ह।

,

,



कु ल = 36 यं जन उपयु

यं जन म , , , ये तीन यं जन सं यु यं जन कहलाते है, जो इस कार बने है =

क् + ष

=

त् + र

= ज+´ अनु नािसक अनु वार और िवसग जब िकसी वर का उ चारण, नािसका (नाक) से होता है तो उसे अनुनािसक कहते है। यह एक कार से अं वर का सं ि प है। िजसे (-) िच से पहचाना जाता है और िलखा जाता है, जैसे अंग ,कं घा म (-◌ं) िच अनुनािसक है। यं जन के पाँच वग के अि तम यं जन (ड. ´, ण, न, म) भी अनुनािसक यं जन कहलाते है। अनु वार का ही एक प च िब दु ( ◌ँ ) है। जो सामा यतः िह दी के त व श द को लगता है जैसे - चाँद, साँझ, कहाँ आिद। िवसग का िच (: ) है जो अः वर क तरह उ च रत होता है। इसका योग िकसी श द के दो अ रो के म य या अंत म होता है। दुःख, मातः आिद।

3

िह दी के वण क िलिप (देवनागरी) - िकसी भी भाषा क वणमाला के िलखने के प म िलिप कहते है। सं सार क सभी भाषाओं क िलखने क अलग-अलग िलिपयाँ है। िह दी क वणमाला देवनागरी िलिप म िलखी जाती है। यह भारतीय िलिप है िजसका िवकास भारत क ाचीन ा ी िलिप से हआ। यह एक वदेशी िलिप है जबिक, उदू, रोमन इ यािद िवदेशी है। इस िलिप क वणमाला का म वै ािनक है जैसे वर पहले यं जन बाद म, वर म व (छोटा) िफर दीघ वर। येक वग के यं जन म भी अधोष-सघोष अ प ाण और महा ाण नािस य वण का थान और उ चारण ि थर है। इसके अित र इस िलिप म एक विन के िलए ही वण होता है और देवनागरी का येक अ र उ च रत होता है। प है िक वण ( विन) भाषा क लघुतम इकाई है , िक तु अथ के तर पर लघु म इकाई श द है। साथक वण या विन समूह से श द बनता है। जैसे म्, च् प् आिद विनयाँ है पर अलग से इनका कोई अथ नही है िक तु मनोज, च मच और पतं ग श द म ये विनयाँ ही अ य विनय से िमलकर ऐसे विन समूह या वण समूह क रचना करती है िजसका कोई अथ िनकलता है। िक तु श द को भी अथ और पहचान वा य म यु होने पर ही िमलती हे। उदाहरण के िलए ‘मनोज’ और ‘कमल’ कह देने से कोई आशय नह िनकलता। मनोज एक ‘नाम’ भी हो सकता है और दूसरे अथ म यह कामदेव भी है। इसी तरह कमल एक फू ल भी है नाम भी। िन न वा य रचना म श दां क साथकता है ‘मनोज पु तक पढ़ रहा है ’। कमल का फू ल िखल रहा ह। इस कार प है िक साथक विन समूह (वण ) से श द और साथक श द से वा य बनता है। विन भाषा क लघु म और वा य भाषा क पूण इकाई होता है।

1.3 सं सार क भाषाओं म िह दी का व प सं सार म हजार भाषाएँ बोली जाती है िजनका अपना-अपना िलिखत सािह य और अपना याकरण है। सं सार क लगभग तीन हजार भाषाओं को मु यतः चौदह प रवार म बां टा गया है। उनक अनेक कार क उपभाषाएँ और बोिलयाँ भी है, िजनके िभ न-िभ न प है। उन प रवार म सबसे बड़ा प रवार भारोपीय (यूरोपीय) भाषा - प रवार है, जो अनेक कार क शाखाओं और उपशाखाओं म फै ला हआ है। भारोपीय प रवार क एक धान शाखा भारतीय आय-भाषाएँ है, िज ह ाचीन, म यकालीन तथा आधुिनक काल म बाँटा गया। उन प रवार जो अनेक कार क शाखाओं और उपशाखाओं म फै ला हआ है। भारोपीय प रवार क एक धान शाखा भारतीय आय भाषाएँ है िज हे ाचीन, म यकालीन तथा आधुिनक काल म बाँटा गया है। ाचीनकाल क भाषाओं म सं कृ त भाषा धान है िजससे म यकालीन भारतीय आय भाषाओं का िवकास हआ है। म यकालीन भाषाओं म पािल, ाकृ त और अप शं भाषाओं क गणना क जाती है। अप ं श से ही आधुिनक भारतीय आयभाषाओं का िवकास हआ है, िजनम िह दी भाषा का थान अ यं त मह वपूण है। उसे शौरसेनी अप शं से िनकला हआ एक ऐसा प माना जाता है, िजसक अनेक बोिलयाँ िह दी- देश म 4

चिलत है। उसम राज थानी और पि मी िह दी देश क अनेक उपभाषाएँ भी शािमल है। ज, अवधी, खड़ी बोली और भोजपुरी आिद भाषाएँ उसी के िभ न-िभ न प ह। अध मागधी अप ं श से पूव िह दी का िवकास हआ है। िवकास क यह पर परा आज भी गितशील है। िह दी भाषा का 1000 वष का इितहास है। िह दी सािह य का ारि भक या आिदकाल 1000 से 1500 तक माना गया है। म यकाल 1500 ई.से. 1800 ई. तक माना गया है और आधुिनक काल 19व शती से गु होता ह इसी समय जभाषा के थान पर खड़ी बोली म सािह य रचना हई।ं िह दी के िवकास म अं ेज ने इसाइय ने सं मािजय और आय समािजय का भी योगदान रहा। खड़ी बोली िह दी को िवकिसत करने म 19 व शता दी के चार लेख को ल लूलाल, सदा सुखलाल, सदलिम और इशाअ ला खॉ का िविश योगदान रहा है। भारते दु और महावीर सद ि वेदी जीने िह दी भाषा के चार सार और प र कार करने म िवशेष योगदान िदया। इनके बाद ेमच द, साद अमृतलालनागर, आचाय रामच शु ल, सुिम न दपतं आिद किव और लेखक ने िह दी म सािह य के भं डार को बढ़ाया। आजादी के उपरा त िह दी को राजभाषा को स मान िमला। िह दी अ तरा ीय तर क मह वपूण भाषा। िह दी भाषा को लोकि य बनाने म िह दी िसनेमा का योगदान भी अभूतपूव है। आधुिनक आयभाषाओं के प रवार म िह दी एक मुख भाषा है जो अपनी सािहि यक िवरासत तथा सां कृ ित पर पराओं के कारण आज भी हमारे रा जीवन का ितिनध व कर रही है। िह दी भाषा सं कृ त भाषा क गं गो ी से िनकली हई एक ऐसी भाषा है, जो ाकृ त और अप शं क सुर य घािटय को पार कर ायः एक हजार वष से अिधक समय पय त अपने वतं अि त व के िलए जूझती आई है। उसने अपनी िवकासया ा म अनेक सं घष झेले है। वह भारत क रा भाषा के प म अपना जो व प मािणत कर सक है, यह उसके िलए समिपत हए पुरोधाओं क सािह य- साधना क एक सुखद प रणित ह। आधुिनक भाषा-सं दभ से जुड़कर उसके अनेक याकरण ं थ िलखे गये ह, िजनम सं कृ त तथा अ य भारतीय भाषाओं क याकरणशा ीय पर पराओं का अनुसरण हआ है। अं ेजी भाषा क याकरण-रचना क िवचार-शैली का भी उस पर भाव पड़ा है। यह सब कु छ होते हए भी उसका अपना वतं अि त व और मौिलक व प भी अव य रहा है, यह एक धुव स य है।

1.4 भाषा और याकरण भाषा और याकरण का अटू ट स ब ध होता है। दोन एक दूसरे पर आधा रत है। याकरण भाषा को एक आधारभूिम दान करती है िजस पर वह प र कृ त होती है तो भाषा भी अपने- िवकास के मा यम म याकरण को िवषय े दान करती है। 1.4.1 याकरण काअथ एवं व प याकरण श द िव (उपसग) + कृ (धातु) के योग से बना है िजसका अथ है िवशेष प से पृथक-पृथक करते हए िकसी िवषय व तु का िव लेषण करना।

5

याकरण वह शा है जो िकसी भी भाषा के चरम अवयव वण (अ र) से लेकर उसक श द रचना तथा वा यसं घटना क िभ न-िभ न ि याओं का िव लेषण करता हआ उनका व पबोध कराता है। उसके ारा हम िकसी भी भाषा क वणमाला, श द-रचना और वा य योजना के िनयम क जानकारी करते हए उसे शु प मे बोलना, िलखना पढ़ना और समझना सीखते है। याकरण शा को ‘श दानुशासन’ भी कहा गया है, िजसका अिभ ाय यह है िक वह श द का अनुशासन करता है। उस अनुशासन के कारण ही हम भाषा का शु ान होता है। 1.4.2 भाषा और याकरण का स ब ध – भाषा क ि थित याकरण से पूववत है। इसका ता पय यह है िक पहले भाषा बनती है , त प ात् उसे सु यवि थत, सुसयं त और िनयमसं गत बनाने के िलए याकरणशा क आव यकता पड़ती है। वयाकरण को ‘भाषा का ने ’ कहा गया है। उसके ारा भाषा के शु प को देखा और परखा जाता है। हमारे शा म याकरण के अ ययन को सवािधक मह व िदया गया है, य िक उसके िबना भाषा का सही बोध ह नही िकया जा सकता। वह हम के वल अपनी भाषा का ही शु ान नह करता, अिपतु िवदेशी भाषाओं को सीखने, समझने, बोलने, िलखने तथा उनका म पिहचानने क मता भी दान करता है। सभी देश के िव ान ने याकरण क मह ा और उपयोिगता वीकार क है। भाषा और याकरण म अटू ट स ब ध है। वे एक-दूसरे पर आधा रत है। भाषा यिद िव तृत वन थली है , तो याकरण एक सजा हआ उ ान कहा जा सकता है, जो यथ के झाड़-झं खाड़ो को काटकर उसे सु यवि थत, प र कृ त और सं यत बनाता है। सभी भाषाओं म याकरण का मह व वीकार िकया गया है। वेद और वेदां ग म उसका वतं िन पण हआ है। सं कृ त भाषा के मूल प और िवकास को समझने के िलए महिष पािणिन क -अ ा यायी’ तथा ‘िस ांतकौमुदी’ का अ ययन िकतना अिनवाय है, यह िकसी भी भाषाशा ी से छु पा हआ नह है। उसका याकरणशा सभी भाषाओं के याकरण के अ ययन का आदश ितमान कहा जा सकता है, िजसे आधार बनाकर परवत आचाय ने अपने ं थ िलखे है।

1.5 िह दी याकरण के िविवध िवभाग िह दी याकरण के िविवध िवभाग सभी भाषाओं के अ ययन म वण से लेकर वा य तक िविवध याकिणक िवषयक आयाम होते है। िह दी याकरण म इ ह वण, श द वा य और रचना का अ ययन सि मिलत है िजसम िन नांिकत क िववेचना क जाती है। भाषा मनु य के मनोभाव को य करती है। साथक श द के समूह या सं केत को भाषा कहते है। वण श द और वा य िह दी भाषा के मह वपूण अंग और िह दी याकरण के िविवध िवभाग भी। 1.

वण िवचार - इस खंड म िह दी क वणमाला और विनय का प रचय, उ चारण के थान और य न तथा वण और उनके मेल से बनने वाले श द आिद िववेिचत होते है।

6

2.

श द िवचार - इस ख ड के अंतगत श द का वग करण और उनके िभ न-िभ न प, िवकारी और अिवकारी श द का याकरणीय बोध, श द िनमाण क ि या, कृ दं त, ति त, उपसग, यय, सं िध और समास जैसे मह वपूण िवषय का सोदाहरण िववेचन तथा श द ान से स बि धत पयायवाची, िवलोमाथक, अनेकाथक तथा श दसमूह के िलए यु एक श द के प और उदाहरण देते हए िह दी के श द भ डार का सामा य सव ण िकया जाता है।

3.

वा य िवचार - इस खंड म वा य क प रभाषा और उदाहरण, रचना और अथ के अनुसार वा य के भेद, वा य- प रवतन और वा य-सं लेषण के िनयम तथा उदाहरण, वा य के िभ निभ न व प तथा प रवतन और वा य-िव ह और वा य-िव लेषण क सोदाहरण िववेचना होती है।

4.

रचना िवचार - यह खंड याकरण के यावहा रक िविश ान से य जुड़ा हआ है इस प म इसक उपयोिगता है। अतः इसके अतं गत लोकोि याँ और मुहावरे, प लेखन, िविश सू वा य का भावप लवन अथवा उन पर अनु छेद लेखन, अपिठत अवतरण पर आधा रत न के उ र, शीषकचयन, सारां शलेखन, शु लेखन के उदाहरण तथा िनबं धरचना के मुख िब दु और उनक परेखाएँ आिद िवषय समायोिजत िकये जाते ह।

1.6 सारां श मनु य ारा यु ‘भाषा’ श द उन विन-समूह का सं योजन है, िजनसे बने हए श द के अपने ‘अथ’ होते है तथा िजनसे िनिमत वा य ारा कोई भाव या िवचार कट िकया जाता है। वह एक ऐसी कला है, जो मौिखक प से वाणी ारा उ च रत होकर मनु य के भाव कट करती है तथा िलिखत प म िलिपब होकर उ ह यापक बनाने म सहयोग देती है। उसम विन, पद, अथ और वा य वतः समािहत रहते है, िज ह आधार बनाकर याकरणशा उनक िववेचना करता है। प ट है िक भाषा मनु य के मनोभाव को य त करती है। साथक श द के समूह या सं केत को भाषा कहते ह। वण, श द और वा य िह दी भाषा के मह वपूण अंग है और िह दी याकरण के िविवध िवभाग भी ।

1.7 अ यासाथ



1.

भाषा िकसे कहते है? भाषा के अवयय का नामो लेख क िजए।

2.

वणमाला क प रभाषा बताते हए वण के भेद िलिखए

3.

वर और यं जन म या अ तर है?

4.

अनुनािसक और अनु वार का संि

5.

देवनागरी िलिप क िवशेषताएं सं ेप म िलिखए।

म वणन क िजए।

7

6.

वा य भाषा क पूण इकाई है- इस कथन को उदाहरण देकर प क िजए।

7.

भाषा और याकरण का स ब ध बताइए।

8.

याकरण के िविवध िवभाग का नाम बताते हए उनके अ तगत सि मिलत िवषय का उ लेख क िजए।

1.8 सं दभ ं थ 1

डॉ. धीरे वमा: नवीन िह दी याकरण, िह दी मंिदर, इलाहाबाद

2

कामता साद गु : िह दी याकरण, काशी नागरी चा रणी वाराणसी

3

पि डत ीलाल, भाषा च ोदय (भारतवष य िह दी भाषा का याकरण)

4

धीरे वमा: िह दी भाषा का इितहास, िह दु तान अकादमी इलाहाबाद।

5.

िकशोरीदास वाजपेयी: िह दी श दानुशासन, नागरी चा रणी सभा. वाराणसी 1958

6.

िकशोरीदास वाजपेयी: भारतीय भाषा िव ान, चौख भा िव ा भवन वाराणसी 1959

7.

िकशोरीदास वाजपेयी: िह दी क वतनी एवं श द िव लेषण, नागरी चा रणी सभा. वाराणसी 1968

8

इकाई - 2 सं ा और सवनाम इकाई क 2.0 2.1 2.2

परेखा

उेय तावना सं ा - प रभाषा और भेद 2.2.1 यि वाचक सं ा 2.2.2 जाित वाचक सं ा 2.2.3 भाववाचक सं ा

2.3

सं ा के पा तर (िलं ग /वचन/कारक)

2.4

सवनाम प रभाषा और भेद 2.4.1 पु षावाचक सवनाम 2.4.2 िनजवाचक सवनाम 2.33 िनि य वाचक सवनाम 2.3.4 अिन वाचक सवनाम 2.3.5 स ब ध वाचक सवनाम 2.3.6 नवाचक सवनाम

2.5

सारां श

2.6

अ यास न

2.7

सं दभ ं थ

2.0 उ े य इस इकाई के अ ययन के प चात आप  सं ा का अथ और उसके िविवध कार क जानकारी ा कर सकगे।  सवनाम क प रभाषा और उसके भेद क जानकारी ा कर सकगे। 9

 सं ा और सवनाम का अनु योग उदाहरण के ारा कर सकगे।  वा य म सं ा और सवनाम को पहचान सकगे।

2.1

तावना

इस इकाई म आप याकरिणक त व सं ा और सवनाम का अ ययन कर रहे ह। िह दी याकरण म सं ा, सवनाम, िवशेषण और ि या इन चार घटक को िवकारी श द के अ तगत रखा जाता है य िक इन चार के प म िलं ग, वचन और कारक के अनुसार िवकार या प रवतन हो जाता है। आप सभी जानते ह िक एक या एक से अिधक अ र से बनी हई तं त व साथक विन को श द कहते है जैसे कमल, यो सना, िगरधर, बुि मान आिद। सं ा, सवनाम, िवशेषण और ि या ये सब श द के ही भेद है। व तुओ ं के नाम बताने वाले श द को सं ा कहते है। सं ा के बदले आने वाले श द को सवनाम कहते है। तुत इकाई म आप सं ा और सवनाम का अ ययन करने जा रहे ह1

2.2 सं ा प रभाषा और भेद सं ा उस िवकारी श द को कहते है िजससे िकसी व तु, यि और भाव के नाम का बोध हो जैसे - म रोज हनुमान चालीसा पढ़ता हं। उपयु पं ि म हनुमान चािलसा िकसी ं थ का नाम है अतः यह सं ा श द है। भेद - सं ा के तीन भेद होते है। 2.2.1 यि वाचक सं ा िजस श द से िकसी व तु, थान या यि के नाम का बोध हो, उसे यि गत सं ा कहते है। जैसे मनोज, सृजन, रामच र मानस, जयपुर , होली दीवाली आिद। डा. दीपिश स के अनुसार यि वाचक सं ा श द का वग करण िन नानुसार है 1

यि य के नाम - याम, ह र, सुरेश

2

िदशाओं के नाम - उ र, पि म, दि ण, पूव

3

देश के नाम - भारत, जापान, अमे रका, पािक तान, वमा

4

रा ीय जाितय के नाम - भारतीय, सी, अमे रक

5

समु के नाम - काला सागर, भूम य सागर, िह द महासागर, शा त महासागर

6

निदय के नाम - गं गा, हमपु , बो गा, कृ णा, कावेरी 10

7

पवत के नाम - िहमालय, िव धयाचल, अलकन दा, कराकोराम

8

नगर , चौक और सड़क के नाम - वाराणसी, गया, चाँदनी चैक, ह रसन रोड, अशोक माग

9

पु तक तथा समाचार प के नाम - रामच रत मानस, ऋ वेद, धमयुग , इि डयानेशन, आयावत

10

ऐितहािसक यु और घटनाओं के नाम - पानीपत क पहली लड़ाई, िसपाही िव ोह, अ टू बराि त

11

िदन , महीन के नाम - मई, जुलाई, अ टू बर, सोमवार, मंगलवार

12

यौहार , उ सव के नाम - होली, िदवाली, र ाबं धन, िवजयादशमी, गणतं िदवस

2.2.2 जाित वाचक सं ा िजस सं ा से िकसी जाित के स पूण पदाथ व उनके समूह का बोध होता है - उसे जाितवाचक सं ा कहते ह - जैसे घर, पवत, मनु य, नदी, मोर, सभा आिद डा. वासुदवे न दन साद के अनुसार जाितवाचक सं ाएं िन निलिखत ि थितय म होती ह 1

सं बं िधत यवसाय , पद और काय के नाम - बहन, भाई, मं ी, जुलाहा, हलवाई ोफे सर, अ यापक, माली, चोर

2

पशु-पि ओं के नाम - घोड़ा, गाय, कौआ, तोता, मैना

3

व तुओ ं के नाम - मकान, कु स , घड़ी, पु तक, कलम, टेिबल

4 ाकृ ितक त व के नाम - तूफान, िबजली, वषा, भूक प, वालामुखी 2.2.3 भाववाचक सं ा िजस सं ा से यि या व तु के गुण या धम, दशा अथवा यापार का बोध होता है, उसे भाववाचक सं ा कहते ह जैसे - िम ता, वचन, िचकनाहट, भलाई, िमठास, ल बाई, जवानी, चतुराई, िमठास, न मा, नारी व, सु दरता, समझ इ यािद। सं ा, सवनाम, िवशेषण और ि या से भाववाचक सं ा बनाने के िविवध उदाहरण इस कार है — (क) जाितवाचक सं ा से भाववाचक सं ा श द शद

भाववाचक सं ा

शद

भाववाचक सं ा

ब चा

बचपन

लडका

लडकपन

इ सान

इ सािनयत

वक ल

वकालत

शैतान

शैतानी

बाप

बपौती 11

मानव

मानवता

बं धु

बं धु व

िम

िम ता

वामी

माता मातृ व (ख) सवनाम से भाववाचक सं ा श द सवनाम

भाववाचक सं ा

अपना

अपनापन

िनज

िनज व

अहं

अहंकार

व वव (ग) िवशेषण से िवशेषण से भाववाचक सं ा श द बड़ा

बड़ पन

मूख

मूखता

ठं डा

ठं डक

नीच

नीचता

सरल सरलता 2 ि या से भाववाचक सं ा श द (घ) ि या से ि या

भाववाचक सं ा

िलखना

िलखाई/लेख

िमलना

मेल/िमलाई

दौड़ना

दौड़

खेलना

खेल

झगड़ना

झगड़ा

थकना

थकान/थकावट 12

वामी व

सं ा के िवकार - जैसा िक तावना म िलखा गया है िक सं ा िवकारी श द है िलं ग, वचन व कारक से सं ा श द म प रवतन होता रहता है, उदाहरण के िलए 1

िलं ग - लड़का खेलता है, लड़क खेलती है।

2

वचन - लड़का पढ़ता है, लड़के पढ़ते है।

3

कारक - लड़का फु टबाल खेलता है। लड़क ने हा◌ॅक खेली

2.3 सं ा के पा तर यि वाचक सं ा क तरह भाववाचक सं ा से भी िकसी एक ही भाव का बोध होता है। इस सं ा को हम अनुभव करते है तथा इसका बहवचन ाय: नह होता है। यि वाचक सं ा का जाितवाचक सं ा के प म योग - सं सार म कु छ ऐसे यि होते है िजनम अ य यि से िभ न कोई ऐसी िवशेषता , गुण या अवगुण होते है िजनके कारण वे िविश बन जाते है इनका नाम ही िकसी गुण या अवगुण का ितिनिध व करने लगता है। ऐसी ि थित म यि िवशेष का नाम होकर भी जाितवाचक श द बन जाता है। जैसे जयच द का नाम - ‘‘देश ोही’ तो ‘‘भी म ित ा’ भी म िपतामह क भीषण ती ा के िलए िस है। यि वाचक सं ा का जाितवाचक सं ा के प म योग के कह उदाहरण है 1 भारत तो सीता सािव ी का देश है। 2

देश म जयच द क कमी नह है।

3

िवभीषण से बचो।

4

यह तो ह र च द िनकला।

यहां रेखािकं त श द सीता सािव ी, जयच द, िवभीषण और ह र च द यि वाचक सं ाऐं है लेिकन ये श द मशः पिव ता, देश ोह, िव वासघात और स यव ा जैसे गुण अवगुण के तीक बन गये है। और इस तरह के सभी यि य के िलए ये सब योग म लाये जाने के कारण जाितवाचक सं ा श द बन गये। जाितवाचक सं ा का यि वाचक सं ा के प म योग िजस तरह यि वाचक सं ा का जाितवाचक सं ा के प म योग होता है। उसी तरह कभी कभी कु छ जाितवाचक श द भी यि िवशेष या थान िवशेष के अथ म ढ़ हो जाते है, तब वे जाित का बोध न कराकर के वल एक यि या थान का बोध कराते है। उदाहरण के िलए शा ीजी भारत के लोकि य धानमं ी थे। महा माजी का याग सराहनीय है। 13

वतं ता के बाद सरदार ने रयासत समा क । उपयु वा य म रेखांिकत श द मशः लाल बहादुर शा ी , महा मा गांधी और सरदार ब लभ भाई पटेल के अथ म ढ़ हो गये है। रेखांिकत श द य िप जाितवाचक सं ा है। लेिकन यि िवशेष के अथ म यु होने के कारण यि वाचक सं ा श द बन गये है।

2.4 सवनाम - प रभाषा और भेद सं ा के बदले काम आने वाले श द को सवनाम कहते ह जैसे म, तुम , और वह आिद श द। सवनाम के छः भेद होते है िजनका उ लेख इस कार है सवनाम के भेद 1

पु षवाचक सवनाम - म, तुम , वह आप (हम, वे)

2

िनजवाचक सवनाम - आप

3

िनि यवाचक सवनाम - यह, वह (ये, वे)

4

अिनि यवाचक सवनाम - कोई, कु छ

5

स ब धबोधक सवनाम ’ जो

6 नवाचक सवनाम - कौन, या 2.4.1 पु षावाचक सवनाम पु षावाचक सवनाम क प रभाषा – जो सवनाम पु ष ( ी या पु ष) के नाम के बदले आते ह, उ हं पु षवाचक सवनाम कहा जाता है। 2.4.2 िनजवाचक सवनाम िनजवाचक सवनाम क प रभाषा - िजस सवनाम से वयं के अथ का बोध हो उसे िनजवाचक सवनाम कहते ह जैस आप वयं 2.4.3 िनि य वाचक सवनाम िनि य वाचक सवनाम - जो सवनाम पास या दूर क िकसी िनि त व तु या यि के िलए सं केत करता है, उसे िनि यवाचक सवनाम कहते ह, जैसे वह, ये वे इसको इनसे उसके िलए, इसम उस पर आिद वैसे मूलतः िनि यवाचक सवनाम दो ह यह वह 2.4.4 अिन वाचक सवनाम अिन वाचक सवनाम - िजस सवनाम से िकसी िनि त व तु का बोध न हो, उसे अिनि यवाचक सवनाम कहते ह, जैसे कोई, कु छ इ यािद। 14

उदाहरण 1

कोई यहाँ आएगा तो, म आपके साथ चल सकूं गा

2

िकसी ने आपको रोका तो नह ?

3

कु छ खा लेते तो अ छा रहता

4

िकस पर िव वास करं? आजकल िकसी क बात का कोई ठीक नह है,

5

आज कोई न कोई अव य आएगा

6

दाल म कु छ काला है

7 कहते सब ह, करते कोई कोई ही हं। 2.4.5 स ब ध वाचक सवनाम िजस सवनाम से एक बात का दूसी बात से सं बं ध ात होता है, उसे सं बं धवाचक सवनाम कहते ह जैसे जो - सो िजसने-उसने, िजनक -उनक , िजसम - उसम जो वह उदाहरण 1

जो सोता है, सो खाता है,

2

जो प र म करेगा, वह पास होगा,

3 िजसक लाठी, उसक भस 2.4.6 नवाचक सवनाम िजस सवनाम से न का बोध होता है अथवा न करने के िलए िजस सवनाम का योग होता है, उसे नवाचक सवनाम कहते ह, जैसे कौन, या उदाहरण 1 कौन आ रहा है? 2 तुम या खा रहे हो? 3 हम िकस पर िव वास कर

2.5 सारां श तुत इकाई म आपने याकरण के आधार भूत त व सं ा, सवनाम का अ ययन िकया है। ये दोन त व मूलत िवकारी श द है और िलं ग वचन और कारक के अनुसार इनका पा तर होता है। िकसी व तु, ाणी या थान के नाम को सं ा कहते है। सं ा के थान पर काम आने वाले श द सवनाम होते है 15

सवनाम का योग सं ा के थान पर होता है। इसिलए सं ा के समान ही कारक के कारण इनम िवकार या प रवतन होता है। जैसे हमने, हमको, हमसे और मने आिद। इसे भी सं ा क तरह एकवचन और बहवचन म योग कर सकते है।

2.6 अ यास



1

िवकारी श द िकसे कहते है।

2

सं ा क प रभाषा बताते हए इसके िविवध कार का सोदाहरण उ लेख क िजए।

3

सवनाम के भेद क प रभाषा उदाहरण सिहत िलखे।

4

जाितवाचक सं ा का यि वाचक सं ा के प म कब योग कर सकते है? उदाहरण ारा प क िजए।

5

भाववाचक सं ा िकन िकन श द से बनती है? येक के दो दो उदाहरण दीिजए।

6

िन निलिखत श द के आगे सं ा के भेद िलिखए 1 स दय 2 आगरा 3 सैिनक 4 मोहन 5 नेपाल 6 गाय 7 ऊँचाई 8 गुलाब 9 बचपन 10 ऐरावत

7

िन चयवाचक और अिन चयवाचक सवनाम म उदाहरण सिहत अ तर िलिखए

8

िन निलिखत वा य मे सवनाम श द छांटकर उनके भेद िलिखए 1 तुम आगरा कब गए थे? 2 देखो कौन आया है। 3 हमारे देश म चुनाव हो रहे है। 4 जैसी करनी वैसी भरनी। 5 कू ल म कु छ खा लेना

9

कोई और कु छ का योग सवनाम के प म क िजए।

2.7 सं दभ ं थ 1

डॉ. धीरे वमा: नवीन िह दी याकरण, िह दी मंिदर, इलाहाबाद

2

कामता साद गु : िह दी याकरण, काशी नागरी चा रणी वाराणसी

3

पि डत ीलाल, भाषा च ोदय (भारतवष य िह दी भाषा का याकरण)

4

धीरे वमा: िह दी भाषा का इितहास, िह दु तान अकादमी इलाहाबाद। 16

5.

िकशोरीदास वाजपेयी: िह दी श दानुशासन, नागरी चा रणी सभा. वाराणसी 1958

6.

िकशोरीदास वाजपेयी: भारतीय भाषा िव ान, चौख भा िव ा भवन वाराणसी 1959

17

इकाई - 3 िवशेषण और ि या इकाई क 3.0

परेखा

उेय

3.1

तावना

3.2

िवशेषण : अथ और भेद 3.2.1 गुणवाचक िवशेषण 3.2.2 सं यावचाक िवशेषण 3.2.3 प रमाणवाचक िवशेषण 3.2.4 सावनािमक िवशेषण िवशेषण श द का िनमाण

3.3

ि या प रभाषा और भेद 3.3.1 अकमक ि या 3.3.2 सकमक ि या

3.4

सारां श

3.5

अ यास न

3.6

सं दभ ं थ

3.0 उ े य इस इकाई के अ ययन के प चात आप    

िवशेषण का अथ व िविवध भेद को समझ सकगे। ि या का अथ व कार क जानकारी ा कर सकगे। िवशेषण व ि या का अनु योग उदाहरण के ारा कर सकगे। वा य म िवशेषण और ि या को पहचान सकगे।

18

3.1

तावना

इससे पूव आपने सं ा और सवनाम का अ ययन िकया। इस इकाई म आप याकरिणक त व िवशेषण और ि या का अ ययन कर रहे ह। िह दी याकरण म सं ा, सवनाम, िवशेषण और ि या इन चार घटक को िवकारी श द के अ तगत रखा जाता है य िक इन चार के प म िलं ग, वचन और कारक के अनुसार िवकार या प रवतन हो जाता है । सं ा और सवनाम (व तुओ )ं क िवशेषता बताने वाले श द को िवशेषण कहते है। व तुओ ं के िवषय म िवधान करने वाले श द को ि या कहते है। ि या से िकसी काम का करना या होना पाया जाता है।

3.2 िवशेषण : अथ और भेद िव लेषण क प रभाषा - जो श द सं ा या सवनाम क िवशेषता बताये, उसे िवशेषण कहते ह, िजस श द क िवशेषता बताई जाए, वह िवशे य कहलाता है। जैसे - राम बुि मान छा है, यहां बुि मान श द से राम क िवशेषता का बोध होता है। िवशेषण के भेद िन नानुसार है 3.3.1 गु णवाचक िवशेषण िजस श द से सं ा का गुण , दशा, वभाव आिद लि त है, उसे गुणवाचक िवशेषण कहते है। अ य िवशेषण क अपे ा गुणवाचक िवशेषण क सं या अिधक रहती है, इसके मु य प नीचे िदये जा रहे ह काला - नया, पुराना, ाचीन, नवीन, अगला, िपछला, आगामी आिद थान - पूव , पि म, े ीय, रा ीय, भीतरी, सं करा, सीधा इ यािद आकार - गोल, चपटा, चैकोर, ितकोना, ल बा, मोटा, पतला, नुक ला, ितरछा, धुं धला, धुं धयारा आिद दशा - दुबला-पतला, मोटा, भारी, फू ला, िपचका, गाढ़ा, गीला, सूखा, घना, गरीब, अमीर, व थ, रोगी, पालतू, जं गली, कै दी, वतं , आिद गुण - भला, बुरा, उिचत, अनुिचत, स चा, झूठा, दानी, यागी, लोभी, लालची, दु , नेक, शा त, उ त, उ छं खल, सरल, कु िटल आिद। 3.3.2 सं यावचाक िवशेषण सं यावाचक िवशेषण के मु य भेद तीन ह – (क) िनि यवाचक (ख) अिनि यवाचक और (ग) प रमाणबोधक

19

(क) िनि यवाचक सं यावाचक िवशेषण - इससे व तुओ ं क िनि त सं या का बोध होता है जैसे दो लड़के , बीस आम, दस पय, चैथा भाग, तीन गुणा लाभ इ यािद (ख) अिनि यवाचक और (ग) प रणामबोधक सं ा या सवनाम क सं या बताने वाले श द सं यावाचक िवशेषण कहते है जैसे कु छ लोग िच ला रहे है, गां धीजी के तीन बं दर क मु ा अ ू त है। इन दोन उदाहरण म रेखािकं त श द सं यावाचक िवशेषण है। अिनि त सं यावाचक िवशेषण इससे व तु क अिनि त सं या का बोध होता है जैसे कु छ लड़के , सब सवा रयाँ इ यािद 3.3.4 सावनािमक िवशेषण पु षावाचक और िनजवाचक सवनाम को छोड़कर शेष सवनाम का योग िवशेषण के समान होता है, ये सावनािमक िवशेषण कहे जाते ह, अतः पु षावाचक और िनजवाचक सवनाम (म, तू, वह) के िसवा अ य सवनाम जब िकसी सं ा के पहले आते ह, तब वे सावनािमक िवशेषण कहे जाते ह, जैसे - वह छा आज अनुपि थत है, यह गाय मरखनी है, इन वा य म वह और यह सं ा के पहले आए ह, अतः िवशेषण क भां ित यु ह, पर तु छा पढ़ने म तेज ह, वह अनुपि थत है अथवा वह अनु ीण हो गया वा य म वह छा के बदले आया है, अतः सवनाम है।

3.3 िवशेषण श द का िनमाण िवशेषण श द का िनमाण मु यत: तीन कार से िकया जाता है 1 सं ा से 2 सवनाम से तथा 3 ि या से। उदाहरण के िलए अथ

आिथक

इितहास

ऐितहािसक

स दाय

सा दाियक

राजनीित

राजनीितक

थान

थानीय

भा य

भा यवान



ेय,

ालु

अत अि तम सवनाम से िवशेषण सवनाम

िवशेषण 20

यह

ऐसा

वह

वैसा

सो

वैसा

भगत् भवदीय ि या से िवशेषण ि या

िवशेषण

दश

दशनीय

कर

करणीय

वद

व दनीय

पूं ज

पूिजत

कं थ

किथत

िवद

िविदत

या यात िह दी सं ा से िवशेषण शद

िवशेषण

भूख

भूखा

रस

रसीला

यास

यासा

फु त

फु त ला

ठं ड

ठं डा

3.4 ि या : प रभाषा और भेद प रभाषा - िजस श द म िकसी काम का करना या होना समझा जाय, उसे ि या कहते ह, जैसे पढ़ना, जाना, खाना, पीना, रोना इ यािद

21

धातु - िजस मूल श द म िवकार होने से ि या बनती है, उसे धातु कहते ह, जैसे भागा ि या म मूल श द भाग म आ यय जोड़कर भागा श द बना है, अतः भागा ि या क धातु भाग है, इसी कार आए ि या का धातु आ है। ि या बनाना - ि या के सामा य प म ना जोड़कर िह दी ि याएं बनाई जाती है, इन सामा य प म से ना हटाकर धातु का प ान िकया जा सकता है। िह दी म ि याएँ धातुओ ं के अलावा सं ा और िवशेषण म भी बनती है, जैसे - काम+आना कमाना, िचकना+आना - िचकनाना, दूहरा+आना – दुहराना 3.4.1 अकमक ि या िजस धातु म सूिचत होने वाले यापार का फल कता पर ही पड़ता है, उसे अकमक धातु कहते ह, जैसे म रोता हँ, ि या का यापार और उसका फल, म क ता पर ही पड़ता है, अतः रोता हं ि या अकमक है। 3.4.2 सकमक ि या िजस धातु से सूिचत होने वाले यापार का फल कता से िनकलकर िकसी दूसरी व तु पर पड़ता है, उसे सकमक धातु कहते ह, यथा - छा ने पु तक पढ़ी, पढ़ी ि या के यापार का फल छा से िनकल कर पु तक पर पड़ता है, इसिलए पढ़ी ि या (अथवा पढ़ धातु सकमक है।

3.5 सारां श तुत इकाई म आपने याकरण के आधार भूत त व िवशेषण और ि या का अ ययन िकया है। ये दोन त व मूलत िवकारी श द है और िलं ग वचन और कारक के अनुसार इनका पा तर होता है । सं ा क िवशेषता बताने वाले श द िवशेषण होते है। िजन श द क िवशे ता बताई जाती है, उ ह िवशे य कहते ह। िवशेषण के चार भेद होते है - गुणवाचक, सं यावाचक, प रमाण वाचक और सावनािमक िवशेषण । िवशेषण भी िवकारी श द होते ह और िलं ग भेद कारक भेद और वचन भेद के कारण इनम िवकार प रवतन उ प न होता है। वा य म जो श द िकसी काय के करने या होने का बोध कराता है ि या कहलाता है। ि या का फलकता और कम पर पड़ने के अनु प ि या के दो भेद। अकमक ि या और 2 सकमक ि या माने गये ह। सं ा, सवनाम और िवशेषण क भां ित ि या भी िवकारी श द है। ि या के िलं ग और वचन सं ा के अनुसार प रवितत होता है।

2.5 अ यासाथ



1

िवशेषण िकसे कहते है? गुणवाचक िवशेषण को उदाहरण देकर प क िजए।

2

िवशेषण के िकतने भेद होते है? उनक प रभाषा उदाहरण सिहत िलिखए।

3

सं यावाचक िवशेषण और प रमाणवाचक िवशेषण म या अ तर है?

4

िन निलिखत श द म िवशेषण बनाइए 22

1 भूगोल 2 धम 3 नगर 4 दीनता 5 चमक 6 लािलमा 5

िन निलिखत िवषेषण के िलं ग बदलकर वा य बनाओ 1 गुणवान 2 मीठा 3 ममेरा 4 गोरा 5 अ छा

6

िन निलिखत वा य म यु िवषेषण को छां टकर उनके भेद िलख । 1 आप चतुर है 2 काला घोड़ा दौड़ रहा है। 3 मेरी क ा म बीस छा है। 4 ितभाशाली छा को पुर कार िदया गया। 5 िकताब के कु छ पृ ठ और पढ़ने है।

7

ि या का अथ बताते हए सकमक ि या को उदाहरण देकर समझाइए

8

अकमक और सकमक ि या का अ तर उदाहरण देते हए िलिखए। िन निलिखत श द के िवशेषण श द बनाइए। भूख , हठ, िदन, स दाय, भा य, वह, रा , जं गल, वष

3.6 सं दभ ं थ 1

डॉ. धीरे वमा: नवीन िह दी याकरण, िह दी मंिदर, इलाहाबाद

2

कामता साद गु : िह दी याकरण, काशी नागरी चा रणी वाराणसी

3

पि डत ीलाल, भाषा च ोदय (भारतवष य िह दी भाषा का याकरण)

4

धीरे वमा: िह दी भाषा का इितहास, िह दु तान अकादमी इलाहाबाद।

23

इकाई - 4 िलं ग, वचन और कारक इकाई क 4.0 4.1

परेखा

उेय तावना

4.2

िलं ग - प रभाषा और भेद

4.3

िलं ग िनधारण के िनयम

4.4

कितपय िलं ग (अ यास हेत)ु

4.5

वचन - प रभाषा और भेद

4.6

वचन स बि धत िनयम

4.7 4.8

कितपय वचन प रवतन (अ यास हेत)ु कारक क प रभाषा और भेद

4.9

िलं ग, वचन और कारक का याकरिणक मह व

4.10 सारां श 4.11 अ यासाथ न 4.12 सं दभ थ

4.0 उ े य इस इकाई के अ ययन के बाद आप  िलं ग क प रभाषा और भेद जान सकगे  िलं ग िनधारण के कितपय िनयम को समझ सकगे  वचन क प रभाषा ओर भेद क जानकारी ा कर सकगे।  कारक क प रभाषा और भेद जान सकगे

24

 वा य म िलं ग, वचन और कारक को पहचान सकगे, उनका वा य म योग कर सकगे और उ ह उदाहरण ारा प कर सकगे।  िलं ग, वचन और कारक का याकरिणक मह व समझ सकगे।

4.1

तावना

इससे पूव आपने इकाईय म सं ा, सवनाम, िवशेषण और ि या चार का अ ययन िकया है। यह आप जानते ह िक श द के दो भेद (1) िवकारी और (2) अिवकारी म से सं ा, सवनाम, िवशेषण और ि या ये चार िवकारी श द के अ तगत आते है य िक िलं ग, वचन और कारक के कारण इनम िवकार, पा तरण (प रवतन) होता हो। अतः इस इकाई म िलं ग, वचन और कारक क जानकारी दी गई है। इनक उिचत जानकारी ा कर िव ाथ सं ा, िवशेषण, सवनाम और ि या का पा तरण भी करना सीख जाता है। िह दी म िलं ग, वचन और कारक क अिभ यि वा य म होती है, वा य म वचन व िलं ग क पहचान सं ा, सवनाम और ि या से ही होती है।

4.2 िलं ग - प रभाषा और भेद याकरण म पु ष या ी श द को िलं ग कहते है। अं ेजी का ‘जे डर’ श द िह दी म िलं ग अथ म यु होता है। िजसका अथ होता है िच अथवा पहचान का साधन। श द के िजस प से यह पता चले िक वह पु ष जाित का है अथवा ी जाित का िह दी याकरण म उसे िलं ग कहते है। िह दी भाषा के श द भ डार म सामा यतः पु षवाचक या ीवाचक श द अिधक होते है इसिलए िह दी म िलं ग के दो भेद िकए गए है थम (1) पुि लं ग और ि तीय (2) ीिलं ग पु ि लं ग: पु ष या नर जाित का बोध कराने वाले श द को पुि लं ग कहते है। जैसे - छा , मोहन, बालक, गाँव, देश, शहर, बं दर आिद। ीिलं ग: नारी या ी जाित का बोध कराने वाले श द को ीिलं ग कहते है जैसे - शेरनी, चुिहया, नारी, बहन, लडक , िचिड़या आिद अिधकां श ािणय के िलं ग िनि त होते है और येक भाषा का यि उसे अपनी पर परा से हण कर लेता है िकं तु िनज व व तुओ ं के िलं ग का िनधारण करने म असमंज य क ि थित रहती है दही, मेज, िकताब आिद श द। व तुतः भाषा अपनी पर परा के अनुसार इनका िलं ग िनधारण कर देती है और यि उसी अनुसार इनका योग करने लग जाता हे, जैसे - दूध ठं डा हो गया है। (पुि लं ग) चाय कहाँ रखी है। ( ीिलं ग) 25

मेज टू ट गई है। ( ीिलं ग)

4.3 िलं ग - िनधारण सं बं धी िनयम िह दी भाषा म तीन कार के सं ा-श द चिलत ह। एक तो वे जो ाणी जगत म अंग अथवा शरीर रचना क िभ नता के आधार पर िकसी जाित या यि को िदए हए है। दूसरे वे िजनके िलं ग िनधारण के पीछे कोई य या तक-सं गत आधार नह , उ ह पु षवाचक या ीवाचक सं ा दे दी गई है। य िप उनम न कोई पु ष है न ी। जैसे - समु , प थर (पुि लं ग) नदी, िशला ( ीिलं ग) तीसरे वे जो िढ के आधार पर चिलत हो गए ह जैसे नर कौवा अथवा मादा कौवा, नगर कोयल अथवा मादा कोयल। िव ािथय को पुि लं ग श द और ीिलं ग श द के िलं ग िनधारण स बि धत िनयम क जानकारी होनी चािहए। पुि लग श द - पुि लं ग श द के िलं ग िनधारण के िनयम िन नानुसार है 1) िदन (वार) के नाम - सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गु वार, शु वार, शिनवार, रिववार 2)

मास (महीन ) के नाम पुि लं ग है - आषाढ़, ावण, भा पद, काितक, मागशीष, पौष, फा गुन , चै , वैशाख, ये आिद। अं ेजी मास म जनवरी, फरवरी, मई, जुलाई, अपवाद है।

3)

र न के नाम - हीरा, मोती, प ना, नीलम, मँ◌ूगा, पुखरा पुि लं ग िक तु मिण अपवाद है।

4)

य पदाथ - र , घी, पै ोल, डीजल, तेल, पानी पुि लं ग

5)

धातुओ ं के नाम - सोना, पीतल, लोहा, ताँबा, पुि लं ग है िक तु चाँदी ीिलं ग है।

6)

ाणी जगत म - कौआ, मढक, खरगोश, भेिडया, उ लू, तोता, खटमल, प ी, पशु, जीवन, ाणी वृ के नाम - नीम, पीपल, जामुन , बड़, गुलमोहर, शीशम,

7)

अशोक, आम, कं दब, देवदार, चीड़ श द पुि लग। 8)

पवत के नाम - कै लश, अरावली, िहमाचल, िवं याचल, सतपुड़ा।

9)

अनाज के नाम - गेह,ँ बाजरा, चावल, मूगं आिद श द पुि लग है। िक तु म का, वार, अरहर, अपवाद।

10) 11)

ह के नाम - रिव, चं , सूय, वु , मंगल, शिन, बृह पित श द पुि लं ग ह िक तु पृ वी आपवाद है। शरीर के अंग - पैर, पेट, गला, म तक, अँगठू ा, मि त क, दय, िसर, हाथ, दाँत, ओठ, कं धा, व , बाल पुि लग है। 26

12)

वणमाला के अ र - वर म (इ, ई, ऋ, ए, ऐ, को छोडकर) सभी पुि लं ग है।

13)

(अ) सं कृ त श द (त सम श द) जैसे - दास, अनुचर, मानव, मनु य, देव, दानव, राजा, ऋिष, पु प, प , फल, गृह, दीपक।

14)

समु के नाम - शां त महासागार, अंध महासागार, अरब सागर, भूम यसागर, िह द महासागर

15)

आकार- कार, देखने म भारी भरकम, िवशाल और बैडोल व तुएँ पुि लं ग होती है - क, इंजन, बोरा, खंभा, तं भ।

16)

िविश थान - वाचनालय, िशवालय, मंिदर, भं डारघर, नानागार, रसोईघर, शयनगृह, सभाभवन, यायालय, परी ा के , मं ालय

17)

यवसाय सूचक - उप यासकार, कहानीकार, नाटककार, कमचारी, अिधकारी, यापारी, सिचव, आयु , रा यपाल, उ ोगपित, दुकानदार, देनदार, लेनदार, सेठ, े ी, सैिनक, सुनार, सेनापित। समुदायवाचक श द - समाज, दल, सं घ, गु छा, मंडल, स मेलन, प रवार, कु टुबं , वं श, कु ल, झुंड। भाववाचक सं ा - बाबा, बहाव, नचाव, िदखावा, मोटापा।

18) 19)

एरा, दान, वाला, खाना, बाज, वान तथा शील, दाता और अथ येय वाले श द सपेरा, फू लदान, दूधवाला, कारखाना, दयावाद, सुशील, परमाथ , िव ाथ , शरणाथ , मतदाता, र दाता आिद। ीिलं ग श द -

20)

1)

िलिपय के नाम - देवनागरी, रोमन, शारदा, खरो ी।

2)

निदय के नाम - गं गा, यमुना, सर वती, कावेरी, नमदा।

3)

भाषाओं के नाम - िह दी, अरबी, फारसी, अं ेजी, जमन, मराठी।

4)

ितिथय के नाम - अमाव या, पूिणमा, ितपदा

5)

बेल के नाम - जूही, चमेली, मधुमित।

6)

ािणय म - कोयल, चील, मैना, मछली, िगलहरी

7)

वणमाला के अ र - ई, ई, ऋ।

8)

शरीर के अंग - आँख, नाम, नािभ, भौ, पलक, छाती।

9)

हिथयार म - तलवार, कटार, तोप, बं द ूक, गोली, गढा। 27

10)

समुदाय म - सं सद, प रषद्, सभा, सेना।

11)



12)

िजन श द के अंत म इ, नी, आनी, आई, इया, इमा आिद से जुड़े श द -गम कहानी, मलाई, बुिढ़या, कािलमा।

के नाम - भरणी, कृ ितका, रोिहणी।

4.4 कितपय िलं ग (अ यास हेतु) िव ािथय क जानकारी और अ यास हेतु कितपय श द का िलं ग प रवतन िन नानुसार है पुि लं ग 1) नर

ीिलं ग नारी

पुि लं ग 18) दशक

ीिलं ग दिशका

2)

बेटा

बेटी

19)

सं पादक

सं पािदका

3)

बं दर

बं द रया

20)

भवदीय

भवदीया

4)

गोप

गोपी

21)

वचन

वाणी

5)

दास

दासी

22)

वर

वधू

6)

चूहा

चूिहया

23)

िव ान

िवदुषी

7)

बेटा

िबिटया

24)

स ाट

स ा ी

8)

लड़का

लड़क

25)

िपता

माता

9)

नौकर

नौकरानी

26)

पाषाण

िशला

10)

दज

दिजन

27)

आँख

च ु

11)

अ यापक

अ यािपका

28)

गमन

गित

12)

सेवक

सेिवका

29)

िबलाव

िब ली

13)

अिभनेता

अिभने ी

30)

बैल

गाय

14)

िवधाता

िवधा ी

31)

राजा

रानी

15)

नायक

नाियका

32)



16)

िश य

िश या

33)

ससुर

सास

17)

प रचायक

प रचाियका

34)

इनका

इनक

35)

देव/भा य

िनित

36)

दुःख

पीडा

28

ीमती

37)

तु हारा

तु हारी

38)

बुि मान

बुि मित

39)

महान

महती

40)

हंस

हंिसनी

41)

जीजा

जीजी

42)

बहन

बहनोई

43)

हाथी

हिथनी

44)

कोयल

मादा कोयल

45)

खरगोश

मादा खरगोश

िव ािथय को पुि लं ग से ीिलं ग और ीिलं ग से पुि लं ग श द म प रवतन करने के अपने ान म वृि करनी चािहए जो िनर तर अ यास से ही सं भव है।

4.5 वचन: प रभाषा और भेद श द के िजस प से उसके एक अथवा अनेक होने का बोध होता है, उसे वचन कहते है। वचन भेद - वचन दो कार के होते है (1) एकवचन: श द के िजस प से उसके सं या म एक होने क बोध होता है उसे एकवचन कहते है, जैसे पु तक, आदमी, सं यासी पतं गा आिद। (2)

बहवचन: श द के िजस प से उसके सं या म अनेक का बोध हो, एक से अिधक व तुओ,ं सं थाओं और थान का बोध हो उसे बहवचन कहते है।

4.6 वचन सं बं धी िनयम िह दी म कु छ श द सदा एकवचन म होते ह और कु छ सदा बहवचन म यु होते है। इनके िनयम िन नानुसार है एकवचन म (क) धातु पदाथ का ान कराने वाली जाितवाचक सं ाएं सोना, चाँदी, लोहा, पीतल, ताँबा, घी, राँगा आिद। (ख)

भाववाचक सं ाएँ ेम, क णा, दया, कृ पा, ोध, घृणा, यार, डर, िमठास, खटास, अपनापन, अहंकार।

(ग)

आग, पानी, हवा, पवन, जल, वायु, वषा, दूध, दही, जनता, श द, धरती, आकाश, पाताल, स य, यथा आिद

(घ)

समूहवाचक सं ा सेना, जाित, सं था, क ा, गु छा, मं डल, सभा, गण, वृंद, के , सं सद, शासन आिद। 29

(क)

बहवचन म दशन, समाचार, ह ता र, ाण, के श, आँस,ू रोम, लोग, सदैव बहवचन म यु होते है।

(ख)

आदरसूचक श दो का योग सदैव बहवचन म ही होता है जैसे - माताजी, िपताजी, दादाजी, आप, गु आिद।

ऐितहािसक पु ष , ना रय , पौरािणक नाम , सावजिनक, महान नेताओं, सािह यकार , वै िनक के नाम इसी ेणी म आते है। इस कार प है िक धातु-पदाथ का ान दान कराने वाली जाितवाचक सं ाए, भाववाचक सं ाए, समूह वाचक सं ाए एकवचन के अ तगत आती ह। इसी तरह ऊपर िलखे गए श द बहवचन म योग िकये जाते है

4.7 कितपय वचन – प रवतन (अ सास हेतु) िन निलिखत श द का वचन-प रवतन िन नानुसार है 1) कलम कलम 2) 3)

बाते

5)

-

पु तक -

पु तक

बाते

4)

माँग

-

माँग

किवता -

किवताएं

6)

बह

-

बहएँ

7)

लड़का -

लडके

8)

माता

-

माताएँ

9)

कपडा -

कपउे

10)

ितिथ -

ितिथयां

11)

थाली -

थािलयाँ

12)

टोपी

-

टोिपयाँ

13)

रीित

रीितयाँ

14)

खिटया -

खिटयाँ

15)

अ यापक -

छा वृ द

16)

िव ान -

िव ानजन

17)

छा

-

छा ाकृ द

18)

मजदूर -

मजदूर लोग

19)

िग र

-

िग र ( प एक समान)

20)

छाया -

छाया (एक समान)

21)

पानी

-

पानी ( प एक समान)

22)

सदी

सिदयाँ

23)

सैकड़ा -

सैकड

24)

देवता -

देवताओं

25)

गरीब -

गरीब

26)

धिनक -

धिनक

27)

स रता -

स रताओं

28)

मुग

-

मुिगय

29)

ब चे -

बच

30)

भाई

-

भाइय

-

30

-

31)

बाबू

-

बाबूओ ं

4.8 कारक क प रभाषा और भेद वा य म सं ा और सवनाम के िजस काय का स ब ध ि या से जाना जाता है , उसे कारक कहते है। सं ेप म कारक का अथ है ि या को करने वाला। कारक श द (सं ा और सवनाम) को ि या के साथ िकसी न िकसी प् म जोड़ती है। उदाहरण के िलए - ‘राम मोहन को बचाने के िलए साइिकल से िगर गया‘ यहाँ पर को, के िलए, और से आिद कारक मशः राम मोहन बचाने, साइिकल आिद श द को राम ारा मोहन को बचाने क ि या से जोड़ रह ह। कारक के भेद – िह दी म कारक के 8 भेद होते ह — कारक के भेद और उनके िवभि िच इस कार है — कारक — िवभि िच 1

कता कारक



ने

2

कम कारक



को

3

करण कारक



से, के ारा (साधन का बोध)

4

स दान कारक



के िलए, को

5

अपादान कारक



से (अलग होने का बोध)

6

स ब ध कारक



का, क , के

7

अिधकरण कारक



म, पर

8

स बोधन



हे!, अरे!

4.9 िलं ग, वचन और कारक का याकरिणक मह व याकरण क ि से िलं ग, वचन और कारक क भूिमका सं , सवनाम, िवशेषण और ि या के पा तर म होती है। िह दी भाषा म िलं ग सूचक श द प का बहत मह व है। िवशेषण एवं ि या प भी िलं ग के अनु प् ही चलते है जैसे अ छा यि सभी का स मान करता ह अ छी नारी सभी का स मान करती है। 31

उपयु उदाहरण म रेखािकं त श द मश; िवशेषण, िलं ग और ि या है। थम वा य म यि पुल िलं ग तथा ि ितय वा य म नारी ीिलं ग श द से िवशेषण व ि या प म भी प रवतन हो गया है। इसी तरह वचन एवं कारक भी िह दी भाषा म श द - प को भािवत करते है। अ य श द का स ब ध ि या से जोड़ने वाले िवभि िच ‘कारक‘ कहलाते है। यिद कारक न हो तो ि या के साथ श द को स बं ध नही बैठ पाएगा और वा य अथहीन और आधारहीन हो जाएगा। जैसे - राम ने रावण को धनुष से मारा यहाँ पर रेखांिकत िवभि िचहन है‘ यिद इ हे हटा देते है तो वा य रह जाएगा- राम रावण धनुष मारा भाषा म इस उ वा य आधारहीन अथहीन और िन दे य है िजसका कोई योग नही। इस कार प है िक भाषा लेखन म िलं ग,वचन व कारक का अपना मह व है।

4.10 सारां श इस इकाई म आपने िलं ग, वचन और कारक क जानकारी ा क है। िह दी म सं ाएं, िलं ग वचन और कारक ारा अपना प िनधा रत करती है। िह दी म िलं ग क अपनी िविश ता है, िजसके िनधारण के िनयम के अित र यह लोक- योग और अ यास से ही जाना जा सकता है तथा गैर िह दी भाषी इसे िह दी श द-कोष या मातृभािषय से सीख सकते है। िह दी म वचन भी होते है, एक वचन और बहवचन, सं या म एक या अनेक होने के आधार पर य ह भद िकया गया है। वचन का भी भाव सं ा, सवनाम, िवशेषण और ि या पर पड़ता है। सं ा या सवनाम का ि या के साथ स ब ध िनधा रत करने वाले त व को कारक कहते है तथा िजन श द या श दां श से स ब ध थािपत होता है उ ह कारक िच या िवभि िच कहते है। सवनाम के साथ भी कारक िच का योग होता है जैसे इससे िकसका, उसने; यहाँ रेखां िकत श द कारक िच है जो सवनाम के साथ जुडे है। सं ेप म यह इकाई आपके याकरण ान का िवकास कर भाषा को शु िलखने और बोलने क मता का िवकास करती है।

4.11 अ यासाथ



1.

िलं ग क प रभाषा और उसके भेद उदाहरण सिहत िलिखए।

2.

िन न श द का िलं ग प रवतन क िजए

3.

रा स,गायक,दुःख जेठ , पं िडत, िभखारी,बाबु, बेगम, िव रु , ाथ ि या भगवान, ि य, दिजन आिद रेखािकं त श द का िलं ग प रवतन कर र थान क पूित क िजए (क) युवक आया और .......................... भी । (ख) नाटक म नायक और ............................ दोनो अ त म मर जाते है (ग) जब ससुर गया तो ..................................... भी गयी। (घ) पहले सुनार आया बाद म ..................................। 32

(ड) िवदवान और ............................ म सं वाद हआ। 4.

िन निलिखत ीिलं ग श द म िकस यय का योग िकया गया है (1) ाचाया (क)



(ख) या

(ग)

रा

(घ) इया

(2) देवरानी (क)

नी

(ख) अनी

(ग)

आनी

(घ) ई

5

वचन क प रभाषा और भेद का उदाहरण सिहत उ लेख क िजए

6

रेखां िकत श द का वचन बदलकर पुनः िलिखए (1) पेड़ से प ते िगरता है। ......................... (2) मंच पर लड़का नाच रहा है। (3) प ी गगन म उड़ रहा है। (4) िब ली अँधेरे म देख सकती है। (5) इस फाटक से गाड़ी गुजरती है।

9

कारक िकसे कहते है ? कारक के िवभाि िच का उ लेख करो।

10

कारक के भेद के नाम िलिखए

11

ि या करने वाले कारक को या कहते है

12

का। क ।के क िवभाि िकस कारक के साथ लगती है।

13

करवा कारक का िवभाि िच कौनसा है ?

14

ि या िजस थान पर क जाती है, उसे कहते है।

15

रं

थान क पूित उपयु कारक िच से क िजए

(1) वह पु तक .......................... पढ़ रहा है ‘ (कम कारक) (क) को (ख) से (ग) के िलए (2)

(घ) म

वह घर ............है (अिधकरण कारक) 33

(क) से (ख) के िलए (ग) पर (घ) को (8)

िन न श द को बहवचन म बदिलए िमठाई, समाचार,किवता, मूख , सं तरा, झील, िलिप, पाठक, आिद।

(5)

‘पवत‘ के नाम से िक ही चार पुि लं ग श द को िलिखए

4.12 सं दभ थ 1

डॉ. धीरे वमा: नवीन िह दी याकरण, िह दी मंिदर, इलाहाबाद

2

कामता साद गु : िह दी याकरण, काशी नागरी चा रणी वाराणसी

3

पि डत ीलाल, भाषा च ोदय (भारतवष य िह दी भाषा का याकरण)

4

धीरे वमा: िह दी भाषा का इितहास, िह दु तान अकादमी इलाहाबाद।

34

इकाई - 5 श द - संरचना: (संिध, समास, उपसग एवं यय) इकाई क 5.0

परेखा

उेय

5.1

तावना

5.2

सं िध

5.3

समास

5.4

उपसग

5.5

यय

5.6

सारां श

5.7

अ यासाथ न

5.8

सं दभ ं थ

5.0 उ े य इस इकाई म श द िनमाण म सहायक याकरिणक साधन का अ ययन िकया गया है। इस इकाई के अ ययनोपरां त आप सं िध का अथ, कार व वर संिध क जानकारी ा कर सके ग।  समास का अथ व िविवध प म क जानकारी ा कर सके ग।  उपसग एं व यय क प रभाषा और इनके उदाहरण के मा यम से श द िनमाण करना सीख सकगे।  श द म सं िध, समास उपसग और यय को पहचानते हए इनके यावहा रक अनु योग का कौशल िवकिसत कर सके ग।

5.1

तावना

दैिनक जीवन म हम भाषा के समुिचत योग ारा अपने भाव और िवचार को आकषक ढ़ं ग से कट करना स द करते है। हम चाहते है िक हमारी भाषा और श द सं योजन ऐसा हो िजसे पढ़कर और सुनकर पाठक और ोता हमसे अ छी तरह भािवत हो जाए। इस कौशल के िलए िव ािथय क भाषा के 35

यावहा रक प पर पकड़ होना ज री है। िह दी भाषा का यावहा रक प मुहावरे लोकोि , पयायवाची, यु म श द, आिद के साथ साथ, समास, उपसग एवं यय से भी समृ होता है। श द िनमाण क कला िव ािथय को आनी चािहए। सं कृ त म उपसग एवं ययं लगाकर एक श द से अनेक श द बनाए जा सकते ह। िह दी भाषा म सं कृ त के अलावा उदू और अं ेजी के उपसग एवं यय से भी श द िनमाण क ि या अपनाई जाती है। सं िध िव छेद और समास-िव ह से श द के टु कड़े कर उनके अथ क गं भीरता को समझने म सहायता िमलती है। उपयु श द चयन म भी सं िध और समास सहायक होते है।

5.2 सं िध सं िध क प रभाषा - ‘सिध’ का शाि दक अथ है ‘मेल’ या ‘मेल िमलाप’। जब दो विनय पर पर िमलती है और िमलकर एक वतं भािषक प बना लेती ह तो उसे सं िध कहते है। उदाहरणतयापु तक + आलय

=

पु तकालय

सं िध के तीन भेद होते है ‘ 1 वर संिध 2 यंजन सं िध और 3 िवसग सं िध वर सं िध दो वर के पार प रक मेल से जो िवकार होता है, उसे वर संिध कहते है। इसके चार भेद होते है(1) दीघ

(2) गुण

(3) वृि (4) यण सं िध (1) दीघ सि ध - हा य या दीघ अ, इ, उ से परे मशः व या दीघ अ, ई, उ आने पर मशः दीघ आ, ई, ऊ हो जाते है। अ

+



=



1.

मत

+

अनुसार

=

मतानुसार

2.

परम

+

अथ

=

परमाथ

3.

सुख

+

अथ

=

सुखाथ

4.

पीत

+

अंबर

=

पीतां बर

5.

मत

+

अिधकार

=

मतािधकार

6.

याय +

अधीश

=

यायाधीश

7.

उदय

+

अचल

=

उदयाचल

8.

नव

+

अंकुर

=

नवांकुर 36

9.

सूय

+

अत

=

सूया त

10.



+

अथ

=

वाथ

अ+आ=आ 1.

भोजन

+

आलय

=

भोजनालय

2.

देव

+

आलय

=

देवालय

3.

रन

+

आकर

=

र नाकर

4.

जन

+

आदेश

=

जनादेश

5.

नील

+

आकाश

=

नीलाकाश

6.

गज

+

आनन

=

गजानन

7.

परम

+

आन द

=

परमान द

8.

नव

+

आगत

=

नवागत

9.

धम

+

आ मा

=

धमा मा

10.

सय

+

आ ह

=

स या ह

आ+अ=आ 1.

यथा

+

अथ

=

यथाथ

2.

िश ा

+

अथ

=

िश ाथ

3.

िव ा

+

अथ

=

िव ाथ

4.

परी ा

+

अ यास

=

परी ा यास

5.

सीमा

+

अंत

=

सीमां त

6.

रेखा

+

अंकन

=

रेखाकं न

7.

यथा

+

अवसर

=

यथावसर

आ+आ=आ 1.

महा

+

आ मा

=

महा मा

2.

िव ा

+

आलय

=

िव ालय

3.

महा

+

आनं द

=

महानंद

4.

वाता

+

आलाप

=

वातालाप

37

5.

महा

+

आशय

=

महाशय

6.

मिदरा

+

आलय

=

मिदरालय

इ+इ=ई 1.

अिभ

+



=

अभी

2.

रिव

+



=

रव

3.

अित

+

इव

=

अतीव

4.

मुिन

+

इं

=

मुन

इ+ई=ई 1.

िग र

+

ईश

=

िगरीश

2.

किव

+

ईश

=

कवीश

3.

मुिन

+

ईश

=

मुनीश

4.

पर

+

ई ा

=

परी ा

ई+इ=ई 1.

मही

+



=

मह

2.

शची

+



=

शच

ई+ई=ई 1.

रजनी

+

ईश

=

रजनीश

2.

नदी

+

ईश

=

नदीश

3.

मही

+

ई र

=

मही र

4.

सती

+

ईश

=

सतीश

उ+उ=ऊ 1.

सु

+

उि

=

सूि

2.

लघु

+

उ र

=

लघू र

3.

बह

+

उ े यीय

=

बहदद्शीय

4.

भानु

+

उदय

=

भानूदय

5.

लघु

+

उ सव

=

लघू सव

38

6.

गु

+

उपदेश

=

गु पदेश

उ+ऊ=ऊ 1.

अंबु

+

अिभ

=

अंबिू म

2.

अंबु

+

ऊजा

=

अंबजू ा

+

उ सव

=

वधू सव

ऊ+उ=ऊ 1.

वधू ऊ+ऊ=ऊ

भू + ऊजा = भूजा 2. गु ण सि ध - यिद अ और आ के आगे इ या ई, उ या ऊ, ऋ वर आते ह, तो दोन के िमलने से मशः ए, ओ और अर् हो जाते है, जैसे अ+इ=ए 1.

देव

+

इं

=

देव

2.

सुर

+

इं

=

सुरे

3.

गज

+

इं

=

गज

4.

शुभ

+

इ छा

=

शुभे छा

5.



+

इ छा

=

वे छा

6.

भारत

+

इंद ु

=

भारतदु

7.

जैन

+

इं

=

जैन

अ+ई=ए 1.

नर

+

ईश

=

नरेश

2.

परम

+

ई र

=

परमे र

3.

गण

+

ईश

=

गणेश

4.

िदन

+

ईश

=

िदनेश

3. वृ ि सि ध - व ‘अ’ या दीघ ‘आ’ से परे ए या ऐ हो तो दोन िमलकर ‘ऐ’ और ‘ओ’ या ‘औ’ हो तो ‘औ’ हो जाते है 39

अ/आ+ए/ऐ= ऐ 1.

मत

+

ऐय

=

मतै य

2.

सदा

+

एवं

=

सदैव

3.

मता

+

ऐ य

=

महै य

4.

एक

+

एक

=

एकै क

अ/आ+ओ/ओ= औ 1.

वन

+

औषिध

=

वनौषिध

2.

परम

+

औदाय

=

परमौदाय

3.

महा

+

ओज वी

=

महौज वी

4.

मता

+

औषध

=

महौषध

आ+इ=ए 1.

यथा

+



=

यथे

2.

रमा

+

इं

=

रम

3.

राजा

+

इं

=

राजे

4.

महा

+

इं

=

महे

आ+ई-ऐ 1.

रमा

+

ईश

=

रमेश

2.

उमा

+

ईश

=

उमेश

3.

महा

+

ईश

=

महेश

4.

लं का

+

ई र

=

लं के र वीरोिचत

(ख) अ + उ = ओ 1.

वीर

+

उिचत

=

2.

पर

+

उपकार =

परोपकार

3.

सूय

+

उदय

=

सूय दय

4.

सव

+

उ म

=

सव तम

5.

जीण

+

उ ार

=

जीण ार

40

6.

जल

+

उिम

=

गलोिम

7.

नव

+

उिदत

=

नवोिदत

8.

रोग

+

उपचार

=

रोगोपचार

9.

मानव

+

उपयोगी

=

मानवोपयोगी

10.

मद

+

उम

=

मदो म

आ+उ-ओ 1.

महा

+

उ सव

=

महो सव

2.

महा

+

उदय

=

महोदय

4. यण् सि ध - यिद इ,ई, उ, ऊ और ऋ के बाद िभ न वर आए तो इ/ई का य्, उ/ऊ का व् और ऋ का र् हो जाता है, जैसे अ/आ+ए/ऐ= ऐ 1. 2.

3. 4.



+



=



अित

+

अिधक

=

अ यिधक



+



=

या

इित

+

आिद

=

इ यािद

ित

+

उपकार

=



+



=

या

नदी

+

आगन

=

न ागम



+



=

यु

+

यु

=

उपयु



+



=

यू

िव

+

ऊह

=

यूह

+

ऋिष

=

महिष

पर 5.

युपकार

आ + ऋ - अर् महा इ + ए - ये 41

ित

+

एक

=

येक

+

ऐ य

=

दै यै य

ई + ऐ - यै देवी उ+अ-व सु

+

अछ

=

वछ

=

वागत

=

अ वेषण

=

अि वित

=

िप ा ा

अ + आ - वा सु

+

आगत

उ + ए - वे अनु

+

एषण

उ + इ - िव अनु

+

इित

ऋ + आ - रा िपतृ

+

आ ा

अ + ऋ - अर् 1.

राज

+

ऋिष

=

राजिष

2.

देव

+

ऋिष

=

देविष

नोट – ‘अयािद’ सं िध के भेद क िह दी म आव यकता नह है य िक इस संिध के प िह दी भाषा म यौिगक श द नह है।

5.3 समास पर पर स ब ध रखने वाले दो या दो से अिधक श द से िमलकर जब एक नया श द बन जाता है और उनके बीच के सं योजक श द का कारक के िच का लोप हो जाता है तब उस ि या को ‘समास’ कहते है। समास के ारा बना हआ श द ‘सम त पद) कहलाता है और ‘सम त पद’ के श द का अंगो को अलग-अलग करके िदखलाना िव ह कहलाता है, जेसे – सम त पद

िव ह

समास

राजमाता जय - पराजय

राजा क माता हािन या लाभ जय या पराजय

त पु ष

42

स तऋिष स तऋिषय का समूह पं चानन पांच है आनन िजसके ‘ गणेश समास के मु य छः भेद है:-

ि गु बह ीही

1 अ ययीभाव समास - िजसका पहला श द अ यय हो, अथवा कोई श द दो बार आये और वह ि या-िवशेषण का काम करे, जैसे -िनडर, ितिदन, घर-घर, गली-गली, ितवष, यथाशि , एकाएक, रात रात, ित ण, आजीवन, आमरण, िनः शं क। अ य उदाहरण िन नानुसार है समास समास – िव ह समास समास - िव ह यथाशि

शि के अनुसार यथासं भव

यथा थान

जो थान िनधा रत है

यथाशी

िजतना शी हो

यथाथ

जैसा व तव म

यथासमय

जो समय िनधा रत है

अथ है

यथासा य

िजतना साधा जा सके

यथा म

जैसा म है

यथािविध

जैसी िविध िनधा रत है

यथाि थित

जैसी ि थित है

यथानु प

उसी के अनु प

यथोिचत

जैसा उिचत है वैसा

ित विन

विन क विन

यथामित

जैसी मित (बुि ) है

ितिदन

हर िदन

यथायो य

जो िजतना यो य है

ित ण

हर ण

अि (ऑख) के आगे

ितपल

हर पल



जैसा संभव हो

सम 2.

अि के सामने येक हर एक त पु ष समास - िजस समास म क ा और स बोधन का छोड़कर िकसी कारक का िच लु हो, जेसे - (अ त को गत)। िव ािवहीन (िव ा से िवहीन)। रसोईघर (रसोई का घर)। ज मां ध (ज म से अंधा) कलािनपुण (कला से िनपुण। भू-पितत (भू पर पितत) । िचिड़मार (िचिड़य को मारने वाला)। यशोडिभलाषी (यश का अिभलाषी)। मनिसज (मनिस+ज = मन म उ प न हआ)। पद युत (पद से युत )। गु -दि णा (गु के िलए दि णा। यहॉ ं उदाहरण म रेखांिकत कारक िच है। िजसका समास बनाते समय लोप हो जाता है। अ य उदाहरण िन नानुसार है समास समास िव ह समास समास िव ह

िवरोधजनक वग त िदलतोड़

िवरोध को ज म देनेवाला वग को ा िदल को तोड़नेवाला 43

आपि जनक

आपि को ज म देनवे ाला

ह तगत

ह त को गया हआ

जेबकतरा

जेब को कतरनेवाला

शरणागत

शरण को आया हआ

िगरहकट

िगरहह (गाँठ) को

िचड़ीमार

िचड़ी को मारनेवाला

मुहँ तोड़

मुहँ को तोड़नेवाला

गगनचुं बी

गगन को चूमनेवाला

ा ोदक

उदक (जल) को ा

सव

सव (सब) को जाननेवाला

नरभ ी

नर को भि त करनेवाला

काटनेवाला

तक ितलकु टा

ितल को कू टकर बनाया हआ

याहीचूस

याही हो चूसनेवाला

जगसुहाता

जग को सुहानेवाला

कनकटा

कान को कटवाया हआ

सं कटाप न

सं कट को ा आप न

िव ु मापी

िव तु ् को मापनेवाला

िवदेशगमन

िवदेश को गमन

परलोकगमन

परलोक को गमन

दोषमु

दोष से मु

जल र

जल से र

ज मरोगी

ज म से रोगी

गवशू य

गव से शॅ ू य

पद युत

पद से युत

धमिवरत

धम से िवरत

िु टहीन िु ट से हीन वीरिवहीन वीर से िवहीन 3. कमधारय समास - जहां दो श द म िवशे य- िवशेषण हो या उपमान स ब ध हो, जैसे घन याम (धन सा याम)। च मुख (च सा मुख)। मुख-कमल (मूख पी कमल)। ाण-ि य ( ाण के समान ि य है जो)। जीणकु टी (जीण है कु टी जो)। परम सु दर (परम है सु दर हो। सुसं वाद (सु =अ छा ) है सं वाद जो। कु पु (कु ि सत पु है जो)। महापु ष (महान् है पु ष जो)। नीलकमल (नील है कमल जो) अ य उदाहरण इस कार है समास समास- िव ह समास समास- िव ह नीलो पल

नील है जो उ पल (कमल)

नीलकमल

नील है जो कमल

र लोचन

र (लाल) है जो लोचन

परमाणु

परम है जो अणु

महासागर

महान् है जो सागर

हताश

हत है िजसक आशा

महापु ष

महान् है जो पु ष

गतां क

गत है जो अंक

चरमसीमा

चरम तक पहंची है जो सीमा

स म

सत् है जो धम

44

कु माररगंधव

कु मार है जो गं धव

भुदयाल

दलायु है जो भु

महिष

महान् है जो ऋिष

परकटा

कटे हए ह पर िजसके

चूड़ामिण

चूड़ा (सर) म पहनी जाती है

कमतोल

कम तोलता है जो वह

िपछवाड़ा

पीछे है जो वाड़ा

जो मिण ाणि य

ि य है जो ाण को

बहसं यक

बहत है सं या िजनक वे

शुभागमन

शुभ है जो आगमन

स दुिध

सत् है तो बुि

नवयुवक

नव ह जो युवक

अ पाहार

अ प है जो आहार

सदाशय सत् है िजसका आशय मंद बुि मंद है िजसक बुि 4. ि गु समास - िजस समास म पहला श द सं या वाचक हो और पूरे श द से एक समूह का बोध हो, जैसे -नवर न (नौ र न का एक समूह )। पंसेरी (पांच सेर का एक समूह )। स िष (स ऋिषय का एक समूह ) नव ह (नव ह का समूह ) ि भुवन (तीन भवन का एक समूह )। इसी कार अठ नी, चारपाई, पंचामृत , सतसई, चौराहा, आिद। अ य उदाहरण इस कार है समास समास -िव ह समास समास -िव ह एं काक

एक अंक का (नाटक)

दुमट

दो कार क िम ी

एकतरफा

एक ही तरफ है जो

ि गु

दो गायो का समाहार

एकतं

एक (राजा) का तं

इक ा

एक जगह ि थत

इकलौता

एक ही है जो

ि पाठी

तीन पाठ (तीन वेद के )

दुगुना

दो बार गुना

को जाननेवाला

दुमिं जला

दो ह िजसक मंिजल

तीन वेिणय (धाराओ)

दुबारा

दो बार

का सं गम- थल

दुसूती

दो है िजसके सूत (धागे)

तीन भुवन (संसार) का

दुनाली

दो नालवाली

ि वेणी ि भुवन 5.

(समास क एक कोिट) दोपहर

दो पहर ( हर) के बाद का समय

समाहार दुराहा दो राह का समाहार समास - जहां दो श द के बीच म और, या, अथवा का िच लु हो, वहां समास होता है। जेसे- जलवायु ( जल और वायु)। भाई-बहन (भाई और बहन)। सीता-राम (सीता और राम)। उ काषिपकष (उ कष या अपकष) जय-पराजय (जय या पराजय)। हािन-लाभ (हािन या

45

लाभ)। इसी कार सुख -दुःख, पान-फू ल, पाप-पु य, क ल-काँटा, नव-िशख, अ न-जल, ह रहर, ा-िव णु-महेश आिद। समास है। 6. बह ीिह समास- जहां दोन श द का ही अथ धान न हो, बि क दोन श द िमलकर या तो एक िवशेष अथ का बोध कराये या िकसी अ य श द के िवशेषण बन जाव, वहां बह ीिह समास होता है। जेसे-नीलक ठ (नीला है क ड िजसका अथात िशवजी)। बारहस गा (बारह है स ग िजसके , ऐसा एक पशु), पं चानन (पाँच है आनन िजसके , िशवजी या िसंह )। ल बोदर (ल बा है उदर िजसका, गणेश जी)। नकटा (नाक है कटी हई िजसक , ऐसा कोई ी) पं कज (पं क से जो पैदा हआ है, कमल)। चतुभजु (चार है भुजा िजसके , िव णु)। अत: यहां नीलक ठ, बारहिसं हा, पं चानन, ल बोदर, नकटा ओर पंकज और चतुभजु आिद श द बह ीही समास हैा कमधारय और बह ीिह का अ तर - कमधारय समास म सम त पद िवशे य (सं ा) होती है और बह ीिह म सम त पद िवशेषण होता है। जैसे पीता बर - पीत है अ बर जो अथात् पीला कपड़ा - िवशे य (कमधारय) पीता बर - पीत है अ बर िजसका अथात् कृ ण - िवशेषण (बह ीिह ) उदाहरण - ‘पीता बर पहने घन याम’ म पीता बर कमधारय है, ‘पीता बर भगवान कृ ण’ म पीता बर बह ीिह है। इसी कार, ‘मोहन एक स च र छा है’ म ‘स च र ’ बह ीिह है। ‘उसने अपने स च र से सबको भािवत कर िदया’ म ‘स च र ’ कमधारय है। ि गु और बह ीिह का अ तर - ि गु समास म सं या बोधक श द से सं या का बोध होता है, िक तु बह ीिह म सम त पद का अथ ही िभ न हो जाता है, िजसका सं या से कोई स ब ध नह रहता, जैसे शं कर के ि लोचन को देखकर कामदेव कॉप उठा’ म ‘ि लोचन’ म ि गु समास है, यहॉ इसका िव ह ‘तीन लोचन का एक समूह है। ि लोचन भगवान् शंकर ने तां डव नृ य िकया म ि लोचन’ म बह ीिह समास है, इसका िव ह होगा- तीन है लोचन िजनके । इसम सं या को कोई मह व नही।

5.4 उपसग उपसग वे श दां श है जो श द के पूव लगकर उनके अथ म िवशेषता उ प न कर देते है, जैसे अनुकरण, पराजय इ यािद अनुकरण म ‘अनु’ पराजय म ‘परा’ उपसग है। उपसग लगाने क था ायः सभी भाषाओं म है। इसे समझने हेतु िन निलिखत उदाहरण िदए जा रहे ह (क) सं कृ त - उपसग (अित, अिध, अन्, अव, प र, अप, , िस, उप, सु:, दु:, कु :, िव आिद सं कृ त के उपसग है) उपसग सिहत

यु प न

उपसग सिहत मूल श द 46

यु प न श द

अित+ र

अित र

अनु+करण

अनुकरण

अिध+कार

अिधकार

अप-यश

अपयश

अन्+अ तर

अन तर

अिभ+मान

अिभमान

अव+नित

अवनित

सं+योग

सं योग

प र+वतन

प रवतन

िव+हार

िवहार

+कोप

कोप

िनः+काम

िन काम

उत्+कष

उ कष

सह+योग

सहयोग

अधः+पतन

अधःपतन

उप+कार

उपकार

दुः+गम

दुगम

सुःयोग (ख) िह दी - उपसग

सुयोग

कु +पु

कु पु

उपसग सिहत

यु प न

उपसग सिहत मूल श द

यु प न श द

भर+पूर

भरपूर

अध+मरा

अधमरा

अन+जान

अनजान

अ+छू ता

अछू ता

स+पूत

सपूत

कु +ठोर

कु ठोर

सु+डोल

सुडौल

िन+डर

िनडर

अप+सगुन

अपसगुन

औ+गुन

औगुन

उपसग सिहत

यु प न श द

उपसग सिहत मूल श द

यु प न श द

गैर+हािजर

गैरहािजर

बा+कायदा

बाकायदा

बद+नाम

बदनाम

दर+असल

दरअसल

ना+लायक

नालायक

हर+दम

हरदम

कम+जोर

कमजोर

ला+सानी

लासानी

बे+वकू फ

बेवकू फ

खुश +हाल

खुशहाल

ित+िनिध

ितिनिध

(ख) उदू- उपसग

(ख) अं ेजी- उपसग ी+वार

ीवार 47

इल्+लीगल

इ लीगल

नान्+सस

ना सस

अन्+काइ ड

अ काइ ड

री+राइट

रीराइट

इम् + ापर

इ पा्रपर

इन+जि टस

इनजि टस

5.5.

यय

यय वे श दां श है जो श द के अ त म लगकर उनके अथ म िवशेषता उ प न कर देते है, यय दो कार के है - (क) कृ त् - जो ि या के अ त म लगे, जैसे चढ़ना+आवा =चढ़ावा, गवैया, और (ति त) जो सं ा, सवनाम और िवशेषण अ त म लगे, जैसे - रं ग+ईला =रं गीला। धन+वान = धनवान् (क) कृ त् - यय (इयत, ई, वट, इया, ओड़ा, एरा, आन इ यािद) यय सिहत– ि या-

यु प न श द

यय -

यय सिहत –

कृ द त

ि या- यय-

यु प न श द कृ द त

अड़ना+इयल

=

अिड़यल

उड़ना+आन

=

उड़ान

कमाना+ऊ

=

कमाऊ

सजाना+वट

=

सजावट

घुड़क

खपना+त

=

खपत

घुड़कना+ई+ भरना+हआ

=

भरा हआ

गाना+वाला

=

गाने वाला

खाना+वैया

=

खवैया

जड़ना+इया

=

जिड़या

चढ़ना+आवा

=

चढ़ावा

झूलना+आ

=

झूला

लूटना+एरा

=

लूटेरा

भागना+ओड़ा =

भगोड़ा

खेलना+डी

=

िखलाड़ी

घबराना+हट

=

घबराइठ

तैरना+आक

=

तैराक

सूं घना+नी

=

सूं घनी

सूचना - खाना, पीना, पढ़ना आिद ि याओं म अ त का ‘ना’ के वल ि या का िच मा है, मूल ि याये खा, पी, पढ़ है और यय इन मूल ि याओं के आगे ही लगाये जाते है। (ख) ति त – यय (इया, एरा, डी, ई, वान, री, आई, आ इ यािद) यय सिहत– यु प न श द

यय सिहत – यु प न श द

ि या- यय-ति ता त

ि या- यय- ति ता त

तबला+ची= तबलची

चौड़ा+आई=चौड़ाई

चाचा+एरा= चचेरा

लाठी+इया=लिठया 48

चटक+ईला=चटक ला

जुआ +री=जुआरी

तेल+ई = तेली

टाँग +ड़ी= टँगड़ी

लघु+ व = लघु व

मधुर +ता= मधुरता

जल+द=जलद

देव+ई= देवी

धन+वान=धनवान

िशव्+आ=िशवा

गु सा+एला=गुसैला

लड़का+पन=लड़कपन

5.6 सारां श तुत इकाई म सं िध, समास, उपसग एवं यय इन चार मह वपूण याकरिणक घटको क जानकारी दी गई। श द सरं चना के े म ये मह वपूण घटक है। दो वण के पास-पास आने पर िजस वण म ( वर, यं जन या िवसग म िकसी एक म) म िवकार (प रवतन) होता है। उसी वण के नाम से संिध कहलाती है। इस आधार पर संिध के तीन भेद होते है। (1) वर सं िध (2) यं जन सं िध और (3) िवसग संिध - येक भाषा अपने म कु छ ऐसा कौशल िवकिसत करती है िक वह कम से कम श द के योग से अिधक अथ य कर सके । इसके िलए श द योग म सं ि तता पर यान िदया जाता है। कम से कम श द ारा वह अथ को कट करने के िलए समास क जानकारी आव यक है। श दां श का मूल श द के पहले या अंत म योग करने से मशं उपसग और यय का िनमाण होता है। िह दी म उपसग और यय लगाकर नवीन-नवीन श द का िनमाण िकया जाता है इसिलए िह दी क श द िनमाणकारी सं रचना से प रिचत होने के िलए इनका अ ययन मह वपूण है।

5.7 अ यासाथ



िन निलिखत न के उ र दीिजए 1.

सं िध िकसे कहते है, सं िध के कार का नामो लेख क िजए?

2.

समास क प रभाषा हए मुख भेद का नाम िलिखए।

3.

कमधारय समास क प रभाषा सोदाहरण िलिखए।

4.

वर सं िध के पांच भेद कौन-कौन से है।

5.

कमधारय और बह ीिह समास मं अ तर उदाहरण के साथ प क िजए।

6.

उपसग िकसे कहते है।

7.

यय िकसे कहते है।

8.

िन निलिखत उपसग से श द का िनमाण क िजए 49

अप, अनु, उप, सु, िन 9.

िन निलिखत यय से श द का िनमाण क िजए ऊ, नी, आ, एरा, आन

10.

िन निलिखत श द म से उपसग छांटकर अलग से िलिखए। नालायक, कोप, सुपु , खुशहाल, अधूरा

11.

िन निलिखत श द म से यय छांटकर अलग से िलिखए – जुआरी, घबराहट, चमक ला, चढ़ावा, लुटेरा

12.

13.

14.

स या ह श द म कौन-सी सं िध है (अ) गुण सं िध

(ब) दीघ संिध

(स) वृि सं िध

(द) यण संिध

बीजां कुर का सं िध िव छे द बताइए(अ) बीज + अंकुर

(ब) बीजान+कु र

(स) बी + जां कुर

(द) बीजांकु + र

िमलान क िजए ल बोदर

-

ि गु समास

राजमहल

-

समास

ितराहा

-

अ ययी भाव समास

िदन-रात

-

बह ीिह समास

यथासं भव

-

त पु ष समास

5.8 सं दभ ं थ 1

डॉ. धीरे वमा: नवीन िह दी याकरण, िह दी मंिदर, इलाहाबाद

2

कामता साद गु : िह दी याकरण, काशी नागरी चा रणी वाराणसी

3

पि डत ीलाल, भाषा च ोदय (भारतवष य िह दी भाषा का याकरण)

4

धीरे वमा: िह दी भाषा का इितहास, िह दु तान अकादमी इलाहाबाद।

5.

िकशोरीदास वाजपेयी: िह दी श दानुशासन, नागरी चा रणी सभा. वाराणसी 1958 50

6.

िकशोरीदास वाजपेयी: भारतीय भाषा िव ान, चौख भा िव ा भवन वाराणसी 1959

7.

िकशोरीदास वाजपेयी: िह दी क वतनी एवं श द िव लेषण, नागरी चा रणी सभा. वाराणसी 1968

51

इकाई – 6 िह दी का श द ान इकाई क 6.0

परेखा

उेय

6.1

तावना

6.2

पयायवाची श द

6.3

अनेक श द के िलए एक श द

6.4

श द यु म

6.5

िवलोम श द

6.6

सारां श

6.7

अ यास न

6.8

सं दभ ं थ

6.0 उ े य इस इकाई के अ ययन के बाद आप  िह दी भाषा क श द स पदा क जानकारी ा कर सकगे।  इस संदभ म पयायवाची श द, वा यां श शुि श द, िवलोम श द और श द यु म आिद क जानकारी ा कर श द ान के कौशल को िवकिसत करगे।

6.1

तावना

इससे पूव इकाई सं या 5 म आपने िह दी भाषा के श द संरचना क जानकारी ा क है। िकसी भी िवकासमान भाषा के िलए श द भ डार का स प न होना अ य त आव यक है। पयायवाची, यु मश द, िवलोम श द, वा यांश सूचक श द क जानकारी ओर उनके योग अ यास से श द ान का वृि िव तृत होता है। इसम उपयु श द को चयन करने क मता िवकिसत होती है। पयायवाची श द, वा यांश सूचक श द, िवलोम श द एवंश द यु म क जानकारी से आपक मौिखक और िलिखत दोन

52

कार क अिभ यि यॉ ं भावी बनती है। अतः इन सभी क जानकारी ा करना िव ाथ क थम आव यकता है।

6.2 पयायवाची श द भारतीय पर परा को य करने वाले िह दी सं कृ त के पयायवाची श द क जो अमू य धरोहर हम ा है, उनका िव ािथय को अव य ान होना चािहए। पयायवाची श द और पयायवाची दो श द से िमलकर बना है िजसका मशः अथ है - समान और वचन अथात् पयायवाची श द से आशय होता है समान अथ वाला श द। ये समान अथ छायाओं के प म होते है िजनका संदभ के अनुसार अलग अलग योग भी होता है। सामा यतः कोई भी भाषा एक ही अथ के िलए अिधक श द को वहन नह करती िक तु एक अथ क िविभ न छायाओं वाले लगभग पयाय से श द अव य होते है। यह अव य है िक पयायवाची श द का भी संदभ के अनुसार अलग अलग अथ म यो ग होता है। िह दी म पयायवाची श द िन निलिखत है 1

अंधकार -

अँधेरा, तक, ितिमर, वां त, अंिधयारा

2

अितिथ -

मेहमान, अ यागत,पाहन, आगं तकु

3

अमृत -

पीयूष, सुधा, अिमय, सोम, सुरभोग, अमी

4



घोड़ा, तुरं ग, बाजी,हय, घोटक, सधव

5

आँख -

ने , नयन, च ,ु ग, लोचन

6

आकाश -

नभ, अ बर, गगन, योम, अनं त, खगोल, नाक, शू य

7

इं

-

देवराज सुरपित, मघवा, देवेश, देव , पुर दर,सुरेश, अमरपित, शचीपित

8

ई र

-

जगदीश, परमा मा, परमे र, भु, वयं भ,ू

9

उपवन -

बाग, बगीचा, वािटका, गुलशन, उ ान

10

कनक -

कं चन, सोना, वण, िहर य , हेम, हाटक

11

कमल -

सरोज,जलन, पं कज , इंदीवर,निलन, अंबजु , नीरज, तामरस, सारं ग, राजीव,

-

अरिवं द, अ ज, पुंडरीक 12

कपड़ा -

व ,चीर,बसन, अंबर, पट, प रधान, पोशाक

13

क पवृ -

देववृ , सुरत , कलपत , कलप ु म 53

म,

ा, जग नाथ

14

कण

-

सूयपु , सूतपु , राधेय, अंगराज

15

कामदेव -

मदनख् मनिसज, रितपित, दूयुमन , मीनके तु, पु पध वा, अवं ग, मनोज

16

कृ ण -

बनवारी, याम, मोहन, माधव, मुरलीधर, गोपीनाथ, दामोदर, नं दलाल, मुकं ु द, क हैया, िग रधर

17

कोयल -

काक, िपक, बं सतदूत, वनि य, यामा, कोिकल

18

गं गा

मंदािकनी, भागीरथी, देवनदी, ि पथगा, सुरस र, िव णुपदी, ज नतनया

19

गजानन -

गणेश, िवनायक, लं बोदर, गजवदन, मूषकवाहन, व तुं ड, गणपित

20

गाय

-

धेन,ु सुरभी, गौ, गौरी, गैया, गऊ

21

चाँद

-

च , चं मा, शिश, िनशाकर, िहमांशु, सुधांशु , सुधाकर,राके श, मृगां क, इंद ु,,

-

मयं क, राकापित, रजनीपित 22

जवानी -

यौवन, त णाई, युवाव था

23

तालाब -

सर, तड़ाग, पदमाकर, जलाशय, पु कर, सरोवर, ताल

24

देवता -

देव, सूर, अमर, अजर, िववुध , भगवान

25

दानव -

रा स, असुर , दै य, दनुज, िनशाचर, रजनीचर, दमुल

26

दूध

पय, ीर, दु ध , गोरस

27

दीपक -

दीप, दीप, दीया, योित, गृहमिण

28

धरती -

पृ वी, धरा, वसुं धरा, मेिदनी, इला, भू, धरणी, भूिम, मही, अचला, अवनी

29

धीरज -

धैय, स , धीरता, सं तोष, तोष

30

नदी

स रता, आपगा, शैलजा, िसंधगु ािमनी, तिटनी, वािहनी

31

िनशा -

32

नारी

-

33

िपता

-

34

पहाड़ -

िगरी, पवत, भूधर, अचल,शैल, नग

35

प ी

-

खग, िवहग, लभचर, िवहंग

36

पु

-

सुत , तनय, पूत , बेटा, लाल, व स, तनुज

37

पु ी

-

सुता, तनया, आ मजा, नं िदनी, दुिहता

-

-

रात, राि , रजनी, िनिश, यािमनी, रैन ी, मिहला, औरत, वामा, रमणी, अबला जनक, तात्, िपतृ

54

38

ेम

-

नेह, अनुराग, ीित, राग

39

प रवार -

कु टुमं , कु लबा, घराना, खानदान

40

फू ल

पु प, कु सुम, सुमन, सून ,गुल

-

6.3 अनेक श द के िलए एक श द वा यां श सू चक श द श द के इस वग करण म - एक वा यां श या वा य के बदले को जाने वाल श द को सि मिलत िकया जाता है। कम से कम श द के मा यम से अिधकािधक अथ को य करने क ि से इस कार के श द क जानकारी आव यक है। िकसी ग ां श के सं ि ीकरण म भी ऐसे श द का योग िकया जाना चािहए। िकसी भाषा म यु होने वाले कु छ ऐसे श द िन नानुसार है अनेक श द के िलए एक श द 1

सबसे आगे रहने वाला

-

अ णी

2

िजसका खंडन न िकया जा सके

-

अखंडनीय

3

िजसका पता न हो

-

अ ात

4

जो इंि य (गो) ारा न जाना जा सके

-

अगोचर

5

िजसक िगनती न क जा सके

-

अगिणत

6

िजसक गहराई का पता न लग सके

-

अथाह

7

िजसे देखा ना जा सके

-

अ य

8

िजसके बराबर दूसरा न हो

-

अि तीय

9

वह ी िजसके पित ने दूसरी शादी कर ली है

-

अ यूढ़ा

10

धमशा के िव

-

अधम

11

जो अबतक से सं बं ध रखता है

-

अधुनातन

12

िजसका कोई आिद / ारं भ न हो

-

अनािद

13

िजसक उपमा न दी जा सके

-

अनुपम

14

पर परा से चली आई कथा

-

अनु िु त

15

जो िनयमानुसार न हो

-

अिनयिमत

काय

55

16

मूलकथा म आने वाला सं ग, लघुकथा

-

अंतकथा

17

िजसका िनवारण न िकया जा सके

-

अिनवाय

िजसे करना आव यक हो 18

िजसे बुलाया न गया हो

-

अनाहत

19

अिववािहत मिहला

-

अनूढा

20

जो अनु ह (कृ पा) से यु हो

-

अनुगहृ ीत

21

पीछे पीछे चलने वाला - अनुगामी

22

अनुकरण करने यो य (काय का अनुकरण)

-

अनुकरणीय

23

महल का वह भाग जहाँ रािनयाँ िनवास करती है

-

अंतःपुर

24

जो कु छ नह जानता हो

-

अ /अ ानी

25

जो पहले पढ़ा न गया हो

-

अपिठत

26

जो धन को यथ ही खच करता हो

-

अप ययी

27

िजस पर अपराध करने का अरोप हो

-

अिभयु

28

िजस व तु का मू य न आंका जा सके

-

अमू य

29

जो कम जानता हो

-

अप

30

जो इस लोक का ना हो

-

अलौिकक

31

जो िविध या कानून के िव

32

हो

-

अवैध

िजसका िवभाजन न िकया जा सके

-

िवभा य

33

जो िबना वेतन के काय करता हो

-

अवैतिनक

34

जो मृ यु के समीप हो

-

आस नमृ यु

35

जो काय अव यहोने वाला हो



अव य भावी

36

जो शोक करने यो य नह हो

-

अशो य

37

जो ई र म िव वास रखता हो

-

अि तक

38

जो मृ यु के समीप हो

-

आस नमृ यु

39

जो शी

स न हो जाए

-

आशुतोष

40

जो अितिथ का स कार करता हो

-

अितथेय/मेजबान

56

41

िजसका सं बधं आ मा से तो

-

आ याि मक

42

वह िजस पर हमला िकया गया हो

-

आ ां त

43

िकसी थान के सवािधक पुराने िनवास

-

आिदवासी

44

पवत के नीचे तलहटी क भूिम

-

उप यका

45

िजसने अपनण ऋण पूरा चुका िदया हो

-

उऋण

46

ऊपर क ओर जाने वाला

-

ऊ वगामी

47

बतन बेचेने वाला

-

कसेरा

48

भूख से पीिड़त

-

ुधात

49

शरीर का यापार करने वाली ी

-

गिणका

50

आकाश को पश करने वाला

-

गगनचुं बी

51

अपनी इचछा के अनुसार िलया गया

-

वैि छक

52

जो अपने ही अधीन हो

-

वाधीन

53

स यके िलए सं घष/आ ह

-

स या ह

54

सब का समान भाव से देखने वाला

-

समदश

55

मां सयु भोजन



सािमश

56

आकाश से यु (मूितमान)

-

साकार

57

िजसका च र अ छा हो

-

स चर

58

जो साथ पढ़ा हो

-

सहपाठी

59

जो अपना िहत सोचता है

-

वाथ

60

जो स य (बाऐं) हाथ से भी काम कर लेता हो

-

स यसाची

6.4 श द यु म श द-यु म - श द यु म का अथ है श द का जोड़ा (श द क िलखावट) िह दी म कु छ श द ऐसे भी है िजनक वतनी और उ चारण म मामूली सा अ तर है िक त उनके अथ म बड़ी िभ नता है। इनम से कु छ श द के जोडे़ बने हए है, जो बह चिलत है। ऐसे ही श द को ‘श द यु म’ कहा जाता है। समान-सा उ चारण तीत होने के कारण छा को ऐसे श द को अथ म ायः म हो जाता है। िजससे अथ का

57

अनथ हो सकता है। ऐसे श द का ान ा करना आव यक है तािक उनके अ तर से भली कार प रिचत होकर िव ाथ कोई िु ट न कर। यहॉ ऐसे ही कु छ श द और अनके अथ िदये जा रहे है 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12.

अिल

-

भ रा

आली

-

सखी

अकथ

-

िजसके िवषय मं कु छ न कहा जा सके

अथक

-

जो थके नह

अविध

-

समय

अवधी

-

एक भाषा िवशेष

आय

-

आमदनी

आयु

-



आचार

-

आचारण

अचार

-

खाने का एक पदाथ

अगम

-

किठन

आगम

-

आगमन, शा

कम

-

काय



-

रीित

चरम

-

अंितम

चम

-

खाल

िच

-

मन

िच

-

त वीर

कटक

-

सेना

कटु क

-

कडु आ

तरिण

-

सूय

तरणी

-

नाव

के सर

-

अयाल

के शर

-

सुगं िधत पदाथ 58

13.

कं जर

-

एक जाित िवशेष

कुं जर

-

हाथी

कु ल

-

वं श, सब

कू ल

-

िकनारा

तरं ग

-

लहर

तुरं ग

-

घोड़ा

िचर

-

हमेशा, ाचीन

चीर

-



तप

-

तप या

ताप

-

गम

दध

-

जला हआ

दु ध

-

दूध



-

रतल पदाथ, रस



-

पदाथ, स पित

वा र

-

जल

वारी

-

गज बं धन

कार

-

तरीका

ाकार

-

परकोटा

कोष

-

भ डार

कोश

-

श द कोश

गत

-

गया हआ

गित

-

समय, दशा

सबल

-

शि शाली

शबल

-

िचतकबरा

120. ि प

-

हाथी

ीप

-

टापू

14 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24.

59

25. 26 27 28 29 30. 31. 32. 33. 34.

िज

-

ण, प ी दाँत

सकल

-

सम त

शकल

-

टु कड़ा

िशव

-

महादेव

िशिव

-

एक राजा

भवन

-

घर

भुवन

-

सं सार

वा रद

-

बादल

वा रिध

-

समु

सुत

-

पु

सूत

-

सारथी, धागा

व तु

-

चीज

वा तु

-

मकान

नं दी

-

बैल

ना दी

-

मंगलाचरण

पानी

-

जल

पािण

-

हाथ

नगर

-

शहर

नागर

-

नगर का, चतुर

पु ष

-

आदमी

प ष

-

कठोर

6.5 िवलोम श द िवलोम श द का अथ है िवपरीत। उ टा। िवलोम श द वे होते है जो श द के अथ से िवपरीत या उ टा अथ बताए जैसे रात का िदन िक तु राजा का रानी और भाई का बहन िवलोम नहं है। यह तो के वल िलं ग प रवतन है। कु छ मह वपूण िवलोम श द इस कार है। शद

िवलोम श द 60

1

अथ

-

अनथ

2



-

उदय

3

अमृत

-

िवष

4

अ ज

-

अनुज

5

अपमान

-

स मान

6

अनुकूल

-

7

अविन

-

अंबर

8

अिनवाय

-

ऐि छक/वैकि पक

9

अकाल

-

सकाल

10

आकाश

-

पाताल

11

अितवृि

-

अ पवृि ,अनावृि

12

अवाचीन

-

13

अप

-

बहत

14

आदर

-

िनरादर

15

अनुराग

-

िवराग

16

आिद

-

अंत

19

अनुर

-

िवर

20

आव यक

-

अनाव यक

21

अ प ाण

-

महा ाण

22

आरं भ

-

अत

23

आि तक

-

नाि तक

24

अपराधी

-

िनरपराध

25

आशा

-

िनराशा

26

उिचत

-

अनुिचत

27

आन द

-

शौक

28

उदार

-

अनुदार

ितकू ल

ाचीन

61

29

आधुिनक

-

ाचीन

30

उ नित

-

अवनित

31

उ म

-

अधम

32

उ ीण

-

अनु ीण

33

उ साह

-

िन साह

34

इ छा

-

अिन छा

35

खुशबू

-

बदबू

36

कृ त

-

कृ त न

37

कृ पा

-

कोप

38

गृह थ

-

स यासी

39

चैतन

-

अचैतन

40

िनगुण

-

सगुण

41

दुजन

-

स जन

42

परतं

-

वतं

43

पराधीन

-

वाधीन

44

यश

-

अपयश

45

ेम

-

घृणा

46

यि

-

समाज

47

ोता

-

य ा

48

बात

-

िववाद

49

लोक

-

परलोक

50

िव ान

-

मूख

51

िवजय

-

पराजय

52

लं बा

-

चौड़ा

53

िव यात

-

कु यात

54

िवदाई

-

वागत 62

55

यि

-

समि

56

शां त

-

अशां त

57

सजीव

-

िनज व

58

ससीम

-

असीम

59

सं िध

-

िव ह

60

साकार

-

िनराधर

61

समास

-

यास

62

सा र

-

िनर र

63

साधु

-

असाधु

64

सुरीला

-

बेसरु ा

65

सुलभ

-

दुलभ

66

मरण

-

िव मरण

67

सुं दर

-

असुं दर

68

सुमित

-

कु मित

69

सू म

-

थूल

70

सौभा य

-

दुभा य

71

सृजन

-

िवनाश

72

सृि

-

लय

-

िनंदा

73

तुित

74

हार

-

जीत

75

िहत

-

अिहत

76

िहंसा

-

अिहंसा

77

िणक

-

शा वत

78

ान

-

अ ान

79

मा

-

दड

80

समास

-

यास 63

81

सं यु

-

िवयु

82

सं तोष

-

अंसतोष

83

शुभ

-

अशुभ

84

शु क

-

आ अ लील

85

लील

-

86

याम

-

ेत

87

िवपि

-

स पि

88

िवयोग

-

सयोग

89

िवधवा

-

सधवा

90

िवशेष

-

सामा य

91

मृद ु

-

कठोर

92

मरण

-

जीवन

93

दन

-

हा य

94

रा स

-

देवता

95

युवा

-

वृ

96

मनुज

-

दनुज

97

मानवीय

-

अमानवीय

98

मू यवान

-

मू यहीन

6.6 सारां श िह दी एक जीव त चिलत भाषा है। इसम सं कृ त, ाकृ त, अप ं श, अरबी, फारसी, अं ेजी श द के साथ भारत के िविभ न ां त के श द का समावेश होने से इसका श द भ डार अ य त िवशाल एवं यापक हो गया है। इस श दावली के ओर िव तृत ान के िलए आपने तुत इकाई म पयायवाची, िवलोम श द, यु म के साथ ही साथ अनेक श द के िलए एक श द िनमाण क ि याओं को भी

64

समझा है और अ यास िकया है। िह दी क श दावली का यथे िव ािथय के िलए उपयोगी है।

6.7 अ यासाथ

ान ा करने म यह अ यास



1

िवलोम श द क प रभाषा उदाहरण सिहत िलिखए।

2

वा यां श सूचक श द का अथ बताते हए इसक उपयोिगता का उ लेख क िजए।

3

िन निलिखत श द यु म म अथगत अ तर िलिखए 1 कम - म 2 अविध - अवधी 3 तरिण - तरणी 4 कं जर कुं जर 5 पु ष - प ष

4

िन निलिखत श दो के तीन तीन पयाय िलिखए 1 कृ ण 2 आँख 3 अमृत 4 पु 5 राि

5

िन नांिकत श द के िवलोम श द िलिखए राजा, उ साह, अमृत, ेम, मूख, अनुज , सा र, लोक

6

िन नांिकत वा यां श के िलए एक श द िलिखए 1 पीछे पीछे चलने वाला 2 जो कम जानता हो 3 िजसक उपमा न दी जा सके 4 आकाश को पश करने वाला 5 िजसका च र अ छा हो 65

6.8 सं दभ ं थ 1

डॉ. धीरे वमा: नवीन िह दी याकरण, िह दी मंिदर, इलाहाबाद

2

कामता साद गु : िह दी याकरण, काशी नागरी चा रणी वाराणसी

3

पि डत ीलाल, भाषा च ोदय (भारतवष य िह दी भाषा का याकरण)

4

धीरे वमा: िह दी भाषा का इितहास, िह दु तान अकादमी इलाहाबाद।

5.

िकशोरीदास वाजपेयी: िह दी श दानुशासन, नागरी चा रणी सभा. वाराणसी 1958

6.

िकशोरीदास वाजपेयी: भारतीय भाषा िव ान, चौख भा िव ा भवन वाराणसी 1959

7.

िकशोरीदास वाजपेयी: िह दी क वतनी एवं श द िव लेषण, नागरी चा रणी सभा. वाराणसी 1968

66

इकाई -7 िवराम िच इकाई क 7.0

परेखा

उेय

7.1

तावना

7.2

िवराम िच का अथ व कार

7.3

अ य िवराम िच

7.4

सारां श

7.5

अ यासाथ न

7.6

सं दभ थ

7.0 उ े य इस इकाई के अ ययन के प चात् आप    

7.1

िवराम िच क प रभाषा और उनके भेद क जानकारी ा कर सके ग। वा य म िवराम िच न का योग कर सके ग। िवराम िच को पहचान कर उनका भेद बता सके ग अपने भाषा अिभ यि के कौशल का िवकास कर सके ग।

तावना

िह दी याकरण म िवचार को कट करने के िलए, उनम प ता और शु उ चारण के साथ-साथ उिचत ठहराव भी ज री है तभी आप अपनी बात दूसर तक पूरे अथ के साथ पहंचा सकते है । इसके िलए िवराम िच का ात आव यक हे। तुत इकई म िचराम िच के कार और उपयोग क जानकारी दी जा रही है।

7.2 िवराम िच का अथ िह दी म िवराम िच - िवराम िच का शाि दक अथ है - ‘ कना’ अथवा ‘ठहराव’। लेखन म भावािभ यि क प ता के िलए िवराम िच क आव यकता होती है, डॉ. भोलानाथ ितवारी के अनुसार - ‘‘ जो िच बोलते या पढ़ते समय कने का संकेत देते है , उ ह िवराम िच कहते है,’’ िवराम 67

िच म अब तक अनेक िच सि मिलत कर िलए गए है य िप सभी का काम कने का सं केत देना नह है तथािप िवराम िच के अ तगत पर परा से योग रहने के कारण इ ह भी िवराम िच ो के प म ही जाना जाता है। अथ के प ीकरण म िवराम िच क िकतनी उपयोिगता है, यह िन निलिखत उदाहरण से प हो जाता है, राम कू ल गया, यह एक सामा य वा य है िक तु िवराम िच लगाने के बाद यह ‘ नवाचक’ और आ यबोधक’ भाव का अलग-अलग बोध कराता है 1.

राम कू ल गया?

2.

राम कू ल गया?

3.

राम कू ल गया?

इसके अित र िवराम िच के योग से उ चारण और वाचन क गित म भी सुिवधा रहती है। कार - िह दी भाषा म िवराम िच के छः भेद और उनके िच इस कार है िवराम के भेद

िच

1.

पूण िवराम

(। )

2.

अ िवराम

(: )

3.

अ प िवराम

(,)

4.

योजक िच

(- )

5.

नवाचक िच

(?)

6.

िव मय सूचक िच

(!)

उपयु िवराम िच क प रभाषा और उनके योग िन नानुसार है 1. पू ण िवराम - पूण िवराम का अथ है, पूरी तरह कना या ठहरना,, सामा यतः पढ़ते समय जहॉ वा य क गित समा हो जाय, वहाँ पूण िवराम का योग होता है, वा य छोटा हो या बड़ा येक वा य क समाि पर पूण िवराम लगाया जाना चािहए, जैस-े वह घर गया, िह दी हमारी रा भाषा है, प र म ही सफलता क कुं जी है। कभी-कभी िकसी यि या व तु का सजीव वणन करते समय वा यां शो के अ त म पूण िवराम लगाया जाता है, जैसे- गोरा, रं ग। गाल पर क मीरी सेब क सी सुख , िसर के बाल न अिधक बड़े, न अिधक छोटे कान के पास बाल म कु छ सफे दी, पानीदार बड़ी-बड़ी आँखे चौड़ा माथा। यहाँ यि क मुखमु ा का िविवध वा यांश म सजीव वणन िकया गया है , अतः ऐसे थल पर पूण िवराम का उिचत योग हआ है। 68

2.

अ िवराम- इसका योग ायः कम होता है य िक अ िवराम क जगह अ पिवराम लगाकर काम चला िलया जाता है। अ िवराम का योग िन निलिखत ि थितय म होता है -

(i)

एक वा य का यिद दूसरे से स ब ध हो और बात पूरी न हो तो पहले वा य के अ त म अ िवराम लगता है। जैसे - म आपका काम कर दूं गा, आप िनि तं रह।

(ii)

एक ही वा य म उदाहरण व प कई पदब ध होने पर अ िवराम का योग होता है, जैसे -कह सृजन तो कह िवनाश, कह िमलन तो कह िवछोह; कह उ थान तो कह पतन; यही कृ ित क गित है।

(iii) 3.

कोश म एक श द के अलग-अलग अथ य करने के िलए अ िवराम का योग होता है। अ पिवराम - िह दी के िवराम िच म अ पिवराम का योग सवािधक होता है, ‘अ प िवराम’ का अथ है थोड़ी देर के िलए कना या ठहरना िलखते-पढ़ते समय अनेक ऐसी भाव दशाएँ आती है जब थोड़ी देर के िलए कना पड़ता है, अ पिवराम िन निलिखत प रि थितय म योग िकया जाता है-

(i)

वा य म जब दो ये अिधक पदो, पदां शो अथवा वा य म जहाँ’ और’ का योग िकया जा सकता हो, अ प िवराम का योग होता है।

(ii)

वा य म जब दो से अिधक पदो, पदां शो अथवा वा य म जहाँ ‘और’ का योग िकया जा सकता हैः अ पिवराम का योग होता है, जैसे- भारत म िह दू, मुसलमान, िसख् और ईसाई सभी को समान अि णकार ा है। आ मा, अजर, अमर और अिवनाशी है। वह रोज आता है, काम करता है और चला आता है।

(iii)

भावावेश म जहाँ श द भी पुनरावृि होती है, वहाँ अ पिवराम का योग होता है, जै◌ेसे नह , नह ऐसा कभी नह हो सकता। देखो, देखो, िपताजी घर लौट आए।

(iv)

यिद वा य म कोई अ तवती वा य ख ड आ जाय तब अ पिवराम का योग होता है, जैसेआल य चाह िजस प म हो, यि को द र बनाता है। ोध चाह जैसा भी हो, मनु य को दुबल बनाता है ।

(v)

यिद वा य के बीच म पर, इसीसे, इसिलए, िक तु, पर तु, अतः, य िक िजससे तथािप आिद अवयव का योग होता हो, वहॉ अ पिवराम लगाया जा सकता है, उदाहरण देख-े वह िनधन है, िक तु बेईमान नह । 69

म यवसायी हॅू , इसिलए सफल होता हं। ऐसा कोई काम न करो, िजससे अवयश िमले। वह वापस आ गया, य िक बाजार ब द था। (v)

व तुतः अ छा, बस, हाँ, नह , सचमुच, अ ततः आिद से ार भ होने वाले वा य म इन श द के बाद अ पिवराम लगता है, जैसे अ छा, कब िमलगे, नह , म वहाँ नह जाऊँगा।

4. (i)

योजक िच - योजक िच का योग िन निलिखत अवसर पर िकया जाता है समास से बने पदो मिदन-रात, दाल-चावल

(ii)

समान अथ वाले यु म श द म पया-पैसा, मान-मयादा

(iii)

िवलोम श द के बीचराजा-रं क, अपना-पराया

(iv)

एक श द क पुनरावृि म घर-घर, अ छा-अ छा

(v)

िनि त तथा अिनि त सं यावाचक श द म तीन-चार, कम-से-कम

(vi)

दो श द के बीच का, क के लु होने पर लेखन-कला, ज म-भूिम, श द-सागर, राम-लीला

(vii) श द के बीच ही, से, का, न, का योग होने पर िकसी-न-िकसी, यो-का- यो, आप-ही-आप, बहत-सा (viii) दो ि याओं के एक साथ यु होने पर कहना-सुनना, खाना-पीना (ix)

मूल ि या के साथ यु

ेरणाथक ि या के बीच-

सीखना-िसखाना, पीना-िपलाना 70

(x)

दो िवशेषण पद का सं ा के अथ म योग होने पर काला-गौरा, मूख-बुि मान

5.

6.

नवाचक-िच - नवाचक वा य के अ त म पूण िवराम का योग न होकर िच ( ? ) लगाया जाता है, जैसे-तुम कहाँ जा रही हो?, तु हारा या नाम है?

नवाचक

इसके अित र अिन य भाव वाले वा य तथा यं गयोि य म भी नवाचक िच लगाया जाता है, जैसे- आप शायद िद ली जा रहे है? ाचार आजकल का िश ाचार है, है न? िव मयोिदबोधक िच - हष, िवषाद, िव मय, घृणा, आ चय, क णा, भय आिद भाव को य करने वाले वा य म िव मयािदबोधक िच का योग िकया जाता है, इसके साथ ही शुभकामनाएँ देने तथा यं यपूण वा य म भी उसका योग होता है, जैसे वाह! िकतनी सु दर है यह लड़क ! भगवान तुमको दीघायु आयु दे ! उफ! वह इतनी नालायक है! िछःिछः! तुम इतने ग दे हो!

कभी-कभी एक से अिधक िव मयािदबोधक िच का योग भी एक साथ िकया जाता हैराजीव गां धी का िनधन! शोक!! महाशोक!!! अ य िच - कु छ अ य िच को भी िवराम िच के अ तगत रखा जाता है, डॉ. भोलानाथ ितवारी ने ऐसे िच के संदभ म िलखा है , ‘‘य िप वा तिवक प म इ ह िवराम िच ने कहकर ‘िच ’ कहना अिधक उपयु होता है, य शु लेखन और पठन क ि से इनक भी जानकारी भी उपयोगी है।

7.3 अ य िवराम िच उपयु िच के अित र कु छ ऐसे िच होते हे जो शु लेखन एवं पठन क ि से उपयोगी होते है। इस तरह के िवराम िच न िन नां िकत है िवराम के भेद

िच

1.

िववरण िच

(:-)

2.

उ रण िच

(‘ ’)

3.

को क िच

( ), { }, [ ]

4.

सं प सूचक िच

( .)

5.

िब दु रेखा

(.............)

6.

िनदश िच

(-) 71

इनका योग िन नानुसार होता है 1.

िववरण िच - िकसी िवषय को िव तार से समझाने अथवा त य का िववरण देने के िलए सं केत प म िववरण िच ( या:-) का योग होता है, जैसे -

(1)

आज क बैठक म िवचारणीय त य है:

(2)

(क)

समाज म बढ़ता अपराध।

(ख)

िश ा यव था म राजनीित।

बीस सू ीय काय म इस कार है:(क)

2.

......................................................

(ख) ...................................................... उ रण िच - यह दो कार के होते ह - इकहरा (‘ ’) तथा दोहरा (‘‘ ’’) जब िकसी िवशेष पद, श द या वा य को उ रण के प म िलखा जाता है, तब इकहरे उ रण िच का योग होता है, जहाँ िकसी पु तक से कोई वा य या अवतरण य का य उ ृ त िकया जाता है वहाँ दुहरे उ रण िच का योग िकया जाता है। पु तक, समाचार-प , लेखक का उपनाम, किवता, कहानी का शीषक आिद िलखते समय इकहरे उ रण िच का योग िकया जाता है, जैसे - ‘रामच रतमानस’ तुलसी दास क सव े कृ ित है, ‘िह दु तान’ िह दी का एक मुख दैिनक प है, ‘अ ेय’ िह दी के े किव थे, ितलक ने कहा था- ‘‘ वतं ता हमारा ज म िस अिधकार है’’।

3.

को क िच - लेखन म सामा यतः ( ) को क का ही योग होता है, को क के अ य िच का योग गिणत म िकया जाता है। वा य म यु िकसी श द या वा यां श को प करने के िलए को क िच का योग होता है, जैसेअनेक भारतवासी बापू (महा मा गाँधी) के अन य भ ह? गेटे (जमनी का एक िस किव) के कथन अ य त ेरणा द ह।

4.

सं ेपसूचक श द - िकसी श द या पद के संि प के बाद इसका योग िकया जाता है, जैसे- कृ .पृ.उ. (कृ पया पृ उलिटये), बी.ए. (बैचलर ऑफ आट,) डॉ. (डा टर), डी.िलट. (डॉ टर ऑफ लैटस/िलटरेचर)

5.

िब दु रेखा - वा य म लु , अ ात या िलखे न जाने यो य अंश को सूिचत करने के िलए िब दु रेखा (...............) का योग िकया जाता है, जैसे 72

सीता पास हो जाती, पर तु ................. इस कॉलेज म सब ............... है, पर तु .................... नह है। कथा सािह य िवशेषकर नाटक म िब दु रेखा का चुर योग देखा जा सकता है। 6.

िनदश िच - िनदश िच (-) का योग िन निलिखत प म होता है जैसे - इंगलै ड, अमे रका, स, भारत आिद, बड़े आदिमय - महा मा गाँधी, जवाहरलाल नेह , सुभाषच बोस क िच तन प ितयाँ ायः समान थ ।

7.4 सारां श तुत इकाई क पढ़कर आप िवराम िच क जानकारी और उनका योग करना सीख गए ह। इनके समुिचत उपयोग से आपक भाव और अिभ यि म प ता आती है अ यथा अथ का अनथ होने क आशं का बनी रहती है।

7.5 अ यासाथ



1.

िवराम िच िकसे कहते है? इसके िविवध भेद का उ लेख क िजए?

2.

िह दी के मुख िवराम िच का या मह व है?

3.

योजक िच और िनदश िच म अ तर िलिखए।

4.

पूण िवराम, अ िवराम और अ पिवराम म अ तर बताओ।

5.

िह दी के सभी िवराम को उनके िच के साथ िलिखए।

7.6 सं दभ ं थ 1

डॉ. धीरे वमा: नवीन िह दी याकरण, िह दी मंिदर, इलाहाबाद

2

कामता साद गु : िह दी याकरण, काशी नागरी चा रणी वाराणसी

3

पि डत ीलाल, भाषा च ोदय (भारतवष य िह दी भाषा का याकरण)

4

धीरे वमा: िह दी भाषा का इितहास, िह दु तान अकादमी इलाहाबाद।

5.

िकशोरीदास वाजपेयी: िह दी श दानुशासन, नागरी चा रणी सभा. वाराणसी 1958

6.

िकशोरीदास वाजपेयी: भारतीय भाषा िव ान, चौख भा िव ा भवन वाराणसी 1959

7.

िकशोरीदास वाजपेयी: िह दी क वतनी एवं श द िव लेषण, नागरी चा रणी सभा. वाराणसी 1968 73

इकाई 8 मु हावरे व लोकोि का मह व इकाई क 8.0 8.1

परेखा

उेय तावना

8.2

कितपय मुहावरे उनका अथ एवं वा य योग

8.3

किपतय लोकोि , उनका अथ एवं वा य योग

8.4

मुहावरे और लोकोि य अ तर

8.5

मह व

8.6

सारां श

8.7

अ यासाथ न

8.8

सं दभ ं थ

8.0 उ े य इस इकाइ के अ ययनोपरां त आप  मुहावरे का अथ एवं उनक उपयोिगता जान सकगे।  इसी कार लोकोि का अथ एवं उनक उपयोिगता भी जान सके ग।  कितपय मुहावरे व लोकोि य का अथ एवं वा य म योग क जानकारी ा कर इनका वा य योग करने क मता म अिभवृि कर सके ग।

8.1 तावना िह दी भाषा : रचना कौशल का एक मह वपूण भाग है :- मुहावरा और लोकोि । मुहावरा व लोकोि से भाषा म रोचकता और चुटीलापन आ आता है। ततु इकाइ म कितपय मुहावरे एवं लोकोि य के अथ एवं वा य योग का अ ययन कर िव ाथ वय अपनी भाषा को रोचक भावी व ला िणक बना सकते है। िह दी म मुहावर एवं लोकोि य क सं या असं य है। इनके श दकोश तैयार िकए गए ह सं सार क सभी भाषाओं म मुहावर और लोकोि य का चलन है। िजनके िनमाण के पीछे देश क सं कृ ित पर पराओं, सामािजक थाओं एवं भौगोिलक प रि थितय एवं लोकोि य का भी योगदान 74

रहा है। लोकोि और मुहावरे का योग भाषा म रवानगी, ताजगी और अिभ यि म सं ि ता लाने के िलए िकया जाता है। मुहावरे एवं लोकोि के योग म दो बात पर िवशेष यान िदया जाना चािहए। थम (1) वा य म योग करते समय लोकोि और मुहावरे का ही योग िकया जाए न िक उसके अथ वाले श द का। उदाहरण के िलऐ कमर कसना मुहावरे का अथ है- तैयार होना अत: वा य म योग करते समय ‘कमर कसना’ का ही योग हो ‘तैयार होना’ अथ का नही। ि तीय (2) वा य म योग इस तरह से िकया जाए िक अथ अ छी तरह प ट हो जैस-े राम ने मनोज क ऑख म धूल झ क दी - इस वा य म अथ क प टता नह होती है। अत: योग इस तरह करना चािहए- ‘‘मनोज बहत सतक रहता था, अभी तक कोइ भी उसे धोखा नह दे पाया िकं तु राम ने तो िफर भी अपनी चालाक से उसक ऑख म धूल झ क ही दी।’’

8.2 कितपय मु हावरे उनका अथ एवं वा य योग प रभाषा - वह वा यां श िजसका योग सामा य अथ म न होकर िवशेष अथ म हो, मुहावरा कहलाता है। जैसे ‘उड़ती िचिड़या पहचानना’ इसका योग सामा य अथ म इस कार होगा - ‘‘ या तुम इस उड़ती िचिड़या को पहचानते हो? िक तु जब इसका योग सामा य अथ म न होकर एक िवशेष अथ म िकया जाता है तब उड़ती िचिड़या पहचानना’ एक मुहावरा बन जाता है और इसका अथ होता है िकसी क िदल क बात पहचान जाना, जैसे - अरे इनम या छु पा रहे रहे हो? हम वह श स है जो उड़ती िचिड़या पहचान लेते है। इस कार प ट है िक मुहावरे के योग से अिभ यि िविश ट और ला िणक हो जाती है। िह दी म मह वपूण मुहावरे , उनका अथ और वा य म योग िव ािथय के िलए िन नानुसार िदए जा रहे हमु हावरे (अथ और वा य म योग) 1-

अँगठू ा िदखाना (साफ इनकार कर देना) जब िव ालय िनमाण के िलए मैने सेठजी से दान माँगा तो उ होन अँगठू ा िदखा िदया।

2-

अपने पांव पर कु हाड़ी मारना ( वयं अपनी हािन करना)- पहलवान से झगड़ा मोल लेकर मैने अपने पॉव आप कु हाड़ी मार ली।

3-

अपने मुहँ िमयाँ िम बनना ( अपनी शं सा वयं करना) आजकल के नेता अपने मुहँ िमयाँ िम बनने से तिनक सं कोच का अनुभव नह करते।

4-

आँखो का तारा होना (बहत यारा) - येक ब चा अपनी माँ के िलए आँखो का तारा होता है।

5-

अपने पैर पर खड़ा होना (आ मिनभर होना)- वतमान समय म येक लड़क को अपने पैरो पर खड़ा होना चािहए। 75

6-

आसमान पर चढ़ना (बहत अिभमान करना) जव से राके श आर.ए.एस. बना है, तब से उसका िदमाग आसमान पर चढ़ गया ह।

7-

आकाश के तारे तोड़ना (असं भव काम करना) नरेश ने हीन है, पर उसने परी ा म अ वल थान ा ा िकया यह तो आकाश से तारे तोड़ने के समान है।

8-

एड़ी चोटी का जोर लगाना (बहत य न करना) ितयोिगता परी ा म सफलता ा करने के िलए योगेश ने एड़ी चोटी का जोर लगा िदया।

9-

ऐसी तैसी होना (बहत बुरा होना, गत बनना) - पाक कला म वयं को सव े ठ मानते हए भी, कल पाट के खाने मलता क ऐसी तेसी हो गई।

10-

कं गाली म आटा गीला होना (अभाव म अिधक हािन होना) - सुरेश गरीब तो था ही उस पर उसक गाय मर गयी यह तो कं गाली म आटा गीला गली बात हो गइ।

11-

कफन िसर पर बाँधना (मरने के िलए तैयार होना) - भारत देश के जवान कफन िसर पर बां ध कर सीमा पर तैनात रहते है।

12-

कलेजे का टु कड़ा होना - (बहत ि य होना) राम कौश या के कलेजे के टु कड़े थे।

13-

कलेजा फटना (बहत दुख होना) अपनी माँ को मृ यु शै या पर देखकर मेरा कलेजा फट गया।

14-

कलेजे पर सांप लोटना (इ या से जलना) - जब रमेश क सरकारी नौकरी लगी तो कमलेश के कलेजे पर सॉप लौटने लगा।

15-

कान का क चा होना (िबना सोच-समझे बात पर िव वास करना) र ना क बात ामािणक नह होती य िक वह कान क क ची है।

16-

कान पर जू न रगना (बार-बार कहने पर भी असर न होना)- मोहन को रोजगार ढूं ढने क बात बार-बार कहने पर भी उसके कान पर जू भी नह रगी।

17-

कान भरना (चुगली करना) – ल मी ममता को पस द नह करती इसिलए उसने ममता के ित ि सं पल के कान भर िदये।

18-

को ह का बैल (लगातार काम म लगे रहना) - को ह का बैल बनकर भी सीता दो व त क रोटी का इंतजाम नह कर सक ।

19-

िकताब का क ड़ा (हर समय पढ़ते रहना) - रोहन को बड़ा अफसर बनना था इसिलए वह िकताब का क ड़ा बन गया।

20-

खाला जी का घर होना (आसान काम) आजकल रसूख वालो के िलए तो नौकरी पाना खाला जी का घर है। 76

21-

खून का घूँट पीना (अपने ोध को भीतर ही भीतर सहना)- सास ारा अपमािनत होने पर भी राखी खून का घूँट पीकर रह गइ।

22-

िख ली उड़ाना (हँसी उड़ाना)- बाल िभखा रय को देखकर उनक िख ली उड़ाना स जन लोग का काम नह है।

23-

गागर म सागर भरना (बड़ी बात को थोड़ै श द म कहना) रीितकाल के किव िबहारी ने अपने दोह म गागर म सागर भरा है।

24-

गाल बजाना (बढ़ा-चढ़ाकर अपनी शं सा करना) रोिहत कल के ि के ट मैच म कु छ अ छा करके िदखाओ, गाल बजाने से काम नह चलेगा।

25-

िगरिगट क तरह रं ग बदलना (िस ा तहीन होना) कमला क पड़ोिसन िवमला िगरिगट क तरह रं ग बदलती है।

26-

गु सा पीना- ( ोध को रोकना ) - उस िदन लड़ाइ के समय अजुन ने गु सा पी कर बात को सं भाला।

27-

गुदड़ी का लाल (िनधन प रवार म ज मा गुणी यि ) – वै ािनक सोच वाले अ दुल कलाम गुदड़ी के लाल है।

28-

गुड़ गोबर कर देना (बनी बात िबगाड़ देना)- हा य किवता के काय म म बेह दी किवता गाकर किव ने शाम का गुड़ गोबर कर िदया।

29-

घड़ो पानी पड़ जाना (बहत शिमदा होना) - धीरज जैसे सब-इ पे टर को र वत लेते हए देखकर मान लोग पर घड़ो पानी पड़ गया।

30-

घर का िचराग (घर क आशा) आज भी घर म पु -र न को घर का िचराग मानते है।

31-

घाव पर नमक िछड़कना (दुखी को और दुखी करना)- मोहन ितयोिगता परी ा म िवफल हो गया पर तु उसके िम बार बार उसका प रणाम के बारे म जानकर कर उसके घाव पर नमक िछड़क रहे थे।

32-

घाट-घाट का पानी पीना- (अ यं त अनुभवी होना) जमुना को बहत यावहा रक ान है उसने घाट-घाट का पानी पीया है।

33-

घी के िदए जलाना (खुिशयाँ मनाना) भारत ारा ि के ट म िव वकप जीतने पर आम जनता ने घी के दीपक जलाये।

34-

घुटने टेकना (हार मान लेना) दािमनी के आरोिपय को कानून के सामने घुटने टेकने ही पड़े।

35-

घोड़े बेचकर सोना। (िनि ं त होना) राधा अपना गृह काय कर आज इतना थक गइ िक घोड़ै बेचकर सो गइ। 77

36-

चाँदी होना (लाभ ही लाभ होना) बलवान क सरकारी नौकरी तो लग गइ थी पर अब उसका करोबार भी अ छा चल पड़ा है अब तो उसक चाँदी ही चाँदी है।

37-

चादर से बाहर पैर पसारना (आमदनी से अिधक खच करना) - रघु साधारण िकसान है पर वह लाख क जमीन लेना चाहता ह पर उसे कौन समझाये िजतनी चादर है उतने ही पैर पसारने चािहए।

38-

चारपाइ पकड़ना (बीमार होना) - मोहन के मामा व थ है पर अब अचानक उ होने चारपाइ पकड़ ली है।

39-

िचराग तले अँधेरा (मह वपूण थान के समीप अपराध या दोष पनपना) यायमूित का पु होते हए भी याय के िव काय िकया यह तो वही बात हो गइ िक िचराग तले अंधेरा होता है।

40-

िचकना घड़ा- (बेअसर) - सोहन इतना िबगड़ गया था िक माता-िपता क बात का उस पर कोइ असर नह होता था वह िचकना घड़ा बन चुका था।

41-

चेहरे पर हवाइयाँ उड़ना (घबरा जाना) पुिलस को आता हआ देखकर चोर के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ गयी।

42-

छ के छु ड़ाना (हराना)- भारत ने करिगल यु म पाक सेना के छ के छु ड़ा िदये।

43-

छठी का दूध याद आना (बहत दुखी होना) - आतं कवादी को पुिलस ने इतनी िपटाइ क िक उसे छठी का दूध याद िदला िदया।

44-

छाती से लगाना - (बहत यार करना) – वनवास के समय भरत को देखकर राम ने उ ह छाती से लगा िलया।

45-

छोटा मुहँ बड़ी बात (अपनी सीमा से बढ़कर बोला) टाचारी नेताओं ारा आदश पर भाषण देना छोटा मुहं बड़ी बात लगती है।

46-

जहर का घूँट पीना (अपमालन सहन करना) मािलक ने राधे को बहत डां टा पर तु नौकरी करना उसक िववशता है इसिलए वह जहर का घूं ट पीकर रह गया।

47-

जान पर खेलना (जोिखम उठाना) - भगतिसं ह भारत क आजादी के िलए जान पर खेल गये थे।

48-

टाँग अड़ाना ( यथ म दखल देना) - कइ लोग अपना काय नह करते बि क दूसर के काम म भी टां ग अड़ाते है।

49-

टाल-मटोल करना - (बहाने बनाना) - मोहन काय करने के िलए हाँ नही कहा बि क टालमटोल करने लगा। 78

50-

टेढ़ी खीर होना (बहत किठन होना)- आज के समय म नौकरी लगना टेढ़ी खीर से कम नह है।

51-

ठोकर खाना (ध के खाना) - कइ िडि याँ लेने के बाद भी रामकरण नौकरी के िलए ठोकर खा रहा है।

52-

ढाक के तीन पात (कोइ सुखद प रवतन न होना) सलीम नरेगा म काम करने लगा पर तु िफर भी उनके घर म कोइ प रवतन नह हआ वह ढ़ाक के तीन पात।

53-

ितल का ताड़ बनाना (छोटी सी बात को बढ़ा देना) ब चो क आपस क लड़ाइ इतनी बड़ गइ िक ितल का ताड़ बन गया।

54-

ितल रखने क जगह न रहना ( यादा भीड़ होना) - आप पाट के समथन म इतने लोग जमा हए िक ितल रखने क जगह नही िमली।

55-

थाली का बगन (िस ा त हीन यि ) राधामोहन धुत और अवसर वादी हैा समाज म उसक क छिव थाली के बगन जैसी है।

56-

दाँतो तले अंगलु ी दबाना (आ चयचिकत होना) - जादूगर के करतब देखकर दषको ने दाँतो तले अँगलु ी दबा ली।

57-

दाँत कटी रोटी होना (प क दो ती होना) - सीता और गीता क दो ती दाँत कटी रोटी है।

58-

दाँत ख े करना (हराना) भारतीय हॉक टीम ने जमनी क हॉक टीम के दां त ख े कर िदये।

59-

दाल म कु छ काला - (कु छ रह य होना) - सुरे और राजेश ने पुनीत के आत ही बाते बं द कर दी ज र दाल म कु छ काला है।

60-

दाल न गलना - (सफल न होना) - महाराणा ताप क वीरता के सामने अकबर क दाल न गली।

61-

दािहना हाथ - (बहत बड़ा सहायक) – बीरबल शहशांह अकबर का दािहना हाथ माना जाता था।

62-

िदन दूनी रात चौगुनी उ नित करना (अिधकािधक उ नित करना) हर िपता क यही इ छा होती है िक उसका बेटा िदन दूनी रात चौगुनी उ नित करे।

63-

दुम दबाकर भागना- (डर कर भाग जाना ) पुिलस को आता देख कर चोर दुम दबाकर भाग गया।

64-

दूध का दूध पानी का पानी (ठीक-ठीक याय करना) याय ऐसा होना चािहए िक दूध का दूध पानी का पानी हो जाये।

79

65-

दूर के ढोल सुहावने लगना (पूरे प रचय के अभाव म कोइ व तु आकषक लगना) आज क पीढ़ी भारत जैसे देश को छोड़कर िवदेश म जाना पसं द करते है। सही कहा है दूर के ढोल सुहावने लगते है।

66-

दो नाव पर पैर रखना (एक साथ दो ल य को ा करने क चे टा करना )- िजते या तो तुम पढ़ाइ कर लो या दुकानदारी कर लो। इस कार दो नाव पर पॉव रखने से तो कु छ भी तु हारे हाथ नह लगेगा।

67-

धि जयाँ उठाना (खंड -खंड कर देना) गाँधी ने अपने व य से अं ेज के थोथे तक क ध धि जयाँ उड़ा डाली।

68-

नमक हलाल होना (कृ त होना) - िकशन एक नमकहलाल नौकर है वह अपने मािलक को कभी धोखा नह देगा।

69-

नमक िमच लगाना (बढ़ा-चढ़ाकर कहना) - समाचार-प आजकल येक खबर को नमक िमच लगाकर छापते है

70-

नानी याद आना -(सं कट म पड़ना) खेल म राम ने सुरेश को नानी याद िदला दी।

71-

नाक म दम करना (बहत तं ग करना) - शैखर इतना शैतान है िक उसने अपने मामा क नाक म दम कर िदया है।

72-

नाक चने चबाना (बहत तं ग करना) िशवाजी ने मुगल सेना को अनेक बार नाक चने चबाएं ।

73-

नाक पर म खी न बैठने देना (अपने पर आ ेप न आने देना) राजनीित के दलदल म चाहे िकतने ही नेता भ य न हो पर आरोप को लेकर वह नाक पर म खी भी नह बैठने देते।

74-

नाक कटना (इ जत जाना) – याम एक इ जतदार युवक था पर चोरी क घटना करने के बाद उसक नाक कट गइ।

75-

नौ दो यारह होना (भाग जाना) - पुिलस को देखकर चोर नौ दो यारह हो गये।

76-

प थर क लक र (प क बात) - महान सं तो क बात हमेशा प थर क लक र होती है।

77-

पेट म चूहे कू दना (जोर क भूख लगना) - सफर के ध के खाने के बाद घर का वािद ट खाना देखकर पेट म चूहे दौड़ने लगे।

78-

पैर तले से जमीन िनकल जाना ( त ध रह जाना) राजे यादव क मृ यु क खबर सुनकर पाठक के पैर तले जमीन िखसक गइ।

79-

फू ला न समाना (बहत खुश होना) परी ा म सफल होने का समाचार सुनकर छा फू ला न समाया। 80

8.3 लोकोि याँ, उनका अथ एवं वा य योग प रभाषा - ‘लोकोि ’ वह लोक िस उि (कहावत) होती है जो िकसी िवशेष अिभ ाय को कट करने के िलए समय-समय पर लोग ारा कह और सुनी जाती है। यह वा याशं न होकर पूण वा य होती है। लोकोि याँ उपदेश नीित, युि (उपाय) के िलए भी यवहार म चिलत है। लोकोि के योग का उदाहरण इस कार है लोकोि

- सॉ ंप मरे न लाठी टू टे।’

अथ

- काम भी बन जाएं और नुकसान भी न हो।

सं ग

- जब िकसी से कोइ काय सहिलयत से करवाना हो।

योग

- अिधक डराने - धमकाने से यह आपके िव लो िक ‘सॉप मरे न लाठी टू टे।’

हो जाएगा, उससे इस तरह से काम

कितपय लोकोि याँ उनका अथ एवं वा य म योग इस कार है लोकोि का अथ एवं वा य योग 1-

अंधी पीसे कु ा खाए (कमाए कोइ, खाए कोइ)- वतमान समय म ‘अंधी पीसे कु ा खाए’ वाली ि थित हो रखी है पूं जीपित वग मजदूर क कमाइ पर जीवन यतीत कर रहे है।

2-

अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग- (सबका अलग-अलग मत होना) मैना के घर म एकता नह है योिक सभी के अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग वाली ि थित है।

3-

अधजल गगरी छलकत जाए- (थोड़ा ान या धन रखने वाले अिधक अिभमान का दशन करते है।) इस िकसान के पास कु ल पांच बीघे जमीन है पर तु भूिमपित होने क ड ग मारता िफरता है। इसे ही कहते है अधजल गगरी छलकत जाए।’’

4-

अके ला चना भाड़ नह फोड़ सकता (अके ला आदमी कु छ नही कर सकता) - मोहन ने अपनी हॉक क टीम को जीताने के िलए यास िकया पर तु अके ला वह या कर सकता था सही है अके ला चना फाड़ नह फोड़ सकता।

5-

अब पछताए होत या जब िचिड़या चुग गइ खेत (पहले प र म न करके बाद म यथ पछताना) सीता पहले तो तुम मौज म सोती रही और अब अनु ीण होने पर पछता रही हो। अब पछताए होत या जब िचिड़या चु ग गइ खेत।

6-

अपना हाथ जग नाथ ( वयं का काय सबसे अ छा होता है) गाँधीजी अपना काम वयं करते थे। उनका मानना था अपना हाथ जग नाथ।

7-

आप भला तो जग का भला ( वयं का काय सबसे अ छा होता है) सं तो क सोच यही होती है िक आप भला तो जग भला। 81

8-

आधी छोड़ सारी को धावै, आधी िमले न सारी पावै। लालच छोड़कर थोड़े म ही सं तोष करना चािहए, लालची को कु छ भी नह िमलता) लोभी होकर राम पाख ड के झां से म आ गया और अिधक धन के लालच म जो था वो भी गं वा बैठा यह तो वही बात हो गइ आधी छोड़ सारी को धावै, आधी िमले न सारी पावै।

9-

आए थे ह रभजन को ओटन लगे कपास (आव यक काय को छोड़कर अनाव यक काय म उलझ जाना) म पु तकालय म िनबंध खोजने गया था, िक तु वहॉ जाकर कहािनयाँ पढ़ने लगा। वह बात हइ- आए थे ह रभजन को ओटन लगे कपास।

10-

आगे कु आँ पीछे खाइ (सभी और से िवपि आना) अिनता गरीब तो थी और डॉ टर ने उसे कसर बता िदया। उसके िलए तो मानो आगे कु आ पीछे खाइ वाली बात हो गइ।

11-

आम के आम और गुठली के दाम (दोहरा लाभ) - ेशरकु कर का उपयोग िकया तथा पुराना होने पर उसे िफर कं पनी को दे िदया। यह तो आम के आम और गु ठली के दाम वाली बात हो गइ।

12-

ऊँट के मुहँ जीरा (आव यकता अिधक लेिकन िमलना बहत कम) मुझे भूख इतनी जोर क लगी थी पर तु िटिफन म दो रोटी ही थी यह तो ऊँट के मु ँह म जीरे वाली बात हो गइ।

13-

ऊँची दुकान फ का पकवान (िदखावा अिधक और त व कम) वैवािहक सािड़य क दुकान पर तु िववाह के लायक एक भी साड़ी नह यह तो ऊँची दु कान फ का पकवान वाली बात हो गइ।

14-

उ टा चोर कोतवाल को डाँटे (अपना दोष वीकार न करके पूछने वाले को दोशी ठहराना ) एक तो मेरे पये चुराए, दूसरे अपराध वीकार करने क अपे ा मुझै ही आँखे िदखाता है। उ टा चोर कोतवाल को डाँटे।

15-

एक तं द ु ती हजार िनयामत ( वा य बहत बड़ी चीज मोहन अमीर श स है पर तु अपने से कोइ काय नह कर पाता है। उिचत कहा है िकसी ने एक तदु ती हजार िनयामत।

16-

एक तो चोरी, दूसरे सीनाजोरी (अपराधी होकर उ टे अकड़ िदखाना) एक तो मुझै गाली दी और अब मुकर रहे हो। अरे वाह एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी।

17-

एक तो करेला कडु आ दूसरे नीम ढ़ा ( वाभािवक दोष का िकसी कारण से बढ़ जाना) मोहन जुआरी तो था ही अब शराबी क सं गत म रहने लग गया। इसी को कहते है- एक तो करेला कडु आ दू सरा नीम चढ़ा।

18-

एक हाथ से ताली नह बजती (झगड़े म दोन प कारण होते है) म कै से मान लूँ िक तुमने याम को अपष द नह करे और उसने तु हे पीट िदया। एक हाथ से कभी ताली नह बजती। 82

19-

एक यान म दो तलवार समा नह सकती (एक व तु के दो समान अिधकारी नह हो सकते) राधा को पता चला िक उसक दु मन सीता भी वही नौकरी करती है तो उसने बॉस को साफ कह िदया एक यान म दो तलवार नही रह सकती।

20-

एक अनार सौ बीमार (एक व तु के अनेक ाहक) - नौकरी के िलए एक र आवदेन इनते सारे यह तो एक अनार सो बीमार वाली बात हो गइ।

21-

एक पं थ दो काज (एक काम से दोहरा लाभ) मुझे मंिदर तो जाना ही था और रा ते म दीदी से भी िमलकर आ गइ यह तो एक पं थ दो काज वाली बात हो गइ।

22-

ओखली म िसर िदया तो मूसल से या डर (िकसी काय को करने क ठान ली तो क ट से या डरना) जब फौज म नौकरी करनी ही है तो यु और गोले बा द से या डरना। ओखली म िसर िदया तो मू सल से या डरना।

23-

कहाँ राजा भोज कहाँ गं गू तैली - (दो असमान यि य क तुलना) तुम अपने गलीमौह ले के ि के ट िखलाड़ी क तुलना सिचन से कर रहे हो कहॉ ं राजा भोज कहॉ गं गू तेली।

24-

कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर- (एक दूसरे क सहायता लेनी ही पड़ती है।) जीवन भर माँ-बाप ब चे क सहायता करते रहे। आज वह माँ-बाप ब चे क सहायता से िदन काट रहे है यह तो ऐसा ही है- कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर।

25-

कह क इट कह का रोड़ा भानुमती ने कु नना जोड़ा (असं गत व तुओ ं का मेल बैठाना, िबना िसर-पैर का काम करना) आज राजनीितक दल के िवचार आपस म मेल नह खाते है ऐसा लगता है मानो कह क इट कह का रोड़ा भानु मती ने कु नवा जोड़ा।

26-

काठ क हाँड़ी बार-बार नह चढ़ती (बेइमानी बार-बार नह चलती) दूिधया दूध म ितिदन पानी िमलाता था एक िदन रं गे हाथो पकड़ा गया। ठीक ही कहा है काठ क हॉडी बार-बार नह चढ़ती।

27-

काला अ र भस बराबर (िब कु ल अनपढ़) िकशनलाल अनपढ़ है उसके िलए तो काला अ र भैस बराबर है।

28-

का बरखा जब कृ िष सुखाने (काम िबगड़ने पर सहायता यथ होती है) रोगी के मरने के प चात् डॉ टर वहॉ पहंचा, अब या करना था का बरखा जब कृ िष सु खाने।

29-

कोयले क दलाली म मुहं काला (दुजन क सं गित से कलं क लगता है) चोर क सं गित म रहने के कारण िनद ष याम भी पुिलस क िगर त म आ गया। कोयले क दलाली म मु ँह काला होता है।

83

थान और

30-

खग जाने खग क भाषा (चालाक ही चालाक क भाषा समझता है) ये दोन ब चे न जाने इशार म या बाते करते है। मुझे तो कु छ भी समझ म नह आता। खग जाने खग क भाषा।

31-

खरबूजे को देखकर खरबूजा रं ग बदलता है (बुरी सं गित का भाव अव य पड़ता ह) कॉलेज म जाते ही मेरा भोला-भाला भाइ ने जाने कै से अफलातून हो गया है। जब देखा, िफ म, वीिडय क बात करते हए उसका मन नह भरता। सच ही, खरबूजे को देखकर खरबूजा रं ग बदलता है।

32-

िखिसयाइ िब ली खंभा नोचे (अपनी शम िछपाने के िलए यथ का काम करना, अपनी खीझ िनकालना) रोिहत ने बॉस से तो कु छ नही कहॉ सारा गु सा अपनी प नी पर िनकाल िदया िखिसयाई िब ली खं भा नोच।

33-

खोदा पहाड़ िनकली चुिहया (प र म अिधक, फल कम) बम क खबर सुनकर सभी परेशान हो गये और अंत म पता लगा क खाली िड बा था। यह तो वह बात हो गइ। खोदा पहाड़ िनकली चु िहया।

34-

जाके पैर न कटै िबवाइ सो या जाने पीर पराइ (िजसम दुख नह भोगा, वह दुखी जन का क ट न ह समझ सकता) वतमान लेखक वातानुकूिलत क म बैठ कर द र ता का भावपूण िच ण नह कर सकते है। जां के पैर न फटै िबवाइ, सो या जाने पीर पराइ।

35-

जैसा देश वेसा भेष - (जहॉ रहो, वहॉ ं वैसी रीित से चलो) घन याम ामीण है िक तु शहर म जाने के बाद वह शहर जैसे हो बया । सही कहॉ गया है जैसा देश वैसा भेष।

36-

नाच न जाने आँगन टेढ़ा ( वयं अयो य होना, दोष दूसरो को देना) सिवता को कपड़े सीना तो आता नह दोष मशीन का बताती है। इसी को कहते ह- नाच न जाने आँगन टेढ़ा।

37-

न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसरु ी (िववाद को जड़ से ही न ट कर देना) यिद झगड़े का मूल कारण म हॅू तो मै ही यहॉ से चली जाती हॅू ने रहेगा बॉस न बजेगी बासुं री।

38-

बं दर या जाने अदरक का वाद (मूख यि गुण का आदर करना नह जानता) नयी किवताओं क समझ आज कल के िफ म ेमी युवाओं को है। सही कहा है ब दर या जाने अदरक का वाद।

39-

लेना एक न देना दो (िबना मतलब) झगड़ा मेरा और मेरे भाइ का है। तुम बीच म कौन होते हो- लेना एक न देना दो।

40-

होनहार िबरवान के िचकने पात (होनहार यि य का बचपन म ही पता चल जाता है।) महारानी ल मीबाइ बचपन म ही पे वा के पु से होड़ िकया करती थी। बड़ी होकर उसने अंगरे ् ज को नाक चने चबवाए) सच है होनहार िबरवान के होत िचकने पात।

8.4 मु हावरे और लोकोि य अ तर 84

लोकोि और मुहावरे अपने गुण के कारण एक समान तीत होते है पर तु इनम अ तर भी िव मान है। मुहावरे वा यांश (वा य के अंश ) होते है और उनका अलग वतं प से योग नह होता जबिक प क ि से लोकोि या कहावत पूण वा य होती है। ये वतं होती है और स पूण स य अथवा िवचार को य करती है। उदाहरण के िलए ‘‘तेते पॉ ंव पसा रये, जेती ला बी सौर-’ खरबूजे को देखकर खरबूजा रं ग बदलता है, अंधा या चाहे दो ऑखे, अब पछताए होत या जब िचिड़या चुग गइ खेत- ये सभी लोकोि याँ है जो वतं प से पूण को एक वा य के साथ कट करती है। इसी तरह दाँत ख े करना, िदन िफरना, हवा लगना, िचकना घड़ा- ये सब ि यापद मुहावरे है जो वा य म सं ग के अनुसार अथ म िवल णता या चम कार उ प न करते है। लोकोि को हम वा य के अंश के प म योग म नह लाते है। मुहावरे का िविश ट अथ ही उपयोगी होता है।

8.5 मह व मुहावरे एवं लोकोि य क ि से िह दी बहत समृ भाषा है। दोन क अपनी उपयोिगता है। मुहावरो के योग से अिभ यि म ला िणकता और भाषा म सु दरता आ जाती है। मुहावरे म यु श दावली ने कु छ ऐसा जादू सा होता है जो सर चढ़कर बोलता है। जैसे एक मुहावरा है- ‘आग लगा देना’। यिद यह कहा जाए िक - लुटेर ने गॉ ंव को लूटने के बाद वहां आग लगा दी, तो इस वा य म ‘आग लगा दी’। ि या का योग सामा य अथ म माना जाएगा िक तु इस पद का मुहावरे दार योग इस कार है राम का तो यही काम रह गया है िक वह घर-घर म आग लगाता िफरे। यहॉ आग लगाने का अथ ऐसे यि क हरकत के िलए आया है जो झूठी स ची बाते बनाकर लोग म फू ट पैदा करता है। इस कार प ट है िक इस मुहावरे के योग से अिध यि म ला िणकता और रोचकता आ गइ है।

8.6 सारां श भाषा को सु दर, रोचक और भावपूण बनाने के िलए मुहावरे और लोकोि यां अथवा कहावतो का योग िकया जाता है। सौभा य से हमारी िह दी भाषा लोकोि य और मुहावर से स प न है और ाय: अनचाहे ही आदतन लोग इनका उपयु योग कर िदया करते है और ऐसे योग से उनक वाणी म प टता रोचकता और साथकता तो झलकती ही है, उसके सौ दय म चार चां द भी लग जाते है। मुहावर व लोकोि का ठीक-ठाक अथ समझ कर वा य म उनका योग इस तरह करना चािहए िक उनका अथ उनके योग से ही प ट हो जाए।

8.7 अ यासाथ



1.

मुहावरे और लोकोि म या अ तर है?

2.

िन निलिखत मुहावर का अथ एवं वा य योग िलिखए? (क) सीने पर सांप लौटना

(ख) दाँतो तले अंगलु ी दबाना 85

(ग) नाक कटना 3.

(घ) कमर कसना

िन निलिखत लोकोि यां का अथ बताते हए वा य म योग क िजए(क) आम के आम गुठली के दाम (ख) अधजल गगरी छलकत जाय (ग) अब पछताये होत या जब िचिड़यां चुग गइ खेत (घ) कं गाली म आटा गीला।

4.

िन निलिखत लोकोि य तथा मुहावर का उनके अथ के साथ सही िमलान क िजए1. अके ला चना भाड़ नह फोड़ सकता - स चा याय करना। 2. घड़ो पानी पड़ना - एक य न से दोहरा फल िमलना। 3. अधजल गगरी छलकत जाए - लि जत होना 4. एक पं थ दो काज - एक आदमी कु छ नह कर सकता 5. दूध का दूध और पानी का पानी - ओछा यि इतराता अिधक है।

8.8 सं दभ ं थ 1

डॉ. धीरे वमा: नवीन िह दी याकरण, िह दी मंिदर, इलाहाबाद

2

कामता साद गु : िह दी याकरण, काशी नागरी चा रणी वाराणसी

3

पि डत ीलाल, भाषा च ोदय (भारतवष य िह दी भाषा का याकरण)

4

धीरे वमा: िह दी भाषा का इितहास, िह दु तान अकादमी इलाहाबाद।

5.

िकशोरीदास वाजपेयी: िह दी श दानुशासन, नागरी चा रणी सभा. वाराणसी 1958

6.

िकशोरीदास वाजपेयी: भारतीय भाषा िव ान, चौख भा िव ा भवन वाराणसी 1959

7.

िकशोरीदास वाजपेयी: िह दी क वतनी एवं श द िव लेषण, नागरी चा रणी सभा. वाराणसी 1968

86

इकाई -9 सं ेपण इकाई क परेखा 9.0 उ े य 9.1 तावना 9.2 सं ेपण का अथ और ि या 9.3 सं ेपण के आदश उदाहरण 9.4 सारां श 9.5 अ यासाथ न 9.6 सं दभ ं थ

9.0 उ े य इस इकाई के अ ययन के प चात आप –    

सं सं सं सं

ेपण का अथ एवं ि या समझ सकगे। ेपण क आव यकता को जान सकगे। ेपण के गुण क जानकारी ा त कर सकगे। ेपण के कु छ उदाहरण पढ़कर सं ेपण करना सीख सकगे।

9.1 तावना जीवन म बढ़ती आपाधापी और समय के दबाव के कारण हम अपने यवहार व काय को अिधक सारवान, साथक और सं ि त करने क आव यकता है और इसके िलए अपने भाव –िवचार को कम से कम श द म अिधकािधक प टता और पूणता के साथ य त करने क कला हम आनी चािहए। इस इकाई म आप इसी कला का अथात सं ेपण क ि या का अ ययन करगे। सं ेपण म मूल िवषय या कथनको पकड़ना होता है और उसके अनुसार उसका शीषक देना होता है। िदए गए अवतरण का एक ितहाई श द म सार िलखना होता है।

9.2 सं ेपण का अथ और ि या अथ – सं ेपण अपने आप म एक मौिलक रचना होती है िजसम मूल पाठ को लगभग एक ितहाई श द म इस कार िलखा जाता है िक उसका मूल (के ीय) िवषय या भाव प ट हो सके । ि या – सं ेपण क ि या से प रिचत होना आज के युग म िव ािथय के िलए अ य त आव यक 87

है। संि तीकरण मूल अंश का लगभग एक ितहाई रखना होता है और शीषक देना होता है। अत: इस काय को करने के िलए िन न ि या से गुजरना चािहए। 1 वाचन – वाचन का अथ है िजस ग ां श का सं ि तीकरण करना है, उसे पढ़ना। सव थम िव ाथ ग ां श को दो-तीन बार पढे और उसके मूल कथन को समझे िजससे आगे मह वपूण कम मह वपूण और कम मह वपूण त य (पं ि य ) को छांटने म सहायता िमलेगी। इस ि या म शीषक भी िमल जाता है। इस थम तर पर ही ग ांश के श द क मोटे प म िगनती कर लेनी चािहए िजससे एक ितहाई श द का अंदाज हो सके । 2 रेखां कन – मूल अवतरण (ग ां श) को दो तीन बार वाचन के बाद के ीय भाव से जुड़े वा य और श द को रेखां िकत कर देना चािहए। इस ि या म मह वपूण त य ही बच जाते है। 3 परेखा और भाषा सं रचना – रेखां िकत वा य और श द के आधार पर लगभग एक ितहाई श द म सं ेपण को िलखने क ि या परेखा होती है। यिद यह एक ितहाई से अिधक हो गई तो कम मह वपूण वाक् य वा यांश या श द को कम कर देना चािहए। इस काय के िलए भाषा सं रचना क कु छ िवशेष बात का यान रखने क आव यकता है जैसे 1 मूल पाठ के के ीय भाव को बताने वाले श द का अव य उ लेख हो। 2 एक ही अथ बार बार बताने वाले वा य छोड़ िदए जाए। 3 लोकोि , मुहावरे , कोई उदाहरण, उ रण िदए गए हो तो उ ह यथासं भव छोड़ िदए जाए। 4 वा यांश सूचक श द का योग िकया जाना चािहए जैसे जो ई वर म िव वास नह करता (नाि तक) उसके िलए नाि तक श द िलखा जाए। इसी पु तक क इकाई (वा यांश सूचक श द) म िव ािथय के िलए ऐसे श द क सूची दी गई ह, जो सं ेपण म सहायता करेगी। 5

श द चयन मह वपूण होता है अत: ऐसे श द का चयन करना चािहए जो यापक अथ को समझते हो। सहायक ि या, सवनाम और िवशेषण के योग को सीिमत कर श द क बचन क जा सकती है उदाहरण इस थान पर वे लोग रहते ह, जो न तो पढ़ सकते ह, न िलख सकते ह। उपयु त वा य का सं पे ण इस कार होगा

6

सं पे ण – इस थान पर अनपढ़ रहते ह। सं पे ण म अपनी तरफ से कोई िवचार, मत या प टीकरण हो िक कोई आव यकता

7

नह होती। दो पा क यिद वातालाप हो तो सं पे ण म उसे वातालाप शैली म न िलखकर

88

िववरणा मक शैली म िलखे। 4

शीषक – मूल पाठ के के ीय भाव से सं बिं धत रेखांिकत साम ी व भाषा सं रचना को यान म रखते हए ग ां श का शीषक रखना चािहए। सं ेपण ि या के इस चरण म शीषक का चयन मूल अवतरण के िकसी अ य त मह वपूण श द या श द से एवं नवीन श द के ारा भी िदया जा सकता है। सं ेपण का शीषक छोटा, सारगिभत, उपयु त और साथक हो, िजसम सं ेपण का सार समाया हो।

9.3 सं ेपण के आदश उदाहरण िव ािथय के िलए उदाहरण के प म किपतय अवतरण के सं ेपण के उदाहरण तुत करने के साथ साथ उनके किठन श द के अथ भी तुत कर रहे ह। पूव म िल खी गई सं ेपण ि या के िविभ न चरण को यान म रखते हए इनका अ यास िकया जा सकता है। िव ािथय को चािहए िक िन नांिकत अवतरण के सं पे ण के अभ्यास के बाद वयं अ य अवतरण के सं ेपण का अ यास कर ‘ उदाहरण -1 मेरा िम राम बाजार गया। मेरा पडौसी कै लाश भी उसके साथ बाजार गया। वहॉ उ होने क और र शा क ट कर देखी, िजससे नौ आदमी घटना थल पर ही पंच व को ा हए और दयनीय ि थित म अ पताल भेजे गये। राम ने मुझे बताया िक ऐसी घटना पहले कभी उसके सामने घिटत नह हई थी। सं ेपण शीषक - दु घटना मेरा िम राम और पडोसी कै लाश बाजार गये जहॉ उ होने एक अभूतपूव घटना देखी िजसम नौ आदमी मरे और चार िच ताजनक ि थित म अ पताल भेजे गये। किठन श द के अथ - पं च व को ा हए=मर गये। दयनीय=िचं ताजनक। ऐसी घटना जो पहले कभी घिटक नह हई = अभूतपूव घटना। उदाहरण - 2 वावल बन का गुण सभी को सरलता से ा हो सकता है। यह िकसी एक िवशेष जाित, िवशेष धम तथा िवशेष देश के िनवासी क स पि नह है। वावल बन सभी के िलए चाहे वे पूं जीपित हो या मजदूर, पु ष हो या ी, वृ हो या बालक, काला हो या गौरा, िशि त या अिशि त, येक समय, येक थान पर सुलभ है। इितहास सा ी है िक अ य त दीन तथा िनधन यि य ने वाल बन के अलौिकक गुण ारा महान् उ नित क है। समाचार-प बेचने वाला एिडसन एक िदन महान् उप यासकार 89

हआ। च गु नामक एक िनधन और साधारण सैिनक भारत का च वत स ाट हआ। हैदरअली आर भ म एक िसपाही था। वावल बन के कारण ही उसने दि णी भारत म अपना रा य थािपत िकया। ई वरच िव ासागर हमारे भारत के याित ा नर-र न है। कहा जाता है िक उ होने अं ेजी अ र का ान सड़क के िकनारे गड़े हए मील के प थर से ा िकया था। सं ेपण – शीषक - वावल बन का मह व वावल बन िकसी वग िवशेष क स पि नह ह। उस पर सभी वग के लोगो का समान अिधकार है। यह वह गुण है िजसके सहारे से िनधन यि भी उ नित कर सकता है। एिडसन, च गु , हैदरअली, ई रच िव ासागर जैसे वावल बी यि इसके वलं त उदाहरण है। किठन श द के अथ - स पि = धन। वृ = बूढ़ा। सुलभ = सरलता से ा । सा ी = गवाह। िनधन = गरीब। याित ा - िस । उदाहरण - 3 आ म िव वास आ म शि क ढ़ता और सफलता का ोतक है। िजस यि म यह होता है, वह अव य ऊँचा उठता है और सफलता ा करता है। िबना ढ़ आ मिव वास के वावल बन क वृि नह उठती और वावल बन के िबना कोई भी अपना उ थान नह कर सकता । िजनको अपनी काय स पादन शि म ही िव वास नह , वह सफलता का मुहं देख सके गा- स देह से खाली नह । याद रिखए आप अपनी यो यता पर िजतना अिव वास करगे, िजतना ही आप भय और शं का को अपने दय म थान देग,े उतने ही आप िवजय से - सफलता से- दूर रहेगे। चाहे आपका पथ िकतना ही कं टकाक ण और अ धकारमय य न हो पर आपके ा चािहए िक आप अपने आ म िव वास को - मानिसक धैय को - ितलां जिल ने दे। आपक शं काये और भय दूसर के िव वास को अिधक न करते है। यिद आप अपनेआपके ा पितत समझेग,े यिद आप समझेग िक आप साम यहीन है, आपका कोई मह व नही तो दुिनया भी आपको वैसा ही समझेगी। वह आपक बात क , आपक आवाज क कु छ भी क मत न आंकेगी। आपको संसार म ऐसा कोई उदाहरण नह िमलेगा, िजसने आपने आपको तु छ, हीन और बेकाम समझा हो और कोई महान् काय िकया हो। िजतनी यो यता का आप अपने अपने समझेग,े उतना ही मह वपूण काय भी आप कर सके ग। जब आप अिवचल साहस ारा स पािदत हए बड़े-बड़े काय और उनके कताओं का िव लेषण करेगे, तो उनका धान गुण आ म िव वास ही िस होगा। सं ेपण शीषक - आ म िव वास ही सफलता क कुं जी -

90

आ म िव वास मनु य को वाल बी बना कर उसे ऊँचा उठाता है और सफलता दान करता है। िजसको अपनी काय- मता म िव वास नह , जो अपने-आपको अयो य समझे वह या खाक उ नित करेगा? दुिनयां उसक आवाज क या क मत आंकेगी? इसिलए माग चाहे िकतना ही किठन हो, मनु य को आ म िव वास नह खोना चािहए। सं सार के सब महान् काय आ मिव वास के बल पर ही हए है। किठन श द के अथ - उ थान = उ नित। भय =डर। पथ = रा ता। कं टकाक ण = काँटो से भरा। ितलां जिल देना = छोड़ देना। पितत = िगरा हआ। साम यहीन = शि हीन। अिवचल = कभी िवचिलत न होने वाला। उदाहरण - 4 मूड िबगड़ना एक वाभािवक घटना है जो हर यि को होती है और हो सकती है। िवपरीत प रि थितय म का शा त रहना सं भव नह है। बड़े-बड़े धीरे-वीर और शां त कृ ित वाले यि भी ितकू ल घटनाओं म कभी-कभी मानिसक सं तलु न खो बैठते है। यह नैसिगक है िक िकसी भी अि य य अ िचकर प रि थित म हमारा मन न लगे, िमजाज नाशाद हो जावे या मूड िबगड़ जावे। िक तु आजकल युवक युवितय का मूड बात-बात म िबगड़ जाता है। आज का युवक समाज तुनक िमजाजी या अि थर-िचतता से भयं कर प से िसत है। बात-बात पर तुनक उठना उनका वभाव सा बन गया ह। इस तुनक िमजाजी या िणक बुि के कई कारण है िजनम मुख ह शारी रक दुबलता तथा अंहकार क अनाव यक वृि । झूठे दशन और यसन ने भी हमारे देश का वा य िगरा िदया है। आज आपको ऐसे िकतने युवक िमलं गे िजनके मुख से तेज बरस रहा हो, जो सु वा य के उदाहरण कहे जा सकते हो? कमर-तोड़ महंगाई, िगरता हआ जीवन तर, चाय तथा अ य उ जे क पदाथ का सेवन, धू पान क वृि एवं अ य आ मघाती कु टेव के कारण हमारा वतमान युवक समाज शारी रक एवं मानिसक दुबलता से िसत है। प रणाम व प हम दुबल और अश यि य से शाि त तथा धैय क आशा नह रख सकते है। बातबात म उनका तुनक उठना और उनके मूड का िबगड़ जाना वाभािवक है। सं ेपण शीषक -मू ड िबगड़ना िवपरीत प रि थितय म मानिसक सं तलु न का न रहना वाभािवक है। िक तु आजकल युवक-युवितय का बात-बात म मूड िबगड़ जाना एक रोग हो गया है। उनक तुनक िमजाजी उनक दुबलता तथा अहंकार क अनाव यक वृि कट करती है। झूटे दशनी , चाय, धू पान आिद क कु टेव ने उनको शरीर और धैय रख ही नही सकते है। ऐसी ि थित म बात-बात पर उनका मूड िबगड़ जाना कोई आ स क बात नह । किठन श द के अथ - ितकू ल - िवपरीत। नाशाद-अ स न। कु टेवा = बुरी आदत । वृि =बढ़ना। सं ेपण के िलए अवतरण

91

9.4 सारां श व तुत: सं ेपण (ग अवतरण का सं ि तीकरण) इस कार क कला है जो िदए गए अवतरण के सभी आव यक िब दुओ ं को घेर कर सारां श िलखने के कोशल का िवकास करती है। इसके अ यास से िवचार एवं भाव को हण करने क सं तिु लत शि िवकिसत होती है। अपनी बात को सं ि पत ओर भावी प से बोलने और िलखने क शैली का अ यास होता है।

9.5 अ यासाथ



1 2 3 4

सं ेपण का अथ और ि या का उ लेख क िजए। सं ेपण य आव यक है? सं ेपण का शीषक कै सा होना चािहए। िन न अवतरण को पढ़कर सं ेपण िलिखए।

(क)

कहते है मौन म अजेय शि है। मौन से सम त शि य का के ीयकरण होता है। जीवन के बा पटल पर य -त िबखेरी हई जीवन-शि मौन के बाँध म जब एकि त कर ली जाती है तो वह उसी तरह शि शाली, घनीभूत हो जाती है बांध म रोक गई नदी। शि और मताएं सदा मौन क गोद म ही पतली है। संसार के महपु ष ने जो भी मह वपूण काम िकये है , वे सब ठं डे िदल और ठं डे िदमाग से ही स प न हए है। िकसी भी महान् काय के स पादन के िलए सम त आ त रक एवं बा वृि य को एकि त करके उ हे ल य पर लगाना पड़ता है। मह वपूण काय मौन से ही सं भव होता है। मौन मनु य के जीवन म समरसता दान कर, उसे अिधक िटकाऊ, भावशाली और मह वपूण बना देता है। मौन से मि त क सदा यवि थत और सं तिु लत रहता है। वा य के िलए भी मौन एक मह वपूण वरदान है, य िक यह शि के अप यय को रोक कर मानव को काय मता दान करता है। आ याि मक िवकास के िलए तो मौन से बढ़कर अ य कोई साधन ही नह है। (3)

(ख)

ितभा एक दैवी शि है और िजस लेखक म यह हो, वह अपनी रचनाओं, ारा भूत, भिव य और वतमान का सु प और सजीव िच उतार सकता है। ितभा के बल पर वह भूत के गहनतम म वेश कर, वहॉ से काश क िकरण को बटोर कर ला सकता है और वह उन िकरण के काश से भिव य का माग-दशन कर, उसे समु वल बना सकता है। वतमान क सम त प रि थितय का अ ययन एवं मनन कर, वह उ हे सही िदशा म मोड़ सकता है। ितभा के बल पर वह देश क सुषु चेतना को जगाकर उसम ाण फूं क सकता है। वह अपनी ितभापूण रचना के ारा दशक या पाठक का के वल अनुरं जन ही नही करता, वह उसे अपने कत य के ित जाग क भी बना देता है। (3) 92

(ग)

ी अरिव द के अनुसार सं गीत मूलतः एक आ याि मक कला है, िजसम गहन सं वदे नाओं ारा आ मा को छू लेने क शि है। सं गीत एक आ याि मक कला होने के साथ-साथ लोकोपयोगी भी है। आ म दशन तथा आ म िच तन के साथ-साथ लोक-रं जन इसका मुख उ े य रहा है। सं गीत िव ि तदायक है तथा ाना मक वृितय को सजग करता है। मानवीय भावनाओं को उदी करने का सं गीत सव े साधन समझा जाता है। आरो यशाि य ने भी सं गीत को आरो यदाता एवं वा य व क बताया है। इितहास इस धु ्रव स य का सा ी है। पोपन ने िलखा है िक मेघ रोग यरोिगय के िलए लाभदायक है। संगीत के स मोहन से तो िहंसक एवं िवषधर ज तु भी अपना ू र वभाव छोड़ बैठते है। अभी हाल ही म िकये गये परी ण से इस त य क पुि हई है िक सं गीत उ पादन बढ़ाने से भी पया योगदान दे सकता है। अ ततः यह कहा जा सकता है िक सं गीत न के वल एक सव े कला या िव ा है, वरन् यावहा रक ि से भी यह अ य त उपयोगी है। जहॉ एक और यह लोकोपयोगी कला है, वह दूसरी और इसका अ याि मक मह व भी है।

9.6 सं दभ ं थ 1

डॉ. धीरे वमा: नवीन िह दी याकरण, िह दी मंिदर, इलाहाबाद

2

कामता साद गु : िह दी याकरण, काशी नागरी चा रणी वाराणसी

3

पि डत ीलाल, भाषा च ोदय (भारतवष य िह दी भाषा का याकरण)

4

धीरे वमा: िह दी भाषा का इितहास, िह दु तान अकादमी इलाहाबाद।

5.

िकशोरीदास वाजपेयी: िह दी श दानुशासन, नागरी चा रणी सभा. वाराणसी 1958

6.

िकशोरीदास वाजपेयी: भारतीय भाषा िव ान, चौख भा िव ा भवन वाराणसी 1959

7.

िकशोरीदास वाजपेयी: िह दी क वतनी एवं श द िव लेषण, नागरी चा रणी सभा. वाराणसी 1968

8.

डॉ. राघव काश : यावहा रक सामा य िह दी, िपंक िसटी पि लशस, जयपुर

9.

डॉ. वेकट शमा : यावहा रक िह दी याकरण, सूयनगरी काशन, जोधपुर

93

इकाई - 10 अपिठत ग ां श इकाई क

परेखा

10.0 उ े य 10.1

तावना

10.2 आव यक सुझाव 10.3 अपिठत ग ां श (अ यास के िलए) 10.4 सारां श 10.5 अ यासाथ न 10.6 सं दभ ं थ

10.0 उ े य इस इकाई के अ ययन के प चात  सामा य िह दी पढ़ने वाले िव ाथ अपिठत ग ां श को पढ़कर उसका भाव और अथ हण करना सीख सकगे।  त प चात पूछे गए न का उ र देने के ान म वृि कर सकगे।  ग ां श स बि धत िवषय का ान और भाषा-बोध म अिभवृि कर सकगे।

10.1 तावना अपिठत ग के अंश अथवा अवतरण का ान और अ यास करना भी सामा य िह दी पढ़ने वाले िव ाथ को आना चािहए। यह भी िह दी रचना का एक मुख अंग है। यिद अवतरण म िव मान मुख िवषय और भाव िवचार या योजन को समझ िलया जाए तो उस पर आधा रत न के उ र देने म िकसी भी कार क सम या नह आती। बार बार अ यास से अपिठत । (जो पूव म नह पढ़ा गया।) ग ां श को समझा जा सकता है।

94

10.2 आव यक सू झाव सामा यतः अपिठत ग ां श से पूछे गए न के उ र ग ां श के वा य म िछपे रहते है, िज ह ढूढं ने म सामा य बुि चातुय चािहए। सं भव है, परी क अवतरण म समािव िवचार से सं बं िधत िवषय क कु छ िवशेष जानकारी भी परी ाथ से चाहता है। अतः न म कु छ घुमाव भी ला सकता है। उनसे घबराए िबना उनके उ र िनकाल पाना कोई बड़ा काम नह है। न के उ र देते समय अिधक िव तार करने क आव यकता नह है। िव ाथ को अपनी भाषा शैली म अ य त शु ता, प ता से पूणता न का उ र देना चािहए। पूछे गए न िवषय ान और भाषा बोध दोन से सं बिं धत हो सकते है।

10.3 अपिठत ग ां श (अ यास के िलए) 1.

महिष अरिवं द िलखते है - िश ा का काय आ मा को िवकिसत करने म सहायता देना है।’ अथात् िश ा से हमारा सं पणू यि गत भािवत होता है। गां धी जी के अनुसार- िश ा से मेरा अिभ ाय है ब चे क सं पणू शारी रक, मानिसक एवं आ याि मक यि य का सवागीण िवकास। सा रता न तो िश ा का अंत है और न आरं भ। िश ा मनु य को मि त क और शरीर का उिचत योग करना िसखाती है। वह िश ा जो मनु य क पाठ् य पु तक के अित र कु छ गं भीर िचतंन न दे यथ है। यिद हमारी िश ा सुसं कृ त, स य, स च र एवं अ छे नाग रकक नह बना सकती इससे इयये या लाभ ? स दय स च पर तु अनपढ़ मजदूर उस नातक से कह अ छा है, जो िनदयी और च र हीन है। हमारे कु छ अिधकार एवं उ रदािय व भी है। िशि त यि को उ रदािय व का भी उतना यान रखना चािहए िजतना अिधकार का।

उपयु त ग ांश के आधार पर िन निलिखत न के उ तर िलिखए 1.

2.

3.

महिष अरिवं द के अनुसार िश ा का काय है ? (क) मि त क का िवकास

(ख) भावना का िवकास

(ग) आ मा का िवकास

(घ) सवागीण िवकास

आ याि मक शि य का सवागीण िवकास िश ा है यह कथन है (क) गाँधीजी

(ख) महिष अरिव द

(ग) दोन

(घ) इनम से कोइ नह

जो च र हीन नातक है उससे अ छा कै सा यि है (क) पढ़ा िलखा िकसान

(ख) अनपढ़ मजदूर

(ग) रइस यि

(घ) वाथ यि 95

4.

5.

मनु य को मि त क और शरीर का उिचत योग करना कौन िसखाती है? (क) ऊजा

(ख) कृ ित

(ग) िश ा

(घ) इनम से कोइ नह ।

िशि त यि अिधकार के साथ - सथ िकसके ित सजगक रहना चािहए(क) समाज

(ख) च र

(ग) समय

(घ) उ तरदाियतव

उ तर 1 ग, 2.

2 क, 3 ख, 4 ग,

5घ

समय क अपे ा करने वालो को समय न ट कर देता ह महा मा गां धी सभी काय िनधा रत समय पर करते थे। इसिलए अ यं त य त होते हए भी िनरं तर गित करतेह ए सफलतम महान् यि य क ेणी म पहंचे जे स वॉट, मेडम यूरी और एिडसन ने समय के येक पल का सही योग कर सं सार को महान आिव कार दान िकए। समय का सदुपयोग भा य-िनमा ण क आधारिशला है। असमय काय। करने वाले कायर और िन धमी बन जाते है। अपने कत य कम को यथाशी िबना िवलं ब से करना ही समय का सदुपयोग है और वह समय का पारखी भी है। जो समय का सदुपयोग करना जान जाए, वह जीवन को सही ढं ग से जीना सीख जाता है। हर यि को पैस क अपे ा समय का अिधक िहसाब रखना होगा, तभी वह अपने े म सफल हो पाएगा।

उपयु त ग ांश के आधार पर िन निलिखत न के उ तर िलिखए 1.

2.

कौन महापु ष िनधा रत समय पर काय करता था(अ) नेह जी

(ब) लाल बहादुर शा ीजी

(स) गाँधीजी

(द) इनम से कोइ नह ।

सं सार को महान आिव कार दान िकया है(अ) जे सवॉट, मेडम यूरी

(ब) िववेकान द, रामकृ ण परमहंस

(स) लाल बहादुर शा ीजी, सरदार व लभ भाइ पटेल (द) उपयु सभी। 3.

भा य के िनमाण क आधारिशला ह? (अ) समय सदुपयोग

(ब) आराम 96

(स) लेटलतीफ 4.

5.

(द) इनम से कोइ नह

हर यि को पैस से अिधक िकसका िहसाब रखना चािहए (अ) दुिनयादारी का

(ब) समाज

(स) यवहार का

(द) समय का

कायर और िन धमी कौन है (अ) जो अनुशािसत है

(ब) समय का पाबंद है

(स) असमय काय करने वाले

(द) उपयु सभी

उ तर – 1 स,

2 क, 3 अ, 4 द,

5स

3

परेशािनय के बावजूद रोजाना थोड़ा हंसने -हंसाने का अ यास करते रहने से आ मिव वास और सुर ा क भावना बढ़ती है। इससे न के वल खुद को खुशी महसूस होती है , बि क आपस म जुड़े सब लोगो म खुशी फै लती है। हंसना हमारे शारी रक और मानिसक वा य के िलए बहत लाभकारी है। इससे हमारा इ यून िस टम मजबूत रहता है और बहत सी बीमा रय से बचाव हो सकता है लेिकन ज रत से यादा और अनुिचत तरीके से हंसना दूसर को परेशान कर सकता है। हंसी मजाक म टशन रलीज होता है। मन ह का होता है। हंसते रहने से जीवन क कड़ी वा तिवकताओं, लगातार थकावट का एहसास, अ ात डर, तरह तरह क झुंझलाहट से राहत िमलती है। मन क खुशी और शां ित से काय शि व सृजना मकता बढ़ती है। य न हम आपसी भेदभाव िमटाकर अपने सं बधं को मधुर बनाने क कोिशश कर, तािक एक दूसरे से अपने दुख दद, खुशी अपनी सफलताओं के सुखद अनुभव बां ट सक और आपसी मेलजोल और आ मिव वास के साथ हंसी खुशी से जी पाएं।

1

आ मिव वास और सुर ा क भावना कब बढ़ती है -

2

(अ) खेलकू द करने से

(ब) हंसी-मजाक करने से

(स) चुगली करने से

(द) अपमािनत करने से

हंसने हंसाने से या लाभ होता है (अ) शरीर म कमजोरी होती है

(ब) भूख कम लगती है।

(स) इ यून िस टम मजबूत होता है (द) इसम से कोई नह 3

तनाव को दूर िकया जा सकता है 97

4

(अ) कम बोलने से

(ब) दवाई लेने से

(स) रोने से

(द) हंसी मजाक करने से

मन क खुशी और शां ित िकससे बढ़ती है (अ) अहंकार करने से

(ब) हंसने से

(स) बात करने से

(द) रोने से

5

हंसी मजाक के या फायदे है? सं पे म िलिखए उ तर 1ब, 2 स, 3 द, 4 ब

4

महा मा गां धी अपना काम अपने हाथ से करने पर बल देते थे। वे येक आ मवासी से आशा करते थे िक वह अपने शरीर से सं बिं धत येक काय, सफाई तक वयं करेगा। उनका कहना था िक जो म नह करता है, वह पाप करता है और पाप का अ न खाता है। ऋिष-मुिनय ने कहा है िबना म िकए जो भोजन करता है वह व तुतः चोर है । महा मा गां धी का सम त जीवन दशन म सापे था। उनका सम त अथशा यही बताता था िक येक उपभो ा को उ पादनकता होना चािहए। उनक नीितय क अपे ा करने से प रणाम हम आज भी भोग रहे ह। न गरीबी कम होने से आती है, न बेरोजगारी पर िनयं ण हो पा रहा है और न अपराध क वृि हमारे वश क बात हो रही है। दि ण को रया वािसय ने मदान करके ऐसे े भवन का िनमाण िकया है िजनसे िकसी को भी ई या हो सकती है।

1

मदान कर े भवन का िनमाण िकस देश ने िकया? (अ) अमे रका (ब) जमनी (स) ांस

2

ग ां श म िकस महापु ष क बात कह गई है? (अ) नेह

3

(द) इि रा गां धी

(ब) पु य (स) समझौता (द) इनम से कोई नह

गां धी का जीवन दशन था (अ) कमहीन

5

(ब) गां धीजी (स) व लभ भाई पटेल

म नह करने वाला या करता है (अ) पाप

4

(द) दि ण को रया

(ब) अनुशासनहीन (स) म सापे (द) उपयु सभी

िबना म िकए जो भोजन करता है वह व तुतः चोर है़ (अ) ऋिष मुिन (ब) गां धीजी (स) लाल बहादुर शा ी 98

(द) इनम से कोई नह

नोट – (िव ाथ वयं उ र ढूं ढने का अ यास कर अपने िवषय का ान बढ़ाऐं)। 5

सं सार के सभी देश म िशि त यि क सबसे पहली पहचान यह होती है िक वह अपनी मातृभाषा म द ता से काम कर सकता है । के वल भारत ही एक देश है िजसम िशि त यि वह समझा जाता है जो अपनी मातृभाषा म द हो या नह िक तु अं ेज म िजसक द ता अंसिद ध हो। सं सार के अ य देश म सुसं कृ त यि वह समझा जाता है। िजसके घर म अपनी भाषा क पु तक का सं ह हो और िजसे बराबर यह पता रहे िक उसक भाषा क अ छे लेखक और किव कौन ह तथा समय समय पर उनक कौन सी कृ ितयाँ कािशत हो रही है। भारत म ि थित दूसरी है। यहां ायः घर म साज-स जा के आधुिनक उपकरण तो होते ह िक तु अपनी दुराव था भले ही िकसी ऐितहािसक ि या का प रणाम है िक तु वह सुद शा नह , दुराव था ही है और जब तक वह दुखव था कायम है हम अपने आप को सही अथ म िशि त और सुं कृ त मानने का ठीक ठीक यायसं गत अिधकार नह है।

1

‘सुसं कृ त’ उदाहरण है (अ) यय का (ब) उपसग का

2

(ग) सं िधका (द) समास का

सं सार के सभी देश म िशि त होने क पहचान है (अ) अंगेजी म द ता (ब) मातृभाषा म द ता (ग) साज-स जा म द ता (द) पाककला म द ता

3

भारत म जो अं जे ी जानता है उसे या माना गया है (अ) िशि त (ब) बेरोजगार

4

(ग) अनपढ़ (द) इनम से कोई नह

भारतीय के घर म िकसका अभाव है (अ) साज स जा का (ब) आधुिनक उपकरण का (ग) अं जे ी पु तक का (द) मातृभाषा क प पि काओं का उ र 1ब 2ब 3अ 4द

6

दैिनक जीवन म हम अनेक लोग से िमलते है जो िविभ न कार के काम करते ह - सड़क पर ठे ला लगाने वाला, दूधवाला, अगर नगर िनगम का सफाईकम , बस कं ड टर, कू ल अ यापक, हमारा सहपाठी और ऐसे ही कई अ य लोग। िश ा, वेतन, परं परागत चलन और यवसाय के 99

तर पर कु छ लोग िन न तर के माना जाते ह। िक तु यिद यही अपने कोस क कु शलता पूवक करते ह और उ कृ सेवाएं दान करते ह तो उनका काय उस सिचव के काय से कह बेहतर है जो अपने काम म िढलाई बरतता है तथा अपने उ रदािय व का िनवाह नह करता। वा तव म पद मह वपूण नह है, बि क मह वपूण होता है काय के ित समपण भाव और काय णाली म पारदिशता। उपयु ग ां श के आधार पर िन निलिखत न के उ र दीिजए 1

काय णाली कै सी होनी चािहए ? (अ) तट थ (ब) कमजोर (ग) अनुशािसत (द) पारदश

2

काय के ित कै सा भाव होना चािहए? (अ) ितर कार का (ब) अहंकार का (ग) अपमान का (द) समपण का

3

उ ग ां श म िकसक चचा क गई है (अ) समय क (ब) आराम क

4

(ग) काय क (द) इनम से कोई नह

उ ग ां श म दैिनक जीवन म हम कौन कौन लोग िमलते है? िलिखए उ र 1द 2द 3स उ र 4 दैिनक जीवन म हम सड़क पर ठे ला लगाने वाले, दूध वाले , नगर िनगम का सफाईकम , बस कं ड टर, कू ल अ यापक, हमारे सहपाठी और ऐसे ही कई अ य लोग से िमलते है।

7

भारत म गु िश य सं बं ध का वह भ य प आज साधुओ,ं पहलवान और सं गीतकारेां म ही थोड़ा बहत ही सही, पाया जाता ह। भगवान रामकृ ण बरस यो य िश य को पाने के िलए ाथना करते रहे। उनके जैसे यि को भी उ म िश य के िलए रो-रोकर ाथना करनी पड़ी थी। इसी से समझा जा सकता है िक एक गु के िलए उ म िश य िकतना मंहगा और मह वपूण है। सं तानहीन रहना उ ह दुःख नह है। इस सं बधं म भगवान ईसा का एक कथन सदा मरीण ह। उ ह ने कहा था, ‘मेरे अनुयायी लोग मुझसे कही अिधक महान् है और उनक जूितयाँ होने क यो यता भी मुझे नह । सही बात है, गां धी जी बनने क मता िजनम ह उ ह गां धीजी अ छे लगते ह और वे ही उनके पीछे चलते भी है। िववेकान द क रचना िसफ उ ह पसं द आएगी िजनम िववेकान द बनने क अदभुत शि िनिहत होगी। उपयु ग ां श के आधार पर िन निलिखत न के उ र दीिजए -

1

उ म िश य के िलए रो-रोकर ाथना िकसने क थी? (अ) रामकृ ण परमहंस (ब) िववेकान द

(ग) गां धीजी (द) सुभाष च बोस 100

2

अपने अनुयाियय के सम

वयं को जूितय के यो य भी नह समझा?

(अ) जवाहरलाल नेह (ब) ईसा मसीह ने (ग) राजीव गांधी ने (द) इनम से कोई नह 3

भारत म गु -िश य सं बधं आजकल िकन लोग म पाया जाता है? (अ) साधुओ ं म (ब) पहलवान म (ग) सं गीतकार म (द) उपयु सभी

4

िववेकान द क रचना िक ह पस द आएगी (अ) जो अनेक िम होगे (ब) र तेदार होगे (ग) सभी देशवािसय को (द) उनके समान गुण वाले को उ र-1अ2ब3स4द

10.4 सारां श तुत इकाई म आपने अपिठत ग ां श को पढ़कर उनम पूछे गए न के उ तर ढ़ढना सीखा है। व तुत: अपिठत ग ां श को समझना एक कार क कला है। ग ां श को सव थम दो से तीन बार पढ़ना चािहए तभी उसका मूल िवषय या भाव समझ म आता है। यह इकाई आपक िवषय बोध क जांच और भाषा से सं बं ध रखती है।

10.11 अ यासाथ



1

िन निलिखत अपिठत ग ां श को पढ़कर उनके नीचे िदए गए न के उ र ग ां श म से दीिजए-



ि य के पास एक महान शि सोई हई पडी है। दुिनया क आधी से बडी ताकत उनके पास है। आधी से बडी ताकत इसिलए कहता हं िक ि यां आधी तो है ही दुिनया म, आधी बड़ी इसिलए िक ब चे बि चयाँ उनक छाया म पलते ह और वे जैसा चाह उन ब चे और बि चय को प रवितत कर सकती है। पु ष के हाथ म िकतनी ही ताकत हो, लेिकन पु ष एक िदन ी क गोद म होता है, वह से वह अपनी या ा शु करता है। एक बार ी क पूरी शि जा त हो जाए और वे िनणय कर ल िक िकसी ेम क दुिनया को िनिमत करगी जहां यु नह होग, जहां िहंसा नह होगी जहां राजनीित नह होगी, जहां पॉलीिटिशयन नह ह गे जहां जीवन म कोई बीमा रयां नह होगी। जहां भी ेम है, जहां भी क णा है, जहां भी दया है वहां ी मौजूद है। ी के पास आधी से भी यादा बड़ी ताकत है और वह पांच हजार वष से िब कु ल सोवे हई पड़ी है। नारी क शि का कोई उपयोग नह हो सका है। भिव य म यह उपयोग हो सकता है। उपयोग होने का एक सू यही है िक ी यह तय कर ले िक उ ह पु ष जैसा नह हो जाना है। 101

1

ी म कौन कौन से गुण बल है (अ) सं घष और साहस का (ब) नैितकता और समझदारी (ग) ेम और क णा (द) शांित और उ नित

2

इस ग ां श म िकसक शि को जा त करने क बात हो रही है? (अ) पु ष (ब) ब चे

3

जहां ेम है वहां या है? (अ) क णा (ब) घृणा

5

(ग) ी (द) इनम से कोई नह (ग) ोध (द) स मान

पु ष क या ा शु होती है (अ) बचपन से (ब) ी क गोद से (ग) दुिनया म आने से (द) उपयु सभी



सम याएं व तुतः जीवन का पयाय है। यिद सम याएं न हो, तो आदमी ायः अपने को िनि य समझने लगेगा। ये सम याऐं व तुतः जीवन को गित का माग श त करती है। सम या को सुलझाते समय, उसका समाधान करते समय यि का े तम त व उभरकर आता है। धम, दशन, ान, मनोिव ान इ ह य न क देन ह। पुरान म अनेक कथाएं यह िश ा देती है िक मनु य जीवन क हर ि थित म समाधान के उपाय सोचे। जो यि िजतना उ रदािय व पूण काय करेगा, उतना ही उसके सम सम याएं आएं गी और उनके प र े य म ही उसक महानता का िनधारण िकया जाएगा। दो मह वपूण त य मरणीय ह - येक सम या अपने साथ सं घष लेकर आती है। येक सं घष के गभ म िवजय िनिहत रहती है। सम त ं थ और महापु ष के अनुभव का िन कष यह है िक सं घष से डरना अथवा उससे िवमुख होना लौिकक व पारलौिकक सभी ि य से अिहतकर है। मानव धम के ितकू ल है और अपने िवकास को अनाव यक प से बािधत करना है। आप जािगए, उिठए ढ़ संक प और उ साह एवं साहस के साथ सं घष पी िवजय रथ पर चढ़ जाएं और अपने जीवन के िवकास क बाधाओं पी श ओ ु ं पर िवजय ा क िजए।

1

िवजय का िनवास कहां होता है ? (अ) आकां ा म (ब) ल य म

2

(ग) उ साह म (द) सं घष म

मनु य का े तम कब उभर कर सामने आता है? (अ) सम या म पड़कर (ब) सं घष म िपसकर(ग) सम या को सुलझाते हए (द) कम करते हए

3

‘िनि य’ का िवलोम श द बताइये 102

(अ) अि य (ब) ि या (ग) िन काम (द) सि य 4

मानव धम के ितकू ल या है?

10.6 सं दभ ं थ 1

डॉ. धीरे वमा: नवीन िह दी याकरण, िह दी मंिदर, इलाहाबाद

2

कामता साद गु : िह दी याकरण, काशी नागरी चा रणी वाराणसी

3

पि डत ीलाल, भाषा च ोदय (भारतवष य िह दी भाषा का याकरण)

4

धीरे वमा: िह दी भाषा का इितहास, िह दु तान अकादमी इलाहाबाद।

5.

िकशोरीदास वाजपेयी: िह दी श दानुशासन, नागरी चा रणी सभा. वाराणसी 1958

6.

िकशोरीदास वाजपेयी: भारतीय भाषा िव ान, चौख भा िव ा भवन वाराणसी 1959

7.

िकशोरीदास वाजपेयी: िह दी क वतनी एवं श द िव लेषण, नागरी चा रणी सभा. वाराणसी 1968

8.

डॉ. राघव काश : यावहा रक सामा य िह दी, िपंक िसटी पि लशस, जयपुर

9.

डॉ. वेकट शमा : यावहा रक िह दी याकरण, सूयनगरी काशन, जोधपुर

103

इकाई - 11 प लेखन इकाई क

परेखा

11.0 उ े य 11.1

तावना

11.2 प -लेखन ढांचा 11.3 प लेखन के िविवध कार 11.4 प म स बोधन, अिभवादन और विनदश 11.5 कितपय प (अ यास हेत)ु 11.6 सारां श 11.7 अ यासाथ न 11-8 सं दभ ं थ

11.0 उ े य इस इकाई के अ ययन के प चात आप  प लेखन क िवधा क जानकारी ा कर सकगे  प लेखन के िविवध व प कार, स बोधन, अिभवादन व विनदश के तरीके को समझ सकगे  अ यास हेतु िदए गये प को पढ़कर वयं प िलखना सीख सकगे।  प लेखन का मह व समझ सकगे।

11.1 तावना भाषा के मा यम से जो मानव यवहार होता है, उसम प एक मह वपूण मा यम है। िकसी भी रा अथवा रा य से सं बिं धत मं ालय , मु यालय , सं बं कायालय, सरकारी कायालय , वयं सेवी सं थाओ ं, सामािजक दायर , िविवध यवसाय सभी े म आज प लेखन अिनवायत: होता है। येक कायालय म ऐसे यि य क आव यकता अनुभव क जाती है और उस यि को मह व िदया जाता है जो वयं प यवहार क यो यता रखता हो। प लेखन एक रचना मक कौशल है। 104

जो आपके यि व को भी उजागर करता है। प लेखन एक कला है। इसको िलखने के कु छ चरण होते है िजनका अनुसरण करते हए योग म लाना िव ािथय को आना चािहए। आज प हमारी रोजमरा क िज दगी का अिनवाय िह सा बन गया है। ितिदन हम औपचा रक या अनौपचा रक अनेक कार के प िलखते ह। घर म प रवार के सद य और िम का आदान दान होता है तो घर से बाहर िनकलकर कह सामािजक किमय को उजागर करने के िलए िशकायती प िलखते ह, कह नौकरी के िलए आवेदन प िलखते है, कह ाथना प तो कह बधाई प या कही शोक सं देश। इसी तरह िव ि , िव ापन, अिधसूचना, िव ािपत टडर जैसे अनेक कार के अनौपचा रक सरकारी प ाचार भी आज समाज के सं वाद करने का एक मा यम बन चुके ह। तुत इकाई म प लेखन के अ तगत यि गत और सामािजक प का लेखन अ ययन करना िसखाया जाएगा।

11.2 प -लेखन ढां चा प लेखन एक कला है, िवचार अिभ यि का एक मा यम है। यावहा रक याकरण के रचना ख ड का यह एक मह वपूण भाग है। प लेखन का ढांचा (अंग ) प लेखन को सामा यत सात भाग म िवभािजत िकया है। कु छ िवशेष िनयम को छोड़कर सभी प म ायः एक पता रहती है। 1

पता व तारीख - प िलखने वाले को सव थम प के दािहने और सबसे ऊपर अपना पता व प िलखने क तारीख िलखनी चािहए। ( यि गत और पा रवा रक प के िलए) इससे प का उ र देने वाले को प े के िलए भटकना नह पड़ता।

2

स बोधन - ितिथ क बाई और तथा अगली पंि म अव था, सं बं ध तथा ओहदे का यान रखते हए स बोधन िलखा जाता है।

3

अिभवादन - स बोधन के नीचे अगली पं ि म समुिचत अिभवादन िलखा जाता है जैसे नम कार, णाम, सादर द डवत , यार, आशीवाद आिद श द अिभवादन वाले भाग म आते ह।

4

मु य भाग - उपयु चरण के बाद प के मु य भाग म प क पावती कु शल समाचार सं दश े आिद आते है।

6

समापन - प क समाि प स बोधन एवं अिभवादन के अनु प प का समापन िकया जाता है। जैसे भवदीय, िवनीत, आपका आ ाकारी िश य, ि य पु , शुभैषी, कृ पाकांसी आपका ही आिद श द म समापन होता है। अ त म प लेखक का नाम और उसके ह ता र होने भी ज री है।

105

7

पता - िलफाफे /पो टकाड/अतदशीय प के बाहर बायी तरफ प भेजने वाले को अपना प पता िलखना चािहए।

8

प ा करने वाले का पता - प ा करने वाले का पता प श द म िलफाफे /पो टकाड/अ तदशीय प पर िलख देना चािहए।

11.3 प लेखन के िविवध कार प लेखन भी िह दी रचना का एक मह वपूण अंग है । उसके मा यम से हम डाक अथवा सं चार के िभ निभ न साधन ारा अपनी कु शलता आिद के यि गत और पा रवा रक समाचार अपने प रजन अथवा िम को भेज सकते ह । सामािजक ाणी होने के कारण हम अपने जीवन म अनेक लोग और सं थाओं से सं पक भी साधने पड़ते ह, िजनम प लेखन अ यं त उपयोगी भूिमका िनभाता है । प लेखन के भी अनेक प और कार होते ह िजनक िलखने क अलग अलग िविधयां अथवा तरीके - है 1 सामा य प से प िन निलिखत कार के होते है 1

वैयि क अथवा यि गत प

2

पा रवा रक तथा सामािजक प

3

यावसाियक अथवा लेनदेन स ब धी प

4

सरकारी तथा शासिनक प

5

पदािधका रय के नाम पर अ सरकारी प 1

6

नौकरी अथवा अ य िक ह कारण से िलखे जाने वाले ाथनाप ।

7

िकसी कार के चयन अथवा काय िवशेष के िलए भेजे जाने वाले आवेदन प है

8

समाचार प के स पादक तथा सावजिनक कायकताओं को िलखे जाने वाले िशकायती अथवा अ य अनाव यकताओं से सं बं िधतप ।

9

अिभनंदन अथवा स मानसूचक प 1

10

िवदाई प ।

11

िववाह अथवा अ य शुभ अवसर पर भेजे जाने वाले िनमं ण प ।

12

सं वदेना सूचक शोक प ।

13

िकसी क सफलता अथवा पदो नित पर भेजे जाने वाले बधाई प आिद ।

106

1.

2

प रवा रक प - प रवा रक प लेखन का ढाँचा तो ाय: यि गत प जैसा ही होता है, िक तु र त को िनकटता के कारण उनका कलेवर (समाचार लेखन) अिधक औपचा रक नह होता । वैसे तो सभी प के िलए है खुलापन' ज री है, िक तु उस खुलेपन क कु छ सीमाएँ और मयादाएँ भी रहती ह । यावसाियक और कायालीय प - यावसाियक और कायालीय प म लेखक को इस बात का यान रखना पड़ता है िक उनम वे ही बाते एक सलीके के साथ िलखी जाएँ, िजनम अनुशासन तथा ' डेकोरम' बना रहे । यावसाियक और राजक य काय से सं बं िधत प म उन प के सं दभ देने भी ज री ह, िजनके उ र म प िलखा जा रहा है 1 ऐसा करने से प ाचार म सुिवधा रहती है तथा आगे क कायवाही सुचा प से क जा सकती हैा यह प एक कार से आवेदन प जैसे ही होते ह । उदाहरण के िलए यिद िकसी यवसाय कारण से प िलखा रहा है, तो उसम वे सभी मु े आने चािहए िजनम प लेखन से अिभ न सं भव है। इसी कार िकसी कमचारी को अपने कायवश अवकाश छु ी लेना होता ह, तो उसे स ब अिधकारी को कायालीय स बोधन करते हए अपने प का ढाँचा पा रवा रक प से कु छ िभ न रखना पड़ता है और अपने आवेदन प मे ँ उन कारण का भी उ लेख करना होता है, िजनके आधार पर वह छु ी लेने का आवेदन करता है, यिद नौकरी आिद के िलए आवेदन करना होता है, तो प के कलेवर म अपनी शै िणक यो यता तथा कायानुभन आिद के उ लेख करने भी ज री ह।

3.

.

ऐसे आवेदन प के ार भ म सं दभ के अंतगत उस िव ि का उ लेख करना भी आव यक है िजसके उ र म आवेदन िकया जा रहा है 1 माण प और अनुभव कक स यािपत ितिलिपयाँ भी सं ल न करना आव यक है, िजनके िबना ाथ का आवेदन प िनर त भी िकया जा सकता है । अिभ ाय यह है िक ऐसे प सभी ि य से के पूण होने चािहए तािक उनम िकसी भी कार क कमी न रहे है। अिभन दन प - अिभन दन प का प प रवा रक प से सवथा िभ न, होता है । उनम अिभनंदन (स मान) िकए जाने वाले यि के नाम, पद और उसक उपािधय आिद का ारिभक उ लेख करने के प ात् िभ न िभ न अनु छे द म समुिचत स बोधन करते हए उसके यि और कृ ित व से स बि धत उन उपलि धय का भी सं ि िववरण िदया जाता ह । उसके अंत म उसके दीघ और सुखी जीवन क कामना करते हए उस सं थान अथवा उन यि य और पदािधका रय के नाम िलखे जाते ह, िजनक और से अिभनं दन िकया गया है । अंत म बाई तरफ थान और 'िदनांक ' अंिकत िकए जाते ह , िजनसे अिभनंदन-समारोह का थल और अवसर सूिचत हो सके ।

107

4.

5.

6.

7.

8.

िनम ण-प - ऐसे प िकसी के शुभ -िववाह, ज मिदन, नवीन गुह वेश, सामािजक उ सव और धािमक तथा सां कृ ितक समारोह पर िलखे जाते ह, िजनके िलखने क दो िविधयाँ ह--1 . औपचा रक और 2- अनौपचा रक । ऐसे प का ा प ाय : िव जनीन सा बन गया है, िजसम िनमं ण देने वाले यि अथवा यि य का ारि मक उ लेख और िनमं ण का मुख योजन िनिद करने हए आयो य समारोह का थान, समय तथा िनधा रत काय म क सूचना रहती है । यिद वह काय म ीितभोज, आशीवाद समारोह, धािमक अनु ठान, सां कृ ितक आयोजन तथा अ य िजन िक ही कारण से ायोिजत है, ो उनका उ लेख करना भी आव यक है, तािक िनमंि त यि तथा उसके प रवार सं बं िधतअ य प रजन उसम िनधा रत थान पर यथासमय भाग ले सक । अत: वे अ यं त सं ि और सारगािभत होने चािहए । िशकायती प - ऐसे प भी आज के प लेखन से अिनवायत जुडे हए ह 1 व तुत : आज का युग िशकायत से हए वातावरण का ही युग हो गया है, िजसम िशकायत करना एक सामा य धम सा बन गया है । ये िशकायत 'बेबिु नयाद' और ' स योजन भी हो सकती ह । जहाँ तक िशकायती प का स बं ध वे सही अिधकारी 'को सही समय पर ऐसे माण के साथ ऐसी िविध िलखे जाने चिहए िजनसे िशकायत को दूर करने के िलए वह बा य ही जाये अ यथा कोरी कागजी कायवाही से कोई बात नह बन सकती । िबजली, पानी, सफाई है िचिक सा, िश ा आिद क आपूित म ढील, लापरवाही, प पात, ाचार आिद के जो काले कारनामे आज के लोकतं म ि गोचर हो रहे ह, उ ह रोकने म िशकायती प बहत अिधक उपयोगी सकते ह। बधाई प - िकसी क उ लेखनीय सफलता, पदो नित, वषगां ठ, िविश े िडट पुर कार- ाित तथा अ य हषव क कारण से अपनी खुशी का इजहार करने के िलए जो प िलखे जाते ह, उ ह बधाई प कहते है । ये बधाइय तार, दूरभाष, फै स , सं देशवाहक तथा अ य सं चार साधन के मा यम से भी भेजी जाती है िज ह िविभ न साधन के अनु प सं ि भी िकया जाता है । तुत : बधाईप एक कार से आ मीयता के ही दशन है िजनसे को खुिशयाँ पर पर बाँटी जाती ह । शोक अथवा सं वेदनासू चक प - िवशेष कारण से िकसी क जुदाई आिद के अवसर यर उनसे िबछु ड़ने का दुख कट करने के िलए जो प (आयोिजत िवदाई समारोह पर ेमपूण उपहार सिहत) भट िकए जाते ह , उ ह िवदाई प कहते है । इन प म िबछु ड़ने वाले यि के काय और यो यता क शं सा तो क ही जाती है, साथ ही पथ उनके उ वल भिव य क शुभ कामनाएँ भी िनिहत रहती ह । ऐसे प एक कार के मृित-िच के ही ित प कहे जा सकते ह सरकारी प - सरकारी प का प तो सरकारी प का एक अ य प अ सरकारी अथवा अ - शासक य प ह , जो िकसी अिधकारी िवशेष के उसके नाम पर िलखा जाता है । 108

उसको िवषय साम ी को ाय: वह होती है, जो औपचा रक णाली से िलखे गए कायालीय प क होती है, िक तु उसे अिधकारी के नाम पर िलखने का मूल उ े य के वल इतना ही होता है तािक वह अिधकारी ाथ के आवेदन को ाथिमकता देकर उसक आव यकता और किठनाइय म यि गत िच ले और उ ह दूर करने म अिधक त परता िदखावे।

11.4 प म स बोधन, अिभवादन और विनदश प के सं बोधन और अिभवादन आिद के और भी प हो सकते है से िजनका चयन करने का आधार प -लेखक और प पाने वले के पार प रक स ब ध होते ह । भाई बिहन, पित-प नी, अिधकारीकमचारी, गु -िश य, सखा-सहेली, िपता-पु , माँ'- बेटी, सास-बह तथा प रवा रक र त वाले 'छोटे-बडे़ और समवय क यि अपनी अिभ िच, पसं द तथा सं बं ध गाढ़ता तथा अिभ नता के अनु प जैसा उिचतसमझ, प िलखते समय सं बोधन आिद कर सकते ह । नई णाली के अनुसार अिभवादन का उ लेख अब अिनवाय न रहकर वैकि पक मा हो गया है । blds fy, fuEufyf[kr rkfydk nh tk jgh gS & प का कार यि गत प

सं बं ध माता-िपता, बडे़ भाइ अथवा बड़ी बहन तथा अ य सगे और आदरणीय सं बं िधय को ि य अथवा सहपाठी को प नी अथवा पित को

अपने से छोटी को यावहा रक प

पु तक िव े ता, बक मैनेजर, अथवा अ य यापारी आिद ाधानाचाय

सं ब अिधकारी

स बोधन पू यवर, माननीय, आदरणीय, ेय, पू य, पू या, परम आदरणीय

अिभवादन सादर नम कार, सादर णाम, चरण - पश, नम कार

समापन आपका आ ाकारी, नेह पा , नेह भाजक सेवक, कृ पा पा , नेहाकां ी, नेहाधीन, भवदीय, कृ पाकां ी, िविनत, आपका

ि ि ि ि

नम ते, स ेम, नम कार

तु हारा, अपना ही, अिभ न ाण, अिभ न दय, तु हारा वह , िचर नेही, िचरशुभाकां ी, अिभ न िम तु हारी आपक , अिभ न दया, आपक िचरसं िगनी, तु हारा ही तु हारी ही।

य पु , िम वर, य, बं ध ु, बं धवु र, य य ाण, ि यतमे, ाण व लभे, िचर, सहचरी, ाणे री, ि य, ाणचर, ि यवर, ि यतम ि य परम ि य, ि यवर, िचरं जीव ीमान जी, महोदय, ि य महोदय, माननीय महोदय, बं धक महोदय ीमान जी, महोदय, मा यवर, माननीय महोदय, आदरणीय, धानाचाय जी मा य, महोदय, मा य 109

स नेह, नम कार, यार

सुखी रहो, आशीवाद, िचरं जीव रहो।

तु हारा शुभ िचं तक, िहतैषी, शुभाकां ी, शुभे छु , शुभ छु क । भवदीय, आपका िनवेदक।

िवनीत ाथ , भवदीय, आपका आ ाकारी, आपका नेह भाजक, कृ पाकां ी, । भवदीय, िवनीत, आपका नेह

कायालयी प

सं पादक, नगर िनगम, अिधकारी, के ीय मं ी, रे लवे अधी क, पो टमा टर

माननीय, महोदय मा यवर, आदरणीय, सं पादक महोदय, मा यवर, महोदय, मा य महोदय

भाजक/ कृ पाकां ी, कृ पाकां ी,, िनवेदक, भवदीय, उ राकां ी, ाथी िवनीत।

11.5 कितपय प (अ यास हेतु) कु छ मु ख प के नमू ने पा रवा रक प (माता के नाम पु ो का प ) कानोिडया ़ महािव ालय क या छा ावास, कमरा नं. - 9 जयपर – 302015 िदनांक 20 जनवरी, 2014 परम पूजनीय माताजी, सादर णाम । आपका प अभी दोपहर क डाक से िमला आप सबक कु शलता और व थता के समाचार जानकार हािदक स नता हई । मै आपको िपछले दो स ाह से एक भी प नह िलख सक , मुझे हािदक खेद है । इसका मूल कारण मेरी लापरवाही तथा आल य न होकर मेरी काय य त ा है । ाय: प ह िदन से हमारे महािव ालय म खेलकू द ितयोिगताएँ, सािहि यक और सां कृ ितक काय म आिद चल रहे ह, िजनम म क ा क ितिनिध छा ा क हैिसयत से भाग ले रही हँ । ' आपको यह जानकर स न ा होगी िक म उन बडिमटन ितयोिगता म िनरं तर थम थान ा त कर रही हं। िजसका पुर कार 23 तारीख को आयो य वािषक समारोह के अवसर पर मुझे िदया जाएगा। मेरा अ ययन िनयिमत प से चल रहा है । मुझे िव वास है िक आपके आश वाद से मेरा परी ाफल भी े और अ यं त सं तोष द रहेगा 1 ि य छोटी बिहन भारती को स नेह यार 1 आशा है, वह भी पढ़ने म खूब मन लगा रही होग । अब तो छु य म ही मै मुबं ई आ सकूँ गी। पू य िपताजी को णाम । प ो तर शी देने क कृ पा कर आपक यारी पु ी मिहमा 110

कायालयी प (आकि मक अवकाश के िलए) सेवा म, ी धानाचाय राजक य उ च मा यिमक िव ालय, ओिसयां (मारवाड़) िवषय – तीन िदन के आकाि मक अवकाश हेतु मा यवर, िनवेदन है िक मुझे अपने भतीजे के िववाह म सि मिलत होने के िलए कल क गाडी से जयपुर जाना है। िववाह के काय म िदनां क 17 माच से 19 माच 2014 तक चलेगे। िजसम मेरी सहप रवार उपि थित अिनवाय है। कृ पया मुझे िदनांक 17 माच से 19 माच तक तीन िदन का आकि मक अवकाश तथा ओिसयां से बाहर रहने क अनुमित दान करने का क ट कर। ओिसयां (मारवाड़) िदनांक 20.1.2014 आपका िव वासपा कमलेश कु मार, या याता (भौितक )

छा वृ ि के िलए आवेदन – प सेवा म, ीमान धानाचाय जी, राजक य नवीन उ.मा. िव ालय जयपुर। 111

िवषय - छा वृि

ा त करने हेतु

मा यवर, िनवेदन है िक म आपके िव ालय म िवगत पाँच वष से िनरं तर अ ययन कर रहा हँ । मुझे ितवष क ा म थम थान और थम ेणी म भी सवािधक अंक िमले ह, िजनके कारण मुझे िव ालय को ओर से िनर तर छा वृि दी जा रही है । इस स म म नवम क ा म पढ़ रहा हँ । हम चार भाई बिहन ह िजनक पढाई का भार मेरे माता-िपता पर वहत अिधक पड़ रहा है । चतुथ ेणी कमचारी होने के कारण उ ह अपने प रवार का खच चलाने म भी बहत किठनाइयाँ होती ह । कृ पया मेरी किठनाइय पर सहानुभिू तपूवक िवचार करते हए मुझे क ा नवम् क छा वृि देकर कृ ताथ कर, िजससे म अपना अ ययन सुचा प से चला सकूँ । अपने इस आवेदन प के साथ म अपने गत वष के परी ाफल के ा तांक तथा छा वृि ा करने के मूल माण प सं ल न कर रहा हँ, िजनके आधार पर आप मुझ इस वष भी छा वृि देने का दान करने क कृ पा कर। मुझे िव वास है िक मेरी ाथना अव य वीकृ त होगी । म आपका आभारी रहँगा 1 सं ल न : दो माण प आपका आ ाकारी िश य बस त कु मार िदनांक : 12 जुलाई, 2013

ाथना प िकसी अिधकारी को ाथना करने हेतु िलखा गया प ाथना प कहलाता है। ाथना प का नमूना: (1) सेवा म, ीमान धानाचाय 112

राजक य महाराणा ताप िव ालय, िच तोड़गढ़ (3) िवषय: छा वृि

ा करने हेत।ु

(4) महोदय, (5) न िनवेदन है िक.................................................... ..................................................... ........................................................................ ..................................................... ........................................................................

(6) िदनांक 13.05.2014 (7) आपका आ ाकारी िश य मोहनलाल क ा - सीिनयर –सैक डरी ‘अ’ वग मोह ले क सफाई के िलए वा य अिधकारी को प सेवा म, ीमान् वा य अिधकारी जी, अशोक िवहार, फै ज नं-- 1 , िद ली नगर िनगम, िद ली मा यवर, िनवेदन है िक ाय: तीन स ाह से हमारे मोह ले म गं दगी का ढेर लगा हआ है, िजसे हटाने के िलए इस मोह ले के ितिनिध आपक सेवा म तीन बार अपने ाथना प ेिषत कर चुके ह, िक तु आज तक उन पर कोई कारवाही नह क गई । गं दगी के कारण सारे मोह ले म म छर का कोप बढ़ गया है, िजससे घर - घर म मले रया बुखार फै ल रहा है । इसक रोकथाम तथा उपचार के िलए िचिक सा िवभाग से कोई कदम नह उठाया जा रहा है, जो अ यं त खेद और ल जा क बात है । 113

कृ पया शी ही गं दगी हटवाने तथा मोह ले को समुिचत सफाई कराने क यव था कर, अ यथा िववश होकर हमे ँ मं ी महोदय के ार खटखटाने पड़ेग,े िजसका स पूण दािय व आपका होगा 1 हम है आपके िव वासपा ितिनिध अ,ब,स,द तक नाम प ते िदनांक 12 जनवरी 2014 परी ा म थम थान पाने पर अपने िम को बधाई प ि य िम मनोज, जय िह द 1 आज, ात: कल 'नवभारत टाइ स ' िदनां क 27.5-2013 म कािशत के दीय मा यिमक िश ा बोड, िद ली का परी ा फल पढा 1 थम ेणी म उ ीण अ यािथय क सूची म तु हारा अनु मांक और नाम देखकर मुझे अ यं त स नता हई है तु हारी इस शं सनीय सफलता पर म अपनी तथा अपनी िम म ड ी क ओंर से तु ह हािदक बधाई देता है । तुम अपने शै िणक जीवन म उ रो र उ नित करते रहो -यही हमारी मंगलकामना- है । छु य म यिद िद ली आयो तो कु छ िदन तक मेरे साथ रहने का काय म अव य बनाना। तु हारा अिभ न िम सुरेश

पु तक माँगने के िलए पु तक िव े ता को प गाय ी भवन बडे डाकखाने के पास, पाली (राज थान)

114

िदनांक 12.12.2013

सेवाम, मान यव थापक जी पि का काशन 409, ल मी कॉ पले स,एम.आई. रोड, जयपुर महोदय, आपके ारा कािशत िन निलिखत पु तक दस - दस ितयाँ बी.पी.पी. ारा मेरे उपयु पते मर शी भेजते क कृ पा कर । आपके िनयमानुसार मने बीस पये आज क धनादेश ारा आपके पते पर भेज िदये है िज ह पु तक के कु ल मू य से घटाकर उिचत कमीशन देते हए पु तक का पासल भेज पु तक के नाम और लेखक 1 िलखावट और आपका यि व 2 सफलता के साथक सू 3 वैिदक कथाऐं

11.6 सारां श प लेखन अिभ यि का सश त मा यम है। यह एक रोचक कला है िजसम ेषक और पाठक दोन समीपता और आ मीयता का अनुभव करते है। िलिखत भाषा का उ े य सबसे अिधक प लेखन ारा ही ा त होता है। भारतीय डाक यव था ारा भी इसम दूर ि थत लोग तक अपनी बात अ य त सरल एवं रोचक ढं ग से पहँचाई जाती है। प लेखन ारा यि व का भाव भी पड़ता है। ाथनाप , िविभ न िवभाग के नाम प , यावसाियक प , सरकारी प , बधाइ प , कायालयी प आिद अनेक कार के प होते है। प लेखन म सरलता, सं ि तता, भावो पादकता, िश टता और उ े यपूणता होनी चािहए।

11.7 अ यासाथ



1

अपनी गली/मुह ले क समुिचत सफाई के िलए नगर िनगम के वा य अिधकारी को प िलिखए।

2

मान िलिजए आपका नाम मुकेश है और आप क ा 10व के िव ाथ है। अपने िव ालय के धानाचाय को दो िदन का अवकाश दान करने के िलए प िलिखए।

3

नगर म कल करखाने से हो रहे दूषण को रोकने हेतु यास करने के िलए िकसी समाचार प के संपादक को प िलिखए। 115

4

िपताजी को प िलिखए िजसम बाहरव के बाद आपक भावी योजनाओं का उ लेख हो।

5

आपके िम को परी ा म पास होने के िलए बधाई प िलिखए।

11.8 सं दभ ं थ 1

डॉ. धीरे वमा: नवीन िह दी याकरण, िह दी मंिदर, इलाहाबाद

2

कामता साद गु : िह दी याकरण, काशी नागरी चा रणी वाराणसी

3

पि डत ीलाल, भाषा च ोदय (भारतवष य िह दी भाषा का याकरण)

4

धीरे वमा: िह दी भाषा का इितहास, िह दु तान अकादमी इलाहाबाद।

5.

िकशोरीदास वाजपेयी: िह दी श दानुशासन, नागरी चा रणी सभा. वाराणसी 1958

6.

िकशोरीदास वाजपेयी: भारतीय भाषा िव ान, चौख भा िव ा भवन वाराणसी 1959

7.

िकशोरीदास वाजपेयी: िह दी क वतनी एवं श द िव लेषण, नागरी चा रणी सभा. वाराणसी 1968

8.

डॉ. राघव काश : यावहा रक सामा य िह दी, िपंक िसटी पि लशस, जयपुर

9.

डॉ. वेकट शमा : यावहा रक िह दी याकरण, सूयनगरी काशन, जोधपुर

116

इकाई – 12 अनु छे द लेखन इकाई क

परेखा

12.0 उ े य 12.1

तावना

12.2 अनु छे द लेखन 12.3 अनु छे द लेखन हेतु आव यक िब दु 12.4 कृ ितपय अनु छे द (शीषक आधा रत) 12.5 सारां श 12.6 अ यासाथ न 12.7 सं दभ ं थ

12.0 उ े य इस इकाई के अ ययन के बाद    

12.1

िव ाथ अनु छे द लेखन क जानकारी कर सके ग अनु छे द लेखन क शैली का िवकास कर सके ग अनु छे द िलखने क सृजना मक द ता ा कर सके ग। ईकाई म िदए गए अनु छे द को पढ़कर वयं भी अ यास करगे और अपनी द ता बढ़ाऐगे।

तावना

बी.ए.पी. के इस पाठ् य म का योजन आपको िह दी भाषा म सृजना मक द ता दान करना है। इसी बात को यान म रखते हए अनु छेद लेखन का पाठ् य म म िनधा रत िकया गया ◌ै। अब तक आप िह दी क वतमान ि थित तथा उसके यावहा रक याकरण को पढ़ चुके है। आप प लेखन कला से भी भली भांित प रिचत हो चके है। इसी म म इस इकाई म आपको अनु छे द लेखन के बारे म बतलाया जा रहा है। इसे पढ़कर आप अनु छेद लेखन के िवषय म आव यक जानकारी ा करेग तथा िह दी म एक अ छा अनु छे द िलखना सीख सकग।

12-2 अनु छे दन लेखन 117

िकसी भी िवषय से स बि धत अपने िवचार को लगभग 80-100 श द म य करना अनु छे दन क ेणी म आता है। िकसी एक िवचार] भाव] सूि अथवा िवषय पर िलखे गए वा य के समूह को अनु छे न कहते है। ायः एक अनु छेन म लगभग 10-15 वा य होते है। अनु छे दन का िवषय कोई भी हो सकता है। रोचक भाषा ारा भावशाली अनु छेन िलखा जा सकता है।

12.3 अनु छे द लेखन हेतु आव यक िब दु भाव प लवन या अनु छे द लेखन एक कला है। िकसी िवषय से सं बं िधत सभी मह वपूण बात को कम श द म िलखने के िलए बुि कौशल क आव यकता है, जो िन न है:1.

अनु छे द लेखन एक कार क संि रहना चािहए।

लेखन शैली है अतः इसम मु य िवषय पर ही कि त

2.

अनु छे द लेखन म उदाहरण अथवा ा त के िलए कोई थान नह है। आव यकता होने पर उसक और संकेत कर देना ही पया है।

3.

अनु छे द म यथ क बात उसके भाव को िशिथल बनाती ह।

4.

अनु छे द के सभी वा य का पर पर घिन सं बधं होना चािहए।

5.

अनु छे द म इस बात क और िवशेष यान देने क आव यकता है िक उसका थम और अंितम वा य अथगिभत तथा भावो पादक होना चािहए।

6.

थम वा य क िविश ता इसमं है िक वह अनु छे द के संबं ध म पाठक का कौतूहल जा त करने म िकस सीमा तक समथ हे। अंितम वा य क िविश ता इस त य पर िनभर करती है िक पाठक क िज ासा िकस सीमा तक शां त हई है।

7.

अनु छे द म भाषा के शु ता तथा श द के चयन पर िवशेष प म यान देना अपेि त ह मुहावर तथा लोकोि य का योग अनु छे द को शि दान करता है तथा भावािभ यि को भावशाली बना देता है।

8.

अनु छे द - लेखन म अनुभिू त प क धानता होती है।

9.

अनु छे द लेखन म परी ाथ को इस बात का यान रखना चािहए िक वह अपनी बात को उतने ही श द म बां धने का य न करे िजतने श द प म कहे गये है।

10.

सामा यत: 80-100 श द म अनु छे द िलखा जाता है।

12.4 कृ ितपय अनु छे द (शीषक आधा रत) अनु छे द लेखन 118

1 िव ाथ (िवचार िब दु - सुरि त रा क कामना, िव ाथ का क य, क यिन ा, सं कट म सहायक रा

ेमी)

रा सभी रा वािसय को ज म, अ न, धन-धा य, आवास तथा सुर ा दान करता है। इसिलए येक रा वासी का क य बनता है िक वह रा िहत का यान रखे। रा सुरि त होगा तो उसके िनवासी भी सुरि त ह गे। ‘िव ाथ ’ का काय ‘िव ा अ ययन’ करना है। उसे िश ा के साथ-साथ ऐसी िव ा भी हण करनी चािहए। िजससे रा ीय भावनाओं का िवकास हो। िव ालय म एन.एस.ए., एन.सी.सी. काउट् स आिद। सं थाएँ इन भावनाओं म योगदान देने के िलए बनी ह। छा को इनम बढ़ चढ़कर भाग लेना चािहए। िव ाथ को एक कत यिन नाग रक क भाँित यवहार करना चािहए। जब देश पर िकसी कार का सं कट हो, तो उसे रा वाणी से अपनी वाणी िमला देनी चािहए। रा के सामने अनेक कार के सं कट आते है - कभी बाढ़, कभी सूखा, कभी यु , कभी महामारी तो कभी दुघटनाएं । िव ािथय को येक संकट म कमर कसे तैयार रहना चािहए। िकसी भी देश क ांित म नवयुवक को का मह वपूण योगदान होता है। जो छा पढ़ते समय रा -िवकास का व न अपनी आँख म भर लेगा, वह िजस भी े म जाएगा, वह रा िहत का काय करेगा। 2. देश ेम िवचारिब दु देश वाभािवक लगाव, मातृभिू म ‘माँ’ के समान बिलदान क उ च भावना, रा ीय एकता के िलए आव यक देश ेम का अथ - देश के कण-कण से ेम होना, उसके पेड़-पौधे प थर, जीव-ज तु, और सभी मानव से ेम होना। स च देश- ेमी वह है जो वदेश िहत के िलए जीता है और आव यकता पड़ने पर जान भी दे देता है। ज मभूिम वग से भी महान ह। िबना वदेश के जीवन धारण करना ही किठन है। इसीिलए देश को मॉ ं क सं ा दी जाती है। िजस कार हमारे अपनी माँ के ित कु छ कत य होते है, वैसे ही अपने देश के ित भी कु छ दािय व होते है। देश ेम क भावना बड़ी उ च भावना ह उसी भावना से े रत होकर देशभ देश के िलए अपना सव व योछावर कर देते है। वतं ता - सं ाम के समय िकतने ही देश-भ ो को जेल क यातनाएं भोगी, हंसते -हंसते लािठयां खाई, िदन का चैन और रात क न द गं वाई और सहष फांसी के त त को चूम िलया। संसार के अ य देश के इितहास भी देश ेम क गाथाओं से रं गे पड़े है। देश ेम क भावना समय म देशभि क भावना इस सारे देश को एकजुट करती है। 3.‘रा ीय एकता क आव यकता’ एकता म कई खूिबयां है। एकता से सारी शि यां के ि त होती है और एक शि - ोत का ज म होता है। िजस भी े म एकता होती है वह े ती गित से ल य ा करता है। अतः रा ीय एकता िकसी भी रा क उ नित और सुर ा के िलए अिनवाय है। भारत म अनेक िविभ नताएं है। वे िविभ नताएं इनती खर हो गई है िक एकता समा हो गई है। कह उतर-दि ण का भेद है, कह ामीण शहरी का, कह अमीर-गरीब क खाई हे तो कह ा ण -अ ा ण क , इ ह से देश म अि थरत आती है और रा कमजोर होता है। भारत क सं कृ ित एक है। इसके महापु ष एक है। उ र-दि ण पूव -पि म कह भी 119

चले जाएं-एक ही कार के धािमक थान एक ही कार के लोग, एक से लोग िमलगे। सभी क भारत म आ था है। िह दु थान के सभी तीथ सारे िह दु थान म फै ले हए है। ये हमारी रा ीय एकता के माण ह। देश क िकसी भी भाषा या े का सािह यकार हो, वह सारे भारत क वदं ना करता है। आज भारत क पहली आव यकता है - अपनी इस एकता को बनाए रखने क । एकता से ही देश क उ नित और शां ित बनी रह सकती है। 4.

हमारे यौहार और उनका मह व

(िवचारिब दु - भारत उ सव का देश, दशहरा, दीपावली, होली, रा ीय उ सव, ईद-ि समस, अ य उ सव) भारत उ सव का देश है। यहॉ ऐितहािसक, सामािजक पौरािणक, धािमक, राजनीितक उ सव बड़ धूमधाम से मनाए जाते है। भारत के सबसे िस और लोकि य यौहार-दशहरा, दीपावली, होली, वतं ता िदवस, और गणतं िदवस है। दशहरा रावण पर राम क िवजय के आनं द म मनाया जाता है। इस िदन राम ने रावण का सं हार िकया था। अतः इस िदन िह दुओं म रावण का पुतला बनाकर जलाया जाता है। दशहरे के ठीक बीस िदन बाद दीपावली आती है। इस रात लोग अपने-अपने घर - दुकान बाजार को रोशनी से जगमगाते है। ब च आितशबाजी का खेल करते ह। इस अवसर पर लोग अपने घर को साफ- व छ करते ह। होली िह दुओं का अित म त उ सव है इस िदन रं गो क वषा करके आनंद मनाया जाता है। वतं ता िदवस और गणतं िदवस हमारे देश क मुि के उ सव ह। इन अवसर पर सरकारी कायालय पर रा ीय वज फहराए जाते है। िविभ न सां कृ ितक, काय म आयोिजत िकए जाते है। ईद और मुहरम मुसलमान के धािमक यौहार ह। ईद आ मबुि और बिलदान भावना क तीक है। ईसाई लोग ईसा-मसीह के बिलदान उ सव को बडे़ धूमधाम से मनाते है। इसके अित र भी भारत म अनेक यौहार मनाए जाते है। 5.गणतं िदवस 26 जनवरी (िवचारिब दु - गणतं िदवस का मह व, सरकार काय म, राजधानी म काय म, परेड का भ य य, रा ीय भावना का संचार।) गणतं -िदवस भारत का सवािधक मह वपूण रा ीय पव है। इस िदन भारत का संिवधान लागू हआ था। 26 जनवरी का िदन समूचे भारतवष म बड़े उ साह तथा हष लास से मनाया जाता है। समूचे देश म अनेकानेक काय म का आयोजन िकया जाता है। देश क सरकार सरकारी तर पर अपनी-अपनी राजधािनय म तथा िजला तर पर रा ीय वज फहराने तथा अ य अनेक काय म का आयोजन करती है। राजधानी िद ली म इस रा ीय पव के िलए िवशेष समारोह आयोिजत िकया जाता है। नई िद ली के िवजयचौक से ातः परेड का ारं भ होता है। इंिडया गेट के िनकट रा पित रा ीय धुन के साथ वजारोहण करते ह। उ हे तोप क सलामी दी जाती है। हवाई जहाज ारा पु पवषा क जाती है। 120

सैिनक का सीना तान कर अपनी साफ-सुथरी वेशभूषा म कदम से कदम िमलाकर चलने का य बड़ा मनोहारी होता है। इस भ य य को देखकर मन म रा भि तथा उ साह का सं चार होने लगता है। िमिल ी तथा कू ल के अनेक बड सारे वातावरण को देश भि तथा रा ेम क भावना से गुं जायमान कर देते है। िविभ न झां िकय क कला तथा शोभा को देखकर दशक मं मु ध हो जाते है। यह पव अ य त ेरणादायी है। 6.भारतीय समाज म नारी का थान (िवचारिब दु -

ामयी नारी, पु ष क सहयोिगनी, म यकाल क नारी, वतमान नारी।)

भारत क नारी दया, ममता, मधुरता और गहरे िव वास से यु है। उसका दय सुदं र गुण का खजाना है। वह वभाव से ही देती है। िकसी ने कहा है - ‘िजस देश म नारी क पूजा होती है, वहॉ देवता िनवास करते ह।’ आज भारत क नारी गित क दौड़ म पु ष के साथ कं धे से कं धा िमलाकर गित कर रही है। वह पुरानी नारी के समान ‘लाज क गुिड़या’ नह बि क पु ष क सहयोिगनी, जीव सं िगनी और सहधिमणी है। वह घर और समाज के िलए समपण करने को तैयार रहती ह दुभा य से म यकाल मे नारी का प िवकृ त हो गया। उसे भो या के प म देखा गया था। पु ष के पाप के कारण उसे पद म िछपना पड़ा, घर क चारदीवारी म बंद होना पड़ा। पु ष के मनमाने अ याचार के कारण उसे िश ा से वं िचत होना पड़ा। इसिलए वह जीवन क दौड़ म िपछड़ गई। वतमान काल म भारतीय नारी सभी े म पु ष को चुनौती दे रही है। िचिक सा िश ा और सेवा म इनका कोई सानी नह है। शासन और पुिलस जैसे कठोर कम म भी उसने अपनी े ता िस कर दी है। वह कु शल वायुयान, चािलका, सैिनक, व ा, व ा और यावसाियका भी िस हो चुक है। उसने वयं कम कु शलता से अपने िलए स मान अिजत कर िलया है। 7. दीपावली का पव (िवचारिब दु - भूिमका, दीपाली मनाने का समय, मनाने का कारण, यापार म वृि । ) दीपावली िह दुओं का मह वपूण उ सव है। यह काितक मास क अमाव या क राि म मनाया जाता है। इस रात को घर-घर म दीपक जलाए जाते है। इसिलए इसे ‘दीपावली’ कहा गया। इस िदन ी रामच जी रावण का सं हार करने के प चात् वापस अयो या लौटे थे। उनक खुशी म लोग ने घी के दीपक जलाए थे। भगवान महावीर ने तथा वामी दयानंद ने इसी ितिथ को िनवाण ा िकया था। इसिलए जैन स दाय तथा आय समाज म भी इस िदन का िवशेष मह व है। िस ख के छठे गु हरगोिव द जी भी इसी िदन कारावास से मु हए थे। इसिलए गु ार क शोभा इस िदन दशनीय होती है। यापारी वग िवशेष उ साह से इस उ सव को मानता है। इस िदन यापारी वग अपनी-अपनी दुकान का कायाक प तो करते ही है। स नता से अपने ि यजन म िमठाई आिद का िवतरण करते है। घर-घर म ल मी का पूजन होता है। ऐसी मा यता है िक उस रात ल मी घर म वेश करती है। बाजार िमठाई से लद जाते है। लोग आितशबाजी चलाकर भी अपनी स नता य करते है। गृिहणयां इस िदन कोई-कोई बतन खरीदना शकु न समझती है। 121

8.क यू टर: आज क ज रत (िवचारिब दु - क यूटर या है, भारत म क यूटर- इसका उपयोग तथा इसके लाभ, दैिनक जीवन म क यूटर।) वतमान युग क यूटर-युग है। क यूटर एक ऐसी वचािलत णाली है जो कै सी भी अ यव था को यव था म बदल सकती है। ि के ट के मैदान म अंपायर क िनणायक भूिमका हो, या लाखो-करोड़ अरब क लं बी-लं गी गणनाएं, क यूटर पलक झपकते ही आपक सम या हल कर सकता है। आज जीवन के लगभग सभी े म क यूटर का वेश हो गया। बैक , रे वे- टेशन, हवाई-अड् ड,े डाकखाने, बड़े-बडे़ उ ोग, कारखाने, यवसाय िहसाब-िकताब, पये िगनने क मशीने तक क यूटरीकरण हो गई ह आज मनु य जीवन जिटल हो गया है। प रणाम व प सब जगह आपाधापी चल रही है। इस पागल गित को सु यव था देने क सम या आज क मुख सम या है। क यूटर ने फाइल क आव यकता कम कर दी है। िव व के िकसी कोने म छपी पु तक, िफ म, घटना क जानकारी इंटरनेट पर ही उपल ध हो जाती है। एक समय था, जब कहते थे िक िव ान ने संसार को कु टु ं ब बना िदया है। क यूटर ने तो मान उस कु टु ं ब को आपके कमरे म उपल ध करा िदया है। इस कार क यूटर ने मानव-जीवन को सुिवधा, सरलता, सु यव था और सटीकता दान क है। 9 अनुशासन अनुशासन िकसी वग या आयु िवशेष के लोग के िलए ही नह अिपतु सभी के िलए ही परमाव यक होता है। िजस जाित, देष और रा म अनुशासन का अभाव होता है वह अिधक समय तक अपना अि त व बना नह रख सकता है। जो िव ाथ अपनी िदनचया िनि त यव था म नही ढाल पाता है, वह िनरथक है य िक िव ा हण करने म यव था ही सव प र है। अनुशासन का पालन करते हए जो िव ाथ योगी क तरह िव ा अ ययन म जुट जाता है वह सफलता पाता है। अनुशासन के अभाव म िव ाथ का जीवन शू य बन जाता है। कु छ यवधान के कारण िव ाथ अनुशािसत नह रह पाता और अपना जीवन न ट कर लेता है। सव थम बाधा है- उसके मन क चंचलता। उसे अनुभव नह होता है इसिलए गु जन क आ ाएँ तथा िव ालय के िनयम, अिभभावक क सलाह उसे कारागार के समान तीत होते है। वह उनसे मुि का माग तलाशता है रहता है। कत य को ितलां जिल देकर के वल अिधकार क मां ग करता है। हर कार से के वल अपनी आकां ाओं क पूित के िलए सं घष पर उता हो जाता है और यह से उ छृ ंखलता और अनुशासनहीनता का ज म होता है। 10. लोबल वािमग के खतरे (िवचारिब दु - लोबल वािमग का अथ, लोबल वािमग के खतरे, उनके भाव बचाव हेतु उपाय। ) लोबल वािमग इ क सव शता दी का सबसे बड़ा खतरा है। इसका अथ है -पृ वी तप रही है। धरती पर गम खतरनाक गित से बढ़ रही है। इसके कारण शताि दय से जम िहमखंड िपघल रहे है। आकाश क 122

छाती म छे द होने जा रहे है। इसके कारण सूय क जहरीली िकरणे ओजोन गैस क परत को भेद कर धरती पर आएं गी। जो भी मनु य, पशु या वन पित उसके सं पक म आएगी वह वाहा हो जाएगी। धरती पर रोग बढ़ेग। मौत असमय ही व तक देने लगेगी। लोबल वािमग का मु य कारण है - मनु य ारा ऊजा का असीिमत उपयोग। परमाणु भ यां औ ोिगक ऊजा, ि ज, ए.सी. का खुला उपयोग आिद ऐसे बड़े कारण है। िजनसे वातावरण म उ मा बढ़ रही है। िनरं तर कटते पेड़ और वन, पे ोल क अ यिधक खपत भी इस गम को बढ़ा रहे है। ये सब मानवीय काय है जो कृ ित के च म खलल डाल रहे है। इ ह रोकने का उपाय भी मनु य के हाथ म है। उ पादन के िलए मानवीय म का अिधक उपयोग िकया जाए। मशीन पर िनभरता घटाई जाए। पेड़ और वन को सं रि त िकया जाए। लकड़ी और आवास के िलए नए िवक प खोजे जाएं तो यह खतरा कु छ सीमा तक कम हो सकता है। परमाणु ऊजा से होने वाले खतर को देखते हए इस पर ितबं ध लगाना चािहए।

12.5 सारां श इस इकाई म अनु छे द लेखन के मा यम से आप म ाना मक तथा सजना मक प रवतन अव य आयेगा। अनु छे द म िकसी एक िवषय पर हम अपने पूण िवचार य करने होते है। अनु छे द म िवचार क एक सं ि ं ृखला होती है। िजसम िवषय म प और िवप सभी को स तुिलत ढं ग से कट िकया जाता हे। ार भ म िव ािथय को चािहए िक सं केत िब दुओं के भाव को समझे। भाव म स ब ध बनाते हए मन ही मन म बनाकर उपयु बात का यान रखकर अनु छे द लेखन कर। तुत इकाई म आपने अनु छे द िलखने क कला सीखी है। व तुतः इसके बार बार अ यास से ही इस कला को िनखारा जा सकता है। अनु छे द लेखन से आपको मौिलक क पना क जानकारी परी क को ा होती है। मौिलक शैली म िलखा गया सं ि और उ े यपरक अनु छे द िव ािथय क िवचार अिभ यि को और अिधक भावी बना देता है।

12.6 अ यासाथ 1)



िन निलिखत अनु छेद को अपनी भाषा म भावशाली ढं ग से 80-100 श द म िलिखए 1.

एकता म बल है।

2.

होली

3.

मेरा देश महान

4.

ाचार: एक सम या

5.

इंटरनेट : एक संचार ांित

6.

िश क िदवस 123

7.

मेला मनपं सद रय टी शो

8.

जीवन म यायाम का मह व

9.

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत

10.

मधुरवाणी

12.7 सं दभ ं थ 1

डॉ. धीरे वमा: नवीन िह दी याकरण, िह दी मंिदर, इलाहाबाद

2

कामता साद गु : िह दी याकरण, काशी नागरी चा रणी वाराणसी

3

पि डत ीलाल, भाषा च ोदय (भारतवष य िह दी भाषा का याकरण)

4

धीरे वमा: िह दी भाषा का इितहास, िह दु तान अकादमी इलाहाबाद।

5.

िकशोरीदास वाजपेयी: िह दी श दानुशासन, नागरी चा रणी सभा. वाराणसी 1958

6.

िकशोरीदास वाजपेयी: भारतीय भाषा िव ान, चौख भा िव ा भवन वाराणसी 1959

7.

िकशोरीदास वाजपेयी: िह दी क वतनी एवं श द िव लेषण, नागरी चा रणी सभा. वाराणसी 1968

8.

डॉ. राघव काश : यावहा रक सामा य िह दी, िपंक िसटी पि लशस, जयपुर

9.

डॉ. वेकट शमा : यावहा रक िह दी याकरण, सूयनगरी काशन, जोधपुर

124

इकाइ – 13 कहानी : बू ढ़ी काक ( ेमच द) इकाइ क

पेरखा

13.0 उ े य 13.1 13.2

तावना ेमच द - प रचय

13.3 कहानी - वाचन 13.4 श दाथ 13.5 कहानी का अथ हण 13.6 सारां श 13.7 अ यास न 13.8 सं दभ ं थ

13.0 उ े य इस इकाइ के अ ययन के प चात आप  ‘बूढ़ी काक ’ कहानी के रचनाकार ेमच द का प रचय ा कर सकगे।  कहानी का वाचन कर किठन श द का अथ हण कर सकगे।  कहानी क कथाव तु,च र िच ण,वातावरण एवं ितपा का जानकारी ा कर सकगे।

13.1 तावना तुत इकाइ म आप ऐसे कहानीकार और उनक रचना से प रिचत होने जा रहे ह िजनके बारे म कहा जाता है िक उ ह ने वही िलखा है जो वयं उ ह ने अपनी आंखो से देखा है और अनुभव िकया। तुत कहानी बूढ़ी काक म इ ह ने सामािजक और पा रवा रक िवसंगितय पर काश डाला है।

13.2 ेमच द - प रचय मुशं ी ेमच द का नाम िह दी के सफल कहानीकार क गणना म सव थम आता है। इनका वा तिवक नाम धनपतराय था। इनका ज म सन् 1880 इ. म उ र देश के वाराणसी िजले म हआ था और 125

ारि भक िश ा भी वाराणसी म ही हइ। िपता क मृ यु के कारण बचपन आिथक सं कट म गुजरा। जीवन क सभी चुनौितय का समाना करते हए बी.ए. क परी ा पास क और िश ा िवभाग म पदो नत होते हए िड टी - इं पे टर ऑफ कू स हो गए। महा मा गां धी के ारा चलाए गए असहयोग आ दोलन म भाग लेने के कारण इ ह यागप भी देना पड़ा। सन् 1936 म महान कथाकार ेमच द का वगवास हो गया।

13.3 कहानी - वाचन बुढापा बहधा बचपन का पुनरागमन ह आ करता है। बूढी काक म जी ा वाद के िसवाय और कोइ चे टा न थी और न अपने क ट क ओर आकिषत करने का रोना रोने के अित र त दूसरा सहारा ही। सम त इि यां और हाथ पैर जवाब दे चुके थे। पृ वी पर पडी रहती और जब घर वाले कोई बात उनक इ छा के ितकू ल करते या भोजन का समय टल जाता उसका प रणाम पूण ना होता अथवा बाजार से कोई व तु आती तो उ ह ना िमलती तो रोने लगती थी उनका रोना सीसकना साधारण रोना ना था वह गला फां ड़ फां ड़ कर रोती थी। उनके पितदेव को वग िसधारे काला तर हो चुका था बैठे त ण ही होकर चल बसे थे बस एक भतीजे के िसवाय ओर कोई न था। उसी भतीजे का नाम उ ह ने सारी स पित िलख दी थी भतीजे ने स पित िलखाते समय खूब ल बे चौडे वादे िकये थे िक तु सब वादे के वल दलाल के िदखाये स जबाब के समान थे य िप उस स पित क वािषक आय डेढ दो सो पये से कम न थी तथािप बूढी काक को पेट भर भोजन भी किठनाई से िमलता था। इसम उनके भतीजे पं िडत बुि राम का अपराध था अथवा उनक अ ािगनी ीमती पा का इसका िनणय करना सहज नह । बुि राम वभाव के स जन थे िक तु उसी समय तक जब तक िक उनके कोष पर कोई आंच ना आये , पा वभाव से ती थी सही पर ई वर से डरती थी अत: ‘बूढी काक ’ को उसक ती ता उतनी ना खलती थी िजतनी बुि राम क भलमन साहत। बुि राम को कभी कभी अपने अ याचार पर खेद होता था िवचारते थे िक इसी स पित के कारण म इस समय भला मानस बना बैठा हं। यिद मौिखक आ वासन और सूखी सहानुभिू त से ि थित म सुधार हो सकता तो उ ह कदािचत कोई आपित ना होती पर तु िवशेष यय का भय उनक सचे टाओं को दबाय रखता। यहां तक िक यिद ार पर कोई भला आदमी बैठा होता और बूढी काक उस समय राग अलापने लगती तो वह आग बबूला हो जाते और घर म आकर उ ह जोर से डाटते । लडक को बुड्ढ़ से वाभािवक षे होता ही है और िफर माता िपता का यह राग देखते तो बूढी काक को ओर भी सताया करते कोई चुटक काटकर भागता कोई उनपर पानी क कु ली कर देता। काक चीख मारकर रोती पर तु यह बात िस थी। िक वे के वल खाने के िलए रोती है अतएवं सं ताप और आतनाद पर कोई यान न देता था। काक कभी ोधातुर होकर ब च को गािलयां देने लगती तो पा घटना थल पर अव य जा पहंचती इस भय से काक अपनी िज ा पी कृ पान का कदािचत भी योग करती थी य िप उप व शां ित का यह उपाय रोने से कही अिधक उपयु त था ।

126

स पूण प रवार म यिद काक को िकसी से अनुराग था तो वह बुि राम क छोटी बेटी लाडली थी । लाडली अपने दोनो भाईय क भये से अपने िह से क िमठाई चबेना बूढी काक के पास खाया करती थी। यही उसका र ागार था। और य िप काक क शरण उनक लोलुपता के कारण बहत मंहगी पड़ती थी । भाइय के अ याय से कह सुलभ थी इसी वाथनुकू लता ने उन दोन म ेम और सहानुभिू त का आरोपन कर िदया। रात का समय था बुि राम के ार पर सहनाई बज रही थी। गां व के ब च का झूडं िव मयपूणने से गान का रसा वादन कर रहा था। चारपािहय पर मेहमान िव ाम करते हए नाईय से मुि कयां लगवा रहे थे। समीप ही खडा हआ भाट िव दावली सुना रहा था और कु छ भावुक महमान के वाह वाह पर ऐसा खुश हो रहा था। मानो इस वाह वाह का यथाथ म वही अिधकारी है। दो एक अं ेजी पढे हए नवयुवक इन यवहार से उदासीन थे। वह इस वार मंडरी म बोलना अथवा सि मिलत होना अपनी ित ठा के ितकू ल समझते थे। आज बुि राम के बडे लडके खुशराम का ितलक आया था। यह उसी का उ सव था। घर के भीतर ि यां गा रही थी और पा मेहमान के िलए भोजन के बंध म य त थी । भ य पर कडाहे चढे थे 1 एक म पूिडयाँ कचौिडयाँ िनकल रही थ , घी और मसाले क ुधावध सुगं िध चार ओर फै ली हई थी । बूढी काक अपनी कोठरी म शोकम न िवचार म डू बी हई बैठी थ । वह वाद िमि त सुगं िध उ ह बेचैन कर रही थी । वे मन ही मन िवचार कर रही थी स भवत: मुझे पूिडयाँ न िमलेगी- । इतनी देर हो गई, कोई भोजन लेकर नह आया, मालूम होता' है, सब लोग भोजन कर चुके । मेरे िलए कु छ न बचा '' यह सोच कर उ ह रोना आया, परं तु अपशकु न के भय से वह रो न सक । "अहा । कै सी सुगं िध है । अब मुझे कौन पूछता है? जब रोिटय के ही लाले पडे ह तब ऐसे भा य कहॉ िकं भरपेट पूिडयाँ िमल । " यह िबचार कर उ ह रोना आया, कलेजे म एक हक-सी उटने लगी । परं तु पा के भय से उ ह ने िफर भी मौन धारण कर िलया । बूढी काक देर तक इ ह दुखदायक िवचार म डू बी रही । घी और मसाल क सुगं िध रह…रह कर मन को आपे से बाहर िकए देती थी । मुहँ भर-भर आता था । पूिडयाँ का वाद मरण करके दय म गुदगुदी होने लगती थी । िकसे पुका आज लाडली बेटी भी नह आई । दोन छोकरे सुदा िदक िकया करते ह 1 आज उनका भी कही पता नह । कु छ तो मालूम होता िक या बन रहा है ? बूढी काक क क पना म पुिडय क त वीर नाचने लगी । खूब लाल लाल फू ली फू ली नरम नरम होगी पा ने भली-भांित मोयन िदया होगा ।- कचौिडय म अजवायन और इलायची क महक आ रही होगी । एक पूडी िमलती तो हाथ म है लेकर देखती । यो न चलकर कड़ाहे के सामने ही बैठु। पूिडयाँ छन छन कर तैरती ह गी 1 फू ल हम घर म भी सुं घ सकते है परतुं वािटका म और कु छ बात होती ह-; । इस कार िनणय करके बूढी काक उकडू ं बैठकर हाथ के बल सरकती हई किठनाई से चौखट के उतर और धीरे धीरे रगती हई कड़ाहे के पास जा बैठी । यहाँ आने पर उ ह उतना धैय हआ िजतना भूख कु ते को खाने वाले के स मुख बैठने म होता है ।

127

पा उस समय कायभार रसे उि न हो रही थी । कभी इस छत म जाती, कभी उस छत म कभी कडाहे के पास जाती तो कभी भ डार म जाती। िकसी ने बाहर से आकर कहा, ‘’महाराज ठ डई मां ग रहे है" ठं डई देने लगी । इतने म िफर िकसी ने आकर कहा. "भाट आया उसे कु छ है दो ।" भाट के िलए सीधा िनकाल रही थी िक एक तीसरे आदमी ने आकर पूछा, "भोजन तैयार होने म िकतना िवलं ब ह? ज़रा ढोल, मंजीरा उतार दो 1" बेचारी अके ली ी दौडती दौडती याकु ल ही रही थी, झुंझलाती थी, कुं ढ़ती थी पर तु, ोध कट करने का अवसर न पाती थी । भय होता कह पड़ोसी ने यह न कहने लगे िक इतने म ही उबल पडी । यास से वयं उसका कं ठ सूख रहा था । गम के मारे फूँ क जाती थी, परं तु इतना अवकाश भी न था िक जरा जानी- पीले अथवा पं खा ह जल ले । यह भी खटका था िक ज़रा आंख हटी और चीजो क लूट मची । इस अव था म उसने बूढ़ी काक को कड़ाहे के पास बैठी देखा तो जल गई । ोध न क सका इतना भी यान न रहा िक पडोिसने बैठी हई है, मन म या कहगी? पु ष म लोग सुनगे तो या कहगे? िजस कार मेढक कचुए पर झपटता है, उसी कार पा बूढी काक पर झपटी और उ ह दोन हाथ से िझंझोड़ कर बोली, "ऐसे पेट म आग लगे, पेट है या भाड़? कोठरी म बैठते या दम घुटता था? अभी मेहमान - ने नह खाया, भगवान को भोग नह लगा । इतना भी धैय न हो सका ।आकर छाती पर सवार हो गई । जल जाए ऐसी जीभ । िदनभर खाती न होती तो न जाने िकसक हाँडी म मुहँ डालती गां व देखगे ा तो कहेगा… बुिढया भरपेट खाने नह पाती, तभी तो इस तरह मुहँ बनाए िफरती है । डाइन न मर, न पीछा छोडे, नाम बेचने पर लगी है । नाक कटवा कर दम लग । इतना ठू ं से है न जाने कहां भ म हो जाता है? लो ! भला चाहती हो तो कोठरी म जाकर बैठो, जब घर के लोग खाने लगगे तब तु ह भी िमलेगा । तुम कोई देवी नह हो िक चाहे िकसी के मुहँ म पानी न जाए, परं तु तु हारी पूजा पहले हो जाए । बूढी काक ने िसर उठाया, न रोई, न बोली । चुपचाप रगती हई अपनी कोठरी म चल गई । आघात इतना कठोर था िक दय और मि त क क सं पणू शि यां, सं पणू िवचार और संपणू भाव उसी और आकिषत हो गए थे । नदी जब कगार का कोई वृहत खंड फटकर िगरता है तोआस पास का जलसमूह चार ओर से उसी थान को पूरा करने के िलए दौड़ता ह । भोजन तैयार हो गया । आँगन म प तल पड़ गए । मेहमान खाने लगे । ि य ने जेवनार गीत गाना आरं भ कर िदया । मेहमान के नाई और सेवकगण उसी मंडली के साथ, िकं तु कु छ हटकर भोजन करने बैठे थे, परं तु स यता के अनुसार जब तक सब खा न चुके , कोई उठ नह सकता था । ' . दो…एक मेहमान जो कु छ पढे-िलखे थे, सेवक के दीघाहार पर झुंझला रहे थे । वे इस बं धन को यथ और बेिसर-पैर का समझते थे । , बूढी काक अपनी कोठरी म जाकर प चाताप कर रही थ िक म कहां-से-कहां गई? उ ह पा पर ोध नह था । अपनी ज दबाजी पर दुख था । "सच ही तो है जब तक मेहमान लोग भोजन न कर चुकगे, घरवाले कै से खाएँग?े मुझेसे इतनी देर भी न रहा गया । सबके सामने पानी उतर गया ।

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अब जब तक कोई बुलाने न आयेगा न जाउं गी। मन ही-मन इसी कार िवचार कर वह बुलावे क ती ा करने लगी । परं तु घी क िचकर सुवास पडी ही धैयपरी क तीत हो रही थी । उ ह एक एक पल एक एक युग के समान मालूम होता था । अब प तल िबछ गए ह गे । अब मेहमान खा गए ह गे । लोग हाथ पैर धो रहे ह, नाई पानी दे रहा है । मालूम होता है, लोग खाने बैठ गए ह । जेवनार गाया जा रहा है यह िवचार कर मन को बहलाने के िलए लेट गई । धीर धीरे एक गीत गुनगुनाते लगी । उ ह मालूम हआ िक उ ह गाते देर हो गई । ' या इतनी देर तक लोग भोजन कर रहे ह गे? िकसी को आवाज नह सुनाई देती थी । अव य ही खा- पीकर चले गए । मुझे कोई बुलाने नह आया । पा िचढ़ गई है । या जाने न बुलाए, सोचती होगी िक आप आएगी, अब कोई मेहमान तो नह जो उ ह बुलाऊँ " । बूढी काक चलने के िलए तैयार हई । वह िव वास िक एक िमनट म पूिडयाँ और मसालेदार तरका रय सामने आएँगी, उनक वादि य को को गुदगुदाने लगा । उ ह ने मन म तरह-तरह के मनसूवे बॉ ंधे । पहले तरकारी से पूिडयाँ खां उगी, िफर दही और श कर से, कचोिडयाँ रायते के साथ मजेदार मालूम ह गी । चाहे कोई बुरा माने या भला, म तो मां ग मां ग कर खाऊँगी ।‘’ यह न लोग कहगे िक इ ह िवचार नह ? या कर, इतने िदन के बाद इतने िदन के बाद पूिडयाँ िमल रही ह तो मुहँ जूठा करके थोडे ही उठ जाऊँगी। वह उकडू ं बैठकर हाथ के बल िखसकती आंगन म आयी पर तु हाय दुभा य अिभलाषा ने अपने पुराने वभाग के अनुसार िम या क पन क थी। मेहमान मंडली अभी बैठी हई थी कोई खा कर अंगिू लयां चाटता था कोई ितरछे ने से देखता था िक और लोग अभी खां रहे है या नह कोई इस िच ता म था पतल पर पूिडयां छू टी जाती है। िकसी तरह उ ह भीतर रख लेता कोई दही खाकर जीभ चटखारता था पर तु दूसरा दोना मां गते संकोच करता था। इतने म बूढी काक रगती हई उनके बीच जा पहंची। कई आदमी च ककर उठ खडे हए पुकारने लगे अरे यह बुिढयां कोन है कहां से आई है देख िकसी को छू ना दे। पं िडत बुि राम काक को देखते ही ोध से ितलिमला गये। पुिडय का थाल िलये खडे थे । थाल को जमीन पर पटक िदया िजस कार िनदयी महाजन अपने िकसी बईमान और भगोड आदमी को देखते ही झपटकर उसका टेटु आ पकड़ लेता है, उसी तरह तरह लपककर काक के दोन हाथ पकडे और घसीटते हए लाकर उ ह अंधेरी कोठरी म धम से पटक िदया। आशा पी वािटका लू के एक झ के से न ट िवन ट हो गई। मेहमान ने भोजन िकया1 घर वाल ने भोजन िकया । बाजेवाले, धोबी, चमार भी भोजन कर चुके , पर तु बूढी काक को िकसी ने न पूछा । बुि राम और पा दोन ही बूढी को उसक िनल जता के िलए दं ड देने का िन य कर चुके है । उनके बुढापे पर दीनता पर, हत ान पर िकसी को क णा न आती थी । अके ली लाडली उनके िलए कु ढ़ रही थी । लाडली को काक से अ यं त ेम था । बेचारी भोली लड़क थी । बाल-िवनोद और चंचलता क । उसम गं ध तक न थी । दोन बार जब उसके माता-िपता ने काक को िनदयता से घसीटा तो लाडली का हदय ऐंठकर रह गया । वह झुंझला रही थी िक ये लोग काक को य बहत-सी पूिडयाँ नह देत?े या मेहमान सबक सब खा जाएँग?े और यिद काक ने मेहमान के पहले खा िलया तो या’ िबगड़ जाएगा? वह काक के पास 129

जाकर उ ह धैय देना चाहती थी. परं तु माता के भय से न जाती थी 1 उसने अपने िह से क पूिडयाँ िबलकु ल न खाई थ 1 अपनी गुिडयां क िपटारी म बं द कर रखी थी । वह उन पूिडयो को न काक के पास ले जाना चाहती थी 1उसका हदय अधीर हो रहा था । . बूढी काक मेरी बात सुनते ही उठ बैठेगी । पूिडयाँ देखकर कै सी स न ह गी। मुझे खूब यार करगी रात के यारह बज गए । पा आँगन म पडी सो रही थी 1 लाडली क आंख म नह न द ना आती थी। काक को पूिडया िखलाने क खुशी उसे सोने ना देती थी। उसने गुिडयां क िपटारी सामने ही रखी थी । जब िव वास हो गया िक अ मा सो रही है त वह चुपके से उठी और िवचारने लगी िक कै से चलू चार और अंधेरा था के वल चू ह म आग चमक रही थी और चू ह के पास एक कु ता लेटा हआ था। लाडली क ि ार के सामने नीम क ओर गयी मारे भय के उसने आंख बं द कर ली इतने म कु ता उठ बैठा। लाडली को ढां ढस हआ िक कही सोये हये मनु य के बदले एक जागता हआ कु ता उसके िलए अिधक धैय का कारण हआ। इसने िपटारी उठाई और बूढी काक क कोठरी क ओर चल दी बूढी काक को के वल इतना मरण था िक िकसी ने उनके हाथ पकड़कर घसीटे, िफर ऐसा मालूम हआ िक कोई पहाड़ पर उठाए िलए जाता है । उनके पैर बार-बार प थर से टकराए तब िकसी ने उ ह पहाड़ से पटका और वे मूि छ हो गई । जब वे सचेत हई तो िकसी क जरा भी आहट न िमलती थी । समझा िक लोग खा पीकर सो गए और उनके साथ उनक तकदीर भी सो गई । रात कै से कटेगी? हे राम ! या खाऊँ? पेट म अि न धधक रही है । िकसी ने मेरी सुधी न ली । या मेरा ही पेट काटने से धन जुड जाएगा? इन लोग कॉ इतनी भी दया नह आती िक न जाने बुिढया कब मर जाए? "उसका जी य दुखाये म पेट क रोिटय ही खाती हँ िक और कु छ? इस पर यह हाल म अ धी अपािहज ठहरी न कु छ सुनँ ू न बूझू । यिद आँगन म चली गई तो या बुि राम से इतना कहते न बनता था िक काक अभी लोग खा रहे, िफर आना । मुझे घसीटा, पटका । उ ह पूिडय के िलए पा ने सबके सामने गािलयाँ द । उ ह पूिडयाँ के िलए इतनी दुगती करने पर भी उनका प थर का कलेजा न पसीजा । सब िखलाया, मेरी बात तक न पूछी । जब तक ही न द तो अब या दगे?" यह िवचारकर काक िनराशामय सं तोष क साथ लेट गई । लािन से गला भर भर आता परं तु मेहमान के भय से रोती न थी। सहसा उसके कानो म आवाज आई, काक । उठो, म पूिडयाँ लाई हँ । काक ने लाडली क बोल पहचानी । चटपट उठ बैठी । दोन हाथो से लाडली को टटोला और गोद म बैठा िलया । लाडली ने पूिडयाँ िनकालकर द । काक ने पूछा, या तु हारी अ मा ने दी ह?" लाडली ने कहा, "नह वे मेरे िह से क है 1" काक पुिडय पर टू ट पड़ा। पाँच िमनट म िपटारी खाली हो गई । लाड़ली ने पूछा, "काक । पेट भर गया? " जैसे थोडी…सी वषा ठ डक के थान पर और भी गम पैदा कर देती है, उसी भाँित इन थोडी…सी पूिडय ने काक क ुधा और इ छा को उ तेिजत कर 130

िदया था । बोल , नह बेटी । जाकर अ मा से और माँग लाओ । लाडली ने कहा, "अ मा सोती ह. जगाऊँगी तो मारगी । काक ने िपटारी को िफर टटोला । उसम कु छ खूरचन िगरी थी । उ ह िनकालकर वे खा गई । बार-बार होठ चाटती थ । चटखारे मारती थी । दयं मसोस रहा था िक पूिडयाँ कै से पाऊँ । सं तोष सेतु जब टू ट जाताहै तब इ छा का बहाव अप रिमत हो जाता है। मतवाल को मद का मरण कराना उ ह मदां ध बनाना है। काक का अधीर मन इ छा के बल वाह म बह गया । उिचत और अनुिचत का िवचार जाता रहा । बे कु छ देर तक इस इ छा को रोकती रह । सहसा लाडली से बोल , मेरा हाथ पकड़कर वहा ले चलो, जहाँ मेहमान ने बैठकर भोजन िकया है 1लाडली उनका अिभ ाय समझ न सक 1 उसने काक का हाथ पकड़ा और ले जाकर जूठे पतल के पास िबठा िदया । दीन, ुधातुर , हत ान बुिढया पतल से पूिडय के टु कडे चुन-चुनकर भ ण करने लगी । ओह, दही िकतना वािद था. कचौिडय िकतनी सलोनी. ख ता, िकतनी सुकोमल । काको बुि हीन होते हए भी इतना जानती थ िक म वह काम कर रही हँ जो मुझे कदािप न करना चािहए । म दूसर के जूठे प तल चाट रही हँ। परं तु बुढापा तृ णा रोग का अंितम समय है, जब सं पणू इ छाएं एक ही क पर आ कती ह । बूढी काक म यह के उनक वादेि या थी । ठीक उसी समय पा क आंख खुली। उसे मालूम हआ िक लाडली उसके पास नह है । वह च क , चारपाई के इधर-उधर ताकने लगी िक कह नीचे तो नह िगर पडी । उसे वहॉ ं न पाकर वह उठ बैठी तो या देखती है िक लाडली जूठे पतल के पास खडी है और बूढी काक प तल पर से पूिडयाँ के टु कड़े उठा-उठाकर खा रही है । पा का दय स न हो गया । िकसी गाय क गदन पर छू री चलते देखते जो अव था हाती है, वही उस समय उसक हई । एक ाहमणी दूसरो: के जूठे प ल टटोले, इससे अिधक शोकमय य असं भव है । पूिडय के कु छ ास के िलए उसक चचेरी सास ऐसा पितत और िनकृ कम कर रही है । यह वह य था िजसे देखकर देखने वाल के हदय काँप उठते । ऐसा तीत होता है मानो जमीन क गई, आसमान च कर खा रहा है, सं सार पर कोई नयी िवपि आने वाली है । पा को ोध न आया । शोक के स मुख ोध कहा? क णा और भय से उसक छाती भर आई । इस अधम के पाप का भागी कौन ह? उसने स चे दय से गगनमंडल क ओर हाथ कर कहा हे, परमा मा! मेरे ब च पर दया करो, इस अधम का दं ड मुझे मत दो, नह तो हमारा स यानाश हो जाएगा ।" पा को अपनी वाथपरता और अ याय इस कार य प म कभी न दीख पडा था । वह सोचने लगी हाय म िकतनी िनदयी हं िजसक स पित से मुझे दो सौ पये वािषक आय हो रही है उसक यह दुगित और मेरे कारण हे दयामय भगवान मुझसे बडी भारी भूल हई है। मुझे मा करो, आज मेरे बेटे का ितलक था सैकड मनु य ने भोजन पाया म उनक इशार क दासी बनी रही। अपने नाम के िलए सैकड पय यय कर िदए पर तु िजसक बदोलत हजार पये खाए उसे इस उ सव म भी भरपेट भोजन ना दे 131

सक के वल इसी कारण तो वह वृ ा है , असहाय है। पा ने िदया जलाया अपने भं डार का ार खोला ओर एक थाली म स पूण सामि यां सजा कर काक क ओर चली। आं धी रात हो चुक थी आकाश पर तार के थाल सजे हए थे पर तु उनम से िकसी को परमाननद ा त हो न सकता था। जो बूढी काक को अपने स मुख थाल देखकर ा त हआ पा ने कं ठा ध वर से कहा काक उठो भोजन कर लो। मुझे से आज बडी भूल हई उसका बुरा ना मानना परमा मा से ाथना कर दो िक वह मेरा अपराध मा कर द। भोले भाले ब च क भां ित जो िमठाईयॉ ंपाकर मार और ितर कार सब भूल जाते है बूढी काक बैठी हई खाना खा रही थी। उनके एक एक रोये से स ची सिद छाएं िनकल रही थी और पा पास म खडी हई इस वग य य का आन द लूटने म िनम न थी।

13.4 श दाथ                   

दीघाहार अपना राग अलापना (मुहावरा) धैय परी क स चे टा दय ऐंठ कर रह जाना (मुहावरा) दु:ख; छाती पर सवार होना (मुहावरा) पुनरागमन सुधी त ण स जबाग भलमनसाहत आतनाद ोधातर लोलुपता र ागार लाते पड़ता (मुहावरा) आघात िम या – मुहं म पानी आना (मुहावरा) -

अिधक समयतक भोजन करना; अपनी बात कहना; धैय क परी ा लेने वाला, स चा यास, मन म बहत दुखी होना, लािन – दु:ख िबना इ छा के पास आना, दुबारा लौटा आना, खबर, युवा,जवान, झूठे वादे, स जनता, दुखभरी आवाज, ोध से आतुर , बेचैन इ छा, र ा का घर, दुलभ होना; चोट, झूठा खाने को ललचाना, 132

                

जेवनार गीत उि न वृह खंड बैिसर पैर क बात (मुहावरा) वादेि य मदां ध उबल पड़ना (मुहावरा) नाक कटवानी (मुहावरा) ितलिमला जान (मुहावरा) ुधातुर हत ात सुवास सेतु अिभ ाय भ ण करना कं ठाव िनम न

-

भोजन के समय गाए जाने वाला गीत, बैचेन, बड़ा टु कड़ा, बैतकु बात, वाद लेने वाली इंि य (जीभ), मद (घम ड) से अंधा, ोध मआना ; बेइ जती करना, याकु ल हो जाना, भूख से आतुर ( याकु ल), ान न ट होना, सुगं ध, पुल , ता पय, खाना, ं धे हए गले से, डु बी हइ।

13.5 कहानी का अथ हण (िववेचना) कथाव तु - ‘बूढ़ी काक ’ ेमच द क उन कहािनय म से है जहां आदश क थापना अंत म लेखक ारा क जाती है। ‘बूढ़ी काक ’ को भी नमक का दारोगा, पं च परमे वर तथा इदगाह के समाना तर ही माना जा सकता है जहां कहानी के अि तम य म पा का दय प रवतन हो जाता है और कथाकार ेमच द एक आदश थािपत करते है। ‘बूढ़ी काक ’ के कथानक को ेमच द ने इस कार सं जोया है िक वृ ाव था से जुड़ाव रखने वाले यथाथ प हमारे सामने िचि त हो जाते ह। बूढ़ी ी का न पित है और न पु । उनका एकमा आधार उसका भतीजा बुि राम है। अपनी सारी स पित वह अपने भतीजे के नाम कर देती है। सं पित लेते समय भतीजा अपनी बूढ़ी काक से बड़े-बड़े वायदे करता है। पर अब उसे भरपेट भोजन भी नह िमलता। एक रात बूढ़ी काक के भतीजे बुि राम के बड़े लड़के का ितलोको सव था। घर के भीतर ि यां गा रही थ और घर के सद य भोजन के ब ध म य त थे। बूढ़ी काक म अब िज हा वाद के िसवा और कोइ इ छा शेष न रह गइ थी। पूिड़य 133

कचौिड़य क खूशबू मसालेदार तरकारी क महक उ ह बैचैन कर रही थी। उससे रहा न गया फलत: वह कड़ाह के पास पहंच जाती है, जहां भोजन पक रहा था। बूढ़ी काक को वहां देखकर बुि राम क प नी पा अ य त ोिधत होती है। बूढ़ी काक चुपचाप रगती हई अपनी कोठरी म चली जाती है। पर तु भोजन का लोभ उनके मन से िनकल नह पाता। वह म नही मन क पना करने लगती है िक अब तक लोग भोजन कर चुके हां गे, काफ समय हो गया है। यह सोचते हए वह पुन : अपनी कोठरी से बाहर िनकलती है। तब बुि राम उसे िनदयतापूवक घसीट कर उसक कोठरी म पहंचा देता है। बूढ़ी काक भूखे- यासे मन मसोस कर रह जाती है। बुि राम क छोटी बेटी पा रात म सबके सो जाने के बाद अपने िह से क पुिड़यां लेकर बूढ़ी काक के पास पहंचती है। उन पुिड़य को खाकर वह बहत खुश होती है। पर इससे उसक भूख नह िमटती है, बि क भूख और बढ़ जाती है। काक िपटारी को पुन : टटोलती है, िजसम ख चन पड़े ह। उसे िनकाल कर वह बार बार ह ठ से चाटती है, चटखारे भरती है। िफर अपनी लाडली से कहती है िक मुझे वहां ले चलो जहां मेहमान ने भोजन िकया है। उस थान पर बूढ़ी काक जूठी पतल से भोजन हण करती है। पा जब उ थान पर आती है तो यह य देख वीभूत हो जाती है। वह अपराध त होती है तथा ई वर से इस कु कृ य के िलए मा याचना करती है और अ त अपनी गलितय के िलए माफ मां गती हइ बूढ़ी काक को सादर भोजन परोसती है। इस कार हम देखते है िक ‘बूढ़ी काक ’ कहानी क कथाव तु म बुजगु क दुदशा का िच ण है। यह सम या वतमान समय म तो िव ू प प धारण कर ही चुक है पर तु िजस समय ेमच द ने इस कहानी को िलखा था उस समय भी समाज के वृ जन के ित हो रहे वहशीपन को सटीक लेखनी उप यास स ाट ने तुत िकया है। गभाव था से लेकर ौढ़ाव था के बाद तक सभी अव थाओं म प रवतन होता है। पर तु ौढ़ाव था के बाद आने वाली वृ ाव था के आगे कोइ ओर या अ य चरण नह आता है। इस अव था म मनु य पुन : बालपन म जीना ार भ हो जाता है। िज ा का गुलाम बन जाता है। बाल सुलभ मन के चलते िकस कार वृ ाव था म अपन से ही अपमान झेलना पड़ता है, इस ासद को सं वदेना क पृ ठभूिम पर ेमच द ने रचा है। शीषक क उपयु ता - िकसी रचना के कथानक या उसक कथाव तु क समुिचत िवशेषताओं के अ ययन के िलए उसके शीषक का औिच य भी आव यक होता है। जैसे िकसी रचना का शीषक उसके मुख पा उसक मुख घटना या सीन के आधार पर ाय: रखा जाता है। इसके साथ ही उसका सं ि और आकषक होना भी ज री माना जाता है। तुत कहानी बूढ़ी काक पर ही के ि त है अत: इस कहानी का शीषक पूणत: उपयु है। कहानी का के िब दू बूढ़ी काक है। कहानी क समूची आंत रक और ा सं वदेना बूढ़ी काक से जुड़ी हइ है। अत: इस कहानी का शीषक सवथा उिचत और साथक माना जा सकता है।

134

वातावरण प रवेश बूढ़ी काक ामीण वातावरण क एक ग ा मक ह क झलक अव य िमलती है। लेिकन इसका वा तिवक प रवेश परो प से ेमच द के स पूण कथा सािह य का अिभ न िह सा है। जहां तक वातावरण का न है, ेमच द ने सं वेदना के उ च तर पर बूढ़ी काक का ताना बाना बुना है। बूढी काक म बचपन का पुनरागनु बुजगु अव था, िज ा रसा वादन क आदी हो जाना, र तेदार ारा वृ ाव था म अपमान होना, ज रत से अिधक सामान के समान समझना जो एक कोने से पड़ा रहता है। िजसे प रवार के लोग मह वहीन मानते है। पा रवा रक पृ ठभूिम को आधार बनाते हए ेमच द ने सामािजक सम या के कटु यथाथ को तुत िकया है। च र िच ण - बूढी काक कहानी म चूं िक मु य पा बूढी काक है तथा बुि राम पा, लाडली ये सभी सहायक पा के प म है। ेमच द म यवग य पा को कै नवास पर इस कार तुत करते थे िक पाठक पूण प से उस पा के साथ आ मीय हो जाता था। बू ढ़ी काक - स पूण कहानी को अपने बुजआ कं ध पर लेकर चलने का ेय बूढी काक को ही है। बूढ़ी काक कहानी क ारि भक पं ि यां बूढ़ी काक के सं दभ म है। हा य भाव को तुत करती हई पंि यॉ ं उस हा य के रह य म छू पी हइ वेदना, ितर कार, यथाथ अंत म पाठक को झकझोर देते है। घर का वो सद य िजसने सदैव अपने प रवार को सव प र समझा और आज जब उस सद य को अपने अपन क आव यकता हइ है तो सभी उसे िसर से नकार देते है। िकस कार बताया गया है िक बूढ़ी काक को पेटभर भोजन भी किठनाइ से िमलता है। ेमच द ने ारि भक म पं ि य बुजगु अव था म प रवा रक ताड़ना को तुत िकयाहै। ‘................लड़क को बुडढ़ से वभािवक षे होता ही है और िफर जब माता िपता का रं ग देखते तो बूढी काक को ..........कोइ चुटक काटकर भगता, कोई उन पर पानी क कु ली कर देता। बूढ़ी काक िजसने अपने सं पित अपने भतीजे को दे दी थी उसके प चात भी घर म उसक दुदशा थी तो यह िवचारणीय है िक जो बुजगु इस अव था म िकसी कार का कोइ सहयोग न कर सके तो उसे िकतना सुनने को िमलता होगा और दु यवहार का अित मण हो जाता होगा। बूढ़ी काक म बुि राम बूढ़ी काक के ित जो यवहार करता है वह आधुिनक म यवग य प रवार का क चा िच ा हमारे सम करता है उदाहरण - ‘......थाल को जमीन पर पटक िदया िजस कार िनदयी महाजन अपने िकसी बेइमान और भेगोड़े आदमी को देखते ही झपटकर उसका टटु आ पकड़ लेता है...........।’’ 2 बु ि राम - बुि राम के यि व का पता ारि भक पं ि य म लग बुि राम वभाव से जो स जन थे, िक तु उसी समय तक जब तक िक कोइ उनके कोश पर कोइ आंच न आए। कइ बार बुि राम को अपने ारा िकये गये काय पर आ म लािन भी होती पर तु यह आ म लािन िणक होती थी। बूढी काक को गािलयां देना, घसीटना यह सभी बुि राम के दैिनक िदनचया के काय थे। ेमचं द बुि राम जैसे पा 135

के मा यम से आधुिनक समाज म अनिगनत प् से या इस कार के बहसं यक लोग पर कटा िकया है। 3 पा - पा एक बह के िकरदार म है जो वभाव से बहत तेज है पर तु ई वर के भय से वह सदैव डरती है। य िप पा भी जबान से आग उगलती है ‘‘िजस कार मेढ़क कचुए पर झपटता है, उसी कार पा काक पर झपटी और उससे बोली - ऐसे पट म आग लगे पेट या भाड़?............डाइन न मरे, न पीछा छोड़े। नाक कटवाकर दम लेगी।’’ अंत म बूढ़ी काक को जब झूठी प ल खाते हए तो आ म लािन के भाव से भर जाती है। ई वर से और बूढ़ी काक से अपने अपराध क मा याचना करती है। उसे अपने िकये पर पछतावा होता है। लाडली - पूरे प रवार म लाडली एक ऐसा पा है जो काक से अ य त ेम करती है। भोली लडक है। बाल - िवनोद और चं चलता क इसम न था। लाडली काक को िबना िकसी शत के नेह करती थी। लाडली काक से अनुराग के कारण अपने िह से क िमठाइ, िबनादेना बूढ़ी काक के िलए बचा के रखती थी। कहानी के अंितम पडाव म भी बालसुलभ दय का प रचय देते हए लाडली ने कहा ‘‘......काक ! उठो, म पुिड़यां लाइ हं।...काक ने पूछा ‘‘ या तु हारी अ मा ने दी है? लाडली ने कहा नह ये मेरे िह से क ह।’’ लाडली का काक के ित लगाव आ मीय था िबना िकसी वाथ के । ितपा - ेमच द ने सािह य को बौि क सामािजक गं भीर कम मानने के कारण उसक सो े ता को हमेशा के म रखा है। ेमच द ने एक सामािजक सम या को उजागर िकया है। जो वतमान समय म बहयातायत देखने को िमलते है। बुढापा मानव जीवन का अंितम पड़ाव है। बुढापा तथा बचपन दोन ही ि थितय म मानव को दूसर पर िनभर रहना पड़ता है और यिद ऐसी ि थित म कोइ सहारा न िमले तो उस ि थित से दयनीय और दुखदायक और कु छ नह होता। खासतौर पर बूढ़े मनु य कोइस बात से अिधक क ट का अनुभव होता है िक कोइ उसका िनरादर करे। बूढ़ी काक के मा यम से ेमच द ने इसी सम या क ओर यान के ि त िकया है। ऐसे प रवार म जहां मां बाप ही अपने बुजगु का िनरादर करते ह , वहां उनके ब चे भी वृ को कु छ नह समझते। ऐसे घर म वृ जन को भार समझा जाता है और उनका िनरादर िकया जाता है। ऐसे मां बाप को यह भी सोचना चािहए िक कभी वे भी बूढ़े ह गे और यिद उनके ब चे उनका उसी कार िनरादर करगे तो उ ह कै सा लगेगा।

13.6 सारां श तुत इकाई म ेमच द ारा िलिखत कहानी ‘बूढ़ी काक ’ के मा यम से लेखक ने भारतीय समाज म िव मान वृ जन को स मान और सहानुभिू त दान करने क सीख दी है। वृ ाव था म होने वाले भाव सं वेग को बूढ़ी काक के मा यम से दशाया है। घर के बुजगु क देखभाल और उ हे समुिचत प रवेश दान करने क हमारी िज मेदारी से हम वयं को अलग नह रख सकते। 136

13.7 अ यास



1

बूढ़ी काक क समपि क वािषक आय िकतनी थी?

2

बुि राम काक के र ते म या लगता था?

3

पा और लाडली के वभाव का सं ेप म उ लेख क िजए।

4

काक कौन थी और उसे या खलता था।

5

बुि राम के घर म िकस उतसव का आयोजन हआ?

6

जेवनार गीत से या अिभ ाय है?

7

कड़ाहे के पास बैठकर बूढ़ी काक को कै सा लगा और पा ने या कहा?

8

बूढ़ी काक को प चाताप यूं हआ?

9

काक को खाना य न िदया गया?

10

बूढ़ी काक ारा झूठन खाते देख पा क जो िति या हइ,उसका वणन क िजए।

11

खाना खाते समय बूढ़ी काक क या मनोदशा थी।

12

बूढ़ी काक कहानी के ितपा को प ट क िजए।

13

कहानी म िव मान पा बुि राम और पा का च र िच ण क िजए।

14

कहानी म आए मुहावर को छांटकर उनका अथ िलखकर वा य म योग का अ यास क िजए।

13.8 सं दभ ं थ 1

डॉ. इ नाथ मदान : ेमच द एक िववेचन, राजकमल काशन, नइ िद ली।

2

डॉ. स यकाम : ेमच क कहािनय का पुनरावलोकन, अनुपम काशन, पटना

3 4

काशच द गु : ेमच सािह य अकादमी, नइ िद ली डॉ. रामिवलास शमा : ेमच द और उनका युग , राजकमल काशन, िद ली

137

इकाइ – 14 प िवधा : च र िनमाण (महा मा गां धी) इकाइ क

परेखा

14.0 उ े य 14.1

तावना

14.2 महा मा गां धी : एक प रचय 14.3 पाठ - वाचन 14.4 श दाथ 14.5 सारां श 14.6 अ यास न 14.7 सं दभ ं थ

14.0 उ े य इस इकाइ के अ ययन के प चात आप  महा मा गां धी के बारे म जानकारी ा कर सकगे।  यि गत प िलखने क िविध भी समझ सकगे।  च र - िनमाण पाठ के आधार पर महा मा गां धी क यि व क िवशेषताओं को समझ सकगे।

14.1 तावना तुत इकाइ म पु के नाम एक िपता के प का उ लेख है। यह प भारत के रा िपता और हमारे ि य ‘बापू’ महा मा गां धी ने अपने पु मिण लाल को अपने जेल - वास के समय िलखा था। इस पाठ म गां धी जी अपने पु को सादा जीवन और उ च िवचार अपनाने क सीख देते ह।

14.2 महा मा गां धी : एक प रचय महा मा गां धी महान वाधीनता सेनानी, स य और अिहंसा के पुजारी थे। महा मा गां धी का ज म 2 अ टू बर 1869 को गुजरात के पोरब दर नगर म हआ। इनके िपता का नाम करमच द गां धी और मां का नाम पुतली बाइ था। इनक प नी क तूरबा भारतीय सं कृ ित क ित प थी। गां धी जी ने दि ण अ का 138

से अपने यि व का िवकास शु िकया। भारत लौटकर वे असहयोग आ दोलन के णेता बने। अिहंसा और स या ह के सहारे उ ह ने देश को आजादी िदलवाइ। उनके अि तीय योगदान के कारण ही देश ने उ ह ‘रा िपता’ क उपािध दान क है। महा मा गांधी ने सारा जीवन स य और अिहंसा के योग करने म िबता िदया। हम उ ह बापू कहकर पुकारते है।

14.3 पाठ वाचन महा मा गां धी का अपने पु मिणलाल को जेल से िलखा गया प ि य पु हर महीने एक प िलखने और एक प आने का अिधकार मुझे िमला है। अब म प िलखूं िकसे । िम टर रच का िम टर पोलक का और तु हारा खयाल मुझे बारी बारी से आता था लेिकन इस समय तु हारा ही यान मुझे बराबर आ रहा है। मेरे बारे म तुम जरा भी िच ता मत करना। िवशेष कु छ कहने का अिधकार मुझे नह है। म पूण प से शां ित म हं। आशा है िक बा अ छी हो गयी होगी। मुझे मालूम है िक तु हा र कु छ प यहां आये ह, लेिकन वह मुझे नह िदये गये । िफर भी िड टी गवनर क उदारता से मुझे मालूम हआ िक बा का वा य सुधर रहा है। या वे िफर से चलने िफरने लगी बा? और तुम लोग सवेरे दूध के साथ साबुदाना बराबर ले रहे ह गे और अब कु छ तु हारे बारे म कहना चाहंगा, तुम कै से हो, तुम पर जो िज मे दारी मैने डाली है, तुम उसके पूरी तरह यो य हो और तुम खुशी खुशी िनभा रहे ह गे , मुझे ऐसी आशा है। म यह जानता हं िक तु ह अपनी िश ा के ित असंतोष है। जेल म मैने खूब पढा है, िजससे म समझता हं िक के वल अ र ान ही िश ा नह है। स ची िश ा तो च र िनमाण और कत य का बोध है यिद यह ि कोण सही है और मेरे िवचार से यह िबलकु ल सही है तो तुम स ची िश ा ा त कर रहे हो। आज कल तु ह अपनी बीमार मां का सेवा का अवसर िमला है। रामदास और देवदास का भी तुम स भाल रहे हो । यिद यह काम तुम अ छी तरह और खुशी खुशी कर रहे हो तो तु हा री आधी िश ा इसी के ारा ही पूरी हो जाती है। एक बात म कहना चाहता हं िक आमोद मोद एक िनि त आयु तक ही शोभा देते है। बारह वष क उ के बाद ब च म िज मेदारी और कत य का भाव होना चािहए। उ ह अपने आचार िवचार म स य और अिहंसा के येाग क चे टा करनी चािहए और यह वे भार समझ कर नह कर। बि क एक आन द का अनुभव करते हए कर । यह आन द कृ ि म भी नह होना चािहए । यह सरल और वाभािवक होना चािहए। म जब तुमसे काफ छोटा था तो मुझे वयं अपने िपताजी क सेवा करने म बहत आन द िमलता था। बारह वष क आयु के बाद आमोद मोद का बहत ही कम बि क नह के सामान ही अवसर मुझे िमला है।

139

सं सार म तीन बात बड़ी मह वपूण हैा इनको ा त कर तुम संसार के िकसी कोने म जाओगे तो अपना िनवाह कर सक गे यह तीन बात है – अपनी आ मा का, अपने पाप का, और ई वर का स चा ान ा त करना उसका मतलब यह नह है िक तु ह अ र ान नह िमलेगा वह तो िमलेगा ही लेिकन तुम उसी क करो यह म नह चाहता। इसके िलए तु हा रे पास बहत समय है अ र ान तो इसिलए करता है िक जो कु छ तु ह िमला है उसे तुम दूसर को दे सको। इतना और याद रखना िक अब से हम गरीबी म रहना है। िजतना अिधक म िवचार करता हं उतना ही अिधक मुझे लगता है िक गरीबी म ही सुख है। अमीर क तुलना म गरीब अिधक सुखी है। खेत म घास और गढढा खोदने म पूरा समय देना। भिव य म अपना जीवन िनवाह इसी से करना है। मेरी इ छा है िक एक यो य िकसान बनो। सभी औजार को सदा साफ और सु यवि थत रखना। अ र ान म गिणत और सं कृ त पर पूरा यान देना। भिव य म सं कृ त तु हारे िलए बहत उपयोगी िस होगी। यह दोन िवषय बडी उ म सीखना किठन है। सं गीत म भी बराबर िच रखना। िह दी, गुजराती और अं ेजी के चुने हए भजन और किवताओं का एक सं ह तैयार करना चािहए। वष के अ त म तु ह अपना यह सं ह बहत मू यवांन तीत होगा । काम क अिधकता से मनु य को घबराना न चािहए और न ही यह सोचना चािहए िक यह कै से होगा? और पहले या कर। शां त िच त से और समझकर यिद तुमने सभी सदगुण को ा त करने क चे टा क तो वह तु हारे िलए बहत उपयोगी और मू यवान िस होगे। तुमसे आशा है िक घर के िलए जो भी तुम खच करते ह गे उसके पैसे पैसे का िहसाब रखते ह गे। मुझे यह भी आशा है िक तुम रोज शाम को िनयमपूवक ाथना करते ह गे और रिववार को ीवे ट के यहां भी ाथना म जाते ह गे । सूय दय से पहले उठकर ाथना करना बहत ही अ छा है। य न पूवक एक िनि त समय पर ही ाथना करनी चािहए। यह िनयिमतता तु ह अपने जीवन म आगे चलकर बडी सहायक िस होगी। तु हारा िपता मोहन दास

14.4 श दाथ चर कत य

– -

गुण का समूह फज, िज मेदारी

उदारता िनमाण

– –

दानशीलता बनाना 140

सं ह आमोद मोद

– –

एकि त करना रं ग ‘ रैिलयां, मनोरं जन

वाभािवक िनवाह सु यवि थत भिव य िज मेदारी तुलना खच चे टा

– – – – – – – –

सहज गुजारा करना सही थान पर ठीक से रखना आने वाला समय उ तरदािय व बराबरी यय यन

14.5 सारां श तुत पाठ म प िवधा के मा यमसे गां धी जी ने य प म अपने पु मिणलाल और अपरो प से सभी भारतीय जन को जीवन मू य व भारतीय सं कृ ित को अपनाने क सीख दी है। िपता के प म पु को जो जीवन - शैली उ ह ने िसखाइ है, वह आज के चमक-दमक वाले सं सार से िब कु ल अलग है। इन सं कार को जीवन म उतारना ही स चा जीवन है। इतने ऊँचे थान पर पहँचने वाले बापू िकतने सादगी भरे जीवन को अपनाने क ेरणा दे रहे ह - यह सचमुच अनुकरणीय है।

14.6 अ यासाथ 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10



गां धी जी के अनुसार सबसे उपयोगी िवषय या है? यह प िकसने, िकसको और कहां से िलखा। गां धी जी स ची िश ा िकसे मानते थे? गां धीजी मिणलाल को या बनाना चाहते थे? गां धीजी ने अ र ान का या अथ बताया? ‘बा’ कौन थी, उनके िवषय म इस प म या जानकारी िमलती है? गां धीजी ारा बताइ गइ िजन तीन बात को हम यान रखना चािहए उनका उ लेख क िजए। बारह वष क आयु के बाद हम िकन िकन गुण के िवकास क ओर यान देना चािहए? गां धीजी के अनुसार स चा सुख कहां है? इस प के आधार पर गां धी के यि व क िवशेषताएं उदघािटत क िजए।

14.7 सं दभ ं थ

141

1

प -लेखन िव ा के अनेक सं ह और सं कलन है : जैसे गां धी जी के प - मोहनदास कमच द गां धी, सुभाष के प - नेता जी सुभाश च बोस, िपता के प पु ी के नाम - जवाहरलाल नेह आिद अनेक पु तक ह।

2

मोहदास करमच द गां धी : स य के योग (आ म कथा)

142

इकाइ – 15 किवता : नर हो न िनराश करो मन को (मैिथलीशरण गु त) इकाइ क

पेरखा

15.0 उ े य 15.1

तावना

15.2 किव - प रचय 15.3 किवता - वाचन 15.4 श दाथ 15.5 किवता का अथ 15.6 सारां श 15.7 अ यास न 15.8 सं दभ ं थ

15.0 उ े य इस इकाइ के अ ययन प चात आप  किव मैिथलीशरण गु के यि व एवं कृ ित व क जानकारी ा कर सकगे।  किवता का वाचन कर उसका अथ हण कर सकगे।  श द का अथ हण करते हए किवता का भावाथ समझ सकगे।

15.1 तावना किव मैिथलीशरण गु रा किव माने जाते है। पराधीन भारत म रा ीय चेतना जगाने का नव जागरण का काय किव गु जी ने िकया। अपनी रचनाओं के मा यम से किव ने भ य अतीत को पौरािणक ऐितहािसक घटनाओं और पा के ारा सामने रखा। भारत के जन-जन म मानवतावादी ि कोण, रा ीय भावना का िवकास करने और एकता - समानता का सं देश गु जी ने अपनी किवताओं के मा यम से िदया है। इस इकाइ म तुत किवता ‘नर हो न िनराश करो मन को’ म किव ने कम क मह ता 143

बताते हए मनु य को वािभमान के साथ काय करने क ेरणा दी है। किव ने आशावादी ि कोण का जन मानस म िवकास िकया है।

15.2 किव - प रचय झां सी िजले के िचरगां व नामक ाम म मैिथलीशरण गु का ज म सं वत 1943 म ावण शु ल ि तीया सोमवार, 3 अग त सन 1886 को हआ था। िपताजी ने इनका नाम ी िमिथलािधय नि दनीशरण रखा था जो बाद म मैिथलीशरण गु नाम से िस हआ। गु जी के िपता का नाम सेठ रामचरण था और माता का नाम काशीबाइ था। बचपन म नटखट वभाव के बावजूद वे बुि मान व ितभाशाली थे। रामभि के सं कार उ ह प रवार से ही ा हए। पहली दो पि नयां और उसक सं तान क मृ यु के प चात उनका तीसरा िववाह सरयूदवे ी से हआ। सरयूदेवी उनके सुख दुख म हमेशा के िलए उनक सहभागी बनी और उनसे उ ह उिमला चरण पु र न क ाि हइ। सामािजक स ाव मयािदत ेम, ामीण जीवन और पा रवा रक सामंज य आिद उनके यि व क मुख िवशेषताएं थी जो उनके जीवन से हमेशा जुड़ी रही। सादगी,सौ यता, सरलता कृ ित- ेम और मधुरता उनके यि व के अिभ न गुण थे। सदाजीवन और उ च िवचार क ेरणा गु जी को महा मा गां धी से िमली थी। महादेवी वमा, किव िनराला, माखनलाल चतुवे दी, सुिम ान दन पं त, वृ दावनलाल वमा आिद कइ सािह यकार से गु जी क िम ता रही। भारतीय रा ीय वाधीनता आ दोलन क लड़ाइ म सि य भाग लेने के कारण 17 अ ेल सन 1914 को गु जी को जेल जाना पड़ा। अनेक वष तक ये रा य सभा के सद य रहे। सन 1953 म भारत सरकार ने इ ह पदुमभूषण से स मािनत िकया। आगरा के िह दू िव विव ालय ारा 1962 इ. म इ ह डी. िलट. क उपािध दी गइ। रा ीय चेतना को जगाने वाले रा किव का देहावसन 11 िदस बर को सन 1964 को हआ। गु जी का रचनाकम (किवता रचना) सन 1901 से ार भ होकर 1960 म उनक का य रचना र नावली के काशन पर समा होती है। इनक मुख का य कृ ितया है - साके त, यशोधरा, भारत भारती, पंचवटी िस राज, रं ग म भं ग, िकसान, जय थ, वध, पृ वीपु , नहश, ापर और र नावली आिद है। इनक किवताओं म तप, याग, क णा, शाि त, दया, मा जैसे मानव मू य, नारी च र क उ च ि थित और रा ीय चेतना का वर सुनाइ देता है।

15.3 किवता - वाचन नर हो न िनराश करो मन को। कु छ काम करो, कु छ काम करो । 144

जग म रहकर कु छ नाम करो । यह ज म हआ िकस अथ अहो. समझो, िजसम यह यथ न हो । कु छ तो उपयु करो तन को.. नर हो न िनराश करो मन को। । समझो िक सुयोग न जाय चला. कब यथ हआ सदुपाय भला । समझो जग को न िनरा सपना, पथ आप करो श त अपना । अिखले वर है अवलं बन को । नर हो न िनराश करो मन को । । िनज गौरव का िनत ान रहे. हम भी कु छ है यह यान रहे। सब जाए अभी पर मान रहे. मरने पर गुं िजत गान रहे । कु छ हो न तजो िनज साधन को। नर हो न िनराश करो मन को। भु ने तुमको कर दान िकए, सब वांिछत व तु िवधान िकए। तुम ा त करो उनको न अहो, िफर है िकसका यह दोष कहो। समझो न अल य िकसी धन को। नर' हो न िनराश करो मन को।। िकस गौरव के तुम यां य नह ? कब कौन तु ह सुख भो य नह ? जन हो तुम भी जगदी वर के ,

145

सब है िजसके अपने घर के । िफर दुलभ या? उसके जन को? नर हो न िनराश करो मन को।।

15.4 श दाथ नर

-

मनु य

िनराशा

-

आशा से रिहत

अथ

-

व तुिवधान

-

व तुओ ं क योजना

यथ

-

बेकार

उपयु

-

उिचत

शत

-

उ म

सुयोग

-

अ छा योग

िनरा

-

कोरा

अिखले वर

-

सं सार का वामी

अवलं वन

-

सहारा

गौरव

-

साधन

-

उपाय

वां िछत

-

इि छत

अल य

-

ा न कर सकने यो य

दुलभ

-

किठन

भो य

-

भोग (उपभोग) करने यो य।

योजन

ित ठा

15.5 किवता का अथ नर हो िनराश.................अिखले वर है अवलं बन को ... तुत किवता म किव मैिथलीशरण गु वािभमान के साथ मनु य को कम करने क रेणा देते हए कहते ह िक आप सभी साम यवान मनु य हो, इसीिलए कु छ काम करो, हमेशा कमरत रहो। इस सं सार म रहकर 146

अपना नाम कमाओं, अपना रहना साथक करो। िजस अथ के िलए इस सं सार म तु हारा ज म हआ, उसे समझो। तु हारा ज म लेना यथ न हो जाए इसिलए जो काय अपने शरीर को उिचत लगे वह काय करो। मानवता के र ण हेतु कु छ न कु छ काय रहते रहो। आप मनु य है अपने मन को िनराश कर बैठ जाना उिचत नह है। किव आगे िलखते है िक कम करने का यह अ छा अवसर कह चला न जाएा अ छे यास और उपाय कभी भी यथ नह हए ह। सं सार को मा कोरा व न समझने क भूल मत करो वरन् कमिन ठ रहते हए वयं अपने रा ते को श त करो, अपने ल य के िलए आगे बढ़ । आपके सहारे के िलए सम त सं सार का वामी अथात ई वर आपके साथ है। इसिलए िनराशा को दूर कर आ थावना ि कोण अपनाते हए कमरत रहो। िनज गौरव का िनत..............िफर दु लभ या उसके जन को... किव मैिथलीशरण गु कहते ह िक आप सभी मनु य को वयं क ित ठा का हमेशा यान रहना चािहए। वयं के अि त व पर गव महसूस करे। हमारे पास से सव व िछन जाए पर तु हमारा वािभमान हमेशा साथ रहे। मरने पर गुं िजत गान हो अथात मरने के बाद भी सव गूजं ता हआ गान (हमारे कम ) का सभी को सुनाइ देता रहे। सं सार म सभी पैदा होते ह। अपने अपने कम करते ह और मृ यु को ा हो जाते ह। मरना सभी का होता है पर तु कु छ मनु य ऐसे होते है जो मरकर भी अमर हो जाते ह। य िक उनके ारा िकए गए सुकम सभी को याद रहते ह। वे परमा मा ारा िदए गए कम को उ ह के अनुसार करते है और जीवन म सफल होते ह। हम वयं के साधन और उपाय का याग नह करना चािहए। आ थावान मनु य का मन कभी िनराश नह होता है। ई वर ने कम करने हेतु हम स म हाथ दान िकए और सभी इि छत व तुओ ं क योजना क है। यिद तुम इनको ा नह करते हो तो िफर दोष िकसका है। िकसी भी धन (अथ) को अपने पहंच से बाहर नह समझना चािहए अथात सभी मनु य कम करके अथ क ाि कर सकते है। ऐसी कौनसी ित ठा या स मान ह िजसे तुम ा नह कर सकते। ऐसा कौनसा सुख है? िजसे तुम भोग नही सकते, कहने का ता पय है िक सभी कार क ित ठा और सुख का उपयोग मनु य वािभमान के साथ कमरत रहकर कर सकता है। सभी मनु य ई वर के जन है, ई वर सभी के है, िफर इस ई वर क स तान के िलए कोइ भी ल य दुलभ नह है। आप सभी समथ मनु य है इसीिलए मन से िनराश नह होना चािहए।

15.6 सारां श तुत किवता नर हो न िनराश करो मन को म किव ने कम क मह ा बताते हए ई वर क सं तान मनु य को वािभमान के साथ कमरत रहने क रेणा दी है। हमारे कम ऐसे होने चािहए िक लोग हम इस ज म म ही नह वरन मरने के बाद भी याद रख िजस कार महा मा गां धी, मटर टेरेसा, िववेकान द सरीखे 147

महापु ष का कम के कारण ही लोग हमेशा उनका मरण करते है। किव मैिथलीशरण गु ने रा ीय चेतना और भारतीय सां कृ ितक मू य को अपनी का य रचनाओं के मा यम से य िकया है।

15.7 अ यास 1 2



हम सब कु छ खोकर भी िकसक र ा करनी चािहए? तुत किवता म किव ने िनराश न होने क ेरणा य दी है?

3

इस किवता से हम या िश ा िमलती है?

4

किवता का भावाथ िलिखए।

5

मरने पर गुं िजत गान रहे इस पं ि का अथ प ट क िजए।

6

किव मैिथलीशरण गु त के यि व का वणन क िजए

15.8 सं दभ ं थ 1

डॉ. ह रचरण शमा : छायावाद के आधार तं भ, राज थान काशन, जयपुर

2

डॉ. उमाका त, : मैिथलीशरण गु , किव और भारतीय सं कृ ित के आ याता, नेशनल पि लिशं ग हाउस,िद ली। 4 डॉ. ारका साद िम ल : मैिथलीशरण गु का सािह य, अ नपूणा काशन, कानपुर।

148

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