पावन स ंसम रणीय उदगार सुख -शांिि व सवा सथ य क ा प साद बाँटन े के ििए ही बा पू जी का अवि रण हु आ है।
"मेरे अतयनि िपय िमत शी आसाराम जी बापू से मै पूवक व ाि से हदयपूवक व पिरििि हूँ।
संसार मे सुखी रहने के ििए समसि जनिा को शारीिरक सवासथय और मानिसक शांिि दोनो आवशयक है । सुख-शांिि व सवासथय का पसाद बाँटने के ििए ही इन संि का, महापुरष का
अविरण हुआ है । आज के संिो-महापुरषो मे पमुख मेरे िपय िमत बापूजी हमारे भारि दे श के, िहनद ू जनिा के, आम जनिा के, िवशवािसयो के उदार के ििए राि-िदन घूम-घूमकर सतसंग,
भजन, कीिन व आिद दारा सभी िवषयो पर मागद व शन व दे रहे है । अभी मे गिे मे थोडी िकिीफ है िो उनहोने िुरनि मुझे दवा बिाई। इस पकार सबके सवासथय और मानिसक शांिि, दोनो के ििए उनका जीवन समिपि व है । वे धनभागी है जो िोगो को बापूजी के सतसंग व सािननधय मे िाने का दै वी कायव करिे है ।"
काँ िी कामकोिट पीठ क
े श ंकरािाय व ज गदग ुर श ी जय े नद सरसविी जी
महाराज।
हर वयिि जो िनराश
है उस े आसाराम
जररि ह ै
ज ी की
"शदे य-वंदनीय िजनके दशन व से कोिट-कोिट जनो के आतमा को शांिि िमिी है व हदय उननि हुआ है , ऐसे महामनीिष संि शी आसारामजी के दशन व करके आज मै कृ िाथव हुआ। िजस
महापुरष ने, िजस महामानव ने, िजस िदवय िेिना से संपनन पुरष ने इस धरा पर धमव, संसकृ िि, अधयातम और भारि की उदात परं पराओं को पूरी ऊजाव (शिि) से सथािपि िकया है , उस महापुरष
के मै दशन व न करँ ऐसा िो हो ही नहीं सकिा। इसििए मै सवयं यहाँ आकर अपने-आपको धनय और कृ िाथव महसूस कर रहा हूँ। मेरे पिि इनका जो सनेह है यह िो मुझ पर इनका आशीवाद व है
और बडो का सनेह िो हमेशा रहिा ही है छोटो के पिि। यहाँ पर मै आशीवाद व िेने के ििए आया हूँ।
मै समझिा हूँ िक जीवन मे िगभग हर वयिि िनराश है और उसको आसारामजी की
जररि है । दे श यिद ऊँिा उठे गा, समद ृ बनेगा, िवकिसि होगा िो अपनी पािीन परं पराओं, नैििक मूलयो और आदशो से ही होगा और वह आदशो, नैििक मूलयो, पािीन सभयिा, धमव-दशन व और संसकृ िि का जो जागरण है , वह आशाओ के राम बनने से ही होगा। इसििए शदे य, वंदनीय
महाराज शी 'आसाराम जी' की सारी दिुनया को जररि है । बापू जी के िरणो मे पाथन व ा करिे हुए िक आप िदशा दे िे रहना, राह िदखािे रहना, हम भी आपके पीछे -पीछे िििे रहे गे और एक िदन मंिजि िमिेगी ही, पुनः आपके िरणो मे वंदन!"
पिसद योगािाय व शी रामद ेव जी महाराज।
बाप ू िन तय नवीन , िनतय वध व नीय आ नंद सवरप ह ै "परम पूजय बापू के दशन व करके मै पहिे भी आ िुका हूँ। दशन व करके 'िद ने -िद ने नव ं -
नवं प ििकण व धव नाम ् ' अथाि व बापू िनतय नवीन, िनतय वधन व ीय आनंदसवरप है , ऐसा अनुभव हो रहा है और यह सवाभािवक ही है । पूजय बापू जी को पणाम!" सुप िसद कथाकार स ंि श ी म ोरा री बाप ू।
पुणय स ंिय व ईश र की क ृप ा का फिः
बहजान का
िदवय सतस ंग "ईशर की कृ पा होिी है िो मनुषय जनम िमििा है । ईशर की अििशय कृ पा होिी है िो
मुमक ु तव का उदय होिा है परनिु जब अपने पूवज व नमो के पुणय इकटठे होिे है और ईशर की परम कृ पा होिी है िब ऐसा बहजान का िदवय सतसंग सुनने को िमििा है , जैसा पूजयपाद बापूजी के शीमुख से आपको यहाँ सुनने को िमि रहा है ।" पिसद क थाकार सुशी कनक ेशरी द ेवी।
बाप ू ज ी का सािननधय ग
ंगा के पावन पवा ह ज ैसा है
"कि-कि करिी इस भागीरथी की धवि धारा के िकनारे पर पूजय बापू जी के सािननधय
मे बैठकर मै बडा ही आहािदि व पमुिदि हूँ... आनंिदि हूँ... रोमाँििि हूँ...
गंगा भारि की सुषुमना नाडी है । गंगा भारि की संजीवनी है । शी िवषणुजी के िरणो से
िनकिकर बहाजी के कमणडिु व जटाधर के माथे पर शोभायमान गंगा तैयोगिसिदकारक है ।
िवषणुजी के िरणो से िनकिी गंगा भिियोग की पिीिि करािी है और िशवजी के मसिक पर
िसथि गंगा जानयोग की उचििर भूिमका पर आरढ होने की खबर दे िी है । मुझे ऐसा िग रहा है िक आज बापूजी के पविनो को सुनकर मै गंगा मे गोिा िगा रहा हूँ कयोिक उनका पविन, उनका सािननधय गंगा के पावन पवाह जैसा है ।
वे अिमसि फकीर है । वे बडे सरि और सहज है । वे िजिने ही ऊपर से सरि है , उिने
ही अंिर मे गूढ है । उनमे िहमािय जैसी उचििा, पिवतिा, शष े िा है और सागरिि जैसी
गमभीरिा है । वे राष की अमूलय धरोहर है । उनहे दे खकर ऋिष-परमपरा का बोध होिा है । गौिम, कणाद, जैिमिन, किपि, दाद ू, मीरा, कबीर, रै दास आिद सब कभी-कभी उनमे िदखिे है ।
रे भाई ! कोई स तगुर स ं ि कहाव े , जो न ै नन अिख िखाव े। धरिी उखाड े , आकाश उखाड े , अधर म डइया ध ावे।
शूनय िश खर के पार िशिा पर , आसन अ िि ज माव े।। रे भाई ! कोई स तगुर स ं ि कहाव े .....
ऐसे पावन सािननधय मे हम बैठे है जो बडा दि व व सहज योगसवरप है । ऐसे महापुरष ु भ
के ििए पंिियाँ याद आ रही है - िु म ििो िो ि िे धरिी , ििे अ ंबर , ििे द ु िनया ...
ऐसे महापुरष िििे है िो उनके ििए सूयव, िंद, िारे , गह, नकत आिद सब अनुकूि हो
जािे है । ऐसे इिनदयािीि, गुणािीि, भावािीि, शबदािीि और सब अवसथाओं से परे िकनहीं महापुरष के शीिरणो मे जब बैठिे है िो .... भागवि कहिा है ः सा धुना ं द शव नं िोके सव व िसिदकर ं परम।्
साधुओं के दशन व मात से िविार, िवभूिि, िवदिा, शिि, सहजिा, िनिवष व यिा,
पसननिा, िसिदयाँ व आतमानंद की पािि होिी है ।
दे श के महान संि यहाँ सहज ही आिे है , भारि के सभी शंकरािायव भी आिे है । मेरे मन
मे भी िविार आया िक जहाँ सब आिे है , वहाँ जाना िािहए कयोिक यही वह ठौर-िठकाना है , जहाँ मन का अिभमान िमटाया जा सकिा है । ऐसे महापुरषो के दशन व से केवि आनंद व मसिी ही नहीं बिलक वह सब कुछ िमि जािा है जो अिभििषि है , आकांिकि है , ििकि है । यहाँ मै
करणा, कमठ व िा, िववेक-वैरागय व जान के दशन व कर रहा हूँ। वैरागय और भिि के रकण, पोषण व संवधन व क ििए यह सिऋिषयो का उतम जान जाना जािा है । आज गंगा अगर िफर से साकार िदख रही है िो वे बापू जी के िविार व वाणी मे िदख रही है । अिमसििा, सहजिा, उचििा,
शष े िा, पिवतिा, िीथव-सी शुिििा, िशशु-सी सरििा, िरणो-सा जोश, वद ृ ो-सा गांभीयव और ऋिषयो जैसा जानावबोध मुझे जहाँ हो रहा है , वह पंडाि है । इसे आनंदगर कहूँ या पेमनगर? करणा का सागर कहूँ या िविारो का समनदर?... िेिकन इिना जरर कहूँगा िक मेरे मन का कोना-कोना
आहािदि हो रहा है । आपिोग बडभागी है जो ऐसे महापुरष के शीिरणो मे बैठे है , जहाँ भागय
का, िदवय वयिितव का िनमाण व होिा है । जीवन की कृ िकृ तयिा जहाँ पाि हो सकिी है वह यही दर है ।
िम िे ि ुम िमिी म ं िजि , िम िा मकस द और मुदा भी। न िम िे ि ुम िो रह गया म
ुदा , मकसद और म ं िजि भी।।
आपका यह भावराजय व पेमराजय दे खकर मै ििकि भी हूँ और आनंद का भी अनुभव
कर रहा हूँ। मुझे िगिा है िक बापू जी सबके आतमसूयव है । आपके पिि मेरा िवशास व अटू ट िनषा बढे इस हे िु मेरा नमन सवीकार करे ।"
सवामी अवध े शान ंदजी म हाराज , हिरदार।
पूजयशी क े सतस ंग म े पधानम ंती शी अटि वाजप ेयी जी के उदगार
िबह ारी
"पूजय बापूजी के भििरस मे डू बे हुए
शोिा भाई-बहनो! मै यहाँ पर पूजय बापूजी का अिभनंदन करने आया हूँ.... उनका आशीवि व न
सुनने आया हूँ.... भाषण दे ने य बकबक करने
नहीं आयाा हूँ। बकबक िो हम करिे रहिे है । बापू जी का जैसा पविन है , कथा-अमि ृ है , उस िक पहुँिने के ििए बडा पिरशम करना पडिा
है । मैने पहिे उनके दशन व पानीपि मे िकये थे। वहाँ पर राि को पानीपि मे पुणय पविन समाि होिे ही बापूजी कुटीर मे जा रहे थे.. िब उनहोने मुझे बुिाया। मै भी उनके दशन व और आशीवाद व के ििए िािाियि था। संि-महातमाओँ के दशन व िभी होिे है , उनका सािननधय िभी िमििा है जब कोई पुणय जागि ृ होिा है ।
इस जनम मे मैने कोई पुणय िकया हो इसका मेरे पास कोई िहसाब िो नहीं है िकंिु जरर
यह पूवव जनम के पुणयो का फि है जो बापू जी के दशन व हुए। उस िदन बापूजी ने जो कहा, वह अभी िक मेरे हदय-पटि पर अंिकि है । दे शभर की पिरकमा करिे हुए जन-जन के मन मे
अचछे संसकार जगाना, यह एक ऐसा परम राषीय किववय है , िजसने हमारे दे श को आज िक जीिवि रखा है और इसके बि पर हम उजजवि भिवषय का सपना दे ख रहे है ... उस सपने को साकार करने की शिि-भिि एकत कर रहे है ।
पूजय बापूजी सारे दे श मे भमण करके जागरण का शंखनाद कर रहे है , सवध व मव-समभाव
की िशका दे रहे है , संसकार दे रहे है िथा अचछे और बुरे मे भेद करना िसखा रहे है ।
हमारी जो पािीन धरोहर थी और हम िजसे िगभग भूिने का पाप कर बैठे थे, बापू जी
हमारी आँखो मे जान का अंजन िगाकर उसको िफर से हमारे सामने रख रहे है । बापूजी ने कहा िक ईशर की कृ पा से कण-कण मे वयाि एक महान शिि के पभाव से जो कुछ घिटि होिा है , उसकी छानबीन और उस पर अनुसंधान करना िािहए।
पूजय बापूजी ने कहा िक जीवन के वयापार मे से थोडा समय िनकाि कर सतसंग मे
आना िािहए। पूजय बापूजी उजजैन मे थे िब मेरी जाने की बहुि इचछा थी िेिकन कहिे है न,
िक दाने-दाने पर खाने वािे की मोहर होिी है , वैसे ही संि-दशन व के ििए भी कोई मुहूिव होिा है ।
आज यह मुहूिव आ गया है । यह मेरा केत है । पूजय बापू जी ने िुनाव जीिने का िरीका भी बिा िदया है ।
आज दे श की दशा ठीक नहीं है । बापू जी का पविन सुनकर बडा बि िमिा है । हाि मे हुए िोकसभा अिधवेशन के कारण थोडी-बहुि िनराशा हुई थी िकनिु राि को िखनऊ मे पुणय पविन सुनिे ही वह िनराशा भी आज दरू हो गयी। बापू जी ने मानव जीवन के िरम िकय
मुिि-शिि की पािि के ििए पुरषाथव ििुषय, भिि के ििए समपण व की भावना िथा जान, भिि और कमव िीनो का उलिेख िकया है । भिि मे अहं कार का कोई सथान नहीं है । जान अिभमान
पैदा करिा है । भिि मे पूणव समपण व होिा है । 13 िदन के शासनकाि के बाद मैने कहाः "मेरा जो कुछ है , िेरा है ।" यह िो बापू जी की कृ पा है िक शोिा को विा बना िदया और विा को नीिे से ऊपर िढा िदया। जहाँ िक ऊपर िढाया है वहाँ िक ऊपर बना रहूँ इसकी ििंिा भी बापू जी को करनी पडे गी।
राजनीिि की राह बडी रपटीिी है । जब नेिा िगरिा है िो यह नहीं कहिा िक मै िगर
गया बिलक कहिा है ः "हर हर गंगे।" बापू जी का पविन सुनकर बडा आनंद आया। मै िोकसभा का सदसय होने के नािे अपनी ओर से एवं िखनऊ की जनिा की ओर से बापू जी के िरणो मे िवनम होकर नमन करना िाहिा हूँ।
उनका आशीवाद व हमे िमििा रहे , उनके आशीवाद व से पेरणा पाकर बि पाि करके हम
किववय के पथ पर िनरनिर िििे हुए परम वैभव को पाि करे , यही पभु से पाथन व ा है ।" शी अट ि िबहारी वाजप
ेय ी, पधानम ंती , भारि सरकार।
परम प ूजय बाप ू संि शी आ सार ामजी बाप ू के कृ पा -पसाद से पिरपिािव ि हदयो के उदगार
......राष उनका ऋणी ह
ै
भारि के भूिपूवव पधानमंती शी िनदशेखर, िदलिी के सवणव जयनिी पाकव मे 25 जुिाई
1999 को बापू जी की अमि ृ वाणी का रसासवादन करने के पशाि बोिेः
"आज पूजय बापू जी की िदवय वाणी का िाभ िेकर मै धनय हो गया। संिो की वाणी ने
हर युग मे नया संदेश िदया है , नयी पेरणा जगायी है । किह, िवदोह और दे ष से गसि विम व ान वािावरण मे बापू िजस िरह सतय, करणा और संवेदनशीििा के संदेश का पसार कर रहे है , इसके ििए राष उनका ऋणी है ।"
(शी िन दशेखर , भूिप ूव व पधानम ंती , भारि सरकार। )
गरीब ो व िपछडो को ऊपर उठान
े के काय व िा िू र हे
"गरीबो और िपछडो को ऊपर उठाने का काय व आशम दारा ििाये जा रहे है , मुझे
पसननिा है । मानव-कलयाण के ििए, िवशेषिः, पेम व भाईिारे के संदेश के माधयम से िकये जा रहे िविभनन आधयाितमक एवं मानवीय पयास समाज की उननिि के ििए सराहनीय है ।"
डॉ . ए.पी .जे .अबद ु ि क िाम , राषपिि , भारि गण िंत।
सराहनीय पयासो की सफििा
के ििए ब धाई
"मुझे यह जानकर बडी पसननिा हुई है िक 'संि शी आसारामजी आशम नयास' जन-जन
मे शांिि, अिहं सा और भाितृव का संदेश पहुँिाने के ििए दे श भर मे सतसंग का आयोजन कर रहा है । उसके सराहनीय पयासो की सफििा के ििए मै बधाई दे िा हूँ।" शी के . आर . नारा यणन ् , ितकािीन
राषप िि , भारि गणि ंत , नई िदलिी।
आपन े िदवय जान का पकाशप
ुंज पसफ ुिटि िकया ह ै
"आधयाितमक िेिना जागि ृ और िवकिसि करने हे िु भारिीय एवं वैिशक समाज मे
िदवय जान का जो पकाशपुंज आपने पसफुिटि िकया है , संपूणव मानविा उससे आिोिकि है । मूढिा, जडिा, दं द और ितिापो से गसि इस समाज मे वयाि अनासथा िथा नािसिकिा का
िििमर समाि कर आसथा, संयम, संिोष और समाधान का जो आिोक आपने िबखेरा है , संपूणव समाज उसके ििए कृ िज है ।"
शी कम िनाथ , वािणजय एव ं उदोग म ंती , भारि सरकार।
आप स माज की सवा ा गीण उननिि कर रह
े है
"आज के भागदौड भरे सपधातवमक युग मे िुिपाय-सी हो रही आितमक शांिि का आपशी मानवमात को सहज मे अनुभव करा रहे है । आप आधयाितमक जान दारा समाज की सवाग ा ीण उननिि कर रहे है व उसमे धािमक व एवं नैििक आसथा को सुदढ कर रहे है । शी क िपि िसबबि , िवजान व पौदोिग की ि था महासागर
भारि सरकार।
िवकास राजयम ंती ,
'योग व उचि संसका र िशका हेि ु ' भार िव षव आपका ििरआभ ारी रहेगा
"दे श िवदे श मे भारिीय संसकृ िि की जानगंगाधारा बचिे-बचिे के िदि-िदमाग मे बापू जी के
िनदे श पर पिरिाििि होना शुभंकर है । िवदािथय व ो मे संसकार िसंिन दारा हमारी संसकृ िि और नैििक िशका सुदढ बन जायेगी। दे श को संसकािरि बनाने के ििए ििाये जाने वािे 'योग व उचि संसकार िशका' कायक व म हे िु भारिवषव आप जैसे महातमाओं का ििरआभारी रहे गा।"
शी िन दशेख र साह ू , गा मी ण िवक ास राजय मन ती , भारि सर कार।
संिो के माग व दशव न मे द ेश िि ेगा ि ो आबाद हो गा
"पूजय बापू जी मे कमय व ोग, भिियोग िथा जानयोग िीनो का ही समावेश है । आप आज करोडो-करोडो भिो का मागद व शन व कर रहे है । संिो के मागद व शन व मे दे श ििेगा िो आबाद होगा। मै िो बडे -बडे नेिाओं से यही कहिा हूँ िक आप संिो का आशीवाद व जरर िो। इनके िरणो मे अगर रहे गे िो सता रहे गी, िटकेगी िथा उसी से धमव की सथापना होगी।"
शी अ शो क िसंघि , अधयक , िवश िह नद ू प िरष द।
सतय का माग व कभी न छ ूटे ऐसा आशीवा व द दो
"हमे आपके मागद व शन व की जररि है , वह सिि िमििा रहे । आपने हमारे कंधो पर जो
जवाबदारी दी है उसे हम भिी पकार िनभाये। बुरे मागव पर न जाये, सतय के मागव पर ििे। िोगो की अचछे ढं ग से सेवा करे । संसकृ िि की सेवा करे । सतय का मागव कभी न छूटे , ऐसा आशीवाद व दो।"
शी उ दव ठाकर े , काय वका री अधयक , िशव सेन ा।
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