Mai Hindu Hoon

  • June 2020
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  • Words: 58,851
  • Pages: 140
असग़र वजाहत का स पूण कहानी संमह म िहद ू हँू अनुबम १ केक २ सरग म-कोला ३ िद%ली पहंु चना है ४ राजा ५ यो+ा ६ बंदर ७ चिमा के दे श म1 ८ हिरराम ग ु4 संवाद ९ िःविमंग पूल १० ज़;< ११ मुिँकल काम १२ होज वाज पापा १३ त;>ी १४ िवकिसत दे श@ की पहचान १५ मुग ािबय@ के िशकारी

१६ लकिड़यां १७ म िहं द ू हंू १८ शाह आलम कै प की 4ह1

कहानी िलखने का कारण कहानी हम Fय@ िलखते ह ? कुछ बताने के िलए? कुछ कहने के िलए? कह कर संतोष पाने के िलए? दसर@ या समाज के सुख-दख ू ु म1 िहःसेदारी करने के िलए? मजबूरी म1 िक और कुछ नहीं कर सकते? आदत पड़ ग यी है इसिलए? कुछ याद1 कुछ बात1 छोड़ने के िलए? समाज को बदलने के िलए? अपनी सामािजक िज मेदारी पूरी करने के िलए? अपनी िवLता िदखाने के िलए? भाषा और िश%प के चमNकार िदखाने के िलए?

मेरे ;य़ाल म1 कहानी िलखने से पहले अग र कहानीकार के मन म1 सवाल उठता है िक म कहानी Fय@ िलखने जा रहा हंू तो शायद वह इस सवाल का जवाब नहीं दे पायेग ा और आिख़रकार कहानी भी नहीं िलख पायेग ा। इसिलए कहानीकार को भी बहत ु बाद म1 ही पता चलता है िक वह कहानी Fय@ िलख रहा है।

इसी से जुड़ी हई रोचक बात यह हैिक कहानीकार को अग र यह लग जाये िक ू ु एक दसरी उसे आज तक िलखी ग यी कहािनय@ से अUछी या कम से कम वैसी ही कहानी िलखनी चािहए तो व शायद कहानी नहीं िलख पायेग ा। अब चेख़व से अUछी कहानी तो िलख नहीं पायेग ा। इसिलए सोचेग ा िक अग र चेख़व से अUछी कहानी म नहीं िलख सकता तो Fय@ िलखूं? मतलब यह िक सौ साल पहले जो कहानी िलखी ग यी थी उससे मेरी कहानी अUछी ही होना चािहए, अग र नहीं तो Fया फ़ायदा?

जहां तक मेरा सवाल है मने आज से कोई तीस साल पहले एक कहानी िलख मारी थी िजसका नाम था 'वह िबक ग यी` उस ज़माने म1 म अलीग ढ़ मुिःलम िव[िव\ालय म1 बी.एस.सी. कर रहा था। यह कहानी उद ू िलिप म1 िलखी थी। वहां के िव[िव\ालयी अ;^ार 'शहरे तमना` म1 छपी थी िजसके स पादक जै_ी साहब थे िजनके युवा चेहरे पर बड़ी काली और घनेरी दाढ़ी हआ करती थी। कहानी िलखकर दोःत@ को सुनाई थी और ु

सबकी यह राय बनी थी िक जै_ी साहब का दे दो। जै_ी साहब ने छाप दी थी और हॉःटल के लड़क@ म1 म थोड़ा जाना जाने लग ा था। पता नहीं Fय@ यह कहानी िलखने के बाद िदमाग म1 बैठ ग या था िक अग ली कहानी नहीं िलख सकता Fय@िक कहानी को िकस शcद से शु4 िकया जाये या बहत ु मुिँकल लग ता था, 'वह िबक ग यी` कहानी केवल संवाद@ पर आधािरत नहीं हो सकती। इसिलए अग ली कहानी का पहला शcद कया होना चािहए? शायद इस मुिँकल म1 ती-चार महीने फं सा रहा। िफ र कोई कथानक िमल ग या और पहले शcद की समःया दरू हो ग यी। इस कहानी का नाम याद नहीं।

कहािनयां िलखने के साथ-साथ कहािनयां पढ़ने और चीज़@ को जानने समझने और लड़िकय@ से एकपgीय ूेम करने के िसलिसले चल पड़े । चीज़@ को कायकलाप@ को, आदिमय@ को, समाज को, सरोकार@ को, पड़ताल ने कहानी को बदलना शु4 कर िदया। और एक कहानी शायद नाम था 'उनके िहःसे का आकाश` यह सन ् १९६८ के आसपास 'धमयुग ` म1 छप ग यी थी जो उस ज़माने म1 कहानीकार@ के िलए मील का पNथर माना जाता था। यह कहानी भावुक, संबंध@ के तनाव पर केिित थी लेिकन कोई ितकोना ूेम वग रैा नहीं था। बहरहाल ज%दी ही भावुकता के इस दौर से िनकला Fय@िक कुछ माFसवादी िवचार@ वग रैा की सुग ंध िमलने लग ी थी। समाजवादी राजनीित और उस पर बेलाग आलोचना- ये दोन@ ही बात1 एक साथ सामने आती चली ग यीं। सोचा आंख1 खुली रहे अंध भिj जब धािमक िव[ास@ की नहीं की तो िकसी भी 'वाद` की Fय@ जी जाये? हालात उलटते-पलटते रहे । चीज1 बनती िबग ड़ती और िबग ड़ कर बनती रहीं और कहानी भी उसी के साथ-साथ िहचकोले खाती रही।

आज तीस साल सोचता हंू िक कहानी Fय@ िलखता हंू तो ईमानदारी से कई बात1 सामने आती ह । पहली तो यह िक अपने पिरवेश की िवसंग ितय@ पर ग ुःसा बहत ु आता है िजसे दबाया नहीं जा सकता। दसरे यह इUछा बनी रहती है िक 'शहर को यहां से दे खो` तीसरा ू यह िक और ऐसा Fया कर सकता हंू जो कहानी का 'बदला हो? शायद कुछ नहीं? चौथा यह िक ग वाही रहे िक मने या मेरी पीढ़ी ने Fया दे खा और भोग ा। पांचवां यह िक पढ़कर शायद िकसी की संवेदना को ह%की सी चोट पहंु चे और छटवां यह िक िदल की भड़ास िनकल जाये और रात कुछ चै न की नींद आये, सातवां यह िक यार लेखक ह तो िलख1। न िलखने की कोई वजह भी तो नहीं है। हमारा माlयम िकतना mयारा है िक क़लम है और काग ज़ है और मानव सoयता की ूाचीनतम अिभpयिj िवध यानी शcद है। कोई बीच म1 नहीं है, कोई मजबूरी नहीं है। बाहरी दबाव नहीं है। कहीं-न-कहीं छप तो जाता ही है। लोग @

को रचना पसंद आती है, तारीफ करते ह तो अUछा लग ता है।

ूःतुत चयन म1 कोई ूांरिभक कहानी नहीं है। पर १९७१ से लेकर आज तक की कहािनयां ह पढ़ने वाल@ को सहज ही पता लग सकता है िक मने Fया खोया है, Fया पाया है? वैसे आलोचक Fया कहते ह इस पर तो मुझे बहत ु िव[ास है नहीं। असग़र वज़ाहत **-**

1 केक उह@ने मेज़ पर एक ज़ोरदार घूंसा मारा और मेज़ बहत ु दे र तक िहलती रही। 'म कहता हंू जब तक ऐट ए टाइम पांच सौ लोग @ को ग ोली से नहीं उड़ा िदया जायेग ा, हालात ठीक नहीं हो सकते।' अपनी खासी ःपीिकंग पावर नq करके वह हांफ ने लग े। िफ र उह@ने अपना ऊपरी ह@ठ िनचले ह@ठ से दबाकर मुझे घूरना शु4 िकया। वह अवँय समझ ग ये थे िक म मुःकरा रहा हंू । िफ र उह@ने घूरना बंद कर िदया और अपनी mलेट पर िपल पड़े । रोज़ ही रात को राजनीित पर बात होती है। िदन के दो बजे से रात आठ बजे तक ूूफ़रीिडं ग का घिटया काम करते-करते वह काफ़ी िखिसया उठते ह । मने कहा, 'उन पांच सौ लोग @ म1 आप अपने को भी जोड़ रहे ह ?' 'अपने को Fय@ जोडू ं ? Fया म बुक पॉिलटीिशयन हंू या ःमग लर हंू या करोड़@ की चोरबाज़ारी करता हंू ?' वह िफ र मुझे घूरने लग े तो म हं स िदया। वह अपनी mलेट की ओर दे खने लग े। 'आप लोग तो िकसी भी चीज़ को सीिरयसली नहीं लेते ह ।' खाने के बाद उह@ने जूठी mलेट1 उठायीं और िकचन म1 चले ग ये। कुसu पर बैठे-ही-बैठे िमसेज़ िडसूजा ने कहा, 'डे िवड, मेरे िलये पानी लेते आना।' डे िवड जग भरकर पानी ले आये। िमसेज़ िडसूजा को एक िग लास दे ने के बोले, 'पी लीिजए िमःटर, पी लीिजए।' मेरे इनकार करने पर जले-कटे तरीके से चमके, 'थFस टू ग ॉड ! यहां िदन-भर पानी तो िमल जाता है। अग र इं िपुरी म1 रहते तो पता चल जाता। ख़ै र, आप नहीं पीते तो म ही िपये लेता हंू ,' कहकर वह तीन िग लास पानी पी ग ये।

खाने के बाद इसी मेज पर डे िवड साहब काम शु4 कर दे ते ह । आज भी वह ूूफ़ का पुिलंदा खोलकर बैठ ग ये। उह@ने मेज़ साफ की। मेज़ के पाये की जग ह इसी wट@ को ू कुसu पर बैठे-बैठे अचानक अकड़ हाथ से ठीक िकया, तािक मेज़ िहल न सके। िफ र टटी ग ये और नाक का चँमा इस तरह िफ ट िकया जैसे बंदक ू म1 ग ोिलयां भर ली ह@। ह@ठ खास तरह से दबा िलये। ूूफ़ पांडु िलिप से िमलाने लग े। ग ोिलयां चलने लग ीं। इसी तरह डे िवड साहब रात बारह बजे तक ूूफ़ दे खते रहते ह । इसी बीच से कम-से-कम पचास बार चँमा उतारते और लग ाते ह । बंदक ू म1 कुछ खराबी ह । पांच साल पहले आंख1 टैःट करवायी थीं और चँमा खरीदा था। अब आंख1 xयादा कमज़ोर हो चुकी ह , परं तु चँमे का नंबर नहीं बढ़ पाया है। हर महीने की पंिह तारीख को वह अग ले महीने आंख1 टैःट करवाकर नया चँमा खरीदने की बात करते ह । बंदक ू की कीमत बहत ु बढ़ चुकी है। ूूफ़ दे खने के बीच पानी पीय1ग े तो वह 'बासु की जय` का नारा लग ाय1ग े। 'बासु` उनका बॉस है िजससे उह1 कई दजन िशकायत1 मुझे भी ह । ऐसी िशकायत1 पेँतर छोटा काम करने वाल@ को होती ह ।

'बड़ा जान लेवा काम है साहब।' वे दो-एक बार िसर उठाकर मुझसे कहते ह । म 'हंू -हां` म1 जबाव दे कर बात आग े बढ़ने नहीं दे ता। लेिकन वह चुप नहीं होते। चँमा उतार कर आंख@ की रग ड़ाई करते ह , 'बड़ी हाईलेिवल बंग िलंग होती है। अब तो छोटे -मोटे करmशन केस पर कोई चyकता तक नहीं। पूरी मशीनरी सड़-ग ल चुकी है। ये आदमी नहीं, कुzे ह कुzे. . .। म भी आजादी से पहले ग ांधी का ःटांच सपोट र था और समझता था िक नॉन-वाइल1स इज द बेःट पॉिलसी। लटका दो पांच सौ आदिमय@ को सूली पर। अरे , इन साल@ का पिcलक शायल होना चािहए, पिcलक शायल!'

'पिcलक शायल कौन करे ग ा, डे िवड साहब,' म झ%ला जाता हंू । इतनी दे र से लग ातार बकवास कर रहे ह । वे दोन@ हाथ@ से अपना िसर पकड़कर बैठ जाते ह । 'मासेज म1 अग र लेझट फ ोस}ज. . .', वे धीरे -धीरे बहत ु दे र तक बड़बड़ाते रहते ह । म जासूसी उपयास के नायक को एक बार िफ र ग ोिलय@ की बौछार से बचा दे ता हंू । वह कहते ह , 'आप, भी Fया दो-ढाई सौ पये के िलए घिटया नॉवल िखला करते ह !' म मुःकराकर उनके ूूफ़ के पुिलंदे की तरफ़ दे खता हंू और वह चुप हो जाते ह । ग ंभीर हो जाते ह ।

'म सोचता हंू ॄदर, Fया हम-तुम इसी तरह ूूफ़ पढ़ते और जासूसी नॉवल िलखते रह1 ग े? सोचो तो यार! दिनया िकतनी बड़ी है। यह हम1 मालूम है िक िकतनी अUछी तरह से ु िजं_ग ी ग ुजारी जा सकती है। िकतना आराम और सुख है, िकतनी cयूटी है. . .।' 'परे शानी तो मेरे िलए है, डे िवड साहब। आप तो बहत ु से काम कर सकते ह । मुग u-खाना खोल सकते ह । बेकरी लग ा सकते ह . . .।' वह आंख1 बंद करके अिव[ास-िमिौत हं सी हं सने लग ते ह । और कमरे की हर ठोस चीज़ से टकराकर उनकी हं सी उनके मुंह म1 वापस चली जाती है। अFसर खाने के बाद वे ऐसी ही बात छे ड़ दे ते ह । काम म1 मन नहीं लग ता और वj बोझ लग ने लग ता है। जी म1 आता है िक लोहे की बड़ी-सी रॉड लेकर िकसी फैशनेबुल कॉलोनी म1 िनकल जाऊँ। डे िवड साब तो साथ चलने पर तैयार हो जाय1ग े। वह िफ र बोलने लग ते ह और उनके िूय शcद 'िबच`, 'बूक`, 'नॉनस1स`, 'बंग िलंग `, 'पिcलक शायल`, 'एFसmलॉइटे शन`, ग ािलयां फ राटे 'Fलास ःशग ल` आिद बार-बार सुनायी पड़ते ह । बीच-बीच म1 वह िहं दःतानी ु से बोलते ह ।

'अब Fया हो सकता है! पUचीस साल तक ूूफ़रीडरी के बाद अब और Fया कर सकता हंू । सन ् १९४८ म1 िद%ली आया था। अरे साब, िडफ1 स कॉलोनी की ज़मीन तीन पये ग ज मेरे सामने िबकी है, िजसका दाम आज चार सौ पये है। िनजामु‚ीन से ओखला तक जंग ल था जंग ल। कोई शरीफ़ आदमी रहने को तैयार ही नहीं होता था। अग र उस वj उतना पैसा नहीं था और आज. . .। सीिनयर कैि ॄज म1 तेरे साथ पॉटी पढ़ता था। अब अग र आप आज उसे दे ख ल1 तो मान ही नहीं सकते िक म उसका Fलासफे लो और दोःत था। ग ोरा-िचƒटा रं ग , ए-Fलास सेहत, एक जीप, एंबेसेड र और एक शैFटर है उसके पास। िमजापुर के पास फ ािम„ग करवाता है। उस जमाने म1 दस पये बीघा ज़मीन खरीदी थी उसने। मुझसे बहत ु कहा था िक तुम भी ले लो डे िवड भाई, चार-पांच सौ बीघा। िबलकुल उसी के फ ाम के सामने पांच सौ बीघे का mलाट था। ए-Fलास फ टाइल ज़मीन। लेिकन उस ज़माने म1 म कुछ और था।' वह िखिसयानी हं सी हं से, 'आज उसकी आमदनी तीन लाख पये साल है। अपनी डे यरी, अपना मुग uखाना-ठाठ ह , सब ठाठ।' डे िवड साहब खुश हो ग ये जैसे वह सब उहीं का हो। ूूफ़ के पुिलंदे को उठाकर एक कोने म1 रखते हए ु बोले, 'मेरी तो िकःमत म1 इन शानदार कमरे म1 िमसेज़ िडसूजा का िकरायेदार होना िलखा था।'

िमसेज़ िडसूजा को पचास पये दो, कमरा िमल जायेग ा। पUचीस पये और दो तो सुबह

नाँता िमल जायेग ा और तीस पये दो रात का खाना, िजसे िमसेज़ िडसूजा अंमेज़ी खाना कहती ह , िमल जायेग ा। िमसेज़ िडसूजा के कमरे से लग ी तःवीर@ को, जो ूाय: उनकी जवानी के िदन@ की ह , िकरायेदार हटा नहीं सकता। िकसी तःवीर म1 वह मोमबzी के सामने बैठी िकताब पढ़ रही ह , तो िकसी म1 अपन बाल ग ोद म1 रखे शूय म1 दे खने का ूय† कर रही ह । कुछ लोग @ का पिरचय अंमेज़ अफ़सर के 4प म1 करवाती ह , पर दे खने म1 वे सब िहदःतानी लग ते ह । एक िचऽ िमसेज़ िडसूजा की लड़की का भी है, जो डे िवड ु साहब की मेज़ पर रखा रहता है। लड़की वाःतव म1 कंटाप है। िछनालपना उसके चेहरे से ऐसा टपकता है िक अग र सामने कोई बतन रख दे तो िदन म1 दिसय@ बार खाली करना पड़े । उसे िसफ दे खकर अUछे -अUछे दोन@ हाथ@ से दबा लेते ह@ग े। कुछ पड़ोस वाल@ का यह भी कहना है िक इसी तःवीर को दे ख-दे खकर डे िवड साहब ने शादी करने और बUचा पैदा करने की gमता से हाथ धो िलये ह । िमसेज़ िडसूजा दे सी ईसाइय@ की कई लड़िकयां उनके िलए खोज चुकी ह । परं तु सब बेकार। वह तो ढाई सौ वो%टे ज ही के करं ट से जलभुनकर राख हो चुके थे और एक िदन तंग आकर िमसेज़ िडसूजा ने मोह%ले म1 उनको नामद घोिषत कर िदया और उनके सामने कपड़े बदलने लग ीं।

सुबह का दसरा नाम होता है। ज%दी-ज%दी िबना दध ू ू की चाय के कुछ कप। रात के धेये कपड़@ पर उलटा-सीधा ूेस। जूते पर पॉिलश। और िदन-भर ृूफ़ करे Fट करते रहने के िलए आंख@ की मसाज। ृूफ़ के पुिलंदे। करे Fट िकये हए िफ र ु और ूेस से आये हए। ु करे Fट िकये हए धम ्! साला ज़ोर से ग ाली दे मारता है, 'दे ख लो बाबू, ु िफ र आये हए। ु ज%दी दे दो। बड़ा साहब कॉलम दे खना मांग ता है।' पूरी िजं_ग ी घिटया िकःम के काग ज पर छपा ूूफ़ हो ग यी है, िजसे हम लग ातार करे Fट कर रहे ह । घर से बाहर िनकलकर ज%दी-ज%दी बस ःटॉप की तरफ़ दौड़ना, जैसे िकसी को पकड़ना हो, हम दोन@ एक ही नंबर की बस पकड़ते ह । राःत1 म1 डे िवड साहब मुझसे रोज़ एक-सी बात1 करते ह , 'हरी सिcजय@ से Fया फ ायदा है, िकस सcजी म1 िकतना ःटाच होता है। अंडे और मुग } खाते रहो तो अःसी साल की उॆ म1 भी लड़का पैदा कर सकते हो।` बकरी और भस के ग ोँत का सूआम अंतर उह1 अUछी तरह मालूम है। अंमेजी खाने के बारे म1 उनकी जानकारी अथाह है। केक म1 िकतना मैदा होना चािहए। िकतने अंडे डाले जाय1। मेवा और जेली को कैसे िमलाया जाये। दध ू िकतना फ1 टा जाये। केक की िसकाई के बारे म1 उनकी अलग धरणाएं ह । बीम लग ाने और केक को सजाने के उनके पास सैकड़@ फ ामूल  े ह िजह1 अब िहं दःतान म1 कोई नहीं जानता। कभी-कभी कहते, 'ये साले धोती बांधने वाले, खाना ु खाना Fया जान1! ढे र सारी सcजी ले ली, तेल म1 डाली और खा ग ये बस, खाना पकाना और

खाना मुसलमान जानते ह या अंमेज। अंमेज़ तो चले ग ये, साले मुसलमान@ के पास अब भसे का ग ोँत खा-खाकर अकल मोटी करने के िसवा कोई चारा नहीं है। भसे का ग ोँत खाओ, भसे की तरह अकल मोटी हो जायेग ी और िफ र भसे की तरह ही को%हू म1 िपले रहो। रात घर आकर बीवी पर भसे की तरह िपल पड़ो।` आज िफ र घूम-िफ र कर वह अपने िवषय पर आ ग ये। 'नाँता तो हैवी होना ही चािहए।' मने हामी भरी। इस बात से कोई उ%लू का पƒठा ही इनकार कर सकता है। 'हैवी और एनरजेिटक?' चलते-चलते वह अचानक क ग ये। एक नये बनते हए ु मकान को दे खकर बोले, 'िकसी cलैक मािकिटयर का मालूम होता है। िफ र उह@ने अकड़कर जेब से चँमा िनकाला, आंख@ पर िफ ट करके मकान की ओर दे खा। फ़ायर हआ ज़ोरदार धमाके के ु साथ, और सारा मकान अड़-अड़ धड़ाम करके िग र ग या।' 'बस, एक िग लास दध ू , चार-टोःट और मFखन, पौिरज और दो अंडे ।' उह@ने एक लंबी सांस खींची, जैसे ग ुcबारे म1 से हवा िनकल ग यी हो। 'नहीं, म आपसे एमी नहीं करता, ृूट जूस बहत ु ज़4री है। िबना. . .।' 'ृूट जूस?' वह बोले? 'नहीं अग र दध ू हो तो उसकी ज़4रत नहीं है।' 'पराठे और अंडे का नाँता कैसा रहे ग ा?' 'वैरी ग ुड , लेिकन परांठे हलके और नम ह@।' 'और अग र नाँते म1 केक हो?' वह सपाट और फ ीकी हं सी हं से। कई साल हए। मेरे िद%ली आने के आसपास। डे िवड साहब ने अपनी बथ डे पर केक ु बनवाया था। पहले पूरा बजट तैयार कर िलया ग या था। सब खच जोड़कर कुल सzर पये होते थे। पहली तारीख को डे िवड साहब मैदा, शFकर और मेवा लेने खारीबावली ग ये थे। सारा सामान घर म1 िफ र से तौला ग या था। िफ र अUछे बेकर का पता लग ाया ग या था। डे िवड साहब के कई दोःत@ ने दिरयाग ंज के एक बेकर की तारीफ़ की तो वह उससे एक िदन बात करने ग ये िबलकुल उसी तरह जैसे दो दे श@ के ूधनमंऽी ग ंभीर समःयाओं पर बातचीत करते ह । डे िवड साहब ने उसके सामने एक ऐसा ू‹ रख िदया िकया वह लाजवाब हो ग या, 'अग र तुमने सारा सामान केक म1 न डाला और कुछ बचा िलया तो मुझे कैसे पता चलेग ा?` इस समःया का समाधान भी उह@ने खुद खोज िलया। कोई ऐसा आदमी िमले जो बेकर के पास उस समय तक बैठा रहे , जब तक िक केक बनकर तैयार

न हो जाये। डे िवड साहब को िमसेज़ िडसूजा ने इस काम के िलए अपने-आपको कई बार 'ऑफ़र` िकया। मग र वाःतव म1 डे िवड साहब को िमसेज़ िडसूजा पर भी एतबार नहीं था। हो सकता है बेकर और िमसेज़ िडसूजा िमलकर डे िवड साहब को चोट दे द1 । जब पूरी ु िद%ली म1 'मोतिबर` आदमी नहीं िमला तो डे िवड साहब ने एक िदन की छƒटी ली। मने इस काम म1 कोई िच नहीं िदखायी थी, इसिलए उन िदन@ मुझसे नाराज़ थे और पीठ पीछे उह@ने िमसेज़ िडसूजा से कई बार कहा िक जानता ही नहीं 'केक` Fया होता है। म जानता था िक 'केक` बन जाने के बाद िकसी भी रात को खाने के बाद मुग u खाना खोलने वाली बात करके डे िवड साहब को खुश िकया जा सकता हैया उनके दोःत के बारे म1 बात करके उह1 उNसािहत िकया जा सकता है, िजसका िमजापुर के पास बड़ा फ ाम है और वह वहां कैसे रहता है।

केक बथ डे से एक िदन पहले आ ग या था। अब उसे रखने की समःया थी। िमसेज़ िडसूजा के घर म1 चूहे ज़4रत से xयादा ह । इस आड़े वj म1 मने उनकी मदद की। अपने टीन के बFस म1 से कपड़े िनकालकर तौिलये म1 लपेटकर मेज़ पर रख िदये और बFस म1 केक रख िदया ग या। मेरा बFस पूरे एक महीने िघरा रहा। हम सबको उस केक के बारे म1 बातचीत कर लेना बहत ु अUछा लग ता है। डे िवड साहब तो उसे अपना सबसे बड़ा 'एचीवम1ट` मानते ह । और म अपने बFस को खाली कर दे ना कोई छोटा कारनामा नहीं समझता। उसके बाद से लेकर अब तक केक बनवाने के कई ूोमाम बन चुके ह । अब डे िवड साहब की शत यह होती है िक सब 'शेयर` कर1 । xयादा मूड म1 आते ह तो आध खच उठाने पर तैयार हो जाते ह । उहीं के अनुसार, बचपन से उह1 दो चीज़1 पंसद रही ह जॉली और केक। जॉली की शादी िकसी कैmटन से हो ग यी, तो वह धीरे -धीरे उसे भूलते ग ये। पर केक अब भी पसंद है। केक के साथ कौन शादी कर सकता है? लेिकन खारी-बावली के कई चFकर लग ाने पर उह@ने महसूस िकया िक केक की भी शादी हो सकती है। िफ र भी पसंद करना बंद न कर सके।

दझ>र से लौटकर आया तो सारा बदन इस तरह दद कर रहा था, जैसे बुरी तरह से मारा ग या हो। बाहरी दरवाज़ा खोलने के लए िमसेज़ िडसूजा आयीं। वह शायद िकचन म1 अपने खटोले पर सो रही थीं। अंदर आंग न म1 उनके ग ु वŽ सूख रहे थे। 'ग ु वŽ` शcद सोचकर हं सी आयी। कोई अंग ग ु ही कहां रह ग या है! डी.टी.सी. की बस@ म1 चढ़तेउतरते ग ु अंग @ के भूग ोल का अUछा-खासा ान हो ग या है। उनकी ग रमाहट, िचकनाई,

खुदरे पन, ग ंदेपन और लुभावनेपन के बारे म1 अUछी जानकारी है। 'आज ज%दी चले आये।` िमसेज़ िडसूजा 'ग ु वŽ` उतारने लग ीं, 'चाय पीयोग े?` मने अभी तक नहीं पी है।` 'हां, ज4र।' सोचा अग र साली ने पी ली होती तो कभी न पूछती। कमरे के अंदर चला आया। पNथर की छत के नीचे खाने की मेज़ है। िजसके एक पाये की जग ह wट1 लग ी ह । दसरे पाय@ को टीन की पिƒटय@ से जकड़ कर कील1 ठ@क दी ग यी ह । ू रःसी, टीन, लोहा, तार और wट@ के सहारे खड़ी मेज़ पहली नज़र म1 आिदकालीन मशीन-सी लग ती है। मेज़ के उपर िमसेज़ िडसूजा की िसलाई मशीन रखी है। खाना खाते समय मशीन को उठाकर मेज़ के नीचे रख िदया जाता है। खाने के बाद मशीन िफ र मेज़ पर आ जाती है। रात म1 डे िवड साहब इसी मेज पर बैठकर ूूफ़ दे खते ह । कई िग लास पानी पीते ह और एक बजते-बजते उठते ह तो कमरा अकेला हो जाता है। म कमरे म1 रखी िसलाई मशीन या मेज़ की तरह कमरे का एक िहःसा बन जाता हंू । 'ये लो टी, मीनलेबुल है!' िमसेज़ िडसूजा ने चाय की mयाली थमा दी। वह खान@ के नाम अंमेज़ी म1 लेती है। रोटी को ॄेड कहती है, दाल को पता नहीं Fय@ उह@ने सूप कहना शु4 कर िदया है। तरकारी को 'बॉय%ड वेिजटे बु%स` कहती ह । करे ल@ को 'हॉटिडश` कहती ह । िमसेज़ िडसूजा थोड़ी बहत ु ग ोराशाही अंमेज़ी भी बोल लेती ह , िजससे मोह%ले के लोग काफ़ी ूभािवत होते ह । मने टी ताजमहल ले ली। िमसेज़ िडसूजा आज के जमाने की तुलना पहले जमाने से करने लग ीं। उह1 चालीस साल तक पुराने दाम याद ह । इसके बाद अपने मकान की चचा उनका िूय िवषय है, िजसका सीधा मतलब हम लोग @ पर रोब डालना होता है। वैसे रोब, डालते वj यह भूल जाया करती ह िक दोन@ कमरे िकराये पर उठा दे ने के बाद वह ःवयं िकचन म1 सोती ह । म उनकी बकवास से तंग आकर बाथ4म म1 चला ग या। अग र डे िवड साहब होते तो मजा आता। िमसेज़ िडसूजा मुंह खोलकर और आंख1 फ ाड़कर मुग u-पालन की बारीिकय@ को समझने का ूय† करतीं। ' याद नहीं, िसफ दो हज़ार पये से काम शु4 करे कोई। चार सौ मुिग य  @ से शानदार काम चालू हो सकता है। चार सौ अंडे रोज़ का मतलब हैकम-से-कम सौ पये रोज़। एक महीने म1 तीन हज़ार पये और एक साल म1 छzीस हज़ार पये। म तो आंटी, लाइफ म1 कभी-न-कभी ज़4र क4ंग ा कारोबार। फ ायदा. . .? म कहता हंू चार साल म1 लखपित। िफ र अंडे , मुग uखाने का आराम अलग । रोज़ एक मुग u कािटये साले को। बीस अंड़@ की पुिडं ग बनाइए। तब यह मकान आप छोड़ दीिजएग ा, आंटी। यह भी कोई आदिमय@ के रहने लायक मकान है। िफ र तो महारानी बाग या बसंत िवहार म1 कोठी बनवाइएग ा। एक ग ाड़ी ले लीिजएग ा।`

तब थोड़ी दे र के िलए वे दोन@ 'बसंत िवहार` पहंु च जाया करते। बड़ी-सी कोठी के फ ाटक की दािहनी तरफ़ पीतल की चमचमाती हई ु mलेट पर एिरक डे िवड और िमसेज़ जे. िडसूजा के अgर इस तरह चमकते जैसे छोटा-मोटा सूरज। म लौटकर आया तो डे िवड साहब आ चुके थे। कपड़े बदलकर आंग न म1 बैठे वह बासु को थोक म1 ग ािलयां दे रहे थे, 'यह साला बासु इस लायक है िक इसका 'पिcलक शायल` िकया जाये।' उनकी आंख@ म1 नफ़रत और उकताहट थी। चँमा थोड़ा नीचे िखसक ग या था। उह@ने अपनी ग द न अकड़ाकर चँमा चेहरे पर िफ ट िकया। मने ितलक िॄज के सामने एक पेड़ की बड़ी-सी डाल पर रःसे के सहारे बासु की लाश को झूलते हए ु दे खा। लहर1 मारती भीड़-अथाह भीड़। और कुछ ही gण बाद डे िवड साहब को एक नह1 से मुग uखाने म1 बंद पाया। चार@ ओर जािलयां लग ी हई  @ के साथ डे िवड ु ह । और उसके अंदर दो सौ मुिग य साहब दाना चुग रहे ह । ग द न डालकर पानी पी रहे ह और अंडे दे रहे ह । अंड @ के एक ढे र पर बैठे ह । मुग uखाने की जािलय@ से बाहर 'बसंत िवहार` साफ िदखाई पड़ रहा है।

मने कहा, 'आप Fय@ परे शान ह डे िवड साहब? छोिड़ए साली नौकरी को। एक मुग uखाना खोल लीिजए। िफ र बसंत िवहार म1 मकान।' 'नहीं-नहीं, म बसंत िवहार म1 मकान नहीं बनवा कसता। वहां तो बासु का मकान बन रहा है। भाई साहब, यह तो दावा है िक इस दे श म1 बग रै चार सौ बीसी िकये कोई आदमी की तरह नहीं रह सकता। आदिमय@ की तरह रहने के िलए आपको cलैक माक}िट„ ग करनी पड़े ग ी लोग @ को एFसmलायट करना पड़े ग ा. . .अब आप सोिचए, म िकसी साले से कम काम करता हंू । रोज़ आठ घंटे यूटी और दो घंटे बस के इं तजार म1. . .।' 'तुम बहत ु ग ाली बकते हो,' िमसेज़ िडसूजा बोलीं। 'िफ र Fया क4ं आंटी? ग ाली न बकूं तो Fया ईशू से ूाथना क4ं, िजसने कम-से-कम मेरे साथ बड़ा 'जोक` िकया है?' 'छोिड़ए यार डे िवड साहब। कुछ और बात कीिजए। कहीं ूूफ़ का काम xयादा तो नहीं िमला।' 'ठीक है, छोिड़ए। िद%ली म1 अभी तीन साल हए ु ह न! कुछ जवानी भी है। अभी शायद आपने िद%ली की चमक-दमक भी नहीं दे खी? Fया हमारा कुछ भी िहःसा नहीं है उसम1? कनाट mलेस म1 बहते हए ु पैसे को दे खा है कभी?' वह हाथ चला-चलाकर पैसे के बहास के

बारे म1 बताने लग ,े 'लाख@-करोड़@ पये लोग उड़ा रहे ह । औरत@ के िजःम@ पर से बहता पैसा। कार@ की शFल म1 तैरता हआ। ' वह उzेिजत हो ग ये, और उह@ने जेब से चँमा ु िनकाला, ग द न अकड़ायी और चँमा आंख@ पर िफ ट कर िलया। मुझे उकताहट होने लग ी। तबीयत घबराने लग ी, जैसे उमस एकदम बैठ ग यी हो। सांस लेने म1 तकलीफ होने लग ी। लोहे का सलाख@दार कमरा मुग uखाना लग ने लग ा िजसम1 स;त बदबूभर ग यी हो। िमसेज़ िडसूजा कई बार भिवंयवाणी कर चुकी ह िक डे िवड साहब एक िदन हम लोग @ को एरे ःट करवाय1ग े और डे िवड साहब कहते ह िक म उस िदन का 'वेलकम` क4ंग ा। ग ुःसे म1 लग ातार ह@ठ दबाये रहने के कारण उनका िनचला ह@ठ काफ ी मोटा हो ग या है। चेहरे पर तीन लकीर1 पड़ जाती ह । बचपन म1 सुना करते थे िक माथे पर तीन लकीर1 पड़ने वाला राजा होता है। कुछ ही दे र म1 वह काफ़ी शांत हो चुके थे। खाने की मेज़ पर उह@ने 'बासु की जय` पर नारा लग ाया और दो िग लास पानी पी ग ये। िमसेज़ िडसूजा की 'हॉटिडश`, 'सूप` और 'ॄेड ` तैयार थी। 'करे ले की सcजी पकाना भी आट है, साब!' डे िवड साहब ने जोर-जोर से मुंह चलाया। 'तीन िडश के बराबर एक िडश है।' िमसेज़ िडसूजा ने एहसान लादा। डे िवड उनकी बात अनसुनी करते हए ु बोले, 'करे ले खाने का मज़ा तो सीतापुर म1 आता था आंटी। कोठी के पीछे िकचन ग ाड न म1 डैड ी तरह-तरह की सcजी बुआते थे। ढे र सारी mयाज के साथ इन केरे ल@ म1 अग र कीमा भरकर पकाया जाये तो Fया कहना!' हम लोग समझ ग ये िक अब डे िवड साहब बचपन के िकःसे सुनाय1ग े। इन िकःस@ के बीच नसीबन ग वन}स का िज़ब भी आयेग ा जो केवल एक पया महीना तन;’ाह पाकर भी िकतनी ूसन रहा करती थी। और िजसका मु;य काम डे िवड बाबा की दे खभाल को दीपक बाबा ही कहती रही। इसी िसलिसले म1 उस िपकिनक पाट“ का िजब आयेग ा िजसम1 डे िवड बाबा ने जमुना के ःलोप पर ग ाड़ी चढ़ा दी थी। तजुबक } ार साइवर इःमाइल खां को ू आया था। खां को डांटकर ग ाड़ी से उतार िदया था। सब लड़के और लड़िकयां पसीना छट ू ग यी थी। परं तु जॉली ने उतरने से इं कार कर उतर ग ये। अंमेज़ लड़के की िह मत छट िदया था। डे िवड बाबा ने ग ाड़ी ःटाट की। दो िमनट सोचा। िग यर बदलकर एFसीलेटर पर

दबाव डाला और ग ाड़ी एक फ राटे के साथ उपर चढ़ ग यी। इःमाइल खां ने उपर आकर डे िवड बाबा के हाथ चूम िलये थे। वह बड़े -बड़े अंमेज़ अफ़सर@ को ग ाड़ी चलाते दे ख चुका था मग र डे िवड बाबा ने कमाल ही कर िदया था। जॉली ने डे िवड बाबा को उसी िदन 'िकस` दे ने का ूािमस िकया था। इन बात@ को सुनाते समय डे िवड साहब की िबटरनेस ग ायब हो जाती है। वह डे िवड साहब नहीं, दीपक बाबा लग ते ह । हलकी-सी धूल उड़ती है और सीतापुर की िसिवल लाइं स पर बनी बड़ी-सी कोठी के फ ाटक म1 १९३० की फ ोड मुड़ जाती है। फ ाटक के एक खंभे पर साफ अgर@ म1 िलखा हआ है पीटर जे. डे िवड, िडmटी कलेFटर। कोठी की छत खपरैल@ की ु बनी हई ु है। कोठी के चार@ ओर कई बीघे का कंपाउं ड। पीछे आम और संतरे का बाग । दािहनी तरफ़ टे िनस कोट की बायीं तऱफ बड़ा-सा िकचन ग ाड न, कोठी के उं चे बरामदे म1 बावद“ चपरासी उं घता हआ ु िदखाई पड़े ग ा। अंदर हाल म1 िवFटोिरयन फ़नuचर और छत पर लटकता हआ हाथ से खींचने वाला पंखा। दोपहर म1 पंखा-कुली पंखा खींचते-खींचते उं घ ु जाता हैतो िमःटर पीटर जे.डे िवड िडmटी कलेFटर अपने िवलायती जूत@ की ठोकर@ से उसके काले बदन पर नीले रं ग के फ ल उग ा दे ते ह । बाबा लोग टाई बांधकर खाने की मेज़ पर बैठकर िचकन सूप पीते ह । खाना खाने के बाद आइसबीम खाते ह और म मी-डैड ी को ग ुड नाइट कहकर अपने कमरे म1 चले जाते ह । साढ़े नौ बजे के आस-पास १९३० की फ ोड ग ाड़ी िफ र ःटाट होती है। अब वह या तो Fलब चली जाती है या िकसी दे शी रईस की कोठी के अंदर घुसकर आधी रात को डग मग ाती हई ु लौटती है। िमसेज़ िडसूजा के मकान की छत के उपर से िद%ली की रोशिनयां िदखाई पड़ती ह । सैकड़@ जंग ली जानवर@ की आंख1 रात म1 चमक उठती है। पानी पीने के िलए नीचे आता हंू तो डे िवड साहब ूूफ़ पढ़ रहे ह । मुझे दे खकर मुःकराते ह , कलम बंद कर दे ते ह और बैठने के िलए कहते ह । आंख@ म1 नींद भरी हई ु है। वह मुझे धीरे -धीरे समझाते ह । उनके इस समझाने से म तंग आ ग या हंू । शु4-शु4 म1 तो म उनको उ%लू का पƒठा समझता था, परं तु बाद म1 पता नहीं Fय@ उनकी बात1 मेरे उपर असर करने लग ीं। 'भाग जाओ इस शहर से। िजतनी ज%दी हो सके, भाग जाओ। म भी तु हारी तरह कॉलेज से िनकलकर सीधे इस शहर म1 आ ग या था राजधनी जीतने। लेिकन दे ख रहे हो, कुछ नहीं है इस शहर म1, कुछ नहीं। मेरी बात छोड़ दो। म कहां चला जाउं ! ग ांड़ के राःते यह शहर मेरे अंदर घुस चुका है।'

'लेिकन कब तक कुछ नहीं होग ा, डे िवड साहब?'

'उस वj तक, जब तक तु हारे पास दे ने के िलए कुछ नहीं है। और म जानता हंू , तु हारे पास वह सब कुछ नहीं है जो लोग @ को िदया जा सकता है।' म लौटकर उपर आ जाता हंू । मेरे पास Fया है दे ने के िलए? उं ची कुिसयां, कॉकटे ल पािट यां, लंबे-चौड़े लान, अंमेज़ी म1 अिभवादन, सूट और टाइयां, लड़िकयां, मोटर1 , शॉिपंग ! तब ये लोग , जो तंग ग िलयार@ म1 मुझसे वायदे करते ह , मुःकुराते ह , कौन ह ? इसके बारे म1 िफ र सोचना पड़े ग ा। और काफ़ी दे र तक िफ र म सोचने का साहस जुटाता हंू । परं तु वह पीछे हटता जाता है। म उसकी बांह1 पकड़कर आग े घसीटता हंू । एक िबग ड़े हए ु खUचर की तरह वह अपनी रःसी तुड़ाकर भाग िनकलता है।

म िफ र पानी के िलए नीचे उतरता हंू । अपनी मेज़ पर िसर रखे वह सो रहे ह । ूूफ़ का पुिलंदा सामने पड़ा है। म उसका कंधा पकड़कर लग ा दे ता हंू । 'अब सो जाइए। कल आपको साइट दे खने जाना है।` उनके चेहरे पर मुःकराहट आती है। कल वह मुग uखाना खोलने की साइट दे खने जा रहे ह । इससे पहले भी हम लोग कई साइट दे ख चुके ह । डे िवड साहब उठकर पानी पीते ह । िफ र अपने पलंग पर इस तरह िग र पड़ते ह जैसे राजधनी के पैर@ पर पड़ ग ये ह@। म िफ र उपर आकर लेट जाता हंू । 'मने कॉलेज म1 इतना पढ़ा ही Fय@? इतना और उतना की बात नहीं है, मुझे कॉलेज म1 पढ़ना ही नहीं चािहए था और अब दो साल तक ढाई सौ पये की नौकरी करते हए ु Fया िकया जा सकता है? Fय@ मुःकराता और Fय@ शांत रहा? दो साल से दोपहर का खाना ग ोल करते रहने के पीछे Fया था?` नीचे से भस के हग ने की आवाज़ आती है। एक पिरिचत ग ंध फैल जाती है। उस अ+ पिरिचत कःबे की ग ंध, िजसे म अपना घर समझता हंू , जहां मुझे बहत ु ही कम लोग जानते ह । उस छोटे से ःटे शन पर यिद म उत4ं तो ग ाड़ी चली जाने के बाद कई लोग मुझे घूर कर दे ख1ग े। और इFका-दFका इFके वाले भी मुझसे बात करते डर1 ग े। उनका डर ु दरू करने के िलए मुझे अपना पिरचय दे ना पड़े ग ा। अथात अपने िपता का पिरचय दे ना पड़े ग ा। तब उनके चेहरे पर मुःकराहट आयेग ी और वे मुझे इFके पर बैठने के िलए कह1 ग े। इस िमनट इFका चलता रहे ग ा तो सारी बःती समा हो जायेग ी। उस पार खेत ह िजनका सीधा मतलब है उस पर ग रीबी है। वे ग रीबी के अoयःत ह । पुिलस उनके िलए सवशिjमान है और अपनी हर होिशयारी म1 वे काफ ी मूख ह . . .उपर आसमान म1 पालम की ओर जाने वाले हवाई जहाज की संयत आवाज सुनाई पड़ती है। नीचे सड़क पार बालू वाले शक ग ुजर रहे ह । लदी हई ु बालू के उपर मजदरू सो रहे ह , जो कभी-कभी िकसान बन जाने का ःवmन दे ख लेते ह , अपने ग ांव की बात करते ह , अपने खेत@ की बात करते ह , जो कभी उनके थे। शक तेजी से चलता हआ ओखला मोड़ से मथुरा रोड पर मुड़ जायेग ा। ु

ृ1स कालोनी और आौम होता हआ 'राजदत ू ` होटल के सामने से ग ुजरे ग ा जहां रात-भर ु कैबरे और रे ःतरां के िवापन िनयॉनलाइट म1 जलते बुझते रहते ह । उसी के सामने फु टपाथ पर बहत ु -पतले, काले और सूखे आदमी सोते हए ु से दबले ु िमल1ग े, िजनकी नींद शक की ककश आवाज़ से भी नहीं खुलती। उपर तेज ब%ब की रोशनी म1 उनके अंग ूNयंग िबखरे िदखाई पड़ते ह । म अFसर हैरान रहता हंू िक वे इस चौड़े फु टपाथ पर छत Fय@ नहीं डाल लेते। उसके चार@ ओर, कUची ही सही, दीवार तो उठाई जा सकती है। इन सब बात@ पर सरसरी िनग ाह डाली जाये, जैसी िक हमारी आदत है, तो इनका कोई महNव नहीं है। बेवकूफ ी और भावुकता से भरी बात1। परं तु यिद कोई उपर से कीड़े की तरह फु टपाथ पर टपक पड़े तो उसका समझ म1 सब कुछ आ जायेग ा।

िदन इस तरह ग ुजरते ह जैसे कोई लंग ड़ा आदमी चलता है। अब इस महानग री म1 अपने बहत ु साधरण और असहाय होने का भाव सब कुछ करवा लेता है। और अपमान, जो इस महानग र म1 लोग तफ रीहन कर दे ते ह , अब उतने बुरे नहीं लग ते, िजतने पहले लग ते थे। ऑिफ स म1 अिधकारी की मेज़ पर ितवारी का सुअर की तरह ग ंदा मुंह, जो एक ही समय म1 पFका समाजवादी भी है और ूो-अमरीकन भी। उसकी तंग बुशट म1 से झांकता हआ ु हराम की कमाई का पला तंदःत िजःम और उसकी समाजवादी लेखनी जो हर दसरी ू ु पंिj केवल इसिलए काट दे ती है िक वह दसरे की िलखी हई ू ु है। उसका रोब-दाब, ग ंभीर हं सी, षयंऽ-भरी मुःकान और उसकी मेज़ के सामने उसके साॆाxय म1 बैठे हए ु चार िनरीह ूाणी, जो कलम िघसने के अलावा और कुछ नहीं जानते। उन लोग @ के चेहरे के टाइपराइटर@ की खड़खड़ाहट। इन सब चीज़@ को मुƒठी म1 दबाकर 'बश` कर दे ने को जी चाहता है। भूख भी कमब;त लग ती है तो इस जै से सोरे शहर का खाना खाकर ही खNम होग ी। शु4 म1 पेट ग ड़ग ड़ाता है। यिद डे िवड साहब होते तो बात यहीं ये झटक लेते, 'जी, नहीं, भूख जब ज़ोर से लग ती है तो ऐसा लग ता है जैसे िबि%लयां लड़ रही ह@। िफ र पेट म1 हलका-सा दद शु4 होता है जो शु4 म1 मीठा लग ता है। िफ र दद तेज़ हो जाता है। उस समय यिद आप तीन-चार िग लास पानी पी ल1 तो पेट कुछ समय के िलए शांत हो जायेग ा और आप दो-एक घंटा कोई भी काम कर सकते ह । इतना सब कुछ कहने के बाद वह अवँय सलाह द1 ग े िक इस महानग री म1 भूख@ मरने से अUछा है िक म लौट जाउं । लेिकन यहां से िनकलकर वहां जाने का मतलब है एक ग रीबी और भुखमरी से िनकलकर दसरी भुखमरी म1 फं स जाना। इसी तरह की बहत ू ु सारी बात1 एक साथ िदमाग म1 कबडी खेलती रहती ह । तंग आकर ऐसे मौके पर डे िवड साहब से पूछता हंू , 'मेटर कैलाश की माक}ट चल रहे ह ?' वह मुःकराते ह और कहते ह , 'अUछा, तैयार हो जाउं ।' म जानता हंू

उनके तैयार हाने म1 काफ़ी समय लग ेग ा। इसिलए म बड़े ूेम से जूते पॉिलश करता हंू । एक मैला कपड़ा लेकर जूते की िघसाई करता हंू । जूते म1 अपनी शFल दे ख सकता हंू । िटपटाप होकर डे िवड साहब से पूछता हंू , 'तैयार ह ?'

हम दोन@ बस ःटाप की तरफ़ जाते हए के जूते दे खकर उNसािहत होते ह । एक ू ु एक-दसरे अजीब तरह का साहस आ जाता है। मेटर कैलाश की मािकट की हर दकान का नाम हम1 जबानी याद है। बस से उतरकर हम ू पेशाबखाने म1 जाकर अपने बाल ठीक करते ह । वह मेरी ओर दे खते ह । म फ नuचर की ओर दे खता हंू । दो जोड़ा चमचमाते जूते बरामदे म1 घूमते ह । म फ नuचर की दकान के ू सामने क जाता हंू । थोड़ी दे र तक दे खता रहता हंू । डे िवड साहब अंदर चलने के िलए कहते ह और म सारा साहब बटोर कर अंदर घुस जाता हंू । यहां के लोग बड़े सoय ह । एक वाFय म1 दो बार 'सर` बोलते ह । चमकदार जूते दकान के अंदर टहलते ह । डे िवड ू साहब यहां कमाल की अंमेज़ी बोलते ह कंधे उचकाकर और आंख1 िनकालकर। चीज़@ को इस ूकार दे खते ह जैसे वे काफ ी घिटया ह@। म ऐसे मौक@ पर उनसे ूभािवत होकर उहीं की तरह िबहे व करने की कोिशश करता हंू ।

कंफे Fशनरी की दकान के सामने वह बहत ू ु दे र तक कते ह । शो-िवंड ो म1 सब कुछ सजा हआ है। पहली बार म1 ॅम हो सकता है िक सारा सामान िदखावटी है, िमƒटी का, परं तु ु िन—य ही ऐसा नहीं है।

'ज%दी चिलए। साला दे खकर मुःकरा रहा है।' 'कौन?' डे िवड साहब पूछते ह , म आंख से दकान के अंदर इशारा करता हंू और वह अचानक ू दकान के अंदर घुस जाते ह । म िहचिकचाहट बरामदे म1 आग े बढ़ जाता हंू । 'पकड़े ग ये ू बेटा! बड़े लाटसाहब की औलाद बने िफ रते ह । उनकी जेब म1 दस पैसे का बस का िटकट और कुल साठ पैसे िनकलते ह । सारे लोग हं स रहे ह । डे िवड साहब ने चमचमाता जूता उतारकर हाथ म1 पकड़ा और दकान म1 भाग े।` म साहस करके दकान के अंदर जाता हंू । ू ू डे िवड साहब दकानदार से बहत ू ु फ राटेदार अंमेज़ी बोल रहे ह और वह बेचारा घबरा रहा है। म खुश होता हंू । 'ले साले, कर िदया न डे िवड साहब ने डं ड ा! बड़ा मुःकरा रहे थे।` डे िवड साहब अंमेजी म1 उससे ऐसा केक मांग रहे ह िजसका नाम उसके बाप, दादा, परदादा ने भी कभी न सुना होग ा।

बाहर िनकलकर डे िवड साहब ने मेरे कंधे पर हाथ रख िदया। रोज़ की तरह खाने की मेज़ पर यहां से वहां तक िवलायती खाने सजे हए ु ह । िमसेज़ िडसूजा का मूड़ कुछ आफ है। कारण केवल इतना है िक म इस महीने की पहली तारीख को पैसा नहीं दे पाया हंू । एक-आध िदन मुंह फ ला रहे ग ा। िफ र वे महं ग ाई के िकःसे सुनाने लग 1ग ी। चीज@ की बढ़ती कीमत1 सुनते हम लोग तंग जा जाय1ग े। ू बात करने के िलए कुछ ज4री था और चुप टटती नहीं लग रही थी, तो िमसेज़ िडसूजा ने पूछा, 'आज तुम िडफ1 स कॉलोनी जाने वाले थे?' 'नहीं जा सकता,' डे िवड साहब ने मुंह उठाकर कहा। 'अब तु हारा सामान कैसे आयेग ा?' िमसेज़ िडसूजा बड़बड़ायीं, 'बेचारी कैथी ने िकतनी मुहcबत से भेजा है।' 'मुहcबत से िभजवाया है आंटी?' डे िवड साहब चyके, 'आंटी, उसका हःबड दो हज़ार पये कमाता है। कैथी एक िदन बाज़ार ग यी होग ी। सवा सौ पये की एक घड़ी और दो कमीज1 खरीद ली ह@ग ी। और डीनू के हाथ िद%ली िभजवा दीं। इसम1 मुहcबत कहां से आ ग यी?' 'मग र तुम उह1 जाकर ले तो जाओ।' 'डीनू उस सामान को यहां ला सकता है।' डीनू का िडफ1 स कालोनी म1 अपना मकान है। कार है। डे िवड साहब का बचपन का दोःत है। वह उस िशकार पाट“ म1 भी था, िजसम1 हाथी पर बैठकर डे िवड साहब ने mलाइं ग शॉट म1 चार ग ाज1 िग रा दी थीं। 'िडफ1 स कॉलोनी से यहां आना दरू पड़े ग ा। और वह िबजी आदमी है।' 'म िबज़ी ूूफ़रीडर नहीं हंू ?' वह हं से, 'और वह तो अपनी काम से आ सकता है, जबिक मुझे दो बस1 बदलनी पड़1 ग ी।' वह दाल-चावल इस तरह खा रहे थे, जैसे 'केक` की याद म1 हःतमैथन ु कर रहे ह@। 'जैसी तु हारी मजu।' खाना खNम होने पर कुछ दे र के िलए महिफ ल जम ग यी। िमसेज़ िडसूजा पता नहीं कहां से उस बड़े जमींदार का िजब ले बैठीं जो जवानी के िदन@ म1 उन पर िदलोजान से

आिशक था, और उनके अवकाश ूा कर लेने के बाद भी एक िदन पता लग ाता हआ ु िद%ली के उनके घर आया था। वह पहला िदन था जब इस मकान के सामने सेक1ड-ह ड एंबेसडर खड़ी हई ु थी और डे िवड साहब को िकचन म1 सोना पड़ा था। उस जमींदार का िजब डे िवड साहब को बड़ा भाता है। म तो फ ौरन उस जमींदार की जग ह अपने-आपको 'िफ ट` करके िःथित का पूरा मज़ा उठाने लग ता हंू । कुछ दे र बाद इधर-उधर घूम-घामकर बात िफ र खान@ पर आ ग यी। डे िवड साहब स1वई पकाने की तरकीब बताने लग े। िफ र सबने अपने-अपने िूय खान@ के बारे म1 बात की। सबसे xयादा डे िवड साहब बोले। खाने की बात समा हई ु तो मने धीरे से कहा, 'यार डे िवड साहब, इस ग ांव म1 कोई लड़की ऐसी नज़र पड़ जाती है िक पांव कांपने लग ते ह ।' 'कैसी थी, मुझे बताओ? िछ‚ ू की बहू होग ी या. . .।' 'बस डे िवड, तुम लड़िकय@ की बात न िकया करो। मने िकतनी खूबसूरत लड़की से तु हारा 'इं ग ेजम1ट` तय िकया था।' 'Fया खूबसूरती की बात करती ह आंटी! अग र जॉली को आपने दे खा होता. . .।' 'जॉली? खै र, उसको तो मने नहीं दे खा। तुमने अग र मेरी लड़की को दे खा होता।' उनकी आंख1 डबडबा आयीं, 'मग र वह हज. . .' कुछ दे र बाद बोलीं, 'अग र अब वह होती तो यह िदन न दे खना पड़ता। म उसकी शादी िकसी िमिलटरी अफ़सर से कर दे ती। उससे तो कोई भी शादी कर सकता था।' कुछ ठहर कर डे िवड साहब से बोली, 'तुम शादी Fय@ नहीं कर लेते डे िवड?' 'म शादी कैसे कर लूं आंटी? दो सौ पचहzर पये इFकीस पैसे से एक पेट नहीं भरता। एक और लड़की की जान लेने से Fया फ ायदा। मेरी िजंदग ी तो ग ुजर ही जायेग ी। मग र म यह नहीं चाहता िक अपने पीछे एक ग रीब औरत और दो तीन ूूफ़रीडर छोड़कर मर जाउं जो िदन-रात मशीन@ की कान फ ाड़ दे ने वाली आवाज़ बैठकर आंख1 फ ोड़ा कर1 ।' वह कुछ के, 'यही बात म इनसे कहता हंू ।' उह@ने मेरी ओर संकेत िकया, 'इस आदमी के पास ग ांव म1 थोड़ी-सी ज़मीन हैजहां ग ेहूं और धन की फ सल होती है। इसको चािहए िक अपने खेत के पास एक कUचा घर बना ले। उसके सामने एक छmपर डाल ले, बस, उस पर लौकी की बेल चढ़ानी पडे ग़ी। दे हात म1 आराम से एक भस पाली जा सकती है। कुछ िदन@ बाद मुग uखाना खोल सकते ह । खाने और रहने की िफ ब नहीं रह जायेग ी। ठाठ से काम करे

और खाय1।' 'उसके बाद आप वहां आइएग ा तो 'केक` बनाया जायेग ा। बहत ु से अंडे िमलाकर' मने मजाक िकया। दीपक बाबा हं सने लग े। िबलकुल बUच@ की-सी मासूम हं सी। ***-***

2 सरग मम-कोला जैसे कुz@ के िलए काितक का मौसम होता है वैसे ही कला और संःकृ ित के िलए जोड़ का मौसम होता है िद%ली म1, ग ोरी चमड़ी वाले पयटक भरे रहते ह खलखलाते, उबलते, चहकते, िरझाते, लबालब हमारी संःकृ ित से सबसे बड़े खरीदार और इसीिलए पारखी। बड़े घर@ की मिहलाएं िलपी-पुती कलड र आट िजससे घृणा करने का कोई कारण नहीं है, जाड़े की शाम1 िकसी आट ग ल ै री और नाटक दे खने म1 ग ुजारना पसंद करती ह । जाड़ा कला और संःकृ ित का मौसम है।

सूरज ज%दी डू ब जाता है और नम मुलायम ग म कपड़@ से टकराती ताजग ी दे ने वाली हवा आट ग ल ै िरय@ और आडीटोिरयम@ के आसपास महक जाती है? ऐसी सुग ंध जो नामद को मद बना दे और मद को नामद । लोग कला और संःकृ ित म1 डू ब जाते ह । कला और संःकृ ित लोग @ म1 डू ब जाती है। यूिज़क कांृ1स के ग ेट पर चार िसपाही खड़े थे। ऊबे, उकताये डं डे िलये। उनके पीछे दो इं ःपेFटर खड़े थे, ग द न अकड़ाये Fय@िक उनके सामने चार िसपाही खड़े थे। िफ र दो सूटधरी थे। सूटधिरय@ के सूट एक से थे। बनवाये ग ये ह@ग े। सूटधरी काफ ी िमलती-जुलती शFल के थे। काफ ी मुिँकल से खोजे ग ये ह@ग े। ग ेट के सामने बजरी पड़ा राःता था। बजरी भी डाली ग यी होग ी। फ ल@ के ग मले जमीन के अंदर ग ाड़ िदये ग ये थे। न जानने वाल@ को अचंभा होता था िक ऊसर म1 फ ल उग आये ह । उपर काग ज के सफे द फ ल@ की चादर-सी तानी ग यी थी जो कुछ साल पहले तक-काग ज के फ ल@ की नहीं, असली फ ल@ की, पीर@, फ कीर@ की मज़ार@ पर तानी जाती थी। िफ र शादी िववाह म1 लग ायी जाने लग ी। दोन@ तरफ िग लाफ चढ़े बांस के खंभे थे। इन िग लाफ चढ़े बांस@ पर ƒयूब लाइट1 लग ीं थीं। इसी राःत1 से अंदर जाने वाले जा रहे थे। दासग ुा को ग ेट के िबलकुल सामने खड़े होने पर केवल इतना ही िदखाई दे रहा था।

जाने वाले िदखाई दे रहे थे, जो ऊंचे-ऊंचे जूत@ पर अपने कद को और ऊंचा िदखाने की नाकाम कोिशश म1 इस तरह लापरवाही से टहलते अंदर जा रहे थे जैसे पूरा आयोजन उहीं के िलए िकया ग या हो। अधेड़ उॆ की औरत1 थीं िजनकी शFल1 िवलायती काःमेिटFस ने वीभNस बना दी थीं। लाल साड़ी, लाल आई शैड ो, नीली साड़ी, नीली आई शैड ो, काली के साथ काला. . .पीली के साथ पीला। जापानी सािड़य@ के प%लू को लपेटने की कोिशश म1 और अपने अधखुले सीने िदखाती, कँमीरी शाल@ को लटकने से बचाती या िसफ सामने दे खती. . .या जीस और जैकेट म1 खट-खट खट-खट। स पनता की यही िनशािनयां ह । दासग ुा ने मन-ही-मन सोचा। ग ंभीर, भयानक 4प से ग ंभीर चेहरे , आNम संतोष से से मुj। 'साला तमतमाये. . .ग व से तेजवान ्, धन, ;याित, स मान से संतुq. . .दराश ु कौन आदमी इस कंशी म1 इतना काफ ीड1 स िडजव करता है?' दासग ुा अपनी िडजव करने वाली िफ लासफ ी बुदबुदाने लग े। सामने से भीड़ ग ज ु रती रही। िहmपी लड़िकयां. . .अजीबअजीब तरह के बाल. . .िघसी हई ु जीस. . .मद मार लड़िकयां। उनको सूंघते हए ु कुzे. . .कुzे-ही-कुzे. . .डाग ी. . .डाग ीज. . .ःवीट डाग ीज। ूोमाम शु4 हो ग या। भीमसेन जोशी का ग ायन शु4 हो चुका था, लेिकन दासग ुा का कोई जुग ाड़ नहीं लग पाया था, िबना िटकट अंदर जाने का जुग ाड़। ग ेट, बजरी पड़े राःते, सूटधारी ःवाग तकताओ,ं पुिलस इं ःपेFटर@ और िसपािहय@ से दरू बाहर सड़क पर दािहनी तरफ़ एक घने पेड़ के नीचे अजब िसंह अपना पान-िसग रे ट को खोखा रखे बैठा था। ताxजुब की बात है, मग र सच है िक इतने बड़े शहर म1 दासग ुा और अजबिसंह एक-दसरे को जानते ह । दासग ुा ग ेट के सामने से हटकर अजबिसंह के खोखे ू के पास आकर खड़े हो ग ये। सद“ बढ़ ग यी थी और अजब िसंह ने तसले म1 आग सुलग ा रखी थी। 'दस बीड़ी।' 'तीस हो ग यीं दादा।' 'हां, तीस हो ग या। हम कब बोला तीस नहीं हआ। . . .हम तुमको पैसा दे ग ा।' दासग ुा ने ु बीड़ी ले ली। ऐ बीड़ी तसले म1 जलती आग से सुलग ायी। और खूब लंबा कश खींचा।

'जोग ाड़ नहीं लग ा दादा?' 'लग ेग ा, लग ेग ा।' 'अब घर जाओ। ™यारा बजने का ह ।'

'Fय@ शाला घर जाये। हमको भीमसेन जोशी को सुनने का है. . .।' 'दो सादे बनारसी।' ु उःताद भीमसेन जोशी की आवाज़ का एक टकड़ा बाहर आ ग या। 'िव%स।' 'िकंग साइज, ये नहीं।'

दासग ुा खोखे के पास से हट आये। अब आवाज़ साफ सुनायी दे ग ी।. . लेिकन आवाज़ बंद हो ग यी।. . .एक आइिडया आया। पंड ाल के अंदर पीछे से घुसा जाये। बीड़ी के लंबेलंबे कश लग ाते वे घूमकर पंड ाल के पीछे पहंु च ग ये। अंधेरा। पेड़। वे लपकते हए ु आग े बढ़े । टॉच की रोशनी। 'कौन है बे?' पुिलस के िसपाही के अलावा ऐसे कौन बोलेग ा। दासग ुा ज%दी-ज%दी पट के बटन खोलने लग े 'िपशाब करना है जी िपशाब।' टॉच की रोशनी बुझ ग यी। दासग ुा का जी चाहा इन िसपािहय@ पर मूत द1 । साले यहां भी िडयूटी बजा रहे ह ।. . .िपशाब की धर िसपािहय@ पर पड़ी। पंड ाल पर िग री। चूितये िनकलिनकलकर भाग ने लग े।. . .दासग ुा हं सने लग े। वे लौटकर िफ र खोखे के पास आ ग ये। पास ही म1 एक छोटे -से पंड ाल के नीचे कैटीन बनायी ग यी थी। दो मेज़@ का काउं टर। काफ ी mलांट। उपर दो सौ वाट का ब%ब। हाट डॉग , है बग र , पॉपकान, काफ ी की mयािलयां। दासग ुा ने कान िफ र अंदर से आने वाली आवाज़ की तरफ़ लग ा िदये. . .सब अंदर वाल@ के िलए है। जो साला यूिजक सुनने को बाहर खड़ा है, चूितया है। लाउडःपीकर भी साला ने ऐसा लग ाया है िक बाहर तक आवाज़ नहीं आता। और अंदर चूितये भरे पड़े ह । भीमसेन जोशी को समझते ह ? उःताद की तान1 इनxवाय कर सकते ह ? इनसे अग र यह कह दो िक उःताद जोशी तान@ म1 मंद सक से मlय और मlयम सक से तार सक तक ःवर@ का पुल-सा बना दे ते ह , तो ये साले घबराकर भाग जाय1ग े. . .ये बात भीमसेन जोशी को नहीं मालूम होग ा? होग ा, ज4र होग ा। साले संग ीत सुनने आते ह । अभी दस िमनट म1 उठकर चले जाय1ग े. . .डकार कर खाय1ग े और ग धे की तरह पकड़कर सो जाय1ग े। 'दादा सद“ है,' अजब िसंह की उं ग िलयां पान लग ाते-लग ाते ऐंठ रही थीं। 'शद“ Fय@ नहीं होग ा। िदश बर है, िदश बर।' 'wटा ले लो दादा, wटा।' अजब िसंह ने दासग ुा के पीछे एक wटा रख िदया और वे उस

पर बैठ ग ये। जैसे-जैसे सनाटा बढ़ रहा था अंदर से आवाज़ कुछ साफ आ रही थी। उःताद बड़ा ;याल शु4 कर रहे ह । दासग ुा wट1 पर संभलकर बैठ ग ये।. . .पग लग ाने दे . . .िघं-िघं. . .धग े ितरिकट तू ना क zा धग े. . .ितरिकट धी ना. . .ये तबले पर संग त कर रहा है? दासग ुा ने अपने-आपसे पूछा। वाह Fया जोड़ हे ।

'ये तबले पर कौन है?' उह@ने अजब िसंह से पूछा। 'Fया मालूम कौन है दादा।' िकतनी ग िरमा और ग ंभीरता है। अंदर तक आवाज़ उतरती चली जाती है।. . .तू ना क zा. . .। 'तु हारे पास कै पा हैय?' तीन लड़िकयां थीं और चार लड़के। दो लड़िकय@ ने जींस पहन रखी थीं और उनके बाल इतने लंबे थे िक कमर पर लटक रहे थे। तीसरी के बाल इतने छोटे थे िक कान@ तक से दरू थे। एक लड़के ने चमड़े का कोट पहन रखा था और बाकी दो असमी जैकेट पहने थे। तीसरे ने एक काला क बल लपेट रखा था। एक की पट इतनी तंग थी िक उसकी पतली-पतली टांग े फैली हई ु और अजीब-सी लग रही थीं। लंबे बाल@ वाली लड़िकय@ म1 से एक लग ातार अपने बाल पीछे िकये जा रही थी, जबिक उसकी कोई ज4रत नहीं थी। तीसरी लड़की ने अपनी नाक की कील पर हाथ फे रा। 'तु हारे पास कै पा हैय?' लंबी और पतली टांग @ वाले लड़के ने कटीन के बैरे से पूछा। उसका ऐFस1ट िबलकुल अंमेजी था। वह 'त` को 'ट` और 'ह` को 'य` के साथ िमलाकर बोल रहा था। 'ए` को कुछ यादा लंबा खींच रहा था। 'नहीं जी अभी खतम हो ग या. . .' ु 'ओ हाऊ िसली,' छोटे बाल@ वाली लड़की ठनकी। ू 'हाऊ ःटिपड कैटीन दे हैव।' 'वी मःट क पलेट।' 'लेƒस हैव काफ ी ःवीटीज,' लंबी टांग @ वाले ने अदा से कहा। ू जा रही थी और 'बट आइ काट हैव काफ ी िहयर,' जो लड़की अपनी नाक की कील छए शायद इन तीन@ म1 सबसे xयादा खूबसूरत थी, बोली। 'वाये माई िडयर,' लंबी टांग @ वाला उसके सामने कुछ झुकता हआ बोला और वह बात ु

बाकी दो लड़िकय@ को कुछ बुरी लग ी। 'आई आलवेज हैव काफ ी इन माई हाउस ऑर इन ओबरॉयज।' 'फ ाइन लेƒस ग ो टु द ओबरॉय दे न,' लंबी टांग @ वाला नारा लग ाने के से अंदाज़ म1 चीखा। 'सर. . .सर कै पा आ ग या,' कैटीन के बैरे ने सामने इशारा िकया। एक मजदरू अपने िसर पर कपा का बेट रखे चला आ रहा था। 'ओ, कै पा हे ज कम,' दसरी दो लड़िकय@ ने कोरस जैसा ग ाया। अंदर से भीमसेनी जोशी ू ु की आवाज़ का टकड़ा बाहर आ ग या। 'ओ कै पा {{{{ हैज कम,' सब सुर म1 ग ाने लग े, 'के ए ए ए म पा {{{{. . . .पार करो अरज सुनो ओ. . .ओ. . .पा {{{{. . .कै पा {{{ पार करो. . .पा {{{{ र. . .कै पा {{{{. . .' ु 'बट नाउ आई वांट टु हैव काफ ी इन ओबरॉय,' खूबसूरत चेहरे वाली लड़की ठनकी। 'बट वी केम िहयर टु िलसन भीमसेनी जोशी।' 'ओ, डोट बी िसली. . .ही िवल िसंग फ ॉर द होल नाइट. . .हैव कॉफ ी इन ओबरॉय दे न वी कैन कम बैक. . .इिवन वी कैन हैव ःलीप एšड कम बैक. . .' लंबी टांग @ वाला चािबय@ का ग ुUछा िहलाता आग े बढ़ा. . .भीमसेन जोशी की दद नाक आवाज़ बाहर तक आने लग ी थी. . .आNमिनवेदन की, दख@ और कq@ से भरी ःतुित. . .अरज सुनो {{{{. . . ु .मो{{{{. . .खचाक. . .खचाक. . .कार के दरवाजे एक साथ बंद हए ु और िबर र िबर रर िबर . . .भर {{{{ भर {{{{. . .।'

बारह बज चुका था। सड़क पर सनाटा था। सड़क के िकनार@ पर दरू-दर तक मोटर@ की लाइन1 थीं। लोग बाहर िनकलने लग े थे। xयादातर अधेड़ उॆ और ग ंभीर चेहरे वालेउकताये और आNमिल. . .मोटी औरत1. . .कमर पर लटकता हआ ग ोँत. . .जमहाइयां ु आ रही ह । साले, नींद आने लग ी. . .िटकट बबाद कर िदया। अरे उःताद तो दो बजे के बाद मूड़ म1 आय1ग े। बस िटकट िलया. . .मंग वा िलया साइवर से। घंटे-दो घंटे बैठे। पिcलक िरलेशन. . .ये िटकट ही नहीं िडजव करते. . .पैसा वेःट कर िदया. . .उःताद को भी वेःट कर िदया. . .ऐसी र‚ी आिडयस। जो लोग जा रहे ह उनकी जग ह खाली. . .उसम1 शाला हमको नहीं बैठा दे ता. . .बोलो, पैशा तो तुमको पूरा िमल ग या है। अब Fय@ नहीं बैठायेग ा।

दासग ुा को सद“ लग ने लग ी और उह@ने एयरफ ोस के पुराने ओवरसाइज कोट की जेब@ म1 हाथ डाल िदये। अजब िसंह कुछ सूखी पzी उठा लाया। तसले की आग दहक उठी।. . .ये साला िनकल रहा है 'आट स1टर` का डायरे Fटर। प1िटं ग बेच-बेचकर कोिठयां खड़ी कर लीं। अब सेनीटरी िफ िटं ग का कारोबार डाल रखा है। यही साले आट क%चर करते ह । Fय@िक इनको पिcलक िरलेशन का काम सबसे अUछा आता है। पािट यां दे ते ह । एक हाथ से लग ाते ह , दसरे से कमाते ह । अपनी वाइफ के नाम पर इं टीिरयर डे कोरे शन का ठे का ू लेता है। अिमत से काम कराता है। उसे पकड़ा दे ता है हज़ार दो हज़ार. . .लड़की सmलाई करने से वोट खरीदने तक के धंधे जानता है. . .दे खो युिजक काृ1स की आग न  ाइजर कैसे इसकी कार का दरवाजा खोल रही है. . .ॄोशर म1 िदया होग ा एक हजार का िवापन। जैसे सुअर ग ू पर चलता है और उसे खा भी जाता है वही ये आट -क%चर के साथ करते ह । फैFशी न डाली 'कला केि` खोल िलया।. . .िवदे शी कार का दरवाजा सoय आवाज़ के साथ बंद हो ग या। कुसुम ग ुा. . .साली न िमस है, न िमसेज़ है. . .दासग ुा सोचने लग े। Fय@ न इससे बात की जाये। वह तेजी से ग ेट की तरफ बढ़ रही थी। इससे अंमेजी ही म1 बात की जाये। 'कैन यू mलीज. . .' उसने बात पूरी नहीं सुनी। मतलब समझ ग यी। ग ध ं े उचकाये। 'नो आइ एम सॉरी. . .वी हैव ःप1ट थट“ थाउज1ड टू अर ज िदस. . .' आग े बढ़ती चली ग यी। थट“ थाउज1ड , िफ ›टी थाउज1ड , वन लैख. . .फ ायदे , मुनाफे के अलावा वह कुछ सोच ही नहीं सकती। वे आकर wट पर बैठ ग ये। 'िव%स।' 'मीठा पान।' 'नcबे नंबर डाल, नcबे. . .' 'ओ हाउ मीन यू आर।' औरतनुमा लड़की को कमिसन लड़का अपना है बग र नहीं दे रहा था। औरतनुमा लड़की ने अपना हाथ िफ र बढ़ाया और कमिसन लड़के ने अपना हाथ पीछे कर िलया। उनके साथ की दसरी दो लड़िकयां हं से जा रही थीं। ू 'मीन,' लड़की अदा से बोली। मीन? मीन का मतलब तो नीच होता है। लेिकन ये साले ऐसे बोलते ह जैसे ःवीट। और ःवीट का मतलब मीन होग ा।

कमिसन लड़का और औरतनुमा लड़की एक ही है बग र खाने लग े। उनके साथ वाली लड़िकयां ऐसे हं सने लग ीं जैसे वे दोन@ उनके सामने संभोग कर रहे ह@। 'िडड यू अट1 ड दैट चावलाज पाट“?' 'ओ नो, आई वानटे ड टु ग ो बट. . .' 'मेहराज िग व नाइस पाट“।' 'हाय बॉबी!' 'हाय िलटी!' 'हाय जॉन!' 'हाय िकटी!' 'यस मेहराज िग व नाइस पाट“ज. . .िबकाज दे हैव नाइस लॉन. . .लाःट टाइम दे यर पाट“ वाज िटर} िफ क. . .दे यर वाज टू मच टू ईट एंड िसं क. . .वी केम बैक टू थट“ इन द मॉिन„ग . . .यू नो वी हैड टू कम बैक सो सून? माई मदर इनला वाज दे यर इन अवर हाउस. . . िडड यू मीट हर? सो चािम„ग लेड ी दैड द एज आफ सेवेटी ाी. . .सो एƒशे िFटव आइ कांट टे ल यू।' 'िडड यू लाइक द ूोमाम?' 'ओ ही इस सो ह ड सम।' 'िडड यू नोिटस द िरं ग ही इज िवयिरं ग ?' 'ओ यस, यस. . .cयूटीफु ल।' 'मःट बी वेरी एFसपेिसव।' 'ओ ँयोर।' 'माइ मदस अंकल ग ाट द सेम िरं ग ।' 'दैट इज mलैिटनम।' 'हैय वेटर, टू काफ ी।' सुनने नहीं दे ते साले। अब अंदर से थोड़ी-बहत ु आवाज़ आ रही थी। दासग ुा ने wट िखसका ली और अंग ीठी के पास िखसक आये। 'ही हैज जःट कम बैक ृाम योरोप।' 'ही हैज ए हाउस इन लšडन।'

'मःट बी वेरी िरच।' 'नेचरु ली ही टे ःट टे न थाउज1ड फ ार ए नाइट।' 'दे न आइ िवल काल िहम टु िसंग इन अवर मैिरज।' कम उॆ लड़के ने औरतनुमा लड़की की कमर म1 हाथ डाल िदया। साले के हाथ दे खो। कलाइयां दे खो। दासग ुा ने सोचा। अपने बल पर साला एक पैसा नहीं कमा सकता। बाप की दौलत के बलबूते पर उःताद को शादी म1 ग ाने बुलायेग ा। अजब िसंह ने िफ र अंग ीठी म1 सूखे पzे डाल िदये। बीड़ी पीता हआ एक साइवर आया और ु आग के पास बैठ ग या। उसने खाकी वद“ पहन रखी थी। 'सद“ है जी, सद“।' उसने हाथ आग पर फैला िदये। कोई कुछ नहीं बोला। 'दे खो जी कब तक चलता है ये चुितयापा। डे ढ़ सौ िकलोमीटर ग ाड़ी चलाते-चलाते हवा पतली हो ग यी। अब साले को मुजरा सुनने की सूझी है। दो बजने. . .' 'सुबह छ: बजे तक चलेग ा।' 'तब तो फं स ग ये जी।' 'ूाजी कोई पास तो नहीं है?' अजब िसंह ने साइवर से पूछा। 'पास? अंदर जाना है?' 'हां जी अपने दादा को जाना है,' अजब िसंह ने दासग ुा की तरफ इशारा िकया। 'दे खो जी दे खते ह ।' साइवर उठा तेजी से ग ेट की तरफ बढ़ा। लंबा तडं ग़ा। हिरयाणा का जाट। ग ेट पर खड़े िसपािहय@ से उसने कुछ कहा और िसपाही ःवाग तकता को बुला लाया। साइवर जोर-जोर से बोल रहा था, 'पुिलस ले आया हंू जी। एस.पी. बाइम ॄांच, नाथ िडिःशFट का साइवर हंू जी। डी.वाई.एस.पी. बाइम ॄांच और डी.डी.एस.पी. शैिफ क की फैिमली ने पास मंग ाया है जी,' वह लापरवाही से एक सांस म1 सब बोल ग या। सूटधारी ःवाग तकता ने सूट की जेब से पास िनकालकर साइवर की तरफ बढ़ा िदये। वह लंबे-लंबे डग भरता आ ग या। 'सद“ है जी, सदी है।' हाथ आग े बढ़ाया 'ये लो जी पास।' 'ये तो चार पास ह ।' 'ले लो जी अब, नहीं तो Fया इनका अचार डालना है।' दासग ुा ने एक पास ले िलया, 'हम चार पास का Fया करे ग ा?'

हिरयाणा का जाट को काफ ी ऊब चुका था, इस सवाल का कोई ूितिबया नहीं pयj करना चाहता था। उसने बचे हए ु तीन पास तसले म1 जलती आग म1 डाल िदये। साइवर और अजबिसंह ने तसले पर ठं डे हाथ फैला िदये। दासग ुा ग ेट की तरफ लपके। अंदर से साफ आवाज़ आ रही थी. . .जा{ ग ो{. . .उःताद अलाप लेकर भैरवी शु4 करने वाले ह . . .जा{ ग ो{ मो{ ह न mया{{{{रे {{. . .ध िधं िधं ध ध ितं ितं ता. . .जा{ ग ो{ मो{ ह{ न mया{ {{ {{ {{ रे {{ {{{. . . **-**

3 िद%ली पहंु चना है रात के दो बजे थे और कायदे से इस वj ःटे शन पर सनाटा होना चािहए था। इFकाचाय की ठे िलय@ को छोड़कर या दो-चार उं घते हए दFका ु ु कुिलय@ या सामान की ग ांठ@ और ग ƒठर@ या mलेटफ ाम पर सोये ग रीब फ टे हाल लोग @ के अलावा कुछ नहीं होना चािहए था। पर ऐसा नहीं था। पूरे ःटे शन पर ऐसी चहल-पहल थी, जैसे रात के दो नहीं, सात बे ह@। ु आठ-आठ दस-दस की टकिड़य@ म1 लोग mलेटफ ाम पर इधर-उधर खड़े थे या िकसी कोने म1 ग ोले बनाये बैठे थे या पानी के नल के पास बैठे िचउड़ा खा रहे थे। ये सब एक ही तरह के लोग थे। मैली, फ टी, उं ची धोितयां या लुंिग यां और उलटी, बेतुकी, िसलवट1 पड़ी कमीज1 या कपड़े की िसली बिनयान1 पहने। नंग े िसर, नंग े पैर, िसर पर छोटे छोटे बाल। एक हाथ म1 पोटली और दसरे हाथ म1 लाल झंड ा। ू िबिपन िबहारी शमा, मदनपुर ग ांव, क%याणपुर cलाक, मोितहारी, पूवu चंपारन आज सुबह ग ांव से उस समय िनकले थे जब पूरब म1 आम के बड़े बाग के उपर सूरज का कोई अतापता न था। सूरज की हलकी-हलकी लाली उह1 खजुिरया चौक पहंु चने से कोई एक घंटा पहले िदखाई दी थी, जहां आकर सब जन@ ने दातुन-कु%ला िकया था। इमली, आम और नीम के बड़े -बड़े पेड़@ के नीचे दबका ग ांव सो रहा था। इन पेड़@ की ु अंधेरी परछाइयां इधर-उधर खपरैल के घर@, ग िलयार@, कUची दीवार@ पर पड़ रही थीं। बड़े ू बरग द के पेड़ के पzे हवा म1 खड़खड़ाते तो सनाटा कुछ gण के िलए टटता और िफ र पूरे ग ांव को छाप कर बैठ जाता। उपर आसमान के सफे द ई जैसे बादल उzर की ओर भाग े चले जा रहे थे। चांद पीला पड़ चुका था और जैसे सहमकर एक कोने म1 चला ग या था।

कुएं म1 िकसी ने बा%टी डाली और उसकी आवाज़ से कुएं के पास लग े नीम के पेड़ से तोत@ का एक झुंड भरा मारकर उड़ा और ग ांव का चFकर लग ाता हआ उzर की ओर चला ु ग या। धीरे -धीरे इधर-उधर के बग ान@ से कुƒटी काटने की आवाज1 आने लग ीं। ग ंड ासा चारा काटता हआ लकड़ी से टकराता और आवाज़ दरू तक फैल जाती। कुƒटी काटने की दरू से ु आती आवाज़ के साथ कुछ दे र बाद घर@ से जांता पीसने की आवाज़ भी आने लग ी। कुछ दे र तक यही दो आवाज1 इधर-उधर मंड राती रहीं, िफ र बलदे व के घर म1 आती बाबा बकी फ टी और भारी आवाज़, 'भये ूकट िबपाला दीनदयाला. . .' भी कुƒटी काटने और पीसने की आवाज@ के साथ िमल ग यी। अंधेरा ही था, पर कुछ परछाइयां इधर-उधर आती-जाती िदखायी पड़ने लग ी थीं। सुखवा काका की घर की ओर से एक परछाइयाँ भाग ी चली आ रही थी। पास आया तो िदखायी पड़ा दीनदयाला। उसने कमीज कंधे पर रखी हई म1 ू ु थी, एक हाथ म1 जूते, दसरे िचउड़ा की पोटली थी। माई के थान पर कई लोग लग ा थे। दीनदयाला भी माई के थान पर खड़ी परछाइय@ म1 िमल ग या। नीचे टोली से 'ललकारता` रघुबीरा चला आ रहा था। अब इन लोग @ की बात1 करने की आवाज़@ म1 दसरी आवाज़1 दब ग यी थीं। ू

खजुिरया चौक से िसवान ःटे शन के िलए बस िमलती है, पर बस के पैसे िकसके पास थे? दातुन-कु%ला के बाद वे िफ र चल पड़े थे। अब िसवार रह ही िकतना ग या है, बस बीस 'िकलोमीटर`! बीस िकलोमीटर िकतना होता है। चलते-चलते रझतार सुःत पड़ने लग ी तो र तेज जो िबिपनजी कहते, 'लग ाइए ललकारा।' ललकारा लग ाया जाता और सुःत पड़े पै जाते। ™यारह बजते-बजते िसवान ःटे शन पहंु च ग ये तो ग ाड़ी िमलेग ी। और िफ र पटना। शे न दनदनाती हई ु mलेटफ ाम के नजदीक आती जा रही थी। इं जन के उपर बड़ी बzी की तेज रोशनी म1 रे ल की पटिरयां चमक रही थी। शे न पूरी ग िरमा और ग ंभीरता के साथ नपेतुले कदम भरती ःटे शन के अंदर घुसती चली आयी। रझतार सुःत पड़ने लग ी और दरवाज@ पर लटके हए ु आदमी mलेटफ ाम की सफे द रोशनी म1 नहा ग ये।

इं तजार करते लोग @ म1 इधर-से-उधर तक िबजली-सी दौड़ ग यी िक अग र यह शे न िनकल ग यी तो कल शाम तक िद%ली नहीं पहंु च पाय1ग े। कल शाम तक उसको िद%ली पहंु चना है, िकसी भी हालत म1। पोटली म1 बंधे मकई के सzू, िचउड़ा और भूजा इसी िहसाब से रखे ग ये ह । ऐसा नहीं है िक दस-पिह िदन चलते रह1 ग े और ऐसा भी नहीं िक ग ाड़ी नहीं

पकड़ पाने का बहाना लेकर लौट जाय1ग े। कल शाम िद%ली ज4र पहंु चना है। सबको। हर हालत म1।

ु शे न खड़ी हो ग यी। इःपात, िबजली के तार@ और लकड़ी के टकड़@ से बनी शे न एक चुनौती की तरह सामने खड़ी थी। यहां से वहां तक शे न दे ख डाली ग यी। पर बैठने Fया, खड़े होने Fया, सांस लेने तक की जग ह नहीं है। सेक1ड Fलास के िडcबे उसी तरह के लोग @ से भरे ह । उनको भी कल िकसी भी हालत म1 िद%ली पहंु चना है। 'अब Fया होग ा िबिपनजी?' यह सवाल िबिपन िबहारी शमा से िकसी ने पूछा नहीं, पर उह1 लग रहा था िक हज़ार@ बार पूछा जा चुका है। 'बैठना तो है ही। काहे नहीं ूथम ौेणी म1 जाय1।' ूथम ौेणी का लंबा-सा िडcबा बहत ु सुरिgत है। इःपात के दरवाजे पूरी तरह से बंद। अंदर अलग -अलग केिबन@ के दरवाजे पूरी तरह से बंद। 'दरवाजा खुलवा बाबूजी!' धड़-धड़-धड़। 'बाबूजी दरवाजा खोलवा!' धड़-धड़-धड़। 'नीचे बैठ ग इले बाबूजी!' धड़-धड़-धड़। 'बाबूजी िद%ली बहत ु ज4री पहंु चना बा!' धड़-धड़-धड़। तीन-सौ आदमी बाहर खड़े दरवाजा खोलने के िलए कह रहे थे और जवाब म1 इःपात का िडcबा हं स रहा था। समय तेजी से बीत रहा था। अग र यह ग ाड़ी भी िनकल ग यी तो कल शाम तक िद%ली पहंु च सक1ग े। 'दरवाजे के पास वाली िखरकी तोरते ह ।' िबिपनजी िखड़की के पास आ ग ये और िफ र पता ु नहीं कहां से आया, िकसने िदया, उनके हाथ म1 एक लोहे का बड़ा सा टकड़ा आ ग या। पूरा ःटे शन िखड़की की सलाख1 तोड़ने की आवाज़ से ग ज ूं ने लग ा। 'कस के मार-मार दरवाजा तोड़े का पड़ी। हमनी बानी एक साथ िमलके चाइल जाई तो. . ू ग यीं तो उनसे भी हथौड़े का .' भरपूर हाथ मारने वाल@ म1 होड़ लग ग यी। दो। सलाख1 टट काम िलया जाने लग ा। 'अरे , ये आप Fया करता हे , फ ःट Fलास का िडcबा है,' काले कोट वाले बाबू ने िबिपन का

ु हाथ पकड़ िलया। िबिपनजी ने हाथ छड़ाने की कोिशश नहीं की। उह@ने पूरी ताकत से नारा लग ाया। 'हर जोर जु%म की टFकर म1' तीन सौ आदिमय@ ने पूरी ताकत से जवाब िदया: 'संघष हमारा नारा है।' काले कोट वाले बाबू को ज%दी ही अपने दोन@ कान@ पर हाथ रखने पड़े । 'संघष हमारा नारा है' ूितlविनयां इन लोग @ के चेहर@ पर कांप रही थी। काले कोट वाले बाबू को समझते दे र न लग ी िक िःथित िवःफ ोटक है। वे लाल झंड़@ और अधनंग े शरीर@ के बीच से मछली की तरह िफ सलते िनकल ग ये और सीधे ःटे शन माःटर के कमरे म1 घुस ग ये। कुछ दे र बाद उधर से एक िसपाही डं ड ा िहलाता हआ आया और सामने खड़ा हो ग या। ु 'Fया तु हारे बाप की ग ाड़ी है?' िसपाही ने िबिपनजी से पूछा। 'नहीं, तु हारे बाप की है?' िसपाही ने िबिपन शमा को उपर से नीचे तक दे खा। चमड़े की िघसी हई ु चmपल। नीचे से फ टा पाजामा, उपर खादी का कुता और कुत} की जेब म1 एक डायरी, एक कलम। 'तुम इनके नेता हो?' 'नहीं।' 'िफ र कौन हो?' 'इहीं से पूिछए।' िसपाही ने िबिपन िबहारी शमा को िफ र lयान से दे खा। उॆ यही कोई तेईस-चौबीस साल। अभी दाढ़ी-मूंछ नहीं िनकली है। आंख@ म1 ठहराव और िव[ास। 'तु हारा नाम Fया है?' 'अपने काम से काम रिखए। हमारा नाम पूछकर Fया कर1 ग े?' बातचीत सुनने के िलए भीड़ िखसक आयी थी। रामदीन हजरा ने िचउड़ा की पोटली बग ल म1 दबाकर सोचा, यही साली पुिलस थी िजसने उसे झूठे डकैती के केस म1 फं साकर पांच-सौ पये वसूल कर िलये थे। बलदे व तो पुिलस को मारने की बात बचपन से सोचता है। जबसे उसने अपने िपता के मुंह पर पुिलस की ठोकर1 पड़ती दे खी ह , तबसे उसके मन म1 आता है, पुिलस को कहीं जमके मारा जाये। आज उसे मौका िमला है। उसने डं डे मे लग े

झंडे को िनकालकर जेब म1 रख िलया और अब उसके हाथ म1 डं ड ा-ही-डं ड ा रह ग या। 'ठीक से जवाब नहीं द1 ग े तो तु ह1 बंद कर द1 ग े साले,' िसपाही ने डं ड ा हवा म1 लहराते हए ु कहा। 'दे खो भाई साहब, बंद तो हम1 तुम कर नहीं सकते। और ये जो ग ाली दे रहे ह , तो हम आपको मारे -पीट1 ग े नहीं। आपको वद“-पेटी उतारकर वैसे ही छोड़ द1 ग े।' िसपाही ने िसर उठाकर इधर-उधर दे खा। चार@ तरफ काले, अधनंग े बदन@ और लाल झंड़@ की अभे\ दीवार थी। अब उसके सामने दो ही राःते थे, नरम पड़ जाता या ग रम। नयानया लग ा था, ग रम पड़ ग या। 'मादर. . .कानून. . .' िफ र पता नहीं चला िक उसकी टोपी, डं ड ा, कमीज, हाफ प1ट, जूते और मोजे कहां चले ग ये, Fय@िक यिद बीस हाथ डं ड ा, कमीज, हाफ प1ट, जूते और मोजे कहां चले ग ये, Fय@िक यिद बीस हाथ डं ड ा छीनने के िलये बढ़े ह@, दस हाथ@ ने टोपी उतारी हो, सातआठ आदमी कमीज पर झपटे ह@, तीन-चार लोग @ ने जूते और मोजे उतारे हो, तो इस काम म1 िकतना समय लग ा होग ा? अब िसपाही, िसपाही से आदमी बन चुका था। उसके चेहरे पर न रोब था, न दाब। सामने खड़ा था िबलकुल नंग ा। इस छीना झपटी म1 उसकी शानदार मूंछ छोटी, बहत ु अजीब लग रही थी। लोग हं स रहे थे। पता नहीं कहा से िवचार आया बहरहाल एक बड़ा-सा लाल झंड ा िसपाही के मुंह और िसर पर कसकर लपेटा और िफ र पतली रःसी से पFका करके बांध िदया ग या। उसी रःसी के दसरे कोने से िसपाही के हाथ बांध िदये ग ये। ू खोपड़ा और चेहरा लाल, शरीर नंग ा। द:ु ख, भुखमरी और जु%म से मुरझाये चेहर@ पर हं सी पहाड़ी झरन@ की तरह फ ट पड़ी। उन चेहर@ पर हं सी िकतनी अUछी लग ती है, िजन पर शतािcदय@ से भय, आतंक के कांटे लग े ह@। िफ र िसपाही के नंग े चूतड़ पर उसी का डं ड ा पड़ा और वह mलेटफ ाम पर भाग ता चला ग या। ू ग यीं। इन मनोरं जन के बाद काम म1 तेजी आयी। बाकी बची दो सलाख1 ज%दी ही टट ू शीशा टटने म1 िकतनी दे र लग ती है? अब राःता साफ था। एक लड़का बंदर की तरह िखड़की म1 से अंदर कूद ग या। अंदर से उसने दरवाजे के बो%ट खोल िदये।

सारे लोग ज%दी-ज%दी अंदर चढ़े । बzी हरी हो चुकी थी और शे न र1 ग ने लग ी थी। लंबे िडcबे की पूरी ग ल ै री खचाखच भर ग यी। और अब भी लोग दरवाजे के डं डे पकड़े लटक रहे थे। अब केिबन भी खुलना चािहए। अंदर बैठने की xयादा जग ह होग ी। िबिपनजी पहले केिबन के बंद दरवाजे के सामने आये। 'दे िखए, हमने आपके िडcबे का बड़ा लोहा वाला दरवाजा तोर िदया है, भीतर आ ग इले। केिबन का दरवाजा खोल दीिजए। नहीं तो इसे तोड़ने म1 Fया टैम लग ेग ा।' अंदर से कोई साहब नहीं आया। 'आप अपने से खोल द1 ग े तो हम केवल बैठभर जाय1ग े। और जो हम तोर कर अंदर आय1ग े तो आप लोग @ को मार1 ग े भी।' केिबन का दरवाजा खुला। धरीदार कमीज-पाजामा पहने-आदमी ने खोला था। अंदर मि+म नीली बzी जल रही थी, पर तीन@ लोग जग े हए ु थे और इस तरह िसमटे -िसकुड़े बैठे थे िक सीट@ पर बैठने की काफ ी जग ह हो ग यी थी। **-**

4 राजा उन िदन@ शेर और लोमड़ी दोन@ का धंधा मंदा पड़ ग या था। लोमड़ी िकसी से िचकनीचुपड़ी बात1 करती तो लोग समझ जाते िक दाल म1 कुछ काला है। शेर दहाड़कर िकसी जानवर को बुलाता तो वह ज%दी से अपने घर म1 घुस जाता। ऐसे हालात से तंग आकर एक िदन लोमड़ी और शेर ने सोचा िक आपस म1 खाल1 बदल ल1। शेर ने लोमड़ी की खाल पहन ली और लोमड़ी ने शेर की खाल। अब शेर को लोग लोमड़ी समझते और लोमड़ी को शेर। शेर के पास छोटे -मोटे जानवर अपने आप चले आते और शेर उह1 ग ड़प जाता। लोमड़ी को दे खकर लोग भाग ते तो वह िच%लाती 'अरे सुनो भाई. . .अरे इधर आना लालाजी. . .बात तो सुनो पंिडतजी!' शेर का यह रं ग -ढं ग दे खकर लोग समझे िक शेर ने कंठी ले ली है। वे शेर, यानी लोमड़ी के पास आ जाते। शेर उनसे मीठी-मीठी बात1 करता ू । और बड़े mयार से ग ुड़ और घी मांग ता। लोग दे दे ते। खुश होते िक चलो सःते छटे

एक िदन शेर लोमड़ी के पास आया और बोला, 'मुझे अपना दरबार करना है। तुम मेरी

खाल मुझे वापस कर दो। म लोमड़ी की खाल म1 दरबार कैसे कर सकता हंू ?' लोमड़ी ने उससे कहा, 'ठीक है, तुम परस@ आना।' शेर चला ग या। लोमड़ी बड़ी चालाक थी। वह अग ले ही िदन दरबार म1 चली ग ई। िसंहासन पर बैठ ग ई। राजा बन ग ई। दोःतो, यह कहानी बहत ु पुरानी है। आज जो जंग ल के राजा ह वे दरअसल उसी लोमड़ी की संतान1 ह , जो शेर की खाल पहनकर राजा बन ग ई थी। **-**

5 यो+ा िकसी दे श म1 एक बहत ु वीर यो+ा रहता था। वह कभी िकसी से न हारा था। उसे घमंड हो ग या था। वह िकसी को कुछ न समझता था। एक िदन उसे एक दरवेश िमला। दरवेश ने उससे पूछा, 'तू इतना घमंड Fय@ करता है?' यो+ा ने कहा, 'संसार म1 मुझ जैसा वीर कोई नहीं है।' दरवेश ने कहा, 'ऐसा तो नहीं है।' यो+ा को बोध आ ग या, 'तो बताओ पूरे संसार म1 ऐसा कौन है, िजसे म हरा न सकता हंू ।' दरवेश ने कहा, 'चींटी है।'

यह सुनकर यो+ा बोध से पाग ल हो ग या। वह चींटी की तलाश म1 िनकलने ही वाला था िक उसे घोड़ी की ग द न पर चींटी िदखाई दी। यो+ा ने चींटी पर तलवार का वार िकया। घोड़े की ग द न उड़ ग ई। चींट@ को कुछ न हआ। यो+ा को और बोध आया। उसने चींटी ु को ज़मीन पर चलते दे खा। यो+ा ने चींटी पर िफ र तलवार का वार िकया। खूब धूल उड़ी। चींटी यो+ा के बाएं हाथ पर आ ग ई। यो+ा ने अपने बाएं हाथ पर तलवार का वार िकया, उसका बायां हाथ उड़ ग या। अब चींटी उसे सीने पर र1 ग ती िदखाई दी। वह वार करने ही वाला था िक अचानक दरवेश वहां आ ग या। उसने यो+ा का हाथ पकड़ िलया। यो+ा ने हांफ ते हए ु कहा, 'अब म मान ग या। बड़े से, छोटा xयादा बड़ा होता है।' **-**

6 बंदर एक िदन एक बंदर ने एक आदमी से कहा, 'भाई, करोड़@ साल पहले तुम भी बंदर थे। Fय@

न आज एक िदन के िलए तुम िफ र बंदर बनकर दे खो।' यह सुनकर पहले तो आदमी चकराया, िफ र बोला, 'चलो ठीक है। एक िदन के िलए म बंदर बन जाता हंू ।' बंदर बोला, 'तो तुम अपनी खाल मुझे दे दो। म एक िदन के िलए आदमी बन जाता हंू ।' इस पर आदमी तैयार हो ग या। आदमी पेड़ पर चढ़ ग या और बंदर ऑिफ स चला ग या। शाम को बंदर आया और बोला, 'भाई, मेरी खाल मुझे लौटा दो। म भर पाया।' आदमी ने कहा, 'हज़ार@ लाख@ साल म आदमी रहा। कुछ सौ साल तो तुम भी रहकर दे खो।' बंदर रोने लग ा, 'भाई, इतना अNयाचार न करो।' पर आदमी तैयार नहीं हआ। वह पेड़ की ु से तीसरी, िफ र चौथी पर जा पहंु चा और नज़र@ से ओझल एक डाल से दसरी ू ू , िफ र दसरी हो ग या। िववश होकर बंदर लौट आया। और तब से हक़ीक़त म1 आदमी बंदर है और बंदर आदमी। **-**

7 चंिमा के दे श म1 हम िद%ली के रहने वाले जब छोटे शहर@ या कःब@ म1 पहंु चते ह तो हमारे साथ कुछ इस तरह का बताव िकया जाता है जैसे पहले ज़माने म1 तीथयाऽा या हज से लौटकर आए लोग @ के साथ होता था। हमसे उ मीद की जाती है िक हम िहं दःतान के िदल िद%ली की ु रग -रग जानते ह । ूधानमंऽी से न सही तो मंिऽय@ से तो िमलते ह@ग े। मंिऽय@ से न सही तो उनके चमच@ से तो टकराते ही ह@ग े। हमसे उ मीद की जाती है हम अखबार@ म1 छपी खबर@ के पीछे िछपी असली खबर@ को जानते ह@ग े। नई आने वाली िवपदाओं और पिरवतन@ की जानकारी हम1 होग ी। हमसे लोग वह सब सुनना चाहते ह िजसकी जानकारी हम1 नहीं होग ी। लेिकन मुझत म1 िमले स मान से कौन मुंह मोड़ लेग ा? और वह भी अग र दो-चार उ%टी-सीधी बात1 बनाकर िमल सकता हो, तो िफ र म िव[सनीय ग mप1 पूरे कःबे म1 फैल जाती ह । रात तक दसरे शहर और अग ले िदन तक राxय म1 इस तरह फैलती ह , ू जैसे वहीं की जमीन से िनकली ह@।

ु छिƒटय@ के समय बबाद करने के िलए वहां कई जग ह1 ह । उनम1 से एक 'खादी आौम` भी है। चूिं क वहां के कमचारी फु सत म1 होते ह । आसपास म1 लड़-लड़कर थक चुके होते ह इसिलए माहक@ से दो-चार बात1 कर लेने का मोह उह1 बहत ु शालीन बना दे ता है। अUछी बात है िक ग ांधीजी ने खादी की तरह समय के सदपयोग के बारे म1 जोर दे कर कोई ऐसी ु बात नहीं कही है, िजससे उनके अनुयाियय@ को समय बबाद करने म1 असुिवधा महसूस हो। लेिकन समय के बारे म1 ऐसी कोई बात न कहकर ग ांधीजी ने संःथाएं बनाने वाल@ के साथ ज4र अयाय िकया है, नहीं तो अब तक 'समय आौम` जैस कई संःथाएं बन चुकी होतीं।

सफे द कुता-पाजामाधरी युवक पान खाए था। मुझे अंदर आता दे खकर उसने खादी ूचारक से अपना वाकयु+ कर िदया और इNमीनान से खादी के थान पर थान िदखाने लग ा। म आदमी होऊँ िजसने खादी के महNव का समझा हो, इस तरह जैसे ग ांधीजी के बाद दसरा ू खादी दे खता रहा। बीच-बीच म1 बातचीत होती रही। खादी आौम का िवबेता कुछ दे र बाद थोड़ा आNमीय होकर बोला, 'ौीमान, आप जैसी खादी-ूेमी यहां कम आते ह ?' म बात करने का मौका Fय@ छोड़ दे ता। पूछा, 'कैसे?' बोला, 'यहां तो िटं परे री खादी-ूेमी आते ह ?' 'ये Fया होता है?' 'अरे मतलब यही ौीमान िक लखनऊ वाली बस पकड़ने से पहले धड़धड़ाते हए ु आए। पट, कमीज उतारी। सफे द कता-पाजामा खरीदा। पहना। टोपी लग ाई। सड़क पर आए। लखनऊ जाने वाली बस कवाई। चढ़ने से पहले बोले, 'शाम को पट-कमीज ले जाएंग े।` और सीधे लखनऊ।' इस पर याद आया िक मरे भाई जो वकील ह , एक बार बता रहे थे िक एक पेशेवर डाकू जो उनका मुविFकल था, बहत ु िदन@ से कह रहा था िक वकील साहब हम1 'सहारा` िदला दो। खै र, तो एक िदन वह शुभ िदन आया। हमारे भाई साहब, उनके दो दोःत और पेशेवर डाकू भाड़े की टैFसी पर लखनऊ की तरफ रवाना हए। जैसे ही टैFसी लखनऊ म1 दािखल ु होने लग ी, डाकू ने टैFसी वाले को कने का आदे श िदया। टैFसी की। वे लोग समझे, ु साले को टƒटी -टƒटी लग ी होग ी। वह अपना थै ला लेकर झािड़य@ के पीछे चला ग या। कुछ िमनट बाद झािड़य@ के पीछ से मंऽी िनकला। िसर खादी की टोपी म1, पैर खादी के पाजामे म1, बदन खादी के कुत} म1। पैर ग ांधी चmपल म1।

इनम1 से एम ने पूछा, 'ये Fया?' 'ज4री हे । उकील साब, ज4री है,' वह बोला। 'अमां तुम तो हमसे होिशयार िनकले।' 'सो तो हइये है उकील साब!' अपना खादी-ूेम ूदिशत करके और दो कुतž का कपड़ा बग ल म1 इस तरह दबाए जैसे वही ग ांधीजी Lारा दे श के िलए छोड़ी संपूण संपिz हो, म आग े बढ़ा। अब मेरा िनशाना एक गह ृ ःथ आौम था। अब छोटे शहर@ म1 िकसी भी चीज की कमी हो, वकील@ की कमी नहीं है। हर ग ांव, हर मोह%ले, हर जाित, हर धम के वकील ह । यही कारण है िक हर ग ांव, हर मोह%ले, हर जाित, हर धम के लोग @ के मुकदमेबािजयां ह । कहने का मतलब यह िक वकील@ की कमी नहीं है। इसका ौेय िकसे िदया जाना चािहए? आप चाह1 तो मोतीलाल नेह4 या जवाहरलाल नेह4 को दे सकते ह , लेिकन म तो ऐसा नहीं क4ंग ा, Fय@िक ये हमारे वकील@ के पुरखे नहीं हो सकते। कहां तो उनके िवलायत से धुलकर कपड़े आते थे और कहां ये िवलायत से मंग वाकर कपड़े धोते ह । इतने अंतर के कारण इह1 िकसी और का ही जांनशीन कहा जाना चािहए। ये फैसला आप कर1 , Fय@िक वकील@ के िलए िकसी पर मानहािन का मुकदमा दाग दे ना उतना ही आसान है, िजतना हमारे आपके िलए एक िसग रे ट सुलग ा लेना।

वकील साहब का घर यानी 'ग ह ृ ःथ आौम` नजदीक था। छके हए ु वकील ह । छके हए ु शcद@ के दो अथ ह । पतला मतलब खूब खाए-िपए, मोटे -ताजे, तंदःत। दसरा मतलब ु ू परे शान, सताए ग ए, थके हए। कहते ह िक यार यह काम करते-करते म छक ग या। तो ु वकील साहब दसरी तरह के छके हए ू ु आदमी ह । उद ू के इ तहानात यानी 'अदीब` वग रैा पास करके बी.ए. िकया था। िफ र अलीग ढ़ से एल.एल.बी। उसके बाद की पढ़ाई यानी जो असली पढ़ाई थी, यानी मिजःशे ट@ और जज@ को कैसे काबू िकया जाए। ये न पढ़ सके थे। इसीिलए जीवन के इ तहान म1 फे ल हो ग ए थे। म उनके घर पहंु चा तो खुश हो ग ए। मुझम1 उॆ म1 आठ-दल साल बड़े ह इसका हम दोन@ को एहसास है। और इसका ;याल करते ह । िफ र वकील साब को अनुभव भी मुझसे xयादा है। अपनी िजंदग ी म1 अब तक ये काम कर चुके ह : खेती करवा चुके ह , भƒटे

लग वा चुके ह , अनाज की मंड ी लग वा चुके ह , मोजे बुनवाने का काम िकया है, पावरलूम लग वा चुके ह , डे री खोल चुके ह और आपकी दआ से इन सब काम@ म1 इह1 घाटा हो ु चुका है। सब काम बंद हो चुके ह । कुछ कज अब तक चुका रहे ह । कुछ का चुक चुका है। अब आपको िजासा होग ी िक ऐसे हालात म1 वकील साहब की ग ाड़ी कैसी चल रही है। वकील साहब के िपताौी ने उनको िकराए की तीन दकान1 और एक मकान एक तरह छोड़े ु ह िक वकील साहब को ये लग ता ही नहीं िक वािलद मरहम ू हकीकत म1 मरहम ू हो चुके ह । इसके अलावा वकील साहब कचहरी रोज जाते ह तो दस-बीस पया बन ही जाता है। कभी-कभी ऐसा होता है िक खाली हाथ आए। अरे दो दर;वाःत1 ही िलख दीं तो दस पये हो ग ए। 'आओ. . .कब आए?' 'परस@। जी वो. . .' 'खै र छोड़ो. . .सुनाओ िद%ली के Fया हाल ह ।' िफ र वही िद%ली। अरे आप लोग िद%ली को छोड़ Fय@ नहीं दे ते। ये Fय@ नहीं कहते िक िद%ली जाए चू%हे भाड़ म1, यहां के हाल सुनो! 'कोई खास बात नहीं।' 'िबजली तो आती होग ी?' 'हां, िबजली हो आती है।' 'यहां तो साली िदन-िदन-भर नहीं आती। सुनते ह इधर की िबजली काटकर िद%ली सmलाई कर दे ते ह ।' 'हां ज4र होता होग ा।' 'होग ा नहीं, है। इधर के पढ़े -िलखे लोग नौकरी करने िद%ली चले जाते ह । इधर के मजदरू मजदरी ू करने िद%ली चले जाते ह । इधर का माल िबकने िद%ली जाता है।' 'िद%ली से अधर कुछ नहीं आता?' मने हं सकर पूछा। 'हां आता है. . .आदे श. . .हFम ु . . .और तुम कह रहे हो िद%ली म1 कोई खास बात नहीं है। अरे म तु ह1 ग ारं टी दे ता हंू िक िद%ली म1 वj हर कहीं कोई-न-कोई खास बात होती रहती है।' 'और आप आजकल Fया कर रहे ह ?' 'िमयां, सोचते है। एक इं ि™लश मीिडयम पिcलक ःकूल खोल द1 । बताओ कैसा आइिडया है?

िद%ली म1 तो बड़े -बड़े इं ि™लश मीिडयम ःकूल ह ।' 'लेिकन. . .' उह@ने मेरी बात काटी, 'लेिकन Fया,' वे शेर की तरह बमके। म समझ ग या िक वे मनही-मन इं ि™लश मीिडयम ःकूल खोलने की बात ठान चुके ह । 'Fया कुछ इःकोप है?' 'इःकोप-ही-ःकोप है। आज शहर म1 आठ इं ि™लश मीिडयम पिcलक ःकूल ह । सब खचाखच भरे रहते ह । सौ पया महीने से कम कहीं फ ीस नहीं लग ती। सौ बUचे भी आ ग ए तो फ ीस-ही-फ ीस के दस हज़ार महीना हो ग ए। टीचर1 रख लो आठ-दस। उनको थोड़ा बहत ु िदया जाता है।. . .मकान-वकान का िकराया िनकालकर सात-आठ हज़ार पया महीना भी मुनाफ ा रख लो तो इतनी आमदनी और िकस धंधे से होग ी? और िफ र दो टीचर तो हम घर ही के लोग ह ।' 'घर के, कौन-कौन?' 'अरे म और सईद।' उनको चूिं क अपना बड़ा मानता हंू और चूिं क वे मेरा हमेशा खयाल करते ह , इसिलए िदल खोलकर हं सने की ;वािहश िदल ही म1 रह ग ई। वकील साहब को अग र छोड़ भी द1 तो उनके सुपुऽ सईद िमयां बUच@ को अंमेजी पढ़ाते हए ु मुझे क%पना म1 ऐसे लग े जैसे भस उड़ रही हो। पेड़ की जड़1 उपर ह@ और डािलयां जमीन के अंदर। मतलब ऐसा लग ता है, जैसे उसे दिनया का आठवां अजूबा मान िलया जाएग ा। ु उzर ूदे श, िबहार ही नहीं, पूरे-के-पूरे बे%ट म1 अंमेजी की जो हालत है, िकसी से िछपी नहीं है। यह अUछा है या बुरा, यह अपने-आप म1 िडबेटेबुल mवाइं ट हो सकता है। लेिकन 'एम` को 'यम`, 'एन` को 'यन` और 'वी` को 'भी` बोलने वाल@ और अंमेजी का िरँता असफ ल ूेमी और अित सुंदर ूेिमका का िरँता है। पर Fया कर1 िक यह ूेिमका िदन-ूितिदन सुंदर से अित सुंदर होती जा रही है और ूेमी असफ लता की सीिढ़य@ पर लुढ़क रहा है। ूेमी जब ूेिमका को पा नहीं पाता तो कभी-कभी उससे घृणा करने लग ता हे । इस केस म1 आमतौर पर यही होता है। अग र आप अUछी-खासी िहं दी जानते और बोलते ह@, लेिकन िकसी ूदे श के छोटे शहर या कःबे म1 अंमेजी बोलने लग 1 तो सुनने वाले की इUछा पहले आपसे ूभािवत होकर िफ र आपको पीट दे ने की होग ी। यह तो हई ु सबकी हालत। इसकी तुलना म1 सईद िमयां की हालत सोने पर सुहाग े जैसी

है। जब पढ़ाते थे तब अंमेजी का नाम सुनते ही िकसी नए नाथे ग ए बछड़े की तरह िबदकते थे और 'मामर` का नाम सुनते ही उनकी िसƒटी-िपƒटी ग ुम नहीं नहीं हो जाया करती थी, खून खुँक हो जाया करता था। कुछ शcद तो उन पर ग ोली से xयादा असर करते थे, जैसे 'पंFचुएशन`, 'डायरे Fट इनडायरे Fट ट1 स`, 'िफ ल इन द cलFस`। अंमेजी के अlयापक को वे कसाई और आपको बकरा समझते थे। सईद िमयां को इं टर म1 अंमेजी के पच} म1 तीन सवाल नकल करते ही लग ा था, जैसे एवरे ःट फ तह कर ली हो। उसके बाद कहां अंमेजी और कहां सईद िमयां वे हथेली पर सरस@ जमाना न जानते थे। होग ी दिनया म1 धूम-अपने ठ1 ग े पर। ु वकील साहब ने िफ र mवाइं ट Fलीयर िकया, 'भई हम1 इन इं ि™लस ःकूल वाल@ का िसःटम अUछा लग ा। रटा दो लyड@ को। दे दो साल@ को होम वक। मां-बाप कराएं, नहीं तो टीचर रख1। हमारे ठ1 ग े से। होम वक पूरा न करता हो तो मां-बाप को खींच बुलवाओ और समझाओ िक िमयां बUचे को अंमेजी िमडीयम म1 पढ़वा रहे हो, हं सी-मजाक नहीं है। िफ र कसकर फ ीस लो। आज इस नाम से, तो कल उस नाम से। िबि%डं ग फं ड, फ नuचर फं ड, पुअर फं ड, टीचर फं ड और ःकूल फं ड. . .' वे हं सने लग े। 'हां, ये बात तो है।' 'अरे भइ भूल ही ग या. . .चाय. . .लेिकन चाय तो तुम पीते ही रहते ह@ग े. . .बेल का शरबत िपयोग ?े ' जी म1 आया िक कहं , हजू ु र, अब तो िबयर िपलाइए। कहां इं ि™लश मीिडयम, कहां बेल का शरबत। बेल का शरबत आने से पहले आए सईद िमया। उह1 दे खते ही वकील साहब खुश हो ग ए, बोले, ' आओ आओ, बैठो। ःकूल के बारे म1 ही बात कर रहे ह ।' मने सईद िमयां के चेहरे पर वह सब कुछ दे ख िलया जो उनके बारे म1 िलखा जा चुका है। 'जी!' उह@ने छोटा-सा जवाब िदया और बैठ ग ए। वकील साहब इस बात पर यकीन करने वाले आदमी ह िक बUच@ को िखलाओ सोने का िनवाला, पर दे खो शेर की िनग ाह से। तो उह@ने सईद िमयां को हमेशा शेर की िनग ाह से दे खा है और सईद िमयां ने 'अकबर` इलाहाबादी के अनुसार 'अब कािबले जcती िकताब1` पढ़ ली ह और 'बाप को खcती` समझते ह ।

लेिकन सईद िमया खcती बाप से बेतहाशा डरते ह । वकील साब इसे कहते ह , लड़का सआदतमंद है। लेिकन इधर कुछ साल से इस सआदतमंदी म1 कुछ कमी आ रही है। दरअसल चFकर यह है िक वकील साहब ने बेट@ को चकरिघनी की तरह नचाया है। एक तो बेटे का पूरा कैिरयर ही 'शानदार` था, दसरे वकील साहब की रोज-रोज बनती-िबग ड़ती ू योजनाओं ने सईद िमयां को बुरी तरह कझयूज़ कर रखा है। वकील साहब ने कभी उह1 क mयूटर साइं िटःट, कभी चाट ड एकाउं ट1 ट, कभी एFसपोट र वग रैा बनाने की ऐसी कोिशश की िक सईद िमयां कुछ न बन सके। 'अब तुम कोई अUछा-सा नाम बताओ ःकूल के िलए। यहां तो यही िसटी मांटेसरी, इं ि™लस िमिडयम पिcलक नाम चलते ह । लेिकन नाम अंमेजी म1 होना चािहए. . .वो मुझे पसंद नहीं िक ःकूल तो इं ि™लश िमिडयम है लेिकन नाम पFका िहं दी का है।' वे मेरी तरफ दे खने लग े, 'अरे िद%ली म1 तो बहत ु इं ि™लस मीिडयम ःकूल ह@ग े. . .उनम1 से दो-चार के नाम बताओ।' िफ र आ ग ई िद%ली। मने मन म1 िद%ली को मोटी-सी ग ाली दी और िद%ली के पिcलक ःकूल@ के नाम सोचने लग ा। 'ज़रा माडन फैशन के नाम होना चािहए,' वे बोले। मने सोचकर कहा, 'टाइनी टॉट।' 'टाइनी टॉट? ये Fया नाम हआ ु ? नहीं नहीं, ये तो िबलकुल नहीं चलेग ा. . .अरे िमयां, कोई समझेग ा ही नहीं। अब तो कमस खुदा की, म भी नहीं समझा टाइनी Fया बला है। Fय@ सईद िमयां, Fया ;य़ाल है?' सईद िमयां ग द न इनकार म1 िहलाने लग े और और बोले, 'चचा, यहां तो िसटी मांटेसरी और इं ि™लस िमिडयम पिcलक ःकूल ही समझते ह और वो. . .' उनकी बात काटकर वकील साहब बोले, 'वो भी िहं दी म1 िलखा होना चािहए।' 'टोडलस डे न,' िफ र मने मजाक म1 कहा, 'रख लीिजए।' इस पर तो वकील साहब लोटने लग े। हं सते-हं सते उनके पेट म1 बल पड़ ग ए। बोले, 'वा भई वाह. . .Fया नाम है. . .जैसे मुग u का दड़बा।' अब सईद िमयां की तरफ मुड़े, 'तुम अंमेजी की ूैिFटस कर रहे हो?' 'जी हां।' 'Fया कर रहे हो?'

'ूेज1ट, पाःट और 'झयूचर ट1 स याद कर रहा हंू ।' 'िपछले हझते भी तुमने यही कहा था। अUछी तरह समझ लो िक म ःकूल म1 एक लझज़ भी िहं दी या उद ू का नहीं बदाँत क4ंग ा।' 'जी हां,' सईद िमयां बोले। 'बUच@ से तो अंमेजी म1 बता कर सकते हो?' 'Fय@ नहीं कर सकता. . .जैसे ये िसटी व इं ि™लस िमिडयम पिcलक ःकूल, जो शहर का टॉप इं ि™लस ःकूल है, की टीचर1 बUच@ से अंमेजी म1 बात करती ह , वैसे तो कर सकता हंू ।' 'ये कैसे?' मने पूछा। 'अरे चचा, कापी म1 िलख लेती ह । पहले सवाल िलखती ह जो बUच@ को रटा दे ती ह । जैसे बUच@ से कहती ह अग र तुमको बाथ4म जाना है तो कहा, 'मैम म1 आई ग ो टु बाथ4म।` जब बUचे उनसे पूछते ह तो वे कापी म1 दे खकर जवाब दे दे ती ह ।' 'लेिकन इस सवाल का जवाब दे ने के िलए तो कापी म1 दे खने की ज4रत नहीं है।' 'चचा, यह तो ए™जांपल दी है। करती ऐसा ही ह ।' 'अUछा जनाब, एडमीशन के िलए जो लोग आएंग े, उनसे भी आपको अंमेजी ही म1 बातचीत करनी पड़े ग ी।' मुझे लग ा वकील साहब और सईद िमयां के बीच रःसाकशी हो रही है। इस सवाल पर सईद िमयां थोड़ा कसमसाए, िफ र बोले, 'हां अग र वो लोग अंमेजी म1 बोले तो म भी अंमेजी म1 बोलूंग ा।' वकील साहब जवाब सुनकर सकते म1 आ ग ए। सब जानते ह िक इस शहर म1 जो लोग अपने बUच@ को इं ि™लश िमिडयम ःकूल म1 दािखल कराने आएंग े, वे अंमेजी नहीं बोल सकते। 'यही तो तु हारी ग लती है. . .तुम अपना सब काम दसर@ के िहसाब से करते हो. . .अरे ू तु ह1 Fया. . .वे चाहे बोले, चाहे न बोलो. . .तुम अपना अंमेजी पेलते रहो. . .साले समझ1 तो कहां आ ग ए ह ।' 'यानी चाहे समझ म1 आए न आए?' 'िबलकुल।' 'तो ठीक है, यही सही,' सईद िमयां का चेहरा िखंच ग या। कुछ दे र बाद वकील नरम होकर बोले, 'अब ऐसा भी कर दे ना िक साले भाग ही जाएं।' 'नहीं-नहीं, भाग Fय@ जाएंग े।' वकील साहब ने बताया िक उनके जमाने म1 िहं दी-इं ि™लश शांसलेशन म1 इस तरह के

जुमले िदए जाते थे, जैसे आज बाजार म1 जूता चल ग या, या वह चmपल लेकर नौ-दो ™यारह हो ग या। िफ र वकील साहब ने कहा, 'म यह भी सोचता हंू िक सईद िमयां को टीिचंग म1 न डालूं. . .इह1 वाइस िूंिसपल बना दं ।ू' 'Fय@?' मने पूछा। 'अरे भाई ःकूल म1 पांच-छ: लड़िकयां पढ़ाएंग ी. . .ये उनके बीच कहां घुस1ग े।' म पूरी बात समझ ग या। सईद िमयां भी समझ ग ए और झ1प ग ए। शबत आने के बाद वकील साहब बातचीत को ःकूल के नाम की तरफ घसीट लाए। वे चाहते थे, ये मसला मेरे सामने ही तय हो जाए। स1ट पॉल, स1ट जांस, स1ट कोलंबस जैसे नाम उह1 पसंद तो आए, पर डर यही था िक यहां उन नाम@ को कोई समझेग ा नहीं। ःथानीय लोग @ के अान पर रोते हए ु वकील साहब बोले, 'अमां िमया धुर ग ंवार. . .साले ग ौखे . . .ये लोग Fया जान1 स1ट Fया होता है. . .घुर ग ंवार. . .मैली-िचFकट धोती और ग ंदा सलूका, पांव म1 चमरौधा जूता- मुंह उठाये चलते जाते ह । िहं दी तक बोलनी नहीं आती, लेिकन कहते ह , 'बबुआ का इं ग रे जी इःकूल म1 पढ़ावा चहत हन। ट1 ट म1 दो-तीन हज़ार के नोट दाबे रहता है. . .अब तुम ही बताओ, मुनाफे का धंधा हआ िक न हआ ु ु ?' 'िबलकुल हआ। ' ु रात उपर आसमान म1 तारे -ही-तारे थे। चांदनी फैली हई ु थी। रात की रानी की महक बेरोक-टोक थी। अUछी-खासी तेज़ हवा न चल रही होती तो मUछर इस सुहावनी रात म1 िफ %मी खलनायक@ जैसा आचरण करने लग ते। बराबर म1 सबकी चारपाइयां िबछी थीं। सब सो रहे थे। रात का आिखरी पहर था। म वकील साहब से िजरह कर रहा था, 'आप ये Fय@ नहीं समझते िक पूरी दिनया म1 बUच@ को उनकी मातृभाषा म1 पढ़ाया जाता है।' ु 'मुझे Fया मतलब लोग @ से, Fया मतलब मातृभाषा से. . .ये तो धंधा है. . .धंधा। हर आदमी अपने बUच@ को अंमेजी ःकूल म1 पढ़वाना चाहता है।' 'लेिकन Fय@?' 'अंमेजी तो पानी है. . .जैसे िबन पानी सब सून है. . .वै से ही िबन अंमेजी सब कुछ सूना है।' 'लेिकन ऐसा है Fय@?' 'अंमेज़ी हम लोग @ के हFमरान@ की जबान है।' ु 'Fया अब भी कोई हमारे उपर शासन करता है?'

वकील साहब जोर से हं से, 'तुम यही नहीं जानते?' मने िदल म1 कहा, 'जानता हंू पर मानता नहीं।` वे धीरे -धीरे पूरे आNमिव[ास के साथ इस तरह बोलने लग े जैसे उनका एक-एक वाFय पNथर पर िखंची लकीर जैसा सच हो- 'अंमेजी से आदमी की इxजत होती है. . .'तबा. . .पोजीशन. . .पावर. . .जो इxजत तु ह1 अंमेजी बोलकर िमलेग ी वह िहं दी या उद ू या दीग र िहं दःतानी जुबान1 बोलकर िमलेग ी?' उह@ने सवाल िकया। ु 'हां िमलेग ी. . .आज न सही तो कल िमलेग ी।' हवा के झ@क@ ने मUछर@ को िफ र िततर-िबतर कर िदया। रात की रानी की महक दरू तक फैल ग यी। पूरब म1 मील@ दरू 'सूय के दे श म1` सुबह हो चुकी होग ी। *******-*******

8 हिरराम और ग ु-संवाद (1) ग ु : तु हारा जीवन बबाद हो ग या हिरराम! हिरराम : कैसे ग ुदे व? ग ु : तुम जीभी चलाना न सीख सके! हिरराम : पर मुझे तलवार चलाना आता है ग ुदे व! ग ु : तलवार से ग रदन कटती है, पर जीभ से पूरा मनुंय कट जाता है। (2) ग ु : हिरराम, भीड़ म1 घुसकर तमाशा दे खा करो। हिरराम : Fय@ ग ुदे व? ग ु : इसिलए की भीड़ म1 घुसकर तमाशा न दे ख सके तो खुद तमाशा बन जाओग े!

(3) हिरराम : बांित Fया है ग ुदे व? ग ु : बांित एक िचिड़या है हिरराम! हिरराम : वह कहां रहती है ग ुदे व! ग ु : चतुर लोग @ की ज़ुबान पर और सरल लोग @ के िदल@ म1। हिरराम : चतुर लोग उसका Fया करते ह ? ग ु : चतुर लोग उसकी ूशंसा करते ह , उसके ग ीत ग ाते ह और समय आने पर उसे चबा जाते ह । हिरराम : और सरल लोग उसका Fया करते ह ?

ग ु : वह उनके हाथ कभी नहीं आती। (4) हिरराम : ग ुदे व, अग र एक हडी के िलए दो भूखे कुzे लड़ रहे ह@ तो उह1 दे खकर एक सरल आदमी Fया करे ग ा? ग ु : बीच-बचाव कराएग ा। हिरराम : और चतुर आदमी Fया करे ग ा? ग ु : हडी लेकर भाग जाएग ा। हिरराम : और राजनीित Fया करे ग ा? ग ु : दो भूखे कुzे वहां और छोड़ दे ग ा। (5) हिरराम : आदमी Fया है ग ुदे व? ग ु : यह एक ूकार का जानवर है हिरराम! हिरराम : यह जानवर Fया करता है ग ुदे व? ग ु : यह िवचार@ का िनमाण करता है। हिरराम : िफ र Fया करता है? ग ु : िफ र िवचार@ के महल बनाता है। हिरराम : िफ र Fया करता है? ग ु : िफ र उनम1 िवचरता है। हिरराम : िफ र Fया करता है? ग ु : िफ र िवचार@ को खा जाता है। हिरराम : िफ र Fया करता है? ग ु : िफ र नए िवचार@ का िनमाण करता है। (6) हिरराम : संसार Fया है ग ुदे व? ग ु : एक चाराग ाह है हिरराम! हिरराम : उसम1 कौन चरता है? ग ु : वही चरता है िजसके आंख1 होती ह । हिरराम : आंख1 िकसके होती ह ग ुदे व? ग ु : िजसके जीभ होती है। हिरराम : जीभ िकसके होती है ग ुदे व? ग ु : िजसके पास बुि+ होती है।

हिरराम : बुि+ िकसके पास होती है ग ुदे व? ग ु : िजसके पास दम ु होती है। हिरराम : दम ु िकसके पास होती है ग ुदे व? ग ु : िजसे दम ु की इUछा होती है।

(7) ग ु : हिरराम, बताओ सफ लता का Fया रहःय है? हिरराम : कड़ी मेहनत ग  ु दे व! ग ु : नहीं। हिरराम : बुि+मानी? ग ु : नहीं। हिरराम : ईमानदारी? ग ु : नहीं। हिरराम : ूेम? ग ु : नहीं। हिरराम : िफ र सफ लता का Fया रहःय है ग ुदे व? ग ु : असफ लता। (8) हिरराम : ग ुदे व, अग र एक सुंदर Žी के पीछे दो ूेमी लड़ रहे ह@ तो Žी को Fया करना चािहए। ग ु : तीसरे ूेमी की तलाश। हिरराम : Fय@ ग ुदे व? ग ु : इसिलए िक Žी के पीछे लड़ने वाले ूेमी नहीं हो सकते। (9) हिरराम : सबसे बड़ा दशन Fया है ग ुदे व? ु ग ु : हिरराम, सबसे बड़ा दशन चाटकािरता है। हिरराम : कैसे ग ुदे व? ु ग ु : इस तरह िक चाटकार बड़े -से-बड़े दशन को चाट जाता है। (10) हिरराम : ईमानदारी Fया है ग ुदे व?

ग ु : यह एक भयानक जानलेवा बीमारी का नाम है। हिरराम : Fया ये बीमारी हमारे दे श म1 भी होती है? ग ु : हिरराम, बहत ु पहले mलेग , टी.बी. और हैजे की तरह इसका भी कोई इलाज न था। तब ये हमारे दे श म1 फैलती थी और लाख@ लोग @ को चट कर जाती थी। हिरराम : और अब ग ुदे व? ग ु : अब उस दवा का पता चल ग या है, िजसके कारण यह बीमारी रोकी जा सकती है। हिरराम : उस दवा का Fया नाम है ग ुदे व? ग ु : आज बUचे-बUचे की जुबान पर उस दवा का नाम हैलालच। ***-***

9 िःविमंग पूल मुझे लग रहा था िक िजसका मुझे डर था, वही होने जा रहा है। और अफ सोस यह िक म कोिशश भी क4ं तो उसे रोक नहीं सकता। मने कई ूय† िकए िक प†ी मेरी तरफ दे ख ल1 तािक इशारे -ही-इशारे म1 उह1 खामोश रहने का इशारा कर दं ,ू लेिकन वे लग ातार वी.आई.पी. से बात1 िकए जा रही थीं! मेरे सामने कुछ दसरे अितिथ खड़े थे, िजह1 छोड़कर ू जब म एकदम से प†ी और वी.आई.पी. की तरफ नहीं जा सकता था। ूयास करता हआ ु तक म वहां पहंु चा तो प†ी वी.आई.पी. से 'उसी` के बारे म1 बात कर रही थीं। धाराूवाह जा रहा था। जब मुझसे खामोश न रहा ग या तो बोला, 'अरे बोल रही थीं। म शिम„दा हआ ु छोड़ो, ठीक हो जाएग ा।' प†ी ग ुःसे म1 बोली, 'आपको Fया है, सुबह घर से िनकल जाते ह तो रात ही म1 वापस आते ह । जो िदन-भर घर म1 रहता हो उससे पूिछए िक Fया ग ुज़रती है।' यह कहकर प†ी िफ र 'उसके` बारे म1 शु4 हो ग w। म िदल-ही-िदल म1 सोचने लग ा िक प†ी पाग ल नहीं हो, हद दज} की बेवकूफ ज4र है जो इतने बड़े , महNवपूण और ूभावशाली वी.आई.पी. से िशकायत भी कर रही है तो ये िक दे िखए हमारे घर के सामने नाला बहता है, उसम1 से बदबू आती है, उसम1 सुअर लौटते ह , उसम1 आसपास वाले भी िनग ाह बचाकर ग ंदग ी फ1 क जाते है।, नाले को कोई साफ नहीं करता। सकड़@ बार िशकायत1 दज कराई जा चुकी ह । एक बार तो िकसी ने मरा हआ इतना बड़ा चूहा फ1 क िदया था। वह पानी म1 ु फू लकर आदमी के बUचे जैसा लग ने लग ा था।

यह सच है िक हमने घर के सामने वाले नाले की िशकायत1 सैकड़@ बार दज कराई ह । लेिकन नाला साफ कभी नहीं हआ। उसम1 से बदबू आना कम नहीं हई। जब हम लोग ु ु िशकायत1 करते-करते थक ग ए तो ऐसे पिरिचत@ से िमले जो इस बारे म1 मदद कर सकते थे, यानी कुछ सरकारी कमचारी या नग रपािलका के सदःय या और दसरे िकःम के ू ूभावशाली लोग । लेिकन नाला साफ नहीं हआ। हमारे यहां जो िमऽ लग ातार आते ह , वे ु नाला-सफ ाई कराने संबंधी पूरी कायवाही से पिरिचत हो ग ए ह । सब जानते ह िक इस बारे म1 उपराxयपाल को दो रिजःटड पऽ जा चुके ह । इसके बारे म1 एक ःथानीय अखबार म1 फ ोटो सिहत िववरण छप चुका है। इसके बारे म1 महानग रपािलका के दझतर म1 जो पऽ भेजे ग ए ह उनकी फ़ाइल इतनी मोटी हो ग ई है िक आदमी के उठाए नहीं उठती, आिदआिद। वी.आई.पी. को घर बुलाने से पहले भी मुझे डर था िक प†ी कहीं उनसे नाले का रोना न लेकर बैठ जाएं। Fय@िक म उनकी मानिसक हालत समझता था, इसिलए मने उह1 समझाया था िक दे खो नाला-वाला छोटी चीज़1 ह , वह वी.आई.पी. के बाएं हाथ का भी नहीं, आंख के इशारे का काम है। ये काम तो उनके यहां आने की खबर फैलते ही, अपने-आप हो जाएग ा। लेिकन इस वj प†ी सब कुछ भूल चुकी थीं। मजबूरन मुझे भी वी.आई.पी. के सामने 'हां` 'हंू ` करनी पड़ रही थी। आिखरकार वी.आई.पी. ने कहा िक यह िचंता करने की कोई बात नहीं है। वी.आई.पी. के आ[ासन के बाद ही प†ी कई साल के बाद ठीक से सो पाw। उह1 दोःत@ और मोह%ले वाल@ ने बधाई दी िक आिखर काम हो ही ग या। वी.आई.पी. के आ[ासन से हम लोग इतने आ[ःत थे िक एक-दो महीने तो हमने नाले के बारे म1 सोचा ही नहीं, उधर दे खा ही नहीं। नाला हम सबको कसर के उस रोग ी जैसा लग ता था जो आज न मरा तो कल मर जाएग ा।. . .कल न सही तो परस@. . .पर मरना िनि—त है। धीरे -धीरे नाला हमारी बातचीत से बाहर हो ग या। जब कुछ महीने ग ुज़र ग ए तो प†ी ने महानग र पािलका को फ ोन िकया। वहां से उzर िमला िक नाला साफ िकया जाएग ा। िफ र कुछ महीने ग ुज़रे , नाला वैसे का वैसा ही रहा। प†ी ने वी.आई.पी. के ऑिफ स फ ोन िकए। वे इतने pयःत थे, दौर@ पर थे, िवदे श@ म1 थे िक संपक हो ही नहीं सका। महीन@ बाद जब वी.आई.पी. से संपक हआ तो उह1 बहु त आNमिव[ास से कहा िक काम ु

हो जाएग ा। िचंता मत कीिजए। लेिकन यह उzर िमले छ: महीने बीत ग ए तो प†ी के धै य ू का बांध टटने लग ा। वे मंऽालय से लेकर दीग र दझतर@ के चFकर काटने लग ीं। इस मेज से उस मेज तक। उस कमरे से इस कमरे तक। िसफ 'हां` 'हां` 'हां` 'हां` जैसे आ[ासन िमलते रहे , लेिकन हआ कुछ नहीं। ु एक िदन जब म ऑिफ स से लौटकर आया तो प†ी ने बताया िक उह@ने नाले म1 बहत ु -से फ ल बहते दे खे ह । मने कहा, 'िकसी ने फ1 के ह@ग े।' इस घटना के दो-चार िदन बाद प†ी ने बताया िक उह@ने नाले म1 िकताब1 बहती दे खी ह । यह सुनकर म डर ग या। लग ा शायद प†ी का िदमाग िहल ग या है, लेिकन प†ी नामल थीं। िफ र तो प†ी ही नहीं, मोह%ले के और लोग भी नाले म1 तरह-तरह की चीज1 बहती दे खने ू हई लग े। िकसी िदन जड़ से उखड़े पेड़, िकस िदन िचिड़य@ के घ@सले, िकसी िदन टटी ु शहनाई। एक िदन दे र से रात ग ए घर आया तो प†ी बहत ु घबराई हई ु लग रही थीं। बोली, 'आज मने वी.आई.पी. को नाल1 म1 तैरते दे खा था। वे बहत ु खुश लग रहे थे। नाले म1 डु बिकयां लग ा रहे थे। हं स रहे थे। िकलकािरयां मार रहे थे। उछल-कूद रहे थे, जैसा लोग िःविमंग पूल म1 करते ह !' **--**

10 ज़;< बदलते हए ु मौसम@ की तरह राजधानी म1 सा ूदाियक दं ग @ का भी मौसम आता है। फ क इतना है िक दसरे मौसम@ के आने-जाने के बारे म1 जैसे ःपq अनुमान लग ाये जा सकते ू ह वैसे अनुमान सा ूदाियक दं ग @ के मामले म1 नहीं लग ते। िफ र भी पूरा शहर यह मानने लग ा है िक सा ूदाियक दं ग ा भी मौसम@ की तरह िनि—त 4प से आता है। बात इतनी सहज-साधारण बना दी ग यी हैिक सा ूदाियक दं ग @ की खबर1 लोग इसी तरह सुनते ह जैसे 'ग मu बहत ु बढ़ ग यी है` या 'अबकी पानी बहत ु बरसा` जैसी खबर1 सुनी जाती ह । दं ग @ की खबर सुनकर बस इतना ही होता है िक शहर का एक िहःसा 'कझयूम  ःत` हो जाता है। लोग राःते बदल लेते ह । इस थोड़ी-सी असुिवधा पर मन-ही-मन कभी-कभी खीज जाते ह , उसी तरह जैसे बेतरह ग मu पर या लग ातार पानी बरसने पर कोझत होती है। शहर के सारे काम यानी उ\ोग , pयापार, िशgण, सरकारी काम-काज सब सामाय ढं ग से चलता रहता है। मंिऽमंड ल की बैठक1 होती ह । संसद के अिधवेशन होते ह । िवरोधी दल@ के धरने होते

ह । ूधानमंऽी िवदे श याऽाओं पर आते ह , मंऽी उŸाटन करते ह , ूेमी ूेम करते ह , चोर चोरी करते ह । अखबार वाले भी दं ग े की खबर@ म1 कोई नया या चटपटापन नहीं पाते और ूाय: हािशए पर ही छाप दे ते ह । हां, मरने वाल@ की सं;या अग र बढ़ जाती है तो मोटे टाइप म1 खबर छपती है, नहीं तो सामाय। यह भी एक ःवःथ परं परा-सी बन ग यी है िक सा ूदाियक दं ग ा हो जाने पर शहर म1 'सा ूदाियकता िवरोधी स मेलन` होता है। स मेलन के आयोजक@ तथा समथक@ के बीच अFसर इस बात पर बहस हो जाती है िक दं ग ा होने के तुरंत बात न करके स मेलन इतनी दे र म1 Fय@ िकया ग या। इस इलज़ाम का जवाब आयोजक@ के पास होता है। वे कहते ह िक ूजातांिऽक तरीके से काम करने म1 समय लग ता है Fय@िक िकसी वामपंथी पाट“ का ूातीय कमेटी स मेलन करने का सुझाव रा ीय कमेटी को दे ती है। रा ीय कमेटी एक तदथ सिमित बना दे ती है तािक स मेलन की 4परे खा तैयार की जा सके। तदथ सिमित अपने सुझाव दे ने म1 कुछ समय लग ाती है। उसके बाद उसकी िसफ ािरश1 रा ीय कमेटी म1 जाती ह । रा ीय कमेटी म1 उन पर चचा होती है और एक नया कमेटी बनायी जाती है िजसका काम स मेलन के ःव4प के अनुसार काय करना होता है। अग र राय यह बनती है िक सा ूदाियकता जैसे ग ंभीर मसले पर होने वाले स मेलन म1 सभी दल@ से बातचीत होती वामपंथी लोकतांिऽक शिjय@ को एक मंच पर लाया जाये, तो दसरे ू है। दसरे दल भी जनतांिऽक तरीके से अपने शािमल होने के बारे म1 िनणय लेते ह । उसके ू बाद यह कोिशश की जाती है िक 'सा ूदाियकता िवरोधी स मेलन` म1 सा ूदाियक स¡ाव बनाने के िलए नामी िहं दी, मुसलमान, िसख नाग िरक@ का होना भी ज4री है। उनके नाम सभी दल जनतांिऽक तरीके से तय करते ह । अUछी बात है िक शहर म1 ऐसे नामी िहं दी, मुिःलम, िसख नाग िरक ह जो इस काम के िलए तैयार हो जाते ह । उन नाग िरक@ की एक सूची है, उदाहरण के िलए भारतीय वायुसेना से अवकाशूा एक लेझटीन1ट जनरल ह , जो िसख ह , राजधानी के एक अ%पसं;यकनुमा िव[िव\ालय के उप-कुलपित मुसलमान ह तथा िवदे श सेवा से अवकाश-ूा एक राजदत ू िहं द ू ह , इसी तरह के कुछ और नाम भी ह । ये सब भले लोग ह , समाज और ूेस म1 उनका बड़ा स मान है। पढ़े -िलखे और बड़े -बड़े पद@ पर आसीन या अवकाशूा। उनके सेकुलर होने म1 िकसी को कोई शक नहीं हो सकता। और वे हमेशा इस तरह के सा ूदाियकता िवरोधी स मेलन@ म1 आने पर तैयार हो जाते ह ।

एक िदन सो कर उठा और हःबे-दःतूर आंख1 मलता हआ अखबार उठाने बालकनी पर ु आया तो हैिडं ग थी 'पुरानी िद%ली म1 दं ग ा हो ग या। तीन मारे ग ये। बीस घायल। दस की

हालत ग ंभीर। पचास लाख की स पिz नq हो ग यी।` पूरी खबर पढ़ी तो पता चला िक दं ग ा कःमाबपुरे म1 भी हआ ु है। कःमाबपुरे का ;याल आते ही मु;तार का ;याल आ ग या। वह वहीं रहता था। अपने ही शहर का था। िसलाई का काम करता था कनाट mलेस की एक दकान म1। अब सवाल ये था िक मु;तार से कैसे 'काटैFट` हो। कोई राःता नहीं ु था, न फ ोन, न कझयूप  ास और न कुछ और।

मु;तार और म, जैसा िक म िलख चुका हंू , एक ही शहर के ह । मु;तार दजा आठ तक इःलािमया ःकूल म1 पढ़ा था और िफ र अपने पुँतैनी िसलाई के धंधे म1 लग ग या था। म उससे बहत ु बाद म1 िमला था। उस वj जब म िहं दी म1 एम.ए. करने के बाद बेकारी और नौकरी की तलाश से तंग आकर अपने शहर म1 रहने लग ा था। वहां मेरे एक िरँतेदार, िजह1 हम सब हैदर हिथयार कहा करते थे, आवारग ी करते थे। आवारग ी का मतलब कोई ग लत न लीिजएग ा, मतलब ये िक बेकार थे। इं टर म1 कई बार फे ल हो चुके थे और उनका शहर म1 जनस पक अUछा था। तो उह@ने मेरी मुलाकात मु;तार से कराई थी। पहली, दसरी और तीसरी मुलाकात म1 वह कुछ नहीं बोला था। शहर का मु;य सड़क पर िसलाई ू की एक दकान म1 वह काम करता था और शाम को हम लोग उसकी दकान पर बैठा ु ु करते थे। दकान का मािलक बफ ाती भाई मालदार और बाल-बUचेदार आदमी था। वह ु शाम के सात बजते ही दकान की चाबी मु;तार को सyपकर और भसे का ग ोँत लेकर घर ु चला जाता था। उसके बाद वह दकान मु;तार की होती थी। एक िदन अचानक हैदर ु हिथयार ने यह राज खोला िक मु;तार भी 'िबरादर` है। 'िबरादर` का मतलब भाई होता है, लेिकन हमारी जुबान म1 'िबरादर` का मतलब था जो आदमी शराब पीता हो। शु4-शु4 म1 मु;तार का मुझसे जो डर था वह दो-चार बार साथ पीने से खNम हो ग या था। और मुझे ये जानकर बड़ी हैरत हई ु थी िक वह अपने समाज और उसकी समःयाओं म1 िच रखता है। वह उद ू का अखबार बराबर पढ़ता था। खबर1 ही नहीं, खबर@ का िव¢ेषण भी करता था और उसका मु;य िवषय िहद ू मुिःलम सा ूदाियकता थी। जब म उससे िमला तब, अग र बहत ु सीधी जुबान से कह1 तो वह पFका मुिःलम सा ूदाियक था। शराब पीकर जब वह खुलता था तो शेर की तरह दहाड़ने लग ता था। उसका चेहरा लाल हो जाता था। वह हाथ िहला-िहलाकर इतनी कड़वी बात1 करता था िक मेरा जैसा धै यवान न होता तो कब की लड़ाई हो ग यी होती। लेिकन म अलीग ढ़ मुिःलम िव[िव\ालय म1 रहने और ू ƒस फे डरे शन` की राजनीित करने के कारण थोड़ा पक चुका था। मुझे मालूम और वहां 'ःटड1 था िक भावुकता और आबोश का जवाब केवल ूेम और तक से िदया जा सकता है। वह मुह मद अली िजना का भj था। ौ+ावश उनका नाम नहीं लेता था। बि%क उह1

'कायदे आजम` कहता था। उसे मुिःलम लीग से बेपनाह हमदद“ थी और वह पािकःतान के बनने और िL-रा  िस+ांत को िबलकुल सही मानता था। पािकःतान के इःलामी मु%क होने पर वह ग व करता था और पािकःतान को ौे£ मानता था। मुझे याद है िक एक िदन उसकी दकान म1 म, हैदर हिथयार और उमाशंकर बैठे थे। शाम ु हो चुकी थी। दकान के मािलक बफ ाती भाई जा चुके थे। कड़कड़ाते जाड़@ के िदन थे। ु िबजली चली ग यी थी। दकान म1 एक लप जल रहा था, उसकी रोशनी म1 मु;तार मशीन ु की तेजी से एक पट सी रहा था। अज}ट काम था। लै प की रोशनी की वजह से सामने वाली दीवार पर उसके िसर की परछाw एक बड़े आकार म1 िहल रही थी। मशीन चलने की आवाज से पूरी दकान थरा रही थी। हम तीन@ मु;तार के काम खNम होने का इं तजार कर ु रहे थे। ूोमाम यह था िक उसके बाद 'चुःकी` लग ाई जायेग ी। आधे घंटे बाद काम खNम हो ग या और चार 'चार की mयािलयां` लेकर हम बैठ ग ये। बातचीत घूम-िफ र कर पािकःतान पर आ ग ई। हःबे दःतूर मु;तार पािकःतान की तारीफ करने लग ा। 'कायदे आजम` की बुि+मानी के ग ीत ग ाने लग ा। उमाशंकर से उसका कोई पदा न था, Fय@िक दोन@ एक-दसरे को अUछी तरह जानते थे। कुछ दे र बाद मौका दे खकर मने कहा, 'ये ू बताओ मु;तार, िजना ने पािकःतान Fय@ बनवाया?' 'इसिलए िक मुसलमान वहां रह1 ग े,' वह बोला। 'मुसलमान तो यहां भी रहते ह ।' 'लेिकन वो इःलामी मु%क है।' 'तुम पािकःतान तो ग ये हो?' 'हां, ग या हंू ।' 'वहां और यहां Fया फ क है?' 'बहत ु बड़ा फ क है।' 'Fया फ क है?' 'वो इःलामी मु%क है।' 'ठीक है, लेिकन ये बताओ िक वहां ग रीब@-अमीर@ म1 वैसा ही फ क नहीं हैजैसा यहां है? Fया वहां िर[त नहीं चलती? Fया वहां भाई-भतीजावाद नहीं है? Fया वहां पंजाबी-िसंधी और मोहािजर 'लीिजंग ` नहीं है? Fया पुिलस लोग @ को फं साकर पैसा नहीं वसूलती?' मु;तार चुप हो ग या। उमांशकर बोले, 'हां, बताओ. . .अब चुप काहे हो ग ये?' मु;तार ने कहा, 'हां, ये सब तो वहां भी है लेिकन है तो इःलामी मु%क।'

'यार, वहां िडFटे टरिशप है, इःलाम तो बादशाहत तक के िखलाफ है, तो वो कैसा इःलामी मु%क हआ ु ?' 'अम1 छोड़ो. . .Fया औरत1 वहां पदा करती ह ? बक तो वहां भी cयाज लेते-दे ते ह@ग े. . .िफ र काहे की इःलामी मु%क।' उमाशंकर ने कहा। 'भइया, इःलाम 'मसावात` िसखाता है. . .मतलब बराबरी, तुमने पािकःतान म1 बराबरी दे खी?' मु;तार थोड़ी दे र के िलए चुप हो ग या। िफ र अचानक फ ट पड़ा, 'और वहां Fया है मुसलमान@ के िलए? इलाहाबाद, अलीग ढ़, मेरठ, मुरादाबाद, िद%ली, िभवšडी- िकतने नाम िग नाऊँ. . .मुसलमान@ की जान इस तरह ली जाती है जैसे कीड़े -मकोड़े ह@।' 'हां, तुम ठीक कहते हो।' 'म कहता हंू ये फ साद Fय@ होते ह ?' 'भाई मेरे, फ साद होते नहीं, कराये जाते ह ।' 'कराये जाते ह ?' 'हां भाई, अब तो बात जग जािहर है।' 'कौन कराते ह ?' 'िजह1 उससे फ ायदा होता है।' 'िकह1 उससे फ ायदा होता है?' 'वो लोग जो मजहब के नाम पर वोट मांग ते ह । वो लोग जो मजहब के नाम पर नेतािग री करते ह । 'कैसे?' 'दे खो, जरा िसफ तसpवुर करो िक िहं दःतान म1 िहं दओं ु ु , मुसलमान@ के बीच कोई झग ड़ा नहीं है। कोई बाबरी मिःजद नहीं है। कोई राम-जमभूिम नहीं है। सब mयार से रहते ह , तो भाई, ऐसा हालत म1 मुिःलम लीग या आर.एस.एस. के नेताओं के पास कौन जायेग ा? उनका तो वजूद ही खNम हो जायेग ा। इस तरह समझ लो िक िकसी शहर म1 कोई डॉFटर है जो िसफ कान का इलाज करता है और पूरे शहर म1 सब लोग @ के कान ठीक हो जाते ह । िकसी को कान की कोई तकलीफ नहीं है, तो डॉFटर को अपना पेशा छोड़ना पड़े ग ा या शहर छोड़ना पड़े ग ा।' वह चुप हो ग या। शायद वह अपना जवाब सोच रहा था। मने िफ र कहा, 'और

िफ रकापरःती से उन लोग @ को भी फ ायदा होता है जो इस दे श की सरकार चला रहे ह ।' 'कैसे?' 'अग र तु हारे दो पड़ोसी आपस म1 लड़ रहे ह , एक-दसरे के पFके दँमन ह , तो तु ह1 उन ू ु दोन@ से कोई खतरा नहीं हो सकता. . .उसी तरह िहं द ू और मुसलमान आपस म1 ही लड़ते रहे तो सरकार से Fया लड़1 ग े? Fया कह1 ग े िक हमारा ये हक है, हमारा वो हक है तो तीसरा फ ायदा उन लोग @ को पहंु चता है िजनका कारोबार उसकी वजह से तरFकी करता है। अलीग ढ़ म1 फ साद, िभवšडी म1 फ साद इसकी िमसाल1 ह ।' ये तो शुआत थी। धीरे -धीरे ऐसा होने लग ा िक हम लोग जब भी िमलते थे, बातचीत इहीं बात@ पर होती। चाय का होटल हो या शहर के बाहर सड़क के िकनारे कोई वीरानसी पुिलया- बहस शु4 हो जाया करती थी। बहस भी अजब चीज है। अग र सामने वाले को बीच बहस म1 लग ग या िक आप उसे जािहल समझते ह , उसका मजाक उड़ा रहे ह , उसे कम पढ़ा-िलखा मान रहे ह , तो बहस कका कभी कोई अंत नहीं होता। उस जमाने म1 मु;तार उद ू के अखबार@ और िरसाल@ का बड़ा भयंकर पाठक था। शहर म1 आने वाला शायद ही ऐसा कोई उद ू अखबार, िरसाला, डाइजेःट हो जो वह न पढ़ता हो। इतना xयादा पढ़ने की वजह से उसे घटनाय1, ितिथयां और बयान इस कदर याद हो जाते थे िक बहस म1 उह1 बड़े आNमिव[ास के साथ 'कोट` करता रहता था। एक िदन उसने मुझे उद ू के कुछ िरसाल@ और अखबार@ का एक पुिलंदा िदया और कहा िक इह1 पढ़कर आओ तो बहस हो। उद ू म1 सामायत: जो राजनीितक पच} छपते ह , उनके बारे म1 मुझे ह%का-सा इ%म था। लेिकन मु;तार के िदये िरसाले जब lयान से पढ़े तो भyचFका रह ग या। इन परच@ म1 मुसलमान@ के साथ होने वाली xयादितय@ को इतने भयावह और कण ढं ग से पेश िकया ग या था िक साधारण पाठक पर उनका Fया असर होग ा, यह सोचकर डर ग या। िमसाल के तौर पर इस तरह के शीषक थे 'मुसलमान@ के खून से होली खेली ग यी` या 'भारत म1 मुसलमान होना ग ुनाह है` या 'Fया भारत के सभी मुसलमान@ को िहं द ू बनाया जायेग ा` या 'तीन हजार मिःजद1 , मिदरबना ली ग यी ह ।` उzेिजत करने वाले शीषक@ के नीचे खबर1 िलखने का जो ढं ग था वह भी बड़ा भावुक और लोग @ को मरनेमारने या िसर फ ोड़ लेने पर मजबूर करने वाला था। वह दो-चार िदन बाद िमला तो बड़ा उतावला हो रहा था। बातचीत करने के िलए बोला, 'तुमने पढ़ िलये सब अखबार?' 'हां, पढ़ िलये।'

'Fया राय है. . .अब तो पता चला िक भारत म1 मुसलमान@ के साथ Fया होता है। हमारी जान-माल, इxजत-आब4 कुछ भी महफू ज़ नहीं है।' 'हां, वो तो तुम ठीक कहते हो. . .लेिकन एक बात ये बताओ िक तुमने जो िरसाले िदये ह वो िफ रकापरःती को दरू करने, उसे खNम करने के बारे म1 कभी कुछ नहीं िलखते?' 'Fया मतलब?' वह चyक ग या। 'दे खो, म मानता हंू मुसलमान@ के साथ xयादती होती है, दं ग @ म1 सबसे xयादा वही मारे जाते ह । पी.ए.सी. भी उह1 मारती है और िहं द ू भी मारते ह । मुसलमान भी मारते ह िहं दओं को। ऐसा नहीं है िक वे चुप बैठे रहते ह@. . .।' ु 'हां, तो कब तक बैठे रहे ? Fय@ न मार1 ?' वह तड़पकर बोला। 'ठीक है तो वो तु ह1 मार1 तुम उनको मारो. . .िफ र ये रोना-धोना कैसा?' 'Fया मतलब है तु हारा?' 'मेरा मतलब है इसी तरह मारकाट होती रही तो Fया िफ रकापरःती खNम हो जायेग ी?' 'नहीं, नहीं खNम होग ी।' 'और तुम चाहते हो, िफ रकापरःती खNम हो जाये?' 'हां।' 'तो ये अखबार, जो तुमने िदये, Fय@ नहीं िलखते िक िफ रकापरःती कैसे खNम की जा सकती है?' 'ये अखबार Fय@ नहीं चाहते ह@ग े िक िफ रकापरःती खNम हो?' 'ये तो वही अखबार वाले बता सकते ह । जहां तक म समझता हंू ये अखबार िबकते ही इसिलए ह िक इनम1 दं ग @ की भयानक दद नाक और बढ़ा-चढ़ाकर पेश की ग यी तःवीर1 होती ह । अग र दं ग े न ह@ग े तो ये अखबार िकतने िबक1ग े।' मेरी इस बात पर वह िबग ड़ ग या। उसका कहना था िक ये कैसे हो सकता है िक मुसलमान@ के इतने हमदद अखबार ये नहीं चाहते िक दं ग े क1, मुसलमान चै न से रह1 , िहं द-ू मुिःलम इिzहाद बने। कुछ महीन@ की लग ातार बातचीत के बाद हम लोग @ के बीच कुछ बुिनयादी बात1 साफ हो चुकी थीं। उसे सबसे बड़ी िदलचःपी इस बात म1 पैदा हो ग यी थी िक दं ग े कैसे रोके जा सकते ह । हम दोन@ ये जानते थे िक दं ग े पुिलस, पी.ए.सी. ूशासन नहीं रोक सकता। दं ग े

सा ूदाियक पािट यां भी नहीं रोक सकतीं, Fय@िक वे तो दं ग @ पर ही जीिवत ह । दं ग @ को अग र रोक सकते ह तो िसफ लोग रोक सकते ह । 'लेिकन लोग तो दं ग े के जमाने म1 घर@ म1 िछपकर बैठ जाते ह ।' उसने कहा। 'हां, लोग इसिलए िछपकर बैठ जाते ह Fय@िक दं ग ा करने वाल@ के मुकाबले वो मुzिहद नहीं ह . . .अकेला महसूस करते ह अपने को. . .और अकेला चना भाड़ नहीं फ ोड़ता। जबिक दं ग ा करने वो 'आरग ेनाइज` होते ह . . .लेिकन ज4री ये है िक दं ग @ के िखलाफ िजन लोग @ को संग िठत िकया जाये उनम1 िहं द-ू मुसलमान दोन@ ह@. . .और उनके ;यालात इस बारे म1 साफ ह@।' 'लेिकन ये काम करे ग ा कौन?' 'हम ही लोग , और कौन?' 'लेिकन कैसे?' 'अरे भाई, लोग @ से बातचीत करके. . .मीिटं ग 1 करके. . .उनको बता-समझाकर . . .म कहता हंू शहर म1 िहं द-ू मुसलमान@ का अग र दो सौ ऐसे लोग @ का मुप बन जाये जो जान पर खेलकर भी दं ग ा रोकने की िह मत रखते ह@ तो दं ग ा करने वाल@ की िह मत परःत हो जायेग ी। तु ह1 मालूम होग ा िक दं ग ा करने वाले बुजिदल होते ह । वो िकसी 'ताकत` से नहीं लड़ सकते। अकेले-दक ु े ले को मार सकते ह , आग लग ा सकते ह , औरत@ के साथ बलाNकार कर सकते ह , लेिकन अग र उह1 पता चल जाये िक सामने ऐसे लोग है। जो बराबर की ताकत रखते ह , उनम1 िहं द ू भी ह और मुसलमान भी, तो दं ग ाई िसर पर पैर रखकर भाग जाय1ग े।' वह मेरी बात से सहमत था और हम अग ले कदम पर ग ौर करने की िःथित म1 आ ग ये थे। मु;तार इस िसलिसले म1 कुछ नौजवान@ से िमला भी था। कुछ साल के बाद हम िद%ली म1 िफ र साथ हो ग ये। म िद%ली म1 धंधा कर रहा था और वह कनाट mलेस की एक दकान म1 काम करने लग ा था और जब िद%ली म1 दं ग ा हआ ु ु और ये पता चला िक कःसाबपुरा भी बुरी तरह ूभाव म1 है तो मुझे मु;तार की िफ ब हो ग यी। दसरी तरफ मु;तार के साथ जो कुछ घटा वह कुछ इस तरह था।. . .शाम का छ: ू बजा था। वह मशीन पर झुका काम कर रहा था। दकान मािलक सरदारजी ने उसे खबर ु दी िक दं ग ा हो ग या है और उसे ज%दी-से-ज%दी घर पहंु च जाना चािहए। पहाड़ग ंज म1 बस रोक दी ग यी थी। Fय@िक आग े दं ग ा हो रहा था। पुिलस िकसी को आग े

जाने भी नहीं दे रही थी। मु;तार ने मु;य सड़क छोड़ दी और ग िलय@ और िपछले राःत@ से आग े बढ़ने लग ा। ग िलयां तक सुनसान थीं। पानी के नल@ पर जहां इस वj चांव-चांव हआ करती थी, िसफ पानी िग रने की आवाज आ रही थी। जब ग िलय@ म1 लोग नहीं होते ु तो कुzे ही िदखाई दे ते ह । कुzे ही थे। वह बचता-बचाता इस तरह आग े बढ़ता रहा िक अपने मोह%ले तक पहंु च जाये। कभी-कभार और कोई घबराया परे शान-सा आदमी लंबे-लंबे कदम उठाता इधर से उधर जाता िदखाई पड़ जाता। एक अजीब भयानक तनाव था जैसे ये इमारत1 बा4द की बनी हई ु ह@ और ये सब अचानक एक साथ फ ट जाय1ग े। दरू से पुिलस ग ािड़य@ से सायरन की आवाज1 भी आ रही थीं। कःसाबपुरे की तरफ से ह%काह%का धुआं आसमान म1 फैल रहा था। न जाने कौन जल रहा होग ा, न जाने िकतने लोग @ के िलए संसार खNम हो ग या होग ा। न जाने जलने वाल@ म1 िकतने बUचे, िकतनी औरत1 ह@ग ी। उनकी Fया ग लती होग ी? उसने सोचा अचानक एक बंद दरवाजे के पीछे से िकसी औरत की पंजाबी म1 कांपती हई ु आवाज ग ली तक आ ग यी। वह पंजाबी बोल नहीं पाता था लेिकन समझ लेता था। और कह रही थी, बबलू अभी तक नहीं लौटा। मु;तार ने सोचा, उसके बUचे भी घर के दरवाजे पर खड़े िझिर य@ से बाहर झांक रहे ह@ग े। शािहदा उसकी सलामती के िलए नमाज पढ़ रही होग ी। भइया छत पर खड़े ग ली म1 दरू तक दे खने की कोिशश कर रहे ह@ग े। छत पर खड़े एक-दो और लोग @ से पूछ लेते ह@ग े िक मु;तार तो नहीं िदखाई दे रहा है। उसके िदमाग म1 िजतनी तेजी से ये ;याल आ रहे थे उतनी तेज उसकी रझतार होती जाती थी। सामने पीपल के पेड़ से कःसाबपुरा शु4 होता है और पीपल का पेड़ सामने ही है। अचानक भाग ता हआ कोई आदमी हाथ म1 कनःतर ु िलये ग ली म1 आया और मु;तार को दे खकर एक पतली ग ली म1 घुस ग या। अब मु;तार को ह%का-ह%का शोर भी सुनाई पड़ रहा था। पीपल के पेड़ के बाद खतरा न होग ा, Fय@िक यहां से मुसलमान@ की आबादी शु4 होती थी। ये सोचकर मु;तार ने दौड़ना शु4 कर िदया। पीपल के पेड़ के पास पहंु चकर मुड़ा और उसी वj हवा म1 उड़ती कोई चीज उसके िसर से टकराई और उसे लग ा िक िसर आग हो ग या है। दहकता हआ अंग ारा। उसने दोन@ ु हाथ@ से िसर पकड़ िलया और भाग ता रहा। उसे ये समझने म1 दे र नहीं लग ी िक एिसड का ब%ब उसके िसर पर मारा ग या है। सर की आग लग ातार बढ़ती जा रही थी और वह भाग ता जा रहा था। उसे लग ा िक वह ज%दी ही घर न पहंु च ग या तो ग ली म1 िग रकर बेहोश हो जायेग ा और वहां िग रने का नतीजा उसकी लाश पुिलस ही उठाएग ी। दोन@ बUच@ के चेहरे उसकी नजर@ म1 घूम ग ये। दं ग ा खNम होने के बाद म मु;तार को दे खने ग या। उसके बाल भूरे जैसे हो ग ये थे और लग ातार िग रते थे। िसर की खाल बुरी तरह जल ग यी थी और ज़;< हो ग ये थे। एिसड

का ब%ब लग ने के बराबर ही भयानक दघ ु टना ये हई ु थी िक जब वह घर पहंु चा था तो उसे पानी से िसर नहीं धोने िदया ग या था। सबने कहा था िक पानी मत डालो। पानी डालने से बहत ु ग ड़बड़ हो जायेग ी। और वह खुद ऐसी हालत म1 नहीं था िक कोई फैसला कर सकता। आठ िदन क›यू चला था और जब वह डॉFटर के पास ग या था तो डॉFटर ने उसे बताया था िक अग र वह फ ौरन िसर धी लेता तो इतने ग हरे ज़;< न होते। दं ग े के बाद सा ूदाियक स¡ावना ःथािपत करने के िलए स मेलन िकये जाने की कड़ी म1 इन दं ग @ म1 तीन महीने बाद स मेलन हआ। स मेलन म1 मने सोचा मु;तार को ले ु ु चलना चािहए। उसे एक िदन की छƒटी करनी पड़ी और हम दोन@ राजधानी की वाःतिवक राजधानी- यानी राजधानी का वह िहःसा जहां चौड़ी साफ सड़क1, सायादार पेड़, चमचमाते हए ु फु टपाथ, उं चे-उं चे िबजली के ख बे और िचकनी-िचकनी इमारते ह और वैसे ही िचकनेिचकने लोग ह । मु;तार भpय इमारत म1 घुसने से पहले कुछ िहचिकचाया, लेिकन मेरे बहादरी ु से आग े बढ़ते रहने की वजह से उसम1 कुछ िह मत आ ग यी और हम अंदर आ ग ये। अंदर काफ ी चहल-पहल थी। िव[िव\ालय@ के छाऽ, अlयापक, संःथान@ के िवLान, बड़े सरकारी अिधकारी, दझतर@ म1 काम करने वाले लोग , सभी थे। उनम1 से अिधकतर चेहरे दे खे हए ु थे। वे सब वामपंथी राजनीित या उसके जन-संग ठन@ म1 काम करने वाले लोग थे। कहां कलाकार, लेखक, बुि+जीवी, पऽकार, रं ग कमu और संग ीत भी थे। पूरी भीड़ म1 मु;तार जैसे शायद ही चद रहे ह@ या न रहे ह@, कहा नहीं जा सकता। अंदर मंच पर बड़ा-सा बैनर लग ा हआ था। इस पर अंमेजी, िहं दी और उद ू म1 ु 'सा ूदाियकता िवरोधी स मेलन` िलखा था। मुझे याद आया िक वही बैनर है जो चार साल पहले हए ु भयानक दं ग @ के बाद िकये ग ये स मेलन म1 लग ाया ग या था। बैनर पर तारीख@ की जग ह पर सफे द काग ज िचपकाकर नयी तारीख1 िलख दी ग यी थीं। मंच पर जो लोग बैठे थे वे भी वही थे जो िपछले और उससे पहले हए ु सा ूदाियकता िवरोधी स मेलन@ म1 मंच पर बैठे हए ु थे। स मेलन होने की जग ह भी वही थी। आयोजक भी वही थे। मुझे याद आया। िपछले स मेलन के एक आयोजक से स मेलन के बाद मेरी कुछ बातचीत हई ु थी और मने कहा था िक िद%ली के सवथा भि इलाके म1 स मेलन करने तथा ऐसे लोग @ को ही स मेलन म1 बुलाने का Fया फ ायदा है जो शत-ूितशत हमारे िवचार@ से सहमत ह । इस पर आयोजक ने कहा था िक स मेलन मजदरू बिःतय@, घनी आबािदय@ तथा उपनग रीय बिःतय@ म1 भी ह@ग े। लेिकन मुझे याद नहीं िक उसके बाद ऐसा हआ हो। ु हाल म1 सीट पर बैठकर मु;तार ने मुझसे यही बात कही। वह बोला 'इनम1 तो िहं द ु भी ह

और मुसलमान भी।' मने कहा, 'हां!' वह बोला, 'अग र ये स मेलन कःसाबपुरा म1 करते तो अUछा था। वहां के मुसलमान ये मानते ही नहीं िक कोई िहं द ू उनसे हमदद“ रख सकता है।' 'वहां भी कर1 ग े. . .लेिकन अभी नहीं।' तभी कायवाही शु4 हो चुकी थी। संयोजक ने बात शु4 करते हए ु सा ूदाियक शिjय@ की बढ़ती हई ु ताकत तथा उसके खतर@ की ओर संकेत िकया। यह भी कहा िक जब तक सा ूदाियकता को समा नहीं िकया जायेग ा तब तक जनवारी शिjयां मजबूत नहीं हो सकतीं। उह@ने यह आ[ासन भी िदया िक अब सब संग िठत होकर सा ूदाियक 4पी दैNय से लड1 ग े। इस पर लोग @ ने जोर की तािलयां बजायीं और सबसे पहले अ%पसं;यक@ के िव[िव\ालय के उप-कुलपित को बोलने के िलए आमंिऽत िकया। उप-कुलपित आई.ए.एस. सिवसेज म1 थे। भारत सरकार के उं चे ओहद@ पर रहे थे। लंबा ूशासिनक अनुभव था। उनकी प†ी िहं द ू थी। उनकी एक लड़की ने िहं द ू लड़के से िववाह िकया था। लड़के की प†ी अमरीकन थी। उप-कुलपित के ूग ितशील और धम िनरपेg होने म1 कोई संदेह न था। वे एक ईमानदार और ूग ितशील pयिj के 4प म1 स मािनत थे। उह@ने अपने भाषण म1 बहत ु िवLzापूण ढं ग से सा ूदाियकता की समःया का िव¢ेषण िकया। उसके खतरनाक पिरणाम@ की ओर संकेत िकये और लोग @ को इस चुनौती से िनपटने को कहा। कोई बीस िमनट तक बोलकर वे बैठ ग ये। तािलयां बजीं। मु;तार ने मुझसे कहा, 'ूोफे सर साहब की समझ तो बहत ु सही है।' 'हां, समझ तो उन सब लोग @ की िबलकुल सही है जो यहां मौजूद ह ।' 'तो िफ र?' तब तक दसरे वjा बोलने लग े थे। ये एक सरदार जी थे। उनकी उॆ अUछी-खासी थी। ू ःवतंऽता सेनानी थे और दिसय@ साल पहले पंजाब सरकार म1 मंऽी रह चुके थे। उह@ने अपने बचपन, अपने ग ांव और अपने िहं द,ू मुिःलम, िसFख दोःत@ के संःमरण सुनाये। उनके भाषण के दौरान लग भग लग ातार तािलयां बजती रहीं। िफ र उह@ने िद%ली के हािलया दं ग @ पर बोलना शु4 िकया। मु;तार ने मेरे कान म1 कहा, 'सरदार जी दं ग ा कराने वाल@ के नाम Fय@ नहीं ले रहे ह ? बUचा-बUचा जानता है दं ग ा िकसने कराया था।' मने कहा, 'बचपने वाली बात1 न करो। दं ग ा कराने वाल@ के नाम ले िदये तो वे लोग इन

पर मुकदमा ठोक द1 ग े।' 'तो मुकदमे के डर से सच बात न कही जाये?' 'तुम आदशवादी हो। आइिडयिलःट. . .।' 'ये Fया होता है?' मु;तार बोला। 'अरे यार, इसका मकसद दं ग ा कराने वाल@ के नाम िग नाना तो है नहीं।' 'िफ र Fया मकसद है इनका?' 'बताना िक िफ रकापरःती िकतनी खराब चीज है और उसके िकतने बुरे नतीजे होते ह ।' 'ये बात तो यहां बै ठे सभी लोग मानते ह । जब ही तो तािलयां बजा रहे ह ।' 'तो तुम Fया चाहते हो?' 'ये दं ग ा करने वाल@ के नाम बताय1।' मु;तार की आवाज तेज हो ग ई। वह अपना िसर खुजलाने लग ा। 'नाम बताने से Fया फ ायदा होग ा?' 'न बताने से Fया फ ायदा होग ा?' ःवतंऽता सेनानी का भाषण जारी था। वे कुछ िकये जाने पर बोल रहे थे। इस पर जोर दे रहे थे िक इस लड़ाई को ग िलय@ और खेत@ म1 लड़ने की ज4रत है। ःवतंऽता सेनानी के बाद एक लेखक को बोलने के िलए बुलाया ग या। लेखक ने सा ूदाियकता के िवरोध म1 लेखक@ को एकजुट होकर संघष करने की बात उठाई। 'तुम मुझ एक बात बताओ,' मु;तार ने पूछा। 'Fया?' 'जब दं ग ा होता है तो ये सब लोग Fया करते ह ?' म जलकर बोला, 'अखबार पढ़ते ह , घर म1 रहते ह और Fया कर1 ग ?े ' 'तब तो इस जुबानी जमा-खच का फ ायदा Fया है?' 'बहत ु फ ायदा है, बताओ?' 'भाई, एक माहौल बनता है, िफ रकापरःती के िखलाफ ।' 'िकन लोग @ म1? इहीं म1 जो पहले से ही िफ रकापरःती के िखलाफ ह ? तु ह1 मालूम है दं ग @ के बाद सबसे पहले हमारे मोह%ले म1 कौन आये थे?' 'कौन?' 'तबलीग ी जमात और जमाते-इःलामी के लोग . . .उह@ने लोग @ को आटा-दाल, चावल

बांटा था, उह@ने दवाएं भी दी थीं। उह@ने क›यू पास भी बनवाये थे।' 'तो उनके इस काम से तुम समझते हो िक वे िफ रकापरःती के िखलाफ ह ।' 'ह@ या न ह@, िदल कौन जीतेग ा. . .वही जो मुसीबत के वj हमारे काम आये या जो. . .' म उसकी बात काटकर बोला, 'खै र बाद म1 बात कर1 ग े, अभी सुनने दो।' कुछ दे र बाद मने उससे कहा, 'बात ये है यार िक इन लोग @ के पास इतनी ताकत नहीं है िक दं ग @ के वj बिःतय@ म1 जाय1।' 'इनके पास उतनी ताकत नहीं है और जमाते इःलामी के पास है?' म उस वj उसके इस सवाल का जवाब न दे पाया। मने अपनी पहली ही बात जारी रखी, 'जब इनके पास xयादा ताकत आ जायेग ी तब ये दं ग ामःत इलाक@ म1 जा सक1ग े, काम कर सक1ग े।' 'उतनी ताकत कैसे आयेग ी?' 'जब ये वहां काम कर1 ग े।' 'पर अभी तुमने कहा िक इनके पास उतनी ताकत ही नहीं है िक वहां जा सक1. . .िफ र काम कैसे कर1 ग े?' 'तुम कहना Fया चाहते हो?' 'मतलब यह है िक इनके पास इतनी ताकत नहीं है िक ये दं ग े क बाद या दं ग े के वj उन बिःतय@ म1 जा सक1 जहां दं ग ा होता है, और ताकत इनके पास उसी वj आयेग ी जब ये वहां जाकर काम कर1 ग े. . .और जा सकते नहीं।' 'यार, हर वj दं ग ा थोड़ी होता रहता है, जब दं ग ा नहीं होता तब जाय1ग े।' 'अUछा ये बताओ, जमाते इःलामी के मुकाबले इन लोग @ को कमजोर कैसे मान रहे हो. . .इनके तो एम.पी. ह , दो तीन सूब@ म1 इनकी सरकार1 ह , जबिक जमाते इःलामी का तो एक एम.पी. भी नहीं।' म िबग ड़कर बोला, 'तो तुम ये सािबत करना चाहते हो िक ये झूठे, पाखंड ी, कामचोर और बेईमान लोग ह ?' 'नहीं, नहीं, ये तो मने िबलकुल नहीं कहा!' वह बोला। 'तु हारी बात से मतलब तो यही िनकलता है।' 'नही, मेरा ये मानना नहीं है।' म धीरे -धीरे उसे समझाने लग ा, 'यार, बात दरअसल ये है िक हम लोग खुद मानते ह िक

काम िजतनी तेजी से होना चािहए, नहीं हो रहा है। धीरे -धीरे हो रहा है, लेिकन पFके तरीके से हो रहा है। उसम1 टाइम तो लग ता ही है।' 'तुम ये मानते होग े िक िफ रकापरःती बढ़ रही है।' 'हां।' 'तो ये धीरे -धीरे जो काम हो रहा है उनका कोई असर नहीं िदखाई पड़ रहा है, हां िफ रकापरःती ज4री िदन दनी ू रात चौग ुनी ःपीड से बढ़ रही है।' 'अभी बाहर िनकलकर बात करते ह ।' मने उसे चुप करा िदया। इस बीच चाय सव की ग यी। आिखरी वjा ने समय बहत ु जो जाने और सारी बात1 कह दी ग यी ह , आिद-आिद कहकर अपना भाषण समा कर िदया। हम दोन@ थोड़ा पहले ही बाहर िनकल आये। सड़क पर साथ-साथ चलते हए ु वह बोला, 'कोई ऐलान तो िकसी को करना चािहए था।' 'कैसा ऐलान?' 'मतलब ये है िक अब ये िकया जायेग ा, ये होग ा।' 'अरे भाई, कहा तो ग या िक जनता के पास जाय1ग े, उसे संग िठत और िशिgत िकया जायेग ा।' 'कोई और ऐलान भी कर सकते थे।' 'Fया ऐलान?' 'ूोफे सर साहब कह सकते थे िक अग र िफ र िद%ली म1 दं ग ा हआ तो वे भूख हड़ताल पर ु बैठ जाय1ग े। राइटर जो थे वो कहते िक िफ र दं ग ा हआ तो वे अपनी प¤ौी लौटा द1 ग े। ु ःवतंऽता सेनानी अपना ताॆपऽ लौटाने की धमकी दे ते।' उसकी बात म1 मेरा मन िखन हो ग या और म चलते-चलते क ग या। मने उससे पूछा, 'ये बताओ, तु ह1 इतनी ज%दी, इतनी हड़बड़ी Fय@ है?' वह मेरे आग े झुका। कुछ बोला नहीं। उसने अपने िसर के बाल हटाये। मेरे सामने लाललाल ज;म थे िजसे ताजा खून िरस रहा था। ***-***

11 मुिँकल काम जब दं ग े खNम हो ग ये, चुनाव हो ग ये, िजह1 जीतना था जीत ग ये, िजनकी सरकार बननी

थी बन ग यी, िजनके घर और िजनके ज;म भरने थे भर ग ये, तब दं ग ा करने वाली दो टीम@ की एक इzफ ाकी मीिटं ग हई। मीिटं ग की जग ह आदश थी यानी शराब का ठे काु िजसे िसफ चंद साल पहले से ही 'मिदरालय` कहा जाने लग ा था, वहां दोन@ िग रोह जमा थे, पीने-िपलाने के दौरान िकसी भी िवषय पर बात हो सकती है, तो बातचीत ये होने लग ी िक िपछले दं ग @ म1 िकसने िकतनी बहादरी ु िदखाई, िकसने िकतना माल लूटा, िकतने घर@ म1 आग लग ाई, िकतने लोग @ को मारा, िकतने बम फ ोड़े , िकतनी औरत@ को कNल िकया, िकतने बUच@ की टाँग 1 चीरीं, िकतने अजमे बUच@ का काम तमाम कर िदया, आिद-आिद। मिदरालय म1 कभी कोई झूठ नहीं बोलता यानी वहां कही ग यी बात अदालत म1 ग ीता या कुरान पर हाथ रखकर खायी ग यी कसम के बराबर होती है, इसिलए यहां जो कुछ िलखा जा रहा है, सच है और सच के िसवा कुछ नहीं है। खै िरयत खै रस%ला पूछने के बाद बातचीत इस तरह शु4 हई। पहले िग रोह के नेता ने कहा 'तुम लोग तो जखे हो, जखे. . ु .हमने सौ दकान1 फूं की ह ।' दसरे ने कहा, 'उसम1 तु हारा कोई कमाल नहीं है। िजस िदन ु ू तुमने आग लग ाई, उस िदन तेज हवा चल रही थी. . .आग तो हमने लग ाई थी िजसम1 तेरह आदमी जल मेरे थे।' बात चूिं क आग म1 आदिमय@ पर आयी थी, इसिलए पहले ने कहा, 'तुम तेरह की बात करते हो? हमने छcबीस आदमी मारे ह ।' दसरा बोला, 'छcबीस मत कहो।' ू 'Fय@?' 'तुमने िजन छcबीस को मारा है. . .उनम1 बारह तो औरत1 थीं।' यह सुनकर पहला हं सा। उसने एक पpवा हलक म1 उं डे ल िलया और बोला, 'ग धे, तुम समझते हो औरत@ को मारना आसान है?' 'हां।' 'नहीं, ये ग लत है।' पहला ग रजा। 'कैसे?' 'औरत@ की हNया करने के पहले उनके साथ बलाNकार करना पड़ता है, िफ र उनके ग ुांग @ को फ ाड़ना-काटना पड़ता है. . .तब कहीं जाकर उनकी हNया की जाती है।' 'लेिकन वे होती कमजोर ह ।' 'तुम नहीं जानते औरत1 िकतनी जोर से चीखती ह . . .और िकस तरह हाथ-पैर चलाती ह . . .उस वj उनके शरीर म1 पता नहीं कहां से ताकत आ जाती है. . .'

'खै र छोड़ो, हमने कुल बाइस मारे ह . . .आग म1 जलाये इसके अलावा ह ।' दसरा बोला। ू पहले ने पूछा, 'बाईस म1 बूढे िकतने थे?' 'झूठ नहीं बोलता. . .िसफ आठ थे।' 'बूढ़@ को मारना तो बहत ु ही आसान है. . .उह1 Fय@ िग नते हो?' 'तो Fया तुम दो बूढ़@ को एक जवान के बराबर भी न िग नोग ?े ' 'चलो, चार बूढ़@ को एक जवान के बराबर िग न लूंग ा।' 'ये तो अंधेर कर रहे हो।' 'अबे अंधेर तू कर रहा है. . .हमने छcबीस आदमी मारे ह . . .और तू हमारी बराबरी कर रहा है।' दसरा िचढ़ ग या, बोला, 'तो अब तू जबान ही खुलवाना चाहता है Fया?' ू 'हां-हां, बोल बे. . .तुझे िकसने रोका है।' 'तो कह दं ू सबके सामने साफ -साफ ?' 'हां. . .हां, कह दो।' 'तुमने िजन छcबीस आदिमय@ को मारा है. . .उनम1 ™यारह तो िरFशे वाले, झ%ली वाले और मजदरू थे, उनको मारना कौन-सी बहादरी ु है?' 'तूने कभी िरFशेवाल@, मजदर@ ू को मारा है?' 'नहीं. . .मने कभी नहीं मारा।' वह झूठ बोला। 'अबे, तूने िरFशे वाल@, झ%ली वाल@ और मजदर@ ू को मारा होता तो ऐसा कभी न कहता।' 'Fय@?' 'पहले वे हाथ-पैर जोड़ते ह . . .कहते ह , बाबूजी, हम1 Fय@ मारते हो. . हम तो िहं द ू ह न मुसलमान. . .न हम वोट द1 ग े. . .न चुनाव म1 खड़े ह@ग े. . .न हम ग ‚ी पर बैठ1ग े. . .न हम राज कर1 ग े. . .लेिकन बाद म1 जब उह1 लग जाता है िक वो बच नहीं पाय1ग े तो एकआध को ज़;<ी करके ही मरते ह ।' दसरे ने कहा, 'अरे , ये सब छोड़ो. . .हमने जो बाईस आदमी मारे ह . . .उनम1 दस जवान ू थे. . किड़यल जवान. . . ' 'जवान@ को मारना सबसे आसान है।'

'कैसे? ये तुम कमाल की बात कर रहे हो!' 'सुनो. . .जवान जोश म1 आकर बाहर िनकल आते ह उनके सामने एक-दो नहीं पचास@ आदमी होते ह . . .हिथयार@ से लैस. . .एक आदमी पचास से कैसे लड़ सकता है?. . .आसानी से मारा जाता है।' इसके बाद 'मिदरालय` म1 सनाटा छा ग या, दोन@ चुप हो ग ये। उह@ने कुछ और पी, कुछ और खाया, कुछ बहके, िफ र उह1 धयान आया िक उनका तो आपस म1 क पटीशन चल रहा था। पहले ने कहा, 'तुम चाहो जो कहो. . .हमने छcबीस आदमी मारे ह . . .और तुमने बाईस. . .' 'नहीं, यह ग लत है. . .तुमने हमसे xयादा नहीं मारे ।' दसरा बोला। ू 'Fया उ%टी-सीधी बात1 कर रहे हो. . .हम चार नंबर@ से तुमसे आग े ह ।' दसरे ने श प का पzा चला, 'तु हारे छcबीस म1 बUचे िकतने थे?' ू 'आठ थे।' 'बस, हो ग यी बात बराबर।' 'कैसे?' 'अरे , बUच@ को मारना तो बहत ु आसान है, जैसे मUछर@ को मारना।' 'नहीं बेटा, नहीं. . .ये बात नहीं है. . . तुम अनाड़ी हो।' दसरा ठहाका लग ाकर बोला, 'अUछा तो बUच@ को मारना बहत ू ु किठन है?' 'हां।' 'कैसे?' 'बस, है।' 'बताओ न . . ' 'बताया तो. . .' 'Fया बताया?' 'यही िक बUच@ को मारना बहत ु मुिँकल है. . .उनको मारना जवान@ को मारने से भी मुिँकल है. . .औरत@ को मारने से Fया, मजदर@ ू को मारने से भी मुिँकल।'

'लेिकन Fय@?' 'इसिलए िक बUच@ को मारते वj. . .' 'हां. . .हां, बोलो क Fय@ ग ये?' 'बUच@ को मारते समय. . .अपने बUचे याद आ जाते ह ।' ***-***

12 होज वाज पापा अःपताल की यह उं ची छत, सफे द दीवार@ और लंबी िखड़िकय@ वाला कमरा कभी-कभी 'िकचन` बन जाता है। 'आधे मरीज` यानी पीटर 'चीफ कुक` बन जाते ह और िवःतार से यह िदखाया और बताया जाता है िक ूिस+ हं ग ेिरयन खाना 'पलिचंता` कैसे पकाया जाता है। पीटर अंमेजी के चंद शcद जानते ह । म हं ग ेिरयन के चंद शcद जानता हंू । लेिकन हम दोन@ के हाथ, पैर, आंख1, नाक, कान ह िजनसे इशार@ की तरह भाषा 'ईजाद` होती है और संवाद ःथािपत ही नहीं होता दौड़ने लग ता है। पीटर मुझे यह बताते ह िक अšडे िलये, तोड़े , फ1 टे , उसम1 शकर िमलाई, मैदा िमलाया, एक घोल तैयार िकया। 'ृाईपैन` िलया, आग पर रखा, उसम1 तेल डाला। तेल के ग म हो जाने के बाद उसम1 एक चमचे से घोल डाला। उसे फैलाया और पराठे जैसा कुछ तैयार िकया। िफ र उसे िबना चमचे की सहायता से 'ृाइपैन` पर उछाला, पलटा, दसरी तरफ से तला और िनकाल िलया। पीटर ने मजाक म1 ू यह भी बताया था िक उनकी प†ी जब 'पलिचंता` बनाने के िलए मैदे का 'पराठा` 'ृाइपैन` को उछालकर पलटती ह तो 'पराठा` अFसर छत म1 जाकर िचपक जाता है। लेिकन पीटर 'एFसपट ` ह , उनसे ऐसी ग लती नहीं होती।

पीटर का पूरा नाम पीटर मतोक है। उनकी उॆ करीब िछयालीस-सतालीस साल है। लेिकन दे खने म1 कम ही लग ते ह । वे बुदापैँत म1 नहीं रहते। हं ग ेरी म1 एक अय शहर पॉपा म1 रहते ह और वहां के डॉFटर@ ने इह1 पेट की िकसी बीमारी के कारण राजधानी के अःपताल म1 भेजा है। यहां के डॉFटर यह तय नहीं कर पाये ह िक पीटर का वाःतव म1 ऑपरे शन िकया जाना चािहए या वे दवाओं से ही ठीक हो सकते ह । यानी पीटर के टे ःट चल रहे ह । कभी-कभी डॉFटर उनके चेहरे और शरीर पर तोर@ का ऐसा जंग ल उग ा दे ते ह िक पीटर बीमार लग ने लग ते ह । लेिकन कभी-कभी तार हटा िदये जाते ह तो पीटर मरीज ही नहीं लग ते। यही वजह है िक म उह1 आधे मरीज के नाम से याद रखता हंू । पीटर 'सव}` करने वाले िकसी िवभाग म1 काम करते ह । उनकी एक लड़की है िजसकी शादी होने

वाली है। एक लड़का है जो बारहवीं Fलास पास करने वाला है। पीटर की प†ी एक दफ़तर म1 काम करती ह । पीटर कुछ साल पहले िकसी अरब दे श म1 काम करते थे। ये सब जानकािरयां पीटर ने मुझे खुद ही दी थीं। यानी अःपताल म1 दािखल होते ही उनकी मुझसे दोःती हो ग यी थी। पीटर मुझे सीधे-सादे , िदलचःप, बातूनी और 'ूेमी` िकःम के जीव लग े थे। पीटर का नसž से अUछा संवाद था। मेरे ;याल से कमउॆ नसž को वे अUछी तरह ूभािवत कर िदया करते थे। उह1 मालूम था िक नसž के पास कब थोड़ाबहत ु समय होता है जैसे ™यारह बजे के बाद और खाने से पहले या दो बजे के बाद और िफ र शाम सात बजे के बाद वे िकसी-न-िकसी बहाने से िकसी सुंदर नस को कमरे म1 बुला लेते थे और ग mपशmप होने लग ती थी। जािहर है वे हं ग ेिरयन म1 बातचीत करते थे। म इस बातचीत म1 अजीब िविचऽ ढं ग से भाग लेता था। यानी बात को समझे िबना पीटर और नसž की भाव-भंिग माएं दे खकर मुझे यह तय करना पड़ता था िक अब म हं सूं या मुःकराऊँ या अफ सोस जािहर क4ंग ा 'हद हो ग यी साहब` जैसा भाव चेहरे पर लाऊँ या 'ये तो कमाल हो ग या` वाली शFल बनाऊँ? इस कोिशश म1 कभी-कभी नहीं अFसर मुझसे ग लती हो जाया करती थी और म िखिसया जाया करता था। लेिकन ऑपरे शन, तकलीफ , उदासी और एकांत के उस माहौल म1 नसž से बातचीत अUछी लग ती थी या उसकी मौजूदग ी ही मजा दे ती थी। पीटर ने मरे पास भारतीय संग ीत के कैसेट दे ख िलये थे। अब वे कभी-कभी शाम सात-आठ बजे के बाद िकसी नस को िसतार, शहनाई या सरोद सुनाने बुला लाते थे। बाहर ह%की-ह%की बफ िग रती होती थी। कमरे के अंदर संग ीत ग ूंजता था और कुछ समय के िलए पूरी दिनया सुंदर हो जाया करती थी। ु

पीटर के अलावा कमरे म1 एक मरीज और थे। जो ःवयं डॉFटर थे और 'एपेिšडसाइिटस` का ऑपरे शन कराने आये थे। पीटर को िजतना बोलने का शौक था इह1 उतना ही खामोश रहने का शौक था। वे यानी इमैर अंमेजी अिधक जानते थे। मेरे और पीटर के बीच जब कभी संवाद फं स या अड़ जाता था तो वे खींचकर ग ाड़ी बाहर िनकालते थे। लेिकन आमतौर पर वे खामोश रहना पसंद करते थे।

म कोई दस िदन पहले अःपताल म1 भतu हआ था। मेरा ऑपरे शन होना था। लेिकन एक ु जग ह एक, एक ही िकःम का ऑपरे शन अग र बार-बार िकया जाये तो ऑपरे शन पर से िव[ास उठ जाता है। मेरी यही िःथित थी। म सोचता था, दिनया म1 सभी डॉFटर ु 'ऑपरे शन` ूेमी होते ह और खासतौर पर मुझे दे खते ही उनके हाथ 'मचलने` लग ता है। लेिकन बहत राःता ू ु से काम 'आःथाहीनता` की िःथित म1 भी िकए जाते ह । कोई दसरा

नहीं बचता। तो म भतu हआ था। तीसरे िदन ऑपरे शन हआ था। पर सच बताऊँ ु ु आपरे शन म1 उ मीद के िखलाफ काफ ी मजा आया था। ये डॉFटर@, 'टे Fनोलॉजी` का कमाल था या इसका कारण िपछले अनुभव थे, कुछ कह नहीं सकता। लेिकन पूरा ऑपरे शन ;वाब और हकीकत का एक िदलचःप टकराव जैसा लग ा था। पूरे ऑपरे शन के दौरान म होश म1 था। लेिकन वह होश कभी-कभी बेहोशी या ग हरी नींद म1 बदल जाता था। उपर लग ी रोशिनयां कभी-कभी तार@ जैसी लग ने लग ती थीं। डॉFटर परछाइय@ जैसे लग ते थे। आवाज1 बहत ु दरू से आती सरग ोिशय@ जैसी लग ती थीं। औजार@ की आवाज1 कभी 'खट` के साथ कान@ से टकराती थीं। और कभी संग ीत की लय जैसी तैरती हई ु आती थीं। कभी लग ता था िक यह आपरे शन बहत ु लंबे समय से हो रहा हैऔर िफ र लग ता िक नहीं, अभी शु4 ही नहीं हआ। कुछ सेकेšड के िलए पूरी चेतना एक ग ोता लग ा लेती थी और िफ र आवाज1 ु दा कर दी ह@। और चेहरे धुध ं ले होकर सामने आते थे। जैसी पानी पर तेज हवा ने लहर1 पै एक बहत ु सुंदर मिहला डॉFटर मेरे िसरहाने खड़ी थीं। उसका चेहरा कभी-कभी लग ता था पूरे ¥ँय म1 'िडज़ा%व` हो रहा है और िसफ उसका चेहरा-ही-चेहरा है चार@ तरफ बाकी कुछ नहीं है। इसी तरह उसकी आंख1 भी िवराट 4प धरण कर लेती थीं। कभी यह भी लग ता था िक यहां जो कुछ हो रहा है उसका म दशक माऽ हंू ।

िजस तरह तूफ ान ग ुजर जाने के बाद ही पता चलता है िक िकतने मकान ढहे , िकतने पेड़ िग रे , उसी तरह ऑपरे शन के बाद मने अपने शरीर को 'टटोला` तो पाया िक इतना दद है िक बस दद -ही-दद हे । यह हालत धीरे -धीरे कम होती ग यी लेिकन ऑपरे शन के बाद मने 'रोटी सुग ंध` का जो मजा िलया वह जीवन म1 पहले कभी न िलया था। चार िदन तक मेरा खाना बंद था। ग ल ै री म1 जब खाना लाया जाता था तो 'िज ले` ;एक तरह की पाव रोटी की खुशबू मेरी नाक म1 इस तरह बस जाती थी िक िनकाले न िनकलती थी। चार िदन के ू बाद वही रोटी जब खाने को िमली तब कहीं जाकर उस सुग ंध से पीछा छटा।

जैसा िक म पहले कह चुका हंू , एक ही जग ह पर एक ऑपरे शन बार-बार िकये जाने के बम म1 यह दसरा ऑपरे शन था। डॉFटर@ ने कहा था िक इसकी ूग ित दे खकर वे अग ला ू ऑपरे शन कर1 ग े। िफ र अग ला और िफ र अग ला और िफ र . . .तंग आकर मने उसके बारे म1 सोचना तक छोड़ िदया था।

पीटर मेरे ऑपरे शन के बाद दािखल हए ऑपरे शन की ू ु थे या कहना चािहए जब म दसरे ूतीgा कर रहा था तब पीटर आये थे और उनके टे ःट वग रैा हो रहे थे। आिखरकार उनसे

कह िदया ग या िक वे दवाओं से ठीक हो सकते ह । पीटर बहत ु खुश हो ग ये थे। उह@ने ज%दी-ज%दी सामान बांध था और बाकायदा मुझसे ग ले-वले िमल ग ये थे। इमरे तो उससे पहले ही जा चुके थे। इन दोन@ के चले जाने के बाद म कमरे म1 अकेला हो ग या था, ू लेिकन अकेले होने का सुख बड़े भयंकर ढं ग से टटा। यानी मुझे सरकारी अःपताल के कमरे म1 दो िदन तक अकेले रहने की सजा िमली। यानी तीसरे िदन मेरे कमरे म1 एक बूढ़ा मरीज आ ग या था। दे खने म1 करीब सzर के आसपास का लग ता था। लेिकन हो सकता है xयादा उॆ रही ह@। वह दोहरे बदन का था। उसके बाल बफ जैसे सफे द थे। चेहरे का रं ग कुछ सुख था। आंख1 धुध ं ली और अंदर को धंसी हई ु थीं। जािहर है िक वह अंमेजी नहीं जानता था। वह दे खने म1 खाता-पीता या स पन भी नहीं लग रहा था। लेिकन सबसे बड़ी मुसीबत यह थी िक उसके आते ही एक अजीब अजीब िकःत की तेज बदबू ने कमरे म1 मुःतिकल डे रा जैसा जैसा जमा िलया था। म बूढ़े के आने से परे शान हो ग या था। लग ा िक शायद म नापसंद करता हंू , यह नहीं चाहता िक वह इस कमरे म1 रहे । लेिकन जािहर है िक म इस बारे म1 कुछ न कर सकता था। िसफ उसे नापसंद कर सकता था और िदल-ही-िदल म1 उससे नफ रत कर सकता था। उसकी अपेgा कर सकता था या उसके वहां रहने से लग ातार बोर होता रह सकता था। िफ र यह भी तय था िक अभी मुझे अःपताल कम-से-कम बीस िदन और रहना है। यह बूढ़ा भी ऑपरे शन के िलए आया होग ा और उसे भी लंबे समय तक रहना होग ा। मतलब उसके साथ मुझे बीस िदन ग ुजारने थे। अग र म उससे घृणा करने लग ता तो बीस िदन तक घृिणत pयिj के साथ रहना बहत ु मुिँकल हो जाता। इसिलए मने सोचा कम-से-कम उससे घृणा तो नहीं करनी चािहए। आदमी है बूढ़ा है, बीमार है, ग रीब है, उसे ऐसी बीमारी है िक उसके पास से बदबू आती है तो उसम1 उस बेचारे की Fया ग लती? तो बहत ु सोच-समझकर मने तय िकया िक बूढ़े के बारे म1 मेरे िवचार खराब नहीं होने चािहए। जहां तक बदबू का सवाल हैउसकी आदत पड़ जायेग ी या िखड़की खोली जा सकती है, हालांिक बाहर का तापमान शूय से चार-पांच िडमी नीचे ही रहता था।

उसी िदन शाम को मुझसे िमलने डॉ. मािरया आयीं। वे भी बूढ़े को दे ख कर बहत ु खुश नहीं हw। ु लेिकन जािहर है वे भी कुछ नहीं कर सकती थीं। उह@ने इतना ज4र िकया िक एक िखड़की थोड़ी-सी खोल दी।

'ये कब आये?' उह@ने पूछा। 'आज ही।' मने बताया।

'Fया तकलीफ है इह1 ?' उह@ने कहा। 'म नहीं जानता। आप पूिछए। मेरे ;याल से ये अंमेज़ी नहीं जानते ह ।'

डॉ. मािरया ने बूढ़े सxजन से हं ग ेिरयन म1 बातचीत शु4 कर दी। मािरया बुदापैँत म1 िहं दी पढ़ाती ह और हम दोन@ 'Fलीग ` ह । एक ही िवभाग म1 पढ़ाते ह । कुछ दे र बूढ़े से बातचीत करने के बाद उह@ने मुझे बताया िक बूढ़े को टƒटी करने की जग ह पर कसर है और ऑपरे शन के िलए आया है। काफ ी बड़ा ऑपरे शन होग ा। बूढ़ा काफ ी डरा हआ है Fय@िक वह चौरासी साल का है और इस उॆ म1 इतना बड़ा आपरे शन ु खतरनाक हो सकता है। यह सुनकर मुझे बूढ़े से हमदद“ पैदा हो ग यी। बेचारा! पता नहीं Fया होग ा!

अचानक कमरे म1 एक पचास साल की औरत आयी। वह कुछ अजीब घबराई और डरीडरी-सी लग रही थी। उसके कपड़े और रखरखाव वग रैा दे खकर यह अनुमान लग ाना किठन नहीं था िक वह बहत ु साधरण पिरवार की है। वह दरअसल इस बूढ़े की बेटी थी। उससे भी मािरया ने बातचीत की। वह अपने िपता के बारे म1 बहत ु िचंितत लग रही थी। बूढ़े की लड़की से बातचीत करने के बाद मािरया ने मुझे िफ र सब कुछ िवःतार से बताया। हम बात1 कर ही रहे थे िक कमरे म1 हॉयिनका आ ग यी। यहां िक नसž म1 वह एक खुशिमजाज नस है। खूबसूरत तो नहीं बस अUछी है और युवा है। उसके हाथ@ म1 दवाओं की शे थी। आते ही उसने हं ग ेिरयन म1 एक हांक लग ायी। म दस-बारह िदन अःपताल म1 रहने के कारण यह समझ ग या हंू िक यह हांक Fया होती है। सात बजे के करीब रात की यूटी वाली नस हम कमरे म1 जाती है और मरीज@ से पूछती है िक Fया उह1 'ःलीिपंग िपल` या 'पेन िकलर` चािहए? आज उसने जब यह हांक लग ायी तो म समझ ग या। लेिकन मािरया ने उसका अनुवाद करना ज4री समझा और कहा, 'पूछ रही ह पेन िकलर या सोने के िलए नींद की ग ोली चािहए तो बताइए।' मने कहा, 'हां दो, 'पेन िकलर` और एक 'ःलीिपंग िपल`।'

मािरया अUछी बेतक%लुफ दोःत ह । वे मजाक करने का कोई मौका नहीं चूकतीं। पता नहीं उनके मन म1 Fया आयी िक मुःकुराकर बोलीं, 'Fया म नस से यह भी कहंू िक इन दवाओं के अलावा, रात म1 ठीक से सोने के िलए आपको एक 'पmपी` भी दे ?'

म बहत ु खुश हो ग या 'Fया ये कहा जा सकता है? बुरा तो नहीं मानेग ी? अपने महान दे श म1 यह कहने का ूयास वही करे ग ा जो लात-जूते से अपना इलाज कराना चाहता हो।' 'नहीं, यहां कहा जा सकता है।' वे हं सकर बोलीं। 'तो किहए।'

उह@ने नस से कहा। वह हं सी, कुछ बोली और इठलाती हई ु चली ग यी। 'कह रही है म पि†य@ केसामने पित को 'पmपी` नहीं दे ती। जब मने उससे बताया िक म प†ी नहीं हंू तो बोली िक ठीक है, वह लौटकर आयेग ी।' मने मािरया से कहा, 'उद ू के एक ूिस+ हाःय-pयं™य किव अकबर इलाहाबादी का शेर है 'तहज़ीबे ग िऱबी म1 बोसे तलक है माफ आग े अग र बढ़े तो शरारत की बात है।' शेर सुनकर वे िदल खोलकर हं सी और बोलीं, 'हां, ये सच है िक भारत और यूरोप की नैितकता म1 बड़ा फ क है। लेिकन उसी के साथ-साथ यह भी तय है िक भारतीय इस संबंध म ूाय: बहत ु कम जानते ह । जैसे अकबर इलाहाबादी शायद यह न जानते ह@ग े िक यूरोप म1 कुछ 'बोसे` िबलकुल औपचािरक होते ह । िजह1 हम हाथ िमलाने जैसा मानते ह । अब मेरी बारी थी। मने कहा, 'लेिकन हमारे यहां तो औरत से हाथ िमलाना तक एक 'छोटा-मोटा` 'बोसा` समझा जाता है।' इस पर वे खूब हं सीं। कमरे के दसरी तरफ बूढ़े के पास उसकी लड़की बैठी थी। दोन@ बात1 कर रहे थे। ह%कीू ह%की आवाज1 हम लोग @ तक आ रही थीं। मने मािरया से पूछा, 'वे उधर Fया बात1 कर रहे ह ?'

'वह अपनी लड़की से कह रहा है िक मेरी mयारी बेटी, तुम िसग रे ट पीना छोड़ दो। िपछली बीमारी के बाद तु ह1 डॉFटर ने मना िकया था िक िसग रे ट न िपया करो. . .लड़की कह रही है िक उसने कम कर दी है. . .अब कुzे के बारे म1 बात हो रही है। बूढ़ा कह रहा है िक उसके अःपताल म1 रहते कुzे का पूरा ;याल रखना। अग र कुzे का lयान नहीं रखा ग या तो वह नाराज हो जायेग ा. . .अब वह कह रहा है िक दोपहर के खाने म1 और सुबह के नाँते म1 भी ग ोँत था। कम था, लेिकन था. . .अब बाजार म1 ग ोँत की बढ़ती कीमत@ पर बात हो रही है. . .बूढ़ा बहत ु नाराज है. . .अब कुछ सुनाई नहीं दे रहा. . .' मािरया कुसu की पीट से िटक ग यीं।

'बेचारे ग रीब लोग मालूम होते ह ।' 'ग रीब?' 'हां, हमारे यहां की ग रीबी रे खा के नीचे के लोग ।'

कुछ दे र बाद 'िविजटस` के जाने का वj हो ग या। बूढ़े की लड़की चली ग यी। मािरया भी उठ ग यीं। ग म कपड़@ और लोमड़ी के बाल@ वाली टोपी से अपने को लादकर बोलीं 'आपकी नस तो नहीं आयी?' 'अUछा ही है जो नहीं आयी।' 'Fय@?' 'इसिलए िक औपचािरक बोसे से काम नहीं चलेग ा और अनौपचािरक बोसे के बाद नींद नहीं आयेग ी।' उह@ने कहा, 'कोई-न-कोई समःया तो रहनी ही चािहए।'

अःपताल की रात1 बड़ी उबाऊ, नीरस, उकताहट-भरी और बेचन ै करने वाली होती ह । नींद Fय@ आये जब जनाब िदन-भर िबःतर पर पड़े रहे ह@। नींद की ग ोली खा ल1 तो उसकी आदत-सी पड़ने लग ती है। पढ़ने लग 1 तो कहां तक पढ़1 ? सोचने लग 1 तो कहां तक सोच1? लग ता है अग र अनंत समय हो तो कोई काम ही नहीं हो सकता। रात म1 सो पाने, सोचने, पढ़ने आिद-आिद की कोिशश करने के बाद म अपने कमरे म1 आये नये बूढ़े मरीज की तरफ दे खने लग ा। वह अखबार पढ़ते-पढ़ते सो ग या था। जाग ते हए ु भी उसका चेहरा काफ ी भोला और मासूम लग ता है िक लेिकन सोते म1 तो िबलकुल बUचा लग रहा था। उसके बड़े -बड़े कान हाथी के कान जैसे लग रहे थे। धंसे हए ु ग ाल@ के उपर हिडयां उभर आयी थीं। शायद उसने नकली दांत@ का चौखटा िनकाल िदया था। उसकी ओर दे खकर मेरे मन म1 तरह-तरह के िवचार आने लग े। सबसे ूबल था कसर का बढ़ा हआ मज, चौरासी ु साल की उॆ म1 िजं_ग ी का एक ऐसा मोड़ जो अंधेरी ग ली म1 जाकर ग ायब हो जाता है। लग ता था बचेग ा नहीं. . .जो कुछ मुझे बताया ग या था उससे यही लग ता था िक ऑपरे शन के बाद बूढ़ा सीधा 'इटे िसव केयर यूिनट` म1 ही जायेग ा। और िफ र कहां? मुझे लग ने लग ा िक उसकी मृNयु िबलकुल तय है। उसी तरह जैसे सूरज िनकलना तय है। लग ा कहीं ऑपरे शन टे बुल पर ही न चल बसे बेचारा . . .पता नहीं Fय@ अचानक वह मुझे हं ग री के अतीत-सा लग ा।

रात ही थी या पता नहीं िदन हो ग या था। अचानक कमरे की सभी बिzयां जल ग यीं और हॉयिनका के अंदर आने की आवाज से म उठ ग या। उसने मुःकराकर 'थरमामीटर` हाथ म1 दे िदया। इसका मतलब है सुबह का छ: बजा है। उसकी मुःकराहट बड़ी काितल थी। शायद कल वाली बात उसे याद होग ी। मने िदल-ही-िदल म1 कहा, इस तरह मुःकराने से Fया होग ा, वायदा िनभाओ तो जान1। उसने बूढ़े आदमी को 'पापा` कहकर जग ाया और उह1 भी 'थरमामीटर` पकड़ा िदया। संसार के सभी अःपताल@ की तरह इस अःपताल म1 भी आप समय का अंदाजा नसž की िविजट, डॉFटर@ के आने, नाँता िदये जाने, ग ल ै री की बिzयां बंद िकये जाने वग रैा से लग ा सकते ह ।

सुबह के काम धीरे -धीरे होने लग े। 'पापा` उठे । उह@ने अपनी छड़ी उठायी। छड़ी बहत ु पुरानी लग ती है। उतनी तो नहीं िजतने पापा ह लेिकन िफ र भी पुरानी है। छड़ी के हNथे पर mलािःटक की डोरी का एक छ%ला-सा बंध हआ था। उह@ने छ%ले म1 हाथ डालकर ु छड़ी पकड़ ली और बाहर िनकल ग ये। शायद बाथ4म ग ये ह@ग े। छड़ी के हNथे से mलािःटक की डोरी बांधने वाला आइिडया मुझे अUछा लग ा। इसका मतलब यह है िक पापा के हाथ म1 छड़ी कभी िग री होग ी। बस म1 कभी चढ़ते हए ु या शाम से उतरते हए ु या मैशो से िनकलते हए। छड़ी िग री होग ी तो पापा भी िग रे ह@ग े। पापा िग रे ह@ग े तो उनके ु पास जो सामान रहा होग ा वह भी िग रा होग ा। लोग @ ने फ ौरन उनकी मदद की होग ी। सामान समेटकर उह1 िदया होग ा। उनकी छड़ी उह1 पकड़ाई होग ी। इस तरह के बूढ़@ को मने अFसर बस@, शाम@ से उतरते-चढ़ते समय िग रते दे खा है। पूरा ¥ँय आंख@ के सामने कyध ग या। इसी तरह की घटना के बाद पापा ने mलािःटक की डोरी का छ%ला छड़ी के मुƒठे से बांध िलया होग ा।

इस शहर म1 मने अFसर इतने बूढ़े लोग @ को आते-जाते दे खा है जो ठीक से चल भी नहीं पाते। िफ र भी वे थै ले िलये हए ु बाजार@, बस@ म1 नजर आ जाते ह । शु4-शु4 म1 म यह समझ नहीं पाता था िक यिद ये लोग इतने बूढ़े ह िक चल नहीं सकते तो घर@ से बाहर ही Fय@ िनकलते ह । बाद म1 मेरी इस िजासा का सामाधान हो ग या था। मुझे बताया ग या था िक ूाय: बूढ़े अकेले रहते ह । पेट की आग उह1 कम-से-कम हझते म1 एक बार घर से िनकलने पर मजबूर कर दे ती ह ।

यह आदमी, बूढ़ा आदमी, िजससे म कल नफ रत करते-करते बचा, दरअसल बहत ु अUछा है। जैसे-जैसे िदन ग ुजर रहे ह , मुझे उनके बारे म1 अधिक बात1 पता चल रही ह । भाषा के सभी बंधन@ के होते हमारे जो िरँते बन रहे ह उनके आधार पर उसे पसंद करने लग ा हंू । को 'यो हालांिक हम दोन@ आमतौर पर चुप रहने के िसवाय इसके िक हर सुबह एक-दसरे ू रै™ग % ै स` मतलब 'ग ुड मािन„ग ` कहते ह । िदन म1 'यो नपोत िकवानोक` यानी 'िवश यू ग ुड डे ` कहते ह । छोटी-मोटी मदद के बाद 'कोसोनोम`, धयवाद कहते ह । या धयवाद कहे ै ` कहकर दे ते ह । जाने का जवाब 'सीवैशन

मुझे याद है दो िदन पहले जब म अपने दसरे ऑपरे शन के बाद कमरे म1 जाया ग या था ू और दद -िनवारक दवाओं का असर खNम हो ग या था तो दद इतना हो रहा था िक बकौल फैज अहमद 'फैज` हर रग े जां से उलझ रहा था। डॉFटर कह रहे थे िजतनी ःशांग दद िनवारक दवाएं वे दे चुके ह उससे अधिक और कुछ नहीं दे सकते। अब तो बस झेलना ही है। म झेल रहा था। िबःतर पर तड़प रहा था। कराह रहा था। आंख1 कभी बंद करता था, कभी खोलता था। उसी वj एक बार आंख1 खुलीं तो मने दे खा िक पापा हाथ म1 छड़ी िलये मेरे बेड के पास खड़े ह । मुझे यह उ मीद न थी। वे कह कुछ न रहे थे। Fय@िक भाषा की ं ला लग कावट थी। लेिकन जािहर था िक Fय@ खड़े ह । दद की वजह से उनका चेहरा धुध रहा था। उनकी धंसी हई ु थे। ग द न ु आंख1 िबलकुल ओझल थीं। लंबे-लंबे कान लटके हए झुकी हई ु थी। िसर पर सफे द बाल बेतरतीबी से फैले थे। वे चुपचाप खड़े थे पर मुझे लग ा जैसे कह रहे ह@, दे खो दद भी Fया चीज है कोई बांट नहीं सकता। उसे सब अकेला ही झेलते ह । पापा को दे खते ही म अपने दद से उनके दद की तुलना करने लग ा। लग ा इस िवचार ने दद -िनवारक ग ोली का काम कर िदया। मने सोचा, पापा, तु हारे ऑपरे शन के बाद म शायद तु ह1 दे ख भी न पाउं ग ा िजस तरह तुम मुझे दे ख रहे हो Fय@िक तुम शायद आई.सी.यू म1 होग े या िकसी ऐसी जग ह जहां म पहंु च न सकूंग ा। तु हारे इस तरह मुझे दे खने का एहसान मेरे उपर हमेशा के िलए बाकी रह जायेग ा। ऑपरे शन के बाद म ठीक होने लग ा। दसरे ू िदन टहलने लग ा। इस दौरान पापा के टे ःट वग रैा चल रहे थे। हं ग ेिरयन अःपताल@ म1 कोई हबड़-तबड़ नहीं होती Fय@िक नफ ानुकसान, लेन-दे न आिद का कोई चFकर नहीं है। इसिलए पापा के 'टे ःट` काफ ी िवःतार से हो रहे थे। म िदन म1 घबराकर कमरे के चFकर लग ता था और उकताहट दरू करने के िलए या पता नहीं िकसिलए िदन म1 दिसय@ बार पापा से पूछता था, होज वाज पापा? यानी कैसे हो पापा? पापा मेरे सवाल का हर बार एक ही जवाब दे ते थे, 'कोसोनोम योल`

धयवाद, ठीक हंू ।` म समझता था िक शायद मेरे बार-बार एक सवाल पूछने से वे िचढ़ जाय1ग े। पर ऐसा कभी नहीं हआ। शायद वे जानते थे िक म पता नहीं उनसे Fया-Fया ु कहना चाहता हंू लेिकन नहीं कह पाता।

पापा लग भग पूरे िदन बड़े lयान से अखबार पढ़ा करते थे। वे हं ग ेरी का वह अखबार पढ़ते थे जो पहले क युिनःट@ का था और अब समाजवािदय@ का अखबार है। पापा की अखबार म1 ग हरी िच मुझे चमNकृ त कर दे ती थी। ऐसी उॆ म1, इतनी खतरनाक बीमारी से जूझते हए म1 िकतने लोग @ की िच बचती है। या तो लोग चुप हो जाते ह या रोते रहते ु ु दिनया ह । लेिकन पापा के साथ ऐसा न था। एक रात अखबार पढ़ने के बाद वे हाथ बचाकर मेज पर चँमा रखने लग े तो चँमा फ श पर िग र पड़ा था। तब मने पापा के मुंह से ऐसी आवाज सुनी जो द:ु ख pयj करने वाली आवाज थी। म तNकाल उठा और पापा का चँमा उठाया। मने दे खा, न केवल चँमा बेहद ग ंदा था बि%क उसे धाग @ से इस तरह बांध ग या ू लग ता था। जैसा भी रहा हो, उसका पापा के िलए बहत था िक कई जग ह@ से टटा ु xयादा महNव था। मने चँमा उनकी तरफ बढ़ाया। उनकी आंख@ म1 कृ तता का ःपq भाव था। ू नहीं था। अग र टट ू जाता तो? बहत चँमा टटा ु बुरा होता, बहत ु ही बुरा।

दो-चार िदन बाद मेरी हालत ये हो ग यी थी, अपने बेड पर लेटा-लेटा म यह इं तजार िकया करता था िक पापा की मदद करने का अवसर िमले। वे रात म1 सोने से पहले लै प बंद करने के िलए उठते थे। उठने के िलए बड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। पहले छड़ी टटोलते थे। िफ र छ%ले म1 हाथ डालते थे। तब खड़े होते थे। बेड का पूरा चFकर लग ाकर दसरी ू तरफ आते थे और तब लै प का 'िःवच` 'आफ ` करते थे। म इं तजार करता रहता था। जैसे ही लै प बंद करने की ज4रत होती थी म ज%दी से उठकर लै प 'ऑफ ` कर दे ता था। पापा 'कोसोनोम` कहते थे। इसी तरह दोपहर के खाने के बाद जैसे ही उनके बतन खाली होते थे म उठाकर बाहर रख आता था। पढ़ते-पढ़ते कभी उनका अखबार नीचे िग र जाता था तो झपटकर उठा दे ता था। कभी-कभी ये भी सोचता था िक यार म इस अजनबी बूढ़े के िलए यह सब Fय@ करता हंू ? मुझे इस सवाल का जवाब नहीं िमलता था। तीन िदन बाद आज हॉयिनका िफ र रात की यूटी पर है। िपछली बार जब वह रात की यूटी पर थी तो उसके केिबन म1 जाकर मने उसे अमजद अली खां का सरोद सुनाया था। उसे पसंद आया था। उसने मुझे कॉफ ी िपलायी थी। इशार@, दो-चार शcद@, हं ग ेिरयन-अंमेजी शcदकोश की मदद से कुछ बातचीत हई ु थी। पता चला िक वह िववािहत है। लेिकन उसके

िववािहत होने ने मुझे हतोNसािहत नहीं िकया था। Fया िववाह कर लेना िकसी लड़की की इतनी बड़ी ग लती करार दी जा सकती है िक उससे ूेम न िकया जाये? नहीं, नहीं, कदािप नहीं। शादी कर लेने का मतलब है िक उससे ग लती हो ग यी है। और हर तरह की ग लती, भूल को माफ िकया जाना चािहए। आज जब मुझे पता चला िक उसकी यूटी है तो रात के दस बज जाने का इं तजार करने लग ा। Fय@िक उसके बाद ही उसे कुछ फु सत होती थी। इस दौरान मुझसे िमलने एक-दो लोग आये। उनसे बात1 होती रहीं। पापा की लड़की आयी तो म अपने 'िविजटस` को लेकर बाहर आ ग या। दरअसल अब म पापा और उनकी लड़की को बातचीत करने के िलए एकांत दे ने के पg म1 हो ग या था। कारण यह है िक एक िदन मने कनिखय@ से दे खा िक पापा अपनी लड़की को चुपचाप अःपताल का खाना दे रहे ह । लड़की इधर-उधर दे खकर खाना अपने बैग म1 रख रही है। अःपताल म1 रोटी, 'चीज` और दीग र चीज1 खूब िमलती थीं। उहीं म1 से पापा कुछ बचाकर रख लेते थे और शाम को अपनी लड़की को दे दे ते थे। इसिलए अब जब उनकी लड़की आती थी तो म कमरे से बाहर आ जाता था।

आठ बजे के करीब सल चले ग ये। म कमरे म1 आकर लेट ग या। हॉयिनका के बारे म1 सोचने लग ा। मेरे और उसके संबंध मधुर होते जा रहे थे। न केवल उसकी मुःकराहट म1 दोःती और अपनापन बढ़ रहा था बि%क कभी-कभी बहत ु mयारसे मेरा कंधा भी दबा दे ती थी। म भी अपनी तरफ से यही िदखाता था िक उसे पसंद करता हंू । एक बार उसे छोटामोटा भारतीय उपहार भी िदया था। बहरहाल ूग ित थी और अUछी ूग ित थी। चूिं क अःपताल म1 कोरी क%पनाएं करने के िलए काफ ी समय रहता था इसिलए म हॉयिनका के बारे म1 मधुर, कोमल, छायावादी िकःम की क%पनाएं भी करने लग ा थ। वह वैसे बहत ु सुंदर तो न थी। Fय@िक हं ग ेरी म1 मिहलाओं की सुंदरता के मानदšड बहत ु उं चे ह । अFसर सड़क पर टहलते हए ु ऐसी लड़िकयां िदख जाती ह िक लग ता है िक आप ःवग  की िकसी सड़क पर टहल रहे ह । पर वह सुंदर न होते हए ु भी अUछी है। या शायद मुझे लग ती हो। शायद इसिलए लग ती हो िक मुझे थोड़ी-बहत ु घास डाल दे ती है। बहरहाल कारण चाहे जो भी हो म ठीक दस बजे कमरे से बाहर आया। ग ल ै री की बिzयां बंद हो चुकी थीं। चार@ तरफ सनाटा था। डॉFटर अपने कमर@ म1 थके-मारे सो रहे ह@ग े। हॉयिनका अपने केिबन म1 बैठी कोई पिऽका पढ़ रही थी। मुझे दे खते ही उसने पिऽका रख दी। मुझे बैठने के िलए कहा। वह कॉफ ी पी रही थी। छोटे -से कप म1 काली कॉफ ी। मुझे भी दी। म अमृत ू -फ टी बात@ के बाद मने उसे 'वाकमैन` पर िसतार समझकर पीने लग ा। इधर-उधर की टटी सुनाया। म खुद हं ग ेिरयन मिहलाओं की पिऽका के पने पलटता रहा। कॉफ ी ने मुंह का

मजा चौपट कर िदया था लेिकन Fया कर सकता था। िसतार सुनने के बाद उसने 'वाकमैन` मुझे वापस कर िदया। मने मुःकराकर उसकी तरफ दे खा। वह सुंदर लग रही थी। वही नींद म1 डू बी आंख,1 िबखरे हए ु बाल, लाल और कुछ मोटे ह@ठ, शरारत से भरी आंख1। मने धीरे से एक हाथ उसके कंधे पर रखा और कुछ आग े बढ़ा। उसकी आंख@ म1 मुःकराहट नाच उठी। वह कुछ नहीं बोली। बि%क शायद मौन ःवीकृ ित। ग ल ै री का अंधेरा, बाहर लै प पोःट@ से आती पीली रोशनी, पेड़@ पर चमकती सफे द बफ , दरू से आती ःपq आवाज1। मने अपना चेहरा और आग े बढ़ाया। इतना आग े िक उसका चेहरा 'आउट ऑफ फ ोकस` हो ग या। उसकी सांस1 मुझसे टकराने लग ीं। ह@ठ@ पर कॉफ ी, िसग रे ट और 'िलिपिःटक` का िमला-जुला ःवाद था। ह@ठ@ के अंदर एक दसरा ःवाद था िजसम1 न तो ू िमठास थी और न कड़वाहट। उसका चेहरा एक ओर झुकता चला ग या। मेरे हाथ कंधे से हटकर उसकी पीठ पर आ ग ये थे। उसके हाथ भी िन—ल नहीं थे। जब म उसे दे खा पाया तो उसके चेहरे पर बड़ा दोःताना भाव था। उसने मेरा हाथ पकड़ रखा था। उसकी mयाली म1 कॉफ ी बच ग यी थी। वह उसने मुंह म1 उड़े ल ली। म उठ ग या। 'िवसोतलात आशरा` का एFसच1ज हआ। कल मने उसे कुछ और नया संग ीत सुनाने का वायदा िकया। उसने ु हं सकर ःवीकार िकया।

ये कुछ औपचािरक और अनौपचािरक के बीच वाली बात हो ग यी थी। म कमरे म1 आया तो इतना खुश था िक यह सोचा ही नहीं िक वहां पापा लेटे ह@ग े। पापा िबलकुल सीधे लेटे थे। उनके सफे द बाल िबखरे हए ु थे। उन पर िखड़की से आती चांदनी पड़ रही थी। पापा ू का चेहरा फ िरँत@ जैसा शांत लग रहा था। िबलकुल काम, बोध, माया, मोह से अछता। एक अजीब तरह की आlयािNमकता छायी हई ु थी। ऐसा लग ता था जैसे वे अःपताल के बेड पर नहीं अपने ताबूत म1 कॄ के अंदर लेटे ह@। उनके चेहरे से दैवी xयोित फ ट रही थी। म एकटक उह1 दे ख रहा था। इससे पहले के ¥ँय के बीच म कोई तारत य ःथािपत करने की कोिशश कर रहा था। पर मुझे सफ लता नहीं िमल रही थी। मुझे लग ने लग ा था िक कमरे म1 नहीं ठहरा जा सकता। म बाहर आ ग या। हॉयिनका अपने केिबन म1 थी पर म उधर नहीं ग या। दसरी तरफ मुड़ ग या और एक लंबी, िवशाल िखड़की से बाहर दे खने ू लग ा। पzीिवहीन लंबे-लंबे पेड़@ की हवा म1 िहलती शाखाएं, जमीन पर चमकती बफ , लोहे की रे िलंग से आग े फु टपाथ पर दिधया रोशनी और उसके भी आग े मु;य सड़कपर पर ू उं चे-उं चे पीली रोशनी फैलाते लै प पोःट खड़े थे। नीचे से कार@ की हे ड लाइट1 ग ुजर रही थीं। िखड़की के बाहर का पूरा ¥ँय ूकाश, अंधकार, ग ित और िःथरता का एक कलाNमक क पोजीशन-सा लग रहा था। तेजी से ग ुजरती कार1 दे खकर यह अजीब बेवकूफ ी का ;याल

आया िक इनम1 कौन बैठा होग ा? आदमी या औरत? pयापारी, अपराधी, कमचारी, िकसान, नेता, अlयापक, पऽकार, छाऽ, ूेमी युग ल? कौन होग ा? Fया सोच रहा होग ा? उबाऊ और नीरस जीवन के बारे म1 या चुटिकय@ म1 उड़ा दे ने वाली िजंदग ी के बारे म1? िफ र अपने पर हं सी आयी। सोचा कोई भी हो सकता है, कुछ भी सोच रहा होग ा, तुमसे Fया मतलब, जाओ सो जाओ। लेिकन िफ र पापा की याद आ ग यी। अंदर जाने म1 एक अजीब तरह की िझझक पैदा हो ग यी।

मुझे अःपताल म1 इतने िदन हो ग ये थे िक और म उस जीवन म1 इतना रम ग या था िक लग ा अब घर वापस ग या तो अःपताल 'िमस` क4ंग ा या शाम घर वापस लौटने के बजाय अःपताल आ जाया क4ंग ा। Fय@िक अब म वाड म1 शायद सबसे सीिनयर मरीज था इसिलए िझझक िमट ग यी थी। म वाड के 'िकचन` तक म1 चला जाता था। अपने िलए चाय बना लेता था। ग ल ै री म1 खूब टहलता था। नये मरीज@ से बात करने की कोिशश करता था। पुराने मरीज@ को जान-पहचान वाली 'हे लो` करता था। ये दे खना भी मजेदार लग ता था िक मरीज आते ह तो उनके चेहर@ पर Fया भाव होते ह । ऑपरे शन के बाद कैसे लग ते ह और ठीक होकर वापस जाते समय उनके चेहर@ पर Fया भाव होते ह । और कुछ नहीं तो सुंदर नसž और लेड ी डॉFटर@ की चाल दे खता था। दे खने वाली चीज@ म1 पापा की मेज पर रखा जूस का िडcबा भी था िजसे म कई िदन से उसी तरह दे ख रहा था जैसा वह था। पापा ने उसे नहीं खोला था। वह जैसे का तैसा कई िदन से वैसा ही रखा था।

हं ग ेिरयन म नहीं जानता लेिकन इतना मालूम है िक संसार म1 िकसी भाषा के समाचारपऽ म1 कई िदन तक 'ूमुख शीषक` एक नहीं हो सकता। पापा जो अखबार तीन िदन से पढ़ रहे थे उसम1 मुझे ऐसा लग ा। यानी वे तीन िदन पुराना अखबार तीन िदन से पढ़ रहे थे। मुझे अखबार पर ग ुःसा आया। यह ताजा अखबार की बदनसीबी थी िक वह पापा तक नहीं पहंु चता। दोपहर को अखबार बेचने वाला आया और पापा सो रहे थे तो मने उससे नया अखबार लेकर पापा की मेज पर रख िदया और पुराना बाहर रख आया। पापा जब उठे तो उह1 नया अखबार िमला। वे समझ नहीं पाये िक यह कैसे हो ग या। म बताना भी नहीं चाहता था।

हॉयिनका दो-तीन िदन के 'ग प ै ` के बाद रात की यूटी पर ही आती थी। म बराबर उससे िमलता था। लेिकन एक आध बार भाषा की बाध के कारण काफ ी खीज ग या और सोचा िकसी हं ग ेिरयन िमऽ के माlयम से कभी हॉयिनका से लंबी बातचीत क4ंग ा। हमारी िमऽता

म1 शcद@ का अभाव अब बुरी तरह खटकने लग ा था और लग ता था इस सीमा को तोड़ना ज4री है। एक िदन शाम को जब मािरया आयीं तो मने उनसे अपनी समःया बतायी। उह@ने कहा, 'ठीक है, आप दभािषए के माlयम से ूेम करना चाहते ह ।' ु

मने कहा, 'नहीं, ये बात नहीं है। लेिकन मुझे लग ता है िक अब मुझे उसके बारे म1 कुछ अधिक जानना चािहए। हो सकता है उसके मन म1 भी यह हो।' खै र तय पाया िक शाम के ज4री काम जब वह िनपटा लेग ी तो हम उसके केिबन म1 जाय1ग े और मािरया जी के माlयम से बातचीत होग ी। म खुश हो ग या िक मेरी अमूत क%पनाओं को कुछ ठोस सहारा िमल सकेग ा।

हम जा हॉयिनका के केिबन म1 ग ये तो वह पिऽका पढ़ रही थी और कॉफ ी पी रही थी। मािरया ने उसे जब मेरे और अपने आने का कारण बताया तो उसके चेहरे पर मुःकराहट फैलती चली ग यी। मने मािरया से कहा, पहले तो इसे बताइये िक मुझे इस बात का िकतना द:ु ख है िक हं ग ेिरयन नहीं बोल सकता और उससे बातचीत नहीं कर सकता। यही वजह है िक म न उससे वह सब पूछ सका या कह सका जो चाहता था। मेरी बात@ पर वह लग ातार मुःकराये जा रही थी। 'ये कहां रहती है?' 'बुदापैँत से दरू एक छोटा-सा शहर है वहां रहती है।' 'वहां से आने म1 िकतना समय लग ता है?' 'तीन घंटे।' 'तीन घंटे आने म1 और तीन ही जाने म1?' 'जी हां।' 'यहां Fय@ नहीं रहती है?' 'यहां झलैट@ के िकराये इतने xयादा ह िक वह 'एफ ोड ` नहीं कर सकती . . .और वहां इसने िकँत@ पर एक मकान खरीद िलया है।' 'िकतनी िकँत दे नी पड़ती है?' 'पिह हजार फ ोरे त महीना।' 'और इसे तन;वाह िकतनी िमलती है?'

'सऽह हजार फ ोरे त. . .' 'तो कहां से खाती-पीती है?' 'इसका पित भी काम करता है।' 'Fया काम करता है?' 'चौकीदार है. . .िकसी फैFशी म1।' सुनकर मुझे लग ा िक यह िनतांत अयाय है। सुंदर मिहलाओं के पितय@ को उनकी पि†य@ की सुंदरता के आधार पर नौकरी िमलनी चािहए। 'इसकी एक दो साल की बUची भी है।' 'उसे कौन दे खता-भालता है?' 'िदन म1 ये दे खती है. . .कभी-कभी इसकी मां और रात म1 इसका पित. . .यह कह रही है िक उसकी िजंदग ी काफ ी मुिँकल है। लेिकन घर-पिरवार की या िनजी समःयाएं यह अपने साथ अःपताल म1 नहीं लाती। यहां तो हर मरीज के साथ हं सकर बात करनी पड़ती है।' यह सुनकर म चyक ग या। 'हर मरीज` म1 तो म भी आ ग या और 'करनी पड़ती है` का मतलब िववशता है। कुछ gण म खामोश रहा। पता नहीं Fय@ मने मािरया से कहा, 'इससे पूिछए िक इसकी सबसे बड़ी इUछा Fया है? यह Fया चाहती है िक Fया हो? बड़ी ;वािहश, अिभलाषा?' 'ये कह रही है िक इसकी सबसे बड़ी कामना यही है िक हर महीने मकान की िकँत1 अदा होती रह1 और मकान अपना हो जाये. . .और यह भी चाहती है िक उसे एक बेटा भी हो। यानी एक बेटी, एक बेटा और अपना मकान।' 'ठीक है, ठीक है. . .बहत ु अUछा. . .अब चल1।' म थोड़ा घबराकर बोला। मािरया मुःकराने लग ीं बहत ु अथपूण और कुछ-कुछ pयं™याNमक। कल पापा का ऑपरे शन है। आज वे अUछी तरह नहाये ह । अUछी तरह कंघी की है। म आज उनसे आंख िमलाने की िह मत नहीं कर सकता। उनकी धुध ं ली आंख@ म1 दे खना आज मुिँकल काम है।

शाम के वj कुछ ज%दी ही उनकी लड़की आ ग यी। आज वह बहत ु xयादा उदास लग रही है। दोन@ धीमे-धीमे बात1 करने लग े। पापा की आवाज म1 सपाटपन है। वे बोलते-बोलते क जाते ह । कुछ अंतराल पर थोड़ी बातचीत होती है। िफ र दोन@ िसफ एक-दसरे को ू

दे खते ह । पापा की आंख1 ग हरी सोच म1 डू बी हई ु ह । वे छत की तरफ दे ख रहे ह । लड़की िखड़की के बाहर दे ख रही है। बाहर से आवाज1 आ रही ह । पापा ने कुछ कहना शु4 िकया। लड़की शायद सुन नहीं पा रही थी। वह और अधिक पास िखसक आयी। उसी वj मािरया कमरे म1 आयीं। उनका आना दैवी कृ पा जैसा लग ा। अभी वे अपना ओवरकोट, भारी-भरकम टोपी उतारकर बैठने भी न पायी थीं िक मने फ रमाइश कर दी

'जरा बताइये. . .Fया बातचीत हो रही है?' 'आप भी कुछ अजीब आदमी ह !' वे हं सकर बोलीं। 'कैसे?' 'पूरे अःपताल म1 आपको दो ही लोग पसंद आये ह । एक पापा और दसरी हॉयिनका। है ू ना?' 'हां है।'?

'और दोन@ म1 अ¡त ु सा य है।' वे हं सीं। 'दे िखए, बात मत टािलए. . .पापा कुछ कह रहे ह . . .जरा सुिनए Fया कह रहे ह ।' कुछ सुनने के बाद मािरया बोलीं, 'पापा कह रहे ह अब म िकसी से नहीं डरता। अब मेरा कोई Fया िबग ाड़ सकता है। म सच बोलूंग ा. . .' मािरया जी चुप हो ग यीं। पापा भी चुप हो ग ये थे। बातचीत का चूिं क ओई ओर-छोर न था इसिलए म सोचने लग ा ये पापा Fया कह रहे ह ? अब िकसी से नहीं डरते. . .मतलब पहले िकसी से डरते थे। िकससे डरते थे? बूढ़ा आदमी, जो हर तरह से अUछा नाग िरक मालूम होता है, िकसी से Fय@ डरे ग ा? और अब वह डर नहीं रहा। यह कैसा डर है जो पहले था अब खNम हो ग या? इस पहले को सुलझाना मेरे बस की बात न थी। म पूछ भी नहीं सकता था। िकसी के डरने का कारण पूछना वैसे भी असoयता है और िनि—त 4प से अग र डर िकसी बूढ़े आदमी का हो तो और भी। पापा की दसरी बात समझ म1 आती है, अब उनका कोई Fया िबग ाड़ सकता, Fय@िक यह ःपq है ू िक अब उसका सामना सीधे मृNयु से है। और जो कॄ म1 पैर लटकाये बैठा हो उसे Fया सजा दी जा सकती है? सबसे बड़ी सजा तो मृNयुदšड ही है न। सबसे बड़ी इUछा जीिवत रहने की ही है न। तो जो इनसे उपर उठ ग या हो उसका कोई कानून, कोई समाज, कोई pयवःथा Fया िबग ाड़ सकती है? और जब उनका कोई कुछ िबग ाड़ नहीं सकता तो वे 'सब कुछ` कह सकते ह । जो महसूस करते ह बता सकते ह । हद यह है िक 'सच` तक बोल सकते ह । सच-एक ऐसा शcद तो िघसते-िपटते िबलकुल िवपरीत अथ दे ने दे ने लग ा है।

लेिकन चौरासी वषuय कसर-पीिड़त पापा, आठ घंटे का ऑपरे शन होने से पहले अग र 'सच` Fय@ नहीं कह िदया? फैज की पंिjयां याद आ ग यीं 'हफे हक िदल म1 खटकता है जो कांटे की तरह। आज इजहार कर1 और खिलश िमट जाये।` तो पापा आज वह सNय कहना चाहते ह जो उनके िदल के बोझ को ह%का कर दे ग ा। ठीक है पापा, कहो, ज4र कहो। कभी, कहीं, कोई, िकसी तरह ये कहे तो िक 'हक` Fया है?

अग ले िदन लंबे इं तजार के बाद शाम होते-होते पापा ऑपरे शन िथयेटर से वापस लाये ग ये तो लग ा जैसे तार@, नलिकय@, बोतल@, बैग @ का एक ितिलःम है जो उनके चार@ ओर िलपट ग या है। पता नहीं िकतनी तरह की दवाएं, िकतनी जग ह@ से पापा के शरीर के अंदर जा रही थीं और शरीर से Fया-Fया िनकल रहा था जो बेड के नीचे चटकते बैग @ म1 जमा हो रहा था। इन सबम1 जकड़े पापा को दे खने की िह मत नहीं थी। वे िबलकुल शांत थे, आंख1 बंद थीं। शायद बेहोश थे। वे सब बात1, वे सब डर, जो मेरे अंदर िछपे बैठे थे, सामने आ ग ये। पापा. . .बेचारे पापा. . .नस¦ थोड़ी-थोड़ी दे र के बाद आ रही थीं और आवँयक कायवाही कर रही थीं। कुछ दे र बाद उनकी लड़की आयी। नस से बातचीत करके चली ग यी। रात म1 म कई बार उठा लेिकन पापा की हालत म1 कोई बदलाव नहीं दे खा। न िहल रहे थे, न डु ल रहे थे, न खराटे ले रहे थे। बस ™लूकोस की टपकती बूंद1 ही बताती थीं िक सब कुछ ठीक है। रात म1 कई बार नस आयी, उसने बोतल1 बदलीं, थै िलयां बदलीं और पापा को टे ूेचर वग रैा िलया और चली ग यी।

रात म1 मुझ तरह-तरह से ;याल आते रहे । कुछ बड़े भयानक ;याल थे। जैसे अचानक नस घबराकर खट-खट करती हई ही gण कई डॉFटर आ जाय1ग े। ू ु बाहर जायेग ी। दसरी पापा को बाहर िनकाला जायेग ा और िफ र कुछ दे र बाद दो-तीन लोग @ के साथ पापा की लड़की आयेग ी। वह िससक रही होग ी। उसकी आंख1 लाल ह@ग ी। वह धीरे -धीरे पापा का सामान समेटेग ी। पापा का चँमा, उनकी डायरी, उनका कलम, उनके कपड़े , जूते, तौिलया, साबुन और वह छोटी-सी ग ठरी िजसम1 से स;त बदबू आती है। मेज पर रखा जूस का वह िडcबा उठायेग ी जो अब तक बंद है। दराज खोलेग ी तो उसम1 से कुछ खाने का सामान, ु -कांटा और च मच िनकलेग ा। इस सबके दौरान वह रोती रहे ग ी। साथ वाले लोग छरी साNवना के एक-आध शcद कह1 ग े। िफ र सामान समेटकर वह पापा के बेड पर एक नजर डालेग ी और चीखकर रो पड़े ग ी। उसी समय बड़ी नस जायेग ी तो ताजी हवा अंदर आयेग ी। छोटी नस¦ खटाखट बेड कवर, तिकये िग लाफ और चादर1 बदल द1 ग ी। लोहे के सफे द बेड को साफ कर द1 ग ी और बाहर िनकल जाय1ग ी। अब वहां िसफ म बचूगं ा। और अग र म िकसी

को बताना भी चाहंू ग ा िक बेड पर पापा ने अपनी िजंदग ी से सबसे सUचे gण ग ुजारे ह तो िकसी को यकीन नहीं आयेग ा।

दो िदन तक पापा की हालत िब%कुल एक-सी रही। उसके बाद मेरा अपना छोटा वाला ऑपरे शन हआ और म पड़ ग या। एक-आध िदन के बाद करीब शाम के वj जब मेरे पास ु मािरया और पापा के पास उनकी लड़की बैठे थे तो सीिनयर नस आयी और बोली िक पापा को बैठाया जायेग ा। उसने पापा का बेड ऊँचा िकया। पापा दद से िच%लाने लग े। िफ र बेड नीचा कर िदया ग या। लेिकन नस ने कहा िक इस तरह काम नहीं चलेग ा। आिखर दोन@ के बीच फैसला हआ िक िजतना उं चा पहल िकया ग या था उसका आध उं चा कर ु िदया जाये। उस िदन मािरया ने बताया िक पापा कह रहे ह िक 'भग वान की कृ पा से अब म डे ढ़-दो साल और जी जाऊँग ा।' मािरयाजी को इस वाFय पर बड़ी हं सी आयी थी। उह@ने कहा था िक भग वान पर ऐसा िव[ास हो तो िफ र Fया समःया है। पापा अपनी लड़की को यह भी बता रहे थे, उनका खाना बंद है और वे सूखकर कांटा हो ग ये है। पापा िसफ 'िलिFवड डाइट` पर थे। जूस का सौभा™यशाली िडcबा खुल ग या था। उसके अलावा पापा को कॉफ ी और सूप िमलता था।

एक-आध िदन बाद म बाथ4म से कमर म1 आया तो एक अ¡त ु ¥ँय दे खा। बेड का सहारा िलये पापा खड़े थे। उनके सफे द बाल िबखरे थे। सफे द लंबा-सा अःपताल का चोग ा लटक रहा था। हाथ और पैर िबलकुल काले ग ये थे। शरीर के चार@ ओर कुछ नलिकयां और बैग झूल रहे थे। उनके चेहरे पर कोई भाव न थे। अपने खड़े रहने पर वे इतना lयान दे रहे थे िक और कुछ pयj करने का उनके पास समय ही न था। मने सोचा िक उनके खड़ा होने पर बधाई दं ू या कम-से-कम हं ग ेिरयन शcद 'यो` 'यो` कहंू िजसका मतलब 'अUछा` 'सुंदर` आिद है। लेिकन िफ र लग ा िक कहीं म पापा को 'िडःटब` न कर दं ।ू उसी तरह, जैसे बUचे जब पहली-पहली बार खड़े होते ह और उह1 दे खकर माता-िपता हं स दे ते ह तो वे धmप से बैठ जाते ह । पापा खड़े रहे । उह@ने एक बार ग द न उठाकर सामने दे खा। एक बार ग द न झुकाकर नीचे दे खा। बेड को पकड़े -पकड़े एक कदम आग े बढ़ाया, उसके बाद वे क ग ये। पापा को खड़े दे खकर यह लग ा िक केवल पापा ही नहीं खड़े ह । उनके साथ न जाने Fया-Fया खड़ा हो ग या है। म एकटक भी नहीं दे ख सकता था। डर था कहीं पापा मुझे दे खता हआ न दे ख ल1। ु

मेरे अःपताल से िनकाल िदये जाने के िदन करीब आ रहे थे। म जानता था िक िजतना यहां आराम है, उतना कहीं और न िमलेग ा। िजतनी यहां शांित है उतनी शायद शांित िनकेतन म1 भी न होग ी। यहां समय अपने वश म1 लग ता है लेिकन बाहर म समय के वश म1 रहता हंू । बहरहाल अःपताल से बाहर जाने का िवचार इस माने म1 तो अUछा था िक ठीक हो ग या हंू लेिकन इस अथ म1 अUछा नहीं था िक बाहर अधिक खुश रहंू ग ा। अःपताल के जीवन का म इतना अoयःत हो ग या था या वह मुझे इतना पसंद आया था िक बाहर िनकाल िदये जाने का िवचार एक साथ खुशी और अफ सोस की भावनाओं का संचार कर रहा था। हॉयिनका ने भी एक बार मजाक म1 कहा था िक मेरे अःपताल से चले जाने के बाद म उसे बहत ु याद आउं ग ा। मने कहा िक अःपताल के बाहर भी कहीं िमला जा सकता है। लेिकन िफ र खुद अपने ूःताव पर शिम„दा हो ग या था दो-तीन घंटे की याऽा और पूरी रात अःपताल म1 यूटी के बाद सुबह सात बजे तीन घंटे की याऽा करने के िलए िनकलने वाले से 'कहीं बाहर` िमलने की बात करना अपराध लग ा।

पापा को खाना िदया जाने लग ा था। अब वे अपनी लड़की से यह िशकायत करते थे िक खाना कम िदया जाता है। कई िदन भूखे रहने के बाद उनकी खुराक शायद बढ़ ग यी थी। लेिकन इस संबंध म1 कुछ नहीं िकया जा सकता था। अःपताल वाले िनयिमत माऽा म1 ही खाना दे ते थे। पापा अब चूिं क थै िलयां लटकाये चलने िफ रने लग े थे इसिलए भी भूख खुल ग यी होग ी। ऑपरे शन के बाद पापा के पास से वह दगु ध „ आना बंद हो ग यी थी, लेिकन ली खुल जाती थी िजसम1 टƒटी आती थी। उसके खुलते ही कभी-कभी वह 'ƒयूब` या थै „ कमरे म1 भर जाती थी और बाहर िनकलने के अलावा कोई राःता न बचता भयानक दगु ध था। एक िदन यह हआ िक पापा की टƒटी वाली थै ली खुल ग यी। उह@ने ःवयं बंद करने ु की कोिशश की तो वह और xयादा खुल ग यी। म कमरे से बाहर चला ग या। कुछ दे र बाद कमरे म1 आया तो दे खा पापा खड़े हए िलय@ से जूझ रहे ह । टƒटी की थैली ग ंदग ी ु थै िनकलकर िबःतर पर, फ श पर फैल ग यी है। पापा का चोग ा उतर ग या है। वे िबलकुल नंग े खड़े ह । सफे द बाल िबखरे हए िलय@ को लग ाने की कोिशश कर रहे थे। ु ह । पापा थै नस को नहीं बुला रहे । यह दे खकर अUछा लग ा। पापा अब ये काम अपने आप कर सकते ह । लेिकन मने नसž से जाकर कहा। वे आयीं। पापा और कमरे की पूरी सफ ाई हो ग यी। पापा नये चोग े म1 लेट ग ये। चँमा लग ाकर अखबार ले िलया। िखड़की खोल दी थी। म भी लेट ग या, अमजद अली खां को सुनने लग ा।

पापा कुसu पर भी अFसर बैठ जाते थे। एक िदन मने दे खा िक पापा चँमा लग ाये, ग ंभीर

मुिा म1, हाथ म1 कलम िलये कुसu पर बैठे ह । सामने मेज पर कुछ काग ज रखे थे। म समझा शायद कुछ िहसाब िलख रहे ह , लेिकन कलम चलने की रझतार से कुछ समझ म1 नहीं आया। न तो वे पऽ िलख रहे थे, न शायरी िलख रहे थे, न िहसाब कर रहे थे। वे कलम को हाथ म1 पकड़े ग ंभीरता से काग ज की तरफ दे खकर दे र तक कुछ सोचते थे और िफ र िझझकते हए ु कलम उठाते थे। एक-आध शcद िलखते थे और िफ र कलम क जाता था। एकामता बहत ु ग हरी थी। माथे पर लकीर1 पड़ी हई ु थीं। िचंता म1 डू बे थे जैसे कोई ऐसा काम कर रहे ह@ जो उनके िलए ज4री से भी xयादा ज4री हो। यह जानने के िलए, ऐसा Fया हो सकता है, म उठा और टहलने के बहाने पापा के पीछे पहंु च ग या। अब म दे ख सकता था िक वे Fया कर रहे ह । वाह पापा वाह! तो ये ठाठ ह । इसका मतलब ह अब तुम िबलकुल 'चंग े` हो ग ये हो। लाटरी वह भी यूरोप की सबसे बड़ी लाटरी. . .सौ सा पापा? चच बनवाओग े? उस भग वान िमिलयन फ ोरे त। भई वाह. . .Fया करोग े इतना पै का घर िजसकी कृ पा से तुम साल-डे ढ़ साल और जीओग े या अपने िलए शानदार कोठी बनवाओग ?े या हर साल जाड़@ म1 ृांस के समुि तट पर जाया करोग े? समुि म1 नहाओग े? ख़ूबसूरत ृांसीसी लड़िकय@ के साथ 'बीच` पर लेटकर अपना रं ग सुनहरा करोग े? या ये सौ िमिलयन डालर तुम अपनी लड़की को दे दोग े? या महं ग ी-महं ग ी ग ािड़यां खरीदोग े। जायदाद बनाओग े या कोई सरकारी फैFटरी खरीद लोग े जो आजकल धड़ाधड़ िबक रही ह ? Fया करोग े पापा? Fया करोग े सौ िमिलयन फ ोरे त? ये बताओ िक अग र ये लाटरी तु हारी नाम िनकल आयी तो तु ह1 ये सूचना दे ने का जोिखम कौन उठायेग ा? यह सुनकर तु ह1 Fया लग ेग ा िक मरने से डे ढ़-दो साल पहले तुम करोड़पित हो ग ये हो? िफ र तु हारे िलए एक िमनट एक महीने जैसा कीमती होग ा। तब तुम अपना एक िमनट िकतनी होिशयारी, चतुराई, सतकता, समझदारी से ग ुजारोग े? कुछ भी कहो पापा, सौ िमिलयन िमलने के बाद तु हारी परे शािनयां बढ़ ही जाय1ग ी। लेिकन यह बड़ी बात है। िकतने ऐसे लोग िमल1ग े जो तु हारी उॆ तक पहंु चते-पहंु चते इUछाओं से खाली हो जाते ह । तु हारे पास सौ िमिलयन फ ोरे त खच करने की योजना भी होग ी। Fय@िक हर लाटरी खेलने वाले के पास इस ूकार की एक योजना होती है। तु हारे पास योजना है तो तुम सोचते हो अपने बारे म1, पिरवार के बारे म1, लोग @ के बारे म1। यह बहत ु है पापा, बहत ु है। अUछा पापा, एक बात पूछंू? कान म1, तािक कोई ओर सुन न ल1। ये बताओ िक यह इUछा- मतलब लाटरी िनकल आने की इUछा कब से है तु हारे मन म1? Fया मंदी के िदन@ से है जब तुम जवान और बेरोजग ार थे? या उस समय से ह जब जमन और 4सी ग ोिलय@ से बचने तुम िकसी अंधेरे तहखाने म1 िछपे हए ु थे? Fया यह इUछा उस समय भी भी तु हारे मन म1 जब तुम िवजयी लाल सेना का ःवाग त कर रहे थे? बाद के िदन@ म1 बांित के बीत ग ाते हए ु या सहकारी आंदोलन म1 रात-िदन िभड़े रहने के बाद भी तुम यह सपना दे खने के िलए थोड़ा-सा समय

िनकाल लेते थे? माफ करना पापा, म ये सब इसिलए पूछ रहा हंू िक ऐसे सपने दे खना कोई बुढ़ापे म1 शु4 नहीं करता। है न? ***-***

13 त;ती लोग अFसर मुझसे कहते या पूछते ह या िसफ इस हकीकत की तरफ इशारा करते ह िक मुझे बहत ु -सी आवँयक जानकािरयां नहीं ह । ग िणत, pयाकरण खग ोलशाŽ, पुरातNव जैसे बहत ु से िवषय@ के बारे म1 मुझे कुछ नहीं मालूम। यही नहीं, सामाय जानकािरयां भी नहीं। उदाहरण के िलए आप कह1 िक म दस िचिड़य@, फ ल@, मछिलय@ या पNथर@ के नाम ूाचीनतम सoयता कौनबता दं ू तो नहीं बता सकता। यिद आप पूछ1 िक िव[ की दसरी ू सी थी या भूमlय रे खा कहां से ग ुजरती है तो म मुंह खोल दं गू ा। शायद यही वजह है िक कहा जाता है, मेरी िशgा कुछ ठीक-ठाक नहीं हई। लोग उन ःकूल@ और िव[िव\ालय@ म1 ु नाम जानना चाहते ह जहां म पढ़ा हंू । कुछ लोग मेरे ग ुजन@ के नाम पता लग ाने की धृqता करते ह । अब म Fया कहंू , कमीनेपन की भी हद होती है।

बहरहाल, इन सवाल@ से घबराकर मने एक याऽा शु4 की है, िजसम1 चाहता हंू आप मेरे साथ चल1। लेिकन कोई मजबूरी नहीं है। लेिकन आप इनकार कर1 तो कोई खूबसूरत-सा बहाना ज4र तलाश कर1 । यह मुझे पंसद है। समझ जाउं ग ा िक बाहना बना रहे ह लेिकन िदन नहीं दखना चाहते। आज के जमाने म1 यह भी बड़ी बात है। म िबलकुल बुरा नहीं ु मानूंग ा। लेिकन अग र आप मेरे साथ चल1ग े तो उसम1 कम-से-कम आपको कोई नुकसान न होग ा। हां, अग र आप मेरी धारणा के िवपरीत समय को मू%यवान समझते हो तो बात दसरी है। अग र आप ऐसा नहीं समझते तो मेरे साथ चल1। बकौल नािसर काजमी 'सब मेरे ू दौर म1 मुंहबोलती तःवीर1 ह । कोई दे खे मेरे दीवान के िकरदार@ को।` कहां जाता है िक जब म सात-आठ साल का था तो मेरी पढ़ाई का सवाल उठा। इतनी दे र से इसिलए िक पिरवार म1 कई पीिढ़य@ ने पढ़ने-िलखने की कोई ज4रत न महसूस की थी। सग ड़ दादा को तो कलम-काग ज से ऐसी नफ रत थी िक वे अपनी जमींदारी का िहसाबिकताब करने वाले मुंिशय@ तक को िलखते-पढ़ते दे खना बदाँत नहीं कर पाते थे। लेिकन सग ड़ दादा बहत ु समय तक पिरवार के आदश न बने रह सके। हां, यह धारणा ज4र बची रही िक लोग नौकरी करने के िलए पढ़ते ह और चूिं क हमारे पास अ%लाह का िदया सब कुछ है, हम िकसी की नौकरी नहीं कर1 ग े तो Fय@ पढ़1 । घर की पढ़ाई बहत ु है। थोड़ी

फ ारसी, थोड़ा िहसाब, थोड़ी अरबी आ जाए तो बहत ु है। हमारे परदादा ने अपने दोन@ लड़क@ को घर की पढ़ाई के बाद पहली बार ःकूल भेजा था। इस वj बड़े लड़के की उॆ सोलह सात की छोटे की चौदह साल थी। यह उनीसवीं सदी के चलचलाव का जमाना था। बड़े लड़के की ःकूल तालीम इस तरह अंजाम तक पहंु ची िक उसकी िकसी टीचर से कहा-सुनी हो ग ई । टीचर ने ग ाली दे दी। उसने टीचर को उठाकर पटक िदया, हाथ-पैर तोड़ िदए और घर आ ग या। परदादा ने इस मामले को बहत ु ग ंभीरता से नहीं िलया। सोचा, जहां बारह मुकदमे चले रहे ह वहां तेरहवां भी चलेग ा। बस छोटे बेटे की तालीम बड़े सुखद कारण@ से अंजाम तक पहंु ची। यानी उनकी शादी हो ग ई। चौथी के बाद उह@ने ःकूल जाना छोड़ िदया।

िजं_ग ी के आिखरी दौर म1 तो नहीं बि%क उससे पहले ही हमारे दादाजान की समझ म1 यह बात आ ग ई थी िक ःकूली िशgा ज4री है। इसकी वजह यह थी िक वे शहर के रईस होने के नाते अंमेज अफ सर@ से उनकी कोिठय@, दझतर@, Fलब@ म1 िमलते थे और दे खते थे िक उनके दरबार@ म1 आमतौर उन काले लोग @ को स मान िमलता है जो टू टी-फ टी ही सही, ग ोराशाही ही सही, लेिकन अंमेजी बोलते ह । पर िचिड़या खेत चुग चुकी थी। यानी दादाजान अपने पढ़ने को सुहाना समय ग ंवा चुके थे इसिलए उह@ने हमारे िपताजी की पढ़ाई का पFका धयान रखा। िपताजी छोटे ही थे िक उनको पढ़ाने के िलए सुबह मौलवी, दोपहर के वj एक माःटर अंमेजी पढ़ाने और शाम के वj एक माःटर िहसाब पढ़ाने आने लग ा। इस तरह दादाजान का इरादा था िक िपताजी की जड़1 मजबूत कर दी जाएं िक अcबा ग िणत से इतना डरने लग े तािक आग े कोई िदFकत न हो। नतीजा यह हआ ु िजतना लोग अ%लाह से भी नहीं डरते। अंकग िणत और बीजग िणत उह1 दो ऐसे िजन लग ते थे जो उह1 दबाकर बैठ ग ए ह@ और लग ातार मार रहे ह@। नतीजा यही िनकला िक आठवीं म1 दो बार लुढ़क ग ए। दसवीं म1 थे िक आजादी िमल ग ई उनको ही,दे श को। दसवीं ही म1 थे िक ग ांधीजी की हNया हो ग ई। िफ र दसवीं ही म1 थे िक जमींदारी खNम हो ग ई। पर कुछ ऐसे ज4री काम थे जो उनके दसवीं म1 लग ातार वईत पास की जब दो बUच@ के बाप बन चुके थे।

अcबा ने मेरी पढ़ाई की तरफ समय से lयान िदया। अब चूिं क जमींदारी नहीं थी। िकसीन-िकसी को नौकरी करनी थी। इसिलए पढ़ाई ज4री हो ग ई थी। मेरी जड़1 मजबूत करने का काम उतने बड़े पैमाने पर नहीं हआ िजतना अcबा का हआ था। मुझे पढ़ाने एक ु ु माःटर आते थे। उनका नाम शराफ त हसै ु न था। ूाइमरी ःकूल के अlयापक थे। पान के

रिसया। जब पढ़ाते तो पान मुंह म1 इस कदर भरा रहता था िक मुंह से आवाज के बजाय पान की छींट1 िनकलती थीं। पढ़ाई के दौरान कई बार वे मुझे घर के अंदर पान लेने भेजते थे, 'जाओ पान लग वा लाओ।' म खुशी-खुशी उठकर भाग ने वाला होता तो कहते, 'इससे पहले जो पान लाए थे वो िकससे लग वाया था?' 'अ मा से।'

'अबकी बड़ी िबिटया से लग वाना।' बाकी िडटे ल मुझे याद थी माट साब के पान म1 कNथा कम चूना xयादा, डली कम िकमाम xयादा. . . माःटर साहब अUछे आदमी थे। मुझे पर िव[ास करते थे। एक बार पढ़ाने के बाद पूछते थे, 'Fय@, समझ ग ए?' म कहता था, 'हां समझ ग या।' और वे िव[ास कर लेते थे। कहते थे 'लड़का जहीन है, ज%दी समझ जाता है। तरFकी करे ग ा।' म यह जानता था िक यह पूछने के बाद िक समझ ग ये वे और कुछ नहीं पूछ1ग े इसिलए हां कर िदया करता था। मुझे लग ता था जैसे 'हां समझ ग या` कहकर मने अपनी िजंदग ी को आसान बना िलया है वैसे ही दसरे लोग Fय@ नहीं करते। मुझे बचपन म1 कुएँ से पानी भरकर लाने वाले िभँती से ू बड़ी हमदद“ थी। म यह चाहता िक मेरे काम की तरह उसका काम भी ह%का हो जाए। लड़कपन म1 कुएँ के पास जाने मनाही थी। एक िदन चला ग या था। कुआं घर के बाहर कोने म1 था। वह मु;य घर से करीब हजार-डे ढ़ हजार फ ीट दरू था। वहां िभँती करीमउ‚ीन पानी भर रहा था। मने उससे िग ड़िग ड़ाकर दरखाःत की थी िक Fया एक बा%टी म भी खींच सकता हंू ? उसने मुझे ऐसा करने िदया था िक तब से म सोचा करता था िक अ%लाह िमयां, तू करीमउ‚ीन का काम ह%का Fय@ नहीं कर दे ता। बहरहाल, बात हो रही थी िक माःटर साहब की तो माट साब मुझ पर िव[ास करते थे। म माट साहब पर िव[ास करता था। अcबा जब भी पूछते थे िक माट साब जो पढ़ाते ह वो समझ म1 आता है तो म कहता था हां आता है जबिक हकीकत यह थी िक जब माट साब पढ़ाते थे तो म करीमउ‚ीन के बारे म1 सोचा करता था यह सोचा करता था िक फ ल@ को अग र बहत ु जोर से मसला जाए तो रं ग िनकाला जा सकता है। और रं ग से बड़ी अUछी तःवीर बन सकती है। या सोचा करता था िक अबकी कमल तोड़ने के िलए िकस तालाब म1 जाना चािहए। या तैरना सीख लूं तो िकतना अUछा हो। वग रैह-वग रैह। लड़कपन म1 माट साब के अलावा कभी-कभी जब जी चाहता था तो अcबा भी पढ़ाते थे। वह वj मेरी उपर बहत ु ही स;त ग ुजरता था जब अcबा कहते थे िक अपनी िकताब1कािपयां लेकर आओ। अcबा िहसाब नहीं पढ़ाते थे। हालांिक वे हाईःकूल थे, म पाँचवी म1

पढ़ता थ। अcबा का ;याल था िक अंमेजी अUछी होनी चािहए। अcबा साल-छह महीने म1 एकाध बार यह ऐलान करते थे िक वे मुझे पढ़ाने जा रहे ह तो उसका असर घर म1 कुछ उसी तरह होता था जैसे हवाई हमले के सूचक सायरन का असर िकसी सैिनक अडे पर होता है। मतलब अ मा जानमाज िबछाकर बैठ जाती थी और दआ ु मांग ती थी िक आज की पढ़ाई के पिरणामःव4प भंयकर िहं सा न हो। घर म1 खाना पकाने वाली औरत मेरी पसंद का खाना चढ़ा दे ती थी िक िपटने के बाद मुझे वह खाना िखलाया जा सके। एक नौकर अर} की पतली छड़ी ले आता था Fय@िक अcबा छड़ी सामने रखकर ही पढ़ाते थे। मेरे साथ ग 1द खेलने वाले नौकर@ के लड़के भाग जाते थे। कोई जोर-जोर से बात नहीं करता था। बहत ु साफ करके एक लालटे न पास रख दी जाती थी िक अंधेरा होने पर फ ौरन जलाई जा सके। एक नौकरानी ह%दी पीसने लग ती थी िक पढ़ाई के बाद मेरी चोट पर लग ाई जाएग ी. . .जनाबेवाला, हो सकता है िक यह िववरण दे ने म1 कुछ अितशयोिj से काम ले रहा हंू लेिकन यह सच है िक अcबा ने मुझे िकस तरह पढ़ाया था आज तक याद है। Fया पढ़ाया था वह भूल चुका हंू । जब पांचवीं पास करने के बाद म छठी म1 आया तो पुराने माट साब को िनकाल िदया ग या और उनकी जग ह नए माट साब, जो सरकारी ःकूल म1 अlयापक भी थे, घर पढ़ाने आने लग े। उनका वेतन उस जमाने के िहसाब से बहत ु ही xयादा था, िजसका उलाहना मुझे िदया जाता था िक तु हारी पढ़ाई पर इतना खच िकया जा रहा है, तुम ठीक से पढ़ा करो। नए माट साब का नाम शुFला माट साब था लेिकन लड़के इह1 पीछे ब™ग ड़ माट साब कहा करते थे। माफ कीिजएग ा, म अपने ग ु का नाम िबग ाड़कर उनका अपमान नहीं कर रहा हंू । न तो मने उह1 यह नाम िदया था और न म इसे अUछा समझता था। म तो केवल बताने के िलए बता रहा हंू । पाप अन पर पड़े ग ा या पड़ा होग ा िजह@ने यह नाम रखा था। तो साहब, ब™ग ड़ माट साब की उॆ चालीस-पतालीस के बीच रही होग ी। कद औसत था। िजःम ग ठीला था। आंख1 छोटी और अंदर को धंसी हई ु थीं। ह@ठ पतले थे। Fलीन शेव रहते थे। ग ाल@ के उपर वाली हिडय@ कुछ अधिक उभरी हई ु थीं। माथा छोटा था। िसर के बाल बड़े अजीबोग़रीब थे। यानी िबलकुल खड़े रहते थे। काले और बेहद मजबूत थे। रोज ही उनसे सरस@ के असली तेल की सुग ंध आती थी। उनकी ग रदन छोटी थी। शायद उनके बाल@ के कारण ही लोग उह1 ब™ग ड़ कहते थे। बहरहाल, खुदा जाने Fया वजह थी।

जैसा िक उपर बताया ग या, ब™ग ड़ माट साब के बाल बहत ु खास थे। उह1 अपने बाल@ पर ग व था। अFसर उसका ूदशन भी करते रहते थे िजसका तरीका बड़ा रोचक होता था।

पढ़ाते-पढ़ाते कभी बाल@ की चचा िछड़ जाती तो पूरे एक घंटे का भाषण और ूैिFटकल हमेशा तैयार रहता था। िवषय की ¨योरी म1 मेरी अधिक िच नहीं थी। ूैिFटकल म1 मजा आता था यानी ब™ग ड़ माःटर अपना िसर झुका लेत थे और मुझसे कहते थे िक म उनके बाल पूरी ताकत से खींच।ूं कभी-कभी म इतनी जोर से उनके बाल खींचता था िक मेरा ू चेहरा लाल हो जाया करता था, लेिकन ब™ग ड़ माट साब का एक बाल भी न टटता था। वे मुःकराते रहते थे। उसका रहःय िछपा था ¨योरी म1। ब™ग ड़ माट साहब कहते थे िक वे साबुन से नहीं नहाते। िसर म1 हमेशा शु+ - अपने सामने िपराया - सरस@ का तेल लग ाते ह । तेल रोज सुबह लग ाते ह । कंघा कभी नहीं करते आिद-आिद। ब™ग ड़ माट साब रोज शाम पांच बजे आते थे। घर के बाहर अहाते म1 कUची कोठरी को लीप-पोतकर 'ःटडी 4म` बनाया ग या था। उसम1 लकड़ी की मेज-कुिसयां और एक अUछा-सा िमƒटी के तेल का ु होती लै प रखा रहता था। ब™ग ड़ माट साह रोज एक घंटे के िलए आते थे। इतवार छƒटी थी। कभी-कभी उनसे नाग ा भी हो जाता था। वह सबसे सुहावनी शाम होती थी। ब™ग ड़ माट साब म1 और चाहे िजतने दोष रहे ह@ वे िहं सक नहीं थे, जबिक ःकूल के दसरे ू अlयापक जैसे िऽपाठी माट साब, खरे माट साब, संःकृ त के पंिडत जी, आट के माट साब वग रैह खाल उधेड़ने के िलए मशहर ू थे। लेिकन इन सबसे िहं सक होने के अलग -अलग कारण हआ ु करते थे और िहं सा pयj करने के तरीके भी जुदा-जुदा थे। जैसे िकसी को छड़ी चलाने का अUछा अoयास था। कोई कुसu के पाए के नीचे हाथ रखवाकर उस पर बैठ जाता था। कोई तमाचे लग ाने और कान खींचने म1 िनपुण था। कोई मुग ा बनाकर उपर बोझ रखा िदया करता था। कोई उं ग िलय@ के बीच म1 प1िसल रखकर उं ग िलय@ को दबाकर अस© पीड़ा पैदा करने का हनर जानता था। बहरहाल, एक ऐसा बाग था िजसम1 ु तरह-तरह के फ ल िखले थे। हां, िऽपाठी माट साब का तरीका बड़ा मौिलक और रोचक था। वे कुसu पर बैठकर लड़के का िसर अपने दोन@ घुटन@ के बीच दबा लेते थे और उसकी पीट पर अपने दोन@ हाथ@ से दोहNथड़ मारते थे। यह करते समय वे 'बोतल-बोतल` कहा करते थे। पता नहीं बोतल Fय@ कहते थे। लड़क@ ने इस सजा का नाम 'बोतल बनाया` रखा था।

एक िदन का िकःसा है, िऽपाठी माट साब ने बैजू हलवाई के लड़के को बोतल बनाने के िलए उसका िसर घुटने म1 दबाया और दोहNथड़ मारा। पता नहीं लड़के को चोट बहत ु xयादा लग ी या वह तड़पा xयादा या िऽपाठी माट साब ने उसे ठीक से पकड़ नहीं रखा ू ग या। उठकर भाग ा। माट साब उसके पीछे दौड़े । वह िखड़की से बाहर कूद था, वह छट ग या। माट साब भी कूद ग ये। वह भाग कर ःकूल के ग ेट से बाहर िनकल ग या। माट साब भी िनकल ग ये। उहीं के पीछे पूरी Fलास 'पकड़ो-पकडो` का शोर मचाती िनकल ग ई।

भाग दौड़ म1 माट साब की धोती आधी खुल ग ई और उनकी चोटी भी खुल ग ई। पर वे सड़क पर उसका पीछा करते रहे । ःकूल के सामने तहसील थी। उसके बराबर म1 कुछ हलवाइय@ की दकान1 थीं। बैजू हलवाई की दकान और उसके पीछे घर था। लड़का दकान ु ु ु म1 घुसा और घर के अंदर चला ग या। पीछे -पीछे माट साब पहँु चे। माट साब कहने लग े, 'िनकालो ससुरउ को बाहर. . .अब तो जब तक हम िदल भर के मार न लेब, हम1 खाया िपया हराम है।' 'पर बात का भई माट सािहब?' बैजू ने पूछा। 'हमारा अपमान िकिहस ही. . .और का बात है।' बैजू समझ ग या। उसकी प†ी भी समझ ग ई। लोग भी समझ ग ए। तहसील के सामने वकील@ के बःत@ पर बैठे मुंशी भी उठकर आ ग ए। थोड़ी ही दे म1 मजमा लग ग या। माट साब िजद ठाने थे िक लड़के को बाहर िनकालकर उह1 सyप िदया जाये। बैजू बहाने बना रहा था। अत म1 उसने कहा िक लड़के ने घर के अंदर से जंजीर लग ा ली है और खोल नहीं रहा है। यह जानकर िऽपाठी माट साब और ग रम हो ग ये। इस नाजुक मौके पर मुंशी अcदल ु वहीद काम आये, जो िऽपाठी के साथ उठते-बैठते थे। मुंशीजी ने कहा, 'ठीक है, िऽपाठी जी, लड़का तु ह1 दे िदया जाएग ा। िजतना मारना चाहो मार लेना, पर यह तमाशा तो न करो। तुम अlयापक हो, यहां इस तरह भीड़ तो न लग ाओ।' िफ र उह@ने सब लड़क@ को डांटकर भग ा िदया। और बैजू से कहा, 'माट साब के हाथ-मुंह धोने को पानी दे ।' इशारा काफ ी था। बैजू ने एक बड़ा लोटा ठं डा पानी िदया। माट साब ने हाथ-मुंह धोया। िफ र बैठ ग ये। बैजू ने करीब डे ढ़ पाव ताजा बफ़ª सामने रख दी। एक लोटा पानी और रख िदया। िऽपाठी जी का ग ुःसा कुछ तो पानी ने ठं डा कर िदया था। कुछ बफ़ª ने कर िदया। बैजू हलवाई ने कहा, 'आप िचंता न करो। साला जायेग ा कहां समझा-बुझा के आपके पास ले आएंग े। दं ड तो ओका िमला चाही।' उसी वj ःकूल का चपरासी आया और कहा िक िऽपाठी माट साब को हे ड माःटर साहब याद करते ह । कुछ िदन@ बाद यह पूरा िकःसा एक बड़े रोचक मोड़ पर आकर धीरे -धीरे खNम हो ग या। बैजू हलवाई के लड़के को एम.ए. की िडमी िमल ग ई। यानी उसका िशgाकाल समा हो ग या। िऽपाठी माट साब महीने म1 दो-तीन बार ःकूल आते वj जब जी चाहता था बैजू हलवाई की दकान की तरफ मुड़ जाते थे। उह1 दे खते ही बैजू का लड़का घर के अंदर ु चला जाता था। बैजू से माट साब पूछते थे, 'कहां ग वा ससुरा?' बैजू बहाना बना दे ता था। माट साब भी समझते थे िक टाल रहा है। तब बैजू उह1 एक दोना जलेबी या बेसन के लडू या कलाकंद पकड़ा दे ता था। माट साब ब1च पर बैठकर खाते और पानी पीते थे। बैजू

और उनके बीच कुछ ग हरे आlयािNमक िवषय@ पर बातचीत होती थी िक यिद हम राम, रामहु, राम: वग रैह-वग रैह सीख भी ल1ग े तो Fया होग ा! कुछ िदन@ बाद यह िव[ास हो ग या था िक कभी न सीख सक1ग े और कुछ िदन@ बाद इस नतीजे पर पहँु चे थे िक pयाकरण पैदा ही इसिलए हई ु है िक हम1 िपटने के अवसर िमलते रह1 । अग र म सभी अlयापक@ के सजा दे ने के तरीक़@ का पूरा िववरण दं ू तो बहत ु से पने काले हो जाएंग े। आप ऊब जाएंग े। लग ेग ा म ःकूल का नहीं पुिलस थाने का िववरण दे रहा हंू । इसिलए मुख़तसर िलखे को बहत ु जानो। हमारे ःकूल का नाम ग वनमट नामल ःकूल था। नाम शायद ःकूल खोले जाने के बाद रखा ग या था Fय@िक वहां हर चीज 'एबनामल` थी। लेिकन शहर के अय ःकूल@ की तुलना म1 यह बहत ु आदश ःकूल माना जाता था Fय@िक यहां कमरे , कुिसयां, cलैकबोड ःकूल@ की तुलना म1 पढ़े -िलखे तथा ूिशिgत थे। हम आिद थे। अlयापक भी दसरे ू अFसर ग व भी िकया करते थे िक हम शहर के सबसे अUछे ःकूल म1 पढ़ते ह । ब™ग ड़ माट साब ग व करते थे िक वे सरकारी नौकर ह । िरटायर होने के बाद उह1 बाकायदा प1शन िमलेग ी। मेरा िवषय चूिं क ग ुजन@ पर क1िित हैइसिलए लौटकर िफ र ब™ग ड़ माट साब पर आता हंू िजनका ूभाव आज तक मुझ पर हैयानी उह@ने मुझे जो िसखाया या नहीं िसखाया, जो बनाया या िबग ाड़ा वह आज तक मरे अंदर झलकता है। म उनका आभारी हंू । ब™ग ड़ माट साब अनौपचािरक िशgा के महNव को उस जमाने म1 भी बहत ु ग हराई से समझते थे। यही कारण था िक अFसर ग िणत पढ़ाते-पढ़ाते वे अपनी घरे लू समःयाओं तक पहंु च जाते थे। उनकी एक समःया, छोटी-सी उलझन यह थी िक उह1 दध ू बाजार म1 पीना पड़ता था। कारण यह था िक उनके बUचे अधिक थे। घर म1 यिद दध ू मंग ाते तो सभी को थोड़ा-थोड़ा दे ना पड़ता। और इस तरह ब™ग ड़ माट साब के िहःसे म1 छटांक भर ही आता। यह सब सोच-समझकर वे बाजार म1 दध के सामने खड़े ू पीते थे। िकसी हलवाई की दकान ु होकर डे ढ़ पाव दध ू ग रमाग रम पीने के बाद ही वे घर लौटते थे। लेिकन इसम1 एक िदFकत थी हलवाई की दकान का दध ु ू पीते उह1 यिद कोई दे ख लेता था तो ब™ग ड़ माट साब को बड़ी शम आती थी। िफ र उसे आमंिऽत करना पड़ता था। िफ र शकर म1 खूब चचा होती थी िक ब™ग ड़ माट साब रात म1 ƒयूशन पढ़ाने के बाद जब घर लौटते ह तो हलवाई के यहां खड़े होकर दध ू पीते ह । यह बात उड़ते-उड़ते घर भी पहंु च जाती थी िजससे ब™ग ड़ माट साब की उनकी प†ी से लड़ाई तक जो जाया करती थी। इस लड़ाई म1 लड़के, िजनम1 जवान लड़के से लेकर दो साल की उॆ तक के शािमल थे, अ मा का पg लेते थे।

ब™ग ड़ माट साब बी.ए., बी.टी. थे। पता नहीं उनके मन म1 Fया आई िक िहं दी म1 ूाइवेट एम.ए. करने के िलए फ ाम भर िदया। वे ःकूल म1 लड़क@ से तथा घर म1 मुझसे कहते थे िक यह हम लोग @ के िलए ग व की बात होग ी िक हमारे अlयापक एम.ए. पास ह । कुछ िदन@ के बाद यह होने लग ा िक ब™ग ड़ माट साब अपने साथ एक मोटी-सी िकताब लाने लग े। जब पढ़ाने बैठते तो कहीं-न-कहीं से अपनी एम.ए. की पढ़ाई का िजब छे ड़ दे ते और िफ र एक मोटी-सी पुःतक िनकालकर जोर-जोर से पढ़ने लग ते। मेरी समझ म1 वह िबलकुल न आयी थी, लेिकन खुश होता था िक चलो म खुद पढ़ाई से बच रहा हंू । एक पुःतक का नाम अभी तक याद है जो ब™ग ड़ माट साब लाया करते थे 'प¤ावत`। वे जो पंिjयां पढ़ते थे उसकी pया;या भी करते जाते थे। जब तक उह@ने एम.ए. पास नहीं कर िलया तब तक उनकी पढ़ाई और मेरी पढ़ाई साथ-साथ होती थी। इसका मतलब यह नहीं िक वे एक घंटे के बजाय दो घंटे बैठते थे। एक िदन उह@ने बताया िक वे एम.ए. पास हो ग ये ह । िडवीजन पूछने पर बोले, 'मने िडवीजन के िलए एम.ए. थोड़ी ही िकया है। मेरा lयेय है िक कभी जब म िूंिसपल बनूं तब तउती पर मरे नाम के साथ जो िडिमयां ह@ उनम1 बी.ए., बी.टी., एम.ए. होना चािहए।' इस तरह वे अपने मकसद म1 कामयाब हो ग ये थे। ःकूल म1 अय अlयापक कहते थे िक ब™ग ड़ माट साब की थड िडवीजन आई है। ब™ग ड़ माट साब ने मुझे कgा छ: से लेकर दस तक पढ़ाया था। नवीं तक म बराबर पास होता रहा। इसम1 उनकी पढ़ाई का योग दान था या मेरी बुि+ का चमNकार, कह नहीं सकता। लेिकन नवीं तक सब ठीक-ठीक चलता रहा। दसवीं म1 जब पहंु चा तो ब™ग ड़ माट सभी िवषय@ म1 पास हो जाउं ग ा लेिकन वे ग िणत म1 साब ने घोषणा कर दी िक म दसरी ू पास होने की ग ारं टी नहीं लेते। अcबा को जब यह पता चला तो उह@ने इस सहज ही िलया। वे जानते थे िक म ग िणत म1 बहत ु कमजोर हंू । मने यह लाइन ले ली थी िक ग िणत की जो कमजोरी मुझे 'िवरसे` म1 िमली है उसके िज मेदार अcबा ह । मतलब यह िक ब™ग ड़ माट साब की तरफ से मेरी तरफ से, अcबा की तरफ से यह तैयारी पूरी थी िक म ग िणत म1 फे ल हो ग या तो अचंभा िकसी को नहीं होग ा। ग िणत से मेरी कभी नहीं पटी। ग िणत के अपने कृ पा के Lार मेरे िलए सदा बंद रखे ह । और इसका आरोप िबना वजह मेरे उपर लग ाया जाता था। सब, सबसे xयादा अcबा कहा करते थे िक म 'कूढ़मग ज` हंू । म इस शcद का मतलब यह समझता था िक मेरे िदमाग म1 कूड़ा भरा हआ है। ग िणत पढ़ते समय यह संदेह िव[ास म1 बदल जाता था। म अपने ु ग िणत न सीख पाने का रहःय समझ चुका था। लग ता था िक अब ूयास करना भी

बेकार है। जब िदमाग म1 साला कूड़ा भरा हआ है तो हम Fया कर सकते ह । िफ र खुशी ु भी होती थी िक चलो इसकी िज मेदारी हम पर नहीं आती, Fय@िक कोई अपने आप तो अपने िदमाग म1 कूड़ा नहीं भर सकता। अकल कम है वाली धारणा मेरे अंदर बहत ु ग हराई म1 जाकर बैठ ग ई थी। िजस मेरे ग िणत का पेपर था, उस िदन अcबा ने कहा िक वे नमाज पढ़1 ग े। मने कहा म भी पढ़ंू ग ा। तब अcबा ने कहा, नहीं तुम अपना िहसाब पढ़ो। वे चाहते थे िक काट बंट जाये। बहरहाल, दोन@ तरफ से तैयािरयां पूरी थीं। म सुबह साढ़े छह बजे शहीद@ वाली मुिा म1 घर से िनकला। इतना xयादा पढ़ िलया था िक कुछ भी याद न था। स1टर दसरी जग ह ू था। वहां ग या। बरामदे म1 सीट लग ी थी। पीछे की सीट पर एक दादा िकःम का लड़का बैठा था। उसने इि तहान शु4 होने से पहले मुझसे कहा िक ठीक एक घंटे के बाद म पेशाब करने के िलए जाउं और पेशाबखाने की िखड़की के पीछे नकल कराने आये लोग @ म1 से कोई करीम मुझे हल िकया पचा दे दे ग ा। मने कहा, पर म करीम को पहचानूंग ा कैसे. . .? उसने कहा, तुम आवाज दे ना करीम। वह रोशनदान से पचा दे दे ग ा। कहना, स%लू दादा ने भेजा है। पचा ले आना। खै र साहब, घंटा बजा। पचा बांटा ग या। दे खा तो मामला पूरा ग ोल यानी कोई सवाल नहीं आता था। स%लू दादा ने पचा बनाने वाले की मां-बहन को याद िकया और पंिह िमनट बाद पचा जेब म1 ठंू सकर पेशाबखाने की तरफ दौड़े । उह@ने इसकी इजाजत भी नहीं ली, जो ज4री थी। बहरहाल, उनके हाव-भाव से सब समझ चुके थे िक वे दादा ह और कुछ भी कर सकते ह । इसिलए बेचारे सूखे मिरयल अlयापक उह1 बड़ी-से-बड़ी सीमा तक बदाँत करने के िलए तैयार थे। वे पचा दे आये और कापी पर इस तरह झुककर िलखने लग े जैसे सारी जान उसी म1 लग ा द1 ग े। मने भी यही िकया। जब पूरा एक घंटा हो ग या तो उह@ने मुझसे कहा िक म जाउं । म बाकायदा इजाजत लेकर ग या तो मेरे पीछे -पीछे एक अlयापक भी ग ये। और नतीजे म1 काम नहीं हो पाया। स%लू दादा से मने बता िदया िक ऐसा हआ। उह@ने चुिनंदा ग ािलय@ का िपटारा खोल िदया। उठे और पेशाबखाने की तरफ ु बढ़ ग ये। अlयापक उनके पास तक आया, कुछ बात हई ु और िफ र लौट ग या। मतलब स%लू दादा की िवजय। वे आये। नजर@ म1 िवजय का हष¬%लास था। िबलकुल नेपोिलयन की तरह। इसके बाद उह@ने काम शु4 कर िदया। करीब एक घंटे इं तजार के बाद िफ र मेरी बारी आई। िजंदग ी म1 पहली बार यह पिवऽ काम कर रहा था। हाथ कांप रहे थे। ह@ठ सूख रहे थे। िलखा कुछ था िदखाई कुछ दे रहा था। और एक ही घंटा रह ग या था। िनग रानी बढ़ ग ई थी। पकड़े जाने पर तीन साल के िलए िनकाले जाने का डर था।

बहरहाल, तनाव इतना था िक कह नहीं सकता। पर मरता Fया न करता! ु ग िमय@ की छिƒटय@ के सुखद िदन@ म1 एक तनावपूण साह आया जब बताया ग या िक 'िरज%ट` आने वाला है। साइिकल@ पर बैठकर लड़के ःटे शन जाते थे, जहां सबसे पहले अखबार पहंु चता था। एक िदन ग ये, नहीं आया। बताया ग या दो िदन बाद आयेग ा। िफ र ग ये, नहीं आया। िफ र एक िदन आया। खुद दे खने की िह मत न थी। िकसी ने बताया, साले तुम पास हो ग ये हो। अपनी खुशी का हाल म Fया बताऊँ। लेिकन ौेय स%लू दादा को जाता है।

हाईःकूल करने से पहले ही मेरे भिवंय के बारे म1 बड़ी-बड़ी योजनाएं बननी शु4 हो ग ई थीं। योजनाएं बनाने वाल@ के कई ग ुट हो ग ये थे। अcबा मुझे एयरफ ोस म1 भेजना चाहते थे। हाईःकूल के बाद ही कोई शे िनंग होती थी जो मुझे करनी थी। अ मा इसकी स;त िवरोधी थी। उसका मानना था िक मुझे डॉFटर बनना चािहए। अcबा मान ग ये िक चलो ठीक है, म डॉFटर बन जाउं । एक छोटा-सा ग ुट यह भी कहता था िक कृ िष-िवान म1 कुछ करना चािहए तािक घर की खेती-बाड़ी संभाल सकूं। तीसरे ग ुट की राय यह थी िक वकालत पढ़ लूं Fय@िक हम लोग @ म1 बहत ु से मुकदमे चला करते थे। बहरहाल िजतने मुंह उतनी बात1। आिखरकार राय यह बनी िक मुझे डॉFटर ही बनना चािहए और घर पर रहकर ूैिFटस करनी चािहए। इस तरह म घर की खेती भी दे ख सकूंग ा, मुक़दमेबाज़ी भी कर सकूंग ा वग रैह-वग रैह। मजेदार बात यह है िक मुझसे कभी कोई नहीं पूछता था िक तुम Fया बनना चाहते हो। मुझे मालूम था िक अग र मुझसे पूछा जाता और म अपनी मजu का पेशा बता भी दे ता तो मुझे वह न बनने िदया जाता। म दरअसल आिट ःट बनना चाहता था- कलाकार, प1टर। लेिकन िचऽकार@, या कह1 हर तरह के कलाकिमय@ के बारे म1 अcबा की राय बहत ु xयादा खराब थी। वे लेखक@, शायर@, िचऽकार@ आिद को बहत ु ही घिटया और िन नकोिट के लोग मानते थे। ऐसे लोग जो अनैितक होते ह , ॅq होते ह , शराब पीते ह , कई-कई औरत@ से संबंध रखते ह , खुदा को नहीं मानते वग रैह-वग रैह। मतलब, अग र म मुंह से यह बात िनकाल भी दे ता तो डांट पड़ती। अब म आपको लग े हाथ@ एक मजेदार बात बता दं ।ू ःकूल म1 मुझे केवल कgा पांच तक आट पढ़ाई ग ई थी। लेिकन म आग े भी पढ़ना चाहता था। पर थी ही नहीं तब म चाहता था िक रं ग का एक िडcबा खरीद लूं। लेिकन यह भी जानता था िक रं ग का िडcबा इतना बड़ा अपराध होग ा िक उसकी माफ ी न िमलेग ी, Fय@िक मुझे प1िसल से तःवीर1 बनाते दे खकर ही अcबा को बेहद ग ुःसा आ जाता था। करीब-करीब मारते-मारते छोड़ते थे। शायद यही वजह है िक आज सफे द काग ज और रं ग मेरी कमजोरी ह । सफे द काग ज मुझे ऐसी अिLतीय सुंदरी

जैसा लग ता है िजसका अलौिकक सyदय िववश कर दे ता है। कलम या रं ग दे खकर मेरी पहली तीो इUछा उसे ले लेने की ही होती है। मने काग ज की िजतनी चोरी की है उतना शायद कुछ और नहीं चुराया। काग ज म1 मेरा ूेम बढ़ती हई ु उॆ म1 साथ बढ़ता ही ग या। करीब दस साल पहले अमेिरका म1 एक धना®य मिहला ने मुझसे पूछा िक म यूयाक म1 Fया दे खना या करना चाहता हंू । वह मिहला मेरी मदद या खाितर वग रैह करना चाहती थी। वह समझ रही थी िक कम पैसा और कम साधन होने के कारण जो कुछ म अपने आप दे ख या खरीद नहीं सकता, उसम1 वह मेरी मदद करे ग ी। मने उसे बताया िक म यूयॉक म1 काग ज, कलम, रं ग वग रैह, मतलब ःटे शनरी की दकान1 दे खना चाहता हंू । वह ु ूसन हो ग ई और मुझे कई दकान1 िदखाw। ु

दे िखए, बात कहां से कहां जा पहंु ची। इसी तरह ब™ग ड़ माट साब भी बात को कहीं पहंु चाकर कहीं से कहीं ले आते थे। हाईःकूल म1 मेरे पास होने के बाद ब™ग ड़ माट साहब ु ग ये। उह@ने इUछा pयj की थी िक िवदाई 'समारोह` म1 उह1 एक घड़ी मुझसे िबछड़ उपहारःव4प दी जाये िजस पर खुदा हो िक Fय@, कब, कैसे, कहां िकसने दी है। मने उनकी यह इUछा अcबा के सामने रख दी थी। उह@ने कहा था, घड़ी बहत ु महं ग ी आती है। ब™ग ड़ माट साब को कुछ और िदया ग या था। िव[िव\ालय म1 जब दािखल हआ तो डॉFटर बनने की योजना के अंतग त  सांइस के ु िवषय ही िदलाए ग ये। हॉःटल म1 रहने की जग ह िमली। पहली बार आजादी िमली। हाथ म1 पैसा आया। डर खNम हो ग या। ज%दी ही 'हाबीज वकशॉप` म1 प1िटं ग सीखने का कोस xवाइन कर िलया। यहां कलीम साहब नामक अlयापक थे। काफ ी दोःताना माहौल म1 काम करते थे। हम तीन लड़क@ से, जो आपस म1 दोःत और Fलासफैलो थे, हमारी अUछीखासी दोःती हो ग ई थी। हद यह है िक थोड़ा उधर-pयवहार तक चलने लग ा था। कलीम साहब ने लखनऊ आट कािलज से पढ़ाई की थी और 'जुलाजी िडपाट मट` म1 आिट ःट के पद पर काम करते थे। शाम को 'हाबीज वकशॉप` म1 Fलास लेते थे। कुछ ही महीन@ म1 हम1 पता लग ा िक कलीम साब आदमी अUछे ह लेिकन आट -वाट से उनका िरँता वाजबीवाजबी-सा ही है। खै र, Fया िकया जा सकता था। वैसे भी उनको िजतना आता था उतना हम सीख लेते तो बड़ी बात थी, लेिकन धीरे -धीरे यह भी पता चला िक कलीम साब चतुर भी ह । जैसे एक बार हमारे एक दोःत को एक िवशेष साइज के िचऽ बनाना था। कलीम साब ने उसका खरीदा कैनवास इस तरह काट िकया िक उस उसके िलए बेकार हो ग या, लेिकन कलीम साब के काम आ ग या। हम1 यह बुरा लग ा। पर कलीम साब हम1 कभी-कभी अपने घर खाने के िलए भी बुलाते थे। और यह हमारे उपर इतना बड़ा उपकार होता था

िक हमेशा उसके बोझ से दबा महसूस करते थे। एक िदन म कलीम साब के घर पहँु चा तो दे खा िक बड़ी मोटी-सी िडFशनरी िलये बैठे ह । पूछने पर िक Fया कर ह , बोले िक 'कंट पलेशन` का मतलब दे ख रहा हंू . . . 'Fया कुछ पढ़ रहे थे?' 'नहीं भाई,' उह@ने एक ठं डी सांस लेकर कहा, 'ये लझज कहीं दे खा था पंसद आया। सोचा िक इस पर एक प1िटं ग बनाऊँ।' कलीम साहब ने हम लोग @ को दो-तीन साल ही िसखाया। उसके बाद िव[िव\ालय म1 'आट Fलब` नामक संःथा खुल ग ई थी िजसके हम सब सदःय हो ग ये थे।

कोस म1 दसरे िवषय@, जैसे केिमःशी, बॉटनी आिद के अlयापक बहत ू ु साहब िकःम के लोग थे। पूरा सूट-टाई वग रैह पहनकर आते थे। लेFचर िथएटर म1 टहल-टहलकर लेFचर दे ते थे। कभी-कभी चाक से कुछ िलखते भी थे। िफ र चले जाते थे। यानी उह1 न हमसे कोई ता%लुक था और न हम1 उनसे कोई मतलब था। हम समझ रहे ह या नहीं, इसकी वे िचंता नहीं करते थे। बस हमसे अपेgा की जाती थी िक हम चुपचाप Fलास म1 आकर बैठ जाएंग े। रोल नंबर पुकारने पर 'यस सर` बोल1ग े। पतालीस िमनट खामोश बैठ1ग े और घंटा बजने पर चले जाय1ग े। इस pयवःथा से हम लोग भी खुश रहते थे और अlयापक भी। अय िवषय@ के अितिरj हम लोग @ को धमशाŽ भी िशgा भी दी जाती थी। हम1 धमशाŽ मौलाना घोड़ा पढ़ाते थे। मौलाना का असली नाम Fया था यह शायद काग जात को ही मालूम था। सारी यूिनविसटी म1 वे मौलाना घोड़ा कहे , पुकारे जाते थे। इस नाम के पीछे शायद उनकी शFल का हाथ था। बहरहाल, मौलाना लड़क@ के साथ बहत ु दोःताना pयवहार करते थे। मौलाना को पान खाने की लत थी और अFसर वे पान@ की िडिबयाु बटआ भूल आते थे। उनकी Fलास अFसर इस तरह शु4 होती थी- भई, आज सुबह से म बड़ी बेचन ै ी महसूस कर रहा हंू । हआ यह िक रोज बेग म मेरी शेरवानी की जेब म1 पान@ ु ु की िडिबया और बटआ रख दे ती ह , आज पता नहीं Fया हआ िक भूल ग w। म जब यहां ु पहंु चा तो दे खा दोन@ चीज1 नहीं है।। खै र, फ ःट इयर की Fलास आ ग ई। उनको पढ़ाया। िफ र तुम लोग आ ग ये। अब म तुम लोग @ से भी पान नहीं मंग ा सकता Fय@िक तुम लोग जूिनयर हो। थड इयर के तािलबेइलम जब आएंग े तो उनसे कहंू ग ा। मौलाना घोड़ा के इस वjpय पर शोर मच जाता था। लड़के कहते थे िक ये नहीं हो सकता, वे अभी जाकर पान ले आएंग े। मौलाना 'ना-ना` करते थे, लड़के 'हां-हां` करते थे। काफ ी खींचातानी, बहस-

मुबािहस@ के बाद आिखरकार बहत ु कलाNमक ढं ग से मौलाना घोड़ा हिथयार डाल दे ते थे। एक लड़का उठता था। मौलाना उसे बाजार जाकर पान लाने की इजाजत दे ते थे। वह अनुरोध करता था िक वह अकेला नहीं जा सकता, कम-से-कम एक लड़के को उसके साथ जाने िदया जाये। ऐसा हो जाता था। िफ र कुछ लड़के कहते थे िक उह1 भी पान की तलब महसूस हो रही है। जािहर है, तलब तो तलब है। उसके महNव से कौन इनकार कर सकता है। मौलाना उन लड़क@ को भी जाने की इजाजत दे ते थे। तब कुछ और लड़के खड़े हो जाते थे िक उह1 िसग रे ट की तलब लग ी है। इस तरह होता यह था िक पूरी Fलास अपनी 'तलब` पूरी करने चली जाती थी और दो लड़के साइिकल पर जाकर मौलाना घोड़ा के िलए दो पान ले आते थे।

साइं स की पढ़ाई म1 मेरा ही नहीं, हम तीन@ दोःत@ का िदल न लग ता था। हम सब अपने आपको आिट ःट समझने लग े थे। Fलास म1 न जाना, ूॉFसी हािजरी लग वाना, आवाराग द“ करना, चाय पना, रात@ म1 टहलना, िसग रे ट पीना, शेरो-शायरी म1 िदलचःपी लेना, लड़िकय@ को दे खने के िलए मील@ चले जाना, कलाकार@ जैसे कपड़े पहनना, िकराये की साइिकल पर शहर की विजत सड़क@ के चFकर काटना, सािहिNयक-सांःकृ ितक काम@ म1 जान लड़ा दे ना, अपने से बड़ी उॆ के लोग @ से दोःती करना, धम म1 अिच, ई[र है या नहीं, िवषय पर िववाद करना आिद-आिद हम करते थे। इसिलए जािहर है साइं स की पढ़ाई के िलए वj न िमलता था।

अlयापक@ से हमारा िरँता भी िदलचःप था। जो हम1 नहीं पढ़ाते थे, उनसे हमारे बड़े अUछे संबंध थे। मतलब, िवान पढ़ाने वाले अlयापक@ को हम जानते भी न थे, पर सािहNय और कला के अlयापक@ से हमारी िमऽता थी। केिमःशी ूैिFटकल म1 हम कभी न जाते थे लेिकन कला-ूदशनी म1 जाना अपना पहला कतpय समझते थे। नतीजा जो िनकलना था वही िनकला। पहले साल म1 फे ल। दसरे साल म1 सोचा िसफ ािरश कराई जाये। ू यह पूरा ूसंग कुछ इस तरह मुड़ ग या िक िसफ ािरश करने वाला ही असुिवधा म1 पड़ ग या। हम1 मालूम था िक केिमःशी ूैिFटकल म1 हम फे ल हो ही जाएंग े। पढ़ाने और परीgा लेने वाले अlयापक के पास हम तीन@ िमऽ िसफ ािरश करने वाले सxजन के साथ पहँु चे। ू ट मुझे यहां लाये िसफ ािरश करने वाले सxजन ने बातचीत शु4 की, 'ये तीन@ आपके ःटड1 ह ..' अlयापक बात काटकर बोले, 'ये तीन@? नहीं, ये तो मेरी Fलास म1 नहीं ह ।' िसफ ािरश करने वाले अlयापक सटपटाए। ज%दी ही समझ ग ये िक मामला Fया है। उह@ने हम लोग @ की तरफ अजीब नजर@ से दे खा। उह1 लग ा िक हमने उह1 बहत ु ग लत काम के

िलए राजी कर िलया था और धोखा िदया था। हमने नजर1 झुकाकर भरी आवाज म1 कहा, 'जी, हम आपकी Fलास म1 ही ह ।'

अlयापक ने िफ र lयान से दे खकर बड़ी उपेgा-भरी आवाज म1 कहा, 'नहीं, ये लोग मेरी Fलास म1 नहीं है। इह1 Fलास म1 कभी नहीं दे खा।'

अब काटो तो खून नहीं। बेशमž की तरह िसर झुकाए खड़े रहे । ये सच है िक हम तीन@ दोःत Fलास म1 न जाते थे। उसके अलावा हम1 कहीं भी दे खा जा सकता था। बी.एस.सी. के दसरे साल म1 थे। सेशन समा हो ग या था। हािजरी िनकली तो हम सबकी हािजिरयां ू कम थीं और इि तहान म1 नहीं बैठ सकते थे। पढ़ाई या इि तहान की तैयारी नहीं थी। हॉःटल तथा फ ीस आिद का जो पैसा चुकाना था वह बहत ु xयादा था, Fय@िक हम उसे उड़ा ग ये थे। हम तीन@ हॉःटल के कमरे म1 बैठे सोच रहे थे िक इस मुसीबत से कैसे िनबटा जाए। कोई राःता न नजर आता था। िफ र एक ने सलाह दी िक यार ऐसा िकया जाये िक िकताब1 बेल डाली जाएं। तीन@ अपनी-अपनी िकताब1 बेच1ग े तो इतने पैसे आ जाएंग े िक एक रम की बोतल खरीदी जा सके। एक िफ %म दे खी जा सके और घर वापस जाने का िटकट आ जाये। यह राय सबको पसंद आई। वैसा ही िकया ग या।

नशे की आदत हम सबको यानी तीन@ दोःत@ को थी। तीन@ िसग रे ट पीते थे। कभी-कभी जब पैसा xयादा होते थे या घर से मनीआड र आता था तो 'cलैक फ ॉFस` की तंबाकू खरीदते थे और पाइप िपया करते थे। शराब की आदत तो न थी पर पीना पंसद करते थे और जब पैसे होते थे तो शहर जाते थे जहां एक 'भग वान रे ःटोर1 ट` नाम का होटल था। उसके िपछले केिबन@ म1 बैठकर शराब पी जा सकती थी। वही हमारा अडा होता था।

मने िजंदग ी म1 जब पहली बार पी तो मुझे बहत ु मजा आया। िजस िमऽ ने िपलाई थी उससे मने बहत ु िशकायत की िक उसने पहले Fय@ नहीं िपलाई। शहर से शराब पीकर रात म1 दस-™यारह बजे सुनसान सड़क पर टहलते हए ु हम लोग हॉःटल वापस आते थे। लग ता था िक पूरा 'इं िडया अपने बाप` का है। यानी ऐसा मौज-मःती की हालत होती थी िक उसका वणन नहीं िकया जा सकता। इस तरह सड़क@ पर शराब के नशे म1 टहलते हए ु हम लोग 'मजाज़` की नएम 'अवारा` ग ाया करते थे।

एक बार पैसे कम थे हम शराब पीना चाहते थे। उतने पैसे म1 Fवाट र भी न आता था। इसिलए सोचा िक चलो भांग खाकर दे खते ह । हो सकता है मजा आ जाए। पानवाले की दकान पर भांग िमला करती थी। हमने उससे पूछा िक िकतनी-िकतनी ग ोिलयां खानी ु चािहए िक मजा आ जाए। उसने कहा िक चार-चार ग ोिलयां खा लो। म समझ ग या िक साला अपनी भांग बेचने के िलए हम1 चूितया बना रहा है। लेिकन मेरे दोःत@ ने कहा िक नहीं यार, जब वह चार-चार कह रहा है तो चार-चार ही खानी चािहए। ग ोिलयां काफ ी बड़ी, यानी कंचे की बड़ी ग ोिलय@ जैसी थीं। बहरहाल, हमने चार-चार खा लीं। पानी के साथ सटक ग ये और िसनेमा म1 जाकर बैठ ग ये। थोड़ी दे र के बाद मुझे लग ा िक मेरे पैर नहीं है दोःत@ से पूछा िक Fया उनके पैर ह ? और जब इं टरवल होग ा तो म कैसे उठंू ग ा? मने दसरे ू उन दोनो ने भी बताया िक उनके पैर नहीं है। अब बड़ी समःया खड़ी हो ग ई। खै र, िफ %म खNम होने के बाद हम िकसी तरह बाहर आ ग ये। और िफ र हम तीन@ का बुरा हाल हो ग या। उि%टयां करते-करते पःत पड़ ग ये। कान पकड़ने और तौबा करने लग े िक कभी भांग नहीं खाएंग े। भांग खाने के ूयोग के बाद एक बार कम पैसे म1 नशा करने की ग रज से हम ताड़ी पीने भी ग ये थे।

हम तीन@ दोःत@ म1 एक बड़ा पुराना पापी था। हम सब उसे इसी वजह से पापी कहकर पुकारते थे। पापी का असली नाम नामदार हसै ु न िरजवी था। लेिकन दोःत उसे पापी कहते थे। पापी शायरी भी करता था। उसका तख%लुस 'वफ ा` या 'वफ ा साब` कहकर पुकारा जाता था। दसर@ के सामने हम लोग भी उसे 'वफ ा` कहते थे। 'वफ ा` भी एक तरह से हमारा ू अlयापक था उसने हम1 िसग रे ट पीना, शराब पीना और रं िडय@ के कोठ@ पर जाना िसखाया था। 'वफ ा` एक पुराने ता%लुकेदार का इकलौता लड़का था। वह ™यारह-बारह साल का ही था िक उसके अcबाजान का इं तकाल हो ग या था। मां उसे बहत ु चाहती थी। पैसा भी अUछा-खासा था। यही वजह थी िक 'वफ ा` उन सब काम@ म1 मािहर हो ग या जो हम1 नहीं आते थे।

मेरा एक और िशgक मेरा तीसरा दोःत था। उसका नाम वािहद था। वह िचऽकार था। अUछे िचऽ बनाने, लड़िकय@ को फं साने और अपना काम िनकाल लेने की कला म1 वह मािहर था। इन तीन@ कलाओं म1 उसका जवाब नहीं था। एक बार उसका एक पेपर खराब हो ग या। हम सब सोच रहे थे िक िकस तरह उसे पास कराया जाये। उसने कहा िक िकसी िसफ ािरश की ज4रत नहीं है। वह खुद परीgक के पास जाएग ा और अपनी िसफ ािरश करे ग ा। हम लोग @ ने सोचा िक साला पाग ल हो ग या है। ज4र बुरी तरह अपमािनत होकर

वापस आएग ा। लेिकन वह ग या और आकर बोला िक पास हो जाएग ा। हम1 यकीन नहीं आया, लेिकन जब िरज%ट िनकला तो वह पास था। िफ र उसने हम1 िवःतार से बताया िक उसने परीgक से Fया बात की थी और कैसे उसे इस बात पर तैयार कर िलया था िक उसे पास कर िदया जाए। लड़िकय@ को फं साने की कला म1 भी वह मािहर और शाितर था। लड़िकय@ और औरत@ के बारे म1 उसकी राय अंितम और ूामािणक िस+ हआ करती थी। ु जैसे लड़िकय@ को दे खकर ही बता दे ता था िक वह कैसी है? Fया पंसद करती है, उसके कमजोर पg Fया है? अUछाई Fया है? उस पर िकस तरह 'अटैक` लेना चािहए। लड़िकय@ से संबंध बनाने की ूिबया को वह 'अटैक` लेना कहा करता था। उसका यह मानना था िक संसार म1 िकसी भी आदमी को पटाया जा सकता है। उससे काम िनकाला जा सकता है। लेिकन सबको पटाने का राःता एक नहीं है। हर आदमी के अंदर तक पहंु चने के िलए एक नये राःते की खोज करनी पड़ती है। वह केवल ऐसी बात1 ही नहीं करता था, बि%क ूयोग करके भी िदखाता था। एक बार एक लड़की को हम तीन@ ने िकसी कला ूदशनी म1 दे खा। लड़की पसंद आई। हमने चुनौती दी। उससे कहा िक वह लड़की को हमारे साथ चाय पीने के िलए तैयार करके िदखा दे तो हम जान1 िक वह बड़ा लड़कीमार है। उसने कहा िक चाय िपलाने के पैसे उसके पास नहीं है। अग र हम दोन@ उसे पैसे दे द1 तो वह लड़की को चाय पीने के िलए आमंिऽत कर सकता है। हम तैयार हो ग ए। वािहद ग या और आया बोला चलो तैयार है।

वािहद की दिसय@ लड़िकय@ से दोःती थी और वे सब समझती थीं िक वह बहत ु सीधासादा, स मािनत और कलाकार िकःम का आदमी है। वह कभी-कभी झ@क म1 आकर लड़िकय@ के बारे म1 अपने मौिलक िवचार बताया करता था। कहता था हर औरत ूशंसा पसंद करती है पर यह ूशंसा कैसी हो, िकस ग ुण की हो और िकतनी हो यह बहत ु ग ंभीर बात है। दसरी बात यह बताता था िक हर औरत एक बंद चारदीवारी की तरह होती है। ू लेिकन आप िजधर से चाह1 राःता खोल सकते ह । यिद चारदीवारी को वाःतव म1 चारदीवारी समझा तो कभी सफ ल नहीं हो सकते। इसी तरह की न जाने िकतनी बात1 वह िकया करता था। कभी-कभी उसकी बात1 'वेग ` भी हआ करती थीं। जैसे कहता था, औरत1 ु िजसे सबसे xयादा चाहती ह उससे सबसे xयादा डरती ह । औरत@ से 'एूोच` करने की पहली शत वह मासूिमयत मानता था। वह कहता था िक कहीं धोखे से भी आपने अपने को घाघ िस+ कर िदया तो औरत पास नहीं आएग ी।

आमतौर पर महीने के पहले हझते म1 घर से मनीआड र आता था और दसरे हझते तक हम ू

लोग खलास हो जाते थे। उसके बाद शाम को चाय के पैसे न होते थे। मुझत चाय पीने के चFकर म1 हम लोग पिरिचत लोग @ के घर@ के चFकर काटते थे। अFसर तो ये भी होता था िक कई घर@ के चFकर काटने और कई मील का पैदल सफ र करने के बाद भी चाय न िमल पाती थी। वैसे, हमारे चाय पीने के इतने अधिक अडे थे िक कहीं-न-कहीं कामयाबी हो ही जाती थी। जब हर तरफ से थक-हार जाते थे तो युिनविसटी कटीन आ जाते थे। कटीन के ठे केदार खां साहब से हमारे संबंध थे। वे न िसफ चाय, बि%क िव%स िफ %टर की िसग रे ट और शानदार पान तक िखलाया करते थे। खां साहब शायर थे। अUछे शायर थे। 'कमाल` तख%लुस रखते थे। रामपुर के रहने वाले थे। 'खां साहिबयत` और 'शेिरअत` उनके pयिjNव के बड़े कलाNमक ढं ग से घुल-िमल ग ई थी। वे उद ू म1 एम.ए. थे। वैसे भी अनुभवी आदती थे। बातचीत करने के बेहद शौकीन थे। पैसे को हाथ का मैल समझते थे। उह@ने दरअसल Fलािसकी शायरी की तरफ हम लोग @ को खींचा था। कभीकभी मीर तकी 'मीर` के शेर सुनाने से पहले कहते थे िक यह शेर िकसी लोकिूय ग जल का नहीं है। उह@ने 'कुि%लयात` से खुद ढंू ढ कर िनकाला है। शायरी पर उनकी बात1 बहत ु िदलचःप और मौिलक हआ करती थीं। उनकी कटीन म1 िव[िव\ालय के दसरे ू शायर भी ु आते थे और दे र रात तक महिफ ल जमी रहती थी। खां साहब अपने आप म1 एक संःथा थे। एक शेर पर चचा करते-करते कभी रात के बारह बजे जाया करते थे। शायरी के अलावा खां साहब अपने जीवन के लंबे अनुभव@ का िनचोड़ बताया करते थे। हम1 लग ता था िक जीवन अपनी परत1 खोल रहा है।

खां साहब िफ %म@ के भी रिसया थे। खासतौर पर अUछी कलाNमक िफ %म1 िदखाने हम सबको ले जाते थे। तरीका काफ ी शाही िकःम का होता था। िरFशे बुलवाए जाते थे। हम सब िसनेमा हॉल पहंु चते थे। पूरा खचा खां साहब करते थे हद यह है िक इं टरवल म1 चाय के पैसे भी िकसी को न दे ने दे ते थे। िफ %म के बाद उस पर िवःतार से बातचीत होती थी। िव[िव\ालय के सभी नामी-िग रामी शायर@ से उनकी दोःती थी जो अFसर शाम1 उनकी कटीन म1 ग ुजारते थे। खां साहब को हर चीज या काम उसकी चरम सीमा तक कर म1 मजा आता था। कहते थे, तुम लोग Fया पीते हो, मने एक जमाने म1 इतनी पी है िक छ: महीने तक नशा ही नहीं उरतने िदया।

खां साहब की कटीन के अलावा हमारे मुझत चाय पीने के अडे ूाlयापक@ के घर थे। मजेदार बात यह िक वे सब ूाlयापक वे न थे जो हम1 साइं स के िवषय पढ़ाते थे। साइं स पढ़ाने वाले ूाlयापक@ के बारे म1 हमारे अUछे िवचार न थे। हम उह1 िबलकुल खुरा, नीरस

और शुंक समझते थे। सािहNय पढ़ाने वाले लोग @ के घर@ म1 िदलचःप सािहिNयक चचाएं होती थीं। चाय पीने का मजा आता था। इन घर@ के अलावा हमारा चाय पीने का अडा एक और भी था। शहर से कुछ दरू एक पुराने िकःम की कोठी म1 एक पुराने जमाने के रईस- िजनका नाम राजा मोहिसन अली खां उफ मीर साहब रं ग ेड़ा और राजा साहब छदामा था, रहते थे। उनकी उॆ पचास के आसपास थी। उनसे हम लोग @ की दोःती हो ग यी थी। राजा साहब सनकी और औबाश िकःम के आदमी थे। हमेशा अतीत के नशे म1 चूर रहा करते थे। लेिकन बीते जमाने के िकःसे सुनाने की कला म1 बड़े मािहर थे। उनका बयान बहत ु रोचक और छोटी-छोटी 'िडटे %स` से भरा होता था। उनकी ःमरण शिj भी जबरदःत थी। िमसाल के तौर पर वे यह बताते थे िक तीस साल पहले जब वे िकसी आदमी से िमलने ग ये थे तो उह@ने िकस रं ग का सूट पहना था और कफ म1 जो बटन लग ाए ग ए थे वे कैसे थे। राजा साहब की आिथक हालत खःता हो चुकी थी। अब वे िसफ बात@ के धनी थे। उनके मनपसंद िकःसे उनकी अ°यािशय@ की लंबी दाःतान1 थीं। वे अनिग नत थीं। दाःतान1 बताते हए ु वे पूरा मजा लेते थे। औरत@ के नख-िशख-वणन म1 उह1 महारत हािसल थी। उसके साथ-ही-साथ संभोग का वणन काफ ी मनोयोग से करते थे।

कभी-कभी राजा साहब के यहां एक mयाली चाय और दालमोठ बहत ु महं ग ी पड़ जाया करती थी। जैसे एक िदन चाय के लालच म1 हम थके-हारे उनके घर पहंु चे तो पता नहीं उनका Fया मूड था, िबना कुछ कहे -सुने एक अंमेजी की िकताब के बीस पने पढ़कर सुना िदए। िफ र बताया, यह १८९१ का पिटयाला ग जेिटयर है। इसम1 मेरे खानदान का िजब है।

उनकी कई सनक1 थीं। उनम1 से एक यह थी िक अब तक अपने आपको बहत ु बड़ा सामंत समझते थे। उह@ने काले मखमल पर सुनहरे बेलबूट@ वाला एक कोट िसलवाया था िजसे वे 'चीफ कोट` कहा करते थे। उस 'चीफ कोट` को पहन वे िरFशे म1 बैठकर पूरे शहर का एक चFकर लग ाते। ऐसे मौक@ पर उनके साथ होने म1 हम लोग @ को बड़ी शम आती थी, लेिकन एक mयाली चाय की खाितर सब कुछ करना पड़ता था।

चाय पीने का एक और अडा ग %स कॉलेज की एक सुंदर ूाlयािपका का घर भी था। ूाlयािपका बहत ु सुंदर थीं। इतनी सुंदर िक उह1 पहली बार दे खकर ही हम तीन@ दोःत उन पर आिशक हो ग ये थे। और तय िकया था िक वे इतनी सुंदर ह िक उन पर कोई अपना अकेला अिधकार नहीं जमाएग ा। जब भी कोई उनके पास जाएग ा, अकेला नहीं

जाएग ा। इस समझौते पर हम कायम रहे । सुंदर ूाlयािपका ग %स हॉःटल के अंदर रहती थीं। वे वाड} न थीं। अकेली रहती थीं। उनके घर म1 शाम1 ग ुजारना इतना सुखद होता था िजसकी क%पना भी नहीं की जा सकती। लेिकन हम इतना तो सीख ही ग ये थे िक तांत ू जाए। इसिलए महीने म1 दो-तीन ही बार उनके पास को इतना नहीं तानते िक वह टट जाते थे। उनकी हं सी ऐसी थी िक हम िसफ उसी पर िफ दा थे।

िकसी भी िव[िव\ालय की यह िवशेषता होती है िक जो उससे िचमटे रहते ह वे उपकृ त होते ह । हम फे ल होते थे। हािजरी कम होती थी। इि तहान म1 नहीं बैठाए जाते थे, लेिकन िव[िव\ालय से िचमटे हए ु थे। इस तरह रग ड़ते-रग ड़ते बी.एस.सी. पास हो ग ये। हम तीन दोःत थे और तीन@ को तीन-तीन डं डे िमले थे। यानी तीन नंबर हमारी िकःमत म1 िलख ग या था। लेिकन हम खुश थे। मेरा दो अय िमऽ@ को जैसे ही िडमी िमली उह1 अपने रा पित तक हो जाने के राःते साफ नजर आने लग े और उह@ने पढ़ाई को धता बताई।

मने सोचा िक म िव[िव\ालय म1 कुछ और पढंू । Fया पढंू इसका पता न था। इतना तो तय थ िक साइं स के िकसी िवषय म1 एम.एस.सी करने से अUछा था िक कहीं डाका मारता और जेल चला जाता। इसिलए सािहNय ही बचता था। िकसी ने कहा उद ू म1 एम.ए. कर डालो। लेिकन समःया यह थी िक उस समय म िहं दी म1 िलखने लग ा था। हाईःकूल तक की पढ़ाई िहं दी म1 हई ु थी। उद ू बहत ु कम, और िलखना तो िबलकुल नाम बराबर ही, जानता था। इसिलए सोचा उद ू से अUछा है िहं दी म1 एम.ए. िकया जाए। िकसी ने कहा सािहNय म1 ही एम.ए. करना है तो अंमेजी म1 करो। लेिकन उस समय तक अंमेज-िवरोधी बन ग या था इसिलए िक अंमेजी िबलकुल न आती थी। या इतनी कम आती थी िक मुझे उससे शम आती थी। बहरहाल, िहं दी के पg म1 अधिक मत पड़े । जब बी.एस.सी. म1 पढ़ता था उस जमाने म1 िहं दी िवभाग से कोई िवशेष लेना-दे ना न था। हां, मुझे सािहNय िलखने की ूेरणा दे ने वाले और िव[िव\ालय की सािहिNयक-सांःकृ ितक ग ितिविधय@ के महNवपूण pयिj रामपाल िसंह िहं दी म1 पी-एच.डी. कर रहे थे। दरअसल उह@ने ही मुझे िहं दी म1 िलखने और छपने आिद की ूेरणा दी थी। डॉ. िसंह के बयान के बग रै यह पूरा िववरण अधूरा है। इसिलए म उनका बयान सामने रखना चाहंू ग ा। डॉ. िसंह िव[िव\ालय म1 इस 4प म1 जाने जाते थे िक िजसका कोई नहीं है उसके डॉ. िसंह है। उनके पास कोई भी जा सकता है, कोई भी कुछ कह सकता है और कोई भी मदद की पूरी उ मीद कर सकता है। मने िहं दी म1 जब िलखना शु4 िकया तो उनके पास ग या था। और

उह1 उनकी साख के अनु4प ही पाया था। दरअसल िव[िव\ालय की सािहिNयकसांःकृ ितक ग ितिविधय@ के वे एक महNवपूण कड़ी थे। उह@ने ही मुझसे कहा िक िहं दी म1 एम.ए. करो।

लेने को तो मने िहं दी म1 दािखला ले िलया था लेिकन एक बहत ु बड़ी िदFकत थी जो मुझे बाद म1 पता चली। वह यह िक िजस िव[िव\ालय म1 म पढ़ता था वहां िहं दी की िःथित ू ` जैसी थी। लोग मानते थे िक सबसे ग ए-ग ुजरे , सबसे अय िवषय@ की तुलना म1 'अछत बेकार या कह1 कंडम या किहए कूड़ा या किहए बोग स या किहए मूख या किहए घ@चू या किहए बेवकूफ या किहए मंदबुि+ या किहए ग धे ही िहं दी पढ़ते और पढ़ाते ह मतलब यह िक िहं दी की सामािजक िःथित बहत ु ही खराब थी। जब म लोग @ से कहता था िक मने िहं दी म1 दािखला िलया है, तो मेरी तरफ इस तरह दे खते थे जैसे म पाग ल हो ग या हंू या अपने पैर पर कु%हाड़ी मार रहा हंू । या लोग िसफ मुःकराते थे या मेरे नाम के बाद 'दास` शcद जोड़ मुझे कबीरदास और तुलसीदास जैस कहकर मजाक उड़ाते थे। म इससे काफ ी परे शान हो ग या था।

िहं दी के बारे म1 लोग @ के मन म1 न केवल बड़े पूवामह थे बि%क एक अजीब तरह की घृणा और उपेgा के भाव भरे हए ु थे। म यह समझ पाने म1 असमथ था।

िहं दी िवभाग म1 पढ़ाई शु4 हई। पहले िदन एक ूाlयापक के कमरे म1 ग या। Fलास को ु दे खा। दो लड़िकयां थीं, यह दे खकर जान म1 जान आ ग ई। एक बुका पहने थी। खै र कोई बात नहीं, थी तो लड़की ही। ूाlयापक कुछ मजेदार, मसखरे , लेिकन बहत ु सरल आदमी थे। उह@ने हम सबसे कहा िक हम क ख ग घ िलख डाल1। पहले तो हम समझे िक वे मजाक कर रहे ह पर उह@ने ग ंभीरता से कहा था। पूरी Fलास ने क ख ग घ िलखा तो पता चला िक नcबे ूितशत लड़क@ को क ख ग घ िलखना नहीं आता। ूाlयापक महोदय ने कहा िक यह कोई अजीब बात नहीं है। िहं दी म1 जो एम.ए. कर चुके ह उह1 क ख ग घ िलखना नहीं आता। यह पहला पाठ था। हम1 हमेशा याद रहा िक हम1 कहां से शु4 करना है। लेिकन सारे ूाlयापक ऐसे न थे जो जीवन-भर के िलए एक पाठ पढ़ा द1 । एक विर£ ूोफे सर हम1 िहं दी सािहNय का इितहास पढ़ाते थे। वे िवभाग के सबसे बड़े और विर£ ूोफे सर थे। उनकी कgा कभी-कभी ही होती थी Fय@िक अUछी चीज1 रोज नहीं िमलतीं। उह@ने इतनी कुशलता और लग न से पढ़ाया िक यिद उनका अनुकरण कोई और िहं दी अlयापक करे तो ज4र नौकरी से िनकाल िदया जाए। उह@ने हम1 कुल जमा चालीस

िमनट म1 िहं दी सािहNय का इितहास पढ़ा िदया था। विर£ होने के कारण ूाlयापक महोदय सदा pयःत रहते थे। pयःत रहने के कारण उनका Fलास नहीं हो पाता था। होतेहआते परीgाएं िनकट आ जाती थीं। तब वह सुनहरा अवसर आता था िक Fलास होती ु थी। दब ु ले-पतले, शेरवानी, चूड़ीदार पाजामा और ख‚र की टोपी धरण िकए ूोफे सर साहब अपने िवशाल कमरे की िवशाल मेज के पीछे िवशाल कुसu म1 इस तरह लेट जाते थे िक कभी-कभी हम1 केवल उनकी टोपी का ऊपरी भाग ही िदखाई दे ता था। वे रामचि शुFल का 'िहं दी सािहNय का इितहास` खोल लेते थे। पढ़ाई इस तरह शु4 होती थी 'आिदकाल, इसे वीरग ाथा काल भी कहा जाता है। वीरग ाथा मतलब वीर@ की ग ाथा। ःपq है न?' हम सब एक ःवर म1 कहते थे, 'जी हां, ःपq है।' अब भिjकाल। 'भिj तो तुम सब जानते ही हो. . .अरे वही राम-भिj, कृ ंण-भिj. . .समझे? सूर पढ़ा है तुम लोग @ ने, तुलसीदास पढ़ा है। जायसी को पढ़ा है. . .वही भिjकाल है।' ूोफे सर साहब इस िवLzापूण भाषण के दौरान िकताब के पृ£ तेजी से पलटते जाते थे। 'अब आता है रीितकाल।' रीितकाल पर वे हं सते थे। उनके पीले बड़े -बड़े दांत बाहर िनकल आते थे। Fलास के लड़के मुःकराते थे। लड़िकयां शरमाती थीं। 'तो रीितकाल म तुम लोग @ को पढ़ा दे ता पर नहीं पढ़ाउं ग ा Fय@िक तु हारी Fलास म1 कयाएँ ह ।' दांत@ से तरल पदाथ बहने लग ता था। दांत शांत हो जाते थे। 'चलो आग े बढ़ो, आधुिनक काल। आधुिनक का मतलब है मॉडन। तुम सभी मॉडन हो। जब तुम सब ःवयं मॉडन हो तो म तु ह1 मॉडन काल Fया पढ़ाउं ? म तो तु हारी तुलना म1 मॉडन नहीं हंू ।' दांत उनके मुंह म1 चले जाते थे। िकताब बंद हो जाती थी। िहं दी सािहNय का इितहास खNम हो जाता था। तब ूोफे सर कहते थे. . .'तुम लोग सौभा™यशाली हो। आराम से हॉःटल म1 रहते हो। पका-पकाया खाना िमल जाता है। टहलते हए ु Fलास म1 चले आते हो। पुःतकालय उपलcध ह । िबजली की रोशनी है, नल का पानी है। तुम लोग Fया जानो िक मने िशgा ूा करने के िलए िकतने कq उठाए ह । मेरा ग ांव बहत ु छोटा था। वहां कोई ःकूल न था। आठ मील दरू, नदी के उस पर एक बड़ा ग ांव था जहां पाठशाला थी। हमारे ग ांव से दो-तीन लड़के पाठशाला जाते थे। हम1 अंदर घुसकर नदी पार करनी पड़ती थी। कभी-कभी पानी xयादा होता था तो कपड़े और रोटी की पोटली िसर पर रख लेते थे। नदी के उस पार छ: मील चलना पड़ता था। तब पाठशाला पहंु चते थे। पंिडत ू थे। पंिडत हम1 जंग ल से लकड़ी बीनने भेजते थे। िकसी को कुएं से पानी जी के चरण छते भर लाने भेजते थे। म छोटा था तो मुझसे कपड़े धुलवाते थे। िकसी से चू%हा जलवाते थे। मतलब हम सब िमलकर पंिडत जी का पूरा काम करते थे। वे भोजन करते थे। हम लोग भी इधर-उधर बैठकर रोटी खाते थे। उस ग ांव म1 बंदर बहत ु थे। कभी-कभी बंदर हमारी रोटी ले जाते थे। तब हम1 िदन-भर भूखा रहना पड़ता था। वापसी पर काफ ी दे र हो जाती थी तो भेिड़य@ का डर होता था, समझे?' हम1 यह लग ता था िक ूोफे सर साहब हम लोग @

से बदला ले रहे ह या इस पर िखन ह िक वो बदला नहीं ले सकते, लेिकन सUचाई यह है िक वे हम1 इस यो™य ही नहीं समझते थे िक हमसे बदला ल1। वे केवल शोध छाऽ@ को यह स मान दे ते थे। उनके शोध छाऽ@ के बारे म1 कहा जाता था िक वे अपने िवषय के पंिडत होने के अितिरj भस@ की दे खभाल करने की कला म1 भी िनपुण हो जाते थे। िकतना अUछा था िक उनके सामने दो राःते खुल जाते थे। िहं दी के अlयापक न बन पाते तो भस पालने का pयवसाय शु4 कर सकते थे।

एम.ए. म1 हमारे साथ दो लड़िकयां भी थीं। एक लड़की बुका वाली, दसरी लड़की कई बुक} ू उतारकर Fलास म1 आती थी। एक और लड़का भी Fलास म1 था जो सािहिNयक िच का था। हम तीन@ की दोःती हो ग ई थी। म, आमोद और िकरण बंसल साथ-साथ चाय पीने जाते थे। िकसी लड़की के साथ कटीन जाना उन िदन@ उस िव[िव\ालय म1 इतनी बड़ी बात थी िक उसकी चचा हो जाया करती थी। सो िवभाग म1 इस बात की चचा थी िक हम दो लड़के एक लड़की के साथ चाय पीने जाते ह । िवभाग म1 एक और विर£ अlयापक थे। उनका Fलास सुबह सवा आठ बजे होता था। वे हमेशा लेट आते थे। हम लोग भी हमेशा लेट जाते थे। जाड़े के िदन@ म1 लेट आकर वे धूप खाने तथा दसरे अlयापक@ से ग mप मारने लॉन के एक कोने म1 खड़े हो जाते थे। दसरे ू ू कोने म1 Fलास के लड़के भी यही पिवऽ काम करते थे। लड़क@ को दे खकर ूाlयापक महोदय कहते थे, चलो Fलास म1 बैठो, म आता हंू । पर हम1 मालूम था िक यिद हम ठं डी Fलास म1 जाकर बैठ भी ग ये तो वे घंटा बजने म1 पांच िमनट पहले ही Fलास म1 आय1ग े। हम न जाते थे। आिखरकार घंटा बजने म1 पांच िमनट पहले वे तेजी से Fलास की तरफ बढ़ते थे। हम उनसे पहले भाग कर Fलास म1 चले जाते थे। वे हािजरी लेने के बाद कहते थे िहं दी म1 एम.ए. पास करना संसार का सबसे सरल काम है। तुम लोग िचंता न करो। यह वाFय वे अFसर बोलते थे। हम से ही नहीं, जो लड़के पास हो चुके थे वे भी बताते थे िक उनको भी उह@ने यही सूऽ िदया था। कभी-कभार जब उनका मन होता था तो पढ़ाते भी थे। मग र अनमने मन से।

तीसरे विर£ ूाlयापक पी.पी.पी. शमा थे। शFल तो उनकी कुछ खास न थी, पर बने-ठने रहते थे। कभी सूट, कभी बंद ग ले का कोट पहनकर आते थे। बाल@ को बहत ु जमाकर कंघी करते थे। उह@ने हाल ही म1 िकसी जवान औरत से दसरी शादी की थी। वे Fलास म1 ू Žी-पुष संबंध@ की चचा अFसर छे ड़ दे ते थे और उस पर बहत ु ग ंभीर होकर अपने

िवLzापूण िवचार pयj करते थे। लेिकन बीच-बीच म1 कुछ इस तरह हं सते थे िक िवLता का आवरण िछन-िछन हो जाया करता था। लेिकन िफ र वे तुरंत ग ंभीर हो जाया करते थे। उनका नाम हम लोग @ ने ाी पी रख िलया था। उह@ने अFसर ढके शcद@ म1 यह भी कहा िक वह हम दो लड़क@ और एक लड़की का एक साथ कटीन जाना पसंद नहीं करते। लेिकन शुब है लड़की धाकड़ थी और उसने हम दोन@ से साफ -साफ कहा था िक हमारी िसफ िमऽता है और िमऽ के साथ चाय पीना अपराध नहीं है। लेिकन ाी पी उसे भयंकर अपराध मानते थे। इस तरह वे मुझसे, आमोद और िकरण से कुछ नाखुश रहा करते थे और मौका आने पर भारतीय संःकृ ित और सoयता का डं ड ा उठा लेते थे।

एक अNयंत िनरीह िकःम के ूाlयापक थे जो हम1 ॄजभाषा की रीितकालीन किवता पढ़ाते थे। पता नहीं Fया रहःय था, Fया चमNकार था, Fया अजीब बात थी, Fया न समझ म1 आने वाली ग ुNथी थी िक उनकी Fलास म1 मुझे बहत ु नींद आती थी। लग ता था िक म वषž से सोया नहीं हंू और इससे अUछी लोरी मने कभी सुनी ही नहीं है। म अपने चुटकी काट लेता था। आंख1 फ ाड़ता था। Fलास शु4 हो जाने से पहले ठं डे पानी से मुंह धोता था। मुंह म1 कुछ रखकर बैठता था। लेिकन सब बेकार। अंत म1 मने यह तरकीब िनकाली थी िक म बुक}वाली लड़की के बराबर बैठता था और जब नींद आने लग ती थी तो उसे छू ू से नींद ग ायब हो जाती थी और किवता भी अUछी तरह समझ म1 लेता था। उसके छने आती थी। लेिकन यह डर बना रहता था िक कहीं लड़की ने िकसी से कुछ कह िदया तो लेने के दे ने पड़ जाएंग े। पर उसने कभी िकसी ने नहीं कहा। शायद उसकी भी वही ू के समःया रही होग ी जो मेरी थी। दीग र बात यह है िक म बहत ु शालीन ढं ग से छने अितिरj कभी और आग े नहीं बढ़ा। वह जान ग ई िक यह लड़का अपनी सीमाएं समझता है।

एक ूाlयापक घोिषत किव थे। घोिषत इसिलए की बाकी ूाlयापक भी किवता करते थे, पर घोिषत नहीं थे। मतलब ःवात:सुखाय वाला मामला था। पर 'मधु` जी अपने को ःथािपत किव समझते थे। मधुजी वैसे तो उपयास के िवषय ह । उन पर कुछ पंिjयां या पृ£ िलखकर केवल उनका अपमान ही िकया जा सकता है। लेिकन अपनी खोज म1 यह पाप भी करना पड़े ग ा। पर आशा है िक 'मधु` जी की आNमा मुझे gमा करे ग ी।

मधुजी का का पूरा नाम ऐसा था िक उह@ने हाईःकूल करने के बाद ही उसे बदलने की ज4रत महसूस कर ली थी और माता-िपता का िदया नाम बदलकर पेन नेम 'मधुकर मधु`

रख िलया था। अब बहत ु ज4री काग जात के अलावा या उह1 छे ड़ने के ूयास@ के अितिरj उसका इःतेमाल कहीं नहीं होता था। अपना पुराना नाम िलखा दे खकर मधुजी को स;त चोट पहंु चती थी। बोध आ जाता था। उनके शऽु ये जानते थे। शऽुओं की सं;या भी अUछी-खासी थी। इसिलए शऽु कोिशश करते रहते थे िक वे मधुजी का पुराना नाम बराबर चलता रहे तो दसरी ओर मधुजी अपना पुराना नाम जड़ से िमटा दे ने के ूयास@ म1 ू जुटे रहते थे। कभी-कभी उह1 ग ुमनाम पऽ िमलते थे िजनके िलफ ाफ @ पर उनका पुराना नाम िलखा होता था। कभी-कभी ःथानीय समाचार-पऽ@ म1 किवस मेलन की खबर@ म1 उनका पुराना असली नाम तथा उपनाम 'मधु` छाप िदया जाता था। बहरहाल, नाम वाला कांटा 'मधु` जी की िजंदग ी का एक नासूर बना हआ था। ु

मधुजी रिसक थे। ूमाण, आठ बUच@ के इकलौते िपता होने के दावेदार के अितिरj उनके ूेम-ूसंग भी चचा म1 आते रहते थे। कुछ सामाय थे, कुछ रोचक थे। एक रोचक ूसंग कुछ इस ूकार था- मधुजी की एक शोध छाऽा थी। जब उसका शोध ूबंध पूरा हो ग या तथा नौबत यहां तक पहंु ची िक उसे मधुजी के हःताgर@ की आवँयकता पड़ी तो मधुजी को उसम1 सकड़@ दोष िदखाई दे ने लग े। एक िदन एकांत म1 उह@ने शोध ूबंध के सबसे बड़े दोष की ओर इशारा िकया। दोष यह था िक शोध छाऽा को ठीक से साड़ी बांधना न आता था। मधुजी ने उससे कहा िक शोध छाऽा एक िदन, जब उनकी प†ी और बUचे मंिदर ग ए ह@ तो, उनके घर आ जाए और उनसे साड़ी बांधना सीखकर दोषमुj हो जाए। जैसा िक होता है, यह सुनकर लड़की सेिमनार 4म म1 बैठकर रोने लग ी। कुछ लड़क@ ने उसे सलाह दी िक वह िवभाग ाlयg से यह सब कहे । िवभाग ाlयg ने कहा, 'मधुजी पुष ह और तुम नारी हो, म इसके बीच कहां आता हंू ?' यह जवाब सुनकर लड़की और अिधक रोने लग ी। अंतत: मामला पुरानी कहािनय@ जैसे स;त आई.सी.एस. उपकुलपित के पास पहंु चा। ये उपकुलपित बदतमीज होने की सीमा तक स;त थे। उह@ने िवभाग ाlयg तथा मधुजी से कहा िक यिद यह मामला न सुलझाया ग या तो उन दोन@ को 'सःप1ड ` कर िदया जाएग ा। उनके बाद िवभाग ाlयg के कमरे म1 एक नाटक हआ िजसम1 तीन पाऽ थे। दशक ु कोई न था। लेिकन ौोता केवल दीवार1 न थीं। नाटक का अंत इस तरह हआ िक मधु जी ु ने शोध छाऽा को बहन मान िलया। िवभाग ाlयg ने उसे बेटी माना। शोध छाऽा ने उन दोन@ का चरण ःपश िकया और मधुजी को भाई िवभाग ाlयg को ताऊ माना।

इस तरह के छोटे -बड़े ूसंग मधुजी की किवता के िलए कUचे माल का काम करते थे। ऐसे

ूसंग बहत पीढ़ी को अमू%य िवरासत के 4प म1 ये ूसंग ू ु थे। लड़क@ की एक पीढ़ी दसरी 'पासऑन` करती रहती थी।

िवभाग के एक और विर£ ूाlयापक कृ ंण-भj थे और वे केवल कृ ंण भिj काpय पढ़ाते थे। उसके अितिरj कोई और पेपर वे न पढ़ाते थे। Fलास म1 ूाय: मःत हो जाया करते थे। कहते थे यह ूभु की िकतनी कृ पा है िक मेरा पूरा जीवन भिjमय है। भिj की भिj होती रहती है और pयवसाय का pयवसाय है। यह भी कहते थे िक घर म1 भी कृ ंण-भिj म1 लीन रहता हंू । इनकी अlयापन शैली बहत ु सरल थी। केवल काpय पाठ करते थे। उसम1 ःवयं डू बे रहते थे। हमसे भी यह आशा करते थे िक हम भी डू ब जाएं। उसके अितिरj िकसी अय पg पर बात करना उह1 पसंद न था।

जैसे-जैसे समय बीत रहा था, मेरी, आमोद और िकरण की िमऽता बढ़ रही थी। आमोद किवताएं िलखता था। मःत िकःम का लड़का था। कभी-कभी कई-कई िदन दाढ़ी न बनाता था। चmपल1 पहनना पसंद करता था और झूम-झूमकर चलता था। नई किवताएं सुनाया करता था। बोहे िमयन जैसा लग ने की कोिशश करता था। म यह ूतीgा कर रहा था िक िकरण उसकी किवताओं म1 कब आती है। लेिकन अब तक ऐसा न हआ था। ु

एक िदन यह हआ िक िकरण और आमोद ाी पी के कमरे म1 ग ए। ाी पी दो अय ु अlयापक@ के साथ ग mप-शmप मार रहे थे। इन दोन@ को कमरे म1 आते दे खकर ाी पी ने हं सकर कहा तुम कनक िकरण के अंतराल म1 लुक-िछपकर चलते हो Fय@? 'ूसाद` की इस पंिj को सुनते ही अय ूाlयापक@ ने ठहाका लग ाया। आमोद और िकरण को काटो तो खून नहीं। दोन@ उ%टे पैर@ लौट ग ए। ाी पी बुलाते रहे । सेमीनार 4म म1 जाकर िकरण ने ाी पी को िहं दी, उद ,ू पंजाबी म1 ग ािलयां दे नी शु4 कर दीं। आमोद भी बहत ु नाराज था। दोन@ िशकायत करना चाहते थे। पर केस नहीं बनता था। बनता था तो बहत ु ही साधरण। अब Fया िकया जाए? इसी नाजुक मोड़ पर कहानी म1 एक नया पाऽ आया है िकरण का भाई राकेश। खाते-पीते पिरवार को होने के कारण उसके पास मोटरसाइिकल थी। वह अFसर उस पर बैठकर आता था। इितहास म1 एम.ए. कर रहा था और िव[िव\ालय म1 रं ग बाज टाइप के छाऽ@ म1 था। ग ुंड ा या बदमाश नहीं था। लेिकन उसकी अUछी धाक थी। छाऽ संघ के चुनाव म1 उसका दबदबा रहता था और धाकड़ के 4प म1 उसकी ;याित थी। िकरण ने ाी पी वाली बात उसे बताई।

ाी पी साइिकल से घर लौट रहे थे। सड़क पर कुछ सनाटा था। सामने से एक तेज रझतार मोटरसाइिकल आ रही थी। ाी पी ने मोटरसाइिकल के िलए पूरा राःता छोड़ रखा था पर जैसे-जैसे वह पास आ रही थी उसकी रझतार बढ़ रही थी और िदशा िबलकुल उनके सामने वे डर ग ए। लेिकन उससे पहले िक कुछ कर सक1, मोटरसाइिकल िबलकुल उसके सामने आ ग ई। िफ र जोर को ॄेक लग ा। तेज आवाज आई। मोटरसाइिकल का अग ला पिहया ाी पी की साइिकल के अग ले पिहए से एक-दो इं च के फ ासले पर ठहर ग या। ाी पी के िदल की धड़कने तेज थीं ही, लेिकन राकेश को दे खते ही और बढ़ ग यीं। वे सब कुछ एक झटके म1 समझ ग ये। राकेश ने बड़े बूर ढं ग से मोटरसाइिकल खड़ी की और तेजी से उनकी ओर बढ़ा। वे कांप ग ये। राकेश ने अपने मजबूत हाथ से उनकी पुरानी साइिकल का ह िडल पकड़ िलया। 'नमःते सर!' राकेश ने भारी-भरकम आवाज म1 कहा। 'नमःते. . .नमःते. . .' उनका ग ला सूख रहा था। 'कैसे ह सर?' 'ठीक हंू भइया. . .ठीक हंू . . .तुम कैसे हो?' 'मुझे Fया होग ा. . .आप बताइए. . .घर जा रहे ह ?' राकेश ने इस तरह कहा जैसे कह रहा हो, आप घर जा रहे ह लेिकन म चाहंू तो आप अःपताल पहंु च सकते ह । 'और तो सब ठीक है न?' 'हां-हां, ठीक है. . .' 'अUछा नमःते. . .' वह जाने के िलए मुड़ा लेिकन िफ र ाी पी की तरफ घूम ग या और बोला, 'ठीक ही रहना चािहए।' ाी पी कांपने लग े। राकेश तेजी से मोटरसाइिकल पर बैठा और बड़े बूर ढं ग से एक झटके के साथ आग े बढ़ ग या।

ाी पी ने अग ले िदन Fलास म1 छायावाद नहीं पढ़ाया। छायावाद बहत  हो ग या है। ु अमूतन उह@ने अपने िूय िवषय सेFस पर भी बातचीत नहीं की। उह@ने अपने िपताजी की महानता और िवLता के िकःसे भी नहीं सुनाए। वे केवल यह बताते रहे िक वे िकतने अUछे , सUचे, सरल भले आदमी ह । वे छाऽ@ और िवशेष 4प से छाऽाओं का बहत ु स मान करते ह । उह1 भारतीय संःकृ ित के अनुसार दे िवयां समझते ह । जब उह@ने दे खा िक दे वी कहने से भी बात नहीं बन रही है तो बोले, म तो Fलास की ही नहीं पूरे िव[िव\ालय की सभी लड़िकय@ को बहन समझता हंू । उनका इतना स मान करता हंू िक उनको अपमािनत

करने की बात सोच भी नहीं सकता। ाी पी ने ऐसा शानदार अिभनय िकया िक अिभनेताओं को वैसा करने के िलए काफ ी अoयास और दिसय@ टे क दे ने पड़े । उनकी उUचकोिट की मािमक भावनाओं के ूित अपनी पूरी सदाशयता दशाते हए ु Fलास के सभी लड़क@ ने ाी पी को आदश भारतीय, आदश ूोफे सर, आदश pयिj, आदश पित, आदश पित मतलब यह िक आदश की साgात ् मूित ःवीकार िकया। हम लोग भी भावुक हो ग ये। ाी पी तो भावुक थे ही। माहौल कुछ िवदाई समारोह जैसा हो ग या अब िःथित यह थी िक ाी पी जो कहते थे हम उनकी 'हां` म1 'हां` िमलाते थे। हम जो कुछ कहते थे ाी पी उसकी 'हां` म1 'हां` िमलाते थे। लग ने लग ा िक हम एक-दसरे से इतना सहमत ह िजतना सहमत ू हो पाना असंभव है। यानी हमने असंभव को संभव कर िदखाया था। इस सबके बावजूद मजे की बात यह थी िक हम सब और शायद ाी पी सभी जानते थे िक हम सब जो कुछ कर रहे ह उसका मतलब वह नहीं है जो है, जो नहीं है वह है। यही एक सूऽ था जो मने पकड़ा था इसी सूऽ के आधार पर मने अपनी िशgा को जांचा तो पता चला िक जो िदखता है वैसा नहीं है। अपने आपको भी दे खा तो यही पाया। अपने पिरवेश को भी पाया, जो िदखता है वह नहीं है। यहीं से मेरी समःयाएं शु4 हो ग w। अब तो जैसी मेरी िशgा हई ु थी वह आप जान ही ग ये ह । उस पर सोने म1 सुहाग ा यह िक वह वैसी नहीं थी जैसी लग ती थी। जब मुझे यह लग ने लग ा िक मने जो कुछ भी अब तक पढ़ा है वह 'ढ@ग ` था तो मुझे बहु खुशी भी हई। अपने अlयापक@ के ूित मेरे मन म1 स मान भी जाग ा। ु Fय@िक यिद वे वाःतव म1 ग ंभीरता से पढ़ा दे ते तो शायद म कहीं का न रहता।

14 िवकिसत दे श की पहचान (1) ग ु : िवकिसत दे श की पहचान बताओ हिरराम। हिरराम : िवकिसत दे श कपड़ा नहीं बनाते ग ुदे व। ग ु : तब वे Fया बनाते ह ? हिरराम : वे हिथयार बनाते ह । ग ु : तब वे अपना नंग ापन कैसे ढकते ह ? हिरराम : हिथयार@ से उनकी नंग ई ढक जाती है। (2) ग ु : िवकिसत दे श की पहचान बताओ हिरराम।

हिरराम : िवकिसत दे श म1 लोग खाना नहीं पकाते। ग ु : तब वे Fया खाते ह ? हिरराम : वे 'फ ाःट फू ड` खाते ह । ग ु : हमारे खाने और 'फ ाःट फू ड` म1 Fया अंतर है। हिरराम : हम खाने के पास जाते ह और 'फ ाःटर फू ड` खाने वाले के पास दौड़ता हआ ु आता है। (3) ग ु : हिरराम िवकिसत दे श की पहचान बताओ। हिरराम : िवकिसत दे श@ म1 बUचे नहीं पैदा होते। ग ु : तब कहां कौन पैदा होते ह ? हिरराम : तब वहां कौन पैदा होते ह ? ग ु : वहां जवान लोग पै दा होते ह जो पैदा होते ही काम करना शु4 कर दे ते ह । (4) ग ु : िवकिसत दे श की पहचान बताओ हिरराम। हिरराम : िवकिसत दे श@ म1 सUचा लोकतंऽ है। ग ु : कैसे हिरराम? हिरराम : Fय@िक वहां केवल दो राजनैितक दल होते ह । ग ु : तीसरा Fय@ नहीं होता? हिरराम : तीसरा होने से सUचा लोकतंऽ समा हो जाता है। (5) ग ु : िवकिसत दे श की पहचान बताओ हिरराम। हिरराम : िवकिसत दे श@ म1 आदमी जानवर@ से बड़ा mयार करते ह । ग ु : Fय@? हिरराम : Fय@िक जानवर आदिमय@ से बड़ा mयार करते ह । ग ु : Fय@ नहीं वहां आदमी आदिमय@ से और जानवर@ से mयार करते ह ? हिरराम : Fय@िक िवकिसत दे श@ म1 आदिमय@ को आदमी और जानवर@ को जानवर नहीं िमलते। (6)

ग ु : िवकिसत दे श की कोई पहचान बताओ हिरराम। हिरराम : िवकिसत दे श िवकासशील दे श@ को दान दे ते ह । ग ु : और िफ र? हिरराम : िफ र कज दे ते ह । ग ु : और िफ र? हिरराम : िफ र cयाज के साथ कज दे ते ह । ग ु : और िफ र? हिरराम : और िफ र cयाज ही कज दे ते ह । ग ु : और िफ र? हिरराम : और िफ र िवकिसत दे श@ को िवकिसत मान लेते ह । (7) ग ु : िवकिसत दे श@ की पहचान बताओ हिरराम। हिरराम : िवकिसत दे श@ म1 बूढ़े अलग रहते ह । ग ु : और जवान? हिरराम : वे भी अलग रहते ह । ग ु : और अधेड़? हिरराम : वे भी अलग रहते ह । ग ु : तब वहां साथ-साथ कौन रहता है? हिरराम : सब अपने-अपने साथ रहते ह । (8) ग ु : िवकिसत दे श@ की पहचान बताओ हिरराम। हिरराम : िवकिसत दे श@ म1 मानिसक रोग ी अधिक होते ह । ग ु : Fय@? शारीिरक रोग ी Fय@ नहीं होते? हिरराम : Fय@िक शरीर पर तो उह@ने अिधकार कर िलया है मन पर कोई अिधकार नहीं हो पाया है। (9) ग ु : िवकिसत दे श की पहचान बताओ हिरराम। हिरराम : िवकिसत दे श@ म1 तलाक़1 बहत ु होती ह ।

ग ु : Fय@? हिरराम : Fय@िक ूेम बहत ु होते ह । ग ु : ूेम िववाह के बाद तलाक़ Fय@ हो जाती है? हिरराम : दसरा ूेम करने के िलए। ू (10) ग ु : िवकिसत दे श की पहचान बताओ हिरराम। हिरराम : िवकिसत दे श मानव अिधकार@ के ूित बड़े सचेत रहते ह । ग ु : Fय@? हिरराम : Fय@िक उनके पास ही िव[ की सबसे बड़ी सैय शिj है। ग ु : हिरराम सैय शिj और मानव अिधकार@ का Fया संबंध? हिरराम : ग ुदे व, िवकिसत दे श सैय बल Lारा ही मानव अिधकार@ की रgा करते ह । **-**

15 मुग ािबय@ के िशकारी अधेड़ उॆ लोग @ को आसानी से िकसी बात पर हैरत नहीं होती। जीवन की पतालीस बहार1 या पतझड़ इतने खƒटे -मीठे अनुभव@ से उसका दामन भर दे ती ह िक अUछा और बुरा, सुंदर और कु4प, Nयाग और ःवाथ वग रैा वग रैा के छोर और अितयां दे खने के बाद अधेड़ उॆ आदमी बहत ु कुछ पचा लेता है। डॉ. रामबाबू सFसेना यानी आर के सFसेना पचास के होने वाले ह । िद%ली कॉिलज से िरटायरम1ट म1 अभी साल बचे ह । डॉ. आर.के. सFसेना को आज हैरत हो रही है। उह1 लग ता है, ऐसा तो उह@ने सोचा भी न था! यह होग ा, इसका अंश बराबर अनुमान भी न था और इस तरह अनजान पकड़े जाने पर अपमान का जो बोध होता है, वह भी डॉ. सFसेना को हो रहा है। सामने Fलास म1 बैठे अlयापक उनकी बात@ पर हं स रहे ह । चिलए छाऽ हं स दे ते तो डॉ. सFसेना सॄ कर लेते िक चलो नहीं जानते, इसिलए हं स रहे ह । लेिकन ये ःकूल के अlयापक, िजह@ने कम से कम बी.ए. और उसके बाद बी.एड ज4र िकया है, हं स रहे ह तो डू ब मरने की बात है।

िकःसा कुछ य@ है िक डॉ. सFसेना के पास सुबह-सुबह डॉ. पी.सी. पाšडे य का फ ोन आया

िक अग र आज कुछ िवशेष न कर रहे ह@ तो ःकूल के अlयापक@ के शे िनंग ूोमाम म1 आकर दो-ढाई घंटे का भाषण दे द1 िक बUच@ को िहं दी कैसे पढ़ाई जानी चािहए। िजस तरह कहा ग या था उससे जािहर था िक कुछ िमलेग ा। डॉ. पांडे य ने अधिक ःपq कर िदया, डॉFटर साहब आप िनि—ंत रहो जैसा िक आप कहते हो मुग ािबय@ का िशकार है. . .हमने पूरी pयवःथा करा रखी है। जाल-वाल लग वा िदये ह । हांक-वाका लग वा िदया है. . .मचान-वचान बनवा दी है, अब आपकी कसर है िक आ जाओ और सोलह बोर की िलबिलबी दवा दो। डॉFटर पांडे य ने िवःतार से बताया।

उॆ म1 कम होते हए ु भी पांडे य और डॉ. सFसेना म1 अंतरं ग ता है। मुग ािबय@ यानी पानी पर उतरने वाली िचिड़य@ का िशकार डॉ. सFसेना की ईजाद है। बचपन म1 चालीस-पतालीस साल पहले अपनी निनहाल िमजापुर म1 अपने नाना दीवान रामबाबू राय के साथ मुग ािबय@ के िशकार पर जाया करते थे। मुग ािबय@ के िशकार पर जाने वाल@ की भीड़ लग ी रहती थी, Fय@िक िशकार का मतलब था मुग ािबय@ म1 मुझत का िहःसा नौकरी करने के बाद इधर-उधर सेमीनार@, कायशालाओं, संग ोि£य@ वग रैा म1 जो िमल जाता है उसके िलए पता नहीं कैसे डॉ. सFसेना ने मन म1 मुग ािबय@ के िशकार का िबंब बना िलया था। यह बात डॉ. सFसेना के िनकटतम लोग जानते ह िक वे 'उपरी` नहीं 'भीतरी` आमदनी को मुग ािबय@ का िशकार कहते ह ।

हां वो तो है. . .अUछा हैलेिकन डॉ. पांडे य, ये बताओ िक आयोजन Fया है? हिरयाणा के रहने वाले डॉ. शमा िवःतार से बात करते ह , 'अजी डॉ. साहे ब Fया बताव1. . .ये व%ड बक का ूोजेFट है जी. . .एक महीने का शे िनंग ूोमाम, इससे पहले 'टे Fःट बुक` बनवाने की 'वकशाप` करायी थी। आजकल ये चल रहा है। िद%ली म1 दस स1टर बनाये ह . . .हमारे जी 'होयल` एक हजार से xयादा टीचर ल. . .कुछ बड़े ःकूल@ म1 तो हालात अUछी है और कुछ म1 तो कूलर भी नहीं हैडाक साब. . .अब तु मी बताओ जी. . .िबना कूलर िवशेष को बुलावे तो शरम नई आयेग ी?. . .तो िफ र इसी सकूल चुने ह . . .कम से कम कूलर तो होव1 न डाक साहब. . .िवशेष. . .`

िवशेष और 'कूलर` यानी ग मu म1 ठं डा तापमान और सिद य@ म1 ग म बहत ु ज4री है व%ड बक म1 िरपोट हो जाए तो डॉ. पांडे य जैसे िनदे शक@ की नौकरी पर बन आयेग ी। वैसे डॉ. पांडे य से उनका पिरचय पुराना है। उह1 पीएच.डी. म1 एडमीशन लेना था इह@ने ूपोजल बनवाया, जमा कराया, पास करवाया, थीिसस िलखवाई, टाइप करायी, जमा करायी, परीgक@

को िभजवायी, िरपोट मंग वाई, वायवा कराया. . .पांडे य जी को पीएचडी एवाड करायी और िडमी घर िभजवायी थी। डॉ. सFसेना ने यह सब िकसी उं चे आदश या िवचार के तहत नहीं िकया था। एक मामला यह था िक फ रीदाबाद की सरकारी कालोनी से िमले ग ांव म1 पांडे य जी की जमीन थी िजस पर mलािटं ग की हई ु थी। 'डील` यह थी िक इधर पीएचडी होग ी, उधर जमीन का बैनामा होग ा। यह आदान-ूदान कायबम सुचा 4प से चला।

डॉ. सFसेना का 'सेशन` दस बजे से शु4 होना था। इस वj सवा दस हो रहा है। शे िनंग स1टर यानी ःकूल म1 िूंिसपल के कमरे म1 डॉ. पांडे य का pया;यान जारी है, 'डॉFटर साहे ब! ग िमय@ म1 िवशेष िमलने मुिँकल हो जाते ह . . .अरे िशमला या नैनीताल हो तो किहए म सैकड़@ िवशेष जमा कर दं ू लेिकन ग िमय@ म1 िद%ली. . .अरे भाईजी, ूधानमंऽी और ु रा पित वग रैा की बात तो छोड़ दो, छटभइये नेता तक ग िमय@ म1 राजधानी छोड़ दे ते ह . . .अब जब पानी नहीं बरसेग ा, यही समःया रहे ग ी. . .अब दे खोजी, हम1 तो यही ओदश ह िक िवशेष@ की मानो. . .तो हम पालन करते ह . . .िव[ बक से हम लोग @ ने दस करोड़ मांग ा था नये ःकूल खोलने के िलए। उह@ने कहा दस करोड़ से पहले 'ये` और 'ये` और 'ये` कराय1ग े। इसके िलए पांच करोड़ द1 ग े. . .िफ र पा±यबम बदलने को इतना, िफ र इतना. . .होते-होते सौ करोड़ हो ग या. . .चलो ठीक है, िशgा पर पैसा लग रहा है. . .पर समझ म1 कम ही आता है। अब दे खोग े, इहीं िवशेष@ ने बUच@ के बःत@ का वजन बढ़ाया िफ र ू जा रही है. . अब सुनो जी िवशेष कये ह हमारी येई बोले, बUच@ की तो कमर टटी िशgा चौह‚ी म1 कैद हो ग यी है। दे खो जी, पहले ःकूल की चारदीवार1 . ..िफ र कहव1 है। Fलास 4प की चार दीवार@. . .पा±यबम की चार दीवार1 , अlयापक की चार दीवार1 . . .परीgा की चार दीवारी. . .अब बोलो. . .आदे श हो जाए तो तोड़ दी जावे सब दीवाल1. . .`

'साढे दस बज रहा है।` डॉ. सFसेना बोले। 'अरे डाक साहे ब Fय@ जि%दया रहे हो. . .अभी न आये ह@ग े।` पतालीस अlयापक, िजनम1 आधी के करीब मिहलाएं और लड़िकयां। कुछ अlयापक ग ंवार जैसे लग रहे थे और कुछ अlयािपकाएं अUछा-खासा फैशन िकये हए ु थीं। इन सबके चेहर@ पर एक असहज भाव था। ऐसा लग ता था िक वे इस सबसे सहमत नहीं ह जो हो रहा है या होने जा रहा है। डॉ. सFसेना ने सोचा, ऐसा तो अFसर ही होता है। जब बातचीत शु4 होग ी तो िव[ास का िरँता बनता चला जाएग ा और असहजता दरू हो जाएग ी। डॉ.

सFसेना ने बहत ु ूभावशाली ढं ग से अपनी बात शु4 की और मु‚े के िविभन पg@ को रे खांिकत िकया तािक उन पर िवःतार से चचा हो सके। इन सब ूयास@ के बाद भी डॉ. सFसेना को लग ा िक सामने बैठे अlयापक@-अlयािपकाओं के चेहरे पर मजाक उड़ाने, उपहास करने, बोलने वाल@ को जोकर समझने के भाव आ ग ये ह । कुछ जेरे-लब मुःकुराने भी लग े। तीस साल पढ़ाने और दq ु से दq ु छाऽ को सीधा कर दे ने का दावा करने वाले डॉ. सFसेना अपना चेहरा, िकतना कठोर बन सकते थे, बना िलया। आवाज िजतनी भारी कर सकते थे कर ली और बॉडी ल™वेज को िजतना आबामक बना सकते थे बना िलया। लेिकन हैरत की बात यह िक सामने बैठे लोग @ के चेहर@ पर उपहास उड़ाने वाला भाव िदखाई दे ता रहा। एक अlयािपका के चेहरे पर ऐसे भाव आये जैसे वह कुछ कहना चाहती ह । 'सर आप जो कुछ बता रहे ह बहत ु अUछा है। पर हमारे काम का नहीं है।` अlयािपका बोली।

इस ूितिबया पर डॉ. सFसेना को ग ुःसा तो बहत ु आया लेिकन पी ग ये और बोले, 'Fया समझ नहीं आ रहा?` 'नो सर. . .समझ म1 तो सब आ रहा है।` 'तब यह उपयोग ी Fय@ नहीं लग रहा है?` डॉ. सFसेना ने पूछा और अlयापक@ की पूरी Fलास खुल कर मुःकुराने लग ी। डॉ. सFसेना ने सोचा, Fया वे 'थड िडमी` म1 चले जाएं? पर यह भी लग ा िक ये लड़के नहीं ह , अlयापक ह , कहीं ग ड़बड़ न हो जाए। 'सर, जहां बUचे पढ़ना ही न चाहते ह@ वहां टीचर Fया कर सकता है?` एक ूौढ़ अlयापक ने ग ंभीरता से कहा और कुछ नौजवान अlयापक हं स िदये। डॉ. सFसेना का खून खौल ग या। वे तुरंत समझ ग ये िक ये साले मुझे. . .यानी मुझे यानी डॉ. आर.बी. सFसेना ूोफे सर अlयg और पता नहीं िकतनी रा ीय सिमितय@ और दल@ के सदःय को उखाड़ना चाहते ह , इनको शायद मालूम नहीं िक इनका सबसे बड़ा बॉस मुझे सर कहता है और पूरी बातचीत म1 िसफ 'सर` ही 'सर` करता रहता है। 'बUचे पढ़ना नहीं चाहते या आप लोग पढ़ाना नहीं चाहते।` डॉ. सFसेना ने पलटकर वार िकया। 'सर, हम बUच@ को पढ़ाना चाहते ह . . .ईमानदारी से पढ़ाना चाहते ह . . .पर वे नहीं

पढ़ते।` एक लेड ी टीचर बोली। उसका बोलने का ढं ग और चेहरे के भाव बता रहे थे िक वह सच बोल रही है और मजाक नहीं उड़ा रही है। 'सर, आप ऐसे नहीं समझोग े. . .` एक मामीण gेऽ का सा लग ने वाला अlयापक बोला, 'ऐसे है जी िक हमारे ःकूल@ म1 सबसे कमजोर बरग के बUचे आवे ह ।` 'बरग नहीं वग . . .` िकसी ने चुपके से कहा िक पूरी Fलास हं सने लग ी। 'वही समझ लो जी. . .अपनी तो भाषा ऐसी है. . .तो जी. . .` 'ठीक है, ठीक है, बैिठए म समझ ग या।` डॉ. सFसेना ने अlयापक को चुप करा िदया। एक फे शनेबुल अlयािपका बोलने लग ी, 'सर, हमारे ःकूल@ म1 मजदर@ ू , रे ड़ी वाल@, ठे ले वाल@, कामग ार@, सफ ाई करने वाल@, माली-धोबी पिरवार@ के बUचे आते ह । सर, हम उह1 वह सब िसखाते ह जो आमतौर पर बUच@ को मां-बाप िसखा दे ते ह । उह1 बैठना तक नहीं आता। खाना नहीं आता। इह1 हम िसखाते ह िक दे खो सबके सामने नाक म1 उं ग ली डालकर. . .।` पूरी Fलास हं सने लग ी। 'तो िफ र बताइये सर. . .?` 'तो पढ़ाने म1 Fया ूाcलम है?` 'बUचे रे ग ुलर ःकूल नहीं आते. . .लंच टाइम म1 आते ह । ःकूल की तरफ से लंच िमलता है, वह खाते ह और चले जाते ह . . .कभी उनके पिरवार वाल@ को इलाके म1 मजदरी ू नहीं िमलती तो कहीं ओर चले जाते ह . . .`

'अरे , ये सब बUच@ के साथ तो न होता होग ा?` डॉ. सFसेना ने उह1 पकड़ा। 'सर, ये समझ लो. . .बUचा ःकूल म1 पाँचवी तक पढ़ता है, पास होकर चला जाता है, पर वह क ख ग न तो पढ़ सकता है न िलख सकता है।` डॉ. सFसेना को लग ा, यह सफे द झूठ है और अग र कहीं ये सच है तो इससे बड़ा कोई सच नहीं हो सकता। यह कैसे 'पॉिसबल` है, डॉ. सFसेना की आवाज म1 िवशेष@ वाली ठनक आ ग यी। 'सर, इस तरह के बUच@ को हम फे ल नहीं कर सकते?` डॉ. सFसेना को धFका और लग ा। यह कैसे पढ़ाई है और कैसा ःकूल है? 'Fया आपको ऐसा आदे श िदया ग या है िक. . .` 'सर, िलखकर तो नहीं. . .मौिखक 4प से िदया ही ग या है। तक यह है िक फे ल होने पर

लड़के पढ़ाई छोड़ दे ते ह और. . .` 'तो ःकूल म1 कोई फे ल नहीं होता?` 'यस, सर . . .७५ ूितशत हािजरी िजसकी भी होती है उसे पास करना पड़ता है।` एक किठनाई डॉ. सFसेना को यह लग रही थी िक बातचीत ःकूल pयवःथा पर क1िित हो ग यी थी जबिक यहां उनका काम अUछे िशgण पर भाषण दे ना था। 'दे िखये, ऐसा है िक आप लोग बUच@ की पढ़ाई म1 िदलचःपी पैदा कराने के िलए कुछ तो कर ही सकते ह ।` 'Fय@ नहीं. . .ज4र कुछ बUचे पढ़ते भी ह पर जब वे जानते ह िक पढ़ने वाले और न पढ़ने वाले दोन@ पास हो जाएंग े तो बस. . .` 'दे िखये, म यह जोर दे कर कहना चाहता हंू िक आप लोग हर हालत म1 अपनी 'परफ ाम¦स` इं ूूव कर सकते ह ।` 'सर, कृ पया मेरी एक छोटी और बुिनयादी बात पर िव[ास कर1 िक अग र. . .उह@ने दाढ़ी वाले अlयापक की बात काट दी Fय@िक उह1 मालूम है िक छोटी बुिनयादी बात@ का वह जवाब न दे पाय1ग े। 'दे िखये समःयाएं तो ह@ग ी ही. . . .पर . . .`

उनकी बात काटकर एक अlयािपका बोली, 'सर, आपने वह िकताब दे खी है जो हम पहले दज} के बUचे को पढ़ाते है।` उसने िकताब बढ़ाते हए ु कहा, 'पहला पाठ हैरसोईघर. . .पहला वाFय 'फ ल खा` िजन बUच@ को हम पढ़ाते ह वे जानता ही नहीं िक फ ल Fया होता है?` अlयापक ने कहा और बाकी सब हं सने लग े।

'दे िखये सर, यह रसोईघर का िचऽ बना है. . .हमारे बUच@ ने तो ग स ै िसल1ड र, िृज, बतन रखने की अलमािरयां दे खी तक नहीं होतीं. . .उनकी समझ म1 यह सब Fया आयेग ा. . .? जब तक डॉ. सFसेना जवाब दे ते, एक दसरा सवाल उछला, 'सर, िजस बUचे को 'क` 'ख` 'ग ` ू न आता हो वह वाFय कैसे पढ़े ग ा या सीखेग ा?` 'दे िखये, इसे डायरे Fट मैथेड कहते ह ।` 'वो 'क` 'ख` 'ग ` वाले िसःटम म1 Fया खराबी थी?` 'अब दे िखये, िवशेष@ को लग ा िक नये मैथड से. . .`

'सर मैथड छोिड़ये. . .ये दे िखये मां का िचऽ िसलाई कर रही है। िपताजी ऑिफ स जा रहे ह । हाथ म1 छाता और पोट फ ोिलयो है. . हमारे ःकूल के बUचे झु™ग ी-झोपड़ी मजदरू. . .` डॉ. सFसेना उनकी बात काट कर बोले, 'Fया नयी िकताब बनाते समय िवशेष@ ने आप लोग @ से या ःकूल के बUच@ से कोई बातचीत की थी।` 'नहीं, चालीस आवाज1 एक साथ आयी। 'अब बताइये सर. . .हम Fया कर1 . . .ग ाज हमारे ही उपर िग रती है. . .बUच@ को Fया 'इनकरे ज` करे ?`

'आप, लोग िनजी तौर पर तो कुछ कर सकते ह ?` 'सर, हमारे ःकूल म1 सात सौ लड़के ह । ™यारह अlयापक ह । एक Fलास 4प म1 तीन Fलास1 बैठती ह । एक अlयापक एक साथ तीन कgाओं को पढ़ाता है।` डॉ. सFसेना को लग ा जैसे वे आ—य के समुि म1 डू बते चले जा रहे ह . . .धीरे -धीरे अंधेरे म1 िकसी बहत ु बड़े समुिी जहाज की तरह उनके अंदर पानी भर रहा है और आNमा धीरे धीरे िनकल रही है. . .यह Fया हो रहा है? अlयापक यह िस+ िकये दे रहे ह िक वह भी एक बड़े भारी षयंऽ का िहःसा है।

'दे िखये यह िःथित हर ःकूल म1 तो नहीं होग ी?` डॉ. सFसेना ने कहा। 'हां सर, यह बात तो आपकी ठीक है. . .मामीण gेऽ@ म1 जो ःकूल ह . . .वहां यह िःथित है. . .शहरी gेऽ@ म1. . .` 'शहरी gेऽ@ म1 बUचे ग रै-हािजर बहत ु रहते ह . . .` 'सर, दरअसल इनको पढ़ाना है तो पहले इनके मां-बाप को पढ़ाओ।` िकसी चंचल अlयािपका ने कहा और सब हं स पड़े ।

'हां जी, सौ की सीधी बात है।` िकसी ने ूितिबया दी। डॉ. सFसेना घबरा ग ये। िफ र वही हो रहा है। ये लोग मुझे 'डु बो` रहे ह उस पानी म1 जहां मुग ािबयां नहीं ह . . .जहां पानी ही पानी है। 'सर, बUच@ के मां-बाप को पढ़ाया जाए तो उह1 िखलायेग ा कौन?` 'सरकार िखलाये?` िकसी अlयापक ने कहा। 'सरकार के पास इतना है?` िकसी दसरे अlयापक ने कहा। ू 'Fय@ नहीं है?`

'अभी पढ़ा नहीं? उ\ोग पितय@ का ढाई हजार करोड़ कज माफ कर िदया हैसरकार ने. . .Fया कहते ह अंमेजी म1 बड़ा अUछा नाम िदया है- नॉन िरकविरं ग . . . .` डॉ. सFसेना ने घबराकर अlयापक की बात काट दी, 'ठहिरये. . .ये यहां िडःकस करने का मु‚ा नहीं है।` वे डर हरे थे िक डायरे Fटर साहब कह1 ग े- Fय@ जी आप के यहां मुग ािबय@ का िशकार करने के िलए बुलाया ग या था और आप तो िशकािरय@ का िशकार करने वाली बात1 करने लग े। 'अरे , ये राजनीित ग ंदी चीज ह । छोिड़ये इसको, केवल यह बताइए िक बUच@ की पढ़ाई को िकस तरह से बेहतर बनाया जा सकता है।`

'सर अब बात िनकल आयी है तो कहने दीिजए सर. . .हमारे ःकूल@ म1 हमारे अिधकािरय@ के बUचे Fय@ नहीं पढ़ते? मंिऽय@ के बUचे सरकारी ःकूल@ म1 Fय@ नहीं जाते।` डॉ. सFसेना िफ र िववश हो ग ये, 'ठहिरये. . .ये बात1 आप लोग अपने संग ठन@ म1 'िडःकस कर1 ।` 'सर, हमारे संग ठन@ म1 यह कभी 'िडःकस` नहीं होता।`

'दे िखये अब म आप लोग @ से मनोवैािनक पg@ पर बात करना चाहता हंू । बUच@ के पढ़ाने के िलए आवँयक है िक हम उनके मनोिवान को समझ1. . । हर बUचे का अपन अलग मनोिवान होता है. . .`

अlयापक आपस म1 बात1 कर रहे थे। मिहला अlयािपका बड़े सहज ढं ग से खुसुर-पुसुर कर ही थी। ऐसा लग ता था जैसे वे इतवार के िदन जाड़@ की रे शमी धूप म1 बैठी ःवेटर बुन रही ह@ और बात1 कर रही ह@। पुष अlयापक@ के भी कई ग ुट बन ग ये थे और सब बात@ म1 लीन हो ग ये थे। एक दो अlयापक बार-बार घड़ी दे ख रहे थे। डॉ. सFसेना लग ातार िबना के बोले जा रहा है। वह मुग ािबय@ का िशकार खेल रहे थे। वह चाहते भी नहीं थे िक अlयापक lयान से उनके पास थे नहीं या वह दे नहीं सकते थे Fय@िक वह तो मुग ािबय@ के िशकारी ह ।

कुछ दे र बात शोर का ःव4प बदल ग या। अब शोर ने छोटे -छोटे समूह@ के आकार को तोड़ िदया और वह Fलासpयापी हो ग या और उह1 लग ा िक बोल भी नहीं पाय1ग े। 'आप लोग Fया बात1 कर रहे ह ?` उह@ने पूछा।

'सर, हमारी Fलास एक बजे समा होग ी।` 'हां, मुझसे आपके डायरे Fटर ने यही कहा है िक एक बजे तक म आपको लेFचर दे ता रहंू ।` 'सर, उसके बाद हमारी हाजरी होग ी।` 'ठीक है।`

'नहीं सर. . .ठीक कैसे है. . .एक बजे तो Fलास खNम हो जाती है। हम1 चले जाना है। एक बजे अग र हाजरी होग ी तो पंिह िमनट तो हाजरी म1 लग जाएंग े।` एक मिहला अlयािपका बोली। 'तो िफ र` ु 'हमारी हाजरी पौन बजे होना चािहए तािक हम ठीक एक बजे छƒटी पा सक1।` 'दस-पिह िमनट से Fया फ क पड़ता है।` डॉ. सFसेना ने कहा।

ु जाएग ी. . .िफ र एक घंटे बाद बस है. . .घर पहंु चते-पहंु चते तीन बजे 'मेरी बस छट जाएंग े। उह1 खाना दे ना है। बंटी को ःकूल बस से लेना है। रोटी डालना है. . .उह1 ग रम रोटी ही दे ती हंू । दाल म1 छ@क भी नहीं लग ायी है. . .'मिहला बोलती रही।. . .एक पुष ु अlयापक ने कहा, 'वैसे भी िस+ांत की बात है.... यिद एक बजे छƒटी होनी है तो एक ही बजे होनी चािहए।` 'मुझे तो नजफ ग ढ़ जाना है. . .दे र हो जाती है तो अंधेरा हो जाता है. . .िबमनल एिरया पड़ता है. . .कुछ हो ग या तो. . .` लड़की चुप हो ग यी।

'हाजरी पैन बजे ही होनी चािहए।` एक दादा िकःम के अlयापक ने धमकी भरे अंदाज म1 कहा। 'सर, लेड ीज की ूॉcलम कोई नहीं समझता. . .म तो खै र मैरीड हंू . . .बUचे बःते िलए घर के बाहर 'वेट` कर रहे ह@ग े. . .चाबी पड़ोस म1 दे ने के िलए 'वो` मना करते ह . . .सर जो लेड ी टीचर मैरीड नहीं ह उनके घर@ म1 भी कुछ तो है ही है सर. . .` 'सर, हम लड़िकयां दे र से घर पहंु चे तो हजार तरह की बात1 होने लग ती ह ।`

डॉ. सFसेना को लग ा िक इस समय संसार का सबसे बड़ा और ज4री काम यही है िक इन लोग @ की पंिह िमनट पहले हाजरी हो जाए तािक ये ठीक एक बजे ःकूल से िनकल

सक1। उह@ने डायरे Fटर पांडे य जी को बुलाया। वे रिजःटर लेकर आये। रिजःटर जैसे ही मेज पर रखा ग या, यह लग ा ग ंदे िचपिचपे मैले िमठाई बांधने वाले कपड़े पर मिFखय@ ने हमला बोल िदया हो। ऐसी कांय-कांय, भांय-भांय होने लग ी िक कुछ समझ म1 नहीं आ रहा था।

डॉ. सFसेना थके हारे और कुछ अपमािनत भी डायरे Fटर के कमरे म1 जहां कूलर चल रहा था, आ ग ये। डॉ. पांडे य को पता नहीं कैसे मालूम हो ग या िक Fलास म1 मेरे साथ Fया हआ। 'अब दे खो जी, हम तो इह1 'बेःट शे नर` दे ते ह . . .अब इनकी िज मेदारी है िक ये ु कुछ सीखते ह या नहीं।`

डॉ. सFसेना डॉ. पांडे य से कहना चाहते थे िक यार पांडे य Fया तु ह1 हकीकत म1 कुछ नहीं मालूम? या तुम सब जानते हो? डॉ. पांडे य Fया तु ह1 नहीं मालूम िक एक सौ तक सब उलट-पुलट ग या है। वह यह सब सोच रहे थे और डॉ. पांडे य पता नहीं कैसे समझ ग ये िक उनके पास सीधे और छोटे सवाल ह । डॉ. पांडे य वही करने लग े जो डॉ. सFसेना Fलास 4म म1 कर रहे थे। यानी िबना के, लग ातार बोलने लग े तािक सवाल पूछने का मौका न िमले। डॉ. पांडे य लग ातार बोल रहे ह , वे सांस ही नहीं ले रहे , 'अब जी ये तो दसरा िदन है. . .तीस िदन ू चलना है वकशाप. . .िफ र िरपोट बनेग ी व%ड बक को जाएग ी. . .बाइस स1टर बनाये ग ये ह । हर स1टर म1 सौ के करीब टीचर ह . . .` भाषण दे ते-दे ते ही उह@ने डॉ. सFसेना बढ़ाया। जािहर है उसम1 मुग ाबी ही है। उह@ने िलफ ाफ ा जेब म1 रख िलया। डॉ. पांडे य बोले जा रहे ह . . .।

डॉ. सFसेना दरवाजे के बाहर दे ख रहे ह , िशgक ःकूल के बाहर िनकल रहे ह . . .िफ र लग ा िक न तो ये िशgक ह , न वह शे नर ह , न डॉ. पांडे य िनदे शक ह , न ये ःकूल है। डॉ. सFसेना को हैरत हई ु िक वह इतने रहःयवादी कैसे बने ग ये। पर अUछा लग ा. . .डॉ. पांडे य बोले जा रहे ह . . .मुग ािबयां पानी पर उतर रही है. . .डॉ. सFसेना खामोश ह Fय@िक िशकारी चुप रहते ह , बोलते ही िशकार उड़ जाता है. . .लेिकन उह1 यह यकीन Fय@ है िक वह मुग ािबय@ का िशकारी है...हो सकता है वह या डॉ. िऽपाठी मुग ाबी ह@ और िशकारी. . .। ***-***

16 लकिड़यां (1) ँयामा की जली हई ु लाश जब उसके िपता के घर पहंु ची तो बड़ी भीड़ लग ग यी। इतनी भीड़ तो उसकी शादी म1 िवदाई के समय भी नहीं लग ी थी। ँयाम की बहन@ की हालत अजीब थी Fय@िक वे कुंवारी थीं। ँयामा की मां लग ातार रोई जा रही थी। िरँतेदार उसे िदलासा भी Fय@ दे ते। ँयामा के िपता जली हई ु ँयामा को दे ख रहे थे। उनकी आंख@ से आंसू बहे चले जा रहे थे। ँयामा का पित और दे वर पास खड़े थे। ँयामा के पित ने ँयामा के िपताजी से कहा 'पापा आप रोते Fय@ ह . . .ँयामा को िबदा करते समय आपने ही तो कहा था िक बेटी तु हारी डोली इस घर जा रही है अब तुम ससुराल से तु हारी अथu ही िनकले।' दे वर बोला 'चाचा जी ँयामा ने आपकी इUछा ज%दी ही पूरी कर दी।' ँयामा के ससुर जी बोले 'बेकार समय न बबाद करो। अब यहां तमाशा न लग ाओ। चलो ज%दी िबया-करम कर िदया जाये।' (2) ँयामा की जली हई ु लाश थाने पहंु ची तो वहां पहले से ही दो नविववािहता लड़िकय@ की जली हई ु लाश1 रखी थीं। थाने म1 शांित थी। पीपल के पzे हवा म1 खड़खड़ा रहे थे और जीप का इं जन लंबी-लंबी सांस1 ले रहा था। दरोग ा जी को खबर की ग यी तो वे पूजा इNयािद करके बाहर िनकले और ँयामा की जली लाश को दे खकर बोले, 'यार ये लोग एक िदन मं एक ही लड़की को जलाकर मारा कर1 । एक िदन म1 तीन-तीन लड़िकय@ की जली लाश1 आती ह । कानूनी कायवाही भी ठीक से नहीं हो पाती।' िसपाही बोला, 'सरकार इससे तो अUछा लोग हमारे ग ांव म1 करते ह । लड़िकय@ को पैदा होते ही पानी म1 डु बोकर मार डालते ह ।' दरोग ा बोले, 'ई[र सभी को स²ि+ ु दे ।'

(3) ँयामा की लाश अदालत पहंु ची। जब सबके बयान हो ग ये तो ँयामा की जली लाश उठकर खड़ी हो ग यी और बोली, 'जज साहब मेरा भी बयान दज िकया जाये।' ँयामा के पित का वकील बोला, 'मीलाड ये हो ही नहीं सकता, जली हई ु लड़की बयान कैसे दे सकती है।' पेशकार बोला, 'सरकार यह तो ग रैकानूनी होग ा।'

Fलक बोला, 'हजूर ऐसा होने लग ा तो कानून pयवःथा का Fया होग ा।' ँयामा ने कहा, 'मेरा बयान दज िकया जाये।' अदालत ने कहा, 'अदालत तु हारा दज नहीं कर सकती Fय@िक तुम जलकर मर चुकी हो।' ँयामा ने कहा, 'दसरी लड़िकयां तो िज़ंदा ह ।' ू अदालत ने कहा, 'ये तुम लड़िकय@ की बात कहां से िनकल बैठी।' (4) ँयामा की जली लाश जब अखबार के दझतर पहंु ची तो नाइट िशझट का एक सब-एडीटर मेज़ पर िसर रखे सो रहा था। ँयामा ने उसका कंधा पकड़कर जग ाया तो वह आंख1 मलता हआ उठकर बैठ ग या। उसने ँयामा की तरफ दे खा और उसे 'आपका अपना शहर` ु पने के कोने म1 डाल िदया। ँयामा ने कहा, 'अभी तीन साल पहले ही मेरी शादी हई ु थी मेरे िपता ने पूरा दहे ज िदया था लेिकन लालची ससुराल वाल@ ने मुझे दहे ज के लालच म1 अपने लड़के की दसरी शादी ू की लालच म1 मुझे जलाकर मार डाला।' सब-एडीटर बोला, 'जानता हंू , जानता हंू . . .वही िलखा है. . .हम अखबार वाले सब जानते ह ।' 'तो तुम पहले पने पर Fय@ नही डालते,' ँयामा ने कहा। सब-एडीटर बोला, 'म तो बहत ु चाहता हंू । तुम ही दे ख लो पहले पने पर जग ह कहां है। लीड यूज लग ी है। दे श ने सौ अरब पये के हिथयार खरीदे ह । सेकेšड लीड है मंिऽमšडल ने चांद पर राकेट भेजने का िनणय िलया है। आठ आतंकवादी मार िग राये ग ये ह और सुपर डु पर हपर ःटार को हॉलीवुड की िफ %म म1 काम िमल ग या है। बाकी ु पेज पर 'िफ टमिफ ट अšडर िवयर` है।' 'कहीं कोने म1 मुझे भी लग ा दो', ँयामा बोली। 'लग ा दे ता. . .पर नौकरी चली जायेग ी।' (5) ँयामा की जली हई ु लाश जब ूधनमंऽी सिचवालय पहंु ची तो हड़कंप मच ग या। सिचवविचव उठ-उठकर भाग ने लग े। संतरी पहरे दार डर ग ये। उह1 ँयामा की शकल अपनी लड़िकय@ से िमलती जुलती लग ी। इतने म1 िवशेष सुरgा दःते वाले, छापामार यु+ म1 दg कमाšडो आ ग ये और ँयामा की तरफ बंदक ू 1 , संग ीन1 तानकर खड़े हो ग ये। पुिलस अिधकारी ने कहा, 'एक कदम भी आग े बढ़ाया तो ग ोिलय@ से छलनी कर दी जाओग ी।' 'म ूधनमंऽी से िमलना चाहती हंू ।'

'ूधनमंऽी Fया कर1 ग े. . .यह पुिलस केस है।' 'पुिलस Fया करे ग ी?' 'अदालत म1 मामला ले जायेग ी।' 'अदालत Fया करे ग ी. . . वही जो मुझसे पहले जलाई ग यी लड़िकय@ के हNयार@ के साथ िकया है। म तो ूधानमंऽी से िमलकर रहंू ग ी,' ँयामा की जली लाश आग े बढ़ी। और अधिक हड़क प मच ग या। उUच ःतरीय सिचव@ की बैठक बुला ली ग यी और तय पाया िक ँयामा को ूधनमंऽी के सामने पेश करने से पहले ग ह ृ मंऽी, िवदे श मंऽी, िवz मंऽी, समाज क%याण मंऽी आिद का बुला िलया जाये। नहीं तो न जाने ँयामा ूधनमंऽी से Fया पूछ ले िक िजसका उzर उनके पास न हो। (6) ँयामा की जली लाश जब बाज़ार से ग ुज़र रही थी तो लोग अफ सोस कर रहे थे। 'यार बेचारी को जलाकर मार डाला।' 'Fया कर1 यार. . .ये तो रोज़ का खेल हो ग या।' 'पर यार इस तरह. . .नcबे परस1ट जली है।' 'अरे यार इसके पापा को चािहए था िक माित दे ही दे ता।' 'कहां से लाता, उसके पास तो ःकूटर भी नहीं है।' 'तो िफ र लड़की पैदा ही Fय@ की?' 'इससे अUछा था, एक माित पैदा कर दे ता।' (7) ँयामा की जली लाश जब अपने ःकूल पहंु ची तो लड़िकय@ ने उसे घेर िलया। न ँयामा कुछ बोली, न लड़िकयां कुछ बोली, न ँयामा कुछ बोली, न लड़िकयां कुछ बोली, न ँयामा कुछ बोली, न लड़िकयां कुछ बोली, खामोशी बोलती रही। कुछ दे र के बाद एक टीचर ने कहा, 'आठवीं म1 िकतने अUछे नंबर आये थे इसके।' दसरी टीचर ने कहा, 'दसवीं म1 इसके नंबर अUछे थे।' ू तीसरी ने कहा 'आग े पढ़ती तो अUछा कैिरयर बनता।' ँयामा की लाश होठ@ पर उं ग िलयां रखकर बोलीं, 'शी{शी{शी. . .आदमी भी सुन रहे ह ।' (8) ँयामा की जली हई ु लाश उन पंिडतजी के घर पहंु ची िजह@ने उसके फे रे लग वाये थे। पंिडत जी ँयामा को पहचान ग ये। ँयामा ने कहा, 'पंिडत जी मुझे िफ र से फे रे लग वा दो।' पंिडत जी बोले, 'बेटी, अब तुम जल चुकी हो, तुमसे अब कौन शादी करे ग ा।' ँयामा बोली, 'पंिडत जी शादी वाले नहीं, उ%टे फे रे लग वा दो।'

पंिडत जी बोले, 'बेटी तुम चाहती Fया हो?' ँयामा बोली, 'तलाक' पंिडत जी ने कहा, 'अरे तुम जल चुकी हो, तु ह1 Fया फ क पड़े ग ा तलाक से।' ँयामा बोली, 'हां आप ठीक कहते ह , उ%टे फे र@ से न मुझ पर अंतर पड़े ग ा. . .न आप पर अंतर पड़े ग ा. . .न मेरे पित पर फ क पड़े ग ा. . .पर िजनके सीधे फे रे लग ने वाले ह उन तो अंतर पड़े ग ा।' (9) ँयामा की जली लाश भग वान के घर पहंु ची तो भग वान सृिq को चलाने का किठन काम बड़ी सरलता से कर रहे थे। ँयामा ने भग वान से पूछा, 'सृिq के िनमाता आप ही ह ?' भग वान छाती ठ@ककर बोले, 'हां म ही हंू ।' 'संसार के सारे काम आपकी इUछा से होते ह ।' 'हां, मेरी इUछा से होते ह ।' 'मुझे आपकी इUछा से ही जलाकर मार डाला ग या था।' 'हां, तु ह1 मेरी ही इUछा से जलाकर मार डाला ग या था।' 'मेरे पित के िलए आपने ऐसी इUछा Fय@ नहीं की थी?' 'पित परमे[र होते ह । वे जलते नहीं, केवल जलाते ह ।' (10) ँयामा की जली लाश मानव अिधकार सिमित वाले के पास पहंु ची तो वे सब उठकर खड़े हो ग ये। उह@ने कहा, 'यह जघय अपराध है। हमने इस तरह के बीस हज़ार मामल@ का पता लग ा कर मुक़दमे दायर कराये ह लेिकन आमतौर पर अपराधी बच िनकलते ह । लोग @ म1 लोभ और लालच बहत ु बढ़ ग या है, धन के िलए वे कुछ भी कर सकते ह । ये सब जानते ह ।' ँयामा बोली, 'इसीिलए म खामोश हंू ।' सदःय@ ने कहा, 'बोलो ँयामा बोलो. . .बोलो. . .जब तक तुम नहीं बोलोग ी हमारी आवाज़ कोई नहीं सुनेग ा।' **-**

17 म िहं द ू हंू ऐसी चीख िक मुद} भी कॄ म1 उठकर खड़े हो जाएं। लग ा िक आवाज़ िब%कुल कान@ के पास से आई है। उन हालात म1. . .म उछलकर चारपाई पर बैठ ग या, आसमान पर अब

भी तारे थे. . .शायद रात का तीन बजा होग ा। अcबाजान भी उठ बैठे। चीख िफ र सुनाई दी। सैफ अपनी खुर“ चारपाई पर लेटा चीख रहा था। आंग न म1 एक िसरे से सबकी चारपाइयां िबछी थीं। 'लाहौलिवलाकुpवत. . .' अcबाजान ने लाहौल पढ़ी 'खुदा जाने ये सोते-सोते Fय@ चीखने लग ता है।' अ मा बोलीं। 'अ मा इसे रात भर लड़के डराते ह . . .' मने बताया। न नहीं पड़ता. . .लोग @ की जान पर बनी है और उह1 शरारत1 सूझती 'उन मुओं को भी चै ह ', अ मा बोलीं। सिफ या ने चादर म1 मुंह िनकालकर कहां, 'इसे कहो छत पर सोया करे ।' सैफ अब तक नहीं जग ा था। म उसके पलंग के पास ग या और झुककर दे खा तो उसके चेहरे पर पसीना था। साँस तेज़-तेज़ चल रही थी और िजःम कांप रहा था। बाल पसीने म1 तर हो ग ए और कुछ लट1 माथे पर िचपक ग ई थी। म सैफ को दे खता रहा और उन लड़क@ के ूित मन म1 ग ुःसा घुमड़ता रहा जो उसे डराते ह ।

तब दं ग े ऐसे नहीं हआ करते थे जैसे आजकल होते ह । दं ग @ के पीछे िछपे दशन, रणनीित, ु कायप+ित और ग ित म1 बहत ु पिरवतन आया है। आज से पUचीस-तीस साल पहले न तो लोग @ को िजं_ा जलाया जाता था और न पूरी की पूरी बिःतयां वीरान की जाती थीं। उस ृ मंिऽय@ और मु;यमंिऽय@ का आशीवाद भी दं ग ाइय@ को नहीं ज़माने म1 ूधानमंिऽय@, ग ह िमलता था। यह काम छोटे -मोटे ःथानीय नेता अपन ःथानीय और gुि िकःम का ःवाथ पूरा करने के िलए करते थे। pयापािरक ूितLं िLता, ज़मीन पर कcज़ा करना, चुगं ी के चुनाव करते थे। अब तो िद%ली दरबार म1 िहं द ू या मुिःलम वोट समेत लेना वग रैा उ‚े ँय हआ ु का कcज़ा जमाने का साधन बन ग ए ह । सांूदाियक दं ग े। संसार के िवशालतम लोकतंऽ की नाक म1 वही नकेल डाल सकता है जो सांूदाियक िहं सा और घृणा पर खून की निदयां बहा सकता हो।

सैफ को जग ाया ग या। वह बकरी के मासूम बUचे की तरह चार@ तरफ इस तरह दे ख रहा था जैसे मां को तलाश कर रहा हो। अcबाजान के सौतेले भाई की सबसे छोटी औलाद सैफ ु ‚ीन उफ़ सैफ ने जब अपने घर के सभी लोग @ से िघरे दे खा तो अकबका कर खड़ा हो ग या। सैफ के अcबा कौसर चचा के मरने का आया कोना कटा पोःटकाड मुझे अUछी तरह याद

है। ग ांव वाल@ ने ख़त म1 कौसर चचा के मरने की ख़बर ही नहीं दी थी बि%क ये भी िलखा था िक उनका सबसे छोटा सैफ अब इस दिनया म1 अकेला रह ग या है। सैफ के बड़े ु भाई उसे अपने साथ बंबई नहीं ले ग ए। उह@ने साफ़ कह िदया है िक सैफ के िलए वे कुछ नहीं कर सकते। अब अcबाजान के अलावा उसका दिनया म1 कोई नहीं है। कोना कटा ु पोःट काड पकड़े अcबाजान बहत ु दे र तक ख़मोश बैठे रहे थे। अ मां से कई बार लड़ाई होने के बाद अcबाजान पुँतैनी ग ांव धनवाखेड़ा ग ए थे और बची-खुची ज़मीन बेच, सैफ को साथ लेकर लौटे थे। सैफ को दे खकर हम सबको हं सी आई थी। िकसी ग ंवार लड़के को दे खकर अलीग ढ़ मुिःलम युिनविसटी के ःकूल म1 पढ़ने वाली सिफ या की और Fया ूितिबया हो सकती थी, पहले िदन ही यह लग ग या िक सैफ िसफ ग ंवार ही नहीं है बि%क अधपाग ल होने की हद तक सीधा या बेवकूफ़ है। हम उसे तरह-तरह से िचढ़ाया या िक अcबाजान बेवकूफ़ बनाया करते थे। इसका एक फ ायदा सैफ को इस तौर पर हआ ु और अ मां का उसने िदल जीत िलया। सैफ मेहनत का पुतला था। काम करने से कभी न थकता था। अ मां को उसकी ये 'अदा` बहत ु पसंद थी। अग र दो रोिटयां xयादा खाता है तो Fया? काम भी तो कमर तोड़ करता है। साल@ पर साल ग ुज़रते ग ए और सैफ हमारी िज़ंदग ी का िहःसा बन ग या। हम सब उसके साथ सहज होते चले ग ए। अब मोह%ले का कोई लड़का उसे पाग ल कह दे ता तो तो म उसका मुंह न@च लेता था। हमारा भाई है तुमने पाग ल कहा कैसे? लेिकन घर के अंदर सैफ की हैिसयत Fया थी ये हमीं जानते थे।

शहर म1 दं ग ा वैसे ही शु4 हआ था जैसे हआ करता था यानी मिःजद से िकसी को एक ु ु पोटला िमला था िजसमे म1 िकसी िकःम का ग ोँत था और ग ोँत को दे खे बग रै ये तय कर िलया ग या था िक चूंिक वो मिःजद म1 फ1 का ग या ग ोँत हैइसिलए सुअर के ग ोँत के िसवा और िकसी जानवर का हो ही नहीं सकता। इसकी ूितिबया म1 मुग ल टोले म1 ग ाय काट दी ग ई थी और दं ग ा भड़क ग या था। कुछ दकान1 जली थीं और xयादातर लूटी ु ु की वारदात@ म1 क़रीब सात-आठ लोग मरे थे लेिकन ूशासन इतना ग ई थीं। चाकू-छरी संवेदनशील था िक कझयू लग ा िदया ग या था। आजकल वाली बात न थी हज़ार@ लोग @ के मारे जाने के बाद भी मु;यमंऽी मूछ@ पर ताव दे कर घूमता और कहता िक जो कुछ हआ ु सही हआ। ु

दं ग ा चूिं क आसपास के ग ांव@ तक भी फैल ग या था इसिलए क›यू बढ़ा िदया ग या था। मुग लपुरा मुसलमान@ का सबसे बड़ा मोह%ला था इसिलए वहां क›यू का असर भी था और 'िजहाद` जैसा माहौल भी बन ग या था। मोह%ले की ग िलयां तो थी ही पर कई दं ग @ के

तजुबž ने यह भी िसखा िदया था िक घर@ के अंदर से भी राःते होने चािहए। यानी इमरज1सी पैकेज। तो घर@ के अंदर से, छत@ के उपर से, दीवार1 को फ लांग ते कुछ ऐसे राःते भी बन ग ए थे िक कोई अग र उनको जानता हो तो मोह%ले के एक कोने से दसरे कोने ू तक आसानी से जा सकता था। मोह%ले की तैयारी यु+ःतर की थी। सोचा ग या था िक क›यू अग र महीने भर भी िखंचता है तो ज़4रत की सभी चीज1 मोह%ले म1 ही िमल जाएं।

दं ग ा मोह%ले के लड़क@ के िलए एक अजीब तरह के उNसाह िदखाने का मौसम हआ ु करता था। अजी हम तो िहं दओं को ज़मीन चटा द1 ग े.. समझ Fया रखा है धोती बांधनेवाल@ ने. . ु .अजी बुज़िदल होते है।. . .एक मुसलमान दस िहं दओं पर भारी पड़ता है. . .'हं स के िलया ु है पािकःतान लड़कर ल1ग े िहदःतान जैसा माहौल बन जाता था, लेिकन मोह%ले से बाहर ु िनकलने म1 सबकी नानी मरती थी। पी.ए.सी. की चौकी दोन@ मुहान@ पर थी। पीएसी के बूट@ और उनकी राइफ ल@ के बट@ की मार कई को याद थी इसिलए जबानी जमा-खच तक तो सब ठीक था लेिकन उसके आग े. . .

संकट एकता िसखा दे ता है। एकता अनुशासन और अनुशासन pयावहािरकता। हर घर से एक लड़का पहरे पर रहा करे ग ा। हमारे घर म1 मेरे अलावा, उस ज़माने म1 मुझे लड़का नहीं माना जा सकता था, Fय@िक म पUचीस पार कर चुका था, लड़का सैफ ही था इसिलए उसे रात के पहरे पर रहना पड़ता था। रात का पहरा छत@ पर हआ करता था। मुग लपुरा चूिं क ु शहर के सबसे उपरी िहःसे म1 था इसिलए छत@ पर से पूरा शहर िदखाई दे ता था। मोह%ले के लड़क@ के साथ सैफ पहरे पर जाया करता था। यह मेरे, अcबाजान, अ मां और सिफ या-सभी के िलए बहत ु अUछा था। अग र हमारे घर म1 सैफ न होता तो शायद मुझे भी दे रात म1 धFके खाने पड़ते। सैफ के पहरे पर जाने की वजह से उसे कुछ सहिलयत1 ू दी ग ई थीं, जैसे उसे आठ बजे तक सोने िदया जाता था। उससे झाडू नहीं िदलवाई जाती थी। यह काम सिफ या के हवाले हो ग या था जो इसे बेहद नापसंद करती थी।

कभी-कभी रात म1 म भी छत@ पर पहंु च जाता था, लाठी, डं डे , ब%लम और wट@ के ढे र इधर-उधर लग ाए ग ए थे। दो-चार लड़क@ के पास दे सी कƒटे और xयादातर के पास चाकू थे। उनम1 से सभी छोटा-मोटा काम करने वाले कारीग र थे। xयादातर ताले के कारखान@ के काम करते थे। कुछ दजuिग री, बढ़ईग ीरी जैसे काम करते थे। चूिं क इधर बाजार बंद था इसिलए उनके धंधे भी ठmप थे। उनम1 से xयादातर के घर@ म1 कज से चू%हा जल रहा था। लेिकन वो खुश थे। छत@ पर बैठकर वे दं ग @ की ताज़ा ख़बर@ पर तिcसरा िकया करते

थे या िहं दओं को ग ािलयां िदया करते थे। िहं दओं से xयादा ग ािलयां वे पीएसी को दे ते थे। ु ु पािकःतान रे िडयो का पूरा ूोमाम उह1 जबानी याद था और कम आवाज़ म1 रे िडयो लाहौर सुना करते थे। इन लड़क@ म1 दो-चार जो पािकःतान जा चुके थे उनकी इxजत हािजय@ की तरह होती थी। वो पािकःतान की रे लग ाड़ी 'तेज़ग ाम` और 'ग ुलशने इक़बाल कॉलोनी` के ऐसे िकःसे सुनाते थे िक लग ता ःवग  अग र पृ¨वी पर कहीं है तो पािकःतान म1 है। पािकःतान की तारीफ़@ से जब उनका िदल भर जाया करता था तो सैफ से छे ड़छाड़ िकया करते थे। सैफ ने पािकःतान, पािकःतान और पािकःतान का वज़ीफ़ा सुनने के बाद एक िदन पूछ िलया था िक पािकःतान हैकहां? इस पर सब लड़क@ ने उसे बहत ु खींचा था। वह कुछ समझा था, लेिकन उसे यह पता नहीं लग सकता था िक पािकःतान कहां है।

ग ँती लyडे सैफ को मज़ाक़ म1 संजीदग ी से डराया करते थे, 'दे खो सैफ अग र तु ह1 िहं द ू पा जाएंग े तो जानते हो Fया कर1 ग े? पहले तु ह1 नंग ा कर द1 ग े।' लड़के जानते थे िक सैफ अधपाग ल होने के बावजूद नंग े होने को बहत ु बुरी और ख़राब चीज़ समझता है, 'उसके बाद िहं द ू तु हारे तेल मल1ग े।' 'Fय@, तेल Fय@ मल1ग े?' 'तािक जब तु ह1 ब1त से मार1 तो तु हारी खाल िनकल जाए। उसके बाद जलती सलाख@ से तु ह1 दाग 1ग े. . .' 'नहीं,' उसे िव[ास नहीं हआ। ु रात म1 लड़के उसे जो डरावने और िहं सक िकःसे सुनाया करते थे उनसे वह बहत ु xयादा डर ग या था। कभी-कभी मुझसे उ%टी-सीधी बात1 िकया करता था। म झुंझलाता था और उसे चुप करा दे ता था लेिकन उसकी िजासाएं शांत नहीं हो पाती थीं। एक िदन पूछने लग ा, 'बड़े भाई पािकःतान म1 भी िमƒटी होती हैFया?' 'Fय@, वहां िमƒटी Fय@ न होग ी।' 'सड़क ही सड़क नहीं है...वहां टे रीलीन िमलता है...वहां सःती है... र 'दे खो ये सब बात1 मनग ढ़ं त ह ....तुम अ%ताफ़ वग़ैरा की बात@ पर कान न िदया करो।' मने उसे समझाया।

'बड़े भाई Fया िहं द ू आंख1 िनकाल लेते ह . . .' 'बकवास है. . .ये तुमसे िकसने कहा?

'बUछन ने।' 'ग ³त है।' 'तो ख़ाल भी नहीं खींचते?' 'ओझफ ोह. . .ये तुमने Fया लग ा रखी है. . .' वह चुप हो ग या लेिकन उसकी आंख@ म1 सैकड़@ सवाल थे। म बाहर चला ग या। वह सिफ या से इसी तरह की बात1 करने लग ा। क›यू लंबा होता चला ग या। रात की ग ँत जारी रही। हमारी घर से सैफ ही जाता रहा। कुछ िदन@ बाद एक िदन अचानक सोते म1 सैफ चीखने लग ा था। हम सब घबरा ग ए लेिकन ये समझने म1 दे र नहीं लग ी िक ये सब उसे डराए जाने की वजह से है। अcबाजान को लड़क@ पर बहत  ुमा लोग @ से ु ग ुःसा आया था और उह@ने मोह%ले के एक-दो बुजुग न लड़के और वो भी मोह%ले के लड़के िकसी कहा भी, लेिकन उसका कोई असर नहीं हआ। ु मनोरं जन से Fय@ कर हाथ धी लेते?

बात कहां से कहां तक पहंु च चुकी है इसका अंदाज़ा मुझे उस वईत तक न था जब तक एक िदन सैफ ने बड़ी ग ंभीरता से मुझसे पूछा, 'बड़े भाई, म िहं द ू हो जाउं ?' सवाल सुनकर म सनाटे म1 आ ग या, लेिकन ज%दी ही समझ ग या िक यह रात म1 डरावने िकःसे सुनाए जाने का नतीजा है। मुझे ग ः ु सा आ ग या िफ र सोचा पाग ल पर ग ुःसा करने से अUछा है ग ुःसा पी जाउं और उसे समझाने की कोिशश क4ं। मने कहा, 'Fय@ तुम िहं द ू Fय@ होना चाहते हो?' 'इसका मतलब है म न बच पाउं ग ा,' मने कहा। 'तो आप भी हो जाइए. . .', वह बोला। 'और तु हारे ताया अcबार, मने अपने वािलद और उसके चचा की बात की। 'नहीं. ..उह1 . . .' वह कुछ सोचने लग ा। अcबाजान की सफे द और लंबी दाढ़ी म1 वह कहीं फं स ग या होग ा।

'दे खा ये सब लड़क@ की खुराफ़ात है जो तु ह1 बहकाते ह । ये जो तु ह1 बताते ह सब झूठ है। अरे महे श को नहीं जानते?' 'वो जो ःकूटर पर आते ह . . .' वह खुश हो ग या। 'हां-हां वही।'

'वो िहं द ू है?'

'हां िहं द ू है।' मने कहा और उसके चेहरे पर पहले तो िनराशा की ह%की-सी परछाw उभरी िफ र वह ख़ामोश हो ग या। 'ये सब ग ुंडे बदमाश@ के काम ह . . .न िहं द ू लड़ते ह और न मुसलमान. . .ग ुंडे लड़ते ह , समझे?' दं ग ा शैतान की आंत की तरह िखंचता चला ग या और मोह%ले म1 लोग तंग आने लग ेयार शहर म1 दं ग ा करने वाले िहं द ू और मुसलमान बदमाश@ को िमला भी िदया जाए तो िकतने ह@ग े. . . xयादा से xयादा एक हज़ार, चलो दो हज़ार मान लो तो भाई दो हज़ार आदमी लाख@ लोग @ की िजं_ग ी को जहनुम बनाए हए ु े ु ह और हम लोग घर@ म1 दबक पर हक बैठे ह । ये तो वही हआ िक दस हज़ार अंमेज़ करोड़@ िहं दःतािनय@ ु ु ू मत िकया करते ु थे और सारा िनज़ाम उनके तहत चलता रहता था और िफ र इन दं ग @ से फ़ायदा िकसका है, फ़ायदा? अजी हाजी अcदल ु करीम को फ़ायदा है जो चुगं ी का इलेFशन लड़े ग ा और उसे के वोट िमल1ग े, अब तो हम मुसलमान वोट िमल1ग े। पंिडत जोग े[र को है िजह1 िहं दओं ु Fया ह ? तुम वोटर हो, िहं द ू वोटर, मुसलमान वोटर, हिरजन वोटर, कायःथ वोटर, सुनी वोटर, िशआ वोटर, यही सब होता रहे ग ा इस दे श म1? हां Fय@ नहीं? जहां लोग ज़ािहल ह , जहां िकराये के हNयारे िमल जाते ह , जहां पॉलीटीिशयन अपनी ग ि‚य@ के िलए दं ग े कराते ह वहां और Fया हो सकता है? यार Fया हम लोग @ को पढ़ा नहीं सकते? समझा नहीं सकते? हा-हा-हा-हा तुम कौन होते हो पढ़ाने वाले, सरकार पढ़ाएग ी, अग र चाहे ग ी तो सरकार न चाहे तो इस दे श म1 कुछ नहीं हो सकता? हां. . .अंमेज@ ने हम1 यही िसखाया है. . .हम इसके आदी ह . . .चलो छोड़ो, तो दं ग े होते रह1 ग ?े हां, होते रह1 ग ?े मान लो इस दे श के सारे मुसलमान िहं द ु हो जाएं? लाहौलिवलाकुpवत ये Fया कह रहे हो। अUछा मान लो इस दे श के सारे िहं द ू मुसलमान हो जाएं? सुभान अ%लाह . . .वाह वाह Fया बात कही है. . .तो Fया दं ग े क जाएंग े? ये तो सोचने की बात है. . .पािकःतान म1 िशआ सुनी एक दसरे ू की जान के दँमन ह . . .िबहारी म1 ॄा´ण हिरजन की छाया से बचते ह . . .तो Fया यार ु आदमी या कहो इं सान साला है ही ऐसा िक जो लड़ते ही रहना चाहता है? वैसे दे खो तो जु मन और मैकू म1 बड़ी दोःती है। तो यार Fय@ न हम मैकू और जु मन बन जाएं. . .वाह Fया बात कह दी, मलतब. . .मतलब. . .मतलब. . .

म सुबह-सुबह रे िडयो के कान उमेठ रहा था सिफ या झाडू दे रही थी िक राजा का छोटा

भाई अकरम भाग ता हआ आया और फ लती हई ु ु सांस को रोकने की नाकाम कोिशश करता हआ बोला, 'सैफ को पी.ए.सी. वाले मार रहे ह ।' ु 'Fया? Fया कह रहे हो?' 'सैफ को पीएसी वाले मार रहे ह ', वह ठहरकर बोला। 'Fय@ मार रहे ह ? Fया बात है?' 'पता नहीं. . .नुFकड़ पर. . .' 'वहीं जहां पीएसी की चौकी है?' 'हां वहीं।' 'लेिकन Fय@. . .' मुझे मालूम था िक आठ बजे से दस बजे तक क›यू खुलने लग ा है और सैफ को आठ बजे के करीब अ मां ने दध ू लेने भेजा था। सैफ जैसे पग ले तक को मालूम था िक उसे ज%दी से ज%दी वापस आना है और अब दो दस बजे ग ए थे। 'चलो म चलता हंू ' रे िडयो से आती बेढं ग ी आवाज़ की िफ ब िकए बग़ैर म तेजी से बाहर िनकला। पाग ल को Fय@ मार रहे ह पीएसी वाले, उसने कौन-सा ऐसा जुम िकया है? वह कर ही Fया सकता है? खुद ही इतना खौफ ज़दा रहता है उसे मारने की Fया ज़4रत है. . .िफ र Fया वजह हो सकती है? पैसा, अरे उसे तो अ मां ने दो पए िदए थे। दो पए के िलए पीएसी वाले उसे Fय@ मार1 ग े? नुFकड़ पर मु;य सड़क के बराबर कोठ@ पर मोह%ले के कुछ लोग जमा था। सामने सैफ पीएसी वाल@ के सामने खड़ा था। उसके सामने पीएसी के जवान थे। सैफ जोर-जोर से चीख़ रहा था, 'मुझे तुम लोग @ ने Fय@ मारा. . .म िहं द ू हंू . . .िहं द ू हंू . . .' म आग े बढ़ा। मुझे दे खने के बाद भी सैफ का नहीं वह कहता रहा, 'हां, हां म िहं द ू हंू . . .' वह डग मग ा रहा था। उसके ह@ठ@ के कोने से ख़ून की एक बूंद िनकलकर ठोढ़ी पर ठहर ग ई थी। 'तुमने मुझे मारा कैसे. . .म िहं द.ू . .' 'सैफ . . .ये Fया हो रहा है. . .घर चलो' 'म. . .म िहं द ू हंू ।' मुझे बड़ी हैरत हई ु . . .अरे Fया ये वही सैफ है जो था. . .इसकी तो काया पलट कई है। ये इसे हो Fया ग या। 'सैफ होश म1 आओ' मने उसे ज़ोर से डांटा।

मोह%ले के दसरे लोग पता नहीं िकस पर अंदर ही अंदर दरू से हं स रहे थे। मुझे ग ुःसा ू आया। साले ये नहीं समझते िक वह पाग ल है। 'ये आपका कौन है?' एक पीएसी वाले ने मुझसे पूछा। 'मेरा भाई है. . . थोड़ी म1टल ूाcलम है इसे' 'तो इसे घर ले जाओ,' एक िसपाही बोला। 'हम1 पाग ल बना िदया,' दसरे ने कहा। ू 'चलो. . .सैफ घर चलो। क›यू लग ग या है. . .क›यू. . .' 'नहीं जाउं ग ा. . .म िहं द ू हंू . ..िहं द.ू . .मुझे. . .मुझे. . .' वह फ ट-फ टकर रोने लग ा. . .'मारा. . .मुझे मारा. . .मुझे मारा. . .म िहं द ू हंू . . .म' सैफ धड़ाम से ज़मीन पर िग रा. . .शायद बेहोश हो ग या था. . .अब उसे उठाकर ले जाना आसान था। //*//

18 शाह आलम कै प की 4ह1 (1) शाह आम कै प म1 िदन तो िकसी न िकसी तरह ग ुज़र जाते ह लेिकन रात1 क़यामत की होती है। ऐसी नझµा नझµी का अलम होता है िक अ%ला बचाये। इतनी आवाज़े होती ह िक कानपड़ी आवाज़ नहीं सुनाई दे ती, चीख-पुकार, शोर-ग ुल, रोना, िच%लाना, आह1 िससिकयां. . . रात के वF> 4ह1 अपने बाल-बUच@ से िमलने आती ह । 4ह1 अपने यतीम बUच@ के िसर@ पर हाथ फे रती ह , उनकी सूनी आंख@ म1 अपनी सूनी आंख1 डालकर कुछ कहती ह । बUच@ को सीने से लग ा लेती ह । िज़ंदा जलाये जाने से पहले जो उनकी िजग रदोज़ चीख़@ िनकली थी वे पृ£भूिम म1 ग ूंजती रहती ह ।

सारा कै प जब सो जाता है तो बUचे जाग ते ह , उह1 इं ितजार रहता है अपनी मां को दे खने का. . .अcबा के साथ खाना खाने का। कैसे हो िसराज, 'अ मां की 4ह ने िसराज के िसर पर हाथ फे रते हए ु कहा।'

'तुम कैसी ह@ अ मां?' मां खुश नज़र आ रही थी बोली िसराज. . .अब. . . म 4ह हंू . . .अब मुझे कोई जला नहीं सकता।' 'अ मां. . .Fया म भी तु हारी तरह हो सकता हंू ?' (2) शाह आलम कै प म1 आधी रात के बाद एक औरत की घबराई बौखलाई 4ह पहंु ची जो अपने बUचे को तलाश कर रही थी। उसका बUचा न उस दिनया म1 था न वह कै प म1 ु था। बUचे की मां का कलेजा फ टा जाता था। दसरी औरत@ की 4ह1 भी इस औरत के साथ ू बUचे को तलाश करने लग ी। उन सबने िमलकर कै प छान मारा. . .मोह%ले ग यीं. . .घर धू-ं धूं करके जल रहे थे। चूिं क वे 4ह1 थीं इसिलए जलते हए ु मकान@ के अंदर घुस ग यीं. . .कोना-कोना छान मारा लेिकन बUचा न िमला। आिख़र सभी औरत@ की 4ह1 दं ग ाइय@ के पास ग यी। वे कल के िलए पेशौल बम बना रहे थे। बंदक ू 1 साफ कर रहे थे। हिथयार चमका रहे थे। बUचे की मां ने उनसे अपने बUचे के बारे म1 पूछा तो वे हं सने लग े और बोले, 'अरे पग ली औरत, जब दस-दस बीस-बीस लोग @ को एक साथ जलाया जाता है तो एक बUचे का िहसाब कौन रखता है? पड़ा होग ा िकसी राख के ढे र म1।' मां ने कहा, 'नहीं, नहीं मने हर जग ह दे ख िलया है. . .कहीं नहीं िमला।' तब िकसी दं ग ाई ने कहा, 'अरे ये उस बUचे की मां तो नहीं है िजसे हम िऽशूल पर टांग आये ह ।' (3) शाह आलम कै प म1 आधी रात के बाद 4ह1 आती ह । 4ह1 अपने बUच@ के िलए ःवग  से खाना लाती है।, पानी लाती ह , दवाएं लाती ह और बUच@ को दे ती ह । यही वजह है िक शाह कै प म1 न तो कोई बUचा नंग ा भूखा रहता हैऔर न बीमार। यही वजह है िक शाह आलम कै प बहत ु मशहर ू हो ग या है। दरू -दरू मु%क@ म1 उसका नाम है। िद%ली से एक बड़े नेता जब शाह आलम कै प के दौरे पर ग ये तो बहत ु खुश हो ग ये और बोले, 'ये तो बहत ु बिढ़या जग ह है. . .यहां तो दे श के सभी मुसलमान बUच@ को पहंु चा दे ना चािहए।' (4) शाह आलम कै प म1 आधी रात के बाद 4ह1 आती ह । रात भर बUच@ के साथ रहती ह ,

उह1 िनहारती ह . . .उनके भिवंय के बारे म1 सोचती ह । उनसे बातचीत करती ह । िसराज अब तुम घर चले जाओ, 'मां की 4ह ने िसराज से कहा।' 'घर?' िसराज सहम ग या। उसके चेहरे पर मौत की परछाइयां नाचने लग ीं। 'हां, यहां कब तक रहोग ?े म रोज़ रात म1 तु हारे पास आया क4ंग ी।' 'नहीं म घर नहीं जाउं ग ा. . .कभी नहीं. . .कभी,' धुआं, आग , चीख़@, शोर। 'अ मां म तु हारे और अcबू के साथ रहंू ग ा' 'तुम हमारे साथ कैसे रह सकते हो िसFकू. . .' 'भाईजान और आपा भी तो रहते ह न तु हारे साथ।' 'उह1 भी तो हम लोग @ के साथ जला िदया ग या था न।' 'तब. . .तब तो म . . .घर चला जाउं ग ा अ मां।' (5) शाह आलम कै प म1 आधी रात के बाद एक बUचे की 4ह आती है. . .बUचा रात म1 चमकता हआ जुग नू जैसा लग ता है. . .इधर-उधर उड़ता िफ रता है. . .पूरे कै प म1 दौड़ाु दौड़ा िफ रता है. . .उछलता-कूदता है. . .शरारत1 करता है. . .तुतलाता नहीं. . .साफ -साफ बोलता है. . .मां के कपड़@ से िलपटा रहता है. . .बाप की उं ग ली पकड़े रहता है। शाह आलम कै प के दसरे बUचे से अलग यह बUचा बहत ू ु खुश रहता है। 'तुम इतने खुश Fय@ हो बUचे?' 'तु ह1 नहीं मालूम. . .ये तो सब जानते ह ।' 'Fया?' 'यही िक म सुबूत हंू ।' 'सुबूत? िकसका सुबूत?' 'बहादरी ु का सुबूत हंू ।' 'िकसकी बहादरी ु का सुबूत हो?' ु 'उनकी िजह@ने मेरी मां का पेट फ ाड़कर मुझे िनकाला था और मेरे दो टकड़े कर िदए थे।' (6) शाह आलम कै प म1 आधी रात के बाद 4ह1 आती ह । एक लड़के के पास उसकी मां की 4ह आयी। लड़का दे खकर हैरान हो ग या। 'मां तुम आज इतनी खुश Fय@ हो?' 'िसराज म आज जनत म1 तु हारे दादा से िमली थी, उह@ने मुझे अपने अcबा से िमलवाया. . .उह@ने अपने दादा. . .से . . .सकड़ दादा. . .तु हारे नग ड़ दादा से म

िमली।' मां की आवाज़ से खुशी फ टी पड़ रही थी। 'िसराज तु हारे नग ड़ दादा. . .िहं द ू थे. . .िहं द.ू . .समझे? िसराज ये बात सबको बता दे ना. . .समझे?' (7) शाह आलम कै प म1 आधी रात के बाद 4ह1 आती ह । एक बहन की 4ह आयी। 4ह अपने भाई को तलाश कर रही थी। तलाश करते-करते 4ह को उसका भाई सीिढ़य@ पर बैठा िदखाई दे ग या। बहन की 4ह खुश हो ग यी वह झपट कर भाई के पास पहंु ची और बोली, 'भइया, भाई ने सुनकर भी अनसुना कर िदया। वह पNथर की मूित की तरह बैठा रहा।' बहन ने िफ र कहा, 'सुनो भइया!' भाई ने िफ र नहीं सुना, न बहन की तरफ दे खा। 'तुम मेरी बात Fय@ नहीं सुन रहे भइया!', बहन ने ज़ोर से कहा और भाई का चेहरा आग की तरह सुख हो ग या। उसकी आंख1 उबलने लग ीं। वह झपटकर उठा और बहन को बुरी तरह पीटने लग ा। लोग जमा हो ग ये। िकसी ने लड़की से पूछा िक उसने ऐसा Fया कह िदया था िक भाई उसे पीटने लग ा. . . बहन ने कहा, 'नहीं सलीमा नहीं, तुमने इतनी बड़ी ग ³ती Fय@ की।' बुज़ुग  फ ट-फ टकर रोने लग ा और भाई अपना िसर दीवार पर पटकने लग ा। (8) शाह आलम कै प म1 आधी रात के बाद 4ह1 आती ह । एक िदन दसरी 4ह@ के साथ एक ू बूढ़े की 4ह भी शाह आलम कै प म1 आ ग यी। बूढ़ा नंग े बदन था। उं ची धोती बांधे था, पैर@ म1 चmपल थी और हाथ म1 एक बांस का डšडा था, धोती म1 उसने कहीं घड़ी ख@सी हई ु थी। 4ह@ ने बूढ़े से पूछा 'Fया तु हारा भी कोई िरँतेदार कै प म1 है?' बूढ़े ने कहा, 'नहीं और हां।' 4ह@ के बूढ़े को पाग ल 4ह समझकर छोड़ िदया और वह कै प का चFकर लग ाने लग ा। िकसी ने बूढ़े से पूछा, 'बाबा तुम िकसे तलाश कर रहे हो?' बूढ़े ने कहा, 'ऐसे लोग @ को जो मेरी हNया कर सके।' 'Fय@?' 'मुझे आज से पचास साल पहले ग ोली मार कर मार डाला ग या था। अब म चाहता हंू िक दं ग ाई मुझे िज़ंदा जला कर मार डाल1।' 'तुम ये Fय@ करना चाहते हो बाबा?' 'िसफ ये बताने के िलए िक न उनके ग ोली मार कर मारने से म मरा था और न उनके

िज़ंदा जला दे ने से म4ंग ा।' (9) शाह आलम कै प म1 एक 4ह से िकसी नेता ने पूछा 'तु हारे मां-बाप ह ?' 'मार िदया सबको।' 'भाई बहन?' 'नहीं ह ' 'कोई है' 'नहीं' 'यहां आराम से हो?' 'हो ह ।' 'खाना-वाना िमलता है?' 'हां िमलता है।' 'कपड़े -वपड़े ह ?' 'हां ह ।' 'कुछ चािहए तो नहीं,' 'कुछ नहीं।' 'कुछ नहीं।' 'कुछ नहीं।' नेता जी खुश हो ग ये। सोचा लड़का समझदार है। मुसलमान@ जैसा नहीं है। (10) शाह आलम कै प म1 आधी रात के बाद 4ह1 आती ह । एक िदन 4ह@ के साथ शैतान की 4ह भी चली आई। इधर-उधर दे खकर शैतान बड़ा शरमाया और झ1पा। लोग @ से आंख1 नहीं िमला पर रहा था। कनी काटता था। राःता बदल लेता था। ग द न झुकाए तेज़ी से उधर मुड़ जाता था िजधर लोग नहीं होते थे। आिखरकार लोग @ ने उसे पकड़ ही िलया। वह वाःतव म1 लिxजत होकर बोला, 'अब ये जो कुछ हआ है. . .इसम1 मेरा कोई हाथ नहीं है. . ु .अ%लाह क़सम मेरा हाथ नहीं है।' लोग @ ने कहा, 'हां. . .हां हम जानते ह । आप ऐसा कर ही नहीं सकते। आपका भी आिख़र एक ःटैšडड है।' शैतान ठšडी सांस लेकर बोला, 'चलो िदल से एक बोझ उतर ग या. . .आप लोग सUचाई जानते ह ।'

लोग @ ने कहा, 'कुछ िदन पहले अ%लाह िमयां भी आये थे और यही कह रहे थे।' (समा)

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