Is Ti Fa

  • October 2019
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  • Words: 3,521
  • Pages: 8
दफतर का बाबू एक बेजबान जीव है । मजदरूो को ऑख ं े िदखाओ, तो वह तयोिरयॉँ बदल कर खडा हो जायकाह। कुली को एक डाँट बताओं, तो ििर िे बोझ फेक कर अपनी राह लेगा। िकिी

ििखारी को दतुकारो, तो वह तुमहारी ओर गुसिे की िनगहा िे दे ख कर चला जायेगा। यहॉँ तक िक गधा िी किी-किी तकलीफ पाकर दो लिियॉँ झडने लगता हे ; मगर बेचारे दफतर के बाबू को आप चाहे ऑख ं े िदखाये, डॉट ँ बताये, दतुकारे या ठोकरे मारो, उिक ेेमाथे पर बल न

आयेगा। उिे अपने िवकारो पर जो अिधपतय होता हे , वह शायद िकिी िंयमी िाधु मे िी न हो।

िंतोष का पुतला, िब की मूिति, िचचा आजाकारी, गरज उिमे तमाम मानवी अचछाइयाँ मौजूद होती हे । खंडहर के िी एक िदन िगय जाते हे दीवाली के िदन उि पर िी रोशनी होती है , बरिात मे उि पर हिरयाली छाती हे , पकृ ित की िदलचिसपयो मे उिका िी िहसिा है । मगर इि गरीब

बाबू के निीब किी नहीं जागते। इिकी अँधेरी तकदीर मे रोशनी का जलावा किी नहीं िदखाई दे ता। इिके पीले चेहरे पर किी मुसकराहट की रोशी नजर नहीं आती। इिके िलए िूखा िावन हे , किी हरा िादो नहीं। लाला फतहचंद ऐिे ही एक बेजबान जीव थे।

कहते हे , मनुषय पर उिके नाम का िी अिर पडता है । फतहचंद की दशा मे यह बात यथाथि ििद न हो िकी। यिद उनहे ‘हारचंद’ कहा जाय तो कदािचत यह अतयुिि न होगी। दफतर मे

हार, िजंदगी मे हार, िमतो मे हार, जीतन मे उनके िलए चारो ओर िनराशाऍं ही थीं। लडका एक िी नहीं, लडिकयॉँ ती; िाई एक िी नहीं, िौजाइयॉँ दो, गॉठ ँ मे कौडी नहीं, मगर िदल मे आया

ओर मुरववत, िचचा िमत एक िी नहीं—िजििे िमतता हुई, उिने धोखा िदया, इि पर तंदरुसती िी अचछी नहीं—बिीि िाल की अवसथा मे बाल िखचडी हो गये थे। ऑख ं ो मे जयोित नहीं, हाजमा चौपट, चेहरा पीला, गाल िचपके, कमर झुकी हुई, न िदल मे िहममत, न कलेजे मे

ताकत। नौ बजे दफतर जाते और छ: बजे शाम को लौट कर घर आते। िफर घर िे बाहर िनकलने की िहममत न पडती। दिुनया मे कया होता है ; इिकी उनहे िबलकुल खबर न थी। उनकी दिुनया लोक-परलोक जो कुछ था, दफतर था। नौकरी की खैर मनाते और िजंदगी के िदन पूरे करते थे। न धमि िे वासता था, न दीन िे नाता। न कोई मनोरं जन था, न खेल। ताश खेले हुए िी शायद एक मुदत गुजर गयी थी। 2 जाडो के िदन थे। आकाश पर कुछ-कुछ बादल थे। फतहचंद िाढे पॉच ँ बजे दफतर िे लौटै तो िचराग जल गये थे। दफतर िे आकर वह िकिी िे कुछ न बोलते; चुपके िे चारपाई पर लेट जाते और पंदह-बीि िमनट तक िबना िहले-डु ले पडे रहते तब कहीं जाकर उनके मुह ँ िे आवाज

िनकलती। आज िी पितिदन की तरह वे चुपचाप पडे थे िक एक ही िमनट मे बाहर िे िकिी ने पुकारा। छोटी लडकी ने जाकर पूछा तो मालूम हुआ िक दफतर का चपरािी है । शारदा पित के

मुँह-हाथ धाने के िलए लोटा-िगलाि मॉज ँ रही थी। बोली—उििे कह दे , कया काम है । अिी तो

दफतर िे आये ही है , और बुलावा आ गया है ? चपरािी ने कहा है , अिी िफर बुला लाओ। कोई बडा जररी काम है ।

फतहचंद की खामोशी टू ट गयी। उनहोने ििर उठा कर पूछा—कया बात है ? शारदा—कोई नहीं दफतर का चपरािी है ।

फतहचंद ने िहम कर कहा—दफतर का चपरािी! कया िाहब ने बुलाया है ? शारदा—हॉँ, कहता हे , िाहब बुला रहे है । यहॉँ कैिा िाहब हे तुमहारार जब दे खा, बुलाया करता है ? िबेरे के गए-गए अिी मकान लौटे हो, िफर िी बुलाया आ गया!

फतहचंद न िँिल कर कहा—जरा िुन लूँ, िकििलए बुलाया है । मैने िब काम खतम कर िदया था, अिी आता हूँ।

शारदा—जरा जलपान तो करते जाओ, चपरािी िे बाते करने लगोगे, तो तुमहे अनदर आने की याद िी न रहे गी।

यह कह कर वह एक पयाली मे थोडी-िी दालमोट ओर िेव लायी। फतहचंद उठ कर खडे हो गये, िकनतु खाने की चीजे दे ख करह चारपाई पर बैठ गये और पयाली की ओर चाव िे दे ख कर

चारपाई पर बैठ गये ओर पयाली की ओर चाव िे दे ख कर डरते हुए बोले—लडिकयो को दे िदया है न?

शारदा ने ऑख ं े चढाकर कहा—हॉँ-हॉँ; दे िदया है , तुम तो खाओ।

इतने मे छोटी मे चपरािी ने िफर पुकार—बाबू जी, हमे बडी दे र हो रही है । शारदा—कह कयो नहीं दते िक इि वि न आयेगे

फतहचनद ने जलदी-जलदी दालमोट की दो-तीन फंिकयॉँ लगायी, एक िगलाि पानी िपया ओर बाहर की तरफ दौडे । शारदा पान बनाती ही रह गयी।

चपरािी ने कहा—बाबू जी! आपने बडी दे र कर दी। अब जरा लपक ेेचिलए, नहीं तो जाते ही डॉट ँ बतायेगा।

फतहचनद ने दो कदम दौड कर कहा—चलेगे तो िाई आदमी ही की तरह चाहे डॉट ँ लगाये या दॉत ँ िदखाये। हमिे दौडा नहीं जाता। बँगले ही पर है न?

चपरािी—िला, वह दफतर कयो आने लगा। बादशाह हे िक िदललगी? चपरािी तेज चलने का आदी था। बेचारे बाबू फतहचनद धीरे -धीरे जाते थे। थोडी ही दरू चल कर

हॉफ ँ उठे । मगर मदि तो थे ही, यह कैिे कहते िक िाई जरा और धीरे चलो। िहममत करके कदम उठाते जाते थे यहॉँ तक िक जॉघ ँ ो मे ददि होने लगा और आधा रासता खतम होते-होते पैरो ने उठने िे इनकार कर िदया। िारा

शरीर पिीने िे तर हो गया। ििर मे चककर आ गया। ऑख ं ो के िामने िततिलयॉँ उडने लगीं। चपरािी ने ललकारा—जरा कदम बढाय चलो, बाबू!

फतहचनद बडी मुििकल िे बोले—तुम जाओ, मै आता हूँ।

वे िडक के िकनारे पटरी पर बैठ गये ओर ििर को दोनो हाथो िे थाम कर दम मारने लगे चपरािी ने इनकी यह दशा दे खी, तो आगे बढा। फतहचनद डरे िक यह शैतान जाकर न-जाने

िाहब िे कया कह दे , तो गजब ही हो जायगा। जमीन पर हाथ टे क कर उठे ओर िफर चले मगर कमजोरी िे शरीर हॉफ ँ रहा था। इि िमय कोइे्र बचचा िी उनहे जमीन पर िगरा िकता थां बेचारे िकिी तरह िगरते-पडते िाहब बँगले पर पहुँचे। िाहब बँगले पर टहल रहे थे। बार-बार फाटक की तरफ दे खते थे और िकिी को अतो न दे ख कर मन मे झललाते थे। चपरािी को दे खते ही ऑख ं े िनकाल कर बोल—इतनी दे र कहॉँ था?

चपरािी ने बरामदे की िीढी पर खडे -खडे कहा—हुजूर! जब वह आये तब तो; मै दौडा चला आ रहा हूँ।

िाहब ने पेर पटक कर कहा—बाबू कया बोला?

चपरािी—आ रहे हे हुजूर, घंटा-िर मे तो घर मे िे िनकले।

इतने मे पुतहचनद अहाते के तार के उं दर िे िनकल कर वहॉँ आ पहुँचे और िाहब को ििर झुक कर िलाम िकया।

िाहब ने कडकर कहा—अब तक कहॉँ था?

फतहचनद ने िाहब का तमतमाया चेहरा दे खा, तो उनका खून िूख गया। बोले—हुजूर, अिीअिी तो दफतर िे गया हूँ, जयो ही चपरािी ने आवाज दी, हािजर हुआ। िाहब—झूठ बोलता है , झूठ बोलता हे , हम घंटे-िर िे खडा है ।

फतहचनद—हुजूर, मे झूठ नहीं बोलता। आने मे िजतनी दे र हो गयी होि, मगर घर िे चलेन मे मुझे िबलकुल दे र नहीं हुई।

िाहब ने हाथ की छडी घुमाकर कहा—चुप रह िूअर, हम घणटा-िर िे खडा हे , अपना कान पकडो!

फतहचनद ने खून की घँट पीकर कहा—हुजूर मुझे दि िाल काम करते हो गए, किी.....। िाहब—चुप रह िूअर, हम कहता है िक अपना कान पकडो! फतहचनद—जब मैने कोई कुिूर िकया हो?

िाहब—चपरािी! इि िूअर का कान पकडो। चपरािी ने दबी जबान िे कहा—हुजूर, यह िी मेरे अफिर है , मै इनका कान कैिे पकडू ँ ? िाहब—हम कहता है , इिका कान पकडो, नहीं हम तुमको हं टरो िे मारे गा।

चपरािी—हुजूर, मे याहँ नौकरी करने आया हूँ, मार खाने नहीं। मै िी इजजतदार आदमी हूँ। हुजूर, अपनी नौकरी ले ले! आप जो हुकम दे , वह बजा लाने को हािजर हूँ, लेिकन िकिी की

इजजत नहीं िबगाड िकता। नौकरी तो चार िदन की है । चार िदन के िलए कयो जमाने-िर िे िबगाड करे ।

िाहब अब कोध को न बदािित करिके। हं टर लेकर दौडे । चपरािी ने दे खा, यहॉँ खड रहने मे

खैिरयत नहीं है , तो िाग खडा हुआ। फतहचनद अिी तक चुपचाप खडे थे। चपरािी को न पाकर उनके पाि आया और उनके दोनो कान पकडकर िहला िदया। बोला—तुम िूअर गुसताखी करता है ? जाकर आिफि िे फाइल लाओ।

फतहचनद ने कान िहलाते हुए कहा—कौन-िा फाइल? तुम बहरा हे िुनता नहीं? हम फाइल मॉग ँ ता है ।

फतहचनद ने िकिी तरह िदलेर होकर कहा—आप कौन-िा फाइल मॉगते हे ?

िाहब—वही फाइल जो हम माँगता हे । वही फाइल लाओ। अिी लाओं वेचारे फतहचनद को अब ओर कुछ पूछने की िहममत न हुई िाहब बहादरू एक तो यो ही तेज-िमजाज थे, इि पर हुकूमत का घमंड ओर िबिे बढकर शराब का नशा। हं टर लेकर िपल पडते, तो बेचार कया कर लेते? चुपके िे दफतर की तरफ चल पडे ।

िाहब ने कहा—दौड कर जाओ—दौडो। फतहचनद ने कहा—हुजूर, मुझिे दौडा नहीं जाता।

िाहब—ओ, तुम बहूत िुसत हो गया है । हम तुमको दौडना ििखायेगा। दौडो (पीछे िे धकका दे कर) तुम अब िी नहीं दौडे गा?

यह कह कर िाहब हं टर लेने चले। फतहचनद दफतर के बाबू होने पर िी मनुषय ही थे। यिद वह बलवान होते, तो उि बदमाश का खून पी जाते। अगर उनके पाि कोई हिथयार होता, तो उि पर परर चला दे ते; लेिकन उि हालत मे तो मार खाना ही उनकी तकदीर मे िलखा था। वे बेतहाश िागे और फाटक िे बाहर िनकल कर िडक पर आ गये। 3 फतहचनद दफतर न गये। जाकर करते ही कया? िाहब ने फाइल का नाम तक न बताया। शायद नशा मे िूल गया। धीरे -धीरे घर की ओर चले, मगर इि बेइजजती ने पैरो मे बेिडया-िी डाल दी थीं। माना िक वह शारीिरक बल मे िाहब िे कम थे, उनके हाथ मे कोई चीज िी न थी, लेिकन

कया वह उिकी बातो का जवाब न दे िकते थे? उनके पैरो मे जूते तो थे। कया वह जूते िे काम न ले िकते थे? िफर कयो उनहोने इतनी िजललत बदािित की?

मगर इलाज की कया था? यिद वह कोध मे उनहे गोली मार दे ता, तो उिका कया िबगडता।

शायद एक-दो महीने की िादी कैद हो जाती। िमिव है , दो-चार िौ रपये जुमान ि ा हो जात। मगर इनका पिरवार तो िमटटी मे िमल जाता। िंिार मे कौन था, जो इनके सी-बचचो की खबर लेता।

वह िकिके दरवाजे हाथ फैलाते? यिद उिके पाि इतने रपये होते, िजिे उनके कुटु मब का पालन हो जाता, तो वह आज इतनी िजललत न िहते। या तो मर ही जाते, या उि शैतान को कुछ

िबक ही दे दे ते। अपनी जान का उनहे डर न था। िजनदगी मे ऐिा कौन िुख था, िजिके िलए वह इि तरह डरते। खयाल था ििफि पिरवार के बरबाद हो जाने का।

आज फतहचनद को अपनी शारीिरक कमजोरी पर िजतना द ु:ख हुआ, उतना और किी न हुआ था। अगर उनहोने शुर ही िे तनदर ु सती का खयाल रखा होता, कुछ किरत करते रहते, लकडी चलाना जानते होते, तो कया इि शैतान की इतनी िहममत होती िक वह उनका कान पकडता।

उिकी ऑख ं े िनकला लेते। कम िे कम दनहे घर िे एक छुरी लेकर चलना था! ओर न होता, तो दो-चार हाथ जमाते ही—पीछे दे खा जाता, जेल जाना ही तो होता या और कुछ?

वे जयो-जयो आगे बढते थे, तयो-तयो उनकी तबीयत अपनी कायरता और बोदे पन पर औरिी झललाती थीं अगर वह उचक कर उिके दो-चार थपपड लगा दे ते, तो कया होता—यही न िक

िाहब के खानिामे, बैरे िब उन पर िपल पडते ओर मारते-मारते बेदम कर दे ते। बाल-बचचो के ििर पर जो कुछ पडती—पडती। िाहब को इतना तो मालूम हो जाता िक गरीब को बेगुनाह

जलील करना आिान नही। आिखर आज मै मर जाऊँ, तो कया हो? तब कौन मेरे बचचो का पालन करे गा? तब उनके ििर जो कुछ पडे गी, वह आज ही पड जाती, तो कया हजि था।

इि अिनतम िवचार ने फतहचनद के हदय मे इतना जोश िर िदया िक वह लौट पडे ओर िाहब

िे िजललत का बदला लेने के िलए दो-चार कदम चले, मगर िफर खयाल आया, आिखर जो कुछ िजललत होनी थी; वह तो हो ही ली। कौन जाने, बँगले पर हो या कलब चला गया हो। उिी िमय उनहे शारदा की बेकिी ओर बचचो का िबना बाप के जाने का खयाल िी आ गया। िफर लौटे और घर चले। 4 घर मे जाते ही शारदा ने पूछा—िकििलए बुलाया था, बडी दे र हो गयी? फतहचनद ने चारपाई पर लेटते हुए कहा—नशे की िनक थी, और कया? शैतान ने मुझे गािलयॉँ

दी, जलील िकयां बिि, यहीं रट लगाए हुए था िक दे र कयो की? िनदि यी ने चपरािी िे मेरा कान पकडने को कहा।

शारदा ने गुसिे मे आकर कहा—तुमने एक जूता उतार कर िदया नहीं िूआर को? फतहचनद—चपरािी बहुत शरीफ है । उिने िाफ कह िदया—हुजूर, मुझिे यह काम न होगा। मेने िले आदिमयो की इजजत उतारने के िलए नौकरी नहीं की थी। वह उिी वि िलाम करके चला गया।

शारदा—यही बहादरुी हे । तुमने उि िाहब को कयो नही फटकारा?

फतहचनद—फटकारा कयो नहीं—मेने िी खूब िुनायी। वह छडी लेकर दौडा—मेने िी जूता िँिाला। उिने मुझे छिडयॉँ जमायीं—मैने िी कई जूते लगाये!

शारदा ने खुश होकर कहा—िच? इतना-िा मुह ँ हो गया होगा उिका! फतहचनद—चेहरे पर झाडू -िी िफरी हुई थी।

शारदा—बडा अचछा िकया तुमने ओर मारना चािहए था। मे होती, तो िबना जान िलए न छोडती।

फतहचनद—मार तो आया हूँ; लेिकन अब खैिरयत नहीं है । दे खो, कया नतीजा होता है ? नौकरी तो जायगी ही, शायद िजा िी काटनी पडे ।

शारदा—िजा कयो काटनी पडे गी? कया कोई इं िाफ करने वाला नहीं है ? उिने कयो गािलयॉँ दीं, कयो छडी जमायी?

फतहचनद—उिने िामने मेरी कौन िुनेगा? अदालत िी उिी की तरफ हो जायगी। शारदा—हो जायगी, हो जाय; मगर दे ख लेना अब िकिी िाहब की यह िहममत न होगी िक िकिी बाबू को गािलयॉँ दे बैठे। तुमहे चािहए था िक जयोही उिके मुह ँ िे गािलयॉँ िनकली, लपक कर एक जूता रिीदद कर दे ते।

फतहचनद—तो िफर इि वि िजंदा लौट िी न िकता। जरर मुझे गोली मार दे ता। शारदा—दे खी जाती।

फतहचनद ने मुसकरा कर कहा—िफर तुम लोग कहॉँ जाती? शारदा—जहाँ ईशर की मरजी होती। आदमी के िलए िबिे बडी चीज इजजत हे । इजजत गवॉँ कर बाल-बचचो की परविरश नही की जाती। तुम उि शैतान को मार का आये होते तो मै करर िे

फूली नहीं िमाती। मार खाकर उठते, तो शायद मै तुमहारी िूरत िे िी घण ृ ा करती। यो जबान िे चाहे कुछ न कहती, मगर िदल िे तुमहारी इजजल जाती रहती। अब जो कुछ ििर पर आयेगी, खुशी िे झेल लूँगी.....। कहॉँ जाते हो, िुनो-िुनो कहॉँ जाते हो?

फतहचनद दीवाने होकर जोश मे घर िे िनकल पडे । शारदा पुकारती रह गयी। वह िफर िाहब के बँगले की तरफ जा रहे थे। डर िे िहमे हुए नहीं; बिलक गरर िे गदि न उठाये हुए। पकका इरादा उनके चेहरे िे झलक रहा था। उनके पैरो मे वह कमजोरी, ऑख ं े मे वह बेकिी न थी। उनकी

कायापलट िी हो गयी थी। वह कमजोर बदन, पीला मुखडा दब ि बदनवाला, दफतर के बाबू की ु ल जगह अब मदान ि ा चेहरा, िहममत िरा हुआ, मजबूत गठा और जवान था। उनहोने पहले एक दोसत के घर जाकर उिक डं डा िलया ओर अकडते हुए िाहब के बँगले पर जा पहुँचे।

इि वि नौ बजे थे। िाहब खाने की मेज पर थे। मगर फतहचनद ने आज उनके मेज पर िे उठ जाने का दं तजार न िकया, खानिामा कमरे िे बाहर िनकला और वह िचक उठा कर अंदर गए। कमरा पकाश िे जगमगा रहा थां जमीन पर ऐिी कालीन िबछी हुई थी; जेिी फतहचनद की

शादी मे िी नहीं िबछी होगी। िाहब बहादरू ने उनकी तरफ कोिधत दिि िे दे ख कर कहा—तुम कयो आया? बाहर जाओं, कयो अनदर चला आया?

फतहचनद ने खडे -खडे डं डा िंिाल कर कहा—तुमने मुझिे अिी फाइल मॉग ँ ा था, वही फाइल

लेकर आया हूँ। खाना खा लो, तो िदखाऊँ। तब तक मे बैठा हूँ। इतमीनान िे खाओ, शायद वह तुमहारा आिखरी खाना होगा। इिी कारण खूब पेट िर खा लो।

िाहब िननाटे मे आ गये। फतहचनद की तरफ डर और कोध की दिि िे दे ख कर कॉप ं उठे । फतहचनद के चेहरे पर पकका इरादा झलक रहा था। िाहब िमझ गये, यह मनुषय इि िमय

मरने-मारने के िलए तैयार होकर आयाहै । ताकत मे फतहचनद उनिे पािंग िी नहीं था। लेिकन यह िनशय था िक वह ईट का जवाब पतथर िे नहीं, बिलक लोहे िे दे ने को तैयार है । यिद पह

फतहचनद को बुरा-िला कहते है , तो कया आशयि है िक वह डं डा लेकर िपल पडे । हाथापाई करने मे यदिप उनहे जीतने मे जरा िी िंदेह नहीं था, लेिकन बैठे-बैठाये डं डे खाना िी तो कोई

बुिदमानी नहीं है । कुिे को आप डं डे िे मािरये, ठु कराइये, जो चाहे कीिजए; मगर उिी िमय तक, जब तक वह गुरात ि ा नहीं। एक बार गुराि कर दौड पडे , तो िफर दे खे आप िहममत कहॉँ जाती है ? यही हाल उि वि िाहब बहादरु का थां जब तक यकीन था िक फतहचनद घुडकी, गाली,

हं टर, ठाकर िब कुछ खामोशी िे िह लेगा,. तब तक आप शेर थे; अब वह तयोिरयॉँ बदले, डडा िँिाले, िबलली की तरह घात लगाये खडा है । जबान िे कोई कडा शबद िनकला और उिने डडा

चलाया। वह अिधक िे अिधक उिे बरखासत कर िकते है । अगर मारते है , तो मार खाने का िी डर है । उि पर फौजदारी मे मुकदमा दायर हो जाने का िंदेशा—माना िक वह अपने पिाव और

ताकत को जेल मे डलवा दे गे; परनतु परे शानी और बदनामी िे िकिी तरह न बच िकते थे। एक बुिदमान और दरूंदेश आदमी की तरह उनहोने यह कहा—ओहो, हम िमझ गया, आप हमिे नाराज हे । हमने कया आपको कुछ कहा है ? आप कयो हमिे नाराज है ?

फतहचनद ने तन करी कहा—तुमने अिी आध घंटा पहले मेरे कान पकडे थे, और मुझिे िैकडो ऊल-जलूल बाते कही थीं। कया इतनी जलदी िूल गये?

िाहब—मैने आपका कान पकडा, आ-हा-हा-हा-हा! कया मजाक है ? कया मै पागल हूँ या दीवाना? फतहचनद—तो कया मै झूठ बोल रहा हूँ? चपरािी गवाह है । आपके नौकर-चाकर िी दे ख रहे थे। िाहब—कब की बात है ?

फतहचनद—अिी-अिी, कोई आधा घणटा हुआ, आपने मुझे बुलवाया था और िबना कारण मेरे कान पकडे और धकके िदये थे।

िाहब—ओ बाबू जी, उि वि हम नशा मे था। बेहरा ने हमको बहुत दे िदया था। हमको कुछ खबर नहीं, कया हुआ माई गाड! हमको कुछ खबर नहीं।

फतहचनद—नशा मे अगर तुमने गोली मार दी होती, तो कया मै मर न जाता? अगर तुमहे नशा था और नशा मे िब कुछ मुआफ हे , तो मै िी नशे मे हूँ। िुनो मेरा फैिला, या तो अपने कान

पकडो िक िफर किी िकिी िले आदमी के िंग ऐिा बताव ि न करोगे, या मै आकर तुमहारे कान पकडू ँ गा। िमझ गये िक नहीं! इधर उधर िहलो नहीं, तुमने जगह छोडी और मैने डं डा चलाया। िफर खोपडी टू ट जाय, तो मेरी खता नहीं। मै जो कुछ कहता हूँ, वह करते चलो; पकडो कान! िाहब ने बनावटी हँ िी हँ िकर कहा—वेल बाबू जी, आप बहुत िदललगी करता है । अगर हमने आपको बुरा बात कहता है , तो हम आपिे माफी मॉग ँ ता हे । फतहचनद—(डं डा तौलकर) नहीं, कान पकडो!

िाहब आिानी िे इतनी िजललत न िह िके। लपककर उठे और चाहा िक फतहचनद के हाथ िे

लकडी छीन ले; लेिकन फतहचनद गािफल न थे। िाहब मेज पर िे उठने न पाये थे िक उनहोने डं डे का िरपूर और तुला हुआ हाथ चलाया। िाहब तो नंगे ििर थे ही; चोट ििर पर पड गई।

खोपडी िनना गयी। एक िमनट तक ििर को पकडे रहने के बाद बोले—हम तुमको बरखासत कर दे गा।

फतहचनद—इिकी मुझे परवाह नहीं, मगर आज मै तुमिे िबना कान पकडाये नहीं जाऊँगा। किान पकडकर वादा करो िक िफर िकिी िले आदमी के िाथ ऐिा बेअदबी न करोगे, नहीं तो मेरा दि ू रा हाथ पडना ही चाहता है !

यह कहकर फतहचनद ने िफर डं डा उठाया। िाहब को अिी तक पहली चोट न िूली थी। अगर

कहीं यह दि ू रा हाथ पड गया, तो शायद खोपडी खुल जाये। कान पर हाथ रखकर बोले—अब अप खुश हुआ?

‘िफर तो किी िकिी को गाली न दोगे?’ ‘किी नही।‘

‘अगर िफर किी ऐिा िकया, तो िमझ लेना, मै कहीं बहुत दरू नहीं हूँ।‘ ‘अब िकिी को गाली न दे गा।‘

‘अचछी बात हे , अब मै जाता हूँ, आप िे मेरा इसतीफा है । मै कल इसतीफा मे यह िलखकर िेजग ूँ ा िक

तुमने मुझे गािलयॉँ दीं, इििलए मै नौकरी नहीं करना चाहता, िमझ गये? िाहब—आप इसतीफा कयो दे ता है ? हम तो हम तो बरखासत नहीं करता। फतहचनद—अब तुम जैिे पाजी आदमी की मातहती नहीं करँगा।

यह कहते हुए फतहचनद कमरे िे बाहर िनकले और बडे इतमीनान िे घर चले। आज उनहे िचची िवजय की पिननता का अनुिव हुआ। उनहे ऐिी खुशी किी नहीं पाप हुई थी। यही उनके जीतन की पहली जीत थी।

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