Idgah Touching Tale

  • November 2019
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  • Words: 5,359
  • Pages: 16


ईदग ाह मजान के पूरे तीस रोजो के बाद ईद आयी है । िकतना मनोहर, िकतना सुहावना पभाव है । वक ृ ो पर अजीब हिरयाली है , खेतो मे कुछ अजीब

रौनक है , आसमान पर कुछ अजीब लािलमा है । आज का सूय य दे खो, िकतना पयारा, िकतना शीतल है , यानी संसार को ईद की बधाई दे रहा है । गॉव ं मे

िकतनी हलचल है । ईदगाह जाने की तैयािरयॉँ हो रही है । िकसी के कुरते मे

बटन नहीं है , पडोस के घर मे सुई-धागा लेने दौडा जा रहा है । िकसी के जूते

कडे हो गए है , उनमे तेल डालने के िलए तेली के घर पर भागा जाता है । जलदी-जलदी बैलो को सानी-पानी दे दे । ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो

जाएगी। तीन कोस का पेदल रासता, ििर सैकडो आदिमयो से िमलना-भेटना, दोपहर के पहले लोटना असमभव है । लडके सबसे जयादा पसनन है । िकसी ने एक रोजा रखा है , वह भी दोपहर तक, िकसी ने वह भी नहीं, लेिकन ईदगाह

जाने की खुशी उनके िहससे की चीज है । रोजे बडे -बूढो के िलए होगे। इनके िलए तो ईद है । रोज ईद का नाम रटते थे, आज वह आ गई। अब जलदी पडी है िक लोग ईदगाह कयो नहीं चलते। इनहे गह ृ सथी िचंताओं से कया

पयोजन! सेवैयो के िलए दध ू ओर शककर घर मे है या नहीं, इनकी बला से, ये

तो सेवेयां खाऍग ं े। वह कया जाने िक अबबाजान कयो बदहवास चौधरी कायमअली के घर दौडे जा रहे है । उनहे कया खबर िक चौधरी ऑख ं े बदल

ले, तो यह सारी ईद मुहरय म हो जाए। उनकी अपनी जेबो मे तो कुबेर काधन भरा हुआ है । बार-बार जेब से अपना खजाना िनकालकर िगनते है और खुश होकर ििर रख लेते है । महमूद िगनता है , एक-दो, दस,-बारह, उसके पास

बारह पैसे है । मोहनिसन के पास एक, दो, तीन, आठ, नौ, पंदह पैसे है । इनहीं

अनिगनती पैसो मे अनिगनती चीजे लाऍग ं े— िखलौने, िमठाइयां, िबगुल, गेद और जाने कया-कया।

और सबसे जयादा पसनन है हािमद। वह चार-पॉच ँ साल का गरीब

सूरत, दब ु ला-पतला लडका, िजसका बाप गत वष य है जे की भेट हो गया और

मॉँ न जाने कयो पीली होती-होती एक िदन मर गई। िकसी को पता कया

बीमारी है । कहती तो कौन सुनने वाला था? िदल पर जो कुछ बीतती थी, वह िदल मे ही सहती थी ओर जब न सहा गया,. तो संसार से िवदा हो गई। अब

हािमद अपनी बूढी दादी अमीना की गोद मे सोता है और उतना ही पसनन

है । उसके अबबाजान रपये कमाने गए है । बहुत-सी थैिलयॉँ लेकर आऍग ं े। अममीजान अललहा िमयॉँ के घर से उसके िलए बडी अचछी-अचछी चीजे लाने गई है , इसिलए हािमद पसनन है । आशा तो बडी चीज है , और ििर बचचो की आशा! उनकी कलपना तो राई का पवत य बना लेती हे । हािमद के पॉव ं मे जूते

नहीं है , िसर परएक पुरानी-धुरानी टोपी है , िजसका गोटा काला पड गया है , ििर भी वह पसनन है । जब उसके अबबाजान थैिलयॉँ और अममीजान

िनयमते लेकर आऍग ं ी, तो वह िदल से अरमान िनकाल लेगा। तब दे खेगा, मोहिसन, नूरे और सममी कहॉँ से उतने पैसे िनकालेगे।

अभािगन अमीना अपनी कोठरी मे बैठी रो रही है । आज ईद का िदन,

उसके घर मे दाना नहीं! आज आिबद होता, तो कया इसी तरह ईद आती ओर

चली जाती! इस अनधकार और िनराशा मे वह डू बी जा रही है । िकसने

बुलाया था इस िनगोडी ईद को? इस घर मे उसका काम नहीं, लेिकन हािमद!

उसे िकसी के मरने-जीने के कया मतल? उसके अनदर पकाश है , बाहर आशा।

िवपिि अपना सारा दलबल लेकर आये, हािमद की आनंद-भरी िचतबन उसका िवधवसं कर दे गी।

हािमद भीतर जाकर दादी से कहता है —तुम डरना नहीं अममॉँ, मै

सबसे पहले आऊँगा। िबलकुल न डरना।

अमीना का िदल कचोट रहा है । गॉव ँ के बचचे अपने-अपने बाप के

साथ जा रहे है । हािमद का बाप अमीना के िसवा और कौन है ! उसे केसे

अकेले मेले जाने दे ? उस भीड-भाड से बचचा कहीं खो जाए तो कया हो? नहीं, अमीना उसे यो न जाने दे गी। ननही-सी जान! तीन कोस चलेगा कैसे? पैर मे

छाले पड जाऍग ं े। जूते भी तो नहीं है । वह थोडी-थोडी दरू पर उसे गोद मे ले

लेती, लेिकन यहॉँ सेवैयॉँ कोन पकाएगा? पैसे होते तो लौटते-लोटते सब सामगी जमा करके चटपट बना लेती। यहॉँ तो घंटो चीजे जमा करते लगेगे। मॉग ँ े का ही तो भरोसा ठहरा। उस िदन िहीमन के कपडे िसले थे। आठ आने पेसे िमले थे। उस उठननी को ईमान की तरह बचाती चली आती थी

इसी ईद के िलए लेिकन कल गवालन िसर पर सवार हो गई तो कया करती? हािमद के िलए कुछ नहीं हे , तो दो पैसे का दध ू तो चािहए ही। अब तो कुल

दो आने पैसे बच रहे है । तीन पैसे हािमद की जेब मे , पांच अमीना के बटु वे

मे। यही तो िबसात है और ईद का तयौहार, अलला ही बेडा पर लगाए। धोबन और नाइन ओर मेहतरानी और चुिडहािरन सभी तो आऍग ं ी। सभी को सेवेयॉँ

चािहए और थोडा िकसी को ऑख ं ो नहीं लगता। िकस-िकस से मुह ँ चुरायेगी? और मुँह कयो चुराए? साल-भर का तयोहार है । िजनदगी खैिरयत से रहे , उनकी

तकदीर भी तो उसी के साथ है : बचचे को खुदा सलामत रखे, ये िदन भी कट जाऍग ं े।

गॉव ँ से मेला चला। ओर बचचो के साथ हािमद भी जा रहा था। कभी

सबके सब दौडकर आगे िनकल जाते। ििर िकसी पेड के नींचे खडे होकर

साथ वालो का इं तजार करते। यह लोग कयो इतना धीरे -धीरे चल रहे है ? हािमद के पैरो मे तो जैसे पर लग गए है । वह कभी थक सकता है ? शहर का दामन आ गया। सडक के दोनो ओर अमीरो के बगीचे है । पककी चारदीवारी

बनी हुई है । पेडो मे आम और लीिचयॉँ लगी हुई है । कभी-कभी कोई लडका कंकडी उठाकर आम पर िनशान लगाता हे । माली अंदर से गाली दे ता हुआ

िनंलता है । लडके वहाँ से एक िलॉग ँ पर है । खूब हँ स रहे है । माली को केसा उललू बनाया है ।

बडी-बडी इमारते आने लगीं। यह अदालत है , यह कालेज है , यह कलब

घर है । इतने बडे कालेज मे िकतने लडके पढते होगे? सब लडके नहीं है जी! बडे -बडे आदमी है , सच! उनकी बडी-बडी मूँछे है । इतने बडे हो गए, अभी तक

पढते जाते है । न जाने कब तक पढे गे ओर कया करे गे इतना पढकर! हािमद

के मदरसे मे दो-तीन बडे -बडे लडके हे , िबलकुल तीन कौडी के। रोज मार खाते है , काम से जी चुराने वाले। इस जगह भी उसी तरह के लोग होगे ओर

कया। कलब-घर मे जाद ू होता है । सुना है , यहॉँ मुदो की खोपिडयां दौडती है ।

और बडे -बडे तमाशे होते हे , पर िकसी कोअंदर नहीं जाने दे ते। और वहॉँ शाम को साहब लोग खेलते है । बडे -बडे आदमी खेलते हे , मूँछो-दाढी वाले। और मेमे भी खेलती है , सच! हमारी अममॉँ को यह दे दो, कया नाम है , बैट, तो उसे पकड ही न सके। घुमाते ही लुढक जाऍ।ं

महमूद ने कहा—हमारी अममीजान का तो हाथ कॉप ँ ने लगे, अलला

कसम।

मोहिसन बोल—चलो, मनो आटा पीस डालती है । जरा-सा बैट पकड

लेगी, तो हाथ कॉप ँ ने लगेगे! सौकडो घडे पानी रोज िनकालती है । पॉच ँ घडे तो

तेरी भैस पी जाती है । िकसी मेम को एक घडा पानी भरना पडे , तो ऑख ं ो तक अँधेरी आ जाए।

महमूद—लेिकन दौडतीं तो नहीं, उछल-कूद तो नहीं सकतीं।

मोहिसन—हॉँ, उछल-कूद तो नहीं सकतीं; लेिकन उस िदन मेरी गाय

खुल गई थी और चौधरी के खेत मे जा पडी थी, अममॉँ इतना तेज दौडी िक मे उनहे न पा सका, सच।

आगे चले। हलवाइयो की दक ु ाने शुर हुई। आज खूब सजी हुई थीं।

इतनी िमठाइयॉँ कौन खाता? दे खो न, एक-एक दक ू ान पर मनो होगी। सुना है , रात को िजननात आकर खरीद ले जाते है । अबबा कहते थे िक आधी रात को

एक आदमी हर दक ू ान पर जाता है और िजतना माल बचा होता है , वह तुलवा लेता है और सचमुच के रपये दे ता है , िबलकुल ऐसे ही रपये।

हािमद को यकीन न आया—ऐसे रपये िजननात को कहॉँ से िमल

जाऍग ं ी?

मोहिसन ने कहा—िजननात को रपये की कया कमी? िजस खजाने मे

चाहे चले जाऍ।ं लोहे के दरवाजे तक उनहे नहीं रोक सकते जनाब, आप है

िकस िेर मे! हीरे -जवाहरात तक उनके पास रहते है । िजससे खुश हो गए, उसे

टोकरो जवाहरात दे िदए। अभी यहीं बैठे हे , पॉच ँ िमनट मे कलकिा पहुँच जाऍ।ं

हािमद ने ििर पूछा—िजननात बहुत बडे -बडे होते है ?

मोहिसन—एक-एक िसर आसमान के बराबर होता है जी! जमीन पर

खडा हो जाए तो उसका िसर आसमान से जा लगे, मगर चाहे तो एक लोटे मे घुस जाए।

हािमद—लोग उनहे केसे खुश करते होगे? कोई मुझे यह मंतर बता दे

तो एक िजनन को खुश कर लूँ।

मोहिसन—अब यह तो न जानता, लेिकन चौधरी साहब के काबू मे

बहुत-से िजननात है । कोई चीज चोरी जाए चौधरी साहब उसका पता लगा दे गे ओर चोर का नाम बता दे गे। जुमराती का बछवा उस िदन खो गया था। तीन िदन है रान हुए, कहीं न िमला तब झख मारकर चौधरी के पास गए।

चौधरी ने तुरनत बता िदया, मवेशीखाने मे है और वहीं िमला। िजननात आकर उनहे सारे जहान की खबर दे जाते है ।

अब उसकी समझ मे आ गया िक चौधरी के पास कयो इतना धन है

और कयो उनका इतना सममान है ।

आगे चले। यह पुिलस लाइन है । यहीं सब कािनसिटिबल कवायद

करते है । रै टन! िाय िो! रात को बेचारे घूम-घूमकर पहरा दे ते है , नहीं चोिरयॉँ

हो जाऍ।ं मोहिसन ने पितवाद िकया—यह कािनसिटिबल पहरा दे ते हे ? तभी तुम बहुत जानते हो अजी हजरत, यह चोरी करते है । शहर के िजतने चोरडाकू हे , सब इनसे मुहलले मे जाकर ‘जागते रहो! जाते रहो!’ पुकारते हे । तभी इन लोगो के पास इतने रपये आते हे । मेरे मामू एक थाने मे कािनसिटिबल

हे । बरस रपया महीना पाते हे , लेिकन पचास रपये घर भेजते हे । अलला

कसम! मैने एक बार पूछा था िक मामू, आप इतने रपये कहॉँ से पाते है ? हँ सकर कहने लगे—बेटा, अललाह दे ता है । ििर आप ही बोले—हम लोग चाहे

तो एक िदन मे लाखो मार लाऍ।ं हम तो इतना ही लेते है , िजसमे अपनी बदनामी न हो और नौकरी न चली जाए।

हािमद ने पूछा—यह लोग चोरी करवाते है , तो कोई इनहे पकडता नहीं?

मोहिसन उसकी नादानी पर दया िदखाकर बोला..अरे , पागल! इनहे कौन

पकडे गा! पकडने वाले तो यह लोग खुद है , लेिकन अललाह, इनहे सजा भी खूब दे ता है । हराम का माल हराम मे जाता है । थोडे ही िदन हुए, मामू के घर मे आग लग गई। सारी लेई-पूज ँ ी जल गई। एक बरतन तक न बचा। कई िदन पेड के

नीचे सोए, अलला कसम, पेड के नीचे! ििरन जाने कहॉँ से एक सौ

कजय लाए तो बरतन-भॉड ँ े आए।

हािमद—एक सौ तो पचार से जयादा होते है ?

‘कहॉँ पचास, कहॉँ एक सौ। पचास एक थैली-भर होता है । सौ तो दो

थैिलयो मे भी न आऍ ं?

अब बसती घनी होने लगी। ईइगाह जाने वालो की टोिलयॉँ नजर आने

लगी। एक से एक भडकीले वस पहने हुए। कोई इकके-तॉग ँ े पर सवार, कोई मोटर पर, सभी इत मे बसे, सभी के िदलो मे उमंग। गामीणो का यह छोटासा दल अपनी िवपननता से बेखबर, सनतोष ओर धैय य मे मगन चला जा रहा था। बचचो के िलए नगर की सभी चीजे अनोखी थीं। िजस चीज की ओर

ताकते, ताकते ही रह जाते और पीछे से आन य की आवाज होने पर भी न चेतते। हािमद तो मोटर के नीचे जाते-जाते बचा।

सहसा ईदगाह नजर आई। ऊपर इमली के घने वक ृ ो की छाया हे ।

नाचे पकका िश य है , िजस पर जाजम ििछा हुआ है । और रोजेदारो की

पंिियॉँ एक के पीछे एक न जाने कहॉँ वक चली गई है , पककी जगत के नीचे तक, जहॉँ जाजम भी नहीं है । नए आने वाले आकर पीछे की कतार मे

खडे हो जाते है । आगे जगह नहीं हे । यहॉँ कोई धन और पद नहीं दे खता।

इसलाम की िनगाह मे सब बराबर हे । इन गामीणो ने भी वजू िकया ओर िपछली पंिि मे खडे हो गए। िकतना सुनदर संचालन है , िकतनी सुनदर वयवसथा! लाखो िसर एक साथ िसजदे मे झुक जाते है , ििर सबके सब एक साथ खडे हो जाते है , एक साथ झुकते हे , और एक साथ खडे हो जाते है , एक

साथ खडे हो जाते है , एक साथ झुकते हे , और एक साथ खडे हो जाते है , कई

बार यही ििया होती हे , जैसे िबजली की लाखो बिियाँ एक साथ पदीप हो

और एक साथ बुझ जाऍं, और यही गम चलता, रहे । िकतना अपूव य दशय था,

िजसकी सामूिहक िियाऍं, िवसतार और अनंतता हदय को शदा, गव य और आतमानंद से भर दे ती थीं, मानो भाततृव का एक सूत इन समसत आतमाओं को एक लडी मे िपरोए हुए है ।



2

माज खतम हो गई। लोग आपस मे गले िमल रहे है । तब िमठाई

और िखलौने की दक ू ान पर धावा होता है । गामीणो का यह दल इस

िवषय मे बालको से कम उतसाही नहीं है । यह दे खो, िहं डोला हे एक पैसा दे कर चढ जाओ। कभी आसमान पर जाते हुए मालूम होगे , कभी जमीन पर िगरते हुए। यह चखी है , लकडी के हाथी, घोडे , ऊँट, छडो मे लटके हुए है । एक पेसा दे कर बैठ जाओं और पचचीस चककरो का मजा लो। महमूद और

मोहिसन ओर नूरे ओर सममी इन घोडो ओर ऊँटो पर बैठते हे । हािमद दरू

खडा है । तीन ही पैसे तो उसके पास है । अपने कोष का एक ितहाई जरा-सा चककर खाने के िलए नहीं दे सकता।

सब चिखय य ो से उतरते है । अब िखलौने लेगे। अधर दक ू ानो की कतार

लगी हुई है । तरह-तरह के िखलौने है —िसपाही और गुजिरया, राज ओर वकी, िभशती और धोिबन और साधु। वह! किे सुनदर िखलोने है । अब बोला ही

चाहते है । महमूद िसपाही लेता हे , खाकी वदी और लाल पगडीवाला, कंधे पर बंदक ू रखे हुए, मालूम होता हे , अभी कवायद िकए चला आ रहा है । मोहिसन को िभशती पसंद आया। कमर झुकी हुई है , ऊपर मशक रखे हुए है मशक का

मुँह एक हाथ से पकडे हुए है । िकतना पसनन है ! शायद कोई गीत गा रहा है । बस, मशक से पानी अडे ला ही चाहता है । नूरे को वकील से पेम हे । कैसी

िवदिा हे उसके मुख पर! काला चोगा, नीचे सिेद अचकन, अचकन के सामने

की जेब मे घडी, सुनहरी जंजीर, एक हाथ मे कानून का पौथा िलये हुए। मालूम होता है , अभी िकसी अदालत से िजरह या बहस िकए चले आ रहे है ।

यह सब दो-दो पैसे के िखलौने है । हािमद के पास कुल तीन पैसे है , इतने

महँ गे िखलौन वह केसे ले? िखलौना कहीं हाथ से छूट पडे तो चूर-चूर हो जाए। जरा पानी पडे तो सारा रं ग घुल जाए। ऐसे िखलौने लेकर वह कया करे गा, िकस काम के!

मोहिसन कहता है —मेरा िभशती

रोज पानी दे जाएगा सॉझ ँ -सबेरे

महमूद—और मेरा िसपाही घर का पहरा दे गा कोई चोर आएगा, तो

िौरन बंदक ू से िैर कर दे गा।

नूरे—ओर मेरा वकील खूब मुकदमा लडे गा।

सममी—ओर मेरी धोिबन रोज कपडे धोएगी।

हािमद िखलौनो की िनंदा करता है —िमटटी ही के तो है , िगरे तो

चकनाचूर हो जाऍं, लेिकन ललचाई हुई ऑख ं ो से िखलौनो को दे ख रहा है

और चाहता है िक जरा दे र के िलए उनहे हाथ मे ले सकता। उसके हाथ

अनायास ही लपकते हे , लेिकन लडके इतने तयागी नहीं होते हे , िवशेषकर जब अभी नया शौक है । हािमद ललचता रह जाता है ।

िखलौने के बाद िमठाइयाँ आती है । िकसी ने रे विडयॉँ ली हे , िकसी ने

गुलाबजामुन िकसी ने सोहन हलवा। मजे से खा रहे है । हािमद िबरादरी से

पथ ृ क् है । अभागे के पास तीन पैसे है । कयो नहीं कुछ लेकर खाता? ललचाई ऑख ं ो से सबक ओर दे खता है ।

मोहिसन कहता है —हािमद रे वडी ले जा, िकतनी खुशबूदार है !

हािमद को सदे ह हुआ, ये केवल िूर िवनोद हे मोहिसन इतना उदार

नहीं है , लेिकन यह जानकर भी वह उसके पास जाता है । मोहिसन दोने से एक रे वडी िनकालकर हािमद की ओर बढाता है । हािमद हाथ िैलाता

है ।

मोहिसन रे वडी अपने मुँह मे रख लेता है । महमूद नूरे ओर सममी खूब तािलयॉँ बजा-बजाकर हँ सते है । हािमद िखिसया जाता है ।

मोहिसन—अचछा, अबकी जरर दे गे हािमद, अललाह कसम, ले जा। हािमद—रखे रहो। कया मेरे पास पैसे नहीं है ?

सममी—तीन ही पेसे तो है । तीन पैसे मे कया-कया लोगे?

महमूद—हमसे गुलाबजामुन ले जाओ हािमद। मोहिमन बदमाश है ।

हािमद—िमठाई कौन बडी नेमत है । िकताब मे इसकी िकतनी बुराइयॉँ

िलखी है ।

मोहिसन—लेिकन िदन मे कह रहे होगे िक िमले तो खा ले। अपने पैसे

कयो नहीं िनकालते?

महमूद—इस समझते हे , इसकी चालाकी। जब हमारे सारे पैसे खच य हो

जाऍग ं े, तो हमे ललचा-ललचाकर खाएगा।

िमठाइयो के बाद कुछ दक ू ाने लोहे की चीजो की, कुछ िगलट और कुछ

नकली गहनो की। लडको के िलए यहॉँ कोई आकषण य न था। वे सब आगे

बढ जाते है , हािमद लोहे की दक ु ान पररक जात हे । कई िचमटे रखे हुए थे।

उसे खयाल आया, दादी के पास िचमटा नहीं है । तबे से रोिटयॉँ उतारती है , तो हाथ जल जाता है । अगर वह िचमटा ले जाकर दादी को दे दे तो वह

िकतना पसनन होगी! ििर उनकी ऊगिलयॉँ कभी न जलेगी। घर मे एक काम

की चीज हो जाएगी। िखलौने से कया िायदा? वयथ य मे पैसे खराब होते है । जरा दे र ही तो खुशी होती है । ििर तो िखलौने को कोई ऑख ं उठाकर नहीं

दे खता। यह तो घर पहुँचते-पहुँचते टू ट-िूट बराबर हो जाऍग ं े। िचमटा िकतने

काम की चीज है । रोिटयॉँ तवे से उतार लो, चूलहे मे सेक लो। कोई आग मॉग ँ ने आये तो चटपट चूलहे से आग िनकालकर उसे दे दो। अममॉँ बेचारी

को कहॉँ िुरसत हे िक बाजार आऍ ं और इतने पैसे ही कहॉँ िमलते है ? रोज हाथ जला लेती है ।

हािमद के साथी आगे बढ गए है । सबील पर सबके सब शबत य पी रहे

है । दे खो, सब कतने लालची है । इतनी िमठाइयॉँ लीं, मुझे िकसी ने एक भी न

दी। उस पर कहते है , मेरे साथ खेलो। मेरा यह काम करो। अब अगर िकसी

ने कोई काम करने को कहा, तो पूछूँगा। खाऍ ं िमठाइयॉँ, आप मुँह सडे गा, िोडे -िुिनसयॉ ं िनकलेगी, आप ही जबान चटोरी हो जाएगी। तब घर से पैसे

चुराऍग ं े और मार खाऍग ं े। िकताब मे झूठी बाते थोडे ही िलखी हे । मेरी जबान कयो खराब होगी? अममॉँ िचमटा दे खते ही दौडकर मेरे हाथ से ले लेगी और

कहे गी—मेरा बचचा अममॉँ के िलए िचमटा लाया है । िकतना अचछा लडका है ।

इन लोगो के िखलौने पर कौन इनहे दआ ु ऍ ं दे गा? बडो का दआ ु ऍ ं सीधे अललाह के दरबार मे पहुँचती है , और तुरंत सुनी जाती है । मे भी इनसे िमजाज कयो सहूँ? मै गरीब सही, िकसी से कुछ मॉग ँ ने तो नहीं जाते। आिखर

अबबाजान कभीं न कभी आऍग ं े। अममा भी ऑएंगी ही। ििर इन लोगो से पूछूँगा, िकतने िखलौने लोगे? एक-एक को टोकिरयो िखलौने दँ ू और िदखा हूँ

िक दोसतो के साथ इस तरह का सलूक िकया जात है । यह नहीं िक एक पैसे की रे विडयॉँ लीं, तो िचढा-िचढाकर खाने लगे। सबके सब हँ सेगे िक

हािमद ने िचमटा िलया है । हं से! मेरी बला से! उसने दक ु ानदार से पूछा—यह िचमटा िकतने का है ?

दक ु ानदार ने उसकी ओर दे खा और कोई आदमी साथ न दे खकर कहा

—तुमहारे काम का नहीं है जी! ‘िबकाऊ है िक नहीं?’

‘िबकाऊ कयो नहीं है ? और यहॉँ कयो लाद लाए है ?’ तो बताते कयो नहीं, कै पैसे का है ?’ ‘छ: पैसे लगेगे।‘

हािमद का िदल बैठ गया।

‘ठीक-ठीक पॉच ँ पेसे लगेगे, लेना हो लो, नहीं चलते बनो।‘ हािमद ने कलेजा मजबूत करके कहा तीन पैसे लोगे?

यह कहता हुआ व आगे बढ गया िक दक ु ानदार की घुडिकयॉँ न सुने।

लेिकन दक ु ानदार ने घुडिकयॉँ नहीं दी। बुलाकर िचमटा दे िदया। हािमद ने

उसे इस तरह कंधे पर रखा, मानो बंदक ू है और शान से अकडता हुआ संिगयो के पास आया। जरा सुने, सबके सब कया-कया आलोचनाऍ ं करते है !

मोहिसन ने हँ सकर कहा—यह िचमटा कयो लाया पगले, इसे कया

करे गा?

हािमद ने िचमटे को जमीन पर पटकर कहा—जरा अपना िभशती

जमीन पर िगरा दो। सारी पसिलयॉँ चूर-चूर हो जाऍ ं बचा की। महमूद बोला—तो यह िचमटा कोई िखलौना है ?

हािमद—िखलौना कयो नही है ! अभी कनधे पर रखा, बंदक ू हो गई। हाथ

मे ले िलया, िकीरो का िचमटा हो गया। चाहूँ तो इससे मजीरे काकाम ले

सकता हूँ। एक िचमटा जमा दँ ू, तो तुम लोगो के सारे िखलौनो की जान

िनकल जाए। तुमहारे िखलौने िकतना ही जोर लगाऍ ं, मेरे िचमटे का बाल भी बॉक ं ा नही कर सकते मेरा बहादरु शेर है िचमटा।

सममी ने खँजरी ली थी। पभािवत होकर बोला—मेरी खँजरी से

बदलोगे? दो आने की है ।

हािमद ने खँजरी की ओर उपेका से दे खा-मेरा िचमटा चाहे तो तुमहारी

खॅजरी का पेट िाड डाले। बस, एक चमडे की िझलली लगा दी, िब-िब बोलने

लगी। जरा-सा पानी लग जाए तो खतम हो जाए। मेरा बहादरु िचमटा आग मे, पानी मे, ऑध ं ी मे, तूिान मे बराबर डटा खडा रहे गा।

िचमटे ने सभी को मोिहत कर िलया, अब पैसे िकसके पास धरे है ?

ििर मेले से दरू िनकल आए हे , नौ कब के बज गए, धूप तेज हो रही है । घर पहुंचने की जलदी हो रही हे । बाप से िजद भी करे , तो िचमटा नहीं िमल सकता। हािमद है बडा चालाक। इसीिलए बदमाश ने अपने पैसे बचा रखे थे।

अब बालको के दो दल हो गए है । मोहिसन, महमद, सममी और नूरे

एक तरि है , हािमद अकेला दस ू री तरि। शासथ य हो रहा है । सममी तो िवधमी हा गया! दस ू रे पक से जा िमला, लेिकन मोहिन, महमूद और नूरे भी हािमद से एक-एक, दो-दो साल बडे होने पर भी हािमद के आघातो से

आतंिकत हो उठे है । उसके पास नयाय का बल है और नीित की शिि। एक ओर िमटटी है , दस ू री ओर लोहा, जो इस वि अपने को िौलाद कह रहा है । वह अजेय है , घातक है । अगर कोई शेर आ जाए िमयॉँ िभशती के छकके छूट

जाऍ ं, जो िमयॉँ िसपाही िमटटी की बंदक ू छोडकर भागे, वकील साहब की

नानी मर जाए, चोगे मे मुंह िछपाकर जमीन पर लेट जाऍ।ं मगर यह िचमटा, यह बहादरु, यह रसतमे-िहं द लपककर शेर की गरदन पर सवार हो जाएगा और उसकी ऑख ं े िनकाल लेगा।

मोहिसन ने एडी—चोटी का जारे लगाकर कहा—अचछा, पानी तो नहीं

भर सकता?

हािमद ने िचमटे को सीधा खडा करके कहा—िभशती को एक डांट

बताएगा, तो दौडा हुआ पानी लाकर उसके दार पर िछडकने लगेगा।

मोहिसन परासत हो गया, पर महमूद ने कुमुक पहुँचाई—अगर बचा

पकड जाऍ ं तो अदालम मे बॅधे-बँधे ििरे गे। तब तो वकील साहब के पैरो पडे गे।

हािमद इस पबल तकय का जवाब न दे सका। उसने पूछा—हमे पकडने

कौने आएगा?

नूरे ने अकडकर कहा—यह िसपाही बंदक ू वाला।

हािमद ने मुँह िचढाकर कहा—यह बेचारे हम बहादरु रसतमे—िहं द को

पकडे गे! अचछा लाओ, अभी जरा कुशती हो जाए। इसकी सूरत दे खकर दरू से भागेगे। पकडे गे कया बेचारे !

मोहिसन को एक नई चोट सूझ गई—तुमहारे िचमटे का मुँह रोज आग

मे जलेगा।

उसने समझा था िक

हािमद लाजवाब हो जाएगा, लेिकन यह बात न

हुई। हािमद ने तुरंत जवाब िदया—आग मे बहादरु ही कूदते है जनाब, तुमहारे

यह वकील, िसपाही और िभशती लैिडयो की तरह घर मे घुस जाऍग ं े। आग मे वह काम है , जो यह रसतमे-िहनद ही कर सकता है ।

महमूद ने एक जोर लगाया—वकील साहब कुरसी—मेज पर बैठेगे,

तुमहारा िचमटा तो बाबरचीखाने मे जमीन पर पडा रहने के िसवा और कया कर सकता है ?

इस तकय ने सममी औरनूरे को भी सजी कर िदया! िकतने िठकाने की

बात कही हे पटठे ने! िचमटा बावरचीखाने मे पडा रहने के िसवा और कया कर सकता है ?

हािमद को कोई िडकता हुआ जवाब न सूझा, तो उसने धॉध ँ ली शुर

की—मेरा िचमटा बावरचीखाने मे नही रहे गा। वकील साहब कुसी पर बैठेगे,

तो जाकर उनहे जमीन पर पटक दे गा और उनका कानून उनके पेट दे गा।

मे डाल

बात कुछ बनी नही। खाल गाली-गलौज थी, लेिकन कानून को पेट मे

डालनेवाली बात छा गई। ऐसी छा गई िक तीनो सूरमा मुँह ताकते रह गए मानो कोई धेलचा कानकौआ िकसी गंडेवाले कनकौए को काट गया हो। कानून मुँह से बाहर िनकलने वाली चीज हे । उसको पेट के अनदर डाल िदया

जाना बेतुकी-सी बात होने पर भी कुछ नयापन रखती हे । हािमद ने मैदान

मार िलया। उसका िचमटा रसतमे-िहनद हे । अब इसमे मोहिसन, महमूद नूरे, सममी िकसी को भी आपिि नहीं हो सकती।

िवजेता को हारनेवालो से जो सतकार िमलना सवाभिवक है , वह हािमद

को भी िमल। औरो ने तीन-तीन, चार-चार आने पैसे खचय िकए, पर कोई काम

की चीज न ले सके। हािमद ने तीन पैसे मे रं ग जमा िलया। सच ही तो है , िखलौनो का कया भरोसा? टू ट-िूट जाऍग ं ी। हािमद का िचमटा तो बना रहे गा बरसो?

संिध की शते तय होने लगीं। मोहिसन ने कहा—जरा अपना िचमटा

दो, हम भी दे खे। तुम हमार िभशती लेकर दे खो।

महमूद और नूरे ने भी अपने-अपने िखलौने पेश िकए।

हािमद को इन शतो को मानने मे कोई आपिि न थी। िचमटा बारी-

बारी से सबके हाथ मे गया, और उनके िखलौने बारी-बारी से हािमद के हाथ मे आए। िकतने खूबसूरत िखलौने है ।

हािमद ने हारने वालो के ऑस ं ू पोछे —मै तुमहे िचढा रहा था, सच! यह

िचमटा भला, इन िखलौनो की कया बराबर करे गा, मालूम होता है , अब बोले, अब बोले।

लेिकन मोहसिन की पाटी को इस िदलासे से संतोष नहीं होता। िचमटे

का िसलका खूब बैठ गया है । िचपका हुआ िटकट अब पानी से नहीं छूट रहा है ।

मोहिसन—लेिकन इन िखलौनो के िलए कोई हमे दआ तो न दे गा? ु

महमूद—दआ को िलय ििरते हो। उलटे मार न पडे । अममां जरर ु

कहे गी िक मेले मे यही िमटटी के िखलौने िमले?

हािमद को सवीकार करना पडा िक िखलौनो को दे खकर िकसी की मां

इतनी खुश न होगी, िजतनी दादी िचमटे को दे खकर होगी। तीन पैसो ही मे तो उसे सब-कुछ करना था ओर उन पैसो के इस उपयो पर पछतावे की िबलकुल जररत न थी। ििर अब तो िचमटा रसतमे—िहनद हे ओर सभी िखलौनो का बादशाह।

रासते मे महमूद को भूख लगी। उसके बाप ने केले खाने को िदये।

महमून ने केवल हािमद को साझी बनाया। उसके अनय िमत मुंह ताकते रह गए। यह उस िचमटे का पसाद थां।

गया

3 रह बजे गॉव ँ मे हलचल मच गई। मेलेवाले आ गए। मोहिसन की छोटी बहन दौडकर िभशती उसके हाथ से छीन

िलया और मारे खुशी के जा उछली, तो िमयॉ ं िभशती नीचे आ रहे और सुरलोक िसधारे । इस पर भाई-बहन मे मार-पीट हुई। दानो खुब रोए। उसकी

अममॉँ यह शोर सुनकर िबगडी और दोनो को ऊपर से दो-दो चॉट ँ े और लगाए।

िमयॉँ नूरे के वकील का अंत उनके पितषानुकूल इससे जयादा गौरवमय

हुआ। वकील जमीन पर या ताक पर हो नहीं बैठ सकता। उसकी मयाद य ा का िवचार तो करना ही होगा। दीवार मे खूँिटयाँ गाडी गई। उन पर लकडी का

एक पटरा रखा गया। पटरे पर कागज का कालीन िबदाया गया। वकील

साहब राजा भोज की भाँित िसंहासन पर िवराजे। नूरे ने उनहे पंखा झलना शुर िकया। आदालतो मे खर की टिटटयॉँ और िबजली के पंखे रहते हे । कया

यहॉँ मामूली पंखा भी न हो! कानून की गमी िदमाग पर चढ जाएगी िक

नहीं? बॉस ँ कापंखा आया ओर नूरे हवा करने लगे मालूम नहीं, पंखे की हवा से या पंखे की चोट से वकील साहब सवगल य ोक से मतृयुलोक मे आ रहे और

उनका माटी का चोला माटी मे िमल गया! ििर बडे जोर-शोर से मातम हुआ और वकील साहब की अिसथ घूरे पर डाल दी गई।

अब रहा महमूद का िसपाही। उसे चटपट गॉव ँ का पहरा दे ने का चाजय

िमल गया, लेिकन पुिलस का िसपाही कोई साधारण वयिि तो नहीं, जो अपने

पैरो चले वह पालकी पर चलेगा। एक टोकरी आई, उसमे कुछ लाल रं ग के िटे -पुराने िचथडे िबछाए गए िजसमे िसपाही साहब आराम से लेटे। नूरे ने यह टोकरी उठाई और अपने दार का चककर लगाने लगे। उनके दोनो छोटे

भाई िसपाही की तरह ‘छोनेवाले, जागते लहो’ पुकारते चलते हे । मगर रात तो अँधेरी होनी चािहए, नूरे को ठोकर लग जाती है । टोकरी उसके हाथ से

छूटकर िगर पडती है और िमयॉँ िसपाही अपनी बनदक ू िलये जमीन पर आ जाते है और उनकी एक टॉग ँ मे िवकार आ जाता है ।

महमूद को आज जात हुआ िक वह अचछा डाकटर है । उसको ऐसा

मरहम िमला गया है िजससे वह टू टी टॉग ँ को आनन-िानन जोड सकता हे । केवल गूलर का दध ू चािहए। गूलर का दध ू आता है । टाँग जावब दे दे ती है ।

शलय-ििया असिल हुई, तब उसकी दस ू री टाँग भी तोड दी जाती है । अब

कम-से-कम एक जगह आराम से बैठ तो सकता है । एक टॉग ँ से तो न चल सकता था, न बैठ सकता था। अब वह िसपाही संनयासी हो गया है । अपनी जगह पर बैठा-बैठा पहरा दे ता है । कभी-कभी दे वता भी बन जाता है । उसके

िसर का झालरदार सािा खुरच िदया गया है । अब उसका िजतना रपांतर चाहो, कर सकते हो। कभी-कभी तो उससे बाट का काम भी िलया जाता है ।

अब िमयॉँ हािमद का हाल सुिनए। अमीना उसकी आवाज सुनते ही

दौडी और उसे गोद मे उठाकर पयार करने लगी। सहसा उसके हाथ मे िचमटा दे खकर वह चौकी।

‘यह िचमटा कहॉ ं था?’ ‘मैने मोल िलया है ।‘ ‘कै पैसे मे?

‘तीन पैसे िदये।‘

अमीना ने छाती पीट ली। यह कैसा बेसमझ लडका है िक दोपहर

हुआ, कुछ खाया न िपया। लाया कया, िचमटा! ‘सारे मेले मे तुझे और कोई चीज न िमली, जो यह लोहे का िचमटा उठा लाया?’

हािमद ने अपराधी-भाव से कहा—तुमहारी उँ गिलयॉँ तवे से जल जाती

थीं, इसिलए मैने इसे िलया।

बुिढया का िोध तुरनत सनेह मे बदल गया, और सनेह भी वह नहीं, जो

पगलभ होता हे और अपनी सारी कसक शबदो मे िबखेर दे ता है । यह मूक

सनेह था, खूब ठोस, रस और सवाद से भरा हुआ। बचचे मे िकतना वयाग, िकतना सदभाव और िकतना िववेक है ! दस ू रो को िखलौने लेते और िमठाई

खाते दे खकर इसका मन िकतना ललचाया होगा? इतना जबत इससे हुआ कैसे? वहॉँ भी इसे अपनी बुिढया दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गदगद हो गया।

और अब एक बडी िविचत बात हुई। हािमद के इस िचमटे से भी

िविचत। बचचे हािमद ने बूढे हािमद का पाटय खेला था। बुिढया अमीना बािलका अमीना बन गई। वह रोने लगी। दामन िैलाकर हािमद को दआ ु ऍं

दे ती जाती थी और आँसूं की बडी-बडी बूंदे िगराती जाती थी। हािमद इसका रहसय कया समझता!

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