Grammer

  • June 2020
  • PDF

This document was uploaded by user and they confirmed that they have the permission to share it. If you are author or own the copyright of this book, please report to us by using this DMCA report form. Report DMCA


Overview

Download & View Grammer as PDF for free.

More details

  • Words: 19,638
  • Pages: 70
ववववववव ववव ववव वववव ववववववववववववववव 1.

भाषा, वयाकरण और बोली

2.

वणर-िवचार

3.

शबद-िवचार

4.

पद-िवचार

5.

संजा के िवकारक ततव

6.

वचन

7.

कारक

8.

सवरनाम

9.

िवशेषण

10.

िकया

11.

काल

12.

वाचय

13.

िकया-िवशेषण

14.

संबध ं बोधक अवयय

15.

समुचयबोधक अवयय

16.

िवसमयािदबोधक अवयय

17.

शबद-रचना

18.

पतयय

19.

संिध

20.

समास

21.

पद-पिरचय

22.

शबद-जान

23.

िवराम-िचह

24.

वाकय-पकरण

25.

अशुद वाकयो के शुद रप

26.

मुहावरे और लोकोिकतया

27.

संवाद लेखन (1) मा और बेटे मे वातालाप (2) ीीता और लव का वातालाप (3) दो पडोिसयो का वातालाप

(4) पना और बनवीर का वातालाप 28.

कहानी-लेखन

29.

सार-लेखन तथा अपिठत गदाश

30.

पत लेखन

31.

िनबंध लेखन

वववववव-1 1.वववव, ववववववव वव वववव पिरभाषा- भाषा अिभवयिकत का एक ऐसा समथर साधन है िजसके दारा मनुषय अपने िवचारो को दूसरो पर पकट कर सकता है और दूसरो के िवचार जाना सकता है। संसार मे अनेक भाषाएँ है। जैस-े िहनदी,संसकृत,अंगेजी, बँगला,गुजराती,पंजाबी,उदूर, तेलुगु, मलयालम, कनड, फैच, चीनी, जमरन इतयािद। भाषा के पकार- भाषा दो पकार की होती है1. मौिखक भाषा। 2. िलिखत भाषा। आमने -सामने बैठे वयिकत परसपर बातचीत करते है अथवा कोई वयिकत भाषण आिद दारा अपने िवचार पकट करता है तो उसे भाषा का मौिखक रप कहते है। जब वयिकत िकसी दूर बैठे वयिकत को पत दारा अथवा पुसतको एवं पत-पितकाओं मे लेख दारा अपने िवचार पकट करता है तब उसे भाषा का िलिखत रप कहते है।

ववववववव मनुषय मौिखक एवं िलिखत भाषा मे अपने िवचार पकट कर सकता है और करता रहा है िकनतु इससे भाषा का कोई िनिशत एवं शुद सवरप िसथर नही हो सकता। भाषा के शुद और सथायी रप को िनिशत करने के िलए िनयमबद योजना की आवशयकता होती है और उस िनयमबद योजना को हम वयाकरण कहते है। पिरभाषा- वयाकरण वह शासत है िजसके दारा िकसी भी भाषा के शबदो और वाकयो के शुद सवरपो एवं शुद पयोगो का िवशद जान कराया जाता है। भाषा और वयाकरण का संबध ं - कोई भी मनुषय शुद भाषा का पूणर जान वयाकरण के िबना पापत नही कर सकता। अतः भाषा और वयाकरण का घिनष संबध ं है वह भाषा मे उचचारण, शबद-पयोग, वाकय-गठन तथा अथों के पयोग के रप को िनिशत करता है। वयाकरण के िवभाग- वयाकरण के चार अंग िनधािरत िकये गये है1. वणर-िवचार। 2. शबद-िवचार। 3. पद-िवचार। 4. वाकय िवचार।

वववव भाषा का केतीय रप बोली कहलाता है। अथात् देश के िविभन भागो मे बोली जाने वाली भाषा बोली कहलाती है और िकसी भी केतीय बोली का िलिखत रप मे िसथर सािहतय वहा की भाषा कहलाता है।

वववव िकसी भी भाषा के िलखने की िविध को ‘िलिप’ कहते है। िहनदी और संसकृत भाषा की िलिप का नाम देवनागरी है। अंगेजी भाषा की िलिप ‘रोमन’, उदूर भाषा की िलिप फारसी, और पंजाबी भाषा की िलिप गुरमुखी है।

ववववववव जान-रािश का संिचत कोश ही सािहतय है। सािहतय ही िकसी भी देश, जाित और वगर को जीवंत रखने काउसके अतीत रपो को दशाने का एकमात साकय होता है। यह मानव की अनुभूित के िविभन पको को सपष करता है और पाठको एवं शोताओं के हदय मे एक अलौिकक अिनवरचनीय आनंद की अनुभूित उतपन करता है।

वववववव-2 वववव-ववववव पिरभाषा-िहनदी भाषा मे पयुकत सबसे छोटी धविन वणर कहलाती है। जैस-े अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क्, ख् आिद।

वववववववववणों के समुदाय को ही वणरमाला कहते है। िहनदी वणरमाला मे 44 वणर है। उचचारण और पयोग के आधार पर िहनदी वणरमाला के दो भेद िकए गए है1. सवर 2. वयंजन

1.वववविजन वणों का उचचारण सवतंत रप से होता हो और जो वयंजनो के उचचारण मे सहायक हो वे सवर कहलाते है। ये संखया मे गयारह हैअ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ। उचचारण के समय की दृिष से सवर के तीन भेद िकए गए है1. हसव सवर। 2. दीघर सवर। 3. पलुत सवर।

1.वववववव वववविजन सवरो के उचचारण मे कम-से-कम समय लगता है उनहे हसव सवर कहते है। ये चार है- अ, इ, उ, ऋ। इनहे मूल सवर भी कहते है।

2.ववववव वववविजन सवरो के उचचारण मे हसव सवरो से दुगुना समय लगता है उनहे दीघर सवर कहते है। ये िहनदी मे सात हैआ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ। िवशेष- दीघर सवरो को हसव सवरो का दीघर रप नही समझना चािहए। यहा दीघर शबद का पयोग उचचारण मे लगने वाले समय को आधार मानकर िकया गया है।

3.ववववव वववविजन सवरो के उचचारण मे दीघर सवरो से भी अिधक समय लगता है उनहे पलुत सवर कहते है। पायः इनका पयोग दूर से बुलाने मे िकया जाता है।

वववववववव सवरो के बदले हुए सवरप को माता कहते है सवरो की माताएँ िनमिलिखत हैसवर माताएँ शबद अ × कम आा ा ाकाम िइ ि ििकसलय ईीी ी खीर उु ु ुगुलाब ऊू ू ूभूल ऋ ृृ ृतृण ए े े े के श ऐ ै ै ैहै ओो ो ोचोर औौ ृृ चौखट अ वणर (सवर) की कोई माता नही होती। वयंजनो का अपना सवरप िनमिलिखत हैक् च् छ ज् झ् त् थ् ध् आिद। अ लगने पर वयंजनो के नीचे का (हल) िचह हट जाता है। तब ये इस पकार िलखे जाते हैक च छ ज झ त थ ध आिद।

वववववव िजन वणों के पूणर उचचारण के िलए सवरो की सहायता ली जाती है वे वयंजन कहलाते है। अथात वयंजन िबना सवरो की सहायता के बोले ही नही जा सकते। ये संखया मे 33 है। इसके िनमिलिखत तीन भेद है1. सपशर 2. अंतःसथ 3. ऊषम

1.ववववववइनहे पाच वगों मे रखा गया है और हर वगर मे पाच-पाच वयंजन है। हर वगर का नाम पहले वगर के अनुसार रखा गया है जैस-े कवगर- क् ख् ग् घ् ड चवगर- च् छ ज् झ् ञ् टवगर- ट् ठ् ड् ढ् ण् (ड ढ्) तवगर- त् थ् द् ध् न् पवगर- प् फ् ब् भ् म्

2.वववववववये िनमिलिखत चार हैय् र् ल् व्

3.ववववये िनमिलिखत चार हैश् ष् स् ह वैसे तो जहा भी दो अथवा दो से अिधक वयंजन िमल जाते है वे संयुकत वयंजन कहलाते है, िकनतु देवनागरी िलिप मे संयोग के बाद रप-पिरवतरन हो जाने के कारण इन तीन को िगनाया गया है। ये दो-दो वयंजनो से िमलकर बने है। जैसे-क=क्+ष अकर, ज=ज्+ञ जान, त=त्+र नकत कुछ लोग क् त् और ज् को भी िहनदी वणरमाला मे िगनते है, पर ये संयुकत वयंजन है। अतः इनहे वणरमाला मे िगनना उिचत पतीत नही होता।

ववववववववइसका पयोग पंचम वणर के सथान पर होता है। इसका िचनह (ंं ) है। जैसे- समभव=संभव, सञय=संजय, गडगा=गंगा।

ववववववइसका उचचारण ह के समान होता है। इसका िचह (:) है। जैस-े अतः, पातः।

ववववववववववजब िकसी सवर का उचचारण नािसका और मुख दोनो से िकया जाता है तब उसके ऊपर चंदिबंदु (ँँ ) लगा िदया जाता है। यह अनुनािसक कहलाता है। जैसे-हँसना, आँख। िहनदी वणरमाला मे 11 सवर तथा 33 वयंजन िगनाए जाते है, परनतु इनमे ड, ढ अं तथा अः जोडने पर िहनदी के वणों की कुल संखया 48 हो जाती है।

ववववजब कभी वयंजन का पयोग सवर से रिहत िकया जाता है तब उसके नीचे एक ितरछी रेखा (्् ) लगा दी जाती है। यह रेखा हल कहलाती है। हलयुकत वयंजन हलंत वणर कहलाता है। जैस-े िवदा।

वववववव वव ववववववव-ववववव मुख के िजस भाग से िजस वणर का उचचारण होता है उसे उस वणर का उचचारण सथान कहते है।

ववववववव ववववव वववववव कम वणर

उचचारण

शेणी

1.

अ आ क् ख् ग् घ् ड ह

िवसगर कंठ और जीभ का िनचला भाग कंठसथ

2.

इ ई च् छ ज् झ् ञ् य् श

तालु और जीभ

तालवय

3.

ऋ ट् ठ् ड् ढ् ण् ड ढ र् ष्

मूधा और जीभ

मूधरनय

4.

त् थ् द् ध् न् ल् स्

दात और जीभ

दंतय

5.

उ ऊ प् फ् ब् भ् म

दोनो होठ

ओषठय

6.

एऐ

कंठ तालु और जीभ

कंठतालवय

7.

ओऔ

दात जीभ और होठ

कंठोषठय

8.

व्

दात जीभ और होठ

दंतोष्

वववववव-3 वववव-ववववव पिरभाषा- एक या अिधक वणों से बनी हुई सवतंत साथरक धविन शबद कहलाता है। जैस-े एक वणर से िनिमरत शबद-न (नही) व (और) अनेक वणों से िनिमरत शबद-कुता, शेर,कमल, नयन, पासाद, सवरवयापी, परमातमा।

वववव-ववव वयुतपित (बनावट) के आधार पर शबद-भेदवयुतपित (बनावट) के आधार पर शबद के िनमिलिखत तीन भेद है1. रढ 2. यौिगक 3. योगरढ

1.ववववजो शबद िकनही अनय शबदो के योग से न बने हो और िकसी िवशेष अथर को पकट करते हो तथा िजनके टुकडो का कोई अथर नही होता, वे रढ कहलाते है। जैस-े कल, पर। इनमे क, ल, प, र का टुकडे करने पर कुछ अथर नही है। अतः ये िनरथरक है।

2.वववववजो शबद कई साथरक शबदो के मेल से बने हो,वे यौिगक कहलाते है। जैस-े देवालय=देव+आलय, राजपुरष=राज+पुरष, िहमालय=िहम+आलय, देवदूत=देव+दूत आिद। ये सभी शबद दो साथरक शबदो के मेल से बने है।

3.ववववववववे शबद, जो यौिगक तो है, िकनतु सामानय अथर को न पकट कर िकसी िवशेष अथर को पकट करते है, योगरढ कहलाते है। जैस-े पंकज, दशानन आिद। पंकज=पंक+ज (कीचड मे उतपन होने वाला) सामानय अथर मे

पचिलत न होकर कमल के अथर मे रढ हो गया है। अतः पंकज शबद योगरढ है। इसी पकार दश (दस) आनन (मुख) वाला रावण के अथर मे पिसद है।

वववववववव वव वववव वव वववव-वववउतपित के आधार पर शबद के िनमिलिखत चार भेद है1. ततसम- जो शबद संसकृत भाषा से िहनदी मे िबना िकसी पिरवतरन के ले िलए गए है वे ततसम कहलाते है। जैस-े अिगन, केत, वायु, राित, सूयर आिद। 2. तदव- जो शबद रप बदलने के बाद संसकृत से िहनदी मे आए है वे तदव कहलाते है। जैसे-आग (अिगन), खेत(केत), रात (राित), सूरज (सूयर) आिद। 3. देशज- जो शबद केतीय पभाव के कारण पिरिसथित व आवशयकतानुसार बनकर पचिलत हो गए है वे देशज कहलाते है। जैस-े पगडी, गाडी, थैला, पेट, खटखटाना आिद। 4. िवदेशी या िवदेशज- िवदेशी जाितयो के संपकर से उनकी भाषा के बहुत से शबद िहनदी मे पयुकत होने लगे है। ऐसे शबद िवदेशी अथवा िवदेशज कहलाते है। जैस-े सकूल, अनार, आम, कैची,अचार, पुिलस, टेलीफोन, िरकशा आिद। ऐसे कुछ िवदेशी शबदो की सूची नीचे दी जा रही है। अंगेजी- कॉलेज, पैिसल, रेिडयो, टेलीिवजन, डॉकटर, लैटरबकस, पैन, िटकट, मशीन, िसगरेट, साइिकल, बोतल आिद। फारसी- अनार,चशमा, जमीदार, दुकान, दरबार, नमक, नमूना, बीमार, बरफ, रमाल, आदमी, चुगलखोर, गंदगी, चापलूसी आिद। अरबी- औलाद, अमीर, कतल, कलम, कानून, खत, फकीर, िरशत, औरत, कैदी, मािलक, गरीब आिद। तुकी- कैची, चाकू, तोप, बारद, लाश, दारोगा, बहादुर आिद। पुतरगाली- अचार, आलपीन, कारतूस, गमला, चाबी, ितजोरी, तौिलया, फीता, साबुन, तंबाकू, कॉफी, कमीज आिद। फासीसी- पुिलस, काटू रन, इंजीिनयर, कफयूर, िबगुल आिद। चीनी- तूफान, लीची, चाय, पटाखा आिद। यूनानी- टेलीफोन, टेलीगाफ, ऐटम, डेलटा आिद। जापानी- िरकशा आिद।

वववववव वव वववव वव वववव-ववव पयोग के आधार पर शबद के िनमिलिखत आठ भेद है1. संजा 2. सवरनाम 3. िवशेषण 4. िकया 5. िकया-िवशेषण 6. संबध ं बोधक 7. समुचचयबोधक 8. िवसमयािदबोधक इन उपयुरकत आठ पकार के शबदो को भी िवकार की दृिष से दो भागो मे बाटा जा सकता है1. िवकारी 2. अिवकारी

1.वववववव वववविजन शबदो का रप-पिरवतरन होता रहता है वे िवकारी शबद कहलाते है। जैस-े कुता, कुत,े कुतो, मै मुझे,हमे अचछा, अचछे खाता है, खाती है, खाते है। इनमे संजा, सवरनाम, िवशेषण और िकया िवकारी शबद है।

2.ववववववव वववविजन शबदो के रप मे कभी कोई पिरवतरन नही होता है वे अिवकारी शबद कहलाते है। जैस-े यहा, िकनतु, िनतय, और, हे अरे आिद। इनमे िकया-िवशेषण, संबध ं बोधक, समुचचयबोधक और िवसमयािदबोधक आिद है। अथर की दृिष से शबद-भेद अथर की दृिष से शबद के दो भेद है1. साथरक 2. िनरथरक

1.वववववव वववविजन शबदो का कुछ-न-कुछ अथर हो वे शबद साथरक शबद कहलाते है। जैस-े रोटी, पानी, ममता, डंडा आिद।

2.ववववववव वववविजन शबदो का कोई अथर नही होता है वे शबद िनरथरक कहलाते है। जैस-े रोटी-वोटी, पानी-वानी, डंडा-वंडा इनमे वोटी, वानी, वंडा आिद िनरथरक शबद है। िवशेष- िनरथरक शबदो पर वयाकरण मे कोई िवचार नही िकया जाता है।

वववववव-4 वव-ववववव साथरक वणर-समूह शबद कहलाता है, पर जब इसका पयोग वाकय मे होता है तो वह सवतंत नही रहता बिलक वयाकरण के िनयमो मे बँध जाता है और पायः इसका रप भी बदल जाता है। जब कोई शबद वाकय मे पयुकत होता है तो उसे शबद न कहकर पद कहा जाता है। िहनदी मे पद पाच पकार के होते है1. संजा 2. सवरनाम 3. िवशेषण 4. िकया 5. अवयय

1.वववववविकसी वयिकत, सथान, वसतु आिद तथा नाम के गुण, धमर, सवभाव का बोध कराने वाले शबद संजा कहलाते है। जैस-े शयाम, आम, िमठास, हाथी आिद। संजा के पकार- संजा के तीन भेद है1. वयिकतवाचक संजा। 2. जाितवाचक संजा। 3. भाववाचक संजा।

1.ववववववववववव वववववविजस संजा शबद से िकसी िवशेष, वयिकत, पाणी, वसतु अथवा सथान का बोध हो उसे वयिकतवाचक संजा कहते है। जैस-े जयपकाश नारायण, शीकृषण, रामायण, ताजमहल, कुतुबमीनार, लालिकला िहमालय आिद।

2.वववववववव वववववविजस संजा शबद से उसकी संपूणर जाित का बोध हो उसे जाितवाचक संजा कहते है। जैस-े मनुषय, नदी, नगर, पवरत, पशु, पकी, लडका, कुता, गाय, घोडा, भैस, बकरी, नारी, गाव आिद।

3.ववववववव वववववविजस संजा शबद से पदाथों की अवसथा, गुण-दोष, धमर आिद का बोध हो उसे भाववाचक संजा कहते है। जैस-े बुढापा, िमठास, बचपन, मोटापा, चढाई, थकावट आिद। िवशेष वकतवय- कुछ िवदान अंगेजी वयाकरण के पभाव के कारण संजा शबद के दो भेद और बतलाते है1. समुदायवाचक संजा। 2. दवयवाचक संजा।

1.वववववववववव वववववविजन संजा शबदो से वयिकतयो, वसतुओं आिद के समूह का बोध हो उनहे समुदायवाचक संजा कहते है। जैसेसभा, कका, सेना, भीड, पुसतकालय दल आिद।

2.वववववववववव वववववविजन संजा-शबदो से िकसी धातु, दवय आिद पदाथों का बोध हो उनहे दवयवाचक संजा कहते है। जैस-े घी, तेल, सोना, चादी,पीतल, चावल, गेहूँ, कोयला, लोहा आिद। इस पकार संजा के पाच भेद हो गए, िकनतु अनेक िवदान समुदायवाचक और दवयवाचक संजाओं को जाितवाचक संजा के अंतगरत ही मानते है, और यही उिचत भी पतीत होता है। भाववाचक संजा बनाना- भाववाचक संजाएँ चार पकार के शबदो से बनती है। जैस-े

1.वववववववव वववववववव ववदास दासता दास दासता पंिडत पािडतय बंधु बंधुतव कितय कितयतव पुरष पुरषतव पभु पभुता पशु पशुता,पशुतव बाहण बाहणतव िमत िमतता बालक बालकपन बचचा बचपन नारी नारीतव

2.ववववववव ववअपना अपनापन, अपनतव िनज िनजतव,िनजता पराया परायापन सव सवतव सवर सवरसव अहं अहंकार मम ममतव,ममता

3.वववववव ववमीठा िमठास चतुर चातुयर, चतुराई मधुर माधुयर सुंदर सौदयर, सुंदरता िनबरल िनबरलता सफेद सफेदी हरा हिरयाली सफल सफलता पवीण पवीणता मैला मैल िनपुण िनपुणता खटा खटास

4.वववववव ववखेलना खेल थकना थकावट िलखना लेख, िलखाई हँसना हँसी लेना-देना लेन-देन पढना पढाई िमलना मेल चढना चढाई मुसकाना मुसकान कमाना कमाई उतरना उतराई उडना उडान रहना-सहना रहन-सहन देखना-भालना देख-भाल

वववववव 5 वववववव वव वववववव वववव िजन ततवो के आधार पर संजा (संजा, सवरनाम, िवशेषण) का रपातर होता है वे िवकारक ततव कहलाते है। वाकय मे शबदो की िसथित के आधार पर ही उनमे िवकार आते है। यह िवकार िलंग, वचन और कारक के

कारण ही होता है। जैसे-लडका शबद के चारो रप- 1.लडका, 2.लडके, 3.लडको, 4.लडको-केवल वचन और कारको के कारण बनते है। िलंग- िजस िचह से यह बोध होता हो िक अमुक शबद पुरष जाित का है अथवा सती जाित का वह िलंग कहलाता है। पिरभाषा- शबद के िजस रप से िकसी वयिकत, वसतु आिद के पुरष जाित अथवा सती जाित के होने का जान हो उसे िलंग कहते है। जैस-े लडका, लडकी, नर, नारी आिद। इनमे ‘लडका’ और ‘नर’ पुिललंग तथा लडकी और ‘नारी’ सतीिलंग है। िहनदी मे िलंग के दो भेद है1. पुिललंग। 2. सतीिलंग।

1.वववववववविजन संजा शबदो से पुरष जाित का बोध हो अथवा जो शबद पुरष जाित के अंतगरत माने जाते है वे पुिललंग है। जैस-े कुता, लडका, पेड, िसंह, बैल, घर आिद।

2.वववववववववविजन संजा शबदो से सती जाित का बोध हो अथवा जो शबद सती जाित के अंतगरत माने जाते है वे सतीिलंग है। जैस-े गाय, घडी, लडकी, कुरसी, छडी, नारी आिद।

वववववववव वव ववववव1. आ, आव, पा, पन न ये पतयय िजन शबदो के अंत मे हो वे पायः पुिललंग होते है। जैस-े मोटा, चढाव, बुढापा, लडकपन लेन-देन। 2. पवरत, मास, वार और कुछ गहो के नाम पुिललंग होते है जैस-े िवंधयाचल, िहमालय, वैशाख, सूयर, चंद, मंगल, बुध, राहु, केतु (गह)। 3. पेडो के नाम पुिललंग होते है। जैस-े पीपल, नीम, आम, शीशम, सागौन, जामुन, बरगद आिद। 4. अनाजो के नाम पुिललंग होते है। जैस-े बाजरा, गेहूँ, चावल, चना, मटर, जौ, उडद आिद। 5. दव पदाथों के नाम पुिललंग होते है। जैस-े पानी, सोना, ताबा, लोहा, घी, तेल आिद। 6. रतो के नाम पुिललंग होते है। जैस-े हीरा, पना, मूँगा, मोती मािणक आिद। 7. देह के अवयवो के नाम पुिललंग होते है। जैस-े िसर, मसतक, दात, मुख, कान, गला, हाथ, पाव, होठ, तालु, नख, रोम आिद। 8. जल,सथान और भूमंडल के भागो के नाम पुिललंग होते है। जैसे-समुद, भारत, देश, नगर, दीप, आकाश, पाताल, घर, सरोवर आिद। 9. वणरमाला के अनेक अकरो के नाम पुिललंग होते है। जैस-े अ,उ,ए,ओ,क,ख,ग,घ, च,छ,य,र,ल,व,श आिद। पिरभाषा- शबद के िजस रप से िकसी वयिकत, वसतु आिद के पुरष जाित अथवा सती जाित के होने का जान हो उसे िलंग कहते है। जैस-े लडका, लडकी, नर, नारी आिद। इनमे ‘लडका’ और ‘नर’ पुिललंग तथा लडकी और ‘नारी’ सतीिलंग है। िहनदी मे िलंग के दो भेद है1. पुिललंग। 2. सतीिलंग।

1.वववववववविजन संजा शबदो से पुरष जाित का बोध हो अथवा जो शबद पुरष जाित के अंतगरत माने जाते है वे पुिललंग है। जैस-े कुता, लडका, पेड, िसंह, बैल, घर आिद।

2.वववववववववविजन संजा शबदो से सती जाित का बोध हो अथवा जो शबद सती जाित के अंतगरत माने जाते है वे सतीिलंग है। जैस-े गाय, घडी, लडकी, कुरसी, छडी, नारी आिद।

वववववववव वव ववववव1. आ, आव, पा, पन न ये पतयय िजन शबदो के अंत मे हो वे पायः पुिललंग होते है। जैस-े मोटा, चढाव, बुढापा, लडकपन लेन-देन। 2. पवरत, मास, वार और कुछ गहो के नाम पुिललंग होते है जैस-े िवंधयाचल, िहमालय, वैशाख, सूयर, चंद, मंगल, बुध, राहु, केतु (गह)। 3. पेडो के नाम पुिललंग होते है। जैस-े पीपल, नीम, आम, शीशम, सागौन, जामुन, बरगद आिद। 4. अनाजो के नाम पुिललंग होते है। जैस-े बाजरा, गेहँू, चावल, चना, मटर, जौ, उडद आिद। 5. दव पदाथों के नाम पुिललंग होते है। जैस-े पानी, सोना, ताबा, लोहा, घी, तेल आिद। 6. रतो के नाम पुिललंग होते है। जैस-े हीरा, पना, मूँगा, मोती मािणक आिद। 7. देह के अवयवो के नाम पुिललंग होते है। जैस-े िसर, मसतक, दात, मुख, कान, गला, हाथ, पाव, होठ, तालु, नख, रोम आिद। 8. जल,सथान और भूमंडल के भागो के नाम पुिललंग होते है। जैसे-समुद, भारत, देश, नगर, दीप, आकाश, पाताल, घर, सरोवर आिद। 9. वणरमाला के अनेक अकरो के नाम पुिललंग होते है। जैस-े अ,उ,ए,ओ,क,ख,ग,घ, च,छ,य,र,ल,व,श आिद।

वववववववववव वव ववववव1. िजन संजा शबदो के अंत मे ख होते है, वे सतीिलंग कहलाते है। जैस-े ईख, भूख, चोख, राख, कोख, लाख, देखरेख आिद। 2. िजन भाववाचक संजाओं के अंत मे ट, वट, या हट होता है, वे सतीिलंग कहलाती है। जैसे-झंझट, आहट, िचकनाहट, बनावट, सजावट आिद। 3. अनुसवारात, ईकारात, ऊकारात, तकारात, सकारात संजाएँ सतीिलंग कहलाती है। जैस-े रोटी, टोपी, नदी, िचटी, उदासी, रात, बात, छत, भीत, लू, बालू, दार, सरसो, खडाऊँ, पयास, वास, सास आिद। 4. भाषा, बोली और िलिपयो के नाम सतीिलंग होते है। जैस-े िहनदी, संसकृत, देवनागरी, पहाडी, तेलुगु पंजाबी गुरमुखी। 5. िजन शबदो के अंत मे इया आता है वे सतीिलंग होते है। जैस-े कुिटया, खिटया, िचिडया आिद। 6. निदयो के नाम सतीिलंग होते है। जैस-े गंगा, यमुना, गोदावरी, सरसवती आिद। 7. तारीखो और ितिथयो के नाम सतीिलंग होते है। जैसे-पहली, दूसरी, पितपदा, पूिणरमा आिद। 8. पृथवी गह सतीिलंग होते है। 9. नकतो के नाम सतीिलंग होते है। जैस-े अिशनी, भरणी, रोिहणी आिद।

वववववव वव वववव-वववववववव ववववववव ई

वववववववव

वववववववववव

घोडा

घोडी

देव

देवी

दादा

दादी

इय

इन

नी

आनी

आइन आ

लडका

लडकी

बाहण

बाहणी

नर

नारी

बकरा

बकरी

चूहा

चुिहया

िचडा

िचिडया

बेटा

िबिटया

गुडडा

गुिडया

लोटा

लुिटया

माली

मािलन

कहार

कहािरन

सुनार

सुनािरन

लुहार

लुहािरन

धोबी

धोिबन

मोर

मोरनी

हाथी

हािथन

िसंह

िसंहनी

नौकर

नौकरानी

चौधरी

चौधरानी

देवर

देवरानी

सेठ

सेठानी

जेठ

जेठानी

पंिडत

पंिडताइन

ठाकुर

ठाकुराइन

बाल

बाला

सुत

सुता

छात

छाता

िशषय

िशषया

अक को इका करके पाठक

पािठका

अधयापक

अधयािपका

बालक

बािलका

लेखक

लेिखका

इनी (इणी)

सेवक

सेिवका

तपसवी

तपिसवनी

िहतकारी

िहतकािरनी

सवामी

सवािमनी

परोपकारी

परोपकािरनी

कुछ िवशेष शबद जो सतीिलंग मे िबलकुल ही बदल जाते है। पुिललंग

सतीिलंग

िपता

माता

भाई

भाभी

नर

मादा

राजा

रानी

ससुर

सास

समाट

समाजी

पुरष

सती

बैल

गाय

युवक

युवती

िवशेष वकतवय- जो पािणवाचक सदा शबद ही सतीिलंग है अथवा जो सदा ही पुिललंग है उनके पुिललंग अथवा सतीिलंग जताने के िलए उनके साथ ‘नर’ व ‘मादा’ शबद लगा देते है। जैस-े िनतय सतीिलंग

पुिललंग

मकखी

नर मकखी

कोयल

नर कोयल

िगलहरी

नर िगलहरी

मैना

नर मैना

िततली

नर िततली

बाज

मादा बाज

खटमल

मादा खटमल

चील

नर चील

कछुआ

नर कछुआ

कौआ

नर कौआ

भेिडया

मादा भेिडया

उललू

मादा उललू

मचछर

मादा मचछर

वववववव 6 ववव पिरभाषा-शबद के िजस रप से उसके एक अथवा अनेक होने का बोध हो उसे वचन कहते है। िहनदी मे वचन दो होते है1. एकवचन 2. बहुवचन

वववववशबद के िजस रप से एक ही वसतु का बोध हो, उसे एकवचन कहते है। जैस-े लडका, गाय, िसपाही, बचचा, कपडा, माता, माला, पुसतक, सती, टोपी बंदर, मोर आिद।

ववववववशबद के िजस रप से अनेकता का बोध हो उसे बहुवचन कहते है। जैस-े लडके, गाये, कपडे, टोिपया, मालाएँ , माताएँ , पुसतके, वधुएँ , गुरजन, रोिटया, िसतया, लताएँ , बेटे आिद। एकवचन के सथान पर बहुवचन का पयोग (क) आदर के िलए भी बहुवचन का पयोग होता है। जैस-े (1) भीषम िपतामह तो बहचारी थे। (2) गुरजी आज नही आये। (3) िशवाजी सचचे वीर थे। (ख) बडपपन दशाने के िलए कुछ लोग वह के सथान पर वे और मै के सथान हम का पयोग करते है जैस-े (1) मािलक ने कमरचारी से कहा, हम मीिटंग मे जा रहे है। (2) आज गुरजी आए तो वे पसन िदखाई दे रहे थे। (ग) केश, रोम, अशु, पाण, दशरन, लोग, दशरक, समाचार, दाम, होश, भागय आिद ऐसे शबद है िजनका पयोग बहुधा बहुवचन मे ही होता है। जैसे(1) तुमहारे केश बडे सुनदर है। (2) लोग कहते है। बहुवचन के सथान पर एकवचन का पयोग (क) तू एकवचन है िजसका बहुवचन है तुम िकनतु सभय लोग आजकल लोक-वयवहार मे एकवचन के िलए तुम का ही पयोग करते है जैस-े (1) िमत, तुम कब आए। (2) कया तुमने खाना खा िलया। (ख) वगर, वृंद, दल, गण, जाित आिद शबद अनेकता को पकट करने वाले है, िकनतु इनका वयवहार एकवचन के समान होता है। जैसे(1) सैिनक दल शतु का दमन कर रहा है। (2) सती जाित संघषर कर रही है। (ग) जाितवाचक शबदो का पयोग एकवचन मे िकया जा सकता है। जैस-े (1) सोना बहुमूलय वसतु है। (2) मुंबई का आम सवािदष होता है।

बहुवचन बनाने के िनयम (1) अकारात सतीिलंग शबदो के अंितम अ को एँ कर देने से शबद बहुवचन मे बदल जाते है। जैस-े एकवचन बहुवचन आँख

आँखे

बहन

बहने

पुसतक

पुसतके

सडक

सडके

गाय

गाये

बात

बाते

(2) आकारात पुिललंग शबदो के अंितम ‘आ’ को ‘ए’ कर देने से शबद बहुवचन मे बदल जाते है। जैस-े एकवचन बहुवचन एकवचन बहुवचन घोडा

घोडे

कौआ

कौए

कुता

कुते

गधा

गधे

केला

केले

बेटा

बेटे

(3) आकारात सतीिलंग शबदो के अंितम ‘आ’ के आगे ‘एँ ’ लगा देने से शबद बहुवचन मे बदल जाते है। जैस-े एकवचन बहुवचन एकवचन बहुवचन कनया

कनयाएँ

अधयािपका

अधयािपकाएँ

कला

कलाएँ

माता

माताएँ

किवता

किवताएँ

लता

लताएँ

(4) इकारात अथवा ईकारात सतीिलंग शबदो के अंत मे ‘या’ लगा देने से और दीघर ई को हसव इ कर देने से शबद बहुवचन मे बदल जाते है। जैस-े एकवचन

बहुवचन

एकवचन

बहुवचन

बुिद

बुिदया

गित

गितया

कली

किलया

नीित

नीितया

कॉपी

कॉिपया

लडकी

लडिकया

थाली

थािलया

नारी

नािरया

5) िजन सतीिलंग शबदो के अंत मे या है उनके अंितम आ को आँ कर देने से वे बहुवचन बन जाते है। जैस-े एकवचन बहुवचन एकवचन बहुवचन गुिडया

गुिडया

िबिटया

िबिटया

चुिहया

चुिहया

कुितया

कुितया

िचिडया

िचिडया

खिटया

खिटया

बुिढया

बुिढया

गैया

गैया

(6) कुछ शबदो मे अंितम उ, ऊ और औ के साथ एँ लगा देते है और दीघर ऊ के साथन पर हसव उ हो जाता है। जैस-े एकवचन

बहुवचन

एकवचन

बहुवचन

गौ

गौएँ

बहू

बहूएँ

वधू

वधूएँ

वसतु

वसतुएँ

धेनु

धेनुएँ

धातु

धातुएँ

(7) दल, वृंद, वगर, जन लोग, गण आिद शबद जोडकर भी शबदो का बहुवचन बना देते है। जैस-े एकवचन

बहुवचन

एकवचन

बहुवचन

अधयापक

अधयापकवृंद

िमत

िमतवगर

िवदाथी

िवदाथीगण

सेना

सेनादल

आप

आप लोग

गुर

गुरजन

शोता

शोताजन

गरीब

गरीब लोग

(8) कुछ शबदो के रप ‘एकवचन’ और ‘बहुवचन’ दोनो मे समान होते है। जैस-े एकवचन बहुवचन एकवचन बहुवचन कमा

कमा

नेता

नेता

जल

जल

पेम

पेम

िगिर

िगिर

कोध

कोध

राजा

राजा

पानी

पानी

िवशेष- (1) जब संजाओं के साथ ने , को, से आिद परसगर लगे होते है तो संजाओं का बहुवचन बनाने के िलए उनमे ‘ओ’ लगाया जाता है। जैस-े एकवचन

बहुवचन

एकवचन

बहुवचन

लडके को बुलाओ

लडको को बुलाओ

बचचे ने गाना गाया

बचचो ने गाना गाया

नदी का जल ठंडा है

निदयो का जल ठंडा है

आदमी से पूछ लो

आदिमयो से पूछ लो

(2) संबोधन मे ‘ओ’ जोडकर बहुवचन बनाया जाता है। जैस-े बचचो ! धयान से सुनो। भाइयो ! मेहनत करो। बहनो ! अपना कतरवय िनभाओ।

वववववव 7 वववव

पिरभाषा-संजा या सवरनाम के िजस रप से उसका सीधा संबध ं िकया के साथ जात हो वह कारक कहलाता है। जैस-े गीता ने दूध पीया। इस वाकय मे ‘गीता’ पीना िकया का कता है और दूध उसका कमर। अतः ‘गीता’ कता कारक है और ‘दूध’ कमर कारक। कारक िवभिकत- संजा अथवा सवरनाम शबदो के बाद ‘ने , को, से, के िलए’, आिद जो िचह लगते है वे िचह कारक िवभिकत कहलाते है। िहनदी मे आठ कारक होते है। उनहे िवभिकत िचहो सिहत नीचे देखा जा सकता हैकारक िवभिकत िचह (परसगर) 1. कता ने 2. कमर को 3. करण से, के साथ, के दारा 4. संपदान के िलए, को 5. अपादान से (पृथक) 6. संबध ं का, के, की 7. अिधकरण मे, पर 8. संबोधन हे ! हरे ! कारक िचह समरण करने के िलए इस पद की रचना की गई हैकता ने अर कमर को, करण रीित से जान। संपदान को, के िलए, अपादान से मान।। का, के, की, संबध ं है, अिधकरणािदक मे मान। रे ! हे ! हो ! संबोधन, िमत धरहु यह धयान।। िवशेष-कता से अिधकरण तक िवभिकत िचह (परसगर) शबदो के अंत मे लगाए जाते है, िकनतु संबोधन कारक के िचह-हे, रे, आिद पायः शबद से पूवर लगाए जाते है।

1.ववववव वववविजस रप से िकया (कायर) के करने वाले का बोध होता है वह ‘कता’ कारक कहलाता है। इसका िवभिकतिचह ‘ने ’ है। इस ‘ने ’ िचह का वतरमानकाल और भिवषयकाल मे पयोग नही होता है। इसका सकमरक धातुओं के साथ भूतकाल मे पयोग होता है। जैस-े 1.राम ने रावण को मारा। 2.लडकी सकूल जाती है। पहले वाकय मे िकया का कता राम है। इसमे ‘ने ’ कता कारक का िवभिकत-िचह है। इस वाकय मे ‘मारा’ भूतकाल की िकया है। ‘ने ’ का पयोग पायः भूतकाल मे होता है। दूसरे वाकय मे वतरमानकाल की िकया का कता लडकी है। इसमे ‘ने ’ िवभिकत का पयोग नही हुआ है। िवशेष- (1) भूतकाल मे अकमरक िकया के कता के साथ भी ने परसगर (िवभिकत िचह) नही लगता है। जैस-े वह हँसा। (2) वतरमानकाल व भिवषयतकाल की सकमरक िकया के कता के साथ ने परसगर का पयोग नही होता है। जैस-े वह फल खाता है। वह फल खाएगा। (3) कभी-कभी कता के साथ ‘को’ तथा ‘स’ का पयोग भी िकया जाता है। जैसे(अ) बालक को सो जाना चािहए। (आ) सीता से पुसतक पढी गई। (इ) रोगी से चला भी नही जाता। (ई) उससे शबद िलखा नही गया।

2.वववव वववविकया के कायर का फल िजस पर पडता है, वह कमर कारक कहलाता है। इसका िवभिकत-िचह ‘को’ है। यह िचह भी बहुत-से सथानो पर नही लगता। जैसे- 1. मोहन ने साप को मारा। 2. लडकी ने पत िलखा। पहले वाकय मे ‘मारने ’ की िकया का फल साप पर पडा है। अतः साप कमर कारक है। इसके साथ परसगर ‘को’

लगा है। दूसरे वाकय मे ‘िलखने ’ की िकया का फल पत पर पडा। अतः पत कमर कारक है। इसमे कमर कारक का िवभिकत िचह ‘को’ नही लगा।

3.ववव ववववसंजा आिद शबदो के िजस रप से िकया के करने के साधन का बोध हो अथात् िजसकी सहायता से कायर संपन हो वह करण कारक कहलाता है। इसके िवभिकत-िचह ‘से’ के ‘दारा’ है। जैस-े 1.अजुरन ने जयदथ को बाण से मारा। 2.बालक गेद से खेल रहे है। पहले वाकय मे कता अजुरन ने मारने का कायर ‘बाण’ से िकया। अतः ‘बाण से’ करण कारक है। दूसरे वाकय मे कता बालक खेलने का कायर ‘गेद से’ कर रहे है। अतः ‘गेद से’ करण कारक है।

4.वववववववव ववववसंपदान का अथर है-देना। अथात कता िजसके िलए कुछ कायर करता है, अथवा िजसे कुछ देता है उसे वयकत करने वाले रप को संपदान कारक कहते है। इसके िवभिकत िचह ‘के िलए’ को है। 1.सवासथय के िलए सूयर को नमसकार करो। 2.गुरजी को फल दो। इन दो वाकयो मे ‘सवासथय के िलए’ और ‘गुरजी को’ संपदान कारक है।

5.वववववव ववववसंजा के िजस रप से एक वसतु का दूसरी से अलग होना पाया जाए वह अपादान कारक कहलाता है। इसका िवभिकत-िचह ‘से’ है। जैसे- 1.बचचा छत से िगर पडा। 2.संगीता घोडे से िगर पडी। इन दोनो वाकयो मे ‘छत से’ और घोडे ‘से’ िगरने मे अलग होना पकट होता है। अतः घोडे से और छत से अपादान कारक है।

6.ववववव ववववशबद के िजस रप से िकसी एक वसतु का दूसरी वसतु से संबध ं पकट हो वह संबध ं कारक कहलाता है। इसका िवभिकत िचह ‘का’, ‘के’, ‘की’, ‘रा’, ‘रे’, ‘री’ है। जैस-े 1.यह राधेशयाम का बेटा है। 2.यह कमला की गाय है। इन दोनो वाकयो मे ‘राधेशयाम का बेटे’ से और ‘कमला का’ गाय से संबध ं पकट हो रहा है। अतः यहा संबध ं कारक है।

7.वववववव ववववशबद के िजस रप से िकया के आधार का बोध होता है उसे अिधकरण कारक कहते है। इसके िवभिकत-िचह ‘मे’, ‘पर’ है। जैसे- 1.भँवरा फूलो पर मँडरा रहा है। 2.कमरे मे टी.वी. रखा है। इन दोनो वाकयो मे ‘फूलो पर’ और ‘कमरे मे’ अिधकरण कारक है।

8.वववववव वववविजससे िकसी को बुलाने अथवा सचेत करने का भाव पकट हो उसे संबोधन कारक कहते है और संबोधन िचह (!) लगाया जाता है। जैस-े 1.अरे भैया ! कयो रो रहे हो ? 2.हे गोपाल ! यहा आओ। इन वाकयो मे ‘अरे भैया’ और ‘हे गोपाल’ ! संबोधन कारक है।

वववववव 8 ववववववव

सवरनाम-संजा के सथान पर पयुकत होने वाले शबद को सवरनाम कहते है। संजा की पुनरिकत को दूर करने के िलए ही सवरनाम का पयोग िकया जाता है। जैस-े मै, हम, तू, तुम, वह, यह, आप, कौन, कोई, जो आिद। सवरनाम के भेद- सवरनाम के छह भेद है1. पुरषवाचक सवरनाम। 2. िनशयवाचक सवरनाम। 3. अिनशयवाचक सवरनाम। 4. संबध ं वाचक सवरनाम। 5. पशवाचक सवरनाम। 6. िनजवाचक सवरनाम।

1.ववववववववव ववववववविजस सवरनाम का पयोग वकता या लेखक सवयं अपने िलए अथवा शोता या पाठक के िलए अथवा िकसी अनय के िलए करता है वह पुरषवाचक सवरनाम कहलाता है। पुरषवाचक सवरनाम तीन पकार के होते है(1) उतम पुरषवाचक सवरनाम- िजस सवरनाम का पयोग बोलने वाला अपने िलए करे, उसे उतम पुरषवाचक सवरनाम कहते है। जैस-े मै, हम, मुझे, हमारा आिद। (2) मधयम पुरषवाचक सवरनाम- िजस सवरनाम का पयोग बोलने वाला सुनने वाले के िलए करे, उसे मधयम पुरषवाचक सवरनाम कहते है। जैस-े तू, तुम,तुझे, तुमहारा आिद। (3) अनय पुरषवाचक सवरनाम- िजस सवरनाम का पयोग बोलने वाला सुनने वाले के अितिरकत िकसी अनय पुरष के िलए करे उसे अनय पुरषवाचक सवरनाम कहते है। जैस-े वह, वे, उसने , यह, ये, इसने , आिद।

2.वववववववववव वववववववजो सवरनाम िकसी वयिकत वसतु आिद की ओर िनशयपूवरक संकेत करे वे िनशयवाचक सवरनाम कहलाते है। इनमे ‘यह’, ‘वह’, ‘वे’ सवरनाम शबद िकसी िवशेष वयिकत आिद का िनशयपूवरक बोध करा रहे है, अतः ये िनशयवाचक सवरनाम है।

3.ववववववववववव ववववववविजस सवरनाम शबद के दारा िकसी िनिशत वयिकत अथवा वसतु का बोध न हो वे अिनशयवाचक सवरनाम कहलाते है। इनमे ‘कोई’ और ‘कुछ’ सवरनाम शबदो से िकसी िवशेष वयिकत अथवा वसतु का िनशय नही हो रहा है। अतः ऐसे शबद अिनशयवाचक सवरनाम कहलाते है।

4.ववववववववव वववववववपरसपर एक-दूसरी बात का संबध ं बतलाने के िलए िजन सवरनामो का पयोग होता है उनहे संबध ं वाचक सवरनाम कहते है। इनमे ‘जो’, ‘वह’, ‘िजसकी’, ‘उसकी’, ‘जैसा’, ‘वैसा’-ये दो-दो शबद परसपर संबध ं का बोध करा रहे है। ऐसे शबद संबध ं वाचक सवरनाम कहलाते है।

5.वववववववववव वववववववजो सवरनाम संजा शबदो के सथान पर तो आते ही है, िकनतु वाकय को पशवाचक भी बनाते है वे पशवाचक सवरनाम कहलाते है। जैस-े कया, कौन आिद। इनमे ‘कया’ और ‘कौन’ शबद पशवाचक सवरनाम है, कयोिक इन सवरनामो के दारा वाकय पशवाचक बन जाते है।

6.ववववववव वववववववजहा अपने िलए ‘आप’ शबद ‘अपना’ शबद अथवा ‘अपने ’ ‘आप’ शबद का पयोग हो वहा िनजवाचक सवरनाम होता है। इनमे ‘अपना’ और ‘आप’ शबद उतम, पुरष मधयम पुरष और अनय पुरष के (सवयं का) अपने आप का बोध करा रहे है। ऐसे शबद िनजवाचक सवरनाम कहलाते है।

िवशेष-जहा केवल ‘आप’ शबद का पयोग शोता के िलए हो वहा यह आदर-सूचक मधयम पुरष होता है और जहा ‘आप’ शबद का पयोग अपने िलए हो वहा िनजवाचक होता है। सवरनाम शबदो के िवशेष पयोग (1) आप, वे, ये, हम, तुम शबद बहुवचन के रप मे है, िकनतु आदर पकट करने के िलए इनका पयोग एक वयिकत के िलए भी होता है। (2) ‘आप’ शबद सवयं के अथर मे भी पयुकत हो जाता है। जैस-े मै यह कायर आप ही कर लूँगा।

वववववव 9 वववववव िवशेषण की पिरभाषा- संजा अथवा सवरनाम शबदो की िवशेषता (गुण, दोष, संखया, पिरमाण आिद) बताने वाले शबद ‘िवशेषण’ कहलाते है। जैस-े बडा, काला, लंबा, दयालु, भारी, सुनदर, कायर, टेढा-मेढा, एक, दो आिद। िवशेषय- िजस संजा अथवा सवरनाम शबद की िवशेषता बताई जाए वह िवशेषय कहलाता है। यथा- गीता सुनदर है। इसमे ‘सुनदर’ िवशेषण है और ‘गीता’ िवशेषय है। िवशेषण शबद िवशेषय से पूवर भी आते है और उसके बाद भी। पूवर मे, जैस-े (1) थोडा-सा जल लाओ। (2) एक मीटर कपडा ले आना। बाद मे, जैस-े (1) यह रासता लंबा है। (2) खीरा कडवा है। िवशेषण के भेद- िवशेषण के चार भेद है1. गुणवाचक। 2. पिरमाणवाचक। 3. संखयावाचक। 4. संकेतवाचक अथवा सावरनािमक।

1.ववववववव वववववविजन िवशेषण शबदो से संजा अथवा सवरनाम शबदो के गुण-दोष का बोध हो वे गुणवाचक िवशेषण कहलाते है। जैस-े (1) भाव- अचछा, बुरा, कायर, वीर, डरपोक आिद। (2) रंग- लाल, हरा, पीला, सफेद, काला, चमकीला, फीका आिद। (3) दशा- पतला, मोटा, सूखा, गाढा, िपघला, भारी, गीला, गरीब, अमीर, रोगी, सवसथ, पालतू आिद। (4) आकार- गोल, सुडौल, नुकीला, समान, पोला आिद। (5) समय- अगला, िपछला, दोपहर, संधया, सवेरा आिद। (6) सथान- भीतरी, बाहरी, पंजाबी, जापानी, पुराना, ताजा, आगामी आिद। (7) गुण- भला, बुरा, सुनदर, मीठा, खटा, दानी,सच, झूठ, सीधा आिद। (8) िदशा- उतरी, दिकणी, पूवी, पिशमी आिद।

2.वववववववववव वववववविजन िवशेषण शबदो से संजा या सवरनाम की माता अथवा नाप-तोल का जान हो वे पिरमाणवाचक िवशेषण कहलाते है। पिरमाणवाचक िवशेषण के दो उपभेद है(1) िनिशत पिरमाणवाचक िवशेषण- िजन िवशेषण शबदो से वसतु की िनिशत माता का जान हो। जैस-े (क) मेरे सूट मे साढे तीन मीटर कपडा लगेगा। (ख) दस िकलो चीनी ले आओ। (ग) दो िलटर दूध गरम करो। (2) अिनिशत पिरमाणवाचक िवशेषण- िजन िवशेषण शबदो से वसतु की अिनिशत माता का जान हो। जैस-े

(क) थोडी-सी नमकीन वसतु ले आओ। (ख) कुछ आम दे दो। (ग) थोडा-सा दूध गरम कर दो।

3.वववववववववव वववववविजन िवशेषण शबदो से संजा या सवरनाम की संखया का बोध हो वे संखयावाचक िवशेषण कहलाते है। जैस-े एक, दो, िदतीय, दुगुना, चौगुना, पाचो आिद। संखयावाचक िवशेषण के दो उपभेद है(1) िनिशत संखयावाचक िवशेषण- िजन िवशेषण शबदो से िनिशत संखया का बोध हो। जैस-े दो पुसतके मेरे िलए ले आना। िनिशत संखयावाचक के िनमिलिखत चार भेद है(क) गणवाचक- िजन शबदो के दारा िगनती का बोध हो। जैस-े (1) एक लडका सकूल जा रहा है। (2) पचचीस रपये दीिजए। (3) कल मेरे यहा दो िमत आएँगे। (4) चार आम लाओ। (ख) कमवाचक- िजन शबदो के दारा संखया के कम का बोध हो। जैस-े (1) पहला लडका यहा आए। (2) दूसरा लडका वहा बैठे। (3) राम कका मे पथम रहा। (4) शयाम िदतीय शेणी मे पास हुआ है। (ग) आवृितवाचक- िजन शबदो के दारा केवल आवृित का बोध हो। जैसे(1) मोहन तुमसे चौगुना काम करता है। (2) गोपाल तुमसे दुगुना मोटा है। (घ) समुदायवाचक- िजन शबदो के दारा केवल सामूिहक संखया का बोध हो। जैस-े (1) तुम तीनो को जाना पडेगा। (2) यहा से चारो चले जाओ। (2) अिनिशत संखयावाचक िवशेषण- िजन िवशेषण शबदो से िनिशत संखया का बोध न हो। जैस-े कुछ बचचे पाकर मे खेल रहे है।

(4) ववववववववव (वववववववव) ववववववजो सवरनाम संकेत दारा संजा या सवरनाम की िवशेषता बतलाते है वे संकेतवाचक िवशेषण कहलाते है। िवशेष-कयोिक संकेतवाचक िवशेषण सवरनाम शबदो से बनते है, अतः ये सावरनािमक िवशेषण कहलाते है। इनहे िनदेशक भी कहते है। (1) पिरमाणवाचक िवशेषण और संखयावाचक िवशेषण मे अंतर- िजन वसतुओं की नाप-तोल की जा सके उनके वाचक शबद पिरमाणवाचक िवशेषण कहलाते है। जैस-े ‘कुछ दूध लाओ’। इसमे ‘कुछ’ शबद तोल के िलए आया है। इसिलए यह पिरमाणवाचक िवशेषण है। 2.िजन वसतुओं की िगनती की जा सके उनके वाचक शबद संखयावाचक िवशेषण कहलाते है। जैसे-कुछ बचचे इधर आओ। यहा पर ‘कुछ’ बचचो की िगनती के िलए आया है। इसिलए यह संखयावाचक िवशेषण है। पिरमाणवाचक िवशेषणो के बाद दवय अथवा पदाथरवाचक संजाएँ आएँगी जबिक संखयावाचक िवशेषणो के बाद जाितवाचक संजाएँ आती है। (2) सवरनाम और सावरनािमक िवशेषण मे अंतर- िजस शबद का पयोग संजा शबद के सथान पर हो उसे सवरनाम कहते है। जैस-े वह मुबं ई गया। इस वाकय मे वह सवरनाम है। िजस शबद का पयोग संजा से पूवर अथवा बाद मे िवशेषण के रप मे िकया गया हो उसे सावरनािमक िवशेषण कहते है। जैस-े वह रथ आ रहा है। इसमे वह शबद रथ का िवशेषण है। अतः यह सावरनािमक िवशेषण है।

वववववव वव वववववववविवशेषण शबद िकसी संजा या सवरनाम की िवशेषता बतलाते है। िवशेषता बताई जाने वाली वसतुओं के गुण-दोष कम-जयादा होते है। गुण-दोषो के इस कम-जयादा होने को तुलनातमक ढंग से ही जाना जा सकता है। तुलना की दृिष से िवशेषणो की िनमिलिखत तीन अवसथाएँ होती है(1) मूलावसथा (2) उतरावसथा (3) उतमावसथा (

1) वववववववववमूलावसथा मे िवशेषण का तुलनातमक रप नही होता है। वह केवल सामानय िवशेषता ही पकट करता है। जैस-े 1.सािवती सुंदर लडकी है। 2.सुरेश अचछा लडका है। 3.सूयर तेजसवी है।

(2) वववववववववववजब दो वयिकतयो या वसतुओं के गुण-दोषो की तुलना की जाती है तब िवशेषण उतरावसथा मे पयुकत होता है। जैस-े 1.रवीनद चेतन से अिधक बुिदमान है। 2.सिवता रमा की अपेका अिधक सुनदर है।

(3) वववववववववववउतमावसथा मे दो से अिधक वयिकतयो एवं वसतुओं की तुलना करके िकसी एक को सबसे अिधक अथवा सबसे कम बताया गया है। जैस-े 1.पंजाब मे अिधकतम अन होता है। 2.संदीप िनकृषतम बालक है। िवशेष-केवल गुणवाचक एवं अिनिशत संखयावाचक तथा िनिशत पिरमाणवाचक िवशेषणो की ही ये तुलनातमक अवसथाएँ होती है, अनय िवशेषणो की नही। अवसथाओं के रप(1) अिधक और सबसे अिधक शबदो का पयोग करके उतरावसथा और उतमावसथा के रप बनाए जा सकते है। जैस-े मूलावसथा उतरावसथा उतमावसथा अचछी अिधक अचछी सबसे अचछी चतुर अिधक चतुर सबसे अिधक चतुर बुिदमान अिधक बुिदमान सबसे अिधक बुिदमान बलवान अिधक बलवान सबसे अिधक बलवान इसी पकार दूसरे िवशेषण शबदो के रप भी बनाए जा सकते है। (2) ततसम शबदो मे मूलावसथा मे िवशेषण का मूल रप, उतरावसथा मे ‘तर’ और उतमावसथा मे ‘तम’ का पयोग होता है। जैस-े मूलावसथा

उतरावसथा

उतमावसथा

उचच

उचचतर

उचचतम

कठोर

कठोरतर

कठोरतम

गुर

गुरतर

गुरतम

महान, महानतर

महतर, महानतम

महतम

नयून

नयूनतर

नयनूतम

लघु

लघुतर

लघुतम

तीवर

तीवरतर

तीवरतम

िवशाल

िवशालतर

िवशालतम

उतकृष

उतकृषर

उतकृटतम

सुंदर

सुंदरतर

सुंदरतम

मधुर

मधुरतर

मधुतरतम

वववववववव वव ववववकुछ शबद मूलरप मे ही िवशेषण होते है, िकनतु कुछ िवशेषण शबदो की रचना संजा, सवरनाम एवं िकया शबदो से की जाती है(1) संजा से िवशेषण बनानापतयय

संजा

िवशेषण

संजा

िवशेषण



अंश

आंिशक

धमर

धािमरक

अलंकार

आलंकािरक

नीित

नैितक

अथर

आिथरक

िदन

दैिनक

इितहास

ऐितहािसक

देव

दैिवक

अंक

अंिकत

कुसुम

कुसुिमत

सुरिभ

सुरिभत

धविन

धविनत

कुधा

कुिधत

तरंग

तरंिगत

जटा

जिटल

पंक

पंिकल

फेन

फेिनल

उिमर

उिमरल

इम

सवणर

सविणरम

रकत

रिकतम



रोग

रोगी

भोग

भोगी

ईन,ईण

कुल

कुलीन

गाम

गामीण

ईय

आतमा

आतमीय

जाित

जातीय

आलु

शदा

शदालु

ईषया

ईषयालु

वी

मनस

मनसवी

तपस

तपसवी

मय

सुख

सुखमय

दुख

दुखमय

वान

रप

रपवान

गुण

गुणवान

वती(सती)

गुण

गुणवती

पुत

पुतवती

मान

बुिद

बुिदमान

शी

शीमान

मती (सती)

शी

शीमती

बुिद

बुिदमती

रत

धमर

धमररत

कमर

कमररत

सथ

समीप

समीपसथ

देह

देहसथ

िनष

धमर

धमरिनष

कमर

कमरिनष

इत

इल

(2) सवरनाम से िवशेषण बनानासवरनाम

िवशेषण

सवरनाम

िवशेषण

वह

वैसा

यह

ऐसा

(3) िकया से िवशेषण बनानािकया

िवशेषण

िकया

िवशेषण

पत

पितत

पूज

पूजनीय

पठ

पिठत

वंद

वंदनीय

भागना

भागने वाला

पालना

पालने वाला

वववववव 10 वववववव िकया- िजस शबद अथवा शबद-समूह के दारा िकसी कायर के होने अथवा करने का बोध हो उसे िकया कहते है। जैस-े (1) गीता नाच रही है। (2) बचचा दूध पी रहा है। (3) राकेश कॉलेज जा रहा है। (4) गौरव बुिदमान है। (5) िशवाजी बहुत वीर थे। इनमे ‘नाच रही है’, ‘पी रहा है’, ‘जा रहा है’ शबद कायर-वयापार का बोध करा रहे है। जबिक ‘है’, ‘थे’ शबद होने का। इन सभी से िकसी कायर के करने अथवा होने का बोध हो रहा है। अतः ये िकयाएँ है।

वववविकया का मूल रप धातु कहलाता है। जैस-े िलख, पढ, जा, खा, गा, रो, पा आिद। इनही धातुओं से िलखता, पढता, आिद िकयाएँ बनती है। िकया के भेद- िकया के दो भेद है(1) अकमरक िकया। (2) सकमरक िकया।

1.वववववव वववववविजन िकयाओं का फल सीधा कता पर ही पडे वे अकमरक िकया कहलाती है। ऐसी अकमरक िकयाओं को कमर की आवशयकता नही होती। अकमरक िकयाओं के अनय उदाहरण है(1) गौरव रोता है। (2) साप रेगता है। (3) रेलगाडी चलती है। कुछ अकमरक िकयाएँ - लजाना, होना, बढना, सोना, खेलना, अकडना, डरना, बैठना, हँसना, उगना, जीना, दौडना, रोना, ठहरना, चमकना, डोलना, मरना, घटना, फादना, जागना, बरसना, उछलना, कूदना आिद।

2.वववववव वववववविजन िकयाओं का फल (कता को छोडकर) कमर पर पडता है वे सकमरक िकया कहलाती है। इन िकयाओं मे कमर का होना आवशयक है, सकमरक िकयाओं के अनय उदाहरण है(1) मै लेख िलखता हूँ। (2) रमेश िमठाई खाता है। (3) सिवता फल लाती है। (4) भँवरा फूलो का रस पीता है। 3.िदकमरक िकया- िजन िकयाओं के दो कमर होते है, वे िदकमरक िकयाएँ कहलाती है। िदकमरक िकयाओं के उदाहरण है(1) मैने शयाम को पुसतक दी। (2) सीता ने राधा को रपये िदए। ऊपर के वाकयो मे ‘देना’ िकया के दो कमर है। अतः देना िदकमरक िकया है।

वववववव वव वववववव वव वववववव वव वववपयोग की दृिष से िकया के िनमिलिखत पाच भेद है1.सामानय िकया- जहा केवल एक िकया का पयोग होता है वह सामानय िकया कहलाती है। जैस-े 1. आप आए। 2.वह नहाया आिद। 2.संयुकत िकया- जहा दो अथवा अिधक िकयाओं का साथ-साथ पयोग हो वे संयुकत िकया कहलाती है। जैस-े 1.सिवता महाभारत पढने लगी। 2.वह खा चुका। 3.नामधातु िकया- संजा, सवरनाम अथवा िवशेषण शबदो से बने िकयापद नामधातु िकया कहलाते है। जैस-े हिथयाना, शरमाना, अपनाना, लजाना, िचकनाना, झुठलाना आिद। 4.पेरणाथरक िकया- िजस िकया से पता चले िक कता सवयं कायर को न करके िकसी अनय को उस कायर को करने की पेरणा देता है वह पेरणाथरक िकया कहलाती है। ऐसी िकयाओं के दो कता होते है- (1) पेरक कतापेरणा पदान करने वाला। (2) पेिरत कता-पेरणा लेने वाला। जैस-े शयामा राधा से पत िलखवाती है। इसमे वासतव मे पत तो राधा िलखती है, िकनतु उसको िलखने की पेरणा देती है शयामा। अतः ‘िलखवाना’ िकया पेरणाथरक िकया है। इस वाकय मे शयामा पेरक कता है और राधा पेिरत कता। 5.पूवरकािलक िकया- िकसी िकया से पूवर यिद कोई दूसरी िकया पयुकत हो तो वह पूवरकािलक िकया कहलाती है। जैस-े मै अभी सोकर उठा हँू। इसमे ‘उठा हँ’ू िकया से पूवर ‘सोकर’ िकया का पयोग हुआ है। अतः ‘सोकर’ पूवरकािलक िकया है। िवशेष- पूवरकािलक िकया या तो िकया के सामानय रप मे पयुकत होती है अथवा धातु के अंत मे ‘कर’ अथवा ‘करके’ लगा देने से पूवरकािलक िकया बन जाती है। जैस-े (1) बचचा दूध पीते ही सो गया। (2) लडिकया पुसतके पढकर जाएँगी।

वववववव ववववववकई बार वाकय मे िकया के होते हुए भी उसका अथर सपष नही हो पाता। ऐसी िकयाएँ अपूणर िकया कहलाती है। जैस-े गाधीजी थे। तुम हो। ये िकयाएँ अपूणर िकयाएँ है। अब इनही वाकयो को िफर से पिढएगाधीजी राषटिपता थे। तुम बुिदमान हो। इन वाकयो मे कमशः ‘राषटिपता’ और ‘बुिदमान’ शबदो के पयोग से सपषता आ गई। ये सभी शबद ‘पूरक’ है। अपूणर िकया के अथर को पूरा करने के िलए िजन शबदो का पयोग िकया जाता है उनहे पूरक कहते है।

वववववव 11 ववव

ववविकया के िजस रप से कायर संपन होने का समय (काल) जात हो वह काल कहलाता है। काल के िनमिलिखत तीन भेद है1. भूतकाल। 2. वतरमानकाल। 3. भिवषयकाल। 1.भूतकाल-िकया के िजस रप से बीते हुए समय (अतीत) मे कायर संपन होने का बोध हो वह भूतकाल कहलाता है। जैस-े (1) बचचा गया। (2) बचचा गया है। (3) बचचा जा चुका था। ये सब भूतकाल की िकयाएँ है, कयोिक ‘गया’, ‘गया है’, ‘जा चुका था’, िकयाएँ भूतकाल का बोध कराती है। भूतकाल के िनमिलिखत छह भेद है1. सामानय भूत। 2. आसन भूत। 3. अपूणर भूत। 4. पूणर भूत। 5. संिदगध भूत। 6. हेतुहेतुमद भूत। 1.सामानय भूत- िकया के िजस रप से बीते हुए समय मे कायर के होने का बोध हो िकनतु ठीक समय का जान न हो, वहा सामानय भूत होता है। जैसे(1) बचचा गया। (2) शयाम ने पत िलखा। (3) कमल आया। 2.आसन भूत- िकया के िजस रप से अभी-अभी िनकट भूतकाल मे िकया का होना पकट हो, वहा आसन भूत होता है। जैस-े (1) बचचा आया है। (2) शयान ने पत िलखा है। (3) कमल गया है। 3.अपूणर भूत- िकया के िजस रप से कायर का होना बीते समय मे पकट हो, पर पूरा होना पकट न हो वहा अपूणर भूत होता है। जैस-े (1) बचचा आ रहा था। (2) शयाम पत िलख रहा था। (3) कमल जा रहा था। 4.पूणर भूत- िकया के िजस रप से यह जात हो िक कायर समापत हुए बहुत समय बीत चुका है उसे पूणर भूत कहते है। जैस-े (1) शयाम ने पत िलखा था। (2) बचचा आया था। (3) कमल गया था। 5.संिदगध भूत- िकया के िजस रप से भूतकाल का बोध तो हो िकनतु कायर के होने मे संदेह हो वहा संिदगध भूत होता है। जैस-े

(1) बचचा आया होगा। (2) शयाम ने पत िलखा होगा। (3) कमल गया होगा। 6.हेतुहेतुमद भूत- िकया के िजस रप से बीते समय मे एक िकया के होने पर दूसरी िकया का होना आिशत हो अथवा एक िकया के न होने पर दूसरी िकया का न होना आिशत हो वहा हेतुहेतुमद भूत होता है। जैसे(1) यिद शयाम ने पत िलखा होता तो मै अवशय आता। (2) यिद वषा होती तो फसल अचछी होती।

2.ववववववव ववविकया के िजस रप से कायर का वतरमान काल मे होना पाया जाए उसे वतरमान काल कहते है। जैसे(1) मुिन माला फेरता है। (2) शयाम पत िलखता होगा। इन सब मे वतरमान काल की िकयाएँ है, कयोिक ‘फेरता है’, ‘िलखता होगा’, िकयाएँ वतरमान काल का बोध कराती है। इसके िनमिलिखत तीन भेद है(1) सामानय वतरमान। (2) अपूणर वतरमान। (3) संिदगध वतरमान। 1.सामानय वतरमान- िकया के िजस रप से यह बोध हो िक कायर वतरमान काल मे सामानय रप से होता है वहा सामानय वतरमान होता है। जैस-े (1) बचचा रोता है। (2) शयाम पत िलखता है। (3) कमल आता है। 2.अपूणर वतरमान- िकया के िजस रप से यह बोध हो िक कायर अभी चल ही रहा है, समापत नही हुआ वहा अपूणर वतरमान होता है। जैस-े (1) बचचा रो रहा है। (2) शयाम पत िलख रहा है। (3) कमल आ रहा है। 3.संिदगध वतरमान- िकया के िजस रप से वतरमान मे कायर के होने मे संदेह का बोध हो वहा संिदगध वतरमान होता है। जैस-े (1) अब बचचा रोता होगा। (2) शयाम इस समय पत िलखता होगा।

3.ववववववव ववविकया के िजस रप से यह जात हो िक कायर भिवषय मे होगा वह भिवषयत काल कहलाता है। जैसे- (1) शयाम पत िलखेगा। (2) शायद आज संधया को वह आए। इन दोनो मे भिवषयत काल की िकयाएँ है, कयोिक िलखेगा और आए िकयाएँ भिवषयत काल का बोध कराती है। इसके िनमिलिखत दो भेद है1. सामानय भिवषयत। 2. संभावय भिवषयत। 1.सामानय भिवषयत- िकया के िजस रप से कायर के भिवषय मे होने का बोध हो उसे सामानय भिवषयत कहते है। जैस-े (1) शयाम पत िलखेगा।

(2) हम घूमने जाएँगे। 2.संभावय भिवषयत- िकया के िजस रप से कायर के भिवषय मे होने की संभावना का बोध हो वहा संभावय भिवषयत होता है जैस-े (1) शायद आज वह आए। (2) संभव है शयाम पत िलखे। (3) कदािचत संधया तक पानी पडे।

वववववव 12 ववववव वाचय- िकया के िजस रप से यह जात हो िक वाकय मे िकया दारा संपािदत िवधान का िवषय कता है, कमर है, अथवा भाव है, उसे वाचय कहते है। वाचय के तीन पकार है1. कतृरवाचय। 2. कमरवाचय। 3. भाववाचय। 1.कतृरवाचय- िकया के िजस रप से वाकय के उदेशय (िकया के कता) का बोध हो, वह कतृरवाचय कहलाता है। इसमे िलंग एवं वचन पायः कता के अनुसार होते है। जैस-े 1.बचचा खेलता है। 2.घोडा भागता है। इन वाकयो मे ‘बचचा’, ‘घोडा’ कता है तथा वाकयो मे कता की ही पधानता है। अतः ‘खेलता है’, ‘भागता है’ ये कतृरवाचय है। 2.कमरवाचय- िकया के िजस रप से वाकय का उदेशय ‘कमर’ पधान हो उसे कमरवाचय कहते है। जैस-े 1.भारत-पाक युद मे सहसो सैिनक मारे गए। 2.छातो दारा नाटक पसतुत िकया जा रहा है। 3.पुसतक मेरे दारा पढी गई। 4.बचचो के दारा िनबंध पढे गए। इन वाकयो मे िकयाओं मे ‘कमर’ की पधानता दशाई गई है। उनकी रप-रचना भी कमर के िलंग, वचन और पुरष के अनुसार हईु है। िकया के ऐसे रप ‘कमरवाचय’ कहलाते है। 3.भाववाचय-िकया के िजस रप से वाकय का उदेशय केवल भाव (िकया का अथर) ही जाना जाए वहा भाववाचय होता है। इसमे कता या कमर की पधानता नही होती है। इसमे मुखयतः अकमरक िकया का ही पयोग होता है और साथ ही पायः िनषेधाथरक वाकय ही भाववाचय मे पयुकत होते है। इसमे िकया सदैव पुिललंग, अनय पुरष के एक वचन की होती है।

ववववववपयोग तीन पकार के होते है1. कतरिर पयोग। 2. कमरिण पयोग। 3. भावे पयोग। 1.कतरिर पयोग- जब कता के िलंग, वचन और पुरष के अनुरप िकया हो तो वह ‘कतरिर पयोग’ कहलाता है। जैस-े 1.लडका पत िलखता है। 2.लडिकया पत िलखती है।

इन वाकयो मे ‘लडका’ एकवचन, पुिललंग और अनय पुरष है और उसके साथ िकया भी ‘िलखता है’ एकवचन, पुिललंग और अनय पुरष है। इसी तरह ‘लडिकया पत िलखती है’ दूसरे वाकय मे कता बहुवचन, सतीिलंग और अनय पुरष है तथा उसकी िकया भी ‘िलखती है’ बहुवचन सतीिलंग और अनय पुरष है। 2.कमरिण पयोग- जब िकया कमर के िलंग, वचन और पुरष के अनुरप हो तो वह ‘कमरिण पयोग’ कहलाता है। जैस-े 1.उपनयास मेरे दारा पढा गया। 2.छातो से िनबंध िलखे गए। 3.युद मे हजारो सैिनक मारे गए। इन वाकयो मे ‘उपनयास’, ‘सैिनक’, कमर कता की िसथित मे है अतः उनकी पधानता है। इनमे िकया का रप कमर के िलंग, वचन और पुरष के अनुरप बदला है, अतः यहा ‘कमरिण पयोग’ है। 3.भावे पयोग- कतरिर वाचय की सकमरक िकयाएँ , जब उनके कता और कमर दोनो िवभिकतयुकत हो तो वे ‘भावे पयोग’ के अंतगरत आती है। इसी पकार भाववाचय की सभी िकयाएँ भी भावे पयोग मे मानी जाती है। जैस-े 1.अनीता ने बेल को सीचा। 2.लडको ने पतो को देखा है। 3.लडिकयो ने पुसतको को पढा है। 4.अब उससे चला नही जाता है। इन वाकयो की िकयाओं के िलंग, वचन और पुरष न कता के अनुसार है और न ही कमर के अनुसार, अिपतु वे एकवचन, पुिललंग और अनय पुरष है। इस पकार के ‘पयोग भावे’ पयोग कहलाते है।

ववववव वववववववव 1.कतृरवाचय से कमरवाचय बनाना(1) कतृरवाचय की िकया को सामानय भूतकाल मे बदलना चािहए। (2) उस पिरवितरत िकया-रप के साथ काल, पुरष, वचन और िलंग के अनुरप जाना िकया का रप जोडना चािहए। (3) इनमे ‘से’ अथवा ‘के दारा’ का पयोग करना चािहए। जैस-े कतृरवाचय कमरवाचय 1.शयामा उपनयास िलखती है। शयामा से उपनयास िलखा जाता है। 2.शयामा ने उपनयास िलखा। शयामा से उपनयास िलखा गया। 3.शयामा उपनयास िलखेगी। शयामा से (के दारा) उपनयास िलखा जाएगा। +2.कतृरवाचय से भाववाचय बनाना(1) इसके िलए िकया अनय पुरष और एकवचन मे रखनी चािहए। (2) कता मे करण कारक की िवभिकत लगानी चािहए। (3) िकया को सामानय भूतकाल मे लाकर उसके काल के अनुरप जाना िकया का रप जोडना चािहए। (4) आवशयकतानुसार िनषेधसूचक ‘नही’ का पयोग करना चािहए। जैस-े कतृरवाचय भाववाचय 1.बचचे नही दौडते। बचचो से दौडा नही जाता। 2.पकी नही उडते। पिकयो से उडा नही जाता। 3.बचचा नही सोया। बचचे से सोया नही जाता।

वववववव 13 वववववव-वववववव िकया-िवशेषण- जो शबद िकया की िवशेषता पकट करते है वे िकया-िवशेषण कहलाते है। जैस-े 1.सोहन सुंदर िलखता है। 2.गौरव यहा रहता है। 3.संगीता पितिदन पढती है। इन वाकयो मे ‘सुनदर’, ‘यहा’ और

‘पितिदन’ शबद िकया की िवशेषता बतला रहे है। अतः ये शबद िकया-िवशेषण है। अथानुसार िकया-िवशेषण के िनमिलिखत चार भेद है1. कालवाचक िकया-िवशेषण। 2. सथानवाचक िकया-िवशेषण। 3. पिरमाणवाचक िकया-िवशेषण। 4. रीितवाचक िकया-िवशेषण। 1.कालवाचक िकया-िवशेषण- िजस िकया-िवशेषण शबद से कायर के होने का समय जात हो वह कालवाचक िकया-िवशेषण कहलाता है। इसमे बहुधा ये शबद पयोग मे आते है- यदा, कदा, जब, तब, हमेशा, तभी, ततकाल, िनरंतर, शीघ, पूवर, बाद, पीछे, घडी-घडी, अब, ततपशात्, तदनंतर, कल, कई बार, अभी िफर कभी आिद। 2.सथानवाचक िकया-िवशेषण- िजस िकया-िवशेषण शबद दारा िकया के होने के सथान का बोध हो वह सथानवाचक िकया-िवशेषण कहलाता है। इसमे बहुधा ये शबद पयोग मे आते है- भीतर, बाहर, अंदर, यहा, वहा, िकधर, उधर, इधर, कहा, जहा, पास, दूर, अनयत, इस ओर, उस ओर, दाएँ , बाएँ , ऊपर, नीचे आिद। 3.पिरमाणवाचक िकया-िवशेषण-जो शबद िकया का पिरमाण बतलाते है वे ‘पिरमाणवाचक िकया-िवशेषण’ कहलाते है। इसमे बहुधा थोडा-थोडा, अतयंत, अिधक, अलप, बहुत, कुछ, पयापत, पभूत, कम, नयून, बूँद-बूँद, सवलप, केवल, पायः अनुमानतः, सवरथा आिद शबद पयोग मे आते है। कुछ शबदो का पयोग पिरमाणवाचक िवशेषण और पिरमाणवाचक िकया-िवशेषण दोनो मे समान रप से िकया जाता है। जैस-े थोडा, कम, कुछ काफी आिद। 4.रीितवाचक िकया-िवशेषण- िजन शबदो के दारा िकया के संपन होने की रीित का बोध होता है वे ‘रीितवाचक िकया-िवशेषण’ कहलाते है। इनमे बहुधा ये शबद पयोग मे आते है- अचानक, सहसा, एकाएक, झटपट, आप ही, धयानपूवरक, धडाधड, यथा, तथा, ठीक, सचमुच, अवशय, वासतव मे, िनससंदेह, बेशक, शायद, संभव है, कदािचत्, बहुत करके, हा, ठीक, सच, जी, जरर, अतएव, िकसिलए, कयोिक, नही, न, मत, कभी नही, कदािप नही आिद।

वववववव 14 ववववववववव ववववव संबध ं बोधक अवयय- िजन अवयय शबदो से संजा अथवा सवरनाम का वाकय के दूसरे शबदो के साथ संबध ं जाना जाता है, वे संबध ं बोधक अवयय कहलाते है। जैस-े 1. उसका साथ छोड दीिजए। 2.मेरे सामने से हट जा। 3.लालिकले पर ितरंगा लहरा रहा है। 4.वीर अिभमनयु अंत तक शतु से लोहा लेता रहा। इनमे ‘साथ’, ‘सामने ’, ‘पर’, ‘तक’ शबद संजा अथवा सवरनाम शबदो के साथ आकर उनका संबध ं वाकय के दूसरे शबदो के साथ बता रहे है। अतः वे संबध ं बोधक अवयय है। अथर के अनुसार संबध ं बोधक अवयय के िनमिलिखत भेद है1. कालवाचक- पहले, बाद, आगे, पीछे। 2. सथानवाचक- बाहर, भीतर, बीच, ऊपर, नीचे। 3. िदशावाचक- िनकट, समीप, ओर, सामने। 4. साधनवाचक- िनिमत, दारा, जिरये। 5. िवरोधसूचक- उलटे, िवरद, पितकूल। 6. समतासूचक- अनुसार, सदृश, समान, तुलय, तरह। 7. हेतुवाचक- रिहत, अथवा, िसवा, अितिरकत। 8. सहचरसूचक- समेत, संग, साथ। 9. िवषयवाचक- िवषय, बाबत, लेख। 10. संगवाचक- समेत, भर, तक।

वववववव-वववववव वव ववववववववव ववववव ववव ववववजब इनका पयोग संजा अथवा सवरनाम के साथ होता है तब ये संबध ं बोधक अवयय होते है और जब ये िकया की िवशेषता पकट करते है तब िकया-िवशेषण होते है। जैस-े (1) अंदर जाओ। (िकया िवशेषण) (2) दुकान के भीतर जाओ। (संबध ं बोधक अवयय)

वववववव 15 ववववववववववव ववववव समुचचयबोधक अवयय- दो शबदो, वाकयाशो या वाकयो को िमलाने वाले अवयय समुचचयबोधक अवयय कहलाते है। इनहे ‘योजक’ भी कहते है। जैस-े (1) शुित और गुंजन पढ रहे है। (2) मुझे टेपिरकाडरर या घडी चािहए। (3) सीता ने बहुत मेहनत की िकनतु िफर भी सफल न हो सकी। (4) बेशक वह धनवान है परनतु है कंजूस। इनमे ‘और’, ‘या’, ‘िकनतु’, ‘परनतु’ शबद आए है जोिक दो शबदो अथवा दो वाकयो को िमला रहे है। अतः ये समुचचयबोधक अवयय है। समुचचयबोधक के दो भेद है1. समानािधकरण समुचचयबोधक। 2. वयिधकरण समुचचयबोधक।

1.वववववववववव ववववववववववविजन समुचचयबोधक शबदो के दारा दो समान वाकयाशो पदो और वाकयो को परसपर जोडा जाता है, उनहे समानािधकरण समुचचयबोधक कहते है। जैस-े 1.सुनदं ा खडी थी और अलका बैठी थी। 2.ऋतेश गाएगा तो ऋतु तबला बजाएगी। इन वाकयो मे और, तो समुचचयबोधक शबदो दारा दो समान शबद और वाकय परसपर जुडे है। समानािधकरण समुचचयबोधक के भेद- समानािधकरण समुचचयबोधक चार पकार के होते है(क) संयोजक। (ख) िवभाजक। (ग) िवरोधसूचक। (घ) पिरणामसूचक। (क) संयोजक- जो शबदो, वाकयाशो और उपवाकयो को परसपर जोडने वाले शबद संयोजक कहलाते है। और, तथा, एवं व आिद संयोजक शबद है। (ख) िवभाजक- शबदो, वाकयाशो और उपवाकयो मे परसपर िवभाजन और िवकलप पकट करने वाले शबद िवभाजक या िवकलपक कहलाते है। जैस-े या, चाहे अथवा, अनयथा, वा आिद। (ग) िवरोधसूचक- दो परसपर िवरोधी कथनो और उपवाकयो को जोडने वाले शबद िवरोधसूचक कहलाते है। जैस-े परनतु, पर, िकनतु, मगर, बिलक, लेिकन आिद। (घ) पिरणामसूचक- दो उपवाकयो को परसपर जोडकर पिरणाम को दशाने वाले शबद पिरणामसूचक कहलाते है। जैस-े फलतः, पिरणामसवरप, इसिलए, अतः, अतएव, फलसवरप, अनयथा आिद।

2.वववववववव ववववववववववविकसी वाकय के पधान और आिशत उपवाकयो को परसपर जोडने वाले शबद वयिधकरण समुचचयबोधक कहलाते है। वयिधकरण समुचचयबोधक के भेद- वयिधकरण समुचचयबोधक चार पकार के होते है(क) कारणसूचक। (ख) संकेतसूचक। (ग) उदेशयसूचक। (घ) सवरपसूचक। (क) कारणसूचक- दो उपवाकयो को परसपर जोडकर होने वाले कायर का कारण सपष करने वाले शबदो को कारणसूचक कहते है। जैस-े िक, कयोिक, इसिलए, चूँिक, तािक आिद। (ख) संकेतसूचक- जो दो योजक शबद दो उपवाकयो को जोडने का कायर करते है, उनहे संकेतसूचक कहते है। जैस-े यिद....तो, जा...तो, यदिप....तथािप, यदिप...परनतु आिद। (ग) उदेशयसूचक- दो उपवाकयो को परसपर जोडकर उनका उदेशय सपष करने वाले शबद उदेशयसूचक कहलाते है। जैस-े इसिलए िक, तािक, िजससे िक आिद। (घ) सवरपसूचक- मुखय उपवाकय का अथर सपष करने वाले शबद सवरपसूचक कहलाते है। जैसे-यानी, मानो, िक, अथात् आिद।

वववववव 16 ववववववववववववव ववववव िवसमयािदबोधक अवयय- िजन शबदो मे हषर, शोक, िवसमय, गलािन, घृणा, लजजा आिद भाव पकट होते है वे िवसमयािदबोधक अवयय कहलाते है। इनहे ‘दोतक’ भी कहते है। जैसे1.अहा ! कया मौसम है। 2.उफ ! िकतनी गरमी पड रही है। 3. अरे ! आप आ गए ? 4.बाप रे बाप ! यह कया कर डाला ? 5.िछः-िछः ! िधकार है तुमहारे नाम को। इनमे ‘अहा’, ‘उफ’, ‘अरे’, ‘बाप-रे-बाप’, ‘िछः-िछः’ शबद आए है। ये सभी अनेक भावो को वयकत कर रहे है। अतः ये िवसमयािदबोधक अवयय है। इन शबदो के बाद िवसमयािदबोधक िचह (!) लगता है। पकट होने वाले भाव के आधार पर इसके िनमिलिखत भेद है(1) हषरबोधक- अहा ! धनय !, वाह-वाह !, ओह ! वाह ! शाबाश ! (2) शोकबोधक- आह !, हाय !, हाय-हाय !, हा, तािह-तािह !, बाप रे ! (3) िवसमयािदबोधक- है !, ऐं !, ओहो !, अरे, वाह ! (4) ितरसकारबोधक- िछः !, हट !, िधक्, धत् !, िछः िछः !, चुप ! (5) सवीकृितबोधक- हा-हा !, अचछा !, ठीक !, जी हा !, बहुत अचछा ! (6) संबोधनबोधक- रे !, री !, अरे !, अरी !, ओ !, अजी !, हैलो ! (7) आशीवादबोधक- दीघायु हो !, जीते रहो !

वववववव 17 वववव-वववव शबद-रचना-हम सवभावतः भाषा-वयवहार मे कम-से-कम शबदो का पयोग करके अिधक-से-अिधक काम चलाना चाहते है। अतः शबदो के आरंभ अथवा अंत मे कुछ जोडकर अथवा उनकी माताओं या सवर मे कुछ पिरवतरन करके नवीन-से-नवीन अथर-बोध कराना चाहते है। कभी-कभी दो अथवा अिधक शबदाशो को जोडकर नए अथर-बोध को सवीकारते है। इस तरह एक शबद से कई अथों की अिभवयिकत हेतु जो नए-नए शबद बनाए जाते

है उसे शबद-रचना कहते है। शबद रचना के चार पकार है1. उपसगर लगाकर 2. पतयय लगाकर 3. संिध दारा 4. समास दारा

वववववववे शबदाश जो िकसी शबद के आरंभ मे लगकर उनके अथर मे िवशेषता ला देते है अथवा उसके अथर को बदल देते है, उपसगर कहलाते है। जैस-े परा-पराकम, पराजय, पराभव, पराधीन, पराभूत। उपसगों को चार भागो मे बाटा जा सकता है(क) संसकृत के उपसगर (ख) िहनदी के उपसगर (ग) उदूर के उपसगर (घ) उपसगर की तरह पयुकत होने वाले संसकृत के अवयय

(व) ववववववव वव ववववववउपसगर

अथर (मे)

शबद-रप

अित

अिधक, ऊपर

अतयंत, अतयुतम, अितिरकत

अिध

ऊपर, पधानता

अिधकार, अधयक, अिधपित

अनु

पीछे, समान

अनुरप, अनुज, अनुकरण

अप

बुरा, हीन

अपमान, अपयश, अपकार

अिभ

सामने , अिधक पास

अिभयोग, अिभमान, अिभभावक

अव

बुरा, नीचे

अवनित, अवगुण, अवशेष



तक से, लेकर, उलटा

आजनम, आगमन, आकाश

उत्

ऊपर, शेष

उतकंठा, उतकषर, उतपन

उप

िनकट, गौण

उपकार, उपदेश, उपचार, उपाधयक

दुर्

बुरा, किठन

दुजरन, दुदरशा, दुगरम

दुस्

बुरा

दुशिरत, दुससाहस, दुगरम

िन

अभाव, िवशेष

िनयुकत, िनबंध, िनमगन

िनर्

िबना

िनवाह, िनमरल, िनजरन

िनस्

िबना

िनशल, िनशछल, िनिशत

परा

पीछे, उलटा

परामशर, पराधीन, पराकम

पिर

सब ओर

पिरपूणर, पिरजन, पिरवतरन



आगे, अिधक, उतकृष

पयत, पबल, पिसद

पित

सामने , उलटा, हरएक

पितकूल, पतयेक, पतयक

िव

हीनता, िवशेष

िवयोग, िवशेष, िवधवा

सम्

पूणर, अचछा

संचय, संगित, संसकार

सु

अचछा, सरल

सुगम, सुयश, सवागत

(व) वववववव वव वववववववव वववववव ववववववव वववववववव वव ववववववव ववववव वव ववव। उपसगर

अथर (मे)

शबद-रप



अभाव, िनषेध

अजर, अछू त, अकाल

अन

रिहत

अनपढ, अनबन, अनजान

अध

आधा

अधमरा, अधिखला, अधपका



रिहत

औगुन, औतार, औघट

कु

बुराई

कुसंग, कुकमर, कुमित

िन

अभाव

िनडर, िनहतथा, िनकममा

(व) ववववव वव ववववववउपसगर

अथर (मे)

शबद-रप

कम

थोडा

कमबखत, कमजोर, कमिसन

खुश

पसन, अचछा

खुशबू, खुशिदल, खुशिमजाज

गैर

िनषेध

गैरहािजर, गैरकानूनी, गैरकौम

दर

मे

गरअसल, दरकार, दरिमयान

ना

िनषेध

नालायक, नापसंद, नामुमिकन

बा

अनुसार

बामौका, बाकायदा, बाइजजत

बद

बुरा

बदनाम, बदमाश, बदचलन

बद

बुरा

बदनाम, बदमाश, बदचलन

बे

िबना

बेईमान, बेचारा, बेअकल

ला

रिहत

लापरवाह, लाचार, लावािरस

सर

मुखय

सरकार, सरदार, सरपंच

हम

साथ

हमददी, हमराज, हमदम

हर

पित

हरिदन, दरएक,हरसाल

(व) वववववव वव ववव वववववववव वववव वववव ववववववव वववववउपसगर

अथर (मे)

शबद-रप

अ (वयंजनो से पूवर)

िनषेध

अजान, अभाव, अचेत

अन् (सवरो से पूवर)

िनषेध

अनागत, अनथर, अनािद



सिहत

सजल, सकल, सहषर

अधः

नीचे

अधःपतन, अधोगित, अधोमुख

िचर

बहुत देर

िचरायु, िचरकाल, िचरंतन

अंतर

भीतर

अंतरातमा, अंतराषटीय, अंतजातीय

पुनः

िफर

पुनगरमन, पुनजरनम, पुनिमरलन

पुरा

पुराना

पुराततव, पुरातन

पुरस्

आगे

पुरसकार, पुरसकृत

ितरस्

बुरा, हीन

ितरसकार, ितरोभाव

सत्

शेष

सतकार, सजजन, सतकायर

वववववव 18 ववववववव पतयय- जो शबदाश शबदो के अंत मे लगकर उनके अथर को बदल देते है वे पतयय कहलाते है। जैस-े जलज, पंकज आिद। जल=पानी तथा ज=जनम लेने वाला। पानी मे जनम लेने वाला अथात् कमल। इसी पकार पंक शबद मे ज पतयय लगकर पंकज अथात कमल कर देता है। पतयय दो पकार के होते है1. कृत पतयय। 2. तिदत पतयय।

1.ववव वववववववजो पतयय धातुओं के अंत मे लगते है वे कृत पतयय कहलाते है। कृत पतयय के योग से बने शबदो को ं कहते है। जैस-े राखन+हारा=राखनहारा, घट+इया=घिटया, िलख+आवट=िलखावट आिद। (कृत+अंत) कृदत ं - िजस पतयय से बने शबद से कायर करने वाले अथात कता का बोध हो, वह कतृरवाचक (क) कतृरवाचक कृदत ं कहलाता है। जैस-े ‘पढना’। इस सामानय िकया के साथ वाला पतयय लगाने से ‘पढनेवाला’ शबद कृदत बना। पतयय

शबद-रप

पतयय

शबद-रप

वाला

पढनेवाला, िलखनेवाला,रखवाला

हारा

राखनहारा, खेवनहारा, पालनहारा

आऊ

िबकाऊ, िटकाऊ, चलाऊ

आक

तैराक

आका

लडका, धडाका, धमाका

आडी

अनाडी, िखलाडी, अगाडी

आलू

आलु, झगडालू, दयालु, कृपालु



उडाऊ, कमाऊ, खाऊ

एरा

लुटेरा, सपेरा

इया

बिढया, घिटया

ऐया

गवैया, रखैया, लुटैया

अक

धावक, सहायक, पालक

ं - िजस पतयय से बने शबद से िकसी कमर का बोध हो वह कमरवाचक कृदत ं कहलाता है। (ख) कमरवाचक कृदत जैस-े गा मे ना पतयय लगाने से गाना, सूँघ मे ना पतयय लगाने से सूँघना और िबछ मे औना पतयय लगाने से िबछौना बना है। ं - िजस पतयय से बने शबद से िकया के साधन अथात करण का बोध हो वह (ग) करणवाचक कृदत ं कहलाता है। जैस-े रेत मे ई पतयय लगाने से रेती बना। करणवाचक कृदत पतयय

शबद-रप

पतयय

शबद-रप



भटका, भूला, झूला



रेती, फासी, भारी



झा़़ड ृृृ ू



बेलन, झाडन, बंधन

नी

धौकनी करतनी, सुिमरनी

ं - िजस पतयय से बने शबद से भाव अथात् िकया के वयापार का बोध हो वह भाववाचक (घ) भाववाचक कृदत ं कहलाता है। जैस-े सजा मे आवट पतयय लगाने से सजावट बना। कृदत पतयय

शबद-रप

पतयय

शबद-रप

अन

चलन, मनन, िमलन

औती

मनौती, िफरौती, चुनौती

आवा

भुलावा,छलावा, िदखावा

अंत

िभडंत, गढंत

आई

कमाई, चढाई, लडाई

आवट

सजावट, बनावट, रकावट

आहट

घबराहट,िचललाहट

ं - िजस पतयय से बने शबद से िकया के होने का भाव पकट हो वह िकयावाचक कृदत ं (ड) िकयावाचक कृदत कहलाता है। जैस-े भागता हुआ, िलखता हुआ आिद। इसमे मूल धातु के साथ ता लगाकर बाद मे हुआ लगा ं बन जाता है। िकयावाचक कृदत ं केवल पुिललंग और एकवचन मे देने से वतरमानकािलक िकयावाचक कृदत पयुकत होता है। पतयय

शबद-रप

पतयय

शबद-रप

ता

डू बता, बहता, रमता, चलता

ता

हुआ आता हुआ, पढता हुआ

या

खोया, बोया



सूखा, भूला, बैठा

कर

जाकर, देखकर

ना

दौडना, सोना

2. वववववव वववववववजो पतयय संजा, सवरनाम अथवा िवशेषण के अंत मे लगकर नए शबद बनाते है तिदत पतयय कहलाते है। इनके योग से बने शबदो को ‘तिदतात’ अथवा तिदत शबद कहते है। जैस-े अपना+पन=अपनापन, दानव+ता=दानवता आिद। (क) कतृरवाचक तिदत- िजससे िकसी कायर के करने वाले का बोध हो। जैसे- सुनार, कहार आिद। पतयय

शबद-रप

पतयय

शबद-रप



पाठक, लेखक, िलिपक

आर

सुनार, लुहार, कहार

कार

पतकार, कलाकार, िचतकार

इया

सुिवधा, दुिखया, आढितया

एरा

सपेरा, ठठेरा, िचतेरा



मछुआ, गेरआ, ठलुआ

वाला

टोपीवाला घरवाला, गाडीवाला

दार

ईमानदार, दुकानदार, कजरदार

हारा

हार, लकडहारा, पिनहारा, मिनहार

ची

मशालची, खजानची, मोची

गर

कारीगर, बाजीगर, जादूगर

(ख) भाववाचक तिदत- िजससे भाव वयकत हो। जैस-े सराफा, बुढापा, संगत, पभुता आिद। पतयय

शबद-रप

पतयय

शबद-रप

पन

बचपन, लडकपन, बालपन



बुलावा, सराफा

आई

भलाई, बुराई, िढठाई

आहट

िचकनाहट, कडवाहट, घबराहट

इमा

लािलमा, मिहमा, अरिणमा

पा

बुढापा, मोटापा



गरमी, सरदी,गरीबी

औती

बपौती

(ग) संबध ं वाचक तिदत- िजससे संबध ं का बोध हो। जैस-े ससुराल, भतीजा, चचेरा आिद। पतयय

शबद-रप

पतयय

शबद-रप

आल

ससुराल, निनहाल

एरा

ममेरा,चचेरा, फुफेरा

जा

भानजा, भतीजा

इक

नैितक, धािमरक, आिथरक

(घ) ऊनता (लघुता) वाचक तिदत- िजससे लघुता का बोध हो। जैस-े लुिटया। पतययय

शबद-रप

पतयय

शबद-रप

इया

लुिटया, िडिबया, खिटया



कोठरी,टोकनी,ढोलकी

टी.टा

लँगोटी, कछौटी,कलूटा

डी,डा

पगडी, टुकडी, बछडा

(ड) गणनावाचक तदित- िजससे संखया का बोध हो। जैस-े इकहरा, पहला, पाचवा आिद। पतयय

शबद-रप

पतयय

शबद-रप

हरा

इकहरा, दुहरा, ितहरा

ला

पहला

रा

दूसरा, तीसरा

था

चौथा

(च) सादृशयवाचक तिदत- िजससे समता का बोध हो। जैस-े सुनहरा। पतयय

शबद-रप

पतयय

शबद-रप

सा

पीला-सा, नीला-सा, काला-सा

हरा

सुनहरा, रपहरा

(छ) गुणवाचक तदित- िजससे िकसी गुण का बोध हो। जैस-े भूख, िवषैला, कुलवंत आिद। पतयय

शबद-रप

पतयय

शबद-रप



भूखा, पयासा, ठंडा,मीठा



धनी, लोभी, कोधी

ईय

वाछनीय, अनुकरणीय

ईला

रंगीला, सजीला

ऐला

िवषैला, कसैला

लु

कृपालु, दयालु

वंत

दयावंत, कुलवंत

वान

गुणवान, रपवान

(ज) सथानवाचक तदित- िजससे सथान का बोध हो. जैस-े पंजाबी, जबलपुिरया, िदललीवाला आिद। पतयय

शबद-रप

पतयय

शबद-रप



पंजाबी, बंगाली, गुजराती

इया

कलकितया, जबलपुिरया

वाल

वाला डेरेवाला, िदललीवाला

ववव ववववववव वव वववववव ववववववव ववव ववववकृत पतयय- जो पतयय धातु या िकया के अंत मे जुडकर नया शबद बनाते है कृत पतयय कहलाते है। जैस-े िलखना, िलखाई, िलखावट। तिदत पतयय- जो पतयय संजा, सवरनाम या िवशेषण मे जुडकर नया शबद बनाते हं वे तिदत पतयय कहलाते है। जैस-े नीित-नैितक, काला-कािलमा, राषट-राषटीयता आिद।

वववववव 19 वववव संिध-संिध शबद का अथर है मेल। दो िनकटवती वणों के परसपर मेल से जो िवकार (पिरवतरन) होता है वह संिध कहलाता है। जैस-े सम्+तोष=संतोष। देव+इंद=देवेद। भानु+उदय=भानूदय। संिध के भेद-संिध तीन पकार की होती है1. सवर संिध। 2. वयंजन संिध। 3. िवसगर संिध।

1.वववव ववववदो सवरो के मेल से होने वाले िवकार (पिरवतरन) को सवर-संिध कहते है। जैसे-िवदा+आलय=िवदालय। सवर-संिध पाच पकार की होती है-

(व) ववववव ववववहसव या दीघर अ, इ, उ के बाद यिद हसव या दीघर अ, इ, उ आ जाएँ तो दोनो िमलकर दीघर आ, ई, और ऊ हो जाते है। जैस-े (क) अ+अ=आ धमर+अथर=धमाथर, अ+आ=आ-िहम+आलय=िहमालय। आ+अ=आ आ िवदा+अथी=िवदाथी आ+आ=आ-िवदा+आलय=िवदालय। (ख) इ और ई की संिधइ+इ=ई- रिव+इंद=रवीद, मुिन+इंद=मुनीद। इ+ई=ई- िगिर+ईश=िगरीश मुिन+ईश=मुनीश। ई+इ=ई- मही+इंद=महीद नारी+इंदु =नारीदु ई+ई=ई- नदी+ईश=नदीश मही+ईश=महीश (ग) उ और ऊ की संिध-

उ+उ=ऊ- भानु+उदय=भानूदय िवधु+उदय=िवधूदय उ+ऊ=ऊ- लघु+ऊिमर=लघूिमर िसधु+ऊिमर=िसंधूिमर ऊ+उ=ऊ- वधू+उतसव=वधूतसव वधू+उललेख=वधूललेख ऊ+ऊ=ऊ- भू+ऊधवर=भूधवर वधू+ऊजा=वधूजा

(व) ववव ववववइसमे अ, आ के आगे इ, ई हो तो ए, उ, ऊ हो तो ओ, तथा ऋ हो तो अर् हो जाता है। इसे गुण-संिध कहते है जैस-े (क) अ+इ=ए- नर+इंद=नरेद अ+ई=ए- नर+ईश=नरेश आ+इ=ए- महा+इंद=महेद आ+ई=ए महा+ईश=महेश (ख) अ+ई=ओ जान+उपदेश=जानोपदेश आ+उ=ओ महा+उतसव=महोतसव अ+ऊ=ओ जल+ऊिमर=जलोिमर आ+ऊ=ओ महा+ऊिमर=महोिमर (ग) अ+ऋ=अर् देव+ऋिष=देविषर (घ) आ+ऋ=अर् महा+ऋिष=महिषर

(व) वववववव ववववअ आ का ए ऐ से मेल होने पर ऐ अ आ का ओ, औ से मेल होने पर औ हो जाता है। इसे वृिद संिध कहते है। जैस-े (क) अ+ए=ऐ एक+एक=एकैक अ+ऐ=ऐ मत+ऐकय=मतैकय आ+ए=ऐ सदा+एव=सदैव आ+ऐ=ऐ महा+ऐशयर=महैशयर (ख) अ+ओ=औ वन+ओषिध=वनौषिध आ+ओ=औ महा+औषध=महौषिध अ+औ=औ परम+औषध=परमौषध आ+औ=औ महा+औषध=महौषध

(व) वव वववव(क) इ, ई के आगे कोई िवजातीय (असमान) सवर होने पर इ ई को ‘य्’ हो जाता है। (ख) उ, ऊ के आगे िकसी िवजातीय सवर के आने पर उ ऊ को ‘व्’ हो जाता है। (ग) ‘ऋ’ के आगे िकसी िवजातीय सवर के आने पर ऋ को ‘र् ’ हो जाता है। इनहे यण-संिध कहते है। इ+अ=य्+अ यिद+अिप=यदिप ई+आ=य्+आ इित+आिद=इतयािद। ई+अ=य्+अ नदी+अपरण=नदपरण ई+आ=य्+आ देवी+आगमन=देवयागमन (घ) उ+अ=व्+अ अनु+अय=अनवय उ+आ=व्+आ सु+आगत=सवागत उ+ए=व्+ए अनु+एषण=अनवेषण ऋ+अ=र् +आ िपतृ+आजा=िपताजा (ड) अयािद संिध- ए, ऐ और ओ औ से परे िकसी भी सवर के होने पर कमशः अय्, आय्, अव् और आव् हो जाता है। इसे अयािद संिध कहते है। (क) ए+अ=अय्+अ ने +अन+नयन (ख) ऐ+अ=आय्+अ गै+अक=गायक (ग) ओ+अ=अव्+अ पो+अन=पवन (घ) औ+अ=आव्+अ पौ+अक=पावक औ+इ=आव्+इ नौ+इक=नािवक

2.वववववव वववववयंजन का वयंजन से अथवा िकसी सवर से मेल होने पर जो पिरवतरन होता है उसे वयंजन संिध कहते है। जैस-े शरत्+चंद+शरचचंद। (क) िकसी वगर के पहले वणर क्, च्, ट्, त्, प् का मेल िकसी वगर के तीसरे अथवा चौथे वणर या य्, र् , ल्, व्, ह या िकसी सवर से हो जाए तो क् को ग् च् को ज्, ट् को ड् और प् को ब् हो जाता है। जैस-े क्+ग=गग िदक्+गज=िदगगज। क्+ई=गी वाक्+ईश=वागीश च्+अ=ज् अच्+अंत=अजंत ट्+आ=डा षट्+आनन=षडानन

प+ज+बज अप्+ज=अबज (ख) यिद िकसी वगर के पहले वणर (क्, च्, ट्, त्, प्) का मेल न् या म् वणर से हो तो उसके सथान पर उसी वगर का पाचवा वणर हो जाता है। जैस-े क्+म=ड वाक्+मय=वाडमय च्+न=ञ् अच्+नाश=अञनाश ट्+म=ण् षट्+मास=षणमास त्+न=न् उत्+नयन=उनयन प्+म्=म् अप्+मय=अममय (ग) त् का मेल ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व या िकसी सवर से हो जाए तो द् हो जाता है। जैसेत्+भ=द सत्+भावना=सदावना त्+ई=दी जगत्+ईश=जगदीश त्+भ=द भगवत्+भिकत=भगवदिकत त्+र=द तत्+रप=तदूप त्+ध=द सत्+धमर=सदमर (घ) त् से परे च् या छ होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ठ् होने पर ट्, ड् या ढ् होने पर ड् और ल होने पर ल् हो जाता है। जैसेत्+च=चच उत्+चारण=उचचारण त्+ज=जज सत्+जन=सजजन त्+झ=जझ उत्+झिटका=उजझिटका त्+ट=ट तत्+टीका=तटीका त्+ड=डड उत्+डयन=उडडयन त्+ल=लल उत्+लास=उललास (ड) त् का मेल यिद श् से हो तो त् को च् और श् का छ बन जाता है। जैस-े त्+श्=चछ उत्+शास=उचछवास त्+श=चछ उत्+िशष=उिचछष त्+श=चछ सत्+शासत=सचछासत (च) त् का मेल यिद ह से हो तो त् का द् और ह का ध् हो जाता है। जैसेत्+ह=द उत्+हार=उदार त्+ह=द उत्+हरण=उदरण त्+ह=द तत्+िहत=तिदत (छ) सवर के बाद यिद छ वणर आ जाए तो छ से पहले च् वणर बढा िदया जाता है। जैस-े अ+छ=अचछ सव+छंद=सवचछंद आ+छ=आचछ आ+छादन=आचछादन इ+छ=इचछ संिध+छेद=संिधचछेद उ+छ=उचछ अनु+छेद=अनुचछेद (ज) यिद म् के बाद क् से म् तक कोई वयंजन हो तो म् अनुसवार मे बदल जाता है। जैसेम्+च्=ं ंिकम्+िचत=िकंिचत म्+क=ं ंिकम्+कर=िकंकर म्+क=ंं सम्+कलप=संकलप म्+च=ं ंसम्+चय=संचय म्+त=ं ंसम्+तोष=संतोष म्+ब=ंं सम्+बंध=संबध ं म्+प=ं ंसम्+पूणर=संपूणर (झ) म् के बाद म का िदतव हो जाता है। जैस-े म्+म=मम सम्+मित=सममित म्+म=मम सम्+मान=सममान (ञ) म् के बाद य्, र् , ल्, व्, श्, ष्, स्, ह मे से कोई वयंजन होने पर म् का अनुसवार हो जाता है। जैस-े म्+य=ं ंसम्+योग=संयोग म्+र=ं ंसम्+रकण=संरकण म्+व=ंं सम्+िवधान=संिवधान म्+व=ं ंसम्+वाद=संवाद म्+श=ं ंसम्+शय=संशय म्+ल=ंं सम्+लगन=संलगन म्+स=ं ंसम्+सार=संसार (ट) ऋ,र् , ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परनतु चवगर, टवगर, तवगर, श और स का वयवधान हो जाने पर न् का ण् नही होता। जैस-े र् +न=ण पिर+नाम=पिरणाम र् +म=ण प+मान=पमाण (ठ) स् से पहले अ, आ से िभन कोई सवर आ जाए तो स् को ष हो जाता है। जैस-े भ्+स्=ष अिभ+सेक=अिभषेक िन+िसद=िनिषद िव+सम+िवषम

3.वववववव-वववविवसगर (:) के बाद सवर या वयंजन आने पर िवसगर मे जो िवकार होता है उसे िवसगर-संिध कहते है। जैस-े मनः+अनुकूल=मनोनुकूल।

(क) िवसगर के पहले यिद ‘अ’ और बाद मे भी ‘अ’ अथवा वगों के तीसरे, चौथे पाचवे वणर, अथवा य, र, ल, व हो तो िवसगर का ओ हो जाता है। जैस-े मनः+अनुकूल=मनोनुकूल अधः+गित=अधोगित मनः+बल=मनोबल (ख) िवसगर से पहले अ, आ को छोडकर कोई सवर हो और बाद मे कोई सवर हो, वगर के तीसरे, चौथे, पाचवे वणर अथवा य्, र, ल, व, ह मे से कोई हो तो िवसगर का र या र् हो जाता है। जैस-े िनः+आहार=िनराहार िनः+आशा=िनराशा िनः+धन=िनधरन (ग) िवसगर से पहले कोई सवर हो और बाद मे च, छ या श हो तो िवसगर का श हो जाता है। जैस-े िनः+चल=िनशल िनः+छल=िनशछल दुः+शासन=दुशशासन (घ)िवसगर के बाद यिद त या स हो तो िवसगर स् बन जाता है। जैस-े नमः+ते=नमसते िनः+संतान=िनससंतान दुः+साहस=दुससाहस (ड) िवसगर से पहले इ, उ और बाद मे क, ख, ट, ठ, प, फ मे से कोई वणर हो तो िवसगर का ष हो जाता है। जैस-े िनः+कलंक=िनषकलंक चतुः+पाद=चतुषपाद िनः+फल=िनषफल (ड)िवसगर से पहले अ, आ हो और बाद मे कोई िभन सवर हो तो िवसगर का लोप हो जाता है। जैस-े िनः+रोग=िनरोग िनः+रस=नीरस (छ) िवसगर के बाद क, ख अथवा प, फ होने पर िवसगर मे कोई पिरवतरन नही होता। जैस-े अंतः+करण=अंतःकरण

वववववव 20 वववव समास-समास का तातपयर है ‘संिकपतीकरण’। दो या दो से अिधक शबदो से िमलकर बने हुए एक नवीन एवं साथरक शबद को समास कहते है। जैस-े ‘रसोई के िलए घर’ इसे हम ‘रसोईघर’ भी कह सकते है। सामािसक शबद- समास के िनयमो से िनिमरत शबद सामािसक शबद कहलाता है। इसे समसतपद भी कहते है। समास होने के बाद िवभिकतयो के िचह (परसगर) लुपत हो जाते है। जैसे-राजपुत। समास-िवगह- सामािसक शबदो के बीच के संबध ं को सपष करना समास-िवगह कहलाता है। जैसे-राजपुतराजा का पुत। पूवरपद और उतरपद- समास मे दो पद (शबद) होते है। पहले पद को पूवरपद और दूसरे पद को उतरपद कहते है। जैस-े गंगाजल। इसमे गंगा पूवरपद और जल उतरपद है।

वववव वव वववसमास के चार भेद है1. अवययीभाव समास। 2. ततपुरष समास। 3. दंद समास।

4. बहुवरीिह समास।

1.ववववववववव वववविजस समास का पहला पद पधान हो और वह अवयय हो उसे अवययीभाव समास कहते है। जैस-े यथामित (मित के अनुसार), आमरण (मृतयु कर) इनमे यथा और आ अवयय है। कुछ अनय उदाहरणआजीवन जीवन-भर यथासामथयर सामथयर के अनुसार यथाशिकत शिकत के अनुसार यथािविध िविध के अनुसार यथाकम कम के अनुसार भरपेट पेट भरकर हररोज रोज-रोज हाथोहाथ हाथ ही हाथ मे रातोरात रात ही रात मे पितिदन पतयेक िदन बेशक शक के िबना िनडर डर के िबना िनससंदेह संदेह के िबना हरसाल हरेक साल अवययीभाव समास की पहचान- इसमे समसत पद अवयय बन जाता है अथात समास होने के बाद उसका रप कभी नही बदलता है। इसके साथ िवभिकत िचह भी नही लगता। जैस-े ऊपर के समसत शबद है।

2.वववववववव वववविजस समास का उतरपद पधान हो और पूवरपद गौण हो उसे ततपुरष समास कहते है। जैस-े तुलसीदासकृत=तुलसी दारा कृत (रिचत) जातवय- िवगह मे जो कारक पकट हो उसी कारक वाला वह समास होता है। िवभिकतयो के नाम के अनुसार इसके छह भेद है(1) कमर ततपुरष िगरहकट िगरह को काटने वाला (2) करण ततपुरष मनचाहा मन से चाहा (3) संपदान ततपुरष रसोईघर रसोई के िलए घर (4) अपादान ततपुरष देशिनकाला देश से िनकाला (5) संबध ं ततपुरष गंगाजल गंगा का जल (6) अिधकरण ततपुरष नगरवास नगर मे वास (क) नञ ततपुरष समास- िजस समास मे पहला पद िनषेधातमक हो उसे नञ ततपुरष समास कहते है। जैस-े समसत पद समास-िवगह समसत पद समास-िवगह असभय न सभय अनंत न अंत अनािद न आिद असंभव न संभव

(व) वववववववव वववविजस समास का उतरपद पधान हो और पूवरवद व उतरपद मे िवशेषण-िवशेषय अथवा उपमान-उपमेय का संबध ं हो वह कमरधारय समास कहलाता है। जैस-े समसत पद

समास-िवगह

समसत पद

समात िवगह

चंदमुख

चंद जैसा मुख

कमलनयन

कमल के समान नयन

देहलता

देह रपी लता

दहीबडा

दही मे डू बा बडा

नीलकमल

नीला कमल

पीताबर

पीला अंबर (वसत)

सजजन

सत् (अचछा) जन

नरिसंह

नरो मे िसंह के समान

(व) वववववव वववविजस समास का पूवरपद संखयावाचक िवशेषण हो उसे िदगु समास कहते है। इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है। जैस-े समसत पद

समात-िवगह

समसत पद

समास िवगह

नवगह

नौ गहो का मसूह

दोपहर

दो पहरो का समाहार

ितलोक

तीनो लोको का समाहार

चौमासा

चार मासो का समूह

नवरात

नौ राितयो का समूह

शताबदी

सौ अबदो (सालो) का समूह

अठनी

आठ आनो का समूह

3.ववववववव वववविजस समास के दोनो पद पधान होते है तथा िवगह करने पर ‘और’, अथवा, ‘या’, एवं लगता है, वह दंद समास कहलाता है। जैस-े समसत पद समास-िवगह

समसत पद

समास-िवगह

पाप-पुणय

पाप और पुणय

अन-जल

अन और जल

सीता-राम

सीता और राम

खरा-खोटा

खरा और खोटा

ऊँच-नीच

ऊँच और नीच

राधा-कृषण

राधा और कृषण

4.ववववववववव वववविजस समास के दोनो पद अपधान हो और समसतपद के अथर के अितिरकत कोई साकेितक अथर पधान हो उसे बहुवरीिह समास कहते है। जैस-े समसत पद

समास-िवगह

दशानन

दश है आनन (मुख) िजसके अथात् रावण

नीलकंठ

नीला है कंठ िजसका अथात् िशव

सुलोचना

सुंदर है लोचन िजसके अथात् मेघनाद की पती

पीताबर

पीले है अमबर (वसत) िजसके अथात् शीकृषण

लंबोदर

लंबा है उदर (पेट) िजसका अथात् गणेशजी

दुरातमा

बुरी आतमा वाला (कोई दुष)

शेताबर

शेत है िजसके अंबर (वसत) अथात् सरसवती

संिध और समास मे अंतर- संिध वणों मे होती है। इसमे िवभिकत या शबद का लोप नही होता है। जैसेदेव+आलय=देवालय। समास दो पदो मे होता है। समास होने पर िवभिकत या शबदो का लोप भी हो जाता है। जैस-े माता-िपता=माता और िपता। कमरधारय और बहुवरीिह समास मे अंतर- कमरधारय मे समसत-पद का एक पद दूसरे का िवशेषण होता है। इसमे शबदाथर पधान होता है। जैस-े नीलकंठ=नीला कंठ। बहुवरीिह मे समसत पद के दोनो पदो मे िवशेषणिवशेषय का संबध ं नही होता अिपतु वह समसत पद ही िकसी अनय संजािद का िवशेषण होता है। इसके साथ

ही शबदाथर गौण होता है और कोई िभनाथर ही पधान हो जाता है। जैस-े नील+कंठ=नीला है कंठ िजसका अथात िशव।

वववववव 21 वव-ववववव पद-पिरचय- वाकयगत शबदो के रप और उनका पारसपिरक संबध ं बताने मे िजस पिकया की आवशयकता पडती है वह पद-पिरचय या शबदबोध कहलाता है। पिरभाषा-वाकयगत पतयेक पद (शबद) का वयाकरण की दृिष से पूणर पिरचय देना ही पद-पिरचय कहलाता है। शबद आठ पकार के होते है1.संजा- भेद, िलंग, वचन, कारक, िकया अथवा अनय शबदो से संबध ं । 2.सवरनाम- भेद, पुरष, िलंग, वचन, कारक, िकया अथवा अनय शबदो से संबध ं । िकस संजा के सथान पर आया है (यिद पता हो)। 3.िकया- भेद, िलंग, वचन, पयोग, धातु, काल, वाचय, कता और कमर से संबध ं । 4.िवशेषण- भेद, िलंग, वचन और िवशेषय की िवशेषता। 5.िकया-िवशेषण- भेद, िजस िकया की िवशेषता बताई गई हो उसके बारे मे िनदेश। 6.संबध ं बोधक- भेद, िजससे संबध ं है उसका िनदेश। 7.समुचचयबोधक- भेद, अिनवत शबद, वाकयाश या वाकय। 8.िवसमयािदबोधक- भेद अथात कौन-सा भाव सपष कर रहा है।

वववववव 22 वववव-ववववव

1.वववववववववव वववविकसी शबद-िवशेष के िलए पयुकत समानाथरक शबदो को पयायवाची शबद कहते है। यदिप पयायवाची शबद समानाथी होते है िकनतु भाव मे एक-दूसरे से िकंिचत िभन होते है। 1.अमृत- सुधा, सोम, पीयूष, अिमय। 2.असुर- राकस, दैतय, दानव, िनशाचर। 3.अिगन- आग, अनल, पावक, विह। 4.अश- घोडा, हय, तुरगं , बाजी। 5.आकाश- गगन, नभ, आसमान, वयोम, अंबर। 6.आँख- नेत, दृग, नयन, लोचन। 7.इचछा- आकाका, चाह, अिभलाषा, कामना। 8.इंद- सुरेश, देवेद, देवराज, पुरदं र। 9.ईशर- पभु, परमेशर, भगवान, परमातमा। 10.कमल- जलज, पंकज, सरोज, राजीव, अरिवनद। 11.गरमी- गीषम, ताप, िनदाघ, ऊषमा। 12.गृह- घर, िनकेतन, भवन, आलय। 13.गंगा- सुरसिर, ितपथगा, देवनदी, जाहवी, भागीरथी। 14.चंद- चाद, चंदमा, िवधु, शिश, राकेश। 15.जल- वािर, पानी, नीर, सिलल, तोय। 16.नदी- सिरता, तिटनी, तरंिगणी, िनझरिरणी।

17.पवन- वायु, समीर, हवा, अिनल। 18.पती- भाया, दारा, अधािगनी, वामा। 19.पुत- बेटा, सुत, तनय, आतमज। 20.पुती-बेटी, सुता, तनया, आतमजा। 21.पृथवी- धरा, मही, धरती, वसुधा, भूिम, वसुंधरा। 22.पवरत- शैल, नग, भूधर, पहाड। 23.िबजली- चपला, चंचला, दािमनी, सौदामनी। 24.मेघ- बादल, जलधर, पयोद, पयोधर, घन। 25.राजा- नृप, नृपित, भूपित, नरपित। 26.रजनी- राित, िनशा, यािमनी, िवभावरी। 27.सपर- साप, अिह, भुजगं , िवषधर। 28.सागर- समुद, उदिध, जलिध, वािरिध। 29.िसंह- शेर, वनराज, शादूरल, मृगराज। 30.सूयर- रिव, िदनकर, सूरज, भासकर। 31.सती- ललना, नारी, कािमनी, रमणी, मिहला। 32.िशकक- गुर, अधयापक, आचायर, उपाधयाय। 33.हाथी- कु ंजर, गज, िदप, करी, हसती।

2.वववव वववववव वव ववव वव वववव1

िजसे देखकर डर (भय) लगे

डरावना, भयानक

2

जो िसथर रहे

सथावर

3

जान देने वाली

जानदा

4

भूत-वतरमान-भिवषय को देखने (जानने ) वाले

ितकालदशी

5

जानने की इचछा रखने वाला

िजजासु

6

िजसे कमा न िकया जा सके

अकमय

7

पंदह िदन मे एक बार होने वाला

पािकक

8

अचछे चिरत वाला

सचचिरत

9

आजा का पालन करने वाला

आजाकारी

10 रोगी की िचिकतसा करने वाला

िचिकतसक

11 सतय बोलने वाला

सतयवादी

12 दूसरो पर उपकार करने वाला

उपकारी

13 िजसे कभी बुढापा न आये

अजर

14 दया करने वाला

दयालु

15 िजसका आकार न हो

िनराकार

16 जो आँखो के सामने हो

पतयक

17 जहा पहुँचा न जा सके

अगम, अगमय

18 िजसे बहुत कम जान हो, थोडा जानने वाला

अलपज

19 मास मे एक बार आने वाला

मािसक

20 िजसके कोई संतान न हो

िनससंतान

21 जो कभी न मरे

अमर

22 िजसका आचरण अचछा न हो

दुराचारी

23 िजसका कोई मूलय न हो

अमूलय

24 जो वन मे घूमता हो

वनचर

25 जो इस लोक से बाहर की बात हो

अलौिकक

26 जो इस लोक की बात हो

लौिकक

27 िजसके नीचे रेखा हो

रेखािकत

ं पिशम से हो 28 िजसका संबध

पाशातय

29 जो िसथर रहे

सथावर

30 दुखात नाटक

तासदी

31 जो कमा करने के योगय हो

कमय

32 िहंसा करने वाला

िहंसक

33 िहत चाहने वाला

िहतैषी

34 हाथ से िलखा हुआ

हसतिलिखत

35 सब कुछ जानने वाला

सवरज

36 जो सवयं पैदा हुआ हो

सवयंभू

37 जो शरण मे आया हो

शरणागत

38 िजसका वणरन न िकया जा सके

वणरनातीत

39 फल-फूल खाने वाला

शाकाहारी

40 िजसकी पती मर गई हो

िवधुर

41 िजसका पित मर गया हो

िवधवा

42 सौतेली मा

िवमाता

43 वयाकरण जाननेवाला

वैयाकरण

44 रचना करने वाला

रचियता

45 खून से रँगा हुआ

रकतरंिजत

46 अतयंत सुनदर सती

रपसी

47 कीितरमान पुरष

यशसवी

48 कम खचर करने वाला

िमतवययी

49

मछली की तरह आँखो वाली

मीनाकी

50

मयूर की तरह आँखो वाली

मयूराकी

51

बचचो के िलए काम की वसतु

बालोपयोगी

52

िजसकी बहुत अिधक चचा हो

बहुचिचरत

53

िजस सती के कभी संतान न हुई हो

वंधया (बाझ)

54

फेन से भरा हुआ

फेिनल

55

िपय बोलने वाली सती

िपयंवदा

56

िजसकी उपमा न हो

िनरपम

57

जो थोडी देर पहले पैदा हुआ हो

नवजात

58

िजसका कोई आधार न हो

िनराधार

59

नगर मे वास करने वाला

नागिरक

60

रात मे घूमने वाला

िनशाचर

61

ईशर पर िवशास न रखने वाला

नािसतक

62

मास न खाने वाला

िनरािमष

63

िबलकुल बरबाद हो गया हो

धवसत

64

िजसकी धमर मे िनषा हो

धमरिनष

65

देखने योगय

दशरनीय

66

बहुत तेज चलने वाला

दुतगामी

67

जो िकसी पक मे न हो

तटसथ

68

ततततव को जानने वाला

ततततवज

69

तप करने वाला

तपसवी

70

जो जनम से अंधा हो

जनमाध

71

िजसने इंिदयो को जीत िलया हो

िजतेिदय

72

िचंता मे डू बा हुआ

िचंितत

73

जो बहुत समय कर ठहरे

िचरसथायी

74

िजसकी चार भुजाएँ हो

चतुभुरज

75

हाथ मे चक धारण करनेवाला

चकपािण

76

िजससे घृणा की जाए

घृिणत

77

िजसे गुपत रखा जाए

गोपनीय

78

गिणत का जाता

गिणतज

79

आकाश को चूमने वाला

गगनचुंबी

80

जो टुकडे-टुकडे हो गया हो

खंिडत

818 आकाश मे उडने वाला

नभचर

82

तेज बुिदवाला

कुशागबुिद

83

कलपना से परे हो

कलपनातीत

84

जो उपकार मानता है

कृतज

85

िकसी की हँसी उडाना

उपहास

86

ऊपर कहा हुआ

उपयुरकत

87

ऊपर िलखा गया

उपिरिलिखत

88

िजस पर उपकार िकया गया हो

उपकृत

89

इितहास का जाता

अितहासज

90

आलोचना करने वाला

आलोचक

91

ईशर मे आसथा रखने वाला

आिसतक

92

िबना वेतन का

अवैतिनक

93

जो कहा न जा सके

अकथनीय

94

जो िगना न जा सके

अगिणत

95

िजसका कोई शतु ही न जनमा हो

अजातशतु

96

िजसके समान कोई दूसरा न हो

अिदतीय

97

जो पिरिचत न हो

अपिरिचत

98

िजसकी कोई उपमा न हो

अनुपम

3.िवपरीताथरक (िवलोम शबद) शबद

िवलोम

शबद

िवलोम

शबद

िवलोम

अथ

इित

आिवभाव

ितरोभाव

आकषरण

िवकषरण

आिमष

िनरािमष

अिभज

अनिभज

आजादी

गुलामी

अनुकूल

पितकूल

आदर

शुषक

अनुराग

िवराग

आहार

िनराहार

अलप

अिधक

अिनवायर

वैकिलपक

अमृत

िवष

अगम

सुगम

अिभमान

नमता

आकाश

पाताल

आशा

िनराशा

अथर

अनथर

अलपायु

दीघायु

अनुगह

िवगह

अपमान

सममान

आिशत

िनरािशत

अंधकार

पकाश

अनुज

अगज

अरिच

रिच

आिद

अंत

आदान

पदान

आरंभ

अंत

आय

वयय

अवाचीन

पाचीन

अवनित

उनित

कटु

मधुर

अवनी

अंबर

िकया

पितिकया

कृतज

कृतघ

आदर

अनादर

कडवा

मीठा

आलोक

अंधकार

कुद

शानत

उदय

असत

कय

िवकय

आयात

िनयात

कमर

िनषकमर

अनुपिसथत

उपिसथत

िखलना

मुरझाना

आलसय

सफूितर

खुशी

दुख, गम

आयर

अनायर

गहरा

उथला

अितवृिष

अनावृिष

गुर

लघु

आिद

अनािद

जीवन

मरण

इचछा

अिनचछा

गुण

दोष

इष

अिनष

गरीब

अमीर

इिचछत

अिनिचछत

घर

बाहर

इहलोक

परलोक

चर

अचर

उपकार

अपकार

छू त

अछू त

उदार

अनुदार

जल

थल

उतीणर

अनुतीणर

जड

चेतन

उधार

नकद

जीवन

मरण

उतथान

पतन

जंगम

सथावर

उतकषर

अपकषर

उतर

दिकण

जिटल

सरस

गुपत

पकट

एक

अनेक

तुचछ

महान

ऐसा

वैसा

िदन

रात

देव

दानव

दुराचारी

सदाचारी

मानवता

दानवता

धमर

अधमर

महातमा

दुरातमा

धीर

अधीर

मान

अपमान

धूप

छाव

िमत

शतु

नूतन

पुरातन

मधुर

कटु

नकली

असली

िमथया

सतय

िनमाण

िवनाश

मौिखक

िलिखत

आिसतक

नािसतक

मोक

बंधन

िनकट

दूर

रकक

भकक

िनंदा

सतुित

पितवरता

कुलटा

राजा

रंक

पाप

पुणय

राग

देष

पलय

सृिष

राित

िदवस

पिवत

अपिवत

लाभ

हािन

िवधवा

सधवा

पेम

घृणा

िवजय

पराजय

पश

उतर

पूणर

अपूणर

वसंत

पतझर

परतंत

सवतंत

िवरोध

समथरन

बाढ

सूखा

शूर

कायर

बंधन

मुिकत

शयन

जागरण

बुराई

भलाई

शीत

उषण

भाव

अभाव

सवगर

नरक

मंगल

अमंगल

सौभागय

दुभागय

सवीकृत

असवीकृत

शुकल

कृषण

िहत

अिहत

साकर

िनरकर

सवदेश

िवदेश

हषर

शोक

िहंसा

अिहंसा

सवाधीन

पराधीन

किणक

शाशत

साधु

असाधु

जान

अजान

सुजन

दुजरन

शुभ

अशुभ

सुपुत

कुपुत

सुमित

कुमित

सरस

नीरस

सच

झूठ

साकार

िनराकार

शम

िवशाम

सतुित

िनंदा

िवशुद

दूिषत

सजीव

िनजीव

िवषम

सम

सुर

असुर

िवदान

मूखर

4.ववववववव वववववव वववव वववव वववव1.असत- जो हिथयार हाथ से फेककर चलाया जाए। जैस-े बाण। शसत- जो हिथयार हाथ मे पकडे-पकडे चलाया जाए। जैस-े कृपाण। 2.अलौिकक- जो इस जगत मे किठनाई से पापत हो। लोकोतर। असवाभािवक- जो मानव सवभाव के िवपरीत हो। असाधारण- सासािरक होकर भी अिधकता से न िमले। िवशेष। 3. अमूलय- जो चीज मूलय देकर भी पापत न हो सके। बहुमूलय- िजस चीज का बहुत मूलय देना पडा। 4. आनंद- खुशी का सथायी और गंभीर भाव। आहाद- किणक एवं तीवर आनंद। उललास- सुख-पािपत की अलपकािलक िकया, उमंग। पसनता-साधारण आनंद का भाव। 5.ईषया- दूसरे की उनित को सहन न कर सकना। डाह-ईषयायुकत जलन। देष- शतुता का भाव। सपधा- दूसरो की उनित देखकर सवयं उनित करने का पयास करना। 6.अपराध- सामािजक एवं सरकारी कानून का उललंघन। पाप- नैितक एवं धािमरक िनयमो को तोडना। 7.अनुनय-िकसी बात पर सहमत होने की पाथरना। िवनय- अनुशासन एवं िशषतापूणर िनवेदन। आवेदन-योगयतानुसार िकसी पद के िलए कथन दारा पसतुत होना। पाथरना- िकसी कायर-िसिद के िलए िवनमतापूणर कथन। 8.आजा-बडो का छोटो को कुछ करने के िलए आदेश। अनुमित-पाथरना करने पर बडो दारा दी गई सहमित। 9.इचछा- िकसी वसतु को चाहना। उतकंठा- पतीकायुकत पािपत की तीवर इचछा। आशा-पािपत की संभावना के साथ इचछा का समनवय। सपृहा-उतकृष इचछा। 10.सुंदर- आकषरक वसतु। चार- पिवत और सुंदर वसतु। रिचर-सुरिच जागृत करने वाली सुंदर वसतु। मनोहर- मन को लुभाने वाली वसतु। 11.िमत- समवयसक, जो अपने पित पयार रखता हो। सखा-साथ रहने वाला समवयसक। सगा-आतमीयता रखने वाला। सुहदय-सुंदर हदय वाला, िजसका वयवहार अचछा हो। 12.अंतःकरण- मन, िचत, बुिद, और अहंकार की समिष। िचत- समृित, िवसमृित, सवप आिद गुणधारी िचत।

मन- सुख-दुख की अनुभूित करने वाला। 13.मिहला- कुलीन घराने की सती। पती- अपनी िववािहत सती। सती- नारी जाित की बोधक। 14.नमसते- समान अवसथा वालो को अिभवादन। नमसकार- समान अवसथा वालो को अिभवादन। पणाम- अपने से बडो को अिभवादन। अिभवादन- सममाननीय वयिकत को हाथ जोडना। 15.अनुज- छोटा भाई। अगज- बडा भाई। भाई- छोटे-बडे दोनो के िलए। 16.सवागत- िकसी के आगमन पर सममान। अिभनंदन- अपने से बडो का िविधवत सममान। 17.अहंकार- अपने गुणो पर घमंड करना। 17.अहंकार- अपने गुणो पर घमंड करना। अिभमान- अपने को बडा और दूसरे को छोटा समझना। दंभ- अयोगय होते हुए भी अिभमान करना। 18.मंतणा- गोपनीय रप से परामशर करना। परामशर- पूणरतया िकसी िवषय पर िवचार-िवमशर कर मत पकट करना।

5.ववववववववव वववव1. अनल=आग अिनल=हवा, वायु 2.उपकार=भलाई, भला करना अपकार=बुराई, बुरा करना 3.अन=अनाज अनय=दूसरा 4.अणु=कण अनु=पशात 5.ओर=तरफ और=तथा 6.अिसत=काला अिशत=खाया हुआ 7.अपेका=तुलना मे उपेका=िनरादर, लापरवाही 8.कल=सुंदर, पुरजा काल=समय 9.अंदर=भीतर अंतर=भेद 10.अंक=गोद अंग=देह का भाग 11.कुल=वंश कूल=िकनारा 12.अश=घोडा

अशम=पतथर 13.अिल=भमर आली=सखी 14.कृिम=कीट कृिष=खेती 15.अपचार=अपराध उपचार=इलाज 16.अनयाय=गैर-इंसाफी अनयानय=दूसरे-दूसरे 17.कृित=रचना कृती=िनपुण, पिरशमी 18.आमरण=मृतयुपयरत ं आभरण=गहना 19.अवसान=अंत आसान=सरल 20.किल=किलयुग, झगडा कली=अधिखला फूल 21.इतर=दूसरा इत=सुगंिधत दवय 22.कम=िसलिसला कमर=काम 23.परष=कठोर पुरष=आदमी 24.कुट=घर,िकला कूट=पवरत 25.कुच=सतन कूच=पसथान 26.पसाद=कृपा पासादा=महल 27.कुजन=दुजरन कूजन=पिकयो का कलरव 28.गत=बीता हुआ गित=चाल 29.पानी=जल पािण=हाथ 30.गुर=उपाय गुर=िशकक, भारी 31.गह=सूयर,चंद गृह=घर 32.पकार=तरह पाकार=िकला, घेरा 33.चरण=पैर चारण=भाट 34.िचर=पुराना चीर=वसत 35.फन=साप का फन फन=कला 36.छत=छाया कत=कितय,शिकत

37.ढीठ=दुष,िजदी डीठ=दृिष 38.बदन=देह वदन=मुख 30.तरिण=सूयर तरणी=नौका 40.तरंग=लहर तुरगं =घोडा 41.भवन=घर भुवन=संसार 42.तपत=गरम तृपत=संतुष 43.िदन=िदवस दीन=दिरद 44.भीित=भय िभित=दीवार 45.दशा=हालत िदशा=तरफ 46.दव=तरल पदार अथ दवय=धन 47.भाषण=वयाखयान भीषण=भयंकर 48.धरा=पृथवी धारा=पवाह 49.नय=नीित नव=नया 55.भरण=भरना भमण=घूमना 50.िनवाण=मोक िनमाण=बनाना 51.िनजरर=देवता िनझरर=झरना 52.मत=राय मित=बुिद 53.नेक=अचछा नेकु=तिनक 54.पथ=राह पथय=रोगी का आहार 55.मद=मसती मद=मिदरा 56.पिरणाम=फल पिरमाण=वजन 57.मिण=रत फणी=सपर 58.मिलन=मैला मलान=मुरझाया हुआ 59.मातृ=माता

मात=केवल 60.रीित=तरीका रीता=खाली 61.राज=शासन राज=रहसय 62.लिलत=सुंदर लिलता=गोपी 63.लकय=उदेशय लक=लाख 64.वक=छाती वृक=पेड 65.वसन=वसत वयसन=नशा, आदत 66.वासना=कुितसत िवचार बास=गंध 67.वसतु=चीज वासतु=मकान 68.िवजन=सुनसान वयजन=पंखा 60.शंकर=िशव संकर=िमिशत 70.िहय=हदय हय=घोडा 71.शर=बाण सर=तालाब 72.शम=संयम सम=बराबर 73.चकवाक=चकवा चकवात=बवंडर 74.शूर=वीर सूर=अंधा 75.सुिध=समरण सुधी=बुिदमान 76.अभेद=अंतर नही अभेद=न टू टने योगय 77.संघ=समुदाय संग=साथ 78.सगर=अधयाय सवगर=एक लोक 79.पणय=पेम पिरणय=िववाह 80.समथर=सकम सामथयर=शिकत 81.किटबंध=कमरबंध किटबद=तैयार 82.काित=िवदोह

कलाित=थकावट 83.इंिदरा=लकमी इंदा=इंदाणी

6.ववववववववव वववव1.अकर= नष न होने वाला, वणर, ईशर, िशव। 2.अथर= धन, ऐशयर, पयोजन, हेतु। 3.आराम= बाग, िवशाम, रोग का दूर होना। 4.कर= हाथ, िकरण, टैकस, हाथी की सूँड। 5.काल= समय, मृतयु, यमराज। 6.काम= कायर, पेशा, धंधा, वासना, कामदेव। 7.गुण= कौशल, शील, रससी, सवभाव, धनुष की डोरी। 8.घन= बादल, भारी, हथौडा, घना। 9.जलज= कमल, मोती, मछली, चंदमा, शंख। 10.तात= िपता, भाई, बडा, पूजय, पयारा, िमत। 11.दल= समूह, सेना, पता, िहससा, पक, भाग, िचडी। 12.नग= पवरत, वृक, नगीना। 13.पयोधर= बादल, सतन, पवरत, गना। 14.फल= लाभ, मेवा, नतीजा, भाले की नोक। 15.बाल= बालक, केश, बाला, दानेयुकत डंठल। 16.मधु= शहद, मिदरा, चैत मास, एक दैतय, वसंत। 17.राग= पेम, लाल रंग, संगीत की धविन। 18.रािश= समूह, मेष, ककर, वृिशक आिद रािशया। 19.लकय= िनशान, उदेशय। 20.वणर= अकर, रंग, बाहण आिद जाितया। 21.सारंग= मोर, सपर, मेघ, िहरन, पपीहा, राजहंस, हाथी, कोयल, कामदेव, िसह, धनुष भौरा, मधुमकखी, कमल। 22.सर= अमृत, दूध, पानी, गंगा, मधु, पृथवी, तालाब। 23.केत= देह, खेत, तीथर, सदावरत बाटने का सथान। 24.िशव= भागयशाली, महादेव, शृगाल, देव, मंगल। 25.हिर= हाथी, िवषणु, इंद, पहाड, िसंह, घोडा, सपर, वानर, मेढक, यमराज, बहा, िशव, कोयल, िकरण, हंस।

7.ववव-वववववववव वव वववववववपशु

बोली

पशु

बोली

पशु

बोली

ऊँट

बलबलाना

कोयल

कूकना

गाय

रँभाना

िचिडया

चहचहाना

भैस डकराना (रँभाना) पपीहा

बकरी

िमिमयाना

मोर

कुहकना

घोडा

िहनिहनाना

तोता

टै-टै करना

हाथी

िचघाडना

कौआ

काव-काव करना

साप

फुफकारना

शेर

दहाडना

सारस

के-के करना

िटटहरी

टी-टी करना

कुता

भौकना

मकखी

िभनिभनाना

8.ववव ववव वववववववव वव ववववव वववववववव वव वववववववव िजहा

लपलपाना

दात

िकटिकटाना

हदय

धडकना

पैर

पटकना

अशु

छलछलाना

घडी

िटक-िटक करना

पंख

फडफडाना

तारे

जगमगाना

नौका

डगमगाना

मेघ

गरजना

9.ववव ववववववव ववववववववववअशुद

शुद

अशुद

शुद

अशुद

शुद

अशुद

शुद

अगामी

आगामी

िलखायी

िलखाई

सपतािहक

सापतािहक

अलोिकक

अलौिकक

संसािरक

सासािरक

कयूँ

कयो

आधीन

अधीन

हसताकेप

हसतकेप

वयोहार

वयवहार

बरात

बारात

उपनयािसक

औपनयािसक

कतीय

कितय

दुिनया

दुिनया

ितथी

ितिथ

कालीदास

कािलदास

पूरती

पूितर

अितथी

अितिथ

नीती

नीित

गृहणी

गृिहणी

पिरिसथत

पिरिसथित

आिशरवाद

आशीवाद

िनिरकण

िनरीकण

िबमारी

बीमारी

पित

पती

शतािबद

शताबदी

लडायी

लडाई

सथाई

सथायी

शीमित

शीमती

सािमगी

सामगी

वािपस

वापस

पदिशरनी

पदशरनी

ऊतथान

उतथान

दुसरा

दूसरा

साधू

साधु

रेणू

रेणु

नुपुर

नूपुर

अनुिदत

अनूिदत

जादु

जादू

बृज

बज

पथक

पृथक

इितहािसक

ऐितहािसक

दाइतव

दाियतव

सेिनक

सैिनक

सैना

सेना

घबडाना

घबराना

शाप

शाप

बनसपित

वनसपित

बन

वन

िवना

िबना

बसंत

वसंत

अमावशया

अमावसया

पशाद

पसाद

हंिसया

हँिसया

गंवार

गँवार

असोक

अशोक

िनसवाथर

िनःसवाथर

दुसकर

दुषकर

मुलयवान

मूलयवान

िसरीमान

शीमान

महाअन

महान

नवम्

नवम

कात

छात

छमा

कमा

आदरश

आदशर

षषम्

षष

पंतु

परंतु

पीका

परीका

मरयादा

मयादा

दुदशा

दुदरशा

किवती

कवियती

पमातमा

परमातमा

घिनष

घिनष

राजिभषेक

राजयािभषेक

िपयास

पयास

िवतीत

वयतीत

कृपया

कृपा

वयिकतक

वैयिकतक

मािसक

मानिसक

समवाद

संवाद

संपित

संपित

िवषेश

िवशेष

शाशन

शासन

दुःख

दुख

मूलतयः

मूलतः

िपओ

िपयो

हुये

हुए

लीये

िलए

सहास

साहस

रामायन

रामायण

चरन

चरण

रनभूिम

रणभूिम

रसायण

रसायन

पान

पाण

मरन

मरण

कलयान

कलयाण

पडता

पडता

ढेर

ढेर

झाडू

झाडू

मेढक

मेढक

शेष

शेष

षषी

षषी

िनषा

िनषा

सृिष

सृिष

इष

इष

सवासथ

सवासथय

पाडे

पाडेय

सवतंता

सवतंतता

उपलक

उपलकय

महतव

महतततव

आलाद

आहाद

उजवल

उजजवल

वयसक

वयसक

वववववव 23 ववववव-ववववव िवराम-िचह- ‘िवराम’ शबद का अथर है ‘रकना’। जब हम अपने भावो को भाषा के दारा वयकत करते है तब एक भाव की अिभवयिकत के बाद कुछ देर रकते है, यह रकना ही िवराम कहलाता है। इस िवराम को पकट करने हेतु िजन कुछ िचहो का पयोग िकया जाता है, िवराम-िचह कहलाते है। वे इस पकार है1.अलप िवराम (,)- पढते अथवा बोलते समय बहुत थोडा रकने के िलए अलप िवराम-िचह का पयोग िकया जाता है। जैस-े सीता, गीता और लकमी। यह सुंदर सथल, जो आप देख रहे है, बापू की समािध है। हािनलाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश िविध हाथ। 2.अधर िवराम (;)- जहा अलप िवराम की अपेका कुछ जयादा देर तक रकना हो वहा इस अधर-िवराम िचह का पयोग िकया जाता है। जैस-े सूयोदय हो गया; अंधकार न जाने कहा लुपत हो गया। 3.पूणर िवराम (।)- जहा वाकय पूणर होता है वहा पूणर िवराम-िचह का पयोग िकया जाता है। जैस-े मोहन पुसतक पढ रहा है। वह फूल तोडता है। 4.िवसमयािदबोधक िचह (!)- िवसमय, हषर, शोक, घृणा आिद भावो को दशाने वाले शबद के बाद अथवा कभीकभी ऐसे वाकयाश या वाकय के अंत मे भी िवसमयािदबोधक िचह का पयोग िकया जाता है। जैस-े हाय ! वह बेचारा मारा गया। वह तो अतयंत सुशील था ! बडा अफसोस है ! 5.पशवाचक िचह (?)- पशवाचक वाकयो के अंत मे पशवाचक िचह का पयोग िकया जाता है। जैस-े िकधर चले ? तुम कहा रहते हो ? 6.कोषक ()- इसका पयोग पद (शबद) का अथर पकट करने हेत,ु कम-बोध और नाटक या एकाकी मे अिभनय के भावो को वयकत करने के िलए िकया जाता है। जैस-े िनरंतर (लगातार) वयायाम करते रहने से देह (शरीर) सवसथ रहता है। िवश के महान राषटो मे (1) अमेिरका, (2) रस, (3) चीन, (4) िबटेन आिद है। नल-(िखन होकर) ओर मेरे दुभागय ! तूने दमयंती को मेरे साथ बाधकर उसे भी जीवन-भर कष िदया। 7.िनदेशक िचह (-)- इसका पयोग िवषय-िवभाग संबध ं ी पतयेक शीषरक के आगे, वाकयो, वाकयाशो अथवा पदो के मधय िवचार अथवा भाव को िविशष रप से वयकत करने हेतु, उदाहरण अथवा जैसे के बाद, उदरण के अंत मे, लेखक के नाम के पूवर और कथोपकथन मे नाम के आगे िकया जाता है। जैस-े समसत जीव-जंतुघोडा, ऊँट, बैल, कोयल, िचिडया सभी वयाकुल थे। तुम सो रहे हो- अचछा, सोओ। दारपाल-भगवन ! एक दुबला-पतला बाहण दार पर खडा है। 8.उदरण िचह (‘‘ ’’)- जब िकसी अनय की उिकत को िबना िकसी पिरवतरन के जयो-का-तयो रखा जाता है, तब वहा इस िचह का पयोग िकया जाता है। इसके पूवर अलप िवराम-िचह लगता है। जैस-े नेताजी ने कहा था, ‘‘तुम हमे खून दो, हम तुमहे आजादी देगे।’’, ‘‘ ‘रामचिरत मानस’ तुलसी का अमर कावय गंथ है।’’ 9.आदेश िचह (:- )- िकसी िवषय को कम से िलखना हो तो िवषय-कम वयकत करने से पूवर इसका पयोग िकया जाता है। जैस-े सवरनाम के पमुख पाच भेद है :(1) पुरषवाचक, (2) िनशयवाचक, (3) अिनशयवाचक, (4) संबध ं वाचक, (5) पशवाचक।

10.योजक िचह (-)- समसत िकए हुए शबदो मे िजस िचह का पयोग िकया जाता है, वह योजक िचह कहलाता है। जैस-े माता-िपता, दाल-भात, सुख-दुख, पाप-पुणय। 11.लाघव िचह (0)- िकसी बडे शबद को संकेप मे िलखने के िलए उस शबद का पथम अकर िलखकर उसके आगे शूनय लगा देते है। जैस-े पंिडत=पं0, डॉकटर=डॉ0, पोफेसर=पो0।

वववववव 24 ववववव-वववववव वाकय- एक िवचार को पूणरता से पकट करने वाला शबद-समूह वाकय कहलाता है। जैस-े 1.शयाम दूध पी रहा है। 2.मै भागते-भागते थक गया। 3.यह िकतना सुंदर उपवन है। 4.ओह ! आज तो गरमी के कारण पाण िनकले जा रहे है। 5.वह मेहनत करता तो पास हो जाता। ये सभी मुख से िनकलने वाली साथरक धविनयो के समूह है। अतः ये वाकय है। वाकय भाषा का चरम अवयव है।

ववववव-ववववाकय के पमुख दो खंड है1. उदेशय। 2. िवधेय। 1. उदेशय- िजसके िवषय मे कुछ कहा जाता है उसे सूचिक करने वाले शबद को उदेशय कहते है। जैस-े 1.अजुरन ने जयदथ को मारा। 2.कुता भौक रहा है। 3.तोता डाल पर बैठा है। इनमे अजुरन ने , कुता, तोता उदेशय है; इनके िवषय मे कुछ कहा गया है। अथवा यो कह सकते है िक वाकय मे जो कता हो उसे उदेशय कह सकते है कयोिक िकसी िकया को करने के कारण वही मुखय होता है। 2.िवधेय- उदेशय के िवषय मे जो कुछ कहा जाता है, अथवा उदेशय (कता) जो कुछ कायर करता है वह सब िवधेय कहलाता है। जैस-े 1.अजुरन ने जयदथ को मारा। 2.कुता भौक रहा है। 3.तोता डाल पर बैठा है। इनमे ‘जयदथ को मारा’, ‘भौक रहा है’, ‘डाल पर बैठा है’ िवधेय है कयोिक अजुरन ने, कुता, तोता,-इन उदेशयो (कताओं) के कायों के िवषय मे कमशः मारा, भौक रहा है, बैठा है, ये िवधान िकए गए है, अतः इनहे िवधेय कहते है। उदेशय का िवसतार- कई बार वाकय मे उसका पिरचय देने वाले अनय शबद भी साथ आए होते है। ये अनय शबद उदेशय का िवसतार कहलाते है। जैस-े 1.सुंदर पकी डाल पर बैठा है। 2.काला साप पेड के नीचे बैठा है। इनमे सुंदर और काला शबद उदेशय का िवसतार है। उदेशय मे िनमिलिखत शबद-भेदो का पयोग होता है(1) संजा- घोडा भागता है। (2) सवरनाम- वह जाता है। (3) िवशेषण- िवदान की सवरत पूजा होती है। (4) िकया-िवशेषण- (िजसका) भीतर-बाहर एक-सा हो। (5) वाकयाश- झूठ बोलना पाप है।

वाकय के साधारण उदेशय मे िवशेषणािद जोडकर उसका िवसतार करते है। उदेशय का िवसतार नीचे िलखे शबदो के दारा पकट होता है(1) िवशेषण से- अचछा बालक आजा का पालन करता है। (2) संबध ं कारक से- दशरको की भीड ने उसे घेर िलया। (3) वाकयाश से- काम सीखा हुआ कारीगर किठनाई से िमलता है। िवधेय का िवसतार- मूल िवधेय को पूणर करने के िलए िजन शबदो का पयोग िकया जाता है वे िवधेय का िवसतार कहलाते है। जैस-े वह अपने पैन से िलखता है। इसमे अपने िवधेय का िवसतार है। कमर का िवसतार- इसी तरह कमर का िवसतार हो सकता है। जैसे-िमत, अचछी पुसतके पढो। इसमे अचछी कमर का िवसतार है। िकया का िवसतार- इसी तरह िकया का भी िवसतार हो सकता है। जैसे-शेय मन लगाकर पढता है। मन लगाकर िकया का िवसतार है।

ववववव-वववरचना के अनुसार वाकय के िनमिलिखत भेद है1. साधारण वाकय। 2. संयुकत वाकय। 3. िमिशत वाकय।

1.वववववव ववववविजस वाकय मे केवल एक ही उदेशय (कता) और एक ही समािपका िकया हो, वह साधारण वाकय कहलाता है। जैस-े 1.बचचा दूध पीता है। 2.कमल गेद से खेलता है। 3.मृदुला पुसतक पढ रही है। िवशेष-इसमे कता के साथ उसके िवसतारक िवशेषण और िकया के साथ िवसतारक सिहत कमर एवं िकयािवशेषण आ सकते है। जैस-े अचछा बचचा मीठा दूध अचछी तरह पीता है। यह भी साधारण वाकय है।

2.ववववववव वववववदो अथवा दो से अिधक साधारण वाकय जब सामानािधकरण समुचचयबोधको जैस-े (पर, िकनतु, और, या आिद) से जुडे होते है, तो वे संयुकत वाकय कहलाते है। ये चार पकार के होते है। (1) संयोजक- जब एक साधारण वाकय दूसरे साधारण या िमिशत वाकय से संयोजक अवयय दारा जुडा होता है। जैस-े गीता गई और सीता आई। (2) िवभाजक- जब साधारण अथवा िमश वाकयो का परसपर भेद या िवरोध का संबध ं रहता है। जैस-े वह मेहनत तो बहुत करता है पर फल नही िमलता। (3) िवकलपसूचक- जब दो बातो मे से िकसी एक को सवीकार करना होता है। जैस-े या तो उसे मै अखाडे मे पछाडूँगा या अखाडे मे उतरना ही छोड दूँगा। (4) पिरणामबोधक- जब एक साधारण वाकय दसूरे साधारण या िमिशत वाकय का पिरणाम होता है। जैस-े आज मुझे बहुत काम है इसिलए मै तुमहारे पास नही आ सकूँगा।

3.ववववववव वववववजब िकसी िवषय पर पूणर िवचार पकट करने के िलए कई साधारण वाकयो को िमलाकर एक वाकय की रचना करनी पडती है तब ऐसे रिचत वाकय ही िमिशत वाकय कहलाते है। िवशेष- (1) इन वाकयो मे एक मुखय या पधान उपवाकय और एक अथवा अिधक आिशत उपवाकय होते है जो समुचचयबोधक अवयय से जुडे होते है। (2) मुखय उपवाकय की पुिष, समथरन, सपषता अथवा िवसतार हेतु ही आिशत वाकय आते है। आिशत वाकय तीन पकार के होते है(1) संजा उपवाकय। (2) िवशेषण उपवाकय।

(3) िकया-िवशेषण उपवाकय। 1.संजा उपवाकय- जब आिशत उपवाकय िकसी संजा अथवा सवरनाम के सथान पर आता है तब वह संजा उपवाकय कहलाता है। जैस-े वह चाहता है िक मै यहा कभी न आऊँ। यहा िक मै कभी न आऊँ, यह संजा उपवाकय है। 2.िवशेषण- जो आिशत उपवाकय मुखय उपवाकय की संजा शबद अथवा सवरनाम शबद की िवशेषता बतलाता है वह िवशेषण उपवाकय कहलाता है। जैस-े जो घडी मेज पर रखी है वह मुझे पुरसकारसवरप िमली है। यहा जो घडी मेज पर रखी है यह िवशेषण उपवाकय है। 3.िकया-िवशेषण उपवाकय- जब आिशत उपवाकय पधान उपवाकय की िकया की िवशेषता बतलाता है तब वह िकया-िवशेषण उपवाकय कहलाता है। जैस-े जब वह मेरे पास आया तब मै सो रहा था। यहा पर जब वह मेरे पास आया यह िकया-िवशेषण उपवाकय है।

ववववव-वववववववववाकय के अथर मे िकसी तरह का पिरवतरन िकए िबना उसे एक पकार के वाकय से दूसरे पकार के वाकय मे पिरवतरन करना वाकय-पिरवतरन कहलाता है। 1.साधारण वाकयो का संयुकत वाकयो मे पिरवतरनसाधारण वाकय संयुकत वाकय 1.मै दूध पीकर सो गया। मैने दूध िपया और सो गया। 2.वह पढने के अलावा अखबार भी बेचता है। वह पढता भी है और अखबार भी बेचता है 3.मैने घर पहुँचकर सब बचचो को खेलते हएु देखा। मैने घर पहुँचकर देखा िक सब बचचे खेल रहे थे। 4.सवासथय ठीक न होने से मै काशी नही जा सका। मेरा सवासथय ठीक नही था इसिलए मै काशी नही जा सका। 5.सवेरे तेज वषा होने के कारण मै दफतर देर से पहुँचा। सवेरे तेज वषा हो रही थी इसिलए मै दफतर देर से पहुँचा। 2.संयुकत वाकयो का साधारण वाकयो मे पिरवतरनसंयुकत वाकय साधारण वाकय 1.िपताजी असवसथ है इसिलए मुझे जाना ही पडेगा। िपताजी के असवसथ होने के कारण मुझे जाना ही पडेगा। 2.उसने कहा और मै मान गया। उसके कहने से मै मान गया। 3.वह केवल उपनयासकार ही नही अिपतु अचछा वकता भी है। वह उपनयासकार के अितिरकत अचछा वकता भी है। 4.लू चल रही थी इसिलए मै घर से बाहर नही िनकल सका। लू चलने के कारण मै घर से बाहर नही िनकल सका। 5.गाडर ने सीटी दी और टेन चल पडी। गाडर के सीटी देने पर टेन चल पडी। 3.साधारण वाकयो का िमिशत वाकयो मे पिरवतरनसाधारण वाकय िमिशत वाकय 1.हरिसंगार को देखते ही मुझे गीता की याद आ जाती है। जब मै हरिसंगार की ओर देखता हूँ तब मुझे गीता की याद आ जाती है। 2.राषट के िलए मर िमटने वाला वयिकत सचचा राषटभकत है। वह वयिकत सचचा राषटभकत है जो राषट के िलए मर िमटे। 3.पैसे के िबना इंसान कुछ नही कर सकता। यिद इंसान के पास पैसा नही है तो वह कुछ नही कर सकता। 4.आधी रात होते-होते मैने काम करना बंद कर िदया। जयोही आधी रात हुई तयोही मैने काम करना बंद कर िदया। 4.िमिशत वाकयो का साधारण वाकयो मे पिरवतरनिमिशत वाकय साधारण वाकय 1.जो संतोषी होते है वे सदैव सुखी रहते है संतोषी सदैव सुखी रहते है।

2.यिद तुम नही पढोगे तो परीका मे सफल नही होगे। न पढने की दशा मे तुम परीका मे सफल नही होगे। 3.तुम नही जानते िक वह कौन है ? तुम उसे नही जानते। 4.जब जेबकतरे ने मुझे देखा तो वह भाग गया। मुझे देखकर जेबकतरा भाग गया। 5.जो िवदान है, उसका सवरत आदर होता है िवदानो का सवरत आदर होता है।

ववववव-वववववववववाकय मे आए हुए शबद अथवा वाकय-खंडो को अलग-अलग करके उनका पारसपिरक संबध ं बताना वाकयिवशलेषण कहलाता है। साधारण वाकयो का िवशलेषण 1.हमारा राषट समृदशाली है। 2.हमे िनयिमत रप से िवदालय आना चािहए। 3.अशोक, सोहन का बडा पुत, पुसतकालय मे अचछी पुसतके छाट रहा है। उदेशय िवधेय वाकय उदेशय उदेशय का िकया कमर कमर का पूरक िवधेय कमाक कता िवसतार िवसतार का िवसतार 1. राषट हमारा है - - समृद 2. हमे - आना िवदालय - शाली िनयिमत चािहए रप से 3. अशोक सोहन का छाट रहा पुसतके अचछी पुसतकालय बडा पुत है मे िमिशत वाकय का िवशलेषण1.जो वयिकत जैसा होता है वह दूसरो को भी वैसा ही समझता है। 2.जब-जब धमर की कित होती है तब-तब ईशर का अवतार होता है। 3.मालूम होता है िक आज वषा होगी। 4.जो संतोषी होत है वे सदैव सुखी रहते है। 5.दाशरिनक कहते है िक जीवन पानी का बुलबुला है। संयुकत वाकय का िवशलेषण1.तेज वषा हो रही थी इसिलए परसो मै तुमहारे घर नही आ सका। 2.मै तुमहारी राह देखता रहा पर तुम नही आए। 3.अपनी पगित करो और दूसरो का िहत भी करो तथा सवाथर मे न िहचको।

वववव वव वववववव ववववव वव ववववववअथानुसार वाकय के िनमिलिखत आठ भेद है1.िवधानाथरक वाकय। 2.िनषेधाथरक वाकय। 3.आजाथरक वाकय। 4.पशाथरक वाकय। 5.इचछाथरक वाकय। 6.संदेथरक वाकय। 7.संकेताथरक वाकय। 8.िवसमयबोधक वाकय। 1.िवधानाथरक वाकय-िजन वाकयो मे िकया के करने या होने का सामानय कथन हो। जैस-े मै कल िदलली जाऊँगा। पृथवी गोल है। 2.िनषेधाथरक वाकय- िजस वाकय से िकसी बात के न होने का बोध हो। जैस-े मै िकसी से लडाई मोल नही लेना चाहता। 3.आजाथरक वाकय- िजस वाकय से आजा उपदेश अथवा आदेश देने का बोध हो। जैस-े शीघ जाओ वरना गाडी

छू ट जाएगी। आप जा सकते है। 4.पशाथरक वाकय- िजस वाकय मे पश िकया जाए। जैसे-वह कौन है उसका नाम कया है। 5.इचछाथरक वाकय- िजस वाकय से इचछा या आशा के भाव का बोध हो। जैस-े दीघायु हो। धनवान हो। 6.संदेहाथरक वाकय- िजस वाकय से संदेह का बोध हो। जैस-े शायद आज वषा हो। अब तक िपताजी जा चुके होगे। 7.संकेताथरक वाकय- िजस वाकय से संकेत का बोध हो। जैस-े यिद तुम कनयाकुमारी चलो तो मै भी चलूँ। 8.िवसमयबोधक वाकय-िजस वाकय से िवसमय के भाव पकट हो। जैस-े अहा ! कैसा सुहावना मौसम है।

वववववव 25 वववववव ववववववव वव ववववव ववववव 1.वचन-संबध ं ी अशुिदयाअशुद शुद 1.पािकसतान ने गोले और तोपो से आकमण िकया। पािकसतान ने गोलो और तोपो से आकमण िकया। 2.उसने अनेको गंथ िलखे। उसने अनेक गंथ िलखे। 3.महाभारत अठारह िदनो तक चलता रहा। महाभारत अठारह िदन तक चलता रहा। 4.तेरी बात सुनते-सुनते कान पक गए। तेरी बाते सुनते-सुनते कान पक गए। 5.पेडो पर तोता बैठा है। पेड पर तोता बैठा है। 2.िलंग संबध ं ी अशुिदयाअशुद शुद 1.उसने संतोष का सास ली। उसने संतोष की सास ली। 2.सिवता ने जोर से हँस िदया। सिवता जोर से हँस दी। 3.मुझे बहुत आनंद आती है। मुझे बहुत आनंद आता है। 4.वह धीमी सवर मे बोला। वह धीमे सवर मे बोला। 5.राम और सीता वन को गई। राम और सीता वन को गए। 3.िवभिकत-संबध ं ी अशुिदयाअशुद शुद 1.मै यह काम नही िकया हूँ। मैने यह काम नही िकया है। 2.मै पुसतक को पढता हूँ। मै पुसतक पढता हूँ। 3.हमने इस िवषय को िवचार िकया। हमने इस िवषय पर िवचार िकया 4.आठ बजने को दस िमनट है। आठ बजने मे दस िमनट है। 5.वह देर मे सोकर उठता है। वह देर से सोकर उठता है। 4.संजा संबध ं ी अशुिदयाअशुद शुद 1.मै रिववार के िदन तुमहारे घर आऊँगा। मै रिववार को तुमहारे घर आऊँगा। 2.कुता रेकता है। कुता भौकता है। 3.मुझे सफल होने की िनराशा है। मुझे सफल होने की आशा नही है। 4.गले मे गुलामी की बेिडया पड गई। पैरो मे गुलामी की बेिडया पड गई। 5.सवरनाम की अशुिदयाअशुद शुद 1.गीता आई और कहा। गीता आई और उसने कहा। 2.मैने तेरे को िकतना समझाया। मैने तुझे िकतना समझाया। 3.वह कया जाने िक मै कैसे जीिवत हूँ। वह कया जाने िक मै कैसे जी रहा हूँ। 6.िवशेषण-संबध ं ी अशुिदया-

6.िवशेषण-संबध ं ी अशुिदयाअशुद शुद 1.िकसी और लडके को बुलाओ। िकसी दूसरे लडके को बुलाओ। 2.िसंह बडा बीभतस होता है। िसंह बडा भयानक होता है। 3.उसे भारी दुख हुआ। उसे बहुत दुख हुआ। 4.सब लोग अपना काम करो। सब लोग अपना-अपना काम करो। 7.िकया-संबध ं ी अशुिदयाअशुद शुद 1.कया यह संभव हो सकता है ? कया यह संभव है ? 2.मै दशरन देने आया था। मै दशरन करने आया था। 3.वह पढना मागता है। वह पढना चाहता है। 4.बस तुम इतने रठ उठे बस, तुम इतने मे रठ गए। 5.तुम कया काम करता है ? तुम कया काम करते हो ? 8.मुहावरे-संबध ं ी अशुिदयाअशुद शुद 1.युग की माग का यह बीडा कौन चबाता है युग की माग का यह बीडा कौन उठाता है। 2.वह शयाम पर बरस गया। वह शयाम पर बरस पडा। 3.उसकी अकल चकर खा गई। उसकी अकल चकरा गई। 4.उस पर घडो पानी िगर गया। उस पर घडो पानी पड गया। 9.िकया-िवशेषण-संबध ं ी अशुिदयाअशुद शुद 1.वह लगभग दौड रहा था। वह दौड रहा था। 2.सारी रात भर मै जागता रहा। मै सारी रात जागता रहा। 3.तुम बडा आगे बढ गया। तुम बहुत आगे बढ गए. 4.इस पवरतीय केत मे सवरसव शाित है। इस पवरतीय केत मे सवरत शाित है।

वववववव 26 ववववववव वव ववववववववववव मुहावरा- कोई भी ऐसा वाकयाश जो अपने साधारण अथर को छोडकर िकसी िवशेष अथर को वयकत करे उसे मुहावरा कहते है। लोकोिकत- लोकोिकतया लोक-अनुभव से बनती है। िकसी समाज ने जो कुछ अपने लंबे अनुभव से सीखा है उसे एक वाकय मे बाध िदया है। ऐसे वाकयो को ही लोकोिकत कहते है। इसे कहावत, जनशुित आिद भी कहते है। मुहावरा और लोकोिकत मे अंतर- मुहावरा वाकयाश है और इसका सवतंत रप से पयोग नही िकया जा सकता। लोकोिकत संपूणर वाकय है और इसका पयोग सवतंत रप से िकया जा सकता है। जैस-े ‘होश उड जाना’ मुहावरा है। ‘बकरे की मा कब तक खैर मनाएगी’ लोकोिकत है। कुछ पचिलत मुहावरे

1.ववव वववववव ववववववव 1.अंग छू टा- (कसम खाना) मै अंग छू कर कहता हूँ साहब, मैने पाजेब नही देखी। 2.अंग-अंग मुसकाना-(बहुत पसन होना)- आज उसका अंग-अंग मुसकरा रहा था। 3.अंग-अंग टू टना-(सारे बदन मे ददर होना)-इस जवर ने तो मेरा अंग-अंग तोडकर रख िदया। 4.अंग-अंग ढीला होना-(बहुत थक जाना)- तुमहारे साथ कल चलूँगा। आज तो मेरा अंग-अंग ढीला हो रहा है।

2.वववव-वववववव ववववववव1.अकल का दुशमन-(मूखर)- वह तो िनरा अकल का दुशमन िनकला। 2.अकल चकराना-(कुछ समझ मे न आना)-पश-पत देखते ही मेरी अकल चकरा गई। 3.अकल के पीछे लठ िलए िफरना (समझाने पर भी न मानना)- तुम तो सदैव अकल के पीछे लठ िलए िफरते हो। 4.अकल के घोडे दौडाना-(तरह-तरह के िवचार करना)- बडे-बडे वैजािनको ने अकल के घोडे दौडाए, तब कही वे अणुबम बना सके।

3.ववव-वववववव ववववववव1.आँख िदखाना-(गुससे से देखना)- जो हमे आँख िदखाएगा, हम उसकी आँखे फोड देगे। 2.आँखो मे िगरना-(सममानरिहत होना)- कुरसी की होड ने जनता सरकार को जनता की आँखो मे िगरा िदया। 3.आँखो मे धूल झोकना-(धोखा देना)- िशवाजी मुगल पहरेदारो की आँखो मे धूल झोककर बंदीगृह से बाहर िनकल गए। 4.आँख चुराना-(िछपना)- आजकल वह मुझसे आँखे चुराता िफरता है। 5.आँख मारना-(इशारा करना)-गवाह मेरे भाई का िमत िनकला, उसने उसे आँख मारी, अनयथा वह मेरे िवरद गवाही दे देता। 6.आँख तरसना-(देखने के लालाियत होना)- तुमहे देखने के िलए तो मेरी आँखे तरस गई। 7.आँख फेर लेना-(पितकूल होना)- उसने आजकल मेरी ओर से आँखे फेर ली है। 8.आँख िबछाना-(पतीका करना)- लोकनायक जयपकाश नारायण िजधर जाते थे उधर ही जनता उनके िलए आँखे िबछाए खडी होती थी। 9.आँखे सेकना-(सुंदर वसतु को देखते रहना)- आँख सेकते रहोगे या कुछ करोगे भी 10.आँखे चार होना-(पेम होना,आमना-सामना होना)- आँखे चार होते ही वह िखडकी पर से हट गई। 11.आँखो का तारा-(अितिपय)-आशीष अपनी मा की आँखो का तारा है। 12.आँख उठाना-(देखने का साहस करना)- अब वह कभी भी मेरे सामने आँख नही उठा सकेगा। 13.आँख खुलना-(होश आना)- जब संबिं धयो ने उसकी सारी संपित हडप ली तब उसकी आँखे खुली। 14.आँख लगना-(नीद आना अथवा वयार होना)- बडी मुिशकल से अब उसकी आँख लगी है। आजकल आँख लगते देर नही होती। 15.आँखो पर परदा पडना-(लोभ के कारण सचाई न दीखना)- जो दूसरो को ठगा करते है, उनकी आँखो पर परदा पडा हुआ है। इसका फल उनहे अवशय िमलेगा। 16.आँखो का काटा-(अिपय वयिकत)- अपनी कुपवृितयो के कारण राजन िपताजी की आँखो का काटा बन गया। 17.आँखो मे समाना-(िदल मे बस जाना)- िगरधर मीरा की आँखो मे समा गया।

4.ववववव-वववववव ववव ववववववव1.कलेजे पर हाथ रखना-(अपने िदल से पूछना)- अपने कलेजे पर हाथ रखकर कहो िक कया तुमने पैन नही तोडा। 2.कलेजा जलना-(तीवर असंतोष होना)- उसकी बाते सुनकर मेरा कलेजा जल उठा। 3.कलेजा ठंडा होना-(संतोष हो जाना)- डाकुओं को पकडा हुआ देखकर गाव वालो का कलेजा ठंढा हो गया। 4.कलेजा थामना-(जी कडा करना)- अपने एकमात युवा पुत की मृतयु पर माता-िपता कलेजा थामकर रह गए। 5.कलेजे पर पतथर रखना-(दुख मे भी धीरज रखना)- उस बेचारे की कया कहते हो, उसने तो कलेजे पर पतथर रख िलया है। 6.कलेजे पर साप लोटना-(ईषया से जलना)- शीराम के राजयािभषेक का समाचार सुनकर दासी मंथरा के कलेजे पर साप लोटने लगा।

5.ववव-वववववव ववव ववववववव1.कान भरना-(चुगली करना)- अपने सािथयो के िवरद अधयापक के कान भरने वाले िवदाथी अचछे नही होते। 2.कान कतरना-(बहुत चतुर होना)- वह तो अभी से बडे-बडो के कान कतरता है। 3.कान का कचचा-(सुनते ही िकसी बात पर िवशास करना)- जो मािलक कान के कचचे होते है वे भले कमरचािरयो पर भी िवशास नही करते। 4.कान पर जूँ तक न रेगना-(कुछ असर न होना)-मा ने गौरव को बहुत समझाया, िकनतु उसके कान पर जूँ तक नही रेगी। 5.कानोकान खबर न होना-(िबलकुल पता न चलना)-सोने के ये िबसकुट ले जाओ, िकसी को कानोकान खबर न हो। 6.नाक-संबध ं ी कुछ मुहावरे- 1.नाक मे दम करना-(बहुत तंग करना)- आतंकवािदयो ने सरकार की नाक मे दम कर रखा है। 2.नाक रखना-(मान रखना)- सच पूछो तो उसने सच कहकर मेरी नाक रख ली। 3.नाक रगडना-(दीनता िदखाना)-िगरहकट ने िसपाही के सामने खूब नाक रगडी, पर उसने उसे छोडा नही। 4.नाक पर मकखी न बैठने देना-(अपने पर आँच न आने देना)-िकतनी ही मुसीबते उठाई, पर उसने नाक पर मकखी न बैठने दी। 5.नाक कटना-(पितषा नष होना)- अरे भैया आजकल की औलाद तो खानदान की नाक काटकर रख देती है।

7.वववव-वववववव ववव ववववववव1.मुँह की खाना-(हार मानना)-पडोसी के घर के मामले मे दखल देकर हरदारी को मुँह की खानी पडी। 2.मुँह मे पानी भर आना-(िदल ललचाना)- लडडुओं का नाम सुनते ही पंिडतजी के मुँह मे पानी भर आया। 3.मुँह खून लगना-(िरशत लेने की आदत पड जाना)- उसके मुँह खून लगा है, िबना िलए वह काम नही करेगा। 4.मुँह िछपाना-(लिजजत होना)- मुँह िछपाने से काम नही बनेगा, कुछ करके भी िदखाओ। 5.मुँह रखना-(मान रखना)-मै तुमहारा मुँह रखने के िलए ही पमोद के पास गया था, अनयथा मुझे कया आवशयकता थी। 6.मुँहतोड जवाब देना-(कडा उतर देना)- शयाम मुँहतोड जवाब सुनकर िफर कुछ नही बोला। 7.मुँह पर कािलख पोतना-(कलंक लगाना)-बेटा तुमहारे कुकमों ने मेरे मुँह पर कािलख पोत दी है। 8.मुँह उतरना-(उदास होना)-आज तुमहारा मुँह कयो उतरा हुआ है। 9.मुँह ताकना-(दूसरे पर आिशत होना)-अब गेहूँ के िलए हमे अमेिरका का मुँह नही ताकना पडेगा। 10.मुँह बंद करना-(चुप कर देना)-आजकल िरशत ने बडे-बडे अफसरो का मुँह बंद कर रखा है।

8.वववव-वववववव ववववववव1.दात पीसना-(बहुत जयादा गुससा करना)- भला मुझ पर दात कयो पीसते हो ? शीशा तो शंकर ने तोडा है। 2.दात खटे करना-(बुरी तरह हराना)- भारतीय सैिनको ने पािकसतानी सैिनको के दात खटे कर िदए। 3.दात काटी रोटी-(घिनषता, पकी िमतता)- कभी राम और शयाम मे दात काटी रोटी थी पर आज एक-दूसरे के जानी दुशमन है। 9.गरदन-संबध ं ी मुहावरे- 1.गरदन झुकाना-(लिजजत होना)- मेरा सामना होते ही उसकी गरदन झुक गई। 2.गरदन पर सवार होना-(पीछे पडना)- मेरी गरदन पर सवार होने से तुमहारा काम नही बनने वाला है। 3.गरदन पर छुरी फेरना-(अतयाचार करना)-उस बेचारे की गरदन पर छुरी फेरते तुमहे शरम नही आती, भगवान इसके िलए तुमहे कभी कमा नही करेगे।

10.ववव-वववववव ववववववव1.गला घोटना-(अतयाचार करना)- जो सरकार गरीबो का गला घोटती है वह देर तक नही िटक सकती। 2.गला फँसाना-(बंधन मे पडना)- दूसरो के मामले मे गला फँसाने से कुछ हाथ नही आएगा।

3.गले मढना-(जबरदसती िकसी को कोई काम सौपना)- इस बुद ू को मेरे गले मढकर लालाजी ने तो मुझे तंग कर डाला है। 4.गले का हार-(बहुत पयारा)- तुम तो उसके गले का हार हो, भला वह तुमहारे काम को कयो मना करने लगा।

11.ववव-वववववव ववववववव1.िसर पर भूत सवार होना-(धुन लगाना)-तुमहारे िसर पर तो हर समय भूत सवार रहता है। 2.िसर पर मौत खेलना-(मृतयु समीप होना)- िवभीषण ने रावण को संबोिधत करते हुए कहा, ‘भैया ! मुझे कया डरा रहे हो ? तुमहारे िसर पर तो मौत खेल रही है‘। 3.िसर पर खून सवार होना-(मरने -मारने को तैयार होना)- अरे, बदमाश की कया बात करते हो ? उसके िसर पर तो हर समय खून सवार रहता है। 4.िसर-धड की बाजी लगाना-(पाणो की भी परवाह न करना)- भारतीय वीर देश की रका के िलए िसर-धड की बाजी लगा देते है। 5.िसर नीचा करना-(लजा जाना)-मुझे देखते ही उसने िसर नीचा कर िलया।

12.ववव-वववववव ववववववव1.हाथ खाली होना-(रपया-पैसा न होना)- जुआ खेलने के कारण राजा नल का हाथ खाली हो गया था। 2.हाथ खीचना-(साथ न देना)-मुसीबत के समय नकली िमत हाथ खीच लेते है। 3.हाथ पे हाथ धरकर बैठना-(िनकममा होना)- उदमी कभी भी हाथ पर हाथ धरकर नही बैठते है, वे तो कुछ करके ही िदखाते है। 4.हाथो के तोते उडना-(दुख से हैरान होना)- भाई के िनधन का समाचार पाते ही उसके हाथो के तोते उड गए। 5.हाथोहाथ-(बहुत जलदी)-यह काम हाथोहाथ हो जाना चािहए। 6.हाथ मलते रह जाना-(पछताना)- जो िबना सोचे-समझे काम शुर करते है वे अंत मे हाथ मलते रह जाते है। 7.हाथ साफ करना-(चुरा लेना)- ओह ! िकसी ने मेरी जेब पर हाथ साफ कर िदया। 8.हाथ-पाव मारना-(पयास करना)- हाथ-पाव मारने वाला वयिकत अंत मे अवशय सफलता पापत करता है। 9.हाथ डालना-(शुर करना)- िकसी भी काम मे हाथ डालने से पूवर उसके अचछे या बुरे फल पर िवचार कर लेना चािहए।

13.ववव-वववववव ववववववव1.हवा लगना-(असर पडना)-आजकल भारतीयो को भी पिशम की हवा लग चुकी है। 2.हवा से बाते करना-(बहुत तेज दौडना)- राणा पताप ने जयो ही लगाम िहलाई, चेतक हवा से बाते करने लगा। 3.हवाई िकले बनाना-(झूठी कलपनाएँ करना)- हवाई िकले ही बनाते रहोगे या कुछ करोगे भी ? 4.हवा हो जाना-(गायब हो जाना)- देखते-ही-देखते मेरी साइिकल न जाने कहा हवा हो गई ?

14.वववव-वववववव ववववववव1.पानी-पानी होना-(लिजजत होना)-जयोही सोहन ने माताजी के पसर मे हाथ डाला िक ऊपर से माताजी आ गई। बस, उनहे देखते ही वह पानी-पानी हो गया। 2.पानी मे आग लगाना-(शाित भंग कर देना)-तुमने तो सदा पानी मे आग लगाने का ही काम िकया है। 3.पानी फेर देना-(िनराश कर देना)-उसने तो मेरी आशाओं पर पानी पेर िदया। 4.पानी भरना-(तुचछ लगना)-तुमने तो जीवन-भर पानी ही भरा है।

15.ववव वववव-वववव ववववववव1.अँगूठा िदखाना-(देने से साफ इनकार कर देना)-सेठ रामलाल ने धमरशाला के िलए पाच हजार रपए दान देने को कहा था, िकनतु जब मैनेजर उनसे मागने गया तो उनहोने अँगूठा िदखा िदया। 2.अगर-मगर करना-(टालमटोल करना)-अगर-मगर करने से अब काम चलने वाला नही है। बंधु ! 3.अंगारे बरसाना-(अतयंत गुससे से देखना)-अिभमनयु वध की सूचना पाते ही अजुरन के नेत अंगारे बरसाने लगे। 4.आडे हाथो लेना-(अचछी तरह काबू करना)-शीकृषण ने कंस को आडे हाथो िलया। 5.आकाश से बाते करना-(बहुत ऊँचा होना)-टी.वी.टावर तो आकाश से बाते करती है। 6.ईद का चाद-(बहुत कम दीखना)-िमत आजकल तो तुम ईद का चाद हो गए हो, कहा रहते हो ? 7.उँगली पर नचाना-(वश मे करना)-आजकल की औरते अपने पितयो को उँगिलयो पर नचाती है। 8.कलई खुलना-(रहसय पकट हो जाना)-उसने तो तुमहारी कलई खोलकर रख दी। 9.काम तमाम करना-(मार देना)- रानी लकमीबाई ने पीछा करने वाले दोनो अंगेजो का काम तमाम कर िदया। 10.कुते की मौत करना-(बुरी तरह से मरना)-राषटदोही सदा कुते की मौत मरते है। 11.कोलू का बैल-(िनरंतर काम मे लगे रहना)-कोलू का बैल बनकर भी लोग आज भरपेट भोजन नही पा सकते। 12.खाक छानना-(दर-दर भटकना)-खाक छानने से तो अचछा है एक जगह जमकर काम करो। 13.गडे मुरदे उखाडना-(िपछली बातो को याद करना)-गडे मुरदे उखाडने से तो अचछा है िक अब हम चुप हो जाएँ। 14.गुलछरे उडाना-(मौज करना)-आजकल तुम तो दूसरे के माल पर गुलछरे उडा रहे हो। 15.घास खोदना-(फुजूल समय िबताना)-सारी उम तुमने घास ही खोदी है। 16.चंपत होना-(भाग जाना)-चोर पुिलस को देखते ही चंपत हो गए।

ववववववव ववव ववव वववव ववववववववववववववव 1.

भाषा, वयाकरण और बोली

2.

वणर-िवचार

3.

शबद-िवचार

4.

पद-िवचार

5.

संजा के िवकारक ततव

6.

वचन

7.

कारक

8.

सवरनाम

9.

िवशेषण

10.

िकया

11.

काल

12.

वाचय

13.

िकया-िवशेषण

14.

संबध ं बोधक अवयय

15.

समुचयबोधक अवयय

16.

िवसमयािदबोधक अवयय

17.

शबद-रचना

18.

पतयय

19.

संिध

20.

समास

21.

पद-पिरचय

22.

शबद-जान

23.

िवराम-िचह

24.

वाकय-पकरण

25.

अशुद वाकयो के शुद रप

26.

मुहावरे और लोकोिकतया

27.

संवाद लेखन (1) मा और बेटे मे वातालाप (2) ीीता और लव का वातालाप (3) दो पडोिसयो का वातालाप (4) पना और बनवीर का वातालाप

मुखरय पृष

Related Documents

Grammer
June 2020 22
Grammer
May 2020 24
Grammer
May 2020 21
Grammer
October 2019 31
Grammer
June 2020 68
Grammer
July 2020 18