Be Ti

  • June 2020
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  • Words: 8,177
  • Pages: 78
सुबह िकस िलए होती है कभी पूछा है तुमने अपने आप से ? सूरज उगते ही सारे कामो मे जागृित ला देता है . रात के सारे रके हुए काम िफर से शुर हो जाते है . यह वैसा समय है जब चारो ओर सुंदर-सुंदर फूल और पते िदखाई देने लगते है . पकी उडते हुए और जहा बफर है वह िपघलती हुई. िफर ऐसे समय मे आलसय कयो? कभी थके हुए पकी िमल जाएं तो मुझे बताना. कभी बादल रके हुए िदखाई दे तो बताना. िजस िदन सागर की लहरो मे शाित आ जाएगी उस िदन समझ लो, सारा जीवन मूिछरत हो जाएगा. मुझे चािहए तुमहारे दोनो हाथ जो यह महसूस करते हो िक उनके पास दस अंगुिलया भी है और उनहे संचािलत करने वाला एक सिकय िदमाग भी. अपने सारे साधनो का उपयोग करने को पेिरत करती है सूरज की रोशनी. अब तुम इससे िकतनी अिधक पेरणा लेती हो, यह तुम पर िनभरर है. तुमहे गंभीर होना चािहए उस नमक की तरह जो अपने एक छोटे से टुकडे भी अपनी ताकत िदखला देता है.

5

चमकते हुए सूरज का पकाश जब दपरण पर पडता है तो वह उसे इतनी तेजी से लौटाता है िक उस तेज से आंखे बंद कर लेनी पडती है. हमारा मिसतषक एक दपरण है. िजतना जान इसे िदया जाता है वह दस ू रो को भी उतना ही देने के कािबल हो जाता है. यह िशका केवल तुमहारे िलए ही नही है, कल दस ू रो के भी काम आएगी. इस िशका का हू – ब – हू इसतेमाल नही होता, बिलक इसके सहारे जो तुमने जाना है उससे िमलती – जुलती चीजो से संबिं धत समसयाओं का िनवारण भी होता है. जैसे एक बार तैरना सीख जाने पर िकसी भी जल मे तैर सकती हो या पेड उगाने की िविध जान लेने पर कही भी उसे उगा पाओगी. लेिकन भिमत और अधूरी िशका से कुछ बडा कर पाने की लालसा, अचछी िशका के मागर मे बाधक है. धैयर ही समय को

जीतता है और अजान को भी. िजस तरह से सूई मे तुम धागे को धीरे-धीरे िपरोती हो वैसे ही समय चुपचाप पास से गुजरता जाता है. उसे पहचानो और उसका उपयोग करो.

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जब बहुत सारे िवचार िमलकर कलातमक रप से सघन हो जाते है वही जान है, वही कला है.अचछे िवचारो का मन मे पैदा होना एक शुभ बात है. यह जान का उतरोतर िवकास है. समय के अनुसार हमे अपनी सोच को बदलते रहना चािहए एवं पुरानी रिढय़ो को यािन पुराने िवचारो को जो उस काल मे अचछे समझे गये होगे बदल डालना चािहए. हमेशा नये िवचार जो अचछी समझ से उतपन हुए है, वतरमान मे अिधक उपयोगी होगे.

7

िशका तुमहारे िदमाग मे घुला हुआ अिजरत धन है िजसे कोई भी तुमसे नही छीन सकता और देने पर भी इतनी आसानी से ले नही सकता. इसिलए तुम समझ सकती हो िक इसे पाने के बाद तुमहारे मन मे िकतनी अिधक सुरका की भावना आ जाती है. दस ू री बात यह है िक इसे िजतना भी बाटा जाए िफर भी यह कम नही होता है. उलटे अपने भरा-पूरा होने का सुख हमे देता रहता है.

8

ं उड जाता है और शोर मचाने लगता है वैसे ही जैसे एक कौआ थोडी सी धमक से ही तुरत मन थोडा सा भी डरा नही िक ढेर सारे िवचारो की बाढ लाकर हमे अशात कर देता है. िफर घंटो हम परेशान रहते है और परेशान और डरे हुए मन से िकसी भी चीज का सृजन नही हो सकता, ना ही िकसी तरह की पढाई. िजस समय तुम सबसे अिधक खुश होती हो, वही सृजन का शेष समय है उसी वकत सब कुछ अचछी तरह से पढा जा सकता है. परीका के अंितम िदनो मे बेहद दबाव मे आकर पढी गई चीजे अकसर िकसी काम की नही होती. बिलक जो हमारी सामथयर है यानी िजन चीजो को हम अचछी तरह से िलख सकते थे, उन पर भी यह दबाव की िसथित बुरा असर डालती है.

9

तुमहे अपने िदमाग पर उसी तरह से दबाव देना चािहए जैसा िक एक नाव संतुिलत ढंग से नदी के पानी पर दबाव देती है. जरा सी भी भार वहन की कमता से अिधक नाव मे बढा , वह डू बने लगती है. अत: धीरे-धीरे सोचते हुए, हलके सपशर से, अपनी एकागता की नाव पर,आगे बढते रहना चािहए.

10

रात मे हमारी गितिविधया िसमट कर छोटी हो जाती है. लैप के पकाश मे िकताबे सामने होती है और अकेली तुम. एक पेम चल रहा होता है- दोनो के बीच. िकताबे िकसी तरह से भी तुम मे पवेश चाहती है और तुम भी उनहे हृदय मे बैठा लेना चाहती हो. कुछ डू ब रहा होता है तुमहारे अंदर मे हर पल. इस वकत थोडी सी भी आवाज तुमहे बहुत कष पहंच ु ाती है. जानाजरन अिधक संतुष करता है हमे. लगता है िवशाल से िवशाल चीजे हममे आशय ले रही है. हम िसथर कयो न हो िफर भी कमरे से बाहर िनकल कर िकतना कुछ देख पा रहे है. हर बार अपने मे आतमिवशास बढता हुआ और लगता है िक यह सुबह कभी आए नही. िवषयो को अचछी तरह से पढऩा हमे इसी तरह की संतुिष देता है.

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कभी-कभी तुम देखोगी िक कुछ पुसतके तुमहे ऊबाऊ लगने लगती है कयोिक वे काफी पहले की िलखी हुई होती है और वे उस समय की भाषा एवं उस समय के मनुषयो के िलए िलखी गयी होती है. िफर भी इनका बहुत सारा िहससा हमारे काम का हो सकता है, चाहे वह भाषा के अनुसार रिचकर न हो लेिकन मेहनत करके उसे पढा जाना चािहए. वैसे आधुिनक काल मे समय का महतव बहुत अिधक बढ गया है. नये साधनो की वजह से थोडे से समय मे ही हम बहुत सारे काम कर पाते है. पहले की तरह कही आने-जाने मे या कोई उतर के पाने के िलए हमे अिधक इंतजार नही करना पडता. इसिलए एक समय मे पहले से बहुत अिधक कायर िकये जा सकते है. जब – जब इस तरह के नये – नये साधन जनम लेते है, हमे काम करने के ढंग मे भी पिरवतरन करना पडता है. जो जमाना सामने है, िकताबे उसी के आधार पर िलखी जाती है. इसिलए समय के बदलने के साथ इसका नया या पुराना होना सवाभािवक है.

12 हर चीज मे एक कला छुपी होती है. साधारण पतथर भी अचछी तरह से तराशे जाने के बाद अचछी कलाकृित बन जाता है. िजस पाठ को कलातमक तरीके से पढाया जाता है वह बेहद रिचकर होकर हमेशा हमारी यादो मे रहता है. कहा जाए तो पढाई भी एक कला है और िजस िशका को इसके कलातमक पक को िनखारे िबना समझाया जाता है वह अधूरी ही रहती है. पतयेक िशका को कलातमक रप से समझ लेने के बाद इसके इसतेमाल का दायरा काफी बढ जाता है. इससे छातो मे मौिलक ढंग से सोचने की पवृित आती है और पढाई के साथ-साथ वयिकततव का िवकास भी होता रहता है.

13

ये िकताबे सीिढय़ा है और इनको पार करते ही एक नया मनुषय खडा िमलता है. हर बार िकताबे पढऩा खतम करने के बाद तुम एक मनुषय से िमल चुकी होती हो. अनिगनत िकताबे और अनिगनत मनुषय जब तुममे िवदमान हो जाते है, तुम एक नये वयिकततव की सवािमनी हो जाती हो.

14

तुमने देखा होगा िक कौए बहुत अिधक शोर मचाते है, उससे कम चील और िगद चुपचाप आते है. वे भोजन का सबसे बडा िहससा खाकर उड जाते है, जबिक कौए बहुत थोडा पापत करते है. इस तरह से सब कुछ शाित से चुपचाप हािसल कर लेना चािहए. तुमहे कया िमला, तुमहारी कया चाह थी इसकी जरा सी भी भनक दस ू रो को नही लगनी चािहए. यही सबसे अचछी योजना है.

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सारा जल एक जैसा ही होता है लेिकन वह अलग-अलग तरह के कामो मे लाया जाता है जैसे पीने , सफाई करने आिद. इसी तरह से िवदा एक होने पर भी से उसे अलग-अलग तरह से उपयोग मे लाया जाता है. इसिलए िवदा का संचय उिचत है, कयोिक िजतना अिधक इसका संचय होगा, उतनी ही इसकी उपयोिगता बढती जाएगी.

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हमारी आंखे उपकरण मात ही है. जो भी हमे िदखाई देता है उसका िचत िदमाग से ही उभर कर बाहर आता है. केवल आंखे कोई काम की नही िबना िकसी िदमाग के. जैसा लोहा साधारण वसतु है लेिकन जब िदमाग का सहारा लेकर इसे िविभन पयोगो मे लाया जाता है तो यह अतयंत उपयोगी वसतु बन जाता है.इसिलए जो चीज साधारण भी है लेिकन बुिद के जिरये वे भी िविभन उपयोगो मे लाई जा सकती है. इस पृथवी पर कोई भी वसतु बेकार नही, सब कुछ काम का है, इसका एक उदाहरण चणडीगढ का रॉक गाडरन भी है.

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िबना सोचे समझे चील कभी झपटा नही मारती है. काफी पहले, ऊंचाई पर ही वह ठान लेती है िक उसे कया पापत करना है. और अपने दृढ इरादे से, तेजी से उतरती है जमीन पर. इसी तरह से तुमहे भी काफी पहले से तय कर लेना होता है िक कौन से िवषयो को लेकर पढऩा है तुमहे. जो अचछे छात है वे अपनी रिच को अचछी तरह से जानते है एवं उनहे िवषयो को चुनते समय दस ू रो पर आिशत नही रहना पडता. लेिकन जो मधयम िकसम के छात है उनहे दस ू रो के िनणरय पर भी आिशत रहना होता है. चील नही पूछती िकसी से भी िक िकसे छोडा जाए और िकसे खाया जाए. सब कुछ िनिशत होता है. सभी चीजो मे जोिखम है, सफलता या असफलता का भय है. लेिकन जब भी कदम बढाए जाएं तो ऐसा लगे िक वे अपने पूणर संकलप के साथ बढे है, िजसे झपटना है, उसकी ओर तेजी से बढ रहे है. तभी सफलता िमलेगी.

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अकसर एक योगय िशकक सारे बचचो पर अपनी नजर रखता है तथा उनके चेहरो के भाव पढक़र उनकी समसयाओं का समाधान खुद भी कर देता है. लेिकन जो छात खुलते नही या पढाई मे जरा भी िदलचसपी नही िदखाते-उनके िलए कुछ भी कर पाना मुिशकल होता है. िशकक का अकसर होनकार छातो पर या वैसे छात जो सचमुच कुछ जानने मे अिधक रिच रखते है, उन पर िवशेष पेम होता है. जो छात ककाओं मे िकसी न िकसी माधयम से सबका धयान खीचते रहना चाहते है वे सिकय छात होते है. उनहे ही अकसर िवदालय की अनय गितिविधया जैसे मॉनीटर, नाटक-मंचन, खेलकूद या ऐसे ही दस ू रे कामो मे अवसर िदया जाता है.जो छात लीक से हटकर अपने िशकक से िवषयो के बारे मे नये-नये पश पूछता है, समझो वही सबसे होनहार एवम् िजजासु छात है. उनके नये पश कभी-कभी िशकको को भी मुिशकल मे डाल देते है.

19 मै मानता हूं िक इतनी लंबी पढाई तुमहे एक कठोर बंधन मे बाध देती है, लेिकन ऐसा सचमुच होता नही है. इस कठोरता का अंितम पिरणाम बेहद सुखद और तृिपत देने वाला होता है. जब पेड पर पहली बार फल आते है, वे उसके बोझ से झुक जाते है, लगता है जैसे उनहे तकलीफ हो रही है लेिकन धीरे-धीरे वे िसथर होकर अिधक से अिधक फल देने लगते है. इस दुिनया मे सारे काम इसी तरह से िकये जाते है और वे हमे लाभकारी नतीजो तक ले जाते है. एक िपता अपने बचचो को जमीन पर सथािपत करना चाहता है तािक उनकी अनुपिसथित मे भी वे सुदृढ बने रहे.

20

कमल का फूल कीचड से िनकलकर भी पानी के ऊपर अपने आप को िखला देता है और लोग मुगध होकर उसे देखते रहते है. िवपरीत पिरिसथितया हमेशा हमे चारो ओर से घेरे रहती है, िफर भी हमे उभर कर बाहर आना होता है.

21

ये वणरमाला के अकर अपना कोई अथर नही रखते, लेिकन जब इनहे आपस मे िमलाया जाता है तो शबद बन जाते है और वे भी अनेको अथों वाले. िफर इन शबदो को जोडक़र कभी किवता,तो कभी कहानी या िफर उपनयास िलखे जाते है. इस तरह से इनमे अलग-अलग तरह के भाव पैदा होकर इनका दायरा असीम हो जाता है. समय के साथ-साथ शबदो को सजाए जाने का ढंग भी बदलता रहता है यािन नयी - नयी तरह की भाषा जनम लेने लगती है. इसिलए पुरानी िलखी िकताबो एवम् नयी िलखी िकताबो मे फकर मालूम होता है.

22

सभी चीजो को आगे बढऩे के िलए एक िदशा चािहए. िबना सही िदशा के चीजे भटकती रहती है. जो सही िदशा मे चल पाते है, वही सही काम कर पाते है. जैसे घडी की सूइया अपनी धुरी से जरा सी भी इधर-उधर हुई तो कोई काम की नही रही. पेडो को िदशा िदखाता है सूरज, इसिलए वे उसी की ओर बढते है. भेडो के झुंड मे सबसे आगे चलने वाली भेड िजधर चलती है बाकी की भेडे भी उसी का अनुसरण करती है. ऐसी िदशा शुर से ही िशकको या उनके तुलय लोगो से िमलती है. धीरे-धीरे तुम भी इन चीजो से अचछी तरह से पिरिचत हो जाती हो और अपनी इचछानुसार अपनी एक िदशा िनधािरत करती हो.

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कई चीजे िजनहे तुम िबलकुल पढऩा नही चाहती थी, वे कुछ िदनो बाद तुमहारे हाथ मे आती है. उनहे पढते ही तुमहे लगता है िक तुम उनहे अचछी तरह से समझ सकती हो. इसमे तुमहारी िदलचसपी जागृत हो जाती है. ऐसा मानिसक समझ के िवकास होने पर होता है. िजसे भी धीरे-धीरे पिरपकवता पापत हो रही है वह किठन चीजो की तरफ भागेगा ही. वह जान की सवरशेष ऊंचाइयो को पाना चाहेगा, चाहे इसमे िकतनी भी मुिशकले कयो न आये. यह जान पािपत सुखद घटना है और जो सबसे सुंदर है,उसकी तरफ ही इसका बहाव है.

24

जैसे भूिम पर जल पडते ही वह उसे सोख लेती है उसी तरह से तुम मे भी जान को देखते ही उसे पापत कर लेने की पवृित होनी चािहए. कछ जानने की पवृित जब इस तरह की होती है तो तुमहारा शैिकक िवकास होता जाता है. तुमहारे पास पढऩे के इतने सारे साधन है जैसे िकताब, कलम, आंखे, अंगुिलया, िदमाग, कान आिद, िफर उनका उपयोग कयो न िकया जाए?

25

कमजोर रससी के सहारे अगर कोई ऊपर चढ रहा है तो िनिशत है वह िगरेगा ही. अगर तुमने एक किठन और ऊंचा मागर चुना है, परनतु वहा तक जाने के अचछे साधन नही है तुमहारे पास, तो तुमहारे साथ भी ऐसा ही होगा. रासते के बीचो बीच लगेगा जैसे बहुत सारा समय वयथर खचर हुआ. कयोिक पूरी तैयारी नही थी मंिजल तक पहंुचने की. लेिकन तब तक देर हो चुकी होती है. अत: जब सही मागर समझ मे नही आये, उस वकत दस ू रो से राय ली जा सकती है सवयं जो साधन तुमहारे पास है उनकी पूरी जाच होनी चािहए तािक तुम समझ सको िक ये िकतनी दरू ी तक तुमहारा साथ देगे.

26 इस दुिनया मे तैयारी के िबना कुछ भी संभव नही. बीज िछडक़ने के पहले जमीन को तैयार िकया जाता है, लडाई मे जाने से पहले सेना को पिशिकत िकया जाता है. एक सही तैयारी मे अनिगनत पहलुओं का मनन होता है. सवयं कोई भी बात छू टी तो मन मे खटकती रहती है. परीका फल जाचते समय परीकक का धयान तुमहारी कमजोिरयो पर सबसे पहले जाता है.

27 हमारी िनराशा ऐसी िसथित है, िजस कण हमे लगता है िक हम कुछ भी नही कर पायेगे. हमारी सारी सामथयर कालपिनक रप से कीण हो जाती है. ऐसा महसूस होता है जैसे सारी िवपरीत पिरिसथितया हमे रोक देना चाहती है, आगे बढऩे से. हम अपना आतमिवशास इतना खो चुके होते है िक ठीक से खडे भी नही रह पाते. यह वैसी ही िसथित है, जो पतझड के बाद एक पेड की होती है. कोई रौनक नही, कोई उतसाह नही. लेिकन धीरे-धीरे सब कुछ वापस लौट आता है. िसफर िहममत से कुछ िदन गुजारने होते है. ऐसे समय मे तुमहे भी धैयर रखना चािहए. इसे भी अशुभ शिकतयो के साथ हो रही लडाई समझना चािहए.

28 मिसतषक की पवृित है िवचारो को पैदा करना. इसमे अनेकानेक िवचार पैदा होते रहते है. सभी के अथर है, सभी के उपयोग है. लेिकन िजनहे तुम समझती हो, उनही का उपयोग कर पाती हो. बाकी सारे िवचार अभी तुमहारे िलए कचचे है, उनहोने अपना सवरप िनधािरत नही िकया है. वे धीरे-धीरे पक कर तुमहारे उपयोग मे आयेगे.

29 एक पकी कही भी अपने घोसले बना सकता है लेिकन वह चुनता है अपने िलए सबसे अचछा पेड तथा उसकी सबसे सुिवधाजनक डाली और बनाता है वही पर घोसला. इन सारे पिकयो की पसंद और समझ अलग-अलग होती है, शायद इसीिलए िसफर एक पेड पर ही नही बनाये जाते सारे घोसले. वे फैले होते है, बहुत सारे पेडो पर. इस तरह से ही लोगो की रिच एवम् पसंद अलग- अलग होती है. हमे उनका आदर करना चािहए. कभी-कभी हमे लगता है िक हम जो कायर कर रहे है केवल वही सतर का है, बाकी दस ू रो का नही. ऐसी सोच िबलकुल गलत है. इस पृथवी मे बहुत सारी िविभनताएं है और उनका पूरा महतव है तथा वे जानने योगय है.

30 जब िशकक कोई पश पूछते हो और तुम उसका उतर जानती हो तो िफर देर मत करो. सबसे पहले उतर देने के िलए हाथ उठाओ. यह कका मे तुमहारी सिकयता दशाता है और जब तुमने उस पाठ को अचछी तरह से समझा है तो उसका उतर देना तुमहारा कतरवय हो जाता है. इससे िशकक को भी अचछा लगता है िक हर कोई उसकी बातो को समझता है तथा उसकी िशका तुम लोगो तक पहंुच रही है. इससे िशकक पेिरत होते है और नये-नये तरीको से तुमहे िवषयो की जानकारी देते है.

31 कभी-कभी हम थोडी सी सफलता से आतममुगध हो जाते है और समझने लगते है िक हमने बहुत कुछ कर िलया है. यह बोध सवाभािवक है लेिकन धीरे-धीरे यह भम भी टू टता जाता है. हम इन चीजो पर अिधक धयान न देकर अपनी वासतिवक पगित मे उतसुकता बनाए रखते है. यह उसी तरह से है जैसे सूरज जब उदय होता है तो उस वकत मौसम ठंडा होता है, िफर धीरे-धीरे सारा मौसम गमर होकर, जाते-जाते िफर अंधकार छोड जाता है. एक ही सूरज और इसके इतने सारे रंग तुम देखती हो. तुम भी एक ही हो लेिकन दुिनया मे अपने िकतने तरह के पभाव छोडती हो.

32 जब भी तुम िकसी से कुछ लेती हो, तुमहारा हाथ देने वाले हाथ से हमेशा नीचे होता है एवम् िसर भी झुका हुआ. छाया लेने के िलए वृक के नीचे जाना पडता है. जान लेते वकत तुम िजतना अिधक नम और खुश रहोगी, उतना ही अिधक और अचछी तरह से यह तुमहे पापत होगा. तुमहारे कोध मे रहने पर कोई िकतना भी तुमहे यह देना चाहे, पर पापत नही होगा. जैसे बादल कोध मे आते है तो उनहे अपना सारा जल गंवाना होता है.

33 एक यज के संपन होने के बाद सारी भूिम पिवत हो जाती है. जैसे एक अिगन ने जनम िलया, िफर कोई पिवत कायर करके वह बुझ गयी. एक िवदाथी की तपसया भी कुछ ऐसी ही होती है. वह पितिदन कुछ न कुछ अिजरत करता है और अपने आपको उठता हुआ महसूस करता है. िविचत है यह जान िजसे सचमुच पापत कर लेने के बाद लगता है िक बहुत कुछ जानने का अहम् कही खो गया है. शात जल मे ही अपनी छिव िदखती है और िसथर वायु मे ही जलता हुआ दीपक रोशनी दे सकता है. सभी चीजो को जानने और सीखने के अपने -अपने तरीके है और इतनी सारी िविभनताओं को संभालने के िलए तुमहारे पास एक मिसतषक भी है, लेिकन तुम उससे िकतना पयार करती हो, इसी पर सारी सफलता िनभरर करती है.

34 तुम जानती होगी िक िजस ओर भी हवा का दबाव कम होता है, हवा उसी ओर तेजी से बहने लगती है तािक उसका संतुलन बना रहे. तुमहारे पास भी ढेर सारे िवषय है, केवल एक के सहारे तुम आगे नही बढ सकती. तुमहे भी कमजोर िवषयो की ओर धयान देना होगा, तािक सारे ं मे संतुलन बना रहे. वैसे ही जैसे िकसी भी काम को करने के िलए िवषयो के संबध पाचो अंगुिलया जररी है.

35

इस संसार मे मौजूद सारी चीजे हमे पेरणा देती है. काटो से पेिरत होकर हमने कपडा सीलने की सुइया बनाई या ऑपरेशन के असत. वैसे ही वृक के बडे-बडे तनो से पेरणा पाकर घर के सतंभ. पिकयो को उडते देखकर हमारे मन मे भी उडऩे की कलपना आयी होगी आिद-आिद. िकसी भी वसतु मे जो गुण है या उनके कायर करने का ढंग, उसकी पवृित जान लेने पर उससे दस ू री चीजो को बनाने एवम् समझने मे लाभ िमलता है. जैसे तुमने लोहे को अचछी तरह से समझ िलया है और अब उससे बनी बडी-बडी चीजो को देखोगी तो केवल उनके आकारपकार मे िभनता पाओगी िफर उसकी सारी बनावट िदमाग मे बैठा लोगी. जैसे लोहे से िगलास बनता है. छडे बनती है, मशीने बनती है. तार बनते है आिद. केवल उनके सवरप मे फकर होता है.

36

जब तुम दो िमत िमलकर कोई काम करती हो तो िफर तराजू के दो पलडो की तरह तुमहे आपस मे संतुलन रखना होगा. कभी तुम झुके तो कभी वह. अडे रहने से काम वही का वही रह जाएगा और दोनो मे एक दस ू रे को ितरसकृत करने की पवृित आयेगी.

37 बचचे के जनम लेते ही मा के हाथो मे कुछ नया आ जाता है, जो उसके शरीर का ही टुकडा होता है. लेिकन उसके बाहर आ जाने से उसे अदतू खुशी िमलती है. संसार की छुपी चीजे धीरे-धीरे अपना मुंह खोलती है. धीरे- धीरे धूप अपना रंग बदलती है और धीरे-धीरे नाव अपनी गित. संगीत को धीरे-धीरे साधना होता है और कला िसफर छू लेने भर से नही सीखी जा सकती. जब िकसी गहराई को जानना होता है तो पहले अंधेरे के भय को हटाना होता है, िफर पूरा िवशास िक उस चीज को हम पा ही लेगे. िफर धीरे-धीरे आगे बढऩा होता है. इसी तरह से पाते है हम सारी चीजो पर िवजय.

38 दीये की लौ सूरज के पकाश को देखकर भी धीमी ही जलती है. लेखक चाहे िकतना भी बडा कयो नही हो, कलम अपनी रफतार से चलेगी ही. सभी अपने-अपने सवभाव से बंधे हुए है. वे अपने सवभाव के अनुसार जान या अजान की चादर ओढऩा चाहते है लेिकन एक जानी वयिकत के पास आंखे है और वह बतला सकता है िक जान कहा है और यह कैसे पापत हो सकता है. लेिकन उसे पाने के िलए चलना तो तुमहे ही पडेगा न.

39 इस दुिनया मे िजतनी भी चीजे बनायी जाती है वे सब के िलये होती है. लेिकन उनमे से कुछ लेने का तरीका सबका अलग-अलग होता है. एक पकी के िलए बगीचे मे िसफर एक ितनका ही उसके काम का होता है, मधुमिकखयो के िलए रस, मनुषयो के िलए फल तथा फूल और बचचो के िलए िततिलया. लेिकन एक लेखक अपने लेखन मे वहा मौजूद सारी चीजो से िरशता जोडक़र उनका उपयोग कर लेता है. तुमहे भी ऐसी ही आंखे और सोच िवकिसत करनी चािहए, जो सारी चीजो को इसी तरह से देख,े समझे और महसूस करे.

40 कई बार तुम देखती होगी िक लोगो की िलखावट अचछी नही है, कुछ भी पढा नही जा सकता है, जो पढा भी जाता है वह बेहद मुिशकल से. यह इसिलए होता है कयोिक वणरमाला के अकर 'क’ को िलखते समय वे इसकी सीधी रेखा को कुछ टेढा कर देते है एवम् दस ू री वाली रेखा, जो सीधी रेखा के ऊपर िलखी जाती है, उसे िपचका देते है, यािन वणरमाला के अकरो के सवाभािवक सवरप को िवकृत रप मे बदल देते है इसिलए ये अकर भदे िदखाई पडते है. जैसे िक कोई बालो को उलझाये हुए, िबना नहाये – धोये गंदा सा चेहरा िदखाता रहे. अत: िलखावट ऐसी होनी चािहए, जैसे साफ-सुथरा िखला हुआ चेहरा. ऐसा अभयास पाय: बचपन मे ही िकया जाता है लेिकन बाद मे भी अगर सतकरता बरती जाए तो िलखावट सुंदर हो सकती है.

41 समुद को भी लगता है िक यह सूरज मेरा है, नदी को भी लगता है िक यह उसका है और तालाब को भी िक यह मेरा है, कयोिक यह उन सब मे एक साथ पितिबमबत होता है. जबिक सूरज इनमे िकसी मे भी नही होता. वह आसमान मे है. कई बार तुम सोचती होगी िक तुम सब कुछ जानती है. लेिकन शायद तुम कम ही जानती हो, केवल दृढतापूवरक तुमने अिधक जानने का िवचार अपने मन मे बैठा िलया है. इसिलए अपने जान पर थोडा शक करो तथा िसथरतापूवरक उसकी जाच भी.

42 अपने सारे कामो मे संतुलन रखो, जैसा िक एक नट रखता है, एक डंडे के सहारे. उसी तरह तुम भी एक छडी खोज लो जो तुमहे अनुशािसत करे और संतुिलत भी.

43 जब अचछे संगीत की धुन बजने लगती है तो अपने आप पाव िथरकने लगते है. सुबह होते ही पकी उडान भरने लगते है. ऐसी ही मन की िसथित होती है जब वह जान अजरन के िलए पेिरत हो जाता है. उस समय सारी चीजो को छोडक़र, उसकी एक ही इचछा होती है, जान अजरन की यािन अचछा पढऩे एवम् सीखने की. लेिकन पेरणा के सोत जब तुमहे जगाते है और तुम उनकी ओर तिनक भी धयान नही देकर आलसय मे उलझी रहती हो तो सब कुछ लुपत हो जाता है. अत: ऐसे अवसर हाथ से जाने नही देने चािहएं. बिलक उनकी तलाश करनी चािहए एवम् उपयोग भी.

44

एक पुल को बनाने मे वषों लग जाते है. एक वृक कई सालो के बाद फल देना शुर करता है. लेिकन इस बीच उनका काम चलता रहता है. तुमहारी थकान बताती है िक आज तुमने अचछी तरह से अपना काम िकया है. ितनके भी बहते-बहते समुद तक पहंुच जाते है. तुममे गित हो तो तुमहे कोई नही रोक सकता. इस संसार की सारी शिकतया-तुमहारी मदद के िलए तैयार है, उनका लाभ लो. एक छोटी मेज पर बैठ कर भी बडे-बडे आिवषकार हो जाते है. कभी- कभी एक कडुवा शबद भी पाणघातक बन जाता है और बडे-बडे असत भी पडे रहकर जंग के िशकार हो जाते है. शतरंज के खेल की तरह िवशलेषण करके सारे पाठो को समझा जाता है. जब सारी इंिदया एक ही िदशा मे काम करती है, तो इसे एकागता कहते है. यही पिरशम है जो िनधारण करता है िमलने वाले फल का और पतयेक पिरशम खतम होने पर छोड जाता है- एक सुखद अनुभूित हमारे साथ.

45 वे पौधे िजनका कोई मूलय नही, फूलो के आने पर सुंदर लगने लगते है. तुमहे कुछ बाते अचछी तरह से याद नही है, लेिकन िजतनी भी याद है, उनहे अचछी तरह से िलखा जाता है तो परीका – पत मे उनका मूलय हो जाता है.

46 जब खेतो मे बािरश होती है तो िकसान जलद से जलद बीज बोकर फसल उगा लेना चाहता है, कयोिक वह जानता है यह पानी अिधक िदनो तक जमीन मे रहेगा नही, उडऩे लगेगा. इस तरह से जब भी तुमहे कोई सुअवसर िमले उसका उपयोग करो, अनयथा देखते-देखते सब कुछ हाथ से िनकल जाएगा.

47 हू-ब-हू तुमहारे नाम या बातो की नकल करने वाला तोता बुिदमान नही होता, ना ही तुमहारी लगायी हुई टोपी को छीनकर अपने िसर पर पहनकर इतराने वाला बंदर. ये िसफर नकलची कहलाते है. अत: अपने मे जो कुछ है उसमे उसके मौिलक रप मे ही िनखार लाओ. दुिनया की सारी घिडय़ा साधारण ही है, जो सभी केवल समय बतलाती है. लेिकन जो बतलाता है िक समय के बीतने के साथ-साथ बहुत सारी घटनाओं की घटना भी है, वही बुिदमान है. पतयेक चीज को अपनी तरह से देखो, उनहे अचछी तरह से समझो, अचछी तरह से िलखो और जब कुछ अचछी चीजे बनती है तो तुमहारी उनित िनिशत है. नकल करके कुछ भी नया नही पाया जा सकता, बस उसके सहारे अपने आप को छुपाया जा सकता है परंतु मै चाहता हूं िक तुम छुपो नही, पजविलत करो अपने आपको और तुमहारा तेज चारो ओर िदखाई दे.

48 बचचो के जूते अलग तरह के होते है एवं बडो के दस ू री तरह के. जैसे-जैसे तुम बडी होती जाती हो, तुमसे भी एक पुराने वृक की तरह फल पाने की आशा की जाती है, यािन तुमसे भी कुछ दस ू रो को िमलना चािहए. सभी उममीद रखते है िक उम बढऩे के िहसाब से तुमहारी बात, वयवहार एवं तौर तरीको मे पिरपकवता आनी चािहए. अगर ऐसा नही होता है, तो तुम दीवार पर लगे एक वट वृक की तरह हो, जो िसफर अपने को बचाने के िलए ही संघषर कर रहा होता है.

49 फल पकते रहते है, फूल िखलते रहते है और यो समय गुजरता चला जाता है. वह तुमहारे िनणरय के िलए इंतजार नही करता. तुममे अगर यह कमता नही आई िक िकस तरह से इस समय को रोककर उसका इसतेमाल करो तो समझ लो िक अब देर नही करनी चािहए. जो भी खोया है उसे भुलाकर, सामने जो समय गुजर रहा है उसे पहचानो और उसी के अनुसार अपना िनणरय लो.

50 रेत के छोटे-छोटे कण िमलकर ढेर बनते है. घडी की जो सूई सबसे तेज रफतार से चलती है वही बाकी दस ू री दो सूइयो की िदशा िनधािरत करती है तुमने केवल एक सास ली और समय बीत गया. लेिकन इनही छोटे-छोटे पल मे भी तुम कुछ न कुछ तो कर ही रही थी. इसिलए जो िबलकुल धीरे-धीरे भी काम िकये जा रहे है वे िदमाग मे संकिलत होकर कोई न कोई िवसतृत आकार एक िदन धारण कर लेगे, इसिलए वयथर के कामो मे अपना समय गंवा कर तुम अचछी चीजे संकिलत नही कर पाती. बिलक जो कुछ अचछा संकिलत होना चािहए था, उसमे भी बाधा डालती हो या िवकृित लाती हो. इसिलए पढऩा छोडऩे पर तुमहे पछतावा होने लगता है.

51 होली ने तुमहे रंगो से िभंगो िदया, पानी डाला िक सब कुछ बह गया. किणक होती है सारी खुिशया, आयी नही िक समय इनहे धोने लगा. िफर भी जान हमेशा वतरमान है, यह बफर की तरह िपघलता नही.

52 िककेट के खेल मे, गेद के बैट से मारे जाने के बाद, सभी गयारह िखलाडी चौकने हो जाते है,मालूम नही गेद िकसके हाथ मे आ जाए. िफर िजस आदमी के हाथो के पास से यह गुजरती है उसने जरा सा भी आलसय िकया, गित के कारण गेद नीचे िगर गयी. आज के युग मे भी ऐसी ही होती है पितसपधा, जरा सी भी चूक की िक अवसर हाथ से िनकला और दस ू रो को पापत हुआ. अवसर आते ही रहेगे, लेिकन तुमहे चौकना रहना होगा वरना वे हाथ से िनकल जाएंगे.

53 िजतने भी खिनज है सभी जमीन के नीचे है, कोई ऊपर नही. जो बहुमूलय होता है वह छुपा हुआ होता है. इसिलए कुछ लोगो को िवदा कहा है, इसका आभास तक नही होता.

54 जब कही आग लग जाती है, सबसे पहले मनुषयो को बचाने की कोिशश की जाती है, िफर बाकी चीजो को. इससे समझ सकती हो िक मनुषय जीवन का िकतना अिधक महतव है. मनुषय ही पृथवी पर सबसे बडा बुिदजीवी है जो कुछ न कुछ नया करने का पयत‍न करता रहता है. इसिलए अपने मे जो भी खास बाते है तथा िजनके कारण तुम मनुषय हो, उनहे पहचानो. तािक तुम महसूस कर सको िक तुमहारे पास इतने सारे गुण है. कलम अगर मेज पर पडी रही, तो पलािसटक का टुकडा भर थी. लेिकन जब इससे िलखा गया तो यह महतवपूणर चीज बन गयी. इसिलए अपनी उपयोिगता को सुला कर मत रखो. उसे जगाये रखो.

55 जब पेडो पर फल आते है, तो पेड का सारा धयान उनहे बडा एवम् सवािदष बनाने मे लग जाता है. जैसे ही वे फल तोड िलये जाते है, पेड अपनी शाखाओं को बढाने एवं मजबूत करने मे अपना धयान लगाने लगता है. कोई भी शारीिरक कायर करते समय हाथ-पाव, कान-आंखे िदमाग आिद सभी एक साथ लगे होते है. लेिकन पढते वकत वे अपनी सारी शिकत पाठ को समझने मे लगा देते है. तुम िजतना ही अपनी शिकत को इस तरह से पुसतको पर केिनदत करोगी. उतना ही अिधक लाभ िमलेगा.

56 परीका देते समय सबसे पहले आसान पशो को हल िकया जाता है, िफर धीरे-धीरे किठन पशो को. इसी तरह से अपना पाठ याद करते समय सबसे आसान चीजो को पहले समझना होता है. िफर उसी समझ के सहारे किठन चीजो को. सारे पाठ एक आधार पर खडे होते है. िजनहे जाने ं मे िबना दस ू री चीजो को समझना िबलकुल मुिशकल है. लेिकन इस िकया मे िवषयो के संबध अतयिधक रिच बनाए रखना बेहद जररी होता है. एक बार मागर िनकाल लेने के बाद िफर कही भी किठनाई नही होती.

57 दवा की सूकम माता भी जीवन देती है, दवा सूकम होकर भी पाण है. आदरता? पानी का ही एक रप है. इसी तरह जो चुपचाप है , वे अपने मे शेषता छुपाये हुए है. शेष चीजे झूठ-मूठ के वातालाप नही करती, बिलक सवयं शेष तौर-तरीको से अपनी बात बताती है. अचछे िवजापन मौन रहकर भी बहुत कुछ कह जाते है.

58 मै अब भी जब कभी अपने पुराने िवदालय की ओर देखता हूं तो लगता है िक मेरे जैसे िकतने ही छात यहा आए होगे और पढाई खतम करके चले गए होगे. मुझे इस िवदालय मे िबताया हुआ हर खूबसूरत कण याद है और दस ू रे छात भी होगे जो यहा से पढक़र िवदा हएु है, उनहे भी यह सब याद होगा. इस तरह से तुम देखोगी िक हजारो बचचे ऐसे है जो एक ही जगह पढऩे पर भी अलग-अलग अनुभव रखते है. इसिलए उन सभी के अचछे अनुभवो का मूलय है. लेिकन सभी अपने अनुभवो को खुले िदल से सबके सामने नही रख पाते, िफर भी जो अपने अनुभव संसमरण के रप मे िकताबो के दारा सबके सामने रखते है, उनहे पढऩा दस ू रे लोगो को समझने जैसा है.

59 इस संसार मे हर पल कुछ नया हो रहा है और उस नये को जानने के िलए तुमहे भी एक बदला हुआ मनुषय बनना होगा. केवल तथाकिथत रिढ़़़ वचादी ीजो पर िवशास करके तुम नया कुछ नही कर सकती. सभी चीजो को जानने की कोिशश करो, अपनी आंखो की शिकत को पहचानो. इसी के सहारे तुम सारी चीजो को उभारना और ढालना सीखती हो.

60 रेिगसतान मे ऊंट पर बैठ कर याता की जाती है और दुगरम पहाडो के संकरे रासतो पर घोडो की पीठ पर बैठ कर. इसी तरह से अलग-अलग िवषयो को अपनी िभन-िभन मन:िसथितयो के सहारे समझना होता है या पढऩा होता है. अगर तुम गिणत पढ रही हो, तो तुमहे िवशलेषण करने वाली बुिद का सहारा लेना होता है और इितहास पढते समय मन को पुराने जमाने मे ले जाना होता है, उसी तरह िवजान पढते समय इस युग की मौजूद सारी चीजो पर धयान केिनदत करना होता है. धीरे-धीरे पिरिसथितयो के अनुसार हमारा िदमाग िवषयो को पढते ही उनके अनुसार ही तालमेल बैठा लेता है, जैसे गाने के अनुसार वाद यंतो मे हाथ ऊपर-नीचे होने लगते है.

61

शुभ राित! राित तुमहे िवदा. जब सोने के पहले इस तरह के भाव अपने आप तुमहारे मन मे आते है तो लगता है िक आज का िदन अचछा रहा. बहुत सारी उपलिबधया िमली. यािन पहले से अिधक अचछी तरह से चीजो को समझा गया और जो भी कायर िकये गये वे िनषा पूवरक िकये गये, अत: संतोष हुआ. िफर यह संतोषपूणर राित काफी आरामदायक होती है. कल िफर से तुम नयी होकर आती हो, हर नयी चीज मे हाथ लगाती हो.

62 पाठ के अंत मे कुछ पश िलखे जाते है. लेिकन जब पाठ अचछी तरह से पढा जाएगा, तो उसमे भी ढेर सारे कई पश िनकलेगे. इनही का उतर तुमहे ढू ंढऩा है.

63 हम जानते है िक एक छोटी सी चीटी हमारा कुछ भी िबगाड नही सकेगी लेिकन उसके काटने पर भी पूरा शरीर झनझना उठता है. वैसे ही यह ईषरया अदृशय होकर भी हमे भयभीत कर देती है . इषया॔ करके हम दस ू रे की तरकी को रोकना चाहते है तथा चाहते है िक वह जहा है उससे भी अिधक नीचे िगर जाये. लेिकन ऐसा करना हमारे हाथो मे नही होता. सभी का अपना-अपना जीने का तरीका है. दस ू रो की सोच मे तुमहारा हसतकेप तुमहे ही परेशान कर देता है.

64 शरीर चाहे घुपप अंधेरे मे हो या पानी के तल मे अपने भीतर सास भरने का पयत कभी नही छोडेगा. हमारा सवभाव ही है जानना और सीखना. जब तक उसे यह नही िमल जाता उसे पूरी तरह से, तृिपत नही होती. कही भी मीठा रखो अपनी िजजासा के कारण चीिटया पहंच ु ही जाती है. कोई तुमहे अचछी तरह से पढाये या न पढाये तुम मे दस ू रो से कुछ लेने की कािबलीयत होनी चािहए, बस चीजो को जानने की अपनी िजजासा बनाये रखो. शेष कायर शरीर खुद ही कर देगा.

65 शरीर मे थोडा सा भी जखम हुआ नही िक खून बहने लगा. नाव मे छोटा सा भी छेद हुआ नही िक पानी भरने लगा. इस तरह की िकतनी ही घटनाएं होती है जो तुमहारे न चाहते हुए भी अपने आप घटने लगती है. जो बुरी चीजे है उनकी ओर तुमने जरा सा धयान िदया तो वे अपने आप तुमहारे पास आने लगती है. इन चीजो पर िबलकुल भी धयान न देकर अपने आपको बचाया जा सकता है. हमारा मन इसी तरह से काम करता है. िजन चीजो पर थोडा सा भी धयान िदया वही चीजे सिकय हो गई.

66

निदया हम से कहती है िक जब उनमे बहाव है तो एक न एक छुपी ताकत भी है जो उनहे आगे की ओर भेज रही है. लेिकन वह ताकत अदृशय है. ऐसा ही हर पाठ के साथ होता है. जो िलखे हुए शबद और िवषय है, वे तो सामने है िकनतु उनके पीछे एक उदेशय होता है, यािन उनहे पढऩे का कारण. ऐसे कारणो की जानकारी हमेशा पाठ को अचछी तरह से समझने मे मदद करती है.

67 आम की गुठली को देखकर ही उसके वृक की पूरी आकृित याद आ जाती है या िकसी देश का लहराता हुआ झंडा देखकर उससे संबिं धत सारी बाते मन मे िवचारो के रप मे गुजरने लगती है . इस तरह से इस दुिनया मे जो भी चीजे है वे बहुत सारी दस ू री चीजो से भी जुडी होती है. हर चीज बहुत सारी चीजो का पतीक है जैसे कलम भर कहने से कागज, सयाही, पुसतको के िचत उभर कर सामने आ जाते है इस तरह के पतीक िकसी भी पाठ के नोटस बनाने के काम मे मदद करते है.

68 हर चीज जो मौजूद है उसका एक इितहास होता है तथा उससे जुडी बहुत सी बाते भी. धीरेधीरे थोडा-थोडा करके ऐसी बहुत सारी चीजो को जाना जा सकता है. कई बार एक ही िवषय को अलग-अलग पुसतको का अधययन करके बहुत सारी नई जानकािरया इकटी कर ली जाती है और नया लेख तैयार हो जाता है. हमे कभी भी अपने जान को सीमा मे नही बाधना चािहए. हमेशा िवचारो को िवसतृत और खुला रखना चािहए. जैसे एक पतंग के उडऩे का कोई िनिशत मागर नही होता, कही भी वह उड सकती है और वापस लौट सकती है.

69 पतो मे हमारी गहरी िनजी भावनाये िछपी होती है. वे गाढे शहद की तरह है. एक सैिनक ही पतो का महतव जानता है या कोई पेमी. इन पतो को वयथर की चीज नही समझकर मन बहलाने का सशकत साधन मानना चािहए. जो िमत तुमसे िबछुड गए थे उनसे भी पतो के दारा संपकर बनाये रखा जा सकता है. ये पत कभी भी काम चलाऊ नही होने चािहए बिलक पूरी तनमयता से िलखे होने चािहएं. एक पत मे तुम अपने मन की पूरी बाते कह सकती हो और तुमहारा पत िमलने पर दस ू रे भी उसी के अनुरप तुमहे पत िलखते है. एक अचछा पत पाय: िजनदगी भर हमारे साथ रहता है एवम् उसे बार-बार पढऩे से सुख िमलता है.

70 जीवन जीने के िलए है और वह भी अचछी तरह से. तुम सबसे पेम करो और यह वैसा पेम हो िजसमे िवयोग दुख नही देता है. तुम बहो नदी की तरह-लय मे और अपने जान रपी रेत के कण बाटते जाओ- दस ू रो को, तािक इस रेत से दस ू रो के सुनदर- सुनदर घर बन सके.जहा

गित है वही दिू रया खतम हो जाती है और तुम से जब दस ू रो को कुछ पापत होता है, तो यह अनुभव तुमहे बेहद खुशी देता है.

71 ये आंखे सचमुच मे अंधी है, िबना पकाश के दो डग भी आगे नही बढ सकती. इनहे पकाश चािहए, अनयथा बेकार. वैसे इतने सारे उपलबध पकाश का थोडा सा ही अंश ये लेती है बाकी इनके काम का नही.

72 फसल बोने के बाद भी डर लगा रहता है िक कही उसके अंकुिरत होते छोटे-छोटे पौधो को िचिडय़ा खा नही जाएं या फसल के दानो को कीडे चट न कर जाएं या रातो रात चोर इसे चोरी करके न ले जाएं. िनरंतर पित िदन की सुरका के बाद हमे हािसल होता है अन. अत: हमारे जान को भी इसी तरह से संभाल कर रखना पडता है िकसी कवच जैसी सुरकातमक वयवसथा से. जैसा िक हर घडी के ऊपर एक काच लगा होता है. हम हर अचछी या बुरी चीज को देख सकते है. लेिकन सभी मे हमारे िदमाग को िलपत नही होने देना है. केवल अपने काम से मतलब रखने वाली जानकािरयो को ही गहरी याददाशत मे रखना है अनय को नही. इस तरह का हमारा संयम ही हमारी सोच मे आने वाली िवकृितयो से हमे बचाए रखता है.

73 अगर एक नदी अपने तट को रका हुआ देखती रहती, तो खुद कया भी रक नही जाती? यह हवा तो िबना थके पिरशम करती रहती है. अगर सभी अंधकार का ही अनुशरण करते, तो पकाश कौन फैलाता? इसिलए वैसी चीजो की तरफ मत देखो िजनमे िसथरता आ गयी है और जो जीवन मे िनराशा का संचार करती है. तुमहारे मन को छू ने के िलए असीम चीजे है. अपनी झोली को इतना अिधक फैलाओ िक सब कुछ समा जाने के बाद भी खाली बच जाए, इसका कोई न कोई कोना.

74 सारी चीजे पूरी होने मे समय लेती है. बफीले पहाडो के थोडे से ही िहससे गमी मे िपघल पाते है जब तक वे पूरे िपघले, उसके पहले ही सिदरया आ जाती है और वे पूवरवत् बने रहते है. इसी तरह से मुसीबते हमे पूरी तरह से िनगल जाएं उससे पहले ही उनसे बचाव िकया जा सकता है. इसिलए गलितया करने के बाद भी संभलने के जो अवसर तुमहे िमलते है उनमे संभल जाओ. इस िजंदगी का यही िनयम है. जहा बाधाएं है, उनसे बचाव के उपाय भी है.

75

छोटे-छोटे रासते गाव की तरफ ले जाते है और लंबे रासते शहरो की तरफ. गाव बेहद छोटा लगता है, ऐसा महसूस होता है, जैसे बहुत कम होगी यह िविभनता . लेिकन ऐसा दरू से देखने से लगता है, जबिक ऐसा होता नही. यह ठीक वैसा ही है जैसे िकसी हवाई जहाज से हम नीचे की ओर देखे तो िसफर धरती ही धरती नजर आती है लेिकन सचचाई मे होता है बहुत कुछ. गाव के लोग भी अपने सीिमत साधनो मे तरह के तरह काम करते है, जैसे कपडे बुनना, िमटी के सामान तैयार करना, फसल उगाना, शहद तैयार करना, बास की कलाकृितया तैयार करना आिद. धीरे-धीरे ये छोटे-छोटे साधन ही कोई बडा आकार ले लेते है, जैसे छोटे-छोटे गाव ही शहर का और गाव के लोग ही बाद मे शहरी हो जाते है. इस तरह से तुमहारी मौजूद बुिद को भी बडा आकार लेना होगा तािक वह आधुिनक हो जाए तथा देश- िवदेश मे मौजूद यंतो एवं उनकी पणाली को समझ सके और िफर कुछ नया कर सके या मौजूदा पणाली का अनुसरण कर अपने होने की साथरकता िसद कर सके.

76 फूल कभी भी परेशान नही होते िक उनहे काटो के आस-पास िखलना होगा बिलक सवयम् मे और काटो मे फकर िदखलाकर वे खुशबू िबखेरते दरू चले जाते है. इसिलए जो अचछे काम है वही तुमहे करने चािहएं. यह िचंता नही करनी चािहए िक दस ू रे कुछ लोग बुरे काम कर रहे है, या कुछ भी बुरा सोच रहे है वह तुमहारे बारे मे है. िफर दस ू रो का मिसतषक या सोच तुमहारे वश मे भी तो नही है.

77 िकसी भी बात को कम शबदो मे और सारे तथयो के साथ पसतुत िकया जाता है तो उसे अचछा माना जाता है. हमेशा िलखने का ढंग अपना िनजी होना चािहए न िक नकल िकया हुआ. इस तरह से समभव है िक िकसी नयी भाषा का जनम हो जो तुमहारे मन को तरंिगत कर दे और िनिशत रप से वह इतनी सरल हो िक आसानी से समझ मे आ जाए. साथ-साथ उस भाषा मे अचछी लय – ताल हो जो एक वेग के साथ हमसे जुड जाए तािक उसे िबना पढे या सुन े, हम रह नही पाये . उममीद है िक इस िदशा मे तुम पयापत पिरशम करोगी.

78 लोहे के गमर होने के बाद ही उसे िकसी आकार मे ढाला जा सकता है. िमटी मे पानी होने पर ही वह उपजाऊ हो सकती है. इस तरह से सभी चीजो मे अपने गुण होने पर भी, उनहे जब

तक दस ू री सहायक चीजे नही िमल पाती, तब तक वे काम नही कर पाती. जैसे घर मे आटा िजतना भी पडा हो, जब तक इसे गूंथा या पकाया नही जाएगा वह िकसी काम मे नही आएगा. इसी तरह से ये सारी िवधाये योजनाएं तो बना सकती है लेिकन उनहे कायर मे लाने के िलए िफर दस ू रे लोगो एवं अनय साधनो की मदद लेनी होती है. कुछ जान ऐसे होते है जो दस ू रो को मानिसक रप से िशका देने एवं उनके जान की वृिद मे सहायक होते है. दस ू रे महतवपूणर जान वैजािनक पिकया दारा नयी चीजो के िनमाण मे लगाए जाते है तािक जीवन और अिधक सुिवधापूणर एवं खुशहाल हो.

79 पानी पर बहता हुआ एक ितनका पास से गुजर जाता है और उसे हम देखते तक नही. एक पकी चोच मे ितनका लेकर उडे तो यह साधारण सी बात है लेिकन जब इसी ितनके मे आग लग जाती है तो यह अिधक तेजी से जलना शुर कर देता है और बहुत बडी सोचनीय िसथित हो जाती है. इसी तरह होती है हमारी अजानता. जब तक यह चुपचाप है िकसी को कोई तकलीफ नही. लेिकन जैसे ही इसने कोई मुखरतापूणर कायर शुर िकया, पूरे राषट को तकलीफ होने लगी . इसिलए साकरता पर जोर िदया जाता है तािक संसार मे जो िवकास हो रहा है, नयी – नयी चीजे हमारे सामने आ रही है उसकी जानकारी सबको हो सके और सारे लोग एक साथ चल सके तथा इन चीजो का लाभ उठा सके.

80 जैसे बहुत सारे दीयो को पजविलत करने के िलए िसफर एक दीये की आवशयकता है, वैसे ही िजस जान मे पकाश है वह ढेर सारी िवदाओं की जानकारी तुमहे दे देता है. अब यह तुम पर िनभरर करता है िक तुम उसे लेती हो या नही. लेिकन जो भी करो उसमे पूरा डू बकर. िवदा का यही सार है िक जब तुम उसमे पूरी डू बी तो वह छलक कर बाहर आने लगती है. िफर चारो तरफ िवदा ही िवदा िबखरी नजर आती है.

81 िजस तरह से दही को मथने पर मकखन अपने आप िनकल आता है उसी पकार से एक पुसतक को भी िविभन सतर से समझने व टटोलने पर उसका रस हािसल हो जाता है. धीरेधीरे जब तुम जान से समृद होती जाती हो, उस वकत वैसी बहुत सारी पुसतके, जो तुमहे पहले अचछी लगती थी, अब शायद अचछी नही लगे. लेिकन जो महतवपूणर लेखन होता है उसकी यादे हमेशा बनी रहती है.

82 शुद सोने को देखकर कोई भी पहचान लेता है िक यह सोना है. लेिकन जब यह अपने मूल रप मे अपनी आरंिभक खिनज पदाथर की अवसथा मे था तब उसे पहचानना बेहद किठन था. ना ही इसका कोई उपयोग था. इसी तरह से जो जान िवकिसत हो चुका होता है उसे तो सब पहचान लेते है लेिकन जब यह पिरषकृत न होकर आरंिभक अवसथा मे होता है, उसे पहचानना बहुत मुिशकल होता है. तुमहे भी इन छुपी चीजो की पहचान करनी है और उनहे चुनकर धीरे-धीरे अपने जान को पिरषकृत करना है तािक कोई अचछी चीज तैयार हो सके. यह ठीक वैसा ही है जैसा एक नये तरह के बीज के बारे मे कोई नही जानता, लेिकन जब पूरा पेड िनखार पर आ जाता है तो उसमे लदे फल – फूल , सभी का मन मोहने लगते है.

83

तुमहारी थोडी सी आवाज से ही कौए को परेशानी होने लगती है और वे दरू भागने लगते है जबिक िचिडय़ा थोडी दरू तक फुदककर वापस वही बैठ जाती है. ऐसा आपसी िवशास के कारण होता है. िजन पर भी हमारा िवशास होता है िक वे हमे हािन नही पहंुचाएंगे हम खुद – ब – खुद उनके पास चले जाते है. जब दोनो ओर से िवशास पका होता है तब दोसती गहरी होती है. जब आपसी िवशास नही होता उस वकत हम सतकर हो जाते है िक कही वह दोसत, हमे िकसी तरह की परेशानी मे न डाल दे.

84 सभी पिकयो की सुबह की उडान कुछ अलग तरह से होती है और शाम की कुछ अलग ढंग से. इन सबमे अलग-अलग तरह के सुख का आभास होता है. यह मौसम और जलवायु मे बदलाव के कारण होता है. भूगोल ऐसी ही चीजो के बारे मे बतलाता है िक कहा पर िकस तरह का मौसम होगा. वहा िकस तरह की िमटी होगी, िकस रप रंग के लोग होगे, कैसे पेड पौधे होगे और कैसे खिनज पदाथर आिद. जब तुम मौसम, पेड-पौधो, खिनज, िमटी एवं वयिकत को अचछी तरह से समझ लेती हो तो भूगोल भी आसानी से समझने लगोगी. इस भूगोल से ही सारे जान, िवजान एवं कला का जनम हुआ अत: कम जररी लगने वाला िवषय होते हुए भी भूगोल अतयंत आवशयक िवषय है. इस िवषय का समुिचत जान रखे िबना हमारा जान अधूरा ही रहेगा.

85 जब तुम जैसी एक बचची खुश हो, तो िकतना अचछा लगता है और तुम जैसी ढेर सारी और बिच््च ़़़ या़ एक साथ खुश हो और िकतना अचछा लगेगा. सभी एक साथ खुश हो, तो यह उतसव का वकत है. खुिशयो की हवा चली नही िक सारी डािलया झूमने लगी. बािरश पानी

की एक बूंद से नही होती अनिगनत बूंदे इसमे शािमल होती है. बासुरी बहुत सारे छेदो के कारण सुरीली होती है. अत: बहुत सारे बचचे ही आपस मे िमलकर िवदालय की शोभा बढाते है. इसिलए सभी बचचो को आपस मे िमलजुल कर रहना ही सबसे अचछी भावना है.

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